Sunday, May 2, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--3

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बाली उमर की प्यास पार्ट--3

गतांक से आगे.......................


सुन्दर मम्मी का दीवाना यूँ ही नही था.. ना ही उसने मम्मी की झूठी तारीफ़ की थी... आज भी मम्मी जब चलती हैं तो देखने वाले देखते रह जाते हैं.. चलते हुए मम्मी के नितंब ऐसे थिरकते हैं मानो नितंब नही कोई तबला हो जो हल्की सी ठप से ही पूरा काँपने लगता है... कटोरे के आकर के दोनो नितंबों का उठान और उनके बीच की दरार; सब कातिलाना थे...

मम्मी के कसे हुए शरीर की दूधिया रंगत और उस पर उनकी कातिल आदयें; कौन ना मर मिटे!

खैर, मम्मी के कोहनियों और घुटनो के बल झुकते ही सुन्दर उनके पिछे बैठ गया... अगले ही पल उन्होने मम्मी के नितंबों पर थपकी मार कर सलवार और पॅंटी को नीचे खींच दिया. इसके साथ ही सुन्दर के मुँह से लार टपक गयी," क्या मस्त गोरे कसे हुए चूतड़ हैं चाची..!" कहते हुए उसने अपने दोनो हाथ मम्मी के नितंबों पर चिपका कर उन्हे सहलाना शुरू कर दिया...

मम्मी मुझसे 90 डिग्री के अन्गेल पर झुकी हुई थी, इसीलिए मुझे उनके ऊँचे उठे हुए एक नितंब के अलावा कुच्छ दिखाई नही दे रहा था.. पर मैं टकटकी लगाए तमाशा देखती रही.....

"हाए चाची! तेरी चूत कितनी रसीली है अभी तक... इसको तो बड़े प्यार से ठोकना पड़ेगा... पहले थोड़ी चूस लूँ..." उसने कहा और मम्मी के नितंबों के बीच अपना चेहरा घुसा दिया.... मम्मी सिसकते हुए अपने नितंबों को इधर उधर हटाने की कोशिश करने लगी...

"आअय्यीश्ह्ह्ह...अब और मत तडपा सुन्दर..आआअहह.... मैं तैयार हूँ.. ठोक दो अंदर!"

"ऐसे कैसे ठोक दूँ अंदर चाची...? अभी तो पूरी रात पड़ी है...." सुंदर ने चेहरा उठाकर कहा और फिर से जीभ निकाल कर चेहरा मम्मी की जांघों में घुसा दिया...

"समझा करो सुन्दर... आआहह...फर्श मुझे चुभ रहा है... थोड़ी जल्दी करो..!" मम्मी ने अपना चेहरा बिल्कुल फर्श से सटा लिया.. उनके 'दूध' फर्श पर टिक गये....," अच्च्छा.. एक मिनिट... मुझे खड़ी होने दो...!"

मम्मी के कहते ही सुन्दर ने अच्छे बच्चे की तरह उन्हे छ्चोड़ दिया... और मम्मी ने खड़ा होकर मेरी तरफ मुँह कर लिया...
जैसे ही सुन्दर ने उनका कमीज़ उपर उठाया.. मम्मी की पूरी जांघें और उनके बीच छ्होटे छ्होटे गहरे काले बालों वाली मोटी मोटी योनि की फाँकें मेरे सामने आ गयी... एक बार तो खुद में ही शर्मा गयी... गर्मियों में जब मैं कयि बार छ्होटू के सामने नंगी ही बाथरूम से निकल आती तो मम्मी मुझे 'शेम शेम' कह कर चिढ़ाती थी... फिर आज क्यूँ अपनी शेम शेम को सुन्दर के सामने परोस दिया; उस वक़्त मेरी समझ से बाहर था....

सुन्दर घुटने टके कर मम्मी के सामने मेरी तरफ पीठ करके बैठ गया और मम्मी की योनि मेरी नज़रों से छिप गयी... अगले ही पल मम्मी आँखें बंद करके सिसकने लगी... उनके मुँह से अजीब सी आवाज़ें आ रही थी...

मैं हैरत से सब कुच्छ देख रही थी...

"बस-बस... मुझसे खड़ा नही रहा जा रहा सुन्दर... दीवार का सहारा लेने दो..", मम्मी ने कहा और साइड में होकर दीवार से पीठ सटा कर खड़ी हो गयी... उन्होने अपने एक पैर से सलवार बिल्कुल निकाल दी और सुन्दर के उनके सामने बैठते ही अपनी नंगी टाँग उठाकर सुन्दर के कंधे पर रख दी..

अब सुन्दर का चेहरा और मम्मी की योनि मुझे आमने सामने दिखाई दे रहे थे.. हाए राम! सुन्दर ने अपनी जीभ बाहर निकाली और मम्मी की योनि में घुसेड दी.. मम्मी पहले की तरह ही सिसकने लगी... मम्मी ने सुन्दर का सिर कसकर पकड़ रखा था और सुंदर अपनी जीभ को कभी अंदर बाहर और कभी उपर नीचे कर रहा था...

अंजाने में ही मेरे हाथ अपनी सलवार में चले गये.. मैने देखा; मेरी योनि भी चिपचिपी सी हो रखी है.. मैने उसको सॉफ करने की कोशिश की तो मुझे बहुत मज़ा आया....

अचानक मम्मी पर मानो पहाड़ सा टूट पड़ा... जल्दी में सुन्दर के कंधे से पैर हटाने के चक्कर में मम्मी लड़खड़ा कर गिर पड़ी... उपर से पापा ज़ोर ज़ोर से बड़बड़ाते हुए आ रहे थे...,"साली, कमिनि, कुतिया! कहाँ मर गयी....?"

सुन्दर भाग कर हमारी खाट के नीचे घुस गया... पर मम्मी जब तक संभाल कर खड़ी होती, पापा नीचे आ चुके थे.. मम्मी अपनी सलवार भी पहन नही पाई थी...

पापा नींद में थे और शायद नशे में भी.. कुच्छ पल मम्मी को टकटकी लगाए देखते रहे फिर बोले," बहनचोड़ कुतिया.. यहाँ नंगी होकर क्या कर रही है..? किसी यार को बुलाया था क्या?" और पास आकर एक ज़ोर का थप्पड़ मम्मी को जड़ दिया....

मैं सहम गयी थी...

मम्मी थरथरते हुए बोली...,"न्नाही... वो ....मेरी सलवार में कुच्छ घुस गया था... पता नही क्या था..."

"हमेशा 'कुच्छ' तेरी सलवार में ही क्यूँ घुसता है कुतिया... तेरी चूत कोई शहद का छत्ता है क्या?..." पापा ने गुर्रते हुए मम्मी का गला पकड़ लिया...

मम्मी गिड़गिदते हुए पापा के कदमों में आ गिरी,"प्लीज़.. ऐसा मत कहिए.. मेरा तो सब कुच्छ आप का ही है....!"

"हूंम्म... ये भी तो तेरा ही है.. ले संभाल इसको.. खड़ा कर..." मैं अचरज से पापा का लिंग देखती रह गयी.. उन्होने अपनी चैन खोलकर अपना लिंग बाहर निकाल लिया और मम्मी के मुँह में थूस्ने लगे... मैं सुन्दर का लिंग देखने के बाद उनका लिंग देख कर हैरान थी.. उनका लिंग तो छ्होटा सा था बिल्कुल.. और मरे हुए चूहे की तरह लटक रहा था....

