कंचन --3
" है राम ! कमला तू मेरे साथ क्या क्या कर रही है?" कमला ने पास
परी कैंची उठा ली और कंचन की टाँगें चौरी करके उसकी चूत
के बॉल काटने लगी. अब कंचन की चूत की दोनो फाँकें, चूत का
कटाव और उसके बीच का गुलाबी च्छेद सॉफ नज़र आने लगा. कमला
उसकी फूली हुई चूत देख कर डंग रह गयी. उसने और ढेर सारा तैल
कंचन की चूत पे डाल दिया और उसकी मालिश करने लगी.
" ऊओिईई….आआअहह… .ईईीीइसस्सस्स… ..कमलाआअ… क्यों तंग कर रही है ?"
" सच बहू रानी आपकी चूत पे तो मेरा ही दिल आ गया है. सोचिए
आपके पति का क्या हाल होगा? एक बात पूच्छुन ? बुरा तो नहीं
मानोगी?"
" पूच्छ कमला तेरी बात का का बुरा मैं कभी नहीं मान सकती.
इसस्स…आआअहह"
" आपके पति तो आपको रोज़ कम से कम तीन चार बार चोद्ते होंगे ?"
" क्यों तू ये कैसे कह सकती है?"
"आप का बदन है ही इतना गड्राया हुआ की कोई भी मरद रोज़ चोदे बिना
नहीं रह सकता."
' मैं तुझे क्यों बताओन ? पहले तू बता की तूने ससुर जी के लंड
की मालिश कैसे शुरू कर दी. और अगर लंड की मालिश करती है तो
तुझे उन्होने चोद भी ज़रूर होगा"
" अरे बहू रानी बाबू जी की मालिश तो एक इत्तेफ़ाक़ है. मैने आपको
बताया था ना की मैं बाबूजी के लिए लड़कियाँ पटा के लाती थी. अक़्स्र
बाबू जी एक दिन में तीन टीन लड़कीों को चोद्ते थे. ज़रा सोचो, हर
लड़की को सिर्फ़ दो बार भी चोदेन तुब भी उन्हें च्छेः बार चुदाई
करनी परटी थी. इतनी चुदाई के बाद आदमी तक तो जाता ही है. बाबू
जी जानते थे की मैं बहुत अक्च्ची मालिश करती हूँ इसलिए मुझे
मालिश के लिए बोल देते थे. एक दिन बाबू जी बोले ' कमला बुरा ना
मानो तो वहाँ भी मालिश कर दो. उस लड़की की बहुत टाइट थी, लंड
में दर्द हो रहा है.'. मेरे तो मन की मुराद पूरी हो गयी. मैं
चूड़ने के बाद काई औरतों की हालत देख चुकी थी और उनसे बाबू जी
के लंड के बारे में सुन चुकी थी. जुब मैने मालिश करने के लिए
उनकी धोती खोली तो बेहोश होते होते बची. सिक्युडा हुआ लंड भी इतना
मोटा और भयंकर लग रहा था. जुब मैने मालिश शुरू की तो लंड
धीरे धीरे खड़ा होने लगा. पूरा टन जाने के बाद तो मुझे दोनो
हाथों से मालिश करनी पर रही थी. बाप रे ! मोटा काला, कितना
विशाल लंड था. मेरी मालिश से बाबू जी बहुत खुश हुए और उसके
बाद से किसी को भी छोड़ने से पहले मैं उनके लंड की मालिश करके
उसे चुदाई के लिए तयर करने लगी. काश भगवान ने मुझे अक्च्छा
बदन दिया होता और मैं भी बाबू जी को रिझा पाती. दिल तो बहुत
करता था की वो गधे जैसा लंड मेरी चूत में भी जाए पर औरत
जात हूँ ना, बाबू जी ने कभी मुझे चोद्ने की इक्च्छा नहीं जताई और
मैं उनसे कैसे कहती की मुझे चोदो."
" बात तो तेरी ठीक है. एक रंडी भी ये नहीं कहती की मुझे चोदो.
लेकिन ये बता तूने ससुर जी को चोदते हुए तो ज़रूर देखा होगा.?"
" हां बहू रानी देखा तो है. इसी कमरे के बगल में जो कमरा है
वहाँ से इस कमरे में झाँक सकते हैं. जिस चारपाई पे आप लेटी
हो उसी चारपाई पे बाबू जी ने अपनी साली को ना जाने कितनी बार
चोद है."
" सच कमला ! कुकच्छ बता ना कैसा लुगता था ?" अब तो कंचन की
चूत बुरी तरह से गीली हो चुकी थी.ससुर जी के गधे जैसे मोटे
काले लंड की कल्पना से ही कंचन के बदन में आग लग गयी थी.
कमला इस बात को अक्च्ची तरह जानती थी. आख़िर वो भी मंजी हुई
खिलाड़ी थी. कंचन की चूत को मसालते हुए बोली,
" है बहू रानी क्या बताओन. बेचारी 17 साल की कमसिन लड़की थी जब
बाबूजी के मूसल ने उसकी कुँवारी चूत को रोंदा था. बिल्कुल नाज़ुक सी
चूत थी उसकी जैसे किसी बच्ची की हो. लेकिन चार साल चूड़ने के
बाद क्या फूल गयी थी और चौरी हो गयी थी. अब तो जुब भी
चुद्वाने के लिए टाँगें चौरी करती थी, उसकी चूत का खुला हुआ
च्छेद नज़र आने लगता था मानो चूत मुँह फाडे लंड को खाने का
इंतज़ार कर रही हो. बहुत ही मज़े ले कर चुड़वाती थी. पहली बार तो
मुझे विश्वास ही नहीं हुआ की बाबू जी का इतना लूंबा लंड उसकी चूत
में जेया भी पाएगा. सच बहू रानी साली की चूत में पूरा लंड
जाते मैने इन आखों से देखा है. जुब पूरा लंड घुस जाता था तो
बाबू जी के सांड के माफिक बारे बारे टटटे साली के छूटरों से चिपक
जाते थे.
