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बाली उमर की प्यास पार्ट--2
गतांक से आगे.......................
सपने में ही सही, पर बदन में जो आग लगी थी, उसकी दहक से अगले दिन भी मेरा अंग - अंग सुलग रहा था. जवानी की तड़प सुनाती तो सुनाती किसको! सुबह उठी तो घर पर कोई नही था.. पापा शायद आज मम्मी को खेत में ले गये होंगे.. हफ्ते में 2 दिन तो कम से कम ऐसा होता ही था जब पापा मम्मी के साथ ही खेत में जाते थे..
उन्न दो दीनो में मम्मी इस तरह सजधज कर खाना साथ लेकर जाती थी जैसे खेत में नही, कहीं बुड्ढे बुद्धियों की सौन्दर्य प्रतियोगिता में जा रही हों.. मज़ाक कर रही हूँ... मम्मी तो अब तक बुद्धि नही हुई हैं.. 40 की उमर में भी वो बड़ी दीदी की तरह रसीली हैं.. मेरा तो खैर मुक़ाबला ही क्या है..?
खैर; मैं भी किन बातों को उठा लेती हूँ... हां तो मैं बता रही थी कि अगले दिन सुबह उठी तो कोई घर पर नही था... खाली घर में खुद को अकेली पाकर मेरी जांघों के बीच सुरसुरी सी मचने लगी.. मैने दरवाजा अंदर से बंद किया और चारपाई पर आकर अपनी जांघों को फैलाकर स्कर्ट पूरी तरह उपर उठा लिया..
मैं देखकर हैरत मैं पड़ गयी.. छ्होटी सी मेरी योनि किसी बड़े पाव की तरह फूल कर मेरी कछी से बाहर निकलने को उतावली हो रही थी... मोटी मोटी योनि की पत्तियाँ संतरे की फांकों की तरह उभर कर कछी के बाहर से ही दिखाई दे रही थी... उनके बीच की झिर्री में कछी इस तरह अंदर घुसी हुई थी जैसे योनि का दिल कछी पर ही आ गया हो...
डर तो किसी बात का था ही नही... मैं लेटी और नितंबों को उकसाते हुए कछी को उतार फैंका और वापस बैठकर जांघों को फिर दूर दूर कर दिया... हाए! अपनी ही योनि के रसीलेपान और जांघों तक पसर गयी चिकनाहट को देखते ही मैं मदहोश सी हो गयी..
मैने अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी उंगलियों से योनि की संतरिया फांकों को सहला कर देखा.. फांकों पर उगे हुए हलके हलके भूरे रंग के छ्होटे छ्होटे बॉल उत्तेंजाना के मारे खड़े हो गये.. उंनपर हाथ फेरने से मुझे योनि के अंदर तक गुदगुदी और आनंद का अहसास हो रहा था.... योनि पर उपर नीचे उंगलियों से क्रीड़ा सी करती हुई मैं बदहवास सी होती जा रही थी.. फांकों को फैलाकर मैने अंदर झाँकने की कोशिश की; चिकनी चिकनी लाल त्वचा के अलावा मुझे और कुच्छ दिखाई ना दिया... पर मुझे देखना था......
मैं उठी और बेड पर जाकर ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठ गयी.. हां.. अब मुझे ठीक ठीक अपनी जन्नत का द्वार दिखाई दे रहा था.. गहरे लाल और गुलाबी रंग में रंगा 'वो' कोई आधा इंच गहरा एक गड्ढा सा था...
मुझे पता था कि जब भी मेरा 'कल्याण' होगा.. यहीं से होगा...! जहाँ से योनि की फाँकें अलग होनी शुरू होती हैं.. वहाँ पर एक छ्होटा सा दाना उभरा हुआ था.. ठीक मेरी चूचियों के दाने की तरह.. उत्तेजना के मारे पागल सी होकर में उसको उंगली से छेड़ने लगी..
हमेशा की तरह वहाँ स्पर्श करते ही मेरी आँखें बंद होने लगी.. जांघों में हल्का हल्का कंपन सा शुरू हो गया... वैसे ये सब मैं पहले भी महसूस कर चुकी थी.. पर सामने शीशे में देखते हुए ऐसा करने में अलग ही रोमांच और आनंद आ रहा था..
धीरे धीरे मेरी उंगलियों की गति बढ़ती गयी.. और मैं निढाल होकर बिस्तेर पर पिछे आ गिरी... उंगलियाँ अब उसको सहला नही रही थी... बुल्की बुरी तरह से पूरी योनि को ही फांकों समेत मसल रही थी... अचानक मेरी अजीब सी सिसकियो से मेरे कानों में मीठी सी धुन गूंजने लगी और ना जाने कब ऐसा करते हुए मैं सब कुच्छ भुला कर दूसरे ही लोक में जा पहुँची....
गहरी साँसें लेते हुए मैं अपने सारे शरीर को ढीला छ्चोड़ बाहों को बिस्तेर पर फैलाए होश में आने ही लगी थी कि दरवाजे पर दस्तक सुनकर मेरे होश ही उड़ गये....
मैने फटाफट उठते हुए स्कर्ट को अच्छि तरह नीचे किया और जाकर दरवाजा खोल दिया....
"कितनी देर से नीचे से आवाज़ लगा रहा हूँ? मैं तो वापस जाने ही वाला था...अच्च्छा हुआ जो उपर आकर देख लिया... " सामने ज़मींदार का लड़का खड़ा था; सुन्दर!
" क्या बात है? आज स्कूल नही गयी क्या?" सुंदर ने मुझे आँखों ही आँखों में ही मेरे गालों से लेकर घुटनो तक नाप दिया..
"घर पर कोई नही है!" मैने सिर्फ़ इतना ही कहा और बाहर निकल कर आ गयी...
कमीना अंदर जाकर ही बैठ गया,"तुम तो हो ना!"
"नही... मुझे भी अभी जाना है.. खेत में..!" मैने बाहर खड़े खड़े ही बोला...
"इतने दीनो में आया हूँ.. चाय वाय तो पूच्छ लिया करो.. इतना भी कंजूस नही होना चाहिए..."
मैने मुड़कर देखा तो वो मेरे मोटे नितंबों की और देखते हुए अपने होंटो पर जीभ फेर रहा था....
"दूध नही है घर में...!" मैं नितंबों का उभार च्छुपाने के लिए जैसे ही उसकी और पलटी.. उसकी नज़रें मेरे सीने पर जम गयी
"कमाल है.. इतनी मोटी ताजी हो और दूध बिल्कुल नही है.." वह दाँत निकाल कर हँसने लगा...
आप शायद समझ गये होंगे की वह किस 'दूध' की बात कर रहा था.. पर मैं बिल्कुल नही समझी थी उस वक़्त.. तुम्हारी कसम
"क्या कह रहे हो? मेरे मोटी ताज़ी होने से दूध होने या ना होने का क्या मतलब"
वह यूँही मेरी साँसों के साथ उपर नीचे हो रही मेरी चूचियो को घूरता रहा," इतनी बच्ची भी नही हो तुम.. समझ जाया करो.. जितनी मोटी ताजी भैंस होगी.. उतना ही तो ज़्यादा दूध देगी" उसकी आँखें मेरे बदन में गढ़ी जा रही थी...
