Sunday, May 2, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--11

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बाली उमर की प्यास पार्ट--11

गतांक से आगे.......................

एग्ज़ॅमिनेशन रूम से बाहर निकलते ही पिंकी ने मुझे पकड़ लिया," तेरा पेपर तो हो ही नही पाया होगा यार.. तुझे इतनी देर बाद क्यूँ छ्चोड़ा उन्होने?"

मैने उसकी आँखों में देख एक पल सोचा कि संदीप के किए अहसान के बारे में बताउ या नही," ववो.. वो तो मेरा केस बनाने पर आड़े हुए थे.. बहुत रिक्वेस्ट करने के बाद ही माने.. बस इसीलिए देर हो गयी..."

तभी सर ऑफीस से बाहर निकल आए.. उन्होने इधर उधर देखा.. सभी जा चुके थे.. हमारे अलावा सिर्फ़ पीयान ही ऑफीस के बाहर बैठा था....

सर अंदर गये और थोड़ी देर बाद मेडम बाहर निकली," कृशन! बाकी कमरों को ताला लगाकर तुम चले जाओ.. हमें अभी टाइम लगेगा..."

"ठीक है मेडम!" पीयान ने कहा और चाबी उठा कर कमरे बंद करने लगा....

"हुम्म.. पर पेपर तो मेरा भी अच्च्छा नही हुआ... चल चलते हैं घर.. रास्ते में बात करेंगे...." पिंकी ने मायूस होकर कहा...

"ववो.. ऐसा कर.. तू जा.. मैं थोड़ी बाद में आऊँगी..." मैं लगे हाथों बाकी बचे पेपर को भी निपटा देना चाहती थी...

"पर क्यूँ? यहाँ क्या करेगी तू?" उसने आँखें सिकोड कर पूचछा....

"ववो.. मेरा टाइम खराब हो गया था ना.. इसीलिए सर मुझे अब थोड़ा सा टाइम देंगे.." मैने उसको आधा सच बता दिया," पर तू किसी को बोलना मत.. सर के उपर बात आ जाएगी नही तो...."

"अच्च्छा!" पिंकी खुश होकर बोली," ये तो अच्छि बात है.. कोई बात नही.. मैं तेरा इंतजार कर लेती हूँ यहीं.. तेरे साथ ही चालूंगी...!"

मैं उसको भेजने के लिए बहाना सोच ही रही थी कि सर एक बार फिर बाहर आ गये.. बाहर आकर मेरी ओर मुस्कुरा कर देखा और इशारे से अपनी और बुलाया..

"... तू जा यार.. मैं आ जाउन्गि!... एक मिनिट.... सर बुला रहे हैं..." मैने पिंकी से कहा और बिना उसका जवाब लिए सर के पास चली गयी.... पिंकी वहीं खड़ी रही...

सर ने अपने होंटो पर जीभ फिराई और पिंकी की ओर देख कर धीरे से बोले," इसको तो भेज दिया होता.. अपने साथ क्यूँ चिपका रखा है...!"

"मैने कहा है सर.. पर वो कह रही है कि मेरे साथ ही जाएगी.. अब बाकी बच्चे भी जा चुके हैं... मैं उसको फिर से बोल के देखती हूँ..." मैने नज़रें झुका कर जवाब दिया...

"हुम्म.. कौन है वो? तेरी क्या लगती है?" सर की आवाज़ में बड़ी मिठास थी अब...

"जी.. मेरी सहेली है.. बहुत अच्छि.." मैने उसकी नज़रों में देखा.. वह पिंकी को ही घूर रहा था...

"किसी को कुच्छ बता तो नही देगी ना..." सर ने मेरी चूचियो को घूरते हुए पूचछा....

यहाँ मेरी ग़लती रह गयी.. मैने समझा कि सर का ये सवाल एग्ज़ॅम टाइम के बाद मुझे पेपर करने देने के बारे में है... वैसे भी मैं यही समझ रही थी कि उनको जो कुच्छ करना था.. वो कर चुके हैं," नही सर! वो तो मेरी बेस्ट फ्रेंड है.. किसी को कुच्छ नही बताएगी..."

मैं कहने के बाद सर की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी... वो चुपचाप खड़े पिंकी की और देखते हुए कुच्छ सोचते रहे..

"सर...!" मैने उन्हे टोक दिया....

"हूंम्म?" वो अब भी मेरे पास खड़े लगातार पिंकी की ओर ही देख रहे थे...

"ववो.. मैं.. कह रही थी कि उसका भी पेपर खराब हुआ है... अगर आप...!" मैं बीच में ही रुक गयी.. ये सोच कर कि समझ तो गये ही होंगे...

"चल ठीक है.. बुला लो... पर देख लो.. तुम्हारे भरोसे पर कर रहा हूँ.. कहीं बाद में..." सर की बात को मैने खुश होकर बीच में ही काट दिया...

"जी.. वो किसी को कुच्छ नही बताएगी.. बुला लाउ उसको?" मैं खुश होकर बोली....

"हां.. ऑफीस में लेकर आ जाओ....!" सर ने कहा और अंदर चले गये....

मैं खुश होकर दौड़ी दौड़ी पिंकी के पास गयी," चल आजा... मैने तेरे लिए भी बात कर ली है... तुझे भी सर पेपर दे देंगे..."

"अच्च्छा.. सच! मज़ा आ जाएगा फिर तो" वा भी सुनकर खुशी से उच्छल पड़ी...

अगले ही पल हम दोनो मेडम और सर के सामने खड़े थे...

"मेडम.. प्लीज़.. आप ऑफीस का ताला लगाकर थोड़ी देर बाहर बैठ जाओ.. मेरा फोन भी लेते जाओ.. अगर कोई फोन आए तो कहना कि वो पेपर्स का बंड्ल लेकर निकल चुके हैं और फोन यहीं भूल गये...!" सर ने मेडम की तरफ अपना मोबाइल बढ़ाते हुए कहा....

