Tuesday, August 12, 2014

FUN-MAZA-MASTI देवर भाभी की दास्तान-1

FUN-MAZA-MASTI

 देवर भाभी की दास्तान-1
दोस्तों  मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर हूँ एक और नई  कहानी के साथ
नीतू भाभी अपने ख्यालों में कुच्छ डूबी हुई मेरी तरफ चुपचाप देखती रही. और फिर आहिस्ते से बोली, "जानते हो, मुझे तुमको यह सब सीखाना अच्छा लगता है. पता नही यह बात ठीक है कि नही. पर मुझे बहुत अच्छा लगता है. तुमको भी अच्छा लग रहा है ना? तुम भी कुच्छ कुच्छ सोचते रहते हो?"


"जी……"

"ज़रूर सोचते होगे…..है ना?"

वो अपने अंगूठे और दो उंगलियों से मेरे लंड के सूपदे को कभी पकड़कर दबाती, कभी मसालती, कभी सूपदे के टोपी के अंदर अपने नाख़ून से चारो तरफ धीरे से खरोचती.

"यह बहुत ज़रूरी होता है कि आपस मे इन बातों के बारें मे खुलापन हो….." वो अपनी हाथ मे मेरे खड़े लंड को देख रही थी. उनकी आवाज़ कुच्छ धीमी हो रही थी, और ऐसा लग रहा था कि वो अपनी ख्यालों मे डूब गयी हैं. "मैं सोच रही थी कि तुमको ठीक तरह से मज़ा लेना सिखाउ…..ठीक तरह से…….कुच्छ सोचना नही….कोई और ख्याल नही हो दिमाग़ मे….मज़े करते वक़्त सिर्फ़ मज़े करना……."

वो उंगलियाँ से मेरे सूपदे को बहुत ही प्यार से दबा रही थी, और बीच बीच मे आहिस्ते से सूपदे के छेद में नाख़ून से छेड़ रही थी. नीतू भाभी ने और रातों की तरह आज रात भी कमरे में एक छ्होटे कटोरे में कुच्छ गरम सरसो का तेल रख लिया था. उनकी उंगलियाँ सरसो के तेल में डुबोई हुई थी.

"समझ रहे हो, कि मैं क्या कह रही हूँ?"

"जी."

"मज़े करते समय, और कोई ख्याल नही होना चाहिए…..कुच्छ सोचना नही चाहिए…..सिर्फ़ मज़ा लेना और मज़ा देना…बस….सिर्फ़ मज़े का ख्याल!…" वो मेरे मेरे लंड को एक नज़र से देख रही थी और सूपड़ा के चारो तरफ अपनी उंगली को घुमा रही थी. बाहर चाँदनी रात थी, और खिड़की से चाँदनी की रोशनी आ रही थी. नीतू भाभी के बाल खुल गये थे और उनकी आँचल कब का गिर चुका था. मेरे जैसे लड़के को उनके बाल, उनका सुंदर चेहरा, उनकी आधी खुली हुई ब्लाउस से निकलती हुई चुचियाँ और उनका इकहरा बदन ही पागल बनाने के लिए काफ़ी था, पर वो तो अपनी हाथ से मेरे लंड को इस तरह प्यार से तरह तरह से दबा रही थी, नाख़ून से खरॉच रही थी मैं नशे मे मस्त हो रहा था. चाँदनी की उस रोशनी मे मेरा सरोसो के तेल मे मालिस किया लंड चमक रहा था, और नीतू भाभी की गेंहूआ रंग की मुथि और उंगलियों मे से मेरा लौदा बीच बीच में झाँकता, और फिर छुप जाता.

"यह मेरी एक ख्वाहिश है……सच पूच्छो तो मज़ा तो सभी इंसान कर ही लेते हैं…पर ज़्यादातर लोगों को बस थोरी देर के लिए प्यास बुझती हैं….ना मर्द पूरी तरह से खुश होते हैं और ना औरतें….जानते हो ना….ज़्यादातर औरतें प्यासी ही रह जाती हैं…..और चिर्चिरि मिज़ाज़ की हो जाती हैं…..और वही हाल मर्दों का भी!" भाभी ने इस बार मेरे सूपदे से लेकर लौदे के बिल्कुल जड़ तक दबा दिया. वो मेरे गांद के उपर अपनी उंगली भी फेर रही थी अब. मैने पूचछा, "नीतू भाभी, और क्या ख्वाहिशें हैं?"

