FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--120
गतांक से आगे ...........
मिल बाँट कर
" नदीदियों नजर मत लगाओ। मैं इस साली रंजी की तरह नहीं हूँ की इतने मस्त माल को छुपा के रखूं। मैं बाँट के खाती हूँ। चल आ जा तू दोनों भी। "
बस इसके बाद तो , सुपाड़ा दिया के हिस्से में और साइड से एक ओर से रंजी और दूसरी ओर से गुड्डी।
एकदम उस डायलॉग वाला हाल था ,
" कितनी लड़कियां थी "
" तीन ,सरदार "
" लंड एक और लड़कियां तीन , बड़ी नाइंसाफी है "
लेकिन कतई नाइंसाफी नहीं थी , तीनो एकसाथ और जम के मजे ले रही थीं।
दिया बोली ," रंजी, तेरे भैया को रोक लेते हैं न आज रात को "
रंजी बोली " अरे यार वो साल्ली , जिया आ रही होगी , उस का मेसेज आ गया है '
' मुझे मालूम होता की तेरे पास ये मस्त चीज है तो जिया के प्रोग्राम को मै गोली मार देती ' दिया कुछ उदास होके बोली।
गुड्डी ने मरहम लगाया " दिया क्यों परेशान होती है। मिल गयी न रंजी के भैया से। तो आज की रात जिया के साथ , उसके बाद तो जब चाहो तब भैया का भोग लगाओ रंजी ताले में डाल के थोड़ी रखेगी। सब मिल के मजा लो "
दिया खुश होगयी और फिर तीनो की तिकड़ी
सपड सपड
और मेरी हालत ख़राब ,
लेकिन तब तक दरवाजे की नीचे बेल बजी , जिया आगयी थी.
दिया ने जल्दी से मुंह से मेरा लंड निकाला और जींस में घुसेड़ा।
रंजी और गुड्डी ने भी अपने को ठीक किया।
मैंने सामने घडी पे नजर डाली , साढ़े छ बज रहे थे। मेरे भी निकलने का समय हो रहा था।
सब एक दूसरे को बोल रही थीं , जा नीचे दरवाजा खोल।
"मैं भी जा रहा हूँ , खोल दूंगा " मैंने बोला।
दिया खिलखिलाई , " जिया की खोलोगे क्या वो भी इस मूसल से , तीन महीने तक उठ नहीं पाएगी बिचारी। अरे भैया , इसका मजा तो मेरी ऐसी बहन ले सकती है , और लेगी। " और जोर से उसने जींस के ऊपर से ही तने हुए लिंग को दबा दिया।
तब तक गुड्डी दरवाजा खोलने जा चुकी थी , और पीछे पीछे में। लेकिन उसके पहले मई जोर से दिया को भींचा, उसके दोनों बड़े बड़े उभार दबाये और कस के चूम लिया।
ये काम रंजी ने खुद किया।
जब मैं दरवाजे से निकल रहा था , तभी जिया घुसी और मैं उससे आलमोस्ट टकरा गया। मैं रगड़ते हुए निकला और मैंने मुड के पीछे की और देखा।
जो चीज हर लड़का , एक लड़की में सबसे पहले नोटिस करता है वही मैंने नोटिस किया।
जवानी के फूल बस आ रहे थे।
बड़े बड़े टिकोरे , लेकिन थे बहुत दिलकश। जानमारु।
रंजी और गुड्डी से थोड़े ही छोटे , लेकिन लड़को की जान लेने को काफी।
खूब गोरी , चेहरे पे भोलापन था लेकिन एक नमक भी था।
,
जिस दिन उसकी मशीन चालू हो गयी दिया के भी कान काटेगी , ये पक्का था।
रंजी , ने मुझे उसके उभारो को देखते हुए देख लिया और मुस्कराई , फिर जिया से बोली। " मेरे भैया , पसंद आये क्या। कहो तो रोक लूँ , ये भी ज्वाइन कर लेंगे हमारे साथ। "
जिया मुझे देख के मुस्कराई , फिर बहुत जोर से ब्लश की , और रंजी के पीठ पे जोर से मुक्का मारते हुए बोली धत्त। और तीनों बिजलियां अंदर घुस गयीं।
दरवाजा बंद हो गया।
और मैं अपनी बाइक पे।
घर पहुंचा तो पौने सात बजे थे।
टीवी आन किया , उसमे सब नार्मल था। रूटीन खबरें।
मुम्बई से कांटैक्ट होने में अभी १५ मिनट बाकी था।
मैंने लैपटॉप , डेस्क टॉप सब सेट किया।
कंप्यूटर की अलख जगाई।
तभी मंजू आई।
साडी का आँचल कमर में खोंसे , और बोली अपने अंदाज में ,
" देवर जी आज हम तुम अकेले हैं , तोहार भाभी ना हैं। "
" हाँ उनकर फोन आया था , कही गयी है सबेरे आएँगी , लेकिन आप तो हो न " मुस्करा के मैंने जवाब दिया।
मेरी निगाहें मंजू के बड़े बड़े उरोजों पे टिकी रह गयीं। 38 डी डी पे तो मैं बेट लगा सकता था।
वो थोड़ा और झुकी और अब तो गोलाइयों के साथ गहराइयाँ भी गजब ढा रही थी।
टिट फक के लिए परफेक्ट।
" क्या लोगे आज रात में , आज तो मैं ही हूँ , बोलो " जिस तरह से हस्की आवाज से वो बोली , मन तो यही कर रहा था की मंजू की गोलाइयाँ मांग लूँ।
लेकिन सामने काम पड़ा था। मेरे मोबाइल पे मेसेज आने शुरू हो गए थे।
मैंने कंप्यूटर आन कर दिए थे।
मन मसोस कर मंजू से मैं बोला , " आप अभी तो एक अपनी तरह गरम कड़क चाय पिला दो। और खाने में जो आपकी मर्जी। हाँ लेकिन १० बजे से पहले नहीं "
मंजू ने भी देख लिया था की मेरे फोन बज रहे थे।
वो मुड़ी लेकिन निकलने के पहले मुझे दिखा के जोर से अपने बड़े बड़े चूतड़ मटका दिए ( ४०+ ), और हँसते हुए निकल गयी।
लेकिन थोड़ी ही देर में एक गरम कड़क चाय की प्याली मेरे टेबल पे थी।
कंप्यूटर पे मेसेज आने शुरू हो गए थे। मंजू ने देख लिया की मैं बिजी हूँ और चाय टेबल पे रख के चली गयी।
ऐंटी टेरर सेंटर से मैं जुड़ गया था , मुम्बई की लड़ाई की खबरें आनी शुरू हो गयी थीं।
पहला हमला चर्च गेट स्टेशन पर शाम 5. 38 पर हुआ या होने की कोशिश हुयी।
धोबी तालाब के पास दो ईरानी रेस्टोरेंट थे। एक है एक नहीं। बस्तानी और कयानी। बस्तानी बंद हो गया , कयानी अभी चालु है। लेकिन ये रेस्टोरेंट बॉम्बे की कल्चर के हिस्से हैं। बस्तानी जब बंद हुआ तो कलकत्ता के डेली टेलीग्राफ से ले लेकर मुम्बई के टाइम्स आफ इण्डिया तक ने उसके बारे लिखा। मशहूर कवि , नसीम एज़्कियेल ने बस्तानी में लगे एक बोर्ड के बारे में एक चर्चित कविता लिखी थी।
वहीँ एक बार रेस्टोरेंट के मैनेजर ने लोगों से कहा ,
" आज लोकल चर्चगेट के आगे नहीं जायेगी। "
लोगों में पहले तो खलबली मच गयी , फिर जब लोगों को इस मजाक का अहसास हुआ की लोकल तो चर्चगेट के आगे जाती ही नहीं , वो टर्मिनल स्टेशन है। मुस्कराते हुए लोग फिर टेबल पर बैठ गए और ईरानी चाय और ब्रुन मस्का के आर्डर देने लगे।
