Friday, May 23, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--122

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--122

 पकड़े गए उस्ताद

मुझसे नहीं रहा गया और मैंने पूछ लिया ,

"लेकिन पता कैसे चला , इन दोनों का। "

ऐ टी स चीफ और एन पी दोनों ने मिल के पूरी कहानी बतयि.

कल रात से जब से उन स्लीपर्स की और उन के साथ के ४० -४२ लोगो का पता चला था तब से , एन पी के दिमाग में एक सवाल रेंग रहा था।

एक्चुअल आपरेटिव्स कोई और होंगे।

उस को लग रहा था की कम से कम मेजर आपरेशन में जो लोग लगेंगे , उन्हें वो छुपा के रखेंगे और वो ऐन मौके पे ही बाहर निकलेंगे।


ए टी एस चीफ उससे आंशिक रूप से सहमत थे।

लेकिन उनका ये कहना था की बड़े से बड़ा अस्ससेन , अपना टारगेट एक बार जरूर असेस करता है। तो वो हो सकता है , उन के साथ ना हो लेकिन वो टारगेट पे जरूर कभी न कभी आएगा।

दूसरी बात ये है की उसे बहुत लॉजिस्टिक सपोर्ट की जरुरत पड़ती है , तो ये लोग जिनकी फोटुएं , उन लोगों ने इकठी कर रखी हैं , वो लाजिस्टिक्स सपोर्ट के लिए तो जाएंगे। हाँ वो सीधे कभी भी आपरेटिव्स से नहीं मिलंगे , जिससे आपरेटिव्स की सिक्योरिटी कम्प्रोमाइज न हो।

बस , इन बातो से उन्होंने फिर जाल फैलाया।

अब तक टारगेट्स के बारे में पिक्चर बहुत कुछ साफ थी तो उन ८-१० सस्पेकेटेड जगह के आसपास के लोगों के साथ एन पी ने बात की।

और पहला हिंट चर्च गेट स्टेशन से सुबह १० बजे के आस पास मिला।

चर्च गेट स्टेशन के बाहर , एक आदमी सुबह ८ बजे से ११ बजे तक इडली बेचता है और जो लोग घर से सुबह ६-७ बजे बिना नाश्ता किये निकलते हैं , वो वहीं इडली खा लेते हैं। ये स्टेशन के पश्चिम की ही ओर , एक्सप्रेस बिल्डिंग की तरफ बैठता है।

उसने दो लोगों के बारे में बताया की जो सस्पेक्टेड लग रहे थे। वो ९ बजे के करीब आये और चर्च गेट स्टेशन के अंदर गए। लेकिन वो बहुत धीरे धीरे ,चारो ओर देखते हुए गए।


इस समय चर्च गेट स्टेशन पे ज्यादातर आने वाले लोग होते हैं , जाने वाले कम होते हैं। और जो थोड़े बहुत जाने वाले होते हैं , वो तेजी से अंदर घुसते हैं क्योंकी ९ बजे आफिस के लिए देर हो रही होती है।

कुछ लोग रेलवे के होते हैं जिनके आफिस चर्च गेट स्टेशन पर हैं। लेकिन वो आफिस साढ़े ९ बजे खुलते है और ज्यादातर लोग पौने १० के बाद ही आते हैं , दूसरे वो उस गेट से घुसते हैं जहाँ ऊपर जाने के लिए लिफ्ट हैं।

उसका शक इस बात से और बढ़ गया , की वो लोग फिर २० मिनट बाद बाहर निकले , रेलवे रेस्ट हाउस की ओर गए और फिर थोड़ी देर में वहां चक्कर काटने के बाद , फिर स्टेशन पे घुसे।

और इस बार जब वो दोनों स्टेशन से बाहर निकले तो उसके मोबाइल ने फोटो उतार ली।

करीब ९ से ११ बजे तक वो दोनों वहां रहे।

उस ने दस बजे के करीब ही एन पी को फोन कर दिया। तीन बार वो दोनों स्टेशन के अंदर गए और उसी रास्ते से बाहर आये।

