Friday, May 23, 2014

FUN-MAZA-MASTI होली का असली मजा--12

FUN-MAZA-MASTI

 होली का असली मजा--12

मंझली ने नाटक का दूसरा अंक शुरू कर दिया देह की होली का।

बाहर से भाभियों के गाने की होली के हुड़दंग की जोर जोर से आवाज आ रही थी। बस लग रहा था वो हम लोगो के घर की और आ रही हैं।

उसने जल्दी से जीजू के पैंट से हाथ निकाला , और बोला , अरे जीजू भाभियाँ कालोनी वाली

और , दुछत्ती की ओर भागी।

उसके जीजू उसके पीछे पीछे , लेकिन वो उनके पहले छत पे पहुँच गयी।

इस बीच अब ये लग रहा था , वो बजाय हमारे यहाँ आने के सामने वाले घर में पहुंचगयी है और अब १०-१५ मिनट में हम लोगों के यहाँ आ धमकेगी।

और वो भाभियाँ थी तो पहला हमला उनके नए नंदोई होते , लेकिन हम ननदे भी कहाँ बचती। और मैं तो ससुराल से आयी ही इसलिए थी वहाँ ननदो को रगड़ा यहाँ भाभियों को।

मैंने और छुटकी ने जल्दी जल्दी बाल्टियों में रंग भरा , अबीर गुलाल , रंग पेंट रखा और भांग वाली गुझिया और दहीबड़े निकाले।

छुटकी ने अपनी फटी फ्राक की ओर इशारा किया।

मैंने पहली बार इतनी नजदीक से देखा , वास्तव में एकदम चुन्चिया उठान। इनकी निगाह एकदम सही थी।

" दीदी , क्या करूँ। " वो निगाह उठा के बोली।


" अरे यार जीजा साली की होली में होता है , रुक " और मैंने एक सेफ्टी पिन लगा दी।

मैं मन ही मन सोच रही थी , मेरी बहन अभी तो तेरी बहुत कुछ फटनी बाकी है।



ऊपर जीजा साली की होली चालु हो गयी थी। देह की होली।


दुछत्ती ऐसी जगह पे थी , जहाँ से आंगन दिखता था , लेकिन वो आँगन क्या कही से भी नहीं दिखता था।

मंझली के पीछे पीछे जो वो पहुंचे तो पहला काम उन्होंने ये किया कि सीढ़ी का दरवाजा बंद कर दिया।
रंगो में डूबी , भीगी , गीली मंझली छत पे दुबक के बैठी थी , लेकिन साली होली के दिन जीजू से बच जाए ,

वो अगले ही पल उनकी बांहो में थी , उनके नीचे दबी और उसका टॉप कंधे तक उठा , ब्रा के हुक तो उन्होंने नीचे ही खोल दिए थे।

हाँ साली की ये जिद उन्होंने मान ली थी की टॉप और स्कर्ट न उतारे , उन्होंने नहीं उतारा , लेकिन टॉप कंधे तक और स्कर्ट कमर पे चिपकी मुड़ी।

थोडा मान , नखड़ा तो करना ही था तो वो कर रही थी ,


" जीजू छोड़ो न , प्लीज "

" अरे साली , छोड़ तो रहा ही हूँ , तेरे ये साले हाईस्कूल के इम्तहान न होते न तो तुझे अपने साथ ले जाता " वो बोले और कस कस के उसकी खुली छोटी छोटी चूंचिया दबाने लगे। "


उसने भी जीजू को बांहो में भर लिया और हामी भरी" सच में जीजू ये इम्तहान भी न , ये इम्तहान न होते तो मैं आपको एक दिन में जाने न देती " वो बोली।

' चल लेकिन ये प्रामिस कर अपनी गर्मी की पूरी छूट्टी तू मेरे साथ बिताना , गाँव में असली मजा आता है , हमारी खूब बड़ी आम कि बाग़ है " वो बोले।

" एकदम जीजू , जिस दिन इक्जाम ख़तम होंगे न बस उस के दिन दीदी के गाँव , आप के पास , लेकिन आप वहाँ भी इसी तरह तंग तो नहीं करेंगे "

खिलखिलाते हुए मंझली बोली।

" नहीं ,एकदम नहीं , इतना तंग नहीं करेंगे , इससे बहुत ज्यादा तंग करेंगे ' उसकी परी में एक साथ ऊँगली ठूंसते वो बोले।

मंझली उन्हें नखड़े में छाती पे मुक्के मार रही थी , लेकिन उसका दूसरा हाथ अपने जीजू के चर्मदण्ड को आगे पीछे कर रहा था।

भले ही वो पहली बार पकड़ रही थी लेकिन सहेलियों और उससे बढ़कर भाभियों ने तो उसे सब बता ही रखा था।

उनसे भी नहीं रहा जा रहा था , उन्होंने साली की लम्बी गोरी टाँगे , अपने कंधे पे रखीं लंड को चूत पे सेट किया और दोनों निचले होंठो को फैलाया।