" टटटे क्या होते हैं?"
" अरे मरद के लंड के नीचे जो लटकते हैं ? वहीं तो वीरया बनता है."
" ओ ! समझी."
" क्या फ़च.. फ़च ..फ़च. की आवाज़ें आती थी. हेर धक्के के साथ
बाबूजी के झूलते हुए टटटे मानो साली के छूटरों पर मार लगाते
थे. जुब बाबूजी झाडे तो ढेर सारा वीरया साली की चूत में से बह
कर बाहर चारपाई पे गिरने लगा. ऊफ़ क्या जानलेवा नज़ारा था."
" है ! कमला कितनी बार तूने साली की चुदाई देखी?"
" सिर्फ़ दो बार. उसके बाद बाबूजी को पता चल गया. फिर उन्होने साली
को पमफ्स में चॉड्ना शुरू कर दिया." आज की मालिश ने और कमला
की बातों ने कंचन के बदन में एक अजीब सी आग लगा डी थी.
कंचन की चुदाई हुए अब एक महीने से भी ज़्यादा हो चक्का था.
कॉंड…
कुच्छ दिनों बाद कंचन के पति का फोन आया. ससुर जी ने कंचन को
बताया की राकेश का फोन है. कंचन ने अपने कमरे में जा कर
फोन का रिसीवर उठा लिया. उधर रामलाल ने भी अपने कमरे का
रिसीवर नीचे नहीं रखा और बहू और बेटे की बातें सुनने लगा.
राकेश बोल रहा था,
" कंचन मेरी जान ससुराल जा कर तो तुम हुमें भूल ही गयी हो. अब
तो एक महीना बीत गया है और कितना तर्पओगि? बहुत याद आ रही
है तुम्हारी."
" अक्च्छा जी ! बरी याद आ रही है आपको मेरी. अचानक इतनी याद
क्यों आ रही है?"
" खूबसूरत बीवी से एक महीना अलग रहना तो बहुत मुश्किल होता है
मेरी जान. सच, सारा दिन खड़ा रहता है तुम्हारी याद में."
" आपका वो तो पागल है. उसे कहिए एक महीना और इंतज़ार करे."
" ऐसे ना कहो मेरी जान एक महीना और इंतज़ार करना तो बहुत मुश्किल
है."
" तो फिर अभी कैसे काम चल रहा है?"
" अभी तो मैं तुम्हारी पॅंटी से ही काम चला रहा हूँ."
" हाअ… ! आपने फिर मेरी पॅंटी ले ली. जिस दिन वहाँ से चली थी उस
दिन सुबह नहाने से पहले पॅंटी उतारी थी. सोचा था गाओं में जा के
धो लूँगी. गंदी ही सूटकेस में रख ली थी. यहाँ आ के देखा तो
पॅंटी गायब थी."
" बरी मादक खुश्बू है तुम्हारी पॅंटी की. याद है रात को
उतावलेपन में जुब पहली बार तुम्हें चोडा था तो पॅंटी उतारने की
भी फ़ुर्सत नहीं थी, बस चूत के ऊपर से पॅंटी को साइड में करके
ही पेल दिया था तुमाहारी फूली हुई चूत में."
" अक्च्ची तरह याद है मेरे राजा. अब आप इस पॅंटी को भी फार दोगे?
अब तक दो पॅंटी तो पहले ही फार चुके हो."
" कंचन मेरी जान इस बार आओगी तो पॅंटी नहीं तुम्हारी चूत ही
चोद चोद के फार दूँगा."
" सच ! मैं भी तो यही चाहती हूँ."
" क्या चाहती हो मेरी जान ?"
" की आप मेरी ………. हटिए भी ! आप बहुत चालाक हैं."
" बोलो ना मेरी जान फोन पे भी शर्मा रही हो."
" आप तो बस मेरे मुँह से गंदी गंदी बातें सुनना चाहते हैं."
" है ! जुब चुद्वाने में कोई शरम नहीं तो बोलने में कैसी
शरम? तुम्हारे मुँह से सुन के शायद मेरे लंड को कुकच्छ शांति
मिले. बोलो ना मेरी जान तुम भी क्या चाहती हो?"
" ऊफ़…! आप भी बस. मैं भी तो चाहती हूँ की आप मुझे इतना चोदे
की मेरी….. मेरी चूत फॅट जाए. मैं…. मेरी चूत अब आपके उसके लिए
बहुत तरप रही है."
" किसके लिए मेरी जान."
" आपके ल्ल..लंड के लिए, और किसके लिए." कंचन मुस्कुराते हुए बोली.
" सच कंचन अब और नहीं सहा जाता. मालूम है इस वक़्त भी
तुम्हारी पॅंटी मेरे खड़े हुए लंड पे लटक रही है."