लोकल ट्रेन , चर्चगेट स्टेशन मुम्बई की जिंदगी का हिस्सा है।
लेकिन चर्चगेट हमेशा टर्मिनल नहीं था।
वेस्टर्न लाइन जब मुंबई ने 1864 में पहुंची तो पहला टर्मिनस ग्रांट रोड था। लोकल की सर्विस बॉम्बे में १८६७ में शुरू हो गयी थी। मैरीन लाइंस के पास एक बैकबे स्टेशन था वहां से। १८६७ में बैकबे -विरार सर्विस भारत की पहली सब अरबन सर्विस थी जो शुरू में एक थी और बाद में ६ तक पहुंच गयी।
चर्च गेट स्टेशन १८७० में बना।
आज भी कई लोग ये सवाल करते है वो चर्च कहाँ है जिसके नाम पर चर्च गेट बना।
वो चर्च है सेंट थॉमस कैथेडरल , हारमिनियन सर्किल के पास।
सेंट थॉमस कैथेड्रल बॉम्बे का पहला एंग्लिकन चर्च है जिसका निर्माण १७१८ में पूरा हुआ। उस समय ईस्ट इण्डिया कंपनी ने अपने सेटलमेंट की सुरक्षा के लिए फोर्ट बना रखा था , जिसमे तीन गेट थे , बाजार गेट , अपोलो गेट और चर्च गेट. जो गेट फोर्ट से बाहर निकलने के लिए कैथेडरल के पास था वो चर्च गेट कहा जाता था और उसके पश्चिम का पूरा इलाका चर्च गेट के नाम से जाना जाता था।
चर्च से पश्चिम की ओर जाने वाली सड़क ( जहाँ अभी इरोस सिनेमा हाल , पश्चिम रेलवे मुख्यालय है ) जो मैरीन ड्राइव तक अभी जाती है ( उस समय या पूरा हिस्सा समुद्र था और १९२५-३० के रिकेल्मेशन में बना ), चर्च गेट स्ट्रीट के नाम से जाना जाता है। इस का नाम , जैसे बाकी सड़कों का नाम बदला , अब बदल कर , वीर नरीमन रोड कर दिया गया है। चर्च गेट स्टेशन, इस इलाके में और चर्च गेट स्ट्रीट पे होने के कारण , चर्च गेट कहलाया।
इसकी बिल्डिंग का स्वरूप भी बार बार बदला। पहले ये स्विस शैलेट शैली में बना था। और इस शताब्दी के शुरू में अपने वर्तमान रूप में आया।
चर्च गेट के बाद कोलाबा टर्मिनस बना १८७३ में , और १९३० तक , लोकल और मेनलाइन की सभी गाड़ियां , कोलाबा ( वुडहाउस रोड ) तक जाती थीं। लेकिन रिकेल्मेशन के चलते , ( जिसमें मैरीन ड्राइव बना ) कोलाबा की सर्विसेज बंद कर दी गयीं , चर्चगेट लोकल ट्रेनों के लिए टर्मिनस बन गया और एक नया टर्मिनस बॉम्बे सेंट्रल बना , मेन लाइन गाड़ियों के लिए।
इस समय वेस्टर्न लाइन पर ( चर्च गेट -विरार ) के बीच करीब ३५-३६ लाख लोग रोज यात्रा करते हैं।
चर्च गेट से ही ५ लाख लोग यात्रा करते हैं। सुबह ४ बजे से रात साढ़े बारह बजे तक अनवरत गाड़ियां चलती हैं।
साढ़े पांच बजे शाम के आस पास दो मोटरमैन , चर्च गेट स्टेशन में दाखिल हुए , पश्चिम की ओर से , सूर्योदय ग्रॉसरी स्टोर की ओर से। ये एक सामान्य सी बात थी , क्योंकि चर्च गेट स्टेशन के पश्चिम में ला कालेज के पास ही पश्चिम रेलवे का आफिसर रेस्ट हाउस है।
उसके दूसरी मंजिल पे मोटरमैन रेस्ट रूम है। रात में या दो लोकल ट्रेनों के बीच उनके आराम करने का इंतजाम यहीं है। इसलिए वहां से मोटर मेन ( लोकल ट्रेनों के ड्राइवरों को मोटरमेन कहते हैं ) आते जाते रहते हैं।
चर्च गेट स्टेशन पर अधिकतर कम्यूटर्स जो फोर्ट , कोलावा , कफ परेड, मंत्रालय इत्यादि में काम करते है वो सबवे से आते है , जो अंदर से सड़क पार कर इरोस सिनेमा और पश्चिम रेलवे के मुख्यालय साइड से जुड़ा होता है। इसके अलावा , पश्चिम और पूरब में भी कई द्वार है , जिनसे मैरीन ड्राइव, आस पास के कालेजों , आयकर और एक्साइज विभाग के लोग आते हैं।
सुबह और शाम इस स्टेशन पर दस पंद्रह हजार लोग चढ़ते उतरते रहते हैं और हर बीस तीस सेकेण्ड पे कोई नई कोई लोकल ट्रेन हजारों यात्रियों को चढ़ाती उतारती रहती है।
साढ़े पांच बजे शाम के आस पास दो मोटरमैन , चर्च गेट स्टेशन में दाखिल हुए , पश्चिम की ओर से , सूर्योदय ग्रॉसरी स्टोर की ओर से।
ये एक सामान्य सी बात थी , क्योंकि चर्च गेट स्टेशन के पश्चिम में ला कालेज के पास ही पश्चिम रेलवे का आफिसर रेस्ट हाउस है। उसके दूसरी मंजिल पे मोटरमैन रेस्ट रूम है। रात में या दो लोकल ट्रेनों के बीच उनके आराम करने का इंतजाम यहीं है। इसलिए वहां से मोटर मेन ( लोकल ट्रेनों के ड्राइवरों को मोटरमेन कहते हैं ) आते जाते रहते हैं।
चर्च गेट स्टेशन पर अधिकतर कम्यूटर्स जो फोर्ट , कोलावा , कफ परेड, मंत्रालय इत्यादि में काम करते है वो सबवे से आते है , जो अंदर से सड़क पार कर इरोस सिनेमा और पश्चिम रेलवे के मुख्यालय साइड से जुड़ा होता है। इसके अलावा , पश्चिम और पूरब में भी कई द्वार है , जिनसे मैरीन ड्राइव, आस पास के कालेजों , आयकर और एक्साइज विभाग के लोग आते हैं। सुबह और शाम इस स्टेशन पर दस पंद्रह हजार लोग चढ़ते उतरते रहते हैं और हर बीस तीस सेकेण्ड पे कोई नई कोई लोकल ट्रेन हजारों यात्रियों को चढ़ाती उतारती रहती है।
इस समय क्योंकि , लोकल ट्रेनों की संख्या पीक पर होती है , मोटरमैन का आना जाना भी बढ़ा रहता है।
दोनों मोटर मैन, मेन हाल से होतें हुए , उत्तर की और जहाँ लोकल ट्रेनों के प्लटेफॉर्म हैं उधर बढे।
उस के आखिरी सिरे पे एक सीढ़ी ऊपर की ओर जाती है , जहाँ लाबी है।
उसी लाबी में मोटरमैन , गार्ड ड्यूटी ज्वाइन करते हैं वहां टॉयलेट , और कुछ रेस्टिंग फैलसिलिटीज भी हैं।
शाम 5. 33 - दोनों मोटरमैन , एक साथ रेस्ट रूम में पहुंचे।
शाम 5. 34 दोनों धर दबोचे गए ,
मान लें की ये दोनों नहीं दबोचे जाते तो घटना क्रम क्या होता।
5. 35
दोनों तैयार हो के बाहर निकलते। एक की जिम्मेदारी टार्गट्स की सिकुयोरिटी और अप्रोचेज को न्यूट्रलाइज करने की थी और दूसरे की अटैक की। पहला वाला भी अपना काम कर के अटैक के काम में शामिल हो जाता।
5. 36 -एक में लाबी में व्हाइट स्मोक के दो हैंड ग्रेनेड फेंके , एम 83 . लाबी में सफेद धुँआ भर गया और दो मिनट के लिए कुछ भी दिखना असंभव था।
