FUN-MAZA-MASTI
मेरा नाम महेश है। मैं अपनी बहन माधुरी के साथ एक किराये के घर में रहता
था। हम दोनों कॉलेज में पढ़ते थे। हमारे बहुत से दोस्त हो गये थे, अधिकतर
दोस्त तो माधुरी के कारण थे। वह बहुत ही मस्त लड़की थी, लड़कों और लड़कियों से
एक सी दोस्ती रखती थी। खास कर वो लड़कों से सेक्स की बातें अधिक करती थी।
हम दोनों भी अक्सर घर में माधुरी के दोस्तों की बातें करते थे। बातें करते
समय मुझ में उत्तेजना भर जाती थी। कभी कभी वो लड़कों के बारे ऐसा कुछ कह
जाती थी कि मेरा लण्ड खड़ा हो जाता था। यह उसे भी पता था कि सेक्स की बातों
से मेरा लण्ड खड़ा हो जाता है, तब वो मेरा भी मजा देखा करती थी।
उसका ज्यादा झुकाव विनोद की तरफ़ था। विनोद की नजरें भी उस पर थी। माधुरी इस बात को जानती थी। वह नजरें पहचानती थी पर ऐसा भी नहीं था कि मेरी बहन मेरी गंदी नजरों को नहीं पहचानती थी। वो मेरी हर हरकत को देखती थी और मुसकराती थी। पर मैं ही इस मामले पीछे था, बस उसके नाम का मुठ मार लेता था और अपना वीर्य टपका देता था। सवेरे सवेरे यह बहुत होता था कि मेरी नींद मेरे खड़े लण्ड की वजह से खुल जाती थी और मैं उल्टे लेट कर लण्ड पर चूतड़ों का जोर लगा कर बिस्तर से दबा दबा कर माल निकाल देता था। एक बार दीदी ने मुझे ऐसा करते हुये पकड़ भी लिया था।
वो सो कर उठी ही थी और मैं अपना चेहरा दूसरी ओर किये हुये लण्ड को चूतड़ों से दबा रहा था। बड़ी मीठी मीठी सी गुदगुदी भरा अहसास हो रहा था। मेरा लण्ड मेरी जांघ के जोइन्ट पर बिस्तर पर दबा पड़ा था और दबाने पर एक साईड से बाहर आता था और एक मिठास भर देता था। दीदी मेरे पास खड़ी यह सब देख रही थी। मेरे चूतड़ों का दबना उसे बहुत भा रहा था शायद। उसने मेरे चूतड़ों पर हाथ फ़ेरा, पर मैं उस समय चरम सीमा पर था, झड़ने ही वाला था, उसका हाथ मुझे बहुत ही सुहाना लग रहा था। मेरे चूतड़ के उभरे हुये गोल गोल भाग को वो
सहला रही थी। तभी मेरा वीर्य छूट पड़ा। मैं चूतड़ो से लण्ड को दबा दबा कर वीर्य निकालता रहा। तभी मैंने माधुरी के होने के अहसास का नाटक किया।
"अरे दीदी आप... !"
"बहुत मजा आ रहा था क्या ..."
"आ...आप क्या कह रही हैं...?"
"ये पजामे पर इतना सारा माल... सारा पाजामा गीला कर दिया है...तुम बहुत गन्दे हो भैया !"
"सॉरी दीदी... " मैं शरमा गया और जल्दी से बाथ रूम में भागा। माधुरी खिलखिला कर हंस पड़ी। शायद मेरे चूतड़ को छूने का अहसास उसे हो रहा होगा... क्योंकि मुझे भी उसके हाथों का स्पर्श जिस्म में अभी भी सनसनी पैदा कर रहा था। शरम के मारे ना तो मैंने कुछ कहा और ना ही माधुरी ने कुछ कहा। पर हम दोनों के मन में एक दूसरे लिये एक कसक सी मन में रह गई।
एक दिन विनोद ने मुझसे माधुरी के बारे में कह ही दिया,"यार महेश... माधुरी से मेरी दोस्ती करा दे ना...!"
"क्यों ... ऐसा क्या है ? वैसे भी तुम उसके दोस्त तो हो ना...!"
"नहीं यार... वैसी दोस्ती नहीं ... तुम्हारी अनुमति से मैं उसे चोदना चाहता हूँ, वो भी ऐसा चाहती है !"
