Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--30

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बाली उमर की प्यास पार्ट--30

गतान्क से आगे........................
संदीप ने झट से अपनी शर्ट उतार फैंकी.. उसकी गोरी छाती पर हुल्‍के हुल्‍के बाल देख कर मैं रोमच से भर उठी... छाती पर दोनो और आकड़े हुए उसके 'तिल' भर के दाने मुझे बड़े प्यारे लग रहे थे.. जैसे ही उसने पास बैठ कर मेरी चूचियो को दबाना शुरू किया.. मैने झट से बैठ कर उसको नीचे गिरा लिया और उसके पाते पर हाथ फेरती हुई उसके 'दानो' को चूमने लगी....

"आ.. क्या कर रही हो अंजू..? गुदगुदी हो रही है..." वह एकदम मस्ती से छॅट्पाटा कर उठा और एक बार फिर मुझे अपने नीचे दबोच लिया...

"करने दो ना.. मुझे मज़ा आ रहा है बहुत..." अपनी छाती पर उसके हाथ का दबाव महसूस करके मैं तड़प कर गिड़गिडाई और अपना हाथ बिना देर किए उसकी पॅंट में डाल दिया और 'कछे' के उपर से ही उसके 'फुफ्कार्ते' हुए साँप का 'फन' अपनी मुट्ठी में दबोच लिया....

"ओह्ह..होह..." मेरे हाथ की मौजूदगी का अहसास होते ही संदीप के लिंग ने एक झटके के साथ अंगड़ाई सी ली.. और आकार में अचानक बढ़कर सीधा होने की कोशिश करने लगा...

"इसको चूसो ना जान... आहह... तुम्हारे 'काम' की चीज़ तो ये है..." संदीप कहते हुए अपनी पॅंट का 'हुक' खोलने लगा.. जल्द ही उसकी पॅंट उसकी टाँगों से बाहर थी और उसका 'लिंग' कछे को 'फाड़' देने पर उतारू हो गया...

संदीप मेरी ओर मुँह करके खड़ा होकर मुस्कुराने लगा.. उसका इशारा समझ कर मैं उसके आगे घुटने टेक कर बैठ गयी और कछे के उपर से ही लिंग को हाथ में पकड़ कर उसको अपने दाँतों से हल्का सा 'काट' लिया...

वह उच्छल पड़ा..,"आह.. किस मूड में हो आज? प्यार से करो ना...!"

"नही.. आज तो मैं तुम्हे कच्चा ही खा जाउन्गि..," मैने कहा और अंजाने में ही मेरे हाथ मेरी सलवार के उपर से ही मचल उठी योनि को कुरेदने लगे...

"प्यार से भी तो खा...." संदीप अचानक बोलते बोलते रुक गया... उसके पॅंट की जेब में रखे मोबाइल के वाइब्रेशन्स की 'घररर..घर्ररर..' सन्नाटे में साफ सुनाई दे रही थी..,"एक मिनिट..." उसने पॅंट की जेब से अपना मोबाइल निकाला और कोने में जाकर कॉल रिसीव की....

"कुच्छ देर चुप रहने के बाद संदीप ने सिर्फ़ इतना ही कहा..,"आधा घंटा".. और फोन काट दिया....

"किसका फोन था...?" मैने उत्सुकता से पूचछा...

"कुच्छ नही.. एक दोस्त था..!" संदीप ने जल्दी जल्दी में अपना कच्च्छा निकलनते हुए कहा...

"आधा घंटा क्या?" मैने पूचछा...

"ओफ्फो..मुझे उसके घर जाना है.. चलो.. जल्दी जल्दी करते हैं...!" संदीप मेरे पास आया और अपना लिंग मेरे होंटो से सटा दिया....

"क्या? सिर्फ़ आधा घंटा ही...!" मैं मायूस होकर बोली..,"आधे घंटे में क्या होगा..." मुझे अचानक ध्यान आया कि 'इस' काम के साथ मुझे एक और काम भी करना था.....

"ओह्हो.. एक बार तो कर लो.. बाद की बाद में देखेंगे..." कहते हुए संदीप ने घुटनो के बल बैठ कर मेरी सलवार का नाडा खींचने के लिए बाहर निकल लिया...

मैने उसका हाथ वहीं दबोच लिया..,"तुम.. तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो ना संदीप?"

"और नही तो क्या..? ये तुम आज कैसी बातें कर रही हो... जल्दी निकालो अपनी सलवार..!" संदीप हड़बड़कर बोला...

"नही...!" मैने मुँह बनाकर कहा....

"क्यूँ..? अब क्या हुआ?" वह घिघिया कर बोला....

"पहले मुझे 'वो' मोबाइल चाहिए...!" मैने दाँव फैंका...

"कौनसा.. ओहो.. कितनी बार बताऊं.. वो नही मिल सकता अब.. थोड़े दीनो में नया लाकर दे दूँगा.. तुम्हारी कसम... बस!" संदीप ने कहा और ज़बरदस्ती मेरा नाडा खींच कर सलवार ढीली कर दी.... मैं नीचे गिर गयी.. पर मैने जांघों को कसकर भींच कर अपनी योनि को छिपा कर रखा हुआ था...

"नयी.. तुम झूठ बोल रहे हो.. 'ढोलू' ने मना कर दिया होगा देने से... मुझे सब पता है..." मैने नाराज़गी भरे लहजे में कहा और झट से खड़ी होकर अपना नाडा फिर से बाँध लिया....

"आन्जुउउउउ.... ये क्या कर रही हो यार.. मेरे पास ज़्यादा टाइम नही है.. अब नखरे बंद करो अपने.." नंग धड़ंग संदीप जैसी ही पागल सा होकर मेरी तरफ लपका.. उसकी हालत देख कर मेरी हँसी छूट गयी...,"नही.. पहले मोबाइल की बात!" मैं खिलखिलाते हुए इधर उधर भागने लगी....

"तुम्हारी कसम जान.. ढोलू से पूच्छ लेना चाहे... आ जाओ ना..!" मेरी हँसी से हतोत्साहित होकर वो एक जगह खड़ा हो गया और अपना कच्च्छा वापस डाल लिया.. शायद उसको अहसास हो गया था कि मैं उसके नंगेपन पर हंस रही हूँ...

"ठीक है.. पुच्छवा दो पहले....!" मैं तपाक से बोली... संदीप ने मुझे कमर से पकड़ कर अपनी और खींच लिया....

"अब... जब 'वो' आएगा तो उस'से पूच्छ लेना.. मेरे पास उसका नंबर. नही है..." मेरी छातियो को वो अपनी नंगी छाती से दबाकर भींचते हुए बोला...

"फिर झूठ.. अया..." जैसे ही संदीप ने मेरी जांघों के बीच हाथ दिया.. मैं कसमसा उठी...," जब तक तुम मोबाइल वाली बात क्लियर नही करवाते.. मैं कुच्छ नही करूँगी...

उसने ज़बरदस्ती मुझे वापस वहीं पटक लिया और यहाँ वहाँ हाथ मार कर मुझे उकसाने की कोशिश करने लगा... पर मैं जानबूझ कर हँसती रही और मौका मिलते ही अपनी टाँगों के सहारे उठाकर उसको दूर पटक देती.....,"पहले मोबाइल.. बाकी 'काम' बाद में.." मैं अपनी ज़िद पर आडी रही....

तक हार कर 'वो' मुझसे दूर हट गया...," ठीक है.. मेरी कसम खाओ ये बात किसी को नही बतओगि....!"

"कौनसी बात?" उसके दूर हट'ते ही मेरा सारा बदन बेचैन सा हो उठा था....

"यही कि मैने तुम्हारी बात ढोलू से करवाई है....!" संदीप बोला...

"कब करवाई है...?" मैं अपनी आँखें सिकोड ली और उसके पास जाकर उस'से चिपकती हुई बोली...

"एक मिनिट..." संदीप ने मोबाइल निकाला और एक नंबर. डाइयल कर दिया...," हेलो भाई!"

"ये.. ये आपसे बात करना चाहती है... एक मिनिट..!" संदीप ने कहा और फोन मेरे कान से लगा दिया....

"हेलो.." मैने कहा...

ढोलू का जवाब काफ़ी देर बाद आया.. उसकी आवाज़ में हल्की सी हड़बड़ाहट थी....,"कौन?"

"मैं... अंजलि....!"

"और कौन है वहाँ..?" ढोलू ने पूचछा...

"कोई नही...!"

"ओह्ह.. मैं तो डर गया था.. तुम हमारे घर पर हो क्या?"

"ना.. ववो.. हां! मैं शिखा से मिलने आई थी.. मैने बात को सुधारा...

"शिखा कहाँ है..?"

"ववो.. दूसरे कमरे में है....!"

"बोलो.. क्या बात है...?" ढोलू जल्दी जल्दी में बोल रहा था....

"ववो.. ये संदीप फोन वापस नही दे रहा... मुझे तुमसे बात करने का दिल करता है...!" मैने मासूमियत से कहा...

"हाए मेरी जान..! ज़रा अलग होना संदीप से...!" ढोलू अचानक उत्तेजित सा लगने लगा....

"हां.. आ गयी... "मैने वहीं खड़े खड़े कहा....

"तुम्हारा सच में दिल करता है क्या.. मुझसे बात करने का...!" ढोलू पासीज सा गया था...

