FUN-MAZA-MASTI
इस बार भी मेरे नंबर कम आये थे एग्जाम में. मुझे पता था की घर वाले इस नंबर के चक्कर में जरुर गांड मारेंगे. मुझे मेरे दोस्त अभी ने बताया की शुक्ला साहब अच्छे आदमी हैं और अगर मैंने उनसे विनंती की तो शायद वो मेरे नंबर बढ़ा के दे सकते हैं. वैसे मैंने कभी शुक्ला साहब की क्लास भरी नहीं थी इसलिए मैं उन्हें कम ही जानता था. लेकिन एग्जाम में नंबर बढवाने की लालच से मैं उनके पास स्टाफ रूम में गया जरुर. शुक्ला साहब स्टाफ रूम में अकेले ही थे. मैंने दरवाजे को नोक किया और उन्होंने हाथ से मुझे अंदर बुलाया.
सर: पहले यह बताओ तुम कौन से इयर में हो? मैंने तुम्हे पहचाना नहीं.
मैं: सर में विनोद गुप्ता, सेकण्ड इयर से हूँ.
सर: अरे रे…तुमने तो कभी क्लास में एंट्री ही नहीं की मेरे. क्या मैं इतना बुरा हूँ?
मैं उनके ऐसा कहते ही थोडा सहम गया. लेकिन काम भी निकलवाना था इसलिए मैंने कहा: नहीं सर, मैं घर में अकेला कमानेवाला हूँ इसलिए क्लास कभी नहीं बैठी आप की. मेरी मज़बूरी हैं वरना मैं पढाई के मामले में गुल्ली नहीं मारता हूँ.
सर: तुम्हारें मार्क्स भी काफी कम हैं. पास तो हो गए हो लेकिन मार्क्स जस्ट पासिंग ही हैं.
अब यह भी गांड मारेंगा, मुझे कुछ ऐसा लगा.
मैं: सर उसके लिए ही मैं आपके पास आया हूँ. एक छोटी सी विनंती थी आप से की आप मेरे मार्क्स कुछ बढ़ा दे,
उसके पास जैसे लंड किरायें पे मांग लिया हो वैसे शुक्ला साहब ने मुझे देखा और घूरने लगा. उसने अपनी फ़ाइल से मार्क्स लिखी हुई पर्ची निकाली और बोला, “तुम एक काम करो शाम को मेरे पास ट्यूशन आया करो. मैं एक दो दिन देखूंगा तुम्हें और फिर नंबर बढ़ाऊंगा. मैं निलगिरी बंग्लोस में रहता हूँ घर नंबर हैं 34. शाम को 6 बजे आ जाना.”
उसकी बात में मुझे दम लगा और मैंने सोचा की एक बार नंबर बढ़ जाएँ फिर बहाना बता के निकल लूँगा ट्यूशन के चुंगल से. मैं स्टाफ रूम से बहार गया और सर को कह के गया था की शाम को मैं आ जाऊँगा.
मैंने 34 नंबर के मकान के सामने ही बाइक पार्क की और घंटी बजाई. नौकरानी जैसी एक लड़की ने दरवाजा खोला, “किसका काम हैं?”
मैं: शुक्ला साहब ने बुलाया हैं.
लड़की: अच्छा, आओ अंदर.
वो लड़की उपर के कमरे में गई और 2 मिनिट में उसके साथ शुक्ला साहब निचे आये. शुक्ला की नौकरानी बड़ी भारी माल था, मस्त जवान और टाईट बॉडी.
सर: बिंदिया तेरा काम हो गया हो तो जा तू अब.
नौकरानी ने अजीब तरीके से स्माइल भरे चहरे से मुझे देखा और वो कमरे से बहार की और जानें लगी. मैं उसकी लटक मटक होती हुई गांड को देख के खुश हो रहा था.
सर: विनोद पता हैं मैंने तुम्हें यहाँ क्यूँ बुलाया हैं?
मैं: सर ट्यूशन के लिए. (मुझे लगा की मुझे नौकरानी की गांड देखते हुए सर ने देख लिया हैं.)
सर: नहीं कुछ था जो मैं तुम्हे स्टाफ रूम में नहीं कह सकता था वो कहने के लिए मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया हैं.
