FUN-MAZA-MASTI
होली का असली मजा--13
रीतू भाभी की दो एक्सपर्ट उंगलिया मेरी गांड में गोल गोल घूम रही थीं और एक दूसरी भाभी ने चूत में सेंध लगा दी।
आगे भी दो ऊँगली घुस गयी और साथ साथ सटासट गांड और बुर दोनों भाभियों की उंगलियो से चुद रही थी।
लेकिन तभी एक गड़बड़ हो गयी। मुझे बचाने मेरी छोटी बहन छुटकी आ गयी और वो पकड़ ली गयी।
दी तीन भाभियों ने उसे ले जा के आंगन में जहाँ खूब रंग बह रहा था वहाँ लिटा दिया और सबसे पह्ले मिश्राइन भाभी ने नंबर लगाया।
जीजा तो तब भी कुँवारी सालियों से कुछ झिझकते हैं , सोचते हैं ,
लेकिन भाभियाँ तो कुँवारी रसभीनी ननदों को देख के और बौरा जाती हैं , और इस बार भी वही हुआ।
तीन तीन भाभियाँ एक साथ छुटकी पे ,
कुछ ही देर में उसके दोनों टिकोरे , और गुलाबी परी फ्राक से बाहर थे और भाभियों के हाथ में ,
लेकिन मिश्राइन भाभी , जो भाभियों में सबसे प्रौढ़ा थीं , उन्होंने असली मोर्चा खोला ,
" अरे होलियों के दिन ननद को बुर का स्वाद न चखाया तो क्या मजा। " उन्होंने साडी साया , अपना उठाया , कमर में लपेटा और सीधे छुटकी के ऊपर ,
मुझे अपनी ससुराल की होली याद आगयी ,
मेरी जेठानी ने एक कच्ची कली का , जो छुटकी से भी छोटी लग रही थी , न सिर्फ चूत चटवाई थी बल्कि 'सुनहला शरबत 'भी पिलाया था , और ऩीने खुद अपनी सगी छोटी ननद को जो इस छुटकी की ही समौरिया ही होगी , को चूत चटाई थी और , ' सुनहला शरबत ' भी पिलाया था।
छुटकी थोडा इधर उधर कर रही थी , लेकन एक भाभी ने दोनों हाथो से उसका सर जोर से पकड़ लिया और अब वो मिश्राइन भाभी कि जाँघों के बीच फँसी , दबी , किकिया रही थी।
लेकिन वो अभी भी मुंह खोलने में नखड़े कर रही थी। बस , मिश्राइन भाभी ने जोर से उसके नथुने दबा दिए , " बोल छिनार खोलेगी मुंह की नहीं , खोल साली , "
और थोड़ी देर में जैसे ही उसने मुंह खोला अपनि रसीली खेली खायी बुर उन्होंने छुटकी के खुले मुंह पे चिपका दी और लगी रगड़ने।
किसी और भाभी ने कुछ बोला कि अकेले अकेले नयी बछेड़ी पे सवारी कर रही हो तो वो हंस के बोली , " अरे तब तक तुम इसकी रस् मलायी का रस निकालो , मेरे बाद तुम भी चटवा लेना। "
वो भाभी बस अपनी गदोरियों से छुटकी की चूत जोर जोर से रगड़ने लगी। और छुटकी की चूत भी थोड़ी देर में पानी फेंकने लगी।
कुछ देर छुटकी के मुंह पे अपनी बुर रगड़ के , मिश्राइन भाभी शांत हो के बैठ गयी और छुटकी से बोलीं
" सन मैं ननदो को बस पांच मिनट का टाइम देती हूँ पानी निकालने के लिए , तू नयी है चल छह मिनट ले ले। लेकिन एक मिनट भी ज्यादा लगा न , तो कुहनी तक हाथ गांड में पेल दूंगी , चाहे फटे चाहे जो हो। और अब मैं कुछ नहीं करुँगी , तू चाट चूस , चाहे जो कर।
थोड़ी ही देर में छुटकी , लप लप भाभी की बुर चाट रही थी , जीभ पूरी ऊपर से नीचे तक सपड़ सपड़, और दोनों होंठो को बुर में लगा के पूरी ताकत से चूसने लगी।
मैं तारीफ से उसे देख रही थी , और छः नहीं बल्कि पांच मिनट में ही मिश्राइन भाभी को झाड़ दिया।
लेकिन उससे भी उसे छुट्टी नहीं मिली।
