वो कौन थी ??? पार्ट--1
लेखक - दाग्रेटवॉरियर
19 जुलाइ 2007 ट्रेन मे
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यह उस समय की बात है जब मैं इंटर फर्स्ट एअर का एग्ज़ॅम दे चुका था और
अभी सेकेंड एअर के लिए कॉलेजस नही खुले थे. मेरे डॅड जो एक लीगल
प्रॅक्टिशनर ( वकील ) हैं उन्हों ने हमारे घर के ऊपेर के हिस्से मे एक
पोल्ट्री फार्म बनाने का निर्णय लिया. पहले मैं आपको अपने घर के बारे मे
बता दू. हमारा घर बोहोत ही बड़ा है. 2 माले की पुरानी हवेली टाइप जिसके
कमरे भी बोहोत बड़े बड़े हैं और बोहोत सारे हैं. घर का आँगन भी बोहोत
बड़ा है जहाँ गर्मिओ के मौसम मे शाम को पानी का छिड़काव करके बैठ ते हैं.
आँगन मे नीम के पेड़ भी हैं जिनसे ठंडी हवा भी आती रहती है. घर बड़ा है
तो घर की छतें ( रूफ ) भी बोहोत ही ऊँची ऊँची हैं. वही एक पोर्षन मे
पोल्ट्री फार्म का सोचा मेरे डॅडी ने छत पर एक टेंपोररी शेड डलवा दिया
चारों तरफ से जाली लगा दी गई और उसके फ्लोर पे धान की लियरिंग भी करवा दी
गई. पोल्ट्री का एक छोटा सा फार्म तो रेडी हो गया अब लाना था तो बॅस चिकन
को. यह पोल्ट्री फार्म बिज़्नेस के लिए नही खोला गया था बस घर के लिए और
आस पड़ोस के लोगो को फ्री मे एग्स देने के लिए बनाया गया था.
डॅडी को उनके किसी दोस्त ने किसी गाँव का पता बताया के वाहा अछी चिकन मिल
जयगी. वो गाँव मेरे शहेर से बोहोत ज़ियादा दूर तो नही था पर हा ट्रेन से
सफ़र कर ने के लिए पहले कुछ डिफरेंट डाइरेक्षन मे जाना पड़ता था फिर वाहा
से दूसरी ट्रेन पकड़ के उस गाँव के करीब वाले रेलवे स्टेशन तक जाना पड़ता
था उसके बाद शाएद 30 से 45 मिनिट का रास्ता बैल गाड़ी ( बुलक कार्ट ) मे
तय करना पड़ता था. उस गाओं मे मेरे डॅडी का एक क्लाइंट भी रहता था जो
गाँव का मुखिया भी था तो उस ने मेरे डॅडी से कहा के आप किसी को भेज दीजिए
मैं सारा इंतज़ाम कर दूँगा और पोल्ट्री को भी डाइरेक्ट आपके शहेर के लिए
लॉरी मे बुक कर दूँगा.
मैं ने सिर्फ़ गाँव का नाम ही सुना था और कभी ट्रेन या बस से सफ़र करते
हुए विलेजस को दूर से ही देखा था पर सही मानो मैं विलेज लाइफ से वाकिफ़
नही था और ऐसे मौके को हाथ से जाने भी नही देना चाहता था. सोचा के एक साथ
ट्रेन और बैल गाड़ी का सफ़र !!! मज़ा आ जाएगा मैं बोहोत एग्ज़ाइटेड हो
गया था.
डॅडी से बोला तो उन्हो ने भी सोचा के चलो कॉलेज की भी छुट्टियाँ है तुम
ही चले जाओ. मेरी समझ मे चिकन की सेलेक्षन क्या आनी थी वो तो बॅस नॉमिनल
ही जाना था और अंदाज़े से कुछ पेमेंट करना था बाकी पेमेंट तो चिकेन्स के
आने के बाद ही करनी थी. 300 चिकेंस का ऑर्डर करना था. यह कोई बिज़्नेस के
लिए नही था बॅस ऐसे ही शौकिया तौर पे रखना था ता के घर के लोग और खानदान
के लोग इस्तेमाल कर सके और पास पड़ोस मे बाँट सके.
सुबह सुबह सफ़र शुरू हो गया. ट्रेन से पहले तो गुंटकाल जंक्षन तक चला गया
वाहा से ट्रेन दूसरी चेंज कर के उस गाँव के पास वेल स्टेशन का टिकेट ले
लिया ( अब तो उस गाँव का नाम भी याद नही ). गुंटकाल से मीटर गेज ट्रेन मे
जाना था. मीटर गेज ट्रेन छोटी ट्रेन होती है. उसके डिब्बे भी छोटे होते
हैं. और डिब्बे के बीच मे रास्ता भी छोटा सा ही होता है. यूँ समझ ले के
आज कल जैसे ट्रेन्स हैं वो ब्रॉड गेज ट्रेन्स हैं. मीटर गेज उसकी तकरीब
3/4थ होती थी. ( अब तो खैर मीटर गेज ट्रेन्स बंद हो चुकी हैं पर तब चला
करती थी लैकिन सिर्फ़ रिमोट टाइप के इंटीरियर विलेजस को करीब के शहेर तक
कनेक्ट करने के लिए ही चला करती थी ). खैर मीटर गेज ट्रेन मे सफ़र करने
का और देखने का पहला मौका था. ट्रेन चल पड़ी तो एक अजीब सा एहसास हुआ
थोडा मज़ा भी आया एक नये सफ़र का. वो ट्रेन बोहोत हिल रही थी जैसे कोई
झूला झूला रहा हो. दिन का समय होने के बावजूद ट्रेन के झूला झुलाने से
नींद आ रही थी.
