Sunday, May 4, 2014

FUN-MAZA-MASTI नौकरी हो तो ऐसी--14

FUN-MAZA-MASTI

  नौकरी हो तो ऐसी--14

  गतान्क से आगे…………………………………….

 सेठ जी के साथ जीप मे बैठ के हम लोग खेतो की ओर चल दिए गाव से बाहर निकलते ही सेठ जी के सारे खेत दिखने शुरू हो गये सेठ जी बताने लगे “ये सब मेरे पिताजी दादा और परदादा की ज़मीन है …इन लोगोने खूब मेहनत करके ये ज़मीन अपने नाम से जाने से रोकी है …अभी लगभग हम लोग 300-400 एकर के मालिक है…. इसमे 100-200 कूल्हे है… लगभत 90 प्रतिशत ज़मीन बागायती है और बाकी की ज़मीन जानवर चराने के लिए रखी है… मैं चाहता हू कि तुम  अब कारोबार पे अच्छे से ध्यान दो… हमारे पहले मुनीम जी अच्छे से इस कारोबार को संभालते थे पर अब तुम्हे ये सब देखना होगा ” मैं हाँ करके मुँह हिला रहा था सेठ जी  बोले“पहले मुनीम्जी अच्छे थे पर मेरे बेटे उन्हे ठीक से हर एक काम पे कितने रुपये खर्च हुए इसका हिसाब किताब बराबर से नही देते थे तो उन्हे ज़रा परेशानी रहती थी ….तुम्हे अगर कोई भी परेशानी आए तो तुम मुझे बेझीजक बताना पर हां हिसाब के बारे एक दम बराबर रहना…” हम अभी खेतो से निकल के सेठ जी के कार्यालय  कीतरफ निकल पड़े…

जैसे कि मैं यूनिवर्सिटी का ग्रॅजुयेट था और मैं एक चार्टर्ड अकाउंट के नीचे काम किया था… मुझे हिसाब किताब मे किए जानेवाली हर एक चीज़ का बारीकी से ग्यान था और हिसाब मे की गयी कोई भी लापरवाही या मिलीभगत मैं यू पकड़ सकता था…..



हम कार्यालय पे पहुचे… कार्यालय मतलब एक गोदाम था जहाँ मुनीमाजी और सेठ जी बैठते थे वहाँ पे बहुत सारे अनाज की बोरिया लगी हुई थी करीब 1000-2000 अलग अलग किस्म के अनाज की बोरिया थी…पर उन्हे बहुत ही अच्छे से रखा गया था…बहुत सारे मजदूर लोग वहाँ मौजूद थे जो साफ सफाई  और देखभाल के लिए रखे थे…. गोदाम पुरखो का और मजबूत लग रहा था… उसकी हाल ही मे पुताई भी की गयी हो ऐसे लग रहा था …यही मेरी काम की जगह बनने वाली थी आजसे….


उधर ही गोदाम के अंदर एक बाजू मे सेमेंट का बड़ा उँचा एक बरामदा तैय्यार किया था जहापे सब हिस्साब किताब की पुस्तक और कापिया रखी थी… नीचे बैठने के लिए तीन चार गद्दे और लोड लगाए थे …..3-4 छोटे छोटे मेज भी थे जहापे मूंदी डाल के अच्छे से हिसाब किताब कर सकते थे …. हम लोग उधर आए और उस बरामदे मे सीडी से चढ़ गये…. लगभग 20 सीडी चढ़ के हम बरामदे मे पहुच गये.

