Friday, May 23, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--119

FUN-MAZA-MASTI

   फागुन के दिन चार--119          
गतांक से आगे ...........


 जंगबहादुर बाहर ,

कुछ पल उन्होंने खुली हवा में सांस ली होगी रंजी घुटने के बल बैठ गयी , येकहते 'कल का कुछ अधूरा काम पूरा करना है। "

और अगले पल उसकी जुबान मेरे खुले सुपाड़े को सपड सपड चाट चाट रही थी।

बदमाश , शरारती वो। उसकी नटखट नाचती किशोर आँखे मेरी आँखों को चिढ़ा रही थीं।

उसने दोनों हाथो से मेरे लिंग के बेस को पकड़ रखा था और फिर अपनी जीभ की नोक से , सिर्फ जीभ की टिप से , सुपाड़े के पी होल , में डाल के सुरसुरी करनी शुरू कर दी।

मेरी मस्ती से हालत ख़राब हो गयी।

लेकिन वो शोख आज जान लेने पे तुली थी।
उस की नाजुक उंगलिया हलके हलके मेरे लिंग को सहला रही थीं , दबा रही थीं। और अब उन्होंने हलके से मेरी बाल्स को भी छेड़ना शुरू कर दिया था।

मैंने मस्ती में आँखे बंद कर ली।
और उसने एक पूरा सुपाड़ा गड़प किया और क्या जोश से चुभला रही थी चूस रही थी। और साथ में एक हाथसे हलके हलके मुठिया रहा था /

वो पूरा असर गजब का था।

बार बार जिस तरह से लटें उसके गोर गुलाबी चेहरे पे आ जाती थीं और उन्हें वो चेहरा झटक के हटाती थी , रुक रुक के शोख निगाहों से मुझे चिढ़ाती थी ,टॉप से खुले उसके उभार जिस तरह ऊपर नीचे हो रहे थे, और साथ में उसकी मीठी जुबान , जिस मस्ती से लिंग को नीचे से चाट रही थी , दोनों रसीले होंठों से रगड़ रगड़ के लंड अंदर बाहर हो रहा था ,

और सबसे बढ़ कर जिस तरह वो चूस रही थी , अगर उसके खिलाफ इलेक्शन में वैक्यूम क्लीनर भी खड़ा होता तो उसकी जमानत जब्त हो जाती।

मेरी हालत ख़राब हो रही थी।

पतवार मैंने उसके हाथों में या ठीक से कहूँ तो उसके होंठों के बीच छोड़ दी थी।

और वह बहुत तेजी से उसे चला रही थी

लेकिन मैं कितनी देर अपने को रोकता।

जल्द ही मुख चूसन के साथ मुख चोदन भी शुरू हो गया।

मैंने रंजी के सर को झुक के दोनों हाथो से पकड़ा और जोर जोर से अपने लंड को अंदर बाहर , अंदर बाहर करने लगा।

और वो शोख कली भी , अपने होंठों से रगड़ के जुबान के टिप से उसे छेड़ कर और जोर जोर से चूस के मेरा साथ दे रही थी।

उसका एक हाथ मेरे लंड के बेस पे था तो दूसरा मेरे चूतड़ पे और वो जोर जोर से मुझे अपने अंदर पुल कर रही थी।

आग दोनों तरफ बराबर लगी थी।

मुझसे अब नहीं रहा गया और बाकि जब मैंने लंड थोड़ा बाहर निकाला , तो उसका सर पकड़ के पूरी ताकत से एक जोरदार धक्के के साथ , पूरा अंदर ठोंक दिया।

मेरा सुपाड़ा अब उसके गले के अंदर धंसा था। पूरा बालिश्त भर का लंड अंदर था और वो बुरी तरह चोक कर रही थी। सिर्फ गों गों की आवाजें निकल रही थीं। उसकी बड़ी बड़ी आँखे उबली पड रही थीं। और गाल पूरा फूला फूला था।

लेकिन मैंने एक सूत भी लंड बाहर नहीं निकाला और पूरी ताकत से और ठूंस दिया.
मेरे लंड का बेस , रंजी के भीगे , प्यासे होंठो से चिपका हुआ था और मेरे बाल्स उसकी ठुड्डी से टकरा रहे थे। उसके नथुनो में मेरे लंड की खुशबु भरी हुयी थी।

उसके चेहरे से लग रहा था उस पे क्या गुजर रही थी।

लेकिन मैं जरा सा भी टस से मस नहीं हुआ।

उसके माथे पे पसीने की बूंदे चुहचुहा रही थीं।
साँसे लम्बी हो रही थीं।

ये उसके लिए डीप थ्रोट का पहला मौका था। और वो भी पूरे बालिश्त भर के लंड का।

उसने फिर हलके हलके चूसना शुरू किया , उसके जबड़े में जुम्बिश हुयी। होंठ लरज रहे थे.