"जब मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा भैया जी !" मैंने उसे कहा कि अब वो मेरे घर आना जाना शुरू कर दे... रोज मिलोगे तो जरूर बात बन जायेगी।
मेरी बात मान कर उसने अब मेरे घर पर आना जाना आरम्भ कर दिया। पहले तो मैंने उनकी दोस्ती और गहरी कर दी। जब दोनों आंखों ही आंखों में इशारा करने लगे तब मैंने उन्हें अकेला छोड़ दिया। विनोद के आने का समय होता तो मैं उस समय बाहर चला जाता था।
आगे क्या हुआ... अब सुनिये मुझे जैसा विनोद ने बताया।
आज विनोद अपने साथ व्हिस्की की एक बोतल लाया था। उस समय क्रिकेट के किसी मैच का री-प्ले आ रहा था। विनोद और माधुरी दोनों ही उस मैच का मज़ा ले रहे थे। पर माधुरी की निगाहें तो विनोद पर ही जमी थी। यह विनोद को भी पता था। वो उसके समीप ही बैठी थी। तभी धोनी का छक्का पड़ा... विनोद खुशी के मारे माधुरी से लिपट गया। माधुरी भी उसकी बाहों में सिमटती चली गई। अब विनोद ने कोई विरोध नहीं देख कर उसे चूम लिया। माधुरी बस विनोद की तरफ़ टकटकी लगाये देखती रही।
"ओह माफ़ करना ... बुरा मत मानना..." विनोद ने यूं ही झेंपने का नाटक किया।
माधुरी खिलखिला कर हंस पड़ी,"बड़ी मस्ती आ रही है...?"
"ये दारू का कसूर है... मेरा नहीं !"
"अच्छा तो मुझे भी इसका अनुभव कराओ... देखें तो दारू पीने से कितनी मस्ती आती है !"
उसने माधुरी को एक पेग बना कर दिया। जिसे वो धीरे धीरे पूरा पी गई। फिर उसने दूसरा पेग भी धीरे धीरे करके पूरा पी लिया। इतनी देर में माधुरी को अच्छा नशा चढ़ गया था।
" दारू कड़वी जरूर होती है पर देखो कितना मजा आ रहा है...!" विनोद ने माधुरी को अपनी ओर खींचा और माधुरी जान करके उसकी गोदी में बैठ गई। विनोद माधुरी की नरम गाण्ड में अपना कड़क लण्ड दबाता हुआ उसे प्यार करने लगा। उसके कड़क लण्ड का अह्सास पा कर उसने अपनी गाण्ड को उसके लण्ड पर ठीक से सेट कर लिया। दोनों ही अब कुछ करने के मूड में थे। टीवी कोई नहीं देख रहा था। विनोद के हाथ माधुरी की चूंचियों पर मचल उठे। माधुरी के मुख से आह निकल पड़ी।
उसने माधुरी का टॉप उतारना आरम्भ कर दिया। माधुरी ने दबा हुआ सा विरोध किया पर ज्यादा समय तक अपने आप को नहीं सम्भाल पाई। उसके मन भी वासना का तूफ़ान उठा हुआ था। उसकी चूत गीली हो चुकी थी। नशे में भला कितना विरोध करती।
विनोद ने उसके दुबले पतले शरीर को हाथों में ले लिया। माधुरी ने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल दी। दोनों एक दूसरे को चूमते हुये अन्दर बेड रूम मे आ गये। विनोद माधुरी का टॉप तो पहले उतार चुका था। ब्रा का हुक खोल कर उसकी चूंचियों को आज़ाद कर दिया। विनोद ने अपने कपड़े उतारे और अब माधुरी का तंग पजामा भी उतार दिया। माधुरी तो बिस्तर पर पड़ी अपनी दोनों टांगें खोले हुये नशे में पड़ी हुई थी। विनोद ने अपना लण्ड सहलाया और उसके ऊपर जाकर लेट गया। उसकी चूंचिया दबा कर मसलने लगा। उसकी चूत के पट खोल कर अपने लण्ड को बीच में रख दिया औए लण्ड को दबाते हुये अन्दर घुसेड़ दिया और उसके ऊपर लेट गया। माधुरी के मुख से एक सिसकारी निकली और और विनोद को कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। लण्ड चूत की गहराई में उतर चुका था।
माधुरी के मुख से स्वर की मालाये निकल उठी,"आह्ह्ह्... विनोऽऽऽद चोद दो मुझे... हा रे..."
'कुछ मत कहो माधुरी ... मेरा लण्ड भी बेताब हो रहा है..." उसने चूत में लण्ड दबाते हुये कहा।
" हाय रे इतना मस्त... मोटा लण्ड... कहा छुपा रखा था रे..."
