Friday, May 21, 2010

जूही : एक लड़की के अनछुए सेक्सुअल अनुभव-1

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जूही : एक लड़की के अनछुए सेक्सुअल अनुभव-1



हेल्लो दोस्तों आपके लिए पेश है एक लड़की का अनछुआ सेक्सुअल अनुभव उसी की जुबानी



मेरा उद्देश्य सिर्फ मेरी जिंदगी के उन पलों का सामने लाना हैं जो लगभग हर लड़की की जिंदगी में आतें हैं पर वो उन्हें छुपा लेती हैं. पर में वो सब आप सभी के साथ बांटना चाहती हूँ, वो भी इसलिए कि जिस से आप लोग एक लड़की कि निजता कि बारें में जानने कि जिन कोशिशों में लगे रहते हैं उसका काफी कुछ सच में सामने ला देती हूँ. यहाँ लिखा सब कुछ एकदम सत्य है और कुछ भी कहीं से जोड़ा या मरोड़ा नहीं गया है...इसलिए ऐसा कुछ न करें जिस से कि मुझे यह लगे कि मेरी यह कोशिश भी बेकार गयी...वैसे भी मुझे नहीं पता कि इस फोरम में कितनी लडकियां मेंबर हैं? पर जब से में मेंबर बनी हूँ, मुझे सभी ने अच्छा सम्मान ही दिया है...और कुछ लोग मेरे फ्रेंड्स भी बने.



चलिए शुरू करते हैं जब से जबकि मेरी योवनावस्था शुरू ही हुयी थी. और मेरा पहला सेक्सुअल अनुभव हुआ, और नेचुरली यह लेस्बियन ही था, क्योंकि अधिकतर लड़कयों के सेक्स अनुभव कि शुरुआत लेस्बियन अनुभवों से ही होती है, वैसे भी अधिकतर लड़कियों कि इतनी हिम्मत भी नहीं होती कि वो लड़के के साथ सेक्स करके अपने अनुभव कि शुरुआत कर सके. जब में १३ साल कि हुयी तभी से में लड़कों कि नजर में आने लगी थी. वजह मेरा लम्बा कद, आकर्षक शारीर और गोरा रंग था शायद. १२ साल कि उम्र में ही में सेक्सुअल रिलेशन के बारें में जान ने लगी थी. और मेरा ज्ञान का भण्डार थी मेरी कसिन बहिन किरण. वो भगवन को बहुत मानती थी. पर उसके बड़े भाई कि शादी जब हुयी तो उसकी भाभी आयी और वो बहुत ही ज्यादा सेक्सी और ज्यादा एक्टिव थी. वो जितनी ज्यादा सेक्सी और सुन्दर थीं उतनी ही करक्टेरलेस भी थी.



उनके शादी से पहले भी लड़कों से रिलेशन थे, और वो अभी उनसे सेक्स कर रही थी. उनकी सेक्सुअल जरूरते शायद एक आदमी से पूरी नहीं हो सकती थी. और इन सेक्सुअल एड्वेंचरों के लिए उन्हें किरण कि मदद कि जरुरत थी जिससे कि मुश्किल के समय में वो उन्हें बचा सके. और मेरी सिस्टर किरण बेचारी फंसी हुयी थी उनके साथ. लता भाभी ने सारा सेक्स ज्ञान उसे दे दिया और वो भी १२ १३ साल कि उम्र में. किरण भी मेरी ही उम्र के बराबर थी और इस तरह कि सेक्सी बातों में भाभी के साथ उसे मजा आने लगा. हम लोग जिस फॅमिली से थे जहाँ काफी साड़ी बंदिशे थी और इस वजह से जब किरण को यह सब पता चला तो वो सोचने लगी कि जैसे कोई खजाना उसके हाथ लग गया हो.



उसकी भाभी ने साड़ी हदें पार करदी और किरण के साथ लेस्बियन सेक्स भी शुरू करदिया.पर किरण मेरी बहुत अच्छी सहेली थी तो वो मुझे सारी बातें जरूर बताती थी. शुरू शुरू में , मैं चुपचाप ही रहती थी, और किरण ही बोलती थी. हम लोग सेक्स, और लड़कों के बारें में बातें करने लगे. वो घर के पास ही रहती थी सो हम लोग डेली ही मिलते थे. और हमारी बातें सेक्स के बारें ज्यादा होने लगी. हम लोग सेक्स करने के बारें में बहुत व्याकुल होते जा रहे थे.



पर उस छोटी से उम्र में न तो हम कोई पॉर्न साईट देख पाते थे और न ही कोई सेक्सुअल जानकारी थी। और न ही हम हस्तमैथुन के बारें में जानते थे. और यह सब हमें चिडचिडा बनता जा रहा था. क्योंकि सेक्सुअल बातें करने के बाद हमारी पूसी गीली हो जाती थीं और उस बारें में कुछ भी नहीं जानते थी. हम नहीं जानते थी कि हम हमारी सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन , टेंशन और देस्प्रशन कैसे निकालें?



और तो और किरण की भाभी न सिर्फ उसे हस्तमैथुन के बारें में बताती थी बल्कि उसे करवाती भी थी. और यही उसके लेस्बियन संबंधों की शुरुआत थी, साथ ही उसके सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन की भी, क्योंकि अब जब भी वो सेक्सुअली उत्तेजित होती थी तो वो ऊँगली से हस्तमैथुन कर लेती थी. और जब वो मेरे से मिली, तो हस्तमैथुन के बारें में उसने मुझे बताया और वो सारी बातें मुझे बताना चाहती थी. उसने ओर्गास्म के बारे में जब बताया तो मुझे सच में कुछ समझ भी न आया. उसने बोला भी की लाओ में तुम्हारी पूसी पर करके दिखा देती हूँ. पर में शर्माने के कारण इतना साहस भी न कर पायी. मेने कभी कपडे तक नहीं बदले थे किसी के सामने , और तो और जब में १० साल की हुयी थी तब मम्मी से भी नहाना बंद कर दिया था और खुद ही नहाती थी. और जहाँ तक किरण का ऑफर था, उसे मेरी जाँघों के बीच नंगी पूसी दिखाने का, बड़ा ही अजीब था मेरे लिए.



पर जब इस सब के बारें में बातिएँ करने लगे तो वो मेरे में इंटरेस्ट भी लेने लगी. वो बहुत उत्तेजित रहती थी और मेरे साथ लेस्बियन वाला अनुभव बांटना चाहती थी. और उसने मुझे इतना राजी कर लिया की मेने उसे मेरे शरीर पर हाथ फेरने की इजाजत दे दी.



यह वो समय था जब हमारे स्तन बदने लगे थे। और हमारी पूसी पर हलके हलके बाल भी आने लगे थे. और क्योंकि हम एक अच्छे परिवार से थे तो खाने पीने की कोई कमी नहीं थी, और अच्छे खाने पीने के कारण शरीर का भी अच्छा विकास हो रहा था

और इसका सीधा सा मतलब यही था की हमारे स्तन हमारी उम्र की और लड़कियों की तुलना में थोड़े ज्यादा ही थे. और क्योंकि निप्पलस भी अब बाहर की उभरने लगी थी तो हम लोगो ने ब्रा पहननी शुरू कर दी थी. अब में भी किरण की प्रति थोडी आकर्षित होने लगी थी. मैं हर समय यही सब सोचती रहती थी.



जब एक बार किरण एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर गयी तो में बेसब्र हो गयी. मेरा मन पढाई में भी नहीं लग रहा था. और फिर एक दिन किरण मेरे घर आयी और पड़ने के बहाने मेरे घर भी रुकने का प्रोग्राम बना लिया. घर नजदीक होने के कारण ऐसी कोई दिक्कत भी नहीं थी...अमूमन हम लोग एक दूसरे के घर में रुकते भी रहते थे. रात को हम लोगो ने अपनी वही बातचीत शुरू की. और जब घर के सभी लोग सो गए, तो हमने अपने कमरे को अन्दर से बंद कर लिया. शुरू में हम थोडी असहजता महसूस कर रहे थे. वो भी नहीं जानती थी की क्या कहना है और मैं भी नहीं की क्या करना है? फिर भी किसी तरह शुरुआत हुयी और जब मेने कहा की मैं वास्तव में जानना चाहती हूँ इस बारे में, तो उसकी भी आँखें फैल गयी.



उसने मुझे ओर्गास्म के बारें में बताया और कहा की यह सबसे अच्छी अनुभूति होती है जोकि उसने अनुभव की. मैं क्योंकि बिलकुल भी नहीं जानती थी इस बारें में तो मेरा दिमाग बिलकुल खाली था ओर्गास्म के बारें में, बल्कि में ओर्गास्म की उस अनुभूति का इमेजिन भी नहीं कर पायी उस समय. मैं तो उस समय बस यह जानना चाहती थी की सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन को कैसे दूर किया जाता है. क्योंकि यह मेरी जिंदगी का हिस्सा बनता जा रहा था क्योंकि जब भी सेक्स के बारें में बात होती या, टीवी पर सेक्सुअल सीन देखती या कुछ बात सुनती तो मेरी पूसी गीली हो जाती थी. और उसमे खून का संचार इतना बाद जाता था कि थोडा सा कडापन महसूस होता था. हाथ लगाने का मन भी करता था पर उससे भी कुछ नहीं होता था. मैं जानती थी कि कुछ चाहिए पर क्या? यह पता नहीं था. इसलिए जब मुझे पता लगा किरण से कि ओर्गास्म पाने के बाद वो सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन से दूर हो गयी तो मैं भी उस बारे में जानने कि लिए इच्छुक थी.



मैंने उसे आगे बढ़ने को कहा....

वो मेरी ओर बड़ी और मेरी आँखों में झाँकने लगी. वो भी नहीं समझ पा रही थी कैसे शुरुआत करे , आखिर वो कोई उसकी भाभी कि तरह तो थी नहीं. और वो भी शर्मा रही थी. उसने सबसे पहले मुझे किस किया तो में शर्माने लगी, वो बोली, "जैसे भाभी करती हैं वैसे ही मैं करुँगी..इसलिए मुझे करने दो...तुम्हे थोडा अटपटा लगेगा. पर विश्वास करो इसके बाद तुम्हे इतना अच्छा लगेगा जितना कि मुझे भाभी के साथ करने के बाद लगा था."



