Saturday, March 27, 2010

उत्तेजक कहानिया दिल अपना और प्रीत पराई--पार्ट--6

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दिल अपना और प्रीत पराई--पार्ट--6
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा दिल अपना और प्रीत पराई का लास्ट भाग लेकर आपके सामने हाजिर हूँ
अब आप ही बताइयेगा ये कहानी आपको कैसी लगी

शिवेन्द्र पहले भाग गया, गुडिया ने भागते भागते मुझे देख लिया! शफ़ात ने अपना लँड चड्‍डी में कर लिया! तभी ज़ाइन आ गया मगर जब ज़ाइन आया तो उसने मेरे और शफ़ात की चड्‍डियों में सामने उभरे हुये लँड देखे!

“क्या हुआ? साले, इतनी गलत टाइम में आ गया…” शफ़ात बोला!
“क्यों, क्या हुआ?”
“कुछ नहीं…”

मगर ज़ाइन की नज़र हमारे लँडों से हटी नहीं क्योंकि उस समय हम दोनो के ही लौडे पूरी तरह से उफ़न रहे थे! मेरा लँड चड्‍डी में नीचे आँडूओं की तरफ़ था इसलिये उसका तना मुड के सामने से बहुत बडा उभार बना रहा था, जब्कि शफ़ात का लँड उसकी राइट जाँघ की तरफ़ सीधा कमर के डायरेक्शन में खडा था जिस कारण उसकी पूरी लेंथ पता चल रही थी! बदन की गर्मी से हमारे बदन तो सूख गये थे मगर चड्‍डियाँ हल्की गीली थी!

“साले टाइम देख के आता ना…”
“किसका टाइम?”
“भोसडी के… लौडे का टाइम…” शफ़ात ने खिसिया के कहा!
“देख क्या रहा है?” उसने जब ज़ाइन को कई बार अपने लँड की तरफ़ देखता हुआ देखा तो पूछा!
“कुछ नहीं…”
“कुछ नहीं देखा तो बेहतर होगा… वरना चल नहीं पायेगा…”
मैं चाह रहा था, या तो शफ़ात ज़ाइन को रगडना शुरु कर दे या वहाँ से भगा दे! मगर वैसा कुछ नहीं हुआ!
“चलो भैया नीचे चलते हैं… देखें तो कि फ़ूल मसलने के बाद कितना खिल रहा है…” शायद शफ़ात के दिमाग पर गुडिया का नशा चढ गया था!
“चलो” मैने भारी मन से कहा मगर मैने फ़िर भी ज़ाइन हाथ पकड लिया!
“हाथ पकड के चलो वरना गिर जाओगे…”
हम जिस रास्ते से आये थे वो चढने के टाइम तो आसान था मगर उतरने में ध्यान रखना पड रहा था क्योंकि पानी का बहाव तेज़ था! फ़िर एक जगह काफ़ी स्टीप उतार था! शफ़ात तो जवानी के जोश में उतर गया मगर ज़ाइन को मेरी मदद की ज़रूरत पडी! पहले मैं नीचे कूदा फ़िर ज़ाइन को उतारा और उतरने में पहले तो उसकी कमर पकडनी पडी जिसमें एक बार तो उसके पैर का तलवा मेरे होंठों से छू गया, और फ़िर जब उसको नीचे उतारा तो जान-बूझ के उसकी कमर में ऐसे हाथ डाला कि आराम से काफ़ी देर उसकी गदरायी गाँड की गुलाबी गोल फ़ाँकों पर हथेली रख रख के दबाया! मुझे तो उसकी चिकनी गाँड दबा के फ़िर मज़ा आ गया और छोडते छोडते भी मैने अपनी हथेली उसकी पूरी दरार में फ़िरा दी! ज़ाइन हल्का सा चिँहुक गया और उसने आगे चलते शफ़ात की तरफ़ देखा! शफ़ात भी मेरे सामने चड्‍डी पहने पत्थरों पर उतरता हुआ बडा मादक लग रहा था! उसकी गाँड कभी मटकती, कभी टाँगें फैलती, कभी पैर की माँसपेशियाँ तनाव में हो जातीं, कभी गाँड भिंचती! मैने बाकी की उतराई में ज़ाइन की कमर में हाथ डाले रखा!
“हटाइये ना…” उसने कहा!
“अबे गिर जायेगा.. पकड के रखने दे…” मैने कहा!
नीचे तलाब में समाँ अभी भी मस्ती वाला था, सब जोश में थे! खेल-कूद चल रहा था!
“आओ ना, ज़ाइन को गुफ़ा दिखाते हैं…” मैने कहा!
“आप दिखा दीजिये, मुझे कुछ और देखना है ज़रा…” शफ़ात ने जल्दबाज़ी से उतरते हुये कहा!
“कैसी गुफ़ा?” ज़ाइन ने पूछा!
“अभी दिखता हूँ… बहुत सैक्सी जगह है…” मैने जानबूझ के उस शब्द का प्रयोग किया था! मैने ज़ाइन का हाथ पकडा और पहले उसको पानी के नीचे ले गया क्योंकि उसके पीछे जाने का रास्ता उसके नीचे से ही था! फ़िर मैने जब मुड के देखा तो शफ़ात अपनी गीली चड्‍डी पर ही कपडे पहन रहा था! फ़िर मैं और ज़ाइन जब पानी की चादर के पीछे पहुँचे तो वो खुश हो गया!
“सच, कितनी अच्छी जगह है…”
“अच्छी लगी ना तुम्हें?” मैने उसकी कमर में अपना हाथ कसते हुये कहा!

