Monday, May 24, 2010

ससुर बहु की कहानी-- कंचन--6

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कंचन --6

लेकिन कंचन जानती थी की शायद ससुर जी पहल नहीं करेंगे. उन्हें बढ़ावा देना पड़ेगा. अब तो वो भी ससुर जी के लंड के दर्शन करने के लिए तड़प रही थी. जब से रामलाल को पता लगा था की बहू रात को सोते वक़्त ब्रा और पॅंटी उतार के सोती है तब से वो इस चक्कर में रहता था की किसी तरह बहू के नंगे बदन के दर्शन हो जाएँ. इसी चक्कर में रामलाल एक दिन सवेरे जल्दी उठ कर बहू को चाय देने के बहाने उसके कमरे में घुस गया. कंचन बेख़बर घोड़े बेच कर सो रही थी. वो पेट के बल पारी हुई थी और उसकी नाइटी जांघों तक उठी हुई थी. बहू की गोरी गोरी मोटी मांसल जांघें देख के रामलाल का लंड फंफनाने लगा. उसका दिल कर रहा था की नाइटी को ऊपर खिसका के बहू के विशाल मादक छूटरों के दर्शन कर ले, लेकिन इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाया. रामलाल ने चाय टेबल पे रखी और फिर बहू के विशाल छूटेरों को हिलाते हुए बोला, " बहू उठो, चाय पी लो." कंचन हर्बरा के उठी. गहरी नींद से इस तरह हर्बरा के उठ कर बैठते हुए कंचन की नाइटी बिल्कुल ही ऊपर तक सरक गयी और इससे पहले की वो अपनी नाइटी ठीक करे, एक सेकेंड के लिए रामलाल को कंचन की गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच में से घने बालों से ढाकी हुई चूत की एक झलक मिल गयी. " अरे पिताजी आप?" " हां बहू हुँने सोचा रोज़ बहू हुमें चाय पिलाती है तो आज क्यों ना हम बहू को चाय पिलाएँ." " पिताजी आपने क्यों तकलीफ़ की. हम उठ के चाय बना लेते." मन ही मन कंचन जानती थी ससुर जी ने इतनी तकलीफ़ क्यों की. पता नहीं ससुर जी कितनी देर से उसकी जवानी का अपनी आँखों से रास्पान कर रहे थे. " अरे इसमें तकलीफ़ की क्या बात है. तुम चाय पी लो." ये कह कर रामलाल चला गया. कंचन ने नोटीस किया की ससुर जी का लंड खरा हुआ था जिसको च्छूपाते हुए वो बाहर चले गये. कंचन के दिमाग़ में एक प्लान आया. वो देखना चाहती थी की अगर ससुर जी को इस तरह का मोका मिल जाए तो वो किस हद तक जा सकते हैं. उस रात कंचन ने सिर दर्द का बहाना किया और ससुर जी से सिर दर्द की दवा माँगी. " पिता जी हमार सिर में बहुत दूर्द हो रहा है. सिर दर्द और नींद की गोली भी दे दीजिए." " हां बहू सिर दर्द के साथ तुम दो नींद की दो गोली ले लो ताकि रात में डिस्टर्ब ना हो." कंचन समझ गयी की ससुरजी नींद की दो गोली खाने के लिए क्यों कह रहे हैं. उसका प्लान सफल होता नज़र आ रहा था. उसे पूरा विश्वास था की आज रात ससुर जी उसके कमरे में ज़रूर आएँगे. रात को सोने से पहले ससुर जी ने अपने हाथों से कंचन को सिर दर्द और नींद की दो गोलियाँ दी. कंचन गोलियाँ ले कर अपने कमरे में आई और गोलिओं को तो बाथरूम में फेंक दिया. ससुर जी को यह दिखाने के लिए की वो सिर दर्द से बहुत परेशान और थॅकी हुई है, कंचन ने सारी उतार के पास पारी कुर्सी पे फेंक दी. फिर उसने अपनी पॅंटी और ब्रा उतारी और बिस्तेर के पास