एम 83 स्मोक ग्रेनेड उसने नीचे और ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पे भी फेंके। और वहां भी पूरा धुंआ भर गया। अगले पल उसने बैग से साइक्लोसरिन गैस के दो कनैस्टर निकाल के लाबी में लुढ़का दिए और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया।
साइक्लोसरीन गैस , सरीन गैस , जिसका इस्तेमाल जापानी आतंकवादियों ने सब वे अटैक में किया था , उससे भी दो गुना ज्यादा जहरीली है। ये एक नर्व एजेंट है जो नर्व सेल्स का काम रोक देती और सबसे पहले इसका असर सांस लेने पे पड़ता है। कहा जाता है की सद्दाम हुसेन ने काफी मात्रा में इस गैस का निर्माण करवाया था। इस का असर एक मिनट में शुरू हो जाता है और डेढ़ मिनट के अंदर लोग बेहोश हो जातें हैं।
ये गैस कनिस्टर डिलेड डिवाइस के साथ थे और फेंके जाने के 50 सेकेण्ड बाद इन का असर शुरू होता। इसलिए जब तक लाबी के अंदर स्मोक गैस का असर कम होता, साइक्लोसारिन का असर शुरू हो जाता।
लाबी को न्यूट्रलाइज करने के लिए उन्होंने ग्रेनेड या गोलियों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया , की इससे मुख्य हमला शुरू होने से पहले ही सिक्योरिटी एजेंसीज अलर्ट हो जातीं। और इससे साइलेंटली उन्होंने , एक ऐसे आफिस को जो उनके अटैक सेण्टर के पास था , बिना शोर के न्यूटरलाइज कर दिया।
5 37 -जिसने लाबी को न्यूट्रलाइज किया था , उसी ने सीढ़ियों से चढ़ते हुए सेमटेक्स की दो पतली पट्टियां सीढ़ी पे चिपका दी थीं , अलग अलग जगहों पे।
और उसने रिमोट से उसे डिटोनेट कर दिया।
जिस सीढ़ी से वो चढ़ के आये थे , दो तिहाई टूट गयी।
अब उनके पास सीधे अप्रोच असंभव था। और वह स्टेशन से एक मंजिल ऊपर एक गैलरी ऐसी जगह में थे जहाँ से उनके लिए अटैक आसान था , लेकिन अब उन तक पहुँचना लगभग असंभव था।
5. 36 - दूसरे ने लाबी के सामने गैलरी से नीचे का जायजा लिया।
उसके ठीक सामने बुकिंग आफिस था , जहाँ शाम को लौटने वाले पैसेंजर्स की लम्बी कतारें थी।
वहीँ पर दो आटोमेटिक टिकट वेंडिंग की मशीने भी थीं। कुछ लड़कियां वहां भी टिकट निकाल रही थी। करीब 200 लोग बुकिंग खिड़कियों और टिकट मशीनो पे खड़े थे। बायीं ओर दो बुक स्टाल थे , एक व्हीलर का और एक आदिवासी संस्थान का।
वहां भी दस पन्दरह लोग खड़े थे। उसके पीछे फूड स्टाल थे जहाँ पर थोड़ी भीड़ थी। क स्ट्रीट आर्ट के एक ग्रुप के लोग गिटार बजा रहे थे और कुछ लोग वहां भी खड़े थे बुक स्टॉल के दूसरी और और उसके पीछे , सब वे और मेन गेट से आते लोगों का हुजूम था। गेट पर एक टेबल पर पुलिस के दो लोग थे।
दायीं और मेटल डिटेकटर लगे थे , जिन्हे पार कर हर मिनट हजारों की तायदाद में लोग प्लेटफार्म की और जा , बल्कि दौड़ रहे थे।
5. 37 उस ने अपना पहला निशाना , छत पर लगे , एक घुमते कम से कम 100 किलोग्राम वजन के , एक एडवरटाइन्जिंग डिवाइस पे लगाया , सिंगल शॉट और वो नीचे आकर गिर पड़ा।
कुछ लोग उसके नीचे दब गए। गिटार सुनती , बुक स्टाल के पास खड़े लोग और ट्रेनों की और दौड़ते लोग एक पल के लिए रुक के वहीँ देखने लगे।
और मेन अटैक शुरू हो गया।
और उसने टाइप 56 II असाल्ट राइफल निकाल के ताबड़ तोड़ गोलियां चलानी शूरु कर दी। उसने पहले , हाल में गिरे बड़े शीशे के गोले ऐसे एडवर्टिजमेंट डिवाइस के आस पास खड़े , लोगों को टारगेट किया और फिर बुकिंग आफिस के सामने खड़े लोगों पर २० सेकेण्ड लगातार फायर किया और और फिर मेटल डिटेकटर से होकर जाते लोगों पे आर्क के फार्म में निशाना बनाया।
टाइप 56 एक चीनी असाल्ट राइफल है , जो रशियन एके 47 की कापी है।
लेकिन 56 II इसका इम्प्ररूव्ड वर्जन है। इसकी साइज छोटी है और एक्यूरेसी बेहतर है। चीन में ये अधिकतर एक्सपोर्ट के लिए बनायी जाती है और ये करीब 650 राउंड हर मिनट में फायर कर सकती है। इसकी इफेक्टिव रेंज 300 से 400 मीटर है , लेकिन यहाँ तो दूरी मुश्किल से 200 मीटर , ज्यादा से ज्यादा थी। इसलिए ये बहुत घातक थी।
5. 38 - जिस आदमी ने अभी लाबी में स्मोक गैस और साइक्लोसरीन के कनिस्टर फेंके थे और सीढ़ी को उड़ा दिया था , वो भी अटैक में शामिल हो गया।
उसके हाथ में हेक्लर ऐंड कोच एम पी 7 का एक नया मॉडल एम पी 7 ए 1 था।
इसकी साइज बहुत छोटी होती है , इसलिए ये बैग में आसानी से आ गया। इसकी गोलिया क्रिसाट बुलेट प्रूफ वेस्ट , जिसमें 1. 6 मिलीमीटर टाइटेनियम प्लेट और केवलार की २० परतें हो , उसे भी २०० मीटर की दूरी से भी भेद सकती थी। इसे पिस्टल की तरह से चला सकते हैं , लेकिन एक अच्छी असाल्ट राइफल के इसमें सभी गुण है। यह आटोमेटिक मोड़ में करीब ९०० राउंड तक फायर कर सकती है।
अब दोनों ने अलग अलग दिशाएँ सम्हाल ली थी।
एच एंड के ( हेकलर ऐंड कोच ) वाले ने बायीं ओर , जिधर सब वे और में गेट थे उस ओर फायरिंग शुरू की और दूसरे ने जिसके पास टाइप 56 थी , दायीं ओर बुकिंग आफिस , मेटल डिटेकटर और प्लेटफार्म साइड का मोर्चा सम्हाला।
बायीं और वाले ने पहले तो मैन्युअल सेटिंग से टार्गेटेड फायर जिधर सिक्योरिटी फोर्सेज के लोग थे उन्हें एलिमिनेट किया। फिर उसने एक आर्क के फार्म में पश्चिम के मेन गेट से सब वे की ओर से होते हुए पूरब के गेट की और फायरिंग शुरू कर दी।
5. 39 - दोनों ने मिलाके एक मिनट में करीब 1200 राउंड फायर कर दिए थे। मेन हाल में बॉडीज , घायल लोग पड़े थे। लोग फायरिंग के सेंटर से दूर , या तो सब वे की ओर या मेटल डिटेकटर के पीछे , प्लेटफार्म की और भाग रहे थे और वहां या तो ट्रेन में छुप रहे थे या वहां के गेट से बाहर की ओर निकल रहे थे।