"मैं तो बैठ जाउन्गि सर... पर देख लो.. ज़िंदगी भर अब आप मुझे और इस सेंटर को भूल मत जाना... अब मेरे स्कूल के किसी बच्चे का पेपर खराब नही होना चाहिए... सबको खुली छ्छूट मिलेगी ना अब तो....?" मेडम ने शिकायती लहजे में सर को कहा....

सर ने हंसते हुए अपना पूरा जबड़ा ही खोल दिया," हा हा हा.. आप भी कमाल करती हैं मेडम.. ये सेंटर और आपको कभी भूल सकता हूँ क्या? यहाँ तो मुझे तोहफे पर तोहफे मिल रहे हैं....आप बेफिकर रहें... कल से सब बच्चों को 15 मिनिट पहले पेपर मिल जाया करेगा.. और नकल की भी मौज करवा दूँगा..."

"थॅंक्स सर.. मुझे बस यही चाहिए.." मेडम ने मुस्कुरा कर कहा और बाहर निकल कर ऑफीस को ताला लगा दिया.....

"सोफे पर बैठ जाओ आराम से.. डरने की कोई ज़रूरत नही है.. अपना अपना रोल. नंबर. बता दो जल्दी... तुम्हे नही पता मैं कितना बड़ा रिस्क लेकर तुम्हारे लिए ये सब कर रहा हूँ..." सर ने हमारे रूम का बंड्ल खोलते हुए कहा....

पिंकी ने मेरी और देखा और मुस्कुरा दी और फिर सर को क्रितग्य नज़रों से देखते हुए बोली," थॅंक्स सर.."

हम दोनो ने अपने अपने रोल नंबर. सर को बताए और उन्होने हमारी शीट निकाल कर हम दोनो को पकड़ा दी...," किसी इंटेलिजेंट बच्चे का भी रोल नंबर. बता दो.. मैं निकाल कर दे देता हूँ.. जल्दी जल्दी उतार लेना उसमें से..."

"दीपाली" पिंकी के मुँह से निकला.. जबकि मेरे मुँह से संदीप का नाम निकलते निकलते रह गया.. पिंकी ने दीपाली का रोल नंबर. सर को बता दिया...

"हूंम्म.. मिल गया!" सर ने कहा और पेपर लेकर हमारे पास आए और हमारे बीच फंसकर बैठ गये..," ये लो.. जल्दी जल्दी करो!"

पिंकी ने शायद सर की मंशा पर ध्यान नही दिया था... हम दोनो ने सिर के सामने दीपाली का पेपर खोल कर रख लिया और जो क्वेस्चन हम दोनो के रहते थे...उतारने लगे...

करीब पाँच मिनिट ही हुए होंगे.. सर ने अपनी बाहें फैलाकर हम दोनो के कंधों पर रख दी," शाबाश.. जल्दी जल्दी करो..."

"तुम्हारा क्या नाम है बेटी?" सिर ने पिंकी की ओर देख कर पूचछा....

"जी..? पिंकी!" पिंकी जल्दी जल्दी लिखते हुए बोली....

"बहुत प्यारा नाम है.. अंजलि को तो सब पता ही है.. तुम भी अब किसी पेपर की चिंता मत करना.. सब ऐसे ही करवा दूँगा.. खुश हो ना?" सर पिंकी की कमर पर हाथ फेरने लगे...

मेरा ध्यान रह रह कर पिंकी पर जा रहा था.. मुझे तरुण की ठुकाई याद आ रही थी... ये सोचकर मैं डरी हुई थी.. कहीं सर पिंकी पर हाथ सॉफ करने के बारे में ना सोचने लगे हों... 'ऐसा होगा तो आज बहुत बुरा होगा..' मैं मंन ही मंन सोच रही थी.. पर कहती भी तो मैं किसको क्या कहती... मेरी एक आँख अपना पेपर करने पर.. और दूसरी पिंकी के चेहरे पर बनी रही....

"तुम अब जवान हो गयी हो बेटी.. चुननी डाला करो ना.. ऐसा अच्च्छा नही लगता ना.. देखो.. बाहर से ही सॉफ दिख रहे हैं...!" सर की इस बात पर पिंकी सहम सी गयी.. पर शायद अपना पेपर पूरा करने का लालच उसके मंन में भी था..

"ववो.. मैने आज अंजलि को दे दी सर..." पिंकी ने हड़बड़ा कर कहा....

"ओह.. हां.. इसकी तो और भी बड़ी बड़ी और मस्त हैं.. पर इसको अपनी लानी चाहिए.. देखो ना.. तुम्हारी भी तो कैसे चौंछ उठाए खड़ी हैं.. तुम ब्रा भी नही पहनती हो.. है ना?"

सर की बात सुनकर पिंकी का चेहरा सच में ही गुलाबी सा हो गया.. अब शायद उसके मंन में भी सर की बातें सुन कर घंटियाँ सी बजने लगी थी... मुझे डर था की ये घंटियाँ घंताल बनकर सर के सिर पर ना बजने लग जायें... अभी तो 5 पेपर बाकी थे....

पिंकी बोली तो कुच्छ नही पर सरक कर 'सर' से थोड़ा दूर हो गयी..

"नही पहनती हो ना ब्रा?" सर ने उस'से फिर पूचछा...," अंजलि भी नही पहनती.. तुम भी नही.. क्या बात है यार!"

अंजलि इस बार थोड़ा सा खिज कर बोली," वो.. मम्मी लाकर ही नही देती.. कहती हैं अभी तुम बच्ची हो...!" और अपना पेपर करती रही...

"मम्मी के लिए तो तुम शादी के बाद भी बच्ची ही रहोगी बेटी.. हे हे हे.." सर अपनी जांघों के बीच तनाव को कम करने के लिए 'वहाँ' खुजाते हुए बोले," पर तुम बताया करो ना.. तुम तो अब पूरी जवान हो गयी हो.. लड़कों का दिल मचल जाता होगा इन्हे यूँ फड़कते देख कर.. पर तुम्हारा भी क्या कुसूर है.. ये उमर ही मज़े लेने और देने की होती है.." सर ने कहने के बाद अचानक अपना हाथ पिंकी की जांघों पर रख दिया..

