Tuesday, March 16, 2010

कामुक कहानिया -सेक्स मशीन

राज शर्मा की कामुक कहानिया
सेक्स मशीन

हावड़ा से मुं
बई जाने वाली . एक्सप्रेस भूसावल स्टेशन पर पहुँच रही थी.प्लॅटफॉर्म पर खड़े लोगो मे एकदम से आपाधापी सी मच गयी.हर कोई जल्द से जल्द ट्रेन मे चढ़ना चाहता था.सेकेंड क्लास के प्रवासी बदहवास से एधर उधर दौड़ रहे थे.उन्ही मे से रह निकल कर रेलवे के हॉकर्स खाने पीने की चीज़े बेच रहे थे.और तो और जिनका रिज़र्वेशन था वो भी काफ़ी हड़बड़ी मे अपने बॉगी मे चढ़ रहे थे.जैसे उन्हे डर था अगर देर हो गयी तो उनकी रिज़र्व्ड बर्त किसी और को दी जाएगी.ओय इश्स भागमभाग,आपाधापी से बेख़बर रोहित अपने 2न्ड क्लास 3 टाइयर बॉगी मे गहरी निद्रा मे सो रहा था.

लेकिन जैसे ही उसके आसपास आवाज़े बढ़ने लगी उसकी नींद खुल गयी.उसने आँखे खोल कर यह जानने की कोशिश की के वाहा क्या हो रहा था. जल्द ही वो समझ गया एक ही बर्त को लेकर दो लोगो मे झगड़ा हो रहा था.
'मूर्ख कही के'.....उसने मन ही मन सोचा
उसने घड़ी देखी, रात के 8:30 बज रहे थे,मुंबई वो सुबह तड़के ही पहुँचने वाला था. गाड़ी बीच मे कही लेट हो गयी थी शायद.
उसने खिड़के बाहर गुजर रहे चाय वाले को रोका और पुचछा..........ये कौनसा स्टेशन हैं,ट्रेन यहा कितनी देर रुकेगी.?
ये भूसावल हैं सब,गाड़ी यहा आधा घंटा रुकती हैं,चाय लोगे साब?.......चाय वाले ने उसे जानकारी देते हुए अपना धंधा भी चलाया
रोहित को भूख का एहसास होने लगा. ट्रेन मे उसे पॅंट्री कार वालोने खाने का ऑर्डर पुचछा था, लेकिन रोहित ने माना कर दिया था. उसे पॅंट्री कार का खाना कभी अच्छा नही लगता था. उसने एधर उधर नज़ारे दौड़ाई. थोड़ी दूरी पर एक पाव-ओमलेट की स्टॉल नज़र आई.उसने टूरंत स्टॉल का रुख़ किया.

रोहित ने पाव-ओमलेट के स्टॉल पर पहूचकर ऑर्डर दिया, और वो उसकी नज़र एधर उधर दौड़ने लगा.प्लॅटफॉर्म पर बहुत ज़्यादा भीड़ थी . अचानक उसके 'मेटल डिटेक्टर'.ने सिग्नल दिया, ज़रूर आसपास कोई उसके काम की चीज़ थी.अब तक सरसरी निगहोसे लोगो को देख रहा था. अब उसने थोड़ा बारीकी से देखा 'मेटल डिटेक्टर'ने एशारा ग़लत नही दिया था.थोड़ी दूरी पर उसके पिछे एक लड़की खड़ी.थी 22-23 साल की उम्र होगी,लाखो मे एक तो नही थी,पर हज़ारो मे एक ज़रूर थी.5'5 के करीब हाइट,कंधे से नीचे तक के बाल पोनीटेल की शक्ल मे बँधे हुए थे.रंग गोरा नही ,पर सॉफ था.सलवार कमीज़ पहने हुए थी.रोहित उसकी शक्ल नही देख पा रहा था.पिछे से दिखाई देने वाले स्ट्रक्चर से अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था, 'फ्रंट एलिवेशन' कैसा होगा.उसके पास एक बॅग पड़ा हुआ था और वो बदहवासी से एधर उधर देख रही थी, बार बार घड़ी की तरफ जाती उसकी नज़रे, उसकी बेचैनी का प्रमाण दे रही थी.
'ये लीजिए भाई साहब'
स्टॉल वाले की आवाज़ ने रोहित को डिस्टर्ब किया
स्टॉल वाले को पेमेंट करके रोहित वापिस अपने काम मे जुट गया......उस लड़की का अभ्यास करने के.!

उसकी तरफ से नज़ारे हटाए बिना वो खाने मे जुट गया.
तभी एक वयस्क कपल वैसी ही बदहवासी मे दौड़ते वाहा पहुचे
वयस्क मर्द ने पुचछा........
'कहा चली गयी थी तुम,हम कब से तुज़े ढूंड रहे थे,एतनि बड़ी हो कर भी तुज़े अक्ल नही आई,एतनि भीड़ मे कही ग़लत ट्रेन मे चढ़ जाती तो..?
म..अमीन..म.म्म....लड़की कुच्छ कहने से पहले ही........
क्या म...म लगा रखा हैं, अब हम मुंबई जा रहे हैं,इतना बड़ा शहर,वाहाकी एतनि भीड़,जहा मैं खुद घबरा जाता हू,तुम कैसे रहोगी वाहा..? मूज़े तो बड़ी टेंटेशन हो रही हैं.
आप भी ना....ना जगह देखते है ना वक़्त, अरे जवान लड़की को कोई ऐसे सारे लोगो के सामने कोई डाँटता हैं क्या.?......देखो सब ठीक हो जाएगा, अभी तो हम साथ हैईना ...अब चलो जल्दी, बॉगी देखो कौन सी हैं, वरना ट्रेन छूट जाएगी.
ये शायद लड़की की मा थी, जो अपनी बेटी के समर्थन मे बोल रही थी साथ वाला मर्द निसचीत रूप लड़की का बाप था. मिडलेक्लस परिवार लग रहा था.
'ये देखो बॉगी हैं स7, और बर्त्स हैं 20,21,22.

हे भगवान, ये तो मेरे ही बॉगी मे हैं और मेरे ही सामने वाली बर्त्स हैं.
हे प्रभु,..........क्या या मौंबई मेरे ही एलाके मे रहेंगे...? बच्चे का ख़याल रखना .

रोहित ने घड़ी देखी 9 बजने मे अभी 10 मिनट बाकी थे. वो 'उन' सबके अपने अपने बर्त्स पर सेट्ल होने से पहले अपनी बर्त पे नही जाना चाहता था.जब वो सब उसके पास से गुज़रे थे तब उसने उस लड़की की एक झलक देखी.और बिल्कुल स्तंभित सा हो गया था. मासूमियत और खूबसूरती का ऐसा अद्भुत मिलन. उसके मन एक बेचैनी सी छाने लगी थी.यही वजह थी की वो आखरी मे अपनी बर्त पर जाना चाहता था.उसके पास लोवर बर्त था, खिड़की की पास वाला. और वो ये भी जनता था लड़की के माता पिता वयस्क होने के नाते लोवर बर्त पर ही सोना चाहेंगे ताकि चढ़ने उतरने मे दिक्कत ना हो, ऐसी स्थिति लड़की उपर सोएगी, और वो उनपर 'एहसान' जताता हुआ अपना बर्त उन्हे देकर, खुद भी उपर के बर्त पे सोएगा..........लड़की के बराबर वालेबर्थ पर.

उसके मन मे अनार छूट रहे थे खुशी के....!

