FUN-MAZA-MASTI
चाचा और चाची की साजिश--1
मेरा नाम सोनिया सहगल है और ये मेरी कहानी है. पहले में आप सबको अपने बारे मे बताती हूँ. में 18 साल की हूँ और अपने चाचा चाची के साथ इस छोटे से गाओं में रहती हूँ. मेरे माता पिता एक कार आक्सिडेंट में मारे गये जब में 12 साल की थी. हमारे परिवार मेरे चाचा चाची के अलावा और कोई करीब का रिश्तेदार नही था.
शुरू में मुझे गाओं के महॉल में अड्जस्ट होने में तकलीफ़ हुई पर समय के साथ मेने समझौता कर लिया. मैं बचपन में शहर में एक अच्छे फ्लॅट में पली बढ़ी थी, किंतु अचानक गाओं के महॉल में आना एक मानसिक तकलीफ़ का दौर था.
यहाँ गाओं मे ना तो टीवी था, ना ही कोई मोबाइल फोन और ना ही गली के नुक्कड़ पर कॉफी हाउस जहाँ में दोस्तों के साथ समय बिताया करती थी. मेरा ज़्यादा तार समय चाचाजी के साथ खेतों पे गुज़रता था और जानवरों को चारा देने में. जब चाची मलेरिया की वजह से ज़्यादा बीमार पड़ी तो खेतों की सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी.
घर में और कोई औरत ना होने की वजह से खाना मुझे ही बनाना पड़ता था.
मैं अक्सर चाचा जी की चाची को खाना खिलाने में और उनके और दूसरे कामों में मदद किया करती थी. और इन सब कामों में इतनी देर हो जाती थी कि मैं अक्सर रात के 1.00 के बाद ही सोने जा पाती. दिन भर के काम में शरीर इतना मैला हो जाता था कि में रोज़ नहाने के बाद ही सोने जाती थी.
एक रात करीब 1.00 के बाद में नहा कर बाहर निकली तो देखा कि चाचा जी अपने कमरे से बाहर आ रहे थे,
"सब ठीक है ना चाचा जी?'" मेने उनसे पूछा.
"वैसे तो सब ठीक है पर पता नही क्यों आज नींद नही आ रही है." चाचा जी ने खुद के लिए एक ग्लास पानी भरते हुए कहा.
"क्या में कुछ आपके लिए कर सकती हूँ?" अपने गीले बालों को पोंछते हुए मेने पूछा.
उस समय चाचा जी ने मुझे ऐसी निगाहों से देखा जो में पहले कभी किसी मर्द में नही देखी थी.
"तुम्हे पता है कि तुम्हारी चाची के साथ शादी हुए 25 साल हो गये है. हमारी कोई औलाद भी नही है. और जब दो लोग इतने साल साथ साथ रहते हैं तो आपस में एक कमी सी आनी शुरू हो जाती है."
मेने अपना घुटनो तक वाला गाउन पहन रखा था. मेरे बाल गीले थे और मैं अपनी टाँगो को एक दूसरे पे चढ़ा चाचा जी के सामने बैठी उनकी बात सुन रही थी.
"खैर, सोनिया अब तुम कोई एक नादान बच्ची नही हो. और जो मैं तुमसे कहने जा रहा हूँ मुझे लगता है कि मैं तुमसे बिना किसी भी हिचक के कह सकता हूँ." चाचा जी ने कहा.
"चाचा जी आप जानते है कि आप मुझसे कुछ भी कह सकते है." मेने जवाब दिया.
चाचा जी उठे और मेरे पास आकर बैठ गये. "हर इंसान की उसकी ज़रूरतें होती है…… और मुझ जैसे इंसान की……………. तुम समझ रही हो ना मैं क्या कहना चाहता हूँ?" उन्होने पूछा.
पहले तो में कुछ समझी नही फिर सोचने के बाद जब मुझे समझ आया तो मेरे बदन में एक सिरहन सी दौड़ गयी, "हां चाचा जी कुछ कुछ में समझती हूँ" मेने जवाब दिया.
चाचा जी मुस्कुराए और उठ कर कमरे के पर्दे खींच दिए, "मैं जानता हूँ तुम एक समझदार लड़की हो, मेरी बातों को ज़रूर समझ जाओगी."
अचानक मेने महसूस किया कि कमरे में काफ़ी अंधेरा हो गया था, सिर्फ़ हल्की सी रोशनी कमरे के रोशनदन से अंदर आ रही थी.