अब मिश्राइन भाभी उचक के थोड़ी और सरक गयी थीं और उससे अपनी गांड चटवा रही थीं।
मेरी हालत भी ख़राब थी , मेरी छिनार भौजाइयां , मुझे झाड़ने के कगार पे ले जा के छोड़ दे रही थीं , रीतू भाभी तो क्या कोई मर्द गांड मारेगा , जिस तरहसे उनकी उंगलिया अंदर बाहर हो रही थीं।
मिश्राइन भाभी ने छुटकी को गांड चटाते , वहीँ से आवाज लगायी ,
" अरे रीतू , ननद को मन्जन कराया की नहीं "
बस इशारा बहुत था , रीतू भाभी की उंगलिया अब मेरी गांड में , करोचते हुए चम्मच की तरह , गांड की सारी भीतरी दिवालो पे और जब उन्होंने ऊँगली निकाली , बाकी दोनों भाभियों ने जोर से मेरे गाल दबाये और मेरा मुंह खुल गया।
रीतू भाभी की उंगली सीधे मुंह के अंदर , दांतो पे, ऊपर नीचे।
और चार पांच मिनट 'मन्जन ' कराने के बाद जो बचा खुचा था , सीधे मेरे गालों पे और बोलीं
" रूप निखार आया है मेरी ननद का , हल्दी और चन्दन से "
तीन चार भाभियाँ मेरे साथ थी , तीन छुटकी के साथ , और बाकी की मम्मी के पास ,… आखिर सास बहु की होली भी तो ,… (और मैं अपने ससुराल में देख ही चुकी थी , मेरी मम्मी कौन सी कम थी। )
देर तक ये होली चलती रही , बस मुझे ये लगा रहा था की इन का ध्यान मेरी और छुटकी के चक्कर में , अभी ' इनकी ' ओर नहीं गया।
लेकिन रानू को याद आ गया और वो बोल पड़ी ,
" हे नंदोई को कही अपने बुर में छिपा रखा है क्या "
तो दूसरी जो छुटकी के पास थी बोली , अरे पहले उनकी साली कि बुर चेक करो ,
लेकिन तब तक वो सीढ़ियों से आ गए और , मुझे और छुटकी को छोड़ सारी भाभियाँ बस उनके पीछे पद गयीं और उनकी जम के रगड़ाई शुरू हो गयी।
क्या रगड़ाई हुयी 'उनकी '.
मेरी जो मेरी ससुराल में 'दुरगत ' हुयी थी , वो कुछ नहीं थी इसके आगे।
कपड़ों के जो चिथड़े हुए वो तो कुछ नहीं , हाँ पैंट उतारने का काम रीतू भाभी ने किया , आखिर सबसे छोटी सलहज जो थीं।
लेकिन मिश्राइन भाभी से ले के रीतू भाभी तक ने , मेरी ससुराल और उनकी मायकेवालियों को 'उन्ही ' से एक से एक गालियां दिलवायीं।
कोई 'अंग ' नहीं बचा होगा , देह का एक एक इंच नहीं जहाँ कालिख और पेंट के दो चार कोट न चढ़े हों , रंगो की तो गिनती नहीं।
वो सिर्फ एक छोटी से चड्ढी में थे और , भाभियों की शैतानियों से खूंटा एकदम तना हुआ।
अब ये हुआ की चड्ढी कौन उतारेगा , वस्त्र हरण का आखिरी भाग।
और मिश्राइन भाभी ने फैसला सूना दिया , " ये काम सिर्फ छोटी साली का है '
छुटकी कुछ शर्मायी , कुछ घबड़ायी। लेकिन रीतू भाभी ने पकड़ कर कर दिया , और वो भी ,आखिर बहन तो मेरी ही थी।
इस शैतान ने पहले तो रंग बिरंगी चड्ढी के ऊपर अपने कोमल किशोर हाथ रगड़ रगड़ के , बिजारे अपने जीजू के खूंटे की हालत और खऱाब कर दी ,
फिर एक झटके में चड्ढी नीचे और लम्बा मोटा उनका बित्ते भर का खूंटा बाहर ,जैसे बटन दबाने से स्प्रिंग वाला चाक़ू निकल जाए।
सारी भाभियों के मुंह से सिसकारी निकल गयी।
रानू भाभी ने मेरे कान में कहा , " बिन्नो तेरी किस्मत तो बड़ी जबरदस्त है। "
मेरी मुस्कराहट ने हामी भरी।