हाए राम! मेरी अब समझ में आया वो क्या कह रहा था.. मैने पूरा ज़ोर लगाकर चेहरे पर गुस्सा लाने की कोशिश की.. पर मैं अपने गालों पर आए गुलबीपन को छुपा ना सकी," क्या बकवास कर रहे हो तुम...? मुझे जाना है.. अब जाओ यहाँ से..!"
"अरे.. इसमें बुरा मान'ने वाली बात कौनसी है..? ज़्यादा दूध पीती होगी तभी तो इतनी मोटी ताज़ी हो.. वरना तो अपनी दीदी की तरह दुबली पतली ना होती....और दूध होगा तभी तो पीती होगी...मैने तो सिर्फ़ उदाहरण दिया था.. मैं तुम्हे भैंस थोड़े ही बोल रहा था... तुम तो कितनी प्यारी हो.. गोरी चित्ति... तुम्हारे जैसी तो और कोई नही देखी मैने... आज तक! कसम झंडे वाले बाबा की..."
आखरी लाइन कहते कहते उसका लहज़ा पूरा कामुक हो गया था.. जब जब उसने दूध का जिकर किया.. मेरे कानो को यही लगा कि वो मेरी मदभरी चूचियो की तारीफ़ कर रहा है....
"हां! पीती हूँ.. तुम्हे क्या? पीती हूँ तभी तो ख़तम हो गया.." मैने चिड़ कर कहा....
"एक आध बार हमें भी पीला दो ना!... .. कभी चख कर देखने दो.. तुम्हारा दूध...!"
उसकी बातों के साथ उसका लहज़ा भी बिल्कुल अश्लील हो गया था.. खड़े खड़े ही मेरी टांगे काँपने लगी.....
"मुझे नही पता...मैने कहा ना.. मुझे जाना है..!" मैं और कुच्छ ना बोल सकी और नज़रें झुकाए खड़ी रही..
"नही पता तभी तो बता रहा हूँ अंजू! सीख लो एक बार.. पहले पहल सभी को सीखना पड़ता है... एक बार सीख लिया तो जिंदगी भर नही भूलॉगी..." उसकी आँखों में वासना के लाल डोरे तेर रहे थे...
मेरा भी बुरा हाल हो चुका था तब तक.. पर कुच्छ भी हो जाता.. उस के नीचे तो मैने ना जाने की कसम खा रखी थी.. मैने गुस्से से कहा,"क्या है? क्या सीख लूँ.. बकवास मत करो!"
"अरे.. इतना उखड़ क्यूँ रही हो बार बार... मैं तो आए गये लोगों की मेहमान-नवाज़ी सिखाने की बात कर रहा हूँ.. आख़िर चाय पानी तो पूच्छना ही चाहिए ना.. एक बार सीख गयी तो हमेशा याद रखोगी.. लोग कितने खुश होकर वापस जाते हैं.. हे हे हे!" वा खीँसे निपोर्ता हुआ बोला... और चारपाई के सामने पड़ी मेरी कछी को उठा लिया...
मुझे झटका सा लगा.. उस और तो मेरा ध्यान अब तक गया ही नही था... मुझे ना चाहते हुए भी उसके पास अंदर जाना पड़ा,"ये मुझे दो...!"
बड़ी बेशर्मी से उसने मेरी गीली कछी को अपनी नाक से लगा लिया,"अब एक मिनिट में क्या हो जाएगा.. अब भी तो बेचारी फर्श पर ही पड़ी थी..." मैने हाथ बढ़ाया तो वो अपना हाथ पिछे ले गया.. शायद इस ग़लतफहमी में था कि उस'से छीन'ने के लिए में उसकी गोद में चढ़ जाउन्गि....
मैं पागल सी हो गयी थी.. उस पल मुझे ये ख़याल भी नही आया की मैं बोल क्या रही हूँ..," दो ना मुझे... मुझे पहन'नि है..." और अगले ही पल ये अहसास होते ही कि मैने क्या बोल दिया.. मैने शरम के मारे अपनी आँखें बंद करके अपने चेहरे को ढक लिया....
"ओह हो हो हो... इसका मतलब तुम नंगी हो...! ज़रा सोचो.. कोई तुम्हे ज़बरदस्ती लिटा कर तुम्हारी 'देख' ले तो!"
उसके बाद तो मुझसे वहाँ खड़ा ही नही रहा गया.. पलट कर मैं नीचे भाग आई और घर के दरवाजे पर खड़ी हो गयी.. मेरा दिल मेरी अकड़ चुकी चूचियो के साथ तेज़ी से धक धक कर रहा था...
कुच्छ ही देर में वह नीचे आया और मेरी बराबर में खड़ा होकर बिना देखे बोला," स्कूल में तुम्हारे करतबों के काफ़ी चर्चे सुने हैं मैने.. वहाँ तो बड़ी फुदक्ति है तू... याद रखना छोरि.. तेरी माँ को भी चोदा है मैने.. पता है ना...? आज नही तो कल.. तुझे भी अपने लंड पर बिठा कर ही रहूँगा..." और वो निकल गया...
डर और उत्तेजना का मिशरण मेरे चेहरे पर सॉफ झलक रहा था... मैने दरवाजा झट से बंद किया और बदहवास सी भागते भागते उपर आ गयी... मुझे मेरी कछी नही मिली.. पर उस वक़्त कछी से ज़्यादा मुझे कछी वाली की फिकर थी.. उपर वाला दरवाजा बंद किया और शीशे के सामने बैठकर मैं जांघें फैलाकर अपनी योनि को हाथ से मसल्ने लगी.......
उसके नाम पर मत जाना... वो कहते हैं ना! आँख का अँधा और नाम नयनसुख... सुंदर बिल्कुल ऐसा ही था.. एक दम काला कलूटा.. और 6 फीट से भी लंबा और तगड़ा सांड़! मुझे उस'से घिन तो थी ही.. डर भी बहुत लगता था.. मुझे तो देखते ही वह ऐसे घूरता था जैसे उसकी आँखों में क्ष-रे लगा हो और मुझको नंगी करके देख रहा हो... उसकी जगह और कोई भी उस समय उपर आया होता तो मैं उसको प्यार से अंदर बिठा कर चाय पिलाती और अपना अंग-प्रदर्शन अभियान चालू कर देती... पर उस'से तो मुझे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा नफ़रत थी...
उसका भी एक कारण था..
करीब 10 साल पहले की बात है.. मैं 7-8 साल की ही थी. मम्मी कोई 30 के करीब होगी और वो हरमज़दा सुंदर 20 के आस पास. लंबा तो वो उस वक़्त भी इतना ही था, पर इतना तगड़ा नही....
