Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--37

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बाली उमर की प्यास पार्ट--37


गतान्क से आगे..................

"क्या हुआ?" मुझे अचानक बज़ुबान होते देख पिंकी ने चाहक कर पूचछा...

"कुच्छ नही.. तूने चलने की तैयारी कर ली...?" मैने बात बदल दी....

"हाँ.. दीदी ने सारा सामान पॅक कर दिया होगा.. क्यूँ?" पिंकी ने जवाब देकर सवाल किया....

"बस ऐसे ही... कल से तो हम हॉस्टिल में रहेंगे.. 'दिल' तो लग जाएगा ना वहाँ?" मैने यूँही पूचछा

"हाँ.. दिल लगने में क्या दिक्कत है... हम दोनो तो साथ रहेंगे ही..." पिंकी के कहते कहते ही उनका घर आ गया था...

मीनू दरवाजे पर ही इंतजार करती मिली...,"मम्मी पापा आ गये..सुनो! मैने पापा को ये बोला है कि तुम दोनो शिखा के घर गये हो.. समझ गये ना?"

"हाँ ठीक है.. ये लो! पाकड़ो अपने पैसे...!" पिंकी ने मुट्ठी में दबाकर रखे नोट मीनू को पकड़ा दिए...

"क्या हुआ? अब भी नही मिला क्या?" मीनू ने पूचछा...

"मिला था.. उसने लिए ही नही...!" पिंकी चटखारा सा लेकर बोली...

"बेशर्म.. तू देती तो वो लेता कैसे नही... भूखी कहीं की..." मीनू ने कहा और पैसे पकड़ लिए...

"मैं चलती हूँ दीदी... अपना सामान रख लूँ... सुबह जल्दी निकलना है...!" मैने उदास मन से कहा....

"चल ठीक है.. आ..आ.. एक मिनिट.. सुन?" मीनू ने मुझे वापस बुलाया....

"हाँ दीदी..?"

"ववो.. अब वो आदमी फोन तो उठा ही नही रहा.. क्या करें?" मीनू ने पूचछा...

"छ्चोड़ो ना.. जब फोन उठा ही नही रहा तो हमें क्या दिक्कत है.. अपना पीचछा तो छ्छूट गया ना!" मैने कहा....

"नही.. मेरा मतलब... तेरे जाने के बाद उसके फिर फोन आने शुरू हो गये तो मैं क्या करूँगी.. यही सोच रही थी...!" मीनू बोली....

"आप मानव के पास फोन कर देना.. अब मैं क्या बताऊं दीदी..?" मैने हाथ मलते हुए कहा.....

मीनू ने मायूसी में सिर हिलाया...,"चल ठीक है... कुच्छ हुआ तो मैं तुझे बता दूँगी..."

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घर जाकर मैने सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जैसे ही एक मर्दाना आवाज़ सुनी.. मेरा दिल दहल गया! आवाज़ सुन्दर की थी.. एक पल को तो मेरे दिमाग़ में वापस भागने का ख़याल आया था.. पर ये सोचकर कि अपने ही घर से कब तक भागूंगी.. मैने वापस नीचे जाकर मम्मी को आवाज़ दी..,"मुमययययययी!" मुझे पापा था पापा घर पर नही होंगे.....

मम्मी ने सीढ़ियों से झँकते हुए मुझे घूरा...,"उपर आ तू, कमिनि!"

मैने डरते डरते 'ना' मैं सिर हिला दिया.. मुझे मम्मी से नही सुन्दर से डर लग रहा था..,"एक बार नीचे आ जाओ!"

"तू आ रही है या मैं नीचे आकर तेरी धुनाई करूँ..?" मम्मी ने और भी गुस्से मैं कहा..

"पर मम्मी...!" मैं बोलती बोलती बीच में ही बंद हो गयी और सहमी हुई धीरे धीरे सीढ़ियाँ चढ़ने लगी...

"हराम-जादि ... क्यूँ हमारी नाक कटाती फिर रही है.. घर में भी नही टीका जाता तुझसे..." मम्मी सीढ़ियों में आकर खड़ी हो गयी थी.. जैसे ही मैं उनकी पहुँच में आई.. वो मुझे बालों से पकड़ कर खींचते हुए उपर ले गयी... मम्मी शायद भूल गयी थी कि नाक काटने की 'ये' कला मैने उनसे ही सीखी थी...

पर मैं सुन्दर के कारण चुपचाप खड़ी रही... सुन्दर बाहर ही चारपाई पर बैठा हुआ मुझे घूर रहा था...उसके सिर पर पट्टी बँधी हुई थी..."मैने तो तेरी शर्म कर ली चाची.. वरना अब तक तो मैं इसकी गांद मार लेता साली की...!"

"बता.. क्या चक्कर है तेरा उस 'लुच्चे' संदीप के साथ...,"मम्मी उसकी बातों को अनसुना करते हुए मुझ पर बरस पड़ी... ज़्यादा जवानी चढ़ आई है क्या?.......... बोल.. बोलती क्यूँ नही... आने दे तेरे पापा को.. आज तेरी खैर नही...!" मम्मी अनाप शनाप बके जा रही थी...

मेरे कानो पर जू तक ना रैंग्ती अगर सुन्दर वहाँ नही होता... सिर्फ़ सुन्दर के कारण ही मैं चुप थी... मैं सिर झुकाए खड़ी रही...

"देख लो चाची.. कितनी भोली बनकर खड़ी है अब... जैसे इसको तो कुच्छ पता ही ना हो इन बातों का... वहाँ तो 'रंडियों' की तरह संदीप के साथ... मैं तो कहता हूँ मेरी मान ही लो चाची... कल ही लेकर आ जा इसको खेतों में..." सुन्दर ने कहा और हाथ बढ़कर मुझे पकड़ने की कोशिश की.. मैं तुरंत पीछे हट गयी...

"देखता हूँ कब तक फड़फड़ाएगी तू.. तेरे बाप के आने का टाइम हो रहा है वरना अभी पकड़ कर चो... बेहन्चोद ने मेरा सिर फोड़ दिया... " सुन्‍दर ने मुझे घूरते हुए कहा और फिर मम्मी की ओर देखने लगा..," तेरे कहने से रुका हूँ चाची... अब बोल जल्दी.. मुझे जाना भी है.....!"

"थोड़े दिन रुक जा सुन्दर.. आजकल टाइम नही लगता..." मम्मी ने बेशर्मी से कहा...