" जीजू , दर्द ,.... " उससे आगे वो बोल नहीं पायी। उन्होंने अपने होंठो के बीच ,मंझली के कुंवारे होंठो को जोर से दबा दिया और साली के खुले मुंह में अपनी जुबान डाल के सील कर दी।

और फिर जोर से करारा धक्का मारा।


बिचारी मंझली दर्द से सिहर रही थी , लेकिन बिना रुके उन्होंने एक हाथ चुन्ची और दूसरा चूतड़ पे , पकड़ के और जोर से धक्का मारा।

अब सुपाड़ा घुस गया था। वो लाख चूतड़ पटके अब बिना चुदे नहीं बच सकती थी।  


अंगूठे से थोड़ी देर तक उन्होंने चूत के दाने को सहलाया , थोडा दम लिया , टांग फिर सेट की और और अबतक का सबसे जोर दार धक्का ,



मंझली , पानी के बाहर मछली की तरह तड़प रही थी , दर्द से मचल रही थी। उसकी आँखों में दर्द से आंसू भर आये थे।

चूत फट गयी थी।

खून की कुछ बूंदे बाहर भी निकल आयी थी।
 


उन्होंने अभी भी उसके होंठो को आजाद नहीं किया और चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।

थोड़ी देर में लंड दरेरता , घिसटता साली की चूत में जा रहा था , और कुछ देर में उसे भी लंड की आदत पड़ गयी। दर्द ख़तम तो नहीं हुआ लेकिन कम हो गया।


और उन्होंने उसके होंठो को आजाद कर दिया , उसी समय नीचे कालोनी की भाभियाँ घुसीं और उन के हंगामें में तो मंझली जोर जोर से भी चिल्लाती तो सुनायी नहीं देता।

उन्होंने उसे होंठ पे ऊँगली रख के चुप रहने का इशारा किया और अब उनके होंठ , साली की रसीली चूचियों का मजा लेने लगे , निपल चूसने लगे।

लंड आधे से ज्यादा घुसा हुआ था।

थोड़ी देर में मस्ती से चूर मंझली भी नीचे से अपने चूतड़ हिलाने लगी , फिरक्या था उन्होंने धका पेल चुदाई शूरु कर दी। 


दो बार वो झड़ने के कगार पे पहुंची तो वो रुक गए।

अब लंड वो एकदम सुपाड़े तक बाहर निकाल कर , एक झटके में पूरा पेल देते।

चूंची और क्लिट दोनोकी रगड़ाई साथ साथ करते।

मंझली ने जब झड़ना शुरू किया तो उसके साथ ही वो भी ,…
उन्होंने उसको दुहरा कर रखा था और सारी मलायी अंदर।

कुछ देर तक वो दोनों ऐसे ही पड़े रहे , और ऊपर से आंगन में चल रही होली का नजारा देखते रहे।  


उन्हें नहीं पता चला , लेकिन मंझली ने सुन लिया ,

" जीजू उन्हें शायद शक हो गया है , आप यहाँ है , हम दोनों ,...."


जल्दी से दोनों ने कपडे पहने और पहले वो नीचे आये और जब तक भाभियों का झुण्ड उन्हें घेरे था , चुपके से मंझली भी छत से उतर आयी। बिना किसी के देखे.

….
और दरवाजा खुलते ही भाभियों का हुजूम अंदर ,

कम से कम दर्जन भर , और सबसे आगे रीतू भाभी , उम्र में सबसे कम लेकिन बदमाशी में अव्वल। मुझसे सिर्फ दो साल बड़ी , अभी २१ वां लगा है।
 

रीतू भाभी , पे गजब का का जोबन था।

गोरी चिट्टी , भरे भरे देह की , लम्बी तडंगी , छरहरी लेकिन 'उन ' जगहों पे कुछ ज्यादा ही कटाव , भराव था और ऊपर से जोबन उनका चोली से छलकता ही रहता था , 36 डी डी साइज , और उनकी २८ की पतली कमर पे जोबन और गद्दर लगता था।



चोली भी हमेशा लो कट , खूब टाइट और आलमोस्ट बैकलेस लेकिन उससे भी खतरनाक थे उनके हिप्स , कसर मसर कसर मसर करते , और बाजार में चलती तो और चूतड़ मटकाती , लौंडो का दिल लूटती।

साइज भी 38 से ऊपर ही रही होगी। और साडी भी इतनी कस के, नाभी से कम से कम एक बालिश्त नीचे बाँध के पहनती की हिप्स का कटाव तो दिखता ही , पिछवाड़े की दरार भी दिख जाती।


पर रीतू भाभी का जो अंदाज था , असली चीज वो थी।

मेरी भाभी होने के साथ ही मेरी पक्की सहेली भी थी। जब मेरी शादी तय हुयी तो मम्मी ने उनके हवाले कर दिया ,

" तेरी छोटी ननद है , तू जरा उसको सब बात खोल के सिखा दे वरना कही शादी के बाद ,… "


और रीतू भाभी ने क्या क्या नहीं सिखाया , सिर्फ बता के या किताब में दिखा के नहीं , बल्कि कई बार तो प्रैक्टिस भी करा के ( वो कन्या प्रेमी भी गजब की थी ).