"और नही तो क्या? उस दिन के बाद तुम मिले ही नही हो... मेरा बुरा हाल करके छ्चोड़ गये....!" मेरी आवाज़ में कामुकता तो पहले ही थी.. अब शब्द भी कामुक हो गये....

"क्या करूँ जान.. मजबूरी है... बस थोड़े दिन रुक जाओ.. तुम्हारी सील मैं ही तोड़ूँगा...!"

"मुझसे नही रुका जाता अब.. जल्दी आ जाओ... मेरे वहाँ पता नही कैसा हो रहा है...

"हाए मेरी जान... कहाँ कैसा हो रहा है...." ढोलू का बुरा हाल हो गया लगता था..

"वहाँ.. नीचे...!" मैं संदीप की ओर मुस्कुरा कर बोली...

"हाए मेरी छम्मक्छल्लो.. एक बार बोलो.. मेरी चूत लंड माँग रही है...!"

"हां.. सच्ची...!" मेरा हाथ मेरी सलवार में घुस चुका था... संदीप अजीब सी नज़रों से मुझे घूरता रहा...

"हाँ नही.. बोल कर दिखाएक बार.. क्या माँग रही है तेरी चूत....?"

"मुझे नही पता.. तुम जल्दी आकर खुद ही देख लो..." मैं शरारत से कसमसाती हुई बोली.....

"तुम समझती नही जान.. ये पोलीस मेरी दुश्मन बनकर मेरे पिछे लगी है.. बस थोड़े से दिन और रुक जाओ...!"

"ये संदीप ना तो तुम्हारा नंबर. दे रहा है.. और ना ही मोबाइल...!" मैने शिकायती लहजे में कहा...

"वो ठीक ही कर रहा है जान.. थोड़े दिन रुक जाओ.. मैं नया मोबाइल दे दूँगा तुम्हे..!"

"कम से कम अपना नंबर. तो दे दो... मैं तुम्हे फोन तो कर लूँगी..." मैने अपनी योनि की फांकों को उंगली से कुरेदते हुए पूचछा....

कुच्छ देर ढोलू कुच्छ नही बोला... मैने एक नया पत्ता फैंका..,"मैं कल या परसों शहर आ रही हूँ... वहाँ तो मिल सकते हो ना!"

"मेरा नंबर. लिख लो... ध्यान रखना.. किसी के हाथ लग गया तो मेरी मा चुद जाएगी अच्छे से... तुम किसी को नही दोगि ना...!"


"नही.. तुम्हारी कसम...." उसके साथ बातों में खोए खोए मुझे पता ही नही चला की कब संदीप ने मेरी सलवार खोलकर नीचे सरका दी थी... जैसे ही उसने मेरे 'पेडू' से नाक' सटाते हुए मेरी 'योनि' में गरम साँस छ्चोड़ी.. मैं उच्छल पड़ी... इसके साथ ही मेरी टाँगों में जैसे जान बची ही ना हो... संदीप के हल्का सा ज़ोर लगते ही मैं पिछे गिर पड़ी... संदीप ने मेरी जांघों को हाथों में दबोच कर अपना मुँह उनके बीच घुसा दिया...

ज़ोर से सिसक कर मैने अपनी जांघें कसकर उसकी कमर के उपर रख दी..,"अया...!"

"क्या हुआ ...?" ढोलू ने मेरी सिसकी लेने का तरीका सुन कर चौंकते हुए पूचछा....

"आ.. कुच्छ नही... नीचे पता नही क्या हो रहा है...अयाया..." आनंद के मारे मरी सी जा रही मैं अपनी जांघों को खोलने भींचने लगी.. संदीप पूरे मज़े से मेरी योनि को चाट रहा था... जैसे ही उसकी जीभ की नोक मेरी 'योनि' के दाने पर आकर टिकती.. मुझे खुद पर काबू रखना मुश्किल हो जाता और मैं सिसक उठती....

"तुम हो कहाँ इस वक़्त...?" ढोलू को कुच्छ शक सा होने लगा था....

"अया... तुमसे बात करते हुए चौपाल में आ गयी हूँ... संदीप का मोबाइल लेकर...!" मैने बहाना बनाया....

"ओह्ह.. संदीप कहाँ है..?"

"घर पर ही होगा...आईईई!" मैं एक बार फिर धहक उठी... संदीप ने फांकों को चौड़ा करते हुए अपनी जीभ मेरी योनि के छेद में घुसा दी थी....

"तुम अपनी चूत रगड़ रही हो ना...?" ढोलू खुश होकर बोला....

"आअहाआनन्न!" मेरी आँखें बंद हो चुकी थी.. मेरे जवाब देने का लहज़ा बदल गया था....

"फोन पर चूत मरवावगी?" ढोलू ने पूचछा...

"अया... कैसे...?" मैं बिलबिला उठी थी... संदीप ने अचानक मेरी पूरी योनि को अपने मुँह में भरकर उसको दातों से हल्के हल्के कुतरना शुरू कर दिया था....

"ऐसे ही.. एक मिनिट.. मेरी बात का जवाब देती जाना... तुम्हे भी बहुत मज़ा आएगा... तुम्हारी चूत कैसी है?"

"अया... गोरी..."

"आ.. गोरी नही मेरी रानी... मक्खन मलाई जैसी बोलो.. बोल कर दिखाओ...!"

"अयाया... अया... मैं स्खलन के बिल्कुल करीब थी.. जैसे तैसे मैने बोलने के लिए शब्द ढूढ़ ही लिए..," मेरी चूऊऊथ मक्खन मलाई हैईआआआह्ह्ह्ह...!"

ढोलू की आवाज़ में भी कंपन सा शुरू हो गया था.....,"मेरे लौदा कैसा है रानी!"

"अया... तेरा लौदा क़ाला... अया.. नही.. तेरा लौदा 'डंडे' जैसा है...." मैं फुदक्ति हुई बोली...

"शाबाश... लड़की की चूत किसलिए होती है बता!"...

"प्याअर करने के लिए...!"

"नही सलीईइ.... चूत चोदने के लिए होती है.. लंड अंदर पेलने के लिए होती है....!"

"आह्ह्हाआ..ओहूओ.. हाआअन्न्न्न्न..अया!" संदीप ने अपनी दो उंगलियाँ मेरी योनि के अंदर डाल दी थी और लपर लपर योनि की फांकों को चूस और चाट रहा था....

"लौदा किसलिए होता है बोल...?" ढोलू ने मस्त होकर पूचछा....

"अया... मुँह में लेकर चूसने के लिए.... आऔर्र्र... चूत चोदने के लिए.....!" मैं गन्गनति हुई बोली....

"और गांद मारने के लिए भी... हाए जान.. मुझसे गांद मरवाएगी ना अपनी...!" ढोलू आगे बोला....

"हाआँ.... ज़ाआआअँ...." अचानक मेरी इंदरियों ने काम करना बंद कर दिया.. मुझे अपनी योनि में से कुच्छ रिस्ता हुआ महसूस हुआ.. संदीप अब भी पागल से होकर उसस्पर लगा हुआ था.. अपनी उंगलियाँ निकाल कर 'वो' अंदर तक मेरी योनि के छेद को जीभ से चाटने लगा.....

"बोल किस'से चुदेगि तू....?" धलोलू ने पूचछा तो मैं कोई जवाब ना दे पाई.... बस पड़ी पड़ी आँखें बंद किए सिसकती रही...

"बोल ना.. किस'से चुदेगि तू....... क्या हुआ? निकल गया क्या?" ढोलू बोला...

"हाआँ...." मेरी आवाज़ से सन्तुस्ति और बेताबी दोनो झलक रही थी....

"नही अभी नही.. थोड़ी देर और... अभी मेरा काम नही हुआ है.. बोल ना.. किस'से अपनी सील तुडवाएगी तू....?" ढोलू तड़प कर बोला... उस बेचारे को क्या मालूम था कि 'सील' तो अब स्वर्ग सिधार चुकी है...

"तेरे से... तेरे लौदे से...!" मैने जवाब दिया...

"ऐसे नही जान.. क्या बोलेगी तू मेरा लौदा हाथ में पकड़ कर.. बोल ना!"

"मैं कहूँगी... मुझे चोद दो.. मेरी सील तोड़ दो.. मेरी चूत को फाड़ डालो... !"

"हाए मेरी रानी.. क्या चीज़ है तू.. एक बाआअर ओउर्र.. बोल ना..!" ढोलू कामुक ढंग से बोला...

"अया.. मेरी मक्खन मलाई चूत में अपना डंडे जैसा लौदा फँसा दो... मुझे चोद दो.." मैने बोलते हुए संदीप को उपर खींच लिया.... मेरा इशारा समझ कर संदीप उपर आया और मेरी जांघों को खोल कर उनके बीच उकड़ू होकर बैठ गया.. मैं एक बार फिर बदहवास सी होकर बोलने लगी...," घुसा दो मेरी चूत में अपना लोड्‍ा... जल्दी करो ना.. मैं मरी जा रही हूँ... चीर डालो इसको... चोद दो मुझे... " मुझे फोन पर ढोलू के हाँफने की आवाज़ें सॉफ सुनाई दे रही थी.. पर वह कुच्छ बोल नही रहा था...

संदीप ने मेरी योनि के बीचों बीच अपना 'डंडा' टिकाया और एक ही झटके में अंदर पेल दिया... आनद की उस अलौकिक प्रकाष्ठा पर पहुँचते ही मैं बावली सी हो गयी...,"हाईए... संडीईईप!"