पिंकी कसमसा उठी," सर.. प्लीज़!"

"करो ना.. तुम आराम से पेपर करो.. मैं तुम्हारे लिए ही तो बैठा हूँ यहाँ.. चिंता की कोई बात नही.." सर ने उसको याद दिलाने की कोशिश की कि वो हम पर कितना 'बड़ा' अहसान कर रहे हैं... उन्होने अपना हाथ पिंकी की जाँघ से नही हटाया...

पिंकी के चेहरे से मुझे सॉफ लग रहा था कि वो पूरी तरह विचलित हो चुकी है.. पर शायद पेपर करने का लालच; या फिर उनकी उमर; या फिर दोनो ही कारण थे कि वह चुप बैठी अब भी लिख रही थी...

सर ने अचानक मेरे हाथ के नीचे से अपना हाथ निकाला और मेरा दायां स्तन अपनी हथेली में ले लिया.. मैने घबराकर पिंकी की ओर देखा.. कि कहीं उसके साथ भी ऐसा ही तो नही कर दिया.. पर अब तक गनीमत था कि उन्होने ऐसा नही किया था... वह हड़बड़ाई हुई जल्दी जल्दी लिखती चली जा रही थी....

सर ने अचानक अपने हाथ से उसकी जांघों के बीच जाने क्या 'छेड़' दिया.. पिंकी उच्छल कर खड़ी हो गयी.. मैने घबराकर उनका हाथ अपनी छाती से हटाने की कोशिश की.. पर उन्होने 'उसको' नही छ्चोड़ा...

"क्या हो गया बेटी? इतनी घबरा क्यूँ रही हो? आराम से पेपर करती रहो ना.. ये देखो.. अंजलि कितने आराम से कर रही है.." सर निसचिंत बैठे हुए थे.. ये सोच कर की मेरी 'सहेली' है.. मेरे ही जैसी होगी...

पिंकी ने मेरी और देखा और शर्म से अपनी आँखें झुका ली.. उसने मेरी छाती को 'सर' के हाथों में देख लिया था.. मैं चाहकर भी उनका हाथ 'वहाँ' से हटा नही पाई...

पिंकी का चेहरा तमतमाया हुआ था..," मुझे नही करना पेपर.. दरवाजा खुलवा दो.. मुझे जाना है...!"

तब तक मेरा भी पेपर पूरा ही हो गया था.. मैने भी अपनी आन्सर शीट बंद करके टेबल पर रख दी...," हो गया सर.. जाने दो हमें...!"

सर गुर्राते हुए बोले," अच्च्छा.. पेपर हो गया तो जाने दो.. हमें नही करना पेपर.. वा! मैं क्या चूतिया हूँ जो इतना बड़ा रिस्क ले रहा हूँ..!"

जैसे ही मैं खड़ी हुई.. सर ने मेरी कमर को पकड़ कर मुझे अपनी गोद में बैठा लिया...

मैने पिंकी के कारण गुस्सा सा होने का दिखावा किया...," ये सब क्या है सर.. छ्चोड़ दो मुझे!" मैं उनकी पकड़ से आज़ाद होने को च्चटपताई...

"अच्च्छा! साली.. दिन में तो तुझे ये भी पता था कि रस कैसे पीते हैं लौदे का.. अब तेरा काम निकल गया तो पूच्छ रही है.. ये सब क्या है...! तुम क्या सोच रही हो? मैं तुम्हे यूँही थोड़े जाने दूँगा.. बाकी के दिन तुम्हारी मर्ज़ी.. पर आज तो अपनी फीस लेकर ही रहूँगा...." मुझे ज़बरदस्ती गोद में ही पकड़े सर मेरी चूचियो को शर्ट के उपर से ही मसल्ने लगे.....

पिंकी बहुत डरी हुई थी.. शायद वो भी घर में ही शेर थी.. सर के सामने वो खड़ी खड़ी काँपने लगी थी...

मैं कुच्छ बोल नही पा रही थी... पर सच में मुझे बिल्कुल भी अच्च्छा नही लग रहा था उस समय.. पिंकी के कारण!

"अभी तो एक ही पेपर हुआ है.. 5 तो बाकी हैं ना.. सेंटर में इतनी सख्तयि कर दूँगा कि एक दूसरे से भी कुच्छ पूच्छ नही सकोगी.. देखता हूँ तुम जैसी लड़कियाँ कैसे पास होती हैं फिर...." सर ने गुर्राते हुए धमकी दी और मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूचियो को मसल्ने लगे...

उनकी इस धमकी का पिंकी पर क्या असर हुआ.. ये तो मैं समझ नही पाई.. पर खुद मैं एकदम ढीली हो गयी.. और उनका विरोध करना छ्चोड़ दिया.. मैं मजबूर होकर पिंकी को देखने लगी... वो खड़ी खड़ी रो रही थी....

"हमें जाने दो सर.. प्लीज़.. मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ... आप कुच्छ भी कर लेना.. पर हमें अभी जाने दो.." पिंकी सुबक्ती हुई बोली....

"चुप चाप खड़ी रह वहाँ.. मैने नही बुलाया था तुम्हे अंदर.. तुम्हारी ये 'छमियिया' लेकर आई थी.. और मैं तुम्हे कुच्छ कह भी नही रहा.. अब ज़्यादा बकवास मत करो और चुपचाप तमाशा देखो..." सर ने कहा और मुझे खड़ा कर दिया... पिंकी की सूरत देख मेरी भी आँखों में आँसू आ गये..