तब तक सारी भाभियाँ अपनी सबसे छोटी ननद , छुटकी के पीछे पड़ गयीं थी।
रीतू भाभी ने उससे लंड का सुपाड़ा खुलवाया , एकदम मोटा लाल टमाटर जैसा।
" खाली मुठियाने से छोटी साली का काम पूरा नहीं होता , चल मुंह खोल के घोंट पूरा। " मिश्राइन भाभी ने हुकुम सुनाया।
और हुकुम तो हुकुम , और अंजाम देने का काम रीतू भाभी का।
"चल मुंह खोल , बोल आआआ , जैसे खूब बड़ा सा लड्डू खाना है एक बार में " रीतू भाभी बोलीं।
छुटकी कुछ हिचकिचा रही थी , लेकिन मिश्राइन भाभी बोलीं , " मुंह में नहीं लेना है , तो चूत और गांड दोनों में लेना होगा , अभी हमारे सामने "
छुटकी के गाल दो भाभियो ने दबा दिए , उसने चिड़िया की चोंच की तरह खोल दिया मुंह और रीतू भाभी ने अपने नंदोई का लंड , अपनी छोटी ननद के कुंवारे मुंह में डाल दिया और 'उनसे' बोलीं
" अरे नंदोई जी , होली के दिन कुँवारी साली मिल रही छोड़ो मत , हचक के लो। साल भर नया नया माल मिलेगा। '
मुझे विश्वास नहीं हो रहा था , सुहागरात के दिन जिस सुपाड़े को घोंटने , चूसने में मेरी हालत खराब हो गयी थी , वो छुटकी ने घोंट लिया।
रीतू भाभी लंड पकड़ के ठेल रही थीं , वो भी कस के अपनी छोटी साली का सर पकड़े थे।
छुटकी गों गों करती रही , लेकिन वो और रीतू भाभी मिल के ठेलते रहे। आधा लंड तो घुसेड़ ही दिया होगा।
५-१० मिनट चूसने के बाद ही छुटकी को भाभियों ने छोड़ा।
और उसके बाद मंझली का नंबर , उसने चूसा, मजे ले के चाटा और करीब ३/४ घोंट गयी।
तब तक किसी भाभी को याद आया की ' उन्हें ' लेके बाहर भी जाना है।
फिर उनका श्रृंगार शुरू हुआ , साडी ,चोली , ब्रा , महावर , मेंहदी , नथ , काजल , बिंदी, लिपस्टिक , कानों में झुमके , चूड़ियाँ , पाजेब।
देख के कोई कह नहीं सकता था की नयी बहु नहीं है 'वो '
और जो कुछ नयी बहु से करवाया जाता था वो सब करवाया गया।
मोहल्ले का कुँवा झंकवाया गया , घर घर जाके बुजुर्ग औरतों के पाँव छुए , एक जगह तो ढोलक भी उनसे बजवाई गई और कहीं आशीर्वाद भी मिला , ठीक नौ महीने में सोहर हो।
और साथ में जबरदंग होली भी हर घर में सलहज और साली के साथ।
शायद ही कोई साली , सलहज बची होगी जिसका जम के जोबन मरदन और योनि मसलन और ऊँगली से गहराई कि नाप जोख उन्होंने न की हो।
और साली सलहजो ने उनसे भी ज्यादा , उनके मस्त जबरदंग औजार के मजे लिए. आखिर वो होली क्या , जिसमें सलहज साली , नंदोई , जीजा के साथ मस्ती न करें।
हम सब घर लौटे तो दो बजने वाले थे। बस उसी आंगन में नहाये।
कुछ रंग छूटा , ज्यादा नहीं छूटा।
लेकिन होली का रंग अगर एक दिन में छूट जाए तो कौन सा रंग। मम्मी ने खाना बना रखा था , पूड़ी , कचौड़ी , पूआ , तरह तरह की सब्जी। दो साली और सास खिलाने वाली , पूछ के जिद के कर के , अपने हाथ से , जम के खाया इन्होने।
और खाने के बाद मैं और ये अपने कमरे में सो गए , एकदम चिपक कर।
तुरन्त नींद आ गयी ( सच कोई बदमाशी नहीं की , कितने रातों की मैं जगी थी , और इन्होने अपनी ताकत ससुराल वालियों के लिए बचा रखी थी ) . ये तो जल्दी उठगये मैं देर तक सोती रही। उठी तो शाम , नीम की फुनगियों से आँगन में उतर आयी थी।