"सोनिया अपना गाउन मेरे लिए उतार दो प्लीज़," चाचजी ने उत्तेजित आवाज़ में कहा.
पहले तो मेरी समझ में नही आया कि में क्या करूँ और क्या कहूँ? चाचा जी की बात सुनकर में चोंक गयी थी, फिर मेने अपने काँपते हाथों से अपने गाउन के बटन खोल दिए जिससे मेरी चुचियाँ नंगी हो मेरी सांसो के साथ उठ बैठ रही थी.
"ओह सोनिया तुम वाकई में बहोत सुन्दर हो, और तुम्हारी चुचियाँ तो सही में भारी भारी है." चाचा जी मेरी चुचियों को घूरते हुए बोले.
पता नही मेने किस उन्माद में अपना गाउन कंधों पर से सरका अपने पीछे कुर्सी पर गिर जाने दिया. जैसे ही गाउन मेरी पीठ को सहलाता हुआ पीछे को गिरा मेरे शरीर में एक सिरहन सी दौड़ गयी.
"खड़ी होकर मेरे पास आओ? मैं तुम्हारे बदन को छूना चाहता हूँ." चाचा जी ने कहा.
मैं बिना हिचकिचाते हुए चार कदम बढ़ चाचा जी के सामने खड़ी हो गयी. कमरे में आती हुई हल्की रोशनी की परछाईं में मेने देखा कि उनका हाथ आगे बढ़ रहा था. मेने उनके हाथों की गर्मी को अपनी चुचियों पर महसूस किया, उनकी उंगलियाँ मेरे खड़े निपल से खेल रही थी.
"ओह सोनिया तुम कितनी सुंदर और सेक्सी हो, आज कई सालों के बाद मेरा लंड इस तरह तन रहा है." उन्होने मेरी चुचियों को मसल्ते हुए कहा.
पता नही चाचा जी के हाथों मे क्या जादू था कि मेरे शरीर में एक उन्माद की लहर बह गयी. मेरी चूत पूरी गीली हो चुकी थी. मैं चुप चाप नज़रे झुकाए चाचा जी के सामने खड़ी थी इस सोच में कि चाचा जी आगे क्या करते है. उसी समय मेने उनके बदन की गर्मी को अपने नज़दीक महसूस किया. उनकी एक उंगली मेरी चूत में घुस चुकी थी.
"ओह चाचाआजी ओह नहियीईईईईईईईईईईईईईई ऊऊओ आआआआआआअहह आज तक मुझे यहाँ किसी ने नही छुआ है." मैं ज़ोर से सिसकी.
चाचा जी ने अपने दूसरे हाथ से मेरी कमर को पकड़ मुझको अपने नज़दीक खींच लिया. उनके सांसो की गर्मी मेरे चेहरे को छू रही थी. उन्होने अपने होठ मेरी चुचियों पर रख उन्हे चूमने लगे. एक हाथ से वो मेरी चूत में उंगली कर रहे थे, और दूसरे हाथ से मेरी कमर को पकड़े हुए थे.
चाचा जी अब मेरे निपल को अपने होठों के बीच ले काट रहे थे और जब अपने दन्तो से उसे काटते तो एक अजीब सी लहर मेरे शरीर में छा जाती. मेने अपने हाथ बढ़ा अपनी उंगलियाँ उनके काले बालों में फँसा दी. जैसे जैसे उनकी जीब मेरे निपल पर हरकत करती मैं वैसे ही उनके सिर को अपनी छाती पे दबा देती.
अब उन्होने अपनी दो उंगली मेरी चूत में डाल दी थी. उनकी उंगलियाँ भी उनकी हथेली की तरह गरम थी और खूब लंबी थी.
जिस तेज़ी से उनकी उंगली मेरी चूत के अंदर बाहर हो रही थी उसी तेज़ी से मेरी सिसकारियाँ बढ़ रही थी. अचानक वो रुक गये और अपनी उंगली मेरी चूत से बाहर निकाल ली और अपना चेहरा भी मेरी छातियों पे सा हटा लिया.
"मैं अपना लंड तुम्हारी चूत में डालना चाहता हूँ." वो मेरे कान में फुसफुसते हुए बोले. "प्लीज़ एक बार आने चाचा को एक बार चोदने दो, ये सिर्फ़ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगा."