अरे बाप रे सर तो नवाब साहब निकले जिन्हें गांड मरवानी थी मेरे पास. अब मैंने नौटंकी चालू की.
मैं: नहीं सर कैसी बात कर रहें हो आप. आप तो गुरु हो मेरे.
सर: तो फिर गुरुदक्षिणा में धर दो मेरी गांड के अंदर अपना लंड….!
सर मेरे पास आके खड़े हुए और उनका हाथ सीधा ही मेरे लौड़े [पे आया. उन्होंने दबाते हुए कहा, “लगता तो बड़ा हैं विनोद. किसी को पेला हैं कभी की नहीं.”
मैं: बहुत बार पेला हैं लेकिन मर्द को नहीं केवल औरतों को.
सर: तो मैं भी तो औरत ही हूँ, ये लो देखों.
उसके बाद जो हुआ वो काफी हंसीवाला मामला था. सर ने अपनी टी-शर्ट उतार फेंकी और मैंने देखा की उन्होंने अंदर ब्रा पहनी थी. सर ने अपने चेस्ट को दबाते हुए कहा, “ये देखो मेरे बूब्स, चूत की जगह मेरे पीछे का छेद हैं तुम्हारें लिए विनोद. तुम मेरे साथ मस्ती करों और मैं तुम्हे अच्छे नंबर दे दूंगा.”
एक बार फिर से उनका हाथ मेरे लंड पे आया. अब उन्होंने धीरे से मेरी ज़िप को खोला और लौड़े को बहार निकाला. मेरा लौड़ा सर की बातें सुनके कब से टाईट हुआ पड़ा था. उसकी लम्बाई कुछ 8 इंच जितनी हो चुकी थी जिसे दबा के सर ने मेरी और देखा. मैंने घुटनों को मोड के पेंट को पूरा उतार फेंका. सर ने मेरी अंडरवेर उतारी और मेरी शर्ट भी उतारने लगे. मैंने सर को मेरी और कमर कर के खड़ा किया और उनकी गांड देखने लगा.
सर ने मेरा हाथ पकड के अपनी गांड पे धरवा दिया और वो मेरे हाथ को अपनी गांड के ऊपर इधर उधर फिराने लगे. मैंने महसूस किया की उन्होंने अंदर अंडरवेर नहीं पहनी थी और उनकी गांड पे एक भी बाल नहीं था. शुक्ला साहब ने अब निचे बैठ के जैसे मेरे लंड का मुआयना किया. फिर उन्होंने धीरे से सुपाडे के ऊपर एक किस दे दी. उनके होंठ जैसे ही मेरे लौड़े पे टच हुए मेरे बदन में जैसे की आग लग गई. और शुक्ला साहब इतने से नहीं रुके. अब उन्होंने अपने मुहं को खोला और मेरे लंड को अपने मुहं में भर लिया….! मेरे मुहं से आह आह आह निकल पड़ा, उन्होंने लंड को चूसा ही था इतने सेक्सी अंदाज से….!
शुक्ला साहब जो हिसाब से मेरे लंड को चूस रहे थे ऐसे लग रहा था की कोई छोटा बच्चा कैंडी मुहं में ले रहा हो. वो मेरे सुपाड़े को मुहं में ले रहे थे और फिर उसके ऊपर अपनी जबान को घुमा के कुछ ऐसा मजा दे रहे थे की क्या बताऊँ. वो फिर पुरे लौड़े को अपने मुहं में लेते थे और उसके इर्द गिर्द अपने दांतों से मजा दे रहे थे. मैंने उनके माथे को पीछे से पकड के अपने लौड़े के ऊपर जोर से दबा दिया, प्रोफेसर साहब ने अब की बार लौड़ा गले में भर लिया और उनकी जबान वही मस्ती से मेरे लौड़े के ऊपर घुमती रही. शुक्ला साहब ने अब लंड को अपने हाथ में निकाला और उसे अपनी हथेली से दबा के हिलाने लगे. पहले से ही उनका ढेर सारा थूंक मेरे लौड़े पे लगा था और फिर ऐसे हिलाने से तो मुझे और भी मजा आने लगा. फिर एक बार मेरे लंड को उन्होंने अपने मुहं में भर लिया और उसे मस्त चूसने लगे. अब की वो मेरे बाल्स को पकड के उसे हलके हलके दबा भी रहे थे. मैं अपनी आँखों को बंध कर के उनके ऐसे चूसने के मजे ले रहा था बस.
