FUN-MAZA-MASTI
मेरी चेहरे पर पसीने की बूंदे छा गयी थीं, "मुझे भी तुम्हारा लंड अच्छा लग ….ओ……ओ……..ओ….. ओह …….. अक्कू मैं
अब आने वाली हूँ ," अचानक मेरा शरीर मेरे रति निष्पति के द्वार पर खड़ा था।
मैं वासना के ज्वर से प्रताड़ित कांपते हुए चीखी ," अक्कू मेरी गांड फाड़ डालो पर मुझे झाड़ दो। अक्कू मेरे अक्कू मारो मेरी
गांड …… आँ….. आँ…….. आँ………आँ……..आँ…….ओऊन्न्ग्ग्ग……..अाॅन्न्ह……..अक्कू ," मैं चीखते हुए झड़ने लगी।
मेरी छोटी से ज़िंदगी में वो सबसे प्रचंड रति-निष्पति थी। उसकी तीव्रता से मेरी सांस मेरे गले में अटक गयी। मेरे पेट में एक
अजीब सा दर्द फ़ैल गया। मेरे सारा शरीर अकड़ गया और फिर मानों एक सैलाब मेरे शरीर में बाँध तोड़ कर बाढ़ की तरह सब
तरफ फ़ैल गया।
मैं बेबस अपने चरम-आनंद के प्रचंड झोंकों से कांप-कांप कर अपने भाई को दुहाई दे रही थी ," अक्कू मेरे अक्कू मेरे प्यारे
अक्कू मुझ और झाड़ो। "
अक्कू को उस कच्ची उम्र में भी मम्मी और डैडी की चुदाई देख कर समझ आ गया था कि अब उसकी बड़े बहन अनर्गल बक
रही थी। उसने मेरे पसीने से लथपत कमर को सहला कर और भी ज़ोरों से मेरी गांड की बेदर्द निरंकुश चुदाई बिना थके और
धीरे हुए अविरत जारी रखी।
मेरी गांड से अब 'फच-फच ' की आवाज़ें आ थीं। अक्कू का लंड अब बे रोक-टोक मेरी गांड में रेल के इंजन के पिस्टन की तरह
सटासट दौड़ रहा था। मेरी साँसे अब हांफने में बदल गयीं थीं।
अक्कू को मेरी ज़ोर से गांड मारने की याचनाएं बेकार लग रहीं होगीं क्योंकी वो अब मेरी गांड उतनी हैवानियत से मार रहा
था जितनी डैडी ने मम्मी की गाड़ मारते हुए दिखाई थी।
मैं फिर से आने वाली थी। मेरी सिस्कारियों में मेरे झड़ने की मीठी पीड़ा से सुबकने के मधुर स्वर भी शामिल हो गए ,"अक्कू
…… अक्कू …….. अक्कू …….. अक्कू ………. आन्ह…… आन्ह……… अआह……… ओऊन्नन्न्न्न……..
उउउउन्न्न्न्न्न्म्म्म्म्म्म……. , “ मैं बिलबिला के झड़ने लगी।
अक्कू के मेधावी मस्तिष्क ने उसके सारे अनुभवों की विवेचना कर ली थी और अब उसे अपनी बड़ी बहन के निर्देशों की कोई
भी आवश्यकता नहीं थी।
अक्कू ने मेरी पसीने से लथपत कमर कके ऊपर झुक कर ममेरी छाती के उभारों को अपनी बड़ी मुट्ठियों में जकड़ लिया। मेरी
छाती से उपजे दर्द ने मेरी गांड से उबलते आनंद को और भी परवान चढ़ा दिया। अक्कू ने मेरी घुंडियों को बेदर्दी से
मसला,खींचा और मड़ोड़ा। मैंने चीख कर, सुबक कर और सिसकारी मर कर बार बार झाड़ गयी।
इस बार अक्कू ने तो झड़ने का नाम ही नहीं लिया। मैं पांच के बात गिनती गिनना भूल गयी। अक्कू के एक भयंकर धक्के से
मेरा रति-निष्पति से शिथिल शरीर पूरा हिल उठे और मैं मुंह के बल पलंग पर गिर गयी। अब मैं मुंह के बल पट लेती थी।
अक्कू ने एक पल के लिए भी अपना लंड मेरी फड़कती गांड में से नहीं निकलने दिया। पट लेटने से मेरी गांड और संकरी हो
गयी। अक्कू का लंड मुझे और भी भीमकाय लगने लगा। उसके हाथ मेरी छाती के नीचे दबे हुए थे पर उनसे मेरी घुंडियों की
प्रतारणा अविरत होती रही।
मैं बार बार झड़ने की मीठी यातना से थक कर चूर हो चुकी थी , " अक्कू अब तुम झड़ जाओ प्लीज़। मेरी गांड अब बहुत जल
रही है। उसे अपने रस से ठंडा कर दो। "
अक्कू अब तलक मेरी गांड एक घंटे से भी ऊपर मार चूका था।