उसने मुझे मेरे कान के नीचे किस किया और मेरे शरीर को अपनी ओर खींच लिया. मैंने भी उसे किस कर दिया.शुरू शुरू में सिर्फ लिप्स ही टच हो रहे थे पर फिर फ्रेंच किस शुरू हो गया, उसने मुझे अपनी बाहों में भर रखा था और हम दोनों कि स्तन एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे. मेरे निप्पलस भी कड़े हो गए थे उन्हें छूने कि इच्छा त्रीव हो रही थी. हम दोनों के दिल की धड़कन आसानी से सुनी जा सकती थी.



मैं शर्मा भी रही थी और शर्म से लाल हुयी जा रही थी और किरण निर्भीकता से अपने काम में मस्त थी। मैं शर्माने के कारण बस उसे अपनी बाहों में थाम रखा था और बाकी सब उसे ही करने दे रही थी. उसके हाथ मेरी पीन्थ पर चल रहे थे और मेरी हिप्स तक आ जा रहे थे. उसने अपनी दोनों हथेलियाँ मेरे दोनों हिप्स पर रखी और उन्हें जकड लिया. उसे अपनी बाहों में लेकर मेने अपना मुह उसकी गर्दन और बालों में के बीच छिपा लिया था. हालांकि मैं उसके किसी भी हरकत का विरोध नहीं कर रही थी और मजा भी आ रहा था. यह सब शुरुआत थी और मेरी पूसी गीली होने लगी थी. इसके बाद किरण ने मेरे से मेरी सलवार की गाँठ खोलने के लिए बोला. मैंने शरमाते हुए गाँठ खोल दी. सलवार की गाँठ कहने पर हम फिरसे एक दूसरे को अपनी बाहों में भरने लगे. किरण की हथेलियों की हरकतें पहले जैसी हीं थी मेरे हिप्स पर , बस अंतर यही था की अब वो मेरे नंगे हिप्स पर मेरी सलवार के अन्दर हरकत कर रही थी. मैंने अपने हिप्स को थोडा एडजस्ट करते हुए उसके हाथों को अन्दर आने दिया और बहुत ही गर्माहट थी उस छुहन में.

आप सभी मेरे बारें में पता नहीं क्या सोच रहे होगे, पर में क्या करूँ उस छोटी सी उम्र में यह सब फील करना बड़ा सेक्सी लग रहा था. मैं कोई Slut तो नहीं थी पर मैं क्या करती, उस एहसास के आगे मजबूर होती जा रही थी. मैं सिर्फ १३ साल की थी और एक लड़की के हाथ मेरे हिप्स पर चल रहे थे. थोडी सी सलवार नीचे हुयी तो मेरी गुलाबी चड्डी भी नजर आने लगी. और इस बार मैंने उस से कहा की 'किरण अब तुम पहले मुझे अपनी दिखाओ तब मैं कपडे खोलूंगी'. किरण मुस्कुराई और मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और अपने पेट पर रख कर बोली , 'अब इसे ऊपर से नीचे तक चलाओ, मेरे बूब्स से लेकर मेरी पूसी (वैसे वो पूसी को फुद्दी बोलती है ) तक!'.



मैंने उसे किस किया और अपने हाथ उसके स्तनों की ओर बड़ा दिए. वो मेरे से एक साल बड़ी थी और उसके बूब्स भी मेरे से थोड़े से बड़े थे. किरण को शर्म नहीं आ रही थी बल्कि मेरे हाथों ने जब उसके स्तन को छुआ तो उसने बड़े ही मादक अदा से आह की आवाज निकाली. मैंने उसकी कुर्ती के अन्दर कभी बायाँ स्तन दवाती तो कभी दायाँ. और उस से रहा नहीं गया और उसने मुझे नंगी होने को कहा.



शर्म, डर, संकोच सब कुछ दूर हो गया था। जब मैंने अपनी कुर्ती उतारनी शुरू की तो उसकी आँखों में एक चमक दिखाई दे रही थी. मेरी उत्तेजना अब मेरी शरमाहट पर भारी पड़ रही थी और किसी और के सामने नंगी होने में अलग ही मजा लग रहा था. मैं उस पल को जी रही थी जबकि कोई और मेरे गुप्तांगों को देखने जा रही थी. "wow !" किरण ने बोला जैसे ही उसने मेरे स्तनों को देखा. "यार जूही, तेरे तो बड़े हो गए हैं और सही शेप है यार...". उसने थोडी देर तक मेरे स्तनों को दबाया, उन्हें बायें दायें किया , मेरी निप्पलस से खेला. मुझे मेरे स्तनों पर बड़ा गर्व महसूस हुआ जब उसने ऐसा कहा. मुझे पता था की वैसे भी मेरी एज ग्रुप में मेरे सबसे अच्छे स्तन थे. मेरे निप्पलस के चारों ओर का घेरा भी छोटा था और निप्पलस भी कड़े थे. और फिर किरण के हाथों और लिप्स से वो और उत्तेजित हो खड़े से हो गए थे.



थोडी देर मेरे निप्पलस से खेलने के बाद उसने मेरी सलवार उतार दी. मैंने ब्रा तो नहीं पहन रखी थी पर एक चड्डी तो थी ही. मेरे हिप्स और जांघें मेरी गुलाबी पैंटी में फंसी सी नजर आ रही थी. मैंने उसकी ओर मुह करके बैठी थी. जिससे की वो मेरी चिकनी जाँघों को अच्छी तरह से देख पा रही थी. उसने मेरी जाँघों पर हाथ रखा और ऊपर की और तब तक बड़ी जब तक की मेरी पूसी लिप्स, जोकि मेरी पैंटी के अन्दर थे, से एक इंच की दूरी न रही. उसके बाद वो झुकी और जीभ से मेरी झांघों को चाटने सा लगी.. मैं बता नहीं सकती उस समय मेरी क्या फीलिंग्स थी..बस लगा की आज मर ही जाउंगी.



वो सनसनाहट बिलकुल अलग थी और पहली पहली बार हुयी थी. मेरी टांगें कमजोर लग रही थी. जिसने भी पहली बार सेक्स किया होगा वो अच्छी तरह समझ रहा होगा की मैं कौनसी फीलिंग की बात कर रही हूँ! किसी लड़के या लड़की से पहली बार अपने आंतरिक अंगों पर छुहन का एहसास.



किरण ने मुझे खड़े होकर पींठ उसकी ओर करके खड़े होने को कहा. वो पलंग पर बैठी थी. और उसके सामने मेरे हिप्स पैंटी के साथ थे. उसने मेरी चड्डी उतारनी शुरू की और घुटनों से नीचे लाकर छोड़ दी जिसे मैंने अपनी टांगों से निकाल कर एक और दाल दिया, और वापस किरण की और घूम गयी, बिलकुल एक मोडल की तरह. और इस तरह एक १३ साल की कुंवारी लड़की की पूसी उसके सामने थी. जोकि हलके हलके बालों से ढकी थी. वो अपना कण्ट्रोल खो बैठी और उसने अपना चेहरा मेरी पूसी पर पूरी ताकत से सटा दिया, मुझे लग रहा था की उसे इस सब में बड़ा मजा आ रहा है , क्योंकि उसने वहां काफी समय लगाया. कभी अपनी नाक से मेरे पूसी लिप्स को रगडा, कभी मेरी पूसी पर ही किस कर दिया. मेरी टांगें अपने आप खुलने लगी थी क्योंकि मन कर रहा था कि उसकी जीभ और अन्दर चोट मारे और मेरे पूसी होल को छू ले. मुझे मजा आने लगा था पर उसी समय किरण रुक गयी. मैंने उसे चालू रहने को कहा तो वो बोली, 'यार, पहले मेरा पहला ओर्गास्म हो जाने दे, मैं बहुत उत्तेजित हो गयी हूँ, मुझे अभी ओर्गास्म चाहिए. पहले एक दूसरे को ओर्गास्म देते हैं फिर आगे करेंगे." मैंने भी हामी भर दी और वो भी नंगी होने लगी. उसको नंगी होते हुए भी देखने में मजा आ रहा था, और जैसे ही उसकी शर्ट उतरी उसके स्तन बाहर कि और निकल पड़े, जिन्हें देखते हुए मेरी पूसी और गीली हो गयी. जल्दी ही वो पूरी नंगी थी पर कमाल कि बात थी कि उसकी पूसी पर एक भी बाल नहीं था, वो बिलकुल चिकनी थी. उसने मुझे पलंग पर लेटने के लिए कहा.



मैं पूरी तरह से नंगी, एकदम खुली हुयी पलंग पर लेट गयी. किरण ने मेरे पाँव से शुरुआत की, और उसके हाथ धीरे धीरे ऊपर की और बदने लगे. मेरी साँसे तेज तेज चलने लगी और गले से आह आह की आवाजे अपने आप आने लगी. वो जानती थी की मैं इस समय उसके हाथ की कठपुतली बन चुकी थी. वो मेरे को इतने दिनों से मनाने में लगी थी और आज वो दिन था. वो अभी १४ साल की ही थी पर इतने अच्छे तरीके से कर रही थी की साफ़ लग रहा था की वो भाभी के साथ कई बार कर चुकी है. उसकी उंगलियाँ मेरी बालों वाली पूसी के लिप्स से थोडी दूर ही रह गयी थीं. मेरे से रहा नहीं गया और में बोल ही पड़ी, "किरण...प्लीज़ मेरी पूसी को छुओ न..में अब नहीं रुक सकती."



वो हल्का सा मुस्कुराई और मेने उसकी ठुड्डी पकड़ कर उसके चेहरे हो मेरी पूसी से बिलकुल सटा डाला। और उसकी जीभ ने मेरी क्लिटोरिस को चाटना शुरू कर दिया. मेरे हाथ उसके बालों में थे और उसके सर को बार बार अपनी पूसी पर कसके दवा रही थी.

मैंने अपने चेहरे पर तकिया रख लिया सो मेरी आवाजे कमरे से बाहर न जाएँ. पर मुह से निकलने वाली आवाज ही कमरे में नहीं गूँज रही थी बल्कि किरण की जीभ और मेरी पूसी की गीलेपन की आवाज भी आ रही थी..जब जब उसकी जीभ मेरी पूसी के लिप्स को टटोलती थी एक आवाज कमरे में गूंज जाती थी. उसने मेरी क्लिटोरिस को भी सक किया और अपनी एक ऊँगली मेरी योनी की ओर डालनी चाही, पर मैंने उसे रोका और बोला, "किरण, प्लीज़ अन्दर नहीं डालना...!"



