Sunday, May 25, 2014

FUN-MAZA-MASTI सीता --एक गाँव की लड़की--4

FUN-MAZA-MASTI

 सीता --एक गाँव की लड़की--4

 शाम के 4 बजे चुके थे। श्याम आए तो उन्हें नाश्ता दी। वे रूम में बैठ कर नाश्ता कर रहे थे। मम्मी जी नाश्ता करके पड़ोस वाली आंटी के यहाँ बैठी गप्पे लड़ा रही थी।
तभी बाहर से किसी के बोलने की आवाज आई। वो श्याम को बुला रहा था।
श्याम उनकी आवाज पहचान गए थे।
"हाँ अंकल, अंदर आइए ना। पटना से कब आए?" श्याम मुँह का निवाला जल्दी से अंदर करते हुए बोले।
इतना सुनते ही मेरी तो रूह कांप उठी। मैं अनुमान लगा ली कि शायद नागेश्वर अंकल आए हैं। तब तक अंकल अंदर आ गए। चूँकि मैं रूम में ही थी तो देख नहीं पाई परंतु उनके पदचाप सुन के मालूम पड़ गई थी।
"क्या बेटा? हर वक्त घर में ही घुसे रहते हो। मैं तो तुम्हारी शादी कर के पछता रहा हूँ। मैं यहाँ आँगन तक आ गया हूँ और तुम हो कि अभी भी घर में ही हो।"
हम दोनों की हँसी निकल पड़ी। श्याम हँसते हुए बोले," नहीं अंकल, अभी अभी आया हूँ बाहर से। भूख लग गई थी तो नाश्ता कर रहा हूँ। आप बैठिए ना तुरंत आ रहा हूँ मैं।"
"हाँ हाँ बेटा, अब तो ऐसी ही 5 मिनट पर भूख लगेगी। चलो कोई बात नहीं मैं बैठता हूँ।" अंकल भी हँसते हुए बोले और वहीं पड़ी कुर्सी खींच कर बैठ गए।
मेरी तो हँसी के मारे बुरी हालत हो रही थी। किसी तरह अपनी हँसी रोक कर रखी थी।
"पूजा और मम्मी कहाँ गई है? दिखाई नहीं दे रही है।" अंकल कुछ देर बैठने के बाद पुनः पूछे।
"अंकल मम्मी अभी तुरंत ही आंटी के यहाँ गई है और पूजा अपने कमरे में होगी टीवी देख रही।" श्याम बोले
"क्या? जाएगी कम्पीटिशन की तैयारी करने और अभी से दिन भर टीवी से चिपकी रहती है।" अंकल आश्चर्य और नाराजगी से मिश्रित आवाज में बोले और पूजा को आवाज देकर बुलाने लगे। पर पूजा शायद सो रही थी जिस वजह से वो कोई जवाब नहीं दी।
तभी श्याम बोले," रूकिए अंकल, मैं बुलवा देता हूँ।" और श्याम हमें पूजा को बुलाने कह दिए। मैं तो डर और शर्म से पसीने पसीने होने लगी, पर क्या करती?
