Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--25

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बाली उमर की प्यास पार्ट--25

गतान्क से आगे.............

उस दिन मैने खाना भी वहीं खाया और हम तीनो अपनी अपनी किताब खोल कर बैठ गये.. उनका पता नही.. पर मैं सिर्फ़ किताब को खोले बैठी थी.. कुच्छ पढ़ नही रही थी.. वैसे भी अगले दिन संस्कृत का पेपर था और मुझे विश्वास था कि 'वो' पेपर तो 'संदीप' पूरा ही कर देगा.....

अर्रे हां.. मैं 'वो' डॉक्टर वाली बात बताना तो भूल ही गयी थी... जब हम दोनो हॅरी के पास 'वो' गोली लेने गये थे तो मुझे कतयि विश्वास नही था कि हॅरी हमसे इतनी शराफ़त से पेश आएगा.. में समझती थी कि डॉक्टर्स के पास तो इलाज के बहाने कहीं भी हाथ लगाने का लाइसेन्स होता है... और 'उस' गोली के लिए तो मुझे लग रहा था कि हॅरी मेरी सलवार भी खुलवा कर देख सकता है.. दरअसल हॅरी के पास जाने से कुच्छ दिन पहले ही मेरे साथ एक वाक़या हुआ था.....

हुआ यूँ था कि एक दिन स्कूल जाने का दिल ना होने के कारण सुबह सुबह ही मैने पेट-दर्द का बहाना बना लिया और चारपाई में पड़ी रही....

"क्या बात है अंजू? महीना लग गया क्या?" मम्मी ने 11 बजे के आसपास मेरे पास बैठ कर पूचछा..

"नही तो मम्मी... !" मैने कराहते हुए अपने पेट पर हाथ फेरा...

"तो फिर क्या हो गया...? बहुत ज़्यादा दर्द है क्या अभी भी..."

"हां.. ऐंठन सी हो रही है पेट में.. पता नही क्या बात है...?" मैने बुरा सा मुँह बनाकर जवाब दिया...

"तो ऐसा करना... छोटू के आते ही उसको साथ लेकर डॉक्टर के पास चली जाना.. मुझे खेत में देर हो रही है... तेरे पापा भूखे बैठे होंगे सुबह से..!" मम्मी ने कहा ही था की तभी सीढ़ियों से छोटू के आने की आवाज़ सुनाई दी....

"छोटू.. स्कूल से छुट्टी कर ले और अपनी दीदी को लेकर डॉक्टर साहब के पास चला जा... इसका पेट ठीक नही हुआ है.. सुबह से...!" मम्मी ने उसको हिदायत दी...

"छुट्टी का नाम सुनते ही छोटू की भी बाँच्चें खिल गयी..,"चलो.. उठो!"

मैं पहले बताना भूल गयी शायद.. छोटू उस वक़्त पाँचवी में पढ़ता था... मम्मी जा चुकी होती तो मैं उसको टरका भी देती.. पर मजबूरन मुझे खड़ी होकर नीचे उतरना ही पड़ा...

"ये लो चाबी.. और डॉक्टर साहब को अच्छे से बता देना कि कैसा दर्द हो रहा है...."मम्मी ने घर को ताला लगाकर चाबी छोटू को दी और खेत की और चली गयी.. हम अगले 15 मिनिट में गाँव के डॉक्टर की दुकान पर थे.. अनिल चाचा के घर! याद आया ना?

नीचे उनकी दुकान खाली पड़ी थी.. छोटू ने नीचे से आवाज़ दी," चाचा!"

"कौन है..?" चाची बाहर मुंडेर पर आकर बोली और हमें देखते ही उपर चले आने को कहा.. सीढ़ियों से होकर हम उपर चले गये....

अनिल चाचा खाना खा रहे थे... मुझे देखते ही उनकी तबीयत हरी हो गयी..,"क्या हुआ छोटू को, अंजू!"

"मुझे नही चाचा.. अंजू के पेट में दर्द है...!" छोटू तपाक से बोला...

सुनते ही चाचा की आँखें चमक उठी.. उन्होने मुझे उपर से नीचे तक गौर से देखा और बोले...,"ओह्ह्ह.. आजकल " पता नही उन्होने किस बीमारी का नाम लिया..," का बड़ा प्रकोप चल रहा है... चलो नीचे चलो... मैं आता हूँ..." उन्होने कहा और फिर अंदर मुँह करके अपने बेटे को आवाज़ लगाई," अरे प्रिन्स.. देख छोटू आया है.. इसको भी दिखा दे अपने वीडियो गेम्स!"

बस फिर क्या था! वीडियो गेम्स का नाम सुनते ही छोटू तो प्रिन्स के बिना बुलाए ही अंदर घुस गया.. मैने अपने पेट को पकड़े वहीं खड़ी रही...

"चलो..." चाचा ने तुरंत उठकर कुल्ला किया और मेरे साथ नीचे जाने लगे..

"ये रोटिया क्यूँ छ्चोड़ दी... आज 2 ही खाई आपने...!" चाची थाली उठाते हुए बोली...

"बस.. पता नही क्यूँ.. आज भूख नही है..." चाचा ने कहा और मेरे आगे आगे सीढ़ियों से उतरते चले गये...

"हुम्म.. पेट में दर्द हो गया अंजू बेटी?" अनिल चाचा नीचे जाकर अंदर वाले कमरे में अपनी कुर्सी पर बैठ गये और मुझे बोलते हुए इशारे से अपनी ओर बुलाया....

"जी चाचा..." मैं जाकर उनके पास खड़ी हो गयी.. अचानक ही मेरे मंन में 'वो' दिन ताज़ा हो गया जब अनिल चाचा और सुन्दर ने मम्मी का 'इलाज' किया था... उसको याद करते ही मैं थोड़ी सी झेंप सी गयी... बेशक मेरे अंदर 'काम ज्वाला' प्रचंड ही रहती थी.. पर अपनी इस कामग्नी को शांत करने के लिए मेरी अपनी पसंद जवान और कुंवारे लड़के ही थे... कम से कम अनिल चाचा तो मेरी पसंद नही ही थे!

"कब से दर्द है..?" चाचा ने प्यार से मुझसे पूचछा....

"सुबह से ही है चाचा.. जब मैं उठी थी तो पेट में दर्द था..." इस झेंपा झेंपी में मुझे याद ही नही रहा था कि मुझे 'पेट दर्द' भी है.. उनके पूच्छने पर जैसे ही मुझे याद आया.. मैने अपने चेहरे के भाव बदले और अपने पेट पर हाथ रख लिया...

"हूंम्म.. ज़रा कमीज़ उपर करना..!" चाचा ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा...

"ज्जई?" मैं अचानक उनकी बात सुनकर हड़बड़ा सी गयी...

"अरे.. इसमें शरमाने वाली क्या बात है.. डॉक्टर से थोड़ा कोई शरमाता है... वैसे भी तुम... मेरी बेटी जैसी हो.. चाचा बोलती हो ना मुझे..?" उन्होने मुस्कुराते हुए प्यार से कहा...

"जी.. चाचा..!" मेरे पास झिझकने लायक कोई कारण नही बचा था.. मैने अपनी कमीज़ का पल्लू पकड़ा और उसको समेट'ते हुए उपर उठा लिया... पर 'वो' जिस लगन से मेरा पेट देखने को लालायित होकर अपने होंटो पर जीभ फेर'ने लगे थे.. मैं अपना कमीज़ अपनी 'नाभि' से उपर नही उठा पाई.. मेरी चेहरे पर झिझक सॉफ झलक रही थी...

मेरा कमणीय और चिकना पेट देखकर चाचा को अपनी लार संभालनी मुश्किल हो गयी... असहाय से होकर 'वो' एक बार नीचे देखते और फिर अपना चेहरा उपर उठाकर मेरी आँखों में झाँकते.. मानो मेरी आँखों में 'रज़ामंदी' तलाश रहे हों... पर मैं ज़्यादा देर उनकी 'लाल लपटें' छ्चोड़ रही आँखों से आँखें मिला कर ना रख सकी.. और अपने आप ही मेरी नज़रें नीचे झुक गयी...

