Monday, May 24, 2010

ससुर बहु की कहानी-- कंचन--7

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कंचन --7


एक दिन फिर से सासू मा को शहर जाना था। इस बार रामलाल ने फिर उन्हें अकेला ही भेज दिया. बीवी के जाने के बाद वो कंचन से बोला, " बहू आज बदन में बहुत दर्द हो रहा है ज़रा कमला को बुला दो. बहुत अcछि मालिश करती है. बदन का दर्द दूर कर देगी." ये सुन के कंचन को जलन होने लगी. वो जानती थी कमला कैसी मालिश करेगी. कंचन ने सोचा आज अक्च्छा मौका है. सासू मा भी नहीं है. वो बोली, " क्यों पिताजी ? घर में बहू के रहते आप किसी और को क्यों मालिश के लिए बुलाना चाहते हैं? आपने हमारी मालिश कहाँ देखी है? एक बार करवा के देखिए, कमला की मालिश भूल जाएँगे." " अरे नहीं बेटी, हम अपनी बहू से कैसे मालिश करवा सकते हैं ?" रामलाल के मन में लड्डू फूटने लगे. वो सोच रहा था की ये तो सुनेहरी मौका है. हाथ से नहीं जाने देना चाहिए. "आप हमे बेटी बोल रहे हैं लेकिन शायद अपनी बेटी की तरह नहीं मानते? आपकी सेवा करके हुमें बहुत खुशी मिलती है." " ऐसा ना कहो बहू. तुम बेटी के समान नहीं हमारी बेटी ही हो. तुम सुचमुच बहुत अक्च्ची हो. लेकिन तुम्हारी सासू मा को पता चल गया तो वो मुझे मार डालेगी." " कैसे पता चलेगा पिताजी वो तो शाम तक आएगी. चलिए अब हम आपकी मालिश कर देते हैं. आपको भी तो पता चले की आपकी बहू कैसी मालिश करती है." " ठीक है बहू. लेकिन अपनी ससासू मा को बताना नहीं." " नहीं बताएँगे पिताजी, आप बेफिकर रहिए." रामलाल ने जल्दी से ज़मीन पे चटाई बिच्छा दी और धोती को छ्होर के सब कापरे उतार के लेट गया. उसका दिल धक धक कर रहा था. कंचन रामलाल के गथे हुए बदन को देखती ही रह गयी. वाकाई में सुच्चा मरद था. चौरी छ्चाटी और उसपे घने काले बाल देख कर तो कंचन के दिल पे च्छूरियँ चलने लगी. कंचन ने रामलाल की टाँगों की मालिश शुरू कर दी. सारी के पल्लू से उसने घूँघट भी कर रखा था. बहू के मुलायम हाथों का स्पर्श रामलाल को बहुत अक्च्छा लग रहा था. कंचन ने पहले से ही प्लान बना रखा था. अचानक तैल की बॉटल कंचन की सारी पे गिर गयी. " ऊफ़ हमारी सारी खराब हो गयी." " बहू सारी पहन के कोई मालिश करता है क्या. खराब कर ली ना अपनी सारी? चलो सारी उतार लो, फिर मालिश करना." " जी, मैं सलवार कमीज़ पहन के आती हूँ." " अरे उसकी क्या ज़रूरत है? सारी उतार लो बस. सलवार पे तैल गिर गया तो सलवार उतारनी पर जाएगी. अगर सलवार उतारना मंज़ूर है तो ठीक है सलवार कमीज़ पहन आओ." " हा .... सलवार कैसे उतारेंगे . सलवार उतारने से तो अक्च्छा है की सारी ही उतार दूं, लेकिन आपके सामने सारी कैसे उतारुन. हुमें तो शरम आती है.' " शरम कैसी बहू? तुम तो हमारी बेटी के समान हो. और फिर हम तो तुम्हें पेटिकोट ब्लाउस में कई बार देख चुके हैं. अपने ससुर से कोई शरमाता है क्या?" " ठीक है पिताजी. उतार देती हूँ." कंचन ने बरी अदा के साथ अपनी सारी उतार दी. अब वो केवल पेटिकोट और ब्लाउस में थी. पेटिकोट उसने बहुत नीचा बाँध रखा था. ब्लाउस भी सामने से लो कट था. अचानक कंचन कमरे से बाहर भागी, " अरे क्या हुआ बहू कहाँ जा रही हो?" रामलाल ने पूचछा. " जी बस अभी आई. अपनी चुननी तो ले आउ." रामलाल तो बहू के ऊपेर नीचे होते हुए नितुंबों को देख कर निहाल हो गया. कंचन थोरी देर में वापस आ गयी. अब उसने चुननी से घूँघट निकाल रखा था. लेकिन कमर पे बहुत नीचे बँधे पेटिकोट और लो कट ब्लाउस में से उसकी जवानी बाहर निकल रही थी. कंचन रामलाल के पास बैठ गयी और उसने फिर से रामलाल की टाँगों की मालिश शुरू कर दी. इस