"उपर चलिए आप.. मैं कर दूँगी खड़ा... यहाँ छ्होटी उठ जाएगी... जैसे कहोगे वैसे कर लूँगी...." कहते हुए मम्मी उठी और पापा के लिंग को सहलाते हुए उन्हे उपर ले गयी...

उनके उपर जाते ही सुन्दर हड़बड़ाहट में मेरी चारपाई के नीचे से निकला और दरवाजा खोल कर भाग गया...

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तीसरे दिन मैं जानबूझ कर स्कूल नही गयी.. दीदी और छ्होटू स्कूल जा चुके थे... और पापा शहर....

"अब पड़ी रहना यहाँ अकेली... मैं तो चली खेत में.." मम्मी सजधज कर तैयार हो गयी थी.. खेत जाने के लिए...!

"नही मम्मी.. मैं भी चलूंगी आपके साथ.....!" मैने ज़िद करते हुए कहा....

"पागल है क्या? तुझे पता नही.. वहाँ कितने मोटे मोटे साँप आ जाते हैं... खा जाएँगे तुझे..." मम्मी ने मुझे डराते हुए कहा....

मेरे जेहन में तो सुन्दर का 'साँप' ही चक्कर काट रहा था.. वही दोबारा देखने ही तो जाना चाहती थी खेत में...," पर आपको खा गये तो मम्मी...?" मैने कहा..

"मैं तो बड़ी हूँ बेटी.. साँप को काबू में कर लूँगी... मार भी दूँगी... तू यहीं रह और सो जा!" मम्मी ने जवाब दिया....

"तो आप मार लेना साँप को... मैं तो दूर से ही देखती रहूंगी.... कुच्छ बोलूँगी नही...." मैने ज़िद करते हुए कहा...

"चुप कर.. ज़्यादा बकवास मत कर... यहीं रह.. मैं जा रही हूँ...!" मम्मी चल दी...

मैं रोती हुई नीचे तक आ गयी.. मेरी आँखों से मोटे मोटे आँसू टपक रहे थे...सुन्दर के 'साँप' को देखने के लिए बेचैन ही इतनी थी मैं.. आख़िरकार मेरी ज़िद के आगे मम्मी को झुकना पड़ा... पर वो मुझे खेत नही ले गयी.. खुद भी घर पर ही रह गयी वो!

मम्मी को कपड़े बदल कर मुँह चढ़ाए घर में बैठे 2 घंटे हो गये थे.. मैं उठी और उनकी गोद में जाकर बैठ गयी,"आप नाराज़ हो मम्मी?"

"हां... और नही तो क्या? खेत में इतना काम है... तेरे पापा आते ही मेरी पिटाई करेंगे...!" मम्मी ने कहा....

"पापा आपको क्यूँ मारते हैं मम्मी.. ? मुझे पापा बहुत गंदे लगते हैं...

"आप भी तो बड़ी हो.. आप उन्हे क्यूँ नही मारती?" मैने भोलेपन से पूचछा...

मम्मी कुच्छ देर चुप ही रही और फिर एक लंबी साँस ली," छ्चोड़ इन बातों को.. तू आज फिर मेरी पिटाई करवाना चाहती है क्या?"

"नही मम्मी..!" मैने मायूस होकर कहा...

"तो फिर मुझे जाने क्यूँ नही देती खेत मैं?" मम्मी ने नाराज़ होकर अपना मुँह फुलाते हुए कहा....

पता नही मैं क्या जवाब देती उस वक़्त.. पर इस'से पहले मैं बोलती.. नीचे से सुंदर की आवाज़ आ गयी,"चाचा.... ओ चाचा!"

मम्मी अचानक खड़ी हो गयी और नीचे झाँका.. सुन्दर उपर ही आ रहा था..

"उपर आते ही उसने मेरी और देखते हुए पूचछा," चाचा कहाँ हैं अंजू?"

"शहर गये हैं...!" मैने जवाब देते हुए उनकी पॅंट में 'साँप' ढूँढने की कोशिश की.. पर हुल्के उभार के अलावा मुझे कुच्छ नज़र नही आया...

"अच्च्छा... तू आज स्कूल क्यूँ नही गयी?" बाहर चारपाई पर वो मेरे साथ बैठ गया और मम्मी को घूर्ने लगा... मम्मी सामने खड़ी थी....

"बस ऐसे ही.. मेरे पेट में दर्द था..." मैने वही झूठ बोला जो सुबह मम्मी को बोला था...

सुन्दर ने मेरी तरफ झुक कर एक हाथ से मेरा चेहरा थामा और मेरे होंटो के पास गालों को चूम लिया.. मुझे अपने बदन में गुदगुदी सी महसूस हुई...

"ये ले....और बाहर खेल ले....!" सुन्दर ने मेरे हाथ में 5 रुपए का सिक्का रख दिया...

उस वक़्त 5 रुपए मेरे लिए बहुत थे.. पर मैं बेवकूफ़ नही थी.. मुझे पता था तो मुझे घर से भगाने के लिए ऐसा बोल रहा है," नही.. मेरा मन नही है.. मैने पैसे अपनी मुट्ठी में दबाए और मम्मी का हाथ पकड़ कर खड़ी हो गयी...

"जा ना छ्होटी... कभी तो मेरा पिच्छा छ्चोड़ दिया कर!" मम्मी ने हुल्के से गुस्से में कहा....

मैं सिर उपर उठा उनकी आँखों में देखा और हाथ और भी कसकर पकड़ लिया," नही मम्मी.. मुझे नही खेलना....!"

"तुम आज खेत में नही गयी चाची... क्या बात है?" सुन्दर की आवाज़ में विनम्रता थी.. पर उसके चेहरे से धमकी सी झलक रही थी...

"ये जाने दे तब जाउ ना.. अब इसको लेकर खेत कैसे आती..!" मम्मी ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा....

"आज खाली नही जाउन्गा चाची.. चाहे कुच्छ हो जाए.. बाद में मुझे ये मत कहना कि बताया नही.." सुन्दर ने गुर्रते हुए कहा और अंदर कमरे में जाकर बैठ गया....

"अब मैं क्या कर सकती हूँ.. तुम खुद ही देख लो!" मम्मी ने विवश होकर अंदर जाकर कहा.. उनकी उंगली मजबूती से पकड़े मैं उनके साथ साथ जाकर दरवाजे के पिछे खड़ी हो गयी... मम्मी दरवाजे के सामने अंदर की और चेहरा किए खड़ी थी....

अचानक पिछे से कोई आया और मम्मी को अपनी बाहों में भरकर झटके से उठाया और बेड पर लेजाकार पटक दिया.. मेरी तो कुच्छ समझ में ही नही आया..

मम्मी ने चिल्लाने की कोशिश की तो वा मम्मी के उपर सवार हो गया और उनका मुँह दबा लिया," तू तो बड़ी कमिनि निकली भाभी.. पता है कितनी देर इंतजार करके आयें हैं खेत में..." फिर सुन्दर की और देखकर बोला,"क्या यार? अभी तक नंगा नही किया इस रंडी को.."

