कंचन --12
" कह देंगे की एक कुत्ता तुम्हारी बहू को चोदने की कोशिश कर रहा
था. इससे पहले की वो तुम्हारी बहू की चूत में अपना लंड पेलता,
उस कुत्ते से बचाने के लिए हुमें अपना लंड बहू की चूत में
पेलना परा. आख़िर जो कुकच्छ किया बहू को बचाने के लिए ही तो किया."
" अक्च्छा जी ! और अगर वो पूछें की बहू नंगी कैसे हो गयी तो ?"
" तो क्या ? कह देंगे बहू नहाने जा रही थी की एक बहुत बरा कुत्ता
बहू को नंगी देख के खीरकी से कूद के अंडर आ गया और उसे गिरा के
उसके ऊपर चॅड कर चोदने की कोशिश करने लगा."
" और वो पूछें की आपको अपना लंड हमारी चूत में पेलने की क्या
ज़रूरत थी, तो ?"
" अरे भाई ये तो बहुत सिंपल बात है. अगर बहू की चूत में लंड
पेल के हमने बहू का च्छेद बंद ना किया होता तो वो कुत्ता उस च्छेद में
अपना लंड पेल देता. हमने तो सिर्फ़ अपने घर की इज़्ज़त बचा ली."
"हाअ.... आपके पास तो सब चीज़ों का जबाब है." कंचन अपने चूटर
उचका के रामलाल का पूरा लंड अपनी चूत में लेती हुई बोली.
अब रामलाल ने कंचन के चूटर पकर के ज़ोर ज़ोर से धक्के मारना शुरू
कर दिया. उसने बहू के गोरे गोरे छूटरों को दोनो हाथों में पकर
के फैला दिया था ताकि उनके बीच में गुलाबी रंग के छ्होटे से
च्छेद के दर्शन कर सके. आख़िर बहू के इन विशाल छूटरों ने ही तो
उसकी नींद हराम कर रखी थी. बहू का गुलाबी च्छेद देख कर उसके
मुँह में पानी आ रहा था. उसका मन कर रहा था की नीचे झुक के
उस गुलाबी च्छेद को चूम ले. रामलाल जनता था की यहाँ बहू की गांद
मारना ख़तरे से खाली नहीं था. बहू का चिल्लाना सुन के पूरा
मुहल्ला जमा हो सकता था. अगर उसका मूसल नहीं झेल पाई और
बेहोश हो गयी तुब तो और भी मुसीबत हो जाएगी. लेकिन उसने सोच लिया
था की वो बहू को खेतों में ले जा के उसकी गांद ज़रूर मारेगा.
उधर कंचन बरी अच्छी तरह समज़ रही थी की जिस तरह ससुर जी
ने उसके छूटरों को फैला रखा था, उन्हें उसकी गांद के दर्शन हो
रहे होंगे. उसके सेक्सी छूटरों को देख के मरद के दिल में क्या होता
है वो भी वो अच्छी तरह जानती थी. वो मन ही मन सोच रही थी की
ससुर जी कभी ना कभी तो उसकी गांद ज़रूर मारेंगे. इतना मोटा और
लंबा मूसल तो उसकी गांद फाड़ ही डालेगा. रामलाल से अब और नहीं
रहा गया. उसने अपना 11 इंच का लंड बहू की चूत से बाहर खींच
लिया और नीचे झुक के अपना मुँह बहू के फैले हुए विशाल छूटरों
के बीच में दे दिया. रामलाल पागलों की तरह बहू की गांद के
गुलाबी च्छेद को चाटने लगा और अपनी जीभ कभी कभी च्छेद के
अंडर घुसैर देता.
" ईस्स्स्स....ऽआआअ. ...आआअहह. ....इसस्स्स्स्स्स्स्सस्स पिता जी ये आप क्या कर रहे
हैं? वहाँ तो गंदा होता है."
" चुदाई के खेल में कुच्छ गंदा नहीं होता . तुम्हें अच्छा नहीं लग
रहा बहू ?"
" जी अक्च्छा तो बहुत लग रहा है, लेकिन...."
" लेकिन क्या ? मज़ा तो आ रहा है ना ? सच तुम्हारी गांद बहुत ही
स्वादिष्ट है."
" हटिए भी पिताजी , वो कैसे स्वादिष्ट हो सकती है ? वहाँ से तो .."
" हुमें पता है बहू वहाँ से तुम क्या करती हो. आज तक इस च्छेद से
तुमने सिर्फ़ बाहर निकालने का काम किया है, कुच्छ अंडर नहीं लिया."
" है राम ! उस च्छेद से अंडर क्या लिया जाता है ?"
" बहू जब ये लंड तुम्हारे पीच्चे वाले च्छेद में जाएगा तब देखना
कितना मज़ा आएगा."
" है राम ! पीच्चे वाले च्छेद में भी लंड डाला जाता है ?"
कंचन बनती हुई बोली.