"हं... हं ... बस ना बोलो ... लण्ड का मजा लो..." उसने धक्के लगाने शुरू कर दिये थे। दोनों ही नशे में चूर चुदाई कर रहे थे। उनके शरीर की गर्मी बढ़ती जा रही थी। दूसरे कमरे में क्रिकेट की कमेन्ट्री चल रही थी और यहां चुदाई लाईव चल रही थी। कुछ ही देर में दोनों ने पल्टा मारा और अब माधुरी विनोद को चोद रही थी। उसके लण्ड पर बैठ कर अपनी चूत में पूरा ठोक रही थी और चीखती भी जा रही थी। उसकी बच्चेदानी पर विनोद का मुलायम टोपा बार बार रगड़ मार रहा था... और माधुरी की मस्ती बढ़ती जा रही थी। उसके उछलते हुये बोबे के निपल विनोद दोनों अंगुलियों से मसक रहा था। जो उसे दुगना मजा दे रहा था। अब वो विनोद के ऊपर धीरे से लेट गई और अपनी चूत लण्ड पर पटकने लगी। तभी विनोद ने उसे दबा कर एक पल्टी और मारी और एक बार फिर से माधुरी पर चढ़ गया। इस बार विनोद के धक्के कहर बरपा रहे थे, कस कस जोरदार धक्के मार रहा था। शायद चरम सीमा पर पहुँच गया थ वो।
"मेरी जान ... तेरी भोसड़ी... हाय रे... मर गया ... ले ले और चुद जा साली... हारामी... खा मेरा लण्ड !"
"मार दे मेरी चूत ... राजा मैं तो गई ... चोद इस रण्डी चूत को ... मां मेरी ... विनोऽऽऽऽऽऽद ... गई मैं तो ... आआआईईईईईऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ ... ओह्ह्ह विनोऽऽऽऽऽऽद" और माधुरी हांफ़ती हुई झड़ने लगी। तभी विनोद का लण्ड भी छूटने लगा ... उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया उसने और एक तेज लहर लण्ड में से निकल पड़ी।
फ़ुहारें माधुरी के जिस्म पर फ़ैलने लगी। रुक रुक कर फ़ुहारों से समापन समारोह होने लगा। दोनों पूरी तरह से झड़ चुके थे। विनोद उसके ऊपर से उठ गया और बिस्तर से नीचे आ गया। तौलिये से माधुरी का बदन साफ़ किया और अपने कपड़े पहने लगा। नशे में माधुरी ने उसे और चोदने के लिये बुलाना चाहा पर उसने एक चादर मुझे ओढ़ दी और बाहर चला गया। मेरे दरवाजे पर औटोमेटिक लॉक लगा था। सो उसके जाते ही दरवाजा बन्द हो गया। अभी मुझे आने में घण्टे भर की देर थी... सो माधुरी ने सोचा अभी थोड़ी देर में उठ कर फ़्रेश हो लूंगी पर नशे में आंखे बंद होती गई और वो सो गई।
मैं अपने निर्धारित समय पर घर आ गया था। दरवाजा खोल कर मैं अन्दर आया तो देखा टीवी चल रहा था और कमरे में कोई नहीं था। मैं अन्दर बेडरूम में गया तो देखा कि माधुरी बिस्तर पर एक करवट पर पड़ी मदमस्त नंगी सो रही थी। पास मे ही चादर ढुलकी हुई पड़ी थी। उसके मस्ताने चूतड़ देख कर मैं तो पगला गया।
चाहे वो मेरी बहन थी पर अभी तो जवानी से भरी पूरी एक नवयौवना थी। मेरा लण्ड ठनक उठा... फ़ड़फ़ड़ा गया... सुपाड़े में से गीलापन बाहर आ गया। पास जाकर देखा तो उसके मुख से दारू की खुशबू आ रही थी। मैंने भी बची हुई दारू पी और काजू चबाने लगा। मैंने अपने कपड़े भी आराम से धीरे धीरे उतार दिये। पूरी दारू समाप्त करके मैंने अपने शरीर को निहारा। मेरा लण्ड कड़क हो रहा था।
मैंने उसकी चादर पूरी हटा दी और नंगा हो कर उसकी पीठ से चिपक गया। उसके नंगे शरीर का स्पर्श पा कर मेरा जिस्म एक बारगी झनझना गया। वो नशे मे थोड़ा सा हिली। मैंने पास पड़ी क्रीम अपने लण्ड पर लपेट ली और उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दिया। अब मैंने उसके बोबे पकड़ लिये और उसे प्यार से दबाना चालू कर दिया। मैंने अपना लण्ड उसकी गाण्ड में दबा दिया।
उसने नशे में मुड़ कर पीछे मुझे देखा और मुसकराई..."भैया... आह्ह्ह... आप हो... क्या करोगे... जरा धीरे मसलो..." उसे मालूम हो गया कि उसे अब और मस्ती मिलने वाली है।
"दीदी... विनोद ने आपको चोद दिया ना... मजा आया..." मैंने उसे उकसाने की कोशिश की।
"तेरा दोस्त बड़ा प्यारा है ... मस्त है ... देखो ना ! चोद कर कैसा बेहाल कर गया है... अरे हाय रे नीचे तू बड़ी गुदगुदी कर रहा है... देख तो घुसा जा रहा है !" नशे में कराहती सी बोली।
"अब दीदी ... गाण्ड चुदा ले... मेरा लण्ड भी देख कितना फ़ड़क रहा है... मैंने तेरे नाम के जाने कितने मुठ मारे होंगे !"