वो बोली, "चिंता मत करो, में ऐसे करुँगी की तुम्हारी हाईमन नहीं टूटेगी. तुम्हे अच्छा लगेगा की अन्दर करते हुए भी तुम्हे अच्छा लगेगा." उसने मेरी क्लिटोरिस को किस किया और अपनी ऊँगली धीरे से मेरी योनी के छेद के किनारे किनारे लगाई और अन्दर बाहर करने लगी, और यह अनुभव बहुत ही आनंद से भरा था , शरीर का एक एक अंग उन्माद में आ चूका था. मेरा शरीर कांपने सा लगा और मेरा पहला ओर्गास्म स्टार्ट होने लगा था. में बुरी तरह से इधर उधर हो रही थी और मेरा मन एक पानी से भरे तालाब में डूबा जा रहा था. वो प्मेरी पूसी को चाट रही थी और ऊँगली से भी कर रही थी, मेरा ओर्गास्म नजदीक ही था. में एहसास कर रही थी की मेरी पूसी से कुछ तरल सा निकल रहा हे और मेरी साँसे रुक रुक कर आणि शुरू हो गयी थीं. और जब ओर्गास्म हुआ तो मेरी बॉडी अकड़ सी गयी और बहुत जोर के साथ एक प्रेस्सर सा रिलीज़ हुआ मेरी थ्रोब्बिंग पूसी से और मेरा पूसी जूस बहने लगा. मुझे लगा जैसे मेरी सुसु निकल गयी हो. यह बिलकुल नया था. पहले कभी अनुभव नहीं किया था. में पहले कभी यह नहीं जानती थी पर तब ओर्गास्म के बारे में जान गयी थी.



वो मुझे जब तक चाट टी रही जब तक की मेरी कंपकंपाहट ख़तम नहीं हुयी. वो उठी और मेरी ओर मुस्कुराकर बोली, "कैसा लगा जूही? चलो अब मेरी बारी...वैसे भी मेरी तुम्हारी तरह बालों वाली नहीं है". वो एक मिनट भी बर्बाद नहीं करना चाहती थी. मैंने उसकी पूसी चाटनी शुरू करदी जोकि चिकनी भी थी और गीली भी थी. जैसे जैसे उसने मेरी पूसी से किया था वो वो में भी कर रही थी, मैंने अपनी जीभ उसकी पूसी में डाल दी और उसकी पूसी काफी गीली हो चुकी थी क्योंकि वो काफी देर से इन्तजार भी कर रही थी. इसलिए उसे ओर्गास्म पर पहुँचने में ज्यादा समय नहीं लगा. मैंने अपनी tounge-fucking जारी रखी जब तक की वो ओर्गास्म पर नहीं पहुंची. उसका ओर्गास्म और भी ज्यादा पोवेर्फुल था क्योंकि उसे इस बात का पूरा पूरा अनुभव था की कब ओर्गास्म रिलीज़ करना है. और जब उसका क्लाइमेक्स हुआ तो मैंने एक शक्तिशाली ओर्गास्म होते हुए देखा, 'ओह किरण...में सोच भी नहीं सकती की यह सब इतना मजा देता है." मैंने उसे कहा.



उस रात सोने से पहले हमने दो बार फिर से यह किया। और यह मेरी जिंदगी का पहला सेक्स अनुभव था जो हमेश याद रहेगा. और इसी वजह से एक एक बात मुझे अच्छी तरह याद थी...

उस दिन किरण के साथ जो कुछ भी किया , उससे मैंने एक लड़की की जिंदगी के उस छिपे हुए पहलु को जान लिया था और अब जब भी कभी सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन होती तो मैं हस्तमैथुन कर लेती थी. तीन - चार महीने तक हम लोग साथ मिल कर इस तरह से अपने इस नए प्रयोग को अंजाम देते रहे. इससे आगे नहीं बड़े. पर अब हम एक दुसरे के प्रति और खुल गए थे.



अब बात करती उन दिनों की जब मैं हस्तमैथुन नियमित करती थी, पर सिर्फ उत्पन्न हुयी उत्तेजना शांत करने के लिए. अभी तक मैंने कोई पेनिस नहीं देखा था (मेरा मतलब मेरी उम्र के लड़कों का) पर अंदाज था की छोटे बच्चों के पेनिस से थोडा बड़ा ही होगा. किरण बताती थी की उसके भैया का पेनिस काफी बड़ा है, तो मैंने पुछा की तुझे कैसे पता? तो उसने बताया की उसकी लता भाभी में बताया बातों बातों में. अब मन मैं पेनिस को लेकर कई सवाल उठने लगे थे. और यह सवाल हल हुआ लगभग एक साल बाद, जब हम दोनों अपने स्कूल के एक फंक्शन की तयारी कर रहे थे. मैं रिहर्सल में किरण की हेल्प कर रही थी और हम लोग एक ड्रामा प्रेसेंट करने वाले थे. मुझे बहुत जोर से टॉयलेट लगी, हमारे स्कूल का टॉयलेट खेल के मैंदान की दूसरी और था और में वहां तक नहीं जाना चाह रही थी और किरण भी व्यस्त थी और वो भी नहीं जा रही थी साथ में. तभी किरण ने कृष्ण को मेरे साथ वहां तक जाने और वापस लाने को कहा और मैं उसके साथ चली गयी. वहां पहुंची तो पता चला की सारे टोइलेट्स भरे हुए थे. मुझसे रुका नहीं जा रहा था तो कृष्ण ने सुझाव दिया की मैं किसी खाली क्लास रूम में टॉयलेट कर सकती हूँ. मुझे आईडिया अच्छा लगा. हम तुंरत एक खाली क्लास रूम की और चले. और मैं क्लास रूम में अन्दर गयी और दरवाजा फेरते हुए बोली, 'मैं अभी आती हूँ, देखना कोई आये न..!'



वो बाहर ही रुक गया और में अन्दर एक कोने में आ कर अपने पायजामे की गाँठ खोलने लगी। मेरा टॉयलेट का प्रेस्सर बढता ही जा रहा था और घबराहट में मेरे से नारे की गाँठ भी नहीं खुल पा रही थी और जैसे ही नारे की गाँठ खुली मेने पायजामा नीचे किया और पैंटी नीचे घुटनों तक की और बैठने से पहले ही टॉयलेट करना चालू कर दिया. धार मेरी टांगों के बीच से होती हुयी फर्श पर गिरने लगी और कमरे में एक हलकी सी Sshhhhhhh..... की आवाज आने लगी, अभी तीन चार सेकेंड ही हुए थे की अचानक कृष्ण अन्दर आया और चिल्लाया ,'जल्दी जूही, पाठक मैडम आ रही हैं इस तरफ!'



मैं फर्श पर टॉयलेट करते हुए उसे गुस्से से देखती हुयी बोली, 'ये क्या कृष्ण ? तुम अन्दर क्यों आये...मैं टॉयलेट कर रही हूँ.' वो बोला,'मैं क्या करता ? बाहर रहता तो मैडम पूछती की यहाँ क्या कर रहे हो? तो मैं क्या जवाब देता ?' वो वास्तव मैं सही कह रहा था. मैं इस तरह बैठी थी की मेरी पीन्थ उसकी तरफ थी, मैंने काफी कोशिश की उससे अपने हिप्स छिपाने की पर वो मुझे शुशु करते देख चूका था. उसने दरवाजा अन्दर से बंद कर दिया था. मेने टॉयलेट कर लिया था और अब मैं यही सोच रही थी इसके सामने खड़े होकर पायजामा और पैंटी कैसे पहनू? पर मैंने हिम्मत की और कड़ी हुयी और जैसे ही खड़ी होकर अपनी पैंटी चडानी चाही तो मुझे कुछ पानी सा गिरने की आवाज आयी..तो मुड़कर देखा तो कृष्ण भी शुशु कर रहा था. पर जो देखा उसे देख कर मेरे हाथ पैंटी चडाना भूल गए. कृष्ण मेरे पीछे खड़े होकर एक और टॉयलेट कर रहा था. उसने अपने पेनिस को अपने हाथ में ले रखा था और उस में से शुशु निकल कर फर्श पर गिर रही थी. oh my god..पहली बार देखा था ऐसा....तो एक शोक सा लगा था, मेरी पैंटी मेरे घुटनों में थी और पयाजामी उससे भी नीचे.. सिर्फ कुर्ती थी जिसने मेरी पूसी को और मेरी जाँघों को ढाका हुआ था.



वो मेरे को देखता हुआ बोला, 'सॉरी जूही..मुझे भी लगी थी....तुम्हे बुरा तो नहीं लगा...प्लीज मुझे माफ़ कर देना...'

पर में तो एकटक उसके लिंग (पेनिस) को देखे जा रही थी. वो १५ साल का था उस समय और उसका पेनिस करीब ५ इंच का हो चूका था जिसे उसने अपनी पेंट की जिप में से बाहर निकाल रखा था. मैंने सिर्फ उस से यही पुछा उस समय, 'यह क्या इतना...ब.. बड़ा होता है..?'



और वो हस्ते हुए बोला,'वैसे तो छोटा ही रहता है, पर तुम्हे अभी जैसे देखा तो यह बड़ा हो गया!' मुझे यह बात उस समय बिलकुल समझ नहीं आयी. वो टॉयलेट कर चूका था और अपने लिंग को धीरे धीरे मल रहा था. मेरी पूसी भी गीली होने का एहसास देने लगी और तभी उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया. मेरे पूरे बदन में जैसे बिजली का करेंट लग गया. मेने उसके लिंग को पकडा और दबाया भी. उसका भी बुरा हाल हो गया. मेने वो चीज पहली बार हाथ में पकड़ी थी सो में उसे ऊपर नीचे आगे पीछे करने लगी और उसने मुझे अपने पास किया और अपने हाथ मेरे हिप्स पर रख दिए जो की अभी भी नंगे थे. उसने कुर्ती ऊपर की और मेरे हिप्स , मेरी जाँघों और आखिर में मेरी गीली हो चुकी पूसी पर पहुँच गया. हम एक दुसरे से कुछ भी नहीं बोल रहे थे. बस वो मेरी पूसी लिप्स को मसल रहा था, रगड़ रहा था, और में उसके लिंग को पकड़ कर जोर जोर से हिला रही थी...न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था की अभी उसका लिंग और बढता जा रहा है...वो एकदम पत्थर की तरह कठोर हो गया था...और मोटा भी...मेरे पूरा ध्यान उसी पर था...तभी उसकी उँगलियों ने मेरी क्लिटोरिस पर अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया, वो उसे बुरी तरह रगड़ रहा था और मेरी पूसी के लिप्स की दरार पर अपनी ऊँगली फिराता हुआ मेरी योनी के ऊपर से निकालता. उसके हर बार ऐसा करने पर मेरी योनी संकुचन ले रही थी और योवन रस बहे जा रहा था. मुझे ओर्गास्म की फीलिंग हुयी पर एक नए अंदाज मैं , आज एक लड़के ने ओर्गास्म दिया था. उसकी इन हरकतों से मुझे पता नहीं क्या हो गया , मेने उसके लिंग को और जोरों से हिलाना शुरू कर दिया और.....



