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जूही : एक लड़की के अनछुए सेक्सुअल अनुभव--२
जय और नेहा के उस दिन की घटना के बाद न तो उनको और न ही मुझे ऐसा कोई और मौका मिल पाया जो की ख़ास लिखने लायक हो, पर हाँ एक बदलाव जो मेने महसूस किया वो ये था कि, जय अब मेरे से थोडा सा frank हो गया था और वो दोनों मेरे सामने किस और छोटी मोटी छेड़खानी करते रहते थे.
कुछ दिनों के बाद, मेरा एक कजिन भाई हमारे घर आया. उसकी कुछ दिन कि छुट्टियां थी सो वो हमारे यहाँ घुमने चला आया. मेरे से वो दो साल छोटा था. हमारा कोई सगा भाई नहीं था और इसी वजह से हम लोग शुरू से लड़कों के प्रति अनजान रहे और उनके प्रति अब आकर्षित होने लगे थे. मैं ज्यादा से ज्यादा उन के बारें में जानना चाहती थी. मैंने स्कूल में अपने बॉय फ्रेंड बनाने कि भी कोशिश कि पर सारे मेरे शरीर से इतने प्रभावित थे कि सारे वो सब पहले करने के लिए आतुर रहते थे जो कुछ समय बाद होना चाहिए. कुल मिलाकर मैं किसी को भी अपना बॉय फ्रेंड बनाने पर कोई फैसला नहीं ले पायी. और जब रोहित मेरे घर पर छुट्टियों में आया तो मुझे उसमे अपना फ्रेंड ज्यादा नजर आया.
मेरी किस्मत में पता नहीं क्या क्या लिखा था? खैर , तीन चार दिन में ही हम लोग एक दुसरे से खूब मस्ती करते और बातें करते. वो हमारे कमरे में ही सोता था. बड़ी दीदी एक पलंग पर सोती थी. मैं और छोटी बहिन दुसरे बेड पर और रोहित फोल्डिंग पलंग पर सोता था. और मेने महसूस किया कि हर सुबह मैं नयी उमंग से मुखातिब होती थी.
और उस रात मैंने पता नहीं कैसे एक बहुत कामुक सपना देखा और उसमे मैंने देखा कि मैंने रोहित का लिंग देखा जोकि जय के लिंग जैसे ही था और पता नहीं क्या क्या...मेरी आँख खुल गयी। मुझे पसीना आ रहा था और मेरा गला सुखा हुआ था. मेरी उँगलियों ने मेरी पैंटी को छू कर देखा तो वो थोडी गीली थी, मैंने महसूस किया कि मेरी पूसी कि बीच में कुछ स्पंदन हो रहे थे, मेरी निप्पलस एकदम सख्त थे. मैंने अभी अभी एक ओर्गास्म से गुजर चुकी थी, कब, कैसे, कुछ नहीं पता॥! मेरी साँसे तेज तेज चल रही थी और दिल कि धड़कनें बड़ी हुयी थीं.
मैंने बगल में सोयी मेरी छोटी बहिन को देखा कि कहीं मैंने उसे तो नहीं जगा डाला. पर वो तो सो रही थी. पिछले दो -तीन दिन से रोज रात को ऐसा ही हो रहा था मेरे साथ, पर आज तो हद ही हो गयी थी शायद. मैंने अपनी पैंटी उतार ली और अपने को चादर से अच्छी तरह ढक लिया. मैं अपने मन को थोडा और शांत करना चाहती थी. मैं सोचने लगी कि काश मेरा अपना एक अलग कमरा होता तो मैं कितने मजे से यह सब कर रखती थी और किसी बात कि कोई चिंता भी नहीं होती. पर अभी मैं अपनी बहिन को जगाना नहीं चाहती थी. हम साथ हो सोते थे पर कभी भी उसने मुझे touch नहीं किया. न ही कभी मैंने उसे नंगा देखा था. मुझे पता था कि उसके बॉय फ्रेंड भी थे, पर मुझे उसकी सेक्स लाइफ का कोई ज्ञान नहीं था, क्योंकि उसके साथ इस बारें में कभी भी बात नहीं हुयी. खैर, मैं पींठ के बल लेट गयी और मेरी टांगों को फैला लिया. आँखों को बंद किया और अपनी पूसी पर उँगलियों को ऊपर से नीचे की और चलाने लगी. और अभी मुझे अच्छा लगना शुरू ही हुआ था की अचानक बहिन (ऋतू) ने करवट ली और मेरी तरफ उसका मुह था. मुझे डर था की अगर उसकी आँखें खुली तो वो मेरे को यह सब करते हुए देख सकती है. मैं कोई chance नहीं लेना चाहती थी. मैंने भी उसी की और करवट ली और इसलिए भी की अगर वो जगी तो मुझे पता रहेगा. मैंने एक तकिया लिया और अपनी जाँघों के बीच फंसा लिया. जिससे की मेरी पूसी पर अच्छा खासा दवाब आ रहा था. उसका ठंडा ठंडा कपडा मेरी नंगी पूसी पर काफी अच्छा लग रहा था हलाँकि मुझे पता था की यह सब काफी नहीं होगा. सो मेने उठकर बाथरूम में जाने का फैसला किया.