"जानती हूँ ना रे भैया... पर मुठ मत मारा कर, मैं तो हू ना तेरे ही पास ... दोनों प्यास बुझा लिया करेंगे... देख तो तेरा प्यारा लण्ड पाने को मैं कितनी आतुर थी... पर तू तो बुद्धू है।"
"ओह... मेरी प्यारी दीदी..." और मेरे लण्ड का जोर उसकी गाण्ड की छेद पर बढ़ गया। और एक मिठास भरी गुदगुदी के साथ छेद में घुस गया।
"तेरी प्यारी सी, मोटी सी गाण्ड मार कर तो मुझे मजा आ जायेगा, दीदी फिर चूत का मजा भी देगी ना?"
"चल गाण्ड तो मार ना... चूत का तो तेरे पास देखना ढेर लगा दूंगी, मेरी सारी सहेलियाँ तुझ से ही चुदने आयेंगी, देखना तो ! ... हाय... मार दी रे मेरी प्यारी सी गाण्ड..." मेरा लण्ड उसकी गाण्ड की गहराइयों में घुसता चला गया।
"सच मेरी दीदी... मुझे तेरी सहेलियों की चूत मिलेगी ना..." उसकी बातें मेरे दिल में गड़ी जा रही थी। मुझे चूतें ही चूतें नजर आने लगी और मेरा लण्ड भी उफ़ान पर आ गया।
"तेरी गाण्ड है कि चूत ... लण्ड को लपक लपक कर ले रही है !" मैंने आह भरते हुये कहा।
"क्या करूं रे... मोमबत्ती से मेरी गाण्ड का छेद बहुत बड़ा हो गया है... साली कठोर पत्थर जैसी थी... लण्ड जैसी कोमलता उसमें कहां... चल पेल दे लण्ड ... चोद दे मेरी गाण्ड..." उसने अपनी गाण्ड के नीचे अब उसने तकिया भी घुसा लिया था।
माधुरी की मस्त गाण्ड मारने का मजा आ रहा था।
"मैंने पहली बार किसी लड़की की गाण्ड मारी है दीदी !" मैंने गाण्ड चुदाई के नशे में कहा।
"इसके लिये तुझे दीदी ही मिली थी क्या ? अच्छा चूत कितनों की मारी है?" दीदी ने हंस कर पूछा।
"वो भी पहली बार आपकी ही मारनी है ... " मैंने कुछ चुलबुलेपन से कहा।
"अच्छा चल निकाल और चूत भी मार ले मेरी..." माधुरी ने प्यार से कहा।
मैंने लण्ड गाण्ड से निकाल दिया और और उसे सीधा लेटा दिया और तकिया एक तरफ़ कर दिया। हम दोनों फिर से लिपट गये और चूत लण्ड को और लण्ड चूत को टटोलने लगी। जल्दी ही रास्ता ढूंढ कर एक दूसरे में समा गये। हमारे अधर आपस में जुड़ गये और मनोहर चुदाई चालू हो गई। दोनों के मुख से दारू की महक के भभके निकल रहे थे... पर वासना में सब कुछ चलता है। दोनों की कमर मटकने लग़ी और माधुरी बड़े ही सरल तरीके से सौम्यता से चुदने लगी। माधुरी ने अपने दोनों पांव मेरी कमर से लपेट लिये और चूत पूरी खोल दी। अब सब कुछ प्यार से हो रहा था। नशे में दोनों ने आंखे मूंद रखी थी और चूतड़ ऊपर नीचे एक लय मे चल रहे थे। अचानक माधुरी की चूत का कसाव बढ़ गया और उह... उह... मुख से बोल फ़ूटने लगे... और फिर उसने मुझे ऐसा जोर से जकड़ा कि मेरा वीर्य भी चूत की कसावट के मारे छूट पड़ा।
हम दोनों ही चूतड़ों का जोर लगा कर अपना अपना माल निकालने में लगे हुये थे।
चूत के आस पास दोनों का यौवन रस एकत्र हो गया था और चिकनापन और चिपचिपापन हो गया था। चादर गीली हो गई थी। माधुरी नशे में थी सो झड़ने के बाद वह गहरी नींद मे सो गई थी। मैं भी उठा और अपने बिस्तर पर जा कर लेट गया। मेरे मन में अनेक लड़कियों को चोदने का प्लान बना रहा था, पर दारू के नशे ने मुझे अधिक नहीं सोचने दिया ... और गहरी और सन्तुष्टि की नींद में खोने लगा... और जाने कब निंदिया रानी ने मुझे दबोच लिया...