नीचे झुकते ही मेरी नज़र मेरी सलवार के नाडे पर पड़ी.. मैं शरम के मारे सिहर सी गयी.. नाडे का एक फूँगा बाहर लटक रहा था और डॉक्टर चाचा की नज़र वहीं टिकी हुई थी... मेरी सलवार को नाभि से काफ़ी नीचे बाँधने की आदत थी.. जिसकी वजह से मेरी आधी 'पेल्विस बोन्स' और उनके बीचों बीच नाभि से नीचे मेरे 'योनीप्रदेश' के 'ख़ाके' की शुरुआत सॉफ नज़र आ रही थी.. चाचा को इस तरह 'वहाँ' घतूरता देख मेरे बदन का रोम रोम झनझणा उठा..

मैने तुरंत कमीज़ को नीचे किया और कमीज़ के उपर से ही सलवार को नाडे से पकड़ कर उपर खींचा...

"अर्रे.. ये क्या कर रही हो अंजू...उपर उठाओ ना कमीज़.. शरमाओगी तो मैं इलाज कैसे करूँगा.. तुमने अपना पेट तो ढंग से दिखाया ही नही...!" कहने के बाद चाचा ने कमीज़ उठाने के लिए मेरे हाथों की 'पहल' होने तक की प्रतीक्षा नही की... उन्होने खुद ही कमीज़ का छ्होर पकड़ा और मुझे नाभि से भी काफ़ी उपर तक नंग धड़ंग कर दिया... व्याकुलता, शर्म और उत्तेजना के मारे मेरी टांगे काँपने लगी.. जैसे ही नज़रें झुका कर मैने नीचे देखा.. मेरी तो साँसें ही जम गयी... नाडे से पकड़ कर सलवार उपर खींचने का मेरा दाँव उल्टा पड़ गया था... खिचने की वजह से नाडा कुच्छ और ढीला हो गया था और अब मेरी 'योनि' के पेडू पर उगे हुए हल्क सुनहरी रंग के रेशमी 'फुनगे' थोड़े थोड़े मेरी सलवार से बाहर झाँक रहे थे...

"चाच्चा...." जैसे ही चाचा ने अपनी पूरी हथेली मेरे पेट पर रख कर मेरी नाभि को ढका.. मेरा पूरा बदन जल उठा....

"ओह्ह.. यहाँ दर्द है क्या?" चाचा ने मेरी 'आह' को मेरी शारीरिक पीड़ा समझ कर एक बार उपर देखा और फिर से नज़रें झुका कर सलवार और पेट के बीच की खाली दरार से अंदर झाँकने की कोशिश करते हुए उंगलियों से मेरे पेट को यहाँ वहाँ दबा दबा कर देखने लगे.....

चाचा को इलाज के बहाने मेरी योनि का X-रे उतारने की कोशिश करते देख मेरा बुरा हाल हो गया था... उत्तेजना से अभिभूत होकर मैं अपने आप पर काबू पाने की कोशिश करती हुई अपनी जांघों को कभी खोलने और कभी बंद करने लगी..

सिर्फ़ कमीज़ के कपड़े में बिना 'ब्रा' या समीज़ के मेरी चूचियो के दानो को भी मस्ताने का मौका मिल गया और उन्होने भी अकड़ कर खड़े हो 'मेरे' यौवन का झंडा बुलंद करने में कोई कसर ना छ्चोड़ी... जल्द ही बाहर से ही उनकी मक्का के दाने जैसी चौन्च नज़र आने लगी... मैं सिसकती हुई अपनी साँसों को अपने अंदर ही दफ़न करने की कोशिश करती हुई दुआ कर रही थी की चाचा की चेकिंग जल्दी ही समाप्त हो.... पर तब तो सिर्फ़ शुरुआत हुई थी....

"जा.. उपर जाकर तेरी चाची से थोड़ा गरम पानी करवा कर ला.. कहना 'दवाई' तैयार करनी है..." चाचा ने कहकर मुझे छ्चोड़ा तो मैने राहत की साँस ली...

उपर जाते ही मैने चाची को पानी गरम करने को बोला और सीधी बाथरूम में घुस गयी... नाडा खोल कर मैने योनि का जयजा लिया... उत्तेजना से फूल कर तिकोने आकर में कटी हुई पाव रोटी जैसी हो चुकी योनि धीरे धीरे रिस रही थी... मैने बैठकर पेशाब किया और उसस्पर ठंडे पानी के छींटे मारे... तब जाकर मेरी साँसें सामानया हो सकी... खड़ी होकर मैने वहाँ टँगे तौलिए से उसको अच्छि तरह पौंच्छा और 'नाडा' कसकर बाँध कर बाहर निकल आई..

बाहर एक पतीले में पानी तैयार रखा था... मैं उसको उठाकर नीचे चाचा के पास ले आई....

"शाबाश.. यहाँ रख दो.. टेबल पर...!" चाचा अभी भी कमरे के कोने में रखी कुर्सी पर ही बैठे हुए थे...

"कौनसी क्लास में हो गयी अंजू!" चाचा ने पानी को छ्छू कर देखते हुए कहा..

"10 वी में चाचा जी..." पहले की अपेक्षा अब मेरी आवाज़ में आत्मविश्वास सा झलक रहा था...

"तू तो बड़ी जल्दी जवान हो गयी.. अभी तक तो छ्होटी सी थी तू.. अब देख!" चाचा की नज़रों का निशाना मेरे उन्नत उरोज थे... उनका हाथ रह रह कर उनकी जांघों के बीच जा रहा था....

मैं उनकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दे पाई...

"क्या कर रही थी तेरी चाची..?" चाचा जी ने पूचछा...

"जी.. लेटी हुई थी चाचा जी..!" मैने उनकी आँखों में आँखें डाल कर कहा.. पर उनकी नज़रें अभी भी मेरी चूचियो में ही कहीं अटकी हुई थी...

"इधर आ जा... तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे किसी अजनबी के पास खड़ी है.." चाचा ने कहा और मेरे थोड़ी आगे सरकते ही मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मुझे पहले से भी ज़्यादा करीब कर लिया...,"चल.. कमीज़ उपर उठा... शाबाश.. शरमाना नही... अरे.. और उपर करो ना.." कहते हुए चाचा ने खुद ही मेरा कमीज़ इतनी उपर उठा दिया कि उनका हाथ ज़ोर से मेरी चूचियो से टकरा गया.. मैं मस्ती से गन्गना उठी... अब कमीज़ मेरी चूचियो से एक इंच नीचे इकट्ठा हो गया था... शायद मेरी सुडौल छातिया आड़े ना आती तो कमीज़ उनसे भी उपर ही होता...

कमीज़ को इतना उपर उठाने के बाद चाचा ने मेरी आँखों में आँखें डाली.. पर में निशब्द: खड़ी रही.. मैने अपने मॅन की उथल पुथल उनके सामने प्रकट नही होने दी....

थोड़ी देर यूँही इधर उधर की हांकते हुए मेरे पुलकित उरजों का कमीज़ के उपर से रसास्वादन करने के बाद उनकी निगाह नीचे गयी और नीचे देखते ही 'वो' बनावटी गुस्से से झल्ला कर बोले," ओफ्फूह.. ये भी एक कारण है पेट दर्द का.. सलवार को इतनी कसकर क्यूँ बाँधा हुआ है.. इसको ढीला बाँधा करो.. और नीचे.. जहाँ पहले बाँधा हुआ था.. समझी.."

चाचा ने कहा और बला की तेज़ी दिखाते हुए मेरे नाडे की डोर सलवार से बाहर निकाल दी.. मैं बड़ी मुश्किल से उनका हाथ पकड़ पाई.. वरना 'वो' तो उसको पकड़ कर खींचने ही वाले थे..,"चाचा...." मैं कसमसा कर रह गयी..

"इसको खोल कर अभी के अभी ढीला करो..." मेरी आवाज़ में हल्का सा प्रतिरोध जानकर चाचा थोड़े ढीले पड़ गये और उन्होने नाडा छ्चोड़ दिया...

मैं अनमानी सी उनके चेहरे को देखती रह गयी.. 'ना' करने की मुझमें हिम्मत नही थी... सच कहूँ तो इतनी हरकत होने के बाद 'दिल' भी नही था.. 'ना' करने का...

"अरे.. ऐसे क्या देख रही हो... अपने चाचा को खा जाने का इरादा है क्या? खोल कर बांधो इसको...!"