मैं निकली तो ये बरामदे में बैठे हुए थे ,भुकुरे। मुंह उतरा। मैंने लाख पुछा , लेकिन उन्होंने नहीं बताया।
मम्मी किचेन में थी वो भी थोड़ी उदास। थोड़ी देर बाद पता चला गड़बड़ क्या हुयी।
कुछ छुटकी की गलती , कुछ इनकी गलती। लेकिन मैं इनकी गलती ज्यादा मानती थी। इनको सोचना चाहिए था की ससुराल में है कहीं ,…
हुआ ये की तिजहरिया में जब सब सो रहे थे इन्होने छुटकी पे घात लगायी , सुबह मंझली के साथ तो इन्होने मजे लिए ही थी और ऊपर झाँपर का छुटकी के साथ भी खूब लिया था। लेकिन 'गृह प्रवेश ' नहीं हुआ था।
छुटकी ने शुरू में थोड़े नखड़े बनाये , नहीं जीजा नहीं , और इन्होने थोड़ी जबरदस्ती की। खेल तमाशा शुरू हुआ। टिकोरों के मजे तो उन्होंने खूब लिए , लेकिन जब गली में घुसने का समय आया तो गड़बड़ हो गयी
वो भी तो थी बस अभी जवानी की दहलीज पे खड़ी , ९वें में पढ़ने वाली किशोरी , कच्ची कली कचनार की।
जब उन्होंने अपना औजार उस की परी पे थोड़ी देर रगड़ा , तब तक वो सिसकारी भरती रही। लेकिन अंगूठे से फैला के जब उन्होंने उस की कच्ची कली में ठेला तो वो बहुत जोर से चिल्लाई।
और उनके एक एक दो धक्के के बाद ही उसके आंसू निकलने लगे।
अभी सुपाड़ा ठीक से घुसा भी नहीं था।
फिर वो जोर जोर से चिल्लाने लगी , " प्लीज जीजू , छोड़ दीजिये , मुझे नहीं करवाना। बहोत दर्द हो रहा है। निकाल लीजिये। "
उन्होंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी और जिद करती रही , मुझे नहीं करवाना। एकदम नहीं।
और उनका भी मूड बिगड़ गया , उन्होंने निकाल लिया और चले गए।
तब से उनका मूड भुकरा था।
मम्मी ने छुटकी को भी समझाया , वो भी मान रही थी कि उससे गड़बड़ हुयी लेकिन अब क्या कर सकते थे।
मेरी पूरी सहानुभति उनके साथ थी , लेकिन मुझे ये भी लग रहा की गलती उन्ही से हुयी।
चिल्लाने देते छुटकी को , पेल देते उसकी दोनों कलाई पकड़ के। एक बार लंड ठीक से घुस जाता , तो बस लाख चूतड़ पटकती , बिना चोदे नहीं छोड़ते।
कुछ देर में खुद ही उसे मजा आने लगता। लेकिन कौन समझाए , ये भी। कोई जरा भी रोये चिल्लाये तो देख नहीं सकते।
मैं छुटकी के पास गयी।
सोचा उसे डाँटूगी। लेकिन वो खुद रुंआसी बैठी थी। मेरी गोद में सर रख कर उस की डब डब हो रही आँखों से आंसू गिरने लगे।
" दी , सारी गलती मेरी है। मैं भी बेवकूफ हूँ। जीजा जी , बिचारे इतनी मुस्किल से होली में आये , अपना घर छोड़ के। और मैं भी , थोडा सा दर्द बर्दास्त कर लेती , मुझे नहीं लग रहा था की वो निकाल ,…
कितने गुस्सा हैं। अब तो नहीं लगता जिंदगी भर मुझसे बोलेंगे। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं उनसे माफी माँगने को तैयार हूँ , प्लीज दी एक बार जीजू से बोल दो न , मुझसे बात कर लें। अब कभी मैं ,… "
मैं बाहर निकली तो ये अब बरामदे में नहीं थे ना मेरे कमरे में।
मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। किधर गए वो ?