अक्कू ने कसमसा कर मेरी घुंडियों को कस कर निचोड़ दियस औऐर मेरी हल्की चीख और भी ऊंची हो गयी जैसे ही उसका
गरम लंड का रस मेरी गांड में बौछारें मारने लगा। मैं बिलबिला उठी आनंद के अतिरेक से। अक्कू की आनंद भरी सिस्कारियों ने
मेरे आनंद को को और भी उन्नत कर दिया। सिर्फ इस विचार से कि मेरे छोटे भैया को मेरी गांड मारने से इतना आनंद आ रहा
है उससे मेरे आनंद के चरमसीमा अपरिमित असीमित सीमा में बदल गयी।
मैं एक बार फिर से झाड़ गयी पर इस बार मेरा रति-निष्पति ने मुझे लगभग बेहोश कर दिया। मैंने आनंद से अभिभूत हो आँखें
बंद कर लीं और अक्कू का गरम लंड का रस मेरी जलती गांड को 'शीतल' करने का प्रयास कर रहा था।
न जाने कितनी देर बाद दोनों हाँफते भाई-बहन फिर दुबारा जीवित संसार के सदस्य बने।
"दीदी, आई लव यू ," अक्कू ने धीरे से फुसफुसा कर मेरे कान की लोलकी [इयर-लोब्यूल] को चूसते हुए फुसफुसाया।
मैं अक्कू के अपनी गांड की चुदाई से इतनी थक चुकी थी कि बस पलंग की चादर में दबे अपने होंठों की मुस्कान से ही अपने
प्यार को दर्षा पाई।
दोनों बहन-भाई ना जाने कितनी देर तक एक दुसरे से उलझे ऐसे ही लेते रहे।
"दीदी, क्या अब मैं आपको सीधा लिटा कर आपकी गांड मारूं ?" अक्कू डैडी की सारी क्रियाओं का प्रदर्शन करना चाह रहा
था।
मैंने खिलखिला कर हंस दी ," अक्कू , मेरे प्यारे भैया , तुम जब जैसे भी मेरी गांड मार सकते हो। अब यह गांड तो तुम्हारी है
, पर तुम्हारा लंड अब मेरा है। "
अक्कू भी अपनी उम्र के बच्चों की तरह खिलखिला उठा , "दीदी यह अदला बदली तो मुझे स्वीकार है। इस तरह तो मैं
आपके गांड जब चाहे मार सकता हूँ। "
मैंने भी हँसते हुए कहा ," मेरे बुद्धू छोटे भैया , यह ही तो मैंने पहले कहा था। "
अक्कू ने मेरा मुंह मोड़ मैंने मेरी फड़कती नासिका को चूम लिया ," दीदी मुझे अब आपकी गांड आपका मुंह देखते हुए मारनी
है। "
अक्कू के शब्दों में एक विचित्र सी परिपक्वता थी और मैंने उस का प्रस्ताव आदर से स्वीकार कर लिया।
अक्कू ने जब अपना लंड मेरी गांड में से निकाला तो मेरी गांड में से ज़ोर का दर्द हुआ और मैं न चाहते हुए भी चीख उठी।
अक्कू ने मेरे हिलने से पहले मेरे चूतड़ों को फैला केर मेरी गांड और चूतड़ों को प्यार से चूम चाट कर साफ़ कर दिया।
मैंने मम्मी की देखा देखी जब मुड़ी तो अक्कू का लंड अपने मुंह में लेकर चूस चाट कर साफ़ करने लगी। अक्कू के लंड
पर उसके लंड के रस और मेरी गांड के रस का मिश्रित लेप मेरे मुंह के स्वाद को बहुत भाया।
अब मैं अपने पीठ पर अपने गोल मटोल मोटी टांगें फैला कर अपने छोटे भाई का इंतज़ार करने लगी। अक्कू ने मेरी
जांघों को मेरे कन्धों तक पीछे झुका कर मेरे चूतड़ों को पलंग से ऊपर उठा दिया। उसका लंड मानों थकने का नाम ही
नहीं ले रहा था। अक्कू ने अपना लंड ने मेरी गांड बिना उसके हाथ की मदद से ढूंड ली। फिर उसने अपना लंड, एक
बार अपने सुपाड़े को मेरी गांड में फंसा कर, दो जान लेवा धक्कों से मेरी गांड में ठूंस दिया।
मैं मीठे दर्द से चीख उठी। अक्कू ने मेरी गांड की चुदाई बेदर्दी से शुरू की और तब तक मेरी गांड चोदता रहा जब तक
मैं अनगिनत बार झड़ कर बेहोश नहीं हो गयी।
उस रात अक्कू ने मेरी गांड पांच बार और मारी। हम दोनों भाई-बहन देर सुबह तक सोते रहे।