"जी.. चाचा.." मैने कह कर अपना कमीज़ नीचे किया और मुड़ने लगी तो उन्होने मुझे पकड़ लिया..,"देख अंजू.. या तो मुझे चाचा कहना बंद कर दे या फिर ऐसे शरमाना छ्चोड़ दे... तुझे नही पता हम डॉक्टर्स को क्या क्या देखना पड़ता है... फिर तू तो मेरी प्यारी सी बेटी है..." कहकर वो खड़े हुए और मेरे गालों को चूम लिया...

"ठीक है चाचा...!" मैं हड़बड़ा कर बोली....

"ठीक क्या है..! अभी मेरे सामने ही सलवार को खोलो और ढीला करके बांधो.. मैं देखूँगा कि ठीक जगह पर बँधा है या नही..!" चाचा बोलकर वापस कुर्सी पर बैठ गये...

"पर चाचा..." मैं गहरी असमन्झस में थी...

"पर क्या? वो दिन भूल गयी जब मैं तेरी कछि नीचे करके 'यहाँ' इंजेक्षन लगता था..." चाचा ने मेरे गदराए हुए मांसल नितंबों पर थपकी मार कर कहा.. मेरी क्षणिक उत्तेजना अचानक चरम पर जा पहुँची..," तुझे एक बात बताउ?" बोलते हुए चाचा ने मुझे अपनी तरफ घूमकर अपने दोनो हाथ ही मेरे नितंबों पर रख लिए..,"इलाज के लिए तो मुझे तुझसे भी बड़ी लड़कियों को कयि बार पूरी तरह नंगी करना पड़ता है... सोचो.. उन्न पर क्या बीत'ती होगी.. पर इलाज के लिए तो शर्म छ्चोड़नी ही पड़ेगी ना बेटी...?"

"जी.. चाचा जी.." मैने सहमति में सिर हिलाया और अपने नाडे की डोर खींच दी..

"शाबाश.. अब ढीला करके बांधो इसको.." कहते हुए जैसे ही चाचा ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाए.. मैं बोल उठी..,"म्मे.. बाँध लूँगी चाचा जी.. ढीला..."

"हां हां.. तुम्ही बांधो.. मैं सिर्फ़ बता रहा हूँ कि कितना ढीला बाँधना है..." चाचा ने कहा और मुझे अपने करीब खींच कर मेरी खुली सलवार के अंदर झाँकने लगे.. जितना जल्दी हो सका मैने अपना 'खुला दरबार' समेट लिया.. पर चाचा मेरी गोरी गदरेली योनि की एक झलक तो ले ही गये... उनकी आँखों की चमक सॉफ बता रही थी... मैं पछ्ता रही थी कि चाचा के पास आने से पहले 'कछि क्यूँ नही पहन कर आई.....

चाचा ने अपना हाथ मेरी कमर में ले जाकर मेरी सलवार समेत थोड़े से नाडे को मुट्ठी में लपेट लिया.. मैं उनके हाथ के अंदर जाने की कल्पना से सिहर उठी थी.. पर गनीमत था कि ऐसा नही हुआ...

"हां.. अब बाँध लो; जितना कसकर तुम्हे बाँधना है...!" चाचा मेरी हालत पर भी मुस्कुरा रहे थे... मैने काँपते हुए हाथों से जितना हो सका कसकर अपनी सलवार को बाँध लिया.. पर मुझे विश्वास था कि चाचा के अपनी मुट्ठी में दबाए हुए नाडे को छ्चोड़ते ही 'सलवार' अपने आप निकल ही जानी है..

"हुम्म.. कमीज़ उपर उठाओ.. जितना मैने उठाया था..." चाचा ने अभी मेरी सलवार को नही छ्चोड़ा था....

मुझे वैसा ही करना पड़ा... मेरी दानो की कसक एक बार फिर नंगेपन को 'नज़दीक' पाकर बढ़ गयी थी.. और 'वो' फिर से सिर उठाकर खड़े हो गये थे... मेरी छातियो से नीचे और नाभि से उपर का चिकना सपाट और गोरा बदन देख कर चाचा पूरी तरह मस्त हो चले थे और उनके दूसरे हाथ की हरकतें उनकी जांघों के बीच बढ़ गयी थी... जैसे ही उन्होने अपना हाथ वहाँ से हटाया.. 'उनके' पाजामे में तना हुआ तंबू मुझे सॉफ दिखाई देने लगा....

शर्म की हद तक शरमाने के बावजूद मुझे मज़ा भी आ रहा था और डर भी लग रहा था... अचानक 'वो' अपने हाथ को मेरे पेट पर ले आए और प्यार से 'उसको सहलाने लगे..,"मैं जगह जगह दबा कर देखूँगा.. ये बताना कि दर्द कहाँ हो रहा है.. और कहाँ नही....!"

मैने कसमसा कर अपनी जांघों को भींच लिया और सहमति में अपना सिर हिलाया.. जैसे जैसे उनका हाथ उपर जाता गया.. मेरे दिल की धड़कन बढ़ती चली गयी और चूचियो में अकड़न सी आनी शुरू हो गयी...,"अया..." मेरे मुँह से निकल ही गया...

"यहाँ दर्द है क्या?" जब मेरी सिसकी निकली तो उनका हाथ कमीज़ के अंदर घुस कर मेरी चूचियो को छ्छू गया था.. भला तब भी मैं अपनी सिसकी निकालने से कैसे रोक पाती...

उन्होने अपना हाथ वापस नही खींचा बुल्की वहीं अपनी उंगलियों को दायें बायें करके मेरी मखमली चूचियो को थिरकने से लगे.. मेरी आँखें बंद हो गयी थी और साँसें 'आहें' बनकर निकल रही थी.. उन्होने एक बार फिर पूचछा,"यहाँ दर्द है क्या अंजू बेटी...!"

"आ.. नही.. चा...चा.. नी.. छे!" मैं पूरी तरह पिघल चुकी थी....

"कितनी नीचे बेटी?" उन्होने अपना हाथ एक तरफ खिसका कर मेरी बाईं चूची को दबाना शुरू कर दिया था.....

"नीचे चाचा.. यहाँ नही...!" मैने अपना हाथ उपर उठा कर कमीज़ के उपर से ही अपनी छाती को अपने कब्ज़े में ले लिया.. नही तो तब तक पूरी छाती को उनका हाथ लपेट चुका होता....

"ठीक है.. नीचे देखते हैं..."कहकर उन्होने अपनी उंगलियाँ कमीज़ से बाहर निकाली और एक बार फिर से 'पतीले में हाथ डूबा कर देखा...,"हां.. अब ठीक हो गया है.. तेरे पेट की थोड़ी सिकाई (वॉरमिंग) कर देता हूँ...." कहकर उन्होने दूसरे हाथ से मेरी कमर में पकड़े हुए नाडे को छ्चोड़ दिया.. और तुरंत ही मेरी सलवार ढीली होकर नीचे खिसक गयी.. भला हो मेरे पहाड़ जैसे ऊँचे उठे हुए नितंबों का.. जिन्होने सलवार को घुटनो तक आने से रोक लिया.... पर इसके बावजूद आगे से मेरी योनि का पेडू लगभग आधा दिखने लगा था.. मेरी योनि का 'चीरा' मुश्किल से एक इंच नीचे ही रह गया होगा...

मैं गन्गना उठी.. पर कुच्छ कर ना सकी.. चाचा एक हाथ से मेरे दोनो हाथ पकड़े हुए थे और ललचाई आँखों से 'पेडू' को निहार रहे थे........

"नही चाचा..." उनकी नीयत भाँप कर मैं काँप उठी...

"ओह्हो.. फिर वही बात..." चाचा ने आगे कुच्छ नही कहा और अपना दूसरा हाथ गरम पानी में डुबो कर मेरी 'योनि' के पास रख दिया.... मुझे अजीब सी गुदगुदी उठी और मैं सिहर गयी.. एक दो बार और ऐसा करते ही पानी की बूँदें छ्होटी छ्होटी धाराओं का रूप धारण कर मेरी सलवार में घुसने लगी और हल्का गरम पानी टॅप टॅप करके मेरी योनि दरार में से रिसने लगा... मेरा बुरा हाल हो गया... अब मुझे यक़ीनन तौर पर दूसरे इलाज की ज़रूरत महसूस होने लगी थी...,"अया... चच्च्चाआअह्ह्ह!"