सर आगे हाथ लाकर मेरी स्कर्ट का हुक खोलने लगे.. मैने पिंकी को दिखाने के लिए उनका हाथ पकड़ लिया..," छ्चोड़ दो ना सर! प्लीज़"

"बहुत प्ल्ज़ सुन ली तेरी.. अब चुपचाप मेरी प्लीज़ सुन ले.. ज़्यादा बोली तो पता है ना.." उन्होने कहा और झटके के साथ हुक खोल कर स्कर्ट को नीचे सरका दिया... पिंकी जैसी लड़की के सामने इस तरह खुद को नंगी होते देख मेरी आँखें एक बार फिर डॅब्डबॉ गयी... मैं अब नीचे सिर्फ़ कछी में खड़ी थी... और अगले ही पल कछी भी नीचे सरक गयी.. मेरे नंगे नितंब अब 'सर' की आँखों के सामने थे.. और योनि 'पिंकी' के सामने.. पर पिंकी ने इस हालत में मुझे देखते ही अपनी आँखें झुका ली और सुबक्ती रही.....

"अया.. क्या माल है तू भी लौंडिया!.. चूतड़ तो देखो! कितने मस्त और टाइट हैं.. एक दम गोल गोल... पके हुए खरबूजे की तरह..." सर ने मेरे नितंबों पर थपकी सी मारने के बाद उनको अलग अलग करने की कोशिश करते हुए कहा..," हाए.. बिल्कुल एक नंबर. का माल है...कितनी चिकनी चूत है तेरी... मैने तो सपने में भी नही सोचा था कि इंडिया में भी ऐसी चूते मिल जाएँगी... क्या इंपोर्टेड पीस है यार..."

पिंकी का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था.. पर उसकी सुन'ने वाला वहाँ था कौन.. उसने अपना चेहरा दूसरी और घुमा लिया...

"चल.. टेबल पर झुक जा.. पहले तेरा रस पी लूँ..." सिर ने कहते हुए मेरी कमर पर हाथ रख कर आगे को दबा दिया... ना चाहते हुए भी मुझे झुकना पड़ा... मैने अपनी कोहनियाँ टेबल पर टीका ली....

"हां.. ऐसे.. शाबाश.. अब टाँग चौड़ी करके अपने चूतड़ पिछे निकल ले..!" सर ने उत्तेजित स्वर में कहा....

उसकी बात समझने में मुझे ज़्यादा परेशानी नही हुई.. अब पिंकी के सामने मेरी जो मिट्टी पलीत होनी थी.. वह तो हो ही चुकी थी.... मैं अब जल्द से जल्द उसको निपटाने की सोच रही थी.. मैने अपनी कमर को झुकाया और अपनी जांघें खोलते हुए अपने नितंबों को पिछे धकेल सा दिया... मेरी योनि अब लगभग बाहर की ओर निकल चुकी होगी....

"ओये होये.. मा कसम.. क्या चूत है तेरी.. दिल करता है इसको तो मैं काट कर अपने साथ ही ले जाउ!" कहकर उसने सिसकते हुए मेरे नितंबों को अपने दोनो हाथों में पकड़ा और अपनी जीभ निकाल कर एक ही बार में योनि को नीचे से उपर तक चाट गया.. मेरी सिसकी निकल गयी....

"देखा.. कितना मज़ा आया ना? इसको भी समझा.. ये भी थोड़े मज़े लेना सीख ले मुझसे.. जवानी चार दिन की होती है.. फिर पछ्तायेगि नही तो... " सर ने कहने के बाद एक बार और जीभ लपलपते हुए मेरी योनि की फांकों में खलबली मचाई और फिर बोले," कह दे ना इसको.. दो मैं तो अलग ही मज़ा आएगा.. बोल दे इसको.. मौज कर दूँगा ससूरी की.. मेरिट ना आए तो कहना..."

मैं कुच्छ ना बोली... मैं क्या बोलती..? मेरा बुरा हाल हो चुका था.. अब लगातार नागिन की तरह मेरी योनि में लहरा रही उसकी जीभ से मैं बेकाबू हो चुकी थी.. अपने आपको सिसकियाँ भरने से भी नही रोक पा रही थी...,"अया... सर्ररर... आआआः..."

"पगली.. सर की हालत भी तेरी ही तरह हो चुकी है.. कुच्छ मत बोल अब... अब तो मुझे घुसने दे जल्दी से!" बोल कर वह खड़ा हो गया...

मैं आँखें बंद किए सिसकियाँ लेती हुई मस्ती में खड़ी थी.. अचानक मुझे अपनी योनि की फांकों के बीच कुच्छ गड़ता हुआ महसूस हुआ.. समझ में आते ही मैं हड़बड़ा गयी और इसी हड़बड़ाहट में टेबल पर गिर गयी...

"अया.. ऐसे मत तडपा अब... बिल्कुल आराम से अंदर करूँगा.. मा कसम.. पता भी नही लगने दूँगा तुझे... तेरी तो वैसे भी इतनी चिकनी है कि सर्ररर से जाएगा.. आजा अंजू आजाआअ!" पगलाए हुए से सर ने मुझे कमर से पकड़ कर ज़बरदस्ती फिर से वैसे ही करने की कोशिश की... पर इस बार मैं अड़ गयी...

"नही सर.. ये नही!" मैने एक दम से सीधी खड़ी होकर कहा....

"ये क्यूँ नही मेरी जान... ये ही तो लेना है.. एक बार थोड़ा सा दर्द होगा और फिर देखना... चल आजा.. जल्दी से आजा... टाइम वेस्ट मत कर अब!" सर ने अपने लिंग को हाथ में लेकर हिलाते हुए कहा....

"नही सर.. अब बहुत हो गया.. जाने दो हमें.." मैं अकड़ सी गयी...

"ज़्यादा बकबक की तो साली की गांद में घुसेड दूँगा ये.. नौ सौ चूहे खाकर अब बिल्ली हज को जाएगी... चुपचाप मान जा वरना अपनी सहेली को बोल के चूस देगी थोड़ा सा... फिर मैं मान जाउन्गा..." सर ने कहा...