एन पी ने उन फोटो की कापी कर के सिर्फ चर्च गेट नहीं बल्कि कयी स्टेशनों के आस पास फेरी वालों , स्ट्रीट वाकर लड़कियों , और भी बहुत से लोगों को भेजी लेकिन किसी ने आज के पहले उन्हें नहीं देखा था।

दूसरा क्ल्यु मिला , उन लोगों को ट्रेस कर के जिनकी फोटो चर्च गेट स्टेशन की रेकी करते हुए ली गयी थी। उसी में से एक आदमी ने एक काली पीली टैक्सी तीन दिन के लिए किराए पे ली थी.


चर्नी रोड के पास उन दोनों की फोटो एक सी सी टीवी ने एक काली पीली टैक्सी में कॅप्चर की थी।

ये वही काली पीली टैक्सी थी , जो रेकी करने वाले ने हायर की थी।

चर्नी रोड और ग्रांट रोड के इलाके में 'सार्वजिनक महिलाओ 'की संख्या काफी अधिक थी और उन्हें सुलभ करवाने वालो की भी।

एन पी ने फिर अपने सूत्र खंगाले और प्रार्थना समाज चौराहे के पास उस टैक्सी के बारे में पता चल गया।

एक और बात ये थी की चर्च गेट स्टेशन पे , करीब आधे दरजन से ज्यादा सी सी टीवी कैमरे थे।

लेकिन सिर्फ एक कैमरे में उन दोनों की आंशिक फोटो आई।

इसका मतलब वो दोनों प्रोफेशनल थे और कैमरा कांशस थे , और इससे इस बात की भी पुष्टि होती थी की वो दोनों ही मेन अटैकर होंगे।

ए टी एस ( ऐंटि टेरर सेंटर )ने अपनी बेस्ट सरवायलेन्स यूनिट चर्च गेट स्टेशन पर उन्हें ट्रैक करने के लिए लगाई और अपनी मोबाइल कंट्रोल यूनिट भी एम्बुलेंस के फार्म में खड़ी की।

एन पी ने भी बहुत से लोगों से बात की और कुछ लोगों को सस्पेकेटड दोनों की फोटो भी दी।

चर्नी रोडी से चर्च गेट तक के सारे सीसी टीवी कैमरों को क्लोजली मॉनिटर किया जा रहा था और साथ ही उन लोगों के पास दोनों सस्पेकट्स की फोटो भी थी।


एक कैमरा यूनिट चर्च गेट स्टेशन के सामने एक्सप्रेस बिल्डिंग से भी आपरेट कर रही थी जो निट के ट्रेनिंग सेंटर में बैठी थी। और वहाँ वो इडली वाला भी था , जिसने सुबह सबसे पहले उन दोनों को नोटिस किया।

सबसे पहले उन की फीड चरनी रोड के चौराहे से मिली और उस के बाद सारे ट्रैफिक पुलिस वालों को अलर्ट कर दिया गया। हर चौराहे से उस टैक्सी को ट्रैक किया जा रहा था। 


सबसे पहले उन की फीड चरनी रोड के चौराहे से मिली और उस के बाद सारे ट्रैफिक पुलिस वालों को अलर्ट कर दिया गया। हर चौराहे से उस टैक्सी को ट्रैक किया जा रहा था।

इसलिए चर्च गेट की ससरवायलेन्स यूनिट पहले से अलर्ट थी। वो तीन टीमों में थे। एक टीम बाहर , एक मेन हाल में और एक बिल्डिंग में थी।

उन दोनों के घुसते ही मेन हाल की टीम को अलर्ट कर दिया गया और उन्होंने टेक ओवर कर लिया।

उन्होंने नोटिस किया की एक आदमी व्हीलर के बुक स्टाल पे पहले से खड़ा और वो ये देख रहा था की , उन दोनों के पीछे , कोई पीछा करते तो नहीं घुसा।