"आराम मिल रहा है ना...!" चाचा की लपलपाति जीभ और नज़रें अब सीधी मेरी आधी दिखाई देने लगी मेरी योनि की करारी फांकों पर थी.... मुझे अहसास तक नही हुआ कि कब उन्होने अपना दूसरा हाथ वापस पिछे ले जाकर मेरी सलवार को नितंबों से नीचे सरकाना शुरू कर दिया है.. और अब उनकी उंगलिया मेरे नितंबों की दरार में कुच्छ टटोल रही हैं...

और जब अहसास हुआ.. 'और' अहसास लेने की तमन्ना परवान चढ़ चुकी थी... अब मैं अपनी आँखें बंद किए हुए लगातार बिना हिचके सिसकियाँ ले रही थी.. और उन्होने भी अब सिकाई छ्चोड़ कर पिच्छले हाथ की उंगली से मेरे गुदा द्वार को और आगे वाले हाथ की उंगली से मेरे 'मदनमानी (क्लाइटॉरिस) को कुरेदना शुरू कर दिया था.....

मैने सिसकियों की हुंकार सी भरते हुए अपनी एडियो को उपर उठा लिया...

"मज़ा आ रहा है ना अंजू..! आराम मिल रहा है ना...?" चाचा ने उंगली का दबाव मेरी गुदद्वार पर बढ़ाते हुए पूचछा....

"आआहाआँ.. पूरा... मज़ा आआ.. रहा है चाचा... कुच्छ और करिए ना..!" मैने लरजते हुए लबों से कहा...

"वो वाला करूँ.. क्या?" मेरे पागलपन का अहसास होते ही चाचा ने तपाक से मेरी सलवार नितंबों से नीचे खींची और कुर्सी से नीचे बैठ कर मेरे नितंबों को कसकर अपने हाथों में दबोचे मेरी योनि को होंटो में भींच लिया...

"अया.. चाचा... मैं तो मर गयी..." सिसकते हुए मैं उनकी जीभ को अपनी योनि की फांकों में महसूस करने लगी...

"बता ना... 'वोही' इलाज करूँ क्या तेरा भी......! जो तेरी मम्मी का किया था.. तू तो 'पूरा लेने लायक हो गयी है...साली!" चाचा ने जैसे ही बोलने के लिए अपने होन्ट मेरी योनि से दूर किए.. मुझे ऐसा लगा मानो मेरी मछ्लि किसी ने जल से बाहर निकाल कर फैंक दी... मैने तुरंत चाचा के सिर को पकड़ा और वापस उनके होन्ट 'वहीं; चिपका दिए...

पर शायद चाचा को उतनी जल्दी नही थी जितनी मुझे... 'वो' मुझे तड़पति छ्चोड़ कर अलग हट गये..," तू देखती जा मैं तुझे कितने मज़े देता हूँ... आज तेरी चूत का उद्घाटन करूँगा अंजू.. बड़े प्यार से.. देखना कितने मज़े आएँगे.. तेरी मम्मी भी पूरे मज़े से चुदवा रही थी ना....?"

"जल्दी करो ना चाचा.. बीच में क्यूँ छ्चोड़ दिया..." मैं तड़प कर बोली....

"हाँ हाँ.. अभी करता हूँ ना सब कुच्छ...! जा एक बार सलवार पहन कर तेरी चाची को देख कर आ 'वो' क्या कर रही है...? फिर देता हूँ तुझे सारे मज़े...!" चाचा ने अपना लिंग निकाल कर मुझे दिखाया..," याद है ना तुझे सब कुच्छ... इस'से तेरी मम्मी ने कितने मज़े लिए थे.. याद है कि नही...?"

मैने बिना कोई जवाब दिए फटाफट अपनी सलवार पहनी और बाहर निकल गयी.. पर जैसे ही मैं सीढ़ियों में पहुँची.. मेरा दिल धक से रह गया.. चाची नीचे ही आ रही थी... मंन ही मंन भगवान को मैने कितनी बार याद किया मुझे खुद भी याद नही...

"क्या हुआ अंजू? इतनी देर कैसे लगा दी.. अभी तक तुझे दवाई नही दी उन्होने..." चाची को शायद मेरी उड़ी हुई रंगत देख कर शक हो गया होगा.. तभी वो मुझे लगातार घूरती रही....

"म्‍म्मे.. मैं तो घर चली गयी थी चाची.. अभी आई हूँ छोटू को बुलाने..." मैने बोलते हुए अपनी हड़बड़ाहट छिपाने की पूरी कोशिश की.. साथ ही नीचे आते हुए ऊँची आवाज़ में बोला ताकि चाचा भी सुन लें....

नीचे आते ही चाची चाचा पर बरस पड़ी..,"यहाँ क्या कर रहे हो जी.. उपर क्यूँ नही आए?"

"वो.. शांति.. वो मैं अख़बार पढ़ रहा था.. थोडा सा!" चाचा ने मेरी बात सुनकर पहले ही अख़बार उठा लिया था....

"देखो जी.. थोड़ा पढ़ो या ज़्यादा.. खम्ख्वह नीचे मत बैठा करो.. उपर आकर पढ़ लो जो भी पढ़ना है....!"

"ओफ्फो.. बच्चों के आगे तो सोच समझ कर बोल लिया करो... चलो.." कहते हुए चाचा अख़बार से अपने पयज़ामे के उभार को ढके हुए चाची के साथ उपर चढ़ने लगे.... मेरी उपर जाने की हिम्मत नही हुई..," छोटू को भेज दो चाची!" मैने नीचे से ही कहा और हाँफती हुई घर भाग आई....
"आअनहाआँ?" किताब खोले बैठी हुई मैं यादों के भंवर में कुच्छ इस तरह खो गयी थी कि जैसे ही पिंकी ने मेरा कंधा हिलाकर मुझे टोका.. मैं हड़बड़ा सी गयी...,"क्क्या है..?"

"नींद आ गयी क्या?" पिंकी ने पूचछा...

"न.नही तो..! पढ़ रही हूँ...!" मैं जैसे सच में ही नींद से जागी थी...

"अच्च्छा? क्या पढ़ रही है बता तो?" पिंकी ने हंसते हुए कहा...

"ये.." बोलना शुरू करते ही जैसे ही मैने नीचे देखा.. मेरी सिट्टी पिटी गुम हो गयी.. मेरी किताब तो वहाँ थी ही नही..,"क्क्या है ये पिंकी? मेरी किताब क्यूँ उठा ली??" मैने बड़बड़ाते हुए अपनी आँखें मली...

"देखा! सो गयी थी ना? तेरी किताब मीनू दीदी ने उठाकर रखी थी.. 5 मिनिट हो गये..!" पिंकी हंसते हुए बोल रही थी...

"दीदी कहाँ हैं?" मैने मीनू की चारपाई को देख कर पूचछा... 'वो' वहाँ नही थी...

"वो उपर गयी हैं.. कुच्छ काम होगा.. जाकर मुँह धो ले.. अब तो बस दो दिन की बात रह गयी.. फिर मज़े ही मज़े.. बहुत दिन की छुट्टिया होंगी..." पिंकी का चेहरा खिल उठा...

"हूंम्म.. तू क्या करेगी छुट्टियो में..?" मैने पूचछा.. यादों का खुमार दिल से उतर चुका था...

"कुच्छ नही.. मैं तो ऐश करूँगी...हे हे" पिंकी हंसते हुए बोली.. और फिर संजीदा हो गयी,"पर मीनू दीदी कह रही हैं कि कंप्यूटर सीख ले... देखूँगी!"

"कहाँ?" मैने पूचछा...

"शहर में.. दीदी अपने साथ ले जाने को बोल रही हैं...!" पिंकी ने चहकते हुए कहा...

सुनकर मैं मायूस हो गयी... मैने उस दिन देखा था.. शहर के लड़कियाँ कैसे अकेली बैठकर लड़कों के साथ गुटार-गू करती रहती हैं... मेरा भी शहर पढ़ने का बड़ा मंन था.. पर 'पापा' के रहते मेरा ये सपना कभी पूरा नही होने वाला था....

"क्या हुआ?" पिंकी ने मेरे चेहरे की मायूसी को पढ़ लिया था..,"दीदी कह रही हैं कि 'वो' तेरे लिए भी पापा से चाचा को कहलवा देंगी...!"

"पापा नही मानेंगे..! मुझे पता है..!" मैने कहा...

"अच्च्छा! क्यूँ नही मानेंगे.. कंप्यूटर तो बहुत काम की चीज़ है.. आज कल तो सबके लिए ज़रूरी हो गया है 'वो!" पिंकी ने मुझे भरोसा सा दिलाया...