" है राम, मेरी पॅंटी की किस्मत भी मेरी चूत की किस्मत से अक्च्ची
है. अगर आपने मुझे पहले ही बुला लिया होता तो इस वक़्त आपके लंड पे
पॅंटी नहीं मेरी चूत होती."
" कोई बात नहीं, इस बार जुब आओगी तो इतना चोदुन्गा की तुंग आ
जाओगी. बोलो मेरी जान जी भर के दोगि ना?"
" हां मेरे राजा आप लेंगे तो क्यों नहीं दूँगी. मैने तो सिर्फ़
टाँगें चौरी करनी हैं, बाकी सारा काम तो आप ही ने करना है."
" ऐसा ना कहो मेरी जान. चूत देने की कला तो कोई तुमसे सीखे.
" अक्च्छा जी ! तो अपनी बीवी को चोदना इतना अक्च्छा लगता है? वैसे
यहाँ एक औरत कमला है जो मालिश बहुत अक्च्ची करती है. मेरे
पुर बदन की मालिश करती है. यहाँ तक की मेरी चूत की भी
मालिश कर दी. कहती है ' बहू रानी आपकी चूत की मालिश करके
मैं इसे ऐसा बना दूँगी की आपके पति हमेशा आपकी चूत से ही
चिपके रहेंगे.' तो मैने उससे कहा की मैं भी तो यही चाहती हूँ.
वरना हमारे पति देव को तो हमारी चूत की याद महीने में एक दो
बार ही आती है. ठीक कहा ना जी? उसने चूत के बालों पे भी
कुकच्छ किया है."
" क्या किया है मेरी जान बताओ ना."
" मैं क्यों बताओन? खुद ही देख लीजिएगा. लेकिन चूत पे से पॅंटी
साइड में करके पेलने से नहीं पता चलेगा. ये देखने के लिए तो
पूरी नंगी करके ही चोदना परेगा."
" एक बार आ तो जाओ मेरी जान, अब कप्रों की ज़रूरत नहीं परेगी.
हमेशा नंगी ही रखूँगा."
" ही ! ऐसी बातें ना करिए. मेरी चूत बिल्कुल गीली हो गयी है.
आपके पास तो मेरी पॅंटी है, मेरे पास तो कुकच्छ भी नहीं है."
" वहाँ गाओं में किसी को ढूंड लो." राजेश मज़ाक करता हुआ बोला.
" छ्ची कैसी बातें करते हैं? वैसे आपके गाओं में आदमी कम गधे
ज़्यादा नज़र आते हैं. एक दिन तो हद ही हो गयी. मैं खेत में जा
रही थी. मेरे आगे आगे एक गढ़ा और गधि चल रहे थे. गधे का
लंड खरा हुआ था. बाप रे ! तीन फुट से भी लंबा होगा. बिल्कुल
ज़मीन पे लगने को हो रहा था. अचानक वो आगे चल रही गधि पे
चढ़ गया और पूरा तीन फुट का लंड उसकी चूत में पेल दिया. सच
मेरी तो चीख ही निकल गयी. ज़िंदगी में पहली बार इतना लंबा लंड
किसी के अंडर जाता देखा."
" तुम अपना ध्यान रखना मेरी जान. खेतों में अकेली मत जाना.
तुम्हारे कातिलाना चूतरो को देख के कोई गढ़ा तुम पे ना चढ़
जाए. कहीं तुम्हारी चूत में तीन फुट का लंड पेल दिया तो?."
राजेश हंसता हुआ बोला.
" हटिए, आप तो बारे वो हैं ! आपको तो शरम भी नहीं आती. जिस
दिन सुचमुच किसी गधे ने मेरे अंडर तीन फुट का लंड पेल दिया ना
उस दिन के बाद मेरी चूत इतनी चौरी हो जाएगी की आपके काबिल नहीं
रह जाएगी. बोलिए मंज़ूर है?"
" अगर तुम्हारी चूत की प्यास गधे के लंड से बुझ जाती है तो
मुझे मंज़ूर है. मैं तो तुम्हें खुश और तुम्हारी चूत को तृप्त
देखना चाहता हूँ."
" जाइए भी हम आपसे नहीं बोलते."
" नाराज़ मत हो मेरी जान मैं तो मज़ाक कर रहा था."
" अक्च्छा अब फोन रखिए मुझे खाना भी बनाना है."
" ठीक है मेरी जान, दो तीन दिन बाद फिर फोन करूँगा. बाइ."
राजेश ने फोन रख दिया. राजेश की बातें सुन कर कंचन की चूत
गीली हो गयी थी. वो रिसीवर रखने ही वाली थी की उसे एक और क्लिकक
की आवाज़ सुनाई डी. ज़रूर कोई और भी उनकी बातें सुन रहा था.
कंचन के घर तो एक्सटेन्षन था नहीं. फोन का एक्सटेन्षन तो यहीं
ससुराल में था. वो भी ससुर जी के कमरे में. तो क्या ससुर जी उनकी
बातें सुन रहे थे? बाप रे, अगर ससुर जी ने उनकी बातें सुन ली तो
क्या सोच रहे होंगे? उधर रामलाल बहू के मुँह से ऐसी सेक्सी बातें सुन
कर हैरान रह गया. आख़िर बहू उतनी भी भोली नहीं थी जितनी
शकल से लगती थी.
