FUN-MAZA-MASTI
छोटी चूत का जलावा
बाइ: सोनू
हाई दोस्तों कहते हैं किसी लड़की को गैर मर्द के साथ अकेला नहीं छोड़ना चाहिए. क्योकि मर्द उसे पकड़ कर चोद्ने की ही सोचेगा. कैसे इसकी बुर में अपना लंड डाल दूँ - यही ख़याल उसके मन मे कुलबुलाएगा. दोस्तों मेरे साथ ऐसा ही हुआ. एक दिन मैं अपने घर में अकेला था. बीवी मैके गयी हुई थी और बच्चे गये थे स्कूल. मैने घर में कुछ ज़रूरी काम करने के लिए ऑफीस से छुट्टी ले रखी थी. करीब.बजे दरवाज़े पर हुआ टिंग टॉंग! दरवाज़ा खोला तो सामने मानो एक अप्सरा खड़ी थी.-साल की ग़ज़ब की सावली और सुंदर औरत सारी पहने हुए और हाथों में काग़ज़ और कलम लिए हुए कोयल की आवाज़ में बोली, " माफ़ कीजिएगा, क्या बहनजी हैं?" मैने कहा, "जी नहीं, इस वक़्त तो सिर्फ़ मैं हूँ. आप कौन हैं?" उसके सर पर पसीने की कुछ बूंदे थी. वो बोली "ज़रा एक ग्लास पानी मिलेगा?"मैने कहा, "हां, क्यों नहीं?" वो ज़रा सा अंदर आई. मैने पानी का ग्लास देते हुए पूछा, "क्या बात है, आप हैं कौन?" पानी पी कर वो बोली, "जी मैं एक सर्वे पर हूँ. क्या आप मेरे कुछ प्रश्नों का जवाब दे देंगे?" मैने कहा, "जी कोशिश कर सकता हूँ. आप प्लीज़ यहाँ बैठ जाइए." वो सोफे पर बैठ गयी और हमारे घर का दरवाज़ा अभी खुला ही था. मैने दूसरे सोफे पर बैठ कर कहा, "हां, पूछिए." वो बोली,"जी मुझे एक कन्ज़्यूमर कंपनी ने भेजा है सर्वे के लिए. आप लोग अपने घर की ज़रूरत की चीज़ों को कहाँ से खरीदते हैं?" इस तरह वो सवाल पर सवाल पूछती रही और मैं जवाब देता गया. हमारे कमरे की बड़ी खिड़की से तेज हवा आ रही थी और दरवाज़ा काफ़ी हिल रहा था. कुछ देर बाद मैने पुछा, "इस तरह के वेदर में भी आप क्या सब घरों में जा कर सर्वे करती हैं?"
"जी, जॉब तो जॉब ही है ना.""तो आप शादी शुदा हो कर (उसके माथे पर सिंदूर था) भी जॉब कर रही हैं ?"अब वो भी थोड़ी सी खुल सी गयी. बोली, "क्यों, शादी शुदा औरत जॉब नहीं कर सकती?""जी यह बात नहीं, घर घर जाना, जाने किस घर में कैसे लोग मिल जाएँ?"उसने जवाब दिया, "वैसे तो दिन के वक़्त ज़्यादातर हाउसवाइफ ही मिलती है. कभी कभी ही कोई मेल मेंबर होता है.""तो आपको डर नहीं लगता.""जी अभी तक तो नहीं लगा. फिर आप जैसे शरीफ आदमी मिल जाए तो क्या डर ?" शरीफ आदमी एक बार तो सुन कर अजीब लगा. इसे क्या मालूम मैं इसे किस नज़र से देख रहा था. सारी पर ब्लाउस तनी हुई थे और मेरे लंड को खुजली सी होने लगी. जी चाह रहा था की काश सिर्फ़ एक बार चूम सकता और ब्लाउस के नीचे उन चुचियों को दबा सकता. हाथों की उंगलियाँ लंबी लंबी मुलायम सी. देख देख कर लंड महाराज खरे ही हो गये. मन में ज़ोरों से ख़याल आ रहा था , क्या ग़ज़ब की अप्सरा है. इसकी तो चूत को हाथ लगाते ही शायद हाथ जल जाएगा. तभी वो बोली, "अच्छा, थॅंक्स फॉर एवेरितिंग. मैं चलती हूँ." मानो पहाड़ टूट गया मेरे उपर. चली जाएगी तो हाथ से निकल ही जाएगी. अर्रे विजय साहब, हिम्मत करो, आगे बढ़ो, कुछ बोलो ताकि रुक जाए. इसकी बुर में अपना लंड नहीं डालना है क्या? बुर में लंड? इस ख़याल ने बड़ी हिम्मत दी. "माफ़ कीजिएगा, अगर आप बुरा ना माने तो अपना नाम तो बता दीजिए?" मैने डरते हुए कहा. कोयल सी आवाज़ में बोली, "इसमे बुरा मानने की क्या बात है. प्रतिमा. प्रतिमा स्रिवास्तवा.""प्रतिमजी, आप जैसी सुंदर औरत को थोड़ा केर्फुल रहनाचाहिए.""सुंदर?" मैं थोड़ा सा घबराया, लेकिन फिर हिम्मत कर बोला, "जी, सुंदर तो आप है ही. बुरा मत मानीएगा. आप प्लीज़ अब तो चाय पी कर ही जाइए.""चाय, लेकिन बनाएगा कौन ?""मैं जो हूँ, कम से कम चाय तो बना ही सकता हूँ."
