Saturday, March 27, 2010

उत्तेजक कहानिया दिल अपना और प्रीत पराई--पार्ट--5

राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ
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दिल अपना और प्रीत पराई--पार्ट--5

उस दिन शाम को काशिफ़ का रिसेप्शन था! मैं सुबह उठा और आकाश के जाने के बाद बिना नहाये ही सामने राशिद भैया के घर चला गया! मेरी नज़रें ज़ाइन को ही ढूँढ रहीं थी! उसने मुझे निराश नहीं किया और कुछ ही देर में अपने दो कजिन्स के साथ आया! मैने उसकी नमकीन जवानी के दर्शन से अपना दिन शुरु किया! उस दिन के बाद से ज़ाइन को वापस अकेले लाकर उस मूड में लाना मुश्किल हो रहा था! शादी के चक्‍कर में मौका ही नहीं मिल रहा था! ट्रेन पर मौका था तो आकाश मिल गया! इलाहबाद में मौका था तो वहाँ वसीम और आसिफ़ मिल गये! फ़िर मैने सोचा कि राशिद भाई के सिस्टम पर ही मेल चेक कर लूँ! उस दिन भी ज़ायैद की मेल आयी थी!

“आज मैं बहुत हॉर्नी फ़ील कर रहा हूँ… यू नो, मेरे होल में गुदगुदी हो रही है… जब उँगली से सहलाता हूँ तो बहुत अच्छा लगता है! माई फ़्रैंड्स जस्ट टॉक अबाउट गर्ल्स, बट आई कीप लुकिंग एट माई फ़्रैंड्स… समटाइम्स आई वाँट टु हैव सैक्स विथ दैम ऑल्सो! अब तो पुराने पार्टनर्स से गाँड मरवाने में मज़ा भी नहीं आता है! अब तो आपसे मिलने का दिल भी करता है! आई वाँट टु होल्ड युअर कॉक एंड फ़ील इट! आई ऑल्सो वाँट टु सक इट एंड फ़ील इट डीप इन्साइड माई होल! आपका लँड अंदर जायेगा तो दर्द होगा… मे बी आई माइट इवन शिट बट आई स्टिल वाँट इट…”

ये और ऐसी और भी बातें उसने लिखी थी! मैने उसका जवाब दिया और लॉग ऑउट हो गया! ये एक एक्सिडेंट ही था कि ज़ायैद को एक दिन हिन्दी-गे-ग्रुप के बारे में पता चला, जहाँ उसने मेरी कहानियाँ पढीं और हमारे बीच ये एक तरह का अफ़ेअर सा शुरु हो गया! ज़ायैद धीरे धीरे डेस्परेट हो रहा था!
एक बार जब मैने उससे पूछा कि उसको क्या पसंद है तो उसने लिखा था!
“अआह… मैं किसी मच्योर आदमी की वाइफ़ की तरह बहाने करना चाहता हूँ… नयी नयी चीज़ें एक्सपेरिमेंट करना चाहता हूँ! मेरे फ़्रैंड्स सिर्फ़ सैक्स करते हैं बट आई वाँट टु डू मोर… मे बी गैट लिक्ड… मे बी ट्राई इवन पिस एंड थिंग्स लाइक दैट… यु नो ना? लडका था तो गर्म, मगर था मेरी पहुँच से बहुत दूर… ना जाने कहाँ था ज़ायैद…

उस दिन मैने एक नया लडका भी देखा! उसका नाम शफ़ात था और वो मेरे एक दोस्त का छोटा भाई था जो राशिद भाई के यहाँ भी आता जाता था! उसकी काशिफ़ से दोस्ती थी! उस समय में बी.एच.यू. में एम.बी.बी.एस. सैकँड ईअर में था! पहले उसको देखा तो था मगर अब देखा तो पाया कि वो अच्छा चिकना और जवान हो गया है! मैने उससे हाथ मिलाया! वो कुछ ज़्यादा ही लम्बा था, करीब ६ फ़ीट ३ इँच का जिस कारण से उसकी मस्क्युलर बॉडी सैक्सी लग रही थी! मैने उसको देखते ही ये अन्दाज़ लगाया कि ना जाने वो बिस्तर में कैसा होगा! ये बात मैं हर लडके से मिल कर करता हूँ! मैने नोटिस किया कि ज़ाइन शफ़ात से फ़्रैंक था! मुझे कम्प्यूटर मिला हुआ था इसलिये मैं अपनी गे-स्टोरीज़ की मेल्स चेक करता रहा! कुछ इमजेज़ भी देखीं, दो विडीओज़ देखे और गर्म हो गया! फ़िर बाहर सबके साथ बैठ गया! मैने देखा कि शफ़ात की नज़रें घर की लडकियों पर खूब दौड रहीं थी… खास तौर से राशिद भाई की भतीजी गुडिया पर! वैसे स्ट्रेट लडको के लिये १२वीँ में पढने वाली गुडिया अच्छा माल थी! वो बिल्कुल वैसी थी जैसे लडके मैं ढूँढता हूँ! नमकीन, गोरी, पतली, चिकनी! शफ़ात के चिकने जवान लँड के लिये उसकी गुलाबी कामुक चूत सही रहती! गुडिया मुझसे भी ठीक ठाक फ़्रैंक थी! बस ज़ाइन मेरे हाथ नहीं आ रहा था… किसी ना किसी बहाने से बच जाता था!

