Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--43

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बाली उमर की प्यास पार्ट--44

गतान्क से आगे..................

आधी नंगी श्वेता अजय की बाहों में आते ही आँख बंद करके सिसक उठी.... उसके मदमस्त गेनहूए रंग के करारे 'सेब' अजय की नज़रों के सामने थिरक से रहे थे... श्वेता अपने नितंबों और नंगी कमर पर पहली बार जवान हाथों की चुभन महसूस करके बावली हुई जा रही थी... सिर्फ़ एक बात थी जो अब तक उसकी समझ में नही आई थी... मनीषा ने अंजू को थप्पड़ मार कर लताड़ क्यूँ लगाई और उस आदमी ने मनीषा को रेवोल्वेर के दम पर बाहर क्यूँ भेजा... यही कारण था कि मस्ती में रंगी होने के बावजूद वह भय के मारे काँप भी रही थी....

"ट्तूम.. अब क्या करोगे?" कांपति आवाज़ में श्वेता ने धड़क'ते दिल से सवाल किया....

"जो तुम करने आई हो जान... और क्या?" अजय ने ले जाकर श्वेता को बिस्तर पर पटक दिया और उसके साथ लेटकर उसकी चूचियो से खेलने लगा...,"करोगी ना?"

"आहाआँ...." अपनी चूचियो की घुंडीयों को कसकर भींचे जाने से श्वेता सिसक उठी और अजय का हाथ हटाकर उन्हे अपने हाथों में छुपा लिया...,"पर 'वो' लड़की अंजलि को डाँट क्यूँ रही थी... यहाँ कुच्छ ग़लत तो नही होगा ना...?"

"छ्चोड़ो ना यार... वो खुद तो इतने मज़े करती है यहाँ आकर... दरअसल 'ये' उसकी बेहन है... उसको तो बुरा लगेगा ही ना... तुम ही बताओ.. तुम्हारी कोई बेहन तुम्हे यहाँ देख लेती तो गुस्सा करती की नही...!" कहते हुए अजय ने उसका नाडा खींच लिया.....

"हां...!पर इनको तो बाहर भेज दो..." श्वेता ने अपनी सलवार पकड़ ली....

"चिंता मत करो.. अभी भाई ने क्या बोला है.. तुम मेरी हो... और कोई तुम्हे कुच्छ नही कहेगा.. ये बस यहाँ मज़ा लेने के लिए खड़े हैं..." अजय ने आसवशण देते हुए जवाब दिया और एक बार फिर सलवार नीचे करने की कोशिश करने लगा.....

श्वेता को मालूम था की यहाँ ये अपनी मर्ज़ी से ही सब कुच्छ करेंगे... भलाई इसी में है की खुशी खुशी मज़े लिए जायें... जैसे ही अजय उसकी छातियो पर झुका... आँखें बंद किए हुए ही उसने उत्तेजना के मारे अजय का सिर पकड़ कर अपनी छातियो से चिपका लिया और अपने नितंबों को उपर उचका सलवार को निकल जाने दिया....

इसके साथ ही हल्क काले बालों वाली श्वेता की योनि सबके सामने बेपर्दा हो गयी... फांकों के बीच अजय की उंगली के रेंगने के साथ ही श्वेता ने कसमसा कर अपनी जांघें थोड़ी सी खोल कर उंगली का स्वागत किया...और उसकी योनि ने चिकना पानी छ्चोड़ दिया....

"पहले किया है कभी?" अजय के हल्का सा दबाव देते ही उंगली योनि में सर्ररर से घुस गयी थी...

"आहह... नही..." श्वेता ने सिर पटकते हुए अपने उपर सवार हो रहे पागलपन का सबूत दिया और झूठ बोल दिया....

"झूठ मत बोल यार... मैं तेरा आदमी थोड़े ही हूं... तेरी चूत तो कह रही है कि तूने किया है पहले भी.....!" अजय खेला खाया लड़का था....

"हहान.. किया है...एक बार... तुम बात क्यूँ कर रहे हो... 'वो' करो ना जल्दी....!" श्वेता उंगली अंदर बाहर होने से तड़प उठी थी....

"क्यूँ नही जान... अभी लो... अभी मज़ा देता हूँ तुम्हे..." अजय बिस्तर पर खड़ा होकर अपनी पॅंट उतारने लगा.... बिस्तर से थोड़ी दूरी पर कमरे में लगे पर्दे के पीछे सुनील अब कमरे को अच्छे से फोकस कर चुका था...... अंजलि असमन्झस में थी कि क्या करे और क्या नही... वह नीरस आँखों से कमरे में हो रही हर गतिविधि पर नज़रें गड़ाए देख रही थी....

बिना देर किए ही अजय पूरी तरह नगन होकर मस्ता चुकी श्वेता की जांघों के बीच बैठा और अपने लिंग को एक ही झटके में ठिकाने लगा दिया......

"अयाया!" श्वेता की योनि एक बार में ही पूरे लिंग को हजम कर गयी थी... आनंद के मारे पागल सी हो उठी श्वेता अपने नितंबों को शुरुआत से ही उच्छलने लगी....