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सॉरी दीदी "ये दारू का कसूर है...
उसका ज्यादा झुकाव विनोद की तरफ़ था। विनोद की नजरें भी उस पर थी। माधुरी इस बात को जानती थी। वह नजरें पहचानती थी पर ऐसा भी नहीं था कि मेरी बहन मेरी गंदी नजरों को नहीं पहचानती थी। वो मेरी हर हरकत को देखती थी और मुसकराती थी। पर मैं ही इस मामले पीछे था, बस उसके नाम का मुठ मार लेता था और अपना वीर्य टपका देता था। सवेरे सवेरे यह बहुत होता था कि मेरी नींद मेरे खड़े लण्ड की वजह से खुल जाती थी और मैं उल्टे लेट कर लण्ड पर चूतड़ों का जोर लगा कर बिस्तर से दबा दबा कर माल निकाल देता था। एक बार दीदी ने मुझे ऐसा करते हुये पकड़ भी लिया था।
वो सो कर उठी ही थी और मैं अपना चेहरा दूसरी ओर किये हुये लण्ड को चूतड़ों से दबा रहा था। बड़ी मीठी मीठी सी गुदगुदी भरा अहसास हो रहा था। मेरा लण्ड मेरी जांघ के जोइन्ट पर बिस्तर पर दबा पड़ा था और दबाने पर एक साईड से बाहर आता था और एक मिठास भर देता था। दीदी मेरे पास खड़ी यह सब देख रही थी। मेरे चूतड़ों का दबना उसे बहुत भा रहा था शायद। उसने मेरे चूतड़ों पर हाथ फ़ेरा, पर मैं उस समय चरम सीमा पर था, झड़ने ही वाला था, उसका हाथ मुझे बहुत ही सुहाना लग रहा था। मेरे चूतड़ के उभरे हुये गोल गोल भाग को वो
सहला रही थी। तभी मेरा वीर्य छूट पड़ा। मैं चूतड़ो से लण्ड को दबा दबा कर वीर्य निकालता रहा। तभी मैंने माधुरी के होने के अहसास का नाटक किया।
"अरे दीदी आप... !"
"बहुत मजा आ रहा था क्या ..."
"आ...आप क्या कह रही हैं...?"
"ये पजामे पर इतना सारा माल... सारा पाजामा गीला कर दिया है...तुम बहुत गन्दे हो भैया !"
"सॉरी दीदी... " मैं शरमा गया और जल्दी से बाथ रूम में भागा। माधुरी खिलखिला कर हंस पड़ी। शायद मेरे चूतड़ को छूने का अहसास उसे हो रहा होगा... क्योंकि मुझे भी उसके हाथों का स्पर्श जिस्म में अभी भी सनसनी पैदा कर रहा था। शरम के मारे ना तो मैंने कुछ कहा और ना ही माधुरी ने कुछ कहा। पर हम दोनों के मन में एक दूसरे लिये एक कसक सी मन में रह गई।
एक दिन विनोद ने मुझसे माधुरी के बारे में कह ही दिया,"यार महेश... माधुरी से मेरी दोस्ती करा दे ना...!"
"क्यों ... ऐसा क्या है ? वैसे भी तुम उसके दोस्त तो हो ना...!"
"नहीं यार... वैसी दोस्ती नहीं ... तुम्हारी अनुमति से मैं उसे चोदना चाहता हूँ, वो भी ऐसा चाहती है !"
