Saturday, May 31, 2014

बदनाम रिश्ते-- हमारा छोटा सा परिवार--33

बदनाम रिश्ते--
 हमारा छोटा सा परिवार--33




अक्कू ने मम्मी के लटकते गदराये उरोज़ों का मर्दन एक क्षण के लिए भी मन्दिम नहीं किया। मम्मी ने अपने नैसर्गिक भारी कोमल चूतड़ों को

ऊपर नीचे पटक कर अक्कू के लंड से अपनी चूत के चुदाई निरंतर तीव्र करने लगीं।

मेरी चूत के भीतर एक नन्हा मीठा सा दर्द और जलन भर चली थी। मैंने पापा के हाथों को अपने अविकसित कमसिन चूचियों के ऊपर और

भी कस कर दबा दिया। पापा समझ गए और उन्होंने जिस बेदर्दी से मेरी दोनों नाज़ुक चूचियों को मसला और मड़ोड़ा उस से मेरी चीखें उबाल

गयी। मेरे चूतड़ अविरत मेरी सूजी चूत को पापा के लंड के तनतनाते तने के ऊपर रगड़ रहे थे।

मैं कुछ हे देर में चीख मर कर फिर से झड़ गयी। इस बार पापा ने मुझे रुकने नहीं दिया और मेरे चूचियों को जकड़ कर मुझे ऊपर नीचे

कर कर मेरी चूत को अपने लंड पर रगड़ते रहे।

मम्मी अब सिस्कारियां मार रहीं थीं ," उउन्न्न्न अक्कू बेटा और ज़ोर से मेरी चूत मारो।"

अक्कू ने अब इस नयी चुदाई की मुद्रा को समझ लिया था और उसने नीचे से अपने कूल्हों को उठा कर मम्मी की चूत अपने लंड मारने

लगा। मम्मी और अक्कू ने अब एक अत्यंत सुंदर और प्रभावशाली ले बना ली थी।

जब मम्मी नीचे की ओर झटका मारती थी तब अक्कू अपने कूल्हों को पूरे ताकत से ऊपर की और धकेल देता था। अब मम्मी की यौनी से

'चपक-चपक' की मधुर अवाज़ें निकल रहीं थीं।

मम्मी की सुबकाई अब और तेज़ हो गयीं, 'अक्कू, मैं अब आने वाली हूँ। उउन्न्नह अक्कू ऊ….. ऊ ……. ऊ ……ऊ ………। आन्न्न्न्न्ह्ह्ह

अक्क ……. उउउउ …….. उउन्न्ग्ग्घ्ह्ह्ह्ह। "

मम्मी एक लम्बी चीख मर कर अक्कू के सीने के ऊपर ढलक गयीं। उनकी साँसे भारी और गहरी हो गयी थीं। अक्कू ने लपक कर मम्मी को

अपने बाँहों में भर लिया और प्यार से उनके माथे पर से पसीने की बूंदों को चुम कर चाट लिया।

मम्मी ने कुछ क्षणों बाद अक्कू को प्यार से चूमा, "मेरा बेटा कितनी काम उम्र में कैसा मर्द जैसा बन गया है?"

मम्मी की इस अलंकारिक विवेचना में गर्व, स्नेह और वात्सल्य कूट-कूट कर भरा हुआ था।

"मम्मी प्लीज़ अभी और चोदिये प्लीज़ ," अक्कू ने बच्चों की तरह मम्मी से उलाहना किया।

मम्मी ने भी माँ की तरह अपने आनंद को पूर्ण रूप से अंगीकार किये बिना फिर से अक्कू की इच्छानुसार उसके के लंड के ऊपर अपनी

मोहक नैसर्गिक रेशम सी मुलायम चूत को फिर से कूटने लगीं।

इस बार दोनों ने नादिदेपन तेज़ और भीषण चुदाई की।

मैं अब फिर से झड़ रही थी। मैं निढाल हो कर पापा के सीने के ऊपर ढलक गयी।

मम्मी और अक्कू ने हचक हचक कर उन्मत्त चुदाई करनी शुरू कर दी।

मम्मे के चूतड़ बिजली के तेज़ी से अक्कू क लंड के ऊपर नीचे हो रहे थे। अक्कू भी लय में ताल मिला कर अपने चूतड़ों को सही समय पे