"पूरी मस्तयि हुई लौंडिया है साली....!" अजय ने उसकी चूचियो को पकड़ कर धक्के मारते हुए मुड़कर प्रेम की ओर देखा.....

दरवाजे पर तैनात प्रेम ने अचानक अंजलि को अपने पास आने का इशारा किया....

"क्क्या?" अंजलि सरक कर उसके पास चली गयी....

"लंड चूसना आता है ना?"

"क्क्या?" अंजलि ने दोहराया.....

"अरे लंड मुँह में लिया है क्या कभी...?" प्रेम तनिक उत्तेजित स्वर में बोला तो अंजलि ने नज़रें झुका ली....

"नीचे बैठ जाओ.... यहाँ..!" प्रेम ने पॅंट की जीप खोल कर अंजलि को अपने कदमों में बैठने का इशारा किया और अपना तना हुआ लिंग बाहर निकाल लिया....

"देख क्या रही है जानेमंन... चूस इसको जी भर कर...!" अंजलि बैठ कर उसको घूर्ने लगी तो प्रेम ने आगे बढ़ कर अपना लिंग उसके होंटो से सटा दिया... अंजलि को ऐतराज भी नही था... उसने होन्ट खोले और 'गप्प' से लिंग को अपने होंटो में दबोच लिया.....

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जैसे ही अजय श्वेता के बदन को पूरी तरह तोड़ कर रख देने के बाद हांफता हुआ उस'से अलग हुआ.. प्रेम उसकी जगह लेने को आतुर हो उठा...."हट पिछे....!" प्रेम ने अंजलि को लगभग धकेल ही दिया... और उच्छल कर श्वेता की जांघों में जा बैठा....

"आ और नही प्लीज़....!" श्वेता गिड़गिडती हुई बोली...,"दुख रही है... तुम अंजलि के साथ कर लो.. फिर हमें जाना है...!"

"देख छ्होरी.. चोद्ते हुए मुझे टोका ताकि पसंद नही है.. अब की बार बोली तो पिछे घहुसेड दूँगा... समझी....!" प्रेम ने कहा और टूट चुकी श्वेता पर पिल पड़ा....

"भाई.. मैं इसकी ले लून तब तक....!" अजय अब पानी छ्चोड़ चुके लिंग को अंजलि से चटवा रहा था......

"उपर कुच्छ भी कर ले... नीचे हाथ नही लगाना इसको... बॉस ने मना किया है...!" प्रेम ने एक पल रुक कर कहा तो अंजलि तड़प उठी... 'आह' अपनी योनि को सलवार के उपर से ही छेड़ते हुए उसके मुँह से निकला......

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श्वेता का बुरा हाल हो चुका था... बुरी तरह 'हाए हाए' कर रही श्वेता को अब सुनील उल्टी करके चोद रहा था... प्रेम और अजय अंजलि को अपने साथ खड़ा करके सुनील द्वारा तैयार की गयी मूवी दिखा दिखा कर हंस रहे थे... श्वेता और अंजलि की शकल हर दृशय में बड़ी सॉफ सॉफ नज़र आ रही थी जबकि लड़कों के चेहरों को अवाय्ड करने की कोशिश की गयी थी.... सब कुच्छ समझ जाने के बाद अंजलि की आँखों में आँसू आ गये... अब जाकर वह समझी थी कि मनीषा क्यूँ उसको वहाँ से ले जाना चाहती थी..... पर अब तो 'वो' शिकार बन चुकी थी...

श्वेता अभी भी उनकी साज़िश से अंजान बिस्तर में पड़ी सूबक रही थी...

"ट्तूम.. इसका क्या करोगे...?" अंजलि ने बेचारी शकल बनाकर पूचछा....

"क्कुच्छ नही... तुम दोबारा आने से मना ना करो.. बस इसीलिए....!" प्रेम ने हंसते हुए जवाब दिया......

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सीमा भी कमरे में आ चुकी थी.... सारी बात समझने के बाद अब श्वेता के चेहरे पर भी हवाइयाँ उड़ रही थी....

"अर्रे यार... प्राब्लम क्या है... जब तुम्हारा चुड़ाने का मन करे तो तुम इनको बुला लेना... और जब किसी का तुम्हे चोदने का मंन करेगा तो ये तुम्हे बुला लेंगे... सो सिंपल.. तुम इतना दर क्यूँ रही हो....?" सीमा श्वेता के कंधे पर हाथ रखती हुई बोली....

"ववो.. वो तो ठीक है दीदी जी.. पर... ये फिल्म क्यूँ बनाई...!" श्वेता ज़रा सी हमदर्दी पाकर रोने सी लगी थी.....

"अब ये नाटक मत कर यार... हॉस्टिल चलने पर सब समझा दूँगी....!" सीमा ने झल्लते हुए कहा....

"तो चलो दीदी... जल्दी चलो....!" श्वेता के लिए वहाँ एक पल भी रुकना भारी हो रहा था.....

"ववो.. क्या है कि... अभी तो गाड़ी नही है यहाँ... कल सुबह चलेंगे या कल रात को....!" सीमा ने कहा.....