और मैंने भी एक दो सेंटीमीटर लंड बाहर निकाला , और फिर दरेरते , रगड़ते , रंजी के मखमली मुंह को चोदना शुरू किया।

और कुछ ही देर में उसके चूसने की रफ्तार भी बढ़ गयी और मेरी चोदने की भी , फिर तो सुपाड़ा होंठो तक निकाल के जो मैं धक्का मारता ,तो सीधे गले तक छीलता रगड़ता।


खूब मजा आ रहा था।

लेकिन कुछ देर में रंजी के गुलाबी मुलायम गाल थक गए और उसने लंड को बाहर निकाल लिया।



लेकिन कुछ देर में रंजी के गुलाबी मुलायम गाल थक गए और उसने लंड को बाहर निकाल लिया।
लेकिन मेरे लंड को आराम नहीं था।

रंजी ने प्यार से उसे पकड़ के अपने रेशमी गालों पे रगड़ा , प्यार किया , दुलार किया।
और थोड़ी देर में , उसे जुबान बाहर निकाल के वो जोर जोर से लिक करने लगी।

थोड़ा सा उसने लंड के ऊपर स्पिट किया और फिर जीभ में लगा के ,सुपाड़े से लंड के बेस तक चाटने लगी , किस करने लगी।

और मैं गनगना रहा था मस्ती से कांप रहा था।

उसकी आँखे मुझे देख के हाई फाइव करती , कभी शरारत से मुस्करा देतीं , तो कभी आँख मार के मुझे और पागल कर देती।
और उसके बाद जो उसने किया मैं सोच नही सकता था।
उसने शरारत से मेरी ओर देखा , मेरे बाल्स को किस किया , फिर एक बाल को मुंह में ले के चूसने चुभलाने लगी।

इत्ते प्यार से कोई लड़की क्या रसगुल्ला चूसेगी।

और साथ में उसकी कोमल उंगलिया मेरे बौराये , पगलाए लंड को ले के हलके हलके मुठिया रही थीं।

कुछ देर तक इस तरह तंग करने के बाद , उसने खूब बड़ा सा मुंह खोला और जुबान बाहर , जैसे डाकटर के यहाँ कोई आआआ करे बस उसी तरह,


इत्ता बड़ा दावतनामा , और कोई मना करे।

बस दोनों हाथो से सर पकड़ा और हचक के पेल दिया एक झटके में ,

और सीधे सुपाड़ा , गले तक।

कुछ देर वो गों गों करती रही , और फिर जोर से चूसने लगी।
मेरे लिए किसी लौंडिया की लंड चुसाई दो बातों पे डिपेंड करती थी एक तो वो डीप थ्रोट कैसे करती है और मजा देने के साथ मजा कितना लेती है।
डीप थ्रोट में तो रंजी को दस में दस मिलते और साथ ही जिस तरह से उसके गालों पे ख़ुशी नाच रही थी , आँखों में मस्ती झूम रही थी , ये साफ था की उसे भी खूब मजा आ रहा है।

और दूसरी बात थी , मलाई गटकने की। 'स्पिट या स्वालो ' का ऑप्शन ही नहीं था। एक बूँद भी बाहर नहीं जानी चहिये।
और मुझे लग रहा था , मलाई अब निकली तब निकली।

और रंजी भी बिना सुड़के छोड़ने वाली नहीं थी।

लेकिन तब तक ऊपर से गुड्डी की आवाज आई " सब काम वही निपटा लोगी क्या ऊपर लाओ न , अपने माल को "

और रंजी ने सर हटा लिया।

"आज घर पे तुम लोगो का राज है क्या " मैंने मुस्करा के पुछा।
" हाँ एकदम ' खिलखिला के वो बोली। "मेरा और गुड्डी का , सवा चार बजे से सब चले गए अब कल सुबह आएंगे। इसलिए तो बार बार मेसेज भेज रही थी की साढ़े चार पे आ जाओ। "

" आ तो गया मैं " मैंने बोला।
" तो गिफ्ट भी मिला न ," वो सुनयना बोली।

और मेरे तन्नाये लंड को पकड़ के वो ऊपर कमरे में ले गयी जहाँ गुड्डी थी

बस गनीमत थी कमरे में घुसने से पहले हम दोनों ने अपने कपडे ठीक कर लिए।



 रंजी , गुड्डी , और, …



अब तक



कुछ देर वो गों गों करती रही , और फिर जोर से चूसने लगी।
मेरे लिए किसी लौंडिया की लंड चुसाई दो बातों पे डिपेंड करती थी एक तो वो डीप थ्रोट कैसे करती है और मजा देने के साथ मजा कितना लेती है।
डीप थ्रोट में तो रंजी को दस में दस मिलते और साथ ही जिस तरह से उसके गालों पे ख़ुशी नाच रही थी , आँखों में मस्ती झूम रही थी , ये साफ था की उसे भी खूब मजा आ रहा है।

और दूसरी बात थी , मलाई गटकने की। 'स्पिट या स्वालो ' का ऑप्शन ही नहीं था। एक बूँद भी बाहर नहीं जानी चहिये।
और मुझे लग रहा था , मलाई अब निकली तब निकली।

और रंजी भी बिना सुड़के छोड़ने वाली नहीं थी।

लेकिन तब तक ऊपर से गुड्डी की आवाज आई " सब काम वही निपटा लोगी क्या ऊपर लाओ न , अपने माल को "

