Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--24

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बाली उमर की प्यास पार्ट--24


गतान्क से आगे................




जब तक चाचा चाची नही आ गये, पिंकी ने उसको चिदाना नही छ्चोड़ा.. कुच्छ देर बाद मैं भी पिंकी के साथ ही मीनू को बातों ही बातों में तंग करने लगी थी.. पर चाचा चाची के बाद हमें शांत हो जाना पड़ा.. मीनू के चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे मानव का नाम ले ले कर उसको तंग किया जाना उसको अच्च्छा लग रहा था.. चाचा चाची के आने पर उसका मूड ऑफ सा हो गया...

"पापा.. आज में अंजू के साथ इसके घर सो जाउ क्या?" पिंकी की इस बात से मुझे भी हैरानी हुई.. मेरे आगे उसने ऐसा कुच्छ जिकर किया नही था...

"क्यूँ? यहाँ क्या दिक्कत है बेटी..? अंजलि भी तो रोज़ यहीं सोती है..." पापा ने प्यार से पूचछा....

"ययए.. ये मीनू हमें पढ़ने नही देती यहाँ...!" पिंकी ने जाने ऐसा क्यूँ कहा...

"क्यूँ..?" मीनू तरारे से बोली...," मैं क्या सींग मारती हूँ तेरे पेट में... पापा! जब से आई है इसने किताब खोल कर नही देखी.. खंख़्वाह मेरा नाम ले रही है....!"

"पिनकययययी! तू बहुत शरारती होती जा रही है आज कल... चलो किताब खोल के पढ़ाई करो...!" चाचा ने कहा और उपर चले गये....

मीनू अब भी गुस्से से अपने कुल्हों पर हाथ रखे पिंकी की ओर देखे जा रही थी.. पिंकी ने शरारत से उसकी और जीभ निकल दी और फिर हँसने लगी.....

"देख लो मम्मी अब इसको!" मीनू तुनक कर बोली....

चाची ने मीनू के लहजे पर ध्यान नही दिया...," आजा बेटी.. उपर आजा.. थोड़ी देर काम में मदद कर दे.. बहुत थक गयी हूँ....!" चाची भी कहते कहते उपर चढ़ गयी...

"वापस आने के बाद बताती हूँ तुझे...!" मीनू ने बनावटी गुस्से से पिंकी की ओर उंगली की....

"लंबू.. लंबू.. लंबू... हे हे हे!" पिंकी ने उसको जाते जाते भी छेड़ ही दिया... फिर उसके जाते ही गंभीर सी होकर बोली...,"तूने गोली.. ले ली क्या अंजू?"

"हां.. 'वो' तो मैने आते ही ले ली थी..." मैने कहने के बाद उस'से पूचछा..," तू हमारे घर चलने के लिए क्यूँ कह रही थी....

पिंकी जवाब देते हुए कहीं खो सी गयी..," आ.. नही.. बस ऐसे ही....!"

"वो.. मुझे तो अभी भी डर लग रहा है कि हरीश किसी को बोल ना दे... तूने बताया भी नही कि तू उसको इतने अच्छे से कैसे जानती है...!" मैं जाकर उसकी चारपाई पर ही बैठ गयी...

"अर्रे.. अच्छे से नही जानती पागल... पर मुझे ये पता है कि 'वो' बुरा लड़का नही है... मुझे विश्वास है कि 'वो' किसी को नही बोलेगा....!"

"पर तुझे विश्वास कैसे है..? कुच्छ तो बता ना! मुझे सच में डर लग रहा है..." मैने कहा....

"तू किसी को बताएगी तो नही ना...!" पिंकी की आवाज़ धीमी हो गयी...

"नही.. मैं पागल हूँ क्या?" मैं उत्सुकता से उसकी और सरक गयी...

"पहले मेरी कसम खा!" पिंकी अब भी कुच्छ बताने से हिचकिचा रही थी...

"तेरी कसम ले! बता ना जल्दी.. फिर मीनू आ जाएगी....!" मुझे लगने लगा था कि कुच्छ ना कुच्छ 'कपड़ों के नीचे' की ही बात है....

"ववो..." पिंकी ने इतना कहते ही मेरी आँखों में आँखें डाल कर सुनिसचीत किया कि मैं सच में ही उसकी बात को 'राज़' रखूँगी या नही.. फिर कुच्छ हिचकते हुए बोली...," ववो.. एक बार 2 गाँव के लड़कों ने मुझे अंधेरे में तालाब के पिछे वाली झाड़ियों में पकड़ लिया था... तब 'वहाँ' इसी ने मुझे उनसे बचाया था.. मुझे तब डर लग रहा था कि अब 'ज़रूर' ये बकवास करेगा.. पर 'ये' मुझे घर तक ठीक ठाक छ्चोड़ कर गया था... इसीलिए मुझे विश्वास है कि 'ये' तेरी बात भी किसी को नही बताएगा...."

मैने आस्चर्य से मुँह खोल कर पिंकी की ओर देखा..,"सच! कब हुआ था ये... पूरी बात बता ना प्लीज़....."

"नही.. मुझे शर्म आ रही है... पूरी बात नही बता सकती..." पिंकी नर्वस हो गयी...

"धात पागल.. मुझसे कैसी शर्म.. बता ना... 'कौन' थे वो लड़के...?"

"पता नही.. अंधेरे में मैं उनको पहचान नही पाई थी... और मेरी आवाज़ सुनकर हॅरी झाड़ियों में आ गया.. इसको देखते ही 'वो' मुझे छ्चोड़ कर भाग गये थे.. उसने भी उनको नही देखा...!" पिंकी ने बताया....

"पूरी बात तो बता दे.. ऐसे मेरी समझ में कैसे आएगा कि असल में हुआ क्या था... बता ना प्लीज़..." मैने ज़ोर देकर पूचछा....," और तू तालाब के पार क्या करने गयी थी.. कब हुआ था ये...?"












पिंकी कुच्छ देर चुपचाप अपना सिर लटकाए बैठी रही.. शायद वा अपनी यादों को ताज़ा कर रही थी..,"......... तू किसी को भी नही बोलेगी ना! देख मैने ये बात आज तक मम्मी को भी नही बताई है...!"

"नही बताउन्गि ना यार.. मुझ पर विश्वास नही है क्या? तेरा पास भी तो मेरा इतना बड़ा राज़ है... रुक एक मिनिट.. मैं दरवाजा बंद करके आती हूँ..", उसको राज़ी होते देख मैं उत्सुकतावश खड़ी हो गयी...

"नही रहने दे... ऐसे ही ठीक है.. दरवाजा बंद करेंगे तो मीनू को शक़ होगा... तू दूसरी चारपाई पर आकर अपनी किताब खोल ले.. बताती हूँ..", बोलते हुए पिंकी के चेहरे पर हुल्की सी उदासी सॉफ पढ़ी जा सकती थी....

"हां.. बता... अब!" मैं जाकर उसके पास वाली चारपाई पर बैठ गयी.....

पिंकी ने गहरी साँस लेने के बाद बोलना शुरू किया...,"वो.. पिच्छले अक्टोबर की बात है... पापा घर पर नही थे.. इसीलिए मुझे भैंसॉं को शाम को तालाब पर लेकर जाना पड़ा था.. " बोलकर पिंकी चुप हो गयी और मेरे चेहरे को देखने लगी...