ज़मीन पर फेंक दी. ब्लाउस के सामने वाले तीन हुक्स में से दो हुक खोल दिए. अब तो उसकी बरी बरी चूचियाँ ब्लाउस में सिर्फ़ एक ही हुक के कारण क़ैद थी. कंचन का आज नाइटी के बजाए ब्लाउस और पेटिकोट में ही सोने का इरादा था ताकि ससुर जी को ऐसा लगे की सिर दर्द और नींद के कारण उसने नाइटी भी नहीं पहनी. आज तो उसने अपने वरांडे की लाइट भी ऑफ नहीं की ताकि थोरी रोशनी अंडर आती रहे और ससुर जी उसकी जवानी को देख सकें. पूरी तायारी करके कंचन ने अपने बॉल भी खोल लिए और बिस्तेर पे बहुत मादक डंग से लेट गयी. वो पेट के बल लेटी हुई थी और उसने पेटिकोट इतना ऊपर चढ़ा लिया की अब वो उसके छूटरों से दो इंच ही नीचे था. कंचन की गोरी गोरी मांसल जांघें और टाँगें पूरी तरह से नंगी थी. ससुर जी के स्वागत की पूरी तायारी हो चुकी थी. रात भी काफ़ी हो चुकी थी और कंचन बरी बेसब्री से ससुर जी के आने का इंतज़ार कर रही थी. वो सोच रही थी की ससुर जी उसको गहरी नींद में समझ कर क्या क्या करेंगे. रात को करीब एक बजे के आस पास कंचन को अपने कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. उसकी साँसें तेज़ हो गयी. थोरा थोरा दर्र भी लग रहा था. ससुर जी दबे पाओं कमरे में घुसे और सामने का नज़ारा देख के उनका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. बहू इतनी थॅकी हुई और नींद में थी की उसने नाइटी तक नहीं पहनी. पेट के बल परी हुई बहू के छूटरों का उभार बहुत ही जान लेवा था. बाहर से आती हुई भीनी भीनी रोशनी में जांघों तक उठा हुआ पेटिकोट बहू की नंगी टाँगों को बहुत ही मादक बना रहा था. बहू ऐसे टाँगें फैला के परी हुई थी की थोरा सा पेटिकोट और ऊपर सरक जाता तो बहू की लाजाब चूत के दर्शन हो जाते जिसकी झलक रामलाल पहले भी देख चुक्का था. आज मौका था जी भर के बहू की चूत के दर्शन करने का. रामलाल मन ही मन माना रहा था की कहीं बहू ककच्ची पहन के ना सो गयी हो. तभी उसकी नज़र बिस्तेर के पास ज़मीन पे परी हुई ककच्ची और ब्रा पे पर गयी. रामलाल का लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया था. रामलाल सोच रहा था.की बेचारी बहू इतनी नींद में थी की ककच्ची और ब्रा भी ज़मीन पे ही फेंक दी. अब तो उसे यकीन था की बहू पेटिकोट और ब्लाउस के नीचे बिकुल नंगी थी. सारा दिन ब्रा और ककच्ची में कसी हुई जवानी को बहू ने रात को आज़ाद कर दिया था. और आज रात रामलाल बहू की आज़ाद जवानी के दर्शन करने का इरादा कर के आया था. फिर भी वो यकीन करना चाहता था की बहू गहरी नींद में सो रही है. उसने कंचन को धीरे से पुकारा, " बहू! बहू! सो गयी क्या?" कोई जबाब नहीं. अब रामलाल ने धीरे से कंचन को हिलाया. अब भी बहू ने कोई हरकत नहीं की. रामलाल को यकीन हो गया की नींद की गोली ने अपना काम कर दिया है. कंचन आँखें बूँद किए परी हुई थी. अब रामलाल की हिम्मत बरह गयी. वो बहू की ककच्ची को उठा के सूघने लगा. बहू की ककच्ची की गंध ने उसे मदहोश कर दिया. सारा दिन पहनी हुई ककच्ची में चूत, पेशाब और शायद बहू की चूत के रूस की मिलीजुली