"नही... पर..." मैं बोलकर खामोश हो गयी...

"बता ना! क्या बात है..?"

"पापा नही भेजेंगे.. मुझे पता है.. 'जब 'वो' गाँव के स्कूल में नही भेजते तो शहर कैसे भेज देंगे..!" मैने दुखी मंन से बोला...

"पर तुझे 'वो' स्कूल क्यूँ नही भेजते.. क्या बात हो गयी?" पिंकी आकर मेरे कंबल में घुस गयी...

"ववो.. एक दिन क्लास के किसी लड़के ने मेरे बॅग में 'गंदा' सा खत लिख कर डाल दिया था.. 'वो' पापा को मिल गया.. बस तभी से...!" मैने बोल कर अपनी नज़रें झुका ली...

"हाए राम! तूने 'वो' फाड़ कर क्यूँ नही फैंका देखते ही... एक दिन मेरे बाग में भी मुझे लेटर मिला था... मैने तो थोड़ा सा पढ़ते ही टुकड़े टुकड़े करके फैंक दिया था.....!" पिंकी मुझ पर गुस्सा होते हुए बोली...

"मुझे मिलता तभी तो... 'वो' छोटू के हाथ लग गया और उसने पापा को पकड़ा दिया.... उस दिन.." मैं बोल ही रही थी कि तभी मीनू आ गयी और मेरी आवाज़ धीमी होते होते गायब ही हो गयी....

मीनू ने हमारे पास आकर अपने दोनो हाथ कुल्हों पर टीका लिए,"आख़िर तुम्हारे बीच 'ये' चल क्या रहा है..? मेरे जाते ही तुम दोनो पास आकर ख़ुसर फुसर करने लग जाती हो... क्या चक्कर है ये?"

"कुच्छ नही दीदी.. ववो.. अंजू कह रही है कि उसके पापा उसको शहर नही जाने देंगे... यही बात थी.." पिंकी बोलते हुए थोड़ा हड़बड़ा सी गयी...

"वो बाद की बात है.. मैं देख लूँगी.. अभी तुम्हारे 2 पेपर बाकी हैं.. अलग अलग बैठ कर पढ़ाई कर लो.. मैं उपर जा रही हूँ.. 11 बजे आउन्गि.. कोई सी भी सोती मिली तो देख लेना... ठंडा पानी डाल दूँगी आते ही...!" मीनू ने कहा और अपनी किताब उठा कर जाने लगी...

"हम साथ साथ बैठ कर पढ़ रहे हैं दीदी.. एक दूसरे से 'रूप' और 'धातु' सुनकर देख रहे हैं..."पिंकी की ये बात मीनू ने अनसुनी कर दी और उपर चली गयी....


क्रमशः........................
.
gataank se aage.............

Uss din maine khana bhi wahin khaya aur hum teeno apni apni kitab khol kar baith gaye.. Unka pata nahi.. Par main sirf kitab ko khole baithi thi.. kuchh padh nahi rahi thi.. waise bhi agle din sanskrit ka paper tha aur mujhe vishvas tha ki 'wo' paper toh 'Sandeep' poora hi kar dega.....

Arrey haan.. Main 'wo' doctor wali baat batana toh bhool hi gayi thi... Jab hum dono Harry ke paas 'wo' goli lene gaye the toh mujhe katayi vishvas nahi tha ki Harry humse itni sharafat se pesh aayega.. mein samajhti thi ki doctors ke paas toh ilaaj ke bahane kahin bhi hath lagane ka license hota hai... aur 'uss' goli ke liye toh mujhe lag raha tha ki Harry meri salwar bhi khulwa kar dekh sakta hai.. Darasal Harry ke paas jane se kuchh din pahle hi mere sath ek wakya hua tha.....

Hua yun tha ki ek din School jane ka dil na hone ke karan subah subah hi maine pate-dard ka bahana bana liya aur charpayi mein padi rahi....

"Kya baat hai Anju? Mahina lag gaya kya?" Mummy ne 11 baje ke aaspaas mere paas baith kar poochha..

"Nahi toh mummy... !" Maine karahte huye apne pate par hath fera...

"Toh fir kya ho gaya...? Bahut jyada dard hai kya abhi bhi..."

"Haan.. aithan si ho rahi hai pate mein.. pata nahi kya baat hai...?" Maine bura sa munh banakar jawab diya...

"Toh aisa karna... Chhotu ke aate hi usko sath lekar doctor ke paas chali jana.. mujhe khet mein der ho rahi hai... Tere papa bhookhe baithe honge subah se..!" Mummy ne kaha hi tha ki tabhi seedhiyon se chhotu ke aane ki aawaj sunayi di....

"Chhotu.. School se chhutti kar le aur apni didi ko lekar doctor sahab ke paas chala ja... Iska pate theek nahi hua hai.. subah se...!" Mummy ne usko hidayat di...

"Chhutti ka naam sunte hi chhotu ki bhi baanchhein khil gayi..,"Chalo.. utho!"

Main pahle batana bhool gayi shayad.. Chhotu uss waqt paanchvi mein padhta tha... Mummy ja chuki hoti toh main usko tarka bhi deti.. Par majbooran mujhe khadi hokar neeche utarna hi pada...

"Ye lo chabi.. aur doctor sahab ko achchhe se bata dena ki kaisa dard ho raha hai...."Mummy ne ghar ko tala lagakar chabi chhotu ko di aur khet ki aur chali gayi.. Hum agle 15 minute mein gaanv ke doctor ki dukaan par the.. Anil chacha ke ghar! yaad aaya na?

Neeche unki dukaan khali padi thi.. Chhotu ne neeche se aawaj di," Chachaaaaa!"

"Koun hai..?" Chachi bahar munder par aakar boli aur hamein dekhte hi upar chale aane ko kaha.. Seedhiyon se hokar hum upar chale gaye....

Anil chacha khana kha rahe the... Mujhe dekhte hi unki tabiyat hari ho gayi..,"Kya hua chhotu ko, Anju!"

"Mujhe nahi chacha.. Anju ke pate mein dard hai...!" Chhotu tapak se bola...

Sunte hi chacha ki aankhein chamak uthi.. unhone mujhe upar se neeche tak gour se dekha aur bole...,"Ohhh.. aajkal " Pata nahi unhone kis bimari ka naam liya..," ka bada prakop chal raha hai... chalo neeche chalo... main aata hoon..." Unhone kaha aur fir andar munh karke apne bete ko aawaj lagayi," Arey Prince.. dekh chhotu aaya hai.. isko bhi dikha de apne video games!"

Bus fir kya tha! video games ka naam sunte hi chhotu toh Prince ke bina bulaye hi andar ghus gaya.. Maine apne pate ko pakde wahin khadi rahi...

"Chalo..." Chacha ne turant uthkar kulla kiya aur mere sath neeche jane lage..

"Ye rotiya kyun chhod di... aaj 2 hi khayi aapne...!" Chachi thali uthate huye boli...

"Bus.. pata nahi kyun.. aaj bhookh nahi hai..." Chacha ne kaha aur mere aage aage seedhiyon se utarte chale gaye...

"Humm.. pate mein dard ho gaya Anju beti?" Anil chacha neeche jakar andar wale kamre mein apni kursi par baith gaye aur mujhe bolte huye ishare se apni aur bulaya....

"Ji chacha..." Main jakar unke paas khadi ho gayi.. achanak hi mere mann mein 'wo' din taza ho gaya jab Anil chacha aur Sunder ne mummy ka 'ilaaj' kiya tha... Usko yaad karte hi main thodi si jhenp si gayi... Beshak mere andar 'kaam jwala' prachand hi rahti thi.. par apni iss kaamagni ko shant karne ke liye meri apni pasand jawan aur kunware ladke hi the... Kum se kum Anil chacha toh meri pasand nahi hi the!

"Kab se dard hai..?" Chacha ne pyar se mujhse poochha....

"Subah se hi hai chacha.. jab main uthi thi toh pate mein dard tha..." Iss jhenpa jhenpi mein mujhe yaad hi nahi raha tha ki mujhe 'patedard' bhi hai.. Unke poochhne par jaise hi mujhe yaad aaya.. maine apne chehre ke bhav badle aur apne pate par hath rakh liya...

