Tuesday, March 16, 2010

हिंदी सेक्सी कहानिया रेल यात्रा: --3 लास्ट पार्ट

राज शर्मा की कामुक कहानिया
हिंदी सेक्सी कहानिया

रेल यात्रा: --3 लास्ट पार्ट

आशीष भले ही शीतल की जांघों की वजह से उसकी मछ्ली का साइज़ ना देख रहा
हो; पर राजपूत तो उसके सामने लेटा था... बिल्कुल उसकी टाँगों की सीध में
... वो तो एक बार शीतल की जांघें और और उनके बीच में पनटी के नीचे च्चिपी
बैठी चिकनी मोटी चूत को देखकर हाथों से ही अपने लंड को दुलार पूछकर और
हिला हिला कर चुप करा चुका था... पर लंड तो जैसे आकड़ा बैठा था की चूत
में घुसे बगैर सोऊगा ही नही; खड़ा ही रहूँगा. जब राजपूत ने शीतल को अपनी
पनटी में अपना हाथ घुसते देखा तो उसका ये कंट्रोल जवाब दे गया... वा आगे
सरका और शीतल की टाँग पकड़ ली... उसका लंड उसके हाथ में ही था...

शीतल के पैर पर मर्द का गरम हाथ लगते ही वो उचक कर बैठ गयी... उसने
देखा.. राजपूत उसकी जांघों के बीच गीली हो चुकी पनटी को देख रहा है...
शीतल ने घबरा कर अपना हाथ बाहर निकाल लिया..
उसकी नज़र आशीष पर पड़ी... वो उस्स वक़्त रानी की टांगे उठा रहा था उसमें
लंड घुसा ने के लिए...
चारों और लंड ही लंड... चारों और वासना ही वासना... शीतल का धर्य जवाब दे
गया... उसने तिर्छि नज़र से एक बार राजपूत की और देखा और बर्त से उतर कर
टाय्लेट की और चली गयी....
राजपूत कच्चा खिलाड़ी नही था... वो उन्न तिरछि नज़रों का मतलब जानता
था... वह उतरा और उसके पीच्चे पीच्चे सरक लिया...

उधर रानी में डूबे आशीष को पता ही ना चला की कब दो जवान पन्छि ऊड गये...
मिलन के लिए... नही तो वा रानी को अधूरी ही छ्चोड़ देता.....
राजपूत ने जाकर देखा; शीतल टाय्लेट के बाहर खड़ी जैसे उसका ही इंतजार कर
रही तही.. राजपूत के उसको टोकने से पहले ही शीतल ने नखरे दिखाने शुरू कर
दिए," क्या है?"
राजपूत: क्या है क्या! मूतने आया हूँ.. उसने जानबूझ कर वल्गर भाषा का
प्रयोग किया... वह बारम्ज़ाय्ड (उसने पॅंट नही पहन रखी थी) के उपर से
अपने तने हुए लंड पर खुजाते हुए कहा...
शीतल: मेरे पीच्चे क्यूँ आए हो!
राजपूत: तेरी गांद मारने... साली ... मैं क्या तेरी पूच्छ हूँ जो तेरे
पीछे आया हूँ... तू ही मेरे आगे आ गयी बस!
शीतल: तो कर्लो जो करना है... जल्दी... मैं बाद में जवँगी...
राजपूत: सच में करलू क्या?
शीतल: अरे वो मूत... पेशाब करो और चलते बनो.. उसकी आवाज़ मारे कामुकता के
बहक रही थी पर उसकी अकड़ कम होने का नाम ही नही ले रही थी...