"अभी नही बताउन्गि!…..अभी बस इतना ही!"

वो मेरे लंड को बहुत ही नाज़ुक सा सहला रही थी अब. फिर धीरे से हंस दी. कुच्छ शरमाते हुए, फिर बोली. "ख्याल तो बहुत हैं, पर क्या करूँ, थोरी शरम भी तो आती है!" मैं भाभी की चुचियों को ब्लाउस के अंदर ही हाथ डालकर आहिस्ते से दबा रहा था. वो चुप हो गयी. फिर आँखें मूंदकर एक गहरी साँस लेकर बोली," तुम्हारे हाथों में तो जादू है…..आह…आहह …...तुमको इतनी कम उमर मे ही औरतों के बदन का पूरा पता है….तुम्हारे हाथ तो सारे बदन में सिहरन ला देते हैं….हाअन्न्न्न!"

अब मैने नीतू भाभी की सारी को उतारने लगा. ब्लाउस के हुक्स खुले हुए थे और ब्रा भी उतर चुका था. उनकी चुचि के घुंडी को मैं मसल रहा था, और भाभी ने अपने पेटिकोट के नाडे को खोल दिया. नीतू भाभी फिर खरी हो गयी पर मुझसे कहा कि मैं उसी तरह बिस्तर के किनारे लेटा रहूं. अपनी पेटिकोट निकालकर भाभी आई और मेरे टाँगों के दोनो तरफ अपने पैरों को फैलाकर मेरे उपर आ गयी. मेरे सख़्त लंड को उन्होने फिर गौर से देखा और उसको अपनी हाथों मे पकड़े रखा. फिर अपनी चूतड़ कुच्छ उपर उठाकर उन्होने सूपदे को अपनी चूत की पत्तियों मे फँसा दिया, मानो उनकी चूत के पंखुरियाँ मेरे सूपदे को प्यार से, हल्के से चूम रही हो!

मैं ने अपना कमर थोड़ा उठाया,"एम्म."

"अच्छा लग रहा है?"

"जी……….…. हां"

"आहिस्ते से? ……इस तरह?"

"म्‍म्म, जी."

उनकी नज़र मेरे चेहरे पर थी. मेरे चेहरे को गौर से देख रही थी कि मुझे कैसा लग रहा है उनका मेरे सूपदे को अपनी बुर की पट्टियों पर रगड़ना. हल्का हल्का रगड़ना, और कभी कभी बुर के झाँत मे ज़ोर्से रगड़ना. बोली, "जब मेरे हाथ
में तुम्हारा लंड सख़्त होने लगता है ना, तो मुझे बहुत मज़ा आता है…. मुरझाया हुआ लंड जब बड़ा होने लगता है….बड़ा होता जाता है….बड़ा और गरम!" वो अब अपने घुटनों के बल बैठ गयी और मुझसे कहा, " लो, तुम मेरी चूत के दाने को प्यार करो….जब तक मैं तुम्हारे इस लौदे को एक गरम लोहे का हथौरा बना देती हूँ!"

मैने उनकी चूत को खोलकर उनके अंदर के दाने को सहलाने लगा, उसपर उंगली को फेरने लगा. उनसे पूचछा, "इस तरह?"

उन्होने आँख मूंद ली, जैसे की बिल्कुल मशगूल होकर किसी चीज़ का ज़ायज़ा ले रही हों. जैसे कुच्छ माप रही हों. " हां….इसी तरह…… आहिस्ता…….आहिस्ता….हाअन्न्न्न"
वो मेरे उपर ही घुटनों के बल बैठी रहीं और मेरे लौदे को और भी गरम करती रहीं, और जैसे मैं उनके चूत में अपनी उंगली घुमा रहा था मैं ने अपने गर्दन को आगे बढ़ाकर उनकी चुचि को अपने मुँह में लेने लगा. उनकी खूबसूरत,
गोल-गोल कश्मीरी सेब जैसी चुचियाँ मेरे मॅन को लुभा रही थी. जैसे मैने चुचि के घुंडी को मुँह मे लेकर चूसा, वो सिहर गयी और बोली,"बस….इसी तरह से..मुँह मे लेकर आहिस्ते से चूसो ….हां…..अभी ज़ोर्से नही…..हान्न्न्न…..इसी तरह…….अभी बस चूसो."