वक़्त कंचन का सिर रामलाल के सिर की ओर था. मालिश करते हुए बहू इस प्रकार से झुकी हुई थी की लो कट ब्लाउस में से उसकी बरी बरी झूलती हुई चूचियाँ रामलाल को सॉफ दिखाई दे रही थी. मालिश करते हुए दोनो इधेर उधेर की बातें कर रहे थे. कंचन को अक्च्ची तरह मालूम था की ससुर जी की नज़रें उसके ब्लाउस के अंडर झाक रही हैं. आज तो कंचन ने ठान लिया था की ससुर जी को पूरी तरह तरपा के ही छ्होरेगी. मर्दों को तरपाने की कला में तो वो माहिर थी ही. इतने में रामलाल ने बहू से पूछा, " बहू तुमने वो गाना सुना है, ' चुनरी के नीचे क्या है? चोली के पीच्चे क्या है?" " जी पिता जी सुना है. आपको अक्च्छा लगता है.?" कंचन आगे झुकते हुए ससुर जी को अपनी गोरी गोरी चूचीोन के और भी ज़्यादा दर्शन कराती हुई बोली. " हां बहू बहुत अच्छा लगता है." कंचन समझ रही थी की ससुर जी का इशारा किस ओर है. ससुर जी की जांघों तक मालिश करने के बाद कंचन ने सोचा की अब ससुर जी को उसके नितुंबों के दर्शन कराने का वक़्त आ गया है. कंचन जानती थी की उसके नितूंब मर्दों पर क्या असर करते हैं. उसने जांघों से नीचे की ओर मालिश करने के बहाने अब अपना मुँह ससुर जी के पैरों की ओर और अपने विशाल चूटर ससुर जी के मुँह की ओर कर दिए. मालिश करते हुए उसने अपने चूतर बरे ही मादक धुंग से पीच्चे की ओर उभार दिए थे. रामलाल के दिल पे तो मानो च्छुरी चल गयी. पेटिकोट के महीन कापरे में से बहू की गुलाबी रंग की कच्ची झाँक रही थी. रामलाल बहू के विशाल चूतरो को ललचाई नज़रों से देखता हुआ बोला, " अरे बहू ऐसे मालिश करने में परेशानी होगी. हमार ऊपर आ जाओ." " है राम आपके ऊपर कैसे आ सकते हैं?" " अरे इसमें शरमाने की क्या बात है? अपनी एक टाँग हमार एक तरफ और दूसरी टाँग दूसरी तरफ कर लो." " जी आपको परेशानी तो नहीं होगी ?" कंचन रामलाल के ऊपर आ गयी. अब उसका एक घुटना ससुर जी के कमर के एक तरफ और दूसरा घुटना कमर के दूसरी तरफ था. पेटिकोट घुटनों तक ऊपर करना परा. इस मुद्रा में कंचन के विशाल चूटर रामलाल के मुँह के ठीक सामने थे. घुटनों से नीचे कंचन के गोरे गोरे पैर नंगे थे. कंचन रामलाल के पैरों की ओर मुँह करके उसकी जांघों से नीचे की ओर मालिश कर रही थी. रामलाल का मन कर रहा था की बहू के छूटरों के बीच मुँह दे दे. वो पेटिकोट के मेअहीन कापरे में से बहू के विशाल छूटरों पे सिमाटाती हुई ककच्ची को देख रहा था. " बहू तुम जितनी समझदार हो उतनी ही सुन्दर भी हो." " सच पिता जी ? कहीं आप हुमें खुश करने के लिए तो नहीं बोल रहे हैं." " तुम्हारी कसम बहू हम झूट क्यों बोलेंगे? तभी तो हुमने तुम्हें एकद्ूम राकेश के लिए पसंद कर लिया था. शादी से पहले तुमाहरे पीच्चे बहुत लड़के चक्कर लगाते होंगे.?" " जी वो तो सभी लड़कीों के पीछे चक्कर लगाते हैं." " नहीं बहू सभी लड़कियाँ तुम्हारी तरह सेक्सी नहीं होती. बोलो, लड़के बहुत तुंग करते थे क्या?" " हां पिता जी करते तो थे." " क्या करते थे बहू?" " अब हम आपको वो सब कैसे बता सकते हैं?" " अरे फिर से वही शरमाना. चलो बताओ. हुमें ससुर नहीं, अपना दोस्त समझो." " जी सीटियाँ मारते थे. कभी कभी तो बहुत गंदे गंदे कॉमेंट भी देते थे. बहुत सी बातें तो हुमें समझ ही नहीं आती थी." " क्या बोलते थे बहू?" " उनकी गंदी बाते हमें सम्झ नहीं आती थी. लेकिन इतना ज़रूर पता था की हमारी च्चटिओं और नितुंबों पे कॉमेंट देते थे. कैसे खराब होते हैं लड़के. घर में मा बेहन नहीं होते क्या?" " और क्या क्या करते थे?" " जी, क्लास में भी लड़के जान बूझ के अपनी पेन्सिल हमार पैरों के पास फेंक देते