थोड़ी ही देर मे ट्रेन ने सिटी बजाई, और धीरे धीरे रेंगने लगी,रोहित तुरंत अपनी बॉगी मे सवार हो गया.
कुच्छ देर वो दरवाजे पर ही खड़ा रहा,जब ट्रेन ने पूरी रफ़्तार पकड़ी, तो वो अपनी बर्त की तरफ बढ़ गया
जैसे ही वो अपने बैर्थ के पास पहुचा, उसने देखा,मा,बाप और बेटी आपस मे कुच्छ ख़ुसरफुसर कर रहे थे,शायद उनमे वो ही टॉपिक चल रहा था.
रोहित उनकी तरफ ध्यान दिए बिना बैठ गया, और अपना बॅग नीचेसे निकाल कर उसमे कुच्छ ढूँढने लगा.................मानो उसे किसीसे कुच्छ लेना देना ही नही था. वो तो एक बड़ा ही शरीफ लड़का था जो अपने ही ख़यालो मे खोया था...!
तभी उसे गला साफ करने की आवाज़ आई.....शायद बाप कुच्छ कहना चाहता था.....
रोहित ने सर उठा के देखा, बाप उसको देख कर मुस्कुराया........
'कहा जा रहे हैं आप'.............तो ये शुरुआत थी...नीचे का बिर्थ हासिल करने की
'मुंबई'...................रोहित ने संक्षिप्त जवाब दिया
'हम लोग भी मुंबई जा रहे हैं'
'अच्छा'
'हाँ, मेरा ट्रान्स्फर हुआ हैं'
क्या काम करते हैं आप'
नॅशनल्स्ड बॅंक मे मॅनेजर हुआ हू, प्रमोशन हुआ हैं'.............प्रमोशन पर कुच्छ जाड़ा ज़ोर दिया गया.
'ओह.....कनग्रॅट्स'........रोहि
थॅंक यू मिस्टर........?
'रोहित'
आपसे मिल कर अच्छा लगा मिस्टर रोहित
'जी मूज़े भी'
एक रिक्वेस्ट थी आपसे मिस्टर रोहित'
जी फरमाएए
दरअसल हुम्दोनो को ही..........वो अपनी पत्नी की तरफ इशारा करता हुआ बोला..........ओर्थ्रितिस की प्राब्लम हैं, मूज़े शुगर भी है, बार बार टाय्लेट जाना पड़ता हैं.............(अरे कम्बख़्त अपनी ही लगाएगा अपनी लड़की के बारे मे तो बोल)
तो.....तो........
हाँ हाँ कहिए
अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो क्या हम दोनो नीचे का बर्थ एस्तेमाल करे...?
रोहित कुच्छ देर सोचने का नाटक करता रहा,बीच बीच मे लड़की की तरफ नज़र मार रहा था . लेकिन वो खिड़की के बाहर देख रही थी,.......अंधेरे मे..!
शायद उसे प्लॅटफॉर्म पे बाप से पड़ी फटकार चुभ रही थी
रोहित ने बाप से कहा
ठीक हैं मूज़े कोई आपत्ति नही हैं आप नीचे सो जएए मैं उपर सो जाऊँगा
ओह थॅंक यू मिस्टर रोहित
'वो तो हुआ जनाब लेकिन अपने अपना परिचय तो दिया ही नही....!
ओह आइआम एक्सट्रिम्ली सॉरी, मेरा नाम सुनील वर्मा हैं,ये मेरी पत्नी शिवानी हैं, और ये मेरी बेटी रेवती हैं.

बड़ा प्यारा नाम हैं................रोहित के मूह से अचानक निकल गया
जी क्या कहा अपने.....मिस्टर वर्मा थोड़े नर्वस से बोले
मेरा मतलब था बड़ा प्यारा परिवार हैं आपका.............रोहित बात को संभालने की नियत से बोला
हाँ वो तो है...........कहकर वर्मजि खड़े हो गये..........रोहित की बर्त पर जाने के लिए

रोहित भी और बात करने के मूड मे नही था. वो टाय्लेट की तरफ रवाना हो गया.

रोहित जब टाय्लेट से वापिस आया तो उसने देखा,मिस्टर & मिर्स वर्मा निचले बर्थ पे सो गये थे. और रेवती उपर के बर्त पर, सोई नही थी जाग रही थी,सीधी लेटी हुई थी, एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ा कर.
जब रोहित अपने बर्त पर चढ़ा,तो उसने गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखा.

रोहित पे जैसा सम्मोहन सा च्छा गया, ऐसी खूबसूरत आँखे उसने पहले कभी नही देखी थी. बड़ी बड़ी, जैसे सीप मे मोटी हो.नज़र बाँध लेने वाली आँखे.निगाहो के रास्ते सीधे दिल मे उतरने वाली आँखे.
वो मन्त्रमुग्धसा देखता ही रह गया.
लेकिन ये सुख जाड़ा देर तक उसके नसीब मे नही था.रेवती ने गर्दन दूसरी तरफ घुमयी.लेकिन वो रोहित के नज़ारो से ओज़ल तो नही हुई थी. रोहित की नज़रे उस खूबसूरत बाला का जैसे एक्स-रे निकाल रही थी.हाइट तो अच्छी थी ही रेवती की, लेकिन हाइट से ही मेल ख़ाता हुआ जिस्म था. हर सास के साथ उपर उठती गिरती पहाड़ी की चोटिया,लगता था मानो ट्रेन मे ही भूचाल लाएगी. किसी दीवारसे अगर टकरा जाए तो दीवार ही गिरा दे ऐसी सख़्त.रोहित इस काम मे माहिर था, जाना माना खिलाड़ी था. उसे महारत हासिल थी, किसी भी लड़की या औरत को देखते ही उनके कपड़ों के भीतर का पूरा स्ट्रक्चरल डिज़ाइन तय्यार करने की कला मे.
उसके "मेटल डिटेक्टर" ने सिग्नल दिया तो था कोई कुवारि कन्या आसपास्स होने का.
पूरा शरीर मानो ऐसा था की बनाने वेल ने अपनी रचना पर बहुत ही बारीकी से गौर किया हो, बड़ी ही बारीकी से तराशा हो, कही भी एक पौंड भी मनस्स जाड़ा या कम नही था. हरेक चीज़ थी अपनी जघा ठिकाने पे, और सही आकर मे.
उपर से वो कातिल निगाहे.चेहरे पर च्छाई यो मासूमियत.

नही ये नही हो सकता,वो रवति को उन बाकी लड़कियो की तरह नही देख सकता, जो उसके जिंदगी मैं आई थी.
अब तक की जिंदगी मे उसने कितनी औरतो को भोगा था, कितनी लड़कियओके सील तोड़े थे उसे गिनती याद नही थी. नही वो गिन सकता था.
कहा से शुरू हुआ था ये उसका सेक्स का सफ़र.
सिर्फ़ सोचने भर से, याद करने भर से उसके बदन मे एक सिहरन सी दौड़ गयी.
कैसा क़ाला, डरावना,और कम उम्र मे ही सेक्स के विकृत रूप को खिलौना बनाने वाला था उसका अतीत.
और ऐसे गंदे और भयानक अतीत वाले लड़के के जीवन मे कैसे आएगी ये जनन्त की परी
उसका मन निराशा,आत्मग्लानि,और घ्रणा से भर गया
ना चाहते हुए भी उसका मन उसे अतीत मे ले गया
बदन दर्द करने लगा, उन्दिनो पड़ने वाली भीषण मार की याद सही..........
धदाम एक जोरदार किक बैठी रोहितकी कमर पर ऑर ,और रोहित जो अपनी एस एससी की पढ़ाई मे मशगूल था एक दम से सामने वाली दीवार पे जा गिरा.दर्द की एक असहनिया लहर उसके शरीर मे दौड़ गयी.
और शुरू हुए गंदी गलियो की बौछार..........
स्साले हरामी, कुतिए के पिल्ले,गंदी नाली के कीड़े,मदारचोड़.....तू यहा स्साले किताबो मे सर डाले बैठा हैं, और वो टाय्लेट कौन साफ करेगा , तेरा वो गन्दू बाप, या तेरी वो छिनाल मा, जो स्साले तेरे को पैदा करके ही फेक गये कचरे के डिब्बे मे.और तू स्साले यान्हा बैठा पढ़ाई करता हैं, बड़ा आया स्कॉलर की औलाद. चल उठ और टाय्लेट साफ कर पहले ............और हाँ सुन, आज तुज़े खाना नही मिलेगा. साला पढ़ेगा, बड़ा साहब बनेगा तू, मैं देखता हू तू कैसा पढ़ता हैं..?

रोहित के लिए कोई नयी बात तो थी नही.........बचपन से, जबसे उसे याद था वो ऐ से ही भुगत रहा था. अपने अनाथ होने का श्राप.जबकि किसके पेट से पैदा होना ये उसके बस मे तो था ही नही.
और भगवान भी जैसे उसकी सहनशक्ति की परीक्षा ले थे.