अब रामलाल बहू को च्छूप च्छूप के देखने के चक्कर में रहता था. एक
रात कंचन देर तक जग रही थी. शायद नॉवेल पढ़ रही थी. सब
लोग सो गये थे. रामलाल की आँखों में नींद कहाँ? वो बिस्तेर पर
लेटा करवटें बदल रहा था. तभी उसे बहू के कमरे में हरकत
सुनाई दी. राम लाल ध्यान से देखने लगा. तभी बहू के कमरे का
दरवाज़ा खुला और वो रामलाल के कमरे के बगल वाले बाथरूम की ओर जा
रही थी. बहू के हाथ में कोई सफेद सी चीज़ थी. ऐसा लग रहा
था जैसे उसकी कछि हो. बहू ने बातरूम में घुस के दरवाज़ा बंद
कर लिया. रामलाल जल्दी से दबे पावं उठा और बाथरूम के दरवाज़े से
कान लगा कर सुनने लगा. इतने में प्सस्सस्स्स्स्स्सस्स………………… की आवाज़
आने लगी. बहू पेशाब कर रही थी. बहू के पेशाब के लिए पैर
फैला कर बैठने और उसकी चूत के खुले हुए होंठों के बीच से
निकलती हुई पेशाब की धार की कल्पना से ही रामलाल का लॉडा तन
गया. जैसे ही प्सस्स….. की आवाज़ बूँद हुई रामलाल जल्दी से अपने कमरे
में जा कर लाइट गया. इतने में बहू बाथरूम से बाहर आई ओर अपने
कमरे की ओर जाने लगी. उसके हाथ में वो सफेद चीज़ अब नहीं थी.
अपने कमरे में जा कर बहू ने दरवाज़ा बंड कर लिया और लाइट भी
ऑफ कर दी. शायद सोने जा रही थी. रामलाल फिर से उठा और
बाथरूम में गया. उसका गेस सही निकला. एक कोने में धोने के
कप्रों में बहू की सफेद कछि पारी हुई थी. रामलाल ने बाथरूम का
दरवाज़ा अंडर से बंड किया और बहू की कच्ची को उठा लिया. अभी तक
उस कच्ची में गर्माहट थी. शायद अभी अभी उतारी थी. रामलाल
ध्यान से कछि को देखने लगा. कच्ची में दो लूंबे काले बॉल फँसे
हुए थे. कम से कम चार इंच लूंबे तो थे ही. ये देख कर रामलाल का
लंड हरकत करने लगा. बाप रे ये तो बहू की चूत के बॉल थे. इसका
मुतलब बहू की चूत पे खूब लंब और घने बाल हैं.खछि का जो
हिस्सा बहू की चूत पे टच करता था वहाँ गहरे रंग का दाग सा
था. शायद बहू की पेशाब और चूत के रस का दाग था. रामलाल ने
दोनो बॉल निकाल लिए और कच्ची को सूंघने लगा. ऊफ़ क्या जान लेवा
गूँध थी. ये तो बहू की चूत की खुश्बू थी. रामलाल औरत की चूत
की गंध अच्छी तरह पहचानता था. रामलाल ने जी भर के बहू की
कच्ची को सूँघा और फिर उस जगह को अपने लॉड के सुपरे पे टीका
दिया जो बहू की चूत से टच करती थी. रामलाल ने कच्ची को अपने
लंड पे खूब रग्रा. उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो बहू की चूत
पे अपना लंड रगर रहा हो. कच्ची इतने नाज़ुक थी की रामलाल को डार
था कहीं उसका मोटा फौलादी लॉडा बहू की कच्ची ना फाड़ दे. कुच्छ
देर कच्ची को लंड पे रगर्ने और बहू की चूत की कल्पना करके
रामलाल अपने को कंट्रोल ना कर सका और उसने ढेर सारा वीरया कच्ची
में उंड़ेल दिया. फिर उसने कच्ची धोने में डाल दी और वापस अपने
कमरे में चला गया.
अगले दिन जब कंचन अपने कापरे धोने लगी तो उसे अपनी पॅंटी पे दाग
नज़र आया. ऐसा दाग तो मारद के वीरया का होता है. कंचन सोच
में पर गयी की ये दाग उसकी पनटी में कैसे आया. घर में तो सिर्फ़
एक ही मारद था और वो थे ससुर जी. कहीं ससुर जी तो नहीं…… लेकिन
वो उसकी पॅंटी के साथ क्या कर रहे थे? कहीं ये उसका वहाँ तो नहीं
था ? लेकिन कंचन को शक होता जा रहा था की ससुर जी उस पर
फिदा होते जा रहे हैं. कंचन के बदन को ऐसे देखते थे जैसे
आँखों से ही चोद रहे हों. अब तो बात बात पे कंचन की पीठ और
छूटरों पे हाथ फेरने लगे थे. कभी कंचन की पीठ पे हाथ
रख के उसकी ब्रा को फील करते हुए कहते
' हुमारी बहू रानी बहुत अक्च्ची है', कभी उसकी पतली कमर में
हाथ डाल के कहते ' हम बहू के बिना ना जाने क्या करेंगे', कभी
कंचन के चूतोन पे हाथ रख कर कहते ' जाओ बहू अब आराम कर लो'.
जब से कंचन ने कमला से ससुर जी के कारनामे सुने थे तुब से वो
भी ससुर जी को एक औरत की नज़र से देखने लगी थी. ससुर जी के
विशाल लंड के वर्णन ने तो उसकी नींद ही हराम कर दी थी.