सर्दियों की बात है... मैं उस वक़्त अपनी दादी के पास नीचे ही सोती थी... नीचे तब तक कोई अलग कमरा नही था... 18 जे 30 की छत के नीचे सिर्फ़ उपर जाने के लिए जीना बना हुआ था...रात को उनसे रोज़ राजा-रानी की कहानियाँ सुनती और फिर उनके साथ ही दुबक जाती... जब भी पापा मार पीट करते थे तो मम्मी नीचे ही आकर सो जाती थी.. उस रात भी मम्मी ने अपनी चारपाई नीचे ही डाल ली थी...
हमारा दरवाजा खुलते समय काफ़ी आवाज़ करता था... दरवाजा खुलने की आवाज़ से ही शायद में उनीदी सी हो गयी ...
"मान भी जा अब.. 15 मिनिट से ज़्यादा नही लगवँगा..." शायद यही आवाज़ आई थी.. मेरी नींद खुल गयी.. मर्दाना आवाज़ के कारण पहले मुझे लगा कि पापा हैं.. पर जैसे ही मैने अपनी रज़ाई में से झाँका; मेरा भ्रम टूट गया.. नीचे अंधेरा था.. पर बाहर स्ट्रीट लाइट होने के कारण धुँधला धुँधला दिखाई दे रहा था...
"पापा तो इतने लंबे हैं ही नही..!" मैने मॅन ही मॅन सोचा...
वो मम्मी को दीवार से चिपकाए उस'से सटकार खड़ा था.. मम्मी अपना मौन विरोध अपने हाथों से उसको पिछे धकेलने की कोशिश करके जाता रही थी...
"देख चाची.. उस दिन भी तूने मुझे ऐसे ही टरका दिया था.. मैं आज बड़ी उम्मीद के साथ आया हूँ... आज तो तुझे देनी ही पड़ेगी..!" वो बोला.....
"तुम पागल हो गये हो क्या सुन्दर? ये भी कोई टाइम है...तेरा चाचा मुझे जान से मार देगा..... तुम जल्दी से 'वो' काम बोलो जिसके लिए तुम्हे इस वक़्त आना ज़रूरी था.. और जाओ यहाँ से...!" मम्मी फुसफुसाई...
"काम बोलने का नही.. करने का है चाची.. इस्शह.." सिसकी सी लेकर वो वापस मम्मी से चिपक गया...
उस वक़्त मेरी समझ में नही आ रहा था कि मम्मी और सुन्दर में ये छीना झपटी क्यूँ हो रही है...मेरा दिल धड़कने लगा... पर मैं डर के मारे साँस रोके सब देखती और सुनती रही...
"नही.. जाओ यहाँ से... अपने साथ मुझे भी मरवाओगे..." मम्मी की खुस्फुसाहट भी उनकी सुरीली आवाज़ के कारण सॉफ समझ में आ रही थी....
"वो लुडरू मेरा क्या बिगाड़ लेगा... तुम तो वैसे भी मरोगी अगर आज मेरा काम नही करवाया तो... मैं कल उसको बता दूँगा की मैने तुम्हे बाजरे वाले खेत में अनिल के साथ पकड़ा था...." सुंदर अपनी घटिया सी हँसी हँसने लगा....
"मैं... मैं मना तो नही कर रही सुंदर... कर लूँगी.. पर यहाँ कैसे करूँ... तेरी दादी लेटी हुई है... उठ गयी तो?" मम्मी ने घिघियाते हुए विरोध करना छ्चोड़ दिया....
"क्या बात कर रही हो चाची? इस बुधिया को तो दिन में भी दिखाई सुनाई नही देता कुच्छ.. अब अंधेरे में इसको क्या पता लगेगा..." सुंदर सच कर रहा था....
"पर छ्होटी भी तो यहीं है... मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ..." मम्मी गिड़गिडाई...
"ये तो बच्ची है.. उठ भी गयी तो इसकी समझ में क्या आएगा? वैसे भी ये तुम्हारी लाडली है... बोल देना किसी को नही बताएगी... अब देर मत करो.. जितनी देर करोगी.. तुम्हारा ही नुकसान होगा... मेरा तो खड़े खड़े ही निकलने वाला है... अगर एक बार निकल गया तो आधे पौने घंटे से पहले नही छूतेगा.. पहले बता रहा हूँ..."
मेरी समझ में नही आ रहा था कि ये 'निकलना' छ्छूटना' क्या होता है.. फिर भी मैं दिलचस्पी से उनकी बातें सुन रही थी.......
"तुम परसों खेत में आ जाना.. तेरे चाचा को शहर जाना है... मैं अकेली ही जाउन्गी.. समझने की कोशिश करो सुन्दर.. मैं कहीं भागी तो नही जा रही....." मम्मी ने फिर उसको समझाने की कोशिश की....
" तुम्हे मैं ही मिला हूँ क्या? चूतिया बनाने के लिए... अनिल बता रहा था कि उसने तुम्हारी उसके बाद भी 2 बार मारी है... और मुझे हर बार टरका देती हो... परसों की परसों देखेंगे.... अब तो मेरे लिए तो एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा है.. तुम्हे नही पता चाची.. तुम्हारे गोल गोल पुत्थे (नितंब) देख कर ही जवान हुआ हूँ.. हमेशा से सपना देखता था कि किसी दिन तुम्हारी चिकनी जांघों को सहलाते हुए तुम्हारी रसीली चूत चाटने का मौका मिले.. और तुम्हारे मोटे मोटे चूतदों की कसावट को मसलता हुआ तुम्हारी गांद में उंगली डाल कर देखूं.. सच कहता हूँ, आज अगर तुमने मुझे अपनी मारने से रोका तो या तो मैं नही रहूँगा... या तुम नही रहोगी.. लो पाकड़ो इस्सको..."
अब जाकर मुझे समझ में आया कि सुन्दर मम्मी को 'गंदी' बात करने के लिए कह रहा है... उनकी हरकतें इतनी सॉफ दिखाई नही दे रही थी... पर ये ज़रूर सॉफ दिख रहा था कि दोनो आपस में गुत्थम गुत्था हैं... मैं आँखें फ़ाडे ज़्यादा से ज़्यादा देखने की कोशिश करती रही....
"ये तो बहुत बड़ा है... मैने तो आज तक किसी का ऐसा नही देखा...." मम्मी ने कहा....
"बड़ा है चाची तभी तो तुम्हे ज़्यादा मज़ा आएगा... चिंता ना करो.. मैं इस तरह करूँगा कि तुम्हे सारी उमर याद रहेगा... वैसे चाचा का कितना है?" सुन्दर ने खुश होकर कहा.. वह पलट कर खुद दीवार से लग गया था और मम्मी की कमर मेरी तरफ कर दी थी....मम्मी ने शायद उसका कहना मान लिया था....