प्लेटफार्म पे उपस्थित सिक्योरिटी फोर्सेज , मेटल डिटेकटर के पीछे से पोजीशन ले रही थीं।
पहले आदमी ने दो स्मोक बॉम्ब के कैनिस्टर , मेन हाल में फेंके।
एक मेटल डिटेक्टर के पास और दूसरा , सबवे और गेट के बीच। पहले का असर ये हुआ की सिक्योरटी फोर्सेज के लिए टारगेट असेसमेंट करना मुश्किल हो गया।
और वो मेटल डिटेक्टर के पीछे मोर्चा ले के खड़े रहे।
दूसरा जो लोग , प्लेटफार्म पे खड़ी गाड़ियों की ओर भाग रहे थे , धुंए में उनके लिए भागना मुश्किल हो गया। यही हालत सबवे की ओर भागने वालो की हुयी।
दूसरे आदमी ने दायीं ओर आर्क बना के फायर करना जारी रखा।
हर 10 सेकेण्ड के बाद , वो पांच सेकेण्ड मेटल डिटेक्टर की ओर डायरेकेटेड फायर करता। जिससे प्लेटफार्म पे उपस्थित सिक्योरटी फोर्सेज का में हाल में आना लगभग असंभव हो गया था।
एक मिनट तक दोनों सिंक्रोनाइज्ड फायरिंग करते रहे।
5. 40 - पहले आदमी ने दो पावरफुल हैण्ड ग्रेनेड सब वे की और फेंके।
ये हैंड ग्रेनेड एम 67 फ्रेग्मेंटेशन हैण्ड ग्रेनेड थे , जिनका इस्तेमाल अमेरिकी सेना , अफगानिस्तान में कर रही थी। इसके पांच मीटर के दायरे में कोई नहीं बच सकता और १ ५ मीटर तक के लोगों के मारे जाने की संभावना होती है।
इसके शार्पनेल २५० मीटर दूर तक जाते हैं। शर्पेनेल का डिस्ट्रिब्यूशन , यूनिफार्म होता है। इसमें ५ सेकेण्ड की डिलेड डिवाइस होती है।
उस समय बहुत से लोग सब वे की ओर भाग रहे थे या आसपास की दुकानो में छिप रह थे। दोनों हैण्ड ग्रेनेड एक दूसरे से दस मीटर के दूरी पे गिरे जिससे , सब वे के लोग और दुकानो में छिपे लोग भी मारे गए या गंभीर घायल हुए।
ग्रेनेड फेंकने के बाद पहले आदमी ने दूसरे आदमी की जगह ले ली और अकेले वो पूरा मेन हाल ऊपर से कवर कर रहा था।
अब वह जमीन पर गिरे लोगों पे फायर कर रहा था या , सामने की ओर के आफिस में। हर २० सेकेण्ड के बाद वो दस सेकेण्ड का फायर प्लेटफार्म की ओर कर रहा था , जिधर सिक्योरिटी फोर्सेज के लोग थे।
दूसरे आदमी ने अब गैलरी में उत्तर दिशा की ओर लगे कांच को तोड़ दिया था।
यहाँ से प्लेटफार्म और वहां खड़ी लोकल ट्रेने दिखती थी। वहां से उसने अपनी टाइप 56 असॉल्ट राइफिल से 40 सेकेण्ड तक लगातार फायरिंग की। प्लेटफार्म पे खड़े लोग , गेट से बाहर भागते लोग सभी उसका शिकार बने।
5 41 - 5 43 -
दोनों ने कन्टीन्यूअस फायरिंग जारी रखी। अब फायरिंग रुक रुक के बर्स्ट में हो रही थी।
एक जब मैगजीन चेंज करता तो दूसरा , फायरिंग कर के उसे कवर करता।
इसी बीच सिक्योरिटी फोर्सेज की काउंटर फायरिंग भी शुरू हो गयी। उनकी राइफल और कारबाइन की आवाजें सुनाई देती। लेकिन वो सीधे उनकी फायरिंग के रेंज में नहीं आ पा रहे थे।
दो मिनट में दोनों ने मिल के हजार से ऊपर राउंड फायर किये। मेन हाल में कोई नहीं बचा था नहीं प्लेटफार्म में। लोग या तो भाग गए थे या आड़ में छिपे थे।
दूसरे आदमी ने , जो टूटे हुए शीशे के पीछे से , प्लेटफार्म की ओर फायरिंग कर रहा था , उसने ग्रेनेड लांचर अपनी रायफल पे लगा लिया।
उसने पहले तीन इन्सेडियरी बॉम्ब प्लेटफार्म की और फेंके , जहाँ सिक्योरिटी फोर्सेज थी। लेकिन उसका टारगेट , फूड स्टाल्स थे जो लकड़ी के बने थे और बहुत आस पास पास थे।
लकड़ी , पेंट , कुकिंग गैस सिलिन्डर , थोड़ी ही देर में उस सारे इलाके में आग थी। एक इनसेंडियरी बॉम्ब लोकल ट्रेन पे भी लगा और उस में भी आगा लग गयी।
फिर ग्रेनेड लांचर से उसने डीप पेंन्ट्रेशन ग्रेनेड लांच करने शुरू किये , जिससे न सिर्फ लोकल ट्रेन की बॉडीज को पेन्ट्रेट कर के ग्रेनेड लगे बल्कि , उसने स्टेशन के ट्रेनों के चलने किए लिए लगे तारों , उनके इन्सुलेटर और सपोर्ट पे फायर किया।
मिनट भर में वो चार पांच जगह से टूट गए और अब स्टेशन पे खड़ी लोकल ट्रेनों का चर्च गेट से निकलना असंभव हो गया। आग , लोकल के अंदर ग्रेनेड और बिजली के तारों के टूटने से पूरी अफरा तफरी मच गयी।
5. 43 - 5 45 -
पहले आदमी ने भी अब ग्रेनेड लांचर निकाल लिया।
मेन हाल में अब कोई टारगेट बचे नहीं थे। . जो लोग थे वो स्टालों की पीछे , आफिसों में छुपे हुए थे और सिक्योरिटी फोर्सेज के आने का इंतजार कर रहे थे। और असाल्ट राइफल की गोलियों से उन्हें हिट करना आसान नहीं था।
उस के पास एम 320 ग्रेनेड लांचर था जो स्टैंड अलोन मोड़ में भी काम करता था और इस से ५-७ राउंड हर मिनट में चलाया जा सकता था।
इसमें 40 x 46 एम एम के ग्रेनेड के रांउड इस्तेमाल होते हैं।
पहले दो ग्रेनेड उसने सामने बुकिंग आफिस में लांच किये और उसके बाद दो उसके ऊपर के आफिस में। और जो दीवारे , शीशे टूटे , उसको टारगेट करके फिर असाल्ट राइफल से ताबड़तोड़ गोलिया 10 सेकेण्ड तक चलायीं , जिससे अगर ग्रेनेड से जो लोग बचे हों वो गोलियों का शिकार हो जाएँ।
और उसके बाद फिर उसने ग्रेनेड लांचर का निशाना , मेटल डिटेक्टर की और किया जिसकी आड़ में सिक्योरिटी फोर्सेज के लोग थे। और चार ग्रेनेड उधर लांच किये। ये ग्रेनेड पैराबोला के रूप में जाता था , और एक हाई एक्सप्लोसिव की तरह , 51 mm स्टील प्लेट को भी तोड़ सकता था।
इसका इस्तेमाल बंकर बस्टर के तौर पे किया जाता था। यह मैसनरी की मोटी दीवाल को भी तोड़ सकता था।
जिस समय वो आदमी ग्रेनेड लांच कर रहा था , बीच बीच में में दूसरा आदमी आकर उसे अपनी टाइप 56 से कवरिंग सपोर्ट कर रहा था।
उन लोगों को यहाँ आये ९ मिनट और हमला शुरू किये ७ मिनट हो चुके थे।
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फागुन के दिन चार--120
गतांक से आगे ...........