मुझे थोडा अजीब लग रहा था यह सब लेकिन फिर भी मैंने अपने होंठ उनके मेल बूब्स पे रख दिए. शुक्ला साहब ने दोनों हाथ से अपने उस स्तन को दबाया और मुझे जैसे की सच में निपल चूसा रहे हो वैसी अनुभूति करवाई. मेरा लंड तो जैसे की सातवें आसमान पे था और उसके अंदर अब झटके भी लगने लगे थे. मैंने शुक्ला साहब की गांड के ऊपर हाथ फेरा और उसे दबाने भी लगा.
शुक्ला साहब: दबाओ मेरी गांड को और जोर से, मुझे अच्छा लग रहा हैं.
उनका इतना कहते ही मैंने गांड के छेड़ की तरफ अपनी ऊँगली बढाई और उसे मसलने लगा. जैसे की मैंने पहले आ को बताया उनकी गांड के ऊपर एक भी बाल नहीं था शायद. यह गे लोगों की खासियत होती हैं वो अपनी गांड को बड़ी चिकनी बना के ही रखते हैं. उन्हें पता होता हैं की कई बाल देख के लड़के और लौंडे भाग ना जाएँ. मेरा लंड अब शुक्ला साहब की गांड की गर्मी को उतारने के लिए बिलकुल रेडी था. मैंने उनकी जूठी चुन्ची को चुसना छोड़ा और अपने लंड को पकड़ के उसे स्ट्रोक करने लगा. शुक्ला साहब ने अपने हाथ से लंड पकड़ा और बोले, “चलो विनोद अब मुझे चोद दो प्लीज़. आज तुम्हारें लंड को असली गांड का मजा मिलेंगा.”
इतना कहते ही उन्होंने बिस्तर को ऊपर किया. वहाँ पे अलग अलग कम्पनी के कुछ कंडोम पड़े थे. मेरे पास शायद ऑप्शन था कंडोम का चयन करने का. मैंने एक गुलाबी कंडोम उठाया जिसके ऊपर लिखा था एक्स्ट्रा रिब्स. कंडोम अपने हाथ में ले के उसे खोल के शुक्ला साहब ने ही मेरे लंड को युध्ध के लिए तैयार किया. फिर उन्होंने बिस्तर में बैठते हुए अपनी गांड को ऊँगली से थूंक लगा के गीली कर दी. अब उनके हाथ में मेरा लौड़ा था जिसे वो छेद के ऊपर सेट करने लगे. मेरे लौड़े के ऊपर उनकी गांड की गर्मी अच्छी तरह से महसूस हो रही थी. जब लंड सेट हो गया तो मैंने एक हि झटके में उसे 75% जितना गांड के अंदर पेल दिया.
शुक्ला साहब ने एक आह निकाली और बोले, “आऊऊऊउ क्या निशाना हैं तेरा विनोद एक ही झटके में चारों खाने चित कर डाले. अब अपने लंड को चला जोर जोर से मेरी गांड के अंदर और मजे ले.”
उनका इतना कहते ही मैं भी अब मस्ती में आ गया. मेरा लौड़ा फच फच की आवाज करता हुआ शुक्ला साहब की गांड के अंदर बहार होने लगा. वो भी अपने कूल्हों को उठा के मुझे ढेर सारे मजे देने लगे. मेरा लौड़ा आसानी से उनकी गांड के छेद के अंदर बहार होने लगा था; शायद इसमें बहुत सारा योगदान कंडोम की चिकनाई का भी था.
अब मेरे झटके तीव्र होने लगे और शुक्ला साहब भी अपनी गांड को जोर जोर से उठा के लौड़े के ऊपर ठोक रहे थे. मेरा लौड़ा पूरा उनकी गांड को ठोक के बहार आता था तो मुझे भी बहुत मजा आ रही थी. शुक्ला साहब अपने कूल्हों को अब और भी जोर से उठा के मेरे लौड़े में मार रहे थे. उनके ऐसा करने से मैं भी तान में आ गया और गांड में लौड़ा डालने की स्पीड और तीव्रता मैंने भी बढ़ा दी. शुक्ला साहब के मुहं से आह आह आह ओह ओह की आवाजें निकलती रही कुछ देर ऐसे ही.
