Tuesday, August 12, 2014

FUN-MAZA-MASTI देवर भाभी की दास्तान-3

FUN-MAZA-MASTI

 देवर भाभी की दास्तान-3

 भाभी ने उसी मुस्कुराहट के साथ जल्दी जल्दी सर हिलाया, उनकी आँखें मेरे चेहरे पर टिकी रही, उनकी साँसें वैसी ही चढ़ि रही. अब उनकी आँखें बिल्कुल खुल गयी. और जाइए वो किसी नशे में हों, एन्होने अपने होंठ खोले और कुच्छ कहने की
कोशिश की, पर कुच्छ भी बोल नही सकी. एक गहरी साँस लेते हुए वो अपनी चूत के गहराई में मेरे लौदे को जकड़ी हुई थी. उनकी आँखों में सिर्फ़ चाहत, और वे मेरे आँखों पर टिकी रही. अपने नाख़ून से वे मेरे कंधे को थोड़ी खरॉच रही थी, और उनके बाँहों से मेरे कमर की जाकड़ भी कुच्छ जोरदार हो रही थी. उनको मैं चोद्ते रहा, पर मैं ने अपने बायें हाथ के बल कुच्छ उठकर अपने दाहिने हाथ को नीतू भाभी के कमर के नीचे ले जाकर, उनकी पतली कमर और पीठ के बीच उनको ज़ोर्से पकड़ लिया. मेरी बाँहों और जाँघ और लौदे में उस पार्टी के वक़्त से ही इतनी गर्मी थी नीतू भाभी को बिकुल ही नही छ्चोड़ने का दिल कर रहा था, उनके चूत और चुचियाँ और जांघों को बिल्कुल करीब रखा. उनके झांग में थिरकन हो रही थी, और मैं ने पूचछा, " झड़ेंगी अब?…….. झड़ेंगी?!" उनकी मुँह खुली हुई थी, आँखों में चमक, और वो कुच्छ जवाब तो नही दे पाई, पर उनका कमर, उनके हाथ अकड़ गये! वो अपने दाने को मेरे लौदा मे ज़ोर ज़ोर्से रगड़ती रही. और अब सिसकारी लेती रही, "आआहह …….. हाआआन्न्‍ननणणन्.. ……..मैं झाड़ रही
हूऊंणन्न् ……हाआंन्न…….. उउउइईईईईईई… दैया….रे…..ददाययय्या……..आआआहह … हहााईयइ ….. दैया ….. !!!" मुझे मज़ा तो बहुत आ रहा था, पर मैं अपने आप को बिल्कुल काबू में रखने की कोशिश करता रहा. उनकी आकड़ी हुआ गर्दन और कड़ी हुई कमर देखकर मैं बहुत खुश था, भाभी वाक़ई में बहुत मस्त में थी, और उनको कहता रहा, " और झाड़ीए ………. इसी तरह से ……..मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है……हाआंन्‍णणन्!" उनकी चूत का जाकड़ और बढ़ गया था, और मुँह से कोई सॉफ बात नही, सिर्फ़ "ऊऊओउउउइईईईईई …….. आआआहह ………. डैय्य्याआआआआआ …….डायय्या रे दैययय्याअ ………..ऊऊओउुउउइईईई….. !!!!!" अब मैं ने अपनी चुदाई की रफ़्तार कुच्छ कम कर दी, ताकि भाभी का मज़ा कुच्छ देरी तक रहे, पर पेलता रहा बिल्कुल अंदर तक. कुच्छ देर में भाभी का पूरा बदन अकड़ कर काँपने लगा, जैसे उनको अपने बदन पर कोई काबू नही हो. उनकी आँखें तो खुली थी, पर उन में खुशी ऐसी कि वो कुच्छ और नही देख सकती थी. जब उनके गर्दन की अकड़न कुच्छ कम हुआ, तो वो अपने सर को आगे करके मुझे अपने बाँहों में ज़ोर्से भींच ली, और मेरे कंधे पर अपने मुँह को खोल कर धीरे धीरे दाँत काटने लगी, चूमती रही, उनका एक हाथ मेरे गाल को सहलाता रहा. भाभी ने बहुत कोशिश करके मुझसे कहा, " आओ तुम भी …… तुम भी मेरे अंदर झड़ो ….. हाअन्न्न्न!"

अपने दोनो हाथों पर उठकर मैं ने भाभी के बदन को खिड़की से आती हुई रोशनी में ठीक से देखा. मेरा लौदा चूत के मुँह के थोड़ा अंदर था. भाभी की मस्त चुचियाँ, उनकी पतली कमर, और उनके नाभि के नीचे उनके झाँत और फूले हुए
चूत की पंखुरियों को देखकर मेरी मस्ती और बढ़ गयी, और अपना रफ़्तार बढ़ते हुए, अब मैं ज़ोर्से लौदा पेलने लगा. एक झटके में चूत के बिल्कुल अंदर तक जाता था, और फिर हाथ के बल कमर को बिल्कुल उठाकर, सूपदे को चूत के मुँह पर ले आता था. बिल्कुल अंदर, बच्चेदनि के मुँह तक, फिर बाहर, चूत के मुँह पर. ज़ोर्से पेलता रहा, चूत तो गीली थी ही, मेरा लौदा पिस्टन की तरह अंदर, बाहर……फिर अंदर, …… फिर बाहर….भाभी चीखने लगी, "आआआआहह ……. हााआअन्न्‍ननणणन् …. और ज़ोर्से च*डूऊऊ…. हाआंणन्न् ….. इसी तरह ………. चोदते रहो ……..हाआऐययईई दैययय्याआआ ……. बहुत ग़ज़ब के चोदते हो ………….ह्हयाययीयियीयियी ………..चोदो और ज़ोर्साआयययी …..हयाययीयियैयियीयियी रे दैययय्याआअ!"