अजीब उलझन में आ फाँसी थी मैं... अगर घुस्वा लेती तो फिर मा बन'ने का डर.. पिंकी को बोलती तो बोलती कैसे? वो पहले ही मुझे कोस रही होगी... अचानक सर मेरी तरफ लपके तो मेरे मुँह से घबराहट में निकल ही गया," पिंकी.. प्लीज़..."

पिंकी ने मेरी तरफ घूर कर घृणा से देखा.. और फिर अपना चेहरा दीवार की तरफ कर लिया...

सर अब ज़्यादा मौके देने के मूड में नही थे.. उन्होने ज़बरदस्ती मुझे पकड़ कर सोफे पर गिरा लिया और मेरी टाँगें पकड़ कर दूर दूर फैला दी.. इसके साथ ही मेरी योनि की फाँकें अलग अलग होकर सर को आक्रमण के लिए आमंत्रित करने लगी...

सर ने जैसे ही घुटने सोफे पर रखे.. मैं दर्दनाक ढंग से बिलख पड़ी," पिनकयययी.. प्लीज़.. बचा ले मुझे...!"

सर ने मेरे आह्वान पर मुड़कर पिंकी को देखा तो मेरी भी नज़र उसी पर चली गयी.. पर वह चुपचाप खड़ी रही....

"ऐसी सहेलियाँ बनाती ही क्यूँ है जो तेरे सामने खड़ी होकर भी तेरी सील टूट'ते देखती रहें... ये किसी काम की नही है.. तुझे चुदना ही पड़ेगा आज..." सर ने कहा और मेरी जांघों को फैलाकर फिर से मुझ पर झुकने लगे.. मैं बिलख रही थी.. पर वो 'कहाँ' सुनते? उन्होने वापस अपना लिंग मेरी योनि पर टीकाया ही था कि अचानक खड़े हो कर पलट गये...

"क्या करना है सर?" पिंकी आँखें बंद किए उनके पास खड़ी थी.. और उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लगी हुई थी......

क्रमशः ..................

Examination room se bahar nikalte hi Pinky ne mujhe pakad liya," tera paper toh ho hi nahi paya hoga yaar.. Tujhe itni der baad kyun chhoda unhone?"

Maine uski aankhon mein dekh ek pal socha ki Sandeep ke kiye ahsaan ke baare mein bataaun ya nahi," wwo.. wo toh mera case banane par ade huye the.. bahut request karne ke baad hi maaney.. bus isiliye der ho gayi..."

Tabhi Sir office se bahar nikal aaye.. Unhone idhar udhar dekha.. sabhi ja chuke the.. Hamare alawa Sirf peon hi office ke bahar baitha tha....

Sir andar gaye aur thodi der baad madam bahar nikli," Krishan! baki kamron ko tala lagakar tum chale jao.. hamein abhi time lagega..."

"Theek hai madam!" Peon ne kaha aur chabi utha kar kamre band karne laga....

"Humm.. par paper toh mera bhi achchha nahi hua... chal chalte hain ghar.. raaste mein baat karenge...." Pinky ne mayoos hokar kaha...

"wwo.. aisa kar.. tu ja.. main thodi baad mein aaoongi..." Main lage hathon baki bache paper ko bhi nipta dena chahti thi...

"Par kyun? yahan kya karegi tu?" Usne aankhein sikod kar poochha....

"Wwo.. mera time kharab ho gaya tha na.. isiliye Sir mujhe ab thoda sa time denge.." Maine usko aadha sach bata diya," Par tu kisi ko bolna mat.. Sir ke upar baat aa jayegi nahi toh...."

"Achchha!" Pinky khush hokar boli," ye toh achchhi baat hai.. koyi baat nahi.. main tera intjaar kar leti hoon yahin.. tere sath hi chaloongi...!"

Main usko bhejne ke liye bahana soch hi rahi thi ki sir ek baar fir bahar aa gaye.. Bahar aakar meri aur muskura kar dekha aur ishare se apni aur bulaya..

"... tu ja yaar.. main aa jaaungi!... Ek minute.... Sir bula rahe hain..." Maine Pinky se kaha aur bina uska jawab liye Sir ke paas chali gayi.... Pinky wahin khadi rahi...

Sir ne apne honton par jeebh firayi aur Pinky ki aur dekh kar dheere se bole," Isko toh bhej diya hota.. apne sath kyun chipka rakha hai...!"

"Maine kaha hai Sir.. par wo kah rahi hai ki mere sath hi jayegi.. ab baki bachche bhi ja chuke hain... main usko fir se bol ke dekhti hoon..." Maine najrein jhuka kar jawab diya...

"Humm.. koun hai wo? teri kya lagti hai?" Sir ki aawaj mein badi mithas thi ab...

"Ji.. meri Saheli hai.. bahut achchhi.." Maine uski najron mein dekha.. wah Pinky ko hi ghoor raha tha...

"Kisi ko kuchh bata toh nahi degi na..." Sir ne meri chhatiyon ko ghoorte huye poochha....

Yahan meri galati rah gayi.. maine samjha ki sir ka ye sawaal Exam time ke baad mujhe paper karne dene ke baare mein hai... waise bhi main yahi samajh rahi thi ki unko jo kuchh karna tha.. wo kar chuke hain," Nahi Sir! Wo toh meri best friend hai.. kisi ko kuchh nahi batayegi..."

Main kahne ke baad sir ki pratikriya ka intjaar karne lagi... Wo chupchap khade Pinky ki aur dekhte huye kuchh sochte rahe..

"Sir...!" Maine unhe tok diya....

"Hummm?" Wo ab bhi mere paas khade lagataar Pinky ki aur hi dekh rahe the...

"wwo.. Main.. kah rahi thi ki uska bhi paper kharab hua hai... agar aap...!" Main beech mein hi ruk gayi.. ye soch kar ki samajh toh gaye hi honge...

"Chal theek hai.. bula lo... par dekh lo.. tumhare bharose par kar raha hoon.. kahin baad mein..." Sir ki baat ko maine khush hokar beech mein hi kaat diya...