मैंने साड़ी से अच्छी तरह शरीर को ढँक ली और लम्बी साँस खींचते हुए जाने के आगे बढ़ी। क्योंकि पूजा के रूम तक जाने के लिए जिस तरफ से जाती उसी ओर अंकल बैठे थे।
मैं रूम से निकलते ही तेजी से जाने की सोच रही थी पर मेरे कदम बढ़ ही नहीं रही थी। ज्यों ज्यों अंकल निकट आ रहे थे त्यों त्यों मेरी जान लगभग जवाब दे रही थी।
अंकल के निकट पहुँचते ही मेरी नजर खुद-ब-खुद उनकी तरफ घूम गई। चूँकि मैं घूँघट कर रखी थी जिस से उनके चेहरे नहीं देख पाई और ना ही वे देख पाए। देखी तो सिर्फ उनके पेट तक के हिस्से।
क्षण भर में ही मेरी नजर उनके पेट से होते हुए नीचे बढ़ गई और उनके लण्ड के उभारोँ तक जा पहुँची। मैं तो देख कर सन्न रह गई।
अंकल एक सभ्य नेता की तरह कुरता-पाजामा पहने थे तो उनका लण्ड लगभग पूरी तरह तनी हुई ठुमके लगा रही थी, एकदम साफ साफ दिख रही थी।
मैंने तुरंत नजर सीधी की और तेजी से आगे बढ़ गई। लगभग दौड़ते हुए पूजा के कमरे तक जा पहुँची।
कुछ क्षण यूँ ही रुकी रही फिर गेट खटखटाई। एक दो बार खटखटाने के बाद अंदर से पूजा बोली," आ रही हूँ।"
मैं गेट खुलने का इंतजार कर रही थी कि फिर से मेरी नजर नीचे बैठे अंकल की तरफ घूम गई।
ओह गोड! ये क्या। अंकल अभी भी मेरी तरफ देख रहे थे और अब तो उनका एक हाथ लण्ड पर था। मैं जल्दी से नजर घुमा ली कि तभी गेट खुली। मैं सट से अंदर घुस गई और बेड पर धम्म से बैठ के हांफने लगी। पूजा मेरी तरफ आश्चर्य से देख रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रही थी कि क्या हुआ।
"क्या हुआ भाभी?" पूजा जल्दी से मेरे पास आकर बैठ गई और आश्चर्य मुद्रा में पूछी।
मैंने अपनी साँसें को काबू में करते हुए सारी बातें एक ही सुर में कह डाली।
पूजा मेरी बातें सुनते ही जोर से हँस पड़ी।मेरी भी हल्की हँसी छूट पड़ी। तभी नीचे से एक बार फिर अंकल की आवाज आई।
"पूजा बेटा, जल्दी नीचे आओ मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।"
"बस आ रही हूँ अंकल 1 मिनट में।" पूजा भी लगभग चिल्लाते हुए जवाब दी।
"चलो भाभी, अंकल से मिलते हैं।" पूजा मेरी तरफ देखते हुए बोली।
"नहीं.नहीं. मैं यहीं रुकती हूँ। तुम मिल कर आओ।"मैंने तपाक से जवाब दी।
"चलती हो या बुलाऊँ यहीं अंकल को।" धमकी देते हुए पूजा बोली।
मैं सकपका कर तुरंत ही चलने की हामी भर दी। मैं और पूजा नीचे उतरी। पूजा अंकल के पास बैठ गई पर मैं तो एक्सप्रेस गाड़ी की तरह रूम में घुस गई। पीछे से दोनों की हँसी आ रही थी, जिसे सुन मैं भी हँस पड़ी। श्याम अब तक नाश्ता कर बाहर जाने के लिए खड़े हाथ मुँह पोँछ रहे थे। फिर वे भी बातों को ताड़ते हुए हँस पड़े और निकल गए।
श्याम बाहर जाकर अंकल से दो टुक बात किए और जरूरी काम कह के निकल गए।
अब तो दोनों पूरी तरह फ्री थे। दोनों बात करने लगे, मैं सुनना चाहती थी मगर उनकी आवाज इतनी धीमी थी कि कुछ सुनाई नहीं दे रही थी।
मैं तो अब और व्याकुल हो रही थी सुनने के लिए। लेकिन क्या कर सकती थी।
कोई 10-15 मिनट बात करने के बाद पूजा मेरे कमरे में आई और बोली," भाभी, बाहर चलो। अंकल बुला रहे हैं।"
मेरी तो पूजा की बात सुनते ही दिमाग सुन्न हो गई।
"किस लिए?"फिर भी हकलाते हुए पूछी।
मेरी हालत देख पूजा हँस दी।
"चलो तो, मुझे थोड़े ही पता है किस लिए बुला रहे हैं। वे बोले बुलाने के लिए तो आई हूँ"