"धीरे बोलो......" मम्मी उसके आगे घुटनो के बल बैठ गयी... और कुच्छ देर बाद बोली," उनका तो पूरा खड़ा होने पर भी इस'से आधा रहता है.. सच बताउ? उनका आज तक मेरी चूत के अंदर नही झाड़ा..." मम्मी भी उसकी तरह गंदी गंदी बातें करने लगी.. मैं हैरान थी.. पर मुझे मज़ा आ रहा था.. मैं मज़ा लेती रही.....
"वाह चाची... फिर ये गोरी चिकनी दो फूल्झड़ियाँ और वो लट्तू कहाँ से पैदा कर दिया.." सुंदर ने पूचछा... पर मेरी समझ में कुच्छ नही आया था....
"सब तुम जैसों की दया है... मेरी मजबूरी थी...मैं क्या यूँही बेवफा हो गयी...?" कहने के बाद मम्मी ने कुच्छ ऐसा किया की सुन्दर उच्छल पड़ा....
"आआआअहह... ये क्या कर रही हो चाची... मारने का इरादा है क्या?" सुंदर हल्का सा तेज बोला.....
"क्या करूँ मैं? मुँह में तो आ नही रहा... बाहर से ही खा लूँ थोड़ा सा!" उसके साथ ही मम्मी भद्दे से तरीके से हँसी.....
"अरे तो इतना तेज 'बुड़का' (बीते) क्यूँ भर रही है... जीभ निकाल कर नीचे से उपर तक चाट ले ना...!" सुन्दर ने कहा.....
"ठीक है.. पर अब निकलने मत देना... मुझे तैयार करके कहीं भाग जाओ..." मम्मी ने सिर उपर उठाकर कहा और फिर उसकी जांघों की तरफ मुँह घुमा लिया....
मुझे आधी अधूरी बातें समझ आ रही थी... पर उनमें भी मज़ा इतना आ रहा था कि मैने अपना हाथ अपनी जांघों के बीच दबा लिया.... और अपनी जांघों को एक दूसरी से रगड़ने लगी... उस वक़्त मुझे नही पता था कि मुझे ये क्या हो रहा है.......
अचानक हमारे घर के आगे से एक ट्रॅक्टर गुजरा... उसकी रोशनी कुच्छ पल के लिए घर में फैल गयी.. मम्मी डर कर एक दम अलग हट गयी.. पर मैने जो कुच्छ देखा, मेरा रोम रोम रोमांचित हो गया...
सुंदर का लिंग गधे के 'सूंड' की तरह भारी भरकम, भयानक और उसके चेहरे के रंग से भी ज़्यादा काला कलूटा था...वो साँप की तरह सामने की और अपना फन सा फैलाए सीधा खड़ा था... लिंग का आगे का हिस्सा टमाटर की तरह अलग ही दिख रहा था. एक पल को तो मैं डर ही गयी थी.. मैने उस'से पहले काई बार छ्होटू की 'लुल्ली' देखी थी.. पर वो तो मुश्किल से 2 इंच की थी... वापस अंधेरा होने के बाद भी उसका आकर मेरी आँखों के सामने लहराता रहा...
"क्या हुआ? हट क्यूँ गयी चाची.. कितना मज़ा आ रहा है.. तुम तो कमाल का चाट'ती हो...!" सुन्दर ने मम्मी के बालों को पकड़ कर अपनी और खींच लिया....
"कुच्छ नही.. एक मिनिट.... लाइट ऑन कर लूँ क्या? बिना देखे मुझे उतना मज़ा नही आ रहा... " मम्मी ने खड़ा होकर कहा...
"मुझे तो कोई दिक्कत नही है... तुम अपनी देख लो चाची...!" सनडर ने कहा....
"एक मिनिट...!" कहकर मम्मी मेरी तरफ आई.. मैने घबराकर अपनी आँखें बंद कर ली... मम्मी ने मेरे पास आकर झुक कर देखा और मुझे थपकी सी देकर रज़ाई मेरे मुँह पर डाल दी...
कुच्छ ही देर बाद रज़ाई में से छन छन कर प्रकाश मुझ तक पहुँचने लगा... मैं बेचैन सी हो गयी.. मेरे कानो में 'सपड सपड' और सुन्दर की हल्की हल्की सिसकियाँ सुनाई दे रही थी... मुँह ढक कर सोने की तो मुझे ऐसे भी आदत नही थी... फिर मुझे सारा 'तमाशा' देखने की ललक भी उठ रही थी...
कुच्छ ही देर बाद मैने बिस्तेर और रज़ाई के बीच थोड़ी सी जगह बनाई और सामने देखने लगी... मेरे अचरज का कोई ठिकाना ना रहा.. "ये मम्मी क्या कर रही हैं?" मेरी समझ में नही आया....
घुटनो के बल बैठी हुई मम्मी ने अपने हाथ में पकड़ कर सुन्दर का भयानक लिंग उपर उठा रखा था और सुन्दर के लिंग के नीचे लटक रहे मोटे मोटे गोलों (टेस्टेस)को बारी बारी से अपने मुँह में लेकर चूस रही थी...
मेरी घिघी बँधती जा रही थी... सब कुच्छ मेरे लिए अविश्वसनीय सपने जैसा था.. मैं तो अपनी पलकें तक झपकना भूल चुकी थी.....
सुन्दर खड़ा खड़ा मम्मी का सिर पकड़ें सिसक रहा था.. और मम्मी बार बार उपर देख कर मुश्कुरा रही थी... सुन्दर की आँखें पूरी तरह बंद थी... इसीलिए मैने रज़ाई को थोडा सा और उपर उठा लिया....
कुच्छ देर बाद मम्मी ने गोलों को छ्चोड़ कर अपनी पूरी जीभ बाहर निकाली और सुन्दर के लिंग को नीचे से शुरू करके उपर तक चाट लिया.. मानो वह कोई आइस्क्रीम हो....
"ओहूऊ... इष्ह... मेरा निकल जाएगा...!" सुंदर की टाँगें काँप उठी... पर मम्मी बार बार उपर नीचे नीचे उपर चाट-ती रही.. सुन्दर का पूरा लिंग मम्मी के थूक से गीला होकर चमकने लगा था..
"तुम्हारे पास कितना टाइम है?" मम्मी ने लिंग को हाथ से सहलाते हुए पूचछा....
"मेरे पास तो पूरी रात है चाची... क्या इरादा है?" सुन्दर ने साँस भर कर कहा...
"तो निकल जाने दो..." मम्मी ने कहा और लिंग के सूपदे पर मुँह लगा कर अपने हाथ को लिंग पर...तेज़ी से आगे पिछे करने लगी...
अचानक सुन्दर ने अपने घुटनो को थोड़ा सा मोड़ा और दीवार से सटकार मम्मी के बालों को खींचते हुए लिंग को उसके मुँह में थूस्ने की कोशिश करने लगा... 'टमाटर' तो मम्मी के मुँह में घुस भी गया था.. पर शायद मम्मी का दम घुटने लगा और उन्होने किसी तरह उसको निकाल दिया...