वो हस्ते हुए बोली, "ठीक है, बनाइए." मैने हवा में हिलते दरवाज़े को हल्के हल्के बंद कर दिया. और उसका ध्यान हटाने के लिए कहा, "आप प्लीज़ वहाँ सोफे पर बैठ जाइए. टीवी ओं कर लीजिए." किचन में जा कर मैने छाई के लिए बर्तन गॅस पर रखा और पानी डाला, गॅस ओं किया, फ्रिड्ज से दूध निकाला और दूध थोड़ा सा पानी में मिलाया. मैं चाइ के उबलने का वेट कर रहा था. इधर मेरा लंड उबाल रहा था. इतनी सुंदर औरत पास बैठी थी और मुझे पता नहीं था कैसे आगे बढ़ूँ. तभी वो पीछे से आई और बोली, "क्या मैं आपकी कुछ मदद करूँ?" मैने जवाब दिया, "बस देख लीजिए, कि चाइ ठीक बन रही है या नहीं." मैने अब और हिम्मत कर के कहा, "प्रतिमा जी, आप वाकई में बहुत सुंदर हैं. और बहुत अच्छी भी. आपके पति बहुत ही खुशनसीब इंसान हैं.""आप प्लीज़ बार बार ऐसे ना कहिए. और मुझे प्रतिमा क्यों कह रहे हैं. मैं तो आपसे छ्होटी हूँ." दोस्तों यह हिंट काफ़ी था मेरे लिए. क्योकि अगर औरत नहीं चाहे तो उसे चोद्ना बड़ा मुश्किल है. आख़िर हमे रेप तो करने नहीं है. मैं समझ गया, यह अब चुद्वाने के लिए तैयार है. "ठीक है, प्रतिमा जी नहीं. प्रतिमा. तुम कितनी सुंदर हो, मैं बताउ?""कहा तो है आपने कई बार. अब भी बताना बाकी है?""बाकी तो है." यह कह कर मैने गॅस बंद किया. "बस एक बार अपनी आखें बंद करो.. प्लीज़." उसने आखें बंद की. मैने कहा, "आँखें बंद ही रखना." और मैने उसको एल्बो के पास से पकड़ कर आहिस्ते आहिस्ते कमरे में लाया.