"नहीं पहले बताओ क्यों बुला रहे हैं तो जाऊंगी।"
"तुम तो बेकार की परेशान हो रही हो भाभी। कल वाली बात अंकल को नहीं पता है। कोई और काम है इसलिए बुला रहे हैं।" पूजा मुझे मनाते हुए बोली।
"फिर क्या बात है?तुम तो जानती होगी।" मैं अब थोड़ी नॉर्मल होते हुए पूछी।
पूजा दाँत पीसती हुई मेरी चुची पकड़ के मसलते हुए बोली,"तुम्हारी चूत फाड़ने के लिए बुला रहे हैं।"
मैं दर्द से कुलबुला गई। किसी तरह मेरी चीख निकलते निकलते बची।
मैं थोड़ी नाराज सी होते हुए बोली,"जाओ मैं नहीं जाती।"
पूजा को भी मेरी तकलीफ महसूस हुई तो मेरी गालोँ पर किस करते हुए बोली," भाभी प्लीज, कोई भी गलत बात नहीं होगी। वे आपसे मिलना चाहते हैं इसलिए बुला रहे हैं। चलो ना अब।"


 कुछ देर तक मैं सोचती रही कि क्या करूँ? पता नहीं क्यों बुला रहे हैं? पूजा लगातार प्लीज प्लीज करती रही। अंतत: मैंने चलने की हामी भर दी।
मैंने अच्छी तरह से घूँघट की और पूजा के बाहर निकल गई।मैं तो अभी तक अंदर ही अंदर डर रही थी। कहीं कल वाली बात अगर जान गए होंगे तो पता नहीं क्या होगी! यही सब सोचते मैं पूजा के पीछे पीछे चल रही थी।
अंकल के पास पहुँचते ही उनके पैर छू कर प्रणाम की और पूजा के पीछे खड़ी हो गई।अंकल के दाएँ तरफ हम दोनों खड़ी थी। मेरी तो दिल अब काफी तेजी से चल रही थी कि पता नहीं अब अंकल क्या पूछेँगे?
तभी पूजा अंकल के सामने लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गई। अंकल के बाएँ और पूजा के दाएँ तरफ एक और कुर्सी लगी थी। शायद अंकल पहले ही पूजा द्वारा मंगवा लिए थे।
पूजा और अंकल पहले से ही तय कर लिए थे शायद कि मुझे बीच में बैठाएंगेँ।
मैं अकेली खड़ी रही, अंदर से तो शर्म से पानी पानी हो रही थी।
"पूजा, मैं तो अपनी बेटी से मिलने आया था और तुम किसे ले आई हो।"तभी अंकल पूजा से हँसते हुए पूछे। पूजा अंकल की बातें सुन जोर से हँस पड़ी,पर बोली कुछ नहीं।
"सीता बेटा, बुरा मत मानना, मैं मजाक कर रहा था। आओ पहले बैठो फिर बात करते हैं।"
कहते हुए अंकल उठे और मेरी दोनों बाजू पकड़ के कुर्सी के पास ले जाकर बैठने के लिए हल्की दबाव दिए।
मैं तो हक्की-बक्की रह गई। शरीर से तो मानो जान निकल गई थी और अगले ही क्षण कुर्सी पर बैठी थी। अंकल के छूने से मेरी एक एक रूह कांप गई थी। तभी अंकल बोले,"देखो बेटा, हम लोग एक ही घर के हैं तो यहाँ पर्दा करने की कोई जरूरत नहीं है, करना होगा तो दुनिया वालों के लिए करना पर्दा।जैसे पूजा मेरी लाडली बेटी है वैसे ही तुम भी हो आज से। जब भी मेरी जरूरत पड़े तो बेहिचक कहना।" अंकल मेरी ओर थोड़े से झुक के बोले जा रहे थे।
मन ही मन सोच रही थी कि पूजा आपकी कितनी लाडली है ये तो मैं अच्छी तरह जान ही गई हूँ।
"अजीब बात है। मैं बोले जा रहा हूँ और तुम हो कि सारी बात सुनते हुए भी अभी तक घूँघट किए हो हमसे। औरों के लिए बहू होगी पर हम लोगो के लिए तो बेटी ही हो। सो प्लीज सीता...,"
तब तक पूजा उठ के मेरे पास आई और मेरी घूँघट उठाते हुए कंधे पर करते हुए बोली," क्या भाभी, अब तो शर्म छोड़ दो।"
फिर पूजा अपनी जगह पर जाकर बैठ गई।
पूरा चेहरा पसीने से भीग के लथपथ हो गई थी। ऊपर नजर करने की बात तो दूर, हिलने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी मेरी।