उस दिन बैठे बैठे ही सबका राजधरी जाने का प्रोग्राम बन गया! क्योंकि राशिद भैया के काफ़ी रिश्तेदार थे, सबने सोचा, अच्छी पिकनिक हो जायेगी! राजधरी बनारस से करीब दो घंटे का रास्ता है और मिर्ज़ापुर के पास पडता है! वहाँ एक झरना और ताल है जिसमें लोग पिकनिक के लिये जाते हैं! उसके पास छोटे छोटे पहाड भी हैं! जब मुझे ऑफ़र मिला तो मैं भी तैयार हो गया! अगली सुबह रिसेप्शन के बाद जाने का प्रोग्राम बना! सब मिला कर करीब ३० लोग हो गये थे!

शाम के रिसेप्शन में भीड भाड थी, घर के पास ही पन्डाल लगा था, लाइट्स थी, गाने बज रहे थे, सब इधर उधर चल फ़िर रहे थे! वहाँ के घर पुराने ज़माने के बने हुये हैं… हैपज़ार्ड! जिस कारण कहीं एक दम से चार मन्ज़िलीं हो गईं थी, कहीं एक ही थी! मेरे और राशिद भैया के घर में एक जगह बडी छत कहलाती थी, जो एक्चुअली फ़िफ़्थ फ़्लोर की छत थी, फ़िफ़्थ फ़्लोर पर सिर्फ़ एक छोटी सी कोठरी थी… ये उसकी छत थी जिसके एक साइड मेरा घर था और एक साइड उनका! मैं अक्सर वहाँ जाकर सोया करता था! उसकी एक छोटी सी मुंडेर थी ताकि कोई करवट लेकर नीचे ना आ जाये! ज़्यादा बडी नहीं थी! वहाँ से पूरा मोहल्ला दिखता था!

फ़िल्हाल मैं चिकने चिकने जवान नमकीन लौंडे ताड रहा था! साफ़ सुथरे कपडों में नहाये धोये लौंडे बडे सुंदर लग रहे थे! मगर वो शाम सिर्फ़ ताडने में ही गुज़री! कोई फ़ँसा नहीं! क्योंकि अगली सुबह जल्दी उठना था मैं तो जल्दी सोने भी चला गया!

दूसरे दिन काफ़िले में पाँच गाडियाँ थीं और कुल मिलकर करीब आठ चिकने लौंडे जिसमें ज़ाइन और शफ़ात भी थे और उनके अलावा कजिन्स वगैरह थे! राजधारा पर पहुँच के पानी का झरना देख के सभी पागल हो गये! सभी पानी में चलने लगे! कुछ पत्थरों पर चढ गये! कुछ कूदने लगे! कुछ दौडने लगे! मैने पास के बडे से पत्थर पर जगह बना ली क्योंकि वो उस जगह के बहुत पास थी जहाँ सब लडके अठखेलियाँ कर रहे थे… खास तौर से ज़ाइन! उस जगह की ये भी खासियत थी कि वो उस जगह से थोडी हट के थी जहाँ बाकी लोग चादर बिछा कर बैठे थे! यानि पहाडों के कारण एक पर्दा सा था! इसलिये लडके बिना रोक टोक मस्ती कर रहे थे! मेरी नज़र पर ज़ाइन था! वो उस समय किनारे पर बैठा सिर्फ़ अपने पैरों को भिगा रहा था!
“ज़ाइन… ज़ाइन…” मैने उसे पुकारा!
“नहा लो ना… तुम भी पानी में जाओ…” मैने कहा!
“नहीं चाचा, कपडे नहीं हैं…”
“अच्छा, इधर आ जाओ.. मेरे पास… यहाँ अच्छी जगह है…”
“आता हूँ…” उसने कहा मगर उसकी अटेंशन उसके सामने पानी में होते धमाल पर थी! सबसे पहले शफ़ात ने शुरुआत की! उसने अपनी शर्ट और बनियान उतारते हुए जब अपनी जीन्स उतारी तो मैं उसका जिस्म देख के दँग रह गया! वो अच्छा मुस्च्लुलर और चिकना था, साथ में लम्बा और गोरा! उसने अंदर ब्राउन कलर की फ़्रैंची पहन रखी थी! मैने अपना फ़ोन निकाल के उस सीन का क्लिप बनाना शुरु कर दिया! शफ़ात ने जब झुक के अपने कपडे साइड में रखे तो उसकी गाँड और जाँघ का बहुत अच्छा, लँड खडा करने वाला, व्यू मिला! मेरा लौडा ठनक गया! उसको देख के सभी ने बारी बारी कपडे उतार दिये… और फ़ाइनली ज़ाइन ने भी!