मिल बाँट कर
" नदीदियों नजर मत लगाओ। मैं इस साली रंजी की तरह नहीं हूँ की इतने मस्त माल को छुपा के रखूं। मैं बाँट के खाती हूँ। चल आ जा तू दोनों भी। "
बस इसके बाद तो , सुपाड़ा दिया के हिस्से में और साइड से एक ओर से रंजी और दूसरी ओर से गुड्डी।
एकदम उस डायलॉग वाला हाल था ,
" कितनी लड़कियां थी "
" तीन ,सरदार "
" लंड एक और लड़कियां तीन , बड़ी नाइंसाफी है "
लेकिन कतई नाइंसाफी नहीं थी , तीनो एकसाथ और जम के मजे ले रही थीं।
दिया बोली ," रंजी, तेरे भैया को रोक लेते हैं न आज रात को "
रंजी बोली " अरे यार वो साल्ली , जिया आ रही होगी , उस का मेसेज आ गया है '
' मुझे मालूम होता की तेरे पास ये मस्त चीज है तो जिया के प्रोग्राम को मै गोली मार देती ' दिया कुछ उदास होके बोली।
गुड्डी ने मरहम लगाया " दिया क्यों परेशान होती है। मिल गयी न रंजी के भैया से। तो आज की रात जिया के साथ , उसके बाद तो जब चाहो तब भैया का भोग लगाओ रंजी ताले में डाल के थोड़ी रखेगी। सब मिल के मजा लो "
दिया खुश होगयी और फिर तीनो की तिकड़ी
सपड सपड
और मेरी हालत ख़राब ,
लेकिन तब तक दरवाजे की नीचे बेल बजी , जिया आगयी थी.
दिया ने जल्दी से मुंह से मेरा लंड निकाला और जींस में घुसेड़ा।
रंजी और गुड्डी ने भी अपने को ठीक किया।
मैंने सामने घडी पे नजर डाली , साढ़े छ बज रहे थे। मेरे भी निकलने का समय हो रहा था।
सब एक दूसरे को बोल रही थीं , जा नीचे दरवाजा खोल।
"मैं भी जा रहा हूँ , खोल दूंगा " मैंने बोला।
दिया खिलखिलाई , " जिया की खोलोगे क्या वो भी इस मूसल से , तीन महीने तक उठ नहीं पाएगी बिचारी। अरे भैया , इसका मजा तो मेरी ऐसी बहन ले सकती है , और लेगी। " और जोर से उसने जींस के ऊपर से ही तने हुए लिंग को दबा दिया।
तब तक गुड्डी दरवाजा खोलने जा चुकी थी , और पीछे पीछे में। लेकिन उसके पहले मई जोर से दिया को भींचा, उसके दोनों बड़े बड़े उभार दबाये और कस के चूम लिया।
ये काम रंजी ने खुद किया।
जब मैं दरवाजे से निकल रहा था , तभी जिया घुसी और मैं उससे आलमोस्ट टकरा गया। मैं रगड़ते हुए निकला और मैंने मुड के पीछे की और देखा।
जो चीज हर लड़का , एक लड़की में सबसे पहले नोटिस करता है वही मैंने नोटिस किया।
जवानी के फूल बस आ रहे थे।
बड़े बड़े टिकोरे , लेकिन थे बहुत दिलकश। जानमारु।
रंजी और गुड्डी से थोड़े ही छोटे , लेकिन लड़को की जान लेने को काफी।
खूब गोरी , चेहरे पे भोलापन था लेकिन एक नमक भी था।
,
जिस दिन उसकी मशीन चालू हो गयी दिया के भी कान काटेगी , ये पक्का था।
रंजी , ने मुझे उसके उभारो को देखते हुए देख लिया और मुस्कराई , फिर जिया से बोली। " मेरे भैया , पसंद आये क्या। कहो तो रोक लूँ , ये भी ज्वाइन कर लेंगे हमारे साथ। "
जिया मुझे देख के मुस्कराई , फिर बहुत जोर से ब्लश की , और रंजी के पीठ पे जोर से मुक्का मारते हुए बोली धत्त। और तीनों बिजलियां अंदर घुस गयीं।
दरवाजा बंद हो गया।
और मैं अपनी बाइक पे।
घर पहुंचा तो पौने सात बजे थे।
टीवी आन किया , उसमे सब नार्मल था। रूटीन खबरें।
मुम्बई से कांटैक्ट होने में अभी १५ मिनट बाकी था।
मैंने लैपटॉप , डेस्क टॉप सब सेट किया।
कंप्यूटर की अलख जगाई।
तभी मंजू आई।
साडी का आँचल कमर में खोंसे , और बोली अपने अंदाज में ,
" देवर जी आज हम तुम अकेले हैं , तोहार भाभी ना हैं। "
" हाँ उनकर फोन आया था , कही गयी है सबेरे आएँगी , लेकिन आप तो हो न " मुस्करा के मैंने जवाब दिया।
मेरी निगाहें मंजू के बड़े बड़े उरोजों पे टिकी रह गयीं। 38 डी डी पे तो मैं बेट लगा सकता था।
वो थोड़ा और झुकी और अब तो गोलाइयों के साथ गहराइयाँ भी गजब ढा रही थी।
टिट फक के लिए परफेक्ट।
" क्या लोगे आज रात में , आज तो मैं ही हूँ , बोलो " जिस तरह से हस्की आवाज से वो बोली , मन तो यही कर रहा था की मंजू की गोलाइयाँ मांग लूँ।
लेकिन सामने काम पड़ा था। मेरे मोबाइल पे मेसेज आने शुरू हो गए थे।
मैंने कंप्यूटर आन कर दिए थे।
मन मसोस कर मंजू से मैं बोला , " आप अभी तो एक अपनी तरह गरम कड़क चाय पिला दो। और खाने में जो आपकी मर्जी। हाँ लेकिन १० बजे से पहले नहीं "
मंजू ने भी देख लिया था की मेरे फोन बज रहे थे।
वो मुड़ी लेकिन निकलने के पहले मुझे दिखा के जोर से अपने बड़े बड़े चूतड़ मटका दिए ( ४०+ ), और हँसते हुए निकल गयी।
लेकिन थोड़ी ही देर में एक गरम कड़क चाय की प्याली मेरे टेबल पे थी।
कंप्यूटर पे मेसेज आने शुरू हो गए थे। मंजू ने देख लिया की मैं बिजी हूँ और चाय टेबल पे रख के चली गयी।
ऐंटी टेरर सेंटर से मैं जुड़ गया था , मुम्बई की लड़ाई की खबरें आनी शुरू हो गयी थीं।
पहला हमला चर्च गेट स्टेशन पर शाम 5. 38 पर हुआ या होने की कोशिश हुयी।
धोबी तालाब के पास दो ईरानी रेस्टोरेंट थे। एक है एक नहीं। बस्तानी और कयानी। बस्तानी बंद हो गया , कयानी अभी चालु है। लेकिन ये रेस्टोरेंट बॉम्बे की कल्चर के हिस्से हैं। बस्तानी जब बंद हुआ तो कलकत्ता के डेली टेलीग्राफ से ले लेकर मुम्बई के टाइम्स आफ इण्डिया तक ने उसके बारे लिखा। मशहूर कवि , नसीम एज़्कियेल ने बस्तानी में लगे एक बोर्ड के बारे में एक चर्चित कविता लिखी थी।
वहीँ एक बार रेस्टोरेंट के मैनेजर ने लोगों से कहा ,
" आज लोकल चर्चगेट के आगे नहीं जायेगी। "
लोगों में पहले तो खलबली मच गयी , फिर जब लोगों को इस मजाक का अहसास हुआ की लोकल तो चर्चगेट के आगे जाती ही नहीं , वो टर्मिनल स्टेशन है। मुस्कराते हुए लोग फिर टेबल पर बैठ गए और ईरानी चाय और ब्रुन मस्का के आर्डर देने लगे।