उसको अपने बदन पर मेरे बदन की करीबी का भी आभास हो चला था! उसको लग गया था कि जिस तरह मैने अब उसकी कमर में हाथ डाला हुआ है वो कुछ और ही है!
“उंहू… चाचा क्या…” वो हल्के से इठलाया मगर मैने उसको और इठलाने का मौका ना देते हुये सीधा उसकी गाँड पर हथेली रख कर उसकी गाँड की एक गदरायी फ़ाँक को दबोच लिया और उसको कस के अपने जिस्म के पास खींच लिया!
“उस दिन की किसिंग अधूरी रह गयी थी ना… आज पूरी करते हैं…” मैने कहा!
“मगर चाचा यहाँ? यहाँ नहीं, कोई भी आ सकता है…”
“जल्दी करेंगे, कोई नहीं आयेगा…” मैने उसको और बोलने का मौका ही नहीं दिया और कसके उसको अपने सामने खींचते हुये सीधा उसके गुलाबी नाज़ुक होंठों पर अपने होंठ रख कर ताबडतोड चुसायी शुरु कर दी और उसके लँड पर अपना खडा हुआ लँड दबा दिया! वो शुरु में थोडा सँकोच में था, फ़िर जैसे जैसे उसका लँड खडा हुआ, उसको मज़ा आने लगा! उसने भी मुझे पकड लिया! उसके होंठों का रस किसी शराब से कम नहीं था! उसके होंठों चूसने में उसकी आँखें बन्द हो गयी थी! मैने अपने एक हाथ को उसकी गाँड पर रखते हुये दूसरे को सामने उसके लँड पर रख दिया और देखा कि उसका लँड भी खडा है! मैने उसको मसल दिया तो उसने किसिंग के दरमियाँ ही सिसकारी भरी! मैने फ़िर आव देखा ना ताव और उसकी चड्‍डी नीचे सरका दी!