और रंजी ने सर हटा लिया।

"आज घर पे तुम लोगो का राज है क्या " मैंने मुस्करा के पुछा।
" हाँ एकदम ' खिलखिला के वो बोली। "मेरा और गुड्डी का , सवा चार बजे से सब चले गए अब कल सुबह आएंगे। इसलिए तो बार बार मेसेज भेज रही थी की साढ़े चार पे आ जाओ। "

" आ तो गया मैं " मैंने बोला।
" तो गिफ्ट भी मिला न ," वो सुनयना बोली।

और मेरे तन्नाये लंड को पकड़ के वो ऊपर कमरे में ले गयी जहाँ गुड्डी थी

बस गनीमत थी कमरे में घुसने से पहले हम दोनों ने अपने कपडे ठीक कर लिए।




आगे




और गुड्डी ने तुरंत रंजी को काम पे लगा दिया। मैं जो सामान लाया था , वो बैग उसने रंजी को पकड़ा दिया और बोली

" चल , देख जरा लिस्ट से सामान मिला ले , अगर एक भी सामान कम हुआ न , तो इनकी माँ बहन एक कर दूंगी। "

"एकदम , " वो बोली और हंसती , खिलखिलाती , मुझे दिखा के चूतड़ मटकाती बगल के छोटे कमरे में सामान का बैग ले के चली गयी।

और जैसे ही उसे छोटे कमरे का दरवाजा बंद हुआ , गुड्डी ने मुझे बाँहों में भींच लिया , और बोली,

" एक अच्छी खबर के साथ , एक बुरी खबर भी। अच्छी खबर तो तुम्हे नीचे ही मिल गयी होगी , लेकिन बुरी खबर मैं सुना देती हूँ ,"

" क्या है बताओ न "
घबड़ा के मैं अलग खड़ा हो गया।

गुड्डी ने प्यार से मेरे गाल पे एक चपत लगायी। फिर जोर से गाल पिंच कर के बोला ,


" एक रात और बियोग की रात मेरे बालम , लेकिन फिकर नाट , सूद मूल के साथ लौटा दूंगी। "

मैंने उसे फिर बाँहों में भर के जोर जोर से किस करते हुए पुछा , " मूल तो तुम हो और सूद , "

मेरी बात का जवाब मेरी जींस फाड़ते , लिंग को ऊपर से दबा के बगल के कमरे की ओर इशारा करते वो बोली,

" वही तेरी चुदासी बहना , जो अभी गांड मटकाते गयी है इस कमरे में "

और फिर उसने टैब खोल के दिखाया ,

रंजी की एक से एक फोटुएं , क्या किसी टीन पोर्न साईट पे होंगी।

खुद बूब्स पे दबाते , निपल रोल करते और गुड्डी सही कह रही थी। रंजी के आँखों से , चेहरे से चुदाई की प्यास टपक रही थी। एकदम चुदवासी लग रही थी


और उक्से बाद वो बटन दबाती गयी , दबाती गयी ,

एक से एक हाट लेज ,

गुड्डी और रंजी के लिप लॉक्स , रंजी के खड़े मटर के दाने की तरह गोल निपल्स को चूसते , बाइट करते गुड्डी के होंठ।

रंजी के चूत के क्लोज अप्स , एकदम मक्खन। गुलाबी और खूब कसी। दोनों लोवर लिप्स चिपके , कसे जाइए खजाने के दरवाजे सील बंद हों।

फिर उसकी क्लिट पे गुड्डी की ऊँगली।

दरजनो फोटुएं और कुछ वीडियो भी।

गुड्डी ने एक बटन दबाया और सब के सब मेरे मोबाइल पे ट्रांसफर हो गए।

गुड्डी ने फिर मुझे अपनी बाँहो में भींचा और किस कर के बोली ,

' गलती इस की नहीं है , साल्ली मेरी ननदें है ही सब की सब छिनार , भाईचोदी। "
फिर गुड्डी ने और जोड़ा , )शीला भाभी का और उसकी मेरा मतलब मम्मी का असर पूरा था उस पे)

" सिर्फ ननदे ही क्यों सारी ससुराल वालियां , जनम की चुदवासी ,सब की चूत , बुर में चींटे काटते रहते हैं ".
मैंने चिढ़ा के पुछा और ससुराल वाले।


जोर से मेरा गाल काट के वो हंस के बोली ,

" साल्ले , नंबरी बहनचोद , मादरचोद। और एक तो मेरे सामने ही खड़ा है जल्द ही बन जाएगा बहनचोद। और आगे का काम उसकी सास के हवाले। "

फिर कुछ रुक के हंस के बोली,

" ज्यादा बेताब मत हो, कल १२ बजे दिन तक इन्त्जार, बस . उसके बाद , बहन से मिलन होगा, भैया थोडा धीर धरो.

दो बजे दिन से तो कल छिनार योग है , एकदम सही मौका है उस समय अगर , उस छिनार को चोद दोगे न तो बस नम्बरी छिनार बनेगी तुम्हारी ये बहना. पूरे २४ घंटे रहेगा ये.

और उसमें भी कल रात ८ बजे से , , पूरे ८ घंटे के लिये रंडी घडी है. बस , उस समय वो चुदेगी न तो सिर्फ तेरे शहर की नही बल्की नेशनल लेवेल की रंडी बनेगी, तेरी ये रंजी.