"मैं तेरी नही इसकी बात कर रहा हूँ.. सोच लेना.. बाद में मत कहना कि बताया नही था.. छ्चोड़ूँगा नही इसको मैं चोदे बिना..." सुन्दर जाता जाता जाने क्या क्या बक गया.....

" क्या है ये सब...? शर्म तो आती नही तुझे...? कुच्छ तो सोचा होता अपने बारे में...!" सुन्दर के जाते ही मम्मी का लहज़ा नरम पड़ गया....

"मैं भी बहुत पछ्ता रही हूँ मम्मी.. आइन्दा कुच्छ ग़लत नही करूँगी.. आपकी कसम..!" मैने दबे स्वरों में कहा....

"आइन्दा नही करूँगी कुच्छ...!" मम्मी ने मुँह बनाकर मेरी नकल उतारी..,"अब ये तुझे छ्चोड़ेगा तब ना... कल से मेरे पिछे पड़ा है.. कह रहा है नही तो पूरे गाँव में उड़ा देगा बात... बता अब मैं क्या बोलूं इसको.." मम्मी ने कहा और टॅपर टॅपर आँसू बहाने लगी.....

मैं बहुत कुच्छ बोलना चाहती थी.. पर 'वो जैसी भी थी.. मा थी मेरी.. बिना कुच्छ बोले मैने उनको चारपाई पर बिठाया और उनके आँसू पौच्छने लगी... जाने क्या सोच कर उन्होने मुझे गले से लगा लिया... शायद जवानी में की गयी ग़लतियों का 'जुंग' लगा पानी अब जाकर अपनी बेटी के लिए उनकी आँखों से निकला था.... बेटी, जिसको उन्होने अपने जैसी ही बना दिया.. समय से भी पहले! शायद उन्हे इस बात का बखूबी अहसास भी हो चला था.... पर अब पछ्तये होत क्या......

अगली सुबह पिंकी के पापा ही हम दोनो को लेकर गुरुकुल के लिए निकल लिए थे... 'वहाँ' जाकर उन्होने हमारे दाखिले की सभी फॉरमॅलिटीस पूरी की और ऑफीस में बैठे एक क्लर्क ने हमारे अड्मिशन की रसीद समेत छत्रावास के नियम क़ानूनो से भरा एक पर्चा हमें पकड़ा दिया...

"देखो बेटी..." चाचा पर्चे में से पढ़ पढ़ कर हमें समझाने लगे..," इस चारदीवारी के अंदर ही तुम्हे अब रहना है... इसके अंदर ही तुमहरा स्कूल, हॉस्टिल, खेलने का मैदान और खाने का मेस वग़ैरह है.. तुम्हे यहाँ पढ़ने और खेलने के अलावा कोई काम नही.. मंन लगाकर पढ़ना.. ठीक है...?" चाचा बोलते ही जा रहे थे कि पिंकी अचानक रोने लगी....

"धात पागल.. रो क्यूँ रही है..? अंजलि भी तो तेरे साथ है ना...?" चाचा ने उसको लड़ाते हुए कहा...

"पर मम्मी... मम्मी के बिना मेरा दिल कैसे लगेगा पापा..! मेरा दिल नही लगेगा यहाँ...!" पिंकी सुबक्ते हुए बोली....

"तू तो पागल है एकदम... देख तेरे जैसी कितनी लड़कियाँ हैं यहाँ... जिधर देखो उधर लड़की.. इन्न सबकी क्या मम्मिया नही हैं.. बस.. चुप कर.. सबके साथ प्यार से रहना और मॅन लगाकर पढ़ना... अपने आप दिल लग जाएगा...! अंजू को ही देख ले.. ये भी तो नही रो रही..." चाचा उसको प्यार करते हुए बोले....

"आप फिर कब आओगे...?" पिंकी ने अपने आँसू पौछ्ते हुए पूचछा....

"बेटी.. हफ्ते में एक बार ही मिल सकते हैं यहाँ... मैं हर रविवार को आ जाया करूँगा.. तेरी मम्मी को भी साथ ले अवँगा... यहाँ बस वही 2 आकर मिल सकते हैं जिसका फोटो यहाँ लगा हो.. इनके रिजिस्टर में... ओह्ह तेरे की... अंजू! फोटो लाई है मम्मी पापा का.... यहाँ चाहिए था.....!" चाचा ने अफ़सोस सा जताते हुए पूचछा....

"कोई बात नही चाचा.. आप अपना ही लगा देना..!" मैं बोल ही रही कि अचानक गुरुकुल में एक जाने पहचाने चेहरे को देख कर मैं चौंक पड़ी... 'वही' प्रिन्सिपल मेडम एक लड़की के साथ हम'से थोड़ी दूर एक लड़की के साथ खड़ी बातें कर रही थी... उसकी नज़र मुझ पर ही थी......

"फोन देना चाचा एक बार....!" मुझे मीनू को इस बारे में बताना उचित लगा... चाचा से फोन लेकर में धीरे धीरे टहलती हुई उनसे थोड़ी दूर आ गयी...

"हेलो!" मीनू की आवाज़ घर वाले फोन पर उभरी....

"मैं हूँ दीदी,.. अंजू!" मैने जल्दी जल्दी में कहा....

"अच्च्छा.. पहुँच गये क्या?" मीनू ने पूचछा...

"हाँ.. दाखिला भी हो गया... सुन.. 'वो' प्रिन्सिपल मेडम गुरुकुल में आई हुई हैं... उनकी लड़की शायद यहीं पढ़ती है....!" मैने बताया...

"तो..? उसका क्या है?" मीनू ने फिर पूचछा....

"पता नही.. पर मानव को ये बात बता देना.. शायद कुच्छ काम आ जाए.. बस इसीलिए किया था... अब रखती हूँ.. चाचा जा रहे हैं..." मैने कहा और फोन काट दिया.....

"ठीक है ना बेटी... आराम से रहना और मन लगाकर पढ़ाई करना... मैं यहाँ तुम दोनो के नाम से 'खर्चा' जमा करवा रहा हूँ... चाहिए तो यहाँ आकर ले लेना...." मेरे फोन रखते ही चाचा मेरे पास आकर मुझे समझाने लगे....

हम दोनो ने सहमति में सिर हिलाया.. चाचा उसके बाद एक खिड़की पर जाकर खड़े हो गये..,"इनका हॉस्टिल का कमरा बताना भाई...!" चाचा ने अंदर बैठे क्लर्क को पर्चियाँ देकर पूचछा...