मैने ज़ाइन के जिस्म पर अपना कैमरा ज़ूम कर लिया! वो किसी हिरनी की तरह सुंदर था! उसके गोरे बदन पर एक भी निशान नहीं था! व्हाइट चड्‍डी में उसकी गाँड क़यामत थी! गाँड की मस्क्युलर गोल गोल गदरायी फ़ाकें और फ़ाँकों के बीच की दिलकश दरार! पतली चिकनी गोरी कमर पर अँडरवीअर के इलास्टिक… फ़्लैट पेट… छोटी सी नाभि… तराशा हुआ जिस्म… छाती पर मसल्स के कटाव… सुडौल जाँघें और मस्त बाज़ू… वो खिलखिला के हँस रहा था और हँसता हुआ पानी की तरफ़ बढा! मेरा लँड तो जैसे झडने को हो गया! उसको उस हालत में देख कर मेरा लौडा उफ़न गया! फ़िर सब मुझे भी पानी में बुलाने लगे! जब देखा कि बच नहीं पाऊँगा तो मैं तैयार हो गया!

जब मैं किनारे पर खडा होकर अपने कपडे उतर रहा था तो मैने देखा कि ज़ाइन मेरी तरफ़ गौर से देख रहा था! उसने मेरे कपडे उतरने के एक एक एक्ट को देखा और फ़िर मेरी चड्‍डी में लँड के उभार की तरफ़ जाकर उसकी आँखें टिक गयी! मैं सबके साथ कमर कमर पानी में उतर गया! पानी में घुसते ही मेरे बदन में इसलिये सिहरन दौड गयी कि ये वही पानी था जो ज़ाइन और शफ़ात दोनो के नँगे बदनों को छू कर मुझे छू रहा था! एक तरफ़ वॉटरफ़ॉल था! मैने शफ़ात से उधर चलने को कहा! हम सीधे पानी के नीचे खडे हो गये! वो भी खूब मस्ती में था, मैं भी और बाकी सब भी…
“आपने इसके पीछे देखा है?” शफ़ात ने कहा!
वो मुझे गिरते पानी के पीछे पत्थर की गुफ़ा के बारे में बता रहा था… जहाँ चले जाओ तो सामने पानी की चादर सी रहती है!
“नहीं” मैने वो देखा हुआ तो था मगर फ़िर भी नहीं कह दिया !
“आइये, आपको दिखाता हूँ… बहुत बढिया जगह है…”
पानी में भीगा हुआ, स्लिम सा गोरा शफ़ात अपनी गीली होकर बदन से चिपकी हुई चड्‍डी में बहुत सुंदर लग रहा था… बिल्कुल शबनम में भीगे हुये किसी फ़ूल की तरह! उसके चेहरे पर भी पानी की बून्दें थमी हुई थी! जब हम वहाँ पहुँचे तो मैने झूठे एक्साइटमेंट में कहा!
“अरे ये तो बहुत बढिया है यार…”
“जी… ये जगह मैने अपने दोस्तों के साथ ढूँढी है…” मैने जगह की तारीफ़ करते हुये उसके कंधे पर हाथ रखते हुये उसकी पीठ पर हाथ फ़ेरता हुआ अपने हाथ को उसकी कमर तक ले गया तो ऐसा लगा कि ना जाने क्या हुलिया हो! उसका जिस्म चिकना तो था ही, साथ में गर्म और गदराया हुआ था!
“तुम्हारी बॉडी तो अच्छी है… लगता नहीं डॉक्टर हो…”
“हा हा हा… क्यों भैया, डॉक्टर्स की बॉडी अच्छी नहीं हो सकती क्या? हम तो बॉडी के बारे में पढते हैं…”
“ये जगह तो गर्ल फ़्रैंड लाने वाली है…”
“हाँ है तो… मगर अब सबके साथ थोडी ला पाता…”
“मतलब है कोई गर्ल फ़्रैंड?”