और हां, एक और खुश खबरी तुम्हारे लिये, कल तेरी इस प्यारी बहन के जरिये मैने कल ५-६ और मौसेरी चचेरी बहनों और अपनी होनेवाली नन्दों से दोस्ती कर ली. सब की सब फेस बूक पे हैं और एक से एक मस्त माल. मेरी ससुराल तो एक्दम माल गाडी है. अब उन सबो की भी सील खुलवाउंगी तुमसे .

अब एक बार बहन चोद बन ही रहे हो तो अच्छे से बन जाओ न .और घबडाओ मत , सिर्फ टिकोरे वाली या कच्ची कलियां ही नहीं , बल्की तुम्हारे मायके की ३-४ बच्चो वाली की बिल में भी इन्ट्री पक्की है , तुम्हारी, तुम चाहो या न चाहो. "

मेरे लंड को जोर जोर से पैंट के उपर से रगडती वो बोली.

ये सुन के जंगबहादुर और जोर से फुंकार मारने लगे.

और गुड्डी का हाथ और जोर जोर से उसे मलने मसलने लगा.

फिर वो बोली,

" बहन चोद तो मै बनवा दूंगी, तुम्हे और बाकी के चोद मम्मी, मेरी बुआ और शीला भाभी बना देंगी, घबडाओ मत, मेरी कोयी ससुराल वाली नहीं बचेगी तेरे लंड से. चाहे कच्ची कोरी, बस झांट आ रही मेरी ननदें हो या ३-४ बच्चो वालीं, भोंसडी वाली तेरी,... "

फिर मेरे गाल पे जोर से चुम्मी ले के कान में बोली,

’ समझे , मादर चोद . सब मिलेंगी."

मुझे शीला भाभी की बातें याद आ गयी और मम्मी की भी.

" लेकिन सबसे पहले रंजी की " गुड्डी ने जोर से जींस के अन्दर हाथ डाल के लंड को द्बाते हुये कहा .
" हे हे , मुझे कौन याद कर रहा है ." कमरे से बाहर निकलती हुयी रंजी बोली.


लंड रगडना जारी रखे, गुड्डी बोली,

" ये तेरे भैया कम सैयां, तेरे, अपने माल के लिये पागल हो रहे हैं."

रंजी भी , गुड्डी से दो हाथ आगे , उसने भी गुड्डी के साथ सीधे अपने कोमल हाथ मेरे खूंटे पे रखे और जोर से दबा के बोली,


" क्यों सुलगती है तुम्हारी, मेरे प्यारे भैया हैं, ये तो जो चाहें , जब चाहें, जितनी बार चाहें ,..."

और ये कहते हुये ( जिप तो बन्द थी ही नही), उस शोख ने मेरे जंगबहादुर को पिन्जडे से बाहर कर दिया और सीधे लंड रंजी की मुट्ठी में.

उस के किशोर उंगलीयों में मुश्किल से समा रहा था वो मोटा, मुस्टन्डा.

तब तक रन्जी की निगाह खुले टैब पे पडी, जिसमें से उसकी रसीली , गुलाबी परी की तस्वीर झांक रही थी, मुस्करा रही थी.

उसने गुड्डी की ओर आंखे तरेर कर देखा, लेकिन गुड्डी भी कम नही थी.

" मैं तेरे भैया कम यार से कह रही थी, तेरी बहना की गुलाबी परी असल में, इस फोटो से हजार गुना अच्छी है , ना विश्वास हो तो खुद खोल के देख लो
और उसी के साथ , गुड्डी ने रंजी को पलंग पे धकेल दिया और खुद उस के उपर चढ गयी , फिर तो पिलो फाइट , दोनो टीन्स के बीच,

गुड्डी ने एक हाथ से रंजी के दोनो हाथ दबाये और दूसरे हाथ से , उसकी छोटी सी गुलाबी शार्ट नीचे खींच दी.


गुलाबी परी , रंजी की


गुड्डी ने एक हाथ से रंजी के दोनो हाथ दबाये और दूसरे हाथ से , उसकी छोटी सी गुलाबी शार्ट नीचे खींच दी.

और वो मक्खन सी चिकनी , शहद सी मीठी , गुलाबी परी बाहर , उडने को बेताब.

और गुड्डी की बात एक्दम सही थी , पिक्चर से ह्जार गुना हाट लग रही थी, रंजी की चुन्मुनिया.

गुड्डी ने मुझे आंख से इशारा किया ,

मेरी हिम्मत की मैं गुड्डी की, या उसकी मम्मी की, ऊप्स मेरा मतलब मम्मी की किसी बात से इन्कार करुं.

इशारा काफी था और अगले पल मेरे होंठ , रन्जी के निचले होंठो से चिपके थे . चूम रहे थे, चूस रहे थे.

और रंजी मस्ती मे पिघल रही थी, पागल हो रही थी.