सर...एमेम.म...मैं साफ कर देता हू, आप रोहित भाय्या को पढ़ने दीजिए,...मॅ भूखा भी रह लूँगा...............
ये मुन्ना की आवाज़ थी
मुन्ना उससे सिर्फ़ 2 साल छ्होटा था. पता नही क्यो , अनाथाश्रम के सभी लड़को मे वो ही दो थे जो हमेशा एकदुसरे की मदद करते थे, वरना बाकी तो........या तो गुप्ता की चमचा गिरी करते थे, या फिर मार खा लेते थे, जिसका उन्हे कोई फ़र्क नही पड़ता था. जो अभी से गुंडा गार्दी,जुआ, चोरी छिना छापटी,जैसे कामो मे माहिर हो गये थे. गुप्ता भी उनसे डरता था.

एक जोरदार आवाज़ हुए, कान के नीचे आवाज़ निकालनेकी..........ये मुन्ना को पड़ी थी, रोहित को फेवर करने की सज़ा..........
मदारचोड़ तू एसकी तरफ दारी करेगा स्साले, हरामी चल निकल यान्हा से वरना तेरी खैर नही

मुन्ना आस्यू पोछ्ता चला गया
रोहित जानताथा गुप्ता की उसपर(रोहित पर) इश्स "मेहरबानी" की वजह.
वजह थी गुप्ता की,झाग डालु पत्नी वर्षा .
बला की सेक्सी,मगर प्यासी, उम्र होगी 33 साल, गुप्ता की दूसरी बीवी थी, और बेऔलाद थी
रोहित पे कुच्छ जाड़ा ही मेहरबान,हमेशा उसको लाड़ प्यार करती
गुप्ता के गुस्से की असली वजह थी ये बात
क्यो की बीवी के सामने तो वो बिल्कुल भीगी बिल्ली था
रोहित टाय्लेट साफ करने का समान लेने के लिए जा ही रहा था, की उसे वर्षा की तीखी आवाज़ सुनाई दी.

'क्या कर रहे हो रोहित'

'कुच्छ नही माँ, बस टाय्लेट साफ करने जा रहा था'

अचानक अपनी पत्नी की आवाज़ आते ही गुप्ता की तो मानो हवा ही निकल गई.जैसे चोरी छिपे चुदाई करते वक़्त अचानक किसी के आने से खड़ा लंड 'घंटा' बनकर ज़ुलने लगता हैं.

वर्षा ने अपने पति की तरफ गुस्से से देखा

'"क्या तुम्हे यही मिला था इस काम के लिए, बाकी के मुस्टंडे क्या हाथो मे मेहंदी लगाए हुए हैं...?............मॅ तुम्हे कई बार कह चुकी हूँ, की इससे पढ़ाई करने दो. लेकिन तुम तो इश्स के पिछे हमेशा हाथ धोकर ही पड़े रहते हो.

गुप्ता के मूह से बोल नही फुट रहे थे,,,,,,,,,,,,वो बस मिमियाकर रह गया.

वर्षा ने घूम कर रोहित की तरफ देखा, वो अब तक अपने पलंग पर बैठ चुका था. वो उसके पास पहुचि,उसका सर खींच कर अपने "सिने"पे दबाया.मानो उसे दुलार कर रही हो.रोहित की अवस्था तो मानो ऐसी थी की जैसे बिजली च्छू गयी हो.अपनी 16 साल की उम्र मे उसने ऐसा कभी महसूस ही नही किया था. वैसे अनाथाश्रम के बाकी लड़को से उसने हमेशा 'लंड','गंद','चूत','चुचिया''चोदना'सरीखे परिभाषिक शब्दो को सुन रखा था, और उसके प्रयोग के बारे मे भी जानता था, हालाकी वो प्रयोग उसने किए कभी नही थे.

लेकिन अब की बात निराली थी.

33 साल की वर्षा की तनी हुए चुचियो मे उसका सिर दबा हुआ था,उसके शरीर से आने वाली मादक गंध उसे बेहोश किए जा रही थी.उसके स्तानो का बाउन्स उसे गद्देदार तकिये का आनंद दे रहा था. उसकी बढ़ी हुए घुंडिया उसके गालो पर चुभ रही थी

वर्षा भी समाज़ चुकी थी बच्चे को मज़ा आ रहा हैं.
उसने रोहित के सर को और तोड़ा दबा कर अपने चुचियो पर मसला.
सभी लोग, इंक्लूडिंग गुप्ता ये " प्यार दुलार" का शो देख रहे थे.गुप्ता बेबसी से, और बाकी सब ईर्षा से.

वर्षा ने रोहित को कहा ..............चलो मेरे साथ, मैं तुम्हे पढ़ाती हूँ, अपने तरीके से...!

वर्षा मेडम से मिलने वाला पढ़ाई का नज़ारा सबकी आँखोके सामने तैरने लगा........गुप्ता के भी.

गुप्ता एक फूले हुआ पेट का,मोटा सा, भद्दासा,एकदम गालिज़ इंसान था.
गुप्ता की ये दूसरी शादी थी, पहली बीवी को उसने तलाक़ दे दिया था क्यो की वो औलाद पैदा करने मे असमर्थ थी (ये बात गुप्ता ने ही हर तरफ फैलाई थी).औलाद तो उसे दूसरी बीवी से भी नही हुई, लेकिन एस बार वो कोई भी अफवाह, नही फैला सकता था, अपनी बेऔलादी की, वर्षा कोई मंडी नीचे करके अत्याचार सहन करने वाली औरत नही थी, वो सबके सामने गुप्ता के लंड जैसे दिखाने वाले इंद्रिया का खाका खींच सकती थी.और ये क्या कम था की गुप्ता ने वर्षा की मा से 5 लाख उधार लिए थे. बाक़ायदा स्टंप पेपर पर लिखकर.तो जाहिर था की गुप्ता बीवी के सामने हड़काए हुए कुत्ते की इज़्ज़त रखता था

उधर वर्षा रोहित को लेकर अनाथाश्रम के कॉंपाउंड मे ही बने अपने क्वॉर्टर गयी

अंडर जाते ही उसने रोहित को बैठने को कहा, और वो अंदर चली गयी.
रोहित नीचे फर्श पर ही बैठ गया.
वर्षा ने बाहर आकर जब उसे फर्श पर बैठा देखा,तो वो मुस्कुरई....कुटिल मुस्कुराहट.

"अरे रोहित नीचे क्यो बैठे हो 'बेटा' सोफे पर बैठो"

रोहित हिचकिचाया तो उसने उसे हाथ पकड़ कर उठाया और सोफे पर बिठाया, और खुद भी उसके पास बैठ गयी,......चिपककर.

आज का दिन रोहित के लिए. हादसो का,ज़टको का था
अनाथाश्रम की अपनी जिंदगी मे उसने सिर्फ़ एक ख्वाब देखा था, पढ़लिख़ कर बड़ा आदमी बनाने का.हलकी उस माहौल मे ऐसा ख्वाब देखना भी किसी जुर्म से कम नही था, और एसकी सज़ा भी उसे बराबर मिलती थी........सब उसे ताने मारते थे,हसी उड़ाते थे......सिर्फ़ एक मुन्ना को छ्चोड़ कर.

और आज तो जैसे जिंदगी ने करवट बदली हो, वासना की दलदल मे ले जाने वाली राह पकड़ी हो. उसका दिमाग़ काम नही कर रहा था, शरीर ना चाहते हुए भी ये सब चाहने लगा था.

उसने वर्षा के तरफ देखा,वो पल्लू नीचे गिरा चुकी थी.खुले गले के ब्ल्ौसे मे से झाँकती चुचिया, उसका खून गर्म कर रही थी, उसने घबराकर नज़रे ज़ुकाली

उसके चेहरे पर आने जाने वाले भाव नोट कर रही वर्षा समाज़ गयी, उसका काम बनसकता है, बस एक चोट की ज़रूरत हैं................................और वो अच्छे से जानती थी चोट कहा करनी हैं

उसने बड़े प्यार से रोहित के सर पर हाथ फेरा और कहा

"मैं जानती हू रोहित, के तुम यहा के बाकी लड़को से अलग हो, तुम पढ़ना चाहते हो, बड़ा आदमी बनाना चाहते हो, मैं तुम्हारी मदद करना चाहती हू..............वो लगभग उसपर ज़ुकती हुई बोली.