दिन के तकरीबन 11 बजे के करीब उस गाओं के करीब वाले स्टेशन पे ट्रेन
पहुँची तो मेरे डॅडी के उस क्लाइंट का बेटा जिसका नाम लक्ष्मण था वो बैल
गाड़ी लिए स्टेशन पे मेरा इंतेज़ार कर रहा था. लक्ष्मण के साथ उसके गाँव
तक एक घंटे मे पहुँच गये. खेतों मे से बैल गाड़ी गुज़र रही थी तो बोहोत
अछा लग रहा था. खेतों मे उगी हुई फसल ( पता नही कौनसी थी ) उसकी एक अनोखी
सी खुसबू मंन को बोहोत भा रही थी. बैल गाड़ी मे सफ़र करने का अपना ही
मज़ा है. एक तरफ बैठो तो एक ही झटके मे दूसरे तरफ हो जाते हैं. हिलते
झूलते गाओं को पोहोन्च गये.
लक्ष्मण के घर मे खाना खाया. यह टिपिकल सफ़र की वजह से जो घर से खा के
निकला था वो सब हजम हो गया था और पेट पूरा खाली हो गया था. बोहोत ज़ोर की
भूक लगी थी. लक्ष्मण की मा ने बोहोत अछा और मज़े दार खाना बनाया था बोहोत
जम्म के खाया. खाने के बाद एक बड़ा सा ग्लास लस्सी का पिलाया गया तो
तबीयत मस्त हो गई. अब तो मंन कर रहा था के थोड़ा रेस्ट होना चाहिए बॅस यह
सोच ही रहा था के लक्ष्मण के पिताजी जिनका नाम विजय आनंद था. .
वो गाओं के मुखिया भी थे. गाओं वाले सब उनको इज़्ज़त से लालजी कह कर
बुलाते थे. लाला जी ने मुझ से कहा बेटा थोड़ा सा आराम कर लो थोड़ी ही देर
मे चलते है तुम चिकेन्स देख लेना. मैं तो लेट ते ही सो गया तो शाएद 2
घंटे के बाद आँख खुली.
शाम के ऑलमोस्ट 3 बजे हम राजू के फार्म पे पहुचे. राजू के पास ही चिकेन्स
का ऑर्डर देना था. राजू का फार्म लालजी के घर से ज़ियादा दूर नही था. हम
चलते चलते ही पोहोन्च गये. देखा तो वाहा पे छोटी छोटी मुर्गियाँ (
चिकेन्स ) थी. मेरी समझ मे नही आया. मैं तो समझ रहा था के बड़ी बड़ी
पर्चेस करना है लैकिन यहा तो छोटी छोटी मुर्घियाँ थी.
राजू ने बतया के इतनी छोटी ही पर्चेस की जाती है और फिर उनको खिला पीला
के बड़ा किया जाता है और फिर वो अंडे ( एग्स ) देने लगती है और जब अंडे
देना बंद कर देती हैं तो उनको बेच दिया जाता है या काट के खा लिया जाता
है और फिर से छोटे छोटे बचे पाले जाते हैं.... खैर थोड़ी ही देर मे यह
काम भी हो गया. राजू ने कहा के वो उसको बम्बू के टुकड़ों के एस्पेशली बने
हुए केज मे पॅक कर के ट्रांसपोर्ट मे डाल देगा.
वापस लालजी के साथ उनके घर चले गये. शाम हो गई थी बाहर ही बैठ के चाइ पी.
वहाँ बाहर खुली हवा मे बैठना बोहोत अछा लग रहा था और अब ठंडी ठंडी हवा
चलना शुरू हो गई थी जो अपने साथ खेतों की मस्तानी सी सुगंध ला रही थी.
हमेशा सुनते आए थे के गाओं मे जल्दी शाम और जल्दी रात हो जाती है जो सच
मे वाहा देखने को मिला. शाम के 5 या 5:30 हो रहे होंगे लैकिन ऐसे लग रहा
था जैसे पता नही कितनी रात हो गई. ट्रेन का टाइम 7 बजे का था और फिर एक
घंटे का रास्ता स्टेशन तक का था तो लालजी ने बैल गाड़ी का इंतेज़ाम कर के
मुझे स्टेशन भेज दिया.
मैं स्टेशन पहुचा तो मेरे सिवा और कोई नही था. स्टेशन की कोई बिल्डिंग
जैसी नही थी. बॅस एक छोटा सा रूम था जितने हमारे घरों मे बातरूम्स होते
हैं ऑलमोस्ट उसी साइज़ का था. देखने गया के वो क्या है तो पता चला के वो
टिकेट काउंटर है जिस्मै कोई भी नही है एक आदमी के बैठने की जगह है और एक
चेर पड़ी हुई है. बैल गाड़ी मुझे स्टेशन पे छोड़ के चली गई कियों के उसको
वापस गाओं जाना था. मैं स्टेशन पे अकेला रह गया. प्लॅटफॉर्म बोहोत बड़ा
तो नही था लैकिन बोहोत छोटा भी नही था लंबा ही लंबा था बॅस.
मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था के इतने बड़े अंधेरे प्लॅटफॉर्म पे मैं अकेला
हू. किस्मत से ट्रेन भी आने का नाम नही ले रही थी. थोड़ी ही देर मे
अंधेरा छाने लगा और स्टेशन पे कोई लाइट का इंतेज़ाम भी नही था और किस्मेत
से रात भी अंधेरी थी शाएद अमावस की रात थी चाँद बिल्कुल भी नही था. बॅस
दूर से
ही किसी झोपडे से दिए की रोशनी आ जाती तो आ जाती और अब तो मुझे यह भी समझ
मे नही आ रहा था के ट्रेन किस तरफ से आएगी. थोड़ी ही देर मे मुझे एक और
आदमी नज़र आया तो मैं उस के पास गया तो पता चला के वो टिकेट काउंटर
क्लर्क है. मैं ने टिकेट पर्चेस किया और उस से पूछा के गुंटकाल जंक्षन
जाने वाली ट्रेन किस तरफ से आएगी तो उस ने एक डाइरेक्षन बता दी के इधर से
आएगी. अब मैं उस डाइरेक्षन से ट्रेन के आने का इंतेज़ार करने लगा.
ट्रेन 7 बजे नही बलके ऑलमोस्ट 8 बजे के करीब आई. देखा तो बॅस एंजिन मे ही
लाइट थी बाकी सारे डिब्बे अंधेरे मे डूबे हुए थे. किसी भी डिब्बे मे लाइट
नही थी. लगता था अंधेरी ट्रेन है. नॉर्मली जैसे ट्रेन स्टेशन पे रुकती है
तो चाइ पानी वालो की आवाज़ें या पॅसेंजर का उतरना चढ़ना लगा रहता है वैसा
कुछ नही था. सामने डिब्बा आया मैं उस मे ही चढ़ के अंदर घुस्स गया. .
अंधेरा डिब्बा खेत मे काम करने वाले मज़दूरों से खचा खच भरा हुआ था. बड़ी
मुश्किल से उस का दरवाज़ा खोला और मैं अंदर घुस गया. अंधेरे डिब्बे मे जब
आँखें अड्जस्ट हुई तो और डिब्बे के अंदर देखा तो पता चला के डिब्बे के
सारे फ्लोर पे खेतों मे काम करने वाले मज़दूर सो रहे हैं. कोई बैठे बैठे
ही सो रहा है कोई छोटी सी जगह मे पैर मोड़ के लेट के सो गया है. बड़ी
मुश्किल से खड़े रहने की जगह मिली वो भी दरवाज़ा बंद करने के बाद वही की
जो जगह होती है वोही मिली बस. हर तरफ लोग बैठे सो रहे थे और इतनी जगह भी
नही थी के मैं दोनो पैर एक साथ रख के खड़ा रहूं तो मुझे ऐसी जगह मिली जहा
कोई ऑलरेडी बैठा हुआ था तो मैं ऐसे खड़ा हुआ के मेरा एक पैर उसके एक तरफ
और दूसरा पैर उसके दूसरे तरफ था मानो के जैसे वो मेरी टाँगों के बीच बैठा
सो रहा हो मेरा मूह दरवाज़े की तरफ था और मैं बाहर की तरफ देख रहा था
बाहर भी अंधेरा छाया हुआ था और एक अजीब सा साइलेन्स था स्टेशन पे और
डिब्बे मे से मज़दूरों के सोने की गहरी गहरी साँसें सुनाई दे रही थी.
ट्रेन 2 – 4 मिनिट मे ही धीमी रफ़्तार से चल पड़ी. बाहर ठंडी हवा चल रही
थी और ट्रेन के चलने से कुछ ज़ियादा ही महसूस हो रही थी और ट्रेन के
हिलने झूलने से और सारा दिन काम करने से थक कर लोग और मस्त हो के गहरी
नींद सो रहे थे जैसे उनको ट्रेन मे ही सोते रहना है सुबह तक. ट्रेन के
अंधेरे मे यह भी पता नही चल रहा था के बैठे लोगो मे कौन मर्द है और कौन
औरत है.
बाहर की ठंडी हवा मुझे बोहोत अछी लग रही थी बदन मे एक मस्ती की सरसराहट
हो रही थी. मैं दोपेहेर मे सो गया था इसी लिए मुझे नींद नही आ रही थी और
इस पोज़िशन मे सोना भी मुश्किल था. मैं खिड़की से बाहर देख रहा था. मेरे
टाँगों के बीच जो भी बैठा था उसका हेड का पोर्षन मेरे जाँघो के करीब लग
रहा था और जब ट्रेन झटका खाती तो उसका हेड भी मेरी जाँघो से टकराता तो
लंड मे भी एक मस्ती आ रही थी और मेरा लंड धीरे धीरे उठने लगा था.
