Monday, May 24, 2010

कामुक कहानिया एक गाँव की कहानी--3

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एक गाँव की कहानी पार्ट 03

"हम वादा करते हैं भाभी हम तुमको निराश न्हीं करेंगे."

भाभी ने ढेर सारे गंदे और घिनोने तरीके बताए अपने घर वालों को चुदाई के खेल में शामिल करने के. तीनों लड़कियों ने बड़े ध्यान से सब कुच्छ समझा और वादा किया के वो भाभी के सिखाए सारे तरीके आज़मएँगे अपने अपने घर में.

फिर तीनों लड़कियों ने मिलकर भाभी के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया, "भाभी तुम ही हमारी गुरु हो, तुमना होती तो शायद हम ज़िंदगी भर इस चूत की प्यास लेके मार जाते, तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया भाभी, अब हमें आशीर्वाद दो के हम अपने घर वालों के साथ चुदाई करने में कामयाब हों"

पूजा भाभी: "मेरा आशीर्वाद ओह हमेशा तुम्हारे साथ है, जाओ जाकर अपने बाप भाइयों के लौड़ों पर टूट पदो और उनकी रांड़ और चिनार बनकर ही वापिस लौटना."

फिर तीनों लड़कियाँ, अपने अपने घर की तरफ चल दिए,

लौट ते वक़्त कजरी ने पूछा :" आशा ,यह तो बता भाभी का घर कैसे चलता है, उनके घर में तो कोई मारद नहीं है.

आशा: "भाभी एक रांड़ है, रात को शहर से काई नामी लोग आते हैं और भाभी को चोद्ते हैं, भाभी उनसे हर तरह से चुड़वति हैं, और उन्हें बहुत खुश करती हैं. भाभी रोज़ रात का 10 हज़ार तो कमा ही लेती हैं. और वो सारे सीडी'स जो तूने वहाँ देखी उन्ही सब लोगों ने तो भाभी को दिए हैं. समझी."

कजरी: "फिर हम भी भाभी की त्रारः रंडी बन जाएँगे और खूब चुड़ाएंगे, यह सब घरवालों का झंझट किस लिए?"

आशा: "अगर हमारे घर वालों को पता चल गया तो वो लोग हमें जान से मार देंगे, और बदनामी भी बहुत होगी. पहले हम घरवालों को बोतल में उतारते हैं फिर रांड़ भी बन जाएँगे कभी ना कभी."

लज्जो: "वैसे कजरी तुझे भाभी के समझाए हुए सारे तरीके याद है ना, बस उन्हें अपने घर में इस्तेमाल कर और फिर देख कैसे तेरा भाई दीनू और तेरी अम्मा चुदाई के खेल में शामिल होते हैं."

इतने में आशा का घर आ जाता है,

आशा: "अब तुम लोग चलो, मैं शायद कल तुम लोगों से मिलने नहीं आ पौँगी, मुझे कल सारा दिन अपने भाई हरिया से छुड़वाना है, अभी से उसको पाटने में लग जाती हूँ. बरसों से मेरी इश्स कुँवारी चूत की आग को कल किसी हालत में ठंडा करना है. मैं तुम से दो दिन बाद मिलती हूँ, वोही बरगद के पेड़ के पास."

लज्जो: "ठीक है"
आशा घर पहुँची, अभी शाम के 5 बजे थेयऽश ने सोचा के तोड़ा सा नहा ले. वो घुसलखाने में जाकर नंगी हो गयी, अचानक उसकी नज़र वहाँ अपने भाई की लंगोट(अंडरवेर) पर पड़ी. उसने उसे उठाया और अपनी नाक से लगा लिया और चूत में उंगली करने लगी. एक जवान लड़के के लॉड से निकला हुआ रस उस चड्डी और उसके गांद की बदबू आशा को पागल कर रही थी, अब उस से और रहा नहीं जेया रहा थ.उस्ने उस चड्डी को खूब छाता, और चूसा और ज़ोर ज़ोर से अपनी चूत में उंगली चलाने लगि.आअखिर कुच्छ देर बाद उसकी आग ठंडी हुई मगर प्यास नहीं बुझी. वो नाहकार बहार निकली और अब अगला कदम क्या होना चाहिए सोचने लगी.

तभी उसे अचानक खिड़की के पास से कुच्छ बातें सुनाई देने लगी, आशा ने जाकर देखा तो उसका भाई हरिया और असलम बैठकर बातें कर रहे थे. आशा जानती थी दोनो के दोनो चोदु लड़के हैं इसीलये कान लगाकर उनकी बातें सुन ने लगी.