लोकल ट्रेन , चर्चगेट स्टेशन मुम्बई की जिंदगी का हिस्सा है।
लेकिन चर्चगेट हमेशा टर्मिनल नहीं था।
वेस्टर्न लाइन जब मुंबई ने 1864 में पहुंची तो पहला टर्मिनस ग्रांट रोड था। लोकल की सर्विस बॉम्बे में १८६७ में शुरू हो गयी थी। मैरीन लाइंस के पास एक बैकबे स्टेशन था वहां से। १८६७ में बैकबे -विरार सर्विस भारत की पहली सब अरबन सर्विस थी जो शुरू में एक थी और बाद में ६ तक पहुंच गयी।
चर्च गेट स्टेशन १८७० में बना।
आज भी कई लोग ये सवाल करते है वो चर्च कहाँ है जिसके नाम पर चर्च गेट बना।
वो चर्च है सेंट थॉमस कैथेडरल , हारमिनियन सर्किल के पास।
सेंट थॉमस कैथेड्रल बॉम्बे का पहला एंग्लिकन चर्च है जिसका निर्माण १७१८ में पूरा हुआ। उस समय ईस्ट इण्डिया कंपनी ने अपने सेटलमेंट की सुरक्षा के लिए फोर्ट बना रखा था , जिसमे तीन गेट थे , बाजार गेट , अपोलो गेट और चर्च गेट. जो गेट फोर्ट से बाहर निकलने के लिए कैथेडरल के पास था वो चर्च गेट कहा जाता था और उसके पश्चिम का पूरा इलाका चर्च गेट के नाम से जाना जाता था।
चर्च से पश्चिम की ओर जाने वाली सड़क ( जहाँ अभी इरोस सिनेमा हाल , पश्चिम रेलवे मुख्यालय है ) जो मैरीन ड्राइव तक अभी जाती है ( उस समय या पूरा हिस्सा समुद्र था और १९२५-३० के रिकेल्मेशन में बना ), चर्च गेट स्ट्रीट के नाम से जाना जाता है। इस का नाम , जैसे बाकी सड़कों का नाम बदला , अब बदल कर , वीर नरीमन रोड कर दिया गया है। चर्च गेट स्टेशन, इस इलाके में और चर्च गेट स्ट्रीट पे होने के कारण , चर्च गेट कहलाया।
इसकी बिल्डिंग का स्वरूप भी बार बार बदला। पहले ये स्विस शैलेट शैली में बना था। और इस शताब्दी के शुरू में अपने वर्तमान रूप में आया।
चर्च गेट के बाद कोलाबा टर्मिनस बना १८७३ में , और १९३० तक , लोकल और मेनलाइन की सभी गाड़ियां , कोलाबा ( वुडहाउस रोड ) तक जाती थीं। लेकिन रिकेल्मेशन के चलते , ( जिसमें मैरीन ड्राइव बना ) कोलाबा की सर्विसेज बंद कर दी गयीं , चर्चगेट लोकल ट्रेनों के लिए टर्मिनस बन गया और एक नया टर्मिनस बॉम्बे सेंट्रल बना , मेन लाइन गाड़ियों के लिए।
इस समय वेस्टर्न लाइन पर ( चर्च गेट -विरार ) के बीच करीब ३५-३६ लाख लोग रोज यात्रा करते हैं।
चर्च गेट से ही ५ लाख लोग यात्रा करते हैं। सुबह ४ बजे से रात साढ़े बारह बजे तक अनवरत गाड़ियां चलती हैं।
साढ़े पांच बजे शाम के आस पास दो मोटरमैन , चर्च गेट स्टेशन में दाखिल हुए , पश्चिम की ओर से , सूर्योदय ग्रॉसरी स्टोर की ओर से। ये एक सामान्य सी बात थी , क्योंकि चर्च गेट स्टेशन के पश्चिम में ला कालेज के पास ही पश्चिम रेलवे का आफिसर रेस्ट हाउस है।
उसके दूसरी मंजिल पे मोटरमैन रेस्ट रूम है। रात में या दो लोकल ट्रेनों के बीच उनके आराम करने का इंतजाम यहीं है। इसलिए वहां से मोटर मेन ( लोकल ट्रेनों के ड्राइवरों को मोटरमेन कहते हैं ) आते जाते रहते हैं।
चर्च गेट स्टेशन पर अधिकतर कम्यूटर्स जो फोर्ट , कोलावा , कफ परेड, मंत्रालय इत्यादि में काम करते है वो सबवे से आते है , जो अंदर से सड़क पार कर इरोस सिनेमा और पश्चिम रेलवे के मुख्यालय साइड से जुड़ा होता है। इसके अलावा , पश्चिम और पूरब में भी कई द्वार है , जिनसे मैरीन ड्राइव, आस पास के कालेजों , आयकर और एक्साइज विभाग के लोग आते हैं।
सुबह और शाम इस स्टेशन पर दस पंद्रह हजार लोग चढ़ते उतरते रहते हैं और हर बीस तीस सेकेण्ड पे कोई नई कोई लोकल ट्रेन हजारों यात्रियों को चढ़ाती उतारती रहती है।
साढ़े पांच बजे शाम के आस पास दो मोटरमैन , चर्च गेट स्टेशन में दाखिल हुए , पश्चिम की ओर से , सूर्योदय ग्रॉसरी स्टोर की ओर से।
ये एक सामान्य सी बात थी , क्योंकि चर्च गेट स्टेशन के पश्चिम में ला कालेज के पास ही पश्चिम रेलवे का आफिसर रेस्ट हाउस है। उसके दूसरी मंजिल पे मोटरमैन रेस्ट रूम है। रात में या दो लोकल ट्रेनों के बीच उनके आराम करने का इंतजाम यहीं है। इसलिए वहां से मोटर मेन ( लोकल ट्रेनों के ड्राइवरों को मोटरमेन कहते हैं ) आते जाते रहते हैं।
चर्च गेट स्टेशन पर अधिकतर कम्यूटर्स जो फोर्ट , कोलावा , कफ परेड, मंत्रालय इत्यादि में काम करते है वो सबवे से आते है , जो अंदर से सड़क पार कर इरोस सिनेमा और पश्चिम रेलवे के मुख्यालय साइड से जुड़ा होता है। इसके अलावा , पश्चिम और पूरब में भी कई द्वार है , जिनसे मैरीन ड्राइव, आस पास के कालेजों , आयकर और एक्साइज विभाग के लोग आते हैं। सुबह और शाम इस स्टेशन पर दस पंद्रह हजार लोग चढ़ते उतरते रहते हैं और हर बीस तीस सेकेण्ड पे कोई नई कोई लोकल ट्रेन हजारों यात्रियों को चढ़ाती उतारती रहती है।
इस समय क्योंकि , लोकल ट्रेनों की संख्या पीक पर होती है , मोटरमैन का आना जाना भी बढ़ा रहता है।
दोनों मोटर मैन, मेन हाल से होतें हुए , उत्तर की और जहाँ लोकल ट्रेनों के प्लटेफॉर्म हैं उधर बढे।
उस के आखिरी सिरे पे एक सीढ़ी ऊपर की ओर जाती है , जहाँ लाबी है।
उसी लाबी में मोटरमैन , गार्ड ड्यूटी ज्वाइन करते हैं वहां टॉयलेट , और कुछ रेस्टिंग फैलसिलिटीज भी हैं।
शाम 5. 33 - दोनों मोटरमैन , एक साथ रेस्ट रूम में पहुंचे।
शाम 5. 34 दोनों धर दबोचे गए ,
मान लें की ये दोनों नहीं दबोचे जाते तो घटना क्रम क्या होता।
5. 35
दोनों तैयार हो के बाहर निकलते। एक की जिम्मेदारी टार्गट्स की सिकुयोरिटी और अप्रोचेज को न्यूट्रलाइज करने की थी और दूसरे की अटैक की। पहला वाला भी अपना काम कर के अटैक के काम में शामिल हो जाता।
5. 36 -एक में लाबी में व्हाइट स्मोक के दो हैंड ग्रेनेड फेंके , एम 83 . लाबी में सफेद धुँआ भर गया और दो मिनट के लिए कुछ भी दिखना असंभव था।