एक राज और खुला, ........उसके लिंग ने एक जोरदार झटका लिया और एक सफ़ेद धार उसके लिंग से निकल कर सीधे मेरे हाथ में आ लगी...मैं जब तक कुछ समझ पाती तब तक.....दूसरी......तीसरी.....चौथी ....धार निकल गयी...और उसका मुह फटा हुआ था...उसका हाथ मेरी पूसी से हटा और उसने मेरा हाथ अपने लिंग से हटा दिया...



मेरी तो समझ में नहीं आया की यह हुआ क्या...और यह सफ़ेद सफ़ेद चिपचिपा क्या है? वो बस इतना बोला, 'जूही, ओह्ह तुमने यह क्या किया , में झड़ गया...!' मेने अपने कपडे ठीक किये ओर उसने भी, और ५ मिनट बाद हम बाहर आ गए। रास्ते में हम चुपचाप थे, उसने बस यही कहा की किसी को मत बताना की क्या हुआ था...



उस दिन किरण को पूरा शक हो गया था की मेरे ओर कृष्ण के बीच में कुछ तो हुआ है..उसने अपनी पूछताछ जारी रखी ओर आखिर वो ही जीती, मुझे उसे सब कुछ बताना पड़ा. ओर जब बात आयी उस सफ़ेद से द्रव्य की जो उसके लिंग से निकला था तो उसने बताया की उसे वीर्य कहते हैं ओर लिंग को योनी में डाला जाता है ओर फिर वीर्य अन्दर निकल जाता है तो बाद में बच्चे होते हैं...



में आश्चर्यकित थी...उसने बताया की उसने भैया ओर भाभी को सेक्स करते हुए देखा है...! बस उसने मेरी ज्ञान की प्यास ओर बड़ा दी. तब वो बोली, जब मौका मिला तो वो मुझे भी देखने के लिए बुला लेगी.

करीब ढेड साल बाद वो मौका आया..... मैं करीब १६ साल की हो गयी थी ओर मेरा योवन पहले से भी ज्यादा निखर गया था. किरण के भैया मर्चेंट नेवी में थे ओर एक साल के बाद लौटे थे. किरण को पूरा विश्वास था की अब उनकी सेक्स लाइफ फिर से चल पड़ेगी. सो उसने एक दिन फिर से मुझे अपने घर बुला लिया. उसका ओर उसके भैया का कमरा अगल बगल में था. बीच में एक छोटी से संध थी जहाँ से दीवार का प्लास्टर उखड गया था ओर वहां किरण ने छेद कर रखे थे. जिसमे से वो समय समय पर उनके कमरे में झांकती आयी थी.



हम लोग किरण के कमरे में पढ़ रहे थे (या पढने का नाटक कर रहे थे), रात को करीब १० बजे उनके कमरे के दरवाजे बंद हो गए तो हम समझ गए की वो लोग कमरे में आ चुके हैं. हम लोग छेदों के रास्ते उनके कमरे में झाँकने लगे, मेरे स्तन ओर उनके निप्पलस पहले से ही उतेजना में थे. रवि (किरण का भाई) ने लता (भाभी) को किस किया , दोनों खड़े हुए थे ओर एक दुसरे को बाहों में भर रखा था. भाभी ने पता नहीं क्या इशारा किया रवि को, रवि ने उसे गोद में उठाया ओर पलंग पर लिटा दिया. मुह पर चुम्बन करते हुए रवि के हाथ लता के स्तनों पर चलने लगे. ओर लता के हाथ रवि भैया की जाँघों के बीच उनके लिंग को टटोलने लगे. ओर हमारे देखते देखते दोनों ने अपने सारे कपडे उतार डाले. लता नंगी होकर बड़ी सेक्सी लग रही थी. वो वास्तव मैं बहुत कामुक लग रही थी . उसके गोल गोल स्तन हम दोनों से तो बहुत बड़े थे ओर भैया के हाथो में पूरे भी नहीं आ रहे थे. उनके नितम्ब भी चौडे थे. जांघें भी चिकनी ओर सुडोल थी. उनकी पूसी पर बाल भी थे ओर भैया की उंगलियाँ उनको सुलझाने में लगी थी.



सबसे ज्यादा ताज्जुब जब हुआ जब किरण के भाई हमारी वाली दीवार की ओर थोडा मुदे तो मेने एक पुरुष का पूर्ण उत्तेजित लिंग देखा. करीब ७ इंच लम्बा ओर ३ इंच गोलाई वाला...एकदम खडा हुआ... मेरी पूसी तर हो गयी थी ओर किरण के हाथ मेरे हिप्स पर चल रहे थे ओर में अपने निप्पलस को दबा रही थी.

लता ने भैया का लिंग अपने हाथ में लिया ओर सहलाने लगी, ऐसे में भैया ने भाभी के कान में कुछ कहा ओर पलंग पर लेट गए. उनका लिंग तना हुआ था. लता बैठ गयी ओर लिंग की खाल पीछे की ओर की ओर लिंग के मुंड को अपने मुह में दबा लिया....



उफ़. एक ओर रहस्य खुल गया मेरी जिन्दगी की किताब में, में चौंकी ओर किरण से बोली, 'यह भाभी क्या कर रही हैं? तुमने तो कहा था की लिंग योनी में डाला जाता है, पर भाभी तो मुह में ले रही हैं..?'. वो हस्ते हुए बोली, 'पागल, वो बस मुह से मजे दे रही है... तू देख तो सही..'



लता भाभी पूरे मजे से उनके लिंग को चूस रही थीं. ऊपर से नीचे तक. ओर हर बार भैया अपने हिप्स ऊपर उठाकर ऐसा करते थे जैसे की पूरा लिंग उनके मुह में अन्दर तक डालना चाह रहे हों. लता भाभी ने अपने सर को उअप्र नीचे करते हुए भैया का लिंग अपने मुह से अन्दर बाहर करने लगीं.



कुछ देर बाद भाभी लेट गईं ओर उनकी चौडी की गयी झांघों के बीच भैया आ गए. भाभी ने थोडी सी अपनी झांघे उठाई तो मुझे उनकी भी पूसी दिखाई दी, एकदम गीली ओर सुन्दर. भैया ने एक हाथ में अपना लिंग पकडा ओर उनकी पूसी पर रगड़ने लगे. भाभी के भी कुल्हे हिलने लगे, ओर १-२ मिनट तक यही चलता रहा, भैया ओर भाभी के कुल्हे एक धुन में चल रहे थे, ओर शायद भाभी से जब रहा नहीं गया तो उन्होंने एक हाथ से भैया का लिंग पकडा ओर अपनी पूसी की ओर खींचा.उन्होंने लिंग के मुंड को अपनी योनी के द्वार पर रखा ओर भैया ने एक झटका सा दिया ओर उनकी गहरायी में चले गए. मुझे लगा की यह क्या हुआ, एक बॉय का लिंग लड़की की पूसी में अन्दर चला गया...wow..!!



भाभी ने अपनी टांगों से भैया के कुलहो को जकड लिया था. उनके कुल्हे आगे पीछे होने लगे जिससे लिंग अन्दर जाता ओर फिर बाहर आ जाता. भैया धक्के नहीं लगा रहे थे सो भाभी ने उनके हिप्स पर अपने हाथ रखे ओर अपनी सहूलियत से ढकी लगवाने लगी. तब भैया ने दस बारह झटके देते हुए अन्दर बाहर करना शुरू किया..



इधर किरण ने अपनी पैंटी भी उतार ली थी ओर बुरी तरह हस्तमैथुन कर रही थी जबकि मैं सिर्फ भैया ओर भाभी के क्रिया कलापों पर व्यस्त थी हाँ मेरे हाथ जरूर मेरे स्तन ओर मेरी पूसी पर व्यस्त थे.



भैया ने भी अब धक्के लगाने शुरू कर दिया थे ओर किरण बोलती थी की इसे चौदना कहता हैं ओर भाभी इस समय भैया से चुद रही हैं. भैया कभी कभी अपना पूरा लिंग बाहर निकाल लेते थे ओर फिर अन्दर डालते थे, इस दौरान मुझे उनके लिंग पर भाभी का जूस ओर भाभी की गुलाबी योनी, सब दिख रहा था. साथ ही जब भैया का गीला लिंग उनकी गीली योनी में फिर से घुसता था तो धप धप की आवाज भी आ रही थी. भाभी की योनी ओर भैया का लिंग योवन रस से तर बतर हो चुके थे.



धीरे धीरे धक्के की रफ़्तार बढ गयी थी ओर फिर वो जैसे एक दुसरे से लड़ रहे हों ऐसे धक्के लगाने लगे, एक नीचे की ओर धक्का लगता तो दूसरा ऊपर की ओर, ओर फिर पता नहीं क्या हुआ, दोनों शांत हो गए, भाभी की टाँगे ऊपर की ओर उठी ओर कांपने लगीं. ओर उनके कुल्हे हिल रहे थे जैसे की कुछ ओर मांग रहे हों.



कुछ देर बाद भैया उठे तो मेने देखा की उनका लिंग एकदम नरम सा हो गया है ओर बस तीन चार इंच का जो लग रहा था. मेरे लिए यह सब आश्चर्य कर देने वाला था.

अपनी जिन्दगी का सबसे पहला रियल सेक्स देखते देखते मैं इतनी गीली हो गयी थी की मेरी जाँघों तक गीलापन महसूस कर पा रही थी. जैसे ही रवि भैया और लता भाभी एक दुसरे को बाहों में लेकर लेते, हम लोगों ने छेड़ से देखना बंद करके अपनी अपनी पूसी की और देखा, किरण तो अपने पूसी लिप्स को मसले जा रही थी और मेरी पूसी मारे उत्तेजना के सूज सी गयी थी. पहली बार उसमे इतना रक्त संचार हुआ था की क्या बताऊँ?