रोहित की कुच्छ भी समझने ने की स्तिति मे नही था, वो बौखलया हुआ था.

क..सीसी...का..कैसे..............उसने हकलाते हुए पूछा.

अगर तुम मेरी हर बात मनोगे, तो मई तुम्हे विश्वास दिलाती हू, की तुम्हे कभी कोई तकलीफ़ नही होने दूँगी....ये मेरा वाडा हैं.

मूज़े क्या करना होगा..?

मैं तुम्हे स्कूल की नयी किताबे,नये कपड़े , नये जूते दिलाऊंगी,तुम रोज नहाओगे,तेल, कंघी,अच्छ क्खाना, सब मिलेगा. और तो और तुम्हे चंदा जमा करने के लिए भी नही भेजा जाएगा.,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,वर्षाने गर्म लोहे पर पूरी ताक़त से हथोडा मारा

रोहित को लगा वो ख्वाब देख रहा हैं, ये इतना सब, उसे मिल रहा हैं,इतने सालो बाद, बिना माँगे,अचानक...................और सिर्फ़ उसे ही..............क्यो..?

उसका दिमाग़ अब बिल्कुल ही बंद हो गया था

उसकी हालत देख कर वर्षा को मन ही मन हसी आई........क्यो की वो नही जानता था, जो लंबा और मोटा सा रोड उसकी टांगो के बीच लटक रहा हैं,वो कितना कीमती है.......................खास तौर से वर्षा जैसी औरतो के लिए.

"क्या सोच रहे हो रोहित बेटे"

'जी....कुच्छ नही माँ ...बस उही"

"तो क्या तुम वाडा करते हो की तुम मेरी हर बात मनोगे.."

"हाँ माँ"............पढ़ने के लिए तो वो कुच्छ भी कर सकता था.

"देखो अगर बाद मे मुकर दिए, या नखरे दिखाने लगे तो तुम्हे कुच्छ भी नही मिलेगा, उल्टा तुम्हे ऐसी सज़ा दूँगी के तुम मौत के लिए तरसोगे"

उसकी आवाज़मे मिला हुआ ज़हर रोहित की रूह तक पहुँच गया.

"मैं आपकी हर बात मानूँगा माँ"

वर्षा ने तसल्ली की सांस ली और रोहित को हाथ पकड़ कर कहा

"तो चलो अब तुम्हे नहलाती हू,बहुत बदबू मार रहे हो, फिर खाना खिलौंगी"

माँ से नहलाना............अचानक उसका लंड कड़ा होने लगा

वो किसी चाबी भरे खिलौने जैसा माँ के पिछे चल पड़ा.............बाथरूम की तरफ.
उपर वेल ने रोहित को लावारिस भालेहि पैदा किया हो..........पैदा होने से लेकर अब तक भले ही उसकी जिंदगी किसी हड़काए हुए कुत्ते से बदतर रही हो.........भालेहि उसे ये पता नही था की वो किस जाती,धरम, समाज से ताल्लुक रखता हैं............भालेहि उपर वेल ने हर कदम पर उसके सामने चुनौतिया खड़ी की हो........लेकिन ऐसा नही था की उसे कुच्छ भी नही दिया था.
उसे मिली थी बड़ी प्यारी शकला सूरत,अपने उमरा के लड़को से भी मजबूत,हट्टाकट्टा बदन, तेज़ दिमाग़,पढ़ाई और अच्छी ज़िंदगी के प्रति एक नॅचुरल ज़ुकाव...................और एन सबसे अलग दो ऐसी बाते , जिनमे से एक के प्रति वो अंजान था (और जिसका अभी कुच्छ ही देर बाद उसे ज्ञान होने वाला था) दूसरी बात वो कई सालो से जानता था.

पहली बात थी,उसको मिला हुआ कुदरत का शानदार तोहफा..........उसका जबरदस्त लंड...!
और दूसरी बात थी उसका दोस्त मुन्ना जो उसको अपना बड़ा भाई मानता था...!
******


वर्षा के पिछे रोहित बाथरूम मे पहुचा.

"अपने कपड़े उतारो.....!"
रोहित एकदम से कुच्छ समाज़ नही पाया, आते बराबर कपड़े उतारने का आदेश सुन कर वो बौखला गया था

"अरे सोच क्या रहे हो, कपड़े पहन कर नहाओगे"...................रोहित की हिम्मत ही नही हुए, वो उही खड़ा रहा, गर्दन ज़ुकाए,नई नवेली दुल्हन की तराहा.

वर्षा उसके पास आई, उसके गालो पर हाथ फेरने लगी, रोहित के बदन मे जैसे करंट बहने लगा,जिन गालो पर आज तक केवल थप्पड़ ही पड़े थे, उन्हे वर्षा के हाथो का मृदु, मुलायम स्पर्श रोमांचित कर रा था. उसके 'पौरुष' मे हलचल होने लगी.

रोहित की हालत देखा कर वर्षा को हसी भी आ रही थी और मज़ा भी आ रहा था......................जैसे वो एक लड़का थी,पूरी तरह से विकसित,और रोहित लड़की,....एक नाबालिग लड़की..!

अब वो टाइम वेस्ट नही करना चाहती थी, क्यो की रोहित का हट्टाकट्टा, मजबूत शरीर,उसे आने वाले पॅलो की मस्ती का अहसास दिला रहा था,उसकी चूत जो नज़ाने काबसे प्यासी थी, आज रोहित के लंड से निकालने वाली बौच्हर से नहा कर तृप्त होना चाहती थी, सारे बंधन तोड़ कर बहना चाहती थी, किसी उफनती हुई नदी की तरह.

उसने अपने हाथो को रोहित चौड़े सिने पर रखा, हल्के हल्के दबाव डालकर, सहलाने लगी, रोहित अपने होशो हवस खोता जा रहा था,एक नशा सा छाने लगा था. वर्षा ने अपने हॉट लिप्स से उसके एआर्लोबस को हल्के से च्छुआ, हल्के से दतो मे पकड़ा, फिर एक हाथ उसके कड़े होते जा रहे लंड पर रख कर हल्के से दबाया, और रोहित के कानो मे हल्के से कहा..........

'रोहित कपड़े उतार दो........"

रोहित जो अब तक पूरी तरह से गर्म हो गया था, उसकी ससे तेज़ हो गयी थी, वो सम्मोहित सा अपने कपड़े उतार ने लगा.

पूरे कपड़े उतारने के बाद, वो सिर्फ़ उंदर्वारे मे वर्षा के सामने खड़ा था.
उसका गठिला बदन,और उसके अंडरवेर को तंबू बनता हुआ उसका बॅमबू देखा कर वर्षा का मूह और चूत दोनो ही पानी से भर गयी.

रोहित तो अपने आप मे नही था, उसके साथ क्या हो रहा हैं, आगे क्या होने वाला हैं, वो कुच्छ नही समाज़ पा राहा था, उसे बस सुनाई दे रही थी अपने दिल धड़कन...........धड़ धड़ बजती हुई

अचानक बदन पर डाले गये पानी से उसे होश आया, हकबककर उसने वर्षा की तरफ देखा तो फिर से उसे ज़तका लगा पहले से भी तेज़..................वर्षा उसके सामने खड़ी थी सिर्फ़ ब्लौज और पेटिकोट मे..........!
ज़ुक कर उसपे पानी डाल रही थी...!
वर्षा ने साडी कब उतारी, उसे ये भी पता नही चला.........उसकी चुचिया बाहर निकालने को फड़फदा रही थी........जैसे उन्हे ब्लौज के अंदर घुटन सी हो रही हो..!रोहित पर पानी डालते हुए कुच्छ पानी वर्षा पर भी पड़ा था....(क्या सच मे...?) उसके उजले,तने, कसे हुए वक्षो पानी की बूंदे चमक रही थी,.....हीरे की तराहा.

"क्या देख रहे हो रोहित"
रोहित की समाधि भंग हुई

'जी...कुच्छ नही...'

"क्या तुमने कभी किसी लड़की को चोदा हैं"

अब हद हो गयी थी,ये सिर्फ़ ज़तका नही था बूंब था, 16 साल के रोहित के लिए, जिसने लड़कियो को सिर्फ़ तस्वीरो मे, रहो मे,या उन घरो मे देखा था,(वो भी दूर से) जहा वो चंदा माँगने जाता था. एन मे किसिको भी चोदने का कोई सवाल ही नही पैदा होता था. उपर से वो अनाथाश्रम मे रहने वाला, गंदी नली का कीड़ा, उसके लिए ये सपने भी देखना मानो गुनाह था.