" है राम ! कमला तू मेरे साथ क्या क्या कर रही है?" कमला ने पास
परी कैंची उठा ली और कंचन की टाँगें चौरी करके उसकी चूत
के बॉल काटने लगी. अब कंचन की चूत की दोनो फाँकें, चूत का
कटाव और उसके बीच का गुलाबी च्छेद सॉफ नज़र आने लगा. कमला
उसकी फूली हुई चूत देख कर डंग रह गयी. उसने और ढेर सारा तैल
कंचन की चूत पे डाल दिया और उसकी मालिश करने लगी.
" ऊओिईई….आआअहह… .ईईीीइसस्सस्स… ..कमलाआअ… क्यों तंग कर रही है ?"
" सच बहू रानी आपकी चूत पे तो मेरा ही दिल आ गया है. सोचिए
आपके पति का क्या हाल होगा? एक बात पूच्छुन ? बुरा तो नहीं
मानोगी?"
" पूच्छ कमला तेरी बात का का बुरा मैं कभी नहीं मान सकती.
इसस्स…आआअहह"
" आपके पति तो आपको रोज़ कम से कम तीन चार बार चोद्ते होंगे ?"
" क्यों तू ये कैसे कह सकती है?"
"आप का बदन है ही इतना गड्राया हुआ की कोई भी मरद रोज़ चोदे बिना
नहीं रह सकता."
' मैं तुझे क्यों बताओन ? पहले तू बता की तूने ससुर जी के लंड
की मालिश कैसे शुरू कर दी. और अगर लंड की मालिश करती है तो
तुझे उन्होने चोद भी ज़रूर होगा"
" अरे बहू रानी बाबू जी की मालिश तो एक इत्तेफ़ाक़ है. मैने आपको
बताया था ना की मैं बाबूजी के लिए लड़कियाँ पटा के लाती थी. अक़्स्र
बाबू जी एक दिन में तीन टीन लड़कीों को चोद्ते थे. ज़रा सोचो, हर
लड़की को सिर्फ़ दो बार भी चोदेन तुब भी उन्हें च्छेः बार चुदाई
करनी परटी थी. इतनी चुदाई के बाद आदमी तक तो जाता ही है. बाबू
जी जानते थे की मैं बहुत अक्च्ची मालिश करती हूँ इसलिए मुझे
मालिश के लिए बोल देते थे. एक दिन बाबू जी बोले ' कमला बुरा ना
मानो तो वहाँ भी मालिश कर दो. उस लड़की की बहुत टाइट थी, लंड
में दर्द हो रहा है.'. मेरे तो मन की मुराद पूरी हो गयी. मैं
चूड़ने के बाद काई औरतों की हालत देख चुकी थी और उनसे बाबू जी
के लंड के बारे में सुन चुकी थी. जुब मैने मालिश करने के लिए
उनकी धोती खोली तो बेहोश होते होते बची. सिक्युडा हुआ लंड भी इतना
मोटा और भयंकर लग रहा था. जुब मैने मालिश शुरू की तो लंड
धीरे धीरे खड़ा होने लगा. पूरा टन जाने के बाद तो मुझे दोनो
हाथों से मालिश करनी पर रही थी. बाप रे ! मोटा काला, कितना
विशाल लंड था. मेरी मालिश से बाबू जी बहुत खुश हुए और उसके
बाद से किसी को भी छोड़ने से पहले मैं उनके लंड की मालिश करके
उसे चुदाई के लिए तयर करने लगी. काश भगवान ने मुझे अक्च्छा
बदन दिया होता और मैं भी बाबू जी को रिझा पाती. दिल तो बहुत
करता था की वो गधे जैसा लंड मेरी चूत में भी जाए पर औरत
जात हूँ ना, बाबू जी ने कभी मुझे चोद्ने की इक्च्छा नहीं जताई और
मैं उनसे कैसे कहती की मुझे चोदो."
" बात तो तेरी ठीक है. एक रंडी भी ये नहीं कहती की मुझे चोदो.
लेकिन ये बता तूने ससुर जी को चोदते हुए तो ज़रूर देखा होगा.?"
" हां बहू रानी देखा तो है. इसी कमरे के बगल में जो कमरा है
वहाँ से इस कमरे में झाँक सकते हैं. जिस चारपाई पे आप लेटी
हो उसी चारपाई पे बाबू जी ने अपनी साली को ना जाने कितनी बार
चोद है."
" सच कमला ! कुकच्छ बता ना कैसा लुगता था ?" अब तो कंचन की
चूत बुरी तरह से गीली हो चुकी थी.ससुर जी के गधे जैसे मोटे
काले लंड की कल्पना से ही कंचन के बदन में आग लग गयी थी.
कमला इस बात को अक्च्ची तरह जानती थी. आख़िर वो भी मंजी हुई
खिलाड़ी थी. कंचन की चूत को मसालते हुए बोली,
" है बहू रानी क्या बताओन. बेचारी 17 साल की कमसिन लड़की थी जब
बाबूजी के मूसल ने उसकी कुँवारी चूत को रोंदा था. बिल्कुल नाज़ुक सी
चूत थी उसकी जैसे किसी बच्ची की हो. लेकिन चार साल चूड़ने के
बाद क्या फूल गयी थी और चौरी हो गयी थी. अब तो जुब भी
चुद्वाने के लिए टाँगें चौरी करती थी, उसकी चूत का खुला हुआ
च्छेद नज़र आने लगता था मानो चूत मुँह फाडे लंड को खाने का
इंतज़ार कर रही हो. बहुत ही मज़े ले कर चुड़वाती थी. पहली बार तो
मुझे विश्वास ही नहीं हुआ की बाबू जी का इतना लूंबा लंड उसकी चूत
में जेया भी पाएगा. सच बहू रानी साली की चूत में पूरा लंड
जाते मैने इन आखों से देखा है. जुब पूरा लंड घुस जाता था तो
बाबू जी के सांड के माफिक बारे बारे टटटे साली के छूटरों से चिपक
जाते थे.