मुझे लगने लगा कि अब कुच्छ देर में मैं भी झड़ने लगूंगा. मेरे लौदे को लगा कि जैसे भाभी फिर चूत को ज़ोर्से सिकुरकर जाकड़ रही हैं. मैं ने मस्ती में रफ़्तार वही रखी, पर सर को नीचे को तरफ घूमकर देखा. मेरा ख्याल सच निकला.
भाभी अपने पेट को ज़ोर्से सिकुर रही थी, और उनकी चूत मेरे लौदे को जाकड़ रही थी. भाभी के अपने चूत पर किस तरह का कंट्रोल था, क्या बताउ! लगा जैसे लौदे को वो मुट्ठी में लेकर निचोड़ने लगी! मैं अपना पेलने की रफ़्तार रखने की कोशिश तो कर रहा था, पर मज़े को सहना मुश्किल हो गया. भाभी की कमर आहिस्ते आहिस्ते घूमती जा रही थी, चूतड़ चक्कर लगा रही थी, और उनकी चूत अपनी सिकास्ती से मेरे लौदा को दबाते जा रही थी. मेरा लौदा अब मेरे काबू में नही रहा! मैं ने एक लंबी आहह भरी, "अहह….. ………….. …… हाआंन्‍नणणन् ……. भाभी!" और उधर मेरा लौदा झड़ने लगा, फुहारे की तरह, शुरू में रुक रुक कर, फिर ज़ोर्से… भाभी बोली, "म्‍म्म्मममम…. …..हाआंणन्न्!" मैं उनके चुचि पर मुँह रखे हुए खलाश होता रहा. भाभी अपनी बाँहों में मुझे ज़ोर्से दबा ली, और उसी तरह मेरे लौदे को निचोड़ती रही, मेरे गरम साँस उनके गर्दन पर लग रहे थे. भाभी कुच्छ देर तक मेरे लौदे को उसी तरह चूत से दबाती रही, और उसकी गरमी को काम करती रही. फिर उन्होनेलौदे को चूत में रहते ही एक आखरी झटका दिया अपने कमर से, और मेरे लौदे का चूत के अंदर थिरकना अब रुक गया.. भाभी ने अपनी टाँगों को मेरे उपर डालकर मेरे कमर को अपने जांघों से जाकड़ ली, और मुझे में गिरफ़्त में रख ली!

हम दोनो ने गहरी साँस ली. मेरे कान के पास मुँह लाकर उन्होने धीरे से पूचछा, "हाआंन्‍णणन्?" मैं ने भी कहा, "हाआंणन्न्!" भाभी मुस्कुराती हुई बोली, " बहुत ज़बरदस्त चुदाई कि….तुम ने …….!"

मेरे मुँह से कुच्छ भी नही निकला. मेरी सारी गर्मी को नीतू भाभी ने फिलहाल तो निचोड़ लिया था. "अहह!"





कुच्छ देर तक उसी तरह लेट रहने के बाद, नीतू भाभी मेरे नीचे से हटने की कोशिश करने लगी. मैं उनके उपर से हटकर किनारे हो गया. भाभी बाथरूम जाने के लिए उठी, पर बीच मे रुक कर मुझसे कहते गयी, "ओईइ…… तुम तो इसको बिल्कुल भर दिए हो…. मेरी चूत बहती जा रही है…. " और वो जल्दी से बाथरूम को भागी. शायद हुंदोनो का मिला हुआ रस वाक़ई बहते हुए फर्श पर गिरने लगा हो. बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था, और मैं लेते हुए ही उनके पेशाब करने की आवाज़ सुनता रहा. वो देर तक ज़ोर की रफ़्तार से पेशाब करती रही, फिर ज़ोर्से "ऊऊओह" कह कर कमरे में आई. मेरे बगल में बिल्कुल सटकार भाभी अपना हाथ मेरे लौदे पर फिर रख दिया. अपनी चुचियों को मेरे पीठ में धीरे से रगड़ते हुए, भाभी मुझसे बोली, "बहुत मज़ा आया अभी, …….. बिल्कुल अंदर तक हिला दिया तुमने!" और धीरे धीरे
मेरे लौदे को मूठ मारने लगी. मेरा लौदा फिर से थोरा खड़ा होने लगा. भाभी और मैं दोनो करवट से लेते हुए थे. भाभी अपनी जाँघ को मेरे जांघों के उपर डाल दी थी और मेरे लौदे को कभी दबाती, कभी सरकती.

"क्यूँ, पार्टी अच्छी थी ना? ….. तुम बोर तो नही हुए?"

मैं ने कहा, "नही ……. मुझे तो बहुत मज़ा आया! बहुत आछे लोग थे."

"ह्म्‍म्म …… बहुत गरम होकर लौटे तुम! ….. क्यूँ? …….. मैं भी गरम हो गयी थी …….!"