शुरु में उसने हल्का सा रोका, मेरा हाथ पकडने की कोशिश भी की मगर जब मैने उसके नमकीन ठनके हुये लँड को हाथ में पकड के दबाना शुरु किया तो वो मस्त हो गया! इस बीच मैने उसकी गाँड फ़ैला के उसकी दरार में अपना हाथ घुसाया और फ़ाइनली अपनी उँगली से उसके छेद को महसूस किया!
“उफ़्फ़… साला क्या सुराख है…” मैने कहा और उसका एक हाथ लेकर अपने लँड पर रख दिया तो उसने जल्द ही मेरे लँड को चड्‍डी के साइड से बाहर कर के थाम लिया और जैसे उसकी मुठ मारने लगा!
“चाचा.. अआह… कोई आ ना जाये…”
“नहीं आयेगा कोई… एक चुम्मा पीछे का दे दो…”
“ले लीजिये…”
मैने झट नीचे झुकाते हुये उसको पलटा और पहले तो उसकी कमर में ही मुह घुसा के उसके पेट में एक बाँह डाल दी और दूसरे से उसकी गाँड दबाई! फ़िर रहा ना गया तो मैं और नीचे झुका और पहली बार उसके गुलाबी छेद को देखा तो तुरन्त ही उस पर अपनी ज़बान रख दी! उसने सिसकारी भरी!
“अआह… हाय… ज़ाइन हाय…” मैने भी सिसकारी भरी! जब मैं उसकी गाँड पर होंठ, मुह और ज़बान से बेतहाशा चाटने औए चूमने लगा तो वो खुद ही अपनी गाँड पीछे कर कर के हल्का सा आगे की तरफ़ झुकने लगा!
“सही से झुक जाओ…” मैने कहा!
“कोई आयेगा तो नहीं?”
“नहीं आयेगा.. झुक जाओ…”
उसने सामने के पत्थर की दीवार पर अपने दोनो हाथ टेक दिये और ऑल्मोस्ट आधा झुक गया! अब उसकी जाँघें भी फैली हुई थी! मैने उसके गाँड की चटायी जारी रखी, जिसमें उसको भी मज़ा आ रहा था!
पहले दादा! फ़िर बाप… और अब पोता…
तीनों अपनी अपनी तरह से गर्म और सैन्सुअल थे! तीनों ने ही मुझे मज़ा दिया और मेरा मज़ा लिया! ये मेरे जीवन में एक स्पेशल अनुभव था… शायद पहला और आखरी…

मेरे चाटने से उसकी गाँड खुलने लगी थी और उसका छेद और उसके आसपास का एरिया मेरे थूक में पूरी तरह से भीगा था! मैं ठरक चुका था… और वो भी! मैने उसकी गाँड के छल्ले पर उँगली रखी तो वो आराम से आधी अंदर घुस गयी! उसके अंदर बहुत गर्मी थी! मैने उँगली निकाली और उसको चाटा तो मुझे उसका टेस्ट मिला… उसकी नमकीन जवानी का टेस्ट! फ़िर मैं खडा हुआ और उसको कस के भींच लिया और अपना मुह खोल के उसके खुले मुह पर रख दिया तो हम एक दूसरे को जैसे खाने लगे! मैं अब साथ साथ उसकी गाँड में उँगली भी दिये जा रहा था! वो उचक उचक के मेरे अंदर घुसा जा रहा था! हमारे लँड आपस में दो तलवारों की तरह टकरा रहे थे! मैने उसको फ़िर झुकाया और अपनी उँगलियों पर थूक के अपने लँड पर रगड दिया! इस बार मैने उसके छेद को अपने सुपाडे से सहलाया! वो हल्का सा भिंच गया, मगर फ़िर खुल भी गया! जैसे ही सुपाडा थोडा दबा वो खुल भी गया, देखते देखते मैने अपना सुपाडा उसकी गाँड में दे दिया! उसकी गर्म गाँड ने मेरे सुपाडे को भींच लिया! मैने और धक्‍का दिया, फ़िर मेरा काफ़ी लँड उसके अंदर हो गया तो मैने धक्‍के देना शुरु कर दिये क्योंकि मुझे पता था कि उसकी बाकी की गाँड धक्‍कों से ढीली पड के खुल जायेगी! उसको मज़ा देने के लिये मैने उसका लँड थाम के उसकी मुठ मारना शुरु कर दी और फ़िर मेरा लँड उसकी गाँड में पूरा घुसने और निकलने लगा!

