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प्रेमी बेकार भाई बरक़रार
मेरी सहेली स्वीटी ने एक दिन मुझे अपनी आप बीती सुनाई। उसी के शब्दों में पढ़िये यह कहानी।
मैं
शहर की एक घनी आबादी में रहती हूँ। आस पास दुकानों के अलावा कुछ नहीं है।
मेरे पड़ोस में मेरे ऊपर वाले कमरे के सामने ही एक कॉलेज का विद्यार्थी
रहता था। मैंने जब पढ़ाई के लिये ऊपर वाले कमरे में शिफ़्ट किया था तो मेरी
नजर उसकी खुली हुई खिड़की पर पड़ी। मैंने अपनी खिड़की पर पर्दा लगा लिया
कि जो कोई भी वहां रहता हो मुझे नहीं देख पाये। पर कुछ ही दिनों में मुझे
पता चल गया कि उस कमरे में आशीष रहता था जो मेरे ही कॉलेज में पढ़ता था।
शायद उसे कमरा अभी ही किराये पर दिया था। मैं रात को देर तक पढ़ती थी। आशीष
भी रात को देर तक पढ़ता था। मैं कभी कभी झांक कर खिड़की से उसे देख लेती
थी।
एक बार हमारी नजरें मिल ही गई।
अब हम दोनों छुप छुप कर एक दूसरे को देखा करते थे। एक बार तो आशीष खिड़की
पर आ कर खड़ा ही हो गया। मुझे सनसनी सी आ गई। मैंने जल्दी से पर्दा कर दिया
और पर्दे के पीछे से उसे देखने लगी, मेरा पर्दे में से देखना उसे पता था।
अब वो मुझमें रूचि लेने लगा था। मुझे देख कर वो मुस्कुराता भी था। एक दिन
उसने मुझे हाथ भी हिला कर अभिवादन किया था। धीरे धीरे मैं भी उससे खुलने लग
गई और उसे देख कर मुस्कुराती थी।
कुछ
ही दिनो में हम रात को जब कभी एक दूसरे को देखते थे तो मैं भी हाथ हिला
देती थी। एक बार पत्थर में लिपटा हुआ एक कागज मेरे खिड़की के अन्दर आ गिरा।
मेरा दिल धक से रह गया। मैंने उसे उठाया। तो वह आशीष का पत्र था। एक
साधारण सा पत्र, जिसमें सिर्फ़ शुभकामनायें थी। मैंने उसे फ़ाड़ कर नीचे
फ़ेंक दिया। एक दिन मैंने भी उसे पत्र लिख दिया और उसे भी शुभकामनायें दी।
बस पत्रों का सिलसिला चालू हो गया। एक दिन उसकी एक फ़रमाईश आ गई।
“स्वीटी, सिर्फ़ एक हवाई किस करो !”
मैंने
शरारत में उसे हवाई किस कर दिया। अब हम पत्रों में खुलने लगे। उसने एक बार
लिख दिया कि वो मुझे प्यार करता है और मिलना चाहता है। मेरा दिल बस इसी
चीज़ से डरता था। मैंने मना कर दिया।
एक बार उसने लिखा- मुझे अपनी चूंचियाँ खिड़की से दिखा दो।
मैंने शर्माते हुए मेरा एक स्तन उसे दिखा दिया। मैंने जवाब में लिखा- मैं भी कुछ देखना चाहूंगी, क्या दिखाओगे?
तो
उसने अपना पजामा नीचे खींच कर अपना खड़ा हुआ लण्ड दिखाया। मुझे बड़ा
रोमान्च हो आया। मुझे मजा भी आया। अब जब तब हम एक दूसरे को अपने गुप्त अंग
दिखा दिखा कर मनोरंजन करने लगे।
मुझे
ये नहीं पता था कि मैं जो पत्र फ़ाड़ कर नीचे फ़ेंक देती थी उसे मेरा छोटा
भाई उठा कर जोड़ कर पढ़ लेता था। यहाँ हमारी प्यार और सेक्स की पींगे बढ
रही, वही भैया भी मुझे चोदने का प्लान बनाने लग गया था।
एक
रात को मैंने पत्र आशीष की खिड़की में फ़ेंका तो वो खिड़की से टकरा कर
नीचे गिर गया। मैं भाग कर नीचे गई तो वो मुझे नहीं मिला, रात में कहाँ गिरा
होगा मुझे पता नहीं चला। सुबह ढूँढने की सोच लेकर मैं ऊपर आ गई। देखा तो
भैया मेरे कमरे में था। उसने कहा,“इसे ढूँढने गई थी क्या?”
“भैया, मुझे वापस दे दो, देखो किसी को बताना नहीं !”
उधर आशीष ने देखा कि कमरे में भैया है तो उसने खिड़की बन्द कर ली।
“बताऊंगा तो नहीं अगर, जो मैं कहूँ वो करेगी तो !”
हम बिस्तर के बिस्तर पर दीवार का सहारा ले कर बैठ गये।
“हां हां कर दूंगी, इसमें क्या है...फिर वो दे देगा !”
“हां ज़रुर दे दूंगा... तो फिर टॉप को थोड़ा ऊपर कर दे...”
“क्या कहा...मैं तेरी बहन हूँ !” मैं उछल पड़ी।
“तो क्या... पापा से बचना है तो मुझे दुद्धू दिखा दे !” उसने मुझे धमकी दी।
मैंने
हिम्मत करके अपनी आंखे बन्द कर ली और टॉप ऊपर उठा लिया। मेरे दोनो स्तन
बाहर छलक पड़े। भैया ने तुरन्त मेरे स्तनों को पकड़ लिया और दबा दिया।
“ना कर भैया ... “ पर जैसे मेरे शरीर में बिजली कड़क उठी। सारा जिस्म एकबारगी कांप गया। मीठी सी लहर दौड़ गई।
“अब अपना स्कर्ट ऊपर कर...”