सेठ जी अपनी मेज के पास बैठ गये और मुझे बाजू बिठा के सब हिसाब किताब समझाने लगे “ये ऐसा है… वो वैसा है ..इस साल इतना गेहू हुआ था ..उस साल उतना चावल हुआ था…. इसकी इतनी उधारी है… उसके उतने देने है… ये सब इसके बिल है… ये पिछले साल के कूल्हे बनाने का खर्चा है …ये सब कामगारो की पगार के हिसाब की पुस्तक है… ”

सेठ जी 2 घंटे मुझे सब बता और समझ रहे थे…दोपेहर मे हम लोगोने खाना खा लिया…उसके बाद आके सेठ जी मुझे समझाने लगे कि किधर क्या लिखना है और किधर कौनसी पुस्तक रखनी है…. हिसाब किताब पुराने ढंग से किया हुआ था.. जिसके अंदर का अक्षर भी एक दम चिडमिद और गंदा था… एक बार मे कोई चीज़ की कीमत जल्दी समझ नही आ रही थी… बस एक चीज़ थी सेठ जी एक बड़े ज़मींदार के एक बड़े व्यापारी भी थे… वो अपना सारा अनाज व्यापारियो को ना बेचते थे बल्कि बड़े जिले मे बाजार मे जाके बाजार समिति मे लेके सीधे बेचते थे इससे उन्हे बहुत ही ज़्यादा मुनाफ़ा मिलता था… अभी शाम होनेको थी. सेठ जी भी थोडेसे थके हुए दिख रहे थे… लगभग 6 बजे हम हवेली की तरफ चल निकले जो कि 25-30 मिनट की दूरी पे थी…



 एक बात तो थी… सेठ जी को मेरे बारे मे मामाने बहुत काबिल लड़का है ये वो जो तारीफ की थी उससे मेरेपे बहुत ज़्यादा भरोसा हो गया था.. और वो मुझे एक नौकर की तरह ना रखते हुए अपने बेटे की तरह ख़याल रख रहे थे.. उनका मेरे प्रति व्यवहार देखके कोई ये नही कह सकता था कि मैं उनकानौकर हू…..
जब हम हवेली पहुचे तो शाम का वक़्त हो चला था… मैने देखा सेठ जी क़ी छोटी बहू मेरे सामने खड़ी है मैने उसे देखा तो वो बोली “ज़रा हमारे साथ आओ हमे कुछ सामान लाना है उसकी लिस्ट बनाना है…” सेठ जी ने कहा “अरे वो अभी आया है थोड़ा आराम करने दो उसके लिए चाय लेके आओ..” छोटी बहू ने कहा “ठीक है तुम मेरे कमरे मे जाके बैठो..पहले माले पे तीसरा कमरा… मैं तुम्हारे लिए चाय लेके आती हू…..”



मैं सूचना अनुसार उस कामरे मे जाके बैठा. कमरे मे पालने मे बच्चे को सुलाया था… मैं यहाँ वहाँ देख रहा था उतने मे वो चाय लेके आई और मेज पे रख दी और दरवाजा ठप से बंद कर दिया… और सीधे आके अपने चूतादो को मेरे से सटा कर बैठ गयी बोली “कहाँ थे तुम.. मैं कब्से तुम्हे ढूँढ रही थी” मैने बोला “सेठ जी के साथ काम पर….” मैं बोल ही रहा था कि छोटी बहू ने मेरे हॉटोपे अपने होठ टिका दिए और मेरे निचले होटो को अपने मुँह के अंदर लेके चूसने लगी अभी उसकी जीब मेरे मुँह मे गयी और हम एक दूसरे की जीब चूसने लगे.. वाह क्या मज़ा आ रहा था उसके वो कोमल और गरम होठ मेरे शरीर मे रोमांच पैदा कर रहे थे.. मैने उसकी चुचियो को हाथ मे ले लिया और हल्केसे सारी बाजू करके सहलाने लगा…. वो मेरे और करीब आ गयी और मेरे शरीर से पूरा चिपक गयी….



