सेक्सी हवेली का सच--4
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी के आगे के पार्ट जब पोस्ट करूँगा जब आप के कमेन्ट
मुझे मिलेंगे आपके कमेन्ट के इन्तजार मैं
राज शर्मा
रूपाली की आँख खुली तो रात अब भी पुर नूर पे थी. उसने घड़ी की तरफ देखा तो रात के 2 बज रहे थे. वो अब भी आधी नंगी हालत में पड़ी थी. .साड़ी उपेर को खिसकी हुई थी और कमर से खुल गयी थी. उसकी चूत तो ढाकी हुई थी पर टांगे जाँघ तक खुली हुई थी. ब्लाउस के सारे बटन ठाकुर ने तोड़ दिए थे जिसके कारण वो उसे चाहकर भी बंद नही कर सकती थी. ब्लाउस उसके सीने से हटकर दोनो तरफ से कमर के नीचे दबा हुआ था और दोनो चूचियाँ खुली पड़ी थी. रूपाली ने गर्दन घूमाकर ठाकुर की तरफ देखा तो वो भी वैसे ही नंगे सोए पड़े थे. लंड बैठ चुका था और उनका एक हाथ अब भी रूपाली के पेट पे था. रूपाली ने उठने की कोशिश की तो दर्द से उसकी चीख सी निकल गयी. उसकी चूत में अब भी दर्द हो रहा था. छातियाँ चूसे जाने की वजह से पूरी लाल थी और एक छाती पे ठाकुर के दाँत के निशान बने हुए थे. रूपाली ने अपनी चूत पे हाथ फिराया तो कराह उठी. नीचे उसकी गांद पे भी ठाकुर ने अपने नाख़ून गाड़ा दिए थे.
रूपाली ने ठाकुर का हाथ अपने पेट से हटाया और फिर बिस्तर पे गिर पड़ी. उसने अपने आपको ढकने की कोई कोशिश नही की. फायडा भी नही था. वो चाहती भी तो यही थी के ऐसा हो पर ये नही जानती थी के इस तरह होगा. ठाकुर ने उसको संभलने का कोई मौका नही दिया. जो आग 10 साल से जमा हो रही थी एक झटके में रूपाली के उपेर निकाल दी. इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ पाती वो चुद रही थी अपने ही ससुर से. उन्होने उसके दर्द की कोई परवाह नही की. बस उसे किसी रंडी की तरह नीचे पटका और उसपर चढ़ गये.
रूपाली का ध्यान फिर से अपने गुज़रे कल में चला गया. कहाँ वो सीधी सादी से लड़की जो अपने भगवान में खोई रहती थी और कहाँ ये बदली हुई औरत जो अपने ससुर के बिस्तर पे नंगी पड़ी हुई थी, उनसे चुद्वने के बाद. जिसकी चूत में उसका नौकर तक उंगलियाँ कर चुका था. उसने एक ठंडी आह भारी और अपने भगवान को कोसने लगी. उसने क्या सोचा था और नसीब ने उसे क्या दिन दिखाए थे. कहाँ वो इस हवेली में एक बहू की हैसियत से आई थी और अपने ही ससुर की रखेल बनने की तैय्यारि कर रही थी. वजह सिर्फ़ एक थी. उसे अपने पति के क़ातिल का पता लगाना था, पता करना था के वो कौन शक्श था जिसने उसकी ज़िंदगी बर्बाद की थी.
"यही बदला दिया है तूने मेरी पूजा पाठ का, है ना?" उसने अपने दिल ही दिल में भगवान पे जैसे चीखते हुए कहा.
अचानक उसका ध्यान दरवाज़े की तरफ गया जो अब बंद हो चुका था. भूषण ने उसकी पूरी चुदाई देखी थी. जाने वो काब्से दरवाज़े पे खड़ा सब कुच्छ देख रहा था. शायद रूपाली के चीख सुनकर आया था या शायद उससे पहले ही खड़ा था. जब ठाकुर के झाड़ जाने के बाद रूपाली ने उसकी तरफ देखा तो एक पल के लिए दोनो की नज़र एक दूसरे से टकराई. रूपाली ने सीधे भूषण की आँख में आँख डालकर देखा तो भूषण ने नज़र नीची कर ली और दरवाज़ा बंद करके वापिस चला गया. उसके बाद ठाकुर यूँ ही थोड़ी देर रूपाली के उपेर. लंड सिकुड़कर खुद ही चूत से बाहर निकल गया तो वो बिस्तर पे ढेर हो गये. दोनो जाग रहे थे पर किसी ने कुच्छ नही कहा. ना रूपाली ने उठकर अपने आपको ढकने की कोशिश की और ना ही ठाकुर बिस्तर से उठे. दोनो यूँ ही नंगे पड़े पड़े जाने कब सो गये थे.