"अच्च्छा...", मैने उत्सुकता से हुंकार भरी....

"जब मैं तालाब पर गयी तो वहाँ बहुत से लोग थे.. धीरे धीरे सब की भैंस निकालने लगी और एक एक करके सब अपने अपने घर जाने लगे.. अंधेरा होने लगा था.. पर हमारी भैंसे बाहर नही आई..." पिंकी ने आगे बोला....

"फिर?", मैने पूचछा...

"फिर मैने एक लड़के से अंदर जाकर हमारी भैंसे निकाल देने को कहा.. पर उसने पानी ठंडा होने की बात कहकर अंदर घुसने से इनकार कर दिया.. वैसे भी उनकी भैंसे बाहर निकल चुकी थी... वह भी मना करके भाग गया.. तालाब पर मैं अकेली ही रह गयी...", पिंकी बोलते हुए अब मेरे चेहरे को नही देख रही थी.. शायद वा नज़रें झुकाए पूरी तरह अतीत में खो गयी थी....

"ओह्ह.. फिर वो लड़के आए और तुझे ज़बरदस्ती झाड़ियों में ले गये.. है ना?", मुझसे अंदाज़ा लगाए बिना रहा ना गया... मेरी आँखों के सामने अभी से एक द्रिश्य तैरने लगा था जैसे दो लड़के पिंकी के बदन को नोच रहे हों....

"नही.. मैं बहुत उदास हो गयी थी.... मैने हताशा में पास पड़े पत्थर अपनी भैंसॉं की तरफ फैंकने शुरू कर दिए... उनमें से एक पत्थर हमारी भैंस की आँख के पास लग गया और वो उठ कर दूसरी तरफ चल दी... उसके पिछे पिछे बाकी दोनो भैंसें हो ली... झाड़ियों की ओर..."

"ओह्ह अच्च्छा.. फिर..?", मैने कंबल अपनी जांघों पर डाला और हाथ नीचे ले जाकर अपनी योनि को सहलाना शुरू कर दिया... 'काश.. कभी ऐसा मेरे साथ होता..' मैने मंन ही मंन सोच कर तड़प उठी थी....

"फिर क्या? ...अंधेरा होने वाला था.. अगर मैं उनके पिछे दूसरी तरफ ना जाती तो उनके खो जाने का डर था... मैं डरती डरती तालाब के किनारे किनारे दूसरी तरफ जाने लगी... बीच रास्ते में पहुँची तो 2 लड़के तालाब के किनारे पेशाब कर रहे थे... कुत्ते कामीनो ने मुझे देखते ही मेरी ओर मुँह कर लिया... बिना ज़िप बंद किए...!"

"आआआअ...!", मेरा एक हाथ आस्चर्य से खुल गये मेरे होंटो पर चला गया.. दूसरा हाथ तो 'वहीं' पर था...," तूने देख लिया..?"

"धात बेशर्म...!", पिंकी के गालों की रंगत मेरी बात सुनकर गुलाबी होने लगी..," एक बार तो मेरी नज़र 'वहाँ' चली ही गयी थी... पर मैने अपनी नज़रें तुरंत झुका ली और उनकी ओर बिना देखे उनके बीच से निकल कर आगे चली गयी..! मेरा आगे जाना ज़रूरी था ना!"

"उन्होने तुझे कुच्छ नही कहा...?", मेरी उत्सुकता चरम पर थी.. और मेरी योनि का कुलबुलाना भी....

"भौंक रहे थे कुच्छ कुच्छ.. ऐसे ही.. पर मैने ध्यान नही दिया... पर तब तक अंधेरा गहराने लगा था और डर के मारे मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.. खास तौर से उन्न लड़कों की बकवास के कारण.... उनमें से एक लड़के की बात मुझे सॉफ सुनी थी.. 'वो' कह रहा था 'आ पकड़ लें बुलबुल को.. करारा माल है..."

"फिर...?" मैने अपनी उंगली कहने से पहले ही अंदर सरका चुकी थी... मेरी जांघों में कंपन बढ़ गया था....

"जैसे तैसे मैं दूसरी तरफ गयी तो झाड़ियों के बीच मुझे हमारी भैंसे चरती हुई दिखाई दे गयी... मैं दूसरी तरफ से उनके आगे जाकर उनको वापस मोड़ने का ख़याल बना ही रही थी कि मुझे पिछे से उन्न लड़कों के मेरी तरफ चल कर आने की आवाज़ सुनाई दी... मैं तुरंत पलट कर खड़ी हो गयी और भय के मारे थर थर काँपने लगी......"

"क्या हो गया छ्छोकरी? इस टाइम यहाँ क्या कर रही है..? तुझे डर नही लगता क्या? कोई तुझे अकेली देख कर तुझे..." "उन्होने बहुत गंदा शब्द इस्तेमाल किया था.." पिंकी उनकी बात बताते हुए बीच में रुक कर बोली..," मैं खड़ी खड़ी सिर से पाँव तक पसीना पसीना हो गयी....,"वववो.. भैया.. म्‍म्माइन.. अपनी भैंसे लेने आई हूँ... यहाँ आ गयी तालाब से निकाल कर..." "मैने थरथरते हुए अपनी भैंसॉं की तरफ इशारा किया..." पिंकी की आँखों में 'उसके' साथ गुजरा वो पल सजीव सा हो गया था...

"तू क्यूँ चिंता करती है... हम यहाँ खड़े होते हैं.. तू जाकर भैंसॉं को इधर भगा दे... हम उन्हे तेरे साथ साथ कर देंगे.. जा.. पुचह" "उन्होने कहने के बाद ऐसे किया..." पिंकी बोली....

"तू बता ना.. फिर मीनू आ जाएगी..." उत्तेजना के मारे मेरी जांघों में ऐथेन सी हो चुकी थी.....

"फिर मैं डरती डरती बार बार पिछे देखती झाड़ियों में जाने लगी तो मुझे एक लड़के की आवाज़ सुनाई दी....," देख.. कोई आ तो नही रहा..."

"उसकी आवाज़ की टोन पहचान कर मैं धक से रह गयी... मेरे पाँवों ने काम करना बंद कर दिया और मैं झाड़ियों के बीच खड़ी खड़ी काँपने लगी.... वो दोनो मुझे झाड़ियों के अंदर आते दिखाई दिए...

"ट्तूम.. इधर मत आओ... वहीं खड़े रहो..." मेरे मुँह से निकला...

"पर उनके कदम मेरी ओर बढ़ते चले गये.. एक ने कहा की भैंस उधर ना भाग जायें.. इसीलिए आगे आकर खड़े हो रहे हैं.... और पास आते ही एक ने कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया...

"छ्चोड़ दो मुझे.. मुझे जाने दो... पापा अपने आप ले जाएँगे.. इनको..." मेरा बुरा हाल हो गया था... मैं उनकी और बिना देखे ही कुच्छ कुच्छ बोलती जा रही थी.. पर इतनी देर में तो दूसरे ने भी आकर मुझे पकड़ लिया था....