" टटटे क्या होते हैं?"
" अरे मरद के लंड के नीचे जो लटकते हैं ? वहीं तो वीरया बनता है."
" ओ ! समझी."
" क्या फ़च.. फ़च ..फ़च. की आवाज़ें आती थी. हेर धक्के के साथ
बाबूजी के झूलते हुए टटटे मानो साली के छूटरों पर मार लगाते
थे. जुब बाबूजी झाडे तो ढेर सारा वीरया साली की चूत में से बह
कर बाहर चारपाई पे गिरने लगा. ऊफ़ क्या जानलेवा नज़ारा था."
" है ! कमला कितनी बार तूने साली की चुदाई देखी?"
" सिर्फ़ दो बार. उसके बाद बाबूजी को पता चल गया. फिर उन्होने साली
को पमफ्स में चॉड्ना शुरू कर दिया." आज की मालिश ने और कमला
की बातों ने कंचन के बदन में एक अजीब सी आग लगा डी थी.
कंचन की चुदाई हुए अब एक महीने से भी ज़्यादा हो चक्का था.
कॉंड…
कुच्छ दिनों बाद कंचन के पति का फोन आया. ससुर जी ने कंचन को
बताया की राकेश का फोन है. कंचन ने अपने कमरे में जा कर
फोन का रिसीवर उठा लिया. उधर रामलाल ने भी अपने कमरे का
रिसीवर नीचे नहीं रखा और बहू और बेटे की बातें सुनने लगा.
राकेश बोल रहा था,
" कंचन मेरी जान ससुराल जा कर तो तुम हुमें भूल ही गयी हो. अब
तो एक महीना बीत गया है और कितना तर्पओगि? बहुत याद आ रही
है तुम्हारी."
" अक्च्छा जी ! बरी याद आ रही है आपको मेरी. अचानक इतनी याद
क्यों आ रही है?"
" खूबसूरत बीवी से एक महीना अलग रहना तो बहुत मुश्किल होता है
मेरी जान. सच, सारा दिन खड़ा रहता है तुम्हारी याद में."
" आपका वो तो पागल है. उसे कहिए एक महीना और इंतज़ार करे."
" ऐसे ना कहो मेरी जान एक महीना और इंतज़ार करना तो बहुत मुश्किल
है."
" तो फिर अभी कैसे काम चल रहा है?"
" अभी तो मैं तुम्हारी पॅंटी से ही काम चला रहा हूँ."
" हाअ… ! आपने फिर मेरी पॅंटी ले ली. जिस दिन वहाँ से चली थी उस
दिन सुबह नहाने से पहले पॅंटी उतारी थी. सोचा था गाओं में जा के
धो लूँगी. गंदी ही सूटकेस में रख ली थी. यहाँ आ के देखा तो
पॅंटी गायब थी."
" बरी मादक खुश्बू है तुम्हारी पॅंटी की. याद है रात को
उतावलेपन में जुब पहली बार तुम्हें चोडा था तो पॅंटी उतारने की
भी फ़ुर्सत नहीं थी, बस चूत के ऊपर से पॅंटी को साइड में करके
ही पेल दिया था तुमाहारी फूली हुई चूत में."
" अक्च्ची तरह याद है मेरे राजा. अब आप इस पॅंटी को भी फार दोगे?
अब तक दो पॅंटी तो पहले ही फार चुके हो."
" कंचन मेरी जान इस बार आओगी तो पॅंटी नहीं तुम्हारी चूत ही
चोद चोद के फार दूँगा."
" सच ! मैं भी तो यही चाहती हूँ."
" क्या चाहती हो मेरी जान ?"
" की आप मेरी ………. हटिए भी ! आप बहुत चालाक हैं."
" बोलो ना मेरी जान फोन पे भी शर्मा रही हो."
" आप तो बस मेरे मुँह से गंदी गंदी बातें सुनना चाहते हैं."
" है ! जुब चुद्वाने में कोई शरम नहीं तो बोलने में कैसी
शरम? तुम्हारे मुँह से सुन के शायद मेरे लंड को कुकच्छ शांति
मिले. बोलो ना मेरी जान तुम भी क्या चाहती हो?"
" ऊफ़…! आप भी बस. मैं भी तो चाहती हूँ की आप मुझे इतना चोदे
की मेरी….. मेरी चूत फॅट जाए. मैं…. मेरी चूत अब आपके उसके लिए
बहुत तरप रही है."
" किसके लिए मेरी जान."
" आपके ल्ल..लंड के लिए, और किसके लिए." कंचन मुस्कुराते हुए बोली.
" सच कंचन अब और नहीं सहा जाता. मालूम है इस वक़्त भी
तुम्हारी पॅंटी मेरे खड़े हुए लंड पे लटक रही है."