फिर लगा शायद बाहर घूमने निकल गए होंगे।
तब तक रीतू भाभी आ गयी।
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होली का असली मजा--13
रीतू भाभी की दो एक्सपर्ट उंगलिया मेरी गांड में गोल गोल घूम रही थीं और एक दूसरी भाभी ने चूत में सेंध लगा दी।
आगे भी दो ऊँगली घुस गयी और साथ साथ सटासट गांड और बुर दोनों भाभियों की उंगलियो से चुद रही थी।
लेकिन तभी एक गड़बड़ हो गयी। मुझे बचाने मेरी छोटी बहन छुटकी आ गयी और वो पकड़ ली गयी।
दी तीन भाभियों ने उसे ले जा के आंगन में जहाँ खूब रंग बह रहा था वहाँ लिटा दिया और सबसे पह्ले मिश्राइन भाभी ने नंबर लगाया।
जीजा तो तब भी कुँवारी सालियों से कुछ झिझकते हैं , सोचते हैं ,
लेकिन भाभियाँ तो कुँवारी रसभीनी ननदों को देख के और बौरा जाती हैं , और इस बार भी वही हुआ।
तीन तीन भाभियाँ एक साथ छुटकी पे ,
कुछ ही देर में उसके दोनों टिकोरे , और गुलाबी परी फ्राक से बाहर थे और भाभियों के हाथ में ,
लेकिन मिश्राइन भाभी , जो भाभियों में सबसे प्रौढ़ा थीं , उन्होंने असली मोर्चा खोला ,
" अरे होलियों के दिन ननद को बुर का स्वाद न चखाया तो क्या मजा। " उन्होंने साडी साया , अपना उठाया , कमर में लपेटा और सीधे छुटकी के ऊपर ,
मुझे अपनी ससुराल की होली याद आगयी ,
मेरी जेठानी ने एक कच्ची कली का , जो छुटकी से भी छोटी लग रही थी , न सिर्फ चूत चटवाई थी बल्कि 'सुनहला शरबत 'भी पिलाया था , और ऩीने खुद अपनी सगी छोटी ननद को जो इस छुटकी की ही समौरिया ही होगी , को चूत चटाई थी और , ' सुनहला शरबत ' भी पिलाया था।
छुटकी थोडा इधर उधर कर रही थी , लेकन एक भाभी ने दोनों हाथो से उसका सर जोर से पकड़ लिया और अब वो मिश्राइन भाभी कि जाँघों के बीच फँसी , दबी , किकिया रही थी।
लेकिन वो अभी भी मुंह खोलने में नखड़े कर रही थी। बस , मिश्राइन भाभी ने जोर से उसके नथुने दबा दिए , " बोल छिनार खोलेगी मुंह की नहीं , खोल साली , "
और थोड़ी देर में जैसे ही उसने मुंह खोला अपनि रसीली खेली खायी बुर उन्होंने छुटकी के खुले मुंह पे चिपका दी और लगी रगड़ने।
किसी और भाभी ने कुछ बोला कि अकेले अकेले नयी बछेड़ी पे सवारी कर रही हो तो वो हंस के बोली , " अरे तब तक तुम इसकी रस् मलायी का रस निकालो , मेरे बाद तुम भी चटवा लेना। "
वो भाभी बस अपनी गदोरियों से छुटकी की चूत जोर जोर से रगड़ने लगी। और छुटकी की चूत भी थोड़ी देर में पानी फेंकने लगी।
कुछ देर छुटकी के मुंह पे अपनी बुर रगड़ के , मिश्राइन भाभी शांत हो के बैठ गयी और छुटकी से बोलीं
" सन मैं ननदो को बस पांच मिनट का टाइम देती हूँ पानी निकालने के लिए , तू नयी है चल छह मिनट ले ले। लेकिन एक मिनट भी ज्यादा लगा न , तो कुहनी तक हाथ गांड में पेल दूंगी , चाहे फटे चाहे जो हो। और अब मैं कुछ नहीं करुँगी , तू चाट चूस , चाहे जो कर।
थोड़ी ही देर में छुटकी , लप लप भाभी की बुर चाट रही थी , जीभ पूरी ऊपर से नीचे तक सपड़ सपड़, और दोनों होंठो को बुर में लगा के पूरी ताकत से चूसने लगी।
मैं तारीफ से उसे देख रही थी , और छः नहीं बल्कि पांच मिनट में ही मिश्राइन भाभी को झाड़ दिया।