"चली जाना ... ऐसी भी क्या जल्दी है... " उन्होने उसके बाद मुझे गंदी गंदी बातें कहनी शुरू कर दी... मुझे लगने लगा था की 'वो' मेरा आख़िरी दिन है.. तभी जाने कहाँ से मेरे अंदर ताक़त आ गयी और मैं पूरा ज़ोर लगा कर चीखी... मैं दोबारा भी चीख लगाना चाहती थी.. पर इस'से पहले ही एक ने मेरा मुँह दबा लिया... और 'वो' दोनो मेरे कपड़े निकालने की कोशिश करने लगे....." बोलते हुए पिंकी मेरे सामने बैठी हुई भी काँपने लगी थी.....

"ऊओाअहह...फिर क्या हुआ?" मेरी योनि ने आगे सुने बिना ही पानी छ्चोड़ दिया था... मैने उंगली बाहर निकाल कर अपनी जांघों को एक दूसरी के उपर चढ़ा लिया....

"तभी भगवान की दया से हॅरी झाड़ियों के पास आ पहुँचा.. उसने शायद मेरी चीख सुन ली थी... पास आते ही उसने ज़ोर से कहा...," कौन है यहाँ?"

"उसकी आवाज़ सुनकर दोनो लड़के मुझे छ्चोड़ कर भाग गये..... मैं खड़ी खड़ी रोने लगी थी.. हॅरी ने पास आकर मुझसे पूचछा," कौन थे वो...?"

"उस घड़ी में मेरे लिए 'वो' किसी देवदूत से कम नही था... मैं कुच्छ बोल नही पाई.. पर जैसे ही वो मेरे पास आकर खड़ा हुआ.. मैं उस'से लिपट कर दहाड़ें मार कर रोने लगी...." पिंकी की आँखों में सच में ही आँसू आ चुके थे....

"ओह्ह.. रो क्यूँ रही है यार... कुच्छ हुआ तो नही ना..." मैने आगे होकर पिंकी के आँसू पौंचछते हुए कहा..,"फिर क्या हुआ?"

"थोड़ी देर तक मैं ऐसे ही खड़ी रोती रही और 'वो' मुझे दुलर्ता हुआ झाड़ियों से बाहर ले आया... थोड़ी शांत होने पर में छितक कर उस'से अलग हो गयी...

"यहाँ क्या कर रही हो इस वक़्त.." हॅरी ने प्यार से मुझसे पूचछा था...

"म्‍मैइन.. अपनी भैंसॉं को लेने आई थी..." बोलना शुरू करते ही मुझे फिर से रोना आ गया....

"ओह्ह.. कोई बात नही... ये हैं क्या तुम्हारी भैंसें...?" हॅरी ने पूचछा था...

"हूंम्म.." मैने रोते हुए ही जवाब दिया....

"कोई बात नही.. मैं निकाल कर लाता हूँ...!" हॅरी बड़े प्यार से बात कर रहा था.. पर मेरे दिल में उन्न लड़कों की वजह से बार बार खटका हो रहा था...,"नही.. तुम चले जाओ.. मैं अपने आप निकाल कर ले जाउन्गि...!"

"ओके.. निकाल लो.. मैं यहीं खड़ा होता हूँ..." हॅरी ने कहा...

"मैं झाड़ियों की ओर जाने लगी तो फिर से मेरे कदम ठिठक गये.. मैं मूडी और बोली,"तुम जाओ पहले.. मैं बाद में निकालूंगी..." सच कहूँ तो उस वक़्त तक मुझे हॅरी से भी डर लगने लगा था.. कि कहीं झाड़ियों में जाते ही वो भी...."

"तुम पागल हो क्या...?" मैं यहाँ खड़ा होता हूँ.. तुम निकाल कर ले आओ..." हॅरी ने मुझे धमका सा दिया था.... पर मेरी उसके होते हुए झाड़ियों में जाने की हिम्मत नही हुई.. मैं वापस आ गयी,"ठीक है.. तुम्ही निकाल दो..."

हॅरी ने मेरे हाथ से च्छड़ी ली और भैंसॉं को वापस ले आया... सच कहूँ तो उसके साथ चलते हुए मुझे इतना डर लग रहा था कि मैं रह रह कर उसकी ओर देख रही थी कि कहीं मेरे पास तो नही आ रहा.... पर उसने ऐसा कुच्छ नही किया और हम दोनो भैंसॉं के साथ गाँव तक आ गये..."

"रोशनी में आने के बाद ही मैने पहचाना कि 'वो' हॅरी था... मेरे कलेजे को इतनी शांति मिली कि मेरी आँखों से खुशी के आँसू छलक उत्ते थे... पर उसने शायद मुझे मेरी आवाज़ से ही पहचान लिया था...

"कौन थे वो?" उसने पूचछा....

"पता नही.. मैने उन्हे पहचाना नही... अब तुम जाओ.. मैं चली जाउन्गि...!" मैने कहा...

"कोई बात नही.. मैने तुम्हारे घर की तरफ से होता हुआ निकल जाउन्गा..." हॅरी मेरे साथ साथ चलता रहा था...

"कहा ना तुम जाओ!" घर नज़दीक आते ही मैं उस पर भी शेर हो गयी..." पिंकी ये कहकर हँसने लगी....

मैं मुस्कुराइ..," फिर.. चला गया बेचारा?"

"नही... पिछे रह गया था मेरे डाँटने पर... पर मैने घर आने पर देखा था.. 'वो' मेरे पिछे पिछे आ रहा था...." पिंकी ने बात पूरी की.....

"बेचारा...!" मैं लंबी साँस लेकर बोली....,"तुमने उसको क्यूँ डांटा.. उसने तो तुम्हे बचाया ही था ना...."

"हां..." पिंकी सिर हिलाते हुए बोली....,"बाद में मुझे अफ़सोस भी हुआ था..और मैने एक दिन उसको इसके लिए सॉरी भी बोला था.... पर उस दिन में बहुत डरी हुई थी...."

"हूंम्म.. फिर उसने किसी को नही बताई ये बात....!" मैने पूचछा....

"नही.. बताई होती तो अपने गाँव के लड़के इतने गंदे हैं कि ताने मार मार कर ही मेरा जीना मुश्किल कर देते... मैने उस'से पूचछा भी था.. उसने मना कर दिया था कि किसी को नही बताई बात...."

"सच में बहुत अच्च्छा है फिर तो वो..?" मैने कहा....

"नही.. इतना भी अच्च्छा नही है.. मेरा नाम निकाल दिया था उसने.. 'गुलबो!' कहने लगा कि एक ही बात होती है.. और 'वो' प्यार से बोल देता है... मैने उसको सॉफ सॉफ कह दिया.. 'ज़्यादा प्यार दिखाने की ज़रूरत नही है.. हाँ!' उसके बाद उसने कभी नही बोला.. हे हे हे.." पिंकी का चेहरा खिल उठा....