गुड्डी भी अपनी होनेवाली ननद का मजा लेने का ये मौका छोडने वाली नही थी. और उसका एक हाथ रंजी की छोटी छोटी चूंची पे , और बाज की तरह , झपट के रंजी के कंचे की तरह कड़ी गोल , निपल , गुड्डी के होंठों के बीच।

थोड़ी देर तक वो चूसती , चुभलाती रही और फिर हलके से काट लिया।

आखिर ननद थी उसकी , इतना हक़ तो था ही।
एक निपल गुड्डी की उँगलियों के बीच और दूसरा होंठों के बीच ,

रंजी जोर जोर से सिसक रही थी , मचल रही थी , उचक रही थी।

और नीचे मैं , रसमलाई का रस ले रहा था।

क्या रस था और क्या रसमलाई थी।

अपने दोनों होंठो से उसके निचले गुलाबी होंठो को , गुलाब की पंखुड़ियों को दबा दबा के मैं चूस रहा था तो कभी जुबान निकाल के ऊपर से नीचे तक चाट रहा था।

और फिर दसहरी आम की दो फांको की तरह मैंने ऊँगली से उसकी चूत के दोनों फांकों को बड़ी मुश्किल से फैलाया , और फिर उसमें अपनी जुबान की टिप घुसेड़ दी।

रंजी की चिकनी चूत में तो जैसे आग लग गयी।

वो अपने मस्त किशोर चूतड़ बार बार ऊपर नीचे करने लगी।
जोर जोर से सिसकियाँ भरने लगी।

गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया , लगे रहो।

मैं लगा रहा। गुड्डी का इशारा भी मेरे लिए हुकुम था।

और जुबान की नोक से चोदता रहा , रंजी की चूत को , जब तक वो पानी से लसलस नहीं हो गयी।
एक्दम लथ पथ हो गयी थी, रंजी.


लेकिन मै चूसता रहा, चाटता रहा , जीभ से उसकी कुंवारी चूत चोदता रहा.

और गुड्डी ने मेरा हाथ खींच के सीधे , रंजी के किशोर के उभारो पे रख दिया .

और मेरा हमला अब दुहरा हो गया , चूत पर होंठ और जुबान और चूंची पे मेरे द्बाते , रगडते , मसलते , हाथ.

लेकि्न गुड्डी भी कम नही थी. वो इतनी आसानी से छोडने वाली नही थी. खास तौर पे जब मामला , मेरा या रंजी का हो.

मेरे कान मे वो फुसफुसा रही थी,


" जानू , मजा आ रहा है न कच्ची कली की चूत में, मेरी ननद की चूत चूसने मे. सोचो न अगर इतना मजा ननद रानी के साथ मिल रहा है तो मेरी सास के भोंसडे को चूसने मे कितना रस मिलेगा ."


बोला गुड्डी ने कान में लेकिन असर सीधे जंगबहादुर पे हुआ .

एक दम पागल, मस्ती में तन्नाया , पूरा कडा.

और जैसे इतना काफी नही था, झुक के गुड्डी ने अपनी नरम हथेली से उसे पकड लिया और आगे पीछे करने लगी.
गुड्डी का हाथ लगे और असर ना हो, फूल के कुप्पा.खूब मोटा.

गुड्डी प्यार से उसे मुठियाने लगी. आगे पीछे आगे पीछे ,

कभी जोर से दबा दे तो कभी सुपाडे को अंगुठे से रगड दे.
मेरी हालत खराब थी और उस जोश का बद्ला रंजी से मैं ले रहा था.

हाथ जो जोबन दमन में लगे थे कभी जोर से उसके कडे कडे निपल फ्लिक करते तो कभी पिंच .
और वो कभी दर्द से चीखती तो , तो कभी मजे से सिसकी लेती .
साथ में उंगलियों से भी जालिम थी, जुबान.

और अब तो उसकी नोक, क्लिट पे बार बार रगड रही थी. लपर लपर वो जोर जोर से चूत को चाट रही थी, चूस रही थी. और कभी कभी दांत भी, हल्के से ही सही, प्यार से खूब उभरी, मस्तायी क्लिट पे हल्की सी बाइट कर ले रहे थे.


और इसका असर ये हुआ की रंजी, मस्ती में चूर, सिसकती, तीन बार कगार पे पहुंची , लेकिन गुड्डी ने सर हिला के मना कर दिया , और मेरी हिम्मत जो गुड्डी या उसकी मम्मी की बात टालुं.

रंजी सिसकती रही, मचलती रही, चूतड पटकती रही, उसकी चूत , रस से लसालस वो मस्ती से लथपथ , लेकिन मैने उसे झड्ने नही दिया.

गुड्डी साथ में लन्ड को अब जोर जोर से मसल ररगड रही थी और जो उसकी आदत है, बोल भी रही थी.


" हचक के लेना इसकी बहन की, बहुत परपरायेगी, चीखेगी, छिनारपना करेगी, चूतड पटकेगी, लेकिन फाड देना साल्ली की. एक बार इसकी ले लोगे ना तो देखना , तुम्हे सबकी दिलवाउंगी, पक्का प्रामिस. इसकी सारी बह्नों की , और सबसे बढ के अपनी सास की , एक से एक माल हैं मेरी ससुराल में "


गुड्डी की आदत थी, जंग बहादुर से ऐसे बातें करती थी की, बस जैसे मैं हुं ही नहीं. और इसी का असर था , जंग बहादुर कब का पाला बदल के , गुड्डी की ओर चले गये थे . और उन्हे ये भी मालुम था की गुड्डी के वाय्दे , एलेक्शन मैनीफेस्टो की तरह नही है. वह उन्हे मनवा के रहेगी ( और यही सोच के मेरी रुह और कांप जाती थी, भले मेरे जंगबहादुर कितने भी खुश क्योन हों .