"Ji.. wo kisi ko kuchh nahi batayegi.. bula laaun usko?" Main khush hokar boli....

"Haan.. office mein lekar aa jao....!" Sir ne kaha aur andar chale gaye....

Main khush hokar doudi doudi Pinky ke paas gayi," Chal aaja... maine tere liye bhi baat kar li hai... tujhe bhi sir paper de denge..."

"Achchha.. Sach! maja aa jayega fir toh" Wah bhi sunkar khushi se uchhal padi...

Agle hi pal hum dono madam aur Sir ke saamne khade the...

"Madam.. pls.. aap office ka tala lagakar thodi der bahar baith jao.. mera fone bhi lete jao.. agar koyi fone aaye toh kahna ki wo Papers ka Bundle lekar nikal chuke hain aur fone yahin bhool gaye...!" Sir ne madam ki taraf apna mobile badhate huye kaha....

"Main toh baith jaaungi Sir... par dekh lo.. Zindagi bhar ab aap mujhe aur iss centre ko bhool mat jana... Ab mere school ke kisi bachche ka paper kharab nahi hona chahiye... Sabko khuli chhoot milegi na ab toh....?" Madam ne shikayati lahje mein Sir ko kaha....

Sir ne hanste huye apna poora jabada hi khol diya," Ha ha ha.. aap bhi kamaal karti hain madam.. ye centre aur aapko kabhi bhool sakta hoon kya? yahan toh mujhe tohfe par tohfe mil rahe hain....Aap befikar rahein... kal se sab bachchon ko 15 minute pahle paper mil jaya karega.. aur nakal ki bhi mouj karwa doonga..."

"Thanx Sir.. Mujhe bus yahi chahiye.." Madam ne muskura kar kaha aur bahar nikal kar office ko tala laga diya.....

"Sofe par baith jao aaram se.. darne ki koyi jarurat nahi hai.. Apna apna roll. No. bata do jaldi... tumhe nahi pata main kitna bada risk lekar tumhare liye ye sab kar raha hoon..." Sir ne Hamare room ka bundle kholte huye kaha....

Pinky ne meri aur dekha aur muskura di aur fir Sir ko kritagya najron se dekhte huye boli," Thanx Sir.."

Hum dono ne apne apne roll no. Sir ko bataye aur unhone hamari sheet nikal kar hum dono ko pakda di...," Kisi intelligent bachche ka bhi roll no. bata do.. main nikal kar de deta hoon.. jaldi jaldi utaar lena usmein se..."

"Deepali" Pinky ke munh se nikla.. jabki mere munh se Sandeep ka naam nikalte nikalte rah gaya.. Pinky ne Deepali ka roll no. Sir ko bata diya...

"Hummm.. Mil gaya!" Sir ne kaha aur paper lekar hamare paas aaye aur hamare beech fanskar baith gaye..," Ye lo.. jaldi jaldi karo!"

Pinky ne shayad Sir ki mansha par dhyan nahi diya tha... hum dono ne Sir ke saamne Deepali ka paper khol kar rakh liya aur jo question hum dono ke rahte the...utaarne lage...

Kareeb paanch minute hi huye honge.. Sir ne apni baahein failakar hum dono ke kandhon par rakh di," Shabash.. jaldi jaldi karo..."

"Tumhara kya naam hai beti?" Sir ne Pinky ki aur dekh kar poochha....

"Ji..? Pinky!" Pinky jaldi jaldi likhte huye boli....

"Bahut pyara naam hai.. Anjali ko toh sab pata hi hai.. tum bhi ab kisi paper ki chinta mat karna.. Sab aise hi karwa doonga.. khush ho na?" Sir Pinky ki kamar par hath ferne lage...

Mera dhyan rah rah kar Pinky par ja raha tha.. Mujhe Tarun ki thukayi yaad aa rahi thi... Ye sochkar main dari huyi thi.. kahin Sir Pinky par hath saaf karne ke baare mein na sochne lage hon... 'Aisa hoga toh aaj bahut bura hoga..' main mann hi mann soch rahi thi.. par kahti bhi toh main kisko kya kahti... meri ek aankh apna paper karne par.. aur dusri Pinky ke chehre par bani rahi....

"Tum ab jawan ho gayi ho beti.. chunni daala karo na.. aisa achchha nahi lagta na.. dekho.. bahar se hi saaf dikh rahe hain...!" Sir ki iss baat par Pinky saham si gayi.. par shayad apna paper poora karne ka lalach uske mann mein bhi tha..

"Wwo.. Mmaine aaj Anjali ko de di Sir..." Pinky ne hadbada kar kaha....

"Oh.. haan.. iski toh aur bhi badi badi aur mast hain.. par isko apni lani chahiye.. dekho na.. tumhari bhi toh kaise chounch uthaye khadi hain.. tum bra bhi nahi pahanti ho.. hai na?"

Sir ki baat sunkar Pinky ka chehra sach mein hi gulabi sa ho gaya.. ab shayad uske mann mein bhi Sir ki baatein sun kar ghantiyan si bajne lagi thi... mujhe darr tha ki ye ghantiyan ghantaal bankar Sir ke sir par na bajne lag jayein... abhi toh 5 paper baki the....

Pinky boli toh kuchh nahi par sarak kar 'Sir' se thoda door ho gayi..

"Nahi pahanti ho na bra?" Sir ne uss'se fir poochha...," Anjali bhi nahi pahanti.. tum bhi nahi.. kya baat hai yaar!"

Anjali iss baar thoda sa khij kar boli," Wo.. mummy lakar hi nahi deti.. kahti hain abhi tum bachchi ho...!" aur apna paper karti rahi...