पिंकी की इस बात पर मैं ना तो ढंग से हंस पाई.. और ना ही मैने कोई प्रतिक्रिया ही दी.. मेरा मंन तो अब भी तालाब के उस पार झाड़ियों में अटका हुआ था.. कल शाम 'संदीप' के साथ खेली गयी मेरी प्रथम 'रासलीला' की झलकियाँ मेरी आँखों में वासना के 'लाल डोरे' बनकर तैरने लगी थी और अब पिंकी की बात ने तो मेरी जांघों के बीच की 'अमिट' भूख को ज्वलनांक तक ही पहुँचा दिया था... मैने तकिया सिरहाने लगाया और लेट कर कंबल औध लिया.. मैं कल्पना करके देखना चाहती थी कि अगर झाड़ियों में मेरी भैंस गयी होती और नादान पिंकी की जगह 'वहाँ' मैं होती तो आगे क्या क्या होता...!

पर पिंकी ने मुझे 2 पल के लिए भी चैन से लॅट्न ना दिया," आए... क्या हो गया?" पिंकी ने मुझे पकड़ कर हिला दिया...

"कुच्छ नही.. थोड़ी देर लॅट्न का मॅन कर रहा है..." मैने अपने चेहरे से कंबल हटते हुए आनमना सा जवाब दिया....

"ये लड़के ऐसे क्यूँ होते हैं अंजू.. ? अकेली लड़की को देखते ही भूखे भेड़िए क्यूँ बन जाते हैं.. हमें इस तरह डरकर ज़बरदस्ती करके क्या मिलता है इनको...?"

जाने अंजाने ही पिंकी ने मेरा पसंदीदा विषय छेड़ दिया था... मैने तुरंत तिरछि होकर अपने 'सिर' को कोहनी के सहारे टीका लिया," सब तो ऐसे नही होते ना.. हरीश ने तो तुम्हारे साथ कुच्छ ज़बरदस्ती नही की....!"

"हाँ.. सब तो नही होते.. पर ज़्यादातर ऐसे ही होते हैं.. तभी तो घर वाले लड़कियों को रात में बाहर जाने नही देते... 'ऐसे' ही कामीनो के डर से.. दुनिया में 'गंदे' लड़के नही होने चाहियें थे.. फिर तो हम भी देर रात तक घूम फिर कर आते.. जहाँ 'दिल' करता वहाँ खेलने जाते...! ऐसे लड़कों की वजह से ही हम लड़कियों का जीना हराम हो गया है.." पिंकी लड़कों को कोसने लगी....

"सब एक जैसे थोड़े होते हैं पागल! किसी को किसी काम में मज़ा आता है और किसी को दूसरे 'काम' में..." मैने जवाब दिया...

"क्यूँ? लड़की से ज़बरदस्ती करने में कैसा मज़ा? ये तो बहुत ही घटिया बात है ना...!" पिंकी तुनक कर बोली....

मुझे पिंकी की बातों की दिशा 'अजीब' ढंग से घूमती नज़र आई.. मुझे लगा जैसे वो इस बारे में और 'बात करना चाहती है.. मैं उत्साहित होकर बैठ गयी," हां.. 'वो' तो है.... पर... मैने सुना है कि लड़कियों को भी बाद में 'मज़ा' आने लगता है.. क्या पता 'वो' लड़के यही सोच कर 'लड़कियों' को छेड़ने लग जाते हों की बाद में हम अपने आप तैयार हो जाएँगी..."

"सुना क्या है? तूने तो कर भी लिया...." पिंकी मेरी आँखों में देखते हुए बोली और फिर नज़रों को झुका कर धीरे से बोली,"तुझे मज़ा आया था क्या?"

उसकी पहली बात सुनकर तो मैं सकपका ही गयी थी.. पर उसके पूच्छे सवाल ने मुझे दुविधा में डाल दिया.... मैं तब तक उसके चेहरे को घूरती रही जब तक की मेरे जवाब का इंतजार करने के बाद उसने मेरी आँखों में आँखें नही डाली..,"बोल!"

"अब क्या बताउ? 'हाँ' भी और 'नही' भी..." मैने सिक्का उच्छल दिया...

"ये क्या बात हुई? ढंग से बोल ना...!" पिंकी उत्सुकता से मेरी ओर देखती हुई बोली...

"सच बताउ?"

"हां.. सच ही तो पूच्छ रही हूँ...!" पिंकी लगातार मेरी आँखों में आँखें डाले रही.. जैसे मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही हो....

"हां.. आया था...!" मैने सीधे सीधे बोल दिया....

मेरा जवाब सुनते ही पिंकी की गालों से लेकर उसकी आँखों तक में 'लज्जा' पसर गयी..,"तुझे... शरम नही आई क्या?"

"अब ये क्यूँ पूच्छ रही है? हां.. बहुत आई थी.. पर मज़ा भी बहुत 'आया' था.. सच्ची...!" मैने कसमसा कर कहा...

"पर.. 'ये' काम तो शादी के बाद ही करते हैं ना... पहले करना तो 'पाप' होता है..." पिंकी ने शरमाते हुए कहा....

मुझे लगा कि पिंकी 'इस' मामले में मेरी सोच से कहीं ज़्यादा समझदार है...,"वो अलग बात है... मैं तो बस 'मज़े' की बता रही हूँ... मज़ा तो आता ही है.. सच में..!"

"चल छ्चोड़.. हम भी कैसी बातें करने लग गये...!" पिंकी को शायद अभी अहसास हुआ कि 'हम' कहाँ से कहाँ पहुँच गये थे....

"अच्च्छा ये बता.. तू शादी करेगी तो कैसे लड़के से करेगी...!" मैं बात जारी रखना चाहती थी...

"छ्चोड़ ना.. ये क्या लेकर बैठ गयी तू.. अभी तो बहुत टाइम है इन्न बातों के लिए.." पिंकी थोड़ा झेंप कर बोली....

"बता ना.. बस ये आख़िरी बात...!" मैने ज़ोर देकर कहा...

"उम्म्म्मम..." पिंकी बोलते बोलते रुक कर आँखें बंद करके मुस्कुराने लगी.. उसके गोरे गालों में मुस्कुराहट के चलते गड्ढा सा बन गया.. 'वो' गड्ढा'; जो मुझे पिंकी के पास लड़कों के मर मिटने के लिए सबसे कातिल चीज़ लगता था... ऐसा लगा जैसे उसके मानस पटल पर 'कोई' तस्वीर साक्षात हो गयी हो..,"उम्म्म्म.. हॅरी..... हॅरी जैसा...!" उसने आँखें बंद किए हुए ही बोला और फिर अपने होन्ट जैसे 'सी' कर मुस्कुराती रही....

"क्या?" मेरा रोम रोम 'उसके' दिल का राज सुनकर झन्ना उठा...,"तुझे हॅरी से प्यार है..?"

"चल हट.. बेशर्म!" पिंकी के गाल गुलाबी से हो गये और 'वो' सच में ही 'गुलबो' सी लगने लगी..," मैने ऐसा थोड़े ही कहा है.. मैने सिर्फ़ 'उस' जैसा कहा है.. मैं किसी से प्यार व्यार नही करती...."

"पर मतलब तो यही हुआ ना...!" मैने खिलखिला कर उसको छेड़ते हुए कहा....

"क्यूँ..? यही मतलब कैसे हुआ... पर मुझे सच में ऐसा ही लड़का चाहिए 'जो' 'लड़की' होने की मर्यादायें जानता हो... जो उसकी भावनाओ की कद्र कर सके.. जिसको 'प्यार' का 'असली' मतलब पता हो... 'जो' लड़की के 'लड़की' होने का फ़ायडा उठना ना जानता हो...!" पिंकी भाव विभोर होकर बोली....