मैंने शान्ति से बाथरूम में घुसी और अपने टाँगे फैला कर अपनी भगान्कुर (clitoris क्लिटोरिस) को घिसना शुरू किया। मेरी पूसी ऐसी गरम हो गयी थी जैसे की उसमे अन्दर से आग निकल रही हो. मुझे पता नहीं क्या हो रहा था की मैं अपना पानी निकालने की लिए बहुत आतुर हो रही थी. आयी वांट टू cum desperatly. मैं बाथरूम में ऐसा कुछ ढूँढने लगी जो मेरी तड़प को शांत कर सके. मैं व्याकुल हो रही थी , कोई मेरे को इस उत्तेजना से शान्ति दिला दे...कोई भी...कैसे भी...!!
मेरा इतना बुरा हाल था की मैं किसी छुअन को अपनी पूसी पर महसूस करना चाहती थी, कोई मुझे वहां lick करे और मेरा पानी छूट जाए.
मैंने एक शैंपू की बोतल ली और उसे वाश बेसिन के साथ लगा लिया और उस से अपनी पूसी को सटा दिया, मेने अपनी क्लिटोरिस को शैंपू के चिकने ढक्कन से टकराना शुरू कर दिया. मैं उत्तेजना के सागर में गोते लगाने लगी. मैं अपने आप को शीश में देख रही थी और कल्पना कर रही थी की कोई मुझे देख रहा है. मैं चाहती भी थी की कोई मुझे देखे. मैं किसी के लिए भी ओर्गास्म पर पहुंचना चाहती थी अगर वो मुझे देखे भी.
कुछ मिनट और निकले, मैं और ज्यादा चाहती थी, मैं अपने को भरना चाहती थी। मैं चाहती थी की कोई मुझे छुए. मुझे लगा की मेरे पर अब मेरा भी कण्ट्रोल नहीं हो रखा था.
जब मेरे से कण्ट्रोल नहीं हुआ तो मैं बाथरूम के फर्श पर लेट गयी और कंडीशनर की एक बोतल लेली, टांगों को चौडा कर कंडीशनर की बोतल से कुछ कोल्ड लोशन मैंने अपनी पूसी पर उडेल दिया जो बहता हुआ मेरी क्लिटोरिस से बहता हुआ मेरी पूसी के लिप्स से होता हुआ मेरी गुदा तक चला गया. उसके बाद मैं फर्श पर झुक गयी और अपने दोनों हाथ और पैरों पर हो गयी. और फिर एक हाथ से अपनी पूसी को रगड़ना शुरू करदिया, पर कुछ ख़ास नहीं हो पाया. तब मैं उठी और अपने कमरे में वापस आ गयी.
कमरे में आने पर देखा की दोनों बहिने सो रही थी. और रोहित अपने पलंग पर पींठ के बल लेता हुआ था. और मेने पास में आकर पाया की उसका लिंग तनाव में था और उसके पायजामे में एक टेंट की तरह आकार हो रखा था. में अछाम्भित सी हो गयी और उसके नजदीक गयी, मेरा एक हाथ मेरी पूसी पर था और में कल्पना करने लगी की वो मेरे साथ सेक्स कर रहा है. में दुगुनी रफ़्तार से अपनी पूसी रगड़ने लगी जैसे ही मेरे मन में ये पिक्चर आने लगे. में अब उसका लिंग महसूस करना चाहती थी. में उसके लिंग को मेरे ऊपर वीर्य उड़ेलते हुए देखना चाहती थी. पर अगर वो जग गया तो? पर में रुकने वाली नहीं थी...और..