थोड़ी ही देर मे मुझे महसूस हुआ के मेरे लंड पे किसी का हाथ लगा. पहले तो
मैं यह समझा के जो भी नीचे बैठा है उसने अपने सर को खुज़ाया होगा और इसी
लिए उसका हाथ बाइ मिस्टेक मेरे लंड पे लगा होगा. पर अब कुछ नही हो सकता
था इस बात का लंड को तो पता नही होता ना लंड तो बस इतना जानता है के किसी
ने उसको नींद से जगाया है और फिर मेरा लंड एक ही सेकेंड मे बल खा के सीधा
खड़ा हो गया. पॅंट के अंदर अंडरवेर भी नही पहना था इसी लिए अंदर ही मेरे
पॅंट की ज़िप से रगड़ रा था और बाहर निकलने को मचल रहा था. 2 मिनिट के
अंदर ही वो हाथ फिर से ऊपेर आया और मेरे लंड पे रुक गया. मैं ने सोचा के
देखते है यह हाथ क्या करवाई करता है मैं अंजान ही बना रहा. वो हाथ अब
मेरे लंड को धीरे से पॅंट के ऊपेर से ही सहला रहा रहा था मसाज जैसे कर
रहा था. मेरा और मेरे लंड का मस्ती के मारे बुरा हाल था. हाथ छोटा ही था
तो ऐसा गेस हुआ के किसी लड़की का हाथ है और लड़की भी ज़ियादा बड़ी नही
है.
अब वो हाथ मेरे लंड को अछी तरह से दबा रहा था मैं अंजान ही बना रहा. उस
हाथ ने मेरे जीन्स की चैन खोली और पिंजरे मे बंद शेर को आज़ाद कर दिया.
ठंडी हवा का झोका तने हुए लंड से लगते ही वो और जोश मे आ गया और हिलने
लगा. उस ने लंड को आगे पीछे करना शुरू कर दिया. मेरे लंड मे से प्री कम
निकल रहा था. मेरा बॅस नही चल रहा था के वो जो भी हो उसको नीचे लिटा के
चोद डालूं. थोड़ी देर तक दबाने के बाद वो अपनी जगह पे खड़ी हो गयी और
मेरे हाथ पकड़ के अपने सीने पे रखा तो पता चला कि वो कोई लड़की थी और
उसने नीचे बैठे ही बैठे अपने ब्लाउस के सामने के पूरे बटन्स खोल दिए हैं.
खेतों के मज़दूर लोग तो अंदर ब्रस्सिएर वाघहैरा नही पेहेन्ते इसी लिए
मेरा हाथ डाइरेक्ट उसके नंगी चूचियो पे लगा और मैं उसको पकड़ के दबाने
लगा.
आअह क्या मस्त और वंडरफुल छातियाँ थी उस लड़की की कि क्या बताऊं. छोटी
छोटी चुचियाँ पूरे हाथ मे समा गयी थी शाएद 28 या 30 का साइज़ होगा.
सख़्त चुचिओ को मैं दबा रहा था. उसके पास से पसीने की स्मेल भी आ रही थी
पर अब वो स्मेल मुझे क्रिस्चियन डियार के महनगे पर्फ्यूम से भी ज़ियादा
अछी लग रही थी.
उसकी हाइट मुझे से कम थी. मेरे चेस्ट तक की हाइट होगी उसकी. उसका हाथ
मेरे लंड से कंटिन्यू खेल रहा था मुझे बोहोत ही मज़ा आ रहा था. ट्रेन के
धक्को से कभी मैं सामने को खिसक जाता तो मेरा तना हुआ लंड उसके खुले
ब्लाउस से उसके बदन से लग जाता तो और ज़ियादा मज़ा आता. मुझे उसका फेस
बिल्कुल भी नज़र नही आ रहा था. ट्रेन मे तो अंधेरा था ही बाहर भी अंधेरा
ही था. और ट्रेन भी धीमी गति से चल रही थी.
मैं अब थोड़ा और बोल्ड हो गया और उसकी जाँघो को तलाश करते करते उसकी चूत
पे हाथ रख दिया और उसकी चूत को मसल ने लगा. उसने मीडियम साइज़ की स्कर्ट
पहनी हुई थी जो उसके घुटने तक आती थी. थोड़ा सा झुक के उसके स्कर्ट के
ऊपेर से ही उसकी चूत का मसाज करने लगा. मेरा हाथ उसकी चूत पे लगते ही
पहले तो उसने अपनी टाँगो को खोल दिया और फिर उसने अपने चूतड़ उठा के मेरे
हाथ पे अपनी चूत घिसना शुरू किया. अब मैं हाथ से आहिस्ता आहिस्ता उसके
स्कर्ट को उठा के उसकी चूत पे डाइरेक्ट हाथ रख दिया. अफ मुझे लगा जैसे
कोई गरम भट्टी मे मेरा हाथ लगा हो उतनी गरम चूत थी उसकी जैसे चूत मैं आग
लगी हो. पॅंटी तो शाएद खेतों मे काम करने वाले पेहेन्ते ही नही. उसकी चूत
पे हल्की हल्की और सिल्की सॉफ्ट जैसी झांतें भी उगी हुई थी ऐसा लगता था
के अभी नई नई झातें आना शुरू हुई हैं. चूत के लिप्स के बीचे मे उंगली
डाला तो पता चला के वो तो बे इंतेहा गीली हो चुकी है पता नही कब से मुझे
देख रही थी और अंदर ही अंदर गरम हो रही थी.