"जी …. " और मैं ने करवट बदल कर नीतू भाभी के होंठों को अपने मुँह में लेकर उनको चूसने लगा. लौदे पर भाभी के हाथ का जादू मुझे फिर से खूब गरम बना रहा था. आँखों के सामने उस शाम की पार्टी के लोगों की झलक आ जा
रही थी. भाबी और उनके सहेलियों का मज़ाक़, उनके इशारों-इशारों में बातचीत और उनका खिलखिलाना. मैं उन के चुचियों के शेप, उनके चूतड़ के शेप और साइज़ के बारे में ही सोच रहा था, पर भाभी उस पार्टी के माहौल में किसी से भी कम नही लग रही थी. मैं ने भाभी के होंठों को चूस्ते हुए अब उनके दाँतों को अपने ज़ुबान से चाटने लगा, और उसको उनके मुँह में घुसने लगा. भाभी अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में डाल रही थी, और मेरे मुँह में चारो तरफ अपनी ज़ुबान फेर रही थी. मैं उनके ज़ुबान को अपनी ज़ुबान में लपेटकर चूस्ता, और फिर वो मेरी ज़ुबान को उसी तरह लपेटकर कभी अपनी तरफ खींचती, तो कभी मेरे मुँह में घुसेड़ती. अपने हाथ से मेरे लौदा को वो उसी तरह तैयार करती रही. सूपड़ा के नीचे, फिर चारो तरफ वो कभी अपने उंगलियों से, कभी अपने नाख़ून से दबाती, मसालती, करोंछती जा रही थी. और हमारे मुँह एक दूसरे के ज़ुबान के खेल में बिल्कुल लीं थे. भाभी नेअपनी ज़ुबान से ढेर सारा थूक मेरे मुँह में डाल दी, और फिर मेरे मून के चारो तरफ, अपनी ज़ुबान घुमा घुमा कर वो मेरे मुँह को चाटने लगी, मेरे ज़ुबान से खेलने लगी, कभी उसको अपनी तरफ खींचती, कभी उसको लपेटकर चारो तफ़ घूमती, और इसी तरह मेरे मुँह का सारा थूक चाट गयी. मैं ने उनके मुँह मे उसी तरह थूक डालकर, उनकी ज़ुबान को चाटने लगा, चूसने लगा, कभी ज़ोर्से, कभी धीरे.

हम दोनो को कोई जल्दिबाज़ी नही थी. एक बार अच्छी तरह से झड़ने के बाद हुंदोनो आराम से मज़ा लेने के मूड में थे. सारी रात जो अपनी थी!

मेरे हाथ अब भाभी के चुचियों पर गये, और उनकी निपल जो कड़क हो गयी थी अब मेरे अंगूठे और उंगलियों के बीच मसलवाने के लिए बेकरार हो रही थी. उसी तरह एक दूसरे के ज़ुबान से चुदाई के धक्के के अंदाज़ में हुंदोनो एक दूसरे के चूस्ते रहे, पर अब मैं उनके चुचि को भी मसलता रहा. मेरे लौदे पर भाभी की पकड़ ओर ज़ोर की हो रही थी, और हमारा चूमना-चूसना जारी रहा. बीच बीच में भाभी सिसकारी लेती, और मुझे भी बढ़ती मस्ती के कारण गहरी साँस लेनी पड़ रही थी. भाभी ने फिर मेरे लौदे को जड़ से सूपदे तक दबाकर देखा, जैसे वो उसकी सख्ती को माप रही हो. मैं अब उनके मुँह से अपनी ज़ुबान निकालकर, उनके होंठों को एक बार ज़ोर्से चुस्कर, उनकी चुचि को मुँह में लेकर चूसने लगा. उनके कड़े हुए घुंडी पर ज़ुबान फेरने लगा, और उसको एक अंगूर की तरह चूसने लगा. भाभी मस्ती में "अहह ……….. हाअन्न्न्न्न्न्न्न' की आहें भरने लगी, पर मेरे लौदे को अपनी मुट्ठी में जकड़े ही रखा.

मैं ने एक हाथ को नीचे की तरफ ले जाकर भाभी के चूत को छ्छू कर देखना चाहा कि उस की क्या हालत है. अभी तक मैं ने उनके चूत पर थोरा भी ख्याल नही दिया था. पर चूत तो बिल्कुल रसिया गयी थी! भाभी हर वक़्त पेशाब करने के बाद चूत को
धोकर तौलिए से पोछ लेती है, पर लगा कि सिर्फ़ चूमने-चाटने और चुचि के मसलवाने से ही चूत बिल्कुल गीली हो गयी. पिछली चुदाई के कारण चूत की पंखुरियाँ तो फूली हुई थी ही. मैं अब अपने हाथों के बल थोरा उठा और भाभी के उपर आने की तैयारी करने लगा, पर भाभी ने कहा, " ह्म्‍म्म ……. एक मिनिट रूको ……ह्म्‍म्म्म …. इस तरह आओ."