मैने हाथ उसके चूतादो पे घुमाने शुरू किए …इन चूतादो को मैने ट्रेन मे अच्छे से मला था… भारी भारी चूतादो पे हाथ घुमाने से मेरे अन्ग अन्ग मे रोमांच भरने लगा मैं छोटी बहू को और अपनी छाती मे दबाने लगा और अपनी लार उसके मुँह मे और उसकी लार मेरे मुँह मे जीब से अंदर बाहर करने लगे….. मैने पीछेसे सारी को थोड़ा खिसका के उसके नंगे चूतादो को पकड़ा और सहलाने लगा वाह मैं तो सातवे आसमान पे था… मैने पीछेसे एक उंगली छोटी बहु की गांद के छेद पे रखी और उसे अच्छे से मसल्ने लगा… वो बोली “उधर मत जाना….” मैं बोला “कुछ भी तो नही किया बस रखी है…” और मैं फिरसे धीरे से गांद के छेद पे अपनी उंगली  मलने लगा…. मैं उंगली अंदर डालनेकी कोशिश कर रहा था.. पर गांद ज़्यादा ही चिपकी थी इसलिए जल्दी अंदर नही जा रही थी.. छोटी बहू की गांद मारना ये मेरी ट्रेन के सफ़र से ख्वाहिश रही थी पर उसने मुझे मौका ही नही दिया था पर यहाँ मैं तो उसे चोदने ही वाला था… मैने अभी छेद के बराबर बीचो बीच उंगली रख के अंदर घुसाई… वो कराह उठी… बोली “मत डालो उधर…. दर्द होता है बहुत”


इतने मे पालने मे सोया बच्चा रोने लगा…. वैसे ही वो मुझसे अलग हो गयी और बच्चे को उठा कर अपनी गोद मे लेके गद्दे पे बैठ गयी… उसने अपनी चोली खोली और एक चुचि बच्चे के मुँह मे दी और बच्चा शांत हो गया

मैने कपड़े ठीक करते हुए पूछा “तुम मुझे घरके बाकी लोगोसे कब मिलवाने वाली हो”

वो बोली “क्यू उनकी गांद मे भी उंगली डालनी है क्या”



 मैं बोला “ठीक है जैसे तुम्हारी मर्ज़ी” मैं उसके बाजू मे जाके बैठ गया और उसकी दूसरी चुचि को सहलाने लगा वैसे ही....

छोटी बहू बोली “नही ठीक है बताती हू….” वो बच्चे को दूध पिला रही थी उसकी चुचिया बड़े बड़े टमाटर की तरह लाल लाल दिख रही थी…

वो बोली “घर मे बहुत लोग है तुम्हे एक बार मे याद रखना मुश्किल होगा…इसलिए जैसे जैसे तुम यहाँ रहोगे तुम जैसे उनसे मिलोगे वैसे मैं तुम्हे उनके बारे मे बताती जाउन्गि”

मैने बोला “पर हर समय तुम थोड़िना हर मेरे साथ रहोगी ये बताने के लिए कि ये कौन है वो कौन है….”

वो बोली “ठीक है तो सुनो…. जैसे कि तुम जानते हो…सेठ जी घर के मुखिया है..सब उनका बहुत आदर सन्मान करते है उनसे डरते ही है …और सेठानी जी जो हमारी सास है पर हमसे  ज़्यादा प्यार करती है…. उनके चार बेटे और एक बेटी है … चार बेटे जैसे कि रावसाब, वकील बाबू, कॉंट्रॅक्टर बाबू और मेरे पति मास्टर जी…. एक बेटी है जिसका पति इतना अमीर ना होने के कारण वो पति के साथ यही रहती है”


मैं बोला “अच्छा….”