"Hummm.. jara kameej upar karna..!" Chacha ne meri aankhon mein aankhein daal kar kaha...

"jji?" Main achanak unki baat sunkar hadbada si gayi...

"arey.. ismein sharmane wali kya baat hai.. doctor se thoda koyi sharmata hai... waise bhi tum... meri beti jaisi ho.. chacha bolti ho na mujhe..?" Unhone muskurate huye pyar se kaha...

"Ji.. chacha..!" Mere paas jhijhakne layak koyi karan nahi bacha tha.. Maine apni kameej ka pallu pakda aur usko samet'te huye upar utha liya... Par 'wo' jis lagan se mera pate dekhne ko lalayit hokar apne honton par jeebh fer'ne lage the.. main apna kameej apni 'nabhi' se upar nahi utha payi.. meri chehre par jhijhak saaf jhalak rahi thi...

Mera kamneey aur chikna pate dekhkar chacha ko apni laar sambhalni mushkil ho gayi... Asahay se hokar 'wo' ek baar neeche dekhte aur fir apna chehra upar uthakar meri aankhon mein jhaankte.. Mano meri aankhon mein 'rajamandi' talaash rahe hon... par main jyada der unki 'laal lapatein' chhod rahi aankhon se aankhein mila kar na rakh saki.. aur apne aap hi meri najarein neeche jhuk gayi...

Neeche jhukte hi meri najar meri salwar ke naade par padi.. Main sharam ke maare sihar si gayi.. Naade ka ek funga bahar latak raha tha aur doctor chacha ki nazar wahin tiki huyi thi... Meri salwar ko nabhi se kafi neeche baandhne ki aadat thi.. Jiski wajah se meri aadhi 'pelvis bones' aur unke beechon beech nabhi se neeche mere 'yonipradesh' ke 'khake' ki shuruaat saaf nazar aa rahi thi.. Chacha ko iss tarah 'wahan' ghtoorta dekh mere badan ka rom rom jhanjhana utha..

Maine turant kameej ko neeche kiya aur kameej ke upar se hi salwar ko naade se pakad kar upar kheencha...

"Arrey.. ye kya kar rahi ho Anju...upar uthao na kameej.. sharmaaogi toh main ilaaj kaise karoonga.. tumne apna pate toh dhang se dikhaya hi nahi...!" Kahne ke baad chacha ne kameej uthane ke liye mere hathon ki 'pahal' hone tak ki prateeksha nahi ki... Unhone khud hi kameej ka chhor pakda aur mujhe nabhi se bhi kafi upar tak nang dhadang kar diya... Vyakulta, sharm aur uttejana ke maare meri taange kaanpne lagi.. Jaise hi najrein jhuka kar maine neeche dekha.. meri toh saansein hi jam gayi... Naade se pakad kar salwar upar kheenchne ka mera daanv ulta pad gaya tha... Khichne ki wajah se nada kuchh aur dheela ho gaya tha aur ab meri 'yoni' ke pedu par uge huye hulke sunhari rang ke reshami 'funage' thode thode meri salwar se bahar jhank rahe the...

"chachchaaaaah...." Jaise hi chacha ne apni poori hatheli mere pate par rakh kar meri nabhi ko dhaka.. mera poora badan jal utha....

"Ohh.. yahan dard hai kya?" Chacha ne meri 'aah' ko meri sharirik peeda samajh kar ek baar upar dekha aur fir se najrein jhuka kar salwar aur pate ke beech ki khali daraar se andar jhankne ki koshish karte huye ungaliyon se mere pate ko yahan wahan daba daba kar dekhne lage.....

chacha ko ilaaj ke bahane meri yoni ka X-ray utaarne ki koshish karte dekh mera bura haal ho gaya tha... uttejana se abhibhoot hokar main apne aap par kaabu paane ki koshish karti huyi apni jaanghon ko kabhi kholne aur kabhi band karne lagi..

Sirf kameej ke kapde mein bina 'bra' ya sameej ke meri chhatiyon ke daano ko bhi mastaane ka mouka mil gaya aur unhone bhi akad kar khade ho 'mere' youvan ka jhanda buland karne mein koyi kasar na chhodi... Jald hi bahar se hi unki makka ke daane jaisi chounch najar aane lagi... Main sisakti huyi apni saanson ko apne andar hi dafan karne ki koshish karti huyi dua kar rahi thi ki chacha ki cheking jaldi hi samapt ho.... Par tab toh sirf shuruaat huyi thi....

"Ja.. upar jakar teri chachi se thoda garam pani karwa kar la.. kahna 'dawayi' taiyaar karni hai..." Chacha ne kahkar mujhe chhoda toh maine rahat ki saans li...

Upar jate hi maine chachi ko pani garam karne ko bola aur seedhi bathroom mein ghus gayi... Nada khol kar maine yoni ka jayja liya... uttejna se phool kar tikone aakar mein kati huyi paav roti jaisi ho chuki yoni dheere dheere ris rahi thi... Maine baithkar peshab kiya aur usspar thande pani ke chheente maare... tab jakar meri saansein samanya ho saki... Khadi hokar maine wahan tange touliye se usko achchhi tarah pounchha aur 'naada' kaskar baandh kar bahar nikal aayi..

Bahar ek patile mein pani taiyaar rakha tha... Main usko uthakar neeche chacha ke paas le aayi....

"Shabaash.. yahan rakh do.. table par...!" Chacha abhi bhi kamre ke kone mein rakhi kursi par hi baithe huye the...

"Kounsi class mein ho gayi Anju!" Chacha ne pani ko chhoo kar dekhte huye kaha..

"10 vi mein chacha ji..." Pahle ki apeksha ab meri aawaj mein aatmvishvas sa jhalak raha tha...

"Tu toh badi jaldi jawan ho gayi.. abhi tak toh chhoti si thi tu.. ab dekh!" Chacha ki najron ka nishana mere unnat uroj the... Unka hath rah rah kar unki jaanghon ke beech ja raha tha....

Main unki baat par koyi pratikriya nahi de payi...

"Kya kar rahi thi teri chachi..?" chacha ji ne poochha...

"Ji.. leti huyi thi chacha ji..!" Maine unki aankhon mein aankhein daal kar kaha.. par unki najarein abhi bhi meri chhatiyon mein hi kahin atki huyi thi...

"Idhar aa ja... tu toh aise sharma rahi hai jaise kisi ajnabi ke paas khadi hai.." Chacha ne kaha aur mere thodi aage sarakte hi mera hath pakad kar kheenchte huye mujhe pahle se bhi jyada kareeb kar liya...,"Chal.. kameej upar utha... shabaash.. sharmana nahi... arey.. aur upar karo na.." Kahte huye chacha ne khud hi mera kameej itni upar utha diya ki unka hath jor se meri chhatiyon se takra gaya.. Main masti se gangana uthi... Ab kameej meri chhatiyon se ek inch neeche ikattha ho gaya tha... Shayad meri sudoul chhatiyan aade na aati toh kameej unse bhi upar hi hota...

Kameej ko itna upar uthane ke baad chacha ne meri aankhon mein aankhein daali.. par mein nishabd: khadi rahi.. maine apne mann ki uthal puthal unke saamne prakat nahi hone di....

Thodi der yunhi idhar udhar ki haankte huye mere pulkit urojon ka kameej ke upar se rasaswadan karne ke baad unki nigah neeche gayi aur neeche dekhte hi 'wo' banawati gusse se jhalla kar bole," Offooh.. ye bhi ek karan hai pate dard ka.. Salwar ko itni kaskar kyun baandha hua hai.. isko dheela baandha karo.. aur neeche.. jahan pahle baandha hua tha.. Samjhi.."

chacha ne kaha aur bala ki teji dikhate huye mere naade ki dor salwar se bahar nikal di.. Main badi mushkil se unka hath pakad payi.. warna 'wo' toh usko pakad kar kheenchne hi wale the..,"chachaaaa...." Main kasmasa kar rah gayi..

"Isko khol kar abhi ke abhi dheela karo..." Meri aawaj mein hulka sa pratirodh jaankar chacha thode dheele pad gaye aur unhone nada chhod diya...

Main anmani si unke chehre ko dekhti rah gayi.. 'na' karne ki mujhmein himmat nahi thi... sach kahoon toh itni harkat hone ke baad 'dil' bhi nahi tha.. 'na' karne ka...

"Arey.. aise kya dekh rahi ho... apne chacha ko kha jane ka irada hai kya? khol kar baandho isko...!"

