Sunday, May 4, 2014

FUN-MAZA-MASTI नौकरी हो तो ऐसी--7

FUN-MAZA-MASTI

  नौकरी हो तो ऐसी--7
 गतान्क से आगे...... 
मुझे मन ही मन मे बहू की गांद मारने की बहुत ही इच्छा हो रही थी, परंतु बहू ऐसा नही करने देगी ये मुझे पता था, क्यू कि जब मैने उसे सेठानी की गांद मारने की बात कान मे बताई थी, तब वो बोली थी "मेरे साथ ऐसा करने की कोशिश कभी मत करना नहितो तुम्हारा ये हथौड़ा जड़ से उखाड़ दूँगी, मुझे मेरी गांद तुम्हारे इस हथौड़े से नही फाड़नी है …मेरी प्रिय सासुमा की तरह..जो आजकल ऐसे चल रही है जैसे गांद मे कुछ फसा हो…." 

उसी वक़्त मैने मन ही मन मे सोच लिया था कि गाव जाके एक दिन इसकी ऐसी गांद मारूँगा ना कि चलने क्या उठने के काबिल भी नही रहेगी, और जिस दिन से ये ख़याल मेरे जहाँ मे उत्पन्न हुवा था उसी दिन मे मैं बहू की गांद मरनेवाले दिन का बेसबरी से इंतेज़्ज़ार किए जा रहा था. 

अब बहू और सेठानी ने मेरे लंड को चूस चूस के पूरा गरम कर दिया, इतना कि थोड़ी ही देर मे मैं बहू के मूह मे झाड़ गया, और मेरा वीर्य पीते हुए बहुने थोड़ासा वीर्य अपने प्रिय सासू के मूह मे डाल दिया, उन्होने ने भी किसी प्रषाद की तरह ग्रहण करते हुए पी लिया उन दोनो के होंठो पे मेरे वीर्य की धाराए मानो अमृत मालूम हो रही थी. 

अभी सेठानी उठ खड़ी हुई और साड़ी पहनने लगी और 
बोली "अभी सो जाओ …कल सबेरे जल्द ही स्टेशन आ जाएगा तो हमे बहुत सारा समान बाहर निकालना होगा" 
बहुने मेरे लंड को सहलाते हुए पूछा "हमारे वो आ रहे है हमे लेने?? " 
सेठानी बोली "पता नही वो आएगा की नही….परंतु मनोहर और उसकी बीबी छाया आनेवाले है सामान लेने स्टेशन पे " 
छाया नाम सुनते ही मेरा लंड खुश हो गया, और मैने मन ही मन मे प्लान भी बना लिया कि गाव मे जाके सबसे पहले छाया को चोदुन्गा. थोड़ी ही देर मे हम तीनो लोग अपने अपने बर्त पे लूड़क गये. और कब नींद लगी पता ही नही चला. 


.. 
…. 
…… 

जब सबेरे बूढ़ा सेठ जी मुझे बिर्तपे हिलने लगा तब जाके मेरी नींद खुली और मैने अपनी घड़ी मे टाइम देखा तो 8:30 बज रहे थे, अब थोड़ी ही देर मे हम लोग सेठ जी के प्रिय गाव, जहा पे उनकी बहुत इज़्ज़त वाहा पहुचने वाले थे. 


9:40 के करीब ट्रेन स्टेशन पे पहुचि. और हम लोग सामान लेके भीड़ से निकलते हुए ट्रेन से उतरने लगे, उतने मे मनोहर "सेठ जी सेठ जी …….." चिल्लाता हुआ आया, और उसने सेठ जी के हाथ से समान लेते हुए अपने काँधे पे डाल लिया, उसके साथ उसकी बीवी छाया भी आई हुई थी, वो भी भागते भागते आगे आई, छाया ने सेठानी के हाथ की संदूक ले ली और अपने सर पर रख ली. मैं अपनी नयी शिकार को देख के हैरान रह गया और मन मे बोला, "वाह….वाह ……..दिल खुश हो गया." 

छाया रहती गाव मे थी परंतु दिखने मे एकदम गोरी, सादे पाच फीट कद, भरा हुवा गोलाकार शरीर, 20-21 साल की उमर, उसके तने हुए ब्लाउस से बाहर निकलने की चाह रखनेवाली उसकी चुचिया, उसके वो भरी हुई मदमस्त गांद, उसकी वो चाल, चलते समय उसकी गोल गोल गांद इस तरह हिल रही थी, कि देखनेवाले दंग रह जाए. 