एस दरमियाँ उसे पता भी ना चला की उसकी अंडरपॅंट उतार चुकी हैं

रोहित का हाल बाद से बदतर होता जा रहा था
वो हड़बड़ा कर अपने दोनो हाथो से फंफंते लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा.........नाकामयाब कोशिश...!

शरीर हट्टाकट्टा हुआ तो था, दिमाग़ तो 16 साल का ही था, एक के बाद एक लगने वाले ज़टके उससे सहन नही हो रहे थे, उपर से लोहे की तरह सख़्त होता जा रहा लंड भी उसे अचरज मे डाल रहा था, एसके पहले उसने बाकी लड़को की देखा देखी मूठ भी मारी थी,लेकिन लंड एटना सकत कभी नही हुआ था. अनाथाश्रम मे एक दूसरे की गॅंड मारना, एक आम बात थी. लेकिन रोहित को, उसमे कभी दिलचस्पी नही हुई..............लेकिन आज की बात कुच्छ और थी, उसके सामने 33 साल की खेली खाई, मदमस्त औरत खड़ी थी...............और वो उसके सामने खड़ा था एकदम नंगा..!

"क्या बात हैं रोहित, तुम तो बड़े शर्मीले हो.........मूज़े तो लगा था तुम्हारे दोस्तो ने तुम्हे बिल्कुल तैय्यर कर दिया होगा,...!

रोहित कुच्छ ना बोला

अब वर्षा ने उस पर थोड़ा पानी और डाला और साबुन लेके उसके बालोको (सर के) धोने लगी, एस वजह से उसकी चुचिया उसके नज़र के बिल्कुल सामने थी, एटानी नज़दीक की वो चुचियो पर मौजूद हल्के रोए भी देख सकता था,ब्रा के अंदर कड़े हुए निपल्स देख सकता था.
अब वर्षा ने उसे खड़ा किया, और उसके सिने पे साबुन मलने लगी,साबुन लगाते लगाते उसने, रोहित के निपल्स को अपने नाखूनओ मे दबा दिया ...........अयाया.....सी निकली रोहित के मूह से.
वर्षा अपने हाथ अब रोहित की पीठ पर ले गयी,उसे थोड़ा और अपने तरफ खिछा.उसके हाथ अब पीठ पर से फिसलते हुए रोहित की गंद पर आ गये.उसका चेहरा लगभग रोहित के सिने पर टकरा रहा था. अपने हाथोका दबाव रोहित की गंद पर बढ़ते हुए,एक उंगली उसकी च्छेद पर लगा दी, और उसी समय रोहित के निपल्स को दतो से हल्के से काट लिया.....................ये दोहरा हमला रोहित सहा ना सका..............उउउउउउह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ऊऊउउउउच उसके मूह से निकला, उसने वर्षा का सर अपने हाथो से ज़ोर से अपने सिने पे दबा दिया. अत्यधिक उत्तेजनासे उसके पैर हिल रहे थे उसे के लिए खड़ा होना मुश्किल हो रहा था.

वर्षा ने रोहित की तरफ देखा, दोनो की आँखे मिली,वर्षा मुस्कुरई,......रोहित ने नज़ारे ज़ुका ली.

"क्या हुआ.......!....अच्छा नही लगा क्या....? वर्षा ने मस्ती भरे स्वर मे पुचछा.
उसका सिर्फ़ आवाज़ ही नही, पूरा जिस्म वासना की मस्ती मे लरज रहा था.........होठ काँप रहे, जिस्म थरथरा रहा था.......पनटी भीग गयी थी, पेटिकोट तक गीला हो गया था....! बलौज गीला हो गया था, या तो पानी से, या पसीने से.........और नज़रे टिकी थी रोहित के अनूठे लंड पर..!

16 साल की उम्र के रोहित का लंड किसी मेट्यूर्ड मर्द के लंड से भी जाड़ा अनूठा था, लंबाई और मोटाई बिल्कुल सही अनुपात मे थी,उसका कडपन तो ऐसा था की अगर लकड़ी की तख्ते से भीड़ जाए तो लकड़ी मे सुराख बना दे.
इस वक़्त रोहित अपनी तरफ से कंट्रोल करने की पूरी चेस्टा कर रहा था.लेकिन वर्षा के मन मे तो कुच्छ और ही था, उसने उपर रोहित की तरफ देखा,रोहित की आँखे बंद थी,वो गहरी,गहरी साँसे ले रहा था. उसका पूरा जिस्म हिल रहा था,जैसा नशा हो गया हो........वासनाका नशा

वर्षा ने अपना मूह उसके लंड के पास लाया, उसकी गर्म साँसे लंड से टकरा कर और "सुगंधित " होकर,वापस उसके नथुनो से टकरा रही थी,वो पागल सी हो चुकी थी.
उसने धीरे से रोहित के लंड की फॉरेस्किन को पिछे किया...........रोहित की थरथराहट और बढ़ गयी.............वर्षा ने अपनी जीव का नुकीला हिस्सा लंड के च्छेद पर टीका दिया........रोहित की सनसनी अब चरमोत्कर्ष पर पहुँची...............वर्षा ने जीभ को लंड के खुले सूपदे पर फिराना शुरू किया...............और रोहित का सब्र का बाँध टूट गया..........ज्वालामुखी फट पड़ा........एक के बाद एक कई किष्तो मे उसका लंड लावा बाहर फेकने लगा ...........सीधे वर्षा के चेहरे पर,उसके अधखुले होटो पर, उसके बाहर निकालने को बेताब स्तानो पर...........रोहित का लंड मानो बौच्हर कर रहा था........और उस ताजे,फ्रेश,सफेद, गाढ़े, वीर्या की बौच्हर मे नहा रही थी बरसो की प्यासी वर्षा.............ना जाने कब से तरस रही थी ऐसे लंड के लिए.

जब रोहित के लंड ने वीर्या की आखरी बूँद तक उच्छल दी वर्षा के जिस्म पर, तो वो होश मे आया. उसने देखा वर्षा माँ पूरी तरह से सन चुकी हैं, उसके लावे से , तो वो भोला सा लड़का घबरा गया, इश्स बात से बेख़बर,की उसने तो माँ को खुश किया हैं
"एम्म.....एमेम...मूज़े माफ़ कर दीजिए मेडम...वो मैं...वो मैं..."
घबरा मत मेरे बच्चे,तूने तो मूज़े वो दिया हैं जिसके लिए मैं कब से तरस रही थी.............लेकिन अब मूज़े ये कपड़े उतारने पड़ेंगे,खराब जो हो गये हैं.

रोहित को फिर शॉक लगा, माँ नाराज़ नही हुई,बल्कि खुश हुई, और अपने कपड़े भी उतरने की बात कह रही हैं,उसका दिमाग़ इमेजीन करने की कोशिश करने लगा, माँ बिना कपड़ो की, नंगी कैसे लगेगी............उसका लंड फिर से ज़टके मारने लगा,....नया नया जवान जो हुआ था.
वर्षा खड़ी हुई,अपने चेहरे पर बिखरे वीर्या को उंगली से साफ करने लगी,....आँचल उतार दिया,...साडी उतार दी,.........बलॉज के बटन खोलने लगी..........रोहित की सांस फिर भारी होने लगी,रह रह कर अटकाने लगी, लंड निरंतर ज़मीन से 90 का आंगल बनाने लगा,.............वर्षा ब्लौज उतार चुकी थी.........सफेद ब्रा मे कसमसाती चुचिया और फड़फड़ने लगी,....उन्हे भी पता चल गया था की, उनकी आज़ादी का पल नज़दीक आ रहा हैं.......रोहित सांस रोके, दिल थामे,जिंदगी का सबसे बड़ा रिलिटी शो देख रहा था..........बिल्कुल लाइव........अब वर्षा के हाथ पेटिकोट को आज़ाद करने मे लग गये,...अगले ही पल वो ज़मीन पर पड़ा था..............सिर्फ़ ब्रा पनटी मे क़ैद वर्षा का जिस्मा अब पूरी आज़ादी की माँग कर रहा था..........रोहित जड़ सा शरुस्ती की इश्स अद्भुत रचना, औरत का ये नया रूप देख रहा था.......वर्षा के हाथ पिछे गये ब्रा खोलने के लिए........चुचिया खुश होकर उच्छलने लगी, और फिर आज़ाद हो कर खुली हवा मे चॅन की सांस लेने लगी...........अब आज़ादी की माँग थी पनटी मे क़ैद उस छ्होटे से टापू की,जिसमे से सारी शरुष्टि का निर्माण हुआ था..........चूत के होठ फड़फड़ने लगे,आज़ादी के नारे लगाने लगे.........वर्षा ने भी उनकी माँगे तूरंत पूरी करदी.......पनटी अब पहले से ही ज़मींदोस्त हुए अपने साथी,ब्रा पेटिकोट,सारी और ब्ल्ौसे के साथ शामिल हुई.