"हुम्म.. पिंकी मलिक.. रूम नंबर. 13 और आ..आ..आ.. अंजलि रूम नंबर. 44!" क्लर्क ने पर्चियाँ वापस बाहर कर दी....

"पर.. भाई साहब.. ये दोनो बहने हैं... इनको तो एक ही कमरा देना चाहिए था..." चाचा थोड़े चिंतित होकर बोले....

"कोई बात नही चाचा.. बाद में अड्जस्ट हो जाएँगी.. आप चिंता मत करो..!" अंदर से आवाज़ आई...

चाचा थोड़े मायूस से लगने लगे..," कोई बात नही बेटी... अपनी मेडम को बोलकर इकट्ठी हो जाना.. ठीक है ना... चलो तुम्हारा सामान रखवा देता हूँ....

चाचा हमें लेकर हॉस्टिल के गेट पर पहुँचे ही थे कि वहाँ बैठी एक अधेड़ उम्र की महिला ने उन्हे रोक दिया...," आप वापस जाइए...!"

"पर.. पर मैं इनका सामान तो ढंग से रखवा देता एक बार...!" चाचा ने कहा...

"आदमी हॉस्टिल के अंदर अलोड नही हैं.. आप वापस जाइए.. यहाँ लड़कियाँ बहुत हैं... अपने आप रखवा देंगी सामान...!" महिला ने चाचा को सॉफ मना कर दिया....

"कोई बात नही बेटी.. 2 दिन बाद ही तो रविवार है.. अब तुम जाओ.. मैं चलूं अब?"

"मम्मी को ले आना पापा.. और मीनू को भी...!" पिंकी एक बार फिर रोने लगी थी....

"बस चुप कर अब.. ले आउन्गा.. एक दो दिन में तो तेरा यहाँ इतना मंन लग जाएगा कि तू हमें याद भी नही करेगी..." चाचा की आँखें भी नम होने को थी.. उन्होने हम दोनो के सिर पर हाथ रखा और मुड़कर जाने लगे...

जब तक चाचा आँखों से औझल नही हो गये.. पिंकी रॉनी सूरत बनाए वहीं खड़ी रही...

"चलें उपर...?" मैने पिंकी के कंधे पर हाथ रखा....

पिंकी ने अपना सिर हिलाया और सामान उठा लिया....

"ओये होये.. नयी चिड़िया... कौनसा घौसला है...?" हम उपर पहुँचे ही थे कि एक लड़की ने इसी जुमले से हमारा स्वागत किया था...

"क्क्या?" हम समझ नही पाए..

"सब समझ जाओगी कन्याओ.. चिंता मा कुरूव!" लड़की ने अट्टहास सा करते हुए पिंकी के गाल को उमेथ दिया..,"कमरा नंबर. कौनसा है लाडो?"

"13 और 44!" जवाब मैने दिया...

"गयी भैंस पानी में... 44 किसका है?" उसने हंसते हुए पूचछा...

"मेरा..." मैं उसकी और गौर से देखती हुई बोली....

"तू तो गयी.. सुन.. जाते ही सीमा मेडम के चरणों में गिर जाना.. हो सकता है तुझ पर रहम आ जाए.. वरना तो तेरी खैर नही.. खैर मुझे क्या.. 13 इधर, 44 उधर.. भगवान तुम दोनो का भला करे...! लड़की ने कहा और नीचे भाग गयी....

उसकी बातें सुन कर हमें डर सा लगने लगा था...,"चल.. पहले तेरा सामान रखवा देती हूँ...!" मैने कहा और हम दोनो 13 नंबर. कमरे की और चल पड़े....

दरवाज़ों पर लिखे अधलिखे नंबर. पढ़ते पढ़ते हम दोनो जाकर रूम नंबर. 13 के सामने खड़े हो गये.. जैसे ही हमने कमरे के अंदर झाँका; वहाँ पहले से ही डेरा जमाए बैठी लड़कियों ने हमें ऐसे घूरा जैसे हम किसी दूसरे ग्रह से उतर कर अचानक वहाँ टपक पड़े हों....

"हाँ! क्या है?" एक मोटी सी थुलथुली लड़की हमें अपने कमरे के सामने खड़े देख कर गुर्राय...

पिंकी तो उसी पल सहम सी गयी थी.. जवाब देने की हिम्मत मैने ही की..," हमारा नया दाखिला हुआ है...!"

"तो?" उस लड़की के साथ ही एक और लड़की दरवाजे तक आई और अपने कूल्हे मतकाते हुए बोली..,"आरती उतारनी है क्या?" उनकी आवाज़ रुला देने वाली थी...

"नही वववो... ये कमरा मिला है.. इसीलिए...!" मैने हड़बड़ते हुए आधी अधूरी बात कही...

"यहाँ एक ही बिस्तर खाली है.. दूसरा मैने अपनी बेहन के लिए रोक रखा है.. वो कुच्छ दिन बाद आएगी यहाँ... चलो जाओ.. किसी और कमरे का नंबर. ले लो...!" लड़की ने जैसे हमें दुतकार सा दिया...

"नही नही.. यहाँ तो पिंकी को ही रहना है.. मुझे तो 44 मिला है...!" मेरा भी दिल सा बैठा जा रहा था...

"क्या? .... 44!" लड़की कहकर मूडी और अंदर वाली लड़कियों के साथ खिलखिलाकर हंस पड़ी...," बेचारी!"

"कोई बात नही.. एक को रहना है तो आ जाओ.. रख लो सामान अंदर.. रखने दो यार पुष्पा...!" अंदर बैठी लड़कियों में से एक ने मोटी लड़की को कहा...

वो लड़की अब तक हंस रही थी..,"अर्रे.. रख लो.. मैं कब मना कर रही हूँ... मुझे तो इस 44 वाली की दया आ रही है.. बेचारी.. हे हे हे हे...!"

पिंकी ने नज़रें उठाकर मेरी आँखों में देखा... मैने अपना सामान बाहर ही रख दिया और पिंकी के साथ अंदर आ गयी...

कमरे में कुल मिलकर 6 तख्त थे... चारों कोनो पर उन्न चार लड़कियों ने कब्जा जमाया हुआ था... बीच वाले 2 ही खाली थे... मैने कुच्छ सोच कर जैसे ही दीवार के साथ वाले तख्त के पास पिंकी का सामान रखवाया तो पुष्पा बरस पड़ी..,"ज़्यादा स्यानी मत बन.. चुपचाप वो दूसरा तख्त ले ले.. मैने बताया था ना.. यहाँ मेरी बेहन आएगी...!"