उसके चेहरा सुन्दर की और घूमने पर मैने उन्हे पहचाना.. वो अनिल चाचा थे... हमारे घर के पास ही उनका घर था.. पेशे से डॉक्टर...मम्मी की ही उमर के होंगे... मम्मी को मुश्किल में देख मैं भागकर बिस्तेर पर चढ़ि और चाचा को धक्का देकर उनको मम्मी के उपर से हटाने की कोशिश करने लगी,"छ्चोड़ दो मेरी मम्मी को!" मैं रोने लगी...

अचानक मुझे देख कर वो सकपका गया और मम्मी के उपर से उतर गया," तुम.. तुम यहीं हो छ्होटी?"

मम्मी शर्मिंदा सी होकर बैठ गयी," ये सब क्या है? जाओ यहाँ से.. और सुन्दर की और घूरने लगी... सुन्दर खिसिया कर हँसने लगा...

"अबे पहले देख तो लेता...!" सुन्दर ने अनिल चाचा से कहा....

"बेटी.. तेरी मम्मी का इलाज करना है... जा बाहर जाकर खेल ले..!" चाचा ने मुझे पुच्कार्ते हुए कहा... पर मैं वहाँ से हिली नही...

"जाओ यहाँ से.. वरना मैं चिल्ला दूँगी!" मम्मी विरोध पर उतर आई थी... शायद मुझे देख कर...

"छ्चोड़ ना तू .. ये तो बच्ची है.. क्या समझेगी... और फिर ये तेरी प्राब्लम है..
हमारी नही.. इसको भेजना है तो भेज दे.. वरना हम इसके आगे ही शुरू हो जाएँगे..." सुन्दर ने कहा और सरक कर मम्मी के पास बैठ गया.... मम्मी अब दोनो के बीच बैठी थी...



"तू जा ना बेटी.. मुझे तेरे चाचा से इलाज करवाना है.. मेरे पेट में दर्द रहता है..." मम्मी ने हालात की गंभीरता को समझाते हुए मुझसे कहा...

मैने ना मैं सिर हिला दिया और वहीं खड़ी रही....

वो इंतजार करने के मूड में नही लग रहे थे.. चाचा मम्मी के पिछे जा बैठे और उनके दोनो तरफ से पैर पसार कर मम्मी की चूचियों को दबोच लिया.. मम्मी सिसक उठी.. वो विरोध कर रही थी पर उंनपर कोई असर नही हुआ...

"नीचे से दरवाजा बंद है ना?" सुन्दर ने चाचा से पूचछा और मम्मी की टाँगों के बीच बैठ गया...

"सब कुच्छ बंद है यार.. आजा.. अब इसकी खोल दें.." चाचा ने मम्मी का कमीज़ खींच कर उनकी ब्रा से उपर कर दिया....

"एक मिनिट छ्चोड़ो भी... " मम्मी ने झल्लाकर कहा तो वो ठिठक गये," अच्च्छा छ्होटी.. रह ले यहीं.. पर किसी को बोलेगी तो नही ना.. देख ले... मैं मर जाउन्गि!"
"नही मम्मी.. मैं किसी को कुच्छ नही बोलूँगी... आप मरना मत.. रात वाली बात भी नही बताउन्गि किसी को..." मैने भोलेपन से कहा तो तीनो अवाक से मुझे देखते रह गये...

"ठीक है.. आराम से कोने में बैठ जा!" सुंदर ने कहा और मम्मी की सलवार का नाडा खींचने लगा....

कुच्छ ही देर बाद उन्होने मम्मी को मेरे सामने ही पूरी तरह नंगी कर दिया..

मैं चुपचाप सारा तमाशा देखती जा रही थी.. मम्मी नंगी होकर मुझे और भी सुन्दर लग रही थी.. उनकी चिकनी चिकनी लंबी मांसल जांघें.. उनकी छ्होटे छ्होटे काले बालों में छिपि योनि.. उनका कसा हुआ पेट और सीने पर झूल रही मोटी मोटी चूचियाँ सब कुच्छ बड़ा प्यारा था...

सुन्दर मम्मी की जांघों के बीच झुक गया और उनकी जांघों को उपर हवा में उठा दिया.. फिर एक बार मेरी तरफ मुड़कर मुस्कुराया और पिच्छली रात की तरह मम्मी की योनि को लपर लपर चाटने लगा....

मम्मी बुरी तरह सीसीया उठी और अपने नितंबों को उठा उठा कर पटाकने लगी.. चाचा मम्मी की दोनो चूचियों को मसल रहा था और मम्मी के निचले होन्ट को मुँह में लेकर चूस रहा था...

करीब 4-5 मिनिट तक ऐसे ही चलता रहा... मैं समझने की कोशिश कर ही रही थी कि आख़िर ये इलाज कौनसा है.. तभी अचानक चाचा ने मम्मी के होंटो को छ्चोड़कर बोला," पहले तू लेगा या मैं ले लूँ..?"

सुन्दर ने जैसे ही चेहरा उपर उठाया, मुझे मम्मी की योनि दिखाई दी.. सुन्दर के थूक से वो अंदर तक सनी पड़ी थी.. और योनि के बीच की पत्तियाँ अलग अलग होकर फांकों से चिपकी हुई थी.. मुझे पता नही था कि ऐसा क्यूँ हो रहा है.. पर मेरी जांघों के बीच भी खलबली सी मची हुई थी...

"मैं ही कर लेता हूँ यार! पर थोड़ी देर और रुक जा.. चाची की चूत बहुत मीठी है..." सुन्दर ने कहा और अपनी पॅंट निकाल दी.. इसी पल का तो मैं इंतजार कर रही थी.. सुंदर का कच्च्छा सीधा उपर उठा हुआ था और मुझे पता था कि क्यूँ?
सुंदर वापस झुक गया और मम्मी की योनि को फिर से चाटने लगा... उसका भारी भरकम लिंग अपने आप ही उसके कच्च्चे से बाहर निकल आया और मेरी आँखों के सामने लटका हुआ रह रह कर झटके मार रहा था...

चाचा ने मेरी और देखा तो मैने शर्मकार अपनी नज़रें झुका ली....

चाचा ने भी खड़ा होकर अपनी पॅंट निकाल दी.. पर उनका उभर उतना नही था जितना सुन्दर का...चाचा थोड़ी आगे होकर मम्मी पर झुके और उनकी गोरी गोरी चूची के भूरे रंग के निप्पल को मुँह में दबा कर उनका दूध पीने लगे...मुझे तब पहली बार पता लगा था कि बड़े लोगों को भी 'दूध की ज़रूरत होती है...

मम्मी अपनी दूसरी चूची को खुद ही अपने हाथ से मसल रही थी.. अचानक मेरा ध्यान उनके दूसरे हाथ की और गया.. उन्होने हाथ पिछे लेजकर चाचा के कच्च्चे से उनका लिंग निकाल रखा था और उसको सहला रही थी... चाचा का लिंग सुन्दर जैसा नही था, पर फिर भी पापा के लिंग से काफ़ी बड़ा था और सीधा भी खड़ा था... मम्मी ने अचानक उनका लिंग पिछे से पकड़ा और उसको अपनी और खींचने लगी......

"तेरी यही अदा तो मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है... ये ले!" चाचा बोले और घुटनो के बल आगे सरक कर अपना लिंग मम्मी के होंटो पर टीका दिया... मम्मी ने तुरंत अपने होन्ट खोले और लिंग को अपने होंटो में दबा लिया...