वर्षा ने अब अपना आखरी काम किया रोहित को पूरी तरह से पागल करने का..
उसने अपनी उंगली से अपनी चुचियो पर बिखरा रोहित का वीर्या समेटा,मूह मे उंगली डाल कर थोड़ा चखा,और बाकी का डाल दिया अपनी चूत मे

मानो रोहित को समज़ा रही थी उसके वीर्या की असली जगह कौन सी हैं
रोहित का अब भी साहस नही हो रहा था, आगे बढ़ कर पहल करने का,अनाथाश्रम की जिंदगी ने उसके दिल-ओ-दिमाग़ पर गहरा असर किया था,उसमे हर वक़्त एक डर सा छाया रहता था, जो कुच्छ भी अब तक हुआ था वो उसके लिए एक सपने से कम नही था. लेकिन जो भी हो रहा था वो एक हक़ीकत थी..............एक सपने जैसी.

"रोहित....
वर्षा की आवाज़ से वो फिर होश मे आया
" मर्द होकर, औरत से डरते हो, एक औरत होकर मैं बेशर्मिसे पेश आ रही हू, और तुम मर्द होकर भी लड़कियो जैसे शरमाते हो...!.........वर्षा ने उसकी मर्दानगी को ललकारा
"मूज़े डर लगता हैं माँ"
"किस बात का डर रोहित..?"............वर्षा अब उसके एटानी नज़दीक आ चुकी थी की दोनो की साँसे एक दूसरे से टकरा रही थी,.......उसके एरेक्टेड निपल्स रोहित सिने मे धस रहे थे........वर्षा ने रोहित के दोनो हाथ अपने हाथो मे लिए,अपने पिछे लेजकर अपने नितंबो पर रख दिए,...........रोहित एक्शितमेंट से सिहर उठा......वर्षा के गुदाज,सख़्त, पूरी गोलाइए लिए हुए नितंबो का स्पर्श उसके लंड का तनाव बढ़ रहा था,........उसके चौड़े सीने पर मचल रही वर्षा की चुचिया उसके डर को वासना मे बदल रही थी...........और जैसे ही रोहित का दर काम होने काग़ा, उसके अंडर का मर्द जगाने लगा........औरत पर हावी होने के लिए, उसे मसल देने के लिए.

"मूज़े गुप्ता जी से डर लगता हैं माँ"........कहते कहते रोहित ने वर्षा को अपनी फौलादी बाहो मे जाकड़ लिया,......वर्षा को तो मानो मूह माँगी मुराद मिल गयी........वो भी उतने ही आवेश से रोहित को लिपट गयी,.........अब उन मे से हवा भी पास नही हो सकती थी. वर्षा की चुचिया रोहित के सीने मे पूरी तरह धस गयी,........लेकिन अब उनका दम नही घूँट रहा था बल्कि उसे मज़ा आ रहा था.

"गुप्ता से डरने की कोई ज़रूरत नही मेरे राजा...........वो कुत्ता तो मेरे होते हुए तुम्हे कुच्छ भी नही कहेगा, तुम बिल्कुल चिंता मत करो....."
बस फिर क्या था........रोहित ने वर्षा को और करीब खिछा,एक हाथ से गंद को ज़ोर से दबाया,दूसरे हाथ से चुचि का मर्दन करने लगा.

"लेकिन माँ, मूज़े तो एस मे कुच्छ भी नही पता कैसे करते हैं"
"मैं हू ना,......मैं तुम्हे सब सीखा दूँगी, बिल्कुल ट्रैंड कर दूँगी'........चल बेडरूम मे.....!........वर्षा से अब रहा नही जा रहा था
"आप के शरीर पर ये सब पड़ा हुआ हैं, एस साफ नही करेगी क्या...?.......रोहित का इशारा वर्षा के जिस्म पर पड़े अपने वीर्या के धब्बो पर था
"नही मेरे राजा ये तो तेरे मर्दानगी की निशणीया हैं.......मैं एस बाद मे धो लूँगी"

दोनो ही बाथरूम से निकले, बेडरूम के लिए,नंगे,एकदम मदरजात नंगे, वर्षा की तनी तनी छातिया हिल रही थी,रोहित के तनतनये लंड के साथ, ताल से ताल मिला कर

बेडरूम मे पहुच ते ही वर्षा ने आगे का सूत्रसंचालन अपने हाथ मे लिया.
"अब तुम मैं जैसा कहती हू वैसा ही करोगे तो बहुत जल्दी एक्सपर्ट बन जाओगे".............नंगी टीचर ने अपने नंगे स्टूडेंट को हिदायत दी, और नंगे स्टूडेंट ने हामी भारी
"चलो अब तुम मेरे शरीर के "हर" हिस्से को किस करोगे...!"............हर शब्द पर जाड़ा ज़ोर देती हुई वो बिस्तर पर लेट गयी, पीठ के बल.......रोहित सम्मोहित सा उसके नंगे बदन को घूर रहा था.
"अरे देख क्या रहे हो चलो शुरू हो जाओ"..............वर्षा एक हाथ से चुचीय और एक हाथ से चूत सहलाती हुई बोली..........उसे बड़ा मज़ा आ रहा था .......चुदाई से भी जाड़ा.

रोहित अब धीरे धीरे चलता हुआ बिस्तर पर बैठा, ज़ुका कर उसने सबसे पहले वर्षा के माथे को चूमा, फिर आँखॉको.दोनो गालो को, फिर उसके रसीले होठों को,........वाहा वो कुच्छ जाड़ा देर रुका.......वर्षा का हाल बहाल था........सेक्स का ये न्या प्रयोग उस पर कयामत ढा रहा था.
रोहित अब अपने होतो को वर्षा के जिस्म से अलग किए बिना, धीरे धीरे नीचे उतरने लगा, आगे पहाड़ी थी, उँची, सक्त, मगर सॉफ्ट,रोहित के होठ अपना सफ़र तय करते हुए पहाड़ी के शिखर तक पहुँचे.........वहाँ खड़े थे दो कड़े निपल्स,......रोहित ने होतो से पहले उन्हे च्छुआ,फिर हल्के से होतो मे दबाया,थोड़ी देर तक चुसता रहा, फिर दतो से काटा....हल्केसे....
"उूुुुुुुउउईईईईईई........ओह ओह ओह आह आह आह.......वर्षा की कामुक सिसकारिया रुकने का नाम ही नही लेरही थी.

उसने दोनो हाथो से रोहित का सर ज़ोर से अपनी चुचियो पर दबाया........."थोड़ा और चूसो मेरे राजा...हाए बड़ा मज़ा आरहा हैं......कहते हुए वर्षा न रोहित का लंड हाथ मे पकड़ लिया, और उसे हिलने लगी
वर्षा की चूत अब तक दो बार पानी छ्चोड़ चुकी थी, जबकि रोहित का लंड अभिभि पूरे शनोशौकत से खड़ा था........अब वर्षा ने रोहित को "पढ़ाने" का प्लान मुल्तवी कर दिया, वो बेताब हो रही थी, रोहित का लंड अपनी प्यासी चूत मे लेने के लिए.
"रोहित अपना मूह मेरी चूत के पास ले आओ,और चॅटो मेरी चूत को,दो बार ज़द चुकी हू मगर स्साली अभी भ उतावली हो रही हैं ज़डने के लिए..........कहा कर उसने अपनी टाँगे फैला दी........और अपने उंगलियो से खोल दिए चूत के होंठ..........बेशर्म,बहाया तो वो थी ही, रोहित जैसा जवामर्द पाकर तो वो वहशी हो रही थी, जो मूह मे आए बेक जा रही थी.