ये बात सुनकर तो दोनो पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा...,"पर कल तो मेरे घरवाले आने हैं दीदी.... आपने रात को ही वापस आने को बोला था...."

"मेरे भी..." अंजलि ने हां में हां की....

"ओहो.. जब मैं यहाँ हूँ तो तुम फिकर क्यूँ कर रहे हो.... मैं प्रिन्सिपल मेडम से कहलवा दूँगी.. बस! वो कुच्छ भी बोल देंगी....!" सीमा बोल ही रही थी कि डॉली दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी..,"सीमा!".. उसके साथ ही मनीषा खड़ी थी....

"हाँ... बोल.." सीमा पलट कर दरवाजे तक गयी.....

"बॉस ने बोला है कि आप सब अंजलि को छ्चोड़ कर नीचे आ जाओ... मनीषा मान गयी है... वो रात को अंजलि के साथ रहना चाहती है... इनको यहीं रहने देने को बोला है.....!"

"ठीक है..." सीमा कहकर मनीषा के पास गयी और उसके कंधे पर हाथ मारा..,"इतना सेनटी मत हुआ कर यार... कुच्छ नही होता इन्न बातों से... एंजाय ही तो करते हैं बस! जा अंदर..."

मनीषा बिना कोई जवाब दिए अंदर आ गयी... जैसे ही बाकी सब बाहर गये... डॉली ने कुण्डी लगाकर ताला लगा दिया.....

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"ले लिए मज़े? कर ली अपनी भी जिंदगी बर्बाद... क्या ज़रूरत थी तुझे यहाँ आने की...!" अकेली होते ही बेबस हो चुकी मनीषा अंजलि पर बरस पड़ी....

नशे का हल्का हल्का सुरूर अंजलि पर अब भी था... कमीज़ तो उसने निकाल ही रखा था... मनीषा की नियत का अंदाज़ा लगाकर वह सलवार खोलने की तैयारी करने लगी... वह खुद भी तो तड़प रही थी बहुत...

"ये क्या कर रही है तू...?" मनीषा ने उसको सलवार का नाडा खोल कर नीचे करते देखा तो वह गुर्रकार बोली...,"कमीज़ पहन ले चुपचाप... हो तो गया सत्यानाश... अब और क्या इरादा है....!"

अंजलि से कुच्छ बोलते ना बना.... वह सिर झुका कर एक पल खड़ी हुई और अचानक हड़बड़ा कर कमीज़ ढूँढने लगी......

"ये तूने क्या किया अंजू...?" मनीषा ने पास आकर अंजलि के कंधे थाम लिए और रोने सी लगी....

"आ... आज के बाद नही आउन्गि दीदी... ग़लती हो गयी...!"

"हुंग... आज के बाद नही आएगी... तुझे पता भी है तू किन लोगों के हत्थे चढ़ गयी है... तुझे शायद पता नही कि तरुण भी इन्ही लोगों के साथ काम करता था... वही मुझे अपने प्यार के जाल में फँसा कर यहाँ लाया था और मैं उसके मरने के बाद भी इस दलदल से निकल नही पाई हूँ... कैसे निकलेगी तू...? तुझे बचाने के लिए मैने उसका खून तक कर दिया और तू फिर भी...." मनीषा की आँखों से आँसुओं की झड़ी लगी हुई थी...

तरुण का कत्ल करने की बात सुनकर अंजलि फटी आँखों से मनीषा को देखती रह गयी...... अचानक उसको मानव का ख़याल आया...,"आपके पास मोबाइल है दीदी...?"

"ये इतने पागल नही हैं... 5 साल से इनके पास आते रहने के बावजूद में लाख कोशिश करके ये जान नही पाई हूँ कि 'बॉस' कौन है...." मनीषा अपना सिर पकड़ कर बैठ गयी....

"त्तोह.. तो क्या दीदी तरुण को आपने...?" अंजलि ने उसके पास बैठते हुए पूचछा...

"हाँ... तो क्या ग़लत किया...? उसने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी.. तुम्हारी, मीनू और पिंकी की करने वाला था.... बता.. बता ग़लत किया क्या मैने?" मनीषा को इस रूप में अंजलि ने पहली बार ही देखा था... रोते हुए.. नारी की तरह....

"नही दीदी.. आपने सही किया... पर ये लोग कौन हैं... तरुण ने आपको कैसे फँसाया.. पूरी बात बताओ ना मुझे....!" अंजलि ने मनीषा के कंधे पर सिर रख लिया.....