हल्क से मैने उसके गुलाबी गुलाबी नर्म नर्म होठों पर अपने होठ रख दिए. एक बिजली सी दौर गयी मेरे शरीर में. लंड एकदम तन गया और पॅंट से बाहर आने के लिए तड़पने लगा. उसने तुरंत आखें खोली और अवाक सी मुझे देखती रही. और दोस्तों कस कर और शर्मा कर मेरी बाहों में आ गयी. मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा. कस कर मैने उसे अपनी बाहों में दबोच लिया. ऐसा लग रहा था बस यो ही पकड़े रहूं. फिर मैने सोचा कि अब समय नहीं वेस्ट करना चाहिए. पका हुआ फल है, बस खा लो. तुरंत बाहों में मैने उसे उठाया (बहुत ही हल्की थी) और बेडरूम में ला कर बिस्तर पर लिटाया. उसने आँखें बंद कर रखी थी. बहुत शर्मा रही थी बेचारी. सारी पहने हुए बिस्तर पर लेटी हुई शरमाती हुई आँखें बंद किए हुए ब्लाउस से बूब्स उपर नीचे होते हुए देख कर मैं पागल हो गया. आहिस्ते से सारी को एक तरफ कर मैने उसकी दाहिनी चुचि को उपर से ही दबाया. एक सिहरन सी दौर गयी उसके शरीर में. बंद आँखों से ही बोली, "प्लीज़ विजय साहब, जल्दी से ! कोई आ नहीं जाए.""घबराओ नहीं, प्रतिमा डार्लिंग. बस मज़ा लेती रहो. आज मैं तुम्हे दिखला दूँगा प्यार किसे कहते हैं. खूब चोदुन्गा मेरी रानी." मैं एकदम फॉर्म में था. यह कहते हुए मैने उसकी चुचियों हो खूब दबाया और होठों को कस कस कर चूसने लगा. फिर मैने कहा, "चुड़वावगी ना." आहा, ग़ज़ब की शरमाते हुए बोली, "विजय साहब, आप भी... बहुत पाजी हैं."
"प्रतिं रानी, सेक्स में क्या शरमाना." और उसके नर्म नर्म गालों को हाथ में ले कर होठों का खूब रास्पान किया. मैं उसके उपर चढ़ा हुआ था और मेरा लंड उसके चूत के उपर था. चूत मुझे महसूस हो रही थी. और उसकी चुचियाँ... ग़ज़ब की तनी हुई... मेरे सीने में चुभ चुभ कर बहुत ही आनंद दे रही थी. दाहिने हाथ से अब मैने उसकी लेफ्ट चुचि को खूब दबाया और एग्ज़ाइट्मेंट मैं ब्लाउस के नीचे हाथ घुसा कर उसे पकड़ना चाहा. "विजय, ब्लाउस खोल दो ना." उसका यह कहना था और मैने तुरंत उसे घुमा कर ब्लाउस के बटन्स खोले और साथ ही साथ ब्रा का हुक खोला और पीछे से ही हाथ को ब्रा के नीचे से उसके बूब्स का पूरा समेट लिया. आहा, क्या फीलिंग थी, सख़्त और नर्म दोनो, गर्म मानों आग हो. निपल्स एकदम तने हुए. जल्दी जल्दी ब्लाउस और ब्रा को हटाया. सारी को परे किया और पेटिकोट के नारे को खोल कर उसे हटाया. पिंक पॅंटी पहने हुए नंगी लेटी हुई देख कर तो मैं बर्दाश्त ही नहीं कर सका. शर्मा कर उसने अपने बूब्स को छिपाने की कोशिश की और टाँगों को क्रॉस कर के चूत को भी छिपाया. मैने अब अपने कपड़े जल्दी जल्दी उतारे. लंड तन कर बाहर आ गया और उपर की तरफ हो कर तड़पने लगा. उसका एक हाथ ले कर मैने अपने फड़कते हुए लंड पर रख दिया. "उफ़ कितना बड़ा और मोटा है", वो बोली. और आहिस्ता आहिस्ता लंड को आगे पीछे हिलाने लगी. शादी शुदा औरत को चोद्ने का यहीं मज़ा है. कुछ सिखाना नहीं पड़ता. वो सब जानती हैं. और अगर महीने का ठीक दिन हो तो कॉंडम की भी ज़रूरत नहीं. मैने आख़िर पूछ ही लिया, "प्रतिं डार्लिंग, कॉंडम लगाऊं?" मूह हिलाते हुए मना करते हुए हस्ते हुए खिलखिलाई, "सब ठीक है. अभी मेनास हुआ ही था." मैने अब उसके बदन से उस पिंक पॅंटी को हटाया और इतमीनान से उसकी चूत को निहारा. हल्के हल्के बॉल थे. बीच में सुंदर सा छ्होटा सा कट. कुछ फूला हुआ था. हाथ मैने उसके उपर रखे और हल्के से दबाया. उंगली ऐसे घुसी जैसे माखन मे छुरी. रस बह रहा था और चूत एकदम गीली थी. डिस्क्रिप्षन के बाहर है. मैं जैसे सब कुछ एक साथ कर रहा था. कभी उसके होठों को चूस्ता, चुचियों को दबाता कभी एक हाथ से कभी दोनों से. एकदम टाइट गोल और तनी हुई चुचियाँ. उसके सोने जैसे बदन पर कभी हाथ फिरता. फिर मैने उसकी चुचियों को खूब चूसा और उंगलियों से उसकी बुर में खूब अंदर बाहर कर हिलाया. "प्रतिमा, अब मैं नहीं रह सकता, अब तो चोद्ना ही पड़ेगा. कस कस कर चोदुन्गा मेरी रानी." पहली बार उसके मूह से अब सुना, "चोद दीजिए ना विजय साहब, बस चोद दीजिए." मज़ा लेते हुए मैने पूछा, "क्या चोदू जाने मन. एक बार फिर से कहो ना. तुम्हारे मूह से सुनने में कितना अच्छा लग रहा है.""अब चोदिये ना... इस... इस चूत को."