में कैसे उन्हे मना कर सकती थी. कितने एहसान थे उनके मुझपर. माता पिता के मरने के बाद उन्होने ही तो मुझे सहारा दिया था और अपने साथ यहाँ ले आए थे. और मैं जानती थी की चाची को चोदे उन्हे कितना समय हो गया था, उन्हे इसकी शायद ज़रूरत भी थी. यही सब सोचकर मेने उन्हे हां कर दी.
"तो फिर तुम घोड़ी बन जाओ," मेरे कानो मे फुसफुसाते हुए बोले, "में कब्से तुम्हारी चाची को इस आसन से चोदना चाहता था पर वो कभी हां ही नही करती थी."
मेने एक शब्द नही कहा और कुर्सी को कोना पकड़ घोड़ी बन गयी.
चाचा जी बिना वक्त बर्बाद करते हुए मेरे पीछे आ गये. अपनी पॅंट और शॉर्ट्स को उतार उसे मेरे गाउन के बगल में उछाल दिया.
"हे भगवान में जो करने जा रहा हूँ उसके लिए मुझे माफ़ कर देना." कहकर उन्होने अपना खड़ा लंड मेरी चूत में घुसा दिया.
जैसे ही उनके लंड मेरे कुंवारे पन को चीरता हुआ अंदर घुसा में दर्द से चीख पड़ी, "ओह च्चूउऊुुुुुुुुुुुुउउ आआआआआअ ईईईईईईईईईई लगगगगगगगगग गैिईईईईईईईईईईईईई चचुउउउउउउउउ आआआआआआआअ माआआआआआअ ईईईईईईईईईईईईईई निकाआआल लीजिए प्लीज़ बहोत दर्द हो रहा है ओह्ह्ह में मर गयी ."
"बस थोड़ा सहन करो फिर तुम्हे मज़ा आने लगेगा," कहकर चाचा जी मेरी चुचियों को भींचने लगे और अपने लंड को अंदर बाहर करने लगे.
दर्द अब कम होने लगा था और मुझे भी मज़ा आने लगा था तब मुझे अहसास हुआ कि चाचा जी का लंड कितना लंबा और मोटा था. उनका लंड मेरी बच्चे दानी पर ठोकर मार रहा था. अब मेरे मुँह से सिसकारिया फुट रही थी.
"हााआअँ चाचा जी करते जाइए मज़ा आ रहा है. हााआअँ जूओर से और ज़ोर सीईई हां ऐसे ही," में भी अपने चुतताड आगे पीछे कर उनका साथ देने लगी.
"हाआआअन ले मेरे लंड को अपनी चूत में और ज़ोर से ले." चाचा जी बोले, "सोनिया तुम्हारी मा की चूत भी इतनी कसी हुई नही थी जब वो 18 साल की थी."
उनकी बात सुन में जड़ सी हो कर रह गयी. मुझे विश्वास नही हो रहा था कि चाचा जी मेरी मा जब 18 साल की थी तो उसे चोद चुके थे जैसे वो अब मुझे चोद रहे थे.
"मुझे याद है तुम्हारी मा की चूत कसी हुई नही थी इसलिए में अक्सर उसकी गांद मार देता था. तुम मनोगी नही वो इतनी चुड़क्कड़ औरत थी कि किसी से भी चुदवा लेती." चाचजी अपनी धक्कों की रफ़्तार बढ़ाते हुए बोले.
उनके हर धक्को के साथ उनके हाथों की पक्कड़ मेरे चुतताड पर और मजबूत हो जाते. मेने उनके लंड को अपनी चूत में फूलता हुआ महसूस किया.
"ओह चाचा जी आपका लंड मेरी चूत में कितना लंबा और मोटा लग रहा है." में सिसकते हुए बोली.
"म्म्म्मममममम इसी तरह अपने चाचा से गंदी गंदी बातें करो," वो गिड़गिदते हुए बोले और मेरी चूत की जम कर चुदाई करने लगे.
मैं अपनी आँखें बंद कर गंदे से गंदे शब्दो के बारे में सोचने लगी. पता नही कैसे मेरे मुँह से इतनी गंदी बातें निकल रही थी जैसे, "हां चोदिये मुझे, अपना पूरा लंड मेरी गांद में डाल दीजिए, चोद चोद के मुझे अपने बच्चे की मा बना दीजिए………" वाईगरह वाईगरह.
क्रमशः..................