“हाँ है तो…” मेरा दिल टूट गया!
“मगर हर जगह उसको थोडी ला सकता हूँ… उसकी अपनी जगह होती है…”
मैने सोचा कि ये लौंडा तो फ़ँसेगा नहीं, इसलिये एक बार दिल बहलाने के लिये फ़िर उसकी पीठ सहलायी!
“तो बाकी जगह पर क्या होगा?”
“हर जगह का अपना पपलू होता है… पपलू जानते हैं ना?”
“हाँ, मगर तुम्हारा मतलब नहीं जानता… हा हा हा…”
“कभी बता दूँगा…”
“अच्छा, तुमने ऊपर देखा है? जहाँ से पानी आता है…”
“हाँ… चलियेगा क्या?”
“हाँ, चलो…”
“वो तो इससे भी ज़्यादा बढिया जगह है… आप तो यहाँ ही कमर सहलाने लगे थे… वहाँ तो ना जाने क्या मूड हो जाये आपका…”
“चलो देखते हैं…” लौंडे ने मेरा इरादा ताड लिया था… आखिर था हरामी…
ऊपर एक और गहरा सा तलाब था और उसके आसपास घनी झाडियाँ और पेड… और वहाँ का उस तरफ़ से रास्ता पत्थरों के ऊपर से था!
“कहाँ जा रहे है… मैं भी आऊँ क्या?” हमको ऊपर चढता देख ज़ाइन ने पुकारा!
“तुम नहीं आ पाओगे…” शफ़ात ने उससे कहा!
“आ जाऊँगा…”
“अबे गिर जाओगे…”
शायद ज़ाइन डर गया! हम अभी ऊपर पहुँचे ही थे कि हमें पास की झाडी में हलचल सी दिखी!
“अबे यहाँ क्या है… कोई जानवर है क्या?”
“पता नहीं…” मगर तभी हमे जवाब मिल गया! हमें उसमें गुडिया दिखी!
“ये यहाँ क्या कर रही है?” शफ़ात ने चड्‍डी के ऊपर से लँड रगडते हुए कहा!
“कुछ ‘करने’ आयी होगी…”
“‘करने’ के लिये इतनी ऊपर क्यों आयी?”
“इसको ऊपर चढ के ‘करने’ में मज़ा आता होगा…” मैने कहा!
“चुप रहिये… आईये ना देखते हैं…” उसने मुझे चुप रहने का इशारा करते हुये कहा!
उसके ये कहने पर और गुडिया को शायद पिशाब करता हुआ देखने के ख्याल से ही ना सिर्फ़ मेरा बल्कि शफ़ात का भी लँड ठनक गया! अब हम दोनो की चड्‍डियों के आगे एक अजगर का उभार था! हम चुपचाप उधर गये! गुडिया की गाँड हमारी तरफ़ थी और वो शायद अपनी जीन्स उतार रही थी! उसने अपनी जीन्स अपनी जाँघों तक सरकायी तो उसकी गुलाबी गोल गाँड दिखी… बिल्कुल किसी चिकने लौंडे की तरह… बस उसकी कमर बहुत पतली थी और जाँघें थोडी चौडी थी! उसकी दरार में एक भी बाल नहीं था! फ़िर वो बैठ गयी और शायद मूतने लगी!

“हाय… क्या गाँड है भैया..” शफ़ात ने मेरा हाथ पकड के दबाते हुए हलके से कहा!
“बडी चिकनी है…” मैने कहा!
“बुर कितनी मुलायम होगी… मेरा तो खडा हो गया…” उसने अब मेरा हाथ पकड ही लिया था!
मुझे गुडिया की गाँड देखने से ज़्यादा इस बात में मज़ा आ रहा था कि मेरे साथ एक जवान लडका भी वो नज़ारा देख के ठरक रहा था! देखते देखते मैने शफ़ात की कमर में हाथ डाल दिया और हम अगल बगल कमर से कमर, जाँघ से जाँघ चिपका के खडे थे!