रूपाली ने नज़र उठाकर घड़ी की तरफ देखा तो 3 बज चुके थे. उसने एक पल के लिए उठकर अपने कमरे में जाने की सोची पर फिर एक ठंडी आह भारी, अपने आपको किस्मत के हवाले किया और वहीं अपने ससुर के बिस्तर पे ही फिर सो गयी और सपने मैं खो गयी
रूपाली एक जंगल के बीचो बीच खड़ी थी. चारो तरफ ऊँचे पेड़ थे. अजीब अजीब सी आवाज़ आ रही थी. अंधेरा इतना के हाथ को हाथ नही सूझ रहा था. उसने पेर आगे बढ़ाने की कोशिश की तो दर्द की एक तेज़ ल़हेर उठी. वो नंगे पेर थी और उसने एक काँटे पे पेर रख दिया था. रूपाली ने अपना पेर उठाया और काँटे को बाहर खींचकर फिर लड़खड़ा कर आगे बढ़ी. आसमान पे नज़र डाली तो पूरा चाँद था पर चाँदनी नही थी. कोई रोशनी कहीं से नज़र नही आ रही थी. हर तरफ घुप अंधेरा. पास ही किसी साँप की फूंकारने की आवाज़ आ रही थी जो धीरे धीरे नज़दीक आ रही थी. शायद वो साँप उसी की तरफ बढ़ रहा था. रूपाली ने तेज़ी से कदम उठाए और आवाज़ से दूर भागने लगी. पर जैसे जैसे वो कदम आगे उठा रही थी किसी शेर के गुर्राने की आवाज़ नज़दीक आ रही थी. शायद आगे कोई शेर था जिसकी तरफ वो भागी जा रही थी. रूपाली फ़ौरन रुकी और दूसरी तरफ भागने लगी. साँप और शेर की आवाज़ अब भी उसके पिछे से आ रही थी. अचानक एक शोर सा पेड़ से उठा और रूपाली को बहुत से बंदर हल्के हल्के दिखाई दिए. वो बंदर बहुर शोर मचा रहे थे. शायद उन्हें उसका अपने इलाक़े में आना पसंद नही आ रहा था. रूपाली रुकी और फिर पलटकर दूसरी तरफ को भागने लगी. पर अब बंदर भी उसके पिछे पड़े हुए थे. उसके पिछे साँप, शेर और बंदर तीनो आ रहे थे. रूपाली को समझ नही आ रहा था के क्या करे. बस बदहवास भागती जा रही थी. साँप से दूर. शेर से दूर, बंदरों से दूर.
भागती भागती अचानक वो जंगल से निकलकर एक खुले मैदान में आ पहुँची. यहाँ अंधेरा नही था. यहाँ चाँदनी थी. रोशनी में आई तो रूपाली को एहसास हुआ के उसकी ब्लाउस खुली हुई है और अंदर ब्रा नही थी जिसकी वजह से उसकी दोनो बड़ी बड़ी चूचियाँ खुली हुई थी और भागते हुए उपेर नीचे हो रही थी. रूपाली ने एकदम अपने ब्लाउस को पकड़के सामने किया और अपने सीने को ढका. वो भागते भागते थक चुकी थी और जानवर शायद अब उसके पिछे नही थे क्यूंकी शोर बंद हो गया था. रूपाली तक कर ज़मीन पे बैठी ही थी के शोर फिर उठा. वो एक खुले मैदान में थी जिसके चारों तरफ घना जंगल था. ऊँचे पेड़ थे जिनके अंदर अंधेरे की वजह से कुच्छ नज़र नही आ रहा था. अचानक शोर फिर उठा और एक तरफ से सारे पेड़ हिलने लगे. उनपर से बड़े बड़े बंदर ज़मीन पे उतरकर चीखते हुए दाँत दिखाते हुए रूपाली के तरफ बढ़ने लगे. रूपाली घबराकर फिर उठी और भागने को हुई ही थी के देखा के दूसरी तरफ से एक बड़ा सा साँप जंगल से निकला और उसकी तरफ बढ़ा. तीसरी तरफ से एक बहुत बड़ा शेर जंगल से निकल गुर्राते हुए उसकी तरफ आने लगा. बंदरों