"Mummy ke liye toh tum shadi ke baad bhi bachchi hi rahogi beti.. he he he.." Sir apni janghon ke beech tanav ko kum karne ke liye 'wahan' khujate huye bole," Par tum bataya karo na.. tum toh ab poori jawaan ho gayi ho.. ladkon ka dil machal jata hoga inhe yun fadakte dekh kar.. par tumhara bhi kya kusoor hai.. ye umar hi maje lene aur dene ki hoti hai.." Sir ne kahne ke baad achanak apna hath Pinky ki jaanghon par rakh diya..

Pinky kasmasa uthi," Sir.. pls!"

"Karo na.. tum aaram se paper karo.. main tumhare liye hi toh baitha hoon yahan.. chinta ki koyi baat nahi.." Sir ne usko yaad dilane ki koshish ki ki wo hum par kitna 'bada' ahsaan kar rahe hain... unhone apna hath Pinky ki jaangh se nahi hataya...

Pinky ke chehre se mujhe saaf lag raha tha ki wo poori tarah vichlit ho chuki hai.. par shayad paper karne ka lalach; ya fir unki umar; ya fir dono hi karan the ki wah chup baithi ab bhi likh rahi thi...

Sir ne achanak mere hath ke neeche se apna hath nikala aur mera dayan stan apni hatheli mein le liya.. maine ghabrakar Pinky ki aur dekha.. ki kahin uske sath bhi aisa hi toh nahi kar diya.. par ab tak ganeemat tha ki unhone aisa nahi kiya tha... wah hadbadayi huyi jaldi jaldi likhti chali ja rahi thi....

Sir ne achanak apne hath se uski jaanghon ke beech jane kya 'chhed' diya.. Pinky uchhal kar khadi ho gayi.. Maine ghabrakar unka hath apni chhati se hatane ki koshish ki.. par unhone 'usko' nahi chhoda...

"Kya ho gaya beti? itni ghabra kyun rahi ho? aaram se paper karti raho na.. ye dekho.. Anjali kitne aaram se kar rahi hai.." Sir nischint baithe huye the.. ye soch kar ki meri 'saheli' hai.. mere hi jaisi hogi...

Pinky ne meri aur dekha aur sharm se apni aankhein jhuka li.. usne meri chhati ko 'Sir' ke hathon mein dekh liya tha.. Main chahkar bhi unka hath 'wahan' se hata nahi payi...

Pinky ka chehra tamtamaya hua tha..," Mujhe nahi karna paper.. darwaja khulwa do.. mujhe jana hai...!"

Tab tak mera bhi paper poora hi ho gaya tha.. maine bhi apni answer sheet band karke table par rakh di...," Ho gaya sir.. jane do hamein...!"

Sir gurrate huye bole," Achchha.. paper ho gaya toh jane do.. hamein nahi karna paper.. wah! main kya chutiya hoon jo itna bada risk le raha hoon..!"

Jaise hi main khadi huyi.. Sir ne meri kamar ko pakad kar mujhe apni god mein baitha liya...

Maine Pinky ke karan gussa sa hone ka dikhawa kiya...," Ye sab kya hai Sir.. chhod do mujhe!" Main unki pakad se aajad hone ko chhatpatayi...

"Achchha! Sali.. Din mein toh tujhe ye bhi pata tha ki ras kaise peete hain loude ka.. ab tera kaam nikal gaya toh poochh rahi hai.. ye sab kya hai...! tum kya soch rahi ho? Main tumhe yunhi thode jane doonga.. baki ke din tumhari marji.. par aaj toh apni fees lekar hi rahoonga...." Mujhe jabardasti god mein hi pakde Sir meri chhatiyon ko shirt ke upar se hi masalne lage.....

Pinky bahut dari huyi thi.. shayad wo bhi ghar mein hi sher thi.. Sir ke saamne wo khadi khadi kaanpne lagi thi...

Main kuchh bol nahi pa rahi thi... par sach mein mujhe bilkul bhi achchha nahi lag raha tha uss samay.. Pinky ke karan!

"Abhi toh ek hi paper hua hai.. 5 toh baki hain na.. Center mein itni sakhtayi kar doonga ki ek dusre se bhi kuchh poochh nahi sakogi.. dekhta hoon tum jaisi ladkiyan kaise paas hoti hain fir...." Sir ne gurrate huye dhamki di aur meri kameej ke andar hath daal kar meri chhatiyon ko masalne lage...

Unki iss dhamki ka Pinky par kya asar hua.. ye toh main samajh nahi payi.. par khud main ekdum dheeli ho gayi.. aur unka virodh karna chhod diya.. Main majboor hokar Pinky ko dekhne lagi... Wo khadi khadi ro rahi thi....

"Hamein jane do Sir.. pls.. main aapke aage hath jodti hoon... aap kuchh bhi kar lena.. par hamein abhi jane do.." Pinky subakti huyi boli....

"Chup chap khadi rah wahan.. maine nahi bulaya tha tumhe andar.. tumhari ye 'chhamiya' lekar aayi thi.. aur main tumhe kuchh kah bhi nahi raha.. ab jyada bakwas mat karo aur chupchap tamasha dekho..." Sir ne kaha aur mujhe khada kar diya... Pinky ki soorat dekh meri bhi aankhon mein aansoo aa gaye..

Sir aage hath lakar meri skirt ka hook kholne lage.. maine pinky ko dikhane ke liye unka hath pakad liya..," Chhod do na sir! pls"

"Bahut plz sun li teri.. ab chupchap meri pls sun le.. jyada boli toh pata hai na.." Unhone kaha aur jhatke ke sath hook khol kar Skirt ko neeche sarka diya... Pinky jaisi ladki ke saamne iss tarah khud ko nangi hote dekh meri aankhein ek bar fir dabdaba gayi... Main ab neeche sirf kachchhi mein khadi thi... aur agle hi pal kachchhi bhi neeche sarak gayi.. mere nange nitamb ab 'Sir' ki aankhon ke saamne the.. aur yoni 'Pinky' ke saamne.. par Pinky ne iss halat mein mujhe dekhte hi apni aankhein jhuka li aur subakti rahi.....

