रसीली रति
मेरी पत्नी घर के काम काज के मामले में बहुत ही आलसी है, कभी कभी मुझे उस पर बहुत ही गुस्सा आता है, मगर फिर भी मैं जानबूझ कर उसे कुछ नहीं कहता।
मेरे ससुराल में शादी थी तो मुझे भी वहां जाना था। वहां पर बहुत से रिश्तेदार आये थे, वहां मेरी पत्नी ने अपनी एक रिश्तेदार से मिलाते हुए कहा- इसका नाम रती हैं और हम इसको परीक्षा के बाद अपने पास ही रखेंगे।
जब मैंने उस लड़की को देखा तो सच में देखता रह गया। उसके बोबे क्या माशा अल्लाह, और काया गजब अति सुन्दर काया थी उसकी, कि जो भी उसको देखे, देखता ही रह जाये।
अचानक मेरी पत्नी की आवाज ने मुझे झकझोर दिया कि कहां खो गये।
मैंने कहा- कहीं नहीं।
मेरी पत्नी ने मुझे धीरे से कहा- अगर तुम नहीं चाहते उसको अपने यहां पढ़ाना ! तो मैं मना कर देती हूँ।
मेरे मन में तो लड्डू फ़ूट रहे थे, मैं कब मना करने वाला था, मैंने कहा -नहीं-नहीं मुझे कोई एतराज नहीं।
जब तक मैं ससुराल में रहा तब तक मैं मजाक ही मजाक में उसके स्तन दबा देता, या नाजुक अंगों से छेड़छाड़ कर देता तो वह हंसकर भाग जाती।
जब मैं वापस अपने शहर आया तो मुझे उसकी याद आने लगी, मगर मैं अपने मुंह से कुछ नहीं कहना चाहता था क्योंकि पत्नी को शक होने का डर था। पर ऊपर वाला शायद एक बार फिर मुझ पर मेहरबान था।
मेरी पत्नी ने ही आगे होकर उसके शहर जाकर उसे लाने के लिये कहा। मेरा मन तो गार्डन-गार्डन हो गया।
मैं व मेरी पत्नी उसके शहर गये और उसे ले आये। अब तो बस मौके की तलाश थी। वाह री किस्मत मेरी पत्नी को फिर अपने ससुराल २-४ दिन के लिये जाना था। पहले तो मेरी पत्नी ने कहा- मैं रती को भी साथ ले जाती हूँ। फिर उसने खुद ही विचार बदल दिया कि वह बेकार परेशान होगी, २-४ दिन की ही तो बात है। मैं और रती मेरी पत्नी को छोड़ने सुबह ६ बजे ही रेलवे स्टेशन गये और उसे छोड़ कर वापस आये।
रती ने आते ही कहा- जीजू चाय पीकर जाना !
मैंने उसका हाथ पकड़ कर बिस्तर पर खींच लिया और मस्ती करने लगा। यह सब ऊपर की मस्ती मजाक तो मेरी पत्नी के सामने भी करता था, मगर आज तो बस उसे चोदने का मन बना हुआ था।
मैंने कहा- रती, चाय-वाय बाद में बनाना, आओ थोड़ी देर बैठो तो।
उसने कहा- जीजू, क्या बात है, विचार तो नेक हैं, आपके?
मैंने कहा- विचार तो आपके जीजू के हरदम ही नेक होते हैं, बस आप ही नहीं समझती।
और मैं अपने हाथों को उसके शरीर के नाजुक अंगों पर फिराने की कोशिश करने लगा। मैंने उसके वक्ष को पीछे से हल्के से दबाया तो वह कुनमुना गई और छुटने की नाकामयाब कोशिश करने लगी। आज मुझे लग रहा था कि रती भी मुझसे चुदवाने को बेताब है। मैंने जब उसकी तरफ से मौन इशारा समझा तो अपने हाथों को धीरे-धीरे उसके नाभि-मण्डल पर ले गया और मेरे होंठों ने भी अपना काम चालू कर दिया था। मेरी तरफ उसकी पीठ होने के कारण मैंने उसकी गरदन को अपनी तरफ घुमाकर उसके होंठों का रसस्वादन करने लगा। अब मेरा हौंसला भी बुलन्द होने लगा।
मैंने उसके कुर्ते को थोड़ा ऊपर किया तो उसने कहा- नहीं जीजू यह सब नहीं ! अगर किसी को मालूम हो गया तो?