का शोर उसके कानो के पर्दे फाड़ रहा था. वो तीन तरफ से घिर चुकी थी. रूपाली के पास अब और कोई चारा नही था सिवाय इसके के चौथी तरफ से फिर जंगल में भाग उठे. वो फिर जंगल की तरफ भागी पर अचानक उसके सामने से एक तेज़ रोशनी आती हुई दिखाई दी. रूपाली फिर सहम कर रुक गयी. रोशनी धीरे धीरे नज़दीक आती गयी और साथ ही कार के एंजिन की आवाज़ भी आने लगी. रोशनी अब बहुत नज़दीक आ गयी थी और रूपाली को अपनी आँखों पे हाथ रखना पड़ा. अचानक एक कार जंगल से निकली और रूपाली से थोड़ी दूर जाकर रुक गयी. रूपाली ने आँखें खोलकर देखा तो वो कार पुरुषोत्तम की थी. उसकी जान में जान आ गयी. उसका पति उसे बचाने को आ गया था. वो खुश होते हुई कार की तरफ भागी तो ध्यान दिया के सारे जानवर अब जा चुके हैं. शायद कार से डरकर भाग गये थे. वो खुश होती कार के पास पहुँची ही थी के कार का दरवाज़ा खुला और खून से लथपथ पुरुषोत्तम गाड़ी से बाहर निकलकर गिर पड़ा. उसकी आँख, नाक, कान मुँह हर जगह से खून निकल रहा था. उसने ज़मीन पे गिरे गिरे मदद के लिए रूपाली की तरफ हाथ उठाया. रूपाली अपने पति के पास पहुँची और ज़मीन पे बैठ कर उसका सर अपनी गोद में रख लिया.
"क्या हुआ आपको?" उसने लगभग चिल्लाते हुए पुरुषोत्तम से पुचछा.
"रूपाली ..................." पुरुषोत्तम जवाब में बस इतना ही कह सका. उसके मुँह से खून अब और ज़्यादा बहने लगा था. आअंखों में खून उतर जाने की वजह से आँखें लाल हो गयी थी.
रूपाली ने परेशान होकर अपने चारों तरफ देखा जैसे मदद के लिए किसी को ढूँढ रही हो और सामने से उसे भूषण आता हुआ दिखाई दिया एक बार फिर उसकी हिम्मत बँधने लगी.
"भूषण काका" वो भूषण की तरफ देखके चिल्लाई " देखिए इन्हें क्या हो गया है. मदद कीजिए. इन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा"
पर भूषण अब उससे थोड़ी दूर रुक गया था और खड़ा हुआ सिर्फ़ देख रहा था.
"आप रुक क्यूँ गये. इधर आइए ना" रूपाली फिर चिल्लाई पर भूषण वहीं खड़ा हुआ उसे एक मुर्दे की तरह देखता रहा.
"रूपाली" अपने पिछे से एक जानी पहचानी भारी सी आवाज़ सुनकर रूपाली पलटी तो देखा के पिछे उसके ससुर ठाकुर शौर्या सिंग खड़े हुए थे.
"पिताजी" रूपाली की आँखों में खुशी के आँसू आ गये
"देखिए क्या हो गया" उसने अपनी पति की तरफ इशारा किया.
जवाब में ठाकुर ने उसके बाल पकड़े और उसे खींचकर सीधा खड़ा कर दिया. पुरुषोत्तम का सिर उसकी गोद से निकलकर ज़मीन पे गिर पड़ा. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या हो रहा है. ठाकुर उसे बाल से पकड़कर खींचता हुआ कार की तरफ ले गया और कार के बोनेट पे उसे गिरा दिया.
"क्या कर रहे हैं पिताजी?" रूपाली ने पुचछा तो ठाकुर ने उसे खींचकर फिर सीधा खड़ा किया, घुमाया और उसे झुककर उसका सर कार के बोनेट से लगा दिया. अब रूपाली झुकी हुई अपने ससुर के सामने खड़ी थी.