अब उनकी साँसें बढ़ने लगी. जल्दी ही उन्होने कहा, "अब लो….", और अपने घुटनों के बल उठकर उन्होने नीचे मेरे लौदे के तरफ गौर किया और उसको बिल्कुल सीधा खरा किया. अपने साँस को रोकते हुए और मेरे लौदे को अपने मुथि में उसी तरह से पकरे हुए अब उन्होने अपनी गीली चूत पर उपर से नीचे, फिर नीचे उपर रगड़ कर मेरी तरफ प्यार से देखा. मेरी तो हालत खराब हो रही थी; अब रुकना बेहद मुश्क़िल हो रहा था. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी.

"अच्छा लग रहा है?", उन्होने पूचछा.

"म्‍म्म्मम….जी"

"मुझे भी मज़ा आ रहा है……म्‍म्म्मममम…………अहह…." नीचे देखते
हुए वो बोली, "जानते हो……..उमर के हिसाब से तुम्हारा लौदा काफ़ी बड़ा है…… बहुत कम मर्दों का इतना तगड़ा लौदा होता है…… मुझे तो ताज्जुब होता है कि तुम कितने सख़्त और गरम हो जाते हो! अहह …. ह्म्‍म्म्मम"

वो मेरे सूपदे के टिप को अपनी बुर के अंदर लेकर मेरे कंधों पर अपनी हथेली रख दी. " अब तुम आराम से मज़ा लो, जबतक मैं तुम्हारे लौदे को अपनी चूत में लेती हूँ. आराम से….मज़ा लो……कोई जल्दिबाज़ी नही… जब लगे कि झरने लगॉगे….तो उस से पहले बता देना…..ठीक?"

"जी….ठीक!"

वो मेरे चेहरे को बिल्कुल ध्यान से देखती रही और बहुत सावधानी से आधे लंड को चूत के अंदर लेकर रुक गयी. और कमर को सीधा किया. फिर पूचछा, "ठीक हो?"

"जी."

"बिल्कुल ठीक?… हनन्न….. ……बिल्कुल?"

"हन्णन्न्……बहुत मज़ा आ रहा है, पर अभी झरूँगा नही."

"फिर ठीक है!" वो गहरी साँस लेकर और आँखें मूंद कर अपनी चूत को नीचे मेरे लंड पर दबाकर लेने लगी, बहुत धीरे धीरे, एक बार में आधे इंच से ज़्यादा नही….और धीरे से बोली, "आहिस्ते से….आहिस्ते……महसूस करो कि अंदर कैसा लगता
है…. क्या होता है!….. जैसे मैं तुम्हारे लौदे को अंदर लेती हूँ……तो महसूस करो कि वो मेरी चूत में किस तरह घिस रहा हैं….बुर उसको किस तरह से लेती है…." वो गहरे साँस लेकर अपने होंठों पर जीभ चलाकर होंठों को गीला किया.
"गौर करो….. अब मैं तुम्हारे पूरे लॉड को किस तरह चूत में ले रही हूँ, किस तरह तुम्हारा लौदा मेरी चूत को पूरी तरह से खोल रहा है…..बिल्कुल अंदर तक……देखी कितनी गहराई मे है…… म्‍म्म्मममम…. …… अब मुझे थोरे आराम से
महसूस करने दो…..म्‍म्म्मममममम." मेरा लौदा उनकी चूत के बिल्कुल अंदर था, हमारी झाँतें बिल्कुल मिल गयी थी, उनकी चूत मेरे लॉडा के जड़ पर बैठी थी. "म्‍म्म्मममम," वो बोली, " …… झरोगे तो नही?"

मैने अपनी साँस रोके हुए सर हिला दिया. धीरे से बोला, "नही."