मेरा सारा शरीर दर्द कर रहा था। मेरी छाती के उभार सूज कर लाल हो गए थे। अक्कू ने मेरे मुंह को चूम कर कहा
,"दीदी, मैं आपका सारी ज़िंदगी ख्याल रखूंगा। आई लव यू दीदी,"
अक्कू सुबक कर बोला और मैंने उसके खुले मुंह पर अपने मुंह दबा दिया. हम दोनों एक दुसरे सुबह के बासी मुंह के स्वाद
से परिचित होने लगे। मुझे अक्कू के मुंह का स्वाद बहुत ही अच्छा लगा और वो भी मेरे मुंह में अपनी जीभ दाल कर मेरे
मुंह के हर कोने को चूस चाट रहा था।
हम दोनों स्नानघृह में तैयार होने के लिए चल दिए। अक्कू ने मुझे पेशाब और पाखाना करते हुए ध्यान से देखा। जब
अक्कू पेशाब कर रहा था तो मैंने उसका लंड पानी में घूमाने लगी। अक्कू ने शैतानी से अपने लंड को मेरी ओर मोड़ कर
मुझे अपने पेशाब से नहला दिया। कुछ मेरे खुले हँसते हुए मुंह में भर गया और मैंने उसे प्यार से सटक लिया।
"अक्कू तेरा पेशाब तो बहुत मीठा है," मैं हँसते हुए बोली।
"दीदी, आपका तो बहुत ही मीठा है। मुझे भी आपका पेशाब पीना है ," अक्कू ने आग्रह किया।
"पगले, अभी तो मैंने अपना पूरा पेशाब खाली किया है , अब अगली बार मुझे आयेग तो चख लेना " मैंने प्यार से अक्कू
को चूमा।
हम दोनों जब तैयार हो कर नीचे नाश्ते के लिए पहुंचे तो तब हमें पता लगा कि हम कितनी देर से नीचे आये थे।
मम्मी डैडी बहुत देर से हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हम दोनों सर झुका कर सॉरी बोले और नाश्ते पे जुट पड़े। डैडी और
मम्मी हमारी भूख देख कर हंस पड़े।
हम दोनों ने रोज़ के हिसाब से बहुत ज़्यादा खाया। हम दोनों का पेट भर कर फ़ैल गया। अक्कू के मुंह से हल्की सी
डकार निकल पड़ी। अक्कू ने शर्मा कर सबसे सॉरी कह कर माफी मांगीं। मम्मी ने हँसते हुए अपने लाडले बेटे को ममता
भरे प्यार से चूम लिया।
"भाई तुम दोनों का क्या विचार है। बाहर लंच खाना है या फिल्म देखनी है या दोनों करने का ख्याल है ," डैडी ने स्नेह
से हमारा शनिवार का प्लान के बारे में पूछा।
अक्कू ने मेरे पैर पर अपना पैर मारा। मैंने कुछ सोच आकर कहा ," डैडी, आज हम दोनों घर पर ही रहेंगें। अक्कू को
मुझे बायोलॉजी के कुछ पाठ समझने है। "
मुझे जो जल्दी से समझ आया वो मेरे मुंह से निकल पड़ा। अक्कू मेरे द्विअर्थिय प्रस्ताव से बिना हँसे नहीं रह सका। मैंने
ज़ोर से उसकी टांग पर थोकड़ मार दी। उसने सिसकारी मार कर हसना बंद कर दिया।
मम्मी ने मुझे एक नई निगाह से घूर कर देखा और मेरी जान सूख गयी। हम दोनों को डैडी से ज़्यादा मम्मी से डर
लगता था।
डैडी ने हँसते हुए कहा ," चलो तो फिर मम्मी और हम भी आलसीपने से फिर से बिस्तर में घुस जाते हैं। "
मम्मी की आँखे भी चमक उठीं।
अक्कू और मैं छुपके मम्मी-डैडी के शयन-कक्ष में चोरी से देखते रहे जब तक मम्मी ने नंगे हो कर डैडी के लंड को अपने
मुंह में ले कर चूसना नहीं शुरू कर दिया। तब हमें पता था की अब दोनों घंटों के लिए चुदाई में व्यस्त हो जायेंगें।
******************************
अक्कू और मैं बिना एक क्षण खोये अपने कपडे उतार कर एक दुसरे से लिपट गए। इस बार कोई भी हिचक और संदेह
नहीं था। अक्कू ने मेरे शरीर का नियंत्रण ले लिया। उसने मेरी चूत और गांड चूस कर मुझे चार बार झाड़ने ने के बाद
