कंचन --5
रामलाल जल्दी से बाहर चला गया क्योंकि अब उसका लंड टन गया था और बहू को नज़र आ जाता. लेकिन कंचन भी अनारी नहीं थी. उसे अक्च्ची तरह पता था की ससुर जी ने मौके का पूरा फ़ायदा उठाया था. उसकी जांघों को जिस तरह से उन्होने पकरा था वैसे एक ससुर अपनी बहू की टाँगें नहीं पकर्ता. उसके छूटरों के बीच में मुँह देना, और फिर उसे गिरने से बचाने के बहाने दोनो चूचियाँ दबा देना कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था. और फिर उसे गिरने से बचाने के बाद उसके छूटरों के साथ ऐसे चिपक के खरे थे की कंचन को उनका लंड अपने छूटरों पर रगारता हुआ महसूस हो रहा था. ससुरजी जल्दी से बाहर तो चले गये लेकिन उनकी धोती का उठाव कंचन से नहीं च्छूपा था. वो समझ गयी की ससुर जी का लंड ट्यूना हुआ था. कंचन नहाने के लिए बातरूम में चली गयी. लेकिन उसके छूटरों के बीच ससुरजी के मुँह का स्पर्श और उसकी चूचीोन पे उनके हाथ का स्पर्श उसे अभी तक महसूस हो रहा था. उसकी चूत गीली होने लगी और पहली बार उसने ससुर जी के नाम से अपनी चूत में उंगली डाल कर अपनी वासना की भूक को शांत करने की कोशिश की. अब तो कंचन ने भी ससुर जी को रिझाने का प्लान बनाना शुरू कर दिया. एक बार फिर सासू मा को ससुर जी के साथ शहर जाना था. इस बार राम लाल ने पहले ही किसी को गाड़ी के लिए बोल दिया था. उसने इस बार भी माया देवी को किसी के साथ गाड़ी में शहर भेज दिया. माया देवी के जाने के बाद वो कंचन से बोला की वो खेतों में जा रहा है और शाम तक आएगा. रामलाल के जाने के बाद कंचन ने घर का दरवाज़ा अंडर से बूँद कर लिया और कापरे धोने और नहाने की टायारी करने लगी. उधेर रामलाल थोरी दूर जा के वापस आ गया. उसका इरादा फिर पहले की तरह अपने कमरे में साइड के दरवाज़े से घुस कर बहू को देखने का था. वो सोच रहा था की अगर किस्मत ने साथ दिया तो बहू को नंगी देख पाएगा. कंचन किसी काम से छत पे गयी. अचानक जब उसने नीचे झाँका तो उसकी नज़र चुपके से अपने कमरे का ताला खोलते हुए रामलाल पे पर गयी. कंचन समझ गयी की रामलाल चुपचाप अपने कमरे में क्यों घुस रहा है. अब तो कंचन ने सोच लिया की आज वो जी भर के ससुर जी को तरपाएगी. मर्दों को तरपाने में तो वो बचपन से माहिर थी. वो नीचे आ कर अपने कमरे में गयी लेकिन कमरे का दरवाज़ा खुला छ्होर दिया. उधर रामलाल अपने कमरे में से बहू के कमरे में झाँक रहा था. कंचन शीशे के सामने खरी हो कर अपनी सारी उतारने लगी. उसकी पीठ रामलाल की ओर थी. रामलाल सोच रहा था की बहू कितनी अदा के साथ सारी उतार रही है जैसे कोई मारद सामने बैठा हो और उसे रिझाने के लिए सारी उतार रही हो. उसे क्या पता था की बहू उसी को रिझाने के लिए इतने नखरों के साथ सारी उतार रही थी. धीरे धीरे बहू ने सारी उतार दी. अब वो सिर्फ़ पेटिकोट और ब्लाउस में ही थी. कंचन पेटिकोट और ब्लाउस में ही आँगन में आ गयी. उसे मालूम था की ससुर जी की नज़रें उस पर लगी हुई हैं. सफेद पेटिकोट के महीन कापरे में से बहू की काली रंग की कcछि सॉफ नज़र आ रही थी. ख़ास कर जब बहू चलती तो बारी बारी से उसके मटकते हुए छूटरों पे पेटिकोट टाइट हो जाता और कcछि की झलक भी और ज़्यादा सॉफ हो जाती. रामलाल का लॉडा हरकत करने लगा था. बहू आँगन में बैठ के कापरे धोने लगी. पानी से उसका ब्लाउस गीला हो गया था और रामलाल को अंडर से झँकता हुए ब्रा भी नज़र आ रहा था.