ऊपर पटक कर मम्मी के चूत में अपना लंड जड़ तक धूंस देता था। मम्मी की सिस्कारियों में हल्की सी आनंदमयी पीड़ा की चीत्कार भी

शामिल हो गयी।

मम्मी कुछ मिनटों में ही फिर से चीख कर झड़ने लगीं ,"अक्कूऊऊऊ हाय मैं मर जाऊंगीं ऊऊह्ह्ह्ह अक्कूऊऊऊ उउउन्न्न्न्न

आन्न्न्न्नग्ग्घ्ह्ह्ह्ह। "

मम्मी का सुहाना लाल चेहरा अब पसीने से नहा उठा था।

मम्मी सुबकती हुई अक्कू के सीने के ऊपर ढुलक गयीं अकक्कु ने उन्हें बाँहों में जकड कर नीचे अपने लंड को मम्मी की चूत में पटकने लगा।

"मम्मी मैं भी आने वाला हूँ आपकी चूत में। मम्मीईईईए मैं झड़ने ………," अक्कू ने ज़ोर की सिसकारी मार कर अपना लंड मम्मी की चूत में

खोल दिया।

मम्मी ने अपनी उर्वर कोख के ऊपर जैसे ही अपने बेटे की गरम जननक्षम वीर्य की फ़ुहार को महसूस किया वो फिर से झड़ गयीं। अक्कू ,

मुझे पता था, जब झड़ता है तो रुकने का नाम ही नहीं लेता।

मम्मी और अक्कू एक दुसरे से लिपटे गहरी साँसों से भरे चुम्बनों की एक दुसरे के ऊपर बौछार कर रहे थे।

"पापा आप भी मुझे चोदेंगे न ?" मैंने सुबक कर पापा से पूछा।

"बिलकुल सुशी बेटा यदि तुमने अपना मन नहीं बदल दिया तो ," पापा ने मुझे चिढ़ाया।

मैं मुड़ कर पापा से लिपट गयी। मैंने पापा के सुंदर चेहरे को अपने चुंबनों से गीला कर दिया।

जब हमारा ध्यान मम्मी और अक्कू की तरफ गया तब तक अक्कू ने मम्मी को पलट कर बिस्तर पर लिटा दिया थे और उसका अतृप्य लंड

पूर्ण तनतना कर मम्मी की चूत में धंसा हुआ था।

"मेरे बेटे का अपनी माँ की चूत से अभी मन नहीं भरा ?" मम्मी की प्यार भरी गुहार में आकाश से भी विस्तृत वात्सल्य भरा हुआ था।

"मम्मी पूरी ज़िंदगी में भी मन नहीं भरेगा," अक्कू ने मम्मी की सुंदर नासिका की नोक को काट कर कहा।

अक्कू के वचन बिलकुल सत्य थे। आज तक मम्मी और अक्कू को कुछ हफ़्तों तक भी अलग रहना पड़े तो दोनों विचलित हो जातें हैं।

"तो फिर अपनी माँ को भोगो न अक्कू। तेरी मम्मी अब सारी ज़िंदगी तू जब चाहे तेरे लिए समर्पित है ," मम्मी ने अपनी गुदाज़ भरी भरी बाँहों

को अक्कू के गले का हार बना कर उसे अपने उरोज़ों के ऊपर जकड़ लिया।

अक्कू ने मम्मी के मुंह के ऊपर अपना खुला मुंह दबा कर अपने लंड को सुपाड़े तक निकाल कर एक भीषण धक्के से जड़ तक मम्मी की

चूत में ठूंस दिया।

न चाहते हुए भी मम्मी की सुबकाई निकल गयी ," आह अक्कू कितनी बेदर्दी से अपनी माँ की चूत मरता है रे तू। "