में धीरे से उसके बगल में बैठ गयी और उसके पायजामे के ऊपर से उसके लिंग को छुआ. और धीरे धीरे अपनी हथेली ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर चलाने लगी उसके लिंग पर, जब तक की वो और बड़ा न होने लगा अपने आकार में. में अपनी उंगली के नीचे उसके कड़े हो रहे लिंग को महसूस कर पा रही थी. और तो और उसने पायजामे के नीचे अंडरवियर भी नहीं पहना था और उसका लिंग उसके पायजामे से बाहर की और झाँक रहा रहा था. और मेरी पूसी तक एक झनझनाहट फ़ैल गयी जैसे ही मैंने उसके लिंग के उपरी हिस्से को उसके पायजामे से बाहर झांकते हुए देखा.
कुछ मिनट में ही उसका लिंग मेरे हाथ के टच के हिसाब से ऊपर और नीचे हो रहा था. और दूसरा हाथ मेरी पूसी पर व्यस्त था, हर बार में उसके लिंग को उसके पायजामे से बाहर करती जा रही थी, जबतक कि उसका लिंग मेरी हथेलियों में जकड न लिया. अब उसका छ इंच का लिंग मेरे हाथ में था और मैंने उसे मसाज करना शुरू कर दिया.
एक तरफ हाथ में उसका लिंग और दुसरे हाथ में मेरी पूसी. दोनों तरफ एक साथ strokes दे रही थी. में कल्पना कर रही थी कि उसका लिंग मेरी पूसी ले लिप्स पर रगड़ खा रहा है. मैंने अपनी स्पीड और बड़ा दी और जब तक करती रही तब तक कि में ओर्गास्म महसूस कर गयी. रोहित कि साँसे भी तेज हो रही थी. में जान गयी थी कि वो कभी भी निकल सकता है. मैंने अपनी पैंटी ली और अपने दुसरे हाथ में पकड़ ली, और एक हाथ से उसके लिंग को सीधा पकड़ कर जोर जोर से हिलाना शुरू कर दिया. और दो तीन बार करने पर ही उसके लिंग कि जड़ों से एक तेज रफ्तार से आता हुआ वेग महसूस किया और में समझ गयी कि उसका वीर्य बाहर आने वाला है, मैंने अपनी पैंटी से तुंरत उसके लिंग के मुह को ढक दिया. उसके लिंग ने दो तीन बार लम्बी लम्बी साँसे सी ली और मेने देखा कि उसके लिंग से काफी सारा वीर्य निकल कर मेरी पैंटी में आ गया है.
मेने उसका लिंग अच्छी तरह से पोंछा और उसे पायजामे में वापस डाल कर पैंटी को गद्दे के नीचे छिपा दिया.
मैं बहुत डरते हुए आसपास देखने लगी की कहीं किसी ने मुझे यह सब करते हुए देखा तो नहीं? पर मुझे अपने पर और रोहित पर भी, विश्वास नहीं हो रहा था की मैंने उसके साथ अभी यह जो किया वो हो चूका है और वो जगा भी नहीं...?
खैर, अगले दिन रोहित दोपहर में हमारी बुआ के यहाँ अपनी बाकी छुट्टियां बिताने चला गया. और मैं उसके कड़क लिंग की अनुभूति और उसके चरम उत्कर्ष पर पहुँचने के द्रश्य को लिए रह गयी.
पर उस दिन के बाद मैंने महसूस किया की मैं उसे मिस करने लगी थी और जिस फ्रेंड को बनाने के लिए मैं अपनी क्लास में किसी को खोज रही थी वो शायद मुझे मेरे कजिन भाई में मिल गया था. मैंने अभी तक की अपनी लाइफ में तीन तरह के लिंग देख लिए थे. सबसे ज्यादा बड़ा और तगड़ा किरण के भाई का ही था और वो भी इसलिए क्योंकि वो उम्र मैं भी बड़े थे. उसके बाद रोहित का और फिर नेहा के फ्रेंड जय का. पर फिर भी रोहित का उम्र के हिसाब से ज्यदा मेचुओउर नहीं था.
मैंने यह भी महसूस किया की अब मैं अधिकतर लड़को की पेंट्स पर ध्यान देती थी और उनके लिंग के आकार के बारे में सोचती थी और फिर रात को यही सब सोचती हुयी हस्तमैथुन करती थी.