एम 83 स्मोक ग्रेनेड उसने नीचे और ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पे भी फेंके। और वहां भी पूरा धुंआ भर गया। अगले पल उसने बैग से साइक्लोसरिन गैस के दो कनैस्टर निकाल के लाबी में लुढ़का दिए और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया।
साइक्लोसरीन गैस , सरीन गैस , जिसका इस्तेमाल जापानी आतंकवादियों ने सब वे अटैक में किया था , उससे भी दो गुना ज्यादा जहरीली है। ये एक नर्व एजेंट है जो नर्व सेल्स का काम रोक देती और सबसे पहले इसका असर सांस लेने पे पड़ता है। कहा जाता है की सद्दाम हुसेन ने काफी मात्रा में इस गैस का निर्माण करवाया था। इस का असर एक मिनट में शुरू हो जाता है और डेढ़ मिनट के अंदर लोग बेहोश हो जातें हैं।
ये गैस कनिस्टर डिलेड डिवाइस के साथ थे और फेंके जाने के 50 सेकेण्ड बाद इन का असर शुरू होता। इसलिए जब तक लाबी के अंदर स्मोक गैस का असर कम होता, साइक्लोसारिन का असर शुरू हो जाता।
लाबी को न्यूट्रलाइज करने के लिए उन्होंने ग्रेनेड या गोलियों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया , की इससे मुख्य हमला शुरू होने से पहले ही सिक्योरिटी एजेंसीज अलर्ट हो जातीं। और इससे साइलेंटली उन्होंने , एक ऐसे आफिस को जो उनके अटैक सेण्टर के पास था , बिना शोर के न्यूटरलाइज कर दिया।
5 37 -जिसने लाबी को न्यूट्रलाइज किया था , उसी ने सीढ़ियों से चढ़ते हुए सेमटेक्स की दो पतली पट्टियां सीढ़ी पे चिपका दी थीं , अलग अलग जगहों पे।
और उसने रिमोट से उसे डिटोनेट कर दिया।
जिस सीढ़ी से वो चढ़ के आये थे , दो तिहाई टूट गयी।
अब उनके पास सीधे अप्रोच असंभव था। और वह स्टेशन से एक मंजिल ऊपर एक गैलरी ऐसी जगह में थे जहाँ से उनके लिए अटैक आसान था , लेकिन अब उन तक पहुँचना लगभग असंभव था।
5. 36 - दूसरे ने लाबी के सामने गैलरी से नीचे का जायजा लिया।
उसके ठीक सामने बुकिंग आफिस था , जहाँ शाम को लौटने वाले पैसेंजर्स की लम्बी कतारें थी।
वहीँ पर दो आटोमेटिक टिकट वेंडिंग की मशीने भी थीं। कुछ लड़कियां वहां भी टिकट निकाल रही थी। करीब 200 लोग बुकिंग खिड़कियों और टिकट मशीनो पे खड़े थे। बायीं ओर दो बुक स्टाल थे , एक व्हीलर का और एक आदिवासी संस्थान का।
वहां भी दस पन्दरह लोग खड़े थे। उसके पीछे फूड स्टाल थे जहाँ पर थोड़ी भीड़ थी। क स्ट्रीट आर्ट के एक ग्रुप के लोग गिटार बजा रहे थे और कुछ लोग वहां भी खड़े थे बुक स्टॉल के दूसरी और और उसके पीछे , सब वे और मेन गेट से आते लोगों का हुजूम था। गेट पर एक टेबल पर पुलिस के दो लोग थे।
दायीं और मेटल डिटेकटर लगे थे , जिन्हे पार कर हर मिनट हजारों की तायदाद में लोग प्लेटफार्म की और जा , बल्कि दौड़ रहे थे।
5. 37 उस ने अपना पहला निशाना , छत पर लगे , एक घुमते कम से कम 100 किलोग्राम वजन के , एक एडवरटाइन्जिंग डिवाइस पे लगाया , सिंगल शॉट और वो नीचे आकर गिर पड़ा।
कुछ लोग उसके नीचे दब गए। गिटार सुनती , बुक स्टाल के पास खड़े लोग और ट्रेनों की और दौड़ते लोग एक पल के लिए रुक के वहीँ देखने लगे।
और मेन अटैक शुरू हो गया।
और उसने टाइप 56 II असाल्ट राइफल निकाल के ताबड़ तोड़ गोलियां चलानी शूरु कर दी। उसने पहले , हाल में गिरे बड़े शीशे के गोले ऐसे एडवर्टिजमेंट डिवाइस के आस पास खड़े , लोगों को टारगेट किया और फिर बुकिंग आफिस के सामने खड़े लोगों पर २० सेकेण्ड लगातार फायर किया और और फिर मेटल डिटेकटर से होकर जाते लोगों पे आर्क के फार्म में निशाना बनाया।
टाइप 56 एक चीनी असाल्ट राइफल है , जो रशियन एके 47 की कापी है।
लेकिन 56 II इसका इम्प्ररूव्ड वर्जन है। इसकी साइज छोटी है और एक्यूरेसी बेहतर है। चीन में ये अधिकतर एक्सपोर्ट के लिए बनायी जाती है और ये करीब 650 राउंड हर मिनट में फायर कर सकती है। इसकी इफेक्टिव रेंज 300 से 400 मीटर है , लेकिन यहाँ तो दूरी मुश्किल से 200 मीटर , ज्यादा से ज्यादा थी। इसलिए ये बहुत घातक थी।
5. 38 - जिस आदमी ने अभी लाबी में स्मोक गैस और साइक्लोसरीन के कनिस्टर फेंके थे और सीढ़ी को उड़ा दिया था , वो भी अटैक में शामिल हो गया।
उसके हाथ में हेक्लर ऐंड कोच एम पी 7 का एक नया मॉडल एम पी 7 ए 1 था।
इसकी साइज बहुत छोटी होती है , इसलिए ये बैग में आसानी से आ गया। इसकी गोलिया क्रिसाट बुलेट प्रूफ वेस्ट , जिसमें 1. 6 मिलीमीटर टाइटेनियम प्लेट और केवलार की २० परतें हो , उसे भी २०० मीटर की दूरी से भी भेद सकती थी। इसे पिस्टल की तरह से चला सकते हैं , लेकिन एक अच्छी असाल्ट राइफल के इसमें सभी गुण है। यह आटोमेटिक मोड़ में करीब ९०० राउंड तक फायर कर सकती है।
अब दोनों ने अलग अलग दिशाएँ सम्हाल ली थी।
एच एंड के ( हेकलर ऐंड कोच ) वाले ने बायीं ओर , जिधर सब वे और में गेट थे उस ओर फायरिंग शुरू की और दूसरे ने जिसके पास टाइप 56 थी , दायीं ओर बुकिंग आफिस , मेटल डिटेकटर और प्लेटफार्म साइड का मोर्चा सम्हाला।
बायीं और वाले ने पहले तो मैन्युअल सेटिंग से टार्गेटेड फायर जिधर सिक्योरिटी फोर्सेज के लोग थे उन्हें एलिमिनेट किया। फिर उसने एक आर्क के फार्म में पश्चिम के मेन गेट से सब वे की ओर से होते हुए पूरब के गेट की और फायरिंग शुरू कर दी।
5. 39 - दोनों ने मिलाके एक मिनट में करीब 1200 राउंड फायर कर दिए थे। मेन हाल में बॉडीज , घायल लोग पड़े थे। लोग फायरिंग के सेंटर से दूर , या तो सब वे की ओर या मेटल डिटेकटर के पीछे , प्लेटफार्म की और भाग रहे थे और वहां या तो ट्रेन में छुप रहे थे या वहां के गेट से बाहर की ओर निकल रहे थे।