गुड्डी की बातों और उंगलियों का असर ये हुआ की, अब मेरा घोडा लगाम तोड के दौड्ने के मूड में था.

मेरे चाटने चूसने की रफ्तार बढ गयी थी.
रंजी झडने के करीब एकदम पहुंच गयी थी.

तब तक फोन बजा , बल्की बजे .

रंजी का और मेरा .

रंजी के फोन पे दिया थी, उसकी पक्की सहेली और चान्डाल चौकडी की मुखिया.

उसने बोला की वो रास्ते में है और दस मिनट में पहुंच जायेगी.
मेरे लिये भाभी का फोन था.

उन्हे पडोस में कहीं लेडीज संगीत में जाना था. उन्होने बोला था की , जब मैं आउंगा तो मंजू मुझे खाना बना के दे देगी. और वो सुबह थोडा लेट आयेंगीं.

रंजी ने हाल खुलासा बयान किया.
आज घर पे उन का मालिकाना था तो उन लोगों ने एक पाजामा पार्टी का आयोजन किया था, जिसमें उन दोनो के अलावा , दिया और रिया रंजी की दो सहेलियां भी थीं.

पाजामा पार्टी का एक ही मक्सद होता है , लड्कियो की फुल मस्ती.


पाजामा पार्टी ; तीन सहेलियां खडी खडी

पाजामा पार्टी का एक ही मक्सद होता है , लड्कियो की फुल मस्ती.

दिया के बारे में तो मैं जानता था, रंजी की पक्की दोस्त , लेकिन मस्ती के मामलें में रंजी से बहुत बहुत आगे . वो अपने सगे भाई से ना जाने कब से फंसी थी और रोज बिना नागा, एक रईस बाप की लड्की. उसका भाई रंजी पे भी बहुत मरता था.

जिया , इन सबसे अलग एक सीधी साधी बहन जी टाइप लड्की , जिनके दिमाग मे अभी भी ये भ्रम है, की कालेज सिर्फ पढ्ने के लिये है और मां बाप के पैसे का बेजा इस्तेमाल नही करना चाहिये और कालेज कैंटीन में टाइम पास करना, डिस्को जाना, और हाट कपडे पहनना , शरीफ लड्कियों का काम नहीं .

लेकिन कुछ को सीधा साधा रूप ही भा जाता है , और दिया का भाई उनमें से एक था.

उस्ने एक हाट टाइप कमेन्ट पास किय़ा , फेस बूक पे ज्वाइन करने की बात की और जिया ने हाथ उठा दिया.
गनीमत था की जिया की एक सहेली ने उसका हाथ पकड लिया और हादसा होने से रह गया.

दिया के भाई की को ये भी नहीं मालूम था की जिया उन लड्कियों में से है , जिनके लिये फेस बूक पे पेज खोलना भी अच्छी लड्कियों का काम नही है.

रंजी के चक्कर में वो आज आने को मान गयी थी. उसे बोला गया था बायोलाजी की ज्वाइन्ट स्टडी के बारे मे.

गुड्डी ने दिया और रंजी दोनो से प्रामिस किया था की वो एक रात में ही जिया का ’ सुधार' कर देगी।

लेकिन तभी कुछ रंजी के मन में शंका जगी और उसने उजागर भी कर दी।

" मान लो वो भारतीय नारी कोल्ड ड्रिंक पीने से मना कर दे तो "

गुड्डी खिलखिलाई , " अरे यार ऑरेन्ज जूस मंगाया है न तेरे यार से "

" लेकिन वो सील , अगर कहीं चेक करे, तो , … उसे शक हो जाए ,…वो शक्की और झक्की दोनों है। " रंजी हिचकिचाते हुए बोली और फिर कहा

" बहुत मुश्किल से तो मानी है आज आने को , और अगर ये प्लान फेल तो सोच ले तू , तेरा सारा सुधारवादी आंदोलन धरा रह जाएगा। "

" अरे यार तू काहें को चिंता करती है , ये तेरा भाई कम यार ज्यादा किस दिन काम आएगा। ये जितना ही सील तोड़ने में उस्ताद है न उतना ही सील जोड़ने में भी। बस तू इसे एक चुम्मी दे दे। " गुड्डी हंस के बोली।

" चुम्मी , अरे चुम्मी क्या मैं तो इसे सब कुछ देने को तैयार हूँ , ये बुद्दू लेता ही नहीं " रंजी और से खिलखलायी और मुझे दबोच के एक बदले दस चुम्मी दे दी और आधी सीधे , जंगबहादुर पे।

मैं सरकारी कर्मचारी जरूर था लेकिन ईमानदार , जो रिश्वत लेकर काम कर देते हैं।

और ऑरेन्ज जूस का टेट्रा पैक मेरे हाथ में था।


ये काम होली की रात में मैं कर चूका था , लेकिन आज बहुत सावधानी की जरुरत थी।

मैंने मुस्कराकर दोनों से आँखे बंद करने को कहा , और ४ मिनट के पहले ही दोनों ने आँखे खोल दी लेकिन उसके पहले काम हो चुका था।