" हां बहू, औरत के तीन च्छेद होते हैं और तीनों ही चोदे जाते
हैं. औरत की सिर्फ़ चूत ही नहीं गांद भी मारी जाती है. औरत
को मरद का लंड भी चूसना चाहिए. जिस औरत के तीनों च्छेदों में
मरद का लंड ना गया हो वो अपनी जवानी का सिर्फ़ आधा ही मज़ा ले
पाती है."
" बाप रे ! ये गधे जैसा लंड उस छ्होटे से च्छेद में कैसे जा सकता
है ? सच ये तो हमार च्छेद को फार ही डालेगा. ना बाबा ना हुमें
नहीं लेना ऐसा मज़ा."
" अरे बहू इतना घबराती क्यों हो ? हम तो सिर्फ़ तुम्हारे इस गुलाबी
च्छेद को प्यार कर रहे हैं, तुम्हारी गांद तो नहीं मार रहे."
" जी बहुत मज़ा आ रहा है. आआह.ऽआऐईई. जीभ अंडर डाल
दीजिए, प्लीज़...."
रामलाल बरी तेज़ी से अपनी जीभ बहू की गांद के अंडर बाहर कर रहा
था और उस गुलाबी च्छेद के चारों ओर चाट रहा था. कंचन अब और
नहीं सह पाई और एक बार फिर झाड़ गयी.
" पिता जी हम तो अब तक तीन बार झार चुके हैं और आप हैं की
झरने का नाम ही नहीं ले रहे. अब प्लीज़ हुमें चोदिये और हमारी
प्यासी चूत को अपने वीरया से भर दीजिए."
" ठीक है बहू जैसा तुम चाहो. आज पहले तुम्हारी प्यासी चूत को
तृप्त कर दें. बाद में तो तुम्हें काम कला के कई गुर सिखाने हैं."
" ठीक है गुरु जी ! अब तो प्लीज़ हमारी चूत चोदिये और इसकी
बरसों की प्यास बुझा दीजिए. हम कहीं भाग तो रहे नहीं , रोज़ आप
से चुदाई के नये नये तरीक़े सीखेंगे."
रामलाल ने बहू की गांद में से अपनी जीभ निकाली और फिर से अपने
लंड का सुपरा कुतिया बनी बहू की फूली हुई चूत पे टीका दिया और
एक ही धक्के में फ़च की आवाज़ के साथ जर तक पेल दिया. अब
रामलाल बहू के दोनो छूटरों को पकर के ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने
लगा. करीब बीस मिनिट तक बहू की चूत की अपने मूसल से पिटाई
करने के बाद बरसों से अपने बॉल्स में एकतहा किया हुआ वीरया बहू
की चूत में उंड़ेल दिया. बहू को तो जैसे नशा सा आ रहा था. उसकी
चूत ससुर जी के गरम गरम वीरया से लबालुब भारी गयी थी और अब
तो वीरया चूत में से निकल कर बिस्तेर पे भी तपाक रहा था. रामलाल
ने बहू की चूत में से अपना मूसल बाहर खींचा और बहू के बगल
में लेट गया. बहू भी निढाल हो के बिस्तेर पे लुढ़क गयी थी. तीन
घंटे से चल रही इस भयंकर चुदाई से उसके अंग अंग में मीठा
मीठा दर्द हो रहा था. रामलाल ने बहू से पूचछा,
" बहू, कुच्छ शांति मिली?"
" जी, आज तो तृप्त हो गयी."
" चलो उठो, तुम्हारी सासू मा के आने का टाइम हो रहा है. नहा धो
लो, कहीं उन्हें शक ना हो जाए."
" जी ठीक है."
कंचन बिस्तेर से उठी और गिरते गिरते बची. वीरया उसकी चूत से
नियकल के जांघों पे बह रहा था. उसकी टाँगें काँप रही थी. रामलाल
ने जल्दी से उठ के बहू को सहारा दिया. बहू तो ठीक से चल भी
नहीं पा रही थी. रामलाल बहू को ले के बाथरूम में गया और उसे एक
स्टूल पे बैठा दिया. उसके बाद उसने बहू की टाँगें फैला दी और
पानी से चूत की सफाई करने लगा. बहू की घनी झाँटेन वीरया में
सनी हुई थी. कंचन को अपनी सुहाग रात याद आ गयी जब इसी तरह
उसके पति ने उसकी चूत की सफाई की थी. आज वही काम ससुर जी कर
रहे थे. फराक सिर्फ़ इतना था की सुहाग रात को उसकी कुँवारी चूत
की दुर्दशा हुई थी और आज ससुर जी के मूसल ने उसकी कई बार चुदि
हुई चूत की भी वैसी ही दुर्दशा कर दी जैसी सुहाग रात को हुई
थी. चूत सॉफ करने के बाद ससुरजी ने कंचन के ऊपर पानी डाल
के उसे नहलाना शुरू कर दिया. ठंडा ठंडा पानी परने से कंचन
के शरीर में जान आई. कंचन ने भी ससुर जी के लंड को पानी से
सॉफ किया जो उसकी चूत के रूस में बुरी तरह साना हुआ था. इस तरह
बहू और ससुर ने एक दूसरे को नहलाया. रामलाल ने उसके बाद कंचन को
कहा,
" बहू जाओ सासू मा के आने से पहले थोरा आराम कर लो."
