Monday, May 19, 2014

FUN-MAZA-MASTI भाई, ननद, देवर और मेरे पति --3

FUN-MAZA-MASTI

भाई, ननद, देवर और मेरे पति --3

 मेरे दिल में धड़का हुआ, मैगजीन तो कामोत्तेजक सामग्री से भरी पड़ी थी, कहीं जतिन उसे पढ़ न ले, मैनें सोचा लेकिन फिर इस विचार ने मेरे मन को ठंडक पहुंचा दी की अगर यह मैगजीन पढ़ ले तब हो सकता है उसकी मर्दानगी का आज टेस्ट मिल जाए, इसमें भी तो जोश एकदम फ्रेश होगा, मैं निश्चिंत हो गई,

कौन कहेगा...मैं जानती हूँ....अगर मैं तुम्हे पसंद होती......तो क्या तुम यहाँ छः छः महीने में आते....आज कितने दिनों बाद शक्ल दिखा रहे हो....पुरे साढे पांच महीने बाद आये हो , तब भी सिर्फ एक घंटे के लिए आये थे, मैं उसके सामने सोफे पर बैठ कर बोली,

मैनें ब्रेजियर्स और पेंटी पहन कर सिर्फ एक सूती मैक्सी पहन राखी थी, जिसके गहरे गले के दो बटन खुले हुए भी थे, वहां से मेरे गोरे गोरे सिने का रंग प्रकट हो रहा था,

मैनें देखा की जतिन ने चोर नजरों से उस स्थान को देखा था फिर नजर झुका कर कहा - ये तो बेकार की बात है....आओ जानती ही हैं की मैं कितना बीजी रहता हूँ, कंप्यूटर कोर्स, पढ़ाई और फिर घर का काम.....चक्की सी बनी रहती है, आज थोडा टाइम मिला तो इधर चला आया, वो भी शिल्पा ने भेज दिया...क्योंकि भाई साहब ने फोन किया था, उन्होंने शिल्पा को बुलाया था कहा था की उसे कुछ कपडे दिलवाने हैं, शिल्पा को तो आज अपनी एक सहेली की शादी में जाना था सो उसने मुझे भेज दिया...जतिन बोला,


मैं समझ गई की मेरे पति ने शिल्पा को किसलिए फोन किया होगा, कपडे दिलवाने का तो एक बहाना है, असल बात तो वही है जिसकी उन्होंने तमन्ना जाहिर की थी,

आज ही बुलाया था तुम्हारे भैया ने शिल्पा को....मैनें जतिन से पूछा,

हाँ...कहा था की आज या कल सुबह आ जाना...जतिन बोला,

अच्छा तुम बैठो मैं पानी वानी लाती हूँ.....मैनें ये कहा और सोफे से उठ कर रसोई की ओर चली गई, फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल कर एक ग्लास में पानी डाला और ग्लास अपने देवर जतिन के सम्मुख जरा झुक कर ग्लास उसकी और बाधा कर बोली--लो पानी पीयो...मैं चाय बनाती हूँ,


जतिन ने सकपका कर मैगजीन से नजर हटाई, मैनें देख लिया था वह एक मोडल का उत्तेजक फोटो बड़ी तल्लीनता से देख रहा था, उसके चेहरे पर ऐसे भाव आ गए जैसे चोरी पकडी गई हो, उसने कांपते हाँथ से ग्लास ले लिया, मेरी ओर देखने पर उसकी पैनी नजर मेरे खुले सिने पर अन्दर ब्रेजरी तक होकर वापस लौट आई, वह नजर झुका कर पानी पिने लगा तो मैं मन ही मन मुस्कुराती हुई रसोई में चली गई,


मैनें चाय पांच मिनट में ही बना ली, चाय लेकर मैं वापस ड्राइंग रूम पहुंची तो देखा की जतिन तपते चेहरे से मैगजीन को पढ़ रहा है, मेरी आहट पाते ही उसने मैगजीन टेबल पर उलट कर रख दी,

लो चाय....चाय का एक कप ट्रे में से उठा कर मैनें उसकी ओर बढ़ाया, उसने कंपकंपाते हाँथ से कप पकड़ लिया और नजर चुरा कर कप में फूंक मारने लगा, मैनें भी एक कप उठा लिया,
मैनें महसूस कर लिया की जतिन सेक्स के प्रति अभी संकोची भी है और अज्ञानी भी, ऐसे युवक से संबंध स्थापित करने का एक अलग ही मजा होता है, मैं सोचने लगी की जतिन से कैसे सेक्स संबंध विकसित किया जाये ताकि मेरी यौन पिपासा में शांति पड़े,