एक हाथ से उसकी चूत को मसल रहा था दूसरे हाथ से एक ब्रेस्ट को दबा रहा था
और दूसरे ब्रेस्ट को चूस रहा था और उसका हाथ मेरे लोहे जैसे सख़्त लंड को
पकड़े हुए था. लंड पकड़ के किसी एक्सपर्ट की तरह आगे पीछे कर रही थी और
साथ मे दबा भी रही थी. उसकी बिल्ट बोहोत बड़ी नही थी उसके फिगर को देखते
हुए लगता था के शाएद 14 या 15 साल की लड़की होगी. बूब्स भी बोहोत ज़ियादा
बड़े नही थे पर थे बड़े सख़्त. मीडियम साइज़ के सेब जितना साइज़ होगा.
दबाने मे और चूसने मे बोहोत मज़ा आ रहा था. अब और ज़ियादा सबर करना
मुश्किल हो रहा था तो मैं ने उसकी गंद को दोनो हाथो से पकड़ के मसलना
शुरू किया और उसकी गंद पकड़ के उसको उठा लिया. मेरे उठा ते ही उसने
इमीडीयेट्ली अपनी टाँगें मेरे कमर पे लपेट ली. उसकी गंद को मैं ने डोर की
खुली खिड़की से टीका दिया. मेरा लंड अकड़ के मेरे पेट से टीका के ऑलमोस्ट
45 डिग्रीस का आंगल बना रहा था ऊपेर को उठ गया था जोश मे और हिल रहा था.
मैं एक स्टेप और आगे हो गया और उसकी खुली स्कर्ट मे से उसकी चूत पे लंड
को टीका दिया. चूत तो बोहोत ही गीली हो गई थी मेरे लंड मे से निकलता हुआ
प्री कम उसकी गीली चूत को और ज़ियादा गीला और स्लिपरी बना रहा था. मैं
अपनी गंद को धक्का देके लंड उसकी चूत मे घुसेड़ना शुरू किया तो वो चूत के
लिप्स के बीच मे से स्लिप हो के उसकी क्लाइटॉरिस से टकराया तो उसके मूह
से एक सिसकारी निकल गई. ऐसे ही एक बार फिर से ट्राइ किया, लंड तो ऊपेर को
उठा हुआ था इसी लिए एक बार फिर स्लिप हो गया तो उसने अपने हाथ मे मेरा
लंड पकड़ के अपने चूत के खुले लिप्स के अंदर से चूत के होल से सटा दिया
और चूत मे मेरे लंड को घिसने लगी आअहह बोहोत मज़ा आ रहा था. मैं उसके
बूब्स को चूस रहा था और वो मेरा लंड पकड़े अपनी गीली गीली गरम चूत मे
घिस्स रही थी.
क्रमशः.......................
Woh Koun Thi ??? paart--1
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19 July 2007 Train Mai
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Yeh uss samay ki baat hai jab mai Inter First Year ka exam de chuka
tha aur abhi Second Year ke liye colleges nahi khule the. Mere Dad jo
ek Legal Practitioner ( Wakil ) hain unhon ne hamare ghar ke ooper ke
hisse mai ek Poultry Farm banaane ka nirnaya liya. Pehle mai aapko
apne ghar ke baare mai
bata du. Hamara ghar bohot hi bada hai. 2 Maale ki Purani Haveli type
jiske kamre bhi bohot bade bade hain aur bohot sare hain. Ghar ka
aangan bhi bohot bada hai jahan garmion ke mousam mai sham ko pani ka
chidkav karke baith te hain. Aangan mai neem ke ped bhi hain jinse
thandi hawa bhi aati rehti hai. Ghar bada hai to ghar ki chatein (
Roof ) bhi bohot hi oonchi oonchi hain. Wahi ek portion mai Poultry
Farm ka socha mere daddy ne chatt par ek temporary shed dalwa dia
charon taraf se jaali laga di gai aur uske floor pe Dhaan ki littering
bhi karwa di gai. Poultry ka ek chota sa farm to ready ho gaya ab lana
tha to bass Chicken ko. Yeh poultry farm business ke liye nahi khola
gaya tha bass ghar ke liye aur aas pados ke logo ko free mai eggs dene
ke liye banaya gaya tha.
Daddy ko unke kisi dost ne kisi gaoon ka pata bataya ke waha achi
chicken mil jaygi. Woh gaoon mere sheher se bohot ziada door to nahi
tha par haa train se safar kar ne ke liye pehle kuch different
direction mai jana padta tha phir waha se doosri train pakad ke uss
gaoon ke kareeb wale Railway Station tak jana padta th uske baad shaed
30 se 45 minute ka raasta bail gadi ( bullock cart ) mai tai karna
padta tha. Uss gaon mai mere daddy ka ek client bhi rehta tha jo gaoon
ka mukhya bhi tha to us ne mere daddy se kaha ke aap kisi ko bhej
dijiye mai sara intezaam kar dunga aur poultry ko bhi direct aapke
sheher ke liye lorry mai book kar dunga.
Mai ne sirf Gaoon ka naam hi suna tha aur kabhi train ya bus se safar
karte hue villages ko door se hi dekha tha par sahi mano mai village
life se wakif nahi tha aur aise mouke ko hath se jaane bhi nahi dena
chahta tha. Socha ke ek sath train aur bail gadi ka safar !!! maza aa
jayega mai bohot excited ho gaya tha.