थे और उसे उठाने के बहाने हमारी स्कर्ट के अंडर टाँगों के बीच में झाँकने की कोशिश करते थे. स्कूल की ड्रेस स्कर्ट थी नहीं तो हम सलवार कमीज़ ही पहन के स्कूल जाते. लड़के लोग होते ही बहुत खराब हैं." " नहीं बहू लड़के खराब नहीं होते. वो तो बेचारे तुम्हारी जवानी से परेशान रहते होंगे." " लेकिन किसी लड़की पे गंदे गंदे कॉमेंट देना और उसकी टाँगों के बीच में झाँकना तो बदतमीज़ी होती है ना पिताजी?" " इसमें बदतमीज़ी की क्या बात है बहू. बचपन से ही हर मारद के मन में औरत की टाँगों के बीच में झाँकने की जिगयसा होती है और जब वो बरा हो जाता है टब तो औरत की टाँगों के बीच में पहुँचना ही उसका लक्ष्या बन जाता है." " हा! ये भी क्या लक्ष्या हुआ.? मारद लोग तो होते ही ऐसे हैं." " लेकिन बहू लड़कियाँ भी तो कम नहीं होती. देखो ना आज कल तो शहर की ज़्यादातर लड़कियाँ शादी से पहले ही अपना सुबकुच्छ दे देती हैं. तुम भी तो शहर की हो बहू." " अक्च्छा पिता जी! क्या मतलूब आपका? हम वैसे नहीं हैं. इतने लड़के हमार पीच्चे परे थे, यहाँ तक की काई मास्टर जी लोग भी हमार पीच्चे परे थे, लेकिन हुमने तो शादी से पहले ऐसा वैसा कुकच्छ नहीं किया." "सच बहू? यकीन नहीं होता की इतनी सेक्सी लड़की को लड़कों ने कुँवारा छ्होर दिया होगा." " हुँने किसी लड़के को आज तक हाथ भी नहीं लगाने दिया." " आज तक ? बेचारा राकेश अभी तक कुँवारा ही है. सुहाग रात को भी हाथ नहीं लगाने दिया?" रामलाल हंसता हुआ बोला. " हा ...पिता जी आप तो बहुत खराब हैं. सुहाग रात को तो पति का हक़ बनता है. उन्हें थोरे ही हम माना कर सकते हैं." कंचन बारे ही मादक धुंग से अपने छूटरों को रामलाल के मुँह की ओर उचकाती हुई बोली. रामलाल कंचन के छूटरों से सिमट कर उनकी दरार में जाती हुई कच्ची को देख देख कर पागल हो रहा था. " बहू एक बात कहूँ? तुम शादी के बाद से बहुत ही खूबसूरत हो गयी हो." " पिता जी आप तो ऐसे बोल रहे हैं जैसे शादी से पहले हम बदसूरत थे." " अरे नहीं बहू शादी से पहले भी तुम बहुत सुन्दर थी लेकिन शादी के बाद से तो तुम्हारी जवानी और भी निखार आई है. हर लड़की की जवानी में शादी के बाद एकद्ूम निखार आ जाता है." " ऐसा क्यों पिताजी?" कंचन ने भोलेपन से पूकच्छा. " बहू, शादी से पहले लड़की एक कक़ची कली होती है. कली को फूल बनाने का काम तो मारद ही कर सकता है ना. सुहाग रात को लड़की एक ककच्ची कली से फूल बुन जाती है. जैसे कली में फूल बुनके निखार आ जाता है वैसे ही लड़की की जवानी में शादी के बाद निखार आने लगता है." " ऐसा क्या निखार आया हमारी जवानी में? हम तो पहले भी ऐसे ही थे." " बहू तुम्हारी जवानी में क्या निखार आया वो हुंसे पूच्छो. तुम्हारा बदन एकद्ूम भर गया है. कापरे भी टाइट होने लगे हैं. देखो ये नितूंब कैसे फैल गये हैं." रामलाल कंचन के दोनो छूटरों पे हाथ फेरता हुआ बोला. " तुम्हारी ये ककच्ची भी कितनी छ्होटी हो गयी है. करीब करीब पुर ही नितूंब इस ककच्ची के बाहर हैं. शादी से पहले तो ऐसा नहीं था ना." आख़िर कंचन का प्लान सफल होने लगा था. रामलाल का हाथ उसके उछके हुए छूटरों को सहला रहा था. कभी कभी रामलाल उसकी पंटयलिने पे हाथ फेरता. कंचन को बहुत मज़ा आ रहा था. रामलाल फिर बोला, " बहू लगता है तुम्हें ये गुलाबी रंग की ककच्ची बहुत पसंद है." " हा..! पिताजी आपको कैसे पता हुँने कौन से रंग की ककच्ची पहनी है?" " बहू तुम्हारे नितूंब हैं ही इतने चौरे की उनके ऊपर कसे हुए पेटिकोट में से ककच्ची भी नज़र आ रही है."













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