चाचा ने अपने हाथों से पकड़ कर मम्मी की टाँगों को अपनी और खींच लिया.. इस'से मम्मी के नितंब और उपर उठ गये और मुझे सुन्दर की टाँगों के बीच से मम्मी की 'गुदा' दिखने लगी... चाचा ने अपने हाथों को मम्मी के घुटनो के साथ साथ नीचे लेजाकार बिस्तेर पर जमा दिया... मम्मी अपने सिर को उपर नीचे करते हुए चाचा के लिंग को अपने मुँह में अंदर बाहर करते हुए चूसने में लगी थी....

अचानक मम्मी उच्छल पड़ी और चाचा का लिंग मुँह से निकालते हुए बोली,"नही सुन्दर.. पिछे कुच्छ मत करो..!"

मेरी समझ में तब आया जब सुन्दर ने कुच्छ बोलने के लिए उनकी योनि से अपना मुँह हटाया... मैने ध्यान से देखा.. सुन्दर की आधी उंगली मम्मी की गुदा में फँसी हुई थी.. और मम्मी अपने नितंबो को सिकोड़ने की कोशिश कर रही थी.....

"इसके बिना क्या मज़ा है चाची.. उंगली ही तो डाली है.. अपना लंड फँसवँगा तो क्या कहोगी? हे हे हे" सुंदर ने कहा और उंगली निकाल कर अलग हट कर खड़ा हो गया...
मम्मी की योनि फूल सी गयी थी... उनकी योनि का छेद रह रह कर खुल रहा था और बंद हो रहा था.. अचानक सुन्दर ने अपना लिंग हाथ में पकड़ कर मेरी और देखा... वह इस तरह मुस्कुराया मानो मुझे डरा रहा हो... मैने एक दम अपनी नज़रें झुका ली....

सुन्दर वापस मम्मी की जांघों के बीच बैठ गया.. मुझे उसका लिंग मम्मी की योनि पर टीका हुआ दिख रहा था.. मम्मी की योनि लिंग के पिछे पूरी छिप गयी थी...
"ले संभाल..!" सुंदर ने जैसे ही कहा.. मम्मी छॅट्पाटा उठी.. पर उनके मुँह से कोई आवाज़ नही निकली.. चाचा का लिंग मम्मी के मुँह में पूरा फँसा हुआ था.. और सुन्दर का लिंग मम्मी की योनि में...

सुन्दर ने अपना लिंग बाहर निकाला और वापस धकेल दिया.. मम्मी एक बार फिर कसमसाई... ऐसा मुझे चाचा के हाथों से उनको अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते देख कर लगा...

फिर तो घापघाप धक्के लगने लगे.. कुच्छ देर बाद मम्मी के हाथों की च्चटपटाहट बंद हो कर उनके नितंबों में आ गयी... ऐसा लग रहा था जैसे वो बहुत खुश हैं.. सुन्दर जैसे ही नीचे की और धक्का लगाता मम्मी नितंबों को उपर उठा लेती... अब तो ऐसा लग रहा था जैसे सुन्दर कम धक्के लगा रहा है और मम्मी ज़्यादा...

ऐसे ही धक्के लगते लगते करीब 15 मिनिट हो गये थे.. मुझे चिंता होने लगी कि आख़िर कोई अब कुच्छ बोल क्यूँ नही रहा है.. अचानक सुंदर उठा और तेज़ी से आगे की और गया," हट यहाँ से.. पिछे चला जा..."

मैने मम्मी की योनि को देखा.. उसका च्छेद लगभग 3 गुना खुल गया था.. और कोई रस जैसी चीज़ उनकी योनि से बह रही थी...

सुन्दर के आगे जाते ही चाचा पिछे आ गये," घोड़ी बन जा!"

मम्मी उठी और पलट कर घुटनो के बल बैठ कर अपने नितंबों को उपर उठा लिया... सुन्दर ने मम्मी के मुँह में उंगली डाल रखी थी और मेरे सामने ही अपने लंड को हिला रहा था.... सुन्दर की जगह अब चाचा ने ले ली थी.. घुटनो के बल पिछे सीधे खड़े होकर उन्होने मम्मी की योनि में अपनी लिंग थूस दिया... और मम्मी की कमर को पकड़ कर आगे पिछे होने लगे....

अचानक सुन्दर ने मम्मी के बालों को खींच कर उनका चेहरा उपर उठवा दिया... ,"मुँह खो ले चाची.. थोडा अमृत पी ले..."

मम्मी ने अपना मुँह पूरा खोल दिया और सुन्दर ने अपना लिंग उनके होंटो पर रख कर थोड़ा सा अंदर कर दिया... इसके साथ ही सुन्दर की आँखें बंद हो गयी और वो सिसकता हुआ मम्मी को शायद वही रस पिलाने लगा जो उसने पिच्छली रात पिलाया था....
मम्मी भी आँखें बंद किए उसका रस पीती जा रही थी.. पिछे से मम्मी को चाचा के धक्के लग रहे थे...

"ले.. अब मुँह में लेकर इसको सॉफ कर दे..." सुंदर ने कहा और मम्मी ने उसका लिंग थोड़ा सा और मुँह में ले लिया.....रस निकल जाने के बाद सुंदर का लिंग शायद थोडा पतला हो गया होगा...

अचानक चाचा हटे और सीधे खड़े हो गये... वो भी शायद मम्मी के मुँह की और जाना चाहते थे.. पर जाने क्या हुआ.. अचानक रुक कर उन्होने अपना लिंग ज़ोर से खींच लिया और मम्मी के नितंबो पर ही रस की धार छ्चोड़ने लगे...

मुझे नही पता था कि मुझे क्या हो गया है.. पर मैं पूरी तरह से लाल हो चुकी थी.. मेरी कच्च्ची भी 2 तीन बार गीली हुई.. ऐसा लगता था....

सुन्दर बिस्तेर से उतर कर अपनी पॅंट पहन'ने लगा और मेरी और देख कर मुस्कुराया," तू भी बहुत गरम माल बनेगी एक दिन.. साली इतने चस्के से सब कुच्छ देख रही थी... थोड़ी और बड़ी होज़ा जल्दी से.. फिर तेरी मम्मी की तरह तुझे भी मज़े दूँगा..."
मैने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया....

चाचा के बिस्तेर से नीचे उतरते ही मम्मी निढाल होकर बिस्तेर पर गिर पड़ी.. उन्होने बिस्तेर की चादर खींच कर अपने बदन और चेहरे को ढक लिया...
वो दोनो कपड़े पहन वहाँ से निकल गये....

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वो दिन था और आज का दिन.. एक एक पल ज्यों का त्यों याद करते ही आँखों के सामने दौड़ जाता है... वो भी जो मैने उनके जाने के बाद मम्मी के पास बैठ कर पूचछा था...," ये कैसा इलाज था मम्मी?"

"जब बड़ी होगी तो पता चल जाएगा.. बड़ी होने पर कयि बार पेट में अजीब सी गुदगुदी होती है.. इलाज ना करवायें तो लड़की मर भी सकती है.. पर शादी के बाद की बात है ये.. तू भूल जा सब कुच्छ.. मेरी बेटी है ना?"

"हां मम्मी!" मैं भावुक होकर उनके सीने से चिपक गयी...

"तो बताएगी नही ना किसी को भी...?" मम्मी ने प्यार से मुझे अपनी बाहों में भर लिया...

"नही मम्मी... तुम्हारी कसम! पर इलाज तो चाचा करते हैं ना... सुन्दर क्या कर रहा था...?" मैने उत्सुकता से पूचछा....