"Ji.. chacha.." Maine kah kar apna kameej neeche kiya aur mudne lagi toh unhone mujhe pakad liya..,"Dekh Anju.. ya toh mujhe chacha kahna band kar de ya fir aise sharmana chhod de... Tujhe nahi pata hum doctors ko kya kya dekhna padta hai... fir tu toh meri pyari si beti hai..." Kahkar wo khade huye aur mere gaalon ko choom liya...

"Theek hai chacha...!" Main hadbada kar boli....

"theek kya hai..! abhi mere saamne hi salwaar ko kholo aur dheela karke baandho.. main dekhoonga ki theek jagah par bandha hai ya nahi..!" Chacha bolkar wapas kursi par baith gaye...

"Par chacha..." Main gahri asamanjhas mein thi...

"Par kya? wo din bhool gayi jab main teri kachchhi neeche karke 'yahan' injection lagata tha..." Chacha ne mere gadraye huye maansal nitambon par thapki maar kar kaha.. Meri kshanik uttejna achanak charam par ja pahunchi..," Tujhe ek baat bataaun?" Bolte huye chacha ne mujhe apni taraf ghumakar apne dono hath hi mere nitambon par rakh liye..,"Ilaaj ke liye toh mujhe tujhse bhi badi ladkiyon ko kayi baar poori tarah nangi karna padta hai... Socho.. unn par kya beet'ti hogi.. par ilaaj ke liye toh sharm chhodni hi padegi na beti...?"

"Ji.. chacha ji.." Maine sahmati mein sir hilaya aur apne naade ki dor kheench di..

"shaabash.. ab dheela karke baandho isko.." Kahte huye jaise hi chacha ne meri taraf hath badhaye.. main bol uthi..,"mmain.. baandh loongi chacha ji.. dheela..."

"haan haan.. tumhi baandho.. Main sirf bata raha hoon ki kitna dheela baandhna hai..." Chacha ne kaha aur mujhe apne kareeb kheench kar meri khuli salwar ke andar jhankne lage.. Jitna jaldi ho saka maine apna 'khula darbaar' samet liya.. par chacha meri gouri gadreli yoni ki ek jhalak toh le hi gaye... Unki aankhon ki chamak saaf bata rahi thi... main pachhta rahi thi ki chacha ke paas aane se pahle 'kachchhi kyun nahi pahan kar aayi.....

chacha ne apna hath meri kamar mein le jakar meri salwar samet thode se naade ko mutthi mein lapet liya.. Main unke hath ke andar jane ki kalpana se sihar uthi thi.. par ganimat tha ki aisa nahi hua...

"Haan.. ab baandh lo; jitna kaskar tumhe baandhna hai...!" Chacha meri halat par bhi muskura rahe the... Maine kaanpte huye hathon se jitna ho saka kaskar apni salwar ko baandh liya.. par mujhe vishvas tha ki chacha ke apni mutthi mein dabaye huye naade ko chhodte hi 'salwar' apne aap nikal hi jani hai..

"Humm.. kameej upar uthao.. jitna maine uthaya tha..." Chacha ne abhi meri salwar ko nahi chhoda tha....

Mujhe waisa hi karna pada... meri daano ki kasak ek baar fir nangepan ko 'najdeek' pakar badh gayi thi.. aur 'wo' fir se sir uthakar khade ho gaye the... Meri chhatiyon se neeche aur nabhi se upar ka chikna sapat aur gora badan dekh kar chacha poori tarah mast ho chale the aur unke dusre hath ki harkatein unki jaanghon ke beech badh gayi thi... Jaise hi unhone apna hath wahan se hataya.. 'unke' pajame mein tana hua tambu mujhe saaf dikhayi dene laga....

Sharm ki had tak sharmane ke baawjood mujhe maja bhi aa raha tha aur darr bhi lag raha tha... Achanak 'wo' apne hath ko mere pate par le aaye aur pyar se 'usko sahlane lage..,"Main jagah jagah daba kar dekhoonga.. ye batana ki dard kahan ho raha hai.. aur kahan nahi....!"

Maine kasmasa kar apni jaanghon ko bheench liya aur sahmati mein apna sir hilaya.. jaise jaise unka hath upar jata gaya.. mere dil ki dhadkan badhti chali gayi aur chhatiyon mein akdan si aani shuru ho gayi...,"aaah..." Mere munh se nikal hi gaya...

"Yahan dard hai kya?" Jab meri siski nikli toh unka hath kameej ke andar ghus kar meri chhatiyon ko chhoo gaya tha.. bhala tab bhi main apni siski nikalne se kaise rok pati...

unhone apna hath wapas nahi kheencha bulki wahin apni ungaliyon ko dayein bayein karke meri makhmali chhatiyon ko thirkane se lage.. meri aankhein band ho gayi thi aur saansein 'aahein' bankar nikal rahi thi.. unhone ek baar fir poochha,"Yahan dard hai kya anju beti...!"

"aah.. nahi.. cha...cha.. nee.. che!" Main poori tarah pighal chuki thi....

"Kitni neeche beti?" Unhone apna hath ek taraf khiska kar meri bayin chhati ko dabana shuru kar diya tha.....

"Neeche chacha.. yahan nahi...!" Maine apna hath upar utha kar kameej ke upar se hi apni chhati ko apne kabje mein le liya.. nahi toh tab tak poori chhati ko unka hath lapet chuka hota....

"theek hai.. neeche dekhte hain..."Kahkar unhone apni ungaliyan kameej se bahar nikali aur ek baar fir se 'patile mein hath duba kar dekha...,"Haan.. ab theek ho gaya hai.. tere pate ki thodi sikayi (warming) kar deta hoon...." Kahkar unhone dusre hath se meri kamar mein pakde huye naade ko chhod diya.. aur turant hi meri salwar dheeli hokar neeche khisak gayi.. bhala ho mere pahad jaise oonche uthe huye nitambon ka.. jinhone salwar ko ghutno tak aane se rok liya.... par iske baawjood aage se meri yoni ka pedu lagbhag aadha dikhne laga tha.. Meri yoni ka 'cheera' mushkil se ek inch neeche hi rah gaya hoga...

Main gangana uthi.. par kuchh kar na saki.. chacha ek hath se mere dono hath pakde huye the aur lalchayi aankhon se 'pedu' ko nihar rahe the........

"Nahi chacha..." Unki neeyat bhanp kar main kaanp uthi...

"Ohho.. fir wahi baat..." chacha ne aage kuchh nahi kaha aur apna dusra hath garam pani mein dubo kar meri 'yoni' ke paas rakh diya.... Mujhe ajeeb si gudgudi uthi aur main sihar gayi.. Ek do baar aur aisa karte hi pani ki boondein chhoti chhoti dharaaon ka roop dharan kar meri salwar mein ghusne lagi aur hulka garam pani tap tap karke meri yoni daraar mein se risne laga... Mera bura haal ho gaya... Ab mujhe yakeenan tour par doosre ilaaj ki jaroorat mahsoos hone lagi thi...,"aaah... chachchchaaaaahhh!"

"aaram mil raha hai na...!" Chacha ki laplapati jeebh aur najarein ab seedhi meri aadhi dikhayi dene lagi meri yoni ki karari faankon par thi.... Mujhe ahsaas tak nahi hua ki kab unhone apna dusra hath wapas pichhe le jakar meri salwar ko nitambon se neeche sarkana shuru kar diya hai.. aur ab unki ungaliya mere nitambon ki daraar mein kuchh tatol rahi hain...

Aur jab ahsaas hua.. 'aur' ahsaas lene ki tamanna parwaan chadh chuki thi... ab main apni aankhein band kiye huye lagataar bina hichke siskiyan le rahi thi.. aur unhone bhi ab sikayi chhod kar pichhle hath ki ungali se mere guda dwar ko aur aage wale hath ki ungali se mere 'madanmani (clitoris) ko kuredna shuru kar diya tha.....

Maine siskiyon ki hunkaar si bharte huye apni aediyon ko upar utha liya...

"Maja aa raha hai na Anju..! aaram mil raha hai na...?" Chacha ne ungali ka dabav meri gudadwar par badhate huye poochha....

"aaahaaan.. poora... maja aaaa.. raha hai chacha... kuchh aur kariye na..!" Maine larajte huye labon se kaha...