" ठीक है पिता जी." कंचन अपने कमरे में चली गयी. बिस्तेर में
लैटाते ही उसकी आँख लग गयी. तीन घंटे की चुदाई से वो बहुत थक
गयी थी. सासू मा के आने से पहले वो करीब एक घंटा घोरे बैच
के सोई.
सो गयी कियूं के वो बहूत थक गयी थी ऑलमोस्ट 3 घंटे तक रामलाल ( ससुर) ने ओस्के जवान बदन से खेला था चुदाई तो 1 घंटे की थी मगर शर्मा हया के पर्दे गिरते गिरते इतना वक़्त लगा,
ऑलमोस्ट एक घंटा कंचन सोई जब आँख खुली तो ओस्कि थकावट जाचूकी थी अब ऐसा भी नही था के कंचन ने पहेली बार चुदाई की हो रामू( देवेर) ने भी ओस्को 1स्ट्रीट टाइम चुदाई किया तू एक बार मे 3 बार चोदा था एक तो रामू के पहेली चुदाई थी और दूसरा कंचन को बहोट दीनो बाद इतना अछा लंड मिला था अब यहाँ प्राब्लम ये थी के कंचन के ससुर रामलाल का लंड कुछ ज़ियादा ही बरा था,,, कंचन सोचने लगी के रामलाल का लंड बहूत मोटा भी हे और बरा भी हे मज़ा तो बहूत आया मगर वो कुछ ज़ियादा ही मज़ा लेना चाहती थी अपने ससुर से.. इसलिए हू अपने आप मे कुछ सच के मुस्कुरई और किचन की ओर चली गयी तो वरान्डे मे ससुर चाय पीते बेते थे ओस्को डेक्ते ही रामलाल ने कहा बहू उठ गयी … हां बाबू जी
आप ने मुझको जगाया कियूं नही मे चाय बना देती ना? अरे नही बाहू मे ने सोचा ज़रा तुम आराम करो वैसे भी तुम्हारी सासू मा तो आए नही.. फोन आया था के उसको वहाँ उसकी कोई रिस्ते वाली मिल गयी तो उसके साथ चली गयी …. कंचन को ये सुनके ख़ुसी हुई मगर वो अपनी ख़ुसी को छुपाते हुए बोली !!! बाबू जी सासू मा की तबिएट ठीक नही हे और उनको ज़ियादा सफ़र कर्मा भी अछा नही हे और आप ने ओनको अकेले ही भेजा था ना जाने सासू मा के घर वाले किया सोचते होंगे!!!!! अरे बाहू इसकी तुम चिंता मत करो…. आओ मेरे पास बेतो…
नही बाबूजी अभी नही अबी मुझको बहूत काम हे अभी तक चुला नही जला खाना पकना हे शाम होगयी हे अभी तक कुछ पका नही घर मे वो तो अछा हुआ सासू मा नही आई वरना वो ना जाने किया सोचती… रामलाल ने कहा तुम खाने की चिंता मत करो मे ने कहालिया हे और टुमारे लिए भी होटेल का कहना लाके रहका हून तुम ख़ालो… कांचें मुस्कुराते होवे बोली तो अछा आज होटेल से खाना भी आगेया!!!! हां बहू आज तुमने इतना खुस कार्डिया के किया बोलू…
कांचें अब शर्म हया को चोर्के बोली बाबू जी बस आप इतने मे ही खुश होगये?
और शरत से मुस्कुराते हुए उनकी ओर ढेआका !! बहू अब आ तुम पे हे की तुम अपने बाबूजी को कितना खुस कर पति हो!!!! अछा अपनी बहू से ऐसी बात करोगे तो पाप होगा बाबूजी ऐसे बोलके वो मुस्कुराती हुई बाथरूम मे भाग गयी !!! पीछे से रामलाल ने आवाज़ लगाई बाहू सम्भल के कला नाग आजाएगा!!!! बाबू जी आज मुजको काले कोबरा ने डंसा हे अब उस नाग की किया मज़ाल के मुजको डांस ले!!! अंदर से ही कांचें ने आवाज़ लगाई और पिशब को बेत गये फिर ओसने अपने मन हे मन कुछ सोच के मुस्कुराई और फिर मुँह हाथ धोके बाहर आई तो देखा बाबूजी अपने कमरे से निकल राहे थे!!! बाबू जी कहाँ
जरहे हे आप? वो बहू मे सोचता हून तुमको आज सिनेमा ले चलू गाओं मे नयी फिल्म आए हे!!! बाबूजी बाहू के साथ सनीमा जाओगे तो लोग किया कहेंगे और वैसे भी मुझको कुछ काम हे आप जाके आओ मय तब तक अपना काम कर लेती हूँ..
नही बाहू अब तू नही आती तो मे अकेला नही जाता और ऐसे भी तुम घर मे अकेली होजाओगी… अरे नही बाबूजी आप होके आओ मे तब तक
अपने आपको आपके लिए रेडी करती हूँ फिर सारी रात हम मस्ती करंगे.
कहानी अभी बाकि है मेरे दोस्त तब तक इन्तजार करो
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