Monday, November 8, 2010

हिंदी सेक्सी कहानियाँ मेरा प्रेमी-1

हिंदी सेक्सी कहानियाँ
मेरा प्रेमी-1
इस वक्त मेरी उम्र पच्चीस साल है, मैं विवाहित और एक बच्चे की माँ हूँ।
मेरे पति एक फेक्ट्री में सुपरवाइजर हैं। जब मेरी शादी हुई तब मेरी उम्र
बीस साल थी, मैं यह शादी नहीं करना चाहती थी क्योंकि उस समय अपने एक
दोस्त के साथ मेरा लव अफेयर चल रहा था, वो बहुत रोमांटिक और दिलफेंक युवक
था, कभी कभी तो उसकी इस आदत का मुझ पर गहरा असर पड़ता, जहां भी किसी
लड़की को अपने करीब पाता उसे वो अपनी मीठी मीठी बातों से फंसाने की कोशिश
करता। बस मैं उसकी इसी बात का बुरा मान जाती, कई कई दिन तक मैं उससे बात
नहीं करती थी, वो तरह तरह से मुझे मनाने की कोशिश करता तो मैं मान भी
जाती थी। उसका और मेरा प्यार अभी तक शारीरिक सम्बंधों के बन्धन से दूर
था, ऐसा नहीं था कि उसने अपनी इच्छा जाहिर नहीं की थी, वो कई बार मुझे
चोदने की कोशिश कर चुका था, उसने कई बार मुझे सहला सहला कर गर्म भी कर
दिया था, चूचियाँ दबा दबा कर उनमें आग भी भर दी थी मगर मैं अपनी
मर्यादाओं की सीमा नहीं लांघना चाहती थी, मेरा इस बात पर अटूट विश्वास था
कि चूत की सील सिर्फ पति तोड़ सकता है क्योंकि उस पर उसी का हक होता है।
ऐसा भी नहीं था कि मेरा प्रेमी मुझसे शादी नहीं करना चाहता था, सब कुछ
ठीक था मगर मैं शादी से पहले चुदवा कर सुहागरात का मजा फीका नहीं करना
चाहती थी, मेरा प्रेमी कई बार गुस्से से कहता कि मैं उससे प्यार नहीं
करती। उसने शादी का वादा किया, कसमें खाई, मगर मेरा एक ही जवाब था कि अगर
कुछ होगा तो शादी के बाद ही होगा। मैंने उसे साफ साफ जवाब दे दिया कि मैं
शादी से पहले वो चीज हरगिज नहीं दे सकती जिसकी वो जिद कर रहा है। मगर वो
चालू था, उसने कई बार चाहा कि मैं बहक जाऊं और बहक कर उसकी बात मान लूँ।
एक दिन वो मुझे एकांत में ले गया, वहाँ ले जाकर उसने मुझे सहलाना शुरू कर
दिया, वो ऐसा कई बार कर चुका था इसलिए इस ओर मैंने कोई ज्यादा ध्यान नहीं
दिया। वो जब भी ऐसा करता तो मैं काफी गर्म हो जाती थी मगर संयम का दामन
मेरे हाथ से नहीं छूटता था, मगर उस दिन मैं अपने आप को नहीं रोक सकी। वो
मेरी दोनों चूचियों पर हथेली चला रहा था और मैं हमेशा की तरह आँखें मूंदे
उसकी इस हरकत का मजा ले रही थी। तभी उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने खड़े
लंड को मेरे हाथ में पकड़ा दिया। उसका लंड काफी लंबा और मोटा था, इतना ही
नहीं, वो आग की तरह जल भी रहा था। जब मैंने आँखें खोल कर अपने हाथ की तरफ
देखा तो मैं चौंक पड़ी," उफ क्या है यह?" मैंने उसका लंड हाथ से छोड़
दिया तो वो सांप के फन की तरह फुंफकार उठा, मेरा रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया
था उस समय। मैं अच्छी तरह जानती थी कि यह लंड है मगर मैंने हर लड़की की