चार मिनिट के और गुदा सम्भोग के बाद मेरे लंड ने उनकी गांड में ही पानी निकाल डाला. शुक्ला साहब ने मुझे उठा के बाथरूम की और लिया. बाथरूम ने कंडोम को उन्होंने बिन में फेंका और फिर एक बार मेरे लौड़े को मुहं में ले के चूसने लगे. इस बार उन्होंने लंड के ऊपर जो भी वीर्य की बुँदे चिपकी थी उसे अपनी जबान से साफ़ कर दिया. मैं और भी उत्तेजित हो गया. और शुक्ला साहब की गांड मैंने एक बार फिर से बाथरूम में ही ले ली.
शुक्ला साहब ने मेरे सामने ही मेरे मार्क्स बढ़ा दिए और कहा की अगर मैं उनकी सेवा करूँ तो वो मेरा ध्यान रखेंगे. जब मैंने उन्हें कहा की मुझे चूत में ज्यादा मजा आता हैं तो उन्होंने अपनी जवान नौकरानी बिंदिया को मुझ से चुदवाने का प्लान भी बताया. आप को अगली स्टोरी में मैं मेरी, शुक्ला साहब की और बिंदिया की कहानी बताऊंगा. तब तक आप इस कहानी को शेयर कर दे…..!
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प्रोफेसर की गांड मारी
इस बार भी मेरे नंबर कम आये थे एग्जाम में. मुझे पता था की घर वाले इस नंबर के चक्कर में जरुर गांड मारेंगे. मुझे मेरे दोस्त अभी ने बताया की शुक्ला साहब अच्छे आदमी हैं और अगर मैंने उनसे विनंती की तो शायद वो मेरे नंबर बढ़ा के दे सकते हैं. वैसे मैंने कभी शुक्ला साहब की क्लास भरी नहीं थी इसलिए मैं उन्हें कम ही जानता था. लेकिन एग्जाम में नंबर बढवाने की लालच से मैं उनके पास स्टाफ रूम में गया जरुर. शुक्ला साहब स्टाफ रूम में अकेले ही थे. मैंने दरवाजे को नोक किया और उन्होंने हाथ से मुझे अंदर बुलाया.
मैं: नमस्ते सर, मुझे आप से एक छोटी सी विनंती करनी थी.
सर: पहले यह बताओ तुम कौन से इयर में हो? मैंने तुम्हे पहचाना नहीं.
मैं: सर में विनोद गुप्ता, सेकण्ड इयर से हूँ.
सर: अरे रे…तुमने तो कभी क्लास में एंट्री ही नहीं की मेरे. क्या मैं इतना बुरा हूँ?
मैं उनके ऐसा कहते ही थोडा सहम गया. लेकिन काम भी निकलवाना था इसलिए मैंने कहा: नहीं सर, मैं घर में अकेला कमानेवाला हूँ इसलिए क्लास कभी नहीं बैठी आप की. मेरी मज़बूरी हैं वरना मैं पढाई के मामले में गुल्ली नहीं मारता हूँ.
सर: तुम्हारें मार्क्स भी काफी कम हैं. पास तो हो गए हो लेकिन मार्क्स जस्ट पासिंग ही हैं.
अब यह भी गांड मारेंगा, मुझे कुछ ऐसा लगा.
मैं: सर उसके लिए ही मैं आपके पास आया हूँ. एक छोटी सी विनंती थी आप से की आप मेरे मार्क्स कुछ बढ़ा दे,
उसके पास जैसे लंड किरायें पे मांग लिया हो वैसे शुक्ला साहब ने मुझे देखा और घूरने लगा. उसने अपनी फ़ाइल से मार्क्स लिखी हुई पर्ची निकाली और बोला, “तुम एक काम करो शाम को मेरे पास ट्यूशन आया करो. मैं एक दो दिन देखूंगा तुम्हें और फिर नंबर बढ़ाऊंगा. मैं निलगिरी बंग्लोस में रहता हूँ घर नंबर हैं 34. शाम को 6 बजे आ जाना.”