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चाचा और चाची की साजिश--1
मेरा नाम सोनिया सहगल है और ये मेरी कहानी है. पहले में आप सबको अपने बारे मे बताती हूँ. में 18 साल की हूँ और अपने चाचा चाची के साथ इस छोटे से गाओं में रहती हूँ. मेरे माता पिता एक कार आक्सिडेंट में मारे गये जब में 12 साल की थी. हमारे परिवार मेरे चाचा चाची के अलावा और कोई करीब का रिश्तेदार नही था.
शुरू में मुझे गाओं के महॉल में अड्जस्ट होने में तकलीफ़ हुई पर समय के साथ मेने समझौता कर लिया. मैं बचपन में शहर में एक अच्छे फ्लॅट में पली बढ़ी थी, किंतु अचानक गाओं के महॉल में आना एक मानसिक तकलीफ़ का दौर था.
यहाँ गाओं मे ना तो टीवी था, ना ही कोई मोबाइल फोन और ना ही गली के नुक्कड़ पर कॉफी हाउस जहाँ में दोस्तों के साथ समय बिताया करती थी. मेरा ज़्यादा तार समय चाचाजी के साथ खेतों पे गुज़रता था और जानवरों को चारा देने में. जब चाची मलेरिया की वजह से ज़्यादा बीमार पड़ी तो खेतों की सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी.
घर में और कोई औरत ना होने की वजह से खाना मुझे ही बनाना पड़ता था.
मैं अक्सर चाचा जी की चाची को खाना खिलाने में और उनके और दूसरे कामों में मदद किया करती थी. और इन सब कामों में इतनी देर हो जाती थी कि मैं अक्सर रात के 1.00 के बाद ही सोने जा पाती. दिन भर के काम में शरीर इतना मैला हो जाता था कि में रोज़ नहाने के बाद ही सोने जाती थी.
एक रात करीब 1.00 के बाद में नहा कर बाहर निकली तो देखा कि चाचा जी अपने कमरे से बाहर आ रहे थे,
"सब ठीक है ना चाचा जी?'" मेने उनसे पूछा.
"वैसे तो सब ठीक है पर पता नही क्यों आज नींद नही आ रही है." चाचा जी ने खुद के लिए एक ग्लास पानी भरते हुए कहा.
"क्या में कुछ आपके लिए कर सकती हूँ?" अपने गीले बालों को पोंछते हुए मेने पूछा.
उस समय चाचा जी ने मुझे ऐसी निगाहों से देखा जो में पहले कभी किसी मर्द में नही देखी थी.
"तुम्हे पता है कि तुम्हारी चाची के साथ शादी हुए 25 साल हो गये है. हमारी कोई औलाद भी नही है. और जब दो लोग इतने साल साथ साथ रहते हैं तो आपस में एक कमी सी आनी शुरू हो जाती है."
मेने अपना घुटनो तक वाला गाउन पहन रखा था. मेरे बाल गीले थे और मैं अपनी टाँगो को एक दूसरे पे चढ़ा चाचा जी के सामने बैठी उनकी बात सुन रही थी.
"खैर, सोनिया अब तुम कोई एक नादान बच्ची नही हो. और जो मैं तुमसे कहने जा रहा हूँ मुझे लगता है कि मैं तुमसे बिना किसी भी हिचक के कह सकता हूँ." चाचा जी ने कहा.
"चाचा जी आप जानते है कि आप मुझसे कुछ भी कह सकते है." मेने जवाब दिया.
चाचा जी उठे और मेरे पास आकर बैठ गये. "हर इंसान की उसकी ज़रूरतें होती है…… और मुझ जैसे इंसान की……………. तुम समझ रही हो ना मैं क्या कहना चाहता हूँ?" उन्होने पूछा.
पहले तो में कुछ समझी नही फिर सोचने के बाद जब मुझे समझ आया तो मेरे बदन में एक सिरहन सी दौड़ गयी, "हां चाचा जी कुछ कुछ में समझती हूँ" मेने जवाब दिया.
चाचा जी मुस्कुराए और उठ कर कमरे के पर्दे खींच दिए, "मैं जानता हूँ तुम एक समझदार लड़की हो, मेरी बातों को ज़रूर समझ जाओगी."
अचानक मेने महसूस किया कि कमरे में काफ़ी अंधेरा हो गया था, सिर्फ़ हल्की सी रोशनी कमरे के रोशनदन से अंदर आ रही थी.
