कंचन --8
" बस पेटिकोट ऊपर उठा के....."" बहुत ही नालयक है. लेकिन उसका लंड बरा तो है ना?"" जी वो तो ख़ासा लूंबा और मोटा है."" उस गधे के लंड जैसा ? तब तो हमारी बहू की तृप्ति कर देता होगा."" हाअ....! उस गधे के जितना तो किसी का भी नहीं हो सकता, और फिर सिर्फ़ बरा होने से कुकच्छ नहीं होता. मारद को भी तो औरत को तृप्त करने की कला आनी चाहिए. वो तो अक्सर पेंटी भी नहीं उतारते, बस साइड में करके ही कर लेते हैं."" ये तो ग़लत बात है. ऐसे तो हमारी बहू की प्यास शांत नहीं होसकती. लेकिन बहू तुम्हें ही कुकच्छ करना चाहिए. अगर औरत कामकला में माहिर ना हो तो मारद दूसरी औरतों की ओर भागने लगता है. बीवी को बिस्तेर में बिल्कुल रंडी बन जाना चाहिए तभी वो अपने पातिका दिल जीत सकती है."" आपकी बात सही है पिताजी, हम तो सब कुकच्छ करने के लिए तयारहैं. लेकिन मारद अपनी बीवी के साथ जो कुकच्छ भी करना चाहता है उसके लिए पहल तो उसे ही करनी होती है ना. वो जो भी करना चाहें हम तो हुमेशा उनका साथ देने के लिया तय्यार हैं."" हमें लगता है की हमारी बहू प्यासी ही रह जाती है. क्यों सही बात है?"" जी.."" कहो तो हम उसे समझाने की कोशिश करें?. ऐसा कब तक चलेगा ?"" नही नहीं पिताजी, उनसे कुकच्छ कहने की ज़रूरत नहीं है."" तो फिर ऐसे ही तारपति रहोगी बहू?"" और कर भी क्या सकते हैं ?"रामलाल को अब विश्वास हो गया था की उसका बेटा बहू के जिस्म की प्यास्को नहीं बुझा पता है. इतनी खूबसूरत जवानी को इस तरह बर्बाद करना तो पाप है. अब तो उसे ही कुच्छ करना होगा. कंचन फिर से रामलाल की टाँगों की मालिश करने लगी. कंचन का मुँह अब रामलाल की ओर था. बार बार इस तरह से झुकती की उसकी बरी बरी चूचियाँ ओरबरा रामलाल को नज़र आने लगते. रामलाल अक्च्ची तरह जानता था की आजसूँेहरी मौका था. लोहा भी गरम था. आज अगर बहू की जवानिलूटने में कामयाब हो गया तो ज़िंदगी बुन जाएगी. रामलाल का लंड बुरी तरह फनफ़नेया हुआ था, और टाइट लंगोट की साइड में से आधबाहर निकल आया था और उसकी जाँघ के साथ सता हुआ था. रामलाल बोला," देखो बहू तुम चाहती हो तुम्हारी जवानी की आग ठंडी हो ?"" जी कौन औरत नहीं चाहती?"" हम तुम्हारे ससुर हैं. तुम्हारी जवानी की आग को ठंडा करना हमारा धरम है. हमें ही कुकच्छ करना होगा."" आप क्या कर सकते हैं पिताजी, हुमारी किस्मेट ही ऐसी है ?"कंचन एक ठंडी साँस लेते हुए रामलाल की जाँघ पे तैल लगती हुई बोली." ऐसा ना कहो बहू. अपनी किस्मत तो अपने हाथ में होती है. अरे बहू, तुमने हुमारी कमर से ले के टाँगों तक तो मालिश कर दी लेकिन एक जगह तो छ्होर ही दी."" कौन सी ?"" अरे धोती के नीचे भी बहुत कुकच्छ है. वहाँ भी मालिश कर दो."" जी वहाँ..?"" भाई नहीं करना चाहती हो तो कोई बात नहीं हम वहाँ कमला से मालिश करवा लेंगे."" नहीं नहीं पिताजी कमला से क्यों ? हम हैं ना." कंचन ने शरमाते हुए रामलाल की धोती ऊपर कर दी. नीचे का नज़ारा देख के उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. कसे हुए लंगोट का उभार देखने लायक था. कंचन ने लंगोट वाले इलाक़े को छ्होर के लंगोट कछारों ओर मालिश कर दी." लीजिए पिताजी वहाँ भी मालिश कर दी."" बहू वहाँ तो अभी और भी बहुत कुकच्छ है."" और तो कुच्छ भी नहीं है."" ज़रा लंगोट के नीचे तो देखो बहुत कुच्छ मिलेगा."" हाअ......! लंगोट के नीचे ! वहाँ तो आपका वो है. हमें तो बहुत शरम आ रही है."" शरम कैसी बहू ? तुम तो ऐसे शर्मा रही हो जैसे कभी मारद का लंड नहीं देखा."" जी किसी पराए मारद का तो नहीं देखा ना."" अक्च्छा तो तुम हुमें पराया समझती हो ?""नहीं नहीं पिता जी ऐसी बात नहीं है."" अगर ऐसी बात नहीं है तो इतना शर्मा क्यों रही हो ? वो तुम्हें काटेगा नहीं. चलो लंगोट खोल दो ओर वहाँ की भी मालिश कर दो."" जी हम तो आपकी बहुँ हैं. हम आपके उसको कैसे हाथ लगा सकते हैं ?"" ठीक है बहू कोई बात नहीं, वहाँ की मालिश हम कमला से करवा लेंगे."" नहीं नहीं पिताजी ये आप क्या कह रहे हैं ? किसी पराई औरत से तो अच्छा है हम ही वहाँ की मालिश कर दें."" तो फिर श्रमा क्यों रही हो बहू ?" ये कहते हुए रामलाल ने बहू का हाथ पाकर के लंगोट पे रख दिया. लंगोट के ऊपर से ससुर जी के मोटे लंड की गर्माहट से कंचन काँप गयी. काँपते हुए हाथों से कंचन ससुर जी का लंगोट खोलने की कोशिश कर रही थी. आख़िर आज ससुर जी का लंड देखने की मुराद पूरी हो ही जाएगी. जैसे ही लंगोट खुला रामलाल का लंड लंगोट से आज़ाद होके एक झटके के साथ टन के खरा हो गया. 11 इंच के लूंबे मोटे काले लंड को देख के कंचन के मुँह से चीख निकल गयी." ऊई माआअ.. ये क्या है..?!"" क्या हुआ बहू..?"" जी.. इतना लूंबा..."" नहीं पसंद आया ?"" जी वो बात नहीं है. मारद का इतना बरा भी हो सकता है ? सच पिताजी ये तो बिकुल उस गधे के जैसा है. अब समझी सासू मया आपको क्यों गढ़ा कहती हैं."" घबराव नहीं बहू हाथ लगा के देख लो. काटेगा नहीं." कंचन मन ही मन सोचने लगी काटेगा तो नहीं लेकिन मेरी छूट ज़रूर फाड़ देगा. बाप का लंड तो बेटों के लंड से कहीं ज़्यादा टगरा निकला कंछन उस फौलादी लॉड को सहलाने के लिए बेचैन तो थी ही. उसने ढेर सारा टेल अपने हाथ में ले के रामलाल के ताने हुए लॉड पे मलना शुरू कर दिया. ना जाने कितनी चूतो का रूस पी के इतना मोटा हो गया था. क्या भयंकर सुपरा था. मोटा लाल हाथोरे जैसा. कुँवारी चूत के लिए तो बहुत ख़तरनाक हो सकता था. कंचन को दोनो हाथों का इस्तेमाल करना पर रहा था, फिर भी रामलाल का लॉडा उसके हाथों में नहीं समा रहा था. इतना मोटा था की दोनो हाथों से उसकी मोटाई नापनी पारी. जुब जुब कंचन का हाथ लंड पे मालिश करते हुए नीचे की ओर जाता, लंड का मोटा लाल सुपारा और भी ज़्यादा भयंकर लगने लगता." पिता जी एक बात पूच्छुन? बुरा तो नहीं मानेंगे?"" नहीं बहू ज़रूर पुकच्छो."" जी सासू मया तो आपसे बहुत खुश होंगी?"" वो क्यों?" रामलाल अंजान बनता हुआ बोला." इतना लूंबा और मोटा पा के कौन औरत खुश नहीं होगी?"" अरे नहीं बहू ये ही तो हुमारी बड किस्मती है. बस एक ग़लती कार्बैठे, उसका फल अभी तक भुगत रहे हैं."" कैसी ग़लती पिताजी?"" अरे बहू सुहाग रात को जोश जोश में कुकच्छ ज़ीज़दा ज़ोर से धक्के मार दिए और पूरा लंड तुम्हारी सासू मया की चूत में पेल दिय.