"चूत नहीं, बुर मेरी रानी, बुर. ज़्यादा अच्छा लगता है सुनने में. अब मैं तेरी गरम गरम और गुलाबी गुलाबी बुर में अपना ये लंड घुसाऊंगा और कस कस कर चोदुन्गा." मैने अपना लंड उसके बुर के मूह पर रखा और हल्के से धक्का दिया. उसने अपने हाथों से मेरे लंड को पकड़ा, और गाइड करती हुई अपनी चूत में डाल दिया. दोस्तों मानों मैं जन्नत में आ गया. मैं बोल ही उठा, "उफ़, क्या बुर है प्रती. मज़ा आ गया." अब उसने भी एग्ज़ाइट हो कर बगैर झिझके कहा, "चोद दो विजय बस अब इस बुर को खूब चोदो." दोस्तों चुचियाँ दबाते हुए, होठ चूस्ते हुए ज़ोर से ज़ोर चोद चोद कर ऐसा मज़ा मिल रहा था कि पता ही नहीं चला कब मैं झार गया. झरते झरते भी मैं उसे बस चोद्ता ही रहा चोद्ता ही रहा. "प्रतिमा, बहुत टेस्टी चुदाई थी यार. तुम तो ग़ज़ब की चीज़ हो." "मुझे भी बहुत मज़ा आया, विजय साहब." वो कस मुझे पकड़ते हुए बोली. उसकी चुचियाँ मेरे सीने से लग कर एक अलग ही आनंद दे रही थी. दोस्तों, हमने फिर १०मिनिट बाद, पहले तो उसकी बुर को चॅटा और उसने मेरे लंड को चूसा हल्के हल्के. और फिर हम ने कस कस कर चुदाई की. और इस बार झरने में काफ़ी समय भी लगा. मैने शायद उसकी चुचियाँ और बुर और होठ और गाल के किसी भी अंग को चूसे बगैर नहीं छोड़ा. इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया था. बस ग़ज़ब की चीज़ थी वो. कपड़े पहनने के बाद मैने उसे रुपये दिए जो कि उसने ना ना करते हुए शरमाते हुए ले लिए. और मैने पूछा, "प्रातीमा, अब तो तुम्हे और कई बार चोद्ना पड़ेगा. अपने इस प्यारी सी चूत और प्यारी प्यारी चुचियों और प्यारे प्यारे होठों और प्यारी प्यारी प्रातीमा डार्लिंग के दर्शन कर्वओगि ना?" मैने उसका फोन नंबर ले लिया और कह दिया कि मैं बता दूँगा जिस दिन कोई घर पर नहीं होगा. अब वो मुझसे फ्री हो गयी थी, बोली, "विजय, डॉन'ट वरी, होटेल में चुद, चुद, वाएँगे." चूमते हुए मैने उसे भेजा.
