Monday, May 19, 2014

FUN-MAZA-MASTI सौतेला बाप--10

FUN-MAZA-MASTI

 सौतेला बाप--10

 और इस बार वो अपनी पूरी ताकत से उसकी चूत की रस्सियाँ ढीली करने में लगा था, वो अपना पूरा लंड बाहर खींचता और फिर उतनी ही ताकत से वापिस अंदर धकेल देता, हर धक्के में घच की आवाज आती और रितु का मुंह खुला का खुला रह जाता..

अपने पापा के इन्ही धक्को की कायल थी रितु, वो अपनी गुळगुळाती हुई गांड को पीछे की तरफ धक्का देकर ज्यादा से ज्यादा लंड हड़पने की कोशिश करने लगी..

काव्या तो रितु को देखकर हैरान हुई जा रही थी, कितनी आसानी से और कितने इनोवेटिव तरीके से वो लोकेश अंकल का लंड ले रही थी, ले तो वो रही थी पर महसूस वो खुद कर रही थी , अपनी खुद की उँगलियाँ अंदर पेलकर.

लोकेश अब उसके सामने खड़ा हो गया और उसकी टांगो को फैलाकर अंदर दाखिल हो गया, बाकी का काम रितु ने किया, अपनी कमर उचका -२ कर लोकेश के खूंटे पर अपनी चूत का लिफाफा चिपकाने लगी वो



काव्या की उँगलियाँ भी अपने क्लिट के दाने को खरोंच कर उसके अंदर छुपा हुआ अमृत निकालने में लगी थी, दो बार वो अपनी मसालेदार चूत मसलती और तीसरी बार उन उँगलियों को चाटकर खुद ही साफ़ कर देती , इतना रस तो आजतक उसकी चूत ने नहीं बरसाया था..


और अपनी उत्तेजना के शिखर पर पहुंचकर लोकेश ने रितु की कमर को पकड़कर ऊपर उठा लिया , हवा में, और रितु भी बड़ी नजाकत से अपने हाथों का सहारा लेकर हवा में झूल गयी और अपने प्यारे और मुंह बोले पापा का लंड लेने लगी..



ऐसा घर्षण तो उसे आज तक फील नहीं हुआ था.

और उन्ही घिस्सों को अंदर फील करते हुए वो भरभराकर , वहीँ हवा में झड़ने लगी..

''अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह। …… ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह पापा …… मैं तो गयी ....''

और हवा में लटकी हुई रितु की चूत में से गरम रस की धार नीचे गिरकर ऐसी लग रही थी मानो कोई झरना गिर रहा हो ऊपर से.

और यही वो पल था जब पापा बने लोकेश के लंड ने भी जवाब दे दिया, उसने जल्दी से अपना हथियार बाहर खींचा और और अपनी गरम -२ मलाई को उसने ताजा चुदी चूत के चेहरे पर छिड़ककर उसकी बची-खुची प्यास भी बुझा दी.



अंदर दोनों शांत हुए तो बाहर एक तूफ़ान आकर गुजर गया, काव्या ने भी अपनी चूत के रस की धार वहीँ सीढ़ियों पर निकालकर उन्हें पवित्र कर दिया


तभी काव्या को ऊपर का दरवाजा खुलने की और किसी के नीचे उतरने की आवाज आई और वो भागकर नीचे उतर गयी और सीढ़ियों के नीचे बनी हुई जगह पर छुप गयी.


 उपर से उतरने वाला कोइ और नहीं, बल्कि उसका सौतेला बाप समीर था.

उसने लोकेश के रूम कि बेल बजाई, और लोकेश ने दरवाजा खोलकर समीर को अंदर बुला लिया

काव्या भी भागकर वापिस सीढ़ियों पर चढ़ गयी, और अंदर देखने लगी.

समीर बिस्तर पर नंगी पड़ी हुई रितु को देखकर हैरानी से बोला : "ओहो , तो यहाँ ये सब चल रहा है … मै भी सोचु, इतनी देर से ये चीखने कि आवाजें कहां से आ रही थी ''…

रितु ने जब समीर को देख तो उठ खड़ी हुई और नंगी ही चलती हुई समीर के पास पहुंची और उसके गले से लिपट गयी.

