Saturday, May 31, 2014

FUN-MAZA-MASTI कामोन्माद -12

FUN-MAZA-MASTI
 कामोन्माद -12

 हांलाकि संध्या के मुख में मेरा लिंग था लेकिन फिर भी मुझे उसके गले से निकलती संतुष्टि की सिसकारी सुनायी दी। उसने कुछ देर तक तो शिश्नाग्र को चाटा और चूसा, लेकिन जैसे जैसे वह चरम सुख तक पहुँचने लगी, उसकी क्रिया धीमी पड़ गयी। कुछ देर में उसका सर पीछे की तरफ लुढ़क गया। संध्या अपनी कामेन्द्रियों पर होने वाले इस इस भारी भरकम हमले से अभिभूत हो गयी। वह इस समय मुंह से साँसे भर रही थी। उसके लिए यह निश्चित रूप से स्वर्ग की सैर करने जैसा था।

मुझे वैसे भी अपना वीर्य संध्या की योनि के अंदर डालना था - याद है न, उसकी माँ का आदेश था! अपने स्खलन के तुरंत बाद ही संध्या ने मेरा लिंग अपनी कोमल उँगलियों से पकड़ लिया था। मेरे उन्माद की भी यह सीमा ही थी। अगर वह आठ-दस बार मेरे लिंग को दबा ही देती तो मैं स्खलित हो जाता। अतः मैं जल्दी से अपनी अवस्था से हट गया और वापस पहले जैसे ही उसके सामने बैठ गया। मैंने कुछ एक क्षण गहरी साँसे भरी, जिससे की अपने लिंग पर मुझे और व्यापक नियंत्रण मिल सके।

इसी विराम वेला में मैंने संध्या को देखा - एक तरुण, विवाहित, और सम्भोग-तृप्त हिन्दू नारी का सौंदर्य अतुलनीय होता है। संध्या का दोषरहित, सुन्दर और नितांत नग्न शरीर - उसकी छाती पर सजे हुए प्यारे स्तनों का जोड़ा, एकहरा शरीर, सुडौल नितम्ब, और स्वस्थ, नरम जांघें (जो इस समय मेरे दोनों तरफ फैली हुई थीं); हाथों में रची मेहंदी और चूड़ियाँ, गले में मंगलसूत्र, कानो में कर्णफूल, नाक में एक छोटी सी चमकती हुई कील, मांग में नारंगी सिन्दूर और फैले हुए बाल - वह इस समय स्वयं रति देवी का ही रूप लग रही थी।

मैंने उसका चेहरा अपने दोनों हथेलियों में लेकर उसके होंठों पर एक भरपूर चुम्बन दिया और कहा, "वाह! तुम एक बहुत खूबसूरत लड़की हो!" अब तक मेरी साँसे मेरे नियंत्रण में आ गयी थीं और मेरा लिंग भी। उसकी उत्तेजना बरकरार थी लेकिन बेकाबू नहीं। फिर मैंने संध्या कि टाँगे सावधानी से अलग करीं और जगह बनायी और अपने लिंग को हाथ में लेकर उसकी योनि में धीरे धीरे सरका दिया। लिंग का सर अपने गंतव्य में प्रवेश कर चुका था।

"आर यू रेडी?" मैंने संध्या से पूछा। उसने तेजी से सर हिला कर हामी भरी।

 योनि बुरी तरह से चिकनी थी, अतः लिंग को कोई भी प्रतिरोध नहीं मिलना था। वैसे भी संध्या अभी अभी संपन्न हुए सम्भोग कि पृष्ठभूमि में लस्त पड़ी हुई थी। उसको जागृत करने के लिए इससे अच्छा तरीका और नहीं हो सकता था। मैंने अपने लिंग को एक तेज़ धक्का दिया - दो बातें एक साथ हुईं - एक तो संध्या के मुख से एक लम्बी सीत्कार निकल गयी और दूसरा, चूंकि मेरा लिंग अभूतपूर्व तरीके से स्तंभित था, इसलिए संध्या के योनि मार्ग ने अत्यंत शानदार तरीके से मेरे लिंग कि पूरी लम्बाई को जकड लिया। मैंने बिना रुके धक्के लगाना आरम्भ कर दिया और नीचे से संध्या ने अपने धक्को से उनका मिलान करना। मैंने संध्या के चेहरे को देखा। उसकी आँखें बंद थीं और उसके होठ कामुकता से पृथक थे। हम दोनों ही इस रति-क्रिया का बराबर आनंद ले रहे थे।