बड़ी मुश्किल से मनीषा अपने जज्बातों पर काबू पाती हुई बोलने को तैयार हुई.. धीरे से बिस्तेर से उठकर वह दीवार के पास जाकर खड़ी हुई उपर कोने में मकड़ी के जाले की तरफ उंगली से इशारा करके बोलना शुरू किया...," इस मकड़ी को देख रही हो अंजू? कितनी शांत और मासूम सी लग रही है... पर ऐसा है नही... इसकी वीभात्सा और कुत्सित शक्तियाँ इसके द्वारा बुने गये इस जाल में हैं... ये निसचिंत बैठी है... इसके अनुपम और अनोखे जाल के आकर्षण में बँध कर कोई ना कोई शिकार देर सवेर आ ही जाना है... इसका खेल तभी शुरू होगा... इस महीन से धागे से बने जाल में एक बार अगर शिकार फँस गया तो उसका बच कर निकलना असंभव है... शिकार बाहर निकलने के लिए जितना फड़फडाएगा; उतना ही उलझता जाएगा.... उसके बाद ये तुच्छ सी दिखने वाली मकड़ी, जब चाहे, जहाँ से चाहे शिकार के शरीर को नोचेगी... उसके एक एक अंग को पूरे इतमीनान से हजम करेगी.....

ये लोग इस मकड़ी की तरह हैं अंजू! इनकी मक्कारी का पता हम जैसे शिकार को इनके जाल में फँसने के बाद ही चलता है... उमंगों और आशाओं से भरी उभरती जवानी में प्यार होना कोई बड़ी बात नही है... किसी की भी प्यार भरी मुस्कुराहट कमसिन उमर में हमें उसके दिल के करीब ले जाती है... ये लोग अक्सर अपने घिनोने मकसद को पूरा करने के लिए 'प्यार' नाम का इस्तेमाल करते हैं.... प्यार से पैदा होता है सहज विश्वाश... विश्वाश जो हमें 'यार' की खुशी के लिए कुच्छ भी करने पर विवश कर देता है... झिझकते हुए ही सही, पर पहली बार 'उसके' सामने कपड़े उतारने पर भी...

तरुण ने भी मेरे साथ 5 साल पहले ऐसा ही छल किया... तब उसने ऐसा अपने किसी दोस्त के बहकावे में आकर किया था... पर बाद में उसको भी इसमें मज़ा आने लगा... अपनी किस्मत से अकेले ही टकराने का मंन बना चुकी मैं खेतों में काम करने अकेली ही जाती थी ... दिन में भी और कभी कभी रात में भी.... तरुण को लगा मुझे बड़ी आसानी से हासिल किया जा सकता है.. और उसने कर भी लिया... उसकी बड़ी बड़ी मनमोहक बातों के जाल में उलझ कर मैं एक दिन उसके साथ यहाँ तक पहुँच गयी.. बहला फुसला कर तरुण ने मेरे कौमार्य को यहीं पहली बार कमरे के सामने रौंदा था.... ये मुझे बाद में पता चला कि अब मेरी इज़्ज़त तरुण के अलावा किसी और के हाथ में भी है....

बहुत छट-पटाई.. पर कुच्छ भी ना कर सकी... इनके पास मेरे नंगे बदन के फोटो थे... तरुण मेरी कीमत लेकर भाग गया... और मुझे इस दलदल में सड़ने को छ्चोड़ गया... एक दम लचर!

ये जो कहते मुझे करना पड़ता... जहाँ कहते मुझे जाना पड़ता... सोना पड़ता! अपने चक्रव्युवहा में 'ये' लड़कियों को ही नही, तथाकथित इज़्ज़तदार और अमीर लोगों को भी फाँसते हैं.... ट्रेंड करने के बाद हमें उनके पास केमरा च्छुपाकर ले जाने को कहा जाता है... उनके साथ अपनी नंगी तस्वीरें उतारने को कहा जाता है... और फिर हमी से ये लोग उनके पास फोन करवाते हैं... ब्लॅकमेलिंग के लिए....

पहली बार मैं तरुण के कहने पर ही तुम्हे उठाकर चौपाल में ले गयी थी... वो देखना चाहता था कि तुम किस हद तक जा सकती हो..... पर जाने क्यूँ मुझे तुम्हे छ्छूते हुए तुम्हारे अंदर अपना अक्स महसूस हुआ... मुझे तुम्हारे कुंवारे शरीर से 'प्यार' सा हो गया..... मैं तुम्हे वहाँ पहुँचने नही देना चाहती थी जहाँ वो तुम्हे लेकर जाना चाहता था... इसीलिए मैने तुम्हारी 'काम' भावना को खुद ही शांत करने की कोशिश की..... मैं तुम्हारे और करीब आकर तुम्हे सब कुच्छ बता देना चाहती थी.... पर तुम कभी मेरे पास आई ही नही....

मीनू के लेटर्स उसने मुझे रखने के लिए दे रखे थे... उस रात उसने मुझे चौपाल में बुलाकर 'वो' लेटर्स मुझसे माँगे और अपना 'पूरा' प्लान मुझे बताया.... उसके प्लान में तुम्हारा नाम सुनकर मैं बौखला गयी और लेटर्स के साथ एक 'चाकू' भी ले गयी... लेटर्स उसको सौंप कर मैने तुम्हे इस सारे मामले से बचाए रखने की गुज़ारिश की, पर वो हंस कर वापस जाने के लिए पलटने लगा...

और मजबूरन जो सोचकर मैं वहाँ गयी थी, मैने वो कर दिया... बरसों पहले से सीने में धधक रही टीस अचानक पागलपन की लपटों में बदल गयी और मैने पिछे से उसका मुँह दबोच कर दनादन चाकू के वार उसकी छाती और पेट में कर दिए.... मैं बहुत डरी हुई थी.. पर हल्का सा संतोष भी था... अपना बदला लेने का और तुम्हारी जिंदगी बचाने का.....