मम्मी के शब्द उनके शरीर की प्रतिकिर्या को झुठला रहे थे। उन्होंने अपने चूतड़ों को बिस्तर से ऊपर उठा कर अपने बेटे के प्रचंड लंड का

स्वागत सा किया।

अक्कू ने जैसे वो बवंडर तूफ़ान की तरह मुझे गांड में चोदता था उसने उसी प्रकार की जानलेवा चुदाई प्रारम्भ कर दी।

मम्मी के सिस्कारियां शुरू हुईं तो उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया। अक्कू के हर धक्के से मम्मी का सारा शरीर सर से पैर तक हिल

उठा।

"आअह अक्क्कूऊऊ ज़ोर से चोदो अक्कूऊऊऊ आअन्न्न्ह्ह आआह्ह्ह बेटाआआआआ ज़ोओओओओररर से चोदो मुझे। "

मम्मी अक्कू के धक्कों से बिलबिला उठीं पर उनके कामोन्माद की पराकाष्ठा वायु मंडल के भी दूर तक चली गयी।

अक्कू ने अपने हाथो को बिस्तर पर टिका कर मम्मी की चूत का मर्दन स्नेह भरे निर्मम प्रचंड प्रहारों से जो प्रारम्भ किया उसके बाद उसने

बिलकुल भी शिथिलता नहीं दिखाई।

मम्मी अब अपने लाडले के हाथों में मोम की तरह पिघल गयीं। अक्कू जैसे चाहे मम्मी को तराश सकता था।

अक्कू ने मम्मी को एक बार झाड़ा और फिर मम्मी की रति-निष्पति मानो एक लम्बी जंजीर बन गयी।

जब अक्कू दुबारा मम्मी की चूत में झड़ा तब तक मम्मी अनगिनत अविरत चरमानंद के अतिरेक से अभिभूत हो बिस्तर पर निष्चल ढलक

गयीं।

मैं भी पापा के लंड के ऊपर अपनी चूत रगड़ते हुए अनेक बार चरम-आनंद की बौछारों से गीली हो गयी। 

मैं अपने अनगिनत चरम-आनन्दों की बौछारों से विचलित हो कर पापा से लिपट गयी। पापा ने दोनों उभरते उरोज़ों को अपने

विशाल हाथों में भर कर मसलते हुए मुझे प्यार से चूमा। मेरे दमकते चेहरे पर पसीने की बूँदें फ़ैल गयीं थीं। रात की रानी की

सुगंध हौले से कमरे में समा कर हमारे अगम्यगमनी सम्भोग के रस के महक से मिल गयी।

अक्कू ने मम्मी के पसीने से चमकते सुंदर मुंह को चूम चूम कर और कर दिया।

मम्मी ने मुस्करा कर कहा ,"मेरे लाडले का मूसल लंड अभी भी अपनी माँ की चूत में तनतना रहा है। अब अक्कू तू मेरे कर

मुझे और चोद। "

मम्मी ने पलट कर अपना मांसल गदराया दैव्य सैंदर्य से भरा शरीर अक्कू के लिए पूरा खोल दिया।

अक्कू ने मम्मी के गदराई जांघों को फैला कर अपना लंड मम्मी के मलाशय के छोटे से छेद पर लगा कर एक ज़ोर का

धक्का मारा ।

"ह्ह्ह्य अक्कू कितने बेदर्दी से तुमने मेरी गांड में अपना मोटा लंड घुसा दिया ?" मम्मी के उल्हने में वात्सल्य, वासना की उमंग

और अक्कू के सम्भोग-कौशल के लिए गर्व भी।

अक्कू ने मुस्करा कर मम्मी के अध-खुले मीठे मुंह के ऊपर अपना मुंह दबा लिया और भीषण धक्कों से अपना पूरा लंड

मम्मी के में जड़ तक ठूंस दिया।

मम्मी बिलबिला उठीं पर उनकी चीखें अक्कू के मुंह में दब गयीं।

मैंने तड़प कर पापा से कहा ,"पापा, अब मुझसे नहीं रहा जाता। प्लीज़ मुझे अब चोदिये। "