तरह मासूमियत दिखाते हुए यह सवाल पूछा था। हाथ से छूटते ही लंड एक तोप की
तरह उपर उठा और सीधा हो गया, मैं अपनी पलकें झपका झपका कर उसे देख रही
थी। मेरी मासूमियत देख कर मेरे प्रेमी के होंठों की मुस्कान गहरी हो गई।
इसे नहीं जानती, क्या है यह ? उसने अपना अकड़ता हुआ लंड अपने हाथ से पकड़
कर हिलाते हुए कहा। नहीं….क्या है यह? मैंने कहा। हाय तुम्हारी इसी
मासूमियत पर तो हम फ़िदा हैं ! वो फिर से मेरी चूचियाँ दबाता हुए बोला-
खैर अब मैं ही बता देता हूँ कि यह क्या चीज है ! फिर वो अपने खड़े लंड को
हाथ से इधर उधर घुमा कर देखता हुआ बोला- वैसे तो इसे कई नामों से पुकारा
जाता है, मगर मैं इसे कुछ और ही समझता हूँ। क्या समझते हो तुम इसे? उसके
मोटे और लम्बे लंड का सम्मोहन मेरे दिलो-दिमाग पर छाता जा रहा था, उसने
अपना लंड क्या दिखाया कि उस पर से मेरी नजर हट ही नहीं रही थी। मैं यहाँ
झूठ नहीं लिखूंगी, प्रेमी का कठोर विशाल, फुंफकारता लंड देख कर मेरी
तबियत ऐसी फिसली कि मेरी चूत के मुँह में पानी भर आया, मेरी चूत पूरी
गीली हो गई और लगा कि अन्दर चीटियाँ रेंग रही हैं। मेरी चूचियों में भी
कुलबुलाहट शुरू हो गई थी, मेरा मन यही चाह रहा था कि वो मेरी चूचियों को
हाथ से पकड़-पकड़ कर खूब मसले और दबाये। उस समय मेरी मस्ती परवान चढ़ी
हुई थी, मैंने आँखें मूंद ली थी और वो कपड़े के ऊपर से ही मेरी चूचियों
को दबाये जा रहा था। उस समय सी….सी के सिवा मेरे मुँह से कुछ और नहीं
निकल पा रहा था। सच कहती हूँ, उस दिन मैं मर्यादाओं को भुला बैठी, मेरा
सुहागरात वाला इरादा तो ताश के पतों की तरह बिखर गया। बस सब कुछ भूल कर
दिल चाह रहा था कि लंड को अपने होंठों के बीच दबा कर खूब चूसूँ ! उसका
लंड सचमुच मुझे बहुत अलबेला लग रहा था, जैसा वो खुद गोरा था वैसा ही गोरा
उसका बमपिलाट हथियार भी था। ताज्जुब की बात तो यह थी कि ऐसा ना तो मैंने
सोचा था और ना ही कभी किया था, हाँ मगर सुहागरात वाले सपने की यह एक कड़ी
जरूर थी। उस समय मैं पूरी तरह से पागल हो चुकी थी, लंड मेरी आँखों के
सामने बार बार फुंफकार मार रहा था, तभी उसने मेरी बात का जवाब दिया तो
मेरी चेतना लौटी। इसे मैं अपना छोटा भाई समझता हूँ ! वो अपना लंड बड़ी
मस्ती और कामुकता से सहलाता हुआ बोला। मेरी नजरें अब भी उसके उछलते लंड
पर अटकी हुई थी। तुम इसे बहुत गौर से देख रही हो ? वो मुझे अपने लंड को
देखता पाकर बोला। हूँ ! शायद इसलिए कि इसे मैंने पहली बार देखा है !
मैंने अपने सूखे गले को थूक से तर करते हुए कहा। इससे तो मैं तुम्हारी
पहचान बहुत पहले ही करवा देता मगर तुम तैयार ही कहाँ होती थी ? उसने अपनी
चमकदार आँखों से मेरी तरफ देख कर कहा। मैंने इसकी कोई खास जरूरत नहीं
समझी थी- मैंने दिल की बात छुपाते हुए कहा। तुम्हें कैसा दीखता है यह?