हम में से कोई कुच्छ नही बोला.. हुमने चुपचाप जाकर दरवाजे के ठीक सामने वाले तख्त पर बिस्तर लगाना शुरू कर दिया... अलमारी भी हमें ऐसी मिली जिस पर कुण्डी तक नही थी... पर क्या करते...? वो सब पुरानी खिलाड़ी थी और हमें तब तक हॉस्टिल के 'असली' नियम पता नही थे...

जैसे तैसे करके मैने पिंकी का सामान सेट करवाया और हम दोनो बाहर निकल आए.... पिंकी अब तक जाने कैसे अपने आपको रोके हुए थी.. जैसे ही वा बाहर निकली.. फुट फुट कर रोने लगी..," मैं नही रहूंगी यहाँ... मुझे घर जाना है...!"

"बस कर पिंकी.. चिंता मत कर.. हम मेडम से इनकी शिकायत करेंगे.. चुप हो जा अब.. मेरी तो सोच.. मुझे तो '44' मिला है... यहाँ ऐसा हाल है तो 'वहाँ' क्या होगा... चल.. मेरा सामान रखवा दे एक बार... फिर सीमा मेडम से बोल कर हम दोनो कमरा बदल लेंगे...!" मैने पिंकी को दिलासा देने की कोशिश की....

"नही.. पहले मुझे घर फोन करना है...!" पिंकी अब तक बिलख रही थी....

"ठीक है.. आजा.. नीचे एस.टी.डी. देखी थी मैने.. तू चुप तो हो जा..!" मैने अपना सामान उठाया और पिंकी का हाथ पकड़ कर वापस नीचे आ गयी....

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"यहाँ तो ताला लगा है...!" एस.टी.डी. के सामने जाते ही पिंकी ने कहा....

"तू ठहर एक मिनिट... मैं पूछ्ति हूँ...!" मैने पिंकी से कहकर अपना सामान नीचे रखा और मुड़कर पास से गुजर रही एक लड़की को टोका,"दीदी.. ये कब खुलेगी...?"

"लड़की ने मेरी तरफ सरसरी नज़र से देखा और चलते चलते ही बोली...,"नयी आई है क्या?"

"हां दीदी...!" मैं पिंकी को वहीं छ्चोड़ कर उसके साथ साथ चलने लगी...

"ये नही खुलती... ये हमेशा बंद ही रहती है..." शुक्र था वो लड़की कम से कम मेरी बात सुन तो रही थी.. चलते चलते ही...

"क्यूँ?" मैं उसका पीचछा करती रही...

"एक लड़की भाग गयी थी यहाँ से...अपने आशिक के साथ... बाद में पता चला उनकी गुटरगूं एस.टी.डी. पर ही होती थी.. तब से बंद है.. मोबाइल पर भी बॅन है..."

"हमें घर पर एक फोन करना था... अब कैसे करें...?" मैने हताश होकर पूचछा...

"2 रास्ते हैं... या तो प्रिन्सिपल मेडम के पास जाओ या फिर 44 नंबर. में.. चल अब.. बहुत हो गया...!" लड़की ने मुझे लगभग दुत्कार्ते हुए कहा...

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"चल पिंकी.. ऑफीस में चलते हैं..!" मैने अपना सामान वहीं छ्चोड़ा और पिंकी का हाथ पकड़ कर ऑफीस में ले गयी....

"मे आइ कम इन, मॅ'म!" मैने ऑफीस के बाहर से ही पूचछा....

प्रिन्सिपल मॅ'म फोन पर ही लगी हुई थी.. करीब 5 मिनिट बाद उन्होने फोन रखा और हमारी सुध ली..,"क्या है बेटा..?" उनकी आवाज़ बड़ी मधुर थी..

"जी.. मॅ'म.. ववो.. हमें घर पर फोन करना था....!" मैने पिंकी के साथ अंदर घुसकर कहा...

"कब आए हो घर से....?"

"जी आज ही.. हमारा नया दाखिला हुआ है....!" मैने जवाब दिया....

"ऐसी क्या बात रह गयी.. घर से सारी बातें करके आनी चाहिए थी ना...?"

"ज्जई.. लेकिन.. वो इसके रूम वाली लड़कियाँ अच्छि नही हैं...!" मैने झट से कह दिया....

प्रिन्सिपल आँखें बंद करके शुरू हो गयी..," बुरा जो देखन मैं चला; बुरा ना मिल्या कोए... जो मॅन झाँका आपनो; मुझसे बुरा ना कोए...!!! बेटी.. बुराई बाहर नही हमारे अपने अंदर होती है.. हमारे चारों और का वातावरण हमारी परच्छाई मात्र है.. हम जैसा व्यवहार दूसरो के साथ करेंगे, वैसा ही दूसरे हमारे साथ करेंगे... अपने आपको अच्च्छा बनाओ.. दुनिया खुद-ब-खुद अच्छि दिखने लगेगी.. समझी! बुराई उन्न लड़कियों में नही.. खुद हमारे अंदर है.. ये मान कर चलो और अपने अंदर की बुराई को जड़ समेत उखाड़ फैंको.. फिर देखो.. दुनिया कितनी सुंदर है.. आआहा...!"

"पर मॅ'म.. हम तो आज ही आए हैं.. उन्होने आते ही लड़ाई वाली बातें करनी शुरू कर दी... हमने तो कुच्छ कहा भी नही था...." मैने कह तो दिया.. पर इसके साथ ही प्रिन्सिपल मॅ'म का सत्संग एक बार फिर शुरू हो गया..

"यही तो! ये दुर्भावना लेकर ही तो हम अपने इर्द गिर्द दुश्मन खड़े कर लेते हैं.. क्यूँ नही कहा तुमने कुच्छ.. कहना चाहिए था ना... माफी माँग लेते... अब तुम कहोगी की हमारी ग़लती ही नही थी तो माफी किस बात की... यहीं तो आज कल के बच्चे भूल कर जाते हैं... गाँधी जी का सहिष्णुता, प्रेम और अहिंसा का पाठ क्या सिखाता है बोलो... अहिंसा परमो धर्मा! प्रेम ही ईश्वर है बेटी.. लड़ाई वाली बातें क्या होती हैं..बोलो! गुस्से के गरम लोहे पर विनम्रता का ठंडा पानी डालो.. कोई गाली दे तो मुस्कुरकर निकल जाओ.. कोई थप्पड़ मारे तो अपना दूसरा गाल भी आगे कर दो.. गाँधी जी ने यही सिखाया है ना...?"