पापा ने मुझे प्यार से पलंग पर लिटा दिया और पलंग के पास की मेज पर राखी शीशी से द्रव्य अपने महाकाय लंड के ऊपर

बूँद बूँद टपका कर उसे गोले के तेल से नहला दिया। मेरे शरीर और मन में सन्निकट पापा के विकराल लंड के आक्रमण के

विचार से सनसनी फ़ैल गयी।

ना चाहते हुए भी मेरे होंठों से मेरे मस्तिष्क में मचलते शब्द निकल गए ," पापा क्या मैं आपका इतना अपने चूत में ले पाऊंगीं

? "

पापा ने मेरी गोल मांसल जांघों को पूरा फैला कर अपना लंड का अविश्विसनीय महाकाय सुपाड़ा मेरी कुंवारी अक्षतयोनी के तंग

रति रस से लबलबाये संकरे द्वार के ऊपर टिका कर कोमलता से मुझे सान्तवना दी ," सुशी बेटा जितना लंड तुम आराम से ले

पाओगी उतने से ही तुम्हे चोदूंगा। "

मेरे हृदय में हलचल मच उठी। मैंने अपने डर को दिखा कर पापा को मुझे मम्मी की तरह चोदने से संकुचित कर दिया। मैंने

मन ही मन अपने को प्रतारणा दी और जल्दी से बोल उठी, "पापा मेरा वो मतलब नहीं था। मैं तो आपके आनंद के बारे में सोच

रही थी। यदि आप मुझे मम्मी के समान नहीं चोद पाये तो मुझे बहुत बुरा लगेगा। आप मुझे अपने पूरे लंड से चोदियेगा पापा,

प्लीज़। यदि आपने अपना पूरा लंड मेरी चूत में नहीं डाला तो मैं आपसे कभी भी बात नहीं करूंगीं।

पापा ने हलके से हंस कर मुझे कस कर चूमा , "मैं अपनी प्यारी बेटी को क्या कभी नाराज़ कर सकता हूँ। पर बेटा जब मैं

लंड अंदर डालूँगा तो तुम्हे दर्द होगा। सुशी तुम अपने पापा को क्षमा कर दोगी न तुम्हे दर्द करने के लिए। "

"पापा, आप मुझे लड़की से स्त्री बना रहे हैं। पहली बार की चुदाई में दर्द तो होगा ही। उस दर्द में आपका मेरे लिए प्रेम भी तो

मिश्रित होगा। आप मेरे दर्द की बिलकुल फ़िक्र न करें। " मैंने पापा के सुन्दर मुंह को चुम कर उन्हें उत्साहना दी।

पापा ने अपना भारी विशाल शरीर से मेरा नन्हा अविकसित मुश्किल से किशोरावस्था के पहले वर्ष के विकास से भरा शरीर को

धक दिया।

पापा ने मेरे मुंह को अपने मुंह से दबा कर कर अपना महाकाय लंड का सुपाड़ा मेरी नन्ही कमसिन अविकसित चूत में दबाने

लगे। मैं अपनी चूत को फैलता हुआ महसूस कर बिलबिला उठी।

पापा ने मुझे अपने नीचे दबा कर निस्सहाय कर दिया था। मेरी चूत का संकरा गलियारा पापा के विकराल लंड के सुपाड़े के

प्रभाव से फैलने लगा। पापा ने एक बेदर्द धक्के से पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में धकेल दिया। मेरी चीख मेरे रुआंसे मुंह से उबल

पड़ी।

मेरे नाख़ून पापा के बलशाली बाज़ुओं की त्वचा में गढ़ गए। पापा ने मुझे नन्ही बकरी के तरह दबोच कर एक और भीषण

धक्का मारा। उनका विशाल अमानुषिक लंड के कुछ इंच मेरी चूत में उस तरह प्रवेश हो गए जैसे मस्त हाथी गन्ने के खेत में

घुस जाता है। मैं दर्द के अधिकाय से बिलबिला उठी। मेरी आँखों में गरम आंसू भर गए। मेरी चीख पापा ने मुंह में भर गयी।