"बहुत अच्छा," और वो फिर अपना ध्यान चूत में लंड पर लगाने लगी. "अपने आप को ठीक से रोकना, जिस से हम दोनो पूरा मज़ा ले सकें. ठीक?" वो अपनी बुर को और नीचे लाई, करीब आधा इंच, फिर थोरा उपर उठाकर, मानो मेरे लॉडा के
किसी ख़ास पार्ट का ज़ायक़ा ले रही हों. मुझे लगा कि नीतू भाभी बिल्कुल सही कह रही थी: इस वक़्त कोई और ख्याल नही आना चाहिए.

अब फिर से पूरे लॉड को लेने के बाद उन्होने कहा,`हाआंन्‍नणणन्!" फिर एक पल साँस लेने के बाद मेरी आँखों में देखते हुए उन्होने पूचछा, "मज़ा आ रहा है?"

"म्‍म्म्मम…ह" मैने अपने सर को थोरा पीछे कर के ज़ोर्से साँस छोड़ा और नीतू भाभी को जवाब तो देना चाहता था, पर मुँह से सिर्फ़ आवाज़ निकली, "व्ह"

" अब एक मिनिट रूको, बस इसी तरह……", और भाभी ने गहरी साँस लेकर अपने चेहरे पर से अपने बाल को हटाकर एक लूज जूड़ा बना लिया, फिर कहा, "और बस बुर में पड़े हुए लंड का मज़ा लेना सीखो! महसूस करो कि बुर के अंदर लंड किस तरह से थिरकता है, ……किस तरह बुर लौदे को चूमती है, किस तरह बुर और लोड्‍ा एक दूसरे के साथ खेलते हैं." वो अब मेरे उपर पीठ सीधी करके बैठ गयी, और फिर कहा, " अपने उपर काबू रखने की कोशिश करना….ठीक?……तुम झरना चाहो तो झार सकते हो ….पर कोशिश करना कि जितनी देर तक अपने आप को रोक सको, रोकना…….. ठीक? जीतने देर तक अपने लौदा को इसी तरह अंदर रखोगे, उतना ही मज़ा आएगा ……तुमको भी……और मुझे भी ……म्‍म्म्ममममममम…….. जानते हो ना ……..
धीरे-धीरे साजना ……हौले हौले साजना ….. हम भी पीछे हैं तुम्हारे…….!

मेरी तो मस्ती से जान निकल रही थी. मैं ने गहरी साँस ली, और फिर कुच्छ बोलने की कोशिश करने लगा, पर मुँह से वाज़ निकली बस, "व्ह"

"कर सकोगे?……सिर्फ़ महसूस करो…. और कुच्छ करने की ज़रूरत नही है… सिर्फ़ मज़ा लो! …….करोगे ना?"

"हान्णन्न्."

उन्होने अपनी आँखें फिर मूंद ली और एक लंबी "अहह" भर के मेरे कंधों पर अपनी पकड़ को थोडा ढीला छ्चोड़ दिया.

कुच्छ समय तक हम दोनो चुप रहे, मेरे उपर भाभी बिल्कुल खामोश और रुकी रही. फिर मुझे समझ में आने लगा कि वो मुझे क्या महसूस कराना चाहती थी. अब मुझे महसूस होने लगा कि किस तरह मेरा लौदा उनकी बुर में उसके गीलेपान से बिल्कुल नाहया हुआ था और बुर के अंदर की बनावट को, बुर के अंदर के सभी खूबियों का ज़ायक़ा ले रहा था. अब मैं समझा कि बुर की गहराइयों मे हर जगह एक जैसा नही होता, पर हर गहराई का एक अपनी ही खूबी है. यह सब महसूस करते हुए मेरा लौदा और भी सख़्त होता जा रहा था, और एक बार ज़ोर्से थिरक
गया. भाभी की बुर ने भी जवाब में मेरे लौदा को जाकड़ लिया. नीतू भाभी बोली," इसी तरह रहो अभी…. आराम से. ………..और कुच्छ मत करो… बस… इसी तरह."