मुझे पलट कर मेरी गांड में अपना लंड घुसा दिया। मेरी चीख ने उसके लंड का स्वागत किया। अक्कू ने घंटे से भी ऊपर
मेरी गांड की धज्जियां उड़ाने के और मुझे अनगिनत बार झाड़ने के बाद मेरी गांड में अपने लंड के रस के पिचकारी
खोल दी।
मैंने अक्कू के अपने गांड के रस से लिपे लंड को चूस कर दो बार झाड़ा। अक्कू ने भी मेरी चूत और गांड को चूस कर
मुझे के बार झाड़ कर मेरी गांड में अपना अतृप्य लंड जड़ तक ठूंस कर विध्वंसक चुदाई प्रारम्भ कर दी। फिर अक्कू ने
मेरी गांड की तौबा मचा दी। जब तक अक्कू ने मेरी बेदर्दी से चुदी गांड में अपना लंड खोला तब तक मैं अनगिनत बार
झड़ चुकी थी। जब अक्कू मेरी गांड में आया तब तक में होश खो बैठी थी।
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अक्कू और मैं भाग कर घुसलख़ाने घुस गए। अक्कू ने चिल्ला कर कहा ,"दीदी इस बार मुझे भी आपका पेशाब से नहाना
है। मैं खिलखिला कर हंस दी। अक्कू मेरी टांगों के बेच में बैठ गया और मैंने अपने गरम सुनहरी मूत की धार अक्कू के
सर के ऊपर खोल दी। फिर अक्कू ने जो किया उस से मैं चकित रह गयी। अचानक अक्कू ने अपना मुंह खोल कर मेरे
मूत्र से भर लिया और उसे मुस्करा कर सटक गया।
मैंने उसे झिड़की सी दी ," अक्कू तू कितने गंदी बात करता है। भला पेशाब भी पीने की चीज़ होती है ," पर मैं
वास्तव में अक्कू की क्रिया से रोमांचित हो गयी थी।
मैंने अपनी धार अक्कू के मुंह से दूर कर उसके सीने पर केंद्रित कर दी ," दीदी , आपने अपना पेशाब चखा तो हैं नहीं।
आपको क्या पता की यह कितना स्वादिष्ट है। " अक्कू ने मेरी झिड़की को धराशायी कर दिया।
उसने मेरे चूतड़ों को पकड़ कर मेरे मूत्र की धार को एक बार फिर से अपने खुले मुँह की तरफ मोड़ कर अपना मुंह भर
लिया और उसे लाळीचेपन से निगल गया।
मेरे सारे शरीर में रोमांच की सिरहन कौंध गयी ,"अक्कू तुम भी मुझे अपना मूत्र पीने दोगे?" मैं फुसफुसा के बोली।
अक्कू ने अपने मेरे पेशाब से भरे मुंह को हिला कर सहमती दे दी।
अक्कू मेरे सुनहरे गरम पेशाब से पूरा भीग गया था और उसने न जाने कितने बार मुंह भर कर पेरा पेशाब भी पी लिया
था। अब मेरी बारी थी। अक्कू के लंड का फायदा मुझे अपनी गांड मरवाने के आलावा उस स्थिति में और भी लाभदायक
हुआ।
मैंने अक्कू का लंड का सुपाड़ा अपने खुले मुंह में रख लिया। अक्कू की गर्म सुनहरी मूत्र के धार ने मेरे मुँह को दो क्षणों में
भर दिया। मैंने उसे अपने मुंह में हिला कर गटक लिया। अक्कू सही कह रहा था। मुझे अपने छोटे भैया का सुनहरी मूत्र
बहुत स्वादिष्ट लगा।
जब तक मैं दुबारा मुंह खोलूं अक्कू ने मुझे मूत्र स्नान करवा दिया। पर मैंने उसके लंड को अपने मुंह में भर कर मन भर
अक्कू का मूत्रपान किया।
अक्कू से गांड मरवाने के बाद मुझे अपनी गांड बहुत भरी-भरी लगती थी। मैं जल्दी से कमोड पर बैठ गयी।
अक्कू से गांड मरवाने के बाद मेरी गांड में खलबली मच उठी थी। मुझे अपने मलाशय को खोलते हुए उसमें बहुत जलन
और दर्द हुआ और मेरी हल्की सी चीख निकल गयी। पर मैं अक्कू के गंभीर चेहरे की ओर एक तक निहार कर मुस्कुरा
दी, उसे आश्वासन देने के लिए।
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बदनाम रिश्ते--