हड़बड़ाई हुई मैं बाहर निकल कर अपने घर में घुसने ही वाली थी कि चौपाल के गेट पर आकर सोनू इधर उधर टहलता दिखाई दिया... मुझे लगा कहीं उसने मुझे देख ना लिया हो.... कुच्छ देर बाद 'वो' अंदर चला गया और थोड़ी ही देर बाद भागता हुआ बाहर निकला... मैने उसको किसी से कुच्छ ना कहने के लिए रोकने को आवाज़ भी लगाई पर 'वो' नही रुका.....

चौपाल में लोगों की लड़ाई सुन'ने वाली बात मैने इसीलिए फैलाई थी ताकि अगर सोनू ने मुझे देख लिया हो तो मैं कह सकूँ की मैं भी आवाज़ सुनकर ही वहाँ गयी थी.....सब कुच्छ ठीक हो गया था... तरुण को उसके किए की सज़ा मिल गयी और किसी को शक भी नही हुआ... पर फ़ायदा क्या हुआ.. मेरी तो जिंदगी पहले ही बर्बाद हो चुकी थी... जिसको बचाने के लिए मैने 'वो' सब किया... 'वो' आज मेरे सामने यहीं बैठी है..... इस दलदल में......

क्रमशः................

गतान्क से आगे..................

aadhi nangi Shweta Ajay ki baahon mein aate hi aankh band karke sisak uthi.... Uske madmast genhuye rang ke karare 'seb' Ajay ki najron ke saamne thirak se rahe the... Shweta apne nitambon aur nangi kamar par pahli baar jawaan hathon ki chubhan mahsoos karke bawli huyi ja rahi thi... Sirf ek baat thi jo ab tak uski samajh mein nahi aayi thi... Manisha ne Anju ko thappad maar kar lataad kyun lagaayi aur Uss aadmi ne Manisha ko revolver ke dum par bahar kyun bheja... Yahi karan tha ki masti mein rangi hone ke bawjood wah bhay ke maare kaanp bhi rahi thi....

"ttum.. ab kya karoge?" Kaanpti aawaj mein Shweta ne dhadak'te dil se Sawaal kiya....

"Jo tum karne aayi ho jaan... aur kya?" Ajay ne le jakar Shweta ko bistar par patak diya aur uske sath letkar uski chhatiyon se khelne laga...,"Karogi na?"

"aahaaan...." Apni chhatiyon ki ghundiyon ko kaskar bheenche jane se Shweta sisak uthi aur ajay ka hath hatakar unhe apne hathon mein chhupa liya...,"Par 'wo' ladki Anjali ko daant kyun rahi thi... yahan kuchh galat toh nahi hoga na...?"

"Chhodo na yaar... wo khud toh itne maje karti hai yahan aakar... darasal 'ye' uski behan hai... usko toh bura lagega hi na... tum hi batao.. tumhari koyi behan tumhe yahan dekh leti toh gussa karti ki nahi...!" Kahte huye Ajay ne uska naada kheench liya.....

"haan...!par inko toh bahar bhej do..." Shweta ne apni salwar pakad li....

"Chinta mat karo.. abhi bhai ne kya bola hai.. tum meri ho... aur koyi tumhe kuchh nahi kahega.. ye bus yahan maja lene ke liye khade hain..." Ajay ne aaswashan dete huye jawab diya aur ek baar fir salwar neeche karne ki koshish karne laga.....

Shweta ko maloom tha ki yahan ye apni marji se hi sab kuchh karenge... bhalaayi isi mein hai ki khushi khushi maje liye jaayein... Jaise hi ajay uski chhatiyon par jhuka... aankhein band kiye huye hi usne uttejana ke maare Ajay ka sir pakad kar apni chhatiyon se chipka liya aur apne nitambon ko upar uchka salwar ko nikal jane diya....

Iske sath hi hulke kaale baalon wali Shweta ki yoni sabke saamne beparda ho gayi... Faankon ke beech Ajay ki ungali ke rengne ke sath hi Shweta ne kasmasa kar apni jaanghein thodi si khol kar ungali ka swagat kiya...aur uski yoni ne chikna pani chhod diya....

"Pahle kiya hai kabhi?" Ajay ke hulka sa dabav dete hi ungali yoni mein sarrrr se ghus gayi thi...

"aahhhh... nahi..." Shweta ne sir patakte huye apne upar sawaar ho rahe pagalpan ka saboot diya aur jhooth bol diya....

"Jhooth mat bol yaar... main tera aadmi thode hi hoon... teri choot toh kah rahi hai ki tune kiya hai pahle bhi.....!" Ajay khela khaya ladka tha....

"Hhaan.. kiya hai...ek baar... tum baat kyun kar rahe ho... 'wo' karo na jaldi....!" Shweta ungali andar bahar hone se tadap uthi thi....