मुझे बोलते ही अपनी ग़लती का अहसास हो गया था.. पर तीर कमान से निकल चुका था....

"साली बेहन चोद.. तू संदीप के बारे में सोच रही है कुतिया....

"नही.. ववो.. उसका मोबाइल.. अयाया...." संदीप का लिंग बाहर निकल कर एक बार फिर मेरे गर्भाष्या से जा टकराया..," आआआआहह... वो तो उसका ध्यान आ गया था.. ऐसे ही.. तुझसे ही चुदवाउन्गि जान!"

"कुतिया... तू एक नंबर. की रंडी है.. तेरा कोई भरोसा नही.. पर एक बार सील मुझसे तुद्वा लेना.. फिर चाहे कुत्तों से अपनी गांद मरवाना.. समझ गयी... तुम कल ही शहर आ जाओ.. मेरा नंबर. देख लेना मोबाइल में से....

"ठीक है...", मुझे उसकी गालियाँ मदहोशी में बड़ी अच्छि लग रही थी...," तुझसे ही अपनी चूत मराउन्गि... अया.. अया...!"

"एक बार मरवा कर देखना साली.. और किसी का लंड पसंद आ जाए तो बताना फिर... कल पक्का आ रही है ना...?"

"हाँ..!"

"ठीक है.. फोन वापस दे आना.. और किसी को मेरा नंबर. मत बताना.. ठीक है ना...?" ढोलू ने पूचछा...

"हाँ...!" मेरे कहते ही ढोलू ने फोन काट दिया.... मैने ढोलू का नंबर. याद किया और फोन एक तरफ पटक दिया...,"अया... अयाया....!" बोल बोल कर धक्के मारो ना जान...!"

"ढोलू से तो बहुत गंदे तरीके से बात करती हो.. मुझसे ऐसे क्यूँ नही करती...!" संदीप धक्के लगाता हुआ बोला....

पहली बार वाली दिक्कत अब नही हो रही थी... सच में मेरी योनि आज मक्खन मलाई जैसी लग रही थी... संदीप का लिंग पूरी सफाई से मेरी योनि की दरारों को चीरता हुआ अंदर बाहर हो रहा था....

"पता नही मुझे क्या हो गया है.. मुझे अब कुच्छ भी बोलते हुए शर्म नही आ रही.. मज़ा आ रहा है गंदा बोलते हुए.....!" मैने संदीप की छाती पर हाथ फेरते हुए कहा और अपने नितंबों को उचकाने लगी...

"तो बोलो ना.. मुझे भी बहुत अच्च्छा लग रहा है.." संदीप धक्के मारते हुए बोला...

"नही.. अब नही बोला जा रहा.." मैं साथ साथ तेज धक्के लगाने लगी थी.. तभी मुझे अहसास हुआ कि संदीप की गति कुच्छ बढ़ गयी है.. मुझे अचानक ख़तरे का अहसास हुआ तो मैने झट से उसका लिंग बाहर निकलवा दिया...

"ये क्या किया? सारा मज़ा खराब कर दिया......!"

"नही अंदर नही... बाहर निकाल लो" मैं थरथरती हुई बोली.. मेरा 'काम' हो गया था....

"ठीक है..."संदीप मान गया और मेरी कमीज़ को चूचियो से उपर चढ़ता हुआ मेरी बराबर में लेट गया......


एक हाथ से वह मेरी चूची को मसलता हुआ दूसरी को मुँह में लेकर चूसने लगा.. अपने दूसरे हाथ से वह धीरे धीरे अपने लिंग को आगे पिछे कर रहा था... मस्ती में चूर होकर मज़े लेते हुए में जल्दी ही एक बार फिर गरम हो गयी.. मेरी योनि फिर से उसका 'लिंग' निगलने के लिए तड़पने लगी....

"संदीप!" मैं करहती हुई सी बोली....

"हाँ!"... उसने चूची के दाने को मुँह से निकाल कर पूचछा...

"अभी.. कितनी देर और लगेगी.....?"

"क्यूँ? जल्दी है क्या? " संदीप ने पूचछा...

"नही.. मुझे एक बार और करना है.."मैं तड़प कर बोली...

"थॅंक्स!" अगले ही पल वह उठा और बड़ी फुर्ती से मेरी जांघों के बीच में आ गया...

"नही.. ऐसे नही...!" मैं हड़बड़कर खुद को समेट कर बैठ गयी...

"तो कैसे?" उसने नासमझ सा बनकर पूचछा....

"पहले निकाल लो.. फिर दोबारा करना.. अंदर इसका रस नही निकलना चाहिए...." मैने उसका लिंग अपने हाथ में पकड़ लिया और सहलाने लगी...

"एक बात बोलूं.. बुरा मत मान'ना....!" संदीप गिड़गिडता हुआ सा मेरी ओर देखने लगा...

"क्या?" मैं उसके सामने उल्टी होकर लेट गयी और उसके लिंग के सूपदे को जीभ निकाल कर चाटने लगी.. वह सिसक उठा...

"पीछे कर लूँ क्या?" वह आहिस्ता से टेढ़ा होकर जैसे ही लेटा.. उसकी चीख सी निकल गयी...,"आईईई..."

"क्या हुआ?" मैने चौंक कर पूचछा...

"कुच्छ नही..." वह अपनी कोहनी को सहलाता हुआ बोला..," पथर पड़ा है शायद नीचे..." उसने चदडार को पलटा तो सचमुच वहाँ करीब 2-2.5 किलो का पत्थर निकला... संदीप ने 'वो' निकाला और पिछे डाल दिया.... वापस ऐसे ही वह मेरे नितंबों की तरफ मुँह करके लेट गया और उन्न पर प्यार से हाथ फेरता हुआ बोला....,"पिछे कर लूँ क्या अंजू?"

उसके सूपदे को एक बार मुँह में लेकर उसको जीभ से गुदगुदकर मैने 'पूच्छ' कि आवाज़ के साथ उसको बाहर निकाला और गौर से उसके लिंग के छिद्र को देखती हुई बोली..,"पीछे?... पीछे क्या?"

मेरे नितंबों को दोनो हाथों से अलग अलग चीर कर उसने मेरी योनि में उंगली घुसा दी.. मैं उच्छल सी पड़ी.. अगले ही पल उसने रस से सनी उंगली मेरे गुदा द्वार पर रख दी और हल्का सा दबाव बनाते हुए बोला,"इसमें..!"

"इसमें क्या? पता नही क्या बोल रहे हो...?" मैने कहा और उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए आँखें बंद किए उसके लिंग को चूस्ति रही....

"अपना लौदा इसमें घुसा दूँ क्या?" बोलते हुए उसने अचानक उंगली का दबाव मेरे गुदा द्वार पर बढ़ा दिया... मैं दर्द से बिलखती हुई छ्ट-पटाने लगी..,"आई मुम्मय्यी... निकालो बाहर इसको!" उसकी उंगली का एक 'पोर' मेरे अंदर घुस गया था....

उंगली निकाल कर वा बोला..," मज़े आए ना!"

"मज़े?" मैने गर्दन घूमकर उसको घूर कर देखा..,"जान निकल गयी होती मेरी... दोबारा फिर ऐसा किया तो फिर कभी तुमसे प्यार नही करूँगी.....!"

"तुम तो वैसे ही डरी हुई हो.. पहली बार तो आगे भी दर्द हुआ था... एक बार घुस्वा कर तो देखो... 'गांद' मारने और मरवाने में और भी मज़े आते ही...."

"तुम मरवा लेना.. ये तो तुम्हारे पास भी है ना...!" मैं कहकर हंस पड़ी और फिर से उसके लिंग को मुँह में दबा लिया... वह भौचक्क सा मेरी और देखता रहा.. फिर अपने 'काम' पर लग गया....

"अच्च्छा.. ठीक है.. मुँह में तो निकालने दोगि ना....?" उसने मेरे नितंबों पर दाँतों से हल्का सा काट लिया.. मैं सिसकती हुई उच्छल कर बैठ गयी...,"हां.. ये मान लूँगी... तुम्हारा 'रस' बहुत अच्च्छा लगा था मुझे..."

वह अगले ही पल खड़ा हुआ और अपनी टाँगें चौड़ी करके मेरे होंटो पर अपना लिंग रख दिया.. मैं मुस्कुराइ और अपने होन्ट उसके लिंग के स्वागत में पूरे खोल दिए... उसने आगे होकर अपना आधा लिंग मेरे हलक में उतार दिया.. मैने अपने हाथ से उसकी जांघें पकड़ कर उसको 'बस' करने का इशारा किया...

संदीप जो काम थोड़ी देर पहले अपने हाथ से कर रहा था.. अब वह काम मेरे होन्ट कर रहे थे... उसने जैसे ही अपना लिंग आगे पिछे करना शुरू किया, मैने अपने होन्ट उसके चारों ओर कस दिए...

उसने पिछे से मेरे बालों को पकड़ा और धक्कों की स्पीड बढ़ा दी.. हर बार उसका लिंग मेरे गले में ठोकर मार रहा था.. तीन चार बार मुझे अजीब सा महसूस हुआ.. पर उसकी सिसकियाँ सुन सुन कर मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं और भी जोश से उसका लिंग अपने होंटो में दबोच कर उसको आगे पिछे होते देखती रही... अचानक उसने मेरे बालों को खींच लिया और अपना लिंग अंदर करके खड़ा खड़ा काँपने सा लगा... अगले ही पल उसके 'रस' की धार सीधी मेरे गले में जाकर टकराई.. पर पता नही क्यूँ मैं उसको गटक नही पाई.. इसके बाद तीन चार और झटकों में मेरा मुँह पूरा भर गया... लगातार काफ़ी देर तक हान्फ्ते रहने के बाद उसने अपना लिंग जैसे ही बाहर निकाला.. मैने एक तरफ होकर उल्टी सी कर दी....