अफ.. झेलने की भी कोई हद होती है.. मेरी सारी हदें पार हो गयी थी.. दिल में तो आ रहा था कि आगे बढ़कर 'ये' चाँते वाला एक्सपेरिमेंट मॅ'म पर ही कर के देख लूँ.. मैं थोड़ा झल्ला कर बोली..," पर मॅ'म.. उनको भी सिख़ाओ ना यही बातें... आप हमें एक फोन कर लेने दो बस!"

"मेरे पास एक यही काम बचा है कि मैं दिन भर आप लोगों के फोन करवाती रहूं.. है ना..?" मॅ'म की सहिष्णुता मेरे एक कटाक्ष के साथ ही जाने कहाँ चली गयी थी..," छुट्टी के बाद आना.. चलो अब!"

मैं मायूसी से पिंकी के साथ बाहर आ गयी.. बाहर आते ही पिंकी बोली..,"मेडम जी कितने प्यार से समझाती है ना?"

मैं पिंकी को घूरते हुए झल्ल्ल कर बोली...,"तू समझ गयी ना सब कुच्छ?"

"हां!" पिंकी ने अपनी गर्दन हिलाते हुए स्वीकार किया...

"तो अब तो फोन करने की कोई ज़रूरत नही होगी..? अब तो तू समझ ही गयी है..." मैने व्यंग्य किया..

सुनते ही पिंकी का चेहरा लटक गया..,"नही.. फोन तो करना है.. मैं उस कमरे में नही रहूंगी...!"

"44 नंबर... चल वहीं देखते हैं कौनसी एस.टी.डी. है....?" मैने अपना सामान उठाते हुए कहा और हम वापस उपर चल पड़े.....

क्रमशः.....................

gataank se aage..................

"Kya hua?" Mujhe achanak bejubaan hote dekh Pinky ne chahak kar poochha...

"Kuchh nahi.. Tune chalne ki taiyari kar li...?" Maine baat badal di....

"Haan.. didi ne sara saaman pack kar diya hoga.. kyun?" Pinky ne jawaab dekar sawaal kiya....

"Bus aise hi... Kal se toh hum hostel mein rahenge.. 'Dil' toh lag jayega na wahan?" Maine yunhi poochha

"Haan.. dil lagne mein kya dikkat hai... Hum dono toh sath rahenge hi..." Pinky ke kahte kahte hi unka ghar aa gaya tha...

Meenu darwaje par hi intjaar karti mili...,"Mummy papa aa gaye..Suno! maine papa ko ye bola hai ki tum dono Shikha ke ghar gaye ho.. Samajh gaye na?"

"Haan theek hai.. ye lo! pakdo apne paise...!" Pinky ne mutthi mein dabakar rakhe note Meenu ko pakda diye...

"Kya hua? ab bhi nahi mila kya?" Meenu ne poochha...

"Mila tha.. usne liye hi nahi...!" Pinky chatkhara sa lekar boli...

"Besharm.. tu deti toh wo leta kaise nahi... bhookhi kahin ki..." Meenu ne kaha aur paise pakad liye...

"Main chalti hoon didi... Apna saamaan rakh loon... subah jaldi nikalna hai...!" Maine udaas man se kaha....

"Chal theek hai.. a..aa.. ek minute.. sun?" Meenu ne mujhe wapas bulaya....

"Haan didi..?"

"wwo.. ab wo aadmi fone toh utha hi nahi raha.. kya karein?" Meenu ne poochha...

"Chhodo na.. jab fone utha hi nahi raha toh hamein kya dikkat hai.. apna peechha toh chhoot gaya na!" Maine kaha....

"Nahi.. mera matlab... tere jaane ke baad uske fir fone aane shuru ho gaye toh main kya karoongi.. yahi soch rahi thi...!" Meenu boli....

"aap Manav ke paas fone kar dena.. ab main kya bataaoon didi..?" Maine hath malte huye kaha.....

Meenu ne mayoosi mein sir hilaya...,"chal theek hai... kuchh huaa toh main tujhe bata doongi..."

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Ghar jakar maine seedhiyan chadhte huye jaise hi ek mardana aawaj suni.. mera dil dahal gaya! Aawaj Sunder ki thi.. ek pal ko toh mere dimag mein wapas bhaagne ka khayaal aaya tha.. Par ye sochkar ki apne hi ghar se kab tak bhaagoongi.. maine wapas neeche jakar mummy ko aawaj di..,"Mumyyyyyyy!" Mujhe papa tha papa ghar par nahi honge.....

Mummy ne seedhiyon se jhankte huye mujhe ghoora...,"Upar aa tu, kamini!"

Maine darte darte 'na' main sir hila diya.. Mujhe mummy se nahi Sunder se darr lag raha tha..,"Ek baar neeche aa jao!"

"tu aa rahi hai ya main neeche aakar teri dhunayi karoon..?" Mummy ne aur bhi gusse main kaha..

"Par mummy...!" Main bolti bolti beech mein hi band ho gayi aur sahmi huyi dheere dheere seedhiyan chadhne lagi...

"Haramjadi ... kyun hamari naak kataati fir rahi hai.. ghar mein bhi nahi tika jata tujhse..." Mummy seedhiyon mein aakar khadi ho gayi thi.. jaise hi main unki pahunch mein aayi.. wo mujhe baalon se pakad kar kheenchte huye upar le gayi... Mummy shayad bhool gayi thi ki naak katane ki 'ye' kala maine unse hi seekhi thi...

Par Main sunder ke karan chupchap khadi rahi... Sunder bahar hi charpayi par baitha huaa mujhe ghoor raha tha...Uske sir par patti bandhi huyi thi..."Maine toh teri sharm kar li chachi.. warna ab tak toh main iski gaand maar leta saali ki...!"

"Bata.. kya chakkar hai tera uss 'luchche' Sandeep ke sath...,"Mummy uski baaton ko ansuna karte huye mujh par baras padi... jyada jawani chadh aayi hai kya?.......... Bol.. bolti kyun nahi... aane de tere papa ko.. aaj teri khair nahi...!" Mummy anaap shanaap bake ja rahi thi...