हमारा छोटा सा परिवार--29मेरी चेहरे पर पसीने की बूंदे छा गयी थीं, "मुझे भी तुम्हारा लंड अच्छा लग ….ओ……ओ……..ओ….. ओह …….. अक्कू मैं
अब आने वाली हूँ ," अचानक मेरा शरीर मेरे रति निष्पति के द्वार पर खड़ा था।
मैं वासना के ज्वर से प्रताड़ित कांपते हुए चीखी ," अक्कू मेरी गांड फाड़ डालो पर मुझे झाड़ दो। अक्कू मेरे अक्कू मारो मेरी
गांड …… आँ….. आँ…….. आँ………आँ……..आँ…….ओऊन्न्ग्ग्ग……..अाॅन्न्ह……..अक्कू ," मैं चीखते हुए झड़ने लगी।
मेरी छोटी से ज़िंदगी में वो सबसे प्रचंड रति-निष्पति थी। उसकी तीव्रता से मेरी सांस मेरे गले में अटक गयी। मेरे पेट में एक
अजीब सा दर्द फ़ैल गया। मेरे सारा शरीर अकड़ गया और फिर मानों एक सैलाब मेरे शरीर में बाँध तोड़ कर बाढ़ की तरह सब
तरफ फ़ैल गया।
मैं बेबस अपने चरम-आनंद के प्रचंड झोंकों से कांप-कांप कर अपने भाई को दुहाई दे रही थी ," अक्कू मेरे अक्कू मेरे प्यारे
अक्कू मुझ और झाड़ो। "
अक्कू को उस कच्ची उम्र में भी मम्मी और डैडी की चुदाई देख कर समझ आ गया था कि अब उसकी बड़े बहन अनर्गल बक
रही थी। उसने मेरे पसीने से लथपत कमर को सहला कर और भी ज़ोरों से मेरी गांड की बेदर्द निरंकुश चुदाई बिना थके और
धीरे हुए अविरत जारी रखी।
मेरी गांड से अब 'फच-फच ' की आवाज़ें आ थीं। अक्कू का लंड अब बे रोक-टोक मेरी गांड में रेल के इंजन के पिस्टन की तरह
सटासट दौड़ रहा था। मेरी साँसे अब हांफने में बदल गयीं थीं।
अक्कू को मेरी ज़ोर से गांड मारने की याचनाएं बेकार लग रहीं होगीं क्योंकी वो अब मेरी गांड उतनी हैवानियत से मार रहा
था जितनी डैडी ने मम्मी की गाड़ मारते हुए दिखाई थी।
मैं फिर से आने वाली थी। मेरी सिस्कारियों में मेरे झड़ने की मीठी पीड़ा से सुबकने के मधुर स्वर भी शामिल हो गए ,"अक्कू
…… अक्कू …….. अक्कू …….. अक्कू ………. आन्ह…… आन्ह……… अआह……… ओऊन्नन्न्न्न……..
उउउउन्न्न्न्न्न्म्म्म्म्म्म……. , “ मैं बिलबिला के झड़ने लगी।
अक्कू के मेधावी मस्तिष्क ने उसके सारे अनुभवों की विवेचना कर ली थी और अब उसे अपनी बड़ी बहन के निर्देशों की कोई
भी आवश्यकता नहीं थी।
अक्कू ने मेरी पसीने से लथपत कमर कके ऊपर झुक कर ममेरी छाती के उभारों को अपनी बड़ी मुट्ठियों में जकड़ लिया। मेरी
छाती से उपजे दर्द ने मेरी गांड से उबलते आनंद को और भी परवान चढ़ा दिया। अक्कू ने मेरी घुंडियों को बेदर्दी से
मसला,खींचा और मड़ोड़ा। मैंने चीख कर, सुबक कर और सिसकारी मर कर बार बार झाड़ गयी।
इस बार अक्कू ने तो झड़ने का नाम ही नहीं लिया। मैं पांच के बात गिनती गिनना भूल गयी। अक्कू के एक भयंकर धक्के से
मेरा रति-निष्पति से शिथिल शरीर पूरा हिल उठे और मैं मुंह के बल पलंग पर गिर गयी। अब मैं मुंह के बल पट लेती थी।
अक्कू ने एक पल के लिए भी अपना लंड मेरी फड़कती गांड में से नहीं निकलने दिया। पट लेटने से मेरी गांड और संकरी हो
गयी। अक्कू का लंड मुझे और भी भीमकाय लगने लगा। उसके हाथ मेरी छाती के नीचे दबे हुए थे पर उनसे मेरी घुंडियों की
प्रतारणा अविरत होती रही।
मैं बार बार झड़ने की मीठी यातना से थक कर चूर हो चुकी थी , " अक्कू अब तुम झड़ जाओ प्लीज़। मेरी गांड अब बहुत जल
रही है। उसे अपने रस से ठंडा कर दो। "
अक्कू अब तलक मेरी गांड एक घंटे से भी ऊपर मार चूका था।