भाभी ने अपना सर ड्रेसिंग टेबल के आईने की तरफ घूमकर घोरी बनकर अपने चूतड़ को मेरे सामने कर दिए. उनके चूतड़ की गोलाई देखकर मेरी मस्ती और बढ़ गयी. भाभी के कमर और चूतड़ बहुत ही खूबसूरत थे. वैसे भी छरहरा बदन, पर जब वे बैठती थी, तो उनके चूतड़ का आकर पीछे से देखने वाले को बिल्कुल एक सितार के जैसे लगता होगा. बहुत बड़े चूतड़ नही, सिर्फ़ 34 या 35 इंच के (उन्होने एक दिन मुझे बताया था), पर बेहद चुस्त, और जब वो इस तरह अपने पंजों और घुटनों के बल उकड़ू हुईं तो उनकी चूत बीच में मुस्कुराती हुई बिल्कुल मेरे सामने थी. मैं ने चूतड़ को सहलाया और चूमा. उनकी गांद पर उंगली फेरता रहा. भाभी बोल उठी, "अहह ……. हाआंन्‍ननननणणन्!", और तभी मैं ने अपने हाथों को नीचे से ले जाकर उनकी चुचियों को दोनो हाथ में लेकर मसल्ने लगा,
और साथ साथ उनकी गांद को चूमने और चाटने लगा. गांद और चूत के बीच के जगह को चाट रहा था. और अपनी ज़ुबान को नोकिला बनाकर कभी गांद के छेद पर फेरता तो कभी चूत के थोरा अंदर घुसेड देता. भाभी की सिसकारियाँ अब और बढ़ने
लगी. "आअहह …….. म्‍म्म्मममम …… हेन्न्नन्न्न्न …… इसी तरहह ….. हाअन्न्न्न्न्न्न!" चूत तो रसिया गयी थी, और पिच्छली चुदाई के कारण अभी भी कुच्छ कुच्छ फूली हुई थी, और इस लिए मेरे ज़ुबान को अंदर ले लेती थी, पर भाभी के गांद के छेद पर मैं सिर्फ़ थूक मालता रहा. बीच बीच में उनकी गांद कुच्छ और भी सिकुर जाती. भाभी के मुँह से आवाज़ आती रही, "ऊवू ….. हाआंन्‍णणन् ……" मैं ने एक हाथ को नीचे से चुचि से हटाकर चूतड़ पर लाया, उसको मुँह में लेकर थूक
से गीला करके, भाभी के गांद पर फेरने लगा, और कुच्छ अंदर घेसेदने लगा. भाभी सिसकारी लेती रही, " ऊओह …….. हान्णन्न् …… उंगली डाल दो ……….." मैं ने उंगली को करीबन 1 इंच अंदर डालकर उंसको अंदर बाहर करने लगा. भाभी अब अपनी चूतड़ को घुमाने लगी और मेरे उंगली को अंदर लेती रही. मैं भाभी के चूतड़ चूमता रहा, चाटता रहा. "ऊऊऊः. …... हाआंन्‍णणन् ……. इसी तरह ……… ज़्यादा अंदर नही …….. " भाभी के चूतड़ घूमने से मुझे फिर लगा कि अब वो तैयार हो रही हैं, और उन्होने कहा भी, " अब आ जाओ …….. आ जाओ ….. अपने जगह पे ………" पर मैं उनको कुच्छ और मस्ती में लाना चाहता था. इस लिए मैं ने उनकी गांद में उंगली करते हुए ही उनको जांघों को थोरा फैलाकर, अब उनकी चूत में अच्छी तरह से ज़ुबान को घुसेदने लगा. भाभी की सिसकारी ज़ोर्से चलने लगी, "आआहह …….. हाआंणन्न् ……… बहुत गीली हो रही हूँ ………… अब आ जाओ …….. और नही ले सकती ………अब आ भी जाओ ……हाआंन्‍णणन्!", पर मैं तो उसी तरह एक छेद में उंगली और
दूसरे छेद में ज़ुबान से उनको चोद्ता रहा. मेरा लौदा तो सख़्त और मस्त था ही, पर मुझे भाभी को तड़पने में बहुत मज़ा आ रहा था. मैं ने ज़ुबान को और भी अंदर डालकर उनके चूत को जमकर चाट रहा था, उनके दाने को भी बार बार चाट लेता था, और सब कुच्छ इस तरह की कोई जल्दबाज़ी नही है. भाभी फिर कराह उठी, "ऊऊहह ………उउउम्म्म्मम …….अब पेलो अपना मूसल जैसा लौदा …….. बहुत गीली हो गयी हूँ ……….आआहह!" पर मुझे तो भाभी को चिढ़ाना था, उनको मस्ती से तड़पाना था. मैं उसी तरह उनकी चूत को चूस्ता रहा, और कुच्छ देर के बाद भाभी बोलने लगी, "ऊऊहह …….. अब अंदर नही आओगे…….. तो मैं ऐसे ही झड़ने… …. लगूंगी ……. हााईयईईई!" यह सुनकर मैं ने चूत चाटने का रफ़्तार कुच्छ कर कुच्छ कम कर दिया और भाभी के चुचियों को फिर से मसालने लगा. चूतड़ को चाटना जारी रखा. भाभी का सर अब बिस्तर था, पे उनका चूतड़ अब घूमता ही नही, मेरे मुँह को धकेल रहा था, पर मैं उनकी चुचि के घुंडीयों को ज़ोर्से मसलता रहा, और उनको तड़प्ते देख कर मज़ा ले रहा था. मैं भाभी को जल्दी नही झड़ने देना चाहता था, पर साथ ही अभी उनको मस्ती के उस हद तक ले जाना चाहता था कि वो झड़नेवाली मस्ती के करीब तो हों, पर झदें नही.