“ऐसे तो मैं नंगी दिख जाऊंगी ना !”
“वही तो देखना है...आशीष को तो खूब दिखाती है !”
“ पर वो मेरा भाई थोड़े ही है” मैं नर्वस होती जा रही थी। पर जिस्म में एक सनसनी फ़ैल रही थी। मैं भी अब वासना में बह निकली।
“दीदी, दिखा दे ना, अच्छा देख फिर मैं भी अपना तुझे दिखाऊँगा !”
“सच, तो पहले दिखा दे, कैसा है तेरा?” मेरे स्वर भी बदलने लगे।
मुझे
भैया अब सेक्सी लगने लगा था। उसकी बाते मुझे रंग में लाने लगी थी। मेरा मन
अब डोलने लगा था। भैया ने जल्दी से अपना पैन्ट उतार दिया दिया और उसका
लण्ड बाहर निकल आया।
“मैं छू लूँ इसे?” मुझे सनसनी सी लगी।
‘नहीं नहीं छूना नहीं, पकड़ ले इसे और मसल डाल !”
“हट रे !” मैंने उसके लण्ड को पकड़ लिया, गरम हो रहा था, लाल सुपाड़ा भी चमक उठा था।
“अब बता ना तू भी!”
मैंने अपनी स्कर्ट ऊपर उठा दी।
“तूने तो पेन्टी ही नहीं पहनी है !”
“अभी आशीष को दिखा रही थी ना...!”
“अच्छा, तो अब ये ले !” ये कह कर उसने मुझे दबोच लिया और मेरे ऊपर आ कर कुत्ते की तरह अपने चूतड़ चलाने लगा।
“ क्या कर रहा है? क्या चोदेगा मुझे...? सुन ना आशीष को बुला दे ना !” मैंने मौका देख कर उसे कहा।
“पहले मेरी बारी है, फिर उसे बुला लूंगा, बहन मेरी है, पहले मैं चोदूंगा !” उसने अपना हक बताया।
“तो चोद ना जल्दी, या कहता ही रहेगा !” उसने अब जोर लगाया और लण्ड चूत में घुस पड़ा।
“अरे यार, तू तो चुदी चुदाई है, किस किस से लण्ड लिया है अब तक?”
“अरे तो चोद ना, खुद भी कौन सा पहली बार चोद रहा है?”
“ तुझे क्या पता?, जरूर आशा ने कहा होगा !
“नहीं तो... अरे धक्के मार ना...!”
“तो पारुल ने कहा होगा ?”
“हाय रे पारुल ? मेरी सहेली? नहीं यार... लगा जरा जोर से !”
“ अच्छा तो दीपिका ने बताया होगा?” एक के बाद एक सारी पोल खोलता गया।
“
अरे चोद ना मुझे ठीक से, तू तो मेरी सारी सहेलियों को तो चोद चुका है, पर
इन्होंने नहीं कहा, वो तो तेरे लण्ड के सुपाड़े की त्वचा फ़टी हुई है
इसलिये कह रही हूँ !” मैंने हंसते हुए कहा।
“धत्त तेरे की, मैंने तो सारी पोल खोल दी... साली तू तो एक नम्बर की हरामी निकली !” उसने धक्के बढ़ा दिये।
“भैया
! हाय रे दम है रे तेरे लण्ड मे...मजा आ रहा है, लगाये जा रे !” मुझे मजा
आने लगा था। मैं भी उसका लण्ड चूतड़ उछाल उछाल कर ले रही थी। वो मेरे बोबे
मसलता जा रहा था।
“मेरी बहन कितनी प्यारी है ! क्या चूत है ! अब तो रोज चोदूंगा तुझे !”
“भैया, आशीष को बुला देना ना, फ़िर दोनो मिल कर चोदना, आगे से भी और पीछे से भी !”
उसके
धक्के तेज हो उठे थे, मेरा भी हाल अब बुरा हो चला था। मेरी चूत अब रस
छोड़ने वाली थी, मैंने भैया को जकड़ लिया और अपने चूत का जोर लण्ड पर लगाने
लगी। एक लम्बी सांस के साथ मैंने आंख बन्द कर ली और अपना बदन कसने लगी,
इतने में पानी छूट पड़ा और मैं झड़ने लगी। उसी समय भैया ने भी अपना लण्ड
बाहर निकाला और मेरे ऊपर पिचकारी छोड़ने लगा। मेरा सारा शरीर और कपड़े सभी
कुछ वीर्य से गन्दे कर दिये।
“मजा आ गया स्वीटी, अब मैं रोज चोदूंगा तुझे, तू तो यार बहुत मजा देती है !”
मैं भी झड़ कर शान्त लेटी थी और भैया को देखती रही। भैया कुछ देर तक तो बातें करता रहा फिर जाने को हुआ।
“मैं अब जाता हूँ, रात बहुत हो गई है” पर मैं कैसे जाने देती
“चले
जाना ना, अभी एक बार और मजे करे ?” ये सुनते ही भैया खुश हो गया और फिर से
मेरे बिस्तर पर आ गया। हम दोनों फिर आपस में गुथ गये। उसका लन्ड मेरी चूत
के दरवाजे पर आ टिका... और कमरे में एक बार फिर सिसकारियाँ गूंज उठी।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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