उसने उठने की कोशिश की पर पिछे उठ नही पाई. ठाकुर अब पिछे से उसकी सारी उठा रहे थे और रूपाली चाहकर भी कुच्छ नही कर पा रही थी. जैसे उसके हाथ पावं में जान ही ना बची हो. जैसे किसी अंजान ताक़त ने उसे पकड़ रखा हो. ठाकुर सारी उठाकर अब उसकी कमर पे डाल चुके थे. नीचे से रूपाली की दोनो टाँगें और गांद खुल गयी थी. उसकी चूत पिछे से ठाकुर के सामने खुली हुई थी.ठंडी हवा लगी तो रूपाली को महसूस हुआ के आज तो उसने पॅंटी भी नही पहनी थी.
"ये कैसे हुए, कैसे भूल गयी मैं" रूपाली सोच ही रही थी के उसे अपनी चूत में कुच्छ घुसता हुआ महसूस हुआ. उसके बदन में दर्द की चुभन उठती चली गयी. लगा जैसे चूत को फाड़ कर दो हिस्सो में कर दिया गया हो. वो लंबी सी मोटी चीज़ अब भी उसके अंदर घुसती चली जा रही थी. उसका सर और हाथ कार के बोनेट पे रखे हुए थे और दोनो चूचियाँ सामने लटक गयी थी. एक हाथ आगे आया और उसके एक चूची को पकड़कर दबाने लगा.
रूपाली के अंदर जान बाकी नही थी. वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. बश झुकी खड़ी थी. पीछे से उसके ससुर ने एक हाथ से उसकी गांद और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची पकड़ रखी थी. थोड़ी दूर खड़ा भूषण अब ज़ोर ज़ोर से हस रहा था. एक लंबी मोटी से चीज़ उसकी चूत में अब भी और अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी.
हड़बड़ा कर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो एक सपना देख रही. उसके पूरा बदन पसीने से भीग चुका था और वो सूखे पत्ते की तरफ काँप रही थी. ठाकुर अब उसकी साइड में नही थे और वो अकेली ही बिस्तर पे आधी नंगी पड़ी थी. उसे बहुत ज़ोर से सर्दी लग रही थी. हाथ लगाया तो देखा के उसका माथा किसी तवे की तरह गरम हो चुका था. सपना जैसे अब भी उसकी आँखों के सामने घूम रहा था और भूषण के हस्ने की आवाज़ अब भी उसके कान में थी.
रूपाली लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठी. खड़ी होते ही खुली हुई साड़ी ज़मीन पे जा गिरी. रूपाली ने झुक कर उसे उठाया पर बाँधने की कोई कोशिश नही की. सामने से ब्लाउस खुला हुआ था और उसकी चूचियाँ बाहर लटक रही थी. रूपाली ने साडी को अपने सामने पकड़ा और चूचियों को ढका. वो धीरे धीरे चलती ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और इधर उधर देखा. हवेली सुनसान पड़ी थी. भूषण भी कहीं नज़र नही आ रहा था. वो धीमे कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ते अपने कमरे में पहुँची और फिर जाकर अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. उसके जिस्म में बिल्कुल जान नही थी. पूरा बदन आग की तरह गरम हो रहा था. सर्दी भी उसे बहुत लग रहा था. माथा गरम हो चुका था और बुखार की वजह से आँखें भी लाल हो रही थी. रूपाली बिस्तर पे पड़े पड़े ही अपने जिस्म से कपड़े हटाए और नंगी होकर बाथरूम में आई. दरवाज़े का सहारा लिए लिए ही उसने बाथटब में पानी भरा और नहाने के लिए टब में उतर गयी.
शाम ढल चुकी थी. रूपाली अब भी अपने कमरे में ही थी. उसने सुबह से कुच्छ नही खाया था और ना ही अपने कमरे से निकली थी. बुखार अब और तेज़ और हो चुका था और रूपाली के मुँह से कराहने की आवाज़ निकलने लगी थी. उसने कई बार बिस्तर से उठने की कोशिश की पर नाकाम रही. गर्मी के मौसम में भी उसने अलमारी से निकालकर रज़ाई ओढ़ रखी थी पर सर्दी फिर भी नही रुक रही थी. वो बिस्तर पे सिकुड सी गयी. जब दर्द की शिद्दत बर्दाश्त नही हुई तो उसकी आँखो से आँसू बह चले और वो बेज़ार रोने लगी.