समीर ने भी उसे अपनी ताकतवर बाजुओं मे पकडकर उसके हलवे जैसे शरीर को मसल दिया..

रितु (शिकायती लहजे मे ) : "मुझे आपसे तो बहुत शिकायत है, इतने टाइम बाद आये हो और वो भी अपनी बीबी के साथ , आपको पता है न जब तक आप दोनो एक साथ मुझे ना चोदे तो मेरी प्यास नहीं बुझती , देखिये न, अभी -२ सर ने मेरी चूत बुरी तरह से मारी है और मैं अभी -२ झड़ी हु, पर आपको यहॉँ देखकर फ़िर से अंदर कि चिंगारियां निकलने लगी है ''

शिकायत करते -२ उसका लहजा बदलकर कामुक हो ग़या और उसकी उन्गलियों ने अपनी चूत पर जमा हुआ घी खुरचकर अपनी क्लिट पर मला और उसे गरम करके पिघलाने लगी

लोकेश ने भी समीर कि शिकायत का जवाब देते हुए कहा : "यार, एक तो तुम भाभी के साथ खुल्ले मे चुसम चुसाई कर रहे थे , वो सीन देखकर मेरा क़्या हाल हो रहा था इतनी देर से तुम्हे क्या पता , इसलिए मैने रीतु को यहॉँ बुलाया ''

लोकेश कि बात सुनकर समीर हंस दिया और नीचे झुककर उसने रितु निप्पल को अपने दांतों से कचोट लिया और धीरे -२ अपनी जीभ से उसकी गर्दन को चाटते हुए उपर कि तरफ़ आया , वो भी उसकी गर्दन से झूलकर समीर का साथ देने लगी


सच मे, एक नम्बर कि रंडी थी वो रीतु।

तभी समीर ने कुछ ऐसा बोला कि सीडियो पर छुपकर उनकी बाते सुन रही काव्या को अपने कानो पर विश्वास ही नहीं हुआ ....

समीर : "अब तो देख लिया ना तूने अपनी भाभी का नंगा जिस्म, ……… बता , कैसा लगा ??"

लोकेश कुछ देर तक चुप रहा और फ़िर अपने मुरझाये हुए लँड को अपने हाथों से मसलता हुआ बोला : "यार, कसम से, ऐसी चीज तो मैने आज तक नहीं देखी, साली के मोंटे मुम्मे देखकर मेरा तो मन कर रहा था कि वहीँ के वहीँ अपना लँड उसके तरबूजों के बीच फंसा कर अपना रस निकाल दु, अब तो बस मन कर रह है कि साली को जल्द ही चोद डालु ''

अपने जिगरी दोस्त कि बीबी के बारे मे लोकेश अंकल ऎसी बातें कह रहे थे और उपर से उनका दोस्त, यानी काव्या का सौतेला बाप बडे मजे ले-लेकर उसकी बातें सुन रहा था और अपनी बाहों मे मचल रही रीतु के मोंटे मुम्मों को चूस रहा था.


 काव्या कि समझ मे नहीं आ रहा था कि वो दोनो ऐसा क्यो कर रहे हैं, पर उसका जवाब भी जल्द ही मिल ग़या उसे..

समीर : "यार, आज तक हमने जो भी काम किया है, मिल बांटकर किया है ,जब तूने मुझे अपनी बीबी को चोदने से नहीं रोका, तो मै कौन होता हु तुझे रोकने वाला, कोइ प्लान बना और चोद डाल उसे, वैसे एक बात बोलू, तुझे उस वक़्त अपने सामने देखकर वो काफी नाराज हुई थी, उसे अपनी बोतल मे उतारना आसान नहीं होगा तेरे लिये ''

और इसी के साथ समीर की तीन उँगलियाँ एक साथ रितु कि चूत के अंदर घुस गयी, वो बेचारी अपनी आंखें फैला कर अपने पंजों पर खड़ी होकर सिसकारने लगी

समीर ने रितु को बेड पर लिटाया और अपनी तीनो उँगलियों से उसकी चूत को किसी पिस्टन कि तरह चौदने लगा