वो बोली “रावसाब ज़्यादातर खेती काम देखते है… और गुलच्छर्रे उड़ाने मे लगे रहते है…वैसे सभी गुल्छर्रो मे ही लगे रहते है….तो रावसाब के दो बीविया है उनको पहली बीवीसे संतान नही हुई इसलिए उनकी दूसरी शादी करदी गयी पर हां उनकी पहली बीवी दूसरी से बहुत सुंदर है…. उन्हे दूसरी बीवी से एक लड़का और एक लड़की जो अभी तक पढ़ रही है… उनके लड़के की शादी 1.5 साल पहले हुई और अंदर की बात ये है कि उसकी बीवी अभी पेट से है लगभग तीसरा महीना चल रहा है…”


वो बोलते जा रही थी “इसके बाद है वकील बाबू जिनकी एक ही बीवी है… उनको तीन लड़किया है ..जिसमे से बड़ी की पिछले साल शादी हो गयी है.. और दो छोटी लड़किया अभी कुँवारी है और अभी पढ़ती है…उनकी बीवी बोलती है कि हमे दो ही चाहिए थी..ये तीसरी निरोध फटने से हो गयी… और पता ही नही चला कब दिन चले गये….” मैं हसने लगा


छोटी बहू मुस्कुरा के बोली“उसके बाद कॉंट्रॅक्टर बाबू जिनकी भी एक ही बीवी है…. उन्हे एक बड़ा लड़का और  एक लड़की है दोनो भी कुंवारे है…और पढ़ाई करते है”


“उसके बाद तो मेरी और मास्टर जी की जोड़ी.. जैसे के तुम जानते हो…. और हमारा ये एक लाड़ला“ उन्होने बच्चे के गाल की एक पप्पी लेते हुए कहा


मैने पूछा “और सेठ जी की बेटी का क्या जो यही रहती है…”

वो बोली “हाँ वो भी है ना… वो अपने पति के साथ यही रहती है…उन्हे एक बड़ी लड़की और लड़का है जो अभी पढ़ रहे है” 



मैं इतना बड़ा परिवार अभी तक कही नही देखा था… अभी लगभग 7.30 बज रहे थे और खाना खाने का टाइम हो गया था… सब लोग सिवाय सेठ जी और सेठानी के, खाना खाने के लिए रसोईघर मे आ गये… रसोई घर बहुत ही बड़ा था और उधर 3-4 नौकरानी खड़ी थी…. नौकरानिया भी एक से एक खूबसूरत और भरी हुई थी…मुझे पूरा यकीन था कि रावसाब और बाकियोने इन सुंदरियोका मज़ा ज़रूर चखा होगा….राव साब हाथ धोने का बहाना करके रसोईघर के पीछे जाने लगे और जाते जाते एक नौकरानी की चुचि को ज़ोर्से चुटकी निकाल ली, हाथ धोके वापस आ गये…. सब लोग बैठ गये राव साब, वकील बाबू, कॉंट्रॅक्टर बाबू और मास्टर जी और मैं एक साथ एक साइड बैठ गये और हमारे सामने बाकी लोग बैठ गये तभी घर की सारी औरतो ने रसोईघर मे प्रवेश किया.



एक से एक बहुए थी सेठ जी की …. मा कसम क्या रूप था उनका….सफेद देसी घी की तरह उनका वो रंग… वो बड़ी बड़ी चुचिया…मैं तो सोच रहा था कि इनकी बुर कैसी होगी, उनके चुतताड़ो पे मैं अपना लंड घीसूँगा तो क्या स्वर्ग आनंद आएगा.... मेरा मन खाने से उड़के इनको चोदा कैसे जाए इस सोच मे लग गया. मैं सिर्फ़ छोटी बहू को जानता था और सेठानी को… बाकी सबके लिए मैं अंजान था… पर सेठानी ने सभी महिलाओ को मेरे बारे मे बताया था इसलिए मुझे सब जानते थे शायद….



हमारे सामने ताइजी के पति भी बैठे थे वो शांति से खा रहे थे… लग ही नही रहा था कि ताइजी के पति है वो रूपवती और ये छिछोरा…. मतलब रंग रूप मे वो गोरा था पर शरीर एकदम मध्यम था इसलिए ताइजी को जच नही रहा था….