जहाँ तक मेरी बहिनों का सवाल है, मेरी छोटी बहिन मेरे से एक साल छोटी है उसका नाम हेमा है और मेरी बड़ी बहिन का नाम रिया है जो मेरे से तीन साल बड़ी हैं. मैं और हेमा आठ साल की उम्र तक साथ ही नहाते थे और कभी कभी रिया दी हमें नहला देती थी. पर जैसे जैसे हम उम्र के अगले पडाव में जाने लगे, हमरे शरीर में परिवर्तन होने लगे, हमारे स्तन बड़े होने लगे थे और पूसी पर हलके रोयेंदार बाल आने लगे थे सो हम शर्मा कर अलग अलग नहाने लगे थे.
जहाँ तक बचपन का सवाल है यह सब नोर्मल था, पर अठारह साल के होने के बाद पहली बार रिया दी और हेमा से नजदीकी बदने लगीं. हेमा के लिए मैं बड़ी थी सो वो मुझसे ज्यादा नजदीक थी और अपनी हर बात मेरे से बांटतीथी. पर उस दिन जब रिया दी ने मेरे को कहा की उन्हें मुझसे बहुत जरूरी काम है और हेमा जब मम्मी के साथ बाजार चली गयी तो हम दोनों हामरे कमरे में आये और मैंने उनसे पुछा की क्या काम था? तो जो उन्होंने कहा उसे सुनकर मुझे शर्म भी आयी और उत्सुकता भी जगी.
उन्होंने कहा की उन्हें अपने बाल साफ़ करवाने हैं और पूसी वाले बाल वो साफ़ नहीं कर पाती हैं पूरे तरह से , सो उन्हें उसमे मेरी मदद चाहिए थी. वो कुछ देर बाद अपनी सलवार उतार कर मेरे सामने अपनी नंगी टांगों और बालों वाली पूसी के साथ मेरे सामने थी. उनकी पूसी मेरे जैसे ही थी बस अंतर इतना था की उनकी क्लिटोरिस उनके पूसी लिप्स के अन्दर थी और उनकी पूसी पर एक तिल भी था. पर मैं अपना काम करती रही. मैंने अछे से हेयर रेमोविंग क्रीम उनकी पूसी पर लगा दी और कुछ देर के इन्तजार के बाद उसे धो दिया , उनकी पूसी से सारे बाल हट गए..और वो एकदम चिकनी हो गयी थी.
मैं जब उनकी पूसी साफ़ कर रही थी तो वो उत्तेजित हो गयी थी. और बीच बीच में अपनी ऊँगली से अपनी क्लिटोरिस को रब कर देती थी
उनको क्लिटोरिस रब करता देख मैं भी उत्तेजना महसूस करने लगी. वो मेरी परवाह भी नहीं कर रही थी. और हद जब हो गयी तब की उन्होंने मेरे से लोशन लिया और अपनी पूसी को और चिकना कर लिया और उसके बाद अपने पूसी लिप्स का मसलने लगी और मुह से उनके हलकी हलकी सिस्कारियां निकलने लगी, मैं उन्हें घूर कर देख रही थी की वो मेरे सामने यह सब कितने आराम से करी जा रही हैं.
तब उन्हें लगा और उन्होंने बोलना शुरू किया, 'जूही, तेरे हाथ बड़े सेक्सी हैं, देख तुने मुझे उत्तेजित कर दिया..न. अब मुझे अपने को शांत करना पड़ेगा. वैसे...तू भी तो करती होगी न...? क्यों जूही?'
मैं सन्न रह गयी दीदी की बातें सुन कर, वो बोले जा रही थीं और अपनी क्लिटोरिस को भी रगड़ रही थी उनकी टांगें और खुल गयीए थी और उनके दोनों हाथ उनकी पूसी पर चल रहे थे.
मैं कुछ बोलती उससे पहला ही उन्होंने आगे बोला, 'वैसे किरण जैसी लड़की तुम्हारी दोस्त रह चुकी है, तो मैं वैसे भी नहीं मान सकती की तुम नहीं करती होगी!'. मैं समझ गयी अब कुछ भी छिपाना बेकार है रिया दी से. 'चल बता भी दे, क्या क्या कर चुकी है...जूही?', रिया दी ने मेरे से पुछा.