खुश्बू थी. लॉडा बुरी तरह से फँफनाया हुआ था. रामलाल ने बहू की ककच्ची को जी भर के चूमा और उसकी मादक गंध का आनंद लिया. अब रामलाल पेट के बल परी हुई बहू के पैरों की तरफ आ गया. बहू की अलहारह जवानी अब उसके सामने थी. रामलाल ने धीरे धीरे बहू के पेटिकोट को ऊपर की ओर सरकाना शुरू कर दिया. थोरी ही देर में पेटिकोट बहू की कमर तक ऊपर उठ चक्का था. सामने का नज़ारा देख के रामलाल की आँखें फटी रह गयी. बहू कमर से नीचे बिल्कुल नंगी थी. आज तक उसने इतना खूबसूरत नज़ारा नहीं देखा था. बहू के गोरे गोरे मोटे मोटे फैले हुए छूटेर बाहर से आती हुई भीनी भीनी रोशनी में बहुत ही जान लेवा लग रहे थे. रामलाल अपनी ज़िंदगी में काई औरतों को चोद चक्का था लेकिन आज तक इतने सेक्सी नितूंब किसी भी औरत के नहीं थे. रामलाल मन ही मन सोचने लगा की अगर ऐसी औरत उसे मिल जाए तो वो ज़िंदगी भर उसकी गांद ही मारता रहे. लेकिन ऐसी किस्मत उसकी कहाँ? आज तक उसने किसी औरत की गांद नहीं मारी थी. मारने की तो बहुत कोशिश की थी लेकिन उसके गधे जैसे लंड को देख कर किसी औरत की हिम्मत ही न्हीं हुई. पता नहीं बेटा बहू की गांद मारता है की नहीं. उधर कंचन का भी बुरा हाल था. उसने खेल तो शुरू कर दिया लेकिन अब उसे बहुत शरम आ रही थी और थोरा डर भी लग रहा था.. हालाँकि एक बार पहले वो ससुर जी को अपने नंगे बदन के दर्शन करा चुकी थी लेकिन उस वक़्त ससुर जी बहुत दूर थे. आज तो ससुर जी अपने हाथों से उसे नंगी कर रहे थे. फैली हुई टाँगों के बीच से चूत के घने बालों की झलक मिल रही थी. रामलाल ने बहुत ही हल्के से बहू के नंगे छूटरों पे हाथ फेरना शुरू कर दिया. कंचन के दिल की धड़कन तेज़ होने लगी. रामलाल ने हल्के से एक उंगली कंचन के छूटरों की दरार में फेर दी. लेकिन कंचन जिस मुद्रा में लेटी हुई थी उस मुद्रा में उसकी गांद का च्छेद दोनो चूतरो के बीच बंड था. आकीर कंचन एक औरत थी. एक मारद का हाथ उसके नंगे छूटरों को सहला रहा था. अब उसकी चूत भी गीली होने लगी. अभी तक कंचन अपनी दोनो टाँगें सीधी लेकिन थोरी चौरी करके पेट के बाल लेटी हुई थी.. ससुर जी को अपनी चूत की झलक और अक्च्ची तरह देने के लिए अब उसने एक टाँग मोर के ऊपर कर ली. ऐसा करने से अब कंचन की चूत उसकी टाँगों के बीच में से सॉफ नज़र आने लगी. बिल्कुल सॉफ तो नहीं कहेंगे, लेकिन जितनी सॉफ उस भीनी भीनी रोशनी में नज़र आ सकती थी उतनी सॉफ नज़र आ रही थी. गोरी गोरी मांसल जांघों के बीच घनी और लुंबी लुंबी झांतों से ढाकी बहू की खूब फूली हुई चूत देख के रामलाल की लार टपकने लगी. हालाँकि गांद का च्छेद अब भी नज़र नहीं आ रहा था. रामलाल ने नीचे झुक के अपना मुँह बहू की जांघों के बीच डाल दिया. बहू की झांतों के बॉल उसकी नाक और होंठों से टच कर रहे थे. अब कुत्ते की तरह वो बहू की चूत सूंघने लगा. कंचन की चूत काफ़ी गीली हो चुकी थी और अब उसमे से बहुत मादक खुश्बू आ रही थी. आज तक तो रामलाल बहू की पॅंटी सूंघ कर ही काम चला रहा था लेकिन आज उसे पता चला की बहू की चूत की गंध में क्या जादू