रोहित आग्याकारी स्टूडेंट की तराहा अपनी मेडम की चूत के पास ले आया अपने मूह को, पहले तो उसे घिन आई,पर जैसे ही वर्षा ने उसका सर अपनी चूत पे दबा दिया उसे मजबूरन चखना ही पड़ा उस खेली खाई चूत का स्वाद.........एक बार चख चुकने के बाद धीरे धीरे उसकी घिन कम होती गयी और वो बड़े चाव से चूत चाटने लगा,.... अंदर तक.
वर्षा की तड़प अब चरम सीमा पर पहुँच गयी थी, वो सर को बार बार झटक रही थी,बिस्तेर को कस के पकड़ रही थी..........और वो वक़्त भी आया........उसकी चूत ने ढेर सारा यौन रस उच्छाल दिया रोहित के चेहरे पर........वो निढाल हो चुकी थी..........लेकिन ये भूल चुकी थी के रोहित अभी झाड़ा नही हैं,........उसका लंड अभी भी अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा हैं.

अपनी एस भूल का एहसास उसे तब हुआ जब रोहित ने बगैर किसी सूचना के अपना लोहे जैसा सकत लंड उसकी चूत मे गुसा दिया,एक ही ज़टके मे.( अब एटना "जनरल नॉलेज" तो उसे था ही)

"उूउउइईईईए माआआ मारी रे........सस्साले, हलकट हरामी, आबे बताना तो था स्साले डालने के पहले.............!!!!!!!!!!"
अब रोहित सब कुच्छ भूल कर टूट पड़ा था, रौंद रहा था, ताबड़तोड़ हमले कर रहा था,.........रुकने का नाम ही नही लेरहा था..............धीरे धीरे वर्षा भी नर्माल होती गयी......और एस नये जवान हुए घोड़े की घुड़सवारी का आनंद लेने लगी

अचानक किसी के ज़ोर से बात करने की आवाज़ से रोहित, अपने अतीत की दुनिया वास्तव मे आया, उसने आँख खोल कर,असंजस भारी नज़रो से देखा......साइड उप्पर वाली बर्त को लेकर फिर झगड़ा हो रहा था,.............रोहित को उन पर गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र रेवती पर गयी वो सब कुच्छ भुला कर उसे निहार ने लगा...........कहा अतीत की वो सोकॉल्ड हाइ सोसाइटी की लड़किया,जिनकी जिंदगी का मकसद था, अययाशी, मौज मस्ती.........नारिसूलभ भावनाओ का कही अता पता तक नही था.........जिन्होने रोहित को एस्टेमाल किया था अपनी तन की प्यास भुज़ाने के लिए.....और कहा ये अनिंद्या सुंदरी...........एतनि मासूम,इतनी खूबसूरत.,सादगी मे भी इतना सौन्द्र्य होता हैं, रोहित पहली बार देख रहा था.........सोती हुई रेवती किसी निद्रिस्ट अप्सरा लग रही थी........कम से कम रोहित को.

रेवती शायद नींद मे कोई ख्वाब देख रही थी........नींद मे भी उसके चेहरे पर,हलकीसी शर्म, हल्की सी मुस्कुराहट दिखाई दे रही थी......क्या वो ख्वाब मे मूज़े देख रही होगी..?........रोहित को एक पल के लिए लगा, लेकिन उसने तुरंत उस ख़याल को झटक दिया.........तो क्या रेवती के ख्वाबो का राजकुमार कोई और हैं.........(नही नही......हे प्रभु ऐसा मत करना)......रोहित ने एक आह सी भरी.

रेवती ने अपना दाया हाथ अपने चहरे पर कुच्छ एस तरह से रखा था की उसके होठ छिप गये थे.........ये नज़ारा देख कर रोहित कही पढ़ा, सुना 'शेर' याद आया.................

"डर था उन्हे के बोसा ना ले कोई
होटो पर रख के सोए, कलाई तमाम रात"

वो तड़प उठा, अपने काले अतीत की याद से, एक ऐसा अतीत जिसमे, वो एक एस्टेमाल की चीज़ बन गया था..............अय्याश औरतो, लड़कियो के लिए वो था सिर्फ़ एक मशीन, चोदने की मशीन.......उसके होटो पर एक मुस्कान तेर गयी.........बेबसी की, दर्द से भरी

ना चाहते हुए भी, उसका मन फिर अतीत मे चला गया..........यादो का सिलसिला फिर शुरू हुआ........वही से जहा पहली बार औरत के जिस्म की तपिश उसने महसूस की थी, जहा पहली बार उसे मालूम हुआ था, बिस्तेर पर औरतो को क्या चाहिए होता हैं.............औरत जात का कमतुर रूप भी उसने वही देख था..........उस दिन वर्षा ने उसे कई तरीके सिखाए थे, औरत को खुश करने के, सन्तुश्त करने के.......दोपहर से वर्षा के साथ गया रोहित, देर शाम को ही लौट पाया था...........थका हारा, निढाल सा.

जैसे ही वो अपने कमरे मे वापस आया,.......अनाथाश्रम के कई लड़को ने उसे घेर लिया......सब जानना चाहते थे वर्षा माँ ने उसके साथ क्या किया.........उनमे सब से जाड़ा इच्छुक थे मिस्टर गुप्ता.......जो खुद अपनी बीवी से नही पुच्छ सकते थे, उसने रोहित के साथ क्या किया...........सबको टालमटोल जवाब दे कर रोहित ने चलता कर दिया. लेकिन वो मुन्ना को कैसे टालता....?
"मैं तुज़े बाद मे बतौँगा.........लेकिन वाडा कर तू किसी को कुच्छ नही बताए गा...!"........रोहित ने मुन्ना से कहा,
"भाई मैं किसी को कुच्छ नही बतौँगा..."........मुन्ना
"ठीक हैं ...रात मे बतौँगा"

रात को सोने से पहले जब रोहित ने मुन्ना को सारी बात विस्तार से बताई, मुन्ना को अपने कानो पर यकीन नही हुआ,.........क्या ऐसा भी हो सकता हैं........मुन्ना 15 साल का था.....लेकिन अनाथ आश्रम मे रहता था, जहा कुच्छ बाते, कुच्छ जल्दी ही सीखने को मिलती हैं........पर फिर भी...?.....गुप्ता की बीवी.......वो ..वो ऐसी हैं...........और उसका दोस्त, उसका भाई क्या सचमुच एटना "काबिल" हैं........मुन्ना की नॅज़ारो मे रोहित के लिए सम्मान और भी बढ़ गया.........अनाथाश्रम मे बच्चो के मूह मे हमेशा, गंदी बाते, गंदे शब्द,गंदी गालिया लगी रहती थी, जिसकी वजह से मुन्ना की 'जनरल नालेज' कम उम्र मे ही काफ़ी बढ़ गयी थी........और आज उसका दोस्त रोहित बाक़ायदा प्रॅक्टिकल करके आया था...........झंडे गाड़ के आया था.......भाई मुझसे सिर्फ़ एक साल ही तो बड़ा हैं,....मुन्ना मन ही मन सोचने लगा,.......तो क्या मैं भी......एक्सिटमेंट का असर, तुरंत ही मुन्ना की हाल्फपॅंट मे दिखाई दिया.

मुन्ना के चेहरे पर आने जाने वाले भाव, रोहित देख रहा था....और समझ भी रहा था.
"क्या सोच रहा हैं मुन्ना...?......क्या एरदा हैं..?....क्या तू भी......"........रोहित ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छ्चोड़ दी.

मुन्ना कुच्छ एस प्रकार गर्दन हिलने लगा की रोहित क्या, कोई भी नही जान सकता था मुन्ना क्या कहा रहा हैं हाँ या ना...!