कुच्छ देर के बाद नीतू भाभी अपने आप को काबू में नही रख सकी. मेरे चाटने से उनकी चूत में बहुत खलबली मच गयी, और वो ज़ोर्से सिसकारी लेते हुए अपनी चूतड़ को मेरे मुँह पर ज़ोर्से रगड़ते हुए निढाल सी होती गयी. " ऊऊहह
……दैययय्याआ रे दैयययययाआआअ …….आअहह ………हाऐईयईईईईईईईईईईईई रे ………. दैयय्य्ाआआअ ……… मैं तो गयी …………उउफफफफफफफफफफफफफ्फ़ ………….हूऊऊऊऊ…… आअहह …………हाआाआअन्न्‍ननननननणणन्!" भाभी ने अपने चूतड़ को बिस्तर गिरा दिया, और सिसकारी लेती ही रही. मैं उसी तरह बिस्तर पर घुटनों के बल बैठे हुए भाभी को देखता रहा. फिर हाँफती रही. मई उनके चूतड़ पर हाथ फेरता रहा, कमर सहलाता रहा. मेरा लौदा सख्ती से बिल्कुल खड़ा था, इस तरह से खड़ा की उसपर
एक बड़े साइज़ के तौलिए को भी आराम से टंगा सकता था.

भाभी कुच्छ सुसताने के बाद मेरी तरफ देखी. और मुस्कुराइ. बोली, "बहुत गीली हो गयी हूँ ……. उफफफफ्फ़ ……… कितने दिनों के बाद इतनी गीली हुई हूँ……..!" मेरे लौदे के तरफ देखकर उनकी आँखें चमकने लगी, "इसको देखो ……… कितना ज़ालिम लौदा है
तुम्हारा! …… हाऐईयइ ……… अभी चखती हूँ इसको मज़ा …………कैसा अकड़ कर खरा है ……… अभी इस बच्चू को बताती हूँ…….." और मेरी तरफ आँखों में आँख डालकर बोली, " अभी तुमको बताती हूँ…….. मैं इतनी जल्दी हारनेवाली नही! ……...
हान्न्न्न्न. ……."

अब भाभी फिर अपने चूतड़ को फिर उठाकर घोरी की तरह अपने मुँह के बैठ गयी, और मुझे इशारा किया कि मैं पीछे से चोदना शुरू करूँ. हम ड्रेसिंग टेबल के बिल्कुल सामने बिस्तर पर थे, और हुंदोनो अपनी चुदाई को आयने में सॉफ सॉफ देख रहे थे. भाभी की नज़र भी मेरी तरह आयने पर थी. मैं ने लौदा को चूत के मुँह पर अच्छी तरह से रगड़ते हुए, चोदना शुरू किया. भाभी की सुरंग वाली चूत में बिल्कुल अंदर ले जाकर, मैं ने अपने गांद को सिकुरकर लौदे को थोरा घुमाने लगा. भाभी की मस्ती इस से खूब बढ़ने लगी, और मेरे लौदे के अंदर घुमाने का जवाब उन्होने अपने चूतड़ को उल्टी तरफ से घूमकर दिया. हम इसी तरह कुच्छ धक्के देते रहे, पर आयने के सामने होने कारण, हुंदोनो की नज़र आयने पर बनी रही. चुदाई हो रही थी, पर हमारा ख्याल आयने पर था. कुच्छ देर तक तो हुमलोगो ने इस तरह चुदाई की, पर वैसा मज़ा नही आ रहा था. भाभी अपने चूतड़ को घुमाना छ्चोड़कर, अपने हाथ को पीछे लाकर मेरे लौदा को पकड़कर रोक लिया, और मुझ से कहा, "ऐसे नही मज़ा आ रहा ……..इधर आओ …….. तुम लेतो!"

मैं सर के नीचे दोनो हाथ लेकर लेट गया, और भाभी अपने टाँगों को फैलाकर मेरे सूपदे के नीचे ठीक से पकड़कर अपनी चूत के दाने को सूपदे से रगड़ती रही. फिर अपने कमर को सीधा करके, अपने चुचियों को थोरा उचकते हुए भाभी मेरे लौदे को अपनी चूत में आहिस्ते आहिस्ते, पर बिना रुके हुए, बिल्कुल गहराई में ले लिया. वो अपनी चूतड़ को थोरा इधर-उधर घुमाई , और फिर अपने सर को नीचे कर के देखी की लौदा बिल्कुल जड़ तक गया है, और अपनी चूतड़ अब चलाने लगी. मैं उनकी कमर पकड़ कर उनके थाप को थोरा सपोर्ट दे रहा था, पर भाभी का खुद का कंट्रोल ज़बरदस्त था. "फच ….फच्छ…" की आवाज़ के साथ उनका थाप चलने लगा. चूत इतनी गीली हो गयी थी हर धक्के के साथ मेरे लौदे के जड़ पर कुच्छ रस लग जाती थी. भाभी एक माहिर चक्की चलाने वाली औरत की तरह मेरे लौदे पर बैठकर अपने चूतड़ की चक्की चलाकर मसाला पीस रही थी. ऐसी पीसने वाली जो बिल्कुल महीन मसाला पीस कर ही खुश हो सकती है! मैं नीचे से उनके थाप का जवाब दे रहा था, हर थाप के बाद अपने कमर को उठाकर, थोरा अपना गांद को सिकुरकर, लौदा को पेलते हुए कुच्छ घुमाता था, और फिर भाभी की जानलेवा चक्की! इस तरह कुच्छ देर तक हुंदोनो एक दूसरे के साथ झूला झूलने के हिलोर देते रहे. पर भाभी फिर ज़ोर्से धक्के देने लगी, और चक्की भी उसी रफ़्तार में. उनकी आवाज़ भी बदल रही थी. मैं ने जब देखा कि भाभी एक बार फिर झड़नेवाली हैं, मैं ने अपने लौदा को इस तरह घुसेड़ना शुरू किया कि वो भाभी के दाने को भी रगड़ता अंदर जाए, और उसी तरह रगड़ते हुए बाहर भी आए. भाभी "हाआअंन्न ….
मैं तो फिर झाड़ रही हूवान्न्न्न.. ……!" कहते हुए मेरे छाती पर सर रखकर निढाल हो कर लेट गयी. उनकी चूत मेरे लौदे को दबा रही थी, और मैं अपने लौदे को उनका मज़ा बढ़ने के लिए चूत के अंदर घुमाता रहा. "हाआंन्न ……. ऊऊहह …. हाआऐ रे दैय्य्याआ …….ऊऊहह! ……. हाआंन्‍नणणन् ……. ऊवूवुउवूवैयीयियी ….. मेरिइईई चूऊऊओट कित्नीईईइ गिलिइीईईई हो रही है.. …..ऊऊओह ……. ह्हयाययीयीयियी रे ….. दैयया ……..ऊऊओह!"