है. रामलाल को ये भी अक्च्ची तरह समझ आ गया कोई कुत्ता कुतिया को चोद्ने से पहले उसकी चूत क्यों सूघता है. रामलाल ने हिम्मत करके हल्के से बहू की चूत को चूम लिया. कंचन इस के लिए तयर नहीं थी. जैसे ही रामलाल के होंठ उसकी चूत पे लगे वो हार्बरा गयी. रामलाल झट से चारपाई के नीचे च्छूप गया. कंचन अब सीधी हो कर पीठ के बाल लेट गयी लेकिन अपना पेटिकोट जो की कमर तक उठ चक्का था नीचे करने की कोई कोशिश नहीं की. रामलाल को लगा की बहू फिर सो गयी है तो वो फिर चारपाई के नीचे से बाहर निकला. बाहर निकल के जो नज़ारा उसेके सामने था उसे देख के वो डंग रह गया.बहू अब पीठ के बाल परिहुई थी. पेटिकोट पेट तक ऊपर था ओर उसकी चूत बिल्कुल नंगी थी. रामलाल बहू की चूत देखता ही रहा गया. घने काले लूंबे लूंबे बालों से बहू की चूत पूरी तरह ढाकी हुई थी. बॉल उसकी नाभि से करीब तीन इंच नीचे से ही शुरू हो जाते थे. रामलाल ने आज तक किसी औरत की चूत पे इतने लूंबे और घने बॉल नहीं देखे थे. पूरा जंगल उगा रखा था बहू ने. ऐसा लग रहा था मानो ये घने बॉल बुरी नज़रों से बहू की चूत की रक्षा कर रहे हों. अब रामलाल की हिम्मत नहीं हुई की वो बहू की चूत को सहला सके क्योंकि बहू पीठ के बाल पारी हुई थी और अब अगर उसकी आँख खुली तो वो रामलाल को देख लेगी. बहू के होंठ थोरे थोरे खुले हुए थे. रामलाल बहू के उन गुलाबी होंठों को चूसना चाहता था लेकिन ऐसा कर पाना मुश्किल था. फिर अचानक रामलाल के दिमाग़ में एक प्लान आया. उसने बहू का पेटिकोट धीरे से नीचे करके उसकी नंगी चूत को ढक दिया. अब उसने अपना फनफ़नेया हुआ लॉडा अपनी धोती से बाहर निकाला और धीरे से बहू के खुले हुए गुलाबी होंठों के बीच टीका दिया. कंचन को एक सेकेंड के लिए साँझ नहीं आया की उसकी होंठों के बीच ये गरम गरम ससुर जी ने क्या रख दिया लेकिन अगले ही पल वो साँझ गयी की उसके होंठों के बीच ससुर जी का ताना हुआ लॉडा है. मारद के लंड का टेस्ट वो अक्च्ची तरह पहचानती थी. अपने देवर का लंड वो ना जाने कितनी बार चूस चुकी थी. वो एक बार फिर हार्बारा गयी लेकिन इस बार बहुत कोशिश करके वो बिना हीले आँखें बूँद किए पारी रही. ससुर जी के लंड के सुपरे से निकले हुए रस ने कंचन के होंठों को गीला कर दिया. कंचन के होंठ थोरे और खुल गये. रामलाल ने देखा की बहू अब भी गहरी नींद में है तो उसकी हिम्मत और बरह गयी. बहू के होंठों की गर्मी से उसका लंड बहू के मुँह में घुसने को उतावला हो रहा था. रामलाल ने बहुत धीरे से बहू के होंठों पे पाने लंड का दबाव बारहाना शुरू किया. लेकिन लंड तो बहुत मोटा था. मुँह में लेने के लिए कंचन को पूरा मुँह खोलना परता. रामलाल ने अब अपना लंड बहू के होंठों पे रगर्ना शुरू कर दिया और साथ में उसके मुँह में भी घुसेरने की कोशिश करने लगा. रामलाल के लंड का सुपरा बहू के थूक से गीला हो चक्का था. कंचन की चूत बुरी तरह गीली हो गयी थी. उसका अपने ऊपर कंट्रोल टूट रहा था. उसका दिल कर रहा था की मुँह खोल के ससुर जी के लंड का सुपरा मुँह में लेले. अब नाटक ख्तम करने का वक़्त आ गया था. कंचन ने ऐसा नाटक किया जैसे उसकी नींद खुल रही हो. रामलाल तो इस के लिए टायर था ही. उसने झट से लंड धोती में कर लिया. बहू का पेटिकोट तो पहले ही तीक कर दिया था. कंचन ने धीरे धीरे आँखें खोली और ससुर जी को देख कर हार्बारा के उठ के बैठने का नाटक किया. वो घबराते हुए अपने अस्त व्यस्त कापरे ठीक करते हुए बोली, " पिता जी....