अब बारी थी एक दुसरे को शांत करने की. मैंने किरण की हथेलियाँ लीं और अपने बूब्स पर रख दी, और मैंने अपने हाथ उसके बूब्स पर रख दिए. हम एक दुसरे के स्तनों को दवाने लगे , मसलने लगे. मैंने उसके एक निप्पल को धीरे से अपने लिप्स से किस किया और उत्तेजना वश उसे मुह में लेके चूसने लगी. मेने उसे धक्का मार कर पीछे की और लिटा दिया और मेरी जीभ सीधे उसकी क्लिटोरिस पर पहुँच गयी, और जैसे जैसे में उसकी क्लिटोरिस को अपनी जीभ से छूती तो वो सिहर जाती और अपनी कमर को और ऊपर उठा देती. वो बहुत देर से उत्तेजित थी इसलिय ज्यादा रुक ना पाई और अपने मुह पर हाथ रख लिया क्योंकि वो ओर्गास्म पर पहुँच गयी थी और उसके मुह से आवाज निकल सकती थी.



उधर उसकी उंगलियाँ मेरी पूसी की शुरुआत में भगांकुर (क्लिटोरिस) पर दनादन चल रही थी, मेरी सूजी हुयी पूसी जैसे आग उगल रही थी. वो ऊँगली अन्दर तो दाल नहीं सकती थी पर आज उसने मेरे लिप्स को अपनी उँगलियों से ऐसे रगडा की मेरी जान निकल रही थी. और दो मिनट बाद में बोल रही थी, 'जल्दी ...जल्दी कर किरण , मैं आ रही हूँ..!'



और फिर एक लहर सी आयी मेरे शरीर में, और ओर्गास्म के समन्दर में गोते लगते हुए मैं जमीन पर गिर पडी. करीब पंद्रह मिनट तक हम हिल भी न पाए और उसके बाद जाकर पलंग पर लेट गए. उसके बाद इतनी अछि नींद आयी की सीधे सुबह ही आँख खुली.


उस दिन के बाद फिर से दो तीन बाद ऐसा मौका फिर से मिला और हर बार उन दोनों को सेक्स करते हुए देखने के बाद हम एक दुसरे को शांत करके सो जाते थे. एक महीने तक ऐसा ही चलता रहा, पर एक दिन मैंने सोचा की हस्तमैथुन करने के लिए मैं किरण पर क्यों निर्भर हूँ, में खुद भी तो कभी कभी कर सकती हूँ.



सो मैंने अपने आप हस्तमैथुन करने का भी सोचा. पर समस्या यह थी की कहाँ करून? क्योंकि घर पर दो कमरे थे, एक मैं मम्मी और पापा रहते थे और दुसरे में हम तीनो बहिने रहती थी. और रात में सोते समय तो बिलकुल नहीं कर सकती थी. फिर कहाँ करूँ, यही सब सोचते सोचते काफी दिन निकल गए और फिर एक्साम भी आ गए थे. किरण भी व्यस्त हो गयी थी.



गर्मी की छुट्टियाँ हुईं. हम लोग अब थोड़े फ्री थे. एक दिन घर पर लता भाभी आईं और उन्हें देखकर पुरानी बातें फिर से याद आ गयीं और फिर से मन हुआ की काफी दिन से हस्तमैथुन भी छूटा हुआ था एक्साम की वजह से. पर समस्या अभी भी वही थी की हस्तमैथुन इतना खुल कर कहाँ किया जाएँ? अब में किरण से भी ज्यादा मिक्स नहीं होना चाहती थी. और मेरी समस्या का हल मिल गया मेरे को....वो ऐसे की एक दिन सोते समय मैंने अपनी जांघों के बीच तकिया लगा लिया, बस फिर क्या था मुझे अपनी पूसी पर तकिये का दवाब बड़ा अच्छा लगा. मैंने चुपचाप बाथ रूम में जाकर अपनी पैंटी उतार कर वाशिंग मशीन में डाल दी और वापस आकर अपनी स्कर्ट के अन्दर तकिया लगा कर लेट गयी. और फिर जब सोने से लगे तो में तकिये के किनारे को पानी पूसी के लिप्स पर जोरों से रगड़ने लगी. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. लग रहा था जो जैसे मैं किसी के साथ सेक्स कर रही हूँ.



लगभग १० मिनट तक मैं ऐसी ही करती रही और बीच बीच में अपनी क्लिटोरिस को भी छेड़ देती तो उत्तेजना और बड़ जाती थी. और उसके बाद मेरी पूसी ने पानी निकालना शुरू किया तो में मारे उत्तेजना के भूल ही गयी जो तकिया खराब हो जायेगा...और वही हुआ.. तकिया का एक किनारा मेरी पूसी से निकले जूस से भीग गया. मुझे जब होश आया जब मैं ओर्गास्म से बाहर आयी और जाघों के बीच तकिया गीला लगा.



अगले दिन सुबह उठते ही मैंने तकिया का कवर उतार डाला और उसे वशं मशीन से धो भी दिया, पर यह तरीका भी खतरे का लगा। और मैं फिर कोई और तरीका खोजने लगी.



मैं सोलह साल की हो चुकी थी. और मेरे प्रयोग जारी थे.. एक दिन में टीवी देख रही थी और उस पर कोई सुहागरात का सीन आया जिसे देख कर मुझे रवि भैया और लता भाभी का सीन याद आ गया. फिर रात में जब मैं पड़ने के लिए चेयर पर बैठी थी और दीदी और छोटी बहिन सो गयी थी थी मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी पैंटी गीली हो गयी है (वो पहला दिन था जब मेरा पूसी जूस बिना मेरे हाथ लगाये बाहर आ गया था). मैंने अपनी पूसी को अपनी स्कर्ट में हाथ डाल कर छू कर देखा तो पाया की वो वहां गीली हो चुकी थी. और मेरी उँगलियों के स्पर्श ने और आग लगा दी, मेरी उंगलियाँ अपने आप चलने लगी और मैं अपनी गीली पैंटी से ही हस्तमैथुन करने लगी. और पता नहीं क्या हुआ , आप विश्वास नहीं करोगे, की सिर्फ दस सेकेंड्स में मुझे चरमउत्कर्ष (ओर्गास्म) की अनुभूति हो गयी और वो भी बहुत ज्यादा.



कुछ दिनों में ही यह मेरी आदत में आ गया. गीली पैंटी के साथ साथ में ऊँगली से अपनी क्लिटोरिस को रगड़ती थी और ओर्गास्म पर पहुँच जाती थी. और जब मेरी पूसी से जूस अगर नहीं भी आ रहा होता था तो मैं थोडा सा आयल ही लगा लेती थी. या पानी भी प्रयोग किया. मैं एक दिन में तीन तीन बार हस्तमैथुन करने लगी.



फिर एक दिन शाम को जब मैं नहाने के लिए बाथ रूम में गयी तो मैंने बात तब में पानी भरना शुरू करा और अपनी पूसी को पैंटी से ही रगड़ना शुरू किया तभी दिमाग मैं एक आईडिया आ गया और मैं पानी से भरे तब में बैठ गयी , दोनों टाँगे तब के किनारों पर रख कर फैला दीं. मेरी पैंटी पानी से भीग गयी थी और मेने अपनी पूसी को उँगलियों से रगड़ना शुरू कर दिया. मुझे कभी इतना अच्छा नहीं लगा था. और कुछ ही देर में मैं ओर्गास्म पर आ गयी. और पानी में लेट गयी. कुछ देर बाद जब होश आया तो देखा की पैंटी पर अन्दर की और कुछ चिपचिपा सा लगा है तो मैंने अपनी पैंटी भी धो डाली.



बाद में दीदी ने पूछा तो मैंने कह दिया की दीदी आज से में अपने अंडर गारमेंट्स खुद धो लिया करुँगी और जिसके जवाब में दीदी ने कहा की 'वाह, जूही तो बड़ी हो गयी है.'



इसके बाद मैं हमेशा पैंटी पहिन कर बात तुब मैं हस्तमैथुन करती थी और फिर पैंटी को धो कर सुखा देती थी। पैंटी पहिने पहिने हस्तमैथुन करते हुए एक अलग ही फीलिंग होती थी.

जब मैंने किरण को अपने इन प्रयोगों के बारें में बताया तो उसने मुझे एक - दो किताबें दीं जिसमे बड़ी सेक्सी सेक्सी कहानियाँ और तसवीरें भी थी. वो किताबें उसके भैया लता भाभी के लिए लाये थे और उसने लता भाभी से लीं थी. मैं उन्हें अपने स्कूल बैग में रख कर घर ले आयी. और छुपा कर रख दीं. अब मैं दिन मैं दो दो बार नहाने जाती थी और कपडों में वो किताब भी छुपा कर ले जाने लगी. मैं बात रूम मैं जाकर किताबें पड़ती और सेक्सुअल उत्तेजना में डूब आकार हस्तमैथुन करती.

पापा का ट्रान्सफर जयपुर हो गया था तो हम सारे लोग जयपुर शिफ्ट हो गए थे और मेरी एक अच्छी दोस्त किरण पीछे रह गयी. नए शहर में आकर हम तीनो बहिन आपस में ज्यादा खुल गईं और जैसे हम लोग अपनी दोस्तों से बातें करते थे वैसे ही आपस में करने लगे.