Mere kaano par joo tak na raingti agar Sunder wahan nahi hota... Sirf Sunder ke karan hi main chup thi... Main sir jhukaye khadi rahi...

"Dekh lo chachi.. kitni bholi bankar khadi hai ab... jaise isko toh kuchh pata hi na ho in baaton ka... wahan toh 'Randiyon' ki tarah Sandeep ke sath... Main toh kahta hoon meri maan hi lo chachi... kal hi lekar aa ja isko kheton mein..." Sunder ne kaha aur hath badhakar mujhe pakadne ki koshish ki.. main turant peechhe hat gayi...

"Dekhta hoon kab tak fadfadaayegi tu.. tere baap ke aane ka time ho raha hai warna abhi pakad kar cho... behanchod ne mera sir fod diya... " Sunder ne mujhe ghoorte huye kaha aur fir mummy ki aur dekhne laga..," Tere kahne se ruka hoon chachi... ab bol jaldi.. mujhe jana bhi hai.....!"

"Thode din ruk ja Sunder.. aajkal time nahi lagta..." Mummy ne besharmi se kaha...

"Main teri nahi iski baat kar raha hoon.. Soch lena.. baad mein mat kahna ki bataya nahi tha.. Chhodunga nahi isko main chode bina..." Sunder jata jata jane kya kya bak gaya.....

" Kya hai ye sab...? sharm toh aati nahi tujhe...? Kuchh toh socha hota apne baare mein...!" Sunder ke jate hi mummy ka lahja naram pad gaya....

"Main bhi bahut pachhta rahi hoon mummy.. aainda kuchh galat nahi karoongi.. aapki kasam..!" Maine dabe swaron mein kaha....

"Aainda nahi karoongi kuchh...!" Mummy ne munh banakar meri nakal utari..,"Ab ye tujhe chhodega tab na... kal se mere pichhe pada hai.. kah raha hai nahi toh poore gaanv mein uda dega baat... bata ab main kya bolun isko.." Mummy ne kaha aur tapar tapar aansoo bahane lagi.....

Main bahut kuchh bolna chahti thi.. par 'wo jaisi bhi thi.. maa thi meri.. Bina kuchh bole maine unko charpayi par bithaya aur unke aansoo pouchhne lagi... Jane kya soch kar unhone mujhe gale se laga liya... Shayad Jawani mein ki gayi galtiyon ka 'jung' laga pani ab jakar apni beti ke liye unki aankhon se nikla tha.... Beti, jisko unhone apne jaisi hi bana diya.. Samay se bhi pahle! Shayad unhe iss baat ka bakhoobi ahsaas bhi ho chala tha.... Par ab pachhtaye hot kya......

Agli Subah Pinky ke papa hi hum dono ko lekar Gurukul ke liye nikal liye the... 'Wahan' jakar Unhone hamare daakhile ki sabhi formalities poori ki aur office mein baithe ek clerk ne hamare admission ki raseed samet chhatraawas ke niyam kaanoono se bhara ek parcha hamein pakda diya...

"Dekho beti..." chacha parche mein se padh padh kar hamein samjhane lage..," Iss chaardeewari ke andar hi tumhe ab rahna hai... Iske andar hi tumahara School, hostel, khelne ka maidaan aur Khane ka mess wagairah hai.. Tumhe yahan padhne aur khelne ke alaawa koyi kaam nahi.. mann lagakar padhna.. theek hai...?" Chacha bolte hi ja rahe the ki Pinky achanak rone lagi....

"dhat pagal.. ro kyun rahi hai..? Anjali bhi toh tere sath hai na...?" Chacha ne usko ladaate huye kaha...

"Par mummy... mummy ke bina mera dil kaise lagega papa..! Mera dil nahi lagega yahan...!" Pinky subakte huye boli....

"tu toh pagal hai ekdum... dekh tere jaisi kitni ladkiyan hain yahan... jidhar dekho udhar ladki.. inn sabki kya mummiyan nahi hain.. bus.. chup kar.. sabke sath pyar se rahna aur mann lagakar padhna... apne aap dil lag jayega...! Anju ko hi dekh le.. ye bhi toh nahi ro rahi..." Chacha usko pyar karte huye bole....

"aap fir kab aaoge...?" Pinky ne apne aansoo pouchhte huye poochha....

"Beti.. hafte mein ek baar hi mil sakte hain yahan... main har ravivar ko aa jaya karoonga.. teri mummy ko bhi sath le aaunga... yahan bus wahi 2 aakar mil sakte hain jiska foto yahan laga ho.. inke register mein... Ohh tere ki... Anju! foto layi hai mummy papa ka.... yahan chahiye tha.....!" Chacha ne afsos sa jatate huye poochha....

"Koyi baat nahi chacha.. aap apna hi laga dena..!" Main bol hi rahi ki achanak Gurukul mein ek jaane pahchane chehre ko dekh kar main chounk padi... 'Wahi' Principal madam ek ladki ke sath ham'se thodi door ek ladki ke sath khadi baatein kar rahi thi... Uski najar mujh par hi thi......

"Fone dena chacha ek baar....!" Mujhe Meenu ko iss baare mein batana uchit laga... Chacha se fone lekar mein dheere dheere tahalti huyi unse thodi door aa gayi...

"Hello!" Meenu ki aawaj ghar waale fone par ubhari....

"Main hoon didi,.. Anju!" Maine jaldi jaldi mein kaha....

"achchha.. pahunch gaye kya?" Meenu ne poochha...

"Haan.. daakhila bhi ho gaya... sun.. 'wo' Principal madam gurukul mein aayi huyi hain... unki ladki shayad yahin padhti hai....!" Maine bataya...

"toh..? uska kya hai?" Meenu ne fir poochha....

"Pata nahi.. par Manav ko ye baat bata dena.. shayad kuchh kaam aa jaye.. bus isiliye kiya tha... ab rakhti hoon.. chacha ja rahe hain..." Maine kaha aur fone kaat diya.....

"Theek hai na beti... aaram se rahna aur man lagakar padhayi karna... Main yahan tum dono ke naam se 'kharcha' jama karwa raha hoon... chahiye toh yahan aakar le lena...." Mere fone rakhte hi chacha mere paas aakar mujhe samjhane lage....

Hum dono ne sahmati mein sir hilaya.. chacha uske baad ek khidki par jakar khade ho gaye..,"Inka hostel ka kamra batana bhai...!" Chacha ne andar baithe clerk ko parchiyan dekar poochha...

