Saturday, May 10, 2014

FUN-MAZA-MASTI चाचा और चाची की साजिश--2

FUN-MAZA-MASTI

 चाचा और चाची की साजिश--2 

गतान्क से आगे...................... 
"ओह हाआआआअ मेरा छूटने वाला है मेरी बच्ची, आज तुम्हारा चाचा तुम्हारी चूत को अपने लंड के पानी से भर देगा." वो ज़ोर से सिसके. 

उनके धक्के इतने तेज हो गये थे के अपनी टाँगो पे खड़ी नही हो पा रही थी. मेरी कमर और टाँगो में दर्द होने लग रहा था पर मैं उन्हे रोकना नही चाहती थी. जितना इस चुदाई में मज़ा आ रहा था आज तक जिंदगी में मुझे कभी नही आया था. 

"ओूऊऊऊऊऊऊऊऊ हह हाआआआआ ये लो" इतना कहकर उनके लंड ने एक पिचकारी सी मेरी चूत में छोड़ दी. मुझे लगा की मेरी चूत भर सी गयी है. मेरा शरीर ज़ोर से कांपा और मेरे मुँह से सिसकारी निकल पड़ी, "ओह भगवान ओह चाचा जी," मेने अपने आपको और पीछे की ओर धकेल उनके लंड को अपनी चूत मे जोरों से भींच लिया. 

मैं पसीने से लठ पथ हो चुकी थी और मेरा सिर चकरा रहा था. हम दोनो की साँसे उखड़ी हुई थी और दिल की धड़कन इतनी तेज थी कि साफ सुनाई दे रही थी. 

"सोनिया तुम कितनी अच्छी लड़की हो. तुम नही जानती कि मुझे इसकी कितनी ज़रूरत थी." वो अपनी उखड़ी सांसो पे काबू पाते बोले. 

"में आज से आपकी हूँ पूरी तरह से." मेने धीरे से कहा. 

"ये तुम क्या कह रही हो?" उन्होने पूछा. 

"हां मैं सच बोल रही हूँ. में आपकी दासी बनके रहना चाहती हूँ, आप जब चाहे मुझे एक गुलाम की तरह चोद सकते हैं." मेने सिसकते हुए कहा. 

चाचा जी को मेरी बात बहोत अच्छी लगी शायद मेरी उम्र की वजह से. मेरी कसी चूत शायद उनके लंड को खड़ा कर देती थी. 

उस रात हम लोगो ने दो बार और चुदाई की. एक बार रूम में और दूसरी बार उनके कमरे में ज़मीन पर. चाची हमसे चंद कदमों के फ़ासले पे बिस्तर पे सो रही थी. पता नही हमने ऐसा क्यों किया पर मैं पहली बार वहीं उनके कमरे में झड़ी और तब मुझे पता चला कि औरत की चूत जब पानी छोड़ती है तो कितना मज़ा आता है. 

जब मैं चाची का ख़याल रखती तो मुझे इस बात का ज़रा भी अफ़सोस नही होता था कि में चाचा से चुदवाया है और ना ही शर्मिंदगी महसूस होती थी. बल्कि मैं तो सोचती थी कि अगर चाची अच्छी होती शायद उन्हे हमारी चुदाई देखने में मज़ा आता और क्या पता वो भी साथ शामिल हो चुदवाती. 

दूसरी सुबह में रोज की तरह जल्दी उठी और काम में जुट गयी. 


घर की सफाई करने के बाद में आँगन की सफाई कर रही थी. रात के हालत अब भी मेरे जहाँ में थे. अब भी मुझे ऐसा लगता कि चाचा जी के हाथ मेरे शरीर पर है. उनका लंड मेरी चूत मे घुसा हुआ है जैसे वो कभी मुझसे दूर गये ही नही. मैं मादकता के एक नई दायरे में पहुँच चुकी थी. 

"आज तुम्हारा ध्यान कहाँ है सोनिया?" मेरी चाची की आवाज़ आई. 

"कककक्ककयाआआआआ" मेने हड़बड़ा के देखा, "ओह चाची आप इस वक्त यहाँ पे होंगी मुझे पता नही था. आप कैसा महसूस कर रही है इस वक्त." मेने पूछा. 