उसने पूछा। उसकी बात सुन कर मुझे मजाक सूझा तो मैंने कहा- हूँ… देख रही
हूँ कि इसकी सूरत तुमसे बहुत मिल रही है इसमें कोई शक नहीं कि यह
तुम्हारा छोटा भाई है ! मेरी बात सुन कर वो बड़ी जोर से हंसा, वो समझ गया
कि मैं मजाक में लंड और उसकी सूरत में तालमेल बिठा रही हूँ। इसका जादू
निराला है। वो बोला और अपने हाथों से लंड को सहलाने लगा। अच्छा तो क्या
यह जादूगर भी है? मैंने हैरान होकर पूछा। इसका जादू देखना चाहती हो? उसने
पूछा। हूँ ! मगर उलटी सीधी बात नहीं होनी चाहिए। नहीं तुम्हारी मरजी के
बिना यह कोई भी उलटी सीधी बात नहीं करेगा। ठीक है, तब तो मैं इसका जादू
जरूर देखना चाहूंगी। अब मेरी चूत में बुरी तरह कुलबुलाहट होने लगी थी।
मेरे प्रेमी ने मचल कर मुझसे कहा- मधु, यह कमीज अपने बदन से उतार दो !
मोहन डीयर ! तुम्हीं क्यों नहीं उतार देते? मैंने मचल कर कहा। बटन खोलना
है, तुम खोल दो फिर मैं ही उतार दूंगा। वो हंसते हुए बोला। बस क्या था,
मुझ पर तो अब वासना का भूत सवार हो चुका था, मैं धीरे धीरे मदहोश होती जा
रही थी, चूत अन्दर से पूरी तरह रसीली हो गई थी, मैंने तुंरत अपनी कमीज के
बटनों को एक एक कर खोल दिया और बोली- लो खोल दिए बटन ! तुम इसे मेरे बदन
से निकाल दो ! बांह में से तो तुम्हीं को निकालना है ! मैं बांह से निकाल
दूंगी तो तुम क्या करोगे ? यही तो जादू है, देखना कैसा जादू करता हूँ। और
जैसे ही मैं अपनी कमीज को हाथ ऊपर कर निकालने लगी उसने तुंरत मेरी ब्रा
के हुक को खोल दिया, मेरी दोनों चूचियाँ नंगी हो गई, उसने अपने दोनों
हाथों से मेरी नंगी चूचियों को पकड़ कर कस कर मसला तो मैं सिसकारने लगी।
जीवन में पहली बार किसी युवक ने मेरी नंगी चूचियों को हाथ में लिया था,
मेरा गनगना उठना स्वाभाविक था, सारे बदन का रोम-रोम मरमरा उठा। मेरी
दोनों चूचियां हमेशा की तरह अपनी औकात से ज्यादा फ़ूल उठी थी, उस समय
मेरी चूत भी गीली हो रही थी। ऐसा तभी होता था जब मोहन मेरी भावनाओं से
खेलता था, वैसे सुबह सुबह भी चूचियाँ फ़ूल जाती थी, पहले तो उसने मेरी
चूचियों को दबाना शुरू किया और मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया और
मुझसे बोला- जैसा दिल चाहे इस लंड के साथ वैसा ही व्यव्हार करो ! मैंने
उसके बमापिलाट लंड को दबाना और सहलाना शरू कर दिया, शरीर में उसको छूने
के कारण गुदगुदी हो रही थी। जब मैंने उसका लंड पकड़ा तो मेरी चूत पहले से
ज्यादा फ़ूल कर फुदफ़ुदाने लगी, ऐसा लग रहा था जैसे वो परदे से बाहर निकल
कर लंड से पहली मुलाक़ात कर लेना चाहती हो। सलवार के अन्दर वो पिंजरे में
बन्द चिड़िया की तरह फुदकने लगी, मैं अपने प्रेमी मोहन का एकदम बमपिलाट
कड़ा लंड उत्साह के साथ सहलाने लगी, मेरा सारा शरीर कसमसाने लगा। फिर
मेरा प्रेमी मेरी चूचियों के निप्पल को होंठों के बीच दबा कर चूसने लगा,
उसकी इस नई हरकत से मेरा सारा शरीर मस्ती से काँपने लगा, मुझ पर वासना
पूरी तरह सवार हो गई। उसने अपने होंठों के जादू से मेरी चूचियों के
निप्पल नुकीले बना दिये। कैसा लग रहा है? उसने पूछा। सी…. पता नहीं है……
पता नहीं मुझे क्या हो रहा है…….एक अजीब सा नशा मुझ पर छाता जा रहा है…..