अक्कू ने कसमसा कर मेरी घुंडियों को कस कर निचोड़ दियस औऐर मेरी हल्की चीख और भी ऊंची हो गयी जैसे ही उसका
गरम लंड का रस मेरी गांड में बौछारें मारने लगा। मैं बिलबिला उठी आनंद के अतिरेक से। अक्कू की आनंद भरी सिस्कारियों ने
मेरे आनंद को को और भी उन्नत कर दिया। सिर्फ इस विचार से कि मेरे छोटे भैया को मेरी गांड मारने से इतना आनंद आ रहा
है उससे मेरे आनंद के चरमसीमा अपरिमित असीमित सीमा में बदल गयी।
मैं एक बार फिर से झाड़ गयी पर इस बार मेरा रति-निष्पति ने मुझे लगभग बेहोश कर दिया। मैंने आनंद से अभिभूत हो आँखें
बंद कर लीं और अक्कू का गरम लंड का रस मेरी जलती गांड को 'शीतल' करने का प्रयास कर रहा था।
न जाने कितनी देर बाद दोनों हाँफते भाई-बहन फिर दुबारा जीवित संसार के सदस्य बने।
"दीदी, आई लव यू ," अक्कू ने धीरे से फुसफुसा कर मेरे कान की लोलकी [इयर-लोब्यूल] को चूसते हुए फुसफुसाया।
मैं अक्कू के अपनी गांड की चुदाई से इतनी थक चुकी थी कि बस पलंग की चादर में दबे अपने होंठों की मुस्कान से ही अपने
प्यार को दर्षा पाई।
दोनों बहन-भाई ना जाने कितनी देर तक एक दुसरे से उलझे ऐसे ही लेते रहे।
"दीदी, क्या अब मैं आपको सीधा लिटा कर आपकी गांड मारूं ?" अक्कू डैडी की सारी क्रियाओं का प्रदर्शन करना चाह रहा
था।
मैंने खिलखिला कर हंस दी ," अक्कू , मेरे प्यारे भैया , तुम जब जैसे भी मेरी गांड मार सकते हो। अब यह गांड तो तुम्हारी है
, पर तुम्हारा लंड अब मेरा है। "
अक्कू भी अपनी उम्र के बच्चों की तरह खिलखिला उठा , "दीदी यह अदला बदली तो मुझे स्वीकार है। इस तरह तो मैं
आपके गांड जब चाहे मार सकता हूँ। "
मैंने भी हँसते हुए कहा ," मेरे बुद्धू छोटे भैया , यह ही तो मैंने पहले कहा था। "
अक्कू ने मेरा मुंह मोड़ मैंने मेरी फड़कती नासिका को चूम लिया ," दीदी मुझे अब आपकी गांड आपका मुंह देखते हुए मारनी
है। "
अक्कू के शब्दों में एक विचित्र सी परिपक्वता थी और मैंने उस का प्रस्ताव आदर से स्वीकार कर लिया।
अक्कू ने जब अपना लंड मेरी गांड में से निकाला तो मेरी गांड में से ज़ोर का दर्द हुआ और मैं न चाहते हुए भी चीख उठी।
अक्कू ने मेरे हिलने से पहले मेरे चूतड़ों को फैला केर मेरी गांड और चूतड़ों को प्यार से चूम चाट कर साफ़ कर दिया।
मैंने मम्मी की देखा देखी जब मुड़ी तो अक्कू का लंड अपने मुंह में लेकर चूस चाट कर साफ़ करने लगी। अक्कू के लंड
पर उसके लंड के रस और मेरी गांड के रस का मिश्रित लेप मेरे मुंह के स्वाद को बहुत भाया।
अब मैं अपने पीठ पर अपने गोल मटोल मोटी टांगें फैला कर अपने छोटे भाई का इंतज़ार करने लगी। अक्कू ने मेरी
जांघों को मेरे कन्धों तक पीछे झुका कर मेरे चूतड़ों को पलंग से ऊपर उठा दिया। उसका लंड मानों थकने का नाम ही
नहीं ले रहा था। अक्कू ने अपना लंड ने मेरी गांड बिना उसके हाथ की मदद से ढूंड ली। फिर उसने अपना लंड, एक
बार अपने सुपाड़े को मेरी गांड में फंसा कर, दो जान लेवा धक्कों से मेरी गांड में ठूंस दिया।
मैं मीठे दर्द से चीख उठी। अक्कू ने मेरी गांड की चुदाई बेदर्दी से शुरू की और तब तक मेरी गांड चोदता रहा जब तक
मैं अनगिनत बार झड़ कर बेहोश नहीं हो गयी।
उस रात अक्कू ने मेरी गांड पांच बार और मारी। हम दोनों भाई-बहन देर सुबह तक सोते रहे।