हरिया: "कसम से यार चुदाई के बिना बुरा हाल हो रहा है, जल्दी से कोई चूत नहीं मिली तो शायद मेरा लॉडा फॅट जाएगा."

असलम: "सबर कर, सबर कर, जल्द ही तुझे बहुत सारी छूटें और गांदें छोड़ने को मिलेंगी. याद नहीं हम लोगों ने क्या फ़ैसला किया था. बस अब कुछ ही दिनों की बात है."

हरिया: "हां बात तो याद है, मगर अब रहा नहीं जेया रहा है, और उस पर से यह हमारी फिल्मों की रंडियन, अभी कुच्छ दिन पहले मधुरी की एक फिल्म आई थी प्रेम ग्रंथ टीवी पे, आहह क्या मस्त चिनार है मधुरी, उसके मम्मे और गांद देखकर तो मेरी वहीं टाइट हो गयी. पास में बापू और कजरी थे वरना मैं तो वहीं अपना लॉडा निकाल के मधुरी की गांद पे मुत्ह मार लेता था."

असलम: "मुझे तो करीना की गांद मारने का बहुत मॅन करता है, साली हर पिक्चर में ऐसे गांद हिलती है जैसे हम लोगों से कह रही हो मदारचोड़ों आके मेरी गांद मारो, साली की गांद बहुत ही मस्त है, मैं तो उस गांद को चूस ना भी चाहता हूँ,एम्म क्या कसैला स्वाद होगा उसकी गांद का."

हरिया: "हां रे मुझे भी गांद चूसने का बहुत मॅन करता है, ऐश्वर्या की भी गांद भी कमाल है,छ्होटी है मगर मस्त है, साली जब भी हँसती है मेरा लॉडा तंन जाता है, ऐसा लगता है जैसे उसने अभी अभी अपनी गांद से एक पाद छ्चोड़ी हो और वो इसी बात पे हंस रही है. अरे एक बात बता असलम यह असीहवर्या, रानी मुखेर्जी, मधुरी, प्रेती ज़िंटा यह सब हेरोयिन क्या पादती हैं, क्या इनकी गांद से भी बदबू आती है?"

असलम: "अरे हरिया, दुनिया में हर औरत मूट ती है, संडास करती है, पाद ती है, चूत से महीना महीना खून निकालती हैं, चाहे वो ऐश्वर्या हो, मधुरी हो , रानी हो , मेरी मया हो या तेरी बहें हो."

हरिया; 'हां मैने अपनी बहें को तो यह सब करते हुए देखा है, मगर लगता नहीं की इतनी ऐश्वर्या जैसी खूबसूरत औरतें भी
ऐसा गंदा गंदा काम करती हैं."

असलम: "इसी में तो मज़ा है, ज़रा सोच तू अपनी नाक ऐश्वर्या की गांद में घुसेड के लेता है और वो तुरर्र तुरर्र तुरर्र पुउउर्र्र तुस्स्स तुझपे पादती जा रही है और तू उनको सूंघ रहा है. आअहह मैं तो मार जौन खुशी से अगर मेरा साथ ऐसा हुआ तोह.Yआर चुदाई में जीतने गंदे काम करो मज़ा उतना ही मिलता है."

हरिया: "सच कहता है यार, अब मुझे भी औरतों के साथ गंदे ज्ञदे काम करने का मॅन कर रहा है. मुझे अगर रानी मुखेर्जी जैसी औरत मिल जाए ना तो मैं उसका संडास खाने को भी तैयार हूँ."

आशा खिड़की के पास ठहेर कर सारी बातें सुन रही थी, और अब तो उसकी चूत फिर मचलने लगी थी.

आशा ने सोचा : "क्या मया के लॉड हैं दोनो के दोनो, इनको पटना तो चुटकियों का काम है"

मगर आशा जल्द बाज़ी नहीं करना चाहती थी, वो अपने भाई को पाटने का पूरा मज़ा लेना चाहती थी. यह सब सुनके वो समझ गयी के उसे अब क्या करना है.

हरिया: "अभी बहुत देर हो गयी है, बापू के भी आने का वक़्त हो गया है, और तेरी दोनो मया भी तेरा इंतेज़ार कर रही होंगी, तू चल मैं तुझे कल मिलता हूँ."