"सोनिया अपना गाउन मेरे लिए उतार दो प्लीज़," चाचजी ने उत्तेजित आवाज़ में कहा.
पहले तो मेरी समझ में नही आया कि में क्या करूँ और क्या कहूँ? चाचा जी की बात सुनकर में चोंक गयी थी, फिर मेने अपने काँपते हाथों से अपने गाउन के बटन खोल दिए जिससे मेरी चुचियाँ नंगी हो मेरी सांसो के साथ उठ बैठ रही थी.
"ओह सोनिया तुम वाकई में बहोत सुन्दर हो, और तुम्हारी चुचियाँ तो सही में भारी भारी है." चाचा जी मेरी चुचियों को घूरते हुए बोले.
पता नही मेने किस उन्माद में अपना गाउन कंधों पर से सरका अपने पीछे कुर्सी पर गिर जाने दिया. जैसे ही गाउन मेरी पीठ को सहलाता हुआ पीछे को गिरा मेरे शरीर में एक सिरहन सी दौड़ गयी.
"खड़ी होकर मेरे पास आओ? मैं तुम्हारे बदन को छूना चाहता हूँ." चाचा जी ने कहा.
मैं बिना हिचकिचाते हुए चार कदम बढ़ चाचा जी के सामने खड़ी हो गयी. कमरे में आती हुई हल्की रोशनी की परछाईं में मेने देखा कि उनका हाथ आगे बढ़ रहा था. मेने उनके हाथों की गर्मी को अपनी चुचियों पर महसूस किया, उनकी उंगलियाँ मेरे खड़े निपल से खेल रही थी.
"ओह सोनिया तुम कितनी सुंदर और सेक्सी हो, आज कई सालों के बाद मेरा लंड इस तरह तन रहा है." उन्होने मेरी चुचियों को मसल्ते हुए कहा.
पता नही चाचा जी के हाथों मे क्या जादू था कि मेरे शरीर में एक उन्माद की लहर बह गयी. मेरी चूत पूरी गीली हो चुकी थी. मैं चुप चाप नज़रे झुकाए चाचा जी के सामने खड़ी थी इस सोच में कि चाचा जी आगे क्या करते है. उसी समय मेने उनके बदन की गर्मी को अपने नज़दीक महसूस किया. उनकी एक उंगली मेरी चूत में घुस चुकी थी.
"ओह चाचाआजी ओह नहियीईईईईईईईईईईईईईई ऊऊओ आआआआआआअहह आज तक मुझे यहाँ किसी ने नही छुआ है." मैं ज़ोर से सिसकी.
चाचा जी ने अपने दूसरे हाथ से मेरी कमर को पकड़ मुझको अपने नज़दीक खींच लिया. उनके सांसो की गर्मी मेरे चेहरे को छू रही थी. उन्होने अपने होठ मेरी चुचियों पर रख उन्हे चूमने लगे. एक हाथ से वो मेरी चूत में उंगली कर रहे थे, और दूसरे हाथ से मेरी कमर को पकड़े हुए थे.
चाचा जी अब मेरे निपल को अपने होठों के बीच ले काट रहे थे और जब अपने दन्तो से उसे काटते तो एक अजीब सी लहर मेरे शरीर में छा जाती. मेने अपने हाथ बढ़ा अपनी उंगलियाँ उनके काले बालों में फँसा दी. जैसे जैसे उनकी जीब मेरे निपल पर हरकत करती मैं वैसे ही उनके सिर को अपनी छाती पे दबा देती.
अब उन्होने अपनी दो उंगली मेरी चूत में डाल दी थी. उनकी उंगलियाँ भी उनकी हथेली की तरह गरम थी और खूब लंबी थी.
जिस तेज़ी से उनकी उंगली मेरी चूत के अंदर बाहर हो रही थी उसी तेज़ी से मेरी सिसकारियाँ बढ़ रही थी. अचानक वो रुक गये और अपनी उंगली मेरी चूत से बाहर निकाल ली और अपना चेहरा भी मेरी छातियों पे सा हटा लिया.
"मैं अपना लंड तुम्हारी चूत में डालना चाहता हूँ." वो मेरे कान में फुसफुसते हुए बोले. "प्लीज़ एक बार आने चाचा को एक बार चोदने दो, ये सिर्फ़ तुम्हारे और मेरे बीच रहेगा."