पापा का भीमकाय सुपाड़ा मेरे कौमार्य के यौनिच्छिद के ऊपर ठोकर मार रहा था। पापा ने मुझे कस कर दबा कर एक और

दानवीय धक्का मारा और मैं दर्द के आधिक्य से लगभग मूर्छित हो गयी। मुझे लगा मानो मेरी नन्ही चूत में किसी ने एक तपता

हुआ लोहे का खम्बा घुसा दिया हो।

मेरे शरीर में दर्द से भरी अकड़न ने मेरे कौमार्य-भांग की पीड़ा को और भी उन्नत कर दिया।

मैं खुल कर दर्द से चीख भी नहीं पा रही थी। पापा ने मेरे कौमार्य की धज्जियां उड़ा दी। मैं दर्द से बिलबिला रही थी और मुझे

पता भी नहीं चला और पापा ने निरंतर निर्दयी धक्कों से अपना आधे से भी ज़्यादा लंड मेरी नहीं चूत में ठूंस दिया था। पापा ने

मुझे उतने लंड से ही चोदना शुरू कर दिया। मेरी आँखे दो नदियों की तरह बह रहीं थीं। मेरे सुबकाईयां पापा के मुंह में थिरक

रहीं थीं। मुझे लगा की पापा का लंड मेरी जान ले लेगा।

पापा ने मुझे निर्ममता से अपने विशाल शरीर के नीचे दबा कर अपने अमानुषिक लंड के प्रहारों से बोझिल कर दिया। पापा का

लंड मेरी तड़पती चूत को छोड़ने के लिए व्याकुल था। पापा ने अपने लंड को बाहर खींच कर फिर से मेरी चूत के ऊपर आक्रमण

किया। मेरा सारा शरीर मेरे कौमार्य-भंग की पीड़ा से पसीने से नहा गया। मेरा मस्तिष्क मेरी योनि में से उपजे अविश्विसनीय

पीड़ा से लस्त हो उठा। मेरे आँखों से अविरत गरम आंसूओं की धारायें बह रहीं थी।

पापा ने दृढ़ संकल्प से एक भीषण धक्के के बाद दुसरे निर्मम धक्कों से मेरी चूत में अपना सम्पूर्ण विकराल लंड जड़ तक ठूंस

दिया। मेरे सुबकाईयां मेरे दर्द की गवाही दे रहीं थीं। मेरी उम्र की कई लडकियां तो लंड के मारे में सोच भी पातीं जबकि मैं

अपने पापा के महाकाय लंड के ऊपर फसी तड़प रही थी।

पापा ने मेरे आंसुओं की उपेक्षा कर अपने विशाल लंड से मुझे चोदने लगे।

मेरी चूत में मानों आग जल उठी। मेरी नहीं चूत अभी भी पापा के महाकाय लंड को सँभालने में असमर्थ थी। पर पापा संकल्प

से अपने लंड से मेरी चूत को खोलने के प्रयत्न में सलग्न हो गए। पापा ने मेरे तड़पने को अनदेखा कर अपने लंड को धीरे धीरे

पर दृढ़ता से मेरी चूत में से बाहर निकाल कर उसे फिर से मेरी संतप्त योनि में जड़ तक घुसेड़ रहे थे।

न जाने कितने समय के बाद अचानक पापा का लंड मेरी चूत में बहुत आराम से आवागमन करने लगा। मेरी चूत में अब भीषण

दर्द की जगह अब बर्दाश्त करने जैसा दर्द हो रहा था जिसमे एक मीठापन भी मिश्रित हो गया था।  

पापा ने मेरे लाल वासना और दर्द से दमकते चेहरे को अपने विशाल हाथों में भर कर मेरे अधखुले सुबकते मुंह को अपने मुंह

में भर लिया। उनके भारी मीठे होंठ मेरे फड़कते नाज़ुक होंठों को चूसने लगे। मैंने सुबकते हुए पापा को वापस चूमा।