संध्या अपने नितम्बो को इस समय न केवल ऊपर नीचे, वरन, एक गोल गति में भी घुमा रही थी - इससे मेरे लिंग का दो-आयामी दोहन होने लगा था। इससे उसके भगनासे का भी बराबर उत्तेजन हो रहा था। उसकी गति भी बढ़ने लगी थी - सम्भवतः वह दूसरी बार स्खलित होने वाली थी। यह तो एकदम अद्भुत घटना थी। लेकिन मैंने सपने हाथों से उसके नितम्बो को पकड़ कर उसकी गति को थोडा नियंत्रण में लाया। मैं चाहता था कि हमारा यह सम्भोग थोडा और देर तक चले। उसकी गति पर तो मैं बस कुछ ही पल ठहर पाता। कुछ देर तक हम नियंत्रित रहे लेकिन पुनः संध्या कि गति तेज हो गयी - इस बार मैंने उसको रोका नहीं, बल्कि मैंने खुद भी अपनी गति बढ़ा दी।

"कम ऑन स्वीटी! कम विद मी!" मुझे मालूम पड़ गया था कि अब हम दोनों ही स्खलन के बेहद करीब हैं। अतः मेरी इच्छा यह थी कि हम दोनों साथ साथ आयें।

"कम ऑन गर्ल! कम फॉर मी!"

मैंने यह बहुत ऊंची आवाज़ में बोला था। भगवान् ही जाने कि बगल के कमरे में बैठे मेरे ससुराल वाले क्या सोच रहे होंगे। मेरी हर 'कम ऑन' पर संध्या के धक्के और तीव्र हो जा रहे थे - वह मेरा मंतव्य समझ रही थी। उसके उसके नाखून मेरी पीठ में गड़ने लगे थे - लेकिन मुझे यह पीड़ा भी इस समय मनोहर लग रही थी।


 अचानक ही मैंने उसकी योनि में एक बदलाव महसूस किया - उसकी दीवारें तेजी से संकुचित / कम्पित होने लगीं और योनि रस की एक धारा मेरे लिंग को भिगोने लगी। पहले संध्या ने हलकी हलकी सिसकारी भरी और फिर एक बड़ी सांस भरी। उसके बाद एक लम्बी "आँह" जैसी आवाज़ आयी। मुझे अच्छा लगा कि संध्या अब अपने रति-निष्पत्ति के आनंद का निर्लज्ज्ता से आस्वादन करने लगी है। उसके बाद कोई चार पांच धक्कों में मेरे स्खलित वीर्य का पहला माल बड़ी प्रचंडता से मेरे लिंग से निकल कर संध्या की गहराई में चला गया। संध्या ने भी इसको महसूस किया होगा, क्योंकि उसी के साथ उसने भी उच्च स्वर में सांस भरी। संध्या कि रति निष्पत्ति का उन्माद अभी बस शुरू ही हुआ था - उसने अपने दोनों पैर मेरे इर्द-गिर्द कस कर जकड लिए और पूरे जोश से धक्के लगाने लगी। उसके हर धक्के के साथ मैंने वीर्य का कुछ कुछ माल उसकी योनि में छोड़ा। उसकी योनि मेरे लिंग पर कुछ इस तरह संकुचित को रही थी जैसे उसको पूर्णतयः दुह लेगी - और उसने किया भी वही। कुछ देर ऐसे ही करने के बाद हम दोनों पूरी तरह से निढाल पड़ गए।

मैं संध्या के बगल ही गिर गया - उसके शरीर कि तपन को मैं महसूस कर पा रहा था। इस ठंडक में भी हम दोनों का शरीर पसीने से ढक गया था। हम दोनों ही जम कर हांफ रहे थे। मैंने उसको अपनी बाँह के घेरे में लेकर कस के पकड़ लिया। हम न जाने कब तक ऐसे ही पड़े रहे, और जब चेतना लौटी तो हम लोग पुनः एक दूसरे को चूमने लगे - लेकिन इस बार कोमलता से।

अंततः मैंने उसके कोमल होंठो को चूमना छोड़ कर उससे पूछा, "सो गर्ल, डू यू लाइक मेकिंग लव?"

संध्या ने थोड़ी देर सोचकर कहा, "यस, ओह यस!" उसकी आँखें चमक रही थीं। संध्या को इस तरह से खुश देखना बहुत ही सुखदाई था।








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