एक गहरी साँस लेकर नीतू भाभी उसी तरह मेरी छाती को पकड़े लेटी रही. पसीना चल रहा था. बाल बिल्कुल खुल गये थे. माथे पर का टीका लिप गया था. साँस फूली हुई थी. पर कुच्छ देर के जी बाद, भाभी एक बाँह के सहारे अपना सर उठाकर
मेरी तरफ देखी, और झूठा गुस्सा दिखाते हुए पूछि," क्यूँ, तुम अपने को बहुत उस्ताद समझने लगे हो? …… मुझे उस तरह से तडपा रहे थे ……कब से मैं झड़ना चाहती थी ….. और तुम …… बार बार …... मुझे रोक रहे थे ……..उफफफफफफफफफफफ्फ़!"

"आपको अच्छा नही लगा क्या?"

"व्हूऊऊ! …….पागल ……..बहुत मज़ा आया ………बहुत मज़ा करते हो तुम!" वो अपने सर को उठाकर मेरी तरफ देखते हुए बोली. फिर पूछि, " तुम तो नही झाडे हो अभी ना?"

मैं ने सर हिलाकर बताया कि नही.

"मस्ती से झादोगे?"

"हाँ!"

"अच्छा! ……ह्म्‍म्म्मम …….फिर आओ….. अब झड़ना चाहते हो?

मैं उसी तरह लेटा रहा, पर मैं समझ गया कि अब भाभी कुच्छ शोख अंदाज़ में कुच्छ शुरू करनेवाली हैं. वो अपने दोनो हाथ बिस्तर पर जमाए अपनी चूत को मेरे लौदे पर रखकर धीरे धीरे चूतड़ घुमा रही थी.

"बोलो ….."

"जी……."

वो अपनी शोख और शरारतवाली मुस्कुराहट के साथ पूछि, " क्यूँ ……….झड़ना चाहते हो? ……..हुन्ह ……….बोलो! मुझे तो झड़ने नही दे रहे थे …….और तुम खुद झड़ना चाहते हो! …….. हन्‍न्‍नममम ……….बोलो"

" आआहह ……. भाभी…..शायद मैं ……आहह …….समझ नही सका ……. ……..मुझे लगा कि आप को और मज़ा क़राउ!" "हान्णन्न्? ……..तो? …….. भाभी को झड़ने से रोक रहे थे……? …. बोलो!"

" …… इसी लिए …..आअहह ……आपको थोरा रोक रहा था …….आअहह!"

भाभी उपर से तो बहुत कम घूम रही थी, और अभी जोरदार थाप न्ही नही लगा रही, पर अंदर ही अंदर उनकी चूत मेरे लौदा की तरह से दबा रही थी, जैसे चूत के अंदर मेरे लौदा को दूहा जा रहा हो.

`अच्छा ? ……… "थोरा" रोक रहे थे? …… "थोरा" कितना होता है ? . ……अभी बताती हूँ …….तुमको …….!"

भाभी धीरे धीरे चक्की पीसने लगी फिर, पर अभी भी चूत के अंदर लौदे को उसी तरह दबाती रही. मुस्कुराते हुए.

"थोरा…… क्यूँ? "थोरा" कहीं ज़्यादा तो नही हो गया?"

"हो सकता है!"

"अच्छा? …….हो सकता है?" यह कटे हुए भाभी ने अपनी चूत को कुच्छ इस तरह घुमाया कि मेरे पूरा सूपदे, जिसकी सख्ती का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं, चूत के जकड़न में बिल्कुल दब गया. कभी सूपड़ा जकड़न में दबाता था, कभी लौदे के जड़ का हिस्सा, कभी बीच का हिस्सा. बहुत कम ही हिलाते हुए, भाभी अपने चूत की कमाल दिखा रही थी. और मैं मस्ती के नशे में पागल हो रहा था!

मेरे मुँह से आवाज़ निकालने लगी, "ऊऊहह!"

"क्यूँ ……..सही जगह जकड़ा?"