ये आदमी वही मोटर साइकिल वाला था।

अगर वो उन दोनों टेररिस्टों को मेन हाल में पकड़ने की कोशिश करते तो वो या तो उन्हें वहीँ एलिमिनेट कर देता या फिर पूरा आपरेशन अबॉर्ट कर देता।

इसलिए वो दोनों जब ऊपर चढ़ के बात रूम में घुसे तो उन्हें धर दबोचा गया।

यह पूरी बात सुनने के बात मैने और उन्होंने , दोनों ने गहरी सांस ली।
लेकिन शंकालु मन।

मैंने एक सवाल दाग दिया , मान लीजिये कमांडो उन्हें बाथ रूम में ओवरकम नहीं कर पाते। या वो इडली वाला उन्हें आडेंटीफाई नहीं करता या टैक्सी नहीं पहचानी जाती।

ए टी एस चीफ ने कुछ रुक कर जवाब दिया।

हमने उसके लिए सेकेण्ड लाइन डिफेंस तैयार कर रखा था , बल्कि चार लेयर की सिक्योरिटी हर सस्पेक्टेड टारगेट पे थी। सेकेण्ड लेवल पे हमने आर्मी के स्पेशल स्नाइपर यूनिट से ६ स्नाइपर्स चर्च गेट स्टेटशन पे रखे थे , और हर हाई प्वाइंट , प्लेटफार्म , मेन हाल उनके द्वारा कवर्ड था।

अगर वो जैसे ही बन्दुक निकालते उनकी पहली गोली चलने के पहले दो स्नाइपर्स की गोली उनके सर के पार हो जाती। उन्हें साफ साफ आर्डर थे शूट टू किल। इसके अलावा वो ग्रेंनेड लांच कर , उस एरिया को ही डिस्ट्राय कर देते।

इसके अलावा थर्ड लाइन डिफेंस ये थी की सारे ऑफिसेज में स्पेशल एक्शन ग्रुप के दो की टीम तैनात थी , जो सादी वर्दी में उन्ही के साथ थी। अगर वो साइक्लो सारीन नर्व गैस लाबी में फेंकते तो वो दोनों उस ग्रेनेड या कनिस्टर को सीधे वापस लांच कर देते।

इसके अलावा पुणे एन डी आर एफ ( नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स ) जो एन बी सी ( न्यूक्लियर , बायोलॉजिकल एंड केमिकल ) वारफेयर के लिए इक्विप्ड है , की भी एक टुकड़ी चर्च गेट स्टेशन मैंनेजर के कमरे में प्लेस्ड थी।

चौथी डिफेंस लाइन ये थी की , हमने नार्मल पुलिस वालों की जगह नेवल कमांडो और रैपिड एक्शन ग्रुप के लोगों को नार्मल पुलिस की यूनिफार्म में प्लेस कर दिया था।


दो बजे दोपहर के बाद से वहां कोई भी ऑर्डिनरी पुलिस वाला नहीं था , और उन्हें चर्च गेट स्टेशन के लोकेशन से अच्छी तरह अडवांस में ट्रेन कर दिया गया था। तो अगर वो स्नाइपर से बच जाते तो उनसे नहीं बच पाते।

फिर भी हमारी सबसे बड़ी कोशिश ये थी की उन्हें ज़िंदा गिरफ़्तार करे। और इसमें हम सफल रहे।

थोड़ी देर तक हम दोनों शांत रहे फिर वो मुस्करा के बोले, 'अबकी बार परचा आउट था , ओपन बुक एक्जाम था तब भी फेल होते तो मुश्किल था न। अटैक के दिन , तारीख , समय मालूम था। यहाँ तक की कर्टसी एन पी , ज्यादातर के मुखड़े भी दिख गए थे


बात तो उनकी काफी हद तक सही थी।

बहुत बड़ी क्रेडिट रीत की थी , जिसने बनारस में पहले फेलू दा का मगज अस्त्र , इस्तेमाल कर के , फिर कार्लोस का साथ ले के , यहाँ तक की सोनल वहां की एक वारांगना का भी उसने इस्तेमाल किया , रहस्य के सारे परतों को खोला और ये पता चल गया की अगले दिन मुम्बइ में हमला होगा।