मैं ने वैसा ही किया. पर मेरे कोशिश के बावजूद मेरा लौदा बीच बीच में थिरक जाता था. भाभी के गीली बुर के जकड़ने से मेरा लौदा मस्ती में था और मुझे नही लग रहा था कि मैं अपने लौदा को पूरी तरह से काबू में रख पाउन्गा.

भाभी आँखें मूंदी ही हुई थी, पर मुस्कुराते हुए पूच्ची, " क्यूँ, नही रुका जाता क्या?"

मैने अपना सर हिलाते हुए कहा, "नही, पर मज़ा बहुत आ रहा है…अहह."

"हान्न्न, मुझे भी, मेरे राजा. बहुत मज़ाअ आ रहा है…ह". और मेरे कंधों को पकड़े हुए ही उन्होने अपने चेहरे को मेरे कान के पास रख दिया. वो फुसफुसकर बोली, "कितना मज़ा आता है …… इसी तरह से बुर में लौदा डालकर
…….. सिर्फ़ महसूस करने में….कुच्छ सोचो मत …….कोई और क्‍याल नही ……सिर्फ़ बुर में लॉडा…….सिर्फ़ लॉड की सख्ती…..लॉड की गर्मी……और बुर की मखमली, रस भरी सकूदती हुई जाकरन! ….सिर्फ़ जिस्म का ख्याल रखो….और कुच्छ भी नही…. आअहह."

भाभी रुक कर कुच्छ शुस्ता रही थी. कमरे में टेबल क्लॉक की चलने की `टिक टिक' आवाज़ आ रही थी. मैं ने उसी `टिक टिक' पर अपना ध्यान लगाया. उनकी साँसों की आवाज़ मेरे कान में बहुत ही मीठे गीत की तरह लग रही थी, बीच बीच में भाभी
"अहह" कहते हुए अपनी बुर से मेरे लौदे को जाकड़ लेती थी. कोई चारा नही था. जैसे ही बुर को भाभी स्क्वीज़ करती थी, मेरा लौदा थिरक जाता था! कुच्छ देर बाद नीतू भाभी ने अपने जांघों को मेरे उपर थोरा घिसकाया. अब उनके बुर का दाना
मेरे लॉडा के जड़ से घिस रहा था. उनके मुँह से एक मज़े की "ह्म्म्म" निकली और उन्होने धीरे से दो तीन बार अपने दाने को मेरे लंड के जड़ में घिसने लगी. मेरे कान में धीरे से बोली, "यह बहुत मज़ा दे रहा है…..अहह" अब उनकी चूतड़
पहले की तरह बिल्कुल बैठी नही रही. वो अपनी चूतड़ को आहिस्ते से, बहुत ख़ास अंदाज़ में घुमाने लगी. लौदा चूत की पूरी गहराई में, और उनके चूत का दाना मेरे लौदा के जड़ पर उगी झांतों से रगड़ रहा था.

अब नीतू भाभी कुच्छ मस्ती में आ रही थी. उन्होने मुझसे मुस्कुरकर पूचछा, "अब कुच्छ ज़्यादा मज़ा आ रहा है? कुच्छ चुदाई का मज़ा? आहह …..हाआंणन्न्?"

"जी!………. हाआन्न!!!"

"मुझे भी!"

अब उन्होने अपने चूतर को थोरा उठाया, और मुझसे कहा, " तुम मत हिलना….इसी तरह रहो… इसी तरह ……मेरे चूत के अंदर …"



वो अपनी चूत को आगे कर के घिसने लगी, उनकी बुर का दाना मेरे झाँत में रगड़ रहा था. कुच्छ देर तक वो इसी तरह, कुच्छ सावधानी बरतते हुए रगड़ती रही, पर बीच बीच में, लगता था कि उनको भी मस्ती बढ़ने लगती थी, और वो ज़ोर्से
रगड़ना चाहती हैं, पर फिर अपने आपको रोक कर वो अपनी चूतड़ मेरी झंघों पर बैठा देती.