"वो अपना इलाज कर रहा था बेटी... ये प्राब्लम तो सबको होती है..." मम्मी ने मुझे बरगालाया....

"पर आप तो कह रहे थे कि शादी के बाद होता है ये इलाज.. उसकी तो शादी भी नही हुई..?" मैने पूचछा था...

"अब बस भी कर.. बहुत स्यनी हो गयी है तू... मुझे नही पता..." मम्मी ने बिदक कर कहा और उठ कर कपड़े पहन'ने लगी...

" पर उन्होने आपके साथ अपना इलाज क्यूँ किया? अपने घर पर क्यूँ नही.. उनकी मम्मी हैं, बेहन हैं.. कितनी ही लड़कियाँ तो हैं उनके घर में.. !" मुझे गुस्सा आ रहा था.. 5 रुपए में अपना इलाज करके ले गया कमीना!

"तुझे नही पता बेटी... हमें उनका बहुत सा कर्ज़ा चुकाना है.. अगर मैं उसको इलाज करने नही देती तो वो मुझे उठा ले जाता हमेशा के लिए... पैसों के बदले में... फिर कौन बनती तेरी मम्मी..?" मम्मी ने कपड़े पहन लिए थे....

मैं नादान एक बार फिर भावुक होकर उनसे लिपट गयी.. मैने मुट्ठी खोल कर अपने हाथ में रखे 5 रुपए के सिक्के को नफ़रत से देखा और उसको बाहर छत पर फैंक दिया," मुझे नही चाहिए उसके रुपए.. मुझे तो बस मम्मी चाचिए..."
उसके बाद जब भी मैं उसको देखती.. मुझे यही याद आता कि हमें उनका कर्ज़ उतारना है.. नही तो वो एक दिन मम्मी को उठा कर ले जाएगा... और मेरी आँखें उसके लिए घृणा से भर उठती.. हर बार उसके लिए मेरी नफ़रत बढ़ती ही चली गयी थी...

सालों बाद, जब मुझे ये अहसास हो गया था कि मम्मी झूठ बोल रही थी.. तब भी; मेरी उसके लिए नफ़रत बरकरार रही जो आज तक ज्यों की त्यों है.... यही वजह थी कि उस दिन अपने बदन में सुलग रही यौवन की आग के बावजूद उसको खुद तक आने नही दिया था....

खैर.. मैं उस दिन शाम को फिर चश्मू के आने का इंतजार करने लगी....

क्रमशः ..................

Sunder Mummy ka deewana yun hi nahi tha.. na hi usne mummy ki jhoothi taareef ki thi... Aaj bhi mummy jab chalti hain toh dekhne wale dekhte rah jate hain.. Chalte huye mummy ke nitamb aise thirakte hain mano nitamb nahi koyi tabla ho jo hulki si thap se hi poora kaampne lagta hai... katore ke aakar ke dono nitambon ka uthan aur unke beech ki daraar; sab katilana the...

Mummy ke kase huye shareer ki doodhiya rangat aur uss par unki kaatil aadayein; koun na mar mite!

Khair, Mummy ke kohniyon aur ghutno ke bal jhukte hi Sunder unke pichhe baith gaya... Agle hi pal unhone mummy ke nitambon par thapki maar kar Salwar aur panty ko neeche kheench diya. Iske sath hi sunder ke munh se laar tapak gayi," Kya mast gore kase huye chutad hain chachi..!" Kahte huye usne apne dono hath mummy ke nitambon par chipka kar unhe sahlana shuru kar diya...

Mummy mujhse 90 degree ke angel par jhuki huyi thi, isiliye mujhe unke oonche uthe huye ek nitamb ke alawa kuchh dikhayi nahi de raha tha.. par main taktaki lagaye tamasha dekhti rahi.....

"Haye chachi! teri choot kitni rasili hai abhi tak... isko toh bade pyar se thokna padega... pahle thodi choos loon..." Usne kaha aur mummy ke nitambon ke beech apna chehra ghusa diya.... Mummy sisakte huye apne Nitambon ko idhar udhar hatane ki koshish karne lagi...

"aaayyiishhhh...Ab aur mat tadpao Sunder..aaaaahhh.... main taiyaar hoon.. thok do andar!"

"Aise kaise thok doon andar chachi...? abhi toh poori raat padi hai...." Sunder ne chehra uthakar kaha aur fir se jeebh nikal kar chehra mummy ki jaanghon mein ghusa diya...

"Samjha karo sunder... aaaahhh...Farsh mujhe chubh raha hai... thodi jaldi karo..!" Mummy ne apna chehra bilkul farsh se sata liya.. unke 'doodh' farsh par tik gaye....," achchha.. ek minute... mujhe khadi hone do...!"

Mummy ke kahte hi sunder ne achchhe bachche ki tarah unhe chhod diya... aur mummy ne khada hokar meri taraf munh kar liya...
Jaise hi Sunder ne unka kameej upar uthaya.. mummy ki poori jaanghein aur unke beech chhote chhote gahre kaale baalon wali moti moti yoni ki faankein mere saamne aa gayi... ek baar toh khud mein hi sharma gayi... garmiyon mein jab main kayi baar chhotu ke saamne nangi hi bathroom se nikal aati toh mummy mujhe 'shame shame' kah kar chidati thi... fir aaj kyun apni shame shame ko Sunder ke saamne paros diya; uss waqt meri samajh se bahar tha....

Sunder ghutne take kar mummy ke saamne meri taraf peeth karke baith gaya aur mummy ki yoni meri najron se chhip gayi... Agle hi pal mummy aankhein band karke sisakne lagi... unke munh se ajeeb si aawajein aa rahi thi...

Main hairat se sab kuchh dekh rahi thi...

"Bus-bus... mujhse khada nahi raha ja raha sunder... deewar ka sahara lene do..", Mummy ne kaha aur side mein hokar deewar se peeth sata kar khadi ho gayi... Unhone apne ek pair se salwar bilkul nikal di aur Sunder ke unke saamne baithte hi apni nangi taang uthakar Sunder ke kandhe par rakh di..

Ab sunder ka chehra aur mummy ki yoni mujhe aamne saamne dikhayi de rahe the.. haye Ram! Sunder ne apni jeebh bahar nikali aur mummy ki yoni mein ghused di.. Mummy pahle ki tarah hi sisakne lagi... Mummy ne Sunder ka sir kaskar pakad rakha tha aur Sunder apni jeebh ko kabhi andar bahar aur kabhi upar neeche kar raha tha...

Anjane mein hi mere hath apni salwar mein chale gaye.. maine dekha; meri yoni bhi chipchipi si ho rakhi hai.. maine usko saaf karne ki koshish ki toh mujhe bahut maja aaya....

Achanak mummy par mano pahad sa toot pada... jaldi mein Sunder ke kandhe se pair hatane ke chakkar mein mummy ladkhada kar gir padi... Upar se papa zor zor se badbadate huye aa rahe the...,"Sali, kamini, kutiya! kahan mar gayi....?"

Sunder bhag kar hamari khat ke neeche ghus gaya... par mummy jab tak sambhal kar khadi hoti, papa neeche aa chuke the.. mummy apni salwar bhi pahan nahi payi thi...