थोरी देर बाद बहू अपने कमरे में गयी और फिर शीशे के सामने खड़े हो के अपनी जवानी को निहारने लगी. अचानक बहू ने अपना ब्लाउस उतार दिया. वो अब भी शीशे के सामने खरी थी और उसकी पीठ रामलाल की ओर थी. फिर धीरे से बहू का हाथ पेटिकोट के नारे पे गया. रामलाल का तो कलेजा ही मुँह को आ गया. वो मनाने लगा - हे भगवान बहू पेटिकोट भी उतार दे. भगवान ने मानो उसकी सुन ली. बहू ने पेटिकोट का नारा खींच दिया और अगले ही पल पेटिकोट बहू के पैरों में परा हुआ था. अब बहू सिर्फ़ कcछि और ब्रा में खरी अपने आप को शीशे में निहार रही थी. क्या तराशा हुआ बदन था. भगवान ने बहू को बरी फ़ुर्सत से बनाया था. बहू की ब्रा बरी मुश्किल से उसकी चूचीोन को संभाले हुए थी और उसके विशाल चूतेर ! छ्होटी सी काली कcछि बहू के उन विशाल छूटरों को संभालने में बिल्कुल भी कामयाब नहीं थी. 80% चूटर कcछि के बाहर थे. शीशे में अपने को निहारते हुए बहू ने दोनो हाथ सिर के ऊपर उठा दिए और बाहों के नीचे बगलों में उगे हुए बालों का निरीख़्शां करने लगी. बॉल बहुत ही घने और काले थे. रामलाल सोच रहा था की शायद बहू को बगलों में से बॉल सॉफ करने का टाइम नहीं मिला था वरना शहर की लड़कियाँ तो बगलों के बॉल सॉफ करती हैं. अगर बगलों में इतने घने बॉल थे तो चूत पे कितने घने बॉल होंगे. इतने में बहू ने झारू उठा ली और कमरे में झारू लगाने लगी. उसकी पीठ अब भी रामलाल की ओर थी. कंचन अक्च्ची तरह जानती थी इस वक़्त रामलाल पे क्या बीत रही होगी. झारू लगाने के बहाने वो आगे को झुकी और अपने विशाल छूटेरों को बहुत ही मादक तरीके से पीछे की ओर उठा दिया. कंचन जानती थी की उसके चूटर मर्दों पे किस तराश कहर धाते हैं. राम लाल का कलेजा मुँह में आ गया. उसकी आखें तो मानो बाहर गिरने को हो रही थी. जिस तरह से कंचन आगे झुकी हुई थी और उसके छूटेर पीच्चे की ओर उठे हुए होने के कारण दोनो छूटेर ऐसे फैल गये थे की उनके बीच में कम से कम तीन इंच का फासला हो गया था. ऐसा लग रहा था जैसे दोनो छूटेर बहू की छ्होटी सी कcछि को निगलने के लिए तयर हों. रामलाल को कोई शक नहीं था की जैसे ही बहू सीधी होगी उसके विशाल छूटेर उस बेचारी छ्होटी सी ककच्ची को निगल जाएँगे. कंचन भी जानती थी की जुब वो सीधी होगी तो उसकी पॅंटी का क्या हाल होगा. वही हुआ. बहू झारू लगते लगते सीधी हुई और उसके विशाल छूटरों ने भूके शेरों की तरह उसकी कcछि को दबोच लिया. अब कcछि उसके दोनो छूटरों के बीच में फाँसी हुई थी. रामलाल का लंड फंफनाने लगा. कंचन ये झारू लगाने का खेल थोरी देर तक खेलती रही. बार बार सीधी हो जाती. धीरे धीरे उसकी पॅंटी छूटरों पे से सिमट के उनके