"आ मुन्ना शर्मा मत.......बोल माँ से बात करू तेरे लिए..?"
"मूज़े नही पता....ल..ल्ल...लेकिन.......क्या मैं कर पौँगा..."
मुन्ना शर्म से लाल हो रहा था.
"तू चिंता मत कर....मेरे से सिर्फ़ एक साल ही तो छ्होटा हैं तू.........और ज़रूरी नही की तू सीधे घोड़ी की सवारी ही करने लागो........शुरू मे सिर्फ़,,चुम्मा, चाती,,,,और बॉलिंग,किस्सिंग तो कर ही सकता हैं ना तू."
'हाँ उतना तो कर सकता हूँ".........मुन्ना वर्षा माँ का नंगा बदन अपने ख़यालो मे देख रहा था.
उधर गुप्ता के क्वॉर्टर मे वर्षा अभी भी रोहित के साथ बिताए पॅलो की रंगिनियो मे डूबी हुई थी, उसके चरहरे पर ऐसे भाव थे मानो बिल्ली अभिअभि ढेर सारी मलाई चट कर आई हो...........परम संतुष्टि के भाव.......अपने किए पे कतई कोई शर्मिंदगी नही........यहा तक के उसने उठ कर कपड़े तक पहनने की कोशिश नही की थी..........वैसे ही पड़ी रही..........नंगी,बिल्कुल मदरजात नंगी......रोहित की चोदने की काबिलियत देख कर, वो अचंभित थी........उसके गंदे दिमाग़ मे कुच्छ पक रहा था.......और तभी एंट्री हुई......गुप्ता की उसके पति की.

अपने पति को देख कर मज़ाल हैं, की उसके माथे पर एक शिकन भी आई हो,.....वो वैसे ही पड़ी रही.......दोनो टाँगे फैला कर.....चूत से अभी भी रोहित का वीर्या बह रहा था.........ये सब देख कर, गुप्ता, जो हमेशा अपनी बीवी से दबकर रहता था,...उसके मूह मे भी ज़बान आ गयी.
"ये..ये क्या हो रहा हैं वर्षा..?....वो..वो लड़का,....वो स्साला गंदी नाली का कीड़ा........तू..तू..तुम उसके साथ......तुम इश्स तरह से नंगी....?. गुप्ता 'बहुत गुस्सा' होने पर भी अपनी बीवी के सामने झाग की तरह बैठा जा रहा था.

"आओ मेरे पातिदेव,...क्या तुम्हे पता था की रोहित से चुड़वाने मे मूज़े कितना समय लगेगा..?".............बेशर्मी की भी कोई हद होती हैं, ये तो वर्षा को पता ही नही था.
अब तो ये हद, नही...नही..हद से ज़्यादा ही हो रहा था गुप्ता के लिए..........'उसकी बीवी' किसी कीड़े से चुड़वति हैं,........अपने पति से पुछ्ति हैं....उसे कैसे पता लगा,चुड़ाने मे कितना वक़्त लगेगा.........उपर से कपड़े तक नही पहने हैं.........बिल्कुल नंगी पड़ी हैं, उसके सामने........अपने यार का वीर्या बाहर निकलते हुए.........लेकिन अपनी बीवी के सामने गुप्ता ना कभी बोला था, ना अब बोला. बस मन मसोस कर रह गया.

"आजा गुप्ता.....एधर बैठ.......मेरे नंगेपन से हैरान होने की ज़रूरत नही........अगर तुम मूज़े वो सब दे सकते, जो मूज़े चाहिए था ..........तो आज ये नौबती नही आती"
"मगर...मगर......."
"क्या अगर, मगर लगा रखी हैं तूने.....स्साले छक्के.....अगर तू मूज़े चुदाई का असली मज़ा दे सकता, तो मूज़े क्या ज़रूरत थी एधर उधर मूह मारने की."
"लेकिन...वर्षा, इसमे हमारी बदनामी हो सकती हैं"...........गुप्ता को समझ नही आ रहा था, सेक्स की मारी एस कुतिया से कैसा निपटाया जाए.
"कोई बदनामी नही होगी........बाहर किसी को पता भी नही लगेगा.......और ये कोई पहली बार तो नही चुड रही मैं, अनाथाश्रम के लड़को से"........................गुप्ता खामोश हो गया, वर्षा अपने गाओं मे बदनाम हो चुकी थी बाप का साया तो कब का उठ चुका था,मया वो की सुनती नही थी, शादी की उम्र हो जाने पर भी जब कोई भी उसका हाथ थाम ने को तैय्यार नही हो रहा था तो, मजबूरन उसे गुप्ता जैसे, अधेड़,बदसूरत आदमी से शादी करनी पड़ी थी,.........सेक्स के नाम पे तो वो ज़ीरो था, उपर से वर्षा की मा से 5 लाख ले चुका था कर्जे के रूप मैं.........अब ऐसी सिचुयेशन मे गुप्ता का अपनी बीवी से यू दबकर रहना लाजमी था......
"अब जो मैं कहती हू, वो गौर से सुनो..........रोहित को आज के बाद जैसा मैं कहूँगी, वैसा ही ट्रीटमेंट मिलना चाहिए, उसे पढ़ने का शौक हैं,उसे पढ़ने दो,.........उसे अच्छा खाना, कपड़े,नहाना.........सब कुच्छ मिलना चाहिए..........वो मेरा यार हैं.........उसे कोई तकलीफ़ नही होनी चाहिए..........जब भी मेरा दिल करेगा, मैं उससे चुदवाउन्गि........अगर तुम्हे दिखाई भी दे तो तुम कुच्छ नही बोलॉगे, खामोशी से कट मार लोगे............समझ रहे हो मेरी बात को..?

गुप्ता जनंता था उसकी बीवी सेक्स की भूकी हैं, वो पहले भी कई बार आश्रम के लड़को
से चुद चुकी थी, वो ये भी जनता था की वो वर्षा को कामसुख देने मे असमर्थ हैं.......लेकिन ये तो अब उसे पूरी तरह से छक्का साबित करने पर तुली थी.
अपने पति का उतरा हुआ चेहरा देख कर वर्षा को मानो उस पर दया आगाई......."देखो एटना मायूस होने की ज़रूरत नही हैं, तुम अच्छी तरह से जानते हो सेक्स मेरी कमज़ोरी हैं, और तुम उसके लिए कुच्छ भी नही कर पाते हो...!लेकिन तुम्हारे लिए मेरे पास एक प्लान हैं, जो तुम्हे,हमे ढेर सारे रुपये कमा कर देगा,.....और समाज़ के उचे तबके मे हमारी पहुच बन जाएगी........हमे अनाथाश्रम के लिए चंदे के रूप बड़ी बड़ी रकामे मिलेगी.......सिर्फ़ तुम मेरे कहने पर चलो.......और जो मैं कर रही हू वो करने दो.
नकदी की बात गुप्ता तुरंत समझ जाता था, और अगर उसकी छिनाल बीवी के पास नोट बनाने का प्लान है, तो उसे किसी भी बात पर ऐतराज़ नही था........उसकी आँखे चमक उठी
"क्या प्लान हैं तुम्हारे पास"..........उसने अधिरता से पुचछा
"बतौँगी, धीरज रखो..........अब जाओ मूज़े आराम करने दो."


"हमारे शहर मे, मेरी जैसी कई औरते हैं, जो सेक्स की भूखी हैं , जिन्हे अपने पति से संतुष्टि नही मिलती, वो इधर उधर उन्ही मूह नही मार सकती, क्यो की उनका सामाजिक रुतबा, ख़तरे मे पड़ा सकता है, एक ग़लत आदमी का चुनाव,उनकी साख मिट्टी मे मिला सकता है,.....लेकिन वो सेक्स के बिना रह भी नही पति, उन्हे चाहिए एक ऐसा मर्द, जो उनकी सेक्स की भूक आछे से मिटा सके, जिसे कोई बीमारी ना हो, जो भरोसेमंद हो, ताकि बात फैले नही,....और जो पूरी तरह से उनके कंट्रोल मे हो."

वर्षा अपना प्लान गुप्ता को समझा रही थी, और गुप्ता अपनी छिनाल बीवी के शैतानी खोपड़ी का ईडिया सुन कर, मन ही मन उछाल रहा था, वो कुछ कुछ समझ रहा था
"और ये सारे गुण हैं हमारे रोहित मे, मैने खुद उसे 'आजमाया' है, कुछ समझ मे आ रहा है गुप्ता"............वर्षा कुटिल मुस्कुराहट के साथ बोली.
"मैं सब समझ गया हू मेरी छिनाल बीवी, लेकिन क्या रोहित मान जाएगा..?"

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