पापा ने अपना वृहत लंड मेरी चूत से निकाला। उनका विशाल लंड मेरे कौमार्य-भांग के प्रमाण के रस से लाल हो गया था।

पापा ने एक लम्बे धक्के से अपना लंड एक बार फिर से मेरी संकरी कुछ क्षणों पहले कुंवारी योनि में जड़ तक ठूंस दिया। मैं

बिलबिला कर फिर से सुबक उठी। मेरी नन्ही बाहें पापा के गले का हार बन गयीं।

पापा ने अब बिना रुके मेरी चूत का मर्दन प्रारम्भ कर दिया। उनका अमानुषिक विकराल लंड मेरी चूत को मथने लगा। पापा के

भारी कूल्हे हर धक्के के बाद और भी प्रयत्न और तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगे। उनके कूल्हों की ताकत उनके प्रचंड लंड को

मेरी चूत में अविरल क्षमता से गूंद रही थी।

"पापा ……. हाय ……….. बहुत …….. आअन्न्न्न्ह्ह्ह्ह …….पाआआ ………. पाआआ उउउन्न्न्न ……… मर्र्र्र्र गयीईई

………….. पाआआ ………………पाआआ ," मैं वासना, पीड़ा और पापा की ओर आदर के मिश्रण से बिलखती चीख उठी।

पापा ने मेरी अपरिपक्व अभिभावों की उपेक्ष्ा कर मेरी चूत का मर्दन और भी भीषण धक्कों से करने लगे।

मेरी सुबकाईयां शीघ्र सिस्कारियों में बदल गयीं। मेरी चूत में अब अनोखा दर्द हो रहा था। ऐसे दर्द का अनुभव मुझे मेरी गांड में

भी हुआ था जब अक्कू ने मेरी कुंवारी गांड का लतमर्दन किया था।

मेरी आँखे मम्मी और अक्कू की सिस्कारियों को सुन कर उनकी तरफ मुड़ गयीं। अक्कू मम्मी की मांसल भारी जांघों को उनके

कन्धों की ओर मोड़ कर उनकी गांड भीषण निर्मम धक्कों से मर्दन कर रहा था। अक्कू के हर धक्के से मम्मी का सारा गदराया

शरीर हिल उठता था। उनके भारी विशाल स्तन हर धक्के से हिल उठते थे। जब तक मम्मी के उरोज़ स्थिर हो पाते अक्कू का

दूसरा धक्का उनको फिर से इतनी ज़ोर से हिला देता था मानों वो उड़ान के लिए तैयार थे।

मम्मी की सिस्कारियां संगीत के स्वरों की तरह रजनीगंधा की सुगंध की तरह कमरे में फ़ैल गयीं।

मम्मी सिसक कर चरम आनंद के प्रभाव से विहल हो कर चीखीं ,"अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड चोदो। मैं फिर से झड़ने वालीं हूँ।

अक्कू ….ऊ…… ऊ…… ऊ। आआह……. बेटाआआ……..। "

मेरा ध्यान मेरे अपने रति-निष्पति के अतिरेक से अपनी चूत पर केंद्रित हो गया। मेरी बाहें पापा की गर्दन पे जकड़ गयीं,

"पापाआआआ ……... आआअह ………… उउउन्न्न्न्न्न ………. मैं आआअह ………. पापाआआ……….। "

पापा का लंड अब फचक फचक की आवाज़ें बनाता हुआ मेरे चूत को रेल के इंजिन के पिस्टन की तरह रौंद रहा था।

मम्मी पापा का कक्ष मेरी और मम्मी की सिाकारियों से गूँज उठा। हम दोनों की सिस्ज्कारियों में कभी कभी पापा और अक्कू की

गुरगुराहट भी संगीत के सांगत की तरह शामिल हो जातीं थीं।

अगले घंटे तक तक मेरी सिस्कारियां और आनंद भरे दर्द के सुबकाइयों ने मेरे कानों को भर दिया। जब अक्कू ने मम्मी की गांड

में अपना लंड खोला तो उनकी चीख निकल उठी और वो एक बात फिर से झड़ गयीं।






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