"पर.. हॅरी ऐसा ही तो है.. शकल में भी कितना 'क्यूट' सा है.. और जो तू कह रही है.. 'वो' सारी' बातें तो उसमें हैं ही.... हैं ना?" मैने उसको उकसाने की सोची...

"चल हट अब.. बकवास मत कर मेरे साथ... वैसे.. मानव और मीनू की जोड़ी कैसी लगती है तुझे...?" पिंकी बात को टालते हुए बोली....

"मस्त है एक दम...!" मैने दिल पर पत्थर रख कर कहा...," पर तू ऐसा क्यूँ बोल रही है.. कुच्छ बात है क्या इनकी..?" मैने पूचछा...

"पता नही.. पर मुझे लगता है कि कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर है....मीनू अकेली होते ही मुझे 'मानव' की बातें कर कर के बोर करने लग जाती है... और कल मानव की बातों से भी मुझे ऐसा लगा....

तभी मीनू नीचे आ गयी..," क्या बातें हो रही हैं अकेले अकेले..!"

"लंबू की..!" पिंकी ने कहा और हम दोनो खिलखिला कर हंस पड़े...... मीनू ने आकर पिंकी की चोटी पकड़ कर खींच ली..,"तेरी पिटाई करनी पड़ेगी मुझे... अब पढ़ी क्यूँ नही तुम दोनो.. बाद में कहोगी की मैं पढ़ने नही देती.... पापा ने बोला है कि कहीं नही जाना... यहीं सोना है तीनो को!"


क्रमशः.......................

gataank se aage.............




Jab tak chacha chachi nahi aa gaye, Pinky ne usko chidana nahi chhoda.. Kuchh der baad main bhi Pinky ke sath hi Meenu ko baaton hi baaton mein tang karne lagi thi.. Par chacha chachi ke baad hamein shant ho jana pada.. Meenu ke chehre se aisa lag raha tha jaise Manav ka naam le le kar usko tang kiya jana usko achchha lag raha tha.. Chacha chachi ke aane par uska mood off sa ho gaya...

"Papa.. aaj mein Anju ke sath iske ghar so jaaun kya?" Pinky ki iss baat se mujhe bhi hairani huyi.. Mere aage usne aisa kuchh jikar kiya nahi tha...

"Kyun? yahan kya dikkat hai beti..? Anjali bhi toh roz yahin soti hai..." Papa ne pyar se poochha....

"Yye.. Ye Meenu hamein padhne nahi deti yahan...!" Pinky ne jane aisa kyun kaha...

"Kyun..?" Meenu tarare se boli...," Main kya seeng maarti hoon tere pate mein... Papa! Jab se aayi hai isne kitab khol kar nahi dekhi.. khamkhwah mera naam le rahi hai....!"

"Pinkyyyyy! tu bahut shararati hoti ja rahi hai aaj kal... Chalo kitab khol ke padhai karo...!" chacha ne kaha aur upar chale gaye....

Meenu ab bhi gusse se apne kulhon par hath rakhe Pinky ki aur dekhe ja rahi thi.. Pinky ne shararat se uski aur jeebh nikal di aur fir hansne lagi.....

"Dekh lo mummy ab isko!" Meenu tunak kar boli....

Chachi ne Meenu ke lahje par dhyan nahi diya...," Aaja beti.. upar aaja.. thodi der kaam mein madad kar de.. bahut thak gayi hoon....!" Chachi bhi kahte kahte upar chadh gayi...

"Wapas aane ke baad batati hoon tujhe...!" Meenu ne banawati gusse se Pinky ki aur ungali ki....

"lambu.. lambu.. lambu... he he he!" Pinky ne usko jate jate bhi chhed hi diya... Fir uske jate hi gambheer si hokar boli...,"Tune goli.. le li kya Anju?"

"Haan.. 'wo' toh maine aate hi le li thi..." Maine kahne ke baad uss'se poochha..," Tu hamare ghar chalne ke liye kyun kah rahi thi....

Pinky jawab dete huye kahin kho si gayi..," aa.. nahi.. bus aise hi....!"

"Wo.. Mujhe toh abhi bhi darr lag raha hai ki Harish kisi ko bol na de... Tune bataya bhi nahi ki tu usko itne achchhe se kaise jaanti hai...!" Main jakar uski charpayi par hi baith gayi...

"Arrey.. achchhe se nahi jaanti pagal... par mujhe ye pata hai ki 'wo' bura ladka nahi hai... Mujhe vishvas hai ki 'wo' kisi ko nahi bolega....!"

"Par tujhe vishvas kaise hai..? kuchh toh bata na! Mujhe sach mein darr lag raha hai..." Maine kaha....

"Tu kisi ko batayegi toh nahi na...!" Pinky ki aawaj dheemi ho gayi...

"Nahi.. Main pagal hoon kya?" Main utsukta se uski aur sarak gayi...

"Pahle meri kasam kha!" Pinky ab bhi kuchh batane se hichkicha rahi thi...

"Teri kasam le! Bata na jaldi.. fir Meenu aa jayegi....!" Mujhe lagne laga tha ki kuchh na kuchh 'kapdon ke neeche' ki hi baat hai....

"Wwo..." Pinky ne itna kahte hi meri aankhon mein aankhein daal kar sunischit kiya ki main sach mein hi uski baat ko 'raaz' rakhoongi ya nahi.. Fir kuchh hichakte huye boli...," Wwo.. Ek baar 2 gaanv ke ladkon ne mujhe andhere mein talab ke pichhe waali jhadiyon mein pakad liya tha... Tab 'wahan' isi ne mujhe unse bachaya tha.. Mujhe tab darr lag raha tha ki ab 'jaroor' ye bakwas karega.. Par 'ye' mujhe ghar tak theek thaak chhod kar gaya tha... Isiliye mujhe vishvas hai ki 'ye' teri baat bhi kisi ko nahi batayega...."

Maine aascharya se munh khol kar Pinky ki aur dekha..,"Sach! kab hua tha ye... Poori baat bata na plz....."

"Nahiii.. mujhe sharm aa rahi hai... poori baat nahi bata sakti..." Pinky nervous ho gayi...

"dhat pagal.. mujhse kaisi sharm.. bata na... 'koun' the wo ladke...?"

"Pata nahi.. Andhere mein main unko pahchan nahi payi thi... Aur Meri aawaj sunkar Harry jhadiyon mein aa gaya.. isko dekhte hi 'wo' mujhe chhod kar bhag gaye the.. Usne bhi unko nahi dekha...!" Pinky ne bataya....

"Poori baat toh bata de.. Aise meri samajh mein kaise aayega ki asal mein hua kya tha... bata na plz..." Maine zor dekar poochha....," Aur tu talab ke paar kya karne gayi thi.. kab hua tha ye...?"









"Pata nahi.. Andhere mein main unko pahchan nahi payi thi... Aur Meri aawaj sunkar Harry jhadiyon mein aa gaya.. isko dekhte hi 'wo' mujhe chhod kar bhag gaye the.. Usne bhi unko nahi dekha...!" Pinky ne bataya....