उसने अपने सर पे संदूक रखा हुवा था, और वो चले जा रही थी, मनोहर के पीछे पीछे. मनोहर कद मे उससे कम लग रहा था, थोड़ा सा मोटू और छोटू और बड़ा ही अच्छा इंसान मालूम पड़ रहा था, अपने चेहरे से, और उसकी बीवी, छाया मदमस्त अपने स्थानो को गांद को हिलाते हुए चले जा रही थी. 

थोड़ी ही देर मे हम स्टेशन से बाहर निकल आए, बाहर सेठ जी और सेठानी के लिए एक तांगा, और दूसरा तांगा बहू और मेरे लिए खड़ा था, मनोहर सेठ जी के साथ टांगे मे बैठ गया और मेरे और बहू के साथ छाया बैठ गयी, मैं तो तांगे वाले के साथ आगे मूह करके बैठा था, और मेरे पीठ पीछे छाया बैठी थी, अब मैने थोड़ा सा वातावरण का अंदाज लेना चाहा. 

मैं पीछे खिसक गया, और छाया की पीठ से पीठ लगा दी, वैसे ही वो आगे सरक गयी, और चुपचाप बैठ गयी, मैं फिरसे उसकी तरफ खिसका, इस बार वो आगे सरक नही पाई, क्यू की वो आगे सरक्ति तो तांगे से गिर जाती, पसीने से उसके सारी का पल्लू गीला था, वो मुझे महसूस होने लगा, मैं और थोड़ा पीछे खिसक गया और उसके पीठ से अपनी पीठ पूरी तरह चिपकाकर उसकी पीठ पर रेल दिया. 

जैसे ही तांगा हिलता, हम दोनो एक दूसरे के और करीब आ जाते और ज़्यादा चिपक जाते, जैसे की मेरा बाया हाथ बहू के बाजू मे था, मैने अपना दाया हाथ पीछे किया, और उसे पीछे करते हुए हल्केसे छाया की चुचि के साइड पर मलने लगा, जैसे ही मैने छाया की चुचि के साइड पर हाथ रखा, मैं महसूस कर पा रहा था, कि उसकी सासे तेज़ हो रही है. 

अब मैने हल्केसे बहू की तरफ देखा तो उसकी आँख लग चुकी थी, और तांगा सुरक्षित होने के कारण उससे गिरने का कोई ख़तरा भी नही था, मेरा हौसला बहू के सोने के कारण और बढ़ गया, और मैने अब अपना हाथ छाया की चुचि के साइड से निकाल के उसकी पूरी गोलाकार, भारी हुई चुचि पर रख दिया, और उसे मसलने लगा, थोड़ी ही देर मे मुझे उसका निपल हाथ मे लगा, मैने उसे दबाना शुरू किया, वैसे ही छाया की सासे और बढ़ने लगी, 
छाया मेरे कान मे बोली "ये क्या कर रहे हो बाबूजी…." 
मैं कुछ नही बोला. 

उसने एक हाथ से मेरे हाथ को उसके स्तनो से निकालने की कोशिश की, परंतु ये मैं भी समझ गया था कि, उस कोशिश मे दम नही था, और वो महज ही कोशिश कर रही थी, मैने अब अपना हाथ और पीछे करते हुए उसके ब्लाउस मे हाथ डाल दिया, जैसे ही मैने उसके ब्लाउस मे हाथ डाला "वाह क्या बड़ी बड़ी नरम नरम चुचिया थी उसकी…..क्या बोलू …स्वर्ग समेत आनंद महसूस होने लगा." 

पूरे सफ़र मे मैं उसकी कोमल चुचियो को मसल रहा था, और निपल्स को चिमकारिया ले रहा था, छाया की हालत बहुत पतली हो गयी थी, वो ज़ोर ज़ोर से सासे ले रही थी, लग रहा था कि उसे इस तरह अभी तक किसीने गरम ना किया हो, मेरा लंड तो ऐसे खड़ा हो गया था मानो जैसे पॅंट को चीर के बाहर आ जाए. 