'कुछ नहीं दीदी, बस ऐसी ही...कभी कभी मन होता है तो करती हूँ, पर कभी अन्दर नहीं डाली...दर्द सा महसूस होता है...पर आप कैसे...यह सब...?' मैंने धीरे धीरे अपना सवाल भी फेंका क्योंकि मेने देखा की वो तो अपनी पूसी को अपनी ऊँगली से भी फिन्गेरिंग कर रही थी. उनकी दो ऊँगली बारी बारी से उनकी पूसी में अन्दर बाहर होने लगी थी और उनकी उंगलियाँ उनके योनी रस से भीग गयी थीं. मुझे लगा की वो शायद सेक्स भी कर चुकी होंगी.
'क्या...यह...अरे मुझे गलत मत समझ..मैं अभी भी कुमारी हूँ, अभी मेने सेक्स नहीं किया...हाँ मेरी हाईमन जरूर टूट चुकी है..एक बार मेरे से रहा नहीं गया और मैं उत्तेजना में यह सब कर बैठी.. अच्छा एक काम कर तू जरा मेरे लिए गरम पानी कर के ले आ. मैं नहाना चाहती हूँ.' , उन्होंने जवाब दिया और एक काम मेरे को सौंप दिया. मैं उठी और किचन में पानी गरम करने चली गयी.
पानी को भगोनी में रखकर गैस पर रख दिया और एक नजर वापस बाथरूम की और मारी. दरवाजा खुला हुआ था और रिया दीदी पट्टे पर बैठी हुयी थीं. उन्होंने अपने पाँव खोले हुए थे. और उनके दोने हात अपनी पूसी पर चल रहे थे और उनका मुह खुला हुआ था. फिर उन्होंने एक हाथ फर्श पर टिकाया और दुसरे हाथ की ऊँगली अपनी पूसी में शायद अन्दर बाहर करने लगीं. और फिर उनके शरीर में एक तूफ़ान आया और शायद वो ओर्गास्म पर पहुँच गयी.
मैंने गरम पानी लिया और बाथरूम में उनके पास पहुँच गयी.वो अभी भी अपनी पूसी सहला रही थी. उनकी पूसी गीली हो गयी थी. बालों के साफ़ होने के कारण मैं उनकी पूसी से बहते रस को साफ़ देख पा रही थी. उन्होंने बस इतनी शर्म की, उन्होंने मुझे देखकर अपनी टाँगे सिकोड़ लीं. फिर मेरी तरफ देख कर बोली, 'जूही..तुने अपने बाल साफ़ किये हैं या नहीं?'
रिया दीदी के मुह से यह सब सुनकर बड़ा अजीब सा लग रहा था, पर सच बताऊँ...अठारह साल की होने तक मैंने एक बार भी अपने बाल साफ़ नहीं किये थे, बल्कि उन पर कैंची चलाने की हिम्मत भी न कर पायी. और जब दीदी ने पूछा तो मैं शर्मा गयी. दीदी समझ गयी और मेरा हाथ पकड़ कर बोलीं ,'चल बैठ इधर , मैं तेरे साफ़ कर देती हूँ. आज तक ऐसी ही घूम रही है. एक बार करवा ले फिर देखियो कितना अच्छा लगेगा और वैसे भी वहां साफ़ सफाई रखनी चाहिए, पेरिअड के समय भी अच्छा रहेगा.'
मैं मन में तो चाहती थी पर अपने मुह से कुछ कह न प् रही थी. तब तक दीदी ने मेरे कुरते को ऊपर किया और पायजामे की गाँठ खोलनी शुरू करदी. आज करीब आठ नोऊ साल बाद दीदी के सामने मैं अपने कपडे खुलवा रही थी. उन्होंने मेरे पायजामे को उतार दिया और मैंने अपने आप ही मेरे कुरते को. मैं दीदी के सामने ब्रा और पैंटी मैं कड़ी थी. दीदी ने एक और पट्टे को मेरे लिए खिसका दिया और बोलीं,'देखले, जरा हालत तो देख अपने बालों की, तेरी पैंटी से भी दिख रहे हैं..! तू भी न जूही...क्या करती है..!?'