लेकिन उससे भी उसे छुट्टी नहीं मिली।
अब मिश्राइन भाभी उचक के थोड़ी और सरक गयी थीं और उससे अपनी गांड चटवा रही थीं।
मेरी हालत भी ख़राब थी , मेरी छिनार भौजाइयां , मुझे झाड़ने के कगार पे ले जा के छोड़ दे रही थीं , रीतू भाभी तो क्या कोई मर्द गांड मारेगा , जिस तरहसे उनकी उंगलिया अंदर बाहर हो रही थीं।
मिश्राइन भाभी ने छुटकी को गांड चटाते , वहीँ से आवाज लगायी ,
" अरे रीतू , ननद को मन्जन कराया की नहीं "
बस इशारा बहुत था , रीतू भाभी की उंगलिया अब मेरी गांड में , करोचते हुए चम्मच की तरह , गांड की सारी भीतरी दिवालो पे और जब उन्होंने ऊँगली निकाली , बाकी दोनों भाभियों ने जोर से मेरे गाल दबाये और मेरा मुंह खुल गया।
रीतू भाभी की उंगली सीधे मुंह के अंदर , दांतो पे, ऊपर नीचे।
और चार पांच मिनट 'मन्जन ' कराने के बाद जो बचा खुचा था , सीधे मेरे गालों पे और बोलीं
" रूप निखार आया है मेरी ननद का , हल्दी और चन्दन से "
तीन चार भाभियाँ मेरे साथ थी , तीन छुटकी के साथ , और बाकी की मम्मी के पास ,… आखिर सास बहु की होली भी तो ,… (और मैं अपने ससुराल में देख ही चुकी थी , मेरी मम्मी कौन सी कम थी। )
देर तक ये होली चलती रही , बस मुझे ये लगा रहा था की इन का ध्यान मेरी और छुटकी के चक्कर में , अभी ' इनकी ' ओर नहीं गया।
लेकिन रानू को याद आ गया और वो बोल पड़ी ,
" हे नंदोई को कही अपने बुर में छिपा रखा है क्या "
तो दूसरी जो छुटकी के पास थी बोली , अरे पहले उनकी साली कि बुर चेक करो ,
लेकिन तब तक वो सीढ़ियों से आ गए और , मुझे और छुटकी को छोड़ सारी भाभियाँ बस उनके पीछे पद गयीं और उनकी जम के रगड़ाई शुरू हो गयी।
क्या रगड़ाई हुयी 'उनकी '.
मेरी जो मेरी ससुराल में 'दुरगत ' हुयी थी , वो कुछ नहीं थी इसके आगे।
कपड़ों के जो चिथड़े हुए वो तो कुछ नहीं , हाँ पैंट उतारने का काम रीतू भाभी ने किया , आखिर सबसे छोटी सलहज जो थीं।
लेकिन मिश्राइन भाभी से ले के रीतू भाभी तक ने , मेरी ससुराल और उनकी मायकेवालियों को 'उन्ही ' से एक से एक गालियां दिलवायीं।
कोई 'अंग ' नहीं बचा होगा , देह का एक एक इंच नहीं जहाँ कालिख और पेंट के दो चार कोट न चढ़े हों , रंगो की तो गिनती नहीं।
वो सिर्फ एक छोटी से चड्ढी में थे और , भाभियों की शैतानियों से खूंटा एकदम तना हुआ।
अब ये हुआ की चड्ढी कौन उतारेगा , वस्त्र हरण का आखिरी भाग।
और मिश्राइन भाभी ने फैसला सूना दिया , " ये काम सिर्फ छोटी साली का है '
छुटकी कुछ शर्मायी , कुछ घबड़ायी। लेकिन रीतू भाभी ने पकड़ कर कर दिया , और वो भी ,आखिर बहन तो मेरी ही थी।
इस शैतान ने पहले तो रंग बिरंगी चड्ढी के ऊपर अपने कोमल किशोर हाथ रगड़ रगड़ के , बिजारे अपने जीजू के खूंटे की हालत और खऱाब कर दी ,
फिर एक झटके में चड्ढी नीचे और लम्बा मोटा उनका बित्ते भर का खूंटा बाहर ,जैसे बटन दबाने से स्प्रिंग वाला चाक़ू निकल जाए।
सारी भाभियों के मुंह से सिसकारी निकल गयी।
रानू भाभी ने मेरे कान में कहा , " बिन्नो तेरी किस्मत तो बड़ी जबरदस्त है। "
मेरी मुस्कराहट ने हामी भरी।