लोकेश का लँड भी अब पूरे शबाब पर था, शायद रश्मि के बारे मे सोचते हुए ऐसा हुआ होगा

लोकेश : "उसकी चिंता तू छोड़ दे, ऐसी औरतों को कैसे बोतल में उतरा जाता है वो मुझे अच्छी तरह से पता है ''

काव्या बेचारी अभी तक शॉक में थी, अपनी माँ के बारे मे ऎसी गन्दी बात उसने आज तक नहीं सुनी थी , पर ना जाने क्यो, उसे गुस्सा नहीं आ रहा था इस बात पर, क्योंकि अचानक उसने अपनी माँ कि जगह पर अपने आप को रख कर देखा, तब उसे महसूस हुआ कि एक तरफ तो उसे मज़ा देने के लिये समीर है, और दूसरी तरफ उसके हुस्न पर अपनी गिद्ध जैसी नजरें लगाये हुए उसके पति का जिगरी दोस्त लोकेश है, और जब समीर दूसरी लडकियों के साथ मौज मस्ती कर रहा है और उसे कोइ आपत्ति नहीं है कि उसकी बीबी उसके ही दोस्त के साथ चुदाई का खेल खेले, तो उसकी माँ रश्मि को क्या प्रोब्लेम हो सकती है

पर शायद काव्या के ये सोचना उसकी खुद कि सोच थी, उसकी माँ थोडे पुराने विचारों कि थी, वो शायद उसकी तरह या फ़िर इन मर्दों कि तरह खुल कर ना सोचती हो

काव्या ने सोचा कि काश, वो सब उसके साथ हो रहा होता .


 वो सोच ही रही थी कि उसके कानों मे रीतु के चीखने कि आवाज आई, उसने अंदर देख तो समीर ने रीतु को सोफ़े पर लिटाकर उसकी टाँगे हवा मे घुमाकर अपनि तरफ़ घुमा लिया और अपना मुँह उसकी चूत पर लगाकर उसकी ताजा मलाई को खा रहा था



उसकी उंगलियाँ अभी तक उसकी चूत कि मालिश कर रही थी और अन्दर का माल बाहर निकाल रही थी , और जो माल बाहर निकलता उसे समीर अपनि जीभ से चाटकर अन्दर निगल जाता.

कुछ देर तक उसे चाटने के बाद समीर ने रितू को घोडी बना दिया और उसकी चूत के अन्दर अपना लंड पेल दिया..

''अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म मयेस्सस्सस्सस्सस ऐसी ही ………… अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह, जोर से मारो अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ''

समीर ने आगे झुककर उसकी बालों को पकड़ा और झटके मारकर लगाम कि तरह उसके बालों को खींचकर उसकी घुड़सवारी करने लगा

''अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह हाआआन ऐसे ही ……… उम्म्म्म्म्म्म मजा आ गया , इतने दिनों के बाद असली प्यास बुझी है मेरी …। उम्म्म्म अह्ह्ह्हह्ह ओफ्फ्फ्फ्फ्फ़ और जोर से सर ....... और जोर से …… कोई रहम मत करो मुझपर … फाड़ डालो मेरी चूऊऊऊत अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ''..

रितु अपनी चुदाई करवाते हुए बड़बड़ाती जा रही थी , उसे सच में बहुत मजा आ रहा था समीर का लम्बा लंड अंदर लेने में .

और लोकेश भी अपनी आँखे मूँद कर अपनी रश्मि भाभी के हुस्न को याद करते हुए अपने लंड को रितु के मुंह के अंदर डालकर जोरों से हिलाने लगा, रितु अपने मुंह के अमृत से उसके लिंग को नहला कर बाबू बच्चा बनाने में लगी हुई थी..