मेरा सारा शरीर दर्द कर रहा था। मेरी छाती के उभार सूज कर लाल हो गए थे। अक्कू ने मेरे मुंह को चूम कर कहा
,"दीदी, मैं आपका सारी ज़िंदगी ख्याल रखूंगा। आई लव यू दीदी,"
अक्कू सुबक कर बोला और मैंने उसके खुले मुंह पर अपने मुंह दबा दिया. हम दोनों एक दुसरे सुबह के बासी मुंह के स्वाद
से परिचित होने लगे। मुझे अक्कू के मुंह का स्वाद बहुत ही अच्छा लगा और वो भी मेरे मुंह में अपनी जीभ दाल कर मेरे
मुंह के हर कोने को चूस चाट रहा था।
हम दोनों स्नानघृह में तैयार होने के लिए चल दिए। अक्कू ने मुझे पेशाब और पाखाना करते हुए ध्यान से देखा। जब
अक्कू पेशाब कर रहा था तो मैंने उसका लंड पानी में घूमाने लगी। अक्कू ने शैतानी से अपने लंड को मेरी ओर मोड़ कर
मुझे अपने पेशाब से नहला दिया। कुछ मेरे खुले हँसते हुए मुंह में भर गया और मैंने उसे प्यार से सटक लिया।
"अक्कू तेरा पेशाब तो बहुत मीठा है," मैं हँसते हुए बोली।
"दीदी, आपका तो बहुत ही मीठा है। मुझे भी आपका पेशाब पीना है ," अक्कू ने आग्रह किया।
"पगले, अभी तो मैंने अपना पूरा पेशाब खाली किया है , अब अगली बार मुझे आयेग तो चख लेना " मैंने प्यार से अक्कू
को चूमा।
हम दोनों जब तैयार हो कर नीचे नाश्ते के लिए पहुंचे तो तब हमें पता लगा कि हम कितनी देर से नीचे आये थे।
मम्मी डैडी बहुत देर से हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हम दोनों सर झुका कर सॉरी बोले और नाश्ते पे जुट पड़े। डैडी और
मम्मी हमारी भूख देख कर हंस पड़े।
हम दोनों ने रोज़ के हिसाब से बहुत ज़्यादा खाया। हम दोनों का पेट भर कर फ़ैल गया। अक्कू के मुंह से हल्की सी
डकार निकल पड़ी। अक्कू ने शर्मा कर सबसे सॉरी कह कर माफी मांगीं। मम्मी ने हँसते हुए अपने लाडले बेटे को ममता
भरे प्यार से चूम लिया।
"भाई तुम दोनों का क्या विचार है। बाहर लंच खाना है या फिल्म देखनी है या दोनों करने का ख्याल है ," डैडी ने स्नेह
से हमारा शनिवार का प्लान के बारे में पूछा।
अक्कू ने मेरे पैर पर अपना पैर मारा। मैंने कुछ सोच आकर कहा ," डैडी, आज हम दोनों घर पर ही रहेंगें। अक्कू को
मुझे बायोलॉजी के कुछ पाठ समझने है। "
मुझे जो जल्दी से समझ आया वो मेरे मुंह से निकल पड़ा। अक्कू मेरे द्विअर्थिय प्रस्ताव से बिना हँसे नहीं रह सका। मैंने
ज़ोर से उसकी टांग पर थोकड़ मार दी। उसने सिसकारी मार कर हसना बंद कर दिया।
मम्मी ने मुझे एक नई निगाह से घूर कर देखा और मेरी जान सूख गयी। हम दोनों को डैडी से ज़्यादा मम्मी से डर
लगता था।
डैडी ने हँसते हुए कहा ," चलो तो फिर मम्मी और हम भी आलसीपने से फिर से बिस्तर में घुस जाते हैं। "
मम्मी की आँखे भी चमक उठीं।
अक्कू और मैं छुपके मम्मी-डैडी के शयन-कक्ष में चोरी से देखते रहे जब तक मम्मी ने नंगे हो कर डैडी के लंड को अपने
मुंह में ले कर चूसना नहीं शुरू कर दिया। तब हमें पता था की अब दोनों घंटों के लिए चुदाई में व्यस्त हो जायेंगें।
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अक्कू और मैं बिना एक क्षण खोये अपने कपडे उतार कर एक दुसरे से लिपट गए। इस बार कोई भी हिचक और संदेह
नहीं था। अक्कू ने मेरे शरीर का नियंत्रण ले लिया। उसने मेरी चूत और गांड चूस कर मुझे चार बार झाड़ने ने के बाद