इसलिए शादी के बाद इतनी जबरदस्त ससुराल होने पे भी मुझे कोई 'परेशानी ' नहीं हुयी।


ऐन शादी वाले दिन 'सब कुछ ' खोल के उन्होंने ने सिर्फ चेक किया , बल्कि अपने हाथ से 'वहाँ के ' सब बाल साफ किये और ये भी बोला कि सुहाग रात के पहले मैं खुद थोड़ी सी वैसलीन अपने अंदर लगा लूँ , की कई बार मर्द इतने जल्दी में होते हैं ,… और सिर्फ मुझसे ही नहीं , वो छुटकी और मझली से भी उत नी ही खुली हुयी थीं।

लेकिन भाभियों की इस मंडली की कप्तान थीं , मिश्राइन भौजी।


करीब ३३-३४ की होंगी , मम्मी से एक ही दो साल छोटी। उनकी लड़की भी छुटकी के साथ पढ़ती थी। लेकिन ननद भाभी के रिश्ते में , वो रीतू भाभी से एक कदम पीछे नहीं थी और चाहे कुँवारी हो या शादी शुदा सब उन से पनाह मांगती थी।

और मुझे सबसे पहले पकड़ा रीतू भाभी ने। जोर से अंकवार में भरा, आँचल मेरा हटाया और हाथ सीधे ब्लाउज पे ,

" देखूं इतने दिन में ससुराल में ननदोई से दबवा दबवा के चूंचिया कितनी और बड़ी हो गयी है "

भाभियो का हमला कभी अकेले नहीं होता। रानू भाभी ( जो मेर्रे घर के सामने रहती थीं ) ने पीछे से पकड़ा और बोलीं ,

" अरे ननद के जोबन की नाप जोख क्या सिर्फ ब्लाउज के उपर से करोगी "और पल बाहर में सारे बटन खुल गए।


 और एक जोबन रीतू भाभी के और दूसरा रानू भाभी के कब्जे में , फिर वो रगड़ाई मसलाई हुयी की,…
और साथ में रंग पेंट भी ,


लेकिन मैं क्यों पीछे रहती , आखिर रीतू भाभी की ही सिखायी पढ़ाई ननद थी। मैंने भी रीतू भाभी के ब्लाउज पे झपट्टा मारा और उनके बड़े बड़े गदराये उभार मेरे हाथ में ,


और थोड़ी देर में हाथ अलग हो गए. सीधे चूंचियों से चूंचियां होली खेल रही , रंग लगा रही थीं।

मैं अपने जोबन में लगा रंग , रीतू भाभी के जोबन पे जोर जोर से रगड़ रही थी और वो भी जैसे कोई मर्द अपने चौड़े चकले सीने से नयी बहुरिया के उभार कुचले मसले , बस उसी तरह।



एक दो और भाभियाँ मेरे पीछे पड़ गयीं एक ने साया , उठा के कमर तक कर दिया और दूसरे ने सीधे चूतड़ो पे रंग लगाने शुरू कर दिए। 


मैं क्यों पीछे रहती मैंने रीतू भाभी का साया उठा दिया और अब चूंची के बाद हम दोनों कि बुर ,… चूत पे घिस्सा देना मैंने उन्ही से सिखा था।


जोर जोर से हम दोनों एक दूसरे की चूत पे चूत रगड़ रहे थे।
एकदम फ्री फार आल हो रहा था।

रीतू भाभी साथ में मेरे चूतड़ पे अब रंग लगा रही थी और दोनों तरबूज की फांको को फैला के पूछ रही थीं ,

 " क्यों बिन्नो , पिछवाड़े का बाजा बजा "

मैंने बोला " भाभी , आपके नंदोई इत्ते सीधे नहीं है जो छोड़ देंगे "


तो मिश्राइन भाभी ने और आग लगायी ,

"रीतू , कैसी भौजाई हो जो पूछ रही हो। अरे ननद ससुराल से पहली बार आयी है , भौजाई को सब चीज चेक करके देखना चाहिए।'

बस फिर क्या था , मेरे गांड तो उन्होंने पहले से ही फैला रही थी ,बस गचाक से दो ऊँगली एक साथ घुसेड़ दी और अपना फैसला भी सूना दिया दिया सारी
भौजाइयों को ,


" हचक के मारी गयी है गांड , वहाँ ननदोई से बिना नागा मरवाती थी , और यहाँ हम भाभियों की ऊँगली पे नखड़ा दिखा रही हो "

 रीतू भाभी की दो एक्सपर्ट उंगलिया मेरी गांड में गोल गोल घूम रही थीं और एक दूसरी भाभी ने चूत में सेंध लगा दी। 



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