"Wo wala karoon.. kya?" Mere pagalpan ka ahsaas hote hi chacha ne tapak se meri salwar nitambon se neeche kheenchi aur kursi se neeche baith kar mere nitambon ko kaskar apne hathon mein daboche meri yoni ko honton mein bheench liya...

"aaah.. chacha... main toh mar gayi..." Sisakte huye main unki jeebh ko apni yoni ki faankon mein mahsoos karne lagi...

"Bata na... 'wohi' ilaaj karoon kya tera bhi......! jo teri mummy ka kiya tha.. tu toh 'poora lene layak ho gayi hai...sali!" Chacha ne jaise hi bolne ke liye apne hont meri yoni se door kiye.. mujhe aisa laga mano meri machhli kisi ne jal se bahar nikal kar faink di... Maine turant chacha ke sir ko pakda aur wapas unke hont 'wahin; chipka diye...

Par shayad chacha ko utni jaldi nahi thi jitni mujhe... 'wo' mujhe tadapti chhod kar alag hat gaye..," tu dekhti ja main tujhe kitne maje deta hoon... aaj teri choot ka udghatan karoonga Anju.. bade pyar se.. dekhna kitne maje aayenge.. teri mummy bhi poore maje se chudwa rahi thi na....?"

"Jaldi karo na chacha.. beech mein kyun chhod diya..." Main tadap kar boli....

"Haan haan.. abhi karta hoon na sab kuchh...! ja ek baar salwar pahan kar teri chachi ko dekh kar aa 'wo' kya kar rahi hai...? Fir deta hoon tujhe sare maje...!" Chacha ne apna ling nikal kar mujhe dikhaya..," yaad hai na tujhe sab kuchh... iss'se teri mummy ne kitne maje liye the.. yaad hai ki nahi...?"

Maine bina koyi jawab diye fatafat apni salwar pahni aur bahar nikal gayi.. par jaise hi main seedhiyon mein pahunchi.. mera dil dhak se rah gaya.. chachi neeche hi aa rahi thi... Mann hi mann bhagwan ko maine kitni baar yaad kiya mujhe khud bhi yaad nahi...

"Kya hua Anju? itni der kaise laga di.. abhi tak tujhe dawayi nahi di unhone..." Chachi ko shayad meri udi huyi rangat dekh kar shak ho gaya hoga.. tabhi wo mujhe lagataar ghoorti rahi....

"mmmain.. main toh ghar chali gayi thi chachi.. abhi aayi hoon Chhotu ko bulane..." Maine bolte huye apni hadbadahat chhipane ki poori koshish ki.. sath hi neeche aate huye oonchi aawaj mein bola taki chacha bhi sun lein....

Neeche aate hi chachi chacha par baras padi..,"Yahan kya kar rahe ho ji.. upar kyun nahi aaye?"

"Wo.. Shanti.. wo main akhbaar padh raha tha.. thoda sa!" Chacha ne meri baat sunkar pahle hi akhbaar utha liya tha....

"Dekho ji.. thoda padho ya jyada.. khamkhwah neeche mat baitha karo.. upar aakar padh lo jo bhi padhna hai....!"

"Offoh.. bachchon ke aage toh soch samajh kar bol liya karo... chalo.." Kahte huye chacha akhbaar se apne payjaame ke ubhar ko dhake huye chachi ke sath upar chadhne lage.... Meri upar jane ki himmat nahi huyi..," Chhotu ko bhej do chachi!" Maine neeche se hi kaha aur haanfti huyi ghar bhag aayi....
"aaanhaaan?" Kitab khole baithi huyi main yaadon ke bhanwar mein kuchh iss tarah kho gayi thi ki jaise hi Pinky ne mera kandha hilakar mujhe toka.. main hadbada si gayi...,"kkya hai..?"

"Neend aa gayi kya?" Pinky ne poochha...

"n.nahi toh..! padh rahi hoon...!" Main jaise sach mein hi neend se jagi thi...

"Achchha? kya padh rahi hai bata toh?" Pinky ne hanste huye kaha...

"Ye.." Bolna shuru karte hi jaise hi maine neeche dekha.. meri sitti pitti gum ho gayi.. Meri kitab toh wahan thi hi nahi..,"Kkya hai ye Pinky? Meri kitab kyun utha li??" Maine badbadate huye apni aankhein mali...

"Dekha! so gayi thi na? Teri kitab Meenu didi ne uthakar rakhi thi.. 5 minute ho gaye..!" Pinky hanste huye bol rahi thi...

"didi kahan hain?" Maine Meenu ki charpayi ko dekh kar poochha... 'wo' wahan nahi thi...

"Wo upar gayi hain.. kuchh kaam hoga.. jakar munh dho le.. ab toh bus do din ki baat rah gayi.. Fir maje hi maje.. bahut din ki chhuttiyan hongi..." Pinky ka chehra khil utha...

"Hummm.. tu kya karegi chhuttiyon mein..?" Maine poochha.. yaadon ka khumar dil se utar chuka tha...

"Kuchh nahi.. main toh aish karoongi...he he" Pinky hanste huye boli.. aur fir sanjeeda ho gayi,"Par Meenu didi kah rahi hain ki computer seekh le... dekhoongi!"

"Kahan?" Maine poochha...

"Shahar mein.. didi apne sath le jane ko bol rahi hain...!" Pinky ne chahakte huye kaha...

Sunkar main mayoos ho gayi... Maine uss din dekha tha.. Shahar ke ladkiyan kaise akeli baithkar ladkon ke sath gutar-goo karti rahti hain... mera bhi shahar padhne ka bada mann tha.. par 'papa' ke rahte mera ye sapna kabhi poora nahi hone wala tha....

"Kya hua?" Pinky ne mere chehre ki mayoosi ko padh liya tha..,"Didi kah rahi hain ki 'wo' tere liye bhi papa se chacha ko kahalwa dengi...!"

"Papa nahi maanenge..! mujhe pata hai..!" Maine kaha...

"achchha! kyun nahi maanenge.. computer toh bahut kaam ki cheej hai.. aaj kal toh sabke liye jaroori ho gaya hai 'wo!" Pinky ne mujhe bharosa sa dilaya...

"Nahi... par..." Main bolkar khamosh ho gayi...

"Bata na! kya baat hai..?"

"Papa nahi bhejenge.. mujhe pata hai.. 'jab 'wo' gaanv ke school mein nahi bhejte toh shahar kaise bhej denge..!" Maine dukhi mann se bola...

"Par tujhe 'wo' school kyun nahi bhejte.. kya baat ho gayi?" Pinky aakar mere kambal mein ghus gayi...

"wwo.. Ek din class ke kisi ladke ne mere bag mein 'ganda' sa khat likh kar daal diya tha.. 'wo' papa ko mil gaya.. bus tabhi se...!" Maine bol kar apni najrein jhuka li...

"Haye Raam! tune 'wo' faad kar kyun nahi fainka dekhte hi... ek din mere bag mein bhi mujhe letter mila tha... maine toh thoda sa padhte hi tukde tukde karke faink diya tha.....!" Pinky mujh par gussa hote huye boli...

"Mujhe milta tabhi toh... 'wo' chhotu ke hath lag gaya aur usne papa ko pakda diya.... uss din.." Main bol hi rahi thi ki tabhi Meenu aa gayi aur meri aawaj dheemi hote hote gayab hi ho gayi....

Meenu ne hamare paas aakar apne dono hath kulhon par tika liye,"aakhir tumhare beech 'ye' chal kya raha hai..? mere jate hi tum dono paas aakar khusar phusar karne lag jati ho... kya chakkar hai ye?"

"Kuchh nahi didi.. wwo.. Anju kah rahi hai ki uske papa usko shahar nahi jane denge... yahi baat thi.." Pinky bolte huye thoda hadbada si gayi...

"Wo baad ki baat hai.. main dekh loongi.. abhi tumhare 2 paper baki hain.. alag alag baith kar padhayi kar lo.. Main upar ja rahi hoon.. 11 baje aaungi.. koyi si bhi soti mili toh dekh lena... thanda pani daal dungi aate hi...!" Meenu ne kaha aur apni kitab utha kar jane lagi...

"Hum sath sath baith kar padh rahe hain didi.. ek dusre se 'roop' aur 'dhatu' sunkar dekh rahe hain..."Pinky ki ye baat Meenu ne ansuni kar di aur upar chali gayi....


kramshah......................
...









आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj


















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