सुंदर का लिंग मम्मी के चेहरे पर गाढ़े वीर्य की पिचकारियाँ सी छ्चोड़ रहा था.. .. मम्मी ने वापस सूपदे के आगे मुँह खोला और सुन्दर के रस को गटाकने लगी... जब खेल ख़तम हो गया तो मम्मी ने हंसते हुए कहा," सारा चेहरा खराब कर दिया.."
"मैं तो अंदर ही छ्चोड़ना चाहता था चाची... तुमने ही मुँह हटा लिया.." सुन्दर के चेहरे से सन्तुस्ति झलक रही थी....
"कमाल का लंड है तुम्हारा... मुझे पहले पता होता तो मैं कभी तुम्हे ना तड़पति..." मम्मी ने सिर्फ़ इतना ही कहा और सुंदर की शर्ट से अपने चेहरे को सॉफ करने लगी.....
मुझे तो तब तक इतना ही पता था कि 'लुल्ली' मूतने के काम आती है... आज पहली बार पता चला कि 'ये' और कुच्छ भी छ्चोड़ता है.. जो बहुत मीठा होता होगा... तभी तो मम्मी चटखारे ले लेकर उसको बाद में भी चाट'ती रही...
"अब मेरी बारी है... कपड़े निकाल दो..." सुंदर ने मम्मी को खड़ा करके उनके नितंब अपने हाथों में पकड़ लिए....
"तुम पागल हो क्या? परसों को में सारे निकाल दूँगी... आज सिर्फ़ सलवार नीचे करके 'चोद' लो..." मम्मी ने नाडा ढीला करते हुए कहा...
मेरा अश्लील शब्दकोष उनकी बातों के कारण बढ़ता ही जा रहा था...
"मॅन तो कर रहा है चाची कि तुम्हे अभी नगी करके खा जाउ! पर अपना वादा याद रखना... परसों खेत वाला..." सुन्दर ने कहा और मम्मी को झुकाने लगा.. पर मम्मी तो जानती थी... हल्का सा इशारा मिलते ही मम्मी ने उल्टी होकर झुकते हुए अपनी कोहानिया फर्श पर टीका ली और घुटनो के बल होकर जांघों को खोलते हुए अपने नितंबों को उपर उठा लिया...
Sapne mein hi sahi, par badan mein jo aag lagi thi, uski dahak se agle din bhi mera ang - ang sulag raha tha. Jawani ki tadap sunati toh sunati kisko! Subah uthi toh ghar par koyi nahi tha.. Papa shayad aaj mummy ko khet mein le gaye honge.. Hafte mein 2 din toh kum se kum aisa hota hi tha jab papa mummy ke sath hi khet mein jate the..
unn do dino mein mummy iss tarah sajdhaj kar khana sath lekar jati thi jaise khet mein nahi, kahin buddhe buddhiyon ki soundarya pratiyogita mein ja rahi hon.. majak kar rahi hoon... mummy toh ab tak buddhi nahi huyi hain.. 40 ki umar mein bhi wo badi didi ki tarah rasili hain.. mera toh khair muqabla hi kya hai..?
Khair; main bhi kin baaton ko utha leti hoon... haan toh main bata rahi thi ki agle din subah uthi toh koyi ghar par nahi tha... Khali ghar mein khud ko akeli pakar meri jaanghon ke beech sursuri si machne lagi.. Maine darwaja andar se band kiya aur charpayi par aakar apni jaanghon ko failakar skirt poori tarah upar utha liya..
main dekhkar hairat main pad gayi.. chhoti si meri yoni kisi bade paav ki tarah phool kar meri kachchhi se bahar nikalne ko utawali ho rahi thi... Moti moti yoni ki pattiyan santre ki faankon ki tarah ubhar kar kachchhi ke bahar se hi dikhayi de rahi thi... Unke beech ki jhirri mein kachchhi iss tarah andar ghusi huyi thi jaise yoni ka dil kachchhi par hi aa gaya ho...
Darr toh kisi baat ka tha hi nahi... main leti aur nitambon ko uksate huye kachchhi ko utaar fainka aur wapas baithkar jaanghon ko fir door door kar diya... Haye! apni hi yoni ke rasilepan aur jaanghon tak pasar gayi chiknahat ko dekhte hi main madhosh si ho gayi..
Maine apna hath neeche le jakar apni ungaliyon se yoni ki santariya faankon ko sahla kar dekha.. faankon par ugey huye hulke hulke bhoore rang ke chhote chhote baal uttenjana ke maare khade ho gaye.. unnpar hath ferne se mujhe yoni ke andar tak gudgudi aur aanand ka ahsaas ho raha tha.... yoni par upar neeche ungaliyon se kreeda si karti huyi main badhawas si hoti ja rahi thi.. Faankon ko failakar maine andar jhankne ki koshish ki; chikni chikni laal tawcha ke alawa mujhe aur kuchh dikhayi na diya... par mujhe dekhna tha......
Main uthi aur bed par jakar dressing table ke saamne baith gayi.. haan.. ab mujhe theek theek apni jannat ka dwar dikhayi de raha tha.. gahre laal aur gulabi rang mein ranga 'wo' koyi aadha inch gahra ek gaddha sa tha...
mujhe pata tha ki jab bhi mera 'kalyan' hoga.. yahin se hoga...! jahan se yoni ki faankein alag honi shuru hoti hain.. wahan par ek chhota sa dana ubhara huaa tha.. theek meri choochiyon ke daane ki tarah.. Uttejana ke mare pagal si hokar mein usko ungali se chhedne lagi..
Hamesha ki tarah wahan sparsh karte hi meri aankhein band hone lagi.. jaanghon mein hulka hulka kampan sa shuru ho gaya... waise ye sab main pahle bhi mahsoos kar chuki thi.. par saamne sheeshe mein dekhte huye aisa karne mein alag hi romanch aur aanand aa raha tha..
Dheere dheere meri ungaliyon ki gati badhti gayi.. aur main nidhal hokar bister par pichhe aa giri... ungaliyan ab usko sahla nahi rahi thi... bulki buri tarah se poori yoni ko hi faankon samet masal rahi thi... achanak meri ajeeb si sikiyon se mere kaanon mein meethi si dhun goonjne lagi aur na jane kab aisa karte huye main sab kuchh bhula kar dusre hi lok mein ja pahunchi....
Gahri saansein lete huye main apne saare shareer ko dheela chhod baahon ko bister par failaye hosh mein aane hi lagi thi ki darwaje par dastak sunkar mere hosh hi udd gaye....
Maine fatafat uthte huye skirt ko achchhi tarah neeche kiya aur jakar darwaja khol diya....
"Kitni der se neeche se aawaj laga raha hoon? Main toh wapas jaane hi wala tha...achchha hua jo upar aakar dekh liya... " Saamne jameendar ka ladka khada tha; Sunder!
" Kya baat hai? aaj school nahi gayi kya?" Sunder ne mujhe aankhon hi aankhon mein hi mere gaalon se lekar ghutno tak naap diya..