लोकेश के लंड को पूरी तरह अपनी थूक से गीला करने के बाद रितु ने लोकेश को अपने नीचे लेटने का इशारा किया , और जैसे ही लोकेश बेड पर लेटा , वो अपने हाथ पैरों पर किसी कुतिया की तरह चलती हुई उसके ऊपर तक आई और अपने मुम्मे को उसके मुंह के आगे लटका दिया, जिसे लोकेश ने किसी भेड़िये की तरह झपट्टा मारकर दबोच लिया और उसके अंगूरों का रस पीने लगा


 रितु के आगे खिसक जाने की वजह से समीर का लंड बाहर निकल आया, जो उसकी चूत के रस में भीगकर बुरी तरह से चमक रहा था , वो अपने हाथों में अपने लंड को लेकर उसपर सारा रस चोपड़ने लगा

और रितु की चूत पर जैसे ही लोकेश के खड़े हुए लंड ने दस्तक दी, उसने बिना किसी वार्निंग के उसे अपने अंदर खींच लिया , लोकेश तो रितु को अभी थोड़ा और तरसाना चाहता था, पर उस रंडी के अंदर जो आग जल रही थी उसके आगे ये छिछोरी हरकतें नहीं चलने वाली थी, वो हुमच -२ कर उसके लंड को अपने अंदर लेने लगी

अब समीर के सामने थी रितु की थिरक रही गांड, जिसके छेद को अभी थोड़ी देर पहले ही लोकेश ने मारकर थोड़ा और खोल दिया था , वो आगे आया और अपने पंजों पर खड़ा होकर उसने अपने लंड को उसकी गांड के छेद पर टिकाया और एक जोरदार झटके के साथ आगे हो गया

फफक्छ्ह्ह्ह की आवाज के साथ रितु की गांड भी पूरी भर गयी

एक लड़की के जीवन का सबसे सुनहरा पल होता है ये, जब उसकी चूत और गांड एक साथ मोटे-२ लंड से भरी होती है .

और यही ख़ुशी रितु महसूस कर रही थी ....... और वो भी पूरी अंदर तक..

और जब रितु को दोनों तरफ से झटके लगने शुरू हुए तो उसका बड़बड़ाना फिर से शुरू हो गया..

''अह्ह्ह्हह्ह येस्सस्सस्स। …… यही तो मैं कह रही थी ……। अह्ह्हह्ह्ह्ह यी फीलिंग …… उम्म्म्म्म्म्म .... दोनों का एक साथ अंदर लेना, कितना मजेदार है ……… अब चोदो मुझे दोनों, जोर जोर से, अह्ह्हह्ह्ह्ह , फाड़ डालो ,मेरी गांड …… और चूत उम्म्म्म्म्म्म्म ''

और वो दोनों दोस्त लग गए अपने पुराने काम पर फिर से एक साथ …।

अगले पन्द्रह मिनट में उन दोनों ने मिलकर उसकी ऐसी रेल बनायीं की आखिर में उसके मुंह से सिसकियों के साथ-२ लम्बी -२ लार भी निकलने लगी , और उसके साथ ही निकलने लगे दोनों की तोपों के अंदर से गरमा गरम गोले..

समीर ने अपना सारा माल रीतु के गोदाम यानी गांड मे पहुंचा दिया और लोकेश ने अपना माल उसके मैन शोरूम यानी चूत में .

काव्य भी कायल हो गयी रितु की , ऐसी चुदाई की कला तो वो भी सीखना चाहेगी …

काव्या ने वहां छुपना सही नहीं समझा , वो चुपके से वहां से निकल कर वापिस अपने कमरे मे चली गयी.

और उसने रूम मे पहुँचते ही सबसे पहले फोन निकाला और अपनी सहेली श्वेता को फोन लगाकर उसे अभी तक कि सारी बाते सुना डाली..

श्वेता उसकी बाते सुनकर काफी हैरान हुई, और नाव वाला किस्सा सुनकर खुश भी हुई, उसने आने वाले दिनो के बारे मे काव्या को कुछ समझाया और फ़िर उसने फ़ोन रख दिया.

अब अपने बेड पर लेटकर काव्या अभी तक कि सारी बाते सोच रही थी.

समीर ने उसकी माँ से शादी तो कर ली, पर एक पति कि तरह वो पोसेसिव बिल्कुल भी नहीं है, उसे अपनी बीबी को अपने दोस्त के साथ शेयर करने मे कोई परेशानी नहीं है, और जब वो अपनी बीबी के साथ ये कर सकते है तो एक दिन उसके साथ भी वो सब करेगा..