Papa neend mein the aur shayad nashe mein bhi.. kuchh pal mummy ko taktaki lagaye dekhte rahe fir bole," Behanchod kutiya.. yahan nangi hokar kya kar rahi hai..? kisi yaar ko bulaya tha kya?" aur paas aakar ek jor ka thappad mummy ko jad diya....

main saham gayi thi...

Mummy thartharate huye boli...,"nnahi... wo ....meri salwar mein kuchh ghus gaya tha... pata nahi kya tha..."

"hamesha 'kuchh' teri salwar mein hi kyun ghusta hai kutiya... teri choot koyi shahad ka chhatta hai kya?..." papa ne gurrate huye mummy ka gala pakad liya...

Mummy gidgidate huye papa ke kadmon mein aa giri,"pls.. aisa mat kahiye.. mera toh sab kuchh aap ka hi hai....!"

"Hummm... ye bhi toh tera hi hai.. le sambhal isko.. khada kar..." Main achraj se papa ka ling dekhti rah gayi.. unhone apni chain kholkar apna ling bahar nikal liya aur mummy ke munh mein thoosne lage... main Sunder ka ling dekhne ke baad unka ling dekh kar hairan thi.. unka ling toh chhota sa tha bilkul.. aur mare huye choohe ki tarah latak raha tha....

"Upar chaliye aap.. main kar doongi khada... yahan Chhoti uth jayegi... jaise kahoge waise kar loongi...." Kahte huye mummy uthi aur papa ke ling ko sahlate huye unhe upar le gayi...

unke upar jate hi Sunder hadbadahat mein meri charpayi ke neeche se nikla aur darwaja khol kar bhag gaya...

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Teesre din main jaanboojh kar school nahi gayi.. didi aur chhotu school ja chuke the... aur papa shahar....

"Ab padi rahna yahan akeli... main toh chali khet mein.." Mummy sajdhaj kar taiyaar ho gayi thi.. khet jaane ke liye...!

"Nahi mummy.. main bhi chaloongi aapke sath.....!" Maine jid karte huye kaha....

"pagal hai kya? tujhe pata nahi.. wahan kitne mote mote saanp aa jate hain... kha jayenge tujhe..." Mummy ne mujhe darate huye kaha....

Mere jehan mein toh Sunder ka 'saanp' hi chakkar kaat raha tha.. wahi dobara dekhne hi toh jana chahti thi khet mein...," par aapko kha gaye toh mummy...?" Maine kaha..

"Main toh badi hoon beti.. saanp ko kabu mein kar loongi... maar bhi doongi... tu yahin rah aur so ja!" Mummy ne jawab diya....

"Toh aap maar lena saanp ko... main toh door se hi dekhti rahoongi.... kuchh bolungi nahi...." Maine jid karte huye kaha...

"Chup kar.. jyada bakwas mat kar... yahin rah.. main ja rahi hoon...!" Mummy chal di...

Main roti huyi neeche tak aa gayi.. meri aankhon se mote mote aansoo tapak rahe the...Sunder ke 'Saanp' ko dekhne ke liye bechain hi itni thi main.. Aakhirkaar meri jid ke aage mummy ko jhukna pada... par wo mujhe khet nahi le gayi.. khud bhi ghar par hi rah gayi wo!

Mummy ko kapde badal kar munh chadhaye ghar mein baithe 2 ghante ho gaye the.. Main uthi aur unki god mein jakar baith gayi,"Aap naraj ho mummy?"

"haan... aur nahi toh kya? Khet mein itna kaam hai... tere papa aate hi meri pitayi karenge...!" Mummy ne kaha....

"papa aapko kyun maarte hain mummy.. ? mujhe papa bahut gande lagte hain...

"aap bhi toh badi ho.. aap unhe kyun nahi maarti?" Maine bholepan se poochha...

Mummy kuchh der chup hi rahi aur fir ek lambi saans li," chhod in baaton ko.. tu aaj fir meri pitayi karwana chahti hai kya?"

"Nahi mummy..!" Maine mayoos hokar kaha...

"toh fir mujhe jane kyun nahi deti khet main?" Mummy ne naraj hokar apna munh fulate huye kaha....

Pata nahi main kya jawab deti uss waqt.. par iss'se pahle main bolti.. neeche se sunder ki aawaj aa gayi,"Chacha.... O chacha!"

Mummy achanak khadi ho gayi aur neeche jhanka.. Sunder upar hi aa raha tha..

"upar aate hi usne meri aur dekhte huye poochha," chacha kahan hain Anju?"

"Shahar gaye hain...!" Maine jawab dete huye unki pant mein 'saanp' dhoondhne ki koshish ki.. par hulke ubhar ke alawa mujhe kuchh najar nahi aaya...

"Achchha... tu aaj school kyun nahi gayi?" bahar charpayi par wo mere sath baith gaya aur mummy ko ghoorne laga... Mummy saamne khadi thi....

"bus aise hi.. mere pate mein dard tha..." Maine wahi jhooth bola jo subah mummy ko bola tha...

Sunder ne meri taraf jhuk kar ek hath se mera chehra thama aur mere honton ke paas gaalon ko choom liya.. mujhe apne badan mein gudgudi si mahsoos huyi...

"Ye le....aur bahar khel le....!" Sunder ne mere hath mein 5 rupaiye ka sikka rakh diya...

Uss waqt 5 rupaiye mere liye bahut the.. par main bewkoof nahi thi.. Mujhe pata tha toh mujhe ghar se bhagane ke liye aisa bol raha hai," Nahi.. mera man nahi hai.. maine paise apni mutthi mein dabaye aur mummy ka hath pakad kar khadi ho gayi...

"Ja na chhoti... kabhi toh mera pichha chhod diya kar!" Mummy ne hulke se gusse mein kaha....

Main sir upar utha unki aankhon mein dekha aur hath aur bhi kaskar pakad liya," Nahi mummy.. mujhe nahi khelna....!"

"Tum aaj khet mein nahi gayi chachi... kya baat hai?" Sunder ki aawaj mein vinamrata thi.. par uske chehre se dhamki si jhalak rahi thi...

"Ye jane de tab jaaun na.. ab isko lekar khet kaise aati..!" Mummy ne bura sa munh banakar kaha....

"Aaj khali nahi jaaunga chachi.. chahe kuchh ho jaye.. baad mein mujhe ye mat kahna ki bataya nahi.." Sunder ne gurrate huye kaha aur andar kamre mein jakar baith gaya....

"Ab main kya kar sakti hoon.. tum khud hi dekh lo!" Mummy ne vivash hokar andar jakar kaha.. unki ungali majbooti se pakde main unke sath sath jakar darwaje ke pichhe khadi ho gayi... Mummy darwaje ke saamne ander ki aur chehra kiye khadi thi....

Achanak pichhe se koyi aaya aur Mummy ko apni baahon mein bharkar jhatke se uthaya aur bed par lejakar patak diya.. meri toh kuchh samajh mein hi nahi aaya..

Mummy ne chillane ki koshish ki toh wah mummy ke upar sawaar ho gaya aur unka munh daba liya," tu toh badi kamini nikali bhabhi.. pata hai kitni der intjaar karke aayein hain khet mein..." Fir Sunder ki aur dekhkar bola,"Kya yaar? abhi tak nanga nahi kiya iss randi ko.."