"जब मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा भैया जी !" मैंने उसे कहा कि अब वो मेरे घर आना जाना शुरू कर दे... रोज मिलोगे तो जरूर बात बन जायेगी।
मेरी बात मान कर उसने अब मेरे घर पर आना जाना आरम्भ कर दिया। पहले तो मैंने उनकी दोस्ती और गहरी कर दी। जब दोनों आंखों ही आंखों में इशारा करने लगे तब मैंने उन्हें अकेला छोड़ दिया। विनोद के आने का समय होता तो मैं उस समय बाहर चला जाता था।
आगे क्या हुआ... अब सुनिये मुझे जैसा विनोद ने बताया।
आज विनोद अपने साथ व्हिस्की की एक बोतल लाया था। उस समय क्रिकेट के किसी मैच का री-प्ले आ रहा था। विनोद और माधुरी दोनों ही उस मैच का मज़ा ले रहे थे। पर माधुरी की निगाहें तो विनोद पर ही जमी थी। यह विनोद को भी पता था। वो उसके समीप ही बैठी थी। तभी धोनी का छक्का पड़ा... विनोद खुशी के मारे माधुरी से लिपट गया। माधुरी भी उसकी बाहों में सिमटती चली गई। अब विनोद ने कोई विरोध नहीं देख कर उसे चूम लिया। माधुरी बस विनोद की तरफ़ टकटकी लगाये देखती रही।
"ओह माफ़ करना ... बुरा मत मानना..." विनोद ने यूं ही झेंपने का नाटक किया।
माधुरी खिलखिला कर हंस पड़ी,"बड़ी मस्ती आ रही है...?"
"ये दारू का कसूर है... मेरा नहीं !"
"अच्छा तो मुझे भी इसका अनुभव कराओ... देखें तो दारू पीने से कितनी मस्ती आती है !"
उसने माधुरी को एक पेग बना कर दिया। जिसे वो धीरे धीरे पूरा पी गई। फिर उसने दूसरा पेग भी धीरे धीरे करके पूरा पी लिया। इतनी देर में माधुरी को अच्छा नशा चढ़ गया था।
" दारू कड़वी जरूर होती है पर देखो कितना मजा आ रहा है...!" विनोद ने माधुरी को अपनी ओर खींचा और माधुरी जान करके उसकी गोदी में बैठ गई। विनोद माधुरी की नरम गाण्ड में अपना कड़क लण्ड दबाता हुआ उसे प्यार करने लगा। उसके कड़क लण्ड का अह्सास पा कर उसने अपनी गाण्ड को उसके लण्ड पर ठीक से सेट कर लिया। दोनों ही अब कुछ करने के मूड में थे। टीवी कोई नहीं देख रहा था। विनोद के हाथ माधुरी की चूंचियों पर मचल उठे। माधुरी के मुख से आह निकल पड़ी।
उसने माधुरी का टॉप उतारना आरम्भ कर दिया। माधुरी ने दबा हुआ सा विरोध किया पर ज्यादा समय तक अपने आप को नहीं सम्भाल पाई। उसके मन भी वासना का तूफ़ान उठा हुआ था। उसकी चूत गीली हो चुकी थी। नशे में भला कितना विरोध करती।
विनोद ने उसके दुबले पतले शरीर को हाथों में ले लिया। माधुरी ने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल दी। दोनों एक दूसरे को चूमते हुये अन्दर बेड रूम मे आ गये। विनोद माधुरी का टॉप तो पहले उतार चुका था। ब्रा का हुक खोल कर उसकी चूंचियों को आज़ाद कर दिया। विनोद ने अपने कपड़े उतारे और अब माधुरी का तंग पजामा भी उतार दिया। माधुरी तो बिस्तर पर पड़ी अपनी दोनों टांगें खोले हुये नशे में पड़ी हुई थी। विनोद ने अपना लण्ड सहलाया और उसके ऊपर जाकर लेट गया। उसकी चूंचिया दबा कर मसलने लगा। उसकी चूत के पट खोल कर अपने लण्ड को बीच में रख दिया औए लण्ड को दबाते हुये अन्दर घुसेड़ दिया और उसके ऊपर लेट गया। माधुरी के मुख से एक सिसकारी निकली और और विनोद को कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। लण्ड चूत की गहराई में उतर चुका था।
माधुरी के मुख से स्वर की मालाये निकल उठी,"आह्ह्ह्... विनोऽऽऽद चोद दो मुझे... हा रे..."
'कुछ मत कहो माधुरी ... मेरा लण्ड भी बेताब हो रहा है..." उसने चूत में लण्ड दबाते हुये कहा।
" हाय रे इतना मस्त... मोटा लण्ड... कहा छुपा रखा था रे..."