मेरी दीदी मेरे से चार साल बड़ी थीं और एनआयीआईटी से कंप्यूटर का कोर्स भी ज्वाइन कर लिया था कॉलेज के साथ साथ.मैं १२ क्लास में आ गयी थी और छोटी बहिन १० में पड़ रही थी. और पता नहीं भगवान् ने मेरी किस्मत में और क्या क्या लिखा था. मैं अब लगभग रोजाना ही हस्तमैथुन वगेरह करती थी, पर कोई भी ऐसी चीज उसे नहीं करती थी जिससे की मेरी कौमार्य झिल्ली को कोई नुक्सान पहुंचे. यहाँ जयपुर में हमारे स्कूल में लड़के और लडकियां एक साथ ही पड़ते थे मेरा मतलब स्कूल को एड था. स्कूल का नाम तो नहीं बता सकती पर इतना बता सकती हूँ की स्कूल सी स्कीम में था और काफी नामी कॉन्वेंट स्कूल है. वहां मेरी एक और सहेली बनी जिसका नाम है नेहा. हमारे पुराने शहर और जयपुर में इतना अंतर था की वहां सब चीजे छुप छुप कर होती थीं और यहाँ खुलकर होती थीं. हर लड़की का एक बॉय फ्रेंड होना जरूरी था नहीं तो उसे बहनजी बोला जाता था. सारी लडकियां सेक्स और उनसे जुड़े हर पहलु के बारे में सबकुछ जानती थी या यह कहलो की पूरा encyclopedia थीं. बाद में और भी बहुत कुछ पता चला सभी लड़कियों के बारें में...वो बाद में बताउंगी. नेहा से दोस्ती भी इसलिए ही हो गयी थी की वो हमारे घर के पास ही रहती थी. और मेरी और उसकी काफी अच्छी पाटने लगी थी. तीन चार महीने में हम लोग आपस में जब खूब खुल गए थे तो मैंने उस से अपनी पुराने बिताये पल (किरण के साथ) बताये, तो उसने बोला की यह तो आम बात है...तुम ने अपने घर में किया था, यहाँ तो लडकियां रूम्स ले लेकर करती हैं, और तो और स्कूल के टोइलेट्स में भी कर लेती हैं.



उसका बॉय फ्रेंड भी था, पर वो लोग अभी ज्यादा आगे नहीं बड़े थे। नेहा कहती थी की मैं उसे अभी और अच्छी तरह से समझना चाहती हूँ. नेहा अपने भाई के साथ रूम लेकर रहती थी. वो वैसे चित्तोर की रहने वाली थी पर जयपुर में पढाई की वजह से आकर रह रही थी. उसका भाई एक सॉफ्टवेर कंपनी में काम करता था. कभी कभी स्कूल से मैं सीधे उसके रूम पर जाती थी तो हम लोग उसके कंप्यूटर पर पॉर्न साईट खोल लेते थे. और फिर उसे देखते देखते हस्तमैथुन करते थे. उसके बाद कंप्यूटर से सारी हिस्ट्री साफ़ कर देते थे, जिससे की उसके भाई को कुछ पता न चले. तब हम देसीबाबा.कॉम साईट देखा करते थे, पर अधिकतर साईट पर नंगी लडकियां की ज्यादा दिखाई देती थीं, जबकि हम तो लड़कों के उस ख़ास अंग को ओनके मांसल शरीर को देखने के ज्यादा इच्छुक होते थे. चित्रों में हमने खूब देखा की कैसे कैसे लिंग होते हैं पर कृष्ण के अलावा अभी तक किसी का रियल में नहीं देख पायी थी. उस समय हम छोटे भी थे और उसका भी ज्यादा विकसित नहीं था, पर अब तो हमारी आगे ग्रुप में काफी अच्छी खासी उम्र के लड़के भी थे और मुझे भी एक बॉय फ्रेंड बनाने का प्रेस्सर था नहीं तो मैं भी बहिन जी की श्रेणी में आने वाली थी. जय और नेहा बहुत अच्छे फ्रेंड बन चुके थे. अधिकतर समय साथ गुजारने लगे थे पर मुझे भी अधिकतर अपने साथ ही रख ते थे. धीरे धीरे हम तीनो ही आपस में खुलने लगे थे.

दो तीन के लिए मैं छुट्टियों पर बाहर गयी तो यहाँ हालत ही बदल गए. नेहा और जय इतने करीब आ गए और एक दुसरे को प्यार करने लगे की वो एक दुसरे के प्रति समर्पित हो जाना चाहते थे. नेहा ने मुझे अकेले में कैंटीन में लेजाकर बताया की जय और हम बहुत नजदीक आ चुके हैं और वो मुझे मूवी दिखने ले गया था जहाँ मैं उसके साथ कुछ हद तक फिजिकल हो गयी थे. यह सुनते ही मैं सन्न रह गयी. मैं उसको बोली, 'बेवकूफ, जैसे ही मैं क्या गयी, तुम लोग चालू हो गए. अच्छा फायदा उठाया तुमने मेरे जाने का.'



वो हंसने लगी और बोली की पता भी है क्या हुआ...अगर मेरी जगह तू होती तो तू भी वही करती जो मैंने किया...मैंने उसे पूछा की ऐसा क्या किया...तब उसने बताया...


सने बताया की वो लोग जिस्म मूवी देखने गए थे और मूवी देखते समय जय अपने सीने पर हाथ बाँध कर बैठा था और उसी दौरान उसकी हथेलियाँ मेरे बायें स्तन के साइड में आकर टकरा रही थीं, पर वो धीरे धीरे उसे छूने की कोशिश कर रहा था और मुझे इस चोरी छिपे एक्ट में मजा भी आ रहा था. जब मैंने उसे मुस्कुराकर देखा तो उसका भी साहस बढ गया और उसने मेरे बायें स्तन को टी शर्ट के ऊपर से अपनी हथेलियों में भर लिया और मसाज़ सी देने लगा. मन तो करा की उससे लिपट जाऊं पर वो सिनेमा हाल था न..उसने अपने दाएं हाथ से बारी बारी दोनों स्तनों की छुआ और महसूस किया. इसके बाद बदले मैं उसने मेरे बायाँ हाथ अपनी पेंट की जिप के पास रखा....और oh my god..वहां उसका पेनिस एक दम सख्त हो रखा था....यार..! मैं उसे पेंट के ऊपर से ही छुआ और दबाया...ज्यादा कुछ नहीं कर पाए...पर उसने मुझे किस भी किया...और घर पर छोड़ते समय उसने मेरे से कहा कि He wants to loose his virginity with me! बस सही मौके कि तलाश है..!



यह सब सुनकर मेरी आँखें फटी कि फटी रह गईं। मैंने उसे विस्मेयता से पुछा, 'क्या तेने जय का देखा॥? कैसा है...कितना बड़ा है...?', वो मेरे इस सवाल को सुनकर जोर जोर से हंसने लगी और बोली, 'जूही तू तो पागल है...तेरे पर मुझे दया आती है, अरे तू भी कोई अच्छा सा लड़का ढूँढ ले और अपना बॉय फ्रेंड बना ले नहीं तो...बस..ऐसी ही सवाल पूछती रह जायेगी.'



और भगवान् ने मेरी जिन्दगी में एक और घटना लिखी हुयी थी, और वो होनी थी...सो वो दिन ऐसे आया कि, हमारे इन्टरनल एक्साम चल रहे थे और मेरी दीदी कि शादी कि बातें चल रही थी. मम्मी, पापा और दीदी और मेरी छोटी बहिन सभी लड़के वालों के जाने वाले थे.मेरे एक्साम थे सो मैं घर पर ही रुकने वाली थी, अब क्योंकि घर पर अकेले रुकने का सवाल था सो मेने मम्मी को बोला कि मैं और नेहा साथ ही रहेंगे. मम्मी आश्वस्त होकर चली गयीं, वैसे भी एक दिन कि ही बात थी.



मेने नेहा से पुछा भी नहीं था कि वो मेरे साथ रुक लेगी या नहीं...पर मेने मम्मी को बोल दिया था. मेने स्कूल में नेहा को जाकर अपना विचार बताया. मैंने उसे बताया कि मेरे घर पर कोई नहीं होगा तो वो एकदम से खुश हो गयी..क्योंकि वो लोग तो काफी दिन से इसी तरह का मौका ढूँढ रहे थे. नेहा के रूम पर यह मुमकिन नहीं था क्योंकि उसके मकान मालिक निगाह रखते थे. पर हमारा तो सरकारी क्वार्टर था और उसमे दो कमरे थे. उसने पूछा कि क्या जय वहां मेरे से मिलने आ सकता है? तो मेने उसे कहा,' हाँ हाँ, हीर रांझा आपस में मिल सकते हैं पर ज्यादा देर नहीं...ओके... मैं दुसरे कमरे में रहूंगी और तुम लोगो को डिस्टर्ब नहीं करुँगी. उसने जय को मिलकर सारी बात बताई और वो भी राजी हो गया और नेहा मेरे को दोपहर को चार बजे करीब आने के लिए बोलकर चली गयी.



मैं घर पर आ गयी और काम वाली के आने पर उसको बोला कि शाम को मत आना, मैं खुद कर लूंगी बर्तन वगेरह. तीन बजे वो भी चली गयी. शाम को चार बजे नेहा भी घर आ गयी, वो एक बैग भी लाई थी और उसके भैया उसे छोड़ने आये थे. उनको चाय नास्ता भी कराया और फिर वो चले गए. हम लोग अपना होम्वोर्क करने बैठ गए...मुझे नहीं पता थी कि नेहा के दिमाग में एक बड़ी प्लानिंग चल रही थी. उसने अचानक ही मेरे से पुछा...'जूही एक बात पूछूं...अगर मैं और जय थोडा सा समय अकेले में बिताना चाहे तो तुम्हे कोई हर्ज तो नहीं...? तुम समझ रही हो न मैं क्या कहना चाह रही हूँ?"



मैं समझ गयी कि वो दोनों क्या करना चाहते हैं...पर मुझे क्या दिक्कत थी...मैंने मन में सोचा कि क्यों न इनको बाहर वाले कमरे में थोडी देर के लिए छोड़ दूंगी और खुद अन्दर वाले कमरे में रहूंगी, और अगर चाहूँ तो वहां से उन्हें सब कुछ करते हुए देख भी सकती हूँ, क्योंकि दोनों कमरों के बीच एक खिड़की थी जिस पर एक कपडे का पर्दा था. जो मैं कभी भी हटा सकती थी. पर अगर मैं बाहर वाले कमरे में रहती हूँ तो परदे पर कण्ट्रोल अन्दर वाले कमरे में बैठे व्यक्ति पर होता...मैं अपनी चतुराई पर मन ही मन खुश हो गयी.



हम दोनों ने मिलकर जय और नेहा कि डेटिंग के लिए कुछ डिश तयार कीं. और शाम को छ बजे वो आ गया. एक दो घंटे तक हम लोगों ने खूब बातें करी और करीब आठ बजे जब जय ने जाने के लिए बोला तो नेहा ने मेरे से कुछ देर के लिए उन्हें एकांत में छोड़ देने के लिए कहा. मैंने उन्हें बाहर वाले कमरे में छोडा और अन्दर आकर पलंग पर बैठ गयी.