आअप..! यहाँ क्या कर रहे हैं?" " घबराव नहीं बेटी, हम तो देखने आए थे की कहीं तुम्हारी तबीयत और ज़्यादा तो खराब नहीं हो गयी. कैसा लग रहा है ?" रामलाल बहू के माथे पे हाथ रखता हुआ बोला जैसे सुचमुच बहू का बुखार चेक कर रहा हो. कंचन के ब्लाउस के तीन हुक खुले हुए थे. वो अपनी चूचीोन को धकते हुए बोली, " जी.. मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ. नींद की गोलियाँ खा के अक्च्ची नींद आ गयी थी. लेकिन आप इतनी रात को....?" " हां बेटी, बहू की तबीयत खराब हो तो हुमें नींद कैसे आती. सोचा देख लें तुम ठीक से सो तो रही हो." " सच पिता जी आप कितने अक्च्चे हैं.. हम तो बहुत लकी हैं जिसे इतने अक्च्चे सास और ससुर मिले." " ऐसा ना कहो बहू. तुम रोज़ हुमारी इतनी सेवा करती हो तो क्या हम एक दिन भी तुम्हारी सेवा नहीं कर सकते? हुमारी अपनी बेटी होती तो क्या हम ये सूब नहीं करते" रामलाल प्यार से बहू की पीठ सहलाते हुए बोला. कंचन मून ही मून हंसते हुए सोचने लगी, अपनी बेटी को भी आधी रात को नंगी करके उसके मुँह लंड पेल देते? " पिता जी हम बिल्कुल ठीक हैं. आप सो जाइए." " अक्च्छा बहू हम चलते हैं. आज तो तुमने कापरे भी नहीं बदले. बहुत तक गयी होगी." " जी सिर में बहुत दर्द हो रहा था." " हम समझते हैं बहू. अरे ये क्या ? तुम्हारी ककच्ची और ब्रा नीचे ज़मीन पे पारी हुई है." रामलाल ऐसे बोला जैसे उसकी नज़र बहू की ककच्ची और ब्रा पर अभी पारी हो. रामलाल ने बहू की ककच्ची और ब्रा उठा ली. " जी हमें दे दीजिए." कंचन शरमाते हुए बोली. " तुम आराम करो हम धोने डाल देंगे. लेकिन ऐसे अपनी ककच्ची मूत पेंका करो. वो कला नाग सूघता हुआ आ जाएगा तो क्या होगा? उस दिन तो तुम बच गयी नहीं तो टाँगों के बीच में ज़रूर काट लेता." कंचन ने मम ही मन कहा वो काला नाग काटे या ना काटे लेकिन ससुर जी की टाँगों के बीच का काला नाग ज़रूर किसी दिन काट लेगा. रामलाल बहू की ककच्ची और ब्रा ले के चला गया. कंचन अच्छी तरह जानती थी की उसकी ककच्ची का क्या हाल होने वाला है. रामलाल बहू की ककच्ची अपने कमरे में ले गया और उसकी मादक खुश्बू सूंघ के अपने लंड के सुपारे पे रख के रगार्ने लगा. हुमेशा की तरह ढेर सारा वीरया बहू की ककच्ची में उंड़ेल दिया और लंड कुकच्ची से पोंच्छ के उसे धोने में डाल दिया. ककच्ची की दास्तान कंचन को अगले दिन कापरे ढोते समय पता लग गयी. कंचन का प्लान तो सफल हो गया और ससुर जी के इरादे भी बिल्कुल सॉफ हो गये थे लेकिन कंचन अभी तक ससुर जी के लंड के दर्शन नहीं कर पाई थी. लेकिन वो जानती थी की









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