" है राम, मेरी पॅंटी की किस्मत भी मेरी चूत की किस्मत से अक्च्ची
है. अगर आपने मुझे पहले ही बुला लिया होता तो इस वक़्त आपके लंड पे
पॅंटी नहीं मेरी चूत होती."
" कोई बात नहीं, इस बार जुब आओगी तो इतना चोदुन्गा की तुंग आ
जाओगी. बोलो मेरी जान जी भर के दोगि ना?"
" हां मेरे राजा आप लेंगे तो क्यों नहीं दूँगी. मैने तो सिर्फ़
टाँगें चौरी करनी हैं, बाकी सारा काम तो आप ही ने करना है."
" ऐसा ना कहो मेरी जान. चूत देने की कला तो कोई तुमसे सीखे.
" अक्च्छा जी ! तो अपनी बीवी को चोदना इतना अक्च्छा लगता है? वैसे
यहाँ एक औरत कमला है जो मालिश बहुत अक्च्ची करती है. मेरे
पुर बदन की मालिश करती है. यहाँ तक की मेरी चूत की भी
मालिश कर दी. कहती है ' बहू रानी आपकी चूत की मालिश करके
मैं इसे ऐसा बना दूँगी की आपके पति हमेशा आपकी चूत से ही
चिपके रहेंगे.' तो मैने उससे कहा की मैं भी तो यही चाहती हूँ.
वरना हमारे पति देव को तो हमारी चूत की याद महीने में एक दो
बार ही आती है. ठीक कहा ना जी? उसने चूत के बालों पे भी
कुकच्छ किया है."
" क्या किया है मेरी जान बताओ ना."
" मैं क्यों बताओन? खुद ही देख लीजिएगा. लेकिन चूत पे से पॅंटी
साइड में करके पेलने से नहीं पता चलेगा. ये देखने के लिए तो
पूरी नंगी करके ही चोदना परेगा."
" एक बार आ तो जाओ मेरी जान, अब कप्रों की ज़रूरत नहीं परेगी.
हमेशा नंगी ही रखूँगा."
" ही ! ऐसी बातें ना करिए. मेरी चूत बिल्कुल गीली हो गयी है.
आपके पास तो मेरी पॅंटी है, मेरे पास तो कुकच्छ भी नहीं है."
" वहाँ गाओं में किसी को ढूंड लो." राजेश मज़ाक करता हुआ बोला.
" छ्ची कैसी बातें करते हैं? वैसे आपके गाओं में आदमी कम गधे
ज़्यादा नज़र आते हैं. एक दिन तो हद ही हो गयी. मैं खेत में जा
रही थी. मेरे आगे आगे एक गढ़ा और गधि चल रहे थे. गधे का
लंड खरा हुआ था. बाप रे ! तीन फुट से भी लंबा होगा. बिल्कुल
ज़मीन पे लगने को हो रहा था. अचानक वो आगे चल रही गधि पे
चढ़ गया और पूरा तीन फुट का लंड उसकी चूत में पेल दिया. सच
मेरी तो चीख ही निकल गयी. ज़िंदगी में पहली बार इतना लंबा लंड
किसी के अंडर जाता देखा."
" तुम अपना ध्यान रखना मेरी जान. खेतों में अकेली मत जाना.
तुम्हारे कातिलाना चूतरो को देख के कोई गढ़ा तुम पे ना चढ़
जाए. कहीं तुम्हारी चूत में तीन फुट का लंड पेल दिया तो?."
राजेश हंसता हुआ बोला.
" हटिए, आप तो बारे वो हैं ! आपको तो शरम भी नहीं आती. जिस
दिन सुचमुच किसी गधे ने मेरे अंडर तीन फुट का लंड पेल दिया ना
उस दिन के बाद मेरी चूत इतनी चौरी हो जाएगी की आपके काबिल नहीं
रह जाएगी. बोलिए मंज़ूर है?"
" अगर तुम्हारी चूत की प्यास गधे के लंड से बुझ जाती है तो
मुझे मंज़ूर है. मैं तो तुम्हें खुश और तुम्हारी चूत को तृप्त
देखना चाहता हूँ."
" जाइए भी हम आपसे नहीं बोलते."
" नाराज़ मत हो मेरी जान मैं तो मज़ाक कर रहा था."
" अक्च्छा अब फोन रखिए मुझे खाना भी बनाना है."
" ठीक है मेरी जान, दो तीन दिन बाद फिर फोन करूँगा. बाइ."
राजेश ने फोन रख दिया. राजेश की बातें सुन कर कंचन की चूत
गीली हो गयी थी. वो रिसीवर रखने ही वाली थी की उसे एक और क्लिकक
की आवाज़ सुनाई डी. ज़रूर कोई और भी उनकी बातें सुन रहा था.
कंचन के घर तो एक्सटेन्षन था नहीं. फोन का एक्सटेन्षन तो यहीं
ससुराल में था. वो भी ससुर जी के कमरे में. तो क्या ससुर जी उनकी
बातें सुन रहे थे? बाप रे, अगर ससुर जी ने उनकी बातें सुन ली तो
क्या सोच रहे होंगे? उधर रामलाल बहू के मुँह से ऐसी सेक्सी बातें सुन
कर हैरान रह गया. आख़िर बहू उतनी भी भोली नहीं थी जितनी
शकल से लगती थी.