"हान्न्न ………….भाभी!"

"ओह्ह्ह ……तब तो ठीक है ………जगह मिल गया मुझे!" वो फिर उसी तरह से चूत को सिंकुरने लगी, और मेरा लौदा मस्ती में फिर अकड़ने लगा अंदर, और मुझे फिर अपने गांद को सिंकुर कर काबू में रखना परा अपने आप को. " क्यूँ? …….लगता है कि अब झड़नेवाले हो? …….ह्म्‍म्म्म?"

`जी…"

`अच्छाा??? ……"

वो फिर अपने केहुनि के सहारे उठकरसर नीचे की तरफ देखा. उनके रस में गीला मेरा लौदा का करीब तीन-चौथाई दिख रहा था, भाभी अपने चूतड़ को उपर उठाई थी. वो अपने चूतड़ को कुच्छ और उठाई, जिस से कि आन सिर्फ़ मेरा सूपड़ा उनके
चूत के अंदर था. उनके चूत का मुँह मेरे सूपदे पर उंगती की तरह बैठा था. भाभी अपनी चूतड़ को उसी जगह, उसी तरह रखी रही, सिर्फ़ मेरे सूपदे को जकड़े हुए. "अभी नहियैयी ….."!

"अच्छाअ? ……..अब बोलो ……"थोरा" रुकोगे?" उसी तरह सिर्फ़ मेरे सूपदे को अब भाभी मद्धम मद्धम रफ़्तार में दबाने लगी. मेरे लौदे में ऐसा महसूस हो रहा था कि भाभी की चूत उसको चूम रही है, चारो तरफ चूस रही है. मैं अब आपने आप को काबू में नही रख सकता था. मैं "आआहह …… भाभिईीईईईईईईईईईईई ……….ऊऊहह'" की सिसकारी लगाने लगा.

भाभी मेरी हालत देख रही थी, पर मेरी मस्ती से वो और भी जोशीला होती जा रही थी. "अभी नहियिइ ……" वो गाने के अंदाज़ में बोलती रही, "अभी नहियीई…." और अपना मुँह मेरे करीब ले आई. फिर वो मेरे लौदे को अंदर लेने लगी, आहिस्ते आहिस्ते. एक
बार में एक इंच से ज़्यादा नही ले रही थी, और हर बार लौदे को एक जकड़न से दबा देती थी. भाभी के कमर का कंट्रोल बहुत ही ज़बरदस्त था, और पूरे लौदे को अंदर लेने के बाद वो एक गहरी साँस ली, और मेरे लौदे के जड़ पर अपने चूत के मुँह को बैठा कर रुकी. हमारे झाँत मिले हुए थे. अब शुरू हुई नीतू भाभी की चक्की फिर से. चूतड़ को घुमाती थी, फिर मेरे चेहरे को देखती कि मेरी क्या हालत हो रही है, और मेरे आँखों में आँखें डाले चूत को अंदर ही अंदर सिकोड कर मेरे लौदे को जाकड़ लेती थी.

मेरा लौदा इन हरकतों से चूत के अंदर ही उचक रहा था, बार बार. मेरा कमर हर बार उपर उठ जाता था.

"अभी झड़ना नही… …." वो फुसफुसकर मुझसे बोली, और फिर थाप देने लगी, मेरे आँखों में मुस्कुराहट के साथ देखते हुए. आहिस्ते से. करीबन दो सेकेंड लगती थी उठने में, और फिर दो सेकेंड बैठने में. "अभी नही झड़ना ….. बहुत मज़ा आ रहा है …….. अभी मज़ा करो! ……. ठीक?"

इसी तरह से करीबन 10 मिनिट तक भाभी मुझको मस्ती करती रही. उनका रफ़्तार बिल्कुल एक जैसा रहा, आंड हर थाप एक जगह से उठाकर बिल्कुल उसी जगह पर पहुँचकर रुकता था. हो सकता है, !0 मियनुट नही, 5 मिनिट ही रहा हो या हो सकता है कि 20 मिनिट तक चला हो. सच पूच्हिए तो मैं होश में था ही नही, मेरे लिए उस वक़्त समय का कोई मतलब नही था. "अभी नहियीईई ……..अभी नहियीईईई ……." भाभी गाते हुए मेरे चेहरे पर उंगली फेर्कर प्यार करती रही. बीच बीच में वो अपने चूतड़ को कुच्छ और नीचे दबा देती थी, और मेरा सूपड़ा उनके बच्चेड़नी के मुँह को छ्छू लेता था, और मैं हर बार मस्ती से सिहर जाता था. मेरे चेहरे को देखते हुए, हर सिहरन पर भाभी की मुस्कुरात और खिल जाती थी.

जब उन्होने देखा की मेरा पूरा बदन अकड़ गया है, वो मेरे चेहरे को चूमने लगी, मेरे आँखों पर, मेरे गर्दन पर, मेरे गाल पर.

"तैयार हो?", उन्होने शरारत से पूचछा.

" जी…." मेरी मस्ती ऐसी थी की मैं अपनी आवाज़ को भी नही पहचान सकता था. लगा जैसे कमरे के किसी और कोने से आवाज़ आई है. मेरे टांग बिल्कुल अकड़ गये थे.

"क्यूँ ….. रस का झोला भर गया है?"

"जी…"

वो उसी तरह थाप देती रही, और मेरे चेहरे को सहला रही थी. उनका चेहरा मेरे मुँह के बिल्कुल पास था.