वो कभी सीधा खडा हो जाता कभी झुक जाता और उसका लँड मेरे हाथ में हुल्लाड मारने लगा!
“चाचा, अब झड जायेगा… मेरा झड जायेगा… माल गिरने वाला है…” कुछ देर में वो बोला!
मैं भी काँड खत्म करके नीचे जाना चाहता था, इसलिये मैने ना सिर्फ़ अपने धक्‍के गहरे और तेज़ कर दिये बल्कि उसका लँड भी तेज़ी से मुठियाने लगा! फ़िर उसकी गाँड इतनी कस के भिंची कि मेरा लँड ऑल्मोस्ट लॉक हो गया! फ़िर उसका लँड उछला! जब लँड उछलता, उसकी गाँड का छेद टाइट हो जाता! फ़िर उसके लँड से वीर्य की धार निकली तो मैने अपने हाथ को ऐसे रखा कि उसका पूरा वीर्य मेरी हथेली पर आ गया! मैने उसके वीर्य को उसके लँड पर रगड रगड के उसकी मुठ मारना जारी रखा! फ़िर उसकी एक एक बून्द निचोड ली और अपने धक्‍के तेज़ कर दिये! मैने अपनी वो हथेली, जो उसके वीर्य में पूरी सन चुकी थी, पहले तो अपने होंठों पर लगाई! उसका वीर्य नमकीन और गर्म था! फ़िर मैने उसको ज़बान से चाटा और फ़ाइनली जब मैं उसको अपने मुह पर क्रीम की तरह रगड रहा था तो मैं बहुत एक्साइटेड हो गया और मेरा लँड भी हिचकोले खाने लगा!
“आह… मेरा भी… मेरा भी झडने वाला है…” मैं सिसकारी भर उठा! और इसके पहले वो समझ पाता, मैने लँड बाहर खींचा और उसको खींच के अपने नीचे करते हुये उसके मुह में लँड डालने की कोशिश की! मगर इसके पहले वो मुह खोलता, मेरे लँड से वीर्य की गर्म मोटी धार निकली और सीधा उसके मुह, चिन, गालों और नाक पर टकरा गयी! वो हडबडाया और इस हडबडाहट में उसका मुह खुला तो मैने अपना झडता हुआ लँड उसके मुह में अंदर तक घुसा के बाकी का माल उसके मुह में झाड दिया!
वो शायद हटना चाहता था, मगर मैने उसको ज़ोर से पकड लिया था… आखिर उसने साँस लेने के लिये जब थूक निगला तो साथ में मेरा वीर्य भी पीने लगा! फ़िर अल्टीमेटली उसने मेरे झडे हुये लौडे को चाटना शुरु कर दिया! मुझे तो मज़ा आ गया! मैने अपने गे जीवन में एक खानदानी अध्याय लिख दिया था!

इस सब के दरमियाँ मैने ये ताड लिया था कि ज़ाइन ने जिस आराम से मेरे जैसे लौडे को घुसवा लिया था और चाटने के टाइम जो उसका रिएक्शन था और जिस तरह उसकी गाँड का सुराख ढीला हुआ था, उसको गाँड मरवाने का काफ़ी एक्स्पीरिएंस था और वो उस तरह का नया नहीं था जिस तरह का मैं शुरु में समझ रहा था! लडका खिलाडी था, काफ़ी खेल चुका था! मगर मुझे ये पता नहीं था कि उसने ये खेल किस किस के साथ खेला था! अब खाने का इन्तज़ाम हो चुका था और शफ़ात वहाँ पहले से बैठा था! गुडिया की रँगत चुदने के बाद उडी उडी सी थी! वो अक्सर शिवेन्द्र से नज़रें मिला रही थी! जब उसने मुझे देखा तो शरमा गयी और कुछ परेशान भी लगी! उसने मुझे देखते हुये देख लिया था! शफ़ात अब सिर्फ़ गुडिया की चूत के सपने संजो रहा था! शिवेन्द्र मस्त था! घर में बीवी थी जिससे दो बच्चे थे और यहाँ उसने ये कॉन्वेंट में पढने वाली चिकनी सी चुलबुली ख़रगोशनी पाल रखी थी! उसका लँड तो हर प्रकार से तर था! अब मुझे ज़ाइन को भी आराम से देखने में मज़ा आ रहा था! चोदने के बाद अब उसकी गाँड जीन्स पर से और भी सैक्सी लग रही थी… वैसे मेरी नज़र शफ़ात के लँड की तरफ़ भी जा रही थी और बीच बीच में मैं शिवेन्द्र को भी देख रहा था जो मुझे मर्दानगी का अल्टीमेट सिम्बल लग रहा था! दोस्तों मुठ मारना बुरी बात है बहूत हो गया मैं कहानी को यहीं ख़तम करता हूँ अब तो अपना हाथ लुंड से हटालो यार

आपका दोस्त

राज शर्मा
































































































































































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