"Ghar par koyi nahi hai!" Maine sirf itna hi kaha aur bahar nikal kar aa gayi...
Kamina andar jakar hi baith gaya,"tum toh ho na!"
"Nahi... mujhe bhi abhi jana hai.. khet mein..!" Maine bahar khade khade hi bola...
"Itne dino mein aaya hoon.. chay vaay toh poochh liya karo.. itna bhi kanjoos nahi hona chahiye..."
Maine mudkar dekha toh wo mere mote nitambon ki aur dekhte huye apne honton par jeebh fer raha tha....
"Doodh nahi hai ghar mein...!" Main nitambon ka ubhar chhupane ke liye jaise hi uski aur palati.. uski najrein mere seene par jam gayi
"kamaal hai.. itni moti taji ho aur doodh bilkul nahi hai.." wah daant nikal kar hansne laga...
Aap shayad samajh gaye honge ki wah kis 'doodh' ki baat kar raha tha.. par main bilkul nahi samjhi thi uss waqt.. tumhari kasam
"kya kah rahe ho? Mere moti tazi hone se doodh hone ya na hone ka kya matlab"
Wah yunhi meri saanson ke sath upar neeche ho rahi meri chhatiyon ko ghoorta raha," Itni bachchi bhi nahi ho tum.. samajh jaya karo.. jitni moti taaji bhains hogi.. utna hi toh jyada doodh degi" Uski aankhein mere badan mein gadi ja rahi thi...
Haye Ram! meri ab samajh mein aaya wo kya kah raha tha.. maine poora jor lagakar chehre par gussa lane ki koshish ki.. par main apne gaalon par aaye gulabipan ko chhupa na saki," Kya bakwas kar rahe ho tum...? mujhe jana hai.. ab jao yahan se..!"
"Arey.. ismein bura maan'ne wali baat kounsi hai..? jyada doodh peeti hogi tabhi toh itni moti tazi ho.. warna toh apni didi ki tarah dubli patli na hoti....aur doodh hoga tabhi toh piti hogi...Maine toh sirf udaharan diya tha.. main tumhe bhains thode hi bol raha tha... tum toh kitni pyari ho.. gori chitti... tumhare jaisi toh aur koyi nahi dekhi maine... aaj tak! kasam jhande waley baba ki..."
Aakhri line kahte kahte uska lahja poora kamuk ho gaya tha.. jab jab usne doodh ka jikar kiya.. mere kaano ko yahi laga ki wo meri madbhari chhatiyon ki taareef kar raha hai....
"Haan! piti hoon.. tumhe kya? peeti hoon tabhi toh khatam ho gaya.." Maine chid kar kaha....
"Ek aadh baar hamein bhi pila do na!... .. kabhi chakh kar dekhne do.. tumhara doodh...!"
Uski baaton ke sath uska lahja bhi bilkul ashleel ho gaya tha.. khade khade hi meri taange kaampne lagi.....
"Mujhe nahi pata...Maine kaha na.. mujhe jana hai..!" Main aur kuchh na bol saki aur najrein jhukaye khadi rahi..
"Nahi pata tabhi toh bata raha hoon Anju! Seekh lo ek baar.. pahle pahal sabhi ko seekhna padta hai... ek baar seekh liya toh jindagi bhar nahi bhoologi..." Uski aankhon mein wasna ke laal dorey tair rahe the...
Mera bhi bura haal ho chuka tha tab tak.. par kuchh bhi ho jata.. uss ke neeche toh maine na jane ki kasam kha rakhi thi.. Maine gusse se kaha,"Kya hai? kya seekh loon.. bakwas mat karo!"
"Arey.. itna ukhad kyun rahi ho baar baar... main toh aaye gaye logon ki mehmaan-nawaji sikhane ki baat kar raha hoon.. aakhir chay pani toh poochhna hi chahiye na.. ek baar seekh gayi toh hamesha yaad rakhogi.. log kitne khush hokar wapas jate hain.. he he he!" Wah kheense niporta hua bola... aur charpayi ke saamne padi meri kachchhi ko utha liya...
Mujhe jhatka sa laga.. uss aur toh mera dhyan ab tak gaya hi nahi tha... Mujhe na chahte huye bhi uske paas andar jana pada,"ye mujhe do...!"
Badi besharmi se usne meri geeli kachchhi ko apni naak se laga liya,"ab ek minute mein kya ho jayega.. ab bhi toh bechari farsh par hi padi thi..." Maine hath badhaya toh wo apna hath pichhe le gaya.. shayad iss galatfahmi mein tha ki uss'se chhen'ne ke liye mein uski god mein chadh jaaungi....
Main pagal si ho gayi thi.. uss pal mujhe ye khayal bhi nahi aaya ki main bol kya rahi hoon..," do na mujhe... mujhe pahan'ni hai..." aur agle hi pal ye ahsaas hote hi ki maine kya bol diya.. maine sharam ke mare apni aankhein band karke apne chehre ko dhak liya....
"oh ho ho ho... iska matlab tum nangi ho...! jara socho.. koyi tumhe jabardasti lita kar tumhari 'dekh' le toh!"
Uske baad toh mujhse wahan khada hi nahi raha gaya.. palat kar main neeche bhag aayi aur ghar ke darwaje par khadi ho gayi.. mera dil meri akad chuki chhatiyon ke sath teji se dhak dhak kar raha tha...
Kuchh hi der mein wah neeche aaya aur meri barabar mein khada hokar bina dekhe bola," School mein tumhare kartabon ke kafi charche sune hain maine.. wahan toh badi fudakti hai tu... yaad rakhna chhori.. teri maan ko bhi choda hai maine.. pata hai na...? aaj nahi toh kal.. tujhe bhi apne lund par bitha kar hi rahoonga..." Aur wo nikal gaya...
darr aur uttejna ka misharan mere chehre par saaf jhalak raha tha... Maine darwaja jhat se band kiya aur badhawas si bhagte bhagte upar aa gayi... Mujhe meri kachchhi nahi mili.. par uss waqt kachchhi se jyada mujhe kachchhi wali ki fikar thi.. upar wala darwaja band kiya aur sheeshe ke saamne baithkar main jaanghein failakar apni yoni ko hath se masalne lagi.......
uske naam par mat jana... Wo kahte hain na! Aankh ka andha aur naam nayansukh... Sundar bilkul aisa hi tha.. ek dum kala kaloota.. aur 6 feet se bhi lamba aur tagda saand! Mujhe uss'se ghin toh thi hi.. darr bhi bahut lagta tha.. Mujhe toh dekhte hi wah aise ghoorta tha jaise uski aankhon mein X-ray laga ho aur mujhko nangi karke dekh raha ho... Uski jagah aur koyi bhi uss samay upar aaya hota toh main usko pyar se andar bitha kar chay pilati aur apna ang-pradarshan abhiyaan chaalu kar deti... par uss'se toh mujhe iss duniya mein sabse jyada nafrat thi...
uska bhi ek karan tha..