"Humm.. Pinky Malik.. Room no. 13 aur a..aa..aa.. Anjali Room no. 44!" Clerk ne parchiyan wapas bahar kar di....

"Par.. bhai sahab.. ye dono behne hain... inko toh ek hi kamra dena chahiye tha..." Chacha thode chintit hokar bole....

"koyi baat nahi chacha.. baad mein adjust ho jayengi.. aap chinta mat karo..!" Andar se aawaj aayi...

Chacha thode mayoos se lagne lage..," Koyi baat nahi beti... apni madam ko bolkar ikatthi ho jana.. theek hai na... chalo tumhara saaman rakhwa deta hoon....

Chacha hamein lekar hostel ke gate par pahunche hi the ki wahan baithi ek adhed umra ki mahila ne unhe rok diya...," Aap wapas jayiye...!"

"par.. par main inka saaman toh dhang se rakhwa deta ek baar...!" Chacha ne kaha...

"aadmi hostel ke andar allowed nahi hain.. aap wapas jayiye.. yahan ladkiyan bahut hain... apne aap rakhwa dengi saamaan...!" Mahila ne chacha ko saaf mana kar diya....

"Koyi baat nahi beti.. 2 din baad hi toh ravivaar hai.. ab tum jaao.. main chaloon ab?"

"Mummy ko le aana papa.. aur meenu ko bhi...!" Pinky ek baar fir rone lagi thi....

"bus chup kar ab.. le aaunga.. ek do din mein toh tera yahan itna mann lag jayega ki tu hamein yaad bhi nahi karegi..." Chacha ki aankhein bhi nam hone ko thi.. unhone hum dono ke sir par hath rakha aur mudkar jane lage...

Jab tak chacha aankhon se aujhal nahi ho gaye.. Pinky roni soorat banaye wahin khadi rahi...

"chalein upar...?" Maine Pinky ke kandhe par hath rakha....

Pinky ne apna sir hilaya aur saamaan utha liya....

"Oye hoye.. nayi chidiya... kounsa ghousla hai...?" Hum upar pahunche hi the ki ek ladki ne isi jumle se hamara swaagat kiya tha...

"kkyaa?" Hum samajh nahi paye..

"Sab samajh jaaogi kanyaao.. chinta ma kurooo!" Ladki ne attahaas sa karte huye Pinky ke gaal ko umeth diya..,"Kamra no. kounsa hai laado?"

"13 aur 44!" Jawaab maine diya...

"Gayi bhains pani mein... 44 kiska hai?" Usne hanste huye poochha...

"Mera..." Main uski aur gour se dekhti huyi boli....

"Tu toh gayi.. Sun.. jate hi Seema madam ke charanon mein gir jana.. ho sakta hai tujh par raham aa jaye.. warna toh teri khair nahi.. khair mujhe kya.. 13 idhar, 44 udhar.. bhagwaan tum dono ka bhala kare...! Ladki ne kaha aur neeche bhag gayi....

Uski baatein sun kar hamein darr sa lagne laga tha...,"Chal.. pahle tera saamaan rakhwa deti hoon...!" Maine kaha aur hum dono 13 no. kamre ki aur chal pade....

Darwaajon par likhe adhlikhe no. padhte padhte hum dono jakar room no. 13 ke saamne khade ho gaye.. Jaise hi hamne kamre ke andar jhanka; wahan pahle se hi dera jamaye baithi ladkiyon ne hamein aise ghoora jaise hum kisi dusre grah se utar kar achanak wahan tapak pade hon....

"Haan! kya hai?" Ek moti si thulthuli ladki hamein apne kamre ke saamne khade dekh kar gurrayi...

Pinky toh usi pal saham si gayi thi.. jawaab dene ki himmat maine hi ki..," Hamara naya dakhila hua hai...!"

"Toh?" Uss ladki ke sath hi ek aur ladki darwaaje tak aayi aur apne kulhe matkaate huye boli..,"aarti utaarni hai kya?" Unki aawaj rula dene wali thi...

"Nahi wwwo... ye kamra mila hai.. isiliye...!" Maine hadbadate huye aadhi adhoori baat kahi...

"Yahan ek hi bistar khali hai.. dusra maine apni behan ke liye rok rakha hai.. wo kuchh din baad aayegi yahan... chalo jaao.. kisi aur kamre ka no. le lo...!" Ladki ne jaise hamein dutkaar sa diya...

"Nahi nahi.. yahan toh Pinky ko hi rahna hai.. mujhe toh 44 mila hai...!" Mera bhi dil sa baitha ja raha tha...

"kya? .... 44!" Ladki kahkar mudi aur andar wali ladkiyon ke sath khilkhilakar hans padi...," Bechari!"

"Koyi baat nahi.. ek ko rahna hai toh aa jao.. rakh lo saamaan andar.. rakhne do yaar pushpa...!" andar baithi ladkiyon mein se ek ne moti ladki ko kaha...

Wo ladki ab tak hans rahi thi..,"arrey.. rakh lo.. main kab mana kar rahi hoon... mujhe toh iss 44 wali ki daya aa rahi hai.. bechari.. he he he he...!"

Pinky ne najrein uthakar meri aankhon mein dekha... maine apna saamaan bahar hi rakh diya aur Pinky ke sath andar aa gayi...

kamre mein kul milakar 6 takht the... chaaron kono par unn char ladkiyon ne kabja jamaya hua tha... beech waale 2 hi khali the... maine kuchh soch kar jaise hi deewar ke sath wale takht ke paas Pinky ka saamaan rakhwaya toh Pushpa baras padi..,"Jyada syaani mat ban.. chupchap wo dusra takht le le.. maine bataya tha na.. yahan meri behan aayegi...!"

Hum mein se koyi kuchh nahi bola.. humne chupchap jakar darwaje ke theek saamne wale takht par bistar lagana shuru kar diya... Almari bhi hamein aisi mili jis par kundi tak nahi thi... par kya karte...? wo sab purani khiladi thi aur hamein tab tak hostel ke 'asli' niyam pata nahi the...

Jaise taise karke maine Pinky ka saamaan set karwaya aur hum dono bahar nikal aaye.... Pinky ab tak jane kaise apne aapko roke huye thi.. jaise hi wah bahar nikli.. foot foot kar rone lagi..," Main nahi rahoongi yahan... mujhe ghar jana hai...!"