उसके गोल चेहरे और अकसर शांत रहने वाली आँखों में मैं यह देख चकी थी की कामोत्तेजक मैगजीन ने शांत झील में पत्थर मार दिया है और अब उसके मन में काम-भावना से संबंधित भंवर बनने लगे हैं, वह खामोशी से चाय पि रहा था, मेरी ओर यदा कदा देख लेता था,


तभी फोन की घंटी बज उठी, मैनें सोफे से उठ कर फोन का रिसीवर उठाया ओर उसे कान में लगा कर बोली....हेलो ...आप ..कौन बोल रहे हैं....?

जानेमन हम तुम्हारे पति बोल रहे हैं.....उधर से मेरे पति का स्वर आया....हम थोड़ी देर में आयेंगे....तुम परेशान मत होना....ओ.के....इतना कह कर उन्होंने संबंध विच्छेद भी कर दिया,

किसका फोन था.....?जतिन ने प्रश्न किया,

तुम्हारे भाई साहब का....मेरी कुछ सुनी भी नहीं और थोड़ी देर से आयेंगे ये कह कर रिसीवर भी रख दिया....मैनें दोबारा उसके सामने बैठते हुवे कहा,

अब तक उनकी आदत ऐसी ही है....कमाल है....जतिन बोला,

वह चाय ख़त्म कर चूका था, खली कप उसने टेबल पर रख दिया, मैं भी चाय पि चुकी थी,


चलो टी. वी देखते हैं....मैं सोफे से उठती हुई बोली, मैनें एक शरीर तोड़ अंगड़ाई ली, मेरी मेक्सी में से मेरा शरीर बाहर निकलने को हुआ, जतिन के होंठों पर उसकी जीभ ने गीलापन बिखेरा और आँखें अपनी कटोरियों से बाहर आने को हुई,


मैनें टेबल से मैगजीन उठा ली और बेडरूम की ओर चल दी, जतिन मेरे पीछे पीछे था,
मैनें बेडरूम में पहुँच कर टी. वी. ऑन करके केबल पर सेट किया एक अंग्रेजी चैनल लगाया ओर बेड पर अधलेटी मुद्रा में बेड की पुश्त से पीठ लगा कर बैठ गई ओर मैगजीन खोल कर देखने लगी, जतिन भी बेड पर बैठ गया लेकिन मुझसे फासला बना कर,


मुझमें कांटे लगे हैं क्या...? मैनें उससे कहा


जी...जी....क्या मतलब....जतिन हडबडा कर बोला,


तुम मुझसे इतनी दूर जो बैठे हो........मैनें मैगजीन को बंद करके पुश्त पर रख कर कहा,


ओह्ह...लो नजदीक बैठ जाता हूँ... कह कर वह मेरे निकट आ गया,

उसके ओर मेरे शरीर में मुश्किल से चार छः अंगुल का फासला रह गया,


तबियत ठीक नहीं है तुम्हारी....? कान कैसे लाल हो रहे हैं....मैनें उसके चेहरे को देख कर कहा ओर उसके माथे पर हाँथ लगा कर बोली-- ओहो....माथा तो तप रहा है....ऐसा लगता है की तुम्हे बुखार है....दर्द वर्ड तो नहीं हो रहा सीर में...हो रहा हो तो सीर दबा दूँ, मैनें कहा,


हो तो रहा है भाभी जी....दोपहर से ही सर दर्द है....अगर दबा दोगी तो बढ़ियां ही है ...जतिन बोला

लाओ...गोद में रख लो सीर...मैनें उसके सीर को अपनी ओर झुकाते हुवे कहा

उसने ऐतराज नहीं किया और मेरी जाँघों के जोड़ पर सीर रख कर लेट गया, मैं उसके माथे को हल्के हल्के दबाने लगी और मेरे मस्तिस्क में काम-विषयक अनार से छूटने शुरू हो गये थे,


भाभी...आप बुरा न मनो तो एक बात पूछूं....जतिन बोला,


पूछो...एक क्यों दस पूछो.....मैं टी... वी. से नजर हटा कर उसकी बड़ी बड़ी आँखों में झांक कर बोली,