"Poori baat toh bata de.. Aise meri samajh mein kaise aayega ki asal mein hua kya tha... bata na plz..." Maine zor dekar poochha...., "Aur tu talab ke paar kya karne gayi thi.. kab hua tha ye...?"


Pinky kuchh der chupchap apna sir latkaye baithi rahi.. Shayad wah apni yaadon ko taja kar rahi thi..,"......... Tu kisi ko bhi nahi bolegi na! Dekh maine ye baat aaj tak mummy ko bhi nahi batayi hai...!"

"Nahi bataaungi na yaar.. Mujh par vishvas nahi hai kya? Tera paas bhi toh mera itna bada raaz hai... ruk ek minute.. main darwaja band karke aati hoon..", Usko razi hote dekh main utsuktavash khadi ho gayi...

"Nahi rahne de... aise hi theek hai.. Darwaja band karenge toh Meenu ko shaq hoga... Tu dusri charpayi par aakar apni kitab khol le.. batati hoon..", Bolte huye Pinky ke chehre par hulki si udaasi saaf padhi ja sakti thi....

"Haan.. bata... ab!" Main jakar uske paas wali charpayi par baith gayi.....

Pinky ne gahri saans lene ke baad bolna shuru kiya...,"Wo.. Pichhle october ki baat hai... Papa ghar par nahi the.. isiliye mujhe bhainson ko Sham ko Talab par lekar jana pada tha.. " Bolkar Pinky chup ho gayi aur mere chehre ko dekhne lagi...

"Achchha...", Maine utsukta se hunkaar bhari....

"Jab main talab par gayi toh wahan bahut se log the.. dheere dheere sab ki bhains nikalne lagi aur ek ek karke sab apne apne ghar jane lage.. Andhera hone laga tha.. Par hamari bhainse bahar nahi aayi..." Pinky ne aage bola....

"Fir?", Maine poochha...

"Fir maine ek ladke se andar jakar hamari bhainse nikal dene ko kaha.. Par Usne pani thanda hone ki baat kahkar andar ghusne se inkaar kar diya.. Waise bhi unki bhainse bahar nikal chuki thi... Wah bhi mana karke bhag gaya.. talab par main akeli hi rah gayi...", Pinky bolte huye ab mere chehre ko nahi dekh rahi thi.. shayad wah najrein jhukaye poori tarah ateet mein kho gayi thi....

"Ohh.. Fir wo ladke aaye aur tujhe jabardasti jhadiyon mein le gaye.. hai na?", Mujhse andaja lagaye bina raha na gaya... Meri aankhon ke saamne abhi se ek drishya tairne laga tha jaise do ladke Pinky ke badan ko noch rahe hon....

"Nahi.. Main bahut udas ho gayi thi.... Maine hatasha mein paas pade patthar apni bhainson ki taraf fainkne shuru kar diye... Unmein se ek patthar hamari bhains ki aankh ke paas lag gaya aur wo uth kar dusri taraf chal di... Uske pichhe pichhe baki dono bhainsein ho li... jhaadiyon ki aur..."

"Ohh achchha.. Fir..?", Maine kambal apni jaanghon par dala aur hath neeche le jakar apni yoni ko sahlana shuru kar diya... 'kash.. kabhi aisa mere sath hota..' Maine mann hi mann soch kar tadap uthi thi....

"Fir kya? ...Andhera hone wala tha.. agar main unke pichhe dusri taraf na jati toh unke kho jane ka darr tha... Main darti darti talab ke kinare kinare dusri taraf jane lagi... Beech raaste mein pahunchi to 2 ladke talab ke kinare peshab kar rahe the... Kutte kamino ne mujhe dekhte hi meri aur munh kar liya... Bina Zip band kiye...!"

"aaaaaaa...!", Mera ek hath aascharya se khul gaye mere honton par chala gaya.. dusra hath toh 'wahin' par tha...," Tune dekh liya..?"

"Dhat besharm...!", Pinky ke gaalon ki rangat meri baat sunkar gulabi hone lagi..," Ek baar toh meri najar 'wahan' chali hi gayi thi... Par maine apni najrein turant jhuka li aur unki aur bina dekhe unke beech se nikal kar aage chali gayi..! mera aage jana jaroori tha na!"

"Unhone tujhe kuchh nahi kaha...?", Meri utsukta charam par thi.. aur meri yoni ka kulbulana bhi....

"Bhounk rahe the kuchh kuchh.. aise hi.. par maine dhyan nahi diya... Par tab tak andhera gahrane laga tha aur darr ke maare mera dil jor jor se dhadakne laga.. khas tour se unn ladkon ki bakwas ke karan.... unmein se ek ladke ki baat mujhe saaf suni thi.. 'wo' kah raha tha 'aa pakad lein bulbul ko.. karara maal hai..."

"Fir...?" Maine apni ungali kahne se pahle hi andar sarka chuki thi... Meri jaanghon mein kampan badh gaya tha....

"Jaise taise main dusri taraf gayi toh jhadiyon ke beech mujhe hamari bhainse charti huyi dikhayi de gayi... Main dusri taraf se unke aage jakar unko wapas modne ka khayal bana hi rahi thi ki mujhe pichhe se unn ladkon ke meri taraf chal kar aane ki aawaj sunayi di... Main turant palat kar khadi ho gayi aur bhay ke maare thar thar kaanpne lagi......"

"Kya ho gaya chhokri? Iss time yahan kya kar rahi hai..? tujhe darr nahi lagta kya? Koyi tujhe akeli dekh kar tujhe..." "Unhone bahut ganda shabd istemaal kiya tha.." Pinky unki baat batate huye beech mein ruk kar boli..," Main khadi khadi sir se paanv tak pasina pasina ho gayi....,"wwwo.. bhaiya.. Mmmain.. apni bhainse lene aayi hoon... yahan aa gayi talab se nikal kar..." "Maine thartharate huye apni bhainson ki taraf ishara kiya..." Pinky ki aankhon mein 'uske' sath gujra wo pal sajeev sa ho gaya tha...

"Tu kyun chinta karti hai... hum yahan khade hote hain.. tu jakar bhainson ko idhar bhaga de... hum unhe tere sath sath kar denge.. ja.. Puchhhhh" "Unhone kahne ke baad aise kiya..." Pinky boli....

"Tu bata na.. fir Meenu aa jayegi..." Uttejana ke maare meri jaanghon mein aithen si ho chuki thi.....

"Fir main darti darti baar baar pichhe dekhti jhadiyon mein jane lagi toh mujhe ek ladke ki aawaj sunayi di....," Dekh.. koyi aa toh nahi raha..."

"uski aawaj ki tone pahchan kar main dhak se rah gayi... Mere paanvon ne kaam karna band kar diya aur main jhadiyon ke beech khadi khadi kaanpne lagi.... Wo dono mujhe jhadiyon ke andar aate dikhayi diye...

"ttum.. idhar mat aao... wahin khade raho..." Mere munh se nikla...

"Par unke kadam meri aur badhte chale gaye.. Ek ne kaha ki bhains udhar na bhag jayein.. isiliye aage aakar khade ho rahe hain.... aur paas aate hi ek ne kaskar mera hath pakad liya...