अभी मैं नया जादू शुरू करता हूँ…… तुम नीचे अपने घुटनों पर खड़ी हो जाओ,
इससे तुम्हें एक नया अनुभव मिलेगा ! मोहन ने मुझसे कहा। मैं नीचे घुटनों
पर खड़ी हो गई, मोहन ने अपना लंड पकडा और मेरी चूचियों पर अपने लंड का
सुपारा रगड़ना शुरू कर दिया, उसने सच कहा था कि उसके लंड में अजीब सा
जादू भरा था, मेरा सारा शरीर झनझना उठा, पहली बार दिल में एक इच्छा जागी
कि उसके लंड की छाँव तले सो जाऊं और सारी उम्र नहीं जागूँ। मैं एक अजीब
सी दुनिया में खो चुकी थी जहां हर तरफ मस्ती और खुशी का बोल-बाला था। अब
कैसा लग रहा है ? उसने एक बार फिर पूछा। सी…. कुछ ना कहो……. कुछ ना
पूछो….. ! मैंने कसमसा कर कहा- बस इसे ऐसे ही मेरे दिल से रगड़ते रहो।
फिर उसने अपना लंड ठीक मेरी चूचियों के बीच में रख कर उन्हें आपस में सटा
दिया, चूचियों के आपस में सट जाने से बीच में एक पतली सी गली बन गई थी,
उसी गली में लंड फंसा था, बड़ा ही मजेदार नजारा था, मैंने उसे पूरा सहयोग
करने का मन बना लिया था, फिर वो मेरी चूचियों पर धक्के लगाने लगा, उसके
लंड के सुपारे से कोई चिकनी सी चीज रिस रही थी, जिसकी वजह से चूचियों के
बीच बनी उस पतली गली का रास्ता चिकना हो गया था। मोहन अब उस पतली गली में
आसानी से अपने लंड को घुमा रहा था, वो अपने लंड को ऊपर-नीचे कर धक्के लगा
रहा था और उसका लंड चूचियों के बीच से अपनी मुंडी निकाल कर बार बार मुझे
देख रहा था। उस समय मैं पूरी तरह बावली सी हो गई, इधर चूत के अन्दर गर्मी
कुछ इस तरह बढ़ी कि मैंने हथियार डाल दिये। सी…बस…बस….मैं हार गई ! मैंने
तड़प कर कहा- अब तुम इसका जादू यहाँ पर दिखाओ। मैंने अपनी चूत की तरफ
इशारा किया और उठ कर जल्दी से अपनी सलवार खोल डाली। ठीक है ! वो मेरी
जाँघों के बिच देखते हुए बोला- यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो अपना काम तो
सेवा करना ही है। मैं सलवार उतार कर लेट गई, उसने मेरी जांघें फैला दी और
मुस्कुराता हुआ बड़े प्यार से मेरी चूत को सहलाने लगा, इससे मैं और भी
ज्यादा खौल उठी। सीऽऽ जल्दी आओ ना ! मैंने अपने हाथ से अपनी चूत को
रगड़ते हुए कहा- यहाँ…..यहाँ….कोई चीज खौल रही है ! सी…ई….हाय…..माँ…..
फिर वो थोड़ा सा झुका और एक लम्बा मस्त चुम्बन मेरी चूत पर धर दिया, चूत
उसके होंठों का स्पर्श पा कर सरसरा उठी, फिर उसने ढेर सारा थूक मेरी चूत
के ठीक बीच में टपका दिया और उसे अंगुली से अच्छी तरह रगड़ा और वहाँ अपना
लंड सटा कर मेरी तरफ देखा और बोला- अब आ रहा है ! आऽऽ आने दो सइयां ……..