राजपूत में भी स्वाभिमान कूट कूट कर भरा हुआ था... उसने शीतल के आगे बाहर
ही अपना लंड निकाल दिया और हिलाता हुआ अंदर घुस गया...
शीतल की आँखें कभी शरम के मारे नीचे और कभी उत्तेजना के मारे उसके मोटे
लंड को देख रही थी...
राजपूत मूत कर बाहर आ गया और बाहर आकर ही उसने अपना लंड अंदर किया...,"
जाओ जल्दी अंदर.. तुम्हारा निकालने वाला होगा...
शीतल: पहले तुम यहाँ से फुट लो.... मैं अपने आप चली जवँगी...
राजपूत: नही जाता.. बोल क्या कर लेगी...
शीतल: तो मैं भी नही जाती... तुम क्या कर लोगे...?

स्वाभिमान दोनों में कूट कूट कर भरा हुआ था... कोई भी अपनी ज़िद छ्चोड़ना
नही चाहता था... करना दोनो एक ही चीज़ चाहते थे... प्यार! पर उनकी तो तब
तक बहस ही चल रही थी जब आशीष के लंड ने आखरी साँस ली.. रानी की चूत
में... कुच्छ देर वो यूँ ही रानी पर पड़ा रहा..

उधर युध की कगार पे खड़े शीतल और राजपूत की बहस जारी तही... राजपूत ने
अपना लंड निकाल कर बाहर कर दिया...," लो मैं तो यहाँ ऐसे खड़ा रहूँगा...
शीतल: शरम नही आती!
राजपूत: जब तेरे को ही नही आती तो मेरे को क्या आएगी.. मुझे तो रोज ही
देखना पड़ता है...
शीतल जब तुझे नही आती तो मुझे भी नही आती... निकाल के रख अपना.. मुझे
क्या है.. शीतल के दिल में था की उसको पकड़ कर अपनी चूत में घुसा ले.. पर
क्या करें अकड़ ही इतनी थी," जा चला जा यहाँ से...
राजपूत: नही जाता, बोल क्या कर लेगी....
शीतल से रहा ना गया," तो मैं भी निकाल दूँगी... देखले"
और अंधे को क्या चाहिए.. दो आँखें..राजपूत को लगा कहीं नरम होने से काम
बिगड़ ना जाए," तेरी इतनी हिम्मत तू मेरे आगे अपने कपड़े निकालेगी..
शीतल: मेरे कपड़े, मेरा शरीर, मैं तो निकालूंगी.."
राजपूत: तू निकल के तो देख एक बार!