मैंने रती को समझाते हुए कहा- देखो जान ! इस घर में मेरे व तुम्हारे अलावा कोई नहीं है, तो किस को मालूम होगा और कौन बतायेगा कि हमने क्या किया।
रती मेरा मतलब समझ गई और चुप हो गई। अब मैं भी बिन्दास हो गया और रती की कुर्ती के अन्दर हाथ डालकर बोबों को दबाने व सहलाने लगा। रती का पहला चुदाई कार्यक्रम था तो उसमें डर और मजा दोनों का समावेश था।
उसके मुख से रह रहकर सिसकारियाँ निकल रही थी- आ....ह........ जीजू...............
मैंने रती की कुर्ती को एक झटके में शरीर से अलग कर उसकी ब्रा को खोल दिया और बोबों को मुँह में लेकर चूसने लगा।
रती मदहोशी में आंखे बंद किये ही कहने लगी- जीजू ! ऐसे क्या करते हो !
तो मैंने कहा- रती अभी तो बाकी है ऐसे-वैसे सब करेंगे, तुम बस महसूस करो और मजा लो।
बोबों को चूसते हुए उसके नाभि-स्थल तक होंठों को फिराता हुआ लाया, नाभि से नीचे जाना चाह रहा था, मगर रती का नाइट पायजामा और पेंटी दीवार बन कर खड़े थे। इधर रती मेरी पीठ को सहला रही थी। मैंने रती की पैंटी और पायजामा एक बार में ही खोल दिया और अपना मुँह रती की गुलाबी चूत पर ले गया, रती की गुलाबी चूत पर नाम मात्र के मुलायम बाल थे जो उसकी गुलाबी चूत की पहरेदारी कर रहे थे।
मैंने अंगूठे से उसके पहरेदारों को एक तरफ किया और उसकी गुलाबी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा। उसकी सिसकारियाँ लगातार जारी थी- जी......जू..........ये क्या..........कर रहे....... हो..........आ.हहहहहह जी.....जू.........मजजजजजा आाा ररररहा हैं औररररर जोर सेससस चाटटो नााा
गुलाबी चूत से रिस रिस कर नमकीन पानी निकल रहा था, उसे चाटने में मुझे भी मजा आ रहा था और शायद अब रती को भी मजा आने लगा था। रती अपनी गांड उठा उठा कर मुखचोदन करा रही थी।
आधे घण्टे तक चूत चाटने के बाद हमारे लण्ड महादेव भी हुंकारने लगे और अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को व्याकुल होने लगे। मैंने अपने कपड़े उतारे और अपना लण्ड निकाल कर रती के हाथ में दे दिया।
वह लण्ड देखते ही चिल्ला उठी- ये क्याऽऽऽ ?
मैंने कहा- लण्ड।
बोली- इतना बड़ाऽऽ? मैं मर जाऊंगी जीजू ! नहीं मुझे छोड़ दो !
मैंने उसे समझाया- जानू, तुम्हारी जीजी भी तो इसे लेती हैं, वो तो नहीं मरी। इसे मुँह में लो ! तुम्हें मजा आयेगा !