समाप्त
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"जी, जॉब तो जॉब ही है ना.""तो आप शादी शुदा हो कर (उसके माथे पर सिंदूर था) भी जॉब कर रही हैं ?"अब वो भी थोड़ी सी खुल सी गयी. बोली, "क्यों, शादी शुदा औरत जॉब नहीं कर सकती?""जी यह बात नहीं, घर घर जाना, जाने किस घर में कैसे लोग मिल जाएँ?"उसने जवाब दिया, "वैसे तो दिन के वक़्त ज़्यादातर हाउसवाइफ ही मिलती है. कभी कभी ही कोई मेल मेंबर होता है.""तो आपको डर नहीं लगता.""जी अभी तक तो नहीं लगा. फिर आप जैसे शरीफ आदमी मिल जाए तो क्या डर ?" शरीफ आदमी एक बार तो सुन कर अजीब लगा. इसे क्या मालूम मैं इसे किस नज़र से देख रहा था. सारी पर ब्लाउस तनी हुई थे और मेरे लंड को खुजली सी होने लगी. जी चाह रहा था की काश सिर्फ़ एक बार चूम सकता और ब्लाउस के नीचे उन चुचियों को दबा सकता. हाथों की उंगलियाँ लंबी लंबी मुलायम सी. देख देख कर लंड महाराज खरे ही हो गये. मन में ज़ोरों से ख़याल आ रहा था , क्या ग़ज़ब की अप्सरा है. इसकी तो चूत को हाथ लगाते ही शायद हाथ जल जाएगा. तभी वो बोली, "अच्छा, थॅंक्स फॉर एवेरितिंग. मैं चलती हूँ." मानो पहाड़ टूट गया मेरे उपर. चली जाएगी तो हाथ से निकल ही जाएगी. अर्रे विजय साहब, हिम्मत करो, आगे बढ़ो, कुछ बोलो ताकि रुक जाए. इसकी बुर में अपना लंड नहीं डालना है क्या? बुर में लंड? इस ख़याल ने बड़ी हिम्मत दी. "माफ़ कीजिएगा, अगर आप बुरा ना माने तो अपना नाम तो बता दीजिए?" मैने डरते हुए कहा. कोयल सी आवाज़ में बोली, "इसमे बुरा मानने की क्या बात है. प्रतिमा. प्रतिमा स्रिवास्तवा.""प्रतिमजी, आप जैसी सुंदर औरत को थोड़ा केर्फुल रहनाचाहिए.""सुंदर?" मैं थोड़ा सा घबराया, लेकिन फिर हिम्मत कर बोला, "जी, सुंदर तो आप है ही. बुरा मत मानीएगा. आप प्लीज़ अब तो चाय पी कर ही जाइए.""चाय, लेकिन बनाएगा कौन ?""मैं जो हूँ, कम से कम चाय तो बना ही सकता हूँ."
वो हस्ते हुए बोली, "ठीक है, बनाइए." मैने हवा में हिलते दरवाज़े को हल्के हल्के बंद कर दिया. और उसका ध्यान हटाने के लिए कहा, "आप प्लीज़ वहाँ सोफे पर बैठ जाइए. टीवी ओं कर लीजिए." किचन में जा कर मैने छाई के लिए बर्तन गॅस पर रखा और पानी डाला, गॅस ओं किया, फ्रिड्ज से दूध निकाला और दूध थोड़ा सा पानी में मिलाया. मैं चाइ के उबलने का वेट कर रहा था. इधर मेरा लंड उबाल रहा था. इतनी सुंदर औरत पास बैठी थी और मुझे पता नहीं था कैसे आगे बढ़ूँ. तभी वो पीछे से आई और बोली, "क्या मैं आपकी कुछ मदद करूँ?" मैने जवाब दिया, "बस देख लीजिए, कि चाइ ठीक बन रही है या नहीं." मैने अब और हिम्मत कर के कहा, "प्रतिमा जी, आप वाकई में बहुत सुंदर हैं. और बहुत अच्छी भी. आपके पति बहुत ही खुशनसीब इंसान हैं.""आप प्लीज़ बार बार ऐसे ना कहिए. और मुझे प्रतिमा क्यों कह रहे हैं. मैं तो आपसे छ्होटी हूँ." दोस्तों यह हिंट काफ़ी था मेरे लिए. क्योकि अगर औरत नहीं चाहे तो उसे चोद्ना बड़ा मुश्किल है. आख़िर हमे रेप तो करने नहीं है. मैं समझ गया, यह अब चुद्वाने के लिए तैयार है. "ठीक है, प्रतिमा जी नहीं. प्रतिमा. तुम कितनी सुंदर हो, मैं बताउ?""कहा तो है आपने कई बार. अब भी बताना बाकी है?""बाकी तो है." यह कह कर मैने गॅस बंद किया. "बस एक बार अपनी आखें बंद करो.. प्लीज़." उसने आखें बंद की. मैने कहा, "आँखें बंद ही रखना." और मैने उसको एल्बो के पास से पकड़ कर आहिस्ते आहिस्ते कमरे में लाया.