Uske chehra Sunder ki aur ghumane par maine unhe pahchana.. wo Anil chacha the... hamare ghar ke paas hi unka ghar tha.. peshe se doctor...Mummy ki hi umar ke honge... Mummy ko mushkil mein dekh main bhagkar bister par chadhi aur chacha ko dhakka dekar unko mummy ke upar se hatane ki koshish karne lagi,"Chhod do meri mummy ko!" Main rone lagi...

Achanak mujhe dekh kar wo sakpaka gaya aur mummy ke upar se utar gaya," tum.. tum yahin ho chhoti?"

Mummy sharminda si hokar baith gayi," ye sab kya hai? jao yahan se.. aur Sunder ki aur ghoorne lagi... Sunder khisiya kar hansne laga...

"Abey pahle dekh toh leta...!" Sunder ne Anil chacha se kaha....

"Beti.. teri mummy ka ilaaj karna hai... ja bahar jakar khel le..!" Chacha ne mujhe puchkaarte huye kaha... par main wahan se hili nahi...

"Jao yahan se.. warna main chilla doongi!" Mummy virodh par utar aayi thi... shayad mujhe dekh kar...

"Chhod na tu .. ye toh bachchi hai.. kya samjhegi... aur fir ye teri problem hai..
hamari nahi.. isko bhejna hai toh bhej de.. warna hum iske aage hi shuru ho jayenge..." Sunder ne kaha aur sarak kar mummy ke paas baith gaya.... Mummy ab dono ke beech baithi thi...







"Tu ja na beti.. mujhe tere chacha se ilaaj karwana hai.. mere pate mein dard rahta hai..." Mummy ne halaat ki gambheerta ko samajhte huye mujhse kaha...

Maine na main sir hila diya aur wahin khadi rahi....

Wo intjaar karne ke mood mein nahi lag rahe the.. chacha mummy ke pichhe ja baithe aur unke dono taraf se pair pasaar kar mummy ki choochiyon ko daboch liya.. mummy sisak uthi.. wo virodh kar rahi thi par unnpar koyi asar nahi hua...

"Neeche se darwaja band hai na?" Sunder ne chacha se poochha aur mummy ki taangon ke beech baith gaya...

"Sab kuchh band hai yaar.. aaja.. ab iski khol dein.." chacha ne mummy ka kameej kheench kar unki bra se upar kar diya....

"ek minute chhodo bhi... " Mummy ne jhallakar kaha toh wo thithak gaye," achchha chhoti.. rah le yahin.. par kisi ko bolegi toh nahi na.. dekh le... main mar jaaungi!"
"Nahi mummy.. main kisi ko kuchh nahi boloongi... aap marna mat.. raat wali baat bhi nahi bataaungi kisi ko..." Maine bholepan se kaha toh teeno awaak se mujhe dekhte rah gaye...

"Theek hai.. aaram se kone mein baith ja!" Sunder ne kaha aur mummy ki salwaar ka naada kheenchne laga....

Kuchh hi der baad unhone mummy ko mere saamne hi poori tarah nangi kar diya..

Main chupchap sara tamasha dekhti ja rahi thi.. Mummy nangi hokar mujhe aur bhi sunder lag rahi thi.. unki chikni chikni lambi maansal jaanghein.. unki chhote chhote kale baalon mein chhipi yoni.. unka kasa hua pate aur seene par jhool rahi moti moti choochiyan sab kuchh bada pyara tha...

Sunder mummy ki jaanghon ke beech jhuk gaya aur unki jaanghon ko upar hawa mein utha diya.. fir ek baar meri taraf mudkar muskuraya aur pichhli raat ki tarah mummy ki yoni ko lapar lapar chatne laga....

Mummy buri tarah sisiya uthi aur apne nitambon ko utha utha kar patakne lagi.. chacha mummy ki dono choochiyon ko masal raha tha aur mummy ke nichle hont ko munh mein lekar choos raha tha...

kareeb 4-5 minute tak aise hi chalta raha... Main samajhne ki koshish kar hi rahi thi ki aakhir ye ilaaj kounsa hai.. tabhi achanak chacha ne mummy ke honton ko chhodkar bola," pahle tu lega ya main le loon..?"

Sunder ne jaise hi chehra upar uthaya, mujhe mummy ki yoni dikhayi di.. Sunder ke thook se wo andar tak sani padi thi.. aur yoni ke beech ki pattiyan alag alag hokar faankon se chipki huyi thi.. mujhe pata nahi tha ki aisa kyun ho raha hai.. par meri jaanghon ke beech bhi khalbali si machi huyi thi...

"Main hi kar leta hoon yaar! par thodi der aur ruk ja.. chachi ki choot bahut meethi hai..." Sunder ne kaha aur apni pant nikal di.. isi pal ka toh main intjaar kar rahi thi.. Sundar ka kachchha seedha upar utha hua tha aur mujhe pata tha ki kyun?
Sundar wapas jhuk gaya aur mummy ki yoni ko fir se chatne laga... uska bhari bharkam ling apne aap hi uske kachchhe se bahar nikal aaya aur meri aankhon ke saamne latka hua rah rah kar jhatke maar raha tha...

Chacha ne meri aur dekha toh maine sharmakar apni najrein jhuka li....

chacha ne bhi khada hokar apni pant nikal di.. par unka ubhar utna nahi tha jitna sunder ka...Chacha thodi aage hokar mummy par jhuke aur unki gori gori choochi ke bhoore rang ke nippal ko munh mein daba kar unka doodh pine lage...mujhe tab pahli baar pata laga tha ki bade logon ko bhi 'doodh ki jarurat hoti hai...

Mummy apni dusri choochi ko khud hi apne hath se masal rahi thi.. achanak mera dhyan unke dusre hath ki aur gaya.. unhone hath pichhe lejakar chacha ke kachchhe se unka ling nikal rakha tha aur usko sahla rahi thi... chacha ka ling sunder jaisa nahi tha, par fir bhi papa ke ling se kafi bada tha aur seedha bhi khada tha... Mummy ne achanak unka ling pichhe se pakda aur usko apni aur kheenchne lagi......

"Teri yahi ada toh mujhe sabse jyada pasand hai... ye le!" chacha bole aur ghutno ke bal aage sarak kar apna ling mummy ke honton par tika diya... Mummy ne turant apne hont khole aur ling ko apne honton mein daba liya...

Chacha ne apne hathon se pakad kar mummy ki taangon ko apni aur kheench liya.. iss'se mummy ke nitamb aur upar uth gaye aur mujhe Sunder ki taangon ke beech se mummy ki 'guda' dikhne lagi... Chacha ne apne hathon ko mummy ke ghutno ke sath sath neeche lejakar bister par jama diya... Mummy apne sir ko upar neeche karte huye chacha ke ling ko apne munh mein andar bahar karte huye choosne mein lagi thi....

Achanak Mummy uchhal padi aur chacha ka ling munh se nikalte huye boli,"Nahi sunder.. pichhe kuchh mat karo..!"

Meri samajh mein tab aaya jab Sunder ne kuchh bolne ke liye unki yoni se apna munh hataya... maine dhyan se dekha.. Sunder ki aadhi ungli mummy ki guda mein fansi huyi thi.. aur mummy apne nitamon ko sikodne ki koshish kar rahi thi.....

"Iske bina kya maja hai chachi.. ungli hi toh dali hai.. apna lund fansaaunga toh kya kahogi? he he he" Sundar ne kaha aur ungali nikal kar alag hat kar khada ho gaya...
Mummy ki yoni fool si gayi thi... unki yoni ka chhed rah rah kar khul raha tha aur band ho raha tha.. Achanak Sunder ne apna ling hath mein pakad kar meri aur dekha... wah iss tarah muskuraya mano mujhe dara raha ho... maine ek dum apni najrein jhuka li....