वह ना ना करती हुई मेरे लण्ड को अपने मुँह में लेने लगी। धीरे धीरे आधा लण्ड मुँह में लेने के बाद मैंने उसके मुंह को चोदना चालू कर दिया। लण्ड चूसने में अब रती को भी मजा आ रहा था। वो अब लण्ड को लॉलीपाप की तरह चूसने लगी। मैं पॉजीशन बदलते हुए ६९ की पॉजीशन में आ गया और अब वो मेरा लण्ड और मैं उसकी चूत चाटने लगा। करीब २०-२५ मिनट में रती दो बार स्खलित हो गई और मैं अब होने वाला था।
और मैं........... ये ........गया वो गया......... और अपना सारा माल उसके मुँह में उड़ेल दिया। और फिर आपस में चिपक कर हांफने लगे।
थोड़ी देर बाद अचानक अपने लंड पर किसी के स्पर्श से मैंने आंखे खोली तो देखा कि रती उससे खेल रही है और उसे खड़ा करने की कोशिश कर रही है। मेरे आंख खोलते ही मुझे अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। मैं समझ गया कि अब मेरी साली को जीजू से क्या चाहिये।
मेरा लण्ड कब पीछे रहने वाला था, उसने तुरन्त सलामी ठोक दी और चूत पर जाकर पहरेदारों से भिड़ गया। आखिर जीत मेरे लण्ड की हुई और सारी दीवारें तोड़ता हुआ रती की अनछुई गीली, चिकनी चूत में धीरे-धीरे प्रवेश करने लगा क्योंकि मुझे मालूम था कि रती पहली बार चुदने वाली हैं।
जैसे ही लण्ड ने संकरे रास्ते में प्रवेश किया, रती ने रोक दिया- नहीं जीजू ! दर्द हो रहा है ! और चिल्लाने लगी।
मैंने सोचा अगर रती की बातों में आ गया तो सारा किया धरा रह जायेगा और मैंने तुरन्त रती के होंठों पर कब्जा कर एक लण्ड की तेज ठोकर लगाई और उसकी चिल्लाहट को होंठों से दबा दिया।
मैंने महसूस किया कि लण्ड पर खून का फव्वारा छुट गया और वह हाथ पैर मारने लगी, मगर मैं अपने हाथों से उसके स्तनों को सहलाते हुए और होंठों से अब गाल, कान, गरदन वगैरह चूम कर उसे दिलासा देने लगा और धीरे धीरे लण्ड को अंदर बाहर करने लगा। उसका प्रतिरोध अब कम होता नजर आया और अब शायद उसे भी मजा आने लगा इसलिये गांड उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी और मुंह से अनाप शनाप आवाजें निकालने लगी- जी......जू चो.......दो मुझे.............. चोद...........डालो ! वगैरह वगैरह।
लण्ड और चूत की लड़ाई चालू हो गई थी, या यूं कहिये आपस में शास्त्रीय संगीत की प्रतिस्पर्धा चालू हो गई हो। क्योंकि लण्ड जैसे ही अन्दर जाता तो तबले पर पड़ने वाली थाप की आवाज आती और रती के मुँह सिसकारियाँ निकलती। मतलब कि उस वक्त सरगम बज रही थी।
१५-२० मिनट बाद मैंने चूत में लण्ड डाले डाले ही उसे घोड़ी बनाया और फिर चालू हो गया। इस दरम्यान वो २-३ बार झड़ चुकी थी मगर मेरा अभी ठिकाना नजर नहीं आ रहा था।
मगर घोड़ी की पोजीशन में आते ही मुझे लगने लगा कि अब ज्यादा देर नहीं टिक सकूंगा और मैं भी १५-२० धक्कों के बाद उस पर ढेर हो गया और अपना सारा माल उसकी कोमल चूत में बहा दिया।
देर बाद जब हम उठे तो उसकी नजर बिस्तर पर गई जहां खून ही खून और वीर्य उसका और मेरा दोनों का पड़ा था, जिसे देख कर वह डर गई और रोने लगी- जीजू ! यह क्या हुआ ? इतना खून निकल गया।
मैंने कहा- साली साहिबा ! यह सब तो पहली बार में होता ही है ! और समझाने लगा।
मैंने उस दिन ऑफिस फोन कर छुट्टी ले ली और उस दिन और उसके बाद जब तक मेरी पत्नी नहीं आई तब तक मैं रती को लगातार चोदता रहा कभी घोड़ी-कुतिया तो कभी किचन में एक टांग पर। कुल मिलाकर रती के साथ बिताये वो हर पल आज भी मेरी आंखों के सामने आते हैं तो बस उसे चोदने की इच्छा जागृत हो जाती है।
उसके बाद हमें जब भी दिन में, रात में या जब भी मौका मिलता हम एक हो जाते। अब वो हमारे साथ नहीं रहती ! वो अपने घर चली गई, मगर उसकी याद अब भी दिल में बाकी है।
यह कहानी आपको कैसी लगी, मेल करें।
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