हल्क से मैने उसके गुलाबी गुलाबी नर्म नर्म होठों पर अपने होठ रख दिए. एक बिजली सी दौर गयी मेरे शरीर में. लंड एकदम तन गया और पॅंट से बाहर आने के लिए तड़पने लगा. उसने तुरंत आखें खोली और अवाक सी मुझे देखती रही. और दोस्तों कस कर और शर्मा कर मेरी बाहों में आ गयी. मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा. कस कर मैने उसे अपनी बाहों में दबोच लिया. ऐसा लग रहा था बस यो ही पकड़े रहूं. फिर मैने सोचा कि अब समय नहीं वेस्ट करना चाहिए. पका हुआ फल है, बस खा लो. तुरंत बाहों में मैने उसे उठाया (बहुत ही हल्की थी) और बेडरूम में ला कर बिस्तर पर लिटाया. उसने आँखें बंद कर रखी थी. बहुत शर्मा रही थी बेचारी. सारी पहने हुए बिस्तर पर लेटी हुई शरमाती हुई आँखें बंद किए हुए ब्लाउस से बूब्स उपर नीचे होते हुए देख कर मैं पागल हो गया. आहिस्ते से सारी को एक तरफ कर मैने उसकी दाहिनी चुचि को उपर से ही दबाया. एक सिहरन सी दौर गयी उसके शरीर में. बंद आँखों से ही बोली, "प्लीज़ विजय साहब, जल्दी से ! कोई आ नहीं जाए.""घबराओ नहीं, प्रतिमा डार्लिंग. बस मज़ा लेती रहो. आज मैं तुम्हे दिखला दूँगा प्यार किसे कहते हैं. खूब चोदुन्गा मेरी रानी." मैं एकदम फॉर्म में था. यह कहते हुए मैने उसकी चुचियों हो खूब दबाया और होठों को कस कस कर चूसने लगा. फिर मैने कहा, "चुड़वावगी ना." आहा, ग़ज़ब की शरमाते हुए बोली, "विजय साहब, आप भी... बहुत पाजी हैं."
"प्रतिं रानी, सेक्स में क्या शरमाना." और उसके नर्म नर्म गालों को हाथ में ले कर होठों का खूब रास्पान किया. मैं उसके उपर चढ़ा हुआ था और मेरा लंड उसके चूत के उपर था. चूत मुझे महसूस हो रही थी. और उसकी चुचियाँ... ग़ज़ब की तनी हुई... मेरे सीने में चुभ चुभ कर बहुत ही आनंद दे रही थी. दाहिने हाथ से अब मैने उसकी लेफ्ट चुचि को खूब दबाया और एग्ज़ाइट्मेंट मैं ब्लाउस के नीचे हाथ घुसा कर उसे पकड़ना चाहा. "विजय, ब्लाउस खोल दो ना." उसका यह कहना था और मैने तुरंत उसे घुमा कर ब्लाउस के बटन्स खोले और साथ ही साथ ब्रा का हुक खोला और पीछे से ही हाथ को ब्रा के नीचे से उसके बूब्स का पूरा समेट लिया. आहा, क्या फीलिंग थी, सख़्त और नर्म दोनो, गर्म मानों आग हो. निपल्स एकदम तने हुए. जल्दी जल्दी ब्लाउस और ब्रा को हटाया. सारी को परे किया और पेटिकोट के नारे को खोल कर उसे हटाया. पिंक पॅंटी पहने हुए नंगी लेटी हुई देख कर तो मैं बर्दाश्त ही नहीं कर सका. शर्मा कर उसने अपने बूब्स को छिपाने की कोशिश की और टाँगों को क्रॉस कर के चूत को भी छिपाया. मैने अब अपने कपड़े जल्दी जल्दी उतारे. लंड तन कर बाहर आ गया और उपर की तरफ हो कर तड़पने लगा. उसका एक हाथ ले कर मैने अपने फड़कते हुए लंड पर रख दिया. "उफ़ कितना बड़ा और मोटा है", वो बोली. और आहिस्ता आहिस्ता लंड को आगे पीछे हिलाने लगी. शादी शुदा औरत को चोद्ने का यहीं मज़ा है. कुछ सिखाना नहीं पड़ता. वो सब जानती हैं. और अगर महीने का ठीक दिन हो तो कॉंडम की भी ज़रूरत नहीं. मैने आख़िर पूछ ही लिया, "प्रतिं डार्लिंग, कॉंडम लगाऊं?" मूह हिलाते हुए मना करते हुए हस्ते हुए खिलखिलाई, "सब