में कैसे उन्हे मना कर सकती थी. कितने एहसान थे उनके मुझपर. माता पिता के मरने के बाद उन्होने ही तो मुझे सहारा दिया था और अपने साथ यहाँ ले आए थे. और मैं जानती थी की चाची को चोदे उन्हे कितना समय हो गया था, उन्हे इसकी शायद ज़रूरत भी थी. यही सब सोचकर मेने उन्हे हां कर दी.
"तो फिर तुम घोड़ी बन जाओ," मेरे कानो मे फुसफुसाते हुए बोले, "में कब्से तुम्हारी चाची को इस आसन से चोदना चाहता था पर वो कभी हां ही नही करती थी."
मेने एक शब्द नही कहा और कुर्सी को कोना पकड़ घोड़ी बन गयी.
चाचा जी बिना वक्त बर्बाद करते हुए मेरे पीछे आ गये. अपनी पॅंट और शॉर्ट्स को उतार उसे मेरे गाउन के बगल में उछाल दिया.
"हे भगवान में जो करने जा रहा हूँ उसके लिए मुझे माफ़ कर देना." कहकर उन्होने अपना खड़ा लंड मेरी चूत में घुसा दिया.
जैसे ही उनके लंड मेरे कुंवारे पन को चीरता हुआ अंदर घुसा में दर्द से चीख पड़ी, "ओह च्चूउऊुुुुुुुुुुुुउउ आआआआआअ ईईईईईईईईईई लगगगगगगगगग गैिईईईईईईईईईईईईई चचुउउउउउउउउ आआआआआआआअ माआआआआआअ ईईईईईईईईईईईईईई निकाआआल लीजिए प्लीज़ बहोत दर्द हो रहा है ओह्ह्ह में मर गयी ."
"बस थोड़ा सहन करो फिर तुम्हे मज़ा आने लगेगा," कहकर चाचा जी मेरी चुचियों को भींचने लगे और अपने लंड को अंदर बाहर करने लगे.
दर्द अब कम होने लगा था और मुझे भी मज़ा आने लगा था तब मुझे अहसास हुआ कि चाचा जी का लंड कितना लंबा और मोटा था. उनका लंड मेरी बच्चे दानी पर ठोकर मार रहा था. अब मेरे मुँह से सिसकारिया फुट रही थी.
"हााआअँ चाचा जी करते जाइए मज़ा आ रहा है. हााआअँ जूओर से और ज़ोर सीईई हां ऐसे ही," में भी अपने चुतताड आगे पीछे कर उनका साथ देने लगी.
"हाआआअन ले मेरे लंड को अपनी चूत में और ज़ोर से ले." चाचा जी बोले, "सोनिया तुम्हारी मा की चूत भी इतनी कसी हुई नही थी जब वो 18 साल की थी."
उनकी बात सुन में जड़ सी हो कर रह गयी. मुझे विश्वास नही हो रहा था कि चाचा जी मेरी मा जब 18 साल की थी तो उसे चोद चुके थे जैसे वो अब मुझे चोद रहे थे.
"मुझे याद है तुम्हारी मा की चूत कसी हुई नही थी इसलिए में अक्सर उसकी गांद मार देता था. तुम मनोगी नही वो इतनी चुड़क्कड़ औरत थी कि किसी से भी चुदवा लेती." चाचजी अपनी धक्कों की रफ़्तार बढ़ाते हुए बोले.
उनके हर धक्को के साथ उनके हाथों की पक्कड़ मेरे चुतताड पर और मजबूत हो जाते. मेने उनके लंड को अपनी चूत में फूलता हुआ महसूस किया.
"ओह चाचा जी आपका लंड मेरी चूत में कितना लंबा और मोटा लग रहा है." में सिसकते हुए बोली.
"म्म्म्मममममम इसी तरह अपने चाचा से गंदी गंदी बातें करो," वो गिड़गिदते हुए बोले और मेरी चूत की जम कर चुदाई करने लगे.
मैं अपनी आँखें बंद कर गंदे से गंदे शब्दो के बारे में सोचने लगी. पता नही कैसे मेरे मुँह से इतनी गंदी बातें निकल रही थी जैसे, "हां चोदिये मुझे, अपना पूरा लंड मेरी गांद में डाल दीजिए, चोद चोद के मुझे अपने बच्चे की मा बना दीजिए………" वाईगरह वाईगरह.
क्रमशः..................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !


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