नहीं , वो अपने सौतेले बाप कि साजिश का हिस्सा कभी नहीं बनेगी, वो ऐसा कभी नहीं चाहेगी कि वो और उसकी माँ समीर की गुलामी करते हुए अपनी जिंदगी गुजारे..

उसे ही कुछ करना होगा, ताकि समीर के सामने वो और उसकी माँ लाचार बनकर ना रहे, बल्कि समीर उनके इशारों पर नाचे और इसकी लिये उसकी पास सिर्फ़ एक ही हथियार था..

उसका योवन, उसकी जवानी..

और जैसा की प्लान था, उसे सबसे पहले लोकेश को आपने बस मे करना होगा , क्योंकि जो काम वो करना चाहती थी, वो सिर्फ़ और सिर्फ़ लोकेश की मदद से ही हो सकता था.


शाम को काव्या टहलती हुई होटल के रिसेप्शन वाले एरिया मे जा पहुंची , जहां रितु तीन चार लड़कियों के साथ खड़ी थी. वो रीतु को देखकर मुस्कुराई, रीतु ने भी उसे देख और मुस्कुरा कर उसके पास आ गयी

रितु : "हाय , मेर नाम रितु है, मैं यहॉँ फ्रंट ऑफिस मैनेजर हु , "

काव्या : "यस, पता है मुझे, लोकेश अंकल के साथ देखा था तुम्हे "

उसकी बात सुनकर रितु एकदम से सकपका सी गयी

रितु :" तुमने .... तुमने कब देख मुझे "

काव्या मन ही मन हंस रही थी, चोर कि दाड़ी मे तिनका

काव्या : "वो, कल जब हम आये थे यहाँ, तो तुम लोकेश अंकल से बात कर रही थी न अलग से जाकर, मैँ समझ गयी थी कि तुम यहाँ होटल कि मैनेज़र हो "

रितु (थोड़ा मायूसी से बोली ) : "होटल कि नहीं , सिर्फ़ फ़्रंट ऑफिस कि , बस अपने प्रोमोशन के बारे मे ही बात कर रही थीं उस वक़्त , जब तुमने मुझे सर के साथ देखा था "

काव्या समझ गयी कि क्यो वो अपने सर कि "हर" बात मान रही थी

तभी रिसेप्शन पर एक नया गेस्ट आया तो रितु उसे अटेंड करने के लिये वहां चली गई

और अटेंड करते-२ उसने अपनी शर्ट के दो बटन खोल दिये, काव्या दूर खड़ी होकर उसकि हरक़तें देख रही थी, और सीख रही थी कि कैसे मर्दों को आपने काबू मे लाया जाता है

वो वापिस अपने कमरे मे आयी और अपने कपड़ो मे से एक हॉट पेंट (छोटी सी निक्कर) निकाल कर पहन ली और उसके उपर एक कसी हुई सी टी शर्ट

उस ड्रेस मे वो बहुत ही सेक्सी लग रही थी

उसे पता था कि जब उसकी माँ ऎसी ड्रेस यहाँ देखेगी तो जरूर गुस्सा करेगी , घर कि अलग बात है , पर बाहर ऐसी ड्रेस मे वो कभी नहीं निकली थी

उसकी माँ अभी-२ सोकर उठी थी और समीर के साथ बालकनी मे बेठ कर चाय पी रही थी

उसे ऐसे कपड़ो मे देखते ही वो उठ खड़ी हुई और शुरु हो गयी : "काव्या , ये क्य पहन रख है, तुझे शर्म नहि है, जगह देख ले पहले, "

तभी समीर बोल पड़ा : "अरे, क्या प्राब्लम है इसमे, इतनी अच्छि तो लग रही है ..."

उसकी नज़रें काव्या की मांसल जांघों को घूर रही थी, जैसे उनका टँगड़ी कबाब बना कर खा जायेगा वो ..

समीर की शह मिलते ही काव्या समीर के पास गयी और सीधा उसकी गोद मे जाकर बैठ गयी, समीर भी उसकी इस हरकत से चोंक सा गया, पर काव्या बड़े ही आराम से उसके गले मे अपनी बाहें डालकर बोली : "पापा, आप ही बताइए, हम घूमने आए है, ऐसी ड्रेसस यहा ना पहनु तो कहा पहनु, वैसे भी यहा कोई देखने वाला नही है..''