तब तक सारी भाभियाँ अपनी सबसे छोटी ननद , छुटकी के पीछे पड़ गयीं थी।
रीतू भाभी ने उससे लंड का सुपाड़ा खुलवाया , एकदम मोटा लाल टमाटर जैसा।
" खाली मुठियाने से छोटी साली का काम पूरा नहीं होता , चल मुंह खोल के घोंट पूरा। " मिश्राइन भाभी ने हुकुम सुनाया।
और हुकुम तो हुकुम , और अंजाम देने का काम रीतू भाभी का।
"चल मुंह खोल , बोल आआआ , जैसे खूब बड़ा सा लड्डू खाना है एक बार में " रीतू भाभी बोलीं।
छुटकी कुछ हिचकिचा रही थी , लेकिन मिश्राइन भाभी बोलीं , " मुंह में नहीं लेना है , तो चूत और गांड दोनों में लेना होगा , अभी हमारे सामने "
छुटकी के गाल दो भाभियो ने दबा दिए , उसने चिड़िया की चोंच की तरह खोल दिया मुंह और रीतू भाभी ने अपने नंदोई का लंड , अपनी छोटी ननद के कुंवारे मुंह में डाल दिया और 'उनसे' बोलीं
" अरे नंदोई जी , होली के दिन कुँवारी साली मिल रही छोड़ो मत , हचक के लो। साल भर नया नया माल मिलेगा। '
मुझे विश्वास नहीं हो रहा था , सुहागरात के दिन जिस सुपाड़े को घोंटने , चूसने में मेरी हालत खराब हो गयी थी , वो छुटकी ने घोंट लिया।
रीतू भाभी लंड पकड़ के ठेल रही थीं , वो भी कस के अपनी छोटी साली का सर पकड़े थे।
छुटकी गों गों करती रही , लेकिन वो और रीतू भाभी मिल के ठेलते रहे। आधा लंड तो घुसेड़ ही दिया होगा।
५-१० मिनट चूसने के बाद ही छुटकी को भाभियों ने छोड़ा।
और उसके बाद मंझली का नंबर , उसने चूसा, मजे ले के चाटा और करीब ३/४ घोंट गयी।
तब तक किसी भाभी को याद आया की ' उन्हें ' लेके बाहर भी जाना है।
फिर उनका श्रृंगार शुरू हुआ , साडी ,चोली , ब्रा , महावर , मेंहदी , नथ , काजल , बिंदी, लिपस्टिक , कानों में झुमके , चूड़ियाँ , पाजेब।
देख के कोई कह नहीं सकता था की नयी बहु नहीं है 'वो '
और जो कुछ नयी बहु से करवाया जाता था वो सब करवाया गया।
मोहल्ले का कुँवा झंकवाया गया , घर घर जाके बुजुर्ग औरतों के पाँव छुए , एक जगह तो ढोलक भी उनसे बजवाई गई और कहीं आशीर्वाद भी मिला , ठीक नौ महीने में सोहर हो।
और साथ में जबरदंग होली भी हर घर में सलहज और साली के साथ।
शायद ही कोई साली , सलहज बची होगी जिसका जम के जोबन मरदन और योनि मसलन और ऊँगली से गहराई कि नाप जोख उन्होंने न की हो।
और साली सलहजो ने उनसे भी ज्यादा , उनके मस्त जबरदंग औजार के मजे लिए. आखिर वो होली क्या , जिसमें सलहज साली , नंदोई , जीजा के साथ मस्ती न करें।
हम सब घर लौटे तो दो बजने वाले थे। बस उसी आंगन में नहाये।
कुछ रंग छूटा , ज्यादा नहीं छूटा।
लेकिन होली का रंग अगर एक दिन में छूट जाए तो कौन सा रंग। मम्मी ने खाना बना रखा था , पूड़ी , कचौड़ी , पूआ , तरह तरह की सब्जी। दो साली और सास खिलाने वाली , पूछ के जिद के कर के , अपने हाथ से , जम के खाया इन्होने।
और खाने के बाद मैं और ये अपने कमरे में सो गए , एकदम चिपक कर।
तुरन्त नींद आ गयी ( सच कोई बदमाशी नहीं की , कितने रातों की मैं जगी थी , और इन्होने अपनी ताकत ससुराल वालियों के लिए बचा रखी थी ) . ये तो जल्दी उठगये मैं देर तक सोती रही। उठी तो शाम , नीम की फुनगियों से आँगन में उतर आयी थी।