उसकी बात में मुझे दम लगा और मैंने सोचा की एक बार नंबर बढ़ जाएँ फिर बहाना बता के निकल लूँगा ट्यूशन के चुंगल से. मैं स्टाफ रूम से बहार गया और सर को कह के गया था की शाम को मैं आ जाऊँगा.
मैंने 34 नंबर के मकान के सामने ही बाइक पार्क की और घंटी बजाई. नौकरानी जैसी एक लड़की ने दरवाजा खोला, “किसका काम हैं?”
मैं: शुक्ला साहब ने बुलाया हैं.
लड़की: अच्छा, आओ अंदर.
वो लड़की उपर के कमरे में गई और 2 मिनिट में उसके साथ शुक्ला साहब निचे आये. शुक्ला की नौकरानी बड़ी भारी माल था, मस्त जवान और टाईट बॉडी.
सर: बिंदिया तेरा काम हो गया हो तो जा तू अब.
नौकरानी ने अजीब तरीके से स्माइल भरे चहरे से मुझे देखा और वो कमरे से बहार की और जानें लगी. मैं उसकी लटक मटक होती हुई गांड को देख के खुश हो रहा था.
सर: विनोद पता हैं मैंने तुम्हें यहाँ क्यूँ बुलाया हैं?
मैं: सर ट्यूशन के लिए. (मुझे लगा की मुझे नौकरानी की गांड देखते हुए सर ने देख लिया हैं.)
सर: नहीं कुछ था जो मैं तुम्हे स्टाफ रूम में नहीं कह सकता था वो कहने के लिए मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया हैं.
मेरे कान खड़े हुए, क्या सर मेरी गांड तो नहीं मांगेगे? मैंने देखा की पुरे घर में अब हम दोनों ही थे. सर कुछ बोले नहीं लेकिन दबे पाँव मेरे पास आके खड़े हुए. उनकी यह हरकत अब मुझे सच में अजीब लग रही थी. उन्होंने मुझे कंधे से पकड़ा और बोले, “तुम मुझे भोग लो आज एक दिन और अपने नंबर बढ़वा लो. जितनी मजा मुझे आएँगी उतने अच्छे नंबर दूंगा….!”
अरे बाप रे सर तो नवाब साहब निकले जिन्हें गांड मरवानी थी मेरे पास. अब मैंने नौटंकी चालू की.
मैं: नहीं सर कैसी बात कर रहें हो आप. आप तो गुरु हो मेरे.
सर: तो फिर गुरुदक्षिणा में धर दो मेरी गांड के अंदर अपना लंड….!
सर मेरे पास आके खड़े हुए और उनका हाथ सीधा ही मेरे लौड़े [पे आया. उन्होंने दबाते हुए कहा, “लगता तो बड़ा हैं विनोद. किसी को पेला हैं कभी की नहीं.”
मैं: बहुत बार पेला हैं लेकिन मर्द को नहीं केवल औरतों को.
सर: तो मैं भी तो औरत ही हूँ, ये लो देखों.
उसके बाद जो हुआ वो काफी हंसीवाला मामला था. सर ने अपनी टी-शर्ट उतार फेंकी और मैंने देखा की उन्होंने अंदर ब्रा पहनी थी. सर ने अपने चेस्ट को दबाते हुए कहा, “ये देखो मेरे बूब्स, चूत की जगह मेरे पीछे का छेद हैं तुम्हारें लिए विनोद. तुम मेरे साथ मस्ती करों और मैं तुम्हे अच्छे नंबर दे दूंगा.”
एक बार फिर से उनका हाथ मेरे लंड पे आया. अब उन्होंने धीरे से मेरी ज़िप को खोला और लौड़े को बहार निकाला. मेरा लौड़ा सर की बातें सुनके कब से टाईट हुआ पड़ा था. उसकी लम्बाई कुछ 8 इंच जितनी हो चुकी थी जिसे दबा के सर ने मेरी और देखा. मैंने घुटनों को मोड के पेंट को पूरा उतार फेंका. सर ने मेरी अंडरवेर उतारी और मेरी शर्ट भी उतारने लगे. मैंने सर को मेरी और कमर कर के खड़ा किया और उनकी गांड देखने लगा.