बीच की दरार में फँस गयी. कंचन जानती थी की इस वक़्त ससुर जी पे क्या बीत रही होगी. लेकिन अभी तो खेल शुरू ही हुआ था. कंचन फिर से शीशे के सामने खरी हो गयी. शीशे में अपने खूबसूरत बदन को निहारते हुए बरी अदा के साथ उसने छूटरों के बीच फाँसी पॅंटी को निकाल के ठीक से अड्जस्ट किया. फिर उसने धुला हुआ पीटिकोआट और ब्लाउस निकाला. अब कंचन शीशे के सामने खरी हो गयी और अपनी ब्रा उतार दी. उसकी पीठ रामलाल की ओर थी. ब्रा उतरने के बाद उसने बरी अदा के साथ अपनी पॅंटी भी उतार दी. अब वो शीशे के सामने बिल्कुल नंगी खरी थी. रामलाल के तो पसीने ही छ्छूट गये. बहू को इस तरह नंगी देख कर उसके मुँह में पानी आ रहा था. क्या जान लेवा बदन था बहू का. रामलाल मना रहा था की बहू घूम जाए तो उसकी चूचिओन और चूत के भी दर्शन हो जाएँ. लेकिन ऐसा कुकच्छ नहीं हुआ. अब बहू अचानक आगे की ओर झुकी मानो ज़मीन पे पारी हुई किसी चीज़ को उठाने की कोशिश कर रही हो. आई करने से उसके छूटेर पीच्चे की ओर उठ गये. ऐसा करने से बहू की गोरी गोरी जांघों और छूटरों के बीच से झान्तोन के काले काले बॉल झाँकने लगे. कंचन फिर से सीधी हुई और रामलाल की ओर पीठ रखते हुए ही ब्लाउस पहना और फिर पेट्कोट पहन लिया. रामलाल जानता था की बहू ने ब्लाउस की नीचे ब्रा और पेटिकोट के नीचे कcछि नहीं पहनी है. अब कंचन उतारे हुए कापरे ले कर आँगन में धोने आ गयी. बिना कcछि के बहू के छूटेर चलते वक़्त ज़्यादा हिल रहे थे. कापरे धोते हुए उसका ब्लाउस गीला हो गया. अंडर से ब्रा ना पहना होने के कारण रामलाल को बहू की बरी बरी चूचियाँ और निपल्स सॉफ नज़र आ रहे थे. बहू पैर मोर के बैठी थी. पेटिकोट उसकी मूरी ही टाँगों के बीच में फँसा हुआ था. रामलाल मना रहा था की किसी तरह पेटिकोट का निचला हिस्सा बहू की टाँगों से निकल जाए. रामलाल को बहुत इंतज़ार नहीं क्रना परा. कंचन का भी वही इरादा था. इस कला में तो वो बहुत माहिर थी. एक बार पहले भी अपने देवर के साथ ऐसा ही कुकच्छ कर चुकी थी. कापरे धोते धोते उसने पेटिकोट का निचला हिस्सा अपनी मूरी हुई टाँगों से छ्छूट के गिरने दिया. कंचन उसी प्रकार कापरे धोने बैठी हुई थी जैसे औरतें पेशाब करने बैठती हैं. कंचन को मालूम था की अब उसकी नंगी चूत पूरी तरह फैली हुई थी. क्योंकि कमला ने उसकी चूत के च्छेद के आस पास के बॉल काट दिए थे, इसलिए अब तो उसकी फूली हुई छूट की दोनो फाँकें, उनके बीच का कटाव और कटाव के बीच में से चूत के बारे बारे होंठ सॉफ नज़र आ रहे थे. रामलाल को तो मानो लकवा मार गया. उसे डर था की कहीं उसके दिल की धड़कन रुक ना जाए. लेकिन अगले ही पल कंचन ने पेटिकोट फिर से ठीक कर लिया. रामलाल को उसकी चूत के दर्शन मुश्किल से तीन सेकेंड के लिए ही हुए. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में घाना जंगल और उस जंगल में से झाँकति फूली हुई वो चूत ! क्या ग़ज़ब का नज़ारा था. बहू की छूट के होंठ ऐसे खुले हुए थे मानो बरसों से प्यासे हों. ऊफ़ क्या लुंबी घनी झाँटेन थी बहू की. कापरे धोने का नाटक करते हुए कंचन ने ब्लाउस और पेटिकोट खूब गीला कर लिया था. भीगा हुए ब्लाउस और पेटिकोट कंचन के बदन से चिपका जा रहा था. कंचन काफ़ी देर तक ससुरजी को इसी तरह तरपाती रही. इस घटना के बाद ना जाने रामलाल ने बहू की चूत की याद में कितनी बार मूठ मारी. सिर्फ़ एक बार बहू की चूत लेने के लिए तो वो जान भी देने को तयर था. लेकिन क्या करता बेचारा. रिश्ता ही कुकच्छ ऐसा था. रामलाल की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. कंचन रामलाल के दिल की हालत अक्च्ची तरह जानती थी. आख़िर मर्दों को तरपाने का खेल तो वो बचपन से खेल रही थी. एक रात की बात है. सासू मा अपने कमरे में सो रही थी और रामलाल भी अपने कमरे में लाइट बंड करके सोने की कोशिश कर रहा था. इतने में उसे कुकच्छ आवाज़ आई. कमरे से बाआहर झाँका तो देखा की बहू बाथरूम की ओर जा रही थी. बहू ने नाइटी पहन रखी थी और नाइटी के बारीक कापरे में से उसकी मांसल टाँगों की झलक मिल रही थी. रामलाल समझ गया की बहू पेशाब करने जा रही थी. बहू की चूत से निकलते पेशाब के मादक संगीत की कल्पना से ही रामलाल का लंड खरा होने लगा. कंचन बाथरूम में गयी लेकिन सबको सोया समझ कर उसने बाथरूम का दरवाज़ा अंडर से बूँद नहीं किया. थोरी देर में ' प्सस्सस्सस्स........' का मधुर संगीत रामलाल के कानो में परने लगा. अचानक ज़ोर से बहू के चिल्लाने की आवाज़ आई. " एयाया आआआअ आआआअ ईईईई ईईईईईईईईई ईईईईईईईईईईई......" रामलाल घबरा के बाथरूम में भागा. उसने देखा बहू बुरी तरह घबराई हुई थी. उसके चेहरे पे हवाइयाँ उर रही थी. बहुत ही अक्च्छा मोका था. रामलाल ने मोके का पूरा फ़ायदा उठाते हुए बहू को खींच के सीने से लगा लिया. कंचन तो बुरी तरह घबराई हुई थी. वो भी रामलाल के बदन से चिपक गयी. रामलाल कंचन की पीठ सहलाता हुआ बोला, " क्या हुआ बहू ?" " ज्ज्ज्जीए ... सस्साआँप. साँप" कंचन नाली की ओर इशारा करते हुए बोली. " वहाँ तो कुकच्छ नहीं है." रामलाल बहू की पीठ सहलाता हुआ बोला. बहू ने ब्रा नहीं पहना हुआ था. " नहीं पिता जी नाली में से काले रंग का एक लूंबा मोटा साँप निकला था. शायद नाग था." " कैसे निकला बहू? तुम क्या कर रही थी?" रामलाल का हाथ बहू की पीठ से फिसल कर उसके मोटे मोटे छूटरों पे आ गया. " हम वहाँ नाली पे बैठ के पेशाब कर रहे थे की अचानक वो मोटा कला नाग निकल आया. है राम कितना डरावना था. हुमारी तो जान ही निकल गयी." बहू को दिलासा देने के बहाने रामलाल उसके विशाल छूटरों को सहलाने लगा. अचानक उसे एहसास हुआ की बहू ने ककच्ची भी नहीं पहनी हुई थी. नाइटी के अंडर से बहू की नंगी जवानी रामलाल के बदन को गरमर्रही थी. " अरे बहू तुमने आज अंडर से ब्रा और ककच्ची नहीं पहनी है?" कंचन को भी अचानक एहसास हुआ की वो ससुर जी से चिपकी हुई है और ससुर जी काफ़ी देर से उसकी पीठ और छूटरों को सहला रहे हैं. वो शरमाती हुई बोली, " जी सारा दिन बदन कसा रहता है ना, इसलिए रात को सोने से पहले हम ब्रा और ककच्ची को उतार के