शीतल ने तुरंत अपनी स्कर्ट नीचे खींच कर पैरों में डाल दी.. क्या खूबसूरत
माल थी.. शीतल... चूत के नीचे से उसकी जांघें एक दूसरी को चजो रही थी..
बाला की खूबसूरत उसकी जांघों के बीच उसकी योनि का आकार पनटी के उपर से ही
दिखाई पड़ रहा था.. पनटी नीचे से गीली हो रखी थी... और उसकी दोनों फाँक
अलग अलग दिखाई दे रही थी..
राजपूत की आवाज़ काँप गयी,"प्प..पनटी न..निकाल के दिखा तू..
और शीतल ने मारे 'गुस्से' के पनटी भी निकाल दी.... भगवान ऐसे झगड़ने वाली
लड़की से रेल में सबको मिलवाए...
राजपूत ने देखा... उसकी चूत एकद्ूम चिकनी और रस से सनी हुई थी... उसकी
चूत के दोनो पत्ते उसकी फांको में से थोड़ा थोड़ा झॅंक रहे थे... राजपूत
का हाथ अपने आप ही उसकी चूत की तरफ जाने लगा... वो झगड़ा ख़तम करना चाहता
था.. वो हार मान-ने को भी तैयार था... पर शीतल ने उसकी चूत की तरफ बढ़ते
हाथ को पकड़ लिया," क्या है!"
राजपूत की आवाज़ मेम्ने जैसी हो गयी," मैं तो बस छ्छूकर देख रहा था..."
बहुत हो चुका था... शीतल ने अपने हाथ में पकड़े उसके हाथ को एक दम जैसे
अपनी चूत में फँसा लिया.... राजपूत घुटनों के बल बैठ गया और उसकी चूत के
होंटो पर अपने होंट लगा कर उसकी चूत के फैले पत्तो को बाहर खींचने लगा...
शीतल की चूत कितनी देर से अपने आपको रोके बैठी तही... अब उससे ना रहा गया
और वो बरस पड़ी....,"आआआ...माआअ... र्रईईईई.. मरररर गाइिओ रे..
राजपूत ने उसके चेहरे की और देखा... वो तो खेल शुरू करने से पहले ही आउट
हो गयी... टाइम आउट... उसने अपना स्कर्ट उठाया पहन-ने के लिए....राजपूत
ने स्कर्ट उससे पहले ही उठा लिया...
शीतल: क्या है...
राजपूत का पारा फिर गरम होने लगा," क्या है क्या? गेम पूरा करना है"
पर जैसे शीतल के दिमाग़ की गर्मी उसकी चूत के ठंडे होते ही निकल गयी,"
प्लीज़ मुझे जाने दो... मेरा स्कर्ट और पनटी दे दो"
राजपूत: वा भाई वा... तू तो बहुत स्यानी है... अपना काम निकाल कर जा रही
है... मैं तुझे ऐसे नही छ्चोड़ूँगा"
शीतल समझौते के मूड में थी...," तो कैसे छ्चोड़ोगे?"
राजपूत: छ्चोड़ूँगा नही चोदुन्गा!
शीतल: प्लीज़ एक बार स्कर्ट दे दो.. थ्होडी देर में कर लेना!
राजपूत: नही नही.... चल ठीक है... तू अपना टॉप उतार कर अपनी चूचियाँ दिखा
दे.. फिर जाने दूँगा...!
शीतल: प्रामिसे!
राजपूत: अरे ये संजय राजपूत की ज़ुबान है...! राजपूत कुच्छ भी कर सकता
है, अपनी ज़ुबान से नही फिर सकता... समझी...!

शीतल ने अपना टॉप और समीज़ उपर उठा दिए," लो देख लो!"
राजपूत उसके चिकने पेट और उसकी कटोरी जैसी सफेद चूचियो को देखता रह
गया... शीतल ने अपना टॉप नीचे कर दिया... राजपूत को ऐसा लगा जैसे ब्लू
फिल्म देखते हुए जब निकालने वाला हो तो लाइट चली जाए," ये क्या है...!
बात तो निकालने की हुई थी!"
शीतल: प्लीज़ जाने दो ना, मुझे नींद आ रही है..
राजपूत: अक्च्छा साली! मेरी नींद उड़ा कर तू सोने जाएगी..

शीतल ने टॉप और समीज़ पूरा उतार दिया और मदरजात नंगी हो गयी... जैसे आई
थी इश्स दुनिया में..
राजपूत तो इश्स माल को देखते ही बावला सा हो गया.. शीतल को उलट पलट कर
देखा.. कोई कमी नही थी, गांद चुचियों से बढ़कर और चूचियाँ गांद से बढ़कर!
"अब दे दो मेरा स्कर्ट!" शीतल ने राजपूत से कहा.
राजपूत ने उल्टा उससे टॉप भी छ्चीन लिया...
शीतल उसकी नीयत भाँप गयी," तुमने ज़ुबान दी थी... तुमने कहा था की राजपूत
ज़ुबान के पक्के..."
"होते हैं!" राजपूत ने शीतल की बात पूरी की," हां पक्के होते हैं ज़ुबान
के पर वो अपने लंड के भी पक्के होते हैं... गंडवा समझ रखा है क्या? अगर
मैने तेरे जैसी चिकनी चूत को ऐसे ही जाने दिया तो मेरे पूर्वज मुझपर
थूकेंगे... कि कलयुग में एक राजपूत ऐसा भी निकला..." कहते ही उसने शीतल
को अपनी बाहों में दबोच लिया... और उसकी कटोरियों को ज़ोर ज़ोर से चूसने
लगा... शीतल ने अपने को च्छुदाने की पूरे मंन से कोशिश की....राजपूत ने
एक हाथ पीच्चे ले जाकर उसकी गांद के बीचों बीच रख दिया... उसने अपनी
उंगली शीतल की गंद में थोड़ी सी फँसा दी....
"ये क्या कर रहे हो...छ्चोड़ो मुझे...!" शीतल बुदबुदाई
"ये तेरे चुप रहने की जमानत है मेरी जान; अब अगर तूने नखरे किए तो उंगली
तेरी गांद में घुसेड दूँगा समझी.." और फिर से उसकी चूचियाँ चूसने
लगा...गांद में उंगली फँसाए... थोड़ी सी..