मैं निकली तो ये बरामदे में बैठे हुए थे ,भुकुरे। मुंह उतरा। मैंने लाख पुछा , लेकिन उन्होंने नहीं बताया।
मम्मी किचेन में थी वो भी थोड़ी उदास। थोड़ी देर बाद पता चला गड़बड़ क्या हुयी।
कुछ छुटकी की गलती , कुछ इनकी गलती। लेकिन मैं इनकी गलती ज्यादा मानती थी। इनको सोचना चाहिए था की ससुराल में है कहीं ,…
हुआ ये की तिजहरिया में जब सब सो रहे थे इन्होने छुटकी पे घात लगायी , सुबह मंझली के साथ तो इन्होने मजे लिए ही थी और ऊपर झाँपर का छुटकी के साथ भी खूब लिया था। लेकिन 'गृह प्रवेश ' नहीं हुआ था।
छुटकी ने शुरू में थोड़े नखड़े बनाये , नहीं जीजा नहीं , और इन्होने थोड़ी जबरदस्ती की। खेल तमाशा शुरू हुआ। टिकोरों के मजे तो उन्होंने खूब लिए , लेकिन जब गली में घुसने का समय आया तो गड़बड़ हो गयी
वो भी तो थी बस अभी जवानी की दहलीज पे खड़ी , ९वें में पढ़ने वाली किशोरी , कच्ची कली कचनार की।
जब उन्होंने अपना औजार उस की परी पे थोड़ी देर रगड़ा , तब तक वो सिसकारी भरती रही। लेकिन अंगूठे से फैला के जब उन्होंने उस की कच्ची कली में ठेला तो वो बहुत जोर से चिल्लाई।
और उनके एक एक दो धक्के के बाद ही उसके आंसू निकलने लगे।
अभी सुपाड़ा ठीक से घुसा भी नहीं था।
फिर वो जोर जोर से चिल्लाने लगी , " प्लीज जीजू , छोड़ दीजिये , मुझे नहीं करवाना। बहोत दर्द हो रहा है। निकाल लीजिये। "
उन्होंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी और जिद करती रही , मुझे नहीं करवाना। एकदम नहीं।
और उनका भी मूड बिगड़ गया , उन्होंने निकाल लिया और चले गए।
तब से उनका मूड भुकरा था।
मम्मी ने छुटकी को भी समझाया , वो भी मान रही थी कि उससे गड़बड़ हुयी लेकिन अब क्या कर सकते थे।
मेरी पूरी सहानुभति उनके साथ थी , लेकिन मुझे ये भी लग रहा की गलती उन्ही से हुयी।
चिल्लाने देते छुटकी को , पेल देते उसकी दोनों कलाई पकड़ के। एक बार लंड ठीक से घुस जाता , तो बस लाख चूतड़ पटकती , बिना चोदे नहीं छोड़ते।
कुछ देर में खुद ही उसे मजा आने लगता। लेकिन कौन समझाए , ये भी। कोई जरा भी रोये चिल्लाये तो देख नहीं सकते।
मैं छुटकी के पास गयी।
सोचा उसे डाँटूगी। लेकिन वो खुद रुंआसी बैठी थी। मेरी गोद में सर रख कर उस की डब डब हो रही आँखों से आंसू गिरने लगे।
" दी , सारी गलती मेरी है। मैं भी बेवकूफ हूँ। जीजा जी , बिचारे इतनी मुस्किल से होली में आये , अपना घर छोड़ के। और मैं भी , थोडा सा दर्द बर्दास्त कर लेती , मुझे नहीं लग रहा था की वो निकाल ,…
कितने गुस्सा हैं। अब तो नहीं लगता जिंदगी भर मुझसे बोलेंगे। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैं उनसे माफी माँगने को तैयार हूँ , प्लीज दी एक बार जीजू से बोल दो न , मुझसे बात कर लें। अब कभी मैं ,… "
मैं बाहर निकली तो ये अब बरामदे में नहीं थे ना मेरे कमरे में।
मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। किधर गए वो ?
फिर लगा शायद बाहर घूमने निकल गए होंगे।
तब तक रीतू भाभी आ गयी।
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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