Daddy se bola to unho ne bhi socha ke chalo college ko bhi chuttian
hai tum hi chale jao. Meri samajh mai chicken ki selection kia aani
thi woh to bass nominal hi jana tha aur andaaze se kuch payment karna
tha baki payment to chickens ke aane ke baad hi karni thi. 300 chikens
ka order karna tha. Yeh koi business ke liye nahi tha bass aise hi
shoukia tour pe rakhna tha taa ke ghar ke log aur khandaan ke log
istemal kar sake aur pas pados mai baat sake.
Subah Subah Safar shuru ho gaya. Train se pehle to Guntakal Junction
tak chala gaya waha se train doosri change kar ke uss gaoon ke pas
wale station ka ticket le lia ( ab to uss gaoon ka naam bhi yaad nahi
). Guntakal se Meter gauge train mai jana tha. Meter Gauge train
choti train hoti hai. Uske dibbe bhi chote hote hain. aur dibbe ke
beech mai raasta bahi chota sa hi hota hai. Yun samajh le ke aaj kal
jaise trains hain woh Broad Gauge trains hain. Meter Gauge uski
takreeb 3/4th hoti thi. ( Ab to khair Meter Gauge trains band ho chuki
hain par tabb chala karti thi laikin sirf remote type ke interior
villages ko kareeb ke sheher tak connect karne ke liye hi chala karti
thi ). Khair Meter Gauge train mai safar karne ka aur dekhne ka pehla
mouka tha. Train chal padi to ek ajeeb sa ehsaas hua thoda maza bhi
aaya ek naye safar ka. Woh train bohot hil rahi thi jaise koi jhoola
jhula raha ho. Din ka samay hone ke bawajood train ke jhula jhulaane
se neend aa rahi thi.
Din ke takreeban 11 baje ke kareeb uss gaaon ke kareeb wale station pe
train pohochi to mere daddy ke uss client ka beta jiska naam Laxman
tha who bail gadi liye station pe mera intezar kar raha tha. Laxman ke
sath uske gaoon tak ek ghante mai pohoch gaye. Kheton mai se bail gadi
guzar rahi thi to bohot acha lag raha tha. Kheton mei ugi hui fasal (
pata nahi kounsi thi ) uski ek anokhi si khusboo mann ko bohot bhaa
rahi thi. Bail gadi mai safar karne ka apna hi maza hai. Ek taraf
baitho to ek hi jhatke mai doosre taraf ho jate hain. Hilte Jhulte
gaon ko pohonch gaye.
Laxman ke ghar mai khana khaya. Yeh typical safar ki wajah se jo ghar
se kha ke nikla tha woh sab hazam ho gaya tha aur pet poora khali ho
gaya tha. bohot zor ki bhook lagi thi. Laxman ki maa ne bohot acha aur
maze daar khana banaya tha bohot jamm ke khaya. Khane ke baad ek bada
sa glass Lassi ka pilaya gaya to tabiat mast ho gai. Ab to mann kar
raha tha ke thoda rest hona chahiye bass yeh soch hi raha tha ke
Laxman ke pitaji jinka naam Vijay Anand tha. .
Woh Gaon ke mukhya bhi the. Gaaon wale sab unko Izzat se Lalaji keh
kar bulate the. Lala ji ne mujh se kaha beta thoda sa araam kar lo
thodi hi der
mai chalte hai tum chickens dekh lena. Mai to let te hi so gaya to
shaed 2 ghante ke baad aankh khuli.
Sham ke almost 3 baje ham Raju ke farm pe pohonche. Raju ke pas hi
chickens ka order dena tha. Raju ka farm Lalaji ke ghar se ziada door
nahi tha. Ham chalte chalte hi pohonch gaye. Dekha to waha pe choti
choti murghian ( chickens ) thi. Meri samajh mai nahi aaya. Mai to
samajh raha tha ke badi badi purchase karna hai laikin yaha to choti
choti murghian thi.
Raju ne batya ke itni choti hi purchase ki jati hai aur phir unko
khila pila ke bada kia jata hai aur phir woh ande ( eggs ) dene lagti
hai aur jab ande dena band kardeti hain to unko bech dia jata hai ye
kaat ke kha lia jata hai aur phir se chote chote bache paale jaate
hain.... Khair thodi hi der mai yeh kaam bhi ho gaya. Raju ne kaha ke
woh usko bamboo ke tukdon ke especially bane hue cage mai pack kar ke
transport mai dal dega.
Wapas Lalaji ke sath unke ghar chale gaye. Sham ho gai thi baher hi
baith ke chai pi.
Wahan baher khuli hawa mai baithna bohot acha lag raha tha aur ab
thandi thandi hawa chalna shuru ho gai thi jo apne sath kheton ki
mastani si sugandh la rahi thi. Hamesha sunte aaye the ke gaon mai
jaldi sham aur jaldi raat ho jati hai jo sach mai waha dekhne ko mila.
Sham ke 5 ya 5:30 ho rahe honge laikin aise lag raha tha jaise pata
nahi kitni raat ho gai. Train ka time 7 baje ka tha aur phir ek ghante
ka raasta station tak ka tha to Lalaji ne bail gadi ka intezam kar ke
mujhe station bhej dia.
Mai station pohoncha to mere siva aur koi nahi tha. Station ki koi
building jaisi nahi thi. bass ek chota sa room tha jitney hamare
gharon mai bathrooms hote hain almost usi size ka tha. Dekhne gaya ke
woh kia hai to pata chala ke woh ticket counter hai jismai koi bhi
nahi hai ek aadmi ke baithne ki jagah hai aur ek chair padi hui hai.