ठीक है. अभी मेनास हुआ ही था." मैने अब उसके बदन से उस पिंक पॅंटी को हटाया और इतमीनान से उसकी चूत को निहारा. हल्के हल्के बॉल थे. बीच में सुंदर सा छ्होटा सा कट. कुछ फूला हुआ था. हाथ मैने उसके उपर रखे और हल्के से दबाया. उंगली ऐसे घुसी जैसे माखन मे छुरी. रस बह रहा था और चूत एकदम गीली थी. डिस्क्रिप्षन के बाहर है. मैं जैसे सब कुछ एक साथ कर रहा था. कभी उसके होठों को चूस्ता, चुचियों को दबाता कभी एक हाथ से कभी दोनों से. एकदम टाइट गोल और तनी हुई चुचियाँ. उसके सोने जैसे बदन पर कभी हाथ फिरता. फिर मैने उसकी चुचियों को खूब चूसा और उंगलियों से उसकी बुर में खूब अंदर बाहर कर हिलाया. "प्रतिमा, अब मैं नहीं रह सकता, अब तो चोद्ना ही पड़ेगा. कस कस कर चोदुन्गा मेरी रानी." पहली बार उसके मूह से अब सुना, "चोद दीजिए ना विजय साहब, बस चोद दीजिए." मज़ा लेते हुए मैने पूछा, "क्या चोदू जाने मन. एक बार फिर से कहो ना. तुम्हारे मूह से सुनने में कितना अच्छा लग रहा है.""अब चोदिये ना... इस... इस चूत को."
"चूत नहीं, बुर मेरी रानी, बुर. ज़्यादा अच्छा लगता है सुनने में. अब मैं तेरी गरम गरम और गुलाबी गुलाबी बुर में अपना ये लंड घुसाऊंगा और कस कस कर चोदुन्गा." मैने अपना लंड उसके बुर के मूह पर रखा और हल्के से धक्का दिया. उसने अपने हाथों से मेरे लंड को पकड़ा, और गाइड करती हुई अपनी चूत में डाल दिया. दोस्तों मानों मैं जन्नत में आ गया. मैं बोल ही उठा, "उफ़, क्या बुर है प्रती. मज़ा आ गया." अब उसने भी एग्ज़ाइट हो कर बगैर झिझके कहा, "चोद दो विजय बस अब इस बुर को खूब चोदो." दोस्तों चुचियाँ दबाते हुए, होठ चूस्ते हुए ज़ोर से ज़ोर चोद चोद कर ऐसा मज़ा मिल रहा था कि पता ही नहीं चला कब मैं झार गया. झरते झरते भी मैं उसे बस चोद्ता ही रहा चोद्ता ही रहा. "प्रतिमा, बहुत टेस्टी चुदाई थी यार. तुम तो ग़ज़ब की चीज़ हो." "मुझे भी बहुत मज़ा आया, विजय साहब." वो कस मुझे पकड़ते हुए बोली. उसकी चुचियाँ मेरे सीने से लग कर एक अलग ही आनंद दे रही थी. दोस्तों, हमने फिर १०मिनिट बाद, पहले तो उसकी बुर को चॅटा और उसने मेरे लंड को चूसा हल्के हल्के. और फिर हम ने कस कस कर चुदाई की. और इस बार झरने में काफ़ी समय भी लगा. मैने शायद उसकी चुचियाँ और बुर और होठ और गाल के किसी भी अंग को चूसे बगैर नहीं छोड़ा. इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया था. बस ग़ज़ब की चीज़ थी वो. कपड़े पहनने के बाद मैने उसे रुपये दिए जो कि उसने ना ना करते हुए शरमाते हुए ले लिए. और मैने पूछा, "प्रातीमा, अब तो तुम्हे और कई बार चोद्ना पड़ेगा. अपने इस प्यारी सी चूत और प्यारी प्यारी चुचियों और प्यारे प्यारे होठों और प्यारी प्यारी प्रातीमा डार्लिंग के दर्शन कर्वओगि ना?" मैने उसका फोन नंबर ले लिया और कह दिया कि मैं बता दूँगा जिस दिन कोई घर पर नहीं होगा. अब वो मुझसे फ्री हो गयी थी, बोली, "विजय, डॉन'ट वरी, होटेल में चुद, चुद, वाएँगे." चूमते हुए मैने उसे भेजा.
समाप्त
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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