ये जो मैगजीन ही इसे आप पढ़ती हैं या भाई साहब...? जतिन ने प्रश्न किया,


हम दोनों ही पढ़ते हैं क्यों....? मैनें कहा,


दोनों ही....आपको क्या जरुरत है ऐसी मैगजीन पढने की.....वह बोला,


क्यों....? हम दोनों क्यों नहीं पढ़ सकते....हमें जरुरत नहीं पड़नी चाहिए....? मैं बोली


और क्या....आप तो शादी शुदा हो...इसकी या ऐसी मैगजीनों की जरुरत तो मेरे जैसे कुंवारों के लिए ठीक रहती है.... जतिन बोला,


क्यों....जो आनंद इस मैगजीन से कुंवारे ले सकते हैं.....उस पर हमारा अधिकार नहीं है क्या...? कैसी बातें करते हो तुम.....मैं उसकी कनपटियाँ सहला कर बोली,


अरे वाह.....आपको आनन्द के लिये मैगजीन की क्या जरुरत...? आपके पास तो जीवित आनन्द देने वाली मशीन है....मेरे कहने का मतलब है की आप भैया से आनन्द ले सकती हो और वे आपसे....परेशानी तो हम जैसों की है.....जो अपनी आँखों की प्यास बुझाने के लिये ऐसी मैगजीनों पर आश्रित हैं....जतिन ने बात को गंभीर मोड़ दिया,


ओहो...तो मेरे देवर की आँखें प्यासी रहती हैं तभी ऐसी बातें कर रहे हो....मैनें मुस्कुराते हुवे कहा, फीर बोली....तो क्या तुमने अभी तक अपनी आँखों की प्यास नहीं बुझाई....मेरे कहने का मतलब ये है की....क्या इन बड़ी बड़ी आँखों को देवी दर्शन नहीं हुवे,

देवी दर्शन....... वह इस शब्द पर उलझ गया,

यानी की किसी युवती को बिना कपडों के नहीं देखा, मैनें देवी दर्शन का मतलब समझाया,

इसे कहते हो आप देवी दर्शन...वाकई आप तो जीनियस हो भाभी जी....वैसे कह ठीक रही हो आप, अपनी किश्मत में ऐसा कोई मौका अभी तक नहीं आया है, आगे भी शायद ही आये....वह सोचता हुवा सा बोला फीर टी.वी पर आते एक दृश्य में दो मिनी स्कर्ट वाली लड़कियों को देख कर बोला....टी.वी. या किताबों में ही देख कर संतोष करना पड़ता है....


तुम सचमुच ही बद-किस्मत हो लेकिन एक बात बताओ....जब तुम ऐसी मैगजीन देख लेते होगे तब तो और प्यास भड़क उठती होगी और शरीर में उत्तेजना भी फ़ैल जाती होगी...उस उत्तेजना को तुम कैसे शांत करते हो फीर...? मैं बोली.

क्या भाभी जी आप भी कैसी बातें करती हो...? क्यों मेरे जख्म पर नमक छिड़क रही हो...कैसे शांत करता हूँ....अपना हाँथ जगरनाथ....वह बोला,


यानी अपने हाँथ से ही अपने को संतुष्ट कर लेते हो और अगर मैं तुम्हारी ये मुश्किल दूर कर दूँ तो....मैनें उसके गालों को सहला कर भेद भरे स्वर में कहा, मेरी आँखें रंगीन हो चुकी थी,


क्या....आप कैसे मेरी मुश्किल दूर कर सकती हैं...? वह जिज्ञासु हो कर बोला,


इस बात को छोडो....ये बताओ की अगर मैं तुम्हे ये छुट दे दूँ की तुम मेरे कठोर और सुन्दर स्तनों को कपडे हटा कर देख सकते हो तो बताओ तुम क्या करोगे....? मैनें अब उससे एकदम साफ़ कहा,

जी...जी...वह सकपका गया, उसे मेरी बात पर यकीन नहीं हुवा और बोला...आप तो मजाक कर रही हो भाभी...