Kareeb 10 saal pahle ki bat hai.. main 7-8 saal ki hi thi. Mummy koyi 30 ke kareeb hogi aur wo haramjada sundar 20 ke aas paas. lamba toh wo uss waqt bhi itna hi tha, par itna tagda nahi....
Sardiyon ki baat hai... Main uss waqt apni dadi ke paas neeche hi soti thi... Neeche tab tak koyi alag kamra nahi tha... 18 X 30 ki chhat ke neeche sirf upar jane ke liye jeena bana hua tha...Raat ko unse roz raja-rani ki kahaniyan sunti aur fir unke sath hi dubak jati... jab bhi papa maar peet karte the toh mummy neeche hi aakar so jati thi.. Uss raat bhi mummy ne apni charpayi neeche hi daal li thi...
hamara darwaja khulte samay kafi aawaj karta tha... Darwaja khulne ki aawaj se hi shayad mein uneendi si ho gayi ...
"maan bhi ja ab.. 15 minute se jyada nahi lagaaunga..." Shayad yahi aawaj aayi thi.. meri neend khul gayi.. mardana aawaj ke karan pahle mujhe laga ki papa hain.. par jaise hi maine apni rajayi mein se jhanka; mera bhram toot gaya.. Neeche andhera tha.. par bahar street light hone ke karan dhundhla dhundhla dikhayi de raha tha...
"papa toh itne lambe hain hi nahi..!" Maine mann hi mann socha...
Wo mummy ko deewar se chipkaye uss'se satkar khada tha.. mummy apna moun virodh apne hathon se usko pichhe dhakelne ki koshish karke jata rahi thi...
"Dekh chachi.. uss din bhi tune mujhe aise hi tarka diya tha.. main aaj badi ummeed ke sath aaya hoon... aaj toh tujhe deni hi padegi..!" wo bola.....
"Tum pagal ho gaye ho kya sunder? ye bhi koyi time hai...tera chacha mujhe jaan se maar dega..... tum jaldi se 'wo' kaam bolo jiske liye tumhe iss waqt aana jaroori tha.. aur jao yahan se...!" mummy fusfusayi...
"Kaam bolne ka nahi.. karne ka hai chachi.. isshhhhh.." Siski si lekar wo wapas mummy se chipak gaya...
uss waqt meri samajh mein nahi aa raha tha ki mummy aur sunder mein ye chheena jhapti kyun ho rahi hai...Mera dil dhadkane laga... par main darr ke maare saans roke sab dekhti aur sunti rahi...
"Nahi.. jao yahan se... apne sath mujhe bhi marwaoge..." Mummy ki khusfusahat bhi unki sureeli aawaj ke karan saaf samajh mein aa rahi thi....
"Wo ludroo mera kya bigad lega... tum toh waise bhi marogi agar aaj mera kaam nahi karwaya toh... Main kal usko bata doonga ki maine tumhe baajre wale khet mein Anil ke sath pakda tha...." Sunder apni ghatiya si hansi hansne laga....
"main... main mana toh nahi kar rahi sunder... kar loongi.. par yahan kaise karoon... teri dadi leti huyi hai... uth gayi toh?" Mummy ne ghighiyate huye virodh karna chhod diya....
"Kya baat kar rahi ho chachi? iss budhiya ko toh din mein bhi dikhayi sunayi nahi deta kuchh.. ab andhere mein isko kya pata lagega..." Sunder sach kar raha tha....
"Par chhoti bhi toh yahin hai... main tere hath jodti hoon..." Mummy gidgidayi...
"Ye toh bachchi hai.. uth bhi gayi toh iski samajh mein kya aayega? waise bhi ye tumhari laadli hai... bol dena kisi ko nahi batayegi... ab der mat karo.. jitni der karogi.. tumhara hi nuksaan hoga... mera toh khade khade hi nikalne wala hai... agar ek baar nikal gaya toh aadhe poune ghante se pahle nahi chhootega.. pahle bata raha hoon..."
Meri samajh mein nahi aa raha tha ki ye 'nikalna' chhootna' kya hota hai.. fir bhi main dilchaspi se unki baatein sun rahi thi.......
"tum parson khet mein aa jana.. tere chacha ko shahar jana hai... main akeli hi jaungi.. samajhne ki koshish karo sunder.. main kahin bhagi toh nahi ja rahi....." Mummy ne fir usko samjhane ki koshish ki....
" Tumhe main hi mila hoon kya? chutiya banane ke liye... Anil bata raha tha ki usne tumhari uske baad bhi 2 baar mari hai... aur mujhe har baar tarka deti ho... parson ki parson dekhenge.... ab toh mere liye toh ek ek pal kaatna mushkil ho raha hai.. Tumhe nahi pata chachi.. tumhare gol gol putthe (nitamb) dekh kar hi jawaan hua hoon.. hamesha se sapna dekhta tha ki kisi din tumhari chikni jaanghon ko sahlate huye tumhari rasili choot chaatne ka mouka miley.. aur tumhare mote mote chutadon ki kasawat ko masalta hua tumhari gaand mein ungli daal kar dekhoon.. sach kahta hoon, aaj agar tumne mujhe apni maarne se roka toh ya toh main nahi rahoonga... ya tum nahi rahogi.. lo pakdo issko..."
Ab jakar mujhe samajh mein aaya ki sunder mummy ko 'gandi' baat karne ke liye kah raha hai... unki harkatein itni saaf dikhayi nahi de rahi thi... par ye jaroor saaf dikh raha tha ki dono aapas mein guttham guttha hain... main aankhein faade jyada se jyada dekhne ki koshish karti rahi....
"Ye toh bahut bada hai... maine toh aaj tak kisi ka aisa nahi dekha...." Mummy ne kaha....
"Bada hai chachi tabhi toh tumhe jyada maja aayega... chinta na karo.. main iss tarah karoonga ki tumhe sari umar yaad rahega... waise chacha ka kitna hai?" Sunder ne khush hokar kaha.. Wah palat kar khud deewar se lag gaya tha aur Mummy ki kamar meri taraf kar di thi....mummy ne shayad uska kahna maan liya tha....
"Dheere bolo......" Mummy uske aage ghutno ke bal baith gayi... aur kuchh der baad boli," Unka toh poora khada hone par bhi iss'se aadha rahta hai.. sach bataaun? unka aaj tak meri choot ke andar nahi jhada..." Mummy bhi uski tarah gandi gandi baatein karne lagi.. main hairan thi.. par mujhe maja aa raha tha.. main maja leti rahi.....
"Wah chachi... fir ye gori chikni do fooljhadiyan aur wo lattu kahan se paida kar diya.." Sundar ne poochha... par meri samajh mein kuchh nahi aaya tha....
"Sab tum jaison ki daya hai... meri majboori thi...main kya yunhi bewafa ho gayi...?" kahne ke baad mummy ne kuchh aisa kiya ki sunder uchhal pada....