फिर एन पी , जिसने बाम्ब्मेकर के नए रूप का पता चलाया , उसके होटल को ढूंढा और अपनी जान पे खेल के सव तार जोड़े। और मेरे हैकर मित्र और रा के लोग जिन्होंने दुशमन की जमींन पे उनके अड्डे में सेंध लगाई और सब टारगेट्स का पता लगाया।

लेकिन असली जंग तो ए टी एस के जवानो ने लड़ी।

और हमले ,



स्ट्रेटजी


फिर कुछ रुक के वो बोले , तुमने वो रिपोर्ट देखि उनकी स्ट्रेटजी के बारे में ?

मैंने देखी थी अभी थोड़ी देर पहले मेरे हैकर दोस्तों ने भेजी थी। लेकिन मैंने उन्हें बोलने दिया , और उन्होंने समझाया।

"मुम्बई में देखो पहले अटैक हुए थे, मोस्ट्ली बॉम्ब अटैक थे।

चाहे वो १९९३ की घटना रही हो जिसमें सबसे पहले आतंकी हमला मुम्बई पर हुआ, जिसमे एक साथ १३ बॉम्ब , बॉम्बे में एक्सप्लोड हुएथे। और उसमें करीब ३०० लोग मरे।

फिर ११ जुलाई २००६ को प्रेशर कूकर बॉम्ब का इस्तेमाल हुआ , वेस्टर्न लाइंस की ट्रेन्स में। ७ मिनट के अंदर ११ ट्रेनों में बॉम्ब ब्लास्ट हुआ , और २०९ लोग मरे , ७०० से ज्यादा घायल हुए। पहला ब्लास्ट खार रोड स्टेशन पे हुआ और उसके बाद एक के बाद एक, …

इसके पहले २००३ में एक बस में बॉम्ब बलास्ट हुआ था , जिसमे ४ लोग मरे थे। और आखिरी बार २०११ में झावेरी बाजार के साथ और दो जगहों पे बॉम्ब ब्लास्ट हुआ जिसमे २१ लोग मरे.

२६/११ के हमले में आतंकवदियों ने होस्टेज बनाने और शूटिंग से आतंक फैलाया था , जो चार दिन तक चला और उसमें १६८ लोग मरे.


उन्होंने कुछ रुक कर फिर बोलना शुरू किया ,


" बॉम्ब अटैक में आतंकवादियों को एक लाभ ये होता है की , अक्सर बॉम्ब लगाने वाले बच निकलते हैं या कम से उसका चांस रहता है। लेकिन नुक्सान भी है , बॉम्ब अटैक का असर टेम्परेरी होता है , जहाँ तक आतंक का सवाल है। घिसटती , कराहती , सिसकती , मुम्बई फिर उठ खड़ी होती है और चलने लगती है।

ट्रेन ब्लास्ट में २०० से ज्यादा लोग मरे लेकिन अगले दिन सुबह फिर लोकल ट्रेनों ने अपना रोज का लोगों को घर से आफिस और आफिस से घर ढोना शुरू कर दिया था। एयर एक दो दो दिन में सारे लोग वापस ट्रेनों में थे।

२६/११ के पैटर्न में कर्टसी टी वी आतंक का असर देर तक रहा। फायरिंग और शूटिंग की आवाज लोगों के कानों में गूंजती रही।"


कुछ रुक के उन्होंने बोलना शूरु किया।

"दोनों तरीको में परेशानी थी। बॉम्ब में ये कि उसका असर सीमित रहता है दूसरे अभी इतनी प्रिकॉशन है की उसके डिटेक्ट होने के चांसेज ९०% हैं। चर्च गेट समेत तमाम स्टेशनों पे तो डस्टबीन ट्रांसपैरेंट हैं। इसलिए बाहर से ही दिख जाएगा. फिर सारे सफाई वाले ट्रेंड हैं , सी सी टी वि लगे हैं।