सर ने मेरा हाथ पकड के अपनी गांड पे धरवा दिया और वो मेरे हाथ को अपनी गांड के ऊपर इधर उधर फिराने लगे. मैंने महसूस किया की उन्होंने अंदर अंडरवेर नहीं पहनी थी और उनकी गांड पे एक भी बाल नहीं था. शुक्ला साहब ने अब निचे बैठ के जैसे मेरे लंड का मुआयना किया. फिर उन्होंने धीरे से सुपाडे के ऊपर एक किस दे दी. उनके होंठ जैसे ही मेरे लौड़े पे टच हुए मेरे बदन में जैसे की आग लग गई. और शुक्ला साहब इतने से नहीं रुके. अब उन्होंने अपने मुहं को खोला और मेरे लंड को अपने मुहं में भर लिया….! मेरे मुहं से आह आह आह निकल पड़ा, उन्होंने लंड को चूसा ही था इतने सेक्सी अंदाज से….!
शुक्ला साहब जो हिसाब से मेरे लंड को चूस रहे थे ऐसे लग रहा था की कोई छोटा बच्चा कैंडी मुहं में ले रहा हो. वो मेरे सुपाड़े को मुहं में ले रहे थे और फिर उसके ऊपर अपनी जबान को घुमा के कुछ ऐसा मजा दे रहे थे की क्या बताऊँ. वो फिर पुरे लौड़े को अपने मुहं में लेते थे और उसके इर्द गिर्द अपने दांतों से मजा दे रहे थे. मैंने उनके माथे को पीछे से पकड के अपने लौड़े के ऊपर जोर से दबा दिया, प्रोफेसर साहब ने अब की बार लौड़ा गले में भर लिया और उनकी जबान वही मस्ती से मेरे लौड़े के ऊपर घुमती रही. शुक्ला साहब ने अब लंड को अपने हाथ में निकाला और उसे अपनी हथेली से दबा के हिलाने लगे. पहले से ही उनका ढेर सारा थूंक मेरे लौड़े पे लगा था और फिर ऐसे हिलाने से तो मुझे और भी मजा आने लगा. फिर एक बार मेरे लंड को उन्होंने अपने मुहं में भर लिया और उसे मस्त चूसने लगे. अब की वो मेरे बाल्स को पकड के उसे हलके हलके दबा भी रहे थे. मैं अपनी आँखों को बंध कर के उनके ऐसे चूसने के मजे ले रहा था बस.
अब मेरी बस हुई थी उनके लौड़ा इस तरह कस के चूसने से. मैंने उनके माथे को पकड के पीछे किया और लौड़ा बहार निकाला. शुक्ला साहब ने खड़े हो के अपनी शर्ट को खोली, अंदर उन्होंने पेड वाली ब्रा पहनी थी. उन्होंने अपने हाथ से हुक को खोला और अपनी छाती के भाग को दबाते हुए बोले, “आओ विनोद मेरी चुन्चियों को चुसो जोर से.”
मुझे थोडा अजीब लग रहा था यह सब लेकिन फिर भी मैंने अपने होंठ उनके मेल बूब्स पे रख दिए. शुक्ला साहब ने दोनों हाथ से अपने उस स्तन को दबाया और मुझे जैसे की सच में निपल चूसा रहे हो वैसी अनुभूति करवाई. मेरा लंड तो जैसे की सातवें आसमान पे था और उसके अंदर अब झटके भी लगने लगे थे. मैंने शुक्ला साहब की गांड के ऊपर हाथ फेरा और उसे दबाने भी लगा.
शुक्ला साहब: दबाओ मेरी गांड को और जोर से, मुझे अच्छा लग रहा हैं.
उनका इतना कहते ही मैंने गांड के छेड़ की तरफ अपनी ऊँगली बढाई और उसे मसलने लगा. जैसे की मैंने पहले आ को बताया उनकी गांड के ऊपर एक भी बाल नहीं था शायद. यह गे लोगों की खासियत होती हैं वो अपनी गांड को बड़ी चिकनी बना के ही रखते हैं. उन्हें पता होता हैं की कई बाल देख के लड़के और लौंडे भाग ना जाएँ. मेरा लंड अब शुक्ला साहब की गांड की गर्मी को उतारने के लिए बिलकुल रेडी था. मैंने उनकी जूठी चुन्ची को चुसना छोड़ा और अपने लंड को पकड़ के उसे स्ट्रोक करने लगा. शुक्ला साहब ने अपने हाथ से लंड पकड़ा और बोले, “चलो विनोद अब मुझे चोद दो प्लीज़. आज तुम्हारें लंड को असली गांड का मजा मिलेंगा.”