"Kyun nahi jaan... abhi lo... abhi maja deta hoon tumhe..." Ajay bistar par khada hokar apni pant utaarne laga.... Bistar se thodi doori par kamre mein lage parde ke peechhe Sunil ab camre ko achchhe se focus kar chuka tha...... Anjali asamanjhas mein thi ki kya kare aur kya nahi... wah neeras aankhon se kamre mein ho rahi har gatividhi par najarein gadaye dekh rahi thi....

Bina der kiye hi Ajay poori tarah nagan hokar masta chuki Shweta ki jaanghon ke beech baitha aur apne ling ko ek hi jhatke mein thikane laga diya......

"aaaah!" Shweta ki yoni ek baar mein hi poore ling ko hajam kar gayi thi... anand ke maare paagal si ho uthi Shweta apne nitambon ko shuruaat se hi uchhalne lagi....

"Poori mastayi huyi loundiya hai sali....!" Ajay ne uski chhatiyon ko pakad kar dhakke maarte huye mudkar Prem ki aur dekha.....

Darwaje par tainaat prem ne achanak Anjali ko apne paas aane ka ishara kiya....

"kkya?" Anjali sarak kar uske paas chali gayi....

"Lund choosna aata hai na?"

"kkya?" Anjali ne dohraya.....

"arey lund munh mein liya hai kya kabhi...?" Prem tanik uttejit swar mein bola toh Anjali ne najrein jhuka li....

"Neeche baith jao.... yahan..!" Prem ne pant ki jip khol kar anjali ko apne kadmon mein baithne ka ishara kiya aur apna tanaa hua ling bahar nikal liya....

"Dekh kya rahi hai janemann... choos isko ji bhar kar...!" Anjali baith kar usko ghoorne lagi toh Prem ne aage badh kar apna ling uske honton se sata diya... Anjali ko aitraaj bhi nahi tha... Usne hont khole aur 'gapp' se ling ko apne honton mein daboch liya.....

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Jaise hi Ajay Shweta ke badan ko poori tarah tod kar rakh dene ke baad haanfta hua uss'se alag hua.. Prem uski jagah lene ko aatur ho utha...."Hat pichhe....!" Prem ne Anjali ko lagbhag dhakel hi diya... aur uchhal kar Shweta ki jaanghon mein ja baitha....

"aah aur nahi pls....!" Shweta gidgidati huyi boli...,"Dukh rahi hai... tum Anjali ke sath kar lo.. fir hamein jana hai...!"

"dekh chhori.. chodte huye mujhe toka taki pasand nahi hai.. ab ki baar boli toh pichhe ghhused doonga... samjhi....!" Prem ne kaha aur toot chuki Shweta par pil pada....

"Bhai.. main iski le loon tab tak....!" Ajay ab pani chhod chuke ling ko Anjali se chatwa raha tha......

"upar kuchh bhi kar le... neeche hath nahi lagana isko... boss ne mana kiya hai...!" Prem ne ek pal ruk kar kaha toh Anjali tadap uthi... 'aah' apni yoni ko salwar ke upar se hi chhedte huye uske munh se nikla......

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Shweta ka bura haal ho chuka tha... buri tarah 'haye haye' kar rahi Shweta ko ab Sunil ulti karke chod raha tha... Prem aur Ajay anjali ko apne saath khada karke Sunil dwara taiyaar ki gayi movie dikha dikha kar hans rahe the... Shweta aur Anjali ki shakal har drishay mein badi saaf saaf najar aa rahi thi jabki ladkon ke chehron ko avoid karne ki koshish ki gayi thi.... Sab kuchh samajh jane ke baad Anjali ki aankhon mein aansoo aa gaye... ab jakar wah samajhi thi ki Manisha kyun usko wahan se le jana chahti thi..... par ab toh 'wo' shikaar ban chuki thi...

Shweta abhi bhi unki sazish se anjaan bistar mein padi subak rahi thi...

"ttum.. iska kya karoge...?" Anjali ne bechari shakal banakar poochha....

"kkuchh nahi... tum dobara aane se mana na karo.. bus isiliye....!" Prem ne hanste huye jawaab diya......

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Seema bhi kamre mein aa chuki thi.... sari baat samajhne ke baad ab Shweta ke chehre par bhi hawaayiyan udd rahi thi....

"arrey yaar... problem kya hai... jab tumhara chudne ka man karey toh tum inko bula lena... aur jab kisi ka tumhe chodne ka mann karega toh ye tumhe bula lenge... so simple.. tum itna dar kyun rahi ho....?" Seema Shweta ke kandhe par hath rakhti huyi boli....

"wwo.. wo toh theek hai didi ji.. par... ye film kyun banayi...!" Shweta jara si hamdardi pakar rone si lagi thi.....

"ab ye natak mat kar yaar... hostel chalne par sab samjha doongi....!" Seema ne jhallate huye kaha....

"toh chalo didi... jaldi chalo....!" Shweta ke liye wahan ek pal bhi rukna bhari ho raha tha.....

"wwo.. kya hai ki... abhi toh gadi nahi hai yahan... kal subah chalenge ya kal raat ko....!" Seema ne kaha.....