Bail gadi mujhe station pe chor ke chali gai kiyon ke usko wapas gaon
jana tha. Mai station pe akela reh gaya. Platform bohot bada to nahi
tha laikin bohot chota bhi nahi tha lamba hi lamba tha bass.
Mujhe thoda dar bhi lag raha tha ke itne bade andhere platform pe mai
akela hu. Kismat se train bhi aane ka naam nahi le rahi thi. Thodi hi
der mai andhera chaane laga aur station pe koi light ka intezam bhi
nahi tha aur kismet se raat bhi andheri thi shaed amawas ki raat thi
chand bilkul bhi nahi tha. Bass door se
hi kisi jhopde se diye ki roshni aa jati to aa jati aur ab to mujhe
yeh bhi samajh mai nahi aa raha tha ke train kis taraf se ayegi. Thodi
hi der mai mujhe ek aur aadmi nazar aaya to mai us ke pas gaya to pata
chala ke woh ticket counter clerk hai. Mai ne ticket purchase kia aur
us se poocha ke Guntakal Junction jane wali train kis taraf se aayegi
to us ne ek direction bata di ke idhar se aayegi. Ab mai uss direction
se train ke aane ka intezar karne laga.
Train 7 baje nahi balke almost 8 baje ke kareeb aaii. Dekha to bass
Engine mai hi light thi baki sare dibbe andhere mai doobe hue the.
Kisi bhi dibbe mai light nahi thi. Lagta tha andheri train hai.
Normally jaise train station pe rukti hai to chai pani walo ki awazein
ya passenger ka utarna chadna laga rehta hai waisa kuch nahi tha.
Saamne dibba aaya mai us mai hi chad ke ander ghuss gaya. . Andhera
dibba khet mai kaam karne wale mazdooron se khacha khach bhara hua
tha. badi mushkil se us ka darwaza khola aur mai ander ghus gaya.
Andhere dibbe mai jab aankhein adjust hui to aur dibbe ke ander dekha
to pata chala ke dibbe ke sare floor pe kheton mai kaam karne wale
mazdoor so rahe hain. Koi baithe baithe hi so raha hai koi choti si
jagah mai pair mod ke let ke so gaya hai. Badi mushkil se khade rehne
ki jagah mili woh bhi darwaza band karne ke bad wahi ki jo jagah hoti
hai wohi mili bas. Har taraf log baithe so rahe the aur itni jagah bhi
nahi thi ke mai dono pair ek sath rakh ke khada rahun to mujhe aisi
jagah mili jaha koi already baitha hua tha to mai aise khada hua ke
mera ek pair uske ek taraf aur doosra pair uske doosre taraf tha mano
ke jaise woh meri tangon ke beech baitha so raha ho mera muh darwaze
ki taraf tha aur mai baher ki taraf dekh raha tha baher bhi andhera
chaya hua tha aur ek ajeeb sa silence tha station pe aur dibbe mai se
mazdooron ke sone ki gehri gehri saansein sunai de rahi thi.
Train 2 – 4 minute mai hi dheemi raftaar se chal padi. Baher thandi
hawa chal rahi thi aur train ke chalne se kuch ziada hi mehsoos ho
rahi thi aur train ke hilne jhulne se aur sara din kaam karne se thak
kar log aur mast ho ke gehri neend so rahe the jaise unko train mai hi
sote rehna hai subah tak. Train ke andhere mai yeh bhi pata nahi chal
raha tha ke baithe logo mai kour mard hai aur koun aurat hai.
Baher ki thandi hawa mujhe bohot achi lag rahi thi badan mai ek masti
ki sarsarahat ho rahi thi. Mai dopeher mai so gaya tha isi liye mujhe
neend nahi aa rahi thi aur is position mai sona bhi mushkil tha. Mai
khidki se baher dekh raha tha. Mere tangon ke beech jo bhi baitha tha
uska head ka portion mere jhango ke kareeb lag raha tha aur jab train
jhatka khati to uska head bhi mere jhango se takrata to lund mai bhi
ek masti aa rahi thi aur mera lund dheere dheere uthne laga tha.
Thodi hi der mai mujhe mehsoos hua ke mere lund pe kisi ka hath laga.
pehle to mai yeh samjha ke jo bhi neeche baitha hai usne apne sar ko
khujaya hoga aur isi liye uska hath by mistake mere lund pe laga hoga.
Par ab kuch nahi ho sakta tha iss baat ka lund ko to pata nahi hota na
Lund to bas itna jaanta hai ke kisi ne usko neend se jagaya hai aur
phir mera Lund ek hi second mai bal kha ke seedha khada ho gaya. Pant
ke ander underwear bhi nahi pehna tha isi liye ander hi mere pant ki
zip se ragad rha tha aur baher nikalne ko machal raha tha. 2 minute
ke ander hi woh hath phir se ooper aaya aur mere lund pe ruk gaya. Mai
ne socha ke dekhte hai yah hath kia karvayee karta hai mai anjaan hi
bana raha. Woh hath ab mere lund ko dheere se pant ke ooper se hi
sehla raha raha tha massage jaise kar raha tha. Mera aur mere lund ka
masti ke maare bura haal tha. Hath chota hi tha to aisa guess hua ke
kisi ladki ka hath hai aur ladki bhi ziada badi nahi hai.