"हं... हं ... बस ना बोलो ... लण्ड का मजा लो..." उसने धक्के लगाने शुरू कर दिये थे। दोनों ही नशे में चूर चुदाई कर रहे थे। उनके शरीर की गर्मी बढ़ती जा रही थी। दूसरे कमरे में क्रिकेट की कमेन्ट्री चल रही थी और यहां चुदाई लाईव चल रही थी। कुछ ही देर में दोनों ने पल्टा मारा और अब माधुरी विनोद को चोद रही थी। उसके लण्ड पर बैठ कर अपनी चूत में पूरा ठोक रही थी और चीखती भी जा रही थी। उसकी बच्चेदानी पर विनोद का मुलायम टोपा बार बार रगड़ मार रहा था... और माधुरी की मस्ती बढ़ती जा रही थी। उसके उछलते हुये बोबे के निपल विनोद दोनों अंगुलियों से मसक रहा था। जो उसे दुगना मजा दे रहा था। अब वो विनोद के ऊपर धीरे से लेट गई और अपनी चूत लण्ड पर पटकने लगी। तभी विनोद ने उसे दबा कर एक पल्टी और मारी और एक बार फिर से माधुरी पर चढ़ गया। इस बार विनोद के धक्के कहर बरपा रहे थे, कस कस जोरदार धक्के मार रहा था। शायद चरम सीमा पर पहुँच गया थ वो।
"मेरी जान ... तेरी भोसड़ी... हाय रे... मर गया ... ले ले और चुद जा साली... हारामी... खा मेरा लण्ड !"
"मार दे मेरी चूत ... राजा मैं तो गई ... चोद इस रण्डी चूत को ... मां मेरी ... विनोऽऽऽऽऽऽद ... गई मैं तो ... आआआईईईईईऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ ... ओह्ह्ह विनोऽऽऽऽऽऽद" और माधुरी हांफ़ती हुई झड़ने लगी। तभी विनोद का लण्ड भी छूटने लगा ... उसने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया उसने और एक तेज लहर लण्ड में से निकल पड़ी।
फ़ुहारें माधुरी के जिस्म पर फ़ैलने लगी। रुक रुक कर फ़ुहारों से समापन समारोह होने लगा। दोनों पूरी तरह से झड़ चुके थे। विनोद उसके ऊपर से उठ गया और बिस्तर से नीचे आ गया। तौलिये से माधुरी का बदन साफ़ किया और अपने कपड़े पहने लगा। नशे में माधुरी ने उसे और चोदने के लिये बुलाना चाहा पर उसने एक चादर मुझे ओढ़ दी और बाहर चला गया। मेरे दरवाजे पर औटोमेटिक लॉक लगा था। सो उसके जाते ही दरवाजा बन्द हो गया। अभी मुझे आने में घण्टे भर की देर थी... सो माधुरी ने सोचा अभी थोड़ी देर में उठ कर फ़्रेश हो लूंगी पर नशे में आंखे बंद होती गई और वो सो गई।
मैं अपने निर्धारित समय पर घर आ गया था। दरवाजा खोल कर मैं अन्दर आया तो देखा टीवी चल रहा था और कमरे में कोई नहीं था। मैं अन्दर बेडरूम में गया तो देखा कि माधुरी बिस्तर पर एक करवट पर पड़ी मदमस्त नंगी सो रही थी। पास मे ही चादर ढुलकी हुई पड़ी थी। उसके मस्ताने चूतड़ देख कर मैं तो पगला गया।
चाहे वो मेरी बहन थी पर अभी तो जवानी से भरी पूरी एक नवयौवना थी। मेरा लण्ड ठनक उठा... फ़ड़फ़ड़ा गया... सुपाड़े में से गीलापन बाहर आ गया। पास जाकर देखा तो उसके मुख से दारू की खुशबू आ रही थी। मैंने भी बची हुई दारू पी और काजू चबाने लगा। मैंने अपने कपड़े भी आराम से धीरे धीरे उतार दिये। पूरी दारू समाप्त करके मैंने अपने शरीर को निहारा। मेरा लण्ड कड़क हो रहा था।
मैंने उसकी चादर पूरी हटा दी और नंगा हो कर उसकी पीठ से चिपक गया। उसके नंगे शरीर का स्पर्श पा कर मेरा जिस्म एक बारगी झनझना गया। वो नशे मे थोड़ा सा हिली। मैंने पास पड़ी क्रीम अपने लण्ड पर लपेट ली और उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दिया। अब मैंने उसके बोबे पकड़ लिये और उसे प्यार से दबाना चालू कर दिया। मैंने अपना लण्ड उसकी गाण्ड में दबा दिया।
उसने नशे में मुड़ कर पीछे मुझे देखा और मुसकराई..."भैया... आह्ह्ह... आप हो... क्या करोगे... जरा धीरे मसलो..." उसे मालूम हो गया कि उसे अब और मस्ती मिलने वाली है।
"दीदी... विनोद ने आपको चोद दिया ना... मजा आया..." मैंने उसे उकसाने की कोशिश की।
"तेरा दोस्त बड़ा प्यारा है ... मस्त है ... देखो ना ! चोद कर कैसा बेहाल कर गया है... अरे हाय रे नीचे तू बड़ी गुदगुदी कर रहा है... देख तो घुसा जा रहा है !" नशे में कराहती सी बोली।
"अब दीदी ... गाण्ड चुदा ले... मेरा लण्ड भी देख कितना फ़ड़क रहा है... मैंने तेरे नाम के जाने कितने मुठ मारे होंगे !"