Ye baat sunkar toh dono par jaise pahad toot pada...,"Par kal toh mere gharwale aane hain didi.... aapne raat ko hi wapas aane ko bola tha...."

"mere bhi..." Anjali ne haan mein haan ki....

"Oho.. jab main yahan hoon toh tum fikar kyun kar rahe ho.... main Principal madam se kahalwa doongi.. bus! wo kuchh bhi bol dengi....!" Seema bol hi rahi thi ki Dolly darwaje par aakar khadi ho gayi..,"seema!".. uske sath hi Manisha khadi thi....

"haan... bol.." Seema palat kar darwaje tak gayi.....

"boss ne bola hai ki aap sab Anjali ko chhod kar neeche aa jao... Manisha maan gayi hai... wo raat ko Anjali ke sath rahna chahti hai... Inko yahin rahne dene ko bola hai.....!"

"theek hai..." Seema kahkar Manisha ke paas gayi aur uske kandhe par hath maara..,"Itna senty mat hua kar yaar... kuchh nahi hota inn baaton se... enjoy hi toh karte hain bus! ja andar..."

Manisha bina koyi jawaab diye andar aa gayi... jaise hi baki sab bahar gaye... Dolly ne kundi lagakar tala laga diya.....

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"Le liye maje? kar li apni bhi jindagi barbaad... kya jarurat thi tujhe yahan aane ki...!" Akeli hote hi bebas ho chuki Manisha Anjali par baras padi....

Nashe ka hulka hulka suroor Anjali par ab bhi tha... kameej toh usne nikal hi rakha tha... Manisha ki niyat ka andaja lagakar wah salwaar kholne ki taiyari karne lagi... wah khud bhi toh tadap rahi thi bahut...

"ye kya kar rahi hai tu...?" Manisha ne usko salwar ka nada khol kar neeche karte dekha toh wah gurrakar boli...,"Kameej pahan le chupchap... ho toh gaya satyanash... ab aur kya iraada hai....!"

Anjali se kuchh bolte na bana.... wah sir jhuka kar ek pal khadi huyi aur achanak hadbada kar kameej dhoondhne lagi......

"Ye tune kya kiya Anju...?" Manisha ne paas aakar Anjali ke kandhe thaam liye aur rone si lagi....

"aa... aaj ke baad nahi aaungi didi... galti ho gayi...!"

"hunh... aaj ke baad nahi aayegi... tujhe pata bhi hai tu kin logon ke hatthe chadh gayi hai... Tujhe shayad pata nahi ki Tarun bhi inhi logon ke sath kaam karta tha... wahi mujhe apne pyar ke jaal mein fansa kar yahan laya tha aur main uske marne ke baad bhi iss daldal se nikal nahi payi hoon... kaise nikalegi tu...? Tujhe bachane ke liye maine uska khoon tak kar diya aur tu fir bhi...." Manisha ki aankhon se aansuon ki jhadi lagi huyi thi...

Tarun ka katl karne ki baat sunkar Anjali fati aankhon se Manisha ko dekhti rah gayi...... achanak usko manav ka khayal aaya...,"aapke paas mobile hai didi...?"

"Ye itne pagal nahi hain... 5 saal se inke paas aate rahne ke bawjood mein lakh koshish karke ye jaan nahi payi hoon ki 'boss' koun hai...." Manisha apna sir pakad kar baith gayi....

"ttoh.. toh kya didi Tarun ko aapne...?" Anjali ne uske paas baithte huye poochha...

"haan... toh kya galat kiya...? usne meri jindagi barbaad kar di.. tumhari, meenu aur Pinky ki karne wala tha.... bata.. bata galat kiya kya maine?" Manisha ko iss roop mein Anjali ne pahli baar hi dekha tha... rote huye.. nari ki tarah....

"nahi didi.. aapne sahi kiya... par ye log koun hain... Tarun ne aapko kaise fansaya.. poori baat batao na mujhe....!" Anjali ne Manisha ke kandhe par sir rakh liya.....

Badi mushkil se Manisha apne jajbaaton par kabu pati huyi bolne ko taiyaar huyi.. dheere se bister se uthkar wah deewar ke paas jakar khadi huyi upar kone mein makdi ke jaale ki taraf ungali se ishara karke bolna shuru kiya...," Iss makdi ko dekh rahi ho Anju? Kitni shant aur masoom si lag rahi hai... par aisa hai nahi... iski vibhatsa aur kutsit shaktiyan iske dwara bune gaye iss jaal mein hain... Ye nischint baithi hai... iske anupam aur anokhe jaal ke aakarshan mein bandh kar koyi na koyi shikaar der sawer aa hi jana hai... iska khel tabhi shuru hoga... iss maheen se dhaage se bane jaal mein ek baar agar shikaar fans gaya toh uska bach kar nikalna asambhav hai... shikaar bahar nikalne ke liye jitna fadfadayega; utna hi ulajhta jayega.... Uske baad ye tuchh si dikhne wali makdi, jab chahe, jahan se chahe shikaar ke shareer ko nochegi... Uske ek ek ang ko poore itminaan se hajam karegi.....