अब रामलाल बहू को च्छूप च्छूप के देखने के चक्कर में रहता था. एक
रात कंचन देर तक जग रही थी. शायद नॉवेल पढ़ रही थी. सब
लोग सो गये थे. रामलाल की आँखों में नींद कहाँ? वो बिस्तेर पर
लेटा करवटें बदल रहा था. तभी उसे बहू के कमरे में हरकत
सुनाई दी. राम लाल ध्यान से देखने लगा. तभी बहू के कमरे का
दरवाज़ा खुला और वो रामलाल के कमरे के बगल वाले बाथरूम की ओर जा
रही थी. बहू के हाथ में कोई सफेद सी चीज़ थी. ऐसा लग रहा
था जैसे उसकी कछि हो. बहू ने बातरूम में घुस के दरवाज़ा बंद
कर लिया. रामलाल जल्दी से दबे पावं उठा और बाथरूम के दरवाज़े से
कान लगा कर सुनने लगा. इतने में प्सस्सस्स्स्स्स्सस्स………………… की आवाज़
आने लगी. बहू पेशाब कर रही थी. बहू के पेशाब के लिए पैर
फैला कर बैठने और उसकी चूत के खुले हुए होंठों के बीच से
निकलती हुई पेशाब की धार की कल्पना से ही रामलाल का लॉडा तन
गया. जैसे ही प्सस्स….. की आवाज़ बूँद हुई रामलाल जल्दी से अपने कमरे
में जा कर लाइट गया. इतने में बहू बाथरूम से बाहर आई ओर अपने
कमरे की ओर जाने लगी. उसके हाथ में वो सफेद चीज़ अब नहीं थी.
अपने कमरे में जा कर बहू ने दरवाज़ा बंड कर लिया और लाइट भी
ऑफ कर दी. शायद सोने जा रही थी. रामलाल फिर से उठा और
बाथरूम में गया. उसका गेस सही निकला. एक कोने में धोने के
कप्रों में बहू की सफेद कछि पारी हुई थी. रामलाल ने बाथरूम का
दरवाज़ा अंडर से बंड किया और बहू की कच्ची को उठा लिया. अभी तक
उस कच्ची में गर्माहट थी. शायद अभी अभी उतारी थी. रामलाल
ध्यान से कछि को देखने लगा. कच्ची में दो लूंबे काले बॉल फँसे
हुए थे. कम से कम चार इंच लूंबे तो थे ही. ये देख कर रामलाल का
लंड हरकत करने लगा. बाप रे ये तो बहू की चूत के बॉल थे. इसका
मुतलब बहू की चूत पे खूब लंब और घने बाल हैं.खछि का जो
हिस्सा बहू की चूत पे टच करता था वहाँ गहरे रंग का दाग सा
था. शायद बहू की पेशाब और चूत के रस का दाग था. रामलाल ने
दोनो बॉल निकाल लिए और कच्ची को सूंघने लगा. ऊफ़ क्या जान लेवा
गूँध थी. ये तो बहू की चूत की खुश्बू थी. रामलाल औरत की चूत
की गंध अच्छी तरह पहचानता था. रामलाल ने जी भर के बहू की
कच्ची को सूँघा और फिर उस जगह को अपने लॉड के सुपरे पे टीका
दिया जो बहू की चूत से टच करती थी. रामलाल ने कच्ची को अपने
लंड पे खूब रग्रा. उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो बहू की चूत
पे अपना लंड रगर रहा हो. कच्ची इतने नाज़ुक थी की रामलाल को डार
था कहीं उसका मोटा फौलादी लॉडा बहू की कच्ची ना फाड़ दे. कुच्छ
देर कच्ची को लंड पे रगर्ने और बहू की चूत की कल्पना करके
रामलाल अपने को कंट्रोल ना कर सका और उसने ढेर सारा वीरया कच्ची
में उंड़ेल दिया. फिर उसने कच्ची धोने में डाल दी और वापस अपने
कमरे में चला गया.
अगले दिन जब कंचन अपने कापरे धोने लगी तो उसे अपनी पॅंटी पे दाग
नज़र आया. ऐसा दाग तो मारद के वीरया का होता है. कंचन सोच
में पर गयी की ये दाग उसकी पनटी में कैसे आया. घर में तो सिर्फ़
एक ही मारद था और वो थे ससुर जी. कहीं ससुर जी तो नहीं…… लेकिन
वो उसकी पॅंटी के साथ क्या कर रहे थे? कहीं ये उसका वहाँ तो नहीं
था ? लेकिन कंचन को शक होता जा रहा था की ससुर जी उस पर
फिदा होते जा रहे हैं. कंचन के बदन को ऐसे देखते थे जैसे
आँखों से ही चोद रहे हों. अब तो बात बात पे कंचन की पीठ और
छूटरों पे हाथ फेरने लगे थे. कभी कंचन की पीठ पे हाथ
रख के उसकी ब्रा को फील करते हुए कहते
' हुमारी बहू रानी बहुत अक्च्ची है', कभी उसकी पतली कमर में
हाथ डाल के कहते ' हम बहू के बिना ना जाने क्या करेंगे', कभी
कंचन के चूतोन पे हाथ रख कर कहते ' जाओ बहू अब आराम कर लो'.
जब से कंचन ने कमला से ससुर जी के कारनामे सुने थे तुब से वो
भी ससुर जी को एक औरत की नज़र से देखने लगी थी. ससुर जी के
विशाल लंड के वर्णन ने तो उसकी नींद ही हराम कर दी थी.
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