और जो दूसरा तरीका है डायरेक्ट हमले का , वो आलमोस्ट सुसाइडल है। वैसे लड़के बहुत मुश्किल से मिलते हैं , उन्हें ट्रेन करने के बाद दुबारा इस्तेमाल नहीं कर सकते , इसलिए उन्होंने अबकी एक 'सैंडविच 'स्ट्रेटजी चुनी।

जिसमें बॉम्ब भी थे लेकिन अलग तरीके के उनका डिलिवरी सिस्टम अलग था जैसे , बनारस और बड़ौदा में और दोनों के फेल होने के बाद उन्होने मुम्बई में सारी ताकत झोन्क दी। और डायरेक्ट अटैक का तरीका चुना लेकिन २६/११ से अलग।

अबकी उनकी प्लानिंग थी , मारो और भागो। और उन्होंने लिमिटेड टाइम अटैक का चुना था और परफेक्ट टाइम और तरीका चुना था गेट वे का। "

"लेकिन पकड़े तो गए ना "हँसते हुए मैं बोला।

"ये तो तुम और बहुत सारे लोगों की अलर्टनेस का नतीजा था। जिस दिन सब लोग लग जाएँ न तो किसकी हिम्मत अच्छा चलो थोड़ी देर में बात करते हैं , नागपाड़ा और बोरीवली से फोन आ रहे हैं। "वो बोले।  


वीटी / सी इस टी एम और रेलवे पे और हमले



दो ब्लैक हैट वाले साथ थे।

और उन्होंने पडोसी देश के कमांड और कंट्रोल सेंटर से एक पेरीफेरल सेण्टर का पूरा डाटा हैक कर लिया था। वो वही पेरीफेरल सेंटर था जहाँ से समुद्र के रास्ते होने वाले हमलों के बारे में सूचना थी। उस के बाद उन्होंने कुछ शिपिंग कम्पनियों के डाटा भी हैक किये और उन्होंने जो इन्फो दी वो करन और रीत दोनों के बहुत काम की थी। वो मैंने उन्हें तुरंत मेसेज कर दी।


शिपिंग लाइन , कंटेनर लीजिंग कंपनियों और लोडिंग पोर्ट्स के सहारे करन को ये पता लगाने में आसानी होती की कौन से कंटेनर हैं जिनमे आर डी एक्स भरा है , और वो कौन से शिप से आये हैं।

एक बार कंटेनर का पता चलने पे बार कोड से उसे ढूढ़ने में आसानी हो जाती वरना जे एन पी टी पे हजारो कंटेनर रोज डील होते हैं। करन के पास समाया भी मुश्किल से दो तीन घंटे का बचा था। फिर उस कंटेनर को डिफ्यूज करना ,…

ब्लैक हैट्स ने ये भी बताया की शाम चार बजे से जो पडोसी देश की सीक्रेट एजेंसी के हेडक्वारटर को उन्होंने कम्युनिकेशन ब्लैक आउट कर दिया था। तो कमांड और कंट्रोल सेंटर ने केबल के जरिये दूसरे शहर से रिमोट कंट्रोल सेंटर को बनाने की कोशिश की।

उन्हें अभी पता नहीं था की उनका केबल कम्युनिकेशन कम्प्रोमाइज्ड हो चुका है। और उसी बहाने , वो सारी इनफार्मेशन उन लोगो ने रिकैप्चर कर ली।

हालाकिं वो सब हाइली इंक्रिप्टेड फार्म में है , लेकिन वो उसे डी क्रिप्ट वो कर रहे हैं। सात बजे से उन्होंने रिमोट कंट्रोल सेंटर को भी जाम कर दिया है। लेकिन उसके पहले मुम्बई में जहाँ वो कम्युनिकेट कर रहे थे वो नंबर उन्होंने लोकेट कर लिए है। और एक सिक्योर मेसेज में मुझे भेजा है।