टुम्हारि सासू मया तो कुँवारी थी. झायल नहीं सकी. बहुत खून ख़राबा हो गया था. बेचारी बेहोश हो गयी थी. बस उसके बाद से मन में इतना दर्र बैठ गया की आज तक छुड़वाने से डरती है. बरी मिन्नत करके 6 महेने में एक बार चोद पाते हैं, उसके बाद भी आधे से ज़्यादा लंड नहीं डालने देती."" ये तो ग़लत बात है. पति की ज़रूरत पूरी कर्मा तो औरत का दराम होता है. कोशिश करती तो कुच्छ दिनों में सासू मया की आदत पर जाती.""क्या करें हुमारी दास्तान भी कुच्छ तुम्हारे जैसी है."" ओह ! फिर तो आप भी हुमारी तरह प्यासे हैं."" हन बहू. सासू मा को तो हुमारा पसंद नहीं आया लेकिन तुम्हें हुमारा लंड पसंद आया या नहीं?"" जी ये तो बहुत प्यारा है. इतना बरा तो औरत को बारे नसीब सेमिलता है. सच, हुमें तो सासू मा से जलन हो रही है. " कंचन बारे प्यार से रामलाल के लॉड को सहलाते हुए बोली. उसने फिर से अपना मुँह रामलाल की टाँगों की ओर और छूटेर रामलाल के मुँह की ओर कर रखे थे. लंड और टाँगों की मालिश करने के बहाने वो आगे की ओर झुकी हुई थी और छूटेर रामलाल की ओर उचका रखे थे." अरे इसमें जलन की क्या बात है ? आज से ये तुमहारा हुआ." रामलाल बहू के छूटरों पे हाथ फेरता हुआ बोला." जी मैं आपका मुतलब समझी नहीं."" देखो बहू, हुंसे तुम्हारी बर्बाद होती ये जवानी देखी नहीं जाती. हुमारे रहते हुमारी प्यारी बहू तारपति रहे ये तो हमारे लिए शर्म की बात है. आख़िर हम भी तो मारद हैं. हुमारे पास भी वो सूब है जो तुम्हारे उस नालायक पति के पास है. अब हुमें ही अपनी बहू की प्यास बुझानी परेगी." रामलाल का हाथ पेटिकोट के ऊपर सही बहू के विशाल छूटरों की दरार में से होता हुआ उसकी चूत पेआ गया." हाअ.... ! पिता जी ये आप क्या कह रहे हैं? आपका मुतलब आप हुमेन....ऽप्नि बहू को..?"" हन बहू हम अपनी बहू को चोदेन्गे. तुम्हारी इस जवानी को एक मोटे टगरे लंड की ज़रूरत है. हुमारी टाँगों के बीच में अब भी बहुत दूं है." रामलाल का हाथ अब धीरे धीरे बहू की टाँगों के बीच उसकी फूली हुई चूत को पेटिकोट और पेंटी के ऊपर से ही सहला रहता." पिता जी...! प्लीज़..! ऐसा नहीं कहिए. हम आपके ज़ज्बात समझते हैं लेकिन आख़िर हम आपकी बहू हैं. आपके बेटे की पत्नी हैं. आपकी बेटी के समान हैं." कंचन रामलाल के बारे बारे बॉल्स को सहलाती हुई बोली." ये सूब सही है. तुम हमारी बहू हो, हुमारी बेटी के समान हो.