Sunder wapas mummy ki jaanghon ke beech baith gaya.. mujhe uska ling mummy ki yoni par tika hua dikh raha tha.. mummy ki yoni ling ke pichhe poori chhip gayi thi...
"Le sambhal..!" Sunder ne jaise hi kaha.. mummy chhatpata uthi.. par unke munh se koyi aawaj nahi nikli.. chacha ka ling mummy ke munh mein poora fansa hua tha.. aur Sunder ka ling mummy ki yoni mein...

Sunder ne apna ling bahar nikala aur wapas dhakel diya.. mummy ek baar fir kasmasayi... aisa mujhe chacha ke hathon se unko apne hath chhudane ki koshish karte dekh kar laga...

Fir toh ghapaghap dhakke lagne lage.. kuchh der baad mummy ke hathon ki chhatpatahat band ho kar unke nitambon mein aa gayi... aisa lag raha tha jaise wo bahut khush hain.. Sunder jaise hi neeche ki aur dhakka lagata mummy nitambon ko upar utha leti... ab toh aisa lag raha tha jaise sunder kam dhakke laga raha hai aur mummy jyada...

Aise hi dhakke lagate lagate kareeb 15 minute ho gaye the.. Mujhe chinta hone lagi ki aakhir koyi ab kuchh bol kyun nahi raha hai.. achanak Sunder utha aur tezi se aage ki aur gaya," hat yahan se.. pichhe chala ja..."

Maine mummy ki yoni ko dekha.. uska chhed lagbhag 3 guna khul gaya tha.. aur koyi ras jaisi cheej unki yoni se bah rahi thi...

Sunder ke aage jate hi Chacha pichhe aa gaye," Ghodi ban ja!"

Mummy uthi aur palat kar ghutno ke bal baith kar apne nitambon ko upar utha liya... Sunder ne mummy ke munh mein ungali daal rakhi thi aur mere saamne hi apne lund ko hila raha tha.... Sunder ki jagah ab chacha ne le li thi.. ghutno ke bal pichhe seedhe khade hokar unhone mummy ki yoni mein apni ling thoos diya... aur mummy ki kamar ko pakad kar aage pichhe hone lage....

Achanak Sunder ne mummy ke baalon ko kheench kar unka chehra upar uthwa diya... ,"munh kho le chachi.. thoda amrit pi le..."

Mummy ne apna munh poora khol diya aur sunder ne apna ling unke honton par rakh kar thoda sa andar kar diya... Iske sath hi sunder ki aankhein band ho gayi aur wo sisakta hua mummy ko shayad wahi ras pilane laga jo usne pichhli raat pilaya tha....
Mummy bhi aankhein band kiye uska ras peeti ja rahi thi.. pichhe se mummy ko chacha ke dhakke lag rahe the...

"Le.. ab munh mein lekar isko saaf kar de..." Sundar ne kaha aur mummy ne uska ling thoda sa aur munh mein le liya.....ras nikal jane ke baad Sundar ka ling shayad thoda patla ho gaya hoga...

Achanak chacha hate aur seedhe khade ho gaye... wo bhi shayad mummy ke munh ki aur jana chahte the.. par jane kya hua.. achanak ruk kar unhone apna ling jor se kheench liya aur mummy ke nitamon par hi ras ki dhar chhodne lage...

Mujhe nahi pata tha ki mujhe kya ho gaya hai.. par main poori tarah se laal ho chuki thi.. meri kachchhi bhi 2 teen baar geeli huyi.. aisa lagta tha....

Sunder bister se utar kar apni pant pahan'ne laga aur meri aur dekh kar muskuraya," Tu bhi bahut garam maal banegi ek din.. sali itne chaske se sab kuchh dekh rahi thi... thodi aur badi hoja jaldi se.. fir teri mummy ki tarah tujhe bhi maje doonga..."
Maine apna munh dusri taraf kar liya....

Chacha ke bister se neeche utarte hi mummy nidhal hokar bister par gir padi.. unhone bister ki chadar kheench kar apne badan aur chehre ko dhak liya...
Wo dono kapde pahan wahan se nikal gaye....

----------------------------------------------------------------------------

Wo din tha aur aaj ka din.. ek ek pal jyon ka tyon yaad karte hi aankhon ke saamne doud jata hai... wo bhi jo maine unke jane ke baad mummy ke paas baith kar poochha tha...," Ye kaisa ilaaj tha mummy?"

"Jab badi hogi toh pata chal jayega.. badi hone par kayi baar pate mein ajeeb si gudgudi hoti hai.. ilaaj na karwaayein toh ladki mar bhi sakti hai.. par shadi ke baad ki baat hai ye.. tu bhool ja sab kuchh.. meri beti hai na?"

"Haan mummy!" main bhawuk hokar unke seene se chipak gayi...

"Toh batayegi nahi na kisi ko bhi...?" Mummy ne pyar se mujhe apni baahon mein bhar liya...

"Nahi mummy... tumhari kasam! par ilaaj toh chacha karte hain na... sunder kya kar raha tha...?" Maine utsukta se poochha....

"Wo apna ilaaj kar raha tha beti... ye problem toh sabko hoti hai..." Mummy ne mujhe bargalaya....

"par aap toh kah rahe the ki shadi ke baad hota hai ye ilaaj.. uski toh shadi bhi nahi huyi..?" maine poochha tha...

"Ab bus bhi kar.. bahut syani ho gayi hai tu... mujhe nahi pata..." Mummy ne bidak kar kaha aur uth kar kapde pahan'ne lagi...

" par unhone aapke sath apna ilaaj kyun kiya? apne ghar par kyun nahi.. unki mummy hain, behan hain.. kitni hi ladkiyan toh hain unke ghar mein.. !" Mujhe gussa aa raha tha.. 5 rupaiye mein apna ilaaj karke le gaya kamina!

"Tujhe nahi pata beti... hamein unka bahut sa karza chukana hai.. agar main usko ilaaj karne nahi deti toh wo mujhe utha le jata hamesha ke liye... paison ke badle mein... fir koun banti teri mummy..?" Mummy ne kapde pahan liye the....

Main nadan ek baar fir bhawuk hokar unse lipat gayi.. maine mutthi khol kar apne hath mein rakhe 5 rupaiye ke sikke ko nafrat se dekha aur usko bahar chhat par faink diya," mujhe nahi chahiye uske rupaiye.. mujhe toh bus mummy chachiye..."
Uske baad jab bhi main usko dekhti.. mujhe yahi yaad aata ki hamein unka karj utaarna hai.. nahi toh wo ek din mummy ko utha kar le jayega... aur meri aankhein uske liye ghrina se bhar uthti.. har baar uske liye meri nafrat badhti hi chali gayi thi...

Saalon baad, jab mujhe ye ahsaas ho gaya tha ki mummy jhooth bol rahi thi.. tab bhi; meri uske liye nafrat barkaraar rahi jo aaj tak jyon ki tyon hai.... yahi wajah thi ki uss din apne badan mein sulag rahi youvan ki aag ke baawjood usko khud tak aane nahi diya tha....

khair.. main uss din sham ko fir chashmu ke aane ka intjaar karne lagi....





आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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