मैंने एक नए टैब में वो मेसेज खोल लिया।

फिर अभी जो परेशानी ए टी एस से मुझे पता चली थी , वो भी उन्हें बता दी।

उन्होंने बोला की आधे घंटे में कुछ जवाब मिल जाएगा।

और फिर वो दोनों चले गए।

मैंने बाकी मेसेज पढ़े , रीत से बात की। वो नेवल आपरेशन कंट्रोल सेण्टर पे थी।

२० मिनट हो गए तब तक एन पी का फोन आया। ऐ टी स चीफ बात करना चाहते थे लेकिन अभी कोई आया था।

फिर उसने वी टी पे हमले के बारे में बताया।


फिर उसने वी टी पे हमले के बारे में बताया।


क्षत्रपती शिवाजी टर्मिनस या जो उसका पुराना प्रचलित नाम है , वी टी ( विक्टोरिया टर्मिनस ) , मुम्बई का अकेला , वर्ड हेरिटेज साइट है और भारतीय रेलवे का अकेला स्टेशन जिसे वर्ड हेरिटेज साइट होने का गौरव् प्राप्त है।


यह स्टेशन , १८८७ में बना विक्टोरिया की स्वर्ण जयंती के अवसर पे और अपनी इंडो गोथिक स्थापत्य के लिए मशहूर है। इस स्टेशन की डिजाइन फ़्रेडिरक स्टीवेंस ने की थी। स्टेशन के साथ ही ये पहले जी आई पी रेलवे और अब सेन्ट्रल रेलवे का मुख्यालय है।


इसके केंद्र में एक बड़ा सा गुम्बद है , जिसके ऊपर एक मूर्ती है जिसके एक हाथ में मशाल और दूसरे हाथ में व्हील है और ये प्रगति की प्रतीक है. इसके मुख्य द्वार पे एक सिंह और एक शेर की मूर्ती है जो ग्रेट ब्रिटेन और भारत के प्रतीक के रूप में हैं।


इस स्टेशन पर लोकल और में लाइन दोनों की गाड़ियां आती जाती हैं।

लोकल के यात्री अधिकतर एक सबवे से आते हैं , जो बी एम सी के आफिस के पास बना है। इसका एक रास्ता टाइम्स आफ इण्डिया के आफिस के पास खुलता है। कुल चार रास्ते हैं और एक स्टेशन से जुड़ा है।


शाम के समय हजारो लोग जो सेन्ट्रल लाइन से जाते हैं इस सबवे के जरिये वीटी लोकल स्टेशन पहुचते हैं। इसके अलावा इस में बीसो दुकाने भी हैं। फोर्ट , क्रॉफोर्ड मार्केट , मेट्रो से आने वाले सभी लोग इसी सब वे का इस्तेमाल करते हैं।

और एन पी ने बताया की , यही सब वे हमले का सेण्टर बना।


सब वे के सारे रास्ते चैनेल गेट से बंद होते थे और रात को बंद हो जाते थे। पहले ये काम मैनुअली होता था। लेकिन उसमे बहुत मुश्किल होती थी , फिर ये भी था की कोई ताला तोड़ के चैनल गेट खोल सकता था और रात में सब वे में घुस सकता था। इसको रोकने के लिए ये तय किया गया की इन सारे गेट्स को इलेक्ट्रॉनिकली लाक किया जाय।

अब एक स्विच बॉक्स था जिसकी चाभी , बी एम सी के एक एम्प्लॉयी के पास रहती थी। वो रात में १० बजे इसे खोल के बटन आपरेट कर सारे गेट बंद करता था , और सुबह सात बजे खोलता था।

यही गेट हमले की चाभी बने।

चर्च गेट के हमले में दो आदमी थे , यहाँ ६ लोग थे। ४ लोग मेन आपरेशन में , दो बैक अप में।