फ़िर गुडिया खडी हुई, खडे होने में कुछ गिरा तो वो ऐसे मुडी कि हमें उसकी चूत और भूरी रेशमी झाँटें दिखीं! उसका फ़ोन गिरा था! उसने अपनी जीन्स ऊपर नहीं की! वो फ़ोन में कुछ कर रही थी… शायद एस.एम.एस. भेज रही थी!

“तनतना गया है क्या?” मैने मौके का फ़ायदा देखा और सीधा शफ़ात के खन्जर पर हाथ रख दिया!
“और क्या? अब भी नहीं ठनकेगा क्या?” उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, बस हल्की सी सिसकारी भर के बोला!

तभी शायद गुडिया के एस.एम.एस. का जवाब सामने की झाडी में हलचल से आया, जिस तरफ़ वो देख रही थी! उधर झाडी से मेरे बाप का ड्राइवर शिवेन्द्र निकला! गुडिया ने उसको देख के अपनी नँगी चूत उसको दिखाई! उसने आते ही एक झपट्‍टे में उसको पकड लिया और पास के एक पत्थर पर टिका के उसका बदन मसलने लगा!
“इसकी माँ की बुर… यार साली… ड्राइवर से फ़ँसी है…” शफ़ात ने अपना लँड मुझसे सहलवाते हुये कहा!
“चुप-चाप देख यार.. चुप-चाप…”
देखते देखते जब शिवेन्द्र ने अपनी चुस्त पैंट खोल के चड्‍डी उतारी तो मैने उसका लँड देखा! शिवेन्द्र साँवला तो था ही, उसका जिस्म गठीला था और लँड करीब १२ इँच का था और नीचे की तरफ़ लटकता हुआ मगर अजगर की तरह फ़ुँकार मारता हुआ था… शायद वो अपने साइज़ के कारण नीचे के डायरेक्शन में था और उसके नीचे उसकी झाँटों से भरे काले आँडूए लटक रहे थे! गुडिया ने उसके लँड को अपने हाथ में ले लिया और शिवेन्द्र उसकी टी-शर्ट में नीचे से हाथ डाल कर उसकी चूचियाँ मसलने लगा! देखते देखते उसने अपना लँड खडे खडे ही गुडिया की जाँघों के बीच फ़ँसा के रगडना शुरु किया तो हमें अब सिर्फ़ उसकी पीठ पर गुडिया के गोरे हाथ और शिवेन्द्र की काली मगर गदरायी गाँड, कभी ढीली कभी भिंचती, दिखाई देने लगी!

इस सब में एक्साइटमेंट इतना बढ गया कि मैने शफ़ात का खडा लँड उसकी चड्‍डी के साइड से बाहर निकाल के थाम लिया और उसने ना तो ध्यान दिया और ना ही मना किया! बल्कि और उसने अपनी उँगलियाँ मेरी चड्‍डी की इलास्टिक में फ़ँसा कर मेरी कमर रगडना शुरु कर दिया! वो गर्म हो गया था!
फ़िर शिवेन्द्र गुडिया के सामने से हल्का सा साइड हुआ और अपनी पैंट की पैकेट से एक कॉन्डोम निकाल के अपने लँड पर लगाने लगा तो हमें उसके लँड का पूरा साइज़ दिखा! जब वो कॉन्डोम लगा रहा था, गुडिया उसका लँड सहला रही थी!
“बडा भयँकर लौडा है साले का…” शफ़ात बोला!
“हाँ… और चूत देख, कितनी गुलाबी है…”
“हाँ, बहनचोद… इतना भीमकाय हथौडा खायेगी तो मुलायम ही होई ना…”
शिवेन्द्र ने गुडिया की जीन्स उतार दी और फ़िर खडे खडे अपने घुटने मोड और सुपाडे को जगह में फ़िट कर के शायद गुडिया की चूत में लौडा दिया तो वो उससे लिपट गयी! कुछ देर में गुडिया की टाँगें शिवेन्द्र की कमर में लिपट गयी! वो पूरी तरह शिवेन्द्र की गोद में आ गयी! शिवेन्द्र अपनी गाँड हिला हिला के उसकी चूत में लँड डालता रहा! उसने अपने हाथों से गुडिया की गाँड दबोच रखी थी!

“भैया… कहाँ हो??? भैया… चाचा… चाचा…” तभी नीचे से आवाज़ आयी! ज़ाइन था, जिसकी आवाज़ शायद गुडिया और शिवेन्द्र ने भी सुनी! शिवेन्द्र हडबडाने लगा! जब आवाज़ नज़दीक आने लगी तो दोनो अलग हो गये और जल्दी जल्दी कपडे पहनने लगे!

































































































































































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