आशीष ने जब काफ़ी देर तक शीतल के पैरों को नही देखा तो उसने उतह्कर
देखा... वहाँ तो कोई भी नही था... उसने देखा राजपूत भी गायब है तो उसके
दिमाग़ की बत्ती जाली... वा बर्त से उतरा और टाय्लेट की तरफ गया... जब
आशीष वहाँ पहुँचा तो राजपूत सीतल को ट्रेन की दीवार से सताए उसकी चूचियों
का मर्दन कर रहा था.. आशीष वहीं खड़ा हो गया और छिप कर खेल देखने लगा!
धीरे धीरे शीतल के बदन की गर्मी बढ़ने लगी... अब उसको भी मज़ा आने लगा
था... दोनों की आँखें बंद थी... धीरे धीरे वो पीच्चे होते गये और राजपूत
की कमर दूसरी दीवार के साथ लग गयी... अब शीतल भी आहें भर रही थी... उसके
सिर को अपनी चूचियों पर ज़ोर ज़ोर से दबा रही थी...

राजपूत ने देवार से लगे लगे ही बैठना शुरू कर दिया...शीतल भी साथ साथ
नीचे होती गयी... राजपूत अपनी आएडियों पर बैठ गया और शीतल उसकी जांघों
पर, दोनों तरफ पैर करके... शीतल को पता भी ना चला की कब राजपूत ने पूरी
उंगली को अंदर भेज दिया है उसकी गांद में... अब राजपूत गांद में उंगली
चलाने भी लगा था.. शीतल ख़ूँख़ार होती जा रही थी.. उसको कुच्छ पता ही ना
था वो क्या कर रही है... बस करती जा रही थी, बोलती जा रही थी... कुच्छ का
कुच्छ और आख़िर में वो बोली," मेरी चूत में फँसा दो लंड...

पर लंड तो कब का फँसा हुया था.. राजपूत की गांद में उंगली के दबाव से वा
आगे सरकटि गयी और आगे राजपूताना लंड आक्रमण को तैयार बैठा था.. चूत के
पास आते ही लंड ने अपना रास्ता खुद ही खोज लिया... और जब तक शीतल को पता
चलता... वो आधा घुस कर दहाड़ रहा था... चूत की जड़ पर कब्जा करने के
लिए...

राजपूत ने अपने लंड को फँसाए फँसाए ही उंगली गांद से निकाली और शीतल को
कमर से पकड़ कर ज़मीन पर लिटा दिया... उसकी टांगे तो पहले ही राजपूत की
टाँगों के दोनो और थी.. राजपूत ने उसकी टाँगों को उपर उठाया और उसकी चूत
के सुराख को चौड़ा करता चला गया.. इश्स तरह से पहली बार अपनी चुडा रही
शीतल को इतने मोटे लंड का अपनी चूत में जाते हुए पता तक नही चला.

धक्के तेज होने लगे... सिसकिया, सिसकारियाँ तेज़ होती गयी... करीब 15
मिनिट तक लगातार बिना रुके धक्के लगाने के बाद राजपूत भाई ने उसकी चूत को
लबालब कर दिया... शीतल का बुरा हाल हो गया था उसकी चूत 3-4 बार पानी
छ्चोड़ चुकी थी और बुरी तरह से दुख रही थी...

राजपूत अपना लंड निकाल कर चौड़ी च्चती करके बोला... ये ले अपने...अरे
कपड़े कहाँ गये!"