"जानती हूँ ना रे भैया... पर मुठ मत मारा कर, मैं तो हू ना तेरे ही पास ... दोनों प्यास बुझा लिया करेंगे... देख तो तेरा प्यारा लण्ड पाने को मैं कितनी आतुर थी... पर तू तो बुद्धू है।"
"ओह... मेरी प्यारी दीदी..." और मेरे लण्ड का जोर उसकी गाण्ड की छेद पर बढ़ गया। और एक मिठास भरी गुदगुदी के साथ छेद में घुस गया।
"तेरी प्यारी सी, मोटी सी गाण्ड मार कर तो मुझे मजा आ जायेगा, दीदी फिर चूत का मजा भी देगी ना?"
"चल गाण्ड तो मार ना... चूत का तो तेरे पास देखना ढेर लगा दूंगी, मेरी सारी सहेलियाँ तुझ से ही चुदने आयेंगी, देखना तो ! ... हाय... मार दी रे मेरी प्यारी सी गाण्ड..." मेरा लण्ड उसकी गाण्ड की गहराइयों में घुसता चला गया।
"सच मेरी दीदी... मुझे तेरी सहेलियों की चूत मिलेगी ना..." उसकी बातें मेरे दिल में गड़ी जा रही थी। मुझे चूतें ही चूतें नजर आने लगी और मेरा लण्ड भी उफ़ान पर आ गया।
"तेरी गाण्ड है कि चूत ... लण्ड को लपक लपक कर ले रही है !" मैंने आह भरते हुये कहा।
"क्या करूं रे... मोमबत्ती से मेरी गाण्ड का छेद बहुत बड़ा हो गया है... साली कठोर पत्थर जैसी थी... लण्ड जैसी कोमलता उसमें कहां... चल पेल दे लण्ड ... चोद दे मेरी गाण्ड..." उसने अपनी गाण्ड के नीचे अब उसने तकिया भी घुसा लिया था।
माधुरी की मस्त गाण्ड मारने का मजा आ रहा था।
"मैंने पहली बार किसी लड़की की गाण्ड मारी है दीदी !" मैंने गाण्ड चुदाई के नशे में कहा।
"इसके लिये तुझे दीदी ही मिली थी क्या ? अच्छा चूत कितनों की मारी है?" दीदी ने हंस कर पूछा।
"वो भी पहली बार आपकी ही मारनी है ... " मैंने कुछ चुलबुलेपन से कहा।
"अच्छा चल निकाल और चूत भी मार ले मेरी..." माधुरी ने प्यार से कहा।
मैंने लण्ड गाण्ड से निकाल दिया और और उसे सीधा लेटा दिया और तकिया एक तरफ़ कर दिया। हम दोनों फिर से लिपट गये और चूत लण्ड को और लण्ड चूत को टटोलने लगी। जल्दी ही रास्ता ढूंढ कर एक दूसरे में समा गये। हमारे अधर आपस में जुड़ गये और मनोहर चुदाई चालू हो गई। दोनों के मुख से दारू की महक के भभके निकल रहे थे... पर वासना में सब कुछ चलता है। दोनों की कमर मटकने लग़ी और माधुरी बड़े ही सरल तरीके से सौम्यता से चुदने लगी। माधुरी ने अपने दोनों पांव मेरी कमर से लपेट लिये और चूत पूरी खोल दी। अब सब कुछ प्यार से हो रहा था। नशे में दोनों ने आंखे मूंद रखी थी और चूतड़ ऊपर नीचे एक लय मे चल रहे थे। अचानक माधुरी की चूत का कसाव बढ़ गया और उह... उह... मुख से बोल फ़ूटने लगे... और फिर उसने मुझे ऐसा जोर से जकड़ा कि मेरा वीर्य भी चूत की कसावट के मारे छूट पड़ा।
हम दोनों ही चूतड़ों का जोर लगा कर अपना अपना माल निकालने में लगे हुये थे।
चूत के आस पास दोनों का यौवन रस एकत्र हो गया था और चिकनापन और चिपचिपापन हो गया था। चादर गीली हो गई थी। माधुरी नशे में थी सो झड़ने के बाद वह गहरी नींद मे सो गई थी। मैं भी उठा और अपने बिस्तर पर जा कर लेट गया। मेरे मन में अनेक लड़कियों को चोदने का प्लान बना रहा था, पर दारू के नशे ने मुझे अधिक नहीं सोचने दिया ... और गहरी और सन्तुष्टि की नींद में खोने लगा... और जाने कब निंदिया रानी ने मुझे दबोच लिया...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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