असलम: "ठीक है कल मिलते हैं."घर के अंदर आते ही हरिया ने आशा को देखा जो अभियभी नहा कर निकली थी, पानी की बूँदें उसके चेहरे पे बड़ी अच्छी लग रही थी. उसे लगा इतनी खूबसूरत लड़की को शादी करवके के किसी गैर मर्द के हवाले कैसे कर दूं. जैसे तैसे अपने आप को संभाला और हाथ मुँह ढोने चला गया,

आशा: "भैया, जल्दी से आ जाओ,भूख लगी होगी गरम गरम रोटियाँ सेंक के देती हूँ. आके बैठ जाओ.

हरिया: "आता हूँ दीदी, आता हूँ "

हरिया आके बैठ गया, आशा रोटियाँ बेलने लगी, आशा ने अपना आँचल कुछ इश्स तरह से ढाका था के उसके दोनो ममममे आधे से ज़्यादा दिखाई दे रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो जैसे चोली फाड़के बहार आजाएँगे. हरिया घूर घूर किए आशा के मम्मों के तरफ देख रहा था, उसका लंड उसकी चड्डी में तंन के लोहा हो गया था. जी में तो आ रहा था के उसके मॅमन को दबोच कर नोच खाए , उसे समझ नहीं आ रहा था अपने जज़्बातों को कैसे रोके. तभी अचानक रोटियाँ सेंकते हुए आशा का हाथ तवे को जेया लगा. आशा हल्के से चिल्लाई,

हरिया: दीदी क्या हुआ दीदी, हाथ जला क्या"

आशा: "नहीं भैया, ज़रा सा हाथ तवे को लग गया था."

हरिया: "लगता है तवा कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो गया है"

आशा ने हल्के से मुक्कुराते हुए कहा; "हां रे तवा सचमुच बहुत गरम हो गया है."

इश्स बात में आशा का मतलब कुच्छ और था, हरिया को भी मतलब सा,माझ आया लेकिन सोचा आशा शायद सचमुच ही तवे की बात कर रही हैं.

आशा चूल्‍हे के सामने बैठ के पसीने से भीग गयी थी, उसके पसीने की खुश्बू भी अब हरिया को पागल कर रही थी, उसके बगल बिकुल भीग गये थे, उसने दो टीन बार देखा था के आशा के बगलों में थोड़े बहुत बॉल हैं, उसे बहुत इच्छा हुई आशा के बगलिन का पसीना चाटने की, मगर हू बेबस था. वो चुप छाप रोटी खाने लगा.

आशा: "कैसी बनी है रे रोटियाँ , सब्जी कैसी है"

हरिया: "बहुत अच्छी बनी हैं रोटियाँ, और सब्ज़ी भी मस्त है, मगर दीदी तुम तो पसीन से भीग गयी हो, ज़रा फन के नीचे बैठकर आराम कर लो, मैं तब तक यह दो रोटी ख़ाता हूँ."

आशा ने फिर दूसरा तीर छ्चोड़ा, ज़रा सा अपनी टाँगें फैला कर बोली: "हां रे मैं तो पूरी भीग गयी हूँ, मेरा तो सब कुच्छ भीग गया है"

अब तो हरिया को भी शक़ुए होने आगा के आशा जान बूझके ऐसी बातें तो नहीं कर रही.

अब हरिया भी कुच्छ कम नाह्न था, अब हू भी दोहरे अर्थ की बातें करने लगा

हरिया: "दीदी अगर भीग गयी हो तो क्या मैं सूखा दूं?"

आशा: "तू सूखा सकता है मुझे?"

हरिया : "हाँ दीदी मैं बहुत अच्छे से सूखा सकता हूँ?"

आशा: "क्या पहले किसी लड़की को सूखाया है?"

हरिया: "नहीं अब तक तो किसी लड़की को नहीं सूखाया लेकिन कैसे सुखाते हैं यह मालूम है, ट्राइ करने में क्या जाता है."

आशा को बहुत मज़ा आने लगा, पहली बार किसी मर्द से ऐसी मज़ेदार बातें कर रही थी.

आशा: "अच्छा बता तो कैसे सुखाते हैं लड़की को?"

हरिया: "अब मुँह से नहीं बता सकता, यह तो दिखना पड़ता है."

आशा: "ठीक है तो तू जल्दी से खाना खा ले, मैं भी अपना काम ख़तम करके आती हूँ, फिर टV के पास बैठकर खूब बातें करेंगे , चल जल्दी से खले."














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