"यहाँ हैं भाई साहब!" आशीष ने मुस्कुराते हुए कपड़े राजपूत को दिखाए...
ओह यार! ये तो अब मार ही जाएगी... आधे घंटे से तो मैं रग़ाद रहा था इसको"
राजपूत को जैसे आइडिया हो गया था अब क्या होगा...

शीतल की तो अब वैसे भी उल्तियाँ सी आने लगी थी.. पहली ही बार में इतनी
लुंबी चुदाई... उसके मुँह से बोल नही निकल पा रहे तहे... ना ही उसने
कपड़े माँगे...

राजपूत: यार मेरा तो अभी एक गेम और खेलने का मूड है... पर यार ऊए मार
जाएगी... अगर तेरे बाद मैने भी कर दिया तो!

शीतल को लगा की अगर ये मान गया तो राजपूत फिर करेगा... इससे अच्च्छा तो
मैं इसी को ट्राइ कर लूँ.. वो खड़ी हो चुकी थी...

आशीष: एक बार और करने का मूड है क्या भाई!
राजपूत: है तो अगर तू छ्चोड़ दे तो...

आशीष ने उसको कृष्णा के पास चढ़ा दिया... और वापस आ गया!
आशीष ने आकर उसको बाहों में लिया और आराम से उसके शरीर को चूमने लगा...
जैसे प्रेमी प्रेमिका को चूमता है... सेक्स से पहले..
इश्स प्यार भरे दुलार से शीतल के मॅन को ठंडक मिली और वो भी उसको चूमने लगी...
आशीष ने चूमते हुए ही उसको कहा," कर सकती हो या नही... एक बार और!
अब शीतल को कम से कम डर नही था.. शीतल ने कहा अगर आप बुरा ना मानो तो
मेरी बर्त पर चलते हैं.. फिर देख लेंगे...!

आशीष ने उसको कपड़े दे दिए और वो बर्त पर चले गये..
शीतल ने अपनी कमर आशीष की च्चती से लगा रखी थी.. आशीष उसके गले को चूम
रहा तहा.. अब शीतल को डर नही था.. इसीलिए वो जल्दी जल्दी तैयार होने
लगी.. उसने अपनी गर्दन घुमा कर आशीष के होंटो को अपने मुँह में ले लिया
और चूसने लगी... ऐसा करने से आशीष के लंड में तनाव आ गया और वो शीतल की
गांद पर दबाव बढ़ने लगा.. शीतल की चूत में फिर से वासना का पानी तैरने
लगा..उसने पीच्चे से अपना स्कर्ट उठा दिया.. आशीष के हाथ उसके टॉप में
घुस कर उसकी चूचियों और निप्पालों से खेल रहे तहे..

शीतल ने ऐसे ही पनटी नीचे कर दी और अपने चूतड़ पिच्चे धकेल दिए... लंड
अपनी जगह पर जाकर सेट हो गया...
आशीष ने शीतल की एक टाँग को घुटने से मोड़ कर आगे कर दिया.. इससे एक तो
चूत थोड़ी बाहर को आ गयी दूसरे उसका मुँह भी खुल गया...

आशीष को रास्ता बताने की ज़रूरत ही ना पड़ी... लंड खुद ही रास्ता बनाता
अंदर सरकता चला गया...
इश्स प्यार में मजबूरी ना होने की वजह से शीतल को ज़्यादा मज़े आ रहे
तहे.. वो अपनी गांद को आशीष के लंड के धक्कों की ताल से ताल मिला कर आगे
पीच्चे करने लगे.. दोनों जैसे पागल से हो गये.. धक्के लगते रहे... लगाते
रहे... कभी आशीष तेज़ तो कभी शीतल तेज़... धक्के लगते रहे... और जब धक्के
रुके तो एक साथ... दोनों पसीने में नहाए हुए थे... एक दूसरे से चिपके हुए
से... आशीष ने भी यही किया... उसकी चूत को एक बार फिर से भर दिया....
दोनों काफ़ी देर तक चिपके रहे... फिर उतह्कर टाय्लेट की और चले गये...
वहाँ राजपूत कृष्णा को अपने तरीके सीखा रहा था .... चुदाई के!
अगले दिन ट्रेन मुंबई रेलवे स्टेशन पर रुकी. यहाँ आते आते आशीष निस्चाया
कर चुका था उसको क्या करना है....
कृष्णा: तुम कह रहे थे तुम्हारा यहाँ कोई नही है... अगर तुम चाहो तो
हमारे साथ चल सकते हो...
आशीष: ठीक है; चल पड़ता हूँ....
उन्न चारों ने ऑटो की और गाँव पहुच गये...