गुड्डी के सामने ये मैं पहले ही कर चुका था। रंजी ने डिब्बे को पकड़ा , पहले ऊपर से देखा , जहाँ से डिब्बा खोलते हैं और फिर चारो ओर से , कुछ नजर नहीं आया। हार कर उसने पैकेट गुड्डी को पकड़ा दिया।

गुड्डी को मालूम था की मैंने लास्ट टाइम , पैकेट के बेस में ही खेल किया था , इसलिए उसने सीधे वहीँ चेक किया , लेकिन वो भी नहीं पकड़ पायी।

हार कर दोनों मेरे पीछे पड़ गयीं और मैं लाख जिद करता रहा 'मैजिशियंस नेवर टेल ' लेकिन , खूबसूरत , सेक्सी लड़कियों से कोई जीत पाया है जो मैं जीतता।

और मैंने एक फ्रेश ऑरेन्ज जूस का टेट्रा पैक लिया , ऑरेन्ज वोदका की बॉटल , एक नीडल और एक ग्लास।
और खेल शुरू हो गया।

सबसे पहले मैंने टेट्रा पैक ले के उसके निचले हिस्से में निडिल से गोलाकार , २०-२५ छेद किये , बस जरा जरा सा उन सबको जोड़ के एक आधे इंच व्यास का छेद बन गया , वो भी पूरा नहीं २/३ और बाकी का कागज अभी भी टेट्रापैक से चिपका हुआ था। एक बहुत ही पतली सी प्लास्टिक की ट्यूब मैंने उसमें घुसाई ,

टेट्रापैक ऊपर किया और फिर उस ट्यब को मुंह में डाल के चूसा , और थोड़ी दे में साइफन सा बन गया और ऑरेन्ज जूस पैक से उस पाइप से होके सीधे ग्लास में। आधा पैकट करीब खाली हो गया। फिर मैंने पैक को वहीँ लिटा दिया और ट्यूब का जो सिर बाहर की और था उसे ऑरेन्ज वोदका के बॉटल में ,


और फिर साइफन बना के , जितना ऑरेन्ज जूस निकला था , उतनी वोडका अंदर। फिर कागज़ का जो आधे इंच का पैच लगा हुआ था , उसमें अंदर की ओर , मैजिक ग्ल्यू लगा के दबा दिया। और बाहर से हलके से अंगूठे से दबा दिया। पैक एकदम पहले जैसा। साइफन का फायदा ये हुआ की डिब्बा जूस के प्रेशर से गीला नहीं हुआ।

मैंने फिर वो पैकेट उन दोनों को पकडा दिया।

ऑरेन्ज वोदका के इस ब्रांड में 60 % अल्कोहोलइ कॉन्टेंट था। ऑरेन्ज जूस मिलने के बाद भी , आधा ग्लास इसका एक बॉटल बियर से ज्यादा नशा देता।

" हे जादूगर को कुछ इनाम तो दे " गुड्डी ने रंजी से कहा।

रंजी से दुबारा कहने की जरुरत नहीं थी। जंगबहादुर सीधे उसके होंठो के बीच , और उसने फिर से जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया।

लेकिन काम पहले , तो मैं साथ साथ बाकी चीजो की 'ट्रिक्स ' गुड्डी और रंजी को बता रहा था। एक नेजल स्प्रे था , एक पैच और भी ढेर सारी चीजें , जो गुड्डी ने बताई थी और कुछ वो जो मैंने अपने आप जोड़ दी थीं।

रंजी जो चूस रही थी उसके साथ गुड्डी की छेड़ती हुयी गालियां और मैं भी कभी रंजी के खुले उभार दबा देता , चूस लेता तो कभी गुड्डी के।

तब तक बेल बजी और नीचे से जोर से आवाज आयी, दिया।

गुड्डी ने झट से सब सामन समेटा , बगल के कमरे में रखा और धड़धड़ाती हुयी नीचे सीढ़ी से चली गयी दरवाजा खोलने।

लेकिन रंजी पर कोई असर नहीं पड़ा।

वो जोर जोर से चूसती रही , चाटती रही। और मेरा लंड एकदम बावरा हो गया था। सब कुछ भूल के मैं भी उसका सर पकड़ के जोर जोर से उसका मुंह चोदरहा था।

जब दिया और गुड्डी की छत पे पहुंचने की आवाज आई , तब हम दोनों होश में आये।

रंजी ने जल्दी से मुंह हटाया और मैंने भी बड़ी मुश्किल से जंगबहादुर को अंदर घुसेड़ा।

सोये हुए उन्हें जींस में रखना मुश्किल था यहाँ तो वो पूरे फार्म में थे। आधी तीही जीप बंद की।

और तब तक दरवाजा खुला और गुड्डी और दिया अंदर दाखिल हुईं।

मैंने दिया को देखा और मेरे होश उड़ गए।
 



मेरे निगाहें दिया से चिपकी थी ,सच बोलूं तो उसके उभारों से।
एकदम गदराई , कड़ी कड़ी गोल गोल।