"क्या हुआ?" वह घबराकर बैठ गया...

"कुच्छ नही.. अंदर नही पिया गया..." मैने कहा और बड़ी बेताबी से उसके आधे झुके हुए झंडे को मुँह में दबोच लिया और जीभ से उसको 'पापोलने' लगी.... संदीप से भी ज़्यादा मुझे उसके लिंग के 'तन' कर सीधा हो जाने का इंतजार था... कुच्छ ही देर बाद संदीप ने अपने दोनो हाथों में मेरी गोल तनी हुई चूचियो को थाम लिया और सिसकियाँ भरने लगा....

"ये लो.. कर दिया खड़ा..." मैं खुश होकर जैसे ही उसके लिंग को मुँह से निकाल कर पिछे हटी.. मुझ पर मानो आसमान टूट पड़ा... मेरा अंग अंग काँप उठा... मेरी आँखें डर के मारे 'सुन्दर' पर ही जमी रह गयी....

'सुन्‍दर' दूसरे कमरे की 'दहलीज पर बैठा मुस्कुरा रहा था...,"साले.. लौदा खड़ा करने में ही तुझे आधा घंटा लगता है.. 'वो' भी ऐसे करार माल के सामने! हट पिछे.. तू फिर कभी करना.. मेरी बारी आ गयी.....!" सुन्दर ने मेरी दोनो बाहें पकड़ी और किसी गुड़िया की तरह सीधी खड़ी कर लिया.... मैं अपने आपको छुड़ाने के लिए छ्ट-पटाने लगी.. पर उस मुस्टंड के आगे मेरी क्या चलती...."

"कुच्छ याद आया..? कहा था ना कि एक दिन तुझे अपने लंड पर बिठा कर चोद चोद कर जवान करूँगा...!" उसने बड़ी बेशर्मी से कहा और पिछे से मेरे नितंबों के बीच हाथ डाल कर हवा में उठा लिया......

"छ्चोड़ दो मुझे..." मैने हवा में ही पैर चलते हुए सहायता के लिए नम आँखों से संदीप की ओर देखा.. पर वह 'चूतिया' सा मुँह बनाए अलग होकर हूमें देखता रहा.....

"अच्च्छा.. साली कुतिया रंडी की बच्ची... उस दिन मेरा हाथ लगवाने से भी परहेज कर रही थी... आज ये सारा 'प्रोग्राम' तुझे छ्चोड़ने के लिए नही.. चोदने के लिए किया है.. गांद मारूँगा तेरी... तेरी मा की तरह चोदुन्गा.. तेरी चूत का भोसड़ा ना बना दूँ तो नाम बदल देना......" बोलते हुए सुन्दर ने मेरी योनि में उंगली डाल दी... मैं बिलखने लगी थी.. और कर भी क्या सकती थी....!

"चल कमीज़ निकाल कर पूरी नंगी हो जा... आज तुझे 'मुर्गी डॅन्स' कराता हूँ..." कहते हुए उसने मुझे नीचे पटक दिया...," तुझे जाना है या खड़ा होकर तमाशा देखेगा...!" उसने संदीप से कहा....

"मैं बाद में कर लूँगा भाई... !" संदीप खड़ा खड़ा बोला....

"बाद में क्या घंटा मज़ा आएगा तुझे... मेरे चोदने के बाद ये तीन चार दिन तक चोदने लायक नही रहेगी...ले जल्दी चोद ले.. तेरा माल है.. पहले तेरा ही हक़ बनता है...." कहकर सुन्दर वापस जाकर कमरे की दहलीज पर बैठ गया.....

मैं आँखों में ढेर सारे आँसू लिए हुए संदीप को निरीह नज़रों से देखती हुई बोली..," ऐसा क्यूँ किया तुमने....?"

"वववो.. म्मै.. कुच्छ नही होगा अंजू...! ये भी आराम से करेगा....! मैं बोल दूँगा...." संदीप धीरे धीरे मेरे पास सरक आया....

मेरी आँखों से झार झार आँसू बहने लगे.... मेरे शरीर में मानो जान बची ही ना हो... संदीप ने जैसे लिटाया मैं लेट गयी... उसने मेरी जांघें सुन्दर के सामने ही खोल दी..

सच कहूँ तो पहली बार मुझे तब अहसास हुआ था कि 'शर्म' और इज़्ज़त क्या होती है... मुझे जो आदमी फूटी कोड़ी नही सुहाता था.. 'वो' मेरे नंगेपन का लुत्फ़ उठा रहा था.... उस दिन मुझे पहली बार अहसास हुआ कि मैं कितनी गिरी हुई हूँ.. अगर अपनी आकांक्षाओं पर काबू रखती तो शायद ऐसा दिन कभी ना आता....

इस आपा धापी में संदीप का लिंग सिकुड गया था.. वह बेचैन सा होकर मेरी योनि को मसलता हुआ दूसरे हाथ से उसको खड़ा करने की कोशिश करने लगा...

तभी सुन्दर खड़ा होकर मेरे पास आकर बैठ गया..," जवान हो गयी.. हैं..क्या बात है..?" उसने कहा और मेरी चूची की एक घुंडी पकड़ कर मसल दी... मैं दर्द से बिलख उठी...

"वैसे एक बात तो है... तेरी मा के बाद गाँव भर के मर्दों को संभालने लायक माल बन चुकी है तू.... देख क्या कड़क चूचिया हैं.. तेरी मा की भी जवानी में ऐसी ही थी... साली को बचपन से चोद रहा हूँ... अब तुझे चोदुन्गा!.... बुढ़ापे तक.. हा हा हा...!" सुन्दर ने कहा और मेरी चूचियो पर झुक गया... अपने काले काले मोटे होन्ट जैसे ही उसने मेरी चूचियो पर लगे.. मुझे लगा मुझे तुच्छ और घृणित लड़की इस पूरी दुनिया में नही होगी.... मेरा रोम रोम बिलख उठा.. मंन में आ रहा था कि जैसे....

अचानक मेरे मंन में एक ख़याल आया... संदीप का सिर झुका हुआ था.. सुन्दर आँखें बंद किए मेरी छातियो पर लेटा हुआ उन्हे बारी बारी चूस रहा था.. मैं अपने हाथ धीरे धीरे पिछे ले गयी और 'वो' पत्थर ढूँढने लगी.... मेरी किस्मत कहें या सुन्दर का दुर्भाग्या.. कुच्छ देर बाद 'वो' पत्थर मेरे हाथ में था....

मैने आव देखा ना ताव.. पूरी सख्ती से चिल्लाते हुए मैने पत्थर सुन्दर के सिर में दे मारा... उसने दहाड़ सी मारी और एक तरफ गिर कर अपना सिर पकड़ लिया.. उसका खोपड़ा खुल गया था....

अब मेरे पास ज़्यादा समय नही था... अवाक सा संदीप जब तक बात को समझ पाता.. मैने खींच कर एक लात उसकी छाती में दे मारी... मैं अब भी रो रही थी.. हड़बड़ाहट में मैं उठी और अपनी शॉल और सलवार ले कर बद-हवास सी बाहर भागी... संदीप मेरा पिच्छा करते हुए बरामदे तक आया और फिर लौट गया....

"पूरी गली मैने भागते हुए पार की... गली के कोने पर मूड कर देखा.. पर किसी के आ रहे होने की आहट सुनाई नही दी.. मैने जल्दी से अपनी सलवार पहनी और सुबक्ती हुई तेज़ी से घर की ओर चल दी......

"क्या हुआ अंजू...?" मीनू दरवाजा खोलते ही मेरे टपक रहे आँसुओं को देख कर भयभीत हो गयी....

"दीदी!" मैने इतना ही कहा और उस'से लिपट कर बिलखने लगी...... तब तक पिंकी भी मेरे पास आ चुकी थी...,"क्या हुआ अंजू?"

"कुच्छ मत बोल इस'से अभी.." मीनू मुझे अपने सीने से लगाए हुए बोली... चुप हो जा अंजू.. मम्मी ने सुन लिया तो तमाशा हो जाएगा.... 'ववो.. सोनू की लाश गाँव में आ चुकी है... पापा नीचे आए थे.... हमने कह दिया था कि तू बाथरूम में है...... शुक्र है तू आ गयी.. वरना पापा आते ही फिर पूछ्ते..... बस कर.."

कुच्छ देर रज़ाई में मीनू के साथ लेटी रहने के बाद मेरा सुबकना भी रुक गया... पर रह रह कर सुन्दर का ख़याल आते ही मेरे मंन में झुरजुरी सी उठ रही थी....

"क्या हुआ अंजू...?" मुझे सामान्य होता देख पिंकी भी मेरे पास आ बैठी....

अब मैं कुच्छ भी छिपाना नही चाहती थी... जो कुच्छ भी हुआ.. मैने सब बता दिया...!

"मैं ना कहती थी तुझसे.. संदीप एक नंबर. का कुत्ता कमीना है... क्यूँ गयी तू वहाँ...?" पिंकी तुनक कर बोली...