टभि तो हुमारा फ़र्ज़ है की हम तुम्हें खुश रखें. कोई गैर औरत होती तो हुमें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं थी. लेकिन अपनी ही बहू के साथ ऐसा अत्याचार हो ये हमें मंज़ूर नहीं." रामलाल ने ये कहते हुए बहू की चूत को अपनी मुट्ही में भर के दबा दिया." इसस्सस्स ...... आअ.. छ्होरिय ना पिताजी, आपने तो फिर पाकर ली हमारी. सोचिए बेटी के समान बहू के साथ ऐसा करना पाप नहीं होगा ?" कंचन ने अपनी चूत छुराने की कोई कोशिश नहीं की. बल्कि टाँगें इस प्रकार चौरी कर ली की रामलाल अच्छी तरह उसकी चूत पाकर सके. रामलाल बहू की चूत को और भी ज़ोर से मसलता हुआ बोला," तो क्या ये जानते हुए भी की बेटी के समान बहू की चूत प्यासी है हम चुप बैठे रहें? जुब बहू मायका छ्होर के ससुराल आती है तो सौराल वालों का फ़र्ज़ बनता है की वो अपनी बहू की सूब ज़रूरतों ककयाल रखें."" लेकिन हुँने तो आपको पिता के समान माना है, अब आपके साथ ये सब कैसे कर सकते हैं."" ठीक है बहू, अगर हमारे साथ नहीं कर सकती तो कोई बात नहीं हम गाओं में एक ऐसा टगरा मारद ढूंड लेंगे जिसका लंड हमारी तरह लूंबा हो और जो हुमारी बहू को अक्च्ची तरह चोद के उसके जिसमकी प्यास बुझा सके. बोलो ये मंज़ूर है?"" है राम !... ....ये क्या कह रहे हैं? किसी दूसरे से तो अक्च्छा है की आप ही....." कंचन दोनो हाथों से अपना मुँह च्छूपाटी हुई बोली." इसमे शरमाने की क्या बात है ? बोलो क्या कहना चाहती हो बहू?"रामलाल ने अब अपना हाथ बहू के पेटिकोट के अंदर डाल दिया था औ रूसकी जंघें सहला रहा था." जी. हुमारा मुतलब था की अगर इतनी ही मजबूरी हो जाए तो घर की इज़्ज़त तो घर में रहनी चाहिए. किसी गैर मारद को हम अपनी जवानी कैसे दे सकते हैं ? हुमारी इज़्ज़त घर वालों के पास हीरहेगी. "" तो तुम हुमें तो गैर नहीं समझती हो?"" नहीं नहीं, पिताजी आप गैर कैसे हो सकते है ?"" सच बहू तुम जितनी खूबसूरत हो उतनी ही समझदार भी हो. घर कीज़्ज़त घर में ही रहनी चाहिए. तुम्हारी सूब ज़रूरतें घर मेंही पूरी की जा सकती हैं. हम इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे की तुम्हें किसी गैर मारद के लंड की ज़रूरत ना महसूस हो." रामलाल समझ गया था की बहू भी वासना की आग में जुल रही है क्योंकि उसकी कच्ची उसकी चूत के रूस से बिल्कुल भीग चुकी थी. लेकिन अपने ससुर से चुड़वाने में झिझक रही थी. बहू की झिझक दूर करनेके लिए उसे शुरू में थोरी ज़ोर ज़बरदस्ती करनी परेगी. लोहा गरम है, अगर अभी इस सुनहरी मौके का फ़ायदा नहीं उठाया तो फिर बहुको नहीं चोद पाएगा. लेते लेते तो कुच्छ कर पाना मुश्किल था. रामललूत के खरा हो गया." क्या हुआ पिता जी आप कहाँ जेया रहे हैं ?"" कहीं नहीं बहू, अब तुम ठीक से सूब जगह टेल लगा दो."रामलाल के खरे होते ही उसकी धोती और लंगोट नीचे गिर गये. अब वो बिल्कुल नंगा बहू के सामने खरा था. उसका तना हुआ 11 इंच का मोटकला लंड बहुत भयंकर लग रहा था. ये नज़ारा देख के कंचन कीटो साँस ही गले में अटक गयी. उसने खरे हुए ससुर जी की टाँगों में तैल लगाना शुरू किया. ससुर जी का ताना हुआ लॉडा उसके मुँह से सिर्फ़ कुच्छ इंच ही दूर था. कंचन का मन कर रहा था की उस मोटे मूसल को चूम ले." बहू तोरा हुमारी च्चती पे भी मालिश कर दो."