"aaah.. kya maal hai tu bhi loundiya!.. chutad toh dekho! kitne mast aur tight hain.. ek dum gol gol... pake huye kharbooje ki tarah..." Sir ne mere nitambon par thapki si maarne ke baad unko alag alag karne ki koshish karte huye kaha..," Haye.. bilkul ek no. ka maal hai...kitni chikni choot hai teri... maine toh sapne mein bhi nahi socha tha ki india mein bhi aisi chootein mil jayengi... kya imported piece hai yaar..."

Pinky ka ro ro kar bura haal ho raha tha.. par uski sun'ne wala wahan tha koun.. Usne apna chehra dusri aur ghuma liya...

"Chal.. table par jhuk ja.. pahle tera ras pi loon..." Sir ne kahte huye meri kamar par hath rakh kar aage ko daba diya... Na chahte huye bhi mujhe jhukna pada... maine apni kohniyan table par tika li....

"Haan.. aise.. shabaash.. ab taang choudi karke apne chutad pichhe nikal le..!" Sir ne uttejit swar mein kaha....

Uski baat samajhne mein mujhe jyada pareshani nahi huyi.. ab Pinky ke saamne meri jo mitti paleet honi thi.. wah toh ho hi chuki thi.... main ab jald se jald usko niptaane ki soch rahi thi.. Maine apni kamar ko jhukaya aur apni jaanghein kholte huye apne nitambon ko pichhe dhakel sa diya... Meri yoni ab lagbhag bahar ki aur nikal chuki hogi....

"Oye hoye.. maa kasam.. kya choot hai teri.. dil karta hai isko toh main kaat kar apne sath hi le jaaun!" Kahkar usne Sisakte huye mere nitambon ko apne dono hathon mein pakda aur apni jeebh nikal kar ek hi baar mein yoni ko neeche se upar tak chat gaya.. meri siski nikal gayi....

"Dekha.. kitna maja aaya na? isko bhi samjha.. ye bhi thode maje lena seekh le mujhse.. jawani char din ki hoti hai.. fir pachhtaayegi nahi toh... " Sir ne kahne ke baad ek baar aur jeebh laplapate huye meri yoni ki faankon mein khalbali machayi aur fir bole," Kah de na isko.. do main toh alag hi maja aayega.. bol de isko.. mouj kar doongi sasuri ki.. merit na aaye toh kahna..."

Main kuchh na boli... main kya bolti..? mera bura haal ho chuka tha.. ab lagataar nagin ki tarah meri yoni mein lahra rahi uski jeebh se main bekaabu ho chuki thi.. apne aapko siskiyan bharne se bhi nahi rok pa rahi thi...,"aaah... sirrrr... aaaaah..."

"Pagli.. sir ki halat bhi teri hi tarah ho chuki hai.. kuchh mat bol ab... ab toh mujhe ghusane de jaldi se!" Bol kar wah khada ho gaya...

Main aankhein band kiye siskiyan leti huyi masti mein khadi thi.. achanak mujhe apni yoni ki faankon ke beech kuchh gadta hua mahsoos hua.. samajh mein aate hi main hadbada gayi aur isi hadbadahat mein table par gir gayi...

"aaah.. aise mat tadpa ab... bilkul aaram se andar karoonga.. maa kasssam.. pata bhi nahi lagne doonga tujhe... teri toh waise bhi itni chikni hai ki sarrrr se jayega.. aaja anju aajaaaaa!" Paglaye huye se Sir ne mujhe kamar se pakad kar jabardasti fir se waise hi karne ki koshish ki... par iss baar main ad gayi...

"Nahi Sir.. ye nahi!" Maine ek dum se seedhi khadi hokar kaha....

"Ye kyun nahi meri jaan... ye hi toh lena hai.. ek baar thoda sa dard hoga aur fir dekhna... chal aaja.. jaldi se aaja... time waste mat kar ab!" Sir ne apne ling ko hath mein lekar hilate huye kaha....

"Nahi sir.. ab bahut ho gaya.. jane do hamein.." Main akad si gayi...

"Jyada bakbak ki toh sali ki gaand mein ghused doonga ye.. nou sou choohe khakar ab billi haj ko jayegi... chupchap maan ja warna apni saheli ko bol ke choos degi thoda sa... fir main maan jaaunga..." Sir ne kaha...

Ajeeb uljhan mein aa fansi thi main... agar ghuswa leti toh fir maa ban'ne ka darr.. Pinky ko bolti toh bolti kaise? wo pahle hi mujhe kos rahi hogi... Achanak Sir meri taraf lapke toh mere munh se ghabrahat mein nikal hi gaya," Pinky.. pls..."

Pinky ne meri taraf ghoor kar ghrina se dekha.. aur fir apna chehra deewar ki taraf kar liya...

Sir ab jyada mouke den ke mood mein nahi the.. unhone jabardasti mujhe pakad kar sofe paar gira liya aur meri taangein pakad kar door door faila di.. Iske sath hi meri yoni ki faankein alag alag hokar Sir ko akraman ke liye aamantrit karne lagi...

Sir ne jaise hi ghutne sofe par rakhe.. main dardnaak dhang se bilakh padi," Pinkyyyy.. pls.. bacha le mujhe...!"

Sir ne mere ahwaan par mudkar pinky ko dekha toh meri bhi najar usi par chali gayi.. par wah chupchap khadi rahi....

"Aisi saheliyan banati hi kyun hai jo tere saamne khadi hokar bhi teri seal toot'te dekhti rahein... ye kisi kaam ki nahi hai.. tujhe chudna hi padega aaj..." Sir ne kaha aur meri janghon ko failakar fir se mujh par jhukne lage.. main bilakh rahi thi.. par wo 'kahan' sunte? Unhone wapas apna ling meri yoni par tikaya hi tha ki achanak khade ho kar palat gaye...

"Kya karna hai Sir?" Pinky aankhein band kiye unke paas khadi thi.. aur uski aankhon se aansuon ki jhadi lagi huyi thi......








आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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