बाहर का कुछ सुनायी नहीं दे रहा था.बस हलकी हलकी फुस्पुसाहत आ रही थी.. मैंने धीरे से पर्दा एक साइड से हटाया तो देखा दोनों एक दुसरे को चूम रहे थे. अभी कुछ और होता कि इससे पहले घर कि लाईट चली गयी. नेहा ने मुझे आवाज दी सो मैं वापस बाहर रूम में आ गयी. जय ने अपने मोबाइल से रौशनी कि और मैं बाहर गयी देखने कि लाईट क्यों गयी है. तो पता चला कि फ्यूज उड़ गया है. मुझे यह सब नहीं आता था पर जय ने फ्यूज सही कर दिया. तब मौका देखकर नेहा ने सवाल दागा..'जूही, क्यों न जय हमारे साथ ही रुक जाय यहाँ...किसी को पता नहीं चलेगा...और हमें डर भी नहीं लगेगा..बोलो..'



मैं उसे यह बोलते देख सोचने लगी॥वाह, नेहा और जय क्या प्लानिंग के साथ आये हैं..! मैं राजी हो गयी क्योंकि मैं भी उन लोगो को वो सब करते हुए देखना चाहती थी...थोडा थोडा मन मेरा भी पापी हो रहा था...! मैंने जय को मैन गेट से जाने के लिए कहा सो अगर किसी पडोसी ने देखा है तो वो उसे जाते हुए देख लें। और उसे पीछे के दरवाजे से आने को कहा. वो चला गया और करीब पंद्रह मिनट बाद पीछे के दरवाजे से अन्दर आ गया.

हमने साथ खाना खाया और थोडी देर टीवी देखा और उसके बाद बाहर वाले कमरे में एक फोल्डिंग बिछाकर जय का बिस्तर लगा दिया. उसे वहां छोड़कर मैं और नेहा अन्दर वाले कमरे में आ गए. हम लोग पलंग पर बैठ कर एक दुसरे के साथ मस्ती करने लगे और उधर जय हमें चिडाने के लिए गाने गुनगुनाने लगा. हम लोग अपने कमरों में ही रहकर एक दुसरे से मस्ती मजाक कर रहे थे. पर नेहा का मन मेरे पास नहीं लग रहा था और उसने पहला बहाना ढूंडा कि वो जय को गुड night किस करने जा रही है. वो जय वाले रूम में गयी. उसने वहां जाकर जय के माथे पर गुड नाईट किस किया और जय फुस्पुसाया , प्लीज नेहा...यही आ जाओ...न..!' ऐसा करते हुए उसने नेहा कि स्कर्ट में हाथ फेरते हुए अन्दर उसके जाँघों तक हाथ फेराया. वो धत्त कहती हुयी वापस मेरे वाले कमरे में आ गयी.



थोडी देर बाद हम लोग सोने लगे और सब शांत थे. मेरी आँखों में नींद नहीं थी, मुझे पता था कि कुछ न कुछ तो जरूर करेंगे ये दोनों...और वही हुआ ....करीब आधे घंटे बाद नेहा चुपचाप उठी और जय वाले रूम में गयी. उसके जाने के बाद मेने पर्दा हटाया और वहीँ से सब देखने लगी...



जय पलंग पर था और एक चादर ओड़ रखी थी. वो अपने हाथों से अपनी जाघों के बीच उठे उभार को छिपाने कि कोशिश कर रहा था. नेहा पूछ रही थी, 'यह क्या कर रहे थे...यू नौटी बॉय.' और जय कुछ बोल नहीं पा रहा था. हुआ यूँ था कि हम दोनों को सोता हुआ जानकार जय ने सोचा कि उसका रुकना बेकार रहा और वो अपने लिंग से खेल रहा था, मेरा मतलब हस्तमैथुन कर रहा था और उसी वक़्त नेहा उस रूम में पहुँच गयी और उसे हस्तमैथुन करते हुए देख लिया.



'इट्स ओके जय...यह एक नोर्मल चीज है...हम सभी करते हैं...तुम इतना शर्मा क्यों रहे हो॥? उस दिन हाल में तो बड़े शेर बन रहे थे...', नेहा ने उससे बोला, 'अच्छा अब सच सच बताना..तुम मेरे बारे में सोचते हुए ही हस्तमैथुन कर रहे थे न?'। 'हाँ...नेहा...में हर रात तुम्हारे बारे में सोचते हुए ही करता हूँ... तुम बहुत हॉट और कामुक हो..!' जय ने जवाब दिया.

अच्छा, तुम मेरे बारे में सोचते हुए जब करते हो तो किस बारे में सोचते हो , बताओ न..' नेहा ने उससे पूछा. वो बोला,' मैं तुम्हारे स्तन और हिप्स के बारे में सोचता हूँ'. 'बस...और मेरी पूसी के बारे में...उसके बारे में नहीं सोचते?', नेहा ने फिर पूछा. 'मैंने कभी देखी ही नहीं तुम्हारी पूसी', उसने जवाब दिया तो नेहा ने फिर कहा,'ओके जय, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, मैं तुम्हे अपनी पूसी देखने भी दूंगी, पर पहले मुझे बताओ की क्या तुमने पहले किसी लड़की को सेक्स किया है...आयी मीन आर यू अ वर्जिन बॉय?'. 'नहीं मैंने आज तक किसी लड़की के साथ सेक्स नहीं किया है..' , जय ने जवाब दिया.



मैंने परदे को और थोडा हटा दिया जिससे की वहां हो रही हर हरकत को साफ़ तरह से देख सकूँ. नेहा आगे बड़ी और और उसकी चादर हटा दी और सामने जय का उत्तेजित लिंग था..wow...आज मैं एक और उत्तेजित रियल लिंग देख रही थी. करीब छ इंच लम्बा और ढाई इंच गोलाई लिए लिंग को जय ने अपने हाथ में ले रखा था. 'हे भगवान्, कितना बड़ा है जय तुम्हारा..!! मैं पहली बार देख रही हूँ...' नेहा आश्चर्य से उसके लिंग को देख कर बोल रही थी. 'लाओ मैं तुम्हारे लिए इसे मसाज़ कर देती हूँ. मुझे तुम्हारा लिंग बहुत अच्छा लगा.'



उसने उसके लिंग को हाथों में पकडा और धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू कर दिया। वो बीच बीच में उसे देखते हुए लिंग के बड़े नजदीक चली जा रही थी.

और जो मैं सोच रही थी वाही हुआ, वो धीरे से आगे बड़ी और अपना मुह थोडा सा नीचे किया, अपने होंठ खोले और अपनी जीभ से उसके लिंग को छू दिया. उसका लिंग सिहरन देने लगा. और धीरे से उसे अपने मुह में उसे दबा लिया. जय के मुह से आह निकल पड़ी. 'क्या तुम्हे अच्छा लगेगा अगर मैं इसे चूसूं?', नेहा ने उससे पूछा. 'हाँ...खूब जोर से चूसो...फिर मैं तुम्हे चौदना चाहता हूँ....प्लीज नेहा आज मना मत कर देना...आज के बाद यह मौका शायद ही मिले..', जय ने जवाब दिया. 'ओके..ओके जय...पहले मैं मुह से कर दूं, फिर तुम मेरी पूसी में डाल देना.'



और इसके बाद नेहा ने फिर से उसका लिंग मुह में लिया और बुरी तरह से चूसना शुरू कर दिया. मैं देख पा रही थी की उसका लिंग उसके मुह में आते जाते कांप रहा था. तभी जय बोला, 'ओह्ह... नेहा..मेरा निकलने वाला है..'. नेहा ने यह सुनते ही उसके लिंग के सिर्फ उपरी भाग को अपने मुह में लिया और अन्दर बाहर करने लगी. वो मुह से उसे ऐसे चूस रही थी जैसे की गाय का बच्चा दूध पीता है. उनको यह सब करते हुए मैं उत्तेजित होने लगी और मैंने अपनी चादर के अन्दर मेरी पैंटी उतार डाली, अब तक जय को मजा आने लगा था वो नेहा का सर पकड़ कर अपने लिंग पर अपने हिसाब से दवाब डलवा रहा था. उसने एक दम से नेहा को पीछे की और धकेलना चाह और उससे पहले की वो अपने मुह में से उसका लिंग पूरी तरह से बाहर निकाल पति, जय के लिंग ने वीर्य की धार मारनी शुरू करदी, सफ़ेद सफ़ेद वीर्य उसके होंठों और ठुड्डी पर जाकर लगा. बड़ा ही सेक्सी सीन था. मेरी पूसी गीली हो चुकी थी. और उसका लिंग नरम पड़ गया था. वो उठी और अपनी टी शर्ट उतार दी और उससे अपना मुह और ठुड्डी पोंछ ने लगी. और बोली,'थेंक यू जय...तुम बहुत सारा निकालते हो...तुम पहली बार किसी लड़की के मुह में अपना निकाले हो. अब मैं भी तुम्हारे साथ सेक्स करके अपनी विर्जिनिटी खोना चाहती हूँ.'



'मैं भी तुम्हे नंगा देखना चाहता हूँ॥सच कह रहा हूँ...मैंने आज तक कोई नंगी लड़की नहीं देखी..' जय ने उसे बोला।

'ओके बाबा...ठीक है..पर जरा मैं जूही को देख कर आती हूँ...अगर वो जाग गयी तो दिक्कत हो जायेगी.' ऐसा कहते ही वो मेरे कमरे की और बाद चली, और मेने अपनी जगह पर लेट कर आँख बंद करके सोने का नाटक करने लगी. वो मेरे पास आयी और मेरे को थोडा सा हिलाया पर मेने कोई जवाब नहीं दिया. तो वो आश्वस्त हो गयी और फिर से जय वाले कमरे में लौट गयी. वहां पहुँच कर वो जय से बोली,'तो पहले मेरे बूब्स देखोगे या मेरे हिप्स...?'