उसे याद था के पुरुषोत्तम के मरने से पहले जब वो एक बार बीमार हुई थी तो किस तरह उसके पति ने उसका ख्याल रखा था और आज वो अकेली बिस्तर पे पड़ी कराह रही थी. पति की याद आई तो उसका रोना और छूट पड़ा. वो बराबर रज़ाई के अंदर रोए जा रही थी पर जानती थी के ये रोना सुनने वाला अब कोई नही है. उसे खुद ही रोना है और खुद ही चुप हो जाना है. आँसू अब उसके चेहरे से लुढ़क कर तकिये को गीला कर रहे थे.
"बहू" दरवाज़े पे दस्तक हुई. बाहर भूषण खड़ा था
"खाना तैय्यार है. आके खा लीजिए." वो उसे रात के खाने पे बुला रहा था.
"नही मुझे भूख नही है" रूपाली ने हिम्मत बटोरकर कहा.
भूषण वापिस चला गया तो रूपाली को फिर अपने उपेर तरस आ गया. आज बीमार में उसे कोई खाने को पुच्छने वाला भी नही है. उसे अपनी माँ और भाई की याद आई जो कैसे उसे लाड से ज़बरदस्ती खिलाया करते थे, उसे अपने पति की याद आई जो उसकी कितनी देखभाल करता था.
थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई तो रूपाली ने रज़ाई से सर निकालकर बाहर देखा. दरवाज़े पे उसके ससुर खड़े थे जो हैरानी से उसे देख रहे थे. वजह शायद रज़ाई थी जो उसने गर्मी के मौसम में भी अपने उपेर पूरी लपेट रखी थी.
"क्या हुआ?" ठाकुर ने पुचछा
"जी कुच्छ नही. बस थोड़ी तबीयत खराब है" रूपाली ने उनकी तरफ देखते हुए कहा
ठाकुर धीरे से उसके नज़दीक आए और उसके माथे को छुआ. अगले ही पल उन्होने हाथ वापिस खींच लिया.
"हे भगवान. तुम्हें तो बहुत तेज़ बुखार है बहू" ठाकुर ने कहा
"नही बस थोड़ा सा ऐसे ही बदन टूट रहा है. आप फिकर ना करें" रूपाली ने उठने की कोशिश करते हुए कहा.
ठाकुर ने उसका कंधा पकड़कर उसे वापिस लिटा दिया.
"हमें माफ़ कर दो बेटी. हम जानते हैं के ये हमारी वजह से हुआ है. कल रात हमने तुम्हें बहुत तकलीफ़ पहुँचाई थी." ठाकुर की आवाज़ भी भारी हो चली. जैसे अभी रोने को तैय्यार हों.
रूपाली ने जवाब में कुच्छ ना कहा.
"बहू, कल रात जो हुआ हम उसके लिए माफी माँगते हैं. कल रात.............." ठाकुर बोल ही रहे थे की रूपाली ने उनकी बात बीच में काटी दी.
"पिताजी कल रात जो हुआ वो मर्ज़ी से होता है, ज़बरदस्ती से नही. ज़रा सोचिए के जब आपको मर्ज़ी हासिल हो चुकी थी तो बलात्कार की क्या ज़रूरत थी"
रूपाली के मुँह से निकली इस बात ने बहुत कुच्छ कह दिया था. उसने अपने ससुर के सामने सॉफ कर दिया था के वो खुद चुदवाने को तैय्यार है, उन्हें उसे ज़बरदस्ती हासिल करने की कोई ज़रूरत नही है. वो खुद उनके साथ सोने को तैय्यार है तो उन्हें खुद उसे पकड़के गिराने की क्या ज़रूरत है. उसने सॉफ कह दिया था के असली मज़ा तो तब है जब वो खुद भी अपनी मर्ज़ी से चुदवाके साथ दे रही हो. उसमें क्या मज़ा के जब वो नीचे पड़ी दर्द से कराह रही हो.
रूपाली के बात सुनकर ठाकुर ने उसकी आँख में आँख डालकर देखा. जवाब में रूपाली ने भी अपना चेहरा पक्का करके नज़र से नज़र मिला दी, झुकाई नही. दोनो इस बात को जानते थे के अब उनके बीच हर बात सॉफ हो चुकी है. ठाकुर ने प्यार से फिर उसका सर सहलाया और पास पड़ा फोन उठाकर डॉक्टर का नंबर डायल करने लगे.
भाई लोगो बाकी कहानी अगले भाग मैं तब तक के लिए विदा
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