"Chhod do mujhe.. mujhe jane do... papa apne aap le jayenge.. inko..." Mera bura haal ho gaya tha... Main unki aur bina dekhe hi kuchh kuchh bolti ja rahi thi.. par itni der mein toh dusre ne bhi aakar mujhe pakad liya tha....

"Chali jana ... aisi bhi kya jaldi hai... " Unhone uske baad mujhe gandi gandi baatein kahni shuru kar di... Mujhe lagne laga tha ki 'wo' mera aakhiri din hai.. tabhi jaane kahan se mere andar takat aa gayi aur main poora jor laga kar cheekhi... Main dobara bhi cheekh lagana chahti thi.. par iss'se pahle hi ek ne mera munh daba liya... aur 'wo' dono mere kapde nikalne ki koshish karne lage....." Bolte huye Pinky mere saamne baithi huyi bhi kaanpne lagi thi.....

"oooaaahh...Fir kya hua?" Meri yoni ne aage sune bina hi paani chhod diya tha... Maine ungali bahar nikal kar apni jaanghon ko ek dusri ke upar chadha liya....

"Tabhi bhagwan ki daya se Harry jhadiyon ke paas aa pahuncha.. usne shayad meri cheekh sun li thi... Paas aate hi usne zor se kaha...," Koun hai yahan?"

"Uski aawaj sunkar dono ladke mujhe chhod kar bhag gaye..... Main khadi khadi rone lagi thi.. Harry ne paas aakar mujhse poochha," Koun the wo...?"

"Uss ghadi mein mere liye 'wo' kisi devdoot se kam nahi tha... main kuchh bol nahi payi.. par jaise hi wo mere paas aakar khada hua.. main uss'se lipat kar dahadein maar kar rone lagi...." Pinky ki aankhon mein sach mein hi aansoo aa chuke the....

"Ohh.. ro kyun rahi hai yaar... kuchh hua toh nahi na..." Maine aage hokar Pinky ke aansu pounchhte huye kaha..,"fir kya hua?"

"Thodi der tak main aise hi khadi roti rahi aur 'wo' mujhe dularta hua jhaadiyon se bahar le aaya... Thodi shant hone par mein chhitak kar uss'se alag ho gayi...

"yahan kya kar rahi ho iss waqt.." Harry ne pyar se mujhse poochha tha...

"Mmain.. apni bhainson ko lene aayi thi..." Bolna shuru karte hi mujhe fir se rona aa gaya....

"Ohh.. koyi baat nahi... Ye hain kya tumhari bhainsein...?" Harry ne poochha tha...

"Hummm.." Maine rote huye hi jawab diya....

"Koyi baat nahi.. main nikal kar lata hoon...!" Harry bade pyar se baat kar raha tha.. par mere dil mein unn ladkon ki wajah se baar baar khatka ho raha tha...,"Nahi.. tum chale jao.. main apne aap nikal kar le jaaungi...!"

"OK.. nikal lo.. main yahin khada hota hoon..." Harry ne kaha...

"Main jhadiyon ki aur jane lagi toh fir se mere kadam thithak gaye.. main mudi aur boli,"Tum jao pahle.. main baad mein nikaaloongi..." Sach kahoon toh uss waqt tak mujhe harry se bhi darr lagne laga tha.. ki kahin jhadiyon mein jate hi wo bhi...."

"Tum pagal ho kya...?" Main yahan khada hota hoon.. tum nikal kar le aao..." Harry ne mujhe dhamka sa diya tha.... par meri uske hote huye jhadiyon mein jane ki himmat nahi huyi.. main wapas aa gayi,"Theek hai.. tumhi nikal do..."

Harry ne mere hath se chhadi li aur bhainson ko wapas le aaya... Sach kahoon toh uske sath chalte huye mujhe itna darr lag raha tha ki main rah rah kar uski aur dekh rahi thi ki kahin mere paas toh nahi aa raha.... Par usne aisa kuchh nahi kiya aur hum dono bhainson ke sath gaanv tak aa gaye..."

"Roshni mein ane ke baad hi maine pahchana ki 'wo' harry tha... Mere kaleje ko itni shanti mili ki meri aankhon se khushi ke aansoo chhalak utthe the... Par usne shayad mujhe meri aawaj se hi pahchan liya tha...

"koun the wo?" Usne poochha....

"Pata nahi.. maine unhe pahchana nahi... ab tum jao.. main chali jaaungi...!" Maine kaha...

"koyi baat nahi.. maine tumhare ghar ki taraf se hota hua nikal jaaunga..." Harry mere sath sath chalta raha tha...

"Kaha na tum jao!" Ghar najdeek aate hi main uss par bhi sher ho gayi..." Pinky ye kahkar hansne lagi....

Main muskurayi..," Fir.. chala gaya bechara?"

"Nahi... pichhe rah gaya tha mere daantne par... par maine ghar aane par dekha tha.. 'wo' mere pichhe pichhe aa raha tha...." Pinky ne baat poori ki.....

"Bechara...!" Main lambi saans lekar boli....,"Tumne usko kyun daanta.. usne toh tumhe bachaya hi tha na...."

"Haan..." Pinky sir hilate huye boli....,"Baad mein mujhe afsos bhi hua tha..aur maine ek din usko iske liye sorry bhi bola tha.... par uss din mein bahut dari huyi thi...."

"Hummm.. fir usne kisi ko nahi batayi ye baat....!" Maine poochha....

"Nahi.. batayi hoti toh apne gaanv ke ladke itne gande hain ki taane maar maar kar hi mera jeena mushkil kar dete... Maine uss'se poochha bhi tha.. usne mana kar diya tha ki kisi ko nahi batayi baat...."

"Sach mein bahut achchha hai fir toh woh..?" Maine kaha....

"Nahi.. itna bhi achchha nahi hai.. mera naam nikal diya tha usne.. 'gulabo!' kahne laga ki ek hi baat hoti hai.. aur 'wo' pyar se bol deta hai... maine usko saaf saaf kah diya.. 'jyada pyar dikhane ki jaroorat nahi hai.. haaaan!' uske baad usne kabhi nahi bola.. he he he.." Pinky ka chehra khil utha....

Pinky ki iss baat par main na toh dhang se hans payi.. aur na hi maine koyi pratikriya hi di.. Mera mann toh ab bhi talab ke uss paar jhadiyon mein atka hua tha.. Kal sham 'Sandeep' ke sath kheli gayi meri pratham 'raasleela' ki jhalkiyan meri aankhon mein wasna ke 'laal dorey' bankar tairne lagi thi aur ab Pinky ki baat ne toh meri jaanghon ke beech ki 'amit' bhookh ko jwalanank tak hi pahuncha diya tha... Maine takiya sirhane lagaya aur late kar kambal audh liya.. Main kalpana karke dekhna chahti thi ki agar jhadiyon mein meri bhains gayi hoti aur nadan Pinky ki jagah 'wahan' main hoti toh aage kya kya hota...!

Par Pinky ne mujhe 2 pal ke liye bhi chain se latne na diya," Aey... kya ho gaya?" Pinky ne mujhe pakad kar hila diya...

"Kuchh nahi.. thodi der latne ka mann kar raha hai..." Maine apne chehre se kambal hatate huye anmana sa jawab diya....