चलो मजाक में ही सही अगर कह दूँ तो क्या.....कह ही रही हूँ.......जतिन देवर जी....अगर तुम चाहो तो मेरे गाउन के चारों बटन खोल कर मेरी ब्रा में कैद मेरे स्तनों को ब्रा को हटा कर देख सकते हो....मैनें उसके कुरते के गले में हाँथ डाल कर उसके मजबूत सिने को सहला कर कहा,


लगता है आप मुझ पर मेहरबान हैं या फीर मजाक कर रहीं हैं..... उसे अभी भी यकीन नहीं आया,


ओहो...बड़े शक्की आदमी हो....चलो मैं ही तुम्हारे स्तनों को दर्ख भी लेती हूँ और मसल भी देती हूँ....मैनें झल्ला कर उसके सिने पर मौजूद उसके दोनों छोटे छोटे निप्पलों को मसलना शुरू कर दिया,


उफ...ये क्या कर रही हो भाभी....मुझे परेशानी होगी....वह मचल कर बोला,

अब तुम तो कुछ करने को तैयार नहीं हो....तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा ना....मैनें कहा,


अब जतिन से पीछे नहीं रहा गया, उसने अपने के ऊपर मुझे लेते हुवे मेरे स्तनों को मेक्सी के ऊपर से ही सहलाना सुरु कर दिया और बोला.....

आज तो आप मुझे कत्ल कर के ही छोडेंगी....ये दोनों पर्वत कब से मुझे परेशान कर रहे हैं....अब मुझे मौका मिला है.....इन्हें परेशान करने का.....वह मेक्सी के बटन खोलने लगा था, उसकी क्रिया में बेताबी थी, मैं उसके कुर्ते के बटन खोल कर उसके सिने को सहला रही थी, उसने कांपते हांथों से मेक्सी के दोनों पल्लों को स्तनों से हटा कर ब्रेजरी के कप को निचे कर दिया और स्तब्ध निगाहों से पहले मेरे गुलाबी रंग के कठोर स्तनों को देखता रहा फीर मैनें ही स्तन के निप्पल को उसके होठों में देकर कहा

...लो...बुझाओ प्यास...मैं जानती हूँ.....जबसे तुमने मैगजीन देखी है....तब से ही तुम्हारी प्यास भड़क उठी है,

उसने निप्पल मुंह में ले लिया और उसे चूसते हुवे दुसरे स्तन को भी ब्रेजरी के कप में से निकालने की कोशिश करने लगा, उसकी कोशिश देख कर मैनें हांथों को पीछे ले जा कर ब्रेजरी के हुक को खोल दिया तो उसने दुसरे स्तन को भी उसके कप से निकाल कर हाँथ में ले लिया और उसके निप्पल को जोर जोर से मसलने लगा,


मैं तरंगित होती जा रही थी, मैगजीन के पन्नों ने मेरी नसों का लहू गर्म कर दिया था, जिसको शीतल करने के लिये मुझे भी एक पुरुषीय वर्षा की जरुरत थी, मैं उसके बालों को सहला रही थी,


चुसो जतिन जितना चाहो चुसो....तुम्हारे भईया को भी यही पसंद है....मैनें उत्तेजित होते हुवे कहा,


लेकिन मेरी दिलचश्पी तो दूसरी चीज में भी है, उसे भी चूसने की इजाजत मिल जाये तो मजा दो गुना हो जाये....जतिन ने निप्पल को मुंह से निकाल कर कहा,


उफ...पहले इस पहली चीज से तो जी भर लो वह दूसरी चीज भी दूर नहीं है.....मैनें उसकी क्रिया से आनन्दित होते हुवे कहा,


मेरे हाँथ उसके पाजामें पर पहुच चुके थे, मैं उसके नाडे को खोलने ही जा रही थी की उसने जरा निचे को सरक कर मेरे सपाट चिकने पेट और नाभि को चूमना शुरू कर दिया, वह मेरी मेक्सी से परेशान होने लगा था, मैनें मेक्सी को शरीर से अलग कर दिया और पूरी तरह चित लेट गई, मेरी यौवन संपदा को साछात देख कर वह पागल सा होने लगा, मेरी जाँघों को और मेरे गोरे पांव के तलवों को पागलों की तरह जोर जोर से चूमने चाटने लगा, मैं भी पागलों सी हो गई, मेरे कंठ से कामुक सिसकारियां छूटने लगी,उसके होंठ और उसकी जीभ मेरे शरीर में नया सा नशा घोलने लगी,वह मेरी टांगों के जरा जरा से हिस्से को चूम रहा था और सहला रहा था, उसने मेरी कमर में हाँथ डाल कर मुझे पेट के बल लिटा दिया, अब मेरी पीठ और नितंबों के चूमे जाने का नंम्बर था, वह बड़ी ही कुशलता से मेरे संवेदनशील शरीर को सहला रहा था और चूम रहा था,

तुम तो पुरे गुरु आदमी हो उफ...कैसे मेरे...उफ....उफ...कैसे मेरे सारे शरीर में हर अंगुल पर एक ज्वालामुखी सा रखते हो...उफ...मैं तरंगित स्वर में बोल रही थी, उफ...कहीं से ट्रेनिंग ली है क्या....