मुझे पलट कर मेरी गांड में अपना लंड घुसा दिया। मेरी चीख ने उसके लंड का स्वागत किया। अक्कू ने घंटे से भी ऊपर
मेरी गांड की धज्जियां उड़ाने के और मुझे अनगिनत बार झाड़ने के बाद मेरी गांड में अपने लंड के रस के पिचकारी
खोल दी।
मैंने अक्कू के अपने गांड के रस से लिपे लंड को चूस कर दो बार झाड़ा। अक्कू ने भी मेरी चूत और गांड को चूस कर
मुझे के बार झाड़ कर मेरी गांड में अपना अतृप्य लंड जड़ तक ठूंस कर विध्वंसक चुदाई प्रारम्भ कर दी। फिर अक्कू ने
मेरी गांड की तौबा मचा दी। जब तक अक्कू ने मेरी बेदर्दी से चुदी गांड में अपना लंड खोला तब तक मैं अनगिनत बार
झड़ चुकी थी। जब अक्कू मेरी गांड में आया तब तक में होश खो बैठी थी।
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अक्कू और मैं भाग कर घुसलख़ाने घुस गए। अक्कू ने चिल्ला कर कहा ,"दीदी इस बार मुझे भी आपका पेशाब से नहाना
है। मैं खिलखिला कर हंस दी। अक्कू मेरी टांगों के बेच में बैठ गया और मैंने अपने गरम सुनहरी मूत की धार अक्कू के
सर के ऊपर खोल दी। फिर अक्कू ने जो किया उस से मैं चकित रह गयी। अचानक अक्कू ने अपना मुंह खोल कर मेरे
मूत्र से भर लिया और उसे मुस्करा कर सटक गया।
मैंने उसे झिड़की सी दी ," अक्कू तू कितने गंदी बात करता है। भला पेशाब भी पीने की चीज़ होती है ," पर मैं
वास्तव में अक्कू की क्रिया से रोमांचित हो गयी थी।
मैंने अपनी धार अक्कू के मुंह से दूर कर उसके सीने पर केंद्रित कर दी ," दीदी , आपने अपना पेशाब चखा तो हैं नहीं।
आपको क्या पता की यह कितना स्वादिष्ट है। " अक्कू ने मेरी झिड़की को धराशायी कर दिया।
उसने मेरे चूतड़ों को पकड़ कर मेरे मूत्र की धार को एक बार फिर से अपने खुले मुँह की तरफ मोड़ कर अपना मुंह भर
लिया और उसे लाळीचेपन से निगल गया।
मेरे सारे शरीर में रोमांच की सिरहन कौंध गयी ,"अक्कू तुम भी मुझे अपना मूत्र पीने दोगे?" मैं फुसफुसा के बोली।
अक्कू ने अपने मेरे पेशाब से भरे मुंह को हिला कर सहमती दे दी।
अक्कू मेरे सुनहरे गरम पेशाब से पूरा भीग गया था और उसने न जाने कितने बार मुंह भर कर पेरा पेशाब भी पी लिया
था। अब मेरी बारी थी। अक्कू के लंड का फायदा मुझे अपनी गांड मरवाने के आलावा उस स्थिति में और भी लाभदायक
हुआ।
मैंने अक्कू का लंड का सुपाड़ा अपने खुले मुंह में रख लिया। अक्कू की गर्म सुनहरी मूत्र के धार ने मेरे मुँह को दो क्षणों में
भर दिया। मैंने उसे अपने मुंह में हिला कर गटक लिया। अक्कू सही कह रहा था। मुझे अपने छोटे भैया का सुनहरी मूत्र
बहुत स्वादिष्ट लगा।
जब तक मैं दुबारा मुंह खोलूं अक्कू ने मुझे मूत्र स्नान करवा दिया। पर मैंने उसके लंड को अपने मुंह में भर कर मन भर
अक्कू का मूत्रपान किया।
अक्कू से गांड मरवाने के बाद मुझे अपनी गांड बहुत भरी-भरी लगती थी। मैं जल्दी से कमोड पर बैठ गयी।
अक्कू से गांड मरवाने के बाद मेरी गांड में खलबली मच उठी थी। मुझे अपने मलाशय को खोलते हुए उसमें बहुत जलन
और दर्द हुआ और मेरी हल्की सी चीख निकल गयी। पर मैं अक्कू के गंभीर चेहरे की ओर एक तक निहार कर मुस्कुरा
दी, उसे आश्वासन देने के लिए।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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