समीर की साँसे तेज़ी से चलने लगी, उसे तो यकीन ही नही हो रहा था की काव्या ऐसी हरकत करेगी, उसके लंड ने अपना सिर उठना शुरू कर दिया था, जिसे काव्या अपनी गान्ड के नीचे सॉफ महसूस कर रही थी , वो थोड़ा और चिपक कर बैठ गयी समीर से, जिसकी वजह से उसकी छोटी गेँद समीर की गर्दन से टच करने लगी, अब तो समीर के लंड ने पूरी बग़ावत कर दी और उफान मारते हुए काव्या की गांड पर धक्के मारने लगा..

रश्मि ने भी जब देखा की काव्या कितने प्यार और अपनेपन से समीर की गोद मे जाकर बैठ गयी है, तो उसने भी आगे टोकना सही नही समझा, शादी के बाद से ही समीर और काव्या के बीच का तनाव उसकी परेशानी बना हुआ था, पर अब समीर काव्या को अपनी बेटी की तरह अपनी गोद मे बिताकर उसकी तरफ़दारी कर रहा था तो रश्मि को ये देखकर बहुत अच्छा लगा..

अब उसे कौन बताए की समीर के मन मे क्या चल रहा है...

थोड़ी देर तक वहाँ बैठने के बाद काव्या उठ खड़ी हुई और जाते-2 उसने एक और काम किया और वो भी इतनी तेज़ी से की समीर को रियेक्ट करने का समय ही नही मिला, काव्या ने देखा की जैसे ही रश्मि की नज़रें दूसरी तरफ गयी, उसने जल्दी से समीर के होंठों पर एक हल्की सी पप्पी दी और बोली ''थेंक्स पापा , बाय , मैं उपर अपने कमरे मे हू'' और वहाँ से उठकर अपने रूम मे भागती चली गयी..

वो बेचारा अपने लंड को मसलता हुआ, उसकी मोटी गाण्ड कि थिरकन ही गिनता रह गया.

रश्मि को कुछ पता भी नही चला, और समीर अपने होंठों पर उसके रुई जैसे होंठों के स्पर्श से सिहर उठा था, और अपने होंठों को मसलता हुआ उन्हे अपनी जीभ से भिगो कर चूस रहा था.

रात का खाना खाने के बाद सभी सोने की तैयारी करने लगे, शाम को जिस तरह से काव्या ने समीर के लँड को खड़ा कर दिया था, उससे एक बात तो पक्की थी की वो आज रश्मि की खूब बजाएगा..

और अपने रूम मे जाते ही उसने अपने पुर कपड़े निकाल फेंके और सोफे पर जाकर बैठ गया.

रश्मि नहाने गयी हुई थी उस वक़्त, समीर ने उसे पहले से ही बोल दिया था की वो बिना कपड़ो के और बिना अपने बदन को पोंछे बाहर आएगी..

अपने बदन को शावर जैल से मसलने के बाद वो ऐसे ही भीगी हुई सी बाहर निकल आई, उसके नंगे बदन से पानी की बूंदे बहकर नीचे गिर रही थी और कारपेट को भी गीला कर रही थी


समीर ने सिगरेट सुलगा ली और दूसरे हाथ मे पेग पकड़ लिया और रश्मि से बोला : "अब मेरे पास कुतिया की तरह चलती हुई आओ ''

रश्मि ने समीर को ना कहना तो सीखा ही नही था अब तक, और वैसे भी, सेक्स के मामले मे वो अब इतना खुल चुकी थी की उसे भी मज़ा आने लगा था ऐसी हरकतें करने मे..

वो अपने घुटनो के बल बैठ गयी और हाथों को आगे रखकर धीरे-2 चलती हुई समीर की तरफ बढ़ने लगी.

उसके उरोजों पर अटका हुआ पानी, इकट्ठा होकर उसके निप्पल्स तक जा रहा था और बूंदे बनकर नीचे गिर रहा था, जैसे मोटी तोप से छोटे-2 पानी के गोले निकल रहे हो.


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