"बस कर पिंकी.. इसने जो कुच्छ भी किया.. मेरे लिए ही तो किया है...!" कहकर एक बार फिर मीनू मुझे सीने से लगा कर दुलार्ने लगी..... मेरी सुबाकियाँ एक बार फिर शुरू हो गयी.....

उस रात के 36 घंटे बाद भी मेरे दिमाग़ से वो घिनौना पल निकल नही पाया था... आख़िरी पेपर में संदीप ने अपने आप ही बोलकर मुझे सुन्दर से सावधान रहने को कहा था.. उसने बताया कि सुन्दर के सिर में 6 टाँके आए हैं.. यह भी कि वो मुझे पूरे गाँव के सामने जॅलील करने की बात कह रहा है.. मैं सहमी हुई थी.. मुझे नही पता था कि आगे क्या होने वाला है...

मेरे ज़िद करने पर मीनू ने पापा से मुझे शहर ले जाने की बात भी की.. पर पापा ने साफ मना कर दिया....

मीनू शहर कॉलेज जाने को तैयार होकर बैठी थी.. तैयार तो पिंकी और मैं भी थे.. पर मेरे बिना मीनू ने पिंकी को भी ले जाने से मना कर दिया...

पिंकी अपना मुँह फुलाए बैठी थी और हम दोनो उसके पास चुप्पी साधे बैठे थे..

"अच्च्छा अंजू.. मैं चलती हूँ...!" गहरी साँस लेकर मीनू खड़ी हो गयी...

"नही दीदी.. मैं भी आपके साथ चल रही हूँ...!" मैने अचानक अपना मंन बनाते हुए कहा....

"नही.. तू कैसे चल सकती है.. चाचा ने साफ साफ मना कर दिया है...!" मीनू मायूस होकर बोली... दिल तो उसका भी बहुत कर रहा था मुझे साथ लेकर जाने का.. मानव का भी ये बात सुनकर मूड ऑफ हो गया था कि मैं शहर नही आ सकती.. उसने कहा भी था कि दोबारा बात करके देख लो.. पर उसको पापा के नेचर का पता नही था.. हम दोबारा बात करने की सोच भी नही सकते थे....

"नही दीदी.. मेरा चलना बहुत ज़रूरी है.. पापा तो खेत में गये हैं.. उनको क्या पता लगेगा...! शाम तक तो हम वापस आ ही जाएँगे..." मैने पूरा मंन बना लिया था.. पिंकी चुपचाप हमारी ओर देखती हुई निर्णय का इंतजार कर रही थी...

"पर.. अगर पता चल गया तो...!" मीनू ने आशंका से मेरी और देखा...

"कोई बात नही.. देखा जाएगा वो भी.... मैं चल रही हूँ आपके साथ...!" मैं खड़ी हो गयी...

कुच्छ देर की चुप्पी के बाद मीनू अपने माथे पर बल लाती हुई बोली...,"ठीक है.. तुम दोनो आगे चलो.. मैं तुमसे पिछे आउन्गि..."

"हुर्रेयययी..." पिंकी ने कहा और खुश होकर मुझे बाहों में भर लिया..,"चलो चलें.. बस ना निकल जाए कहीं...!"

मैं चाह कर भी अपने चेहरे पर हँसी के भाव नही ला सकी... हम दोनो घर से बाहर निकल कर बस स्टॅंड की ओर चल पड़े....

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शहर जाते हुए मेरे मंन में खुद के लिए कोई उत्साह नही था.. कुच्छ था तो सिर्फ़ ढोलू को पकड़वा कर मीनू और पिंकी की नज़रों में ये साबित करने का कि उस दिन मैने जो कुच्छ भी किया था सिर्फ़ और सिर्फ़ मीनू के लिए ही किया था... ऐसा करके मैं कुच्छ हद तक आत्मग्लानि से भी मुक्त हो रही थी...

दरअसल.. सुन्दर के उस रात के डाइलॉग मेरे दिमाग़ में रह रह कर हथोदे की तरह चोट कर रहे थे.. आख़िरकार मैं अपना 'वजूद' टटोलने पर मजबूर हो ही गयी थी...

पिंकी जैसी मेरी उमर की जाने कितनी ही लड़कियाँ थी जो लड़की होने का मतलब जानती थी.... अपनी मर्यादायें अच्छि तरह से समझती थी और उन्हे खुशी खुशी निभा भी रही थी... फिर उस कच्ची उमर में मेरा मंन ही क्यूँ बहक रहा था? मैं ही क्यूँ 'जल्दी' जवान होने को मचल उठी थी... मैं ही क्यूँ लड़कों की 'मर्दानगी' से इतनी जल्दी रूबरू होना चाहती थी.... ? सच कहूँ तो इन्न सब सवालों का जवाब मेरे पास उस वक़्त कतयि नही था.. पर इतना ज़रूर था कि उस वक़्त मुझमें भी 'पिंकी' जैसी बन'ने की इच्च्छा सिर चढ़ कर बोलने लगी थी....

"मैने मानव को बता दिया कि तू आ रही है.. सुनते ही खुश हो गया.." मीनू ने पिच्छली सीट से मेरे कान के पास होन्ट लाकर बताया.. मैं आनमने से ढंग से मुस्कुरा दी...

"क्या कह रही हैं दीदी?" पिंकी ने मचलते हुए मुझसे पूचछा.. बस की आवाज़ में शायद 'वो' सुन नही पाई थी...

"कुच्छ नही.. मानव को बता दिया कि मैं आ रही हूँ... खुश हो गया!" मैने धीरे से उसको कहा...

"और मैं..?" पिंकी ने मेरी तरफ देखा और फिर पिछे मूड गयी..," मेरे बारे में क्या बोले दीदी..?"

"चुप करके बैठी रह.. चल कर पूच्छ लेना...!" मीनू ने उसको दुतकार सा दिया.. पिंकी अपना सा मुँह लेकर बैठ गयी.....

"इस आदमी का क्या करें..? ये तो कल से फोन पर फोन कर रहा है...!" मीनू ने एक बार फिर मेरे कान में ही कहा......

"वहीं चल कर पूच्चेंगे.. उन्होने मना किया है ना?" मैने कहा...

"क्या?" पिंकी ज़्यादा देर चुप ना बैठ सकी.....

"वो मैं कह रही हूँ कि पिंकी को 'जलेबी' बहुत पसंद हैं...!" मुझसे पहले ही मीनू बोली और हँसने लगी....

"हाँ.. और चॉककलते और 'समोसा' भी...." पिंकी का चेहरा खिल उठा....

सुनकर मैं भी हँसे बिना ना रह सकी... पर हमारी हँसी से अंजान 'पिंकी' कुच्छ देर बाद फिर बोल उठी...,"आज तो मैं गोलगप्पे भी खाउन्गि.... मेरे पास 100 रुपए हैं...!"

"बस कर भूखी... सब सुन रहे हैं...!" मीनू ने उसके कान के पास आकर उसको लताड़ लगाई......

9:00 बजे से कुच्छ पहले ही हम शहर के बस स्टॅंड पहुँच गये.. मीनू ने नीचे उतरते ही मानव को फोन किया..,"हाँ.. वो.. हम यहाँ पहुँच गये.. बस अड्डे पर...!"

"पर मैने बताया तो था कि 9:00 बजे के आसपास हम पहुँच जाएँगे..!" मीनू ने फिर से कहा....

"ठीक है.. हम यहीं वेट करते हैं तब तक....!" मीनू ने मायूस होकर फोन काट दिया...

"क्या बोले वो?" मैने मीनू के कॉल डिसकनेक्ट करते ही पूचछा....

"कह रहा है अभी टाइम लगेगा.. हमने रात को मना कर दिया था ना... वो अभी घर पर ही है...!" मीनू ने इधर उधर देखते हुए कहा और फिर बोली..,"आओ.. वहाँ अंदर बैठते हैं...!"

हम दोनो मीनू के पिछे पिछे जाकर बस-स्टॅंड के अंदर एक जगह बैठ गये...

"चलो ना दीदी.. तब तक मार्केट घूम आते हैं..." पिंकी से रहा ना गया...

"चुप करके बैठ जा थोड़ी देर...! पहले ही दिमाग़ खराब है...इतने दीनो बाद तो कॉलेज आई थी.. लगता है आज भी क्लास अटेंड नही कर पाउन्गि...!" मीनू ने हताशा से कहा....

तभी अचानक पिंकी ने मेरे कान में फुसफुसाया..,"हॅरी!"

नाम मुझे सुन गया था.. पर मैं मतलब नही समझ पाई..,"क्या हॅरी?"

पिंकी का चेहरा अचानक तमतमा सा गया.. उसने सकपका कर मीनू की ओर देखा और हड़बड़ा कर इशारा करते हुए बोली...,"कुच्छ नही.. वो.. हॅरी जैसा लग रहा है ना..!"

हम दोनो की नज़रें उसकी उंगली का पिच्छा करते हुए हमसे काफ़ी दूर खड़े होकर रह रह कर हमारी ही ओर देख रहे हॅरी पर पड़ी...

"हाँ.. हॅरी ही है.. वो शहर नही आ सकता क्या?" मीनू उसको पहचान कर पिंकी की ओर देखते हुए बोली..,"तो क्या हुआ?"

"न्नाही.. ववो.. मुझे लगा शायद वो हॅरी नही है...!" पिंकी की साँसे उखड़ गयी...