Ye log iss makdi ki tarah hain Anju! Inki makkari ka pata hum jaise shikaar ko inke jaal mein fansne ke baad hi chalta hai... umangon aur aashaaon se bhari ubharti Jawani mein pyar hona koyi badi baat nahi hai... Kisi ki bhi pyar bhari muskurahat kamsin umar mein hamein uske dil ke kareeb le jati hai... Ye log aksar apne ghinone maksad ko poora karne ke liye 'pyar' naam ka istemaal karte hain.... Pyar se paida hota hai sahaj vishvash... vishvash jo hamein 'yaar' ki khushi ke liye kuchh bhi karne par vivash kar deta hai... jhijhakte huye hi sahi, par pahli baar 'uske' saamne kapde utaarne par bhi...

Tarun ne bhi mere sath 5 saal pahle aisa hi chhal kiya... tab usne aisa apne kisi dost ke bahkaawe mein aakar kiya tha... par baad mein usko bhi ismein maja aane laga... Apni kismat se akele hi takrane ka mann bana chuki main kheton mein kaam karne akeli hi jati thi ... din mein bhi aur kabhi kabhi raat mein bhi.... Tarun ko laga mujhe badi aasani se hasil kiya ja sakta hai.. aur usne kar bhi liya... uski badi badi manmohak baaton ke jaal mein ulajh kar main ek din uske sath yahan tak pahunch gayi.. bahla fusla kar Tarun ne mere koumarya ko yahin pahli baar camrey ke saamne rounda tha.... ye mujhe baad mein pata chala ki ab meri ijjat Tarun ke alawa kisi aur ke hath mein bhi hai....

Bahut chhatpatayi.. par kuchh bhi na kar saki... inke paas mere nange badan ke photo the... Tarun meri keemat lekar bhag gaya... aur mujhe iss daldal mein sadne ko chhod gaya... ek dum lachar!

Ye jo kahte mujhe karna padta... jahan kahte mujhe jana padta... sona padta! apne chakravyuvha mein 'ye' ladkiyon ko hi nahi, tathakathit ijjatdaar aur ameer logon ko bhi fansate hain.... Trained karne ke baad hamein unke paas camra chhupakar le jane ko kaha jata hai... Unke sath apni nangi tasveerein utaarne ko kaha jata hai... aur fir hami se ye log unke paas fone karwaate hain... blackmailing ke liye....

Pahli baar main Tarun ke kahne par hi tumhe uthakar choupal mein le gayi thi... Wo dekhna chahta tha ki tum kis had tak ja sakti ho..... Par jane kyun mujhe tumhe chhoote huye tumhare andar apna aks mahsoos hua... mujhe tumhare kunware shareer se 'pyar' sa ho gaya..... Main tumhe wahan pahunchne nahi dena chahti thi jahan wo tumhe lekar jana chahta tha... Isiliye maine tumhari 'Kaam' bhawna ko khud hi shant karne ki koshish ki..... Main tumhare aur kareeb aakar tumhe sab kuchh bata dena chahti thi.... par tum kabhi mere paas aayi hi nahi....

Meenu ke letters usne mujhe rakhne ke liye de rakhe the... Uss raat usne mujhe choupal mein bulakar 'wo' letters mujhse maange aur apna 'poora' plan mujhe bataya.... Uske plan mein tumhara naam sunkar main boukhla gayi aur letters ke sath ek 'chaku' bhi le gayi... Letters usko sounp kar maine tumhe iss sare maamle se bachaye rakhne ki gujarish ki, par wo hans kar wapas jane ke liye palatne laga...

Aur majbooran jo sochkar main wahan gayi thi, maine wo kar diya... Barson pahle se seene mein dhadhak rahi tees achanak pagalpan ki lapton mein badal gayi aur maine pichhe se uska munh daboch kar danadan chaku ke vaar uski chhati aur pate mein kar diye.... Main bahut dari huyi thi.. par hulka sa santosh bhi tha... apna badla lene ka aur tumhari jindagi bachane ka.....

Hadbadayi huyi main bahar nikal kar apne ghar mein ghusne hi wali thi ki choupal ke gate par aakar Sonu idhar udhar tahalta dikhayi diya... mujhe laga kahin usne mujhe dekh na liya ho.... kuchh der baad 'wo' andar chala gaya aur thodi hi der baad bhagta hua bahar nikla... maine usko kisi se kuchh na kahne ke liye rokne ko aawaj bhi lagayi par 'wo' nahi ruka.....

Choupal mein logon ki ladayi sun'ne wali baat maine isiliye failayi thi taki agar Sonu ne mujhe dekh liya ho toh main kah sakoon ki main bhi aawaj sunkar hi wahan gayi thi.....Sab kuchh theek ho gaya tha... Tarun ko uske kiye ki saza mil gayi aur kisi ko shak bhi nahi hua... Par fayda kya hua.. meri toh jindagi pahle hi barbaad ho chuki thi... jisko bachane ke liye maine 'wo' sab kiya... 'wo' aaj mere saamne yahin baithi hai..... iss daldal mein......














आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
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`·.¸.·´ -- raj












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