जय ने बोला, 'मैं हिप्स देखूंगा..' और यह सुनकर नेहा ने फ़िल्मी स्टाइल में अपने हिप्स को पीछे की ओर निकाल कर उसके चेहरे के आगे कर दिया और अपनी स्कर्ट को उतार दिया.उसने पैंटी नहीं पहन रखी थी. उसके नंगे हिप्स (चुतड) उसके आँखों के सामने थे. 'कैसे हैं मेरे हिप्स ?' उसने पूछा.'बहुत सुन्दर और गोल गोल हैं..उभरे हुए एकदम अच्छी शेप लिए हुए..', जय ने उसके नंगे हिप्स पर हाथ फेरते हुए कहा. उसके बाद उसने अपनी ब्रा खोलदी और उसके बूब्स आजाद हो गए. उसके बूब्स एकदम गोलाई लिए हुए थे मैंने भी आज पहली बार उसके बूब्स देखे थे. उसके निप्पलस खड़े हुए थे. और नेहा पूरी नंगी हो गयी उसके सामने. उसके लम्बे बाल, नुकीले स्तन, चिकना और सपाट पेट, चिकनी टांगें, उभरा हुआ बिना बालों वाला Pubic Mound, उसके पूसी लिप्स, सब कुछ जय देखे जा रहा था और दोनों एक दुसरे को चूमने लगे.



जय भी नंगा था और नेहा भी बिलकुल नंगी थी. जय ने उसके बूब्स पर किस किया और उसकी निप्पलस चूसनी शुरू कर दी. और मैं अपनी निप्पलस अपनी उँगलियों से रगड़ रही थी. वो कुछ देर तक उसके दोनों स्तनों को चूसता रहा और फिर नेहा पींठ के बल पलंग पर लेट गयी. लेटकर उसने अपनी टाँगे फैला दीं. 'देखो जय, मेरी चूत (इस बार वो वास्तव में चूत ही बोली थी) dekho ...'. मैं भी उसके पूसी देख पा रही थी. उसने अपने सारे बाल साफ़ कर लिए थे और उसकी पूसी एकदम चिकनी थी. वो उसकी टांगों के बीच में बैठ गया और नेहा ने उसे कन्धों से पकड़कर अपनी पूसी की तरफ खींच लिया. वो अपनी पूसी चटवाना चाहती थी. 'मेरी चूत को खोलो...' उसने कहा, और जय ने अपनी उँगलियों से उसकी चूत के लिप्स को खोला, 'क्या दीखता है...?' नेहा ने पुछा.



'गुलाबी गुलाबी...है सब कुछ..' जय ने जवाब दिया, 'और एक चने जैसा दाना तुम्हारी चूत के ऊपर शुरुआत में.'



'हाँ...वो मेरी क्लिटोरिस है...तुम अपनी जीभ से उसे और मेरे पूसी लिप्स को चाटो, मुझे अच्छा लगेगा.' नेहा ने कहा. और जय ने उसकी चूत चाटना शुरू कर दिया. और इसी तरह वो करता रहा , मैं समझ सकती थी की नेहा को कितना अच्छा लग रहा होगा, क्योंकि वो उत्तेजना के कारण बार बार अपनी कमर हिला हिला कर अपना मजा बड़ा रही थी. 'ओह येस...जय...चाटो, और चाटो...मेरी चूत गीली हो रही है..', नेहा ऐसे चिल्ला रही थी और यह सुनकर जय अपनी स्पीड बड़ा रहा था.



और फिर अचानक नेहा के हिप्स ऊपर नीचे तेजी से करने लगी और एक समय पर आकर उसकी टाँगे हवा में उठ गईं , शायद उसका ओर्गास्म हो गया था। उसकी कमर कांप रही थी और जय के होंठ गीले हो रखे थे. २ मिनट तक ऐसे ही लेटने के बाद नेहा उठी और उसके लिंग को अपने हाथ में लाकर हिलाने डुलने लगी. और फिर जय को लेटने के लिए बोला. जय के लेटने के बाद उसने उसके लिंग को हिलाना शुरू कर दिया और कुछ ही देर में वो फिर से खडा हो गया. फिर वो बोली, 'जय, मैं तुम्हारे पर चड़ने वाली हूँ...तुम्हे मजा आएगा॥देखना..'



अब मैं शायद कुछ नया देखने वाली थी. नेहा उठी और जय के ऊपर बैठ गयी. और अपने शारीर को उसके लिंग के ऊपर लाकर नीचे की और बैठने लगी. 'जय, मेरी कमर पकड़ लो और अपने लंड को मेरी चूत में डालने की कोशिश करो...बहुत धीरे से करना..'. जय ने उसकी कमर को पकडा और अपने लिंग को उसकी योनी के मुह पर रखकर नीचे की और धकेलने लगा. जैसे जैसे जय उसे नीचे कर रहा था, नेहा का मुह खुलता जा रहा था..शायद उसे दर्द भी हो रहा था. फिर उसने जय को रुकने का इशारा किया. और कुछ सेकेंड्स रूककर फिर से उसने अपने को नीचे किया और जय का लिंग का उपरी हिस्सा उसकी पूसी में घुस गया था, और वो दोनों बार बार थोडा थोडा ऊपर नीचे करते हुए पूरा लिंग को अन्दर डालने में सफल हो गए. जब पूरा लिंग अन्दर चला गया तो नेहा ने उसे धीरे से कहा,'प्लीज जय...अब ऊपर नीचे करके मुझे चौदो..!'



और नेहा ने उसकी सवारी करनी शुरू करदी और जय ने नीचे से धक्के मारने शुरू कर दिया..अब नेहा के मुह से आह और ओउच निकालनी शुरू हो गयी थी...और वो भी इतनी जोर से की अगर मैं सो रही होती तो जरूर जग जाती, पर उन्हें कहाँ इस बात की परवाह थी...वो तो लगे हुए थे.



नेहा ने उसको बोला, 'मेरे बूब्स को मसलो ..इन्हें दवाओ...मेरी चुचुकों को भी मसलो...अच्छा लगता है..' और जय ऐसा ही

करने लगा. और जैसे ही एक बार जय ने उसके बूब को अपने मुह में लिया और चूसना शुरू किया, वो एकदम से मचल उठी और उसका एक और ओर्गास्म हो गया क्योंकि उसके बाद वो कुछ पलों के लिए निढाल हो गयी. और जैसे ही जय ने फिर से धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू किये, वो फिर से अपने शारीर को ऊपर नीचे करने लगी , और इधर जय ने अपने धक्कों की स्पीड बड़ा दी, शायद उसका भी निकलने ही वाला था..



और फिर दस बारह धक्कों के बाद जय ने अपने हिप्स पूरे ऊपर उठाकर अपना लिंग उसकी चूत की गहरायिओं में डाल दिया और फिर करीब पांच छ बार रुक रुक कर अपने लिंग को अन्दर बाहर किया और मुह से सिस्कारियों के साथ बोले जा रहा था...''ओह नेहा,..मेरा निकल गया.!' और इसके बाद दोनों बेतहाशा एक दुसरे को चूमने लगे और फिर लेट गए साथ साथ.



मैं बहुत उत्तेजित थी यह सब देख कर...पर मैं अपनी उत्तेजना कैसे शांत करती, पर भला हो भगवान् का , मैंने उसके नरम पड़ते लिंग को देखते हुए अपनी क्लिटोरिस को जोर जोर से रगडा और मेरे भी जूस निकल पड़ा और ओर्गास्म पर पहुँच गयी.



करीब पंद्रह मिनट बाद नेहा अपने कपडे पहन कर वापस मेरे कमरे में आयी. और मेरे बगल में लेट गयी...फिर आधे घंटे तक कुछ नहीं हुआ..और शायद जय भी सो गया था...आखिर वो भी थक गया था.



और सबसे कमाल की बात तब हुयी जब सुबह करीब चार बजे शुशु जाने के लिए मेरी आँख अचानक खुली और में उठी तो पाया की मेरे बगल में ही .....नेहा नीचे लेती हुयी थी नंगी....और जय उसके ऊपर नंगा ही चदा हुआ था और धक्के पर धक्के मारे जा रहा था...मेरे को उठता देख वो दोनों घबरा गए. नेहा ने उसे अपने ऊपर से हटाना चाहा पर शायद जय ejaculation के काफी करीब था सो वो चाहकर भी अपने लिंग को उसकी चूत में से नहीं निकाल पाया और में उन्हें ऐसे देखते हुए....सॉरी ...आयी ऍम सॉरी ..मुझे पता नहीं था की तुम दोनों...मेरा मतलब..'. मेरे पास शब्द नहीं थे... और तभी अचानक या तो घबराहट में या शरमाहट में नेहा ने जय को अपने से दूर कर दिया और जय का लिंग धप की आवाज के साथ बाहर निकाल आया और उसी वक़्त उसके लिंग से वीर्य की पिचकारी निकली और उसके पेट पर फ़ैल गयी. मैं अवाक रह गयी..मेरे सामने एक १७ साल की लड़की थी जो की पूरी तरह से नंगी थी और उसके ऊपर एक बीस साल का लड़का नंगा होकर लेता था जिसने अपने हाथ में अपना उत्तेजित लिंग पकड़ रखा था और वो भी वीर्य की पिचकारियाँ छोड़ रहा था.



जय मारे शर्म के वहां से नंगा ही भाग गया और नेहा परेशान से मुझे देखने लगी, उसे लगा की मैं अब उसे डांटने लगी हूँ..वो मासूम सा चेहरा बनाकर बोली...' आयी ऍम सॉरी जूही..हम लोग अपना कण्ट्रोल खो गए थे और रुक न पाए..'



मैं हंसती हुयी बोली, 'पागल, तो वहां उस कमरे में ही कर लेती न..अब बेचारे जय की क्या इज्जत रही, उसका सब कुछ तो मैंने भी देख लिया.' 'अब मैं क्या करती, मैं तो सो रही थी...और वो यहाँ आया और मुझे उत्तेजित कर दिया और यहीं चालू हो गया...और फिर तुम जग गयी.'



नेहा ने जवाब दिया और बात रूम में चली गयी. और में उसके आने के बाद बाथरूम गयी. वहां से लौटी तो नेहा और जय बातें कर रहे थे. वो शायद मेरे बारे में ही बात कर रहे थे. मैं वापस आकर लेट गयी और सोने की कोशिश करने लगी.



जब सुबह सात बजे उठी तो पता लगा की जय तो सुबह छ बजे ही पीछे वाले दरवाजे से चला गया था. और फिर हम लोग सुबह वाली घटना पर खूब हँसे. उसके बाद मैंने नेहा को पकड़ लिया और उससे डिटेल में सब कुछ पूछा. जबकि मुझे सब पता था फिर भी मैं उसे शक नहीं होने देना चाहती थी की रात को में उन दोनों को सेक्स करते हुए देख चुकी थी.



और इस तरह भगवान् ने मेरी जिन्दगी में एक और सेक्स एक्स्पेरिंस लिख दिया था





































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