शायद हमें अपनी और लगातार देखता पाकर हॅरी हमारे पास ही आ गया..,"वो.. आज यहाँ कैसे..?"

"बस.. कुच्छ काम सा था.. !" मीनू बनावटी तौर पर मुस्कुरकर बोली....

"ओह्ह... 9:00 वाली बस में आई हो क्या..?" हॅरी ने पूचछा...

"हाँ.. तुम भी?" पिंकी से बोले बिना रहा ना गया....

"नही.. मैं बस थोड़ी देर पहले ही गाड़ी से आया हूँ.. मुझे पता होता तो..." हॅरी कुच्छ कह ही रहा था कि मीनू ने बीच में ही टोक दिया...,"नही.. कोई बात नही....

"यहाँ कैसे बैठी हो..? किसी का इंतज़ार है क्या?" हॅरी ने आगे पूचछा....

"नही.. हाँ.. ववो एक फ्रेंड आनी है मेरी...!" मीनू ने सकपकते हुए बोला....

"लो.. तब तक पेपर पढ़ लो.. मैं भी किसी का इंतजार ही कर रहा हूँ..." कहकर हॅरी मीनू वाली साइड आकर बैठ गया......"

कुच्छ देर हम चारों चुप चाप बैठे रहे.. अचानक मीनू मुझे अख़बार देकर खड़ी हो गयी..,"अच्च्छा.. मैं चलती हूँ.. मेरी फ्रेंड बाहर आ गयी होगी... उसका फोन आएगा तो मैं बोल दूँगी कि तुम यहाँ बैठे हो...! आजा पिंकी.. कॉलेज घुमा लाती हूँ..."

"नही दीदी.. मैं अंजू के साथ ही बैठती हूँ... पर आप..?" पिंकी कुच्छ बोलते बोलते रुक गयी...

"कोई बात नही.. तुम आराम से बैठे रहो.. अभी तो थोड़ी देर हॅरी भी यहीं होगा.....!" मीनू ने मुड़कर कहा...

"हाँ.. मैं तो काफ़ी देर यहीं हूँ..." हॅरी ने कहा और मीनू के बस-स्टॅंड से बाहर निकलते ही मुझसे पूचछा...,"कौन आ रहा है...?"

"ववो.. कोई.. एक रिलेटिव है.." और कुच्छ मेरी समझ में ही नही आया....

"ओह्ह... कहीं आगे जा रहे हो क्या?" हॅरी कुच्छ ज़्यादा ही सवाल जवाब कर रहा था....

"हाँ.. वो.. पिंकी!" मैने पिंकी का हाथ पकड़ कर कहा...,"आना एक बार...!" और उसको उठाकर दूर ले गयी....

"ये क्यूँ आ गया?" मैने पिंकी की आँखों में देख कर डर से कहा..," पहले ही मेरी टांगे डर के मारे काँप रही हैं... अब ये.. इनस्पेक्टर इसके सामने ही कुच्छ बोल ना दे!"

पिंकी की आँखों में एक अलग ही नूर चमक रहा था...,"कुच्छ नही होगा.. तुम्हे पता है ना ये किसी को कुच्छ नही बताता कभी..."

"वो तो ठीक है.. पर ये खुद क्या सोचेगा...?" मैने बुरा मुँह बनाकर कहा.. मेरी कही गयी ये बात मुझमें बदलाव का पहला सबूत थी....

"कुच्छ नही होगा... और वो.. तुम इसको 'पटाकर दिखाने की बोल रही थी.. दिखाओ अब!" पिंकी ने मुझे चॅलेंज करने के अंदाज में कहा....

"प्लीज़ पिंकी.. मुझसे ऐसी बात मत करो.. मेरे सिर में दर्द हो रहा है...!"

"ठीक है... मार्केट चलें तब तक.. हॅरी को ले चलेंगे साथ..." पिंकी खिसियकर बोली...

"पागल है क्या तू.. इनस्पेक्टर आने वाला होगा... आधे घंटे से उपर... वो शायद आ ही गया...!" बस स्टॅंड के पिछे आकर रुकी पोलीस ज़ीप को देखकर मैं बोली...

कुच्छ देर बाद मानव सीधा हमारे पास आकर खड़ा हो गया...ब्लॅक जीन्स और वाइल टी-शर्ट में 'वो' बड़ा ही स्मार्ट लग रहा था... शायद मीनू के लिए तैयार होकर आया था...," इसको क्यूँ उठा लाए...? इसको थोड़े ही साथ लेकर चल सकते हैं....!" मानव पिंकी को देख कर बोला....

पिंकी अपने उपर हुए इस अप्रत्याशित हमले को देख कर भौचक्क रह गयी.. वो रोनी सूरत बनाकर मानव की ओर देखने लगी..

"ववो.. हॅरी है यहाँ.. उसके पास रह लेगी तब तक...!" मेरे मुँह से हड़बड़ाहट में निकल गया.....

"कौन.. दूर बैठे हॅरी को हमारी ही तरफ देखते पाकर मानव बोला..,"वो.. ! वो तुम्हारे साथ ही है क्या?"

"हाँ..!" मैने कह दिया....

"ठीक है.. तुम यहीं बैठना.. थोड़ी देर बाद मीनू आ जाएगी या हम.. तब तक कहीं जाना नही.. ठीक है...!" मानव ने जल्दी जल्दी में कहा और मेरी ओर देख कर बोला...,"आओ.. मेरे साथ!"

मैं बार बार मुड़कर पिंकी की ओर देखती हुई उसके पिछे चल दी.. पिंकी की शकल रोने जैसी हो गयी थी.. वो अब तक वहीं खड़ी थी.. हॅरी से दूर...!

"नंबर. याद है...?" मानव ने पूचछा....

"हन..! आपके साथ और पोलीस वाले नही हैं क्या?" मैने पूचछा....

"वो यार.. जल्दी निकलना पड़ा.. फिर तुम यहाँ इंतजार कर रहे थे.. मैने बोल भी दिया है वैसे.. कोई टाइम तक आ गया तो ठीक है.. वरना.... पर क्यूँ पूच्छ रही हो..?" मानव ने अचानक पूचछा....

"मुझे डर लग रहा है बहुत..." मैं सचमुच्च डरी हुई थी...

"मुझसे?" वा हंसता हुआ बोला....

"नही... उस'से!" मैने सपस्ट किया....

"तुम्हे सिर्फ़ एक फोन ही तो करना है... फोन करके उसको यहाँ बुला लो... बाकी मैं देख लूँगा.... इसमें डरने वाली क्या बात है...?"

हम दोनो अभी बस-स्टॅंड की चारदीवारी के अंदर ही खड़े थे... उसने मुझे सारी बातें खोल कर समझाई और मुझे बस-स्टॅंड के सामने पी.सी.ओ. के बारे में बताता हुआ बोला..,"वो जहाँ कहे.. वहीं खड़ी हो जाना... किसी भी तरह का डर मंन में मत रखो.. वह जहाँ भी खड़ा होने को बोले.. खड़ी हो जाना.... मेरी नज़र तुम पर ही रहेगी.. ठीक है...? डरना मत!"

मैने सहमति में सिर हिलाया और बस-स्टॅंड के बाहर निकल कर पी.सी.ओ. जा पहुँची...

"हेलो..." मैने ढोलू के फोन उठाते ही कहा....

"हाए मेरी रानी...! कल से शहर में डेरा डाले पड़ा हूँ तेरे लिए... कहाँ है तू....?" ढोलू की आवाज़ में उत्साह सॉफ झलक रहा था....

"मैं शहर आ गयी हूँ... बस-स्टॅंड के बाहर से फोन कर रही हूँ...!" मैने अपनी आवाज़ को यथासंभव सामान्य बनाते हुए कहा.....

"ऐसा करो... कोई ऑटो कर लो.. उसको बोलो कि 'काले के ढाबे' के पास उतार दे.. वहाँ मेरे लड़के मिल जाएँगे...!" ढोलू ने कह कर मुझे संशत में डाल दिया....

"पर.. पर मैं... तुम यहीं आ जाओ ना... मैं कैसे आउन्गि वहाँ..?" मैं हड़बड़ा सी गयी....

"अरे तुझे पता नही है... मैं शहर के अंदर नही आ सकता... बताया तो था तुझे... 'वो' लड़के भी नही आ सकते... किसी और को मैं भेजूँगा नही.. क्या पता मेरे से पहले ही 'वो' तेरा 'काम' कर दे..... तू जल्दी आ जा.. ढाबे से तुझे वो आराम से मेरे पास ले आएँगे....!"

"नही.. मैं अपने आप नही आ सकती...!" मैने असम्न्झस से कहा...

"तो अपनी गांद मारा भौसदि की.. साली कुतिया.. तुझे गांद मरवाने की तो पड़ी है... मेरी जिंदगी का कोई ख़याल नही तुझे.. रख दे फोन.....!" कह कर ढोलू ने अचानक फोन काट दिया.....

मैने जाकर मानव को सारी बात बता दी......

"ओह्ह्ह..." मानव के माथे पर बल पड़ गये... कुच्छ देर ऐसे ही वो अपने बालों में खुजली करता रहा.. फिर बोला..," मेरे साथ चल सकती हो वहाँ?"

"हां पर... 'वो'लड़के आपके साथ थोड़े ही मुझे उसके पास लेकर जाएँगे...." मैं बोली....