"पहले से बेहतर है." चाची ने जवाब दिया. "बस खुली हवा में सांस लेने चली आई, तुम तो जानती ही हो कि तीन महीने हो गये उस कमरे में बंद पड़े हुए." 

"आओ में आपको आपके कमरे तक छोड़ देती हूँ," मेने चाची को सहारा देते हुए कहा. मेने उन्हे सहारा दे उनके कमरे में पहुँचाया और उन्हे बिस्तर पे बिठा दिया. 

"इधर मेरे पास आके बैठो में तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ." चाची ने मुझे बैठने का इशारा करते हुए कहा. 

में उनके बगल में जाकर बैठ गयी. मैं अब भी दुविधा में थी की पता नही वो मुझसे क्या बात करना चाहती है. 

"सोनिया तुम बहोत ही खूबसूरत लड़की हो." वो मेरे बालों को सहलाते हुए बोली. "और खूबसूरती अक्सर लोगो को आकर्षित करती है, पर ये ध्यान रखना कि किसी ग़लत व्यक्तित्व को आकर्षित ना कर बैठो." 

"आप क्या कह रही है मेरी कुछ समझ में नही आ रहा है." 

चाची अब बिस्तर पर लेट चुकी थी और उनकी आँखे चेहरे पे कठोरता छाती जा रही थी. आचनक उन्होने मेरे बालों को ज़ोर से पकड़ लिया. मेने अपने आपको लाख छुड़ाने की कोशिश की पर कामयाब ना हो सकी. 

"चाची छोड़ो मुझे, मुझे दर्द हो रहा है," मेने अपने बालों को उनके हाथों से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा. 

"मुझे पता है तुम कल रात यहाँ पर थी," मेरे बालों को और मजबूती से पकड़ते हुए चाची ने कहा. "सोनिया मुझे पता है तुम और तुम्हारे चाचा क्या कर रहे थे." 

"चाची ये आप क्या कह रही है." 

"मेरे सामने बच्ची बनने की कोशिश मत करो, में बीमार हूँ कोई बेवकूफ़ नही." वो गुस्सा करते हुए बोली. 

इतने में चाचा जी ने कमरे में कदम रखा जैसे उन्हे पता हो कि मुझे उनकी ज़रूरत है. 

"सोनिया तुम घर का काम छोड़ यहाँ क्या कर रही हो?" उन्होने पूछा. 

"कुछ नही चाचा जी बस ज़रा चाची से बात कर रही थी." मेने जवाब दिया. 

चाची अचानक बिस्तर पर तन कर बैठ गयी. पहले तो उन्होने गुस्से मे मेरी और देखा फिर चाचा की ओर. 

"क्या तुम दोनो को अपने बदन की महक इस कमरे में महसूस नही होती," वो गुस्से मे बोली. "मुझे पता है तुम दोनो ने कल रात यहाँ पर क्या किया. मुझे आवाज़ें आ रही थी, सिसकारियाँ सुनाई दे रही थी और तुमने किस तरह अपना बीज अपने ही बेडरूम में इसकी चूत मे बोया ये भी पता है." 

"डार्लिंग में नहीं जानता तुम क्या कह रही हो. सोनिया हमारी भतीजी है मैं इसके साथ कोई ग़लत काम नही करूँगा." चाचा जी ने जवाब दिया. 

चाची ने घूर कर मेरी तरफ देखा. मुझे अस्चर्य हो रहा था कि चाची वो सब कुछ कैसे सुन सकती थी. उनकी दवाइयाँ अक्सर उन्हे बेहोशी के आलम में पहुँचा देती थी. मैं नर्वस हो बहोत बैचैने महसूस कर रही थी कि पता नही वो अब क्या कहेंगी. 

"सोनिया तुम एक दम एकदम अपनी मा की तरह रंडी हो." वो गुर्राते हुए बोली. 

इतना सुन चाचा जी का चेहरा सफेद पड़ गया. वो ये ही समझते थे कि मेरी मा और उनके संबंध के बारे मे कोई नही जानता है. 