मैंने कसमसा कर कहा- इतनी देर क्यों लगा रहे हो ! बुद्धू इसे देख कर तो
मैंने अपनी कसम तोड़ दी है ! इसका फायदा भी तुम्हें मिलेगा ! इतना कह कर
उसने मेरे दोनों संतरों को अपने हाथों में ले लिया। उसका फुंफकार मारता
बमपीलाट लंड बहुत जबरदस्त और कठोर था और पूरी मुस्तैदी के साथ चूत की खास
जगह से सटा हुआ था, मेरी चूत उसे इतना करीब पा कर बौखला रही थी, वो इतनी
गर्म हो चुकी थी कि जल्द से जल्द लंड से तालमेल बिठा कर उसे हजम कर जाना
चाहती थी। आ रहा है ! मोहन ने एक जोरदार आवाज में कहा। आने दो ! मैं भी
बुलंद आवाज में बोली। बस फिर एक जोर का झटका मैंने अपनी चूत पर महसूस
किया, ऐसा लगा कि मैंने बिजली का नंगा तार छू लिया हो, जैसे किसी ने एक
चूहे को दुम से पकड़ कर जमीन पर एक जोरदार पटखनी लगाई हो। एक तीखी टीस सी
पीड़ा चूत से उठी और सीधा मेरे दिमाग से टकराई, मेरे मुँह से चीख निकली-
ऊई ….माँ…….ये सी…..ये क्या हुआ ? मैंने जल्दी से उठ कर अपनी चूत देखी तो
उसका मुँह एक फटे हुए जूते की तरह खुला हुआ था और एक भारी भरकम पैर की
तरह उसका लंड मेरी चूत में फंसा दिख रहा था। ओफ्फो ….क्या हुआ ? मेरी चीख
पर मेरे प्रेमी ने बौखला कर पूछा। ऊं ….हूँ…….तुम्हें दिख नहीं रहा है
क्या? मैंने उसे आँखों के इशारे से अपनी चूत दिखाई- देखो…….सी….देखो
तुम्हारा,,,,,,,,सी….ई……. छोटा भाई…..छोटी सी जगह पर किस तरह फंसा पडा
है, ऊई……ऊई माँ…मर……..गई…….आह…….मुझे दर्द हो रहा है ! इसमें इतना रोने
पीटने की जरूरत नहीं है ! वो मेरी चरमराती चूत को सहलाते हुए बोला- यह
जगह बनी ही इसके लिये है, यहाँ अब तुम्हें मेरा छोटा भाई फंसा दिख रहा
है, इसमें हैरानी की क्या बात है, आज नहीं तो कल यहाँ किसी ना किसी का
छोटा भाई फँसना ही था ! उफ …दर्द हो रहा है ! मैंने दर्द से नाक सिकोड़
कर कहा- क्या अब यह बाहर नहीं निकल सकता ? हूँ… मुझसे इसकी जलन बर्दास्त
नहीं हो रही…….सी…..सी….. अब तो ये आगे जाएगा ! इतना कह कर उसने एक और
वैसा ही झटका आगे की ओर मारा, चूत से एक अजीब सी आवाज निकली, जैसा कपड़ा
फटते समय निकलती है, फिर उसका लंड चूत में समाधी रमा बैठा, अब मैं उछल
रही थी क्योंकि उसके लंड का सुपारा मेरे गर्भाशय के मुँह से टकरा रहा था,
सुपारे की रगड़ से गर्भाशय के मुँह पर मीठी मीठी गुदगुदी हो रही थी-
ऊई….अब तो…..हाय…..अब तो मैं उछल भी रही हूँ….. ऐसा ही होता है ! वो
मुस्कुरा कर बोला, वो मेरी चूचियों को दबाने लगा। एक बार फिर मैंने अपनी
जाँघों के बीच देखा तो वहाँ गहरे लाल रंग का खून बूंद बूंद होकर टपक रहा
था। हाय….सी….वही हुआ…..जो मैं सुहागरात से पहले नहीं चाहती थी, तुमने
इसका खून कर ही दिया, हटो …….तुम…. बड़े वो हो….मैं तुमसे नहीं बोलती !
तुम्हें बोलने को कौन कह रहा है मेरी जान ! वो मुझे चूम कर बोला- अब तो
तुम देखती रहो…..तुम्हें मैं कैसे कैसे जलवे दिखाता हूँ ! उसने चूत पर
ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिये। मैं आह….ऊई….सी…के अलावा कुछ नहीं
कर सकती थी, चूत की कच्ची दीवारें काँप रही थी, मुझे अच्छी तरह याद है की
दसवां धक्का मेरी जवानी को ठंडा कर गया था, फिर जब तक मेरी शादी नहीं हो
गई वो इसी तरह मेरी चूत पर कहर ढाता रहा था, मुझे चुदाई से बहुत सुख
मिलता था, इसलिए मैं बिना डोर उसकी ओर खिंची चली जाती थी, उसने चूत पर
पूरा अधिकार जमा कर उसका नक्शा ही बदल डाला था, अब पेशाब करते समय चूत से
तेज सीटी की आवाज निकलने लगी थी, किसी कारणवश उसका और मेरा जीवन भर का
साथ नहीं हो सका था, यह बात बहुत लम्बी है, यहाँ लिख कर मैं आप सबका समय
खराब नहीं करना चाहती।


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