रंजी , और गुड्डी दोनों से बड़ी, किसी कालेज के टीन की तरह नहीं , बल्कि नयी नवेली दुल्हन के साइज की।

मस्त पंजाबी कुड़ी , लम्बाई में भी वो वो इन दोनों से २० थी। और देह पूरी भरी भरी।

छोटा सा हॉल्टर टॉप पहन रखा था , उसने। एकदम उसकी बड़ी बड़ी चूंचियों से चिपका सब कटाव , उभार दिखाता।
टॉप उसके लो काट जींस से बहुत पहले खत्म हो जा रहा था। दिया का गोरा पेट, गहरी नाभि , पतली कमर सब दिख रही थी और जींस भी एकदम हिप हगिंग।

और चूतड़ भी उसके खूब गोल गोल बड़े।

जैसे मेरी निगाहे उसकी टॉप फाड़ती चूंचियों से नहीं हट रही थीं दिया की निगाह मेरे जींस फाड़ते बल्ज से नही हट रही थी।

उसे देख के लिंग की हालत और ख़राब हो गयी थी।

रंजी मुझसे सट के खड़ी थी और पकडे हुए थी। उसके उभार मेरे कंधे से रगड़ खा रहे थे।

मुस्करा के वो दिया से बोली ,

" ऊप्स माई मिस्टेक मैंने तुम दोनों का इंट्रो नहीं कराया। ये दिया मेरी फास्ट फास्ट फ्रेंड और ये हैं मेरे भैया ,… "

रंजी की बात काटके दिया तेजी से आगे बढ़ी और मुझे बाँहों में भींच लिया और उससे बोली ,

" हे रंजी , इट इज जस्ट नाट फेयर। तुम इत्ते हाट हार्ड हंक भाई को कहाँ छुपा के रखी थी. ही इज सो सो हॉट यार , तेरा भाई तो मेरा भाई , तू अकेले अकेले मजा नहीं ले सकती। "

और फिर मेरे सीने पे अपने बड़े बड़े उभार रगड़ते बोली " भैया , अब आप मेरे भी भैया हो , हो ना। "
उसके दहकते लिपस्टिक लगे होंठ मेरे होंठों से आधे इंच भी दूर नहीं थे।

वो अपने भैया के साथ हर रात क्या करती थी ये मुझे मालूम था इसलिए मैंने पल भी देर नहीं की।

" एकदम तुम रंजी की सहेली तो मेरी भी बहन हो "

फिर तो उसकी चांदी हो गयी। उसका हाथ सीधे मेरे बल्ज पे और ऊपर से ही उसने लिंग को दबौच लिया और यही नहीं मेरा हाथ खिंच के पाने टॉप के अंदर।

मेरे कान में फुसफुसा के बोली ," मुझे मालूम है मेरे भाई को मेरी क्या चीज पसंद है "

ब्रा का कवच तो था नहीं। बस मैं जम के दिया की चूंचियों का मजा लेने लगा।
सिर्फ साइज ही नहीं , खूब कड़ी कड़ी और गुदाज भी थीं वो एक दम रस का गोला। मस्त चूंचियां।

और उधर दिया ने मेरे ज़िप को , जो वैसे ही आधा खुला था , पूरा खोला दिया और धक्का देके पलंग पे गिरा दिया और रंजी से बोली,

"तूने इत्ते हाट हाट भाई को छुपा रखा था इसकी सजा , आज हम अकेले इस से मजा लेंगे। क्यों गुड्डी ?

गुड्डी तो जो भी मेरे खिलाफ बोले उसके साथ तुरंत अलायन्स बना लेती थी तो वो तुरंत दिया के साथ हो गयी और बोली ,
" एकदम सही "

और उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और दिया ने मेरी जींस नीचे खींच दी।

बस पूरे एक बित्ते का कलाइ से भी मोटा लंड बाहर , एकदम कडा ,खड़ा , बौराया , टन्टनाता।

और अगले ही पल वो दिया के रसीले लाल लिपस्टिक से सजे होंठों के बीच।

क्या मस्त चूसती थी वो।
उसकी जीभ पहले सपड सपड सुपाड़े को चाट रही थी , फिर उसने चूसना , चुभलाना शुरू किया। सिर्फ सुपाड़ा।

हलके से होंठो से दबाती थी , फिर गड़प। और साथ में उसकी जुबान जो सुरसुरी करती थी , मैं तड़प उठता था। कुछ देर सुपाड़ा चूसने के बाद उसने मुंह का दबाव बढ़ाया और थोड़ी देर में लॉलीपॉप की तरह आधे से ज्यादा लंड अंदर। पूरी ताकत से रस ले ले के वो चूस रही थी।

गुड्डी और रंजी दोनों दिया को मजे लेते देख रही थीं।

बार बार दिया के बाल उसके चेहरे पे आ जा रहे थे। उसे हटा के उसने रंजी और गुड्डी को चिढ़ाने वाली नज़रों से देखा और हंस के बोली ,

" नदीदियों नजर मत लगाओ। मैं इस साली रंजी की तरह नहीं हूँ की इतने मस्त माल को छुपा के रखूं। मैं बाँट के खाती हूँ। चल आ जा तू दोनों भी।





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