सोते हैं." " तुम ठीक करती हो बहू. सारा दिन तो तुम्हारी जवानी ब्रा और ककच्ची में कसी रहती है. रात में तो उसे आज़ादी चाहिए." नाली के पास ही एक बाल्टी में बहू की ब्रा और ककच्ची ढोने के लिए पारी हुई थी. रामलाल उनकी ओर इशारा करते हुए बोला, " वही हैं ना तुम्हारे कापरे.?" " जी." " हूओन... अब समझा ये नाग यहाँ क्यों आया था." रामलाल बहू की ककच्ची उठता हुआ बोला. " क्यों आया था पिताजी ?" कंचन रामलाल के हाथ में अपनी उतारी हुई पॅंटी देख के बुरी तरह शर्मा गयी. रामलाल बहू के सामने ही उसकी पॅंटी को सूघता हुआ बोला. " अरे बहू इस ककच्ची में से तुम्हारे बदन की खुश्बू आ रही है. उस काले नाग को तुम्हारे बदन की ये खुश्बू पसंद आ गयी होगी. जुब तुम पेशाब करने के लिए पैर फैला के बैठी तो वही खुश्बू नाग को फिर से आई. इसीलिए वो एकद्ूम से बाहर निकल आया." रामलाल बहू के मादक छूटरों को सहलाता हुआ बोला. " ठीक है पिताजी आगे से हम अपने कापरे बाथरूम में नहीं रखेंगे." " हां बहू ये तो शूकर करो नाग ने तुम्हें टाँगों के बीच में नहीं काट लिया, नहीं तो बेचारे राकेश का क्या होता?" रामलाल बहू के छूटेर दबाता हुआ बोला. " हाअ...! पिताजी आप तो बहुत खराब हैं. हम ऐसे ही थोरे ही काटने देते." "तो फिर कैसे काटने देती बहू?" रामलाल को ककच्ची में चिपके हुए बहू की झांतों के दो बॉल नज़र आ गये. " ये बॉल तुम्हारे हैं बहू.?" कंचन का चेहरा सुर्ख लाल हो गया. वो हकलाती हुई बोली, " ज्ज्ज्जीए..." " बहुत लूंबे हैं. हम तो तुम्हारे सिर के बॉल देख कर ही समझ गये थे की बाकी जगह के बॉल भी खूब लूंबे होंगे." अब तो कंचन का रामलाल से आँख मिला पाना मुश्किल हो रहा था. ससुर जी की बाहों से अपने आप को च्छुरा के बोली, "एम्म्म.....पिता जी हुमें बहुत नींद आ रही है अब हम सोने जा रहे हैं." कंचन जल्दी से अपने कमरे में भाग गयी. वो सोच रही थी की आज दूसरी बार ससुर जी ने मोके का पूरा फ़ायदा उठाया और वो कुकच्छ ना कर सकी. उधर रामलाल अपने बिस्तेर पे करवट बदल रहा था. वो बहू के सोने का इंतज़ार कर रहा था ताकि बाथरूम में जा के उसकी कcछि को सूंघ के उसकी मादक चूत की महक ले सके. जैसे ही कंचन के कमरे की लाइट बूँद हुई रामलाल बाथरूम की ओर चल परा. बाथरूम में घुस कर बहू की कcछि को सूघते सूघते उसका लंड बुरी तरह खरा हो गया. रामलाल बहू की नाज़ुक ककच्ची को अपने लंड के सुपरे पे रख के रगार्ने लगा. काफ़ी देर तक रगार्ने के बाद वो झाड़ गया और उसके लंड ने ढेर सारा वीरया बहू की ककच्ची में उंड़ेल दिया. रामलाल कक़ची को वहीं धोने के कप्रों में डाल कर वापस अपने कमरे में आ कर सो गया. अगले दिन जुब कंचन ने धोने के लिए अपनी पॅंटी उठाई तो वीरया के दाग लगे हुए देख कर समझ गयी की ससुर जी ने रात को अपना लंड उसकी पॅंटी पे रग्रा है. अब तो कंचन के मन में ससुर जी के इरादों के बारे में कोई शक नहीं रह गया था. कहानी अभी बाकी है अगले भाग का इंतजार करे
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