तभी अंकल अपने जेब से रूमाल निकाल के देते हुए बोले," देखो तो, घूँघट रखने से कितना नुकसान होता है।इतनी खूबसूरत चेहरे पसीने से खराब हो रही थी सो अलग और तुम परेशान थी सो अलग। लो साफ कर लो पसीना।"
अंकल थे कि मुझे लगातार खुलने के लिए विवश कर रहे थे और एक मैं थी कि शर्म कम करना तो दूर और बढ़ा ही रही थी।
अब अगर अंकल की बात नहीं मानती तो वो मुझे यकीनन पुरानी ख्याल वाली लड़की समझ बैठते। सो थोड़ी हिम्मत कर के उनके हाथ से रूमाल ले ली और पसीने पोँछने लगी।चेहरा साफ करने के बाद अपना पल्लू माथे पर कर ली। अब घूँघट करने की बात तो सोच भी नहीं सकती थी।
"गुड बेटा, अब थोड़ी थोड़ी हमारी बेटी की तरह लग रही हो" कहते हुए अंकल हँस दिए। उधर पूजा सिर्फ हम दोनों की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी,बोल कुछ नहीं रही थी। पता नहीं पागल क्या सोच के चुप थी।कम से कम मेरे बदले तो कुछ बोलती।
मेरी भी डर अब भाग रही थी।
"क्या बातें हो रही देवर जी?"तभी पीछे से मम्मी जी आवाज सुनाई दी जो कि अंकल को देख कर पूछी थी।
मम्मी जी की तरफ सब घूम के देखने लगे।मैं उठ के खड़ी हो गई।
"अरे बेटी,तुम बैठो ना! पूजा कुर्सी ला दो। भाभी जी, बहू आ गई तो आप गायब ही रहती हैं। अब तो बच्चों के साथ ही गप्पे लड़ाना पड़ेगा।" अंकल मम्मी को ताना देते हुए बोले।
तब तक पूजा कुर्सी ला दी।मम्मी के बैठने के बाद मैं और पूजा भी बैठ गई।मम्मी जी के साथ साथ हम सब भी अंकल की बातें सुन हँस पड़ी।
"भाभी जी, मैं अपनी बेटी को फुर्सत के अभाव में मुँह देखाई नहीं दे पाया। बस इसी कारण आते ही यहाँ आया हूँ, वर्ना आप तो ताने देते देते मेरी जान ले लेते।"अंकल मुस्कुरा कर अपनी सफाई देते हुए बोले।
अब मेरी भी समझ में आ गई थी कि अंकल क्यों बुला रहे थे।
"ही ही ही. . आप अपनी बेटी को नहीं देते ऐसा कभी हो सकता है क्या? अगर ऐसा आप सोचते भी तो सच में आपकी जान ले लेती।" मम्मी जी भी हँसते हुए बोली।
सच कहूँ तो मैं सोची भी नहीं थी कि मेरे ससुराल में इतने अच्छे परिवार मिलेंगे। मेरे ससुर जी और अंकल दोनों भाई में अकेले ही थे, और चचेरे भाई में इतना लगाव आज पहली बार देखी।
तभी अंकल बाहर गए और कुछ ही देर में हाथ में एक बड़ा पैकेट लेते आए। वो शायद बाहर गेस्ट रूम में रखे थे। आते ही मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोले," लो बेटा, मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट। पसंद ना आए तो बता देना क्योंकि मैं अपनी मर्जी से लिया हूँ।"
मैं हल्की सी शर्माती हुई पैकेट ले ली।
मैं पूजा की तरफ नजर दौड़ाई तो वो मेरी तरफ देख कर अभी भी मुस्कुरा रही थी। मैं नजरें चुरा कर उसे चलने को कहा। वो भी बात को तुरंत समझ गई और उठती हुई बोली,"अंकल, आप लोग बात कीजिए मैं चाय लाती हूँ। चलो भाभी।"
इतना सुनते ही मैं जल्दी से खड़ी हुई और सीधे रूम की तरफ बढ़ गई। पूजा भी पीछे से हंसती हुई आई।
रूम में आते ही पूजा पीछे से लिपटती हुई बोली," भाभी, अभी मत खोलना पैकेट। मैं आती हूँ तो मैं भी देखूंगी सो प्लीज।"
मेरी हँसी निकल गई। मैं हँसते हुए बोली,"अच्छा ठीक है।"
फिर मेरी गालोँ पर किस कर पूजा चली गई। मैं भी पैकेट रख पूजा के आने तक बैठ के इंतजार करने लगी।












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