"aaaaaaahhhh... ye kya kar rahi ho chachi... maarne ka iraada hai kya?" Sunder hulka sa tej bola.....
"Kya karoon main? munh mein toh aa nahi raha... bahar se hi kha loon thoda sa!" uske sath hi mummy bhadde se tareeke se hansi.....
"Arey toh itna tej 'budka' (bite) kyun bhar rahi hai... jeebh nikal kar neeche se upar tak chaat le na...!" Sunder ne kaha.....
"Theek hai.. par ab nikalne mat dena... mujhe taiyaar karke kahin bhag jaao..." Mummy ne sir upar uthakar kaha aur fir uski jaanghon ki taraf munh ghuma liya....
Mujhe aadhi adhoori baatein samajh aa rahi thi... par unmein bhi maja itna aa raha tha ki maine apna hath apni jaanghon ke beech daba liya.... aur apni jaanghon ko ek dusri se ragadne lagi... uss waqt mujhe nahi pata tha ki mujhe ye kya ho raha hai.......
Achanak hamare ghar ke aage se ek tractor gujra... Uski roshni kuchh pal ke liye ghar mein fail gayi.. mummy darr kar ek dum alag hat gayi.. par maine jo kuchh dekha, mera rom rom romanchit ho gaya...
Sunder ka ling gadhe ke 'soond' ki tarah bhari bharkam, bhayanak aur uske chehre ke rang se bhi jyada kala kaloota tha...wo saanp ki tarah saamne ki aur apna fun sa failaye seedha khada tha... ling ka aage ka hissa tamatar ki tarah alag hi dikh raha tha. ek pal ko toh main darr hi gayi thi.. maine uss'se pahle kayi baar chhotu ki 'lulli' dekhi thi.. par wo toh mushkil se 2 inch ki thi... wapas andhera hone ke baad bhi uska aakar meri aankhon ke saamne lahrata raha...
"Kya hua? hat kyun gayi chachi.. kitna maja aa raha hai.. tum toh kamaal ka chat'ti ho...!" Sunder ne mummy ke baalon ko pakad kar apni aur kheench liya....
"Kuchh nahi.. ek minute.... light on kar loon kya? bina dekhe mujhe utna maja nahi aa raha... " Mummy ne khada hokar kaha...
"Mujhe toh koyi dikkat nahi hai... tum apni dekh lo chachi...!" Sunder ne kaha....
"Ek minute...!" kahkar mummy meri taraf aayi.. maine ghabrakar apni aankhein band kar li... Mummy ne mere paas aakar jhuk kar dekha aur mujhe thapki si dekar rajayi mere munh par daal di...
kuchh hi der baad rajayi mein se chhan chhan kar prakash mujh tak pahunchne laga... main bechain si ho gayi.. mere kaano mein 'sapad sapad' aur sunder ki hulki hulki siskiyan sunayi de rahi thi... munh dhak kar sone ki toh mujhe aise bhi aadat nahi thi... fir mujhe sara 'tamasha' dekhne ki lalak bhi uth rahi thi...
Kuchh hi der baad maine bister aur rajayi ke beech thodi si jagah banayi aur saamne dekhne lagi... mere acharaj ka koyi thikana na raha.. "ye mummy kya kar rahi hain?" meri samajh mein nahi aaya....
Ghutno ke bal baithi huyi mummy ne apne hath mein pakad kar Sunder ka bhayanak ling upar utha rakha tha aur Sunder ke ling ke neeche latak rahe mote mote golon (testes)ko bari bari se apne munh mein lekar choos rahi thi...
Meri ghighi bandhti ja rahi thi... sab kuchh mere liye avishvasaneey sapne jaisa tha.. main toh apni palkein tak jhapkana bhool chuki thi.....
Sunder khada khada mummy ka sir pakdein sisak raha tha.. aur mummy baar baar upar dekh kar mushkura rahi thi... Sunder ki aankhein poori tarah band thi... isiliye maine rajayi ko thoda sa aur upar utha liya....
Kuchh der baad mummy ne golon ko chhod kar apni poori jeebh bahar nikali aur Sunder ke ling ko neeche se shuru karke upar tak chat liya.. mano wah koyi icecream ho....
"ohhhoooo... ishhhhh... mera nikal jayega...!" Sundar ki taangein kaamp uthi... par mummy baar baar upar neeche neeche upar chat-ti rahi.. sunder ka poora ling mummy ke thhook se geela hokar chamakne laga tha..
"Tumhare paas kitna time hai?" Mummy ne ling ko hath se sahlate huye poochha....
"Mere paas toh poori raat hai chachi... kya iraada hai?" Sunder ne saans bhar kar kaha...
"Toh nikal jane do..." Mummy ne kaha aur ling ke supade par munh laga kar apne haath ko ling par...tezi se aage pichhe karne lagi...
Achanak Sunder ne apne ghutno ko thoda sa moda aur deewar se satkar mummy ke baalon ko kheenchte huye ling ko uske munh mein thoosne ki koshish karne laga... 'tamatar' toh mummy ke munh mein ghus bhi gaya tha.. par shayad mummy ka dum ghutne laga aur unhone kisi tarah usko nikal diya...
Sundar ka ling mummy ke chehre par gaadhe veerya ki pichkariyan si chhod raha tha.. .. mummy ne wapas supade ke aage munh khola aur sunder ke ras ko gatakne lagi... jab khel khatam ho gaya toh mummy ne hanste huye kaha," Sara chehra kharaab kar diya.."
"Main toh andar hi chhodna chahta tha chachi... tumne hi munh hata liya.." Sunder ke chehre se santusti jhalak rahi thi....
"Kamaal ka lund hai tumhara... mujhe pahle pata hota toh main kabhi tumhe na tadpati..." Mummy ne sirf itna hi kaha aur sundar ki shirt se apne chehre ko saaf karne lagi.....
Mujhe toh tab tak itna hi pata tha ki 'lulli' mootne ke kaam aati hai... aaj pahli baar pata chala ki 'ye' aur kuchh bhi chhodta hai.. jo bahut meetha hota hoga... tabhi toh mummy chatkhare le lekar usko baad mein bhi chaht'ti rahi...
"Ab meri bari hai... kapde nikal do..." Sundar ne mummy ko khada karke unke nitamb apne hathon mein pakad liye....
"Tum pagal ho kya? parson kothde mein saare nikal doongi... aaj sirf salwar neeche karke 'chod' lo..." Mummy ne nada dheela karte huye kaha...
Mera ashleel shabdkosh unki baaton ke karan badhta hi ja raha tha...
"Mann toh kar raha hai chachi ki tumhe abhi nagi karke kha jaaun! par apna wada yaad rakhna... parson khet wala..." Sunder ne kaha aur mummy ko jhukane laga.. par mummy toh jaanti thi... hulka sa ishara milte hi mummy ne ulti hokar jhukte huye apni kohaniya farsh par tika li aur ghutno ke bal hokar jaanghon ko kholte huye apne nitambon ko upar utha liya...
क्रमशः ..................
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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