"देखते हैं... तुम जाकर उसको फोन कर दो कि तुम आ रही हो..." उसने कहा ही था कि दो आदमी मोटरसाइकल पर हमारे पास आकर रुक गये..," जैहिन्द जनाब!" उन्होने आते ही कहा...

"ओह्ह.. आ गये तुम.. अब सब ठीक हो जाएगा अंजू... जाकर फोन कर दो... और फोन करके यहीं आ जाना....." मानव ने कहा....

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मैं फोन करके वापस आई तो मानव का रंग रूप देख कर दंग रह गयी.. एक बार को तो मुझे लगा.. उसके जैसी शकल का कोई और है...

"चलो में'शाब! ऑटो तैयार है..." मानव ने टपोरी लहजे में कहा....

मैं हँसे बिना ना रह सकी... मानव ने ग्रीस में काला हो चुका एक कुर्ता पाजामा डाल रखा था.. पाजाम छ्होटा होने की वजह से उसके टखने सॉफ दिख रहे थे... उसके पास ही एक ग़रीब सा लड़का मानव की जीन्स डाले खड़ा बड़ा ही अजीब लग रहा था...

"आप मेरे साथ ऐसे चलोगे...?" मैं अपना चेहरा हाथों में छुपा कर बोली...

"तुम्हारे पास पैसे हैं...?" मानव बोला...

"मेरे पास 50 रुपए ही थे.. मैने शरमाते हुए नोट निकाल कर दिखाया..,"ये हैं..!"

"गुड.. लाओ.. मुझे दो...!" कह कर उसने नोट झटक लिया.....,"आओ..!"

लड़का हमारे साथ ही था... मानव जाकर आगे बैठ गया..," इसके गियर वेर कैसे लगेंगे भाई...?"

लड़के ने हंसते हुए मानव को ऑटो चलाने के कुच्छ टिप्स दिए.. और मानव को नीचे उतरने को कहकर रस्सा खींच कर ऑटो स्टार्ट कर दिया..,"संभाल के ले जाना साहब.. मेरी रोज़ी रोटी यही है..." कह कर लड़का अलग हट गया....

"बैठो में'शाब!" मानव ने एक बार फिर मुस्कुरकर मुझे इज़्ज़त बखसी और मेरे बैठते ही ऑटो इधर उधर बहकाता हुआ चलाने लगा......

क्रमशः.............................
gataank se aage............

Sandeep ne jhat se apni shirt utar fainki.. uski gori chhati par hulke hulke baal dekh kar main romach se bhar uthi... chhati par dono aur akde huye uske 'til' bhar ke daane mujhe bade pyare lag rahe the.. jaise hi usne paas baith kar meri chhhatiyon ko dabana shuru kiya.. maine jhat se baith kar usko neeche gira liya aur uske pate par hath ferti huyi uske 'daano' ko choomne lagi....

"aah.. kya kar rahi ho Anju..? Gudgudi ho rahi hai..." Wah ekdum masti se chhatpata kar utha aur ek baar fir mujhe apne neeche daboch liya...

"Karne do na.. mujhe maza aa raha hai bahut..." Apni chhati par uske hath ka dabav mahsoos karke main tadap kar gidgidayi aur apna hath bina der kiye uski pant mein daal diya aur 'kachchhe' ke upar se hi uske 'fufkaarte' huye saanp ka 'fun' apni mutthi mein daboch liya....

"Ohh..hohhhhh..." Mere hath ki moujoodgi ka ahsaas hote hi Sandeep ke ling ne ek jhatke ke sath angdayi si li.. aur aakar mein achanak badhkar seedha hone ki koshish karne laga...

"Isko chooso na jaan... aahhh... tumhare 'kaam' ki cheej toh ye hai..." Sandeep kahte huye apni pant ka 'hook' kholne laga.. Jald hi uski pant uski taangon se bahar thi aur uska 'ling' kachchhe ko 'faad' dene par utaaru ho gaya...

Sandeep meri aur munh karke khada hokar muskurane laga.. Uska ishara samajh kar main uske aage ghutne tek kar baith gayi aur kachchhe ke upar se hi ling ko hath mein pakad kar usko apne daanton se hulka sa 'kaat' liya...

Wah uchhal pada..,"aah.. kis mood mein ho aaj? pyar se karo na...!"

"Nahi.. aaj toh main tumhe kachcha hi kha jaaungi..," Maine kaha aur anjane mein hi mere hath meri salwar ke upar se hi machal uthi yoni ko kuredne lage...

"Pyar se bhi toh kha...." Sandeep achanak bolte bolte ruk gaya... Uske pant ki jeb mein rakhe mobile ke vibrations ki 'gharrr..gharrrr..' sannate mein saaf sunayi de rahi thi..,"Ek minute..." Usne pant ki jeb se apna mobile nikala aur kone mein jakar call receive ki....

"Kuchh der chup rahne ke baad Sandeep ne sirf itna hi kaha..,"aadha ghanta".. aur fone kaat diya....

"Kiska fone tha...?" Maine utsukta se poochha...

"Kuchh nahi.. ek dost tha..!" Sandeep ne jaldi jaldi mein apna kachchha nikalnte huye kaha...

"aadha ghanta kya?" maine poochha...

"offoh..Mujhe uske ghar jana hai.. chalo.. jaldi jaldi karte hain...!" Sandeep mere paas aaya aur apna ling mere honton se sata diya....

"Kya? sirf aadha ghanta hi...!" Main mayoos hokar boli..,"aadhe ghante mein kya hoga..." Mujhe achanak dhyan aaya ki 'iss' kaam ke sath mujhe ek aur kaam bhi karna tha.....

"Ohho.. ek baar toh kar lo.. baad ki baad mein dekhenge..." Kahte huye Sandeep ne ghutno ke bal baith kar meri salwar ka nada kheenchne ke liye bahar nikal liya...

Maine uska hath wahin daboch liya..,"tum.. tum mujhse sachcha pyar karte ho na Sandeep?"

"Aur nahi toh kya..? ye tum aaj kaisi baatein kar rahi ho... Jaldi nikalo apni Salwar..!" Sandeep hadbadakar bola...

"Nahi...!" Maine munh banakar kaha....

"Kyun..? ab kya huaa?" wah ghighiya kar bola....

"Pahle mujhe 'wo' mobile chahiye...!" Maine daanv fainka...

"kounsa.. oho.. kitni baar bataaoon.. wo nahi mil sakta ab.. thode dino mein naya lakar de doonga.. tumhari kasam... bus!" Sandeep ne kaha aur jabardasti mera nada kheench kar salwar dheeli kar di.... Main neeche gir gayi.. par maine jaanghon ko kaskar bheench kar apni yoni ko chhipa kar rakha hua tha...

"Nayi.. tum jhooth bol rahe ho.. 'Dholu' ne mana kar diya hoga dene se... mujhe sab pata hai..." Maine narazgi bhare lahje mein kaha aur jhat se khadi hokar apna nada fir se baandh liya....

"Anjuuuuu.... ye kya kar rahi ho yaar.. mere paas jyada time nahi hai.. ab nakhre band karo apne.." Nang dhadang Sandeep jaisi hi pagal sa hokar meri taraf lapka.. uski halat dekh kar meri hansi chhot gayi...,"Nahi.. pahle mobile ki baat!" Main khilkhilate huye idhar udhar bhagne lagi....

"Tumhari kasam jaan.. Dholu se poochh lena chahe... aa jao na..!" Meri hansi se hatotsahit hokar wo ek jagah khada ho gaya aur apna kachchha wapas daal liya.. Shayad usko ahsaas ho gaya tha ki main uske nangepan par hans rahi hoon...

"Theek hai.. puchhwa do pahle....!" Main tapak se boli... Sandeep ne mujhe kamar se pakad kar apni aur kheench liya....

"Ab... jab 'wo' aayega toh uss'se poochh lena.. mere paas uska no. nahi hai..." Meri chhatiyon ko wo apni nangi chhati se dabakar bheenchte huye bola...

"Fir jhooth.. aaah..." Jaise hi Sandeep ne meri jaanghon ke beech hath diya.. main kasmasa uthi...," jab tak tum mobile wali baat clear nahi karwate.. main kuchh nahi karoongi...

Usne jabardasti mujhe wapas wahin patak liya aur yahan wahan hath maar kar mujhe uksaane ki koshish karne laga... Par main jaanboojh kar hansti rahi aur mouka milte hi apni taangon ke sahare uthakar usko door patak deti.....,"Pahle mobile.. baaki 'kaam' baad mein.." Main apni jid par adi rahi....

Thak haar kar 'wo' mujhse door hat gaya...," theek hai.. meri kasam khao ye baat kisi ko nahi bataogi....!"

"kounsi baat?" Uske door hat'te hi mera sara badan bechain sa ho utha tha....

"yahi ki maine tumhari baat Dholu se karwayi hai....!" Sandeep bola...

"Kab karwayi hai...?" Main apni aankhein sikod li aur uske paas jakar uss'se chipakti huyi boli...

"Ek minute..." Sandeep ne mobile nikala aur ek no. dial kar diya...," Hello bhai!"

"ye.. ye aapse baat karna chahti hai... ek minute..!" Sandeep ne kaha aur fone mere kaan se laga diya....

"Hello.." Maine kaha...

Dholu ka jawaab kafi der baad aaya.. uski aawaj mein hulki si hadbadahat thi....,"Koun?"

"Main... Anjali....!"

"aur koun hai wahan..?" Dholu ne poochha...

"koyi nahi...!"

"Ohh.. main toh darr gaya tha.. tum hamare ghar par ho kya?"