"बहुत मज़ा आ रहा है………आअहह …….हाअन्न्न्न्न! ……है ना?"

मैं अब कुच्छ नही बोल सका. मेरा बदन इस तरह अकड़ गया था, मेरे लौदे में इस तरह की जलन थी, की मेरे लिए "आहह" कहना भी मुश्क़िल होता. मुझे लगा कि अगर अब मैं जल्दी नही झाड़ा तो पता नही क्या हो जाएगा, शायद मैं पागलों की तरह चिल्लाने ना लगूँ! मेरे मुँह से चीख ना निकलने लगे! पर भाभी इस तरह से चक्की चला रही थी कि मैं इसे भी छ्चोड़ना नही चाहता था. किसी तरह से अपने आपको काबू मे रखे रहा, और सोचता रहा कि भाभी भी क्या कमाल की औरत हैं! क्या
मस्ती लेना जानती हैं! क्या मस्ती करना जानती हैं!

यह सब सोचते हुए ही मुझे लगा कि अब मेरा लौदा काबू में नही रहा. मैं झड़ने लगा. एक फुहारा, फिर दूसरा, तीसरा. ज़ोर्से और पूरी गर्मी के साथ.

भाभी बोली, "हन्ंणणन्!"

मैं ने सोचा, " भाभिईीई ……. तुम भी ……ग़ज़ब की चीज़ हो!", और मैं झाड़ता रहा, झाड़ता रहा. भाभी ने फिर से मुझे उकसाया, "हान्णन्न् ……. हान्ंणणन्!"

मेरे मुँह से सिर्फ़ एक लंबी "आआआआहह" निकल सकी.

नीतू भाभी मुस्कुरा रही थी. मेरे कान के पास मुँह लाकर फुसफुसाई, " अब मज़ा लो …..हाआंन्‍णणन् ……..!" अब उनके कमर की रफ़्तार धीमी हुई, फिर रुक सी गयी. मेरे लौदे को उसी तरह चूत में रखे हुए, भाभी मेरा चेहरा सहला रही थी. मैं ने अपने आँखें खोले तो देखा की भाभी की चेहरे पर खुशी की चमक थी.

"अब तुमको मज़ा चखाई ना? ……..क्यूँ? कैसा लगा?"

"ऊऊहह," मेरे मुँह से निकली, और मैं ने अपने मूँछ और होंठ पर से पसीने को पोच्छा.

"बोलो ……. कैसा लगा?"

मैं ने चेहरे पर से बाल हटाए, और गहरे साँस लेता रहा. बोला, "मज़ा आया… खूब मज़ा!"

"कितना मज़ा? …… ठीक से बताओ!"

मैं ने उनकी आँखों में देखते हुए कहा, "क्या बताउ ……. आप तो मज़े से पागल कर रही थी मुझे. ……… मैं तो होश में नही था!"

"ह्म्‍म्म्ममम …..इस में कुच्छ बचा भी है?", पूछ्ते हुए भाभी एक दो बार फिर मेरे लौदे को चूत के अंदर दबाने लगी. "और झदोगे?"

"उफफफफफफफ्फ़ ……." मैं ने कहा, "कुच्छ नही बचा है …….इसकी क्या बात करती हैं …… कहा ना, मेरी जान भी नही बची है …….ऊऊओह!"

"अर्रे ……इतनी मस्ती से झड़ने के बाद कुच्छ मज़ेदार बात करो ….कुच्छ गंदी बातें तो करो!"

"ह्म्‍म्म्मम…"

"कुच्छ तो बोलो," और भाभी ने अपनी चूत को फिर सिनकोड लिया, और लंड का जकड़न बढ़ा दिया.

मैं ने उनके तरफ देखा. वो भी मुझे शोखी के साथ देख रही थी. मैं ने अपने हाथ उठाकर उनके बाल को छुते हुए कहा, " चूस लीजिए ……… अपनी चूत से मेरे लौदे को चूस लीजिए……चलिए!"

"हाँ?"

"हमम्म्मममममम…. एक-एक बूँद निचोड़ लीजिए!"

"अच्छा?"

"हामम्म्ममममम!"

"ऊर्ग्ग्घ्ह्ह्ह…." मैने कहा, "लीजिए और!"

"ह्म्‍म्म्म …… और भी है?"

" अब नही है… एक एक बूँद तो आप निचोड़ ली!"

"सच में? ….. एक भी बूँद नही?"

भाभी अपनी होंठ भींच रही थी. उनकी आँखों मे मस्ती समाई नही जा रही थी, और वो मुझ से कही, " हाऐ ……….. बहुत मज़ा आया!" मैं अपना एक हाथ उठाकर भाभी के गाल को सहलाया, उनके होंठ पर उंगली फेरा.

भाभी ने अपना सर फिर नीचे करके हल्के से कान को काटने लगी, अपनी गीली चूत की पत्तियॉं और दाने को मेरे लौदा के उपर रगदकर मेरे कान में धीरे से बोली, " क्यूँ?…हो सकता है …कि थोरा सा अभी भी बचा हो ……कहीं किसी कोने में!… क्यूँ…. अपने मुँह से चूस कर निकाल लूँ? ………ह्म्‍म्म्मममम? ….बोलो!"
तो दोस्तो कैसी लगी ये देवर भाभी की दास्तान









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