Ab woh hath mere Lund ko achi tarah se daba raha tha mai anjaan hi
bana raha. Uss hath ne mere jeans ki chain kholi aur Pinjre mai band
sher ko azaad kar dia. Thandi hawa ka jhoka tane hue lund se lagte hi
woh aur josh mai aa gaya aur hilne laga. Us ne Lund ko aage peeche
karne shuru kar dia. Mere Lund mai se pre cum nikal raha tha. Mera
bass nahi chal raha tha ke woh jo bhi ho usko neeche lita ke chod
daloon. Thodi der tak dabane ke baad woh apni jagah pe khadi ho gayi
aur mere hath pakad ke apne seene pe rakha to pata chala ke woh koi
ladki thi aur usne neeche baithe hi baithe apne blouse ke saamne ke
poore buttons khol diye hain. Kheton ke mazdoor log to ander brassier
waghaira nahi pehente isi liye mera hath direct uske nange chation pe
laga aur mai usko pakad ke dabane laga.
Aah kia mast aur wonderful chatian thi us ladki ki ke kia bataoon.
Chote chote chuchian poore hath mai sama gaye the shaed 28 ya 30 ka
size hoga.
Sakht chuchion ko mai daba raha tha. Uske pas se paseene ki smell bhi
aa rahi thi par ab woh smell mujhe Christian dior ke mehnge perfume se
bhi ziada achi lag rahi thi.
Uski height mujhe se kam thi. Mere chest tak ki height hogi uski. Uska
hath mre lund se continue khel raha tha mujhe bohot hi maza aa raha
tha. Train ke dhakko se kabhi mai saamne ko khisak jata to mera tana
hua lund uske khule blouse se uske badan se lag jata to aur ziada maza
aata. Mujhe uska face bilkul bhi nazar nahi aa raha tha. Train mai to
andera tha hi baher bhi andhera hi tha. aur train bhi dheemi gati se
chal rahi thi.
Mai ab thoda aur bold ho gaya aur uski jhango ko talaash karte karte
uski choot pe hath rakh dia aur uski choot ko masal ne laga. Usne
medium size ki skirt pehni hui thi jo uske ghutne tak aati thi. Thoda
sa jhuk ke uske skirt ke ooper se hi uski choot ka massage karne laga.
Mera hath uske choot pe lagte hi pehle to usne apni tango ko khol dia
aur phir usne apne chootad utha ke mere hath pe apni choot ghisnna
shuru kia. Ab mai hath se aahista aahista uske skirt ko utha ke uski
choot pe direct hath rakh dia. Uff mujhe laga jaise koi garam bhatti
mai mera hath laga ho utni garam choot thi uski jaise choot mai aag
lagi hoi. Panty to shaed kheton mai kaam karne wale pehente hi nahi.
Uski choot pe halki halki aur silky soft jaisi jhantein bhi ugi hui
thi aisa lagta tha ke abhi nai nai jhatein aana shuru hui hain. Choot
ke lips ke beeche mai ungli dala to pata chala ke woh to be inteha
geeli ho chuki hai pata nahi kab se mujhe dekh rahi thi aur ander hi
ander garam ho rahi thi.
Ek hath se uski choot ko masal raha tha doosre hath se ek breast ko
daba raha tha aur doosre breast ko choos raha tha aur uska hath mere
lohe jaise sakht lund ko pakde hue tha. lund pakad kay kisi expert ki
tarah age peeche kar rahi thi aur sath mai daba bhi rahi thi. Uski
built bohot badi nahi thi uske figure ko dekhte hue lagta tha ke shaed
14 ya 15 saal ki ladki hogi. Boobs bhi bohot ziada bade nahi the par
the bade sakht. Medium size ke seb jitna size hoga. Dabane mai aur
choosne mai bohot maza aa raha tha. ab aur ziada sabar karna mushkil
ho raha tha to mai ne uski gand ko dono hatho se pakad ke masalna
shuru kia aur uski gand pakad ke usko utha lia. Mere utha te hi usne
immediately apni tangein mere kamar pe lapet li. uski gand ko mai ne
Door ki khuli khidki se tika dia. Mera lund akad ke mere pet se tika
ke almost
45 degrees ka angle bana raha tha ooper ko uth gaya the josh mai aur
hil raha tha.
Mai ek step aur aage ho gaya aur uski khuli skirt mai se uski choot pe
lund ko tika dia. Choot to bohot hi geeli ho gai thi mere lund mai se
nikalta hua pre cum uski geeli choot ko aur ziada geela aur slippery
bana raha tha. Mai apni gand ko dhakka deke lund uski choot mai
ghusedna shuru kia to woh choot ke lips ke beech mai se slip ho ke
uski clitoris se takraya to uske muh se ek siskari nikal gai. Aise hi
ek bar phir se try kia, Lund to ooper ko utha hua tha isi liye ek bar
phir slip ho gaya to usne apne hath mei mera lund pakad ke apne choot
ke khule lips ke ander se choot ke hole se sata dia aur choot mai mere
lund ko ghisne lagi aaahhhhh bohot maza aaa raha tha. Mai uske boobs
ko choos raha tha aur woh mera lund pakde apni geeli geeli garam choot
mai ghiss rahi thi.
kramashah.......................
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