वो बोली,"अब ज़रा," और उन्होनें अपने गले को सॉफ किया और गहरी साँस ली," अब ज़रा अपने आप को काबू में रखना!" और उन्होने अपने दाने को फिर रगड़ना शुरू किया, अपनी चूतड़ को चक्की की तरह घुमाते हुए, और मेरे चेहरे पर मेरी हालत देखकर मेरी कान में धीरे से बोली, " झरना नही….. अपने आप को काबू में रखो …….देखो कितना मज़ा आएगा अभी!" मैने उनसे हामी भर दी, और वो बोलती रही , "देखो, मैं कितनी गीली हो रही हूँ ….किस तरह मेरी बुर बिल्कुल रसिया गयी है….. ओहो…..ह्म्‍म्म्मम… मेरे खातिर…. हान्न्न…… रुके रहो… मैं एक बार झार जाउन्गि….. आअहह ….. मेरे राजा … इसी तरह ……अब झरनेवाली हूँ" और उनकी आवाज़ बिल्कुल धीमी होती गयी, पर उनकी चूतड़ मस्ती में चकई की तारह ज़ोर्से
चलने लगी. चार तरफ घूम रही थी, फिर रुक कर एक बार अच्छी तरह से आगे, फिर उसी तरह से पीछे की तरफ, फिर गोल चक्कर. उनके बर से कुच्छ रस निकलकर हमारी झांतों में बह गया था, पर बुर और लंड के इस मिलन में हम दोनो बिल्कुल मगन थे. वो और ज़ोर्से साँस लेने लगी, और जैसे उनका मस्ती में हाँफना उसी तरह से उनके कमर का नाचना: उनकी चूतड़ ज़ोर्से, और जल्दी जल्दी चक्कर लगाती रही और बर का मुँह मेरे लौदे के जड़ पर रगड़ती रही. मुझे लग गया कि नीतू भाभी अब झरने वाली हैं, और मैं किसी तरह से अपने आप को रोके रहा, पूरी कोशिश कर के सिर्फ़ टेबल क्लॉक के "टिक-टिक'" पर ध्यान लगाए रखा. फिर उन्होने अपना चेहरा मेरे गाल पर रख दिया, उनकी साँस रुकी हुई थी, उनके हाथ मेरे कंधों पर ज़ोर्से पकड़े हुए थे, और उनकी चूत लगा जैसे मेरे लौदे को हाथ में लेकर मुथि में मसल रही हो, उनकी चूत बार बार कभी मेरे सूपदे को, कभी बीच लौदे को दबा रही थी. और लौदे को उपर से नीचे तक चूत का रस बिल्कुल भिगो दिया था. उनका दाना मेरे लौदे को और ज़ोर्से रगड़ने लगा, और मैं ने अपने लौदे को उचका दिया. मेरा लंड उचकाना भाभी को शायद अच्छा लगा, और वो और सिसकारी भरने लगी, "आआहह……..है दैया…… हाआंणन्न् ….. है …रे ………..दैयय्याअ ……….हमम्म्मम… ………हाआंन्‍नणणन्"; और मुझे लगा कि वो कुच्छ देर तक इसी तरह से झरती रही. मेरे हाथ उनके चूतड़ को सहला रहे थे.

वो ज़ोर्से साँस लेते हुए, "ऊऊहह….हमम्म्म …. आअहहानं" करते हुए रुक गयी. आँखें मूंदी हुई थी, पर चेहरे पर खुशी झलक रही थी. मैं ने उनके कंधों को चूमा, चूमता रहा, और उनके चुचियों को आहिस्ते से दबाता रहा, घुंडीयों को मसलता रहा. नीतू भाभी इसितरह से मेरे उपर लेटी रही. मेरा सख़्त लौदा अभी उनके रसभरी बुर में लथपथ होकर आराम कर रहा था.

फिर उन्होने कहा, "दैयय्याअ…. रे …दैयय्ाआ …… ह्म्‍म्म्ममम… …..वाह, मेरे राजा…… आहह…. …..कितने दिन बाद मैं इस तरह से झारी हूँ ….बहुत मज़ा दिया है तुमने……. बहुत खुशियाँ देते हो तुम औरतों को इस तरह से…. काश हर
मर्द तुम्हारे तरह होता!" वो अपना सर उठाकर मेरे तरफ अब देखी और बोली, " अब आओ, …..तुमको मज़ा करती हूँ."






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