प्लान ये था की ये हमला ५. ५० पर होगा चर्च गेट के हमले के १५ मिनट बाद , जब सब सिक्योरटी के लोग चर्च गेट की और मूव कर रहे होंगे। ठीक उसी समय ये बड़ा धमाका होगा।

५. ५० पर दो लोग उस बॉक्स के पास पहुँच कर , उसे तोड़ देते। और फिर सभी गेट एक साथ लाक कर देते।

उस समय करीब १, हजार के आसपास लोग उस में ट्रैप हो जाते। गेट ओएन /क्लोज वाले स्विच को वो तोड़ देते जिससे चाह के भी कोई उस को खोल नहीं पाये। और काम स एकम १५-२० मिनट समय लगता गेट को तोड़ के खोलने में।

५. ४५
से दो लोग सब वे में थे , जिन्होंने गीले रुमाल चेहरे पे लपटे थे। वो साइक्लोसारिन गैस के कनिस्टर जगह रख रहे थे , और उस के ढक्कन उन्होंने हलके से खोल दिए थे। और सब वे लाक होने तक १० कनिस्टर वो सब वे में छोड़ चुके थे।



५. ४९ पर सब वे लाक होने के पहले उन्होंने चार बड़े ग्रेनेड वहां छोड़ दिए।

और ५. ५० पे जैसे गेट लाक हुआ , ग्रेनेड के एक्सप्लोजन हुए और साइक्लो सारिन गैस का असर भी शूरु हो गया।

इसके साथ ही प्लान था की वो चारों ऊपर बने दो वेंटिलेटर के पास से असाल्ट गण से रेगुलर फायर करते और साथ में फ्रेगमेनेटेशन ग्रेनेड, स्मोक ग्रेनेड भी फेंकते रहते।

यह काम १० मिनट तक चलता रहता।

गैस , बॉम्ब से जो लोग बचते वो गोलियों का शिकार होते।

इस मामले में भी उन्हें सिर्फ १० मिनट तक आपरेशन करना था।

उतने देर में ही सैंकड़ों लोग गैस , बम गोलियों से घायल हो जाते , मारे जाते।
इस आपरेशन के दौरान वो सिक्योरिटी फोरसेज के ड्रेसेज में रहते।

और दस मिनट खत्म होने के बाद बस , वो अपनी वो ड्रेसेज उतार देते और उसके नीचे रोजमर्रा के कपड़े होते। दो उसमें से सेन्ट्रल रेलवे के आफिस में चले जाते और दो बी एम सी के और पांच मिनट के बाद , कुछ और परिवर्तन कर के रूप में बाहर निकल आते और फिर वहां खड़ी किसी गाडी में फरार हो जाते।

लेकिन सबसे खतरनाक आपरेशन था बैक अप टीम का।


ज्जिस समय ये आपरेशन चल रहा होता उसी समय कन्फूजन का फायदा उठा के , वो सबवे के ऊपर के सड़क पे चार आई ई डी लगा देते।

और जैसे ही सिक्युरोटी फोर्सेज की गाडी आती , वो रिमोट से उसे एक्सप्लोड कर देते।

सिक्योरिटी फोर्सेज की गाड़ियां , उसमें बैठे जवान तो घायल होते ही सब वे की छत भी केव इन कर जाती और सब वे में फंसे लोग और घायल होते। सब वे और सड़क को परमानेंट डैमेज होता।

उस कन्फ्यूजन में वो भी निकल लेते।

सब वे उन्होंने इसलिए चुना की उन्हें लगा की वहां की सिक्योरिटी कमजोर होगी।
दूसरे वहां पे डैमेज ट्रैप्ड स्पेस होने से ज्यादा होगा।

और स्टेशन पर कोई भी हमला नहीं प्लान किया।

पहली बात तो २६/११ के बात यहां पर चप्पे चप्पे पे पुलिस , मेटल डिटेकटर और सीसी टीवी लगे हैं।

दूसरी ज्यादा बड़ी बात ये थी , की अपने गेट वे के लिए उन्होंने रेलवे को ही चुना।
लोकल स्टेशन से में लाइन स्टेशन लगा हुआ है।