खाना खाते खाते बहुत मज़ा आ रहा था जब भी कोई रोटी परोसने आता था तो मैं अपनी मुंदी उपर करके उनकी चोली के अंदर झाँक कर रसीली चुचीयोको हल्केसे देखता था…और जब जाती थी तब उनके चूतादो को निहार रहा था… मेरा लंड इस वजह से संभोग क्रिया पूर्व ही पानी छोड़ रहा था

तभी कॉंट्रॅक्टर बाबू बोले- “खाने मे आज क्या है…”


ताइजी बोली- “आम का रस…और लस्सी है और भी बहुत कुछ है.”

कॉंट्रॅक्टर बाबू ताइजी जो उनकी बहेन थी उनसे बोले “आम का रस है फिर मीठा तो होगा ज़रूर”

ताइजी बोली- “एक बार चख के देख लो….. पता चल जाएगा मीठा है या कड़वा…”

कॉंट्रॅक्टर बाबू- “2 दिन पहले ही चखा था इन्ही आमो का रस… बहुत ही मीठा लगा था तुम्हारे आमो का रस…”

रसोई घर मे बैठे और खड़े सभी इस संभाषण को भली भाँति समझ रहे थे और मन ही मन मुस्कुरा रहे थे….

उतने मे राव साब की पहली बीवी रूपवती बोली- “हमने आज अपने हाथो से लस्सी बनाई इसे भी चख के देख लो… मीठी है या नही ”

उसपे कॉंट्रॅक्टर बाबू आम रस पीते हुए बोले- “अरे पहले आम को तो चखने दो.. इतनी भी क्या जल्दी है…ताइजी के हाथो के आम  रस का मज़ा ही कुछ और है…... लस्सी भी पी लेंगे…. ”



वकील बाबू- “हमे बहुत पसंद है लस्सी ज़रा हमे भी पिला दो बड़ी भाभिजी… वैसे कैसे बनी है लस्सी गाढ़ी है या पतली है…”

रूपवती – “लस्सी के आप तो खूब दीवाने है ये कौन नही जानता… वैसे आपकी लस्सी से ज़्यादा गाढ़ी लस्सी कोई नही बना सकता ”


वकील बाबू- “हम कहाँ भाभिजी…..यहा हम से भी बड़े बड़े दीवाने है जो लस्सी के प्यासे रहे है….”

अब सब हसने लगे मुझे कुछ समझ रहा था कुछ नही….

इस बातचीत के कारण मैं अभी कई लोगोको जानने लगा था …ताइजी जो सेठ जी की एकलौती बेटी थी वो कोई अप्सरा से कम नही थी… उसकी एक एक चुचि 2-2 किलो के तरबूज के बराबर थी और उनका वो पारदर्शक सारी मेसे दिखने वाला सुंदर पेट …. मेरा लॉडा खाना खाते हुए ही बड़ा हो रहा था… ताइजी का ख़ासकर मेरी तरफ ज़्यादा ध्यान था और ये बात छोटी बहू ने भाँप ली थी… मैं जब भी उपर देखता वो मुझे हल्केसे आँख मारती और मैं नीचे देखने लगता…



तभी मैने देखा वकील बाबू की मझली लड़की रसोईघर के अंदर आ गयी… वो नलिनी थी, वही नलिनी जिसे खुद के बापने वकिलबाबू ने चलती गाड़ी मे राव साब ने चोदा था और बाद मे पंडितजी ने… उसका वो गदराया बदन और चुतताड एक लय मे हिल रहे थे पर मैने देखा कि उसे चलने मे थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी वो धीरे धीरे पाव उठा कर चल रही थी… ये सब कल की चुदाई का परिणाम था… बेचारी को कल 3 भारी भरकम काले घोड़ो की भूख शांत करनी पड़ी थी…. नलिनी धीरसे नीचे बैठ गयी नीचे बैठते समय उसके मुँह पे पीड़ा जनक भाव दिख रहे थे….

क्रमशः...................










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