ससुर जी की च्चती पे मालिश करने के लिए कंचन को भी खरा होना परा. लेकिन ससुर जी का ताना हुआ लंड उसे नज़दीक नहीं आने दे रहता. वो ससुर जी को छेड़ते हुए हँसती हुई बोली," पिता जी, आपका गधे जैसा वो तो हुमें नज़दीक आने ही नहीं दे रहा, आपकी च्चती पे कैसे मालिश करें ?"" तुम कहो तो काट दें इसे बहू ?"" है राम !... ये तो इतना प्यारा है. इसे नहीं काटने देंगे हम."कंचन ससुरजी के लॉड को बारे प्यार से सहलाती हुई बोली." तो फिर हुमें कुच्छ और सोचना परेगा."" हन पिताजी कुच्छ करिए ना. आपका ये तो बहुत प्रोबें कर रहा है."" ठीक है बहू, हम ही कुच्छ करते हैं." ये कहते हुए रामलाल ने बहू के पेटिकोट का नारा खींच दिया. नारा खुलते ही पेटिकोट बहू की टाँगों में गिर गया. दूसरे ही पल रामलाल ने बहू की बगलों में हाथ डाल के उसे ओपपार उठा लिया और खींच के अपनी बाहों में जाकर लिया. इससे पहले की कंचन की कुच्छ समझ में आता, उसने अपने आप को ससुर जी की च्चती से चिपका पाया. वो सिर्फ़ ब्लाउस और पनटी में थी. उसका पेटिकोट पीच्चे ज़मीन पे परा हुआ था. ससुरजी का विशाल लंड उसकी टाँगों के बीच ऐसे फँसा हुआ था जैसे वो उसकी सवारी कर रही हो." ऊई माआ..... पिता जीई.... ये आपने क्या किया ? छ्होरिय ना हुमें."कंचन अपने आप को च्छूराने का नाटक करती हुई बोली." तुम ही ने तो कहा था की हुमारा लंड तुम्हें नज़दीक नहीं आने दराहा है. देखो ना अब प्राब्लम डोर हो गयी."" सच आप तो बारे खराब हैं. अपनी बहू का पेटिकोट कोई ऐसे उतारता है ?"" मजबूरी थी बहू उतारना परा. तुम्हारा पेटिकोट तुम्हें नज़दीक नहीं आने देता. लेकिन अब देखो ना तुम हुमारे कितनी नज़दीक आ गाइहो." रामलाल दोनो हाथों से बहू के विशाल छूटरों को दबा रहा था. बेचारी छ्होटी सी कच्ची मोटे मोटे छूटरों की दरार में घुसी जारही थी. रामलाल के मोटे लॉड ने बहू की कच्ची के कापरे को सामने से भी उसकी चूत की दोनो फांकों के बीच में घुसैर दिया थ.खन्चन को रामलाल के लंड की गर्माहट बेचैन कर रही थी. इतने दिनों से जिस लंड के सपने ले रही थी वो आज उसकी जांघों के बीच फँसा हुआ उसकी चूत से रगर खा रहा था." आए है ! कितने मजबूर हैं आप जो आपको अपनी बहू का पेटिकोट उतरना परा. लेकिन ऐसे चिपके हुए हम आपकी च्चती की मालिश कैसे कर सकते हैं? छ्होरिय ना हुमें प्लीज़.."" कोई बात नहीं बहू च्चती पे नहीं तो पीठ पे तो मालिश कर सकती हो." कंचन ससुर जी के बदन से बैल की तरह लिपटी हुई थी. उसकसीर ससुर जी की च्चती पे टीका हुआ था. उसने दोनो हाथों से पीठ की मालिश शुरू कर दी. रामलाल भी बहू की पीठ और चोटरों पे हातफेर रहा था. रामलाल के लॉड से रगर खा के कंचन की चूत बुरी तरह गीली हो गयी थी और पेंटी भी बिल्कुल उसके रूस में भीग गयी थी. रामलाल के लंड का ऊपरी भाग बहू की चूत के रूस में भीगा हुआ था. कंचन का सारा बदन वासना की आग में जुल रहा था." बहू
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