"हां देव ये सही है. मुझे सब पता है, मुझे उसकी डायरी हाथ लग गयी थी. मेने हर वो बात पढ़ी है जो उसने लिखी थी, हर वो गंदी बात. वो भगवान से डरती थी, और उसे पता था कि उसने गुनाह किया है इसीलये वो भगवान से अपने गुनाह की माफी माँगा करती थी. पर उसे अपने देवर से चुदवाने में मज़ा आता था." चाची एकदम गुस्से में बोली. 

चाचा जी एकदम चुपचाप बैठे थे जैसे उनके मुँह में ज़बान ही ना हो. साथ ही उनके चेहरे पे गुस्सा भी था कि चाची ने ये बात इतने साल तक उनसे छुपा के रखी. 

"तुम एक कुतिया हो माला, और आज तक मेने तुम्हे अपनी जिंदगी से नही निकाला क्यों कि तुम्हारा ख़याल रखना मैं अपना फ़र्ज़ समझता था." चाचा जी भी गुस्से में बोले, "हां मेने अपनी भाभी को चोदा, और जब मौका मिला तब चोदा लेकिन सिर्फ़ इसलिए कि तुमने मुझसे अपना मुँह फेर लिया था. तुम सेक्स नही करना चाहती थी और तुमने बंद कर दिया. एक बार भी मुझसे ये नही पूछा कि मैं सेक्स के बिना कैसे रह पाता हूँ." 

"हर चीज़ का इल्ज़ाम मुझ पर मत दो, तुम जानते हो मैं एक बीमार औरत हूँ." चाची सुबक्ते हुए बोली. "हां एक तरीका है जिससे तुम दोनो अपना संबंध जारी रख सकते हो." 

मैं और चाचा जी दोनो उत्सुक थे के ऐसा क्या तरीका है जो हमे हमारी ही कब्र से बाहर निकाल सकता था जो हमने खुद खोदी थी. 

"क्या तुम दोनो एक दूसरे को पसंद करते हो?" चाची ने पूछा. 

हम दोनो इस सवाल के लिए तय्यार नही थे इसी लिए समझ मे नहीं आया कि क्या जवाब दे. मेने चाचा जी की ओर देखा तो पाया कि उनका लंड तन कर खड़ा हो गया था और मेरी भी चूत मे खुजली मच रही थी कि कब में उनका लंड अपनी चूत में लू. 

"हां" हम दोनो ने साथ में जवाब दिया. 

"तो फिर इसे फिर से चोदो, यहीं मेरी आँखो के सामने चोदो." चाची ने कहा, "अगर तुम दोनो चुदाई करना चाहते हो तो वही करोगे जिससे मैं तुम दोनो को देख सकु." 

"मगर ये कैसे हो सकता है" मेने कहा. 

"में कुछ नही सुनना चाहती, एक दूसरे को छूना नही, और तुम बिस्तर का किनारा पकड़ घोड़ी बन जाओ और चेहरा मेरी तरफ रखो जिससे मैं तुम्हारी चुदाई को देखती रहू." 

मेरा सिर घूम रहा था. मैं इस चीज़ के लिए बिल्कुल भी तय्यार नही थी. अभी थोड़ी देर पहले मैं अपनी चाची को बिस्तर पे लिटा रही थी कि वो सो सके और अब वो मुझे देखना चाहती थी कि में अपने ही चाचा से कैसे चुदवाती हूँ. 

"जल्दी करो" वो चिल्लाई. 

चाचा जी और मैं खड़े हो कर माला के बेड के पास आ गये. हम दोनो के चेहरे पे आश्चर्या के मिले जुले भाव थे पर अंदर से हम दोनो के शरीर मे आग लगी हुई थी. 

मैं बिस्तर का कोना पकड़ घोड़ी बन गयी. मेने अपने हाथों से अपनी पॅंटी उतार दी थी और मेरे चुतताड उपर की ओर उठ गये थे. फिर कल रात की तरह मैने चाचा के हाथों की गर्मी अपने चुतताड पर महसूस की. 

"अब जल्दी से बताओ कि तुम दोनो ने कल रात क्या और कैसे किया?" चाची बोली. 
क्रमशः..................



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