इतना कहते ही उन्होंने बिस्तर को ऊपर किया. वहाँ पे अलग अलग कम्पनी के कुछ कंडोम पड़े थे. मेरे पास शायद ऑप्शन था कंडोम का चयन करने का. मैंने एक गुलाबी कंडोम उठाया जिसके ऊपर लिखा था एक्स्ट्रा रिब्स. कंडोम अपने हाथ में ले के उसे खोल के शुक्ला साहब ने ही मेरे लंड को युध्ध के लिए तैयार किया. फिर उन्होंने बिस्तर में बैठते हुए अपनी गांड को ऊँगली से थूंक लगा के गीली कर दी. अब उनके हाथ में मेरा लौड़ा था जिसे वो छेद के ऊपर सेट करने लगे. मेरे लौड़े के ऊपर उनकी गांड की गर्मी अच्छी तरह से महसूस हो रही थी. जब लंड सेट हो गया तो मैंने एक हि झटके में उसे 75% जितना गांड के अंदर पेल दिया.
शुक्ला साहब ने एक आह निकाली और बोले, “आऊऊऊउ क्या निशाना हैं तेरा विनोद एक ही झटके में चारों खाने चित कर डाले. अब अपने लंड को चला जोर जोर से मेरी गांड के अंदर और मजे ले.”
उनका इतना कहते ही मैं भी अब मस्ती में आ गया. मेरा लौड़ा फच फच की आवाज करता हुआ शुक्ला साहब की गांड के अंदर बहार होने लगा. वो भी अपने कूल्हों को उठा के मुझे ढेर सारे मजे देने लगे. मेरा लौड़ा आसानी से उनकी गांड के छेद के अंदर बहार होने लगा था; शायद इसमें बहुत सारा योगदान कंडोम की चिकनाई का भी था.
अब मेरे झटके तीव्र होने लगे और शुक्ला साहब भी अपनी गांड को जोर जोर से उठा के लौड़े के ऊपर ठोक रहे थे. मेरा लौड़ा पूरा उनकी गांड को ठोक के बहार आता था तो मुझे भी बहुत मजा आ रही थी. शुक्ला साहब अपने कूल्हों को अब और भी जोर से उठा के मेरे लौड़े में मार रहे थे. उनके ऐसा करने से मैं भी तान में आ गया और गांड में लौड़ा डालने की स्पीड और तीव्रता मैंने भी बढ़ा दी. शुक्ला साहब के मुहं से आह आह आह ओह ओह की आवाजें निकलती रही कुछ देर ऐसे ही.
चार मिनिट के और गुदा सम्भोग के बाद मेरे लंड ने उनकी गांड में ही पानी निकाल डाला. शुक्ला साहब ने मुझे उठा के बाथरूम की और लिया. बाथरूम ने कंडोम को उन्होंने बिन में फेंका और फिर एक बार मेरे लौड़े को मुहं में ले के चूसने लगे. इस बार उन्होंने लंड के ऊपर जो भी वीर्य की बुँदे चिपकी थी उसे अपनी जबान से साफ़ कर दिया. मैं और भी उत्तेजित हो गया. और शुक्ला साहब की गांड मैंने एक बार फिर से बाथरूम में ही ले ली.
शुक्ला साहब ने मेरे सामने ही मेरे मार्क्स बढ़ा दिए और कहा की अगर मैं उनकी सेवा करूँ तो वो मेरा ध्यान रखेंगे. जब मैंने उन्हें कहा की मुझे चूत में ज्यादा मजा आता हैं तो उन्होंने अपनी जवान नौकरानी बिंदिया को मुझ से चुदवाने का प्लान भी बताया. आप को अगली स्टोरी में मैं मेरी, शुक्ला साहब की और बिंदिया की कहानी बताऊंगा. तब तक आप इस कहानी को शेयर कर दे…..!
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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