मैंने देखा...वास्तव में दीदी सही कह रही थीं. मेरे प्यूबिक हेयर्स (जिन्हें आप लॉन्ग झांटें कहते हो) मेरी पैंटी की किनारों में से भी झाँक रहे थे. वो वास्तव में गंदे लग रहे थे. दीदी ने पैंटी उतार कर बैठने को कहा. मैंने अपनी पैंटी उतारी और टाँगे सिकोड़ कर पट्टे पर बैठ गयी. दीदी मुझे देख कर हसने लगी, 'अरे जूही...मेरे से क्यों शर्मा रही है..मैं तो तेरी बहिन हूँ....मैं भी तो लड़की हूँ, और अभी मैं भी तो तेरे साथ नंगी हूँ.'
उनकी बात सुनकर कुछ राहत तो आ रही थी, बस चिंता एक बात की थी. और वो यह की अगर यह सब करवाते समय मैं उत्तेजना में आ गयी तो क्या होगा?
उन्होंने धीरे से मेरी टाँगे फैलायीं और गौर से मेरी झांघों के बीच मेरी पूसी पर हो रहे घने जंगल को देखा. 'हम्म बहुत बड़े हैं, पहले इन्हें नरम मुलायम करना पड़ेगा और फिर रेजर से साफ़ कर दूंगी.'
रेजर का नाम सुनकर मुझे डर लगा, में बोली, 'दीदी, रेजर से कटेगा तो नहीं?'. 'अरे नहीं..तू चिंता मत कर, मैं आराम से कर दूंगी.' उन्होंने मेरी टांगें फैलाई और मेरी टांगों के बीच में बैठ गयी. उन्होंने मेरी पूसी पर थोडी सी शेविंग क्रीम लगायी. और उसे माली रहीं जब तक की खूब सारे झाग नहीं हो गए. शायद दीदी की भी यह सब करने में मजा आ रहा था क्योंकि उन्होंने इस काम में बड़ा समय लगाया. मेरा चेहरा भी शर्म और उत्तेजना से लाल हो गया था. उनके हाथों की मालिश से मेरी पूसी उत्तेजना से भर गयी थी. उसमे रक्त का संचार बढ गया था. और जैसे ही उनकी ऊँगली ने मेरी उभरी क्लिटोरिस को छुआ तो मेरे मुह से आह निकल गयी और मैं शर्मा गयी.
दीदी ने रेजर निकाला और धीरे धीरे मेरी पूसी के बाल साफ़ करने शुरू किया. वो बार बार रेजर को पानी से साफ़ करती थी. और देखते देखते ही मेरी पूसी से बाल हट्टे चले गए. और कभी कभी बालों की ठीक तरह से हटाने के लिए दीदी मेरी पूसी के लिप्स में अन्दर ऊँगली भी दाल लेती थी और मेरे मुह से आह निकल जाती थी और मन तो करता था की उनकी ऊँगली पूरी अन्दर ही चली जाए.
उनकी उंगलियाँ मेरी पूसी के लिप्स के फोल्ड्स को पकड़ पकड़ कर उन्हें शेव कर रही थी, जिससे की अच्छी तरह से शेव हो सके. पंद्रह मिनट में मेरी पूसी पूरी तरह से शेव हो चुकी थी. उसके बाद गरम पानी से मेरी पूसी को दीदी ने धो दिया. फिर एक क्रीम को मेरी पूसी पर मल दिया. अब मेरी पूसी बड़ी चिकनी नजर आ रही थी. दीदी के हाथ बड़े अछे लग रहे थे पर मजा भी बहुत आ रहा था.
जैसे ही दीदी ने ख़तम किया, वो बोली, 'ले जूही. हो गया...अब मुझे नहाने दे , और तू जब तक अपनी पूसी को आराम दे...समझ गयी..!?' और हंसने लगीं, मैं उठी और पैंटी पहन कर बाथरूम से बाहर आ गयी. मैं समझ नहीं पायी की पूसी को आराम देने का क्या मतलब है...पर बाद मैं सोचा तो मुझे लगा की कहीं दीदी हस्तमैथुन की तो नहीं कह रही थीं?
मैं अपने कमरे में आयी और अपनी पैंटी उतार कर शीशे के सामने आकर कहदी हो गयी. मेरी पूसी बड़ी ही सेक्सी लग रही थी. गोरी जाँघों के बीच मैं , टुंडी के नीचे की और एक उभार सा था जो मेरी जाँघों के बीच की गहराई में जा रहा था, जहाँ उस पर एक दरार थी जो मेरी पूसी को दो भागों में बांटती थी. वहां एक भी बाल नहीं था. फिर मैंने पीछे मुड़कर देखा की पीछे तो कोई बाल नहीं? पर वहां ऐसा कुछ नहीं था , सिवाय मेरी उभरे नितम्बों के..फिर मैंने अपना एक पाव पलनग पर उठाकर पूसी के अंतिम सिरे पर देखा जहाँ मेरी गुदा का हिस्सा था. वहां भी कोई बाल नहीं बचा था.