ऐसा ही समझो भाभी.....मैं एक कम्प्यूटर आर्टिस्ट हूँ.....कम्प्यूटर की कई सी. डी. ऐसी आती है जिनमें संभोग के गजब गजब के आसन और मुद्रायें होती हैं....उसने मेरे नितंबों से पेंटी सरकाते हुवे कहा, वह अब मेरे नितंबों पर चुंबन धर रहा था, मैं शोला बन गई थी, मेरी उत्तेजना शिखर पर पहुँच गई थी,


अब मुझसे रुका नहीं जा रहा था लेकिन फीर भी जतिन द्वारा मिलते चुंबनों के आनंद ने मुझे और प्यासा बना डाला था, मैं चाहती थी की मेरे शरीर के पोर पोर से वह काम रस चूस ले और मुझे पागल करके छोड़ दे,


वह अपनी क्रिया में ब्यस्त था, मैं पुनः पीठ के बल हो गई थी और वह मेरी जाँघों को खोल कर मेरी केश विहीन योनी को चूस रहा था, मैं उत्तेजना में अपने स्तनों को स्वयं ही मैथ रही थी,


अपनी टांगें मेरी तरफ कर लो....मैनें उससे कहा, तो उसने मेरा कहा मान लिया,उसके पाँव मेरे सीर के भी पीछे तक चले गए, मैनें फुर्ती से उसका पाजामा व अंडरवीयर उसके उत्तेजित लिंग से हटाया और आठ नौ इंच के लिंग को मुंह में ले लिया, उसका लिंग मेरे पति से मोटा था इस कारण मुझे होंठ पुरे खोलने पड़ गये, मैं उसे चूसने लगी,
अब तड़पने और उछलने की बारी उसकी थी,


उफ...उफ...भा...भाभी....आप तो लगता है मुंह में निचोड़ लेंगी मुझे.....उफ....


यह पहला टेस्ट तो मैं मुंह से ही लुंगी.....फीर योनी में डलवाउंगी, तुम लगे रहो उस काम में जिसमें लगे हो....इतना कह कर मैं फीर लिंग चूसने लगी, जतिन लिंग पर मेरे होठों का घर्षण अधिक देर तक नहीं झेल पाया और वह मेरी योनी को भूल कर मेरे कंठ में ही तेजी से धक्के मार कर स्खलित हो गया, उसका सुगन्धित व खौलता वीर्य मैं पि गई, फीर भी मैनें लिंग को नहीं छोड़ा और उसे चूस चूस कर पुनः उत्तेजित करने लगी,

थोडी देर मैं वह फीर कठोर हो गया तो मैनें योनी में उसे डलवाया,


जतिन ने ऐसे ऐसे ढंग से योनी को लिंग से रगडा की मैं चीख पड़ी, उसने अन्ततः बेड से निचे उतर कर खड़े होकर मेरी जाँघों को खोलकर ऐसे धक्के मारे की मैं तृप्त हो गई और चरमोत्कर्ष तक पहुंची, वह पुनः स्खलित हो कर मुझसे लिपट गया,


अब मैं और मेरे पति इतने उन्मुक्त हो गये हैं की मेरे घर मेरा देवर आ जाये, मेरा भाई आ जाये, शिल्पा आ जाये या मेरी कोई सहेली आ जाये या मेरे पति का कोई दोस्त आ जाये हमलोग हर किसी को अपनी काम क्रीड़ा में शामिल कर लेते हैं,


मेरी कामुकता ने सारी हदें पार कर डी हैं, मुझे तो कपडे अच्छे लगते ही नहीं है, अब उस दिन मेरे ससुर आये थे तब भी मैनें ब्रा-पेंटी पर पारदर्शी गाउन पहन रखा था और मेरे पति ने उनकी उपस्थिति में भी शर्म ना की और मेरे उभारों को चुमते रहे.....मेरे ससुर को ही ड्राइंगरूम से उठ कर अपने रूम में जाना पड़ा था,


समाप्त
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