"Bus kar Pinky.. chinta mat kar.. hum madam se inki shikayat karenge.. chup ho ja ab.. Meri toh soch.. mujhe toh '44' mila hai... yahan aisa haal hai toh 'wahan' kya hoga... chal.. mera saamaan rakhwa de ek baar... fir Seema madam se bol kar hum dono kamra badal lenge...!" Maine Pinky ko dilasa dene ki koshish ki....

"Nahi.. pahle mujhe ghar fone karna hai...!" Pinky ab tak bilakh rahi thi....

"Theek hai.. aaja.. neeche S.T.D. dekhi thi maine.. tu chup toh ho ja..!" Maine apna Saaman uthaya aur Pinky ka hath pakad kar wapas neeche aa gayi....

------------------------------------------------------------------

"yahan toh tala laga hai...!" S.T.D. ke saamne jate hi Pinky ne kaha....

"tu thahar ek minute... main poochhti hoon...!" Maine Pinky se kahkar apna saamaan neeche rakha aur mudkar paas se gujar rahi ek ladki ko toka,"didi.. ye kab khulegi...?"

"Ladki ne meri taraf sarsari nazar se dekha aur chalte chalte hi boli...,"nayi aayi hai kya?"

"haan didi...!" Main Pinky ko wahin chhod kar uske sath sath chalne lagi...

"Ye nahi khulti... ye hamesha band hi rahti hai..." Shukra tha wo ladki kam se kam meri baat sun toh rahi thi.. chalte chalte hi...

"Kyun?" Main uska peechha karti rahi...

"Ek ladki bhag gayi thi yahan se...apne aashik ke sath... baad mein pata chala unki gutargoon S.T.D. par hi hoti thi.. tab se band hai.. Mobile par bhi ban hai..."

"Hamein ghar par ek fone karna tha... ab kaise karein...?" Maine hatash hokar poochha...

"2 raaste hain... ya toh Principal madam ke paas jao ya fir 44 no. mein.. chal ab.. bahut ho gaya...!" Ladki ne mujhe lagbhag dutkaarte huye kaha...

--------------------------------------------------------------

"Chal Pinky.. office mein chalte hain..!" Maine apna saamaan wahin chhoda aur Pinky ka hath pakad kar Office mein le gayi....

"may I come in, Ma'm!" Maine office ke bahar se hi poochha....

Principal ma'm fone par hi lagi huyi thi.. kareeb 5 minute baad unhone fone rakha aur hamari sudh li..,"Kya hai beta..?" Unki aawaj badi madhur thi..

"Ji.. ma'm.. wwo.. hamein ghar par fone karna tha....!" Maine Pinky ke sath andar ghuskar kaha...

"Kab aaye ho ghar se....?"

"ji aaj hi.. hamara naya daakhila hua hai....!" Maine jawaab diya....

"aisi kya baat rah gayi.. ghar se sari baatein karke aani chahiye thi na...?"

"jji.. lekin.. wo iske room wali ladkiyan achchhi nahi hain...!" Maine jhat se kah diya....

Principal aankhein band karke shuru ho gayi..," Bura jo dekhan main chala; bura na milyaa koye... Jo mann jhaanka aapno; mujhse bura na koye...!!! beti.. burayi bahar nahi hamare apne andar hoti hai.. hamare chaaron aur ka vaataawaran hamari parchhayi matra hai.. ham jaisa vyavhaar duron ke sath karenge, waisa hi dusre hamare sath karenge... Apne aapko achchha banao.. duniya khud-b-khud achchhi dikhne lagegi.. samjhi! Burayi unn ladkiyon mein nahi.. khud hamare andar hai.. ye maan kar chalo aur apne andar ki burayi ko jad samet ukhad fainko.. fir dekho.. duniya kitni sundar hai.. aaaha...!"

"Par Ma'm.. hum toh aaj hi aaye hain.. unhone aate hi ladayi wali baatein karni shuru kar di... Hamne toh kuchh kaha bhi nahi tha...." Maine kah toh diya.. par iske sath hi Principal ma'm ka satsang ek baar fir shuru ho gaya..

"Yahi toh! ye durbhawna lekar hi toh hum apne ird gird dushman khade kar lete hain.. kyun nahi kaha tumne kuchh.. kahna chahiye tha na... maafi maang lete... ab tum kahogi ki hamari galti hi nahi thi toh maafi kis baat ki... yahin toh aaj kal ke bachche bhool kar jate hain... Gandhi ji ka sahishnuta, prem aur ahinsa ka paath kya sikhata hai bolo... Ahinsa paramo dharma! prem hi ishwar hai beti.. ladayi wali baatein kya hoti hain..bolo! Gusse ke garam lohe par vinamrata ka thanda pani daalo.. Koyi gaali de toh muskurakar nikal jao.. koyi thappad maare toh apna dusra gaal bhi aage kar do.. Gandhi ji ne yahi sikhaya hai na...?"

Uff.. jhelne ki bhi koyi had hoti hai.. meri sari hadein paar ho gayi thi.. Dil mein toh aa raha tha ki aage badhkar 'ye' chaante wala experiment ma'm par hi kar ke dekh loon.. main thoda jhalla kar boli..," Par ma'm.. unko bhi sikhao na yahi baatein... aap hamein ek fone kar lene do bus!"

"Mere paas ek yahi kaam bacha hai ki main din bhar aap logon ke fone karwati rahoon.. hai na..?" Ma'm ki sahishnuta mere ek kataksh ke sath hi jane kahan chali gayi thi..," Chhutti ke baad aana.. chalo ab!"

Main mayoosi se Pinky ke sath bahar aa gayi.. Bahar aate hi Pinky boli..,"Madam ji kitne pyar se samjhati hai na?"

Main Pinky ko ghoorte huye jhallla kar boli...,"Tu samajh gayi na sab kuchh?"

"Haan!" Pinky ne apni gardan hilate huye sweekaar kiya...

"Toh ab toh fone karne ki koyi jarurat nahi hogi..? ab toh tu samajh hi gayi hai..." Maine vyangya kiya..

Sunte hi Pinky ka chehra latak gaya..,"nahi.. fone toh karna hai.. Main uss kamre mein nahi rahoongi...!"

"44 no... chal wahin dekhte hain kounsi S.T.D. hai....?" Maine apna saamaan uthaate huye kaha aur hum wapas upar chal pade.....

kramshah.....................











आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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