मैं बड़ी खुश थी अपने इस नए रूप को देख कर. पर इसका नुक्सान भी हुआ...वो यह की पूसी के इस नए चिकनेपन की वजह से मेरे हाथ बार बार मेरी पूसी पर चले जाते थे और मेरे हस्तमैथुन के चांस बहुत बढ गए थे. और दिनों के अपेक्छा मेने ज्यादा हस्तमैथुन किया और अच्छा भी लगा. जो भी योनी रस मेरी पूसी से निकलता था मैं उसे अपनी पूसी पर मल भी लेती थी.पहले बालों की वजह से यह सब नहीं कर पाती थी.
तो इस तरह मैं अपनी बड़ी दीदी से पहली बार खुली. इसके बाद हम दोनों ही नहीं बल्कि तीनो बहिनों ने एक साथ शेविंग भी और कपडे भी बदले. यहाँ तक की नहाना भी शुरू कर दिया. बड़ी दीदी तो अब हामरे सामने शुशु भी कर लेती थी और हस्तमैथुन भी कर लेती थीं. उनकी इस हिम्मत को देख देखकर मेरी भी हिम्मत बढ रही थी.
बात आज से करीब तीन साल पुराणी होगी जब यह सब शुरू हुआ. एक बार मैं नहा रही थी और नहाते नहाते मुझे शुशु लगने लगी पर मैंने सोच की पहले नहा ही लूं फिर शुशु कर लुंगी. पर एक बार शुशु का दवाब इतना लगा की मन किया की बजे कामोद पर बैठ कर शुशु करने के यहीं बाथरूम के फर्श पर ही शुशु क्यों न कर लूं. मैंने नीचे बैठने के मुद्रा करते हुए अपने हिप्स को नीचे की और किया, टांगें फैलायीं और नीचे देखा. मेरी पूसी मेरी जाँघों के बीच इसके लिए बिलकुल तय्यार दिख रही थी. बस अब तो मुझे शुशु करना शुरू करना था. मैंने टॉयलेट करने के बारें में सोचा और अनुभव किया की वो मेरे पेट में से निकलता हुआ आ रहा है मेरी पूसी की ओर...कुछ ही सेकेंड्स में मेरी पूसी के लिप्स के बीच में से शुशु की एक जोरदार धार निकली जो फर्श पर टकराने लगी. मुझे यह सब करने में अजीब सा थ्रिल महसूस हो रहा थी की मैं शुशु कामोद में करने के बजे बाथरूम के फर्श पर कर रही हूँ.
मेरी शुशु मेरे पूसी लिप्स के बीच से निकल कर सीधे फर्श पर जाकर टकरा रहा था और सब जगह छिड़का रहा था. मेरे शुशु करते हुए एक श श श श की आवाज आ रही थी जो पूरे बाथरूम में गूँज रही थी. कुछ सेकेंड्स तक इस तरह से शुशु करने के बाद शुशु की धार बंद हो गयी.
पहली बार इस तरह से टॉयलेट करने में बड़ा ही अलग सा महसूस हुआ. अगली बार मेने एक और पोजीसन धुंदी. और वो यह थी की नहाने से पहले मेने अपने सारे कपडे उतार लिए और दरवाजे से पेट सटा कर खड़ी हो गयी. और खड़े खड़े ही शुशु करने का सोचा. मेरे स्तन और मेरी पूसी आंशिक रूप से दरवाजे को छू रहे थे. और मेने बिना नीचे देखे शुशु करनी शुरू करदी. और इस बार मेरी शुशु मेरी पूसी से निकल कर दरवाजे से टकराई और वहां से बारिश की तरह से बिखरने लगी जिससे मेरी साड़ी जांघें और घुटनों तक टांगें गीली हो जा रही थी. और शुशु करने की आवाज बड़ी ही मादक थी. बिलकुल अलग. और जब मेरी शुशु निकालनी बंद हो गयी तब मेने दरवाजे से अलग हटा और फिर सारे फर्श को और दरवाजे को पानी से साफ़ कर दिया.
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