"na.. wwo.. haan! main Shikha se milne aayi thi.. maine baat ko sudhara...

"Shikha kahan hai..?"

"Wwo.. dusre kamre mein hai....!"

"Bolo.. kya baat hai...?" Dholu jaldi jaldi mein bol raha tha....

"wwo.. ye Sandeep fone wapas nahi de raha... mujhe tumse baat karne ka dil karta hai...!" Maine maasoomiyat se kaha...

"Haye meri jaan..! jara alag hona Sandeep se...!" Dholu achanak uttejit sa lagne laga....

"haan.. aa gayi... "Maine wahin khade khade kaha....

"Tumhara sach mein dil karta hai kya.. mujhse baat karne ka...!" Dholu paseej sa gaya tha...

"aur nahi toh kya? uss din ke baad tum mile hi nahi ho... Mera bura haal karke chhod gaye....!" Meri aawaj mein kamukta toh pahle hi thi.. ab shabd bhi kamuk ho gaye....

"kya karoon jaan.. majboori hai... bus thode din ruk jao.. tumhari seal main hi todunga...!"

"Mujhse nahi ruka jata ab.. jaldi aa jao... mere wahan pata nahi kaisa ho raha hai...

"haye meri jaan... kahan kaisa ho raha hai...." Dholu ka bura haal ho gaya lagta tha..

"Wahan.. neeche...!" Main Sandeep ki aur muskurakar boli...

"Haye meri chhammakchhallo.. ek baar bolo.. meri choot lund maang rahi hai...!"

"Haan.. Sachchi...!" Mera hath meri salwar mein ghus chuka tha... Sandeep ajeeb si najron se mujhe ghoorta raha...

"Haan nahi.. bol kar dikhaek baar.. kya maang rahi hai teri choot....?"

"mujhe nahi pata.. tum jaldi aakar khud hi dekh lo..." Main shararat se kasmasati huyi boli.....

"Tum samajhti nahi jaan.. ye police meri dushman bankar mere pichhe lagi hai.. bus thode se din aur ruk jao...!"

"Ye Sandeep na toh tumhara no. de raha hai.. aur na hi mobile...!" Maine shikayati lahje mein kaha...

"wo theek hi kar raha hai jaan.. thode din ruk jao.. main naya mobile de doonga tumhe..!"

"Kam se kam apna no. toh de do... main tumhe fone toh kar loongi..." Maine apni yoni ki faankon ko ungali se kuredte huye poochha....

Kuchh der Dholu kuchh nahi bola... Maine ek naya patta fainka..,"Main kal ya parson shahar aa rahi hoon... wahan toh mil sakte ho na!"

"Mera no. likh lo... dhyan rakhna.. kisi ke hath lag gaya toh meri maa chud jayegi achchhe se... tum kisi ko nahi dogi na...!"


"Nahi.. tumhari kasam...." Uske sath baaton mein khoye khoye mujhe pata hi nahi chala ki kab Sandeep ne meri salwar kholkar neeche sarka di thi... Jaise hi usne mere 'pedu' se naak' satate huye meri 'yoni' mein garam saans chhodi.. main uchhal padi... Iske sath hi meri taangon mein jaise jaan bachi hi na ho... Sandeep ke hulka sa jor lagate hi main pichhe gir padi... Sandeep ne meri jaanghon ko hathon mein daboch kar apna munh unke beech ghusa diya...

Jor se sisak kar maine apni jaanghein kaskar uski kamar ke upar rakh di..,"aaah...!"

"Kya hua ...?" Dholu ne meri siski lene ka tareeka sun kar chounkte huye poochha....

"aah.. kuchh nahi... neeche pata nahi kya ho raha hai...aaaah..." Aanand ke maare mari si ja rahi main apni jaanghon ko kholne bheenchne lagi.. Sandeep poore maje se meri yoni ko chaat raha tha... Jaise hi uski jeebh ki nok meri 'yoni' ke daane par aakar tikti.. mujhe khud par kabu rakhna mushkil ho jata aur main sisak uthti....

"tum ho kahan iss waqt...?" Dholu ko kuchh shak sa hone laga tha....

"aaah... tumse baat karte huye choupal mein aa gayi hoon... Sandeep ka mobile lekar...!" Maine bahana banaya....

"Ohh.. Sandeep kahan hai..?"

"Ghar par hi hoga...aayiiiii!" Main ek baar fir dhahak uthi... Sandeep ne faankon ko chouda karte huye apni jeebh meri yoni ke ched mein ghusa di thi....

"Tum apni choot ragad rahi ho na...?" Dholu khush hokar bola....

"aaahhhhhaaaannn!" Meri aankhein band ho chuki thi.. mere jawab dene ka lahja badal gaya tha....

"Fone par choot marwaaogi?" Dholu ne poochha...

"aaah... kaise...?" Main bilbila uthi thi... Sandeep ne achanak meri poori yoni ko apne munh mein bharkar usko daaton se hulke hulke kutarna shuru kar diya tha....

"aise hi.. ek minute.. meri baat ka jawab deti jana... tumhe bhi bahut maja aayega... Tumhari choot kaisi hai?"

"aaah... Gori..."

"aah.. gori nahi meri rani... makkhan malayi jaisi bolo.. bol kar dikhaao...!"

"aaaah... aaah... Main skhalan ke bilkul kareeb thi.. jaise taise maine bolne ke liye shabd dhooondh hi liye..," Meri choooooot makkhan malayi haiiiaaaaaahhhh...!"

Dholu ki aawaj mein bhi kampan sa shuru ho gaya tha.....,"Mere louda kaisa hai rani!"

"aaah... tera louda kala... aaah.. nahi.. tera louda 'dandey' jaisa hai...." Main fudakti huyi boli...

"shaabash... ladki ki choot kisliye hoti hai bata!"...

"pyaaar karne ke liye...!"

"nahi saliiiii.... choot chodne ke liye hoti hai.. lund andar pelne ke liye hoti hai....!"

"aahhhaaaa..ohhhooo.. haaaaannnnn..aaah!" Sandeep ne apni do ungaliyan meri yoni ke andar daal di thi aur lapar lapar yoni ki faankon ko choos aur chat raha tha....

"louda kisliye hota hai bol...?" Dholu ne mast hokar poochha....

"aaah... Munh mein lekar choosne ke liye.... aaaurrr... choot chodne ke liye.....!" Main ganganati huyi boli....

"aur gaaand maarne ke liye bhi... haye jaan.. mujhse gaand marwayegi na apni...!" Dholu aage bola....

"haaan.... jaaaaaaan...." Achanak meri indariyon ne kaam karna band kar diya.. mujhe apni yoni mein se kuchh rista hua mahsoos hua.. Sandeep ab bhi pagal se hokar usspar laga hua tha.. apni ungaliyan nikal kar 'wo' andar tak meri yoni ke chhed ko jeebh se chaatne laga.....

"bol kiss'se chudegi tu....?" Dhlolu ne poochha toh main koyi jawab na de payi.... bus padi padi aankhein band kiye sisakti rahi...

"Bol na.. kiss'se chudegi tu....... kya hua? nikal gaya kya?" Dholu bola...

"haaan...." Meri aawaj se santusti aur betabi dono jhalak rahi thi....

"nahi abhi nahi.. thodi der aur... abhi mera kaam nahi hua hai.. bol na.. kis'se apni seal tudwayegi tu....?" Dholu tadap kar bola... uss bechare ko kya maloom tha ki 'seal' toh ab swarg sidhar chuki hai...

"tere se... tere loude se...!" Maine jawab diya...

"aise nahi jaan.. kya bolegi tu mera louda hath mein pakad kar.. bol na!"

"Main kahoongi... mujhe chod do.. meri seal tod do.. meri choot ko faad daalo... !"

"haye meri rani.. kya cheej hai tu.. ek baaaaar auurr.. boll na..!" Dholu kamuk dhang se bola...

"aaah.. meri makkhan malayi choot mein apna dandey jaisa louda fansa do... mujhe chod do.." Maine bolte huye Sandeep ko upar kheench liya.... Mera ishara samajh kar Sandeep upar aaya aur meri jaanghon ko khol kar unke beech ukdoo hokar baith gaya.. main ek baar fir badhawaas si hokar bolne lagi...," Ghusa do meri choot mein apna loda... jaldi karo na.. main mari ja rahi hoon... cheer daalo isko... chod do mujhe... " Mujhe fone par Dholu ke haanfne ki aawajein saaf sunayi de rahi thi.. par wah kuchh bol nahi raha tha...

Sandeep ne Meri yoni ke beechon beech apna 'danda' tkaya aur ek hi jhtke mein andar pel diya... Aanad ki uss aloukik prakashtha par pahunchte hi main bawli si ho gayi...,"hayeee... Sandeeeeeep!"

Mujhe bolte hi apni galati ka ahsaas ho gaya tha.. par teer kamaan se nikal chuka tha....

"sali behan chod.. Tu Sandeep ke baare mein soch rahi hai kutiya....

"nahi.. wwo.. uska mobile.. aaaah...." Sandeep ka ling bahar nikal kar ek baar fir mere garbhashya se ja takraya..," aaaaaaaahhhh... wo toh uska dhyan aa gaya tha.. aise hi.. tujhse hi chudwaaungi jaan!"

"Kutiya... tu ek no. ki randi hai.. tera koyi bharosa nahi.. par ek baar seal mujhse tudwa lena









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