गाँव की हालत देखकर आशीष को स्लम्डॉग... की याद आ गयी... ज़्यादातर मकान
कच्चे थे... पर जिस घर के आगे वो रुके... वो उनकी अपेक्षा काफ़ी बड़ा
था...

ता उ: तुम तीनो ज़रा यहीं रूको... मैं अंदर जाकर आता हूँ...!
बुद्धा अंदर चला गया... थोड़ी देर बाद वो उनको अंदर ले गया... और एक कमरे
में बिठा दिया...
आशीष ने देखा वहाँ 12 से 23-24 साल की लड़कियाँ भद्दे से कपड़े पहने फर्श
पर ही डारी बिच्छायें लेटी थी... वो आशीष को बार बार देखकर आपस में बातें
कर रही थी...... आशीष को समझते देर ना लगी की ये भी रानी की तरह उस्स
बुड्ढे के द्वारा लाई गयी हैं... धंधे के लिए...
आशीष ने मौका मिलते ही 100 नंबर. पर फोन करके यहाँ चल रहे गोरखधंधे के
बारे में बता दिया... उसने रानी को अपने पास ही बुला लिया...
करीब आधे घंटे बाद उस्स घर में पोलीस का छापा पड़ा... पोलीस ने बुड्ढे को
अरेस्ट करके सभी लड़कियों के लॅडीस पोलीस के साथ भेज दिया...
आशीष ने बताया... मैने ही 100 नंबर. पर कॉल की थी... और ये भी की रानी
उसके साथ है...
पोलीस ने उन्न दोनों को जाने दिया...
इश्स दौरान आशीष का भी हीरो बनने का खुमार उतर गया... उसको लगता था की
मुंबई तो जन्नत है पर यहाँ की भीड़ देख वो विचलित सा हो गया... उसने वापस
जाने की ठान ली.....
आशीष: अब तुम्हारे पास दो ऑप्षन हैं... या तो तुम अपने घर चली जाओ... या
मेरे साथ चलो... तुम्हे सॉफ सफाई का काम आता है...
रानी: पैसे कितने मिलेंगे...
आशीष: 2000/- रहना खाना फ्री और मौका मिलते ही चुदाई...
रानी हँसने लगी.... उसने आशीष की बाँह पकड़ी... और वो स्टेशन पर पहुँच
गये... मुंबई टू देल्ही के लिए...

वापस आते हुए आशीष के मॅन में मलाल था की वो हीरो नही बन पाया...


पर करीब 20 नाबालिग लड़कियों को एक नयी जिंदगी शुरू करने का मौका दे कर
वो रियल लाइफ का हीरो तो बन ही चुका था....

तो मेरे प्यारे दोस्तो इस तरह यहा इस कहानी का एंड होता है आप आपनी राय
ज़रूर देना


--


(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj --

1 comment:

Vishwajeet said...

Yr mujhe last ki 2-4 line dil ko chhu gai...jo nabalik ladki ko ajad kara diya....and rani ko v apne sath le gaya...
Best of luck rani...rani tumhare sapno ka rajkumar koi aur nahi ashish hai.....mujhe to bahut achhi lagi ye kahani.....

Raj-Sharma-Stories.com

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