"Ye ladke aise kyun hote hain Anju.. ? Akeli ladki ko dekhte hi bhookhe bhediye kyun ban jate hain.. Hamein iss tarah darakar jabardasti karke kya milta hai inko...?"

Jane anjane hi Pinky ne mera pasandeeda vishay chhed diya tha... Maine turant tirachhi hokar apne 'sir' ko kohni ke sahare tika liya," Sab toh aise nahi hote na.. Harish ne toh tumhare sath kuchh jabardasti nahi ki....!"

"Haan.. sab toh nahi hote.. par jyadatar aise hi hote hain.. Tabhi toh ghar wale ladkiyon ko raat mein bahar jane nahi dete... 'aise' hi kamino ke darr se.. duniya mein 'gande' ladke nahi hone chahiyein the.. fir toh hum bhi der raat tak ghoom fir kar aate.. jahan 'dil' karta wahan khelne jate...! Aise ladkon ki wajah se hi ham ladkiyon ka jeena haram ho gaya hai.." Pinky ladkon ko kosne lagi....

"Sab ek jaise thode hote hain Pagal! kisi ko kisi kaam mein maja aata hai aur kisi ko dusre 'kaam' mein..." Maine jawab diya...

"Kyun? ladki se jabardasti karne mein kaisa maja? ye toh bahut hi ghatiya baat hai na...!" Pinky tunak kar boli....

Mujhe Pinky ki baaton ki disha 'ajeeb' dhang se ghoomti nazar aayi.. mujhe laga jaise wo iss baare mein aur 'baat karna chahti hai.. Main utsahit hokar baith gayi," Haan.. 'wo' toh hai.... par... maine suna hai ki ladkiyon ko bhi baad mein 'maza' aane lagta hai.. kya pata 'wo' ladke yahi soch kar 'ladkiyon' ko chhedne lag jate hon ki baad mein hum apne aap taiyaar ho jayengi..."

"Suna kya hai? tune toh kar bhi liya...." Pinky meri aankhon mein dekhte huye boli aur fir nazron ko jhuka kar dheere se boli,"Tujhe maja aaya tha kya?"

Uski pahli baat sunkar toh main sakpaka hi gayi thi.. par uske poochhe sawaal ne mujhe duvidha mein daal diya.... Main tab tak uske chehre ko ghoorti rahi jab tak ki mere jawab ka intjaar karne ke baad usne meri aankhon mein aankhein nahi dali..,"Bol!"

"Ab kya bataaun? 'haan' bhi aur 'nahi' bhi..." Maine sikka uchhal diya...

"Ye kya baat huyi? dhang se bol na...!" Pinky utsukta se meri aur dekhti huyi boli...

"Sach bataaun?"

"Haan.. Sach hi toh poochh rahi hoon...!" Pinky lagataar meri aankhon mein aankhein daale rahi.. jaise mere chehre ko padhne ki koshish kar rahi ho....

"Haan.. aaya tha...!" Maine seedhe seedhe bol diya....

Mera jawab sunte hi Pinky ki gaalon se lekar uski aankhon tak mein 'lajja' pasar gayi..,"tujhe... sharam nahi aayi kya?"

"Ab ye kyun poochh rahi hai? haan.. bahut aayi thi.. par maja bhi bahut 'aaya' tha.. Sachchi...!" Maine kasmasa kar kaha...

"Par.. 'ye' kaam toh shadi ke baad hi karte hain na... pahle karna toh 'paap' hota hai..." Pinky ne sharmate huye kaha....

Mujhe laga ki Pinky 'iss' maamle mein meri soch se kahin jyada samajhdaar hai...,"Wo alag baat hai... main toh bus 'maje' ki bata rahi hoon... Maja toh aata hi hai.. sach mein..!"

"chal chhod.. hum bhi kaisi baatein karne lag gaye...!" Pinky ko shayad abhi ahsaas hua ki 'hum' kahan se kahan pahunch gaye the....

"achchha ye bata.. tu shadi karegi toh kaise ladke se karegi...!" Main baat jari rakhna chahti thi...

"chhod na.. ye kya lekar baith gayi tu.. abhi toh bahut time hai inn baaton ke liye.." Pinky thoda jhenp kar boli....

"Bata na.. bus ye aakhiri baat...!" Maine jor dekar kaha...

"Ummmmm..." Pinky bolte bolte ruk kar aankhein band karke muskurane lagi.. Uske gore gaalon mein muskurahat ke chalte gaddha sa ban gaya.. 'wo' gaddha'; jo mujhe Pinky ke paas ladkon ke mar mitne ke liye sabse katil cheej lagta tha... Aisa laga jaise uske manas patal par 'koyi' tasveer sakshaat ho gayi ho..,"ummmm.. Harry..... Harry jaisa...!" Usne aankhein band kiye huye hi bola aur fir apne hont jaise 'si' kar muskurati rahi....

"Kya?" Mera rom rom 'uske' dil ka raaj sunkar jhanna utha...,"Tujhe harry se pyar hai..?"

"Chal hat.. besharm!" Pinky ke gaal gulabi se ho gaye aur 'wo' sach mein hi 'gulabo' si lagne lagi..," Maine aisa thode hi kaha hai.. maine sirf 'uss' jaisa kaha hai.. Main kisi se pyar vyar nahi karti...."

"Par matlab toh yahi hua na...!" Maine khilkhila kar usko chhedte huye kaha....

"Kyun..? yahi matlab kaise hua... par Mujhe sach mein aisa hi ladka chahiye 'jo' 'ladki' hone ki maryadaayein jaanta ho... Jo uski bhawnaao ki kadra kar sake.. jisko 'pyar' ka 'asli' matlab pata ho... 'Jo' Ladki ke 'ladki' hone ka faayda uthana na jaanta ho...!" Pinky bhav vibhor hokar boli....

"Par.. harry aisa hi toh hai.. shakal mein bhi kitna 'cute' sa hai.. aur jo tu kah rahi hai.. 'wo' sari' baatein toh usmein hain hi.... hain na?" Maine usko uksane ki sochi...

"Chal hat ab.. bakwaas mat kar mere sath... waise.. Manav aur Meenu ki jodi kaisi lagti hai tujhe...?" Pinky baat ko taalte huye boli....

"Mast hai ek dum...!" Maine dil par patthar rakh kar kaha...," Par tu aisa kyun bol rahi hai.. kuchh baat hai kya inki..?" Maine poochha...

"Pata nahi.. par mujhe lagta hai ki kuchh na kuchh toh jaroor hai....Meenu akeli hote hi mujhe 'Manav' ki baatein kar kar ke bore karne lag jati hai... aur kal Manav ki baaton se bhi mujhe aisa laga....

Tabhi Meenu neeche aa gayi..," Kya baatein ho rahi hain akele akele..!"

"Lambu ki..!" Pinky ne kaha aur hum dono khilkhila kar hans pade...... Meenu ne aakar Pinky ki choti pakad kar kheench li..,"Teri pitayi karni padegi mujhe... ab padhi kyun nahi tum dono.. baad mein kahogi ki main padhne nahi deti.... Papa ne bola hai ki kahin nahi jana... Yahin sona hai teeno ko!"


kramshah......................
.








आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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`·.¸.·´ -- raj


















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