६ में से २ तो सड़क से निकल जाने वाले थे लेकिन बाकी चार लोकल स्टेशन से हो के मेन लाइन प्लेटफार्म और वहां से पुणे जाने वाले गाड़ियों से निकल जाने थे। रात में पुणे से कोलकाता के लिए फ्लाइट थीं।

और वहां से फिर पडोसी देशो में निकलना मुश्किल नहीं था। 

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि कल ही ये पता चल गया था की सस्पेक्ट्स में कुछ की दिलचस्पी , सब वे बंद करने वाले बाक्सेज में है।

दूसरे , चर्च गेट के आपरेटर्स पूरी तरह से ऐन मौके पे बाहर से आये थे , लेकिन यहाँ पर सिर्फ दो आपरेटर ऐसे थे जिनकी तस्वीर पहले से नहीं थी बाकी की कर्टसी एन पी , मुंह दिखाई पहले ही हो चुकी थी और सबी सरवायलेन्स वालों के पास उनकी फोटो थी। इसलिए शाम को जब वो लोग मौकाए वारदात पे आये तो पुलिस ने उन्हें ट्रेस कर लिया।

लेकिन असली बात बॉक्स के पता करने की थी क्योंकि अगर एक बार वो सब वे बंद कर देते तो मुश्किल होती और उसमे मुश्किल से १० सेकेण्ड लगता।


ये बात पता की एक देह व्यापार करने वाली लड़की नेहा ने। वो टाइम्स आफ इण्डिया के सामने वाले बस स्टैंड पे खड़ी रहती थी और वहां से बी एम सी तक चक्कर लगाती थी। पिछले दो साल से वो यही काम करती थी और उसे एक एक चीज का हिसाब याद हो गया था। कई बार एक दो ग्राहक मिल जाते थे तो कभी सन्नाटा।

उसी ने कल दो लोगों को उन बॉक्स के कोने में जाते देखा। फिर उन के साथ दो लोग और आये , और उन्होंने उस की फोटो भी मोबाइल से उतारा।

उसे एन पी पे हमले की खबर पता थी और ये भी की कोई गडबड हो तो बताओ। आज जब उस ने दोपहर को फिर उन्ही लोगों को दो बार वहीँ चक्कर लगाते देखा तो उस के कान खड़े हुए और उस ने अपने सोर्स के जरिये एन पी को बताया। कुछ ही देर में उसने ये भी देखा की सामने के पटरी पे सब वे के मुहाने पे दो लोग खड़े थे , जो इन दोनों से इशारे बाजी कर रहे थे।

बस , लोकल साइड में खड़ी लड़की को उसने बताया , और वो उन दोनों पे नजर रख रही थी।
चार बजने के पहले से ए टी एस के लोग आ गए थे जिन्होंने ट्रैक करना शुरू कर दिया।

और वो जैसे ही सब वे बंद करने वाले इन्क्लोजर में घुसे , उसके पीछे से कमांडोज ने घुस के कराते का पहले एक वार किया , फिर क्लोरोफार्म। उनको इन्सट्रक्सन यही थी की जो लोग पकड़े जाएँ , उन्हें तुरंत बेहोश कर दे।

सब वे में जो लोग थे , उन्हें पकड़वाने में भी उन लड़कियों ने योग दान किया। उन के पास जाके उन्होंने हल्ला करना शुरू किया की वो उन्हें छेड़ रहे हैं और वो ऐसी वैसी लड़कियां नहीं है।

ए टी एस वालों ने पुलिस वालो के साथ मिल कर उन्हें धर दबोचा। और कुछ देर में वो भी अपने साथियों के साथ थे। और उन के बग्स साफ किये जा रहे थे।

बैक अप टीम वाले भी पकड़े गए , उन चारो के कम्यनिकेशन ट्रेस कर के।




और चर्च गेट की तरह वी टी भी बच गयी।
 
 
 








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