प्लेटफार्म पे उपस्थित सिक्योरिटी फोर्सेज , मेटल डिटेकटर के पीछे से पोजीशन ले रही थीं।
पहले आदमी ने दो स्मोक बॉम्ब के कैनिस्टर , मेन हाल में फेंके।
एक मेटल डिटेक्टर के पास और दूसरा , सबवे और गेट के बीच। पहले का असर ये हुआ की सिक्योरटी फोर्सेज के लिए टारगेट असेसमेंट करना मुश्किल हो गया।
और वो मेटल डिटेक्टर के पीछे मोर्चा ले के खड़े रहे।
दूसरा जो लोग , प्लेटफार्म पे खड़ी गाड़ियों की ओर भाग रहे थे , धुंए में उनके लिए भागना मुश्किल हो गया। यही हालत सबवे की ओर भागने वालो की हुयी।
दूसरे आदमी ने दायीं ओर आर्क बना के फायर करना जारी रखा।
हर 10 सेकेण्ड के बाद , वो पांच सेकेण्ड मेटल डिटेक्टर की ओर डायरेकेटेड फायर करता। जिससे प्लेटफार्म पे उपस्थित सिक्योरटी फोर्सेज का में हाल में आना लगभग असंभव हो गया था।
एक मिनट तक दोनों सिंक्रोनाइज्ड फायरिंग करते रहे।
5. 40 - पहले आदमी ने दो पावरफुल हैण्ड ग्रेनेड सब वे की और फेंके।
ये हैंड ग्रेनेड एम 67 फ्रेग्मेंटेशन हैण्ड ग्रेनेड थे , जिनका इस्तेमाल अमेरिकी सेना , अफगानिस्तान में कर रही थी। इसके पांच मीटर के दायरे में कोई नहीं बच सकता और १ ५ मीटर तक के लोगों के मारे जाने की संभावना होती है।
इसके शार्पनेल २५० मीटर दूर तक जाते हैं। शर्पेनेल का डिस्ट्रिब्यूशन , यूनिफार्म होता है। इसमें ५ सेकेण्ड की डिलेड डिवाइस होती है।
उस समय बहुत से लोग सब वे की ओर भाग रहे थे या आसपास की दुकानो में छिप रह थे। दोनों हैण्ड ग्रेनेड एक दूसरे से दस मीटर के दूरी पे गिरे जिससे , सब वे के लोग और दुकानो में छिपे लोग भी मारे गए या गंभीर घायल हुए।
ग्रेनेड फेंकने के बाद पहले आदमी ने दूसरे आदमी की जगह ले ली और अकेले वो पूरा मेन हाल ऊपर से कवर कर रहा था।
अब वह जमीन पर गिरे लोगों पे फायर कर रहा था या , सामने की ओर के आफिस में। हर २० सेकेण्ड के बाद वो दस सेकेण्ड का फायर प्लेटफार्म की ओर कर रहा था , जिधर सिक्योरिटी फोर्सेज के लोग थे।
दूसरे आदमी ने अब गैलरी में उत्तर दिशा की ओर लगे कांच को तोड़ दिया था।
यहाँ से प्लेटफार्म और वहां खड़ी लोकल ट्रेने दिखती थी। वहां से उसने अपनी टाइप 56 असॉल्ट राइफिल से 40 सेकेण्ड तक लगातार फायरिंग की। प्लेटफार्म पे खड़े लोग , गेट से बाहर भागते लोग सभी उसका शिकार बने।
5 41 - 5 43 -
दोनों ने कन्टीन्यूअस फायरिंग जारी रखी। अब फायरिंग रुक रुक के बर्स्ट में हो रही थी।
एक जब मैगजीन चेंज करता तो दूसरा , फायरिंग कर के उसे कवर करता।
इसी बीच सिक्योरिटी फोर्सेज की काउंटर फायरिंग भी शुरू हो गयी। उनकी राइफल और कारबाइन की आवाजें सुनाई देती। लेकिन वो सीधे उनकी फायरिंग के रेंज में नहीं आ पा रहे थे।
दो मिनट में दोनों ने मिल के हजार से ऊपर राउंड फायर किये। मेन हाल में कोई नहीं बचा था नहीं प्लेटफार्म में। लोग या तो भाग गए थे या आड़ में छिपे थे।
दूसरे आदमी ने , जो टूटे हुए शीशे के पीछे से , प्लेटफार्म की ओर फायरिंग कर रहा था , उसने ग्रेनेड लांचर अपनी रायफल पे लगा लिया।
उसने पहले तीन इन्सेडियरी बॉम्ब प्लेटफार्म की और फेंके , जहाँ सिक्योरिटी फोर्सेज थी। लेकिन उसका टारगेट , फूड स्टाल्स थे जो लकड़ी के बने थे और बहुत आस पास पास थे।
लकड़ी , पेंट , कुकिंग गैस सिलिन्डर , थोड़ी ही देर में उस सारे इलाके में आग थी। एक इनसेंडियरी बॉम्ब लोकल ट्रेन पे भी लगा और उस में भी आगा लग गयी।
फिर ग्रेनेड लांचर से उसने डीप पेंन्ट्रेशन ग्रेनेड लांच करने शुरू किये , जिससे न सिर्फ लोकल ट्रेन की बॉडीज को पेन्ट्रेट कर के ग्रेनेड लगे बल्कि , उसने स्टेशन के ट्रेनों के चलने किए लिए लगे तारों , उनके इन्सुलेटर और सपोर्ट पे फायर किया।
मिनट भर में वो चार पांच जगह से टूट गए और अब स्टेशन पे खड़ी लोकल ट्रेनों का चर्च गेट से निकलना असंभव हो गया। आग , लोकल के अंदर ग्रेनेड और बिजली के तारों के टूटने से पूरी अफरा तफरी मच गयी।
5. 43 - 5 45 -
पहले आदमी ने भी अब ग्रेनेड लांचर निकाल लिया।
मेन हाल में अब कोई टारगेट बचे नहीं थे। . जो लोग थे वो स्टालों की पीछे , आफिसों में छुपे हुए थे और सिक्योरिटी फोर्सेज के आने का इंतजार कर रहे थे। और असाल्ट राइफल की गोलियों से उन्हें हिट करना आसान नहीं था।
उस के पास एम 320 ग्रेनेड लांचर था जो स्टैंड अलोन मोड़ में भी काम करता था और इस से ५-७ राउंड हर मिनट में चलाया जा सकता था।
इसमें 40 x 46 एम एम के ग्रेनेड के रांउड इस्तेमाल होते हैं।
पहले दो ग्रेनेड उसने सामने बुकिंग आफिस में लांच किये और उसके बाद दो उसके ऊपर के आफिस में। और जो दीवारे , शीशे टूटे , उसको टारगेट करके फिर असाल्ट राइफल से ताबड़तोड़ गोलिया 10 सेकेण्ड तक चलायीं , जिससे अगर ग्रेनेड से जो लोग बचे हों वो गोलियों का शिकार हो जाएँ।
और उसके बाद फिर उसने ग्रेनेड लांचर का निशाना , मेटल डिटेक्टर की और किया जिसकी आड़ में सिक्योरिटी फोर्सेज के लोग थे। और चार ग्रेनेड उधर लांच किये। ये ग्रेनेड पैराबोला के रूप में जाता था , और एक हाई एक्सप्लोसिव की तरह , 51 mm स्टील प्लेट को भी तोड़ सकता था।
इसका इस्तेमाल बंकर बस्टर के तौर पे किया जाता था। यह मैसनरी की मोटी दीवाल को भी तोड़ सकता था।
जिस समय वो आदमी ग्रेनेड लांच कर रहा था , बीच बीच में में दूसरा आदमी आकर उसे अपनी टाइप 56 से कवरिंग सपोर्ट कर रहा था।
उन लोगों को यहाँ आये ९ मिनट और हमला शुरू किये ७ मिनट हो चुके थे।
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