अब गाव दिखने लगा था, मैने छाया के ब्लाउस से अपना हाथ निकाल लिया, और आगे की तरफ ध्यान से देखने लगा, 
इतने मे तान्गेवाला बोला "अब हम पाच मिनिट मे घर पहुच जाएँगे बाबू…..वो जो हवेली दिख रही है पीले रंग की …. वो है सेठ जी की हवेली" 

तांगा हवेली के सामने जाके रुका, और मैं नीचे कूद गया, अंदरसे दो चार लोग बाहर आ गये, और समान उठाके अंदर ले जाने लगे. हवेली पुरखो की और बहुत पुरानी मालूम होती थी, परंतु उसकी देखभाल बहुत अच्छे की गयी होगी क्यूकी आज भी वो हवेली एकदम शान से खड़ी थी, और उसपे वो अलग अलग तरह का नाकषिकम उसे और भी शोभा दे रहा था. 

सेठ जी ने मुझे अंदर बुलाया और एक नौकर को मुझे मेरा कमरा दिखाने के लिए बोला, मैं अंदर गया, तो वो नौकर आके मुझे मेरे कमरे की तरफ, समान उठाके लेके निकल पड़ा, हवेली 3 माले की थी. नीचे के माले पे सेठ जी रहते होंगे ऐसे मैने सोचा, पता नही था, परंतु अभी आ गया हू तो पता चला ही जाएगा. वो नौकर मुझे दूसरे माले पे लेके गया और एक कमरा खोल के मेरा समान रखते हुए मेरे हाथ मे चाबी देते हुए निकल गया. मैं कमरे के अंदर आया कमरे के अंदर एक अच्छा सा बिस्तर, एक बड़ा सा मेज, एक छोटा परंतु आरामदायक 2 आदमियोको बैठने के लिए सोफा, और बहुत सारा समान अच्छी तरह रखा हुआ था. बाजू मे ही जोड़के छोटसा बाथरूम था, मैं तो शहर मे भी इतना खुशहाली से नही रहा था, ऐसे लग रहा था अब गाव मे ही मेरा आगे का जीवन व्यतीत होनेवाला हो. 

मैने बाथरूम के अंदर जाके मूह हाथ धो लिया, और आके अपने बिस्तर पर लेट गया, लगभग शाम हो रही थी तब दरवाजे पे किसीकि हाथ की आवाज़ सुनाई दी, मैने जाके दरवाजा खोला, तो बाहर सेठानी खड़ी थी. 
मैं बोला "इतने देर बाद याद आई हमारी" 
सेठानी बोली "नही ऐसी बात नही है….पर अब हालत ट्रेन जैसे थोड़ी ही है…तुम जल्दिसे तैयार होके नीचे आ जाओ ….नाश्ता और चाइ तैयार है ……नाश्ता होनेके बाद 6 बजे माता रानी की पूजा है ….आज बहुरानी घर आई है ना इसलिए…..तो तुम जल्दिसे नीचे आ जाओ…सेठ जी तुम्हारा इंतेज़ार कर रहे है" 
मैं बोला "ये तो ठीक है सेठानी जी…परंतु हमारी रात की पेट पूजा का क्या बंदोबस्त है" 
सेठानी बोली "वो तो हमारी प्यारी बहुरानी पे निर्भर है….देखते है कैसे रास्ता निकल आता है आपकी और हमारी पेट पूजा का.." 

ये कह के सेठानी चल दी, मैं तैयार होके नीचे के माले पे आ गया, उतने मे मुझे छाया ने आवाज़ दी और मुझे नाश्ते के लिए अंदर बुलाया. मैं अंदर चला गया और एक टेबल पे बैठ गया, छाया आई और मुझे नाश्ता देने लगी, मैने हल्केसे उसके पिछवाड़े की तरफ हाथ डालते हुए उसके गांद को एक छोटिसी चिमती ली, तो वो उछल पड़ी और हस्ने लगी और बोली "लगता है आप अपनी हर्कतो से बाज नही आनेवाले बाबूजी…." और मुझे आँख मार दी. थोड़ी ही देर मे मैने नाश्ता ख़तम किया तो एक नौकर आके मुझे बोला "बाबूजी बगल के कमरे मे पूजा शुरू होनेवाली है …आप जल्दिसे वाहा आईएगा …गाव के बहुत सब लोग आए है" 
क्रमशः.............. 














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