Sunday, May 2, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--6

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बाली उमर की प्यास पार्ट--6

गतांक से आगे.......................
मुझे रज़ाई ओढ़ कर लेते हुए आधा घंटा हो चुका था.. पर 'वो' अंजान लड़की मेरे दिमाग़ से निकल ही नही रही थी.. मुझे 24 घंटे बाद भी उसका सिर अपनी जांघों के बीच महसूस हो रहा था.. मेरी योनि पर बिच्छू से चल रहे थे.. मानो वह अब भी मेरी योनि को लपर लपर अपनी जीभ से चाट रही थी... ऐसे मैं नींद कैसे आती...

उपर से तरुण पता नही अँग्रेज़ी में क्या क्या बके जा रहा था... मैं यही सोच रही थी कि कब तरुण यहाँ से निकल कर जाए और मीनू के सोने के बाद मैं अपनी उंगली से ही काम चला कर सौ....

अचानक मुझे किताब बंद होने की आवाज़ आई.. मैं खुश हो गयी....मैं दरवाजा खुलकर बंद होने का इंतज़ार कर ही रही थी कि करीब एक-2 मिनिट के बाद तरुण की आवाज़ आई.. आवाज़ थोड़ी धीमी थी.. पर इतनी भी नही की मुझे सुनाई ना देती

"तुम्हारी रज़ाई में आ जाउ मीनू?"

पहले तरुण की, और फिर मीनू का ये जवाब सुनकर तो मैं अचरज के मारे सुन्न रह गयी.....

"ष्ह्ह्ह्ह.... धात.. क्या कह रहे हो... आज नही....यहाँ ये दोनो हैं आज.. कोई उठ गयी तो....."

मैं तो अपना कलेजा पकड़कर रह गयी.. मैं इनके बारे में जो कुच्छ सोचती थी.. सब सच निकला.....

"कुच्छ नही होता.. मैं लाइट बंद कर देता हूँ.. कोई उठ गयी तो मैं तुम्हारी रज़ाई में ही सो जाउन्गा... तुम कह देना मैं चला गया... बस, एक बार.. प्लीज़!" तरुण ने धीरे से भीख सी माँगते हुए कहा......

"नही.. तरुण.. तुम तो फँसने का काम कर रहे हो.. सिर्फ़ आज की ही तो बात है.. जब अंजू यहाँ नही होगी तो पिंकी भी उपर चली जाएगी... समझा करो जानू!" मीनू ने निहायत ही मीठी और धीमी आवाज़ में उस'से कहा....

"जानू?" सुनते ही मेरे कान चौकन्ने हो गये.. अभी तक मैं सिर्फ़ सुन रही थी.. जैसे ही मीनू ने 'तरुण' के लिए जान शब्द का इस्तेमाल किया.. मैं उच्छलते उच्छलते रह गयी... आख़िरकार मेरा शक सही निकला... मेरा दिल और ज़्यादा धड़कने लगा.. मुझे उम्मीद थी कि और भी राज बाहर निकल सकते हैं...

"प्लीज़.. एक बार.." तरुण ने फिर से रिक्वेस्ट की...," तुम्हारे साथ लटेकर एक किस लेने में मुझे टाइम ही कितना लगेगा.....

"नही! आज नही हो सकता! मुझे पता है तुम एक मिनिट कहकर कितनी देर चिपके रहते हो..... आज बिल्कुल नही..." इस बार मीनू ने सॉफ मना कर दिया.....

"मैं समझ गया.. तुम मुझे क्यूँ चुम्मि दोगि..? मैं बस यही देखना चाह रहा था... तुम तो आजकल उस कामीने सोनू के चक्कर में हो ना!" तरुण अचानक उबाल सा खा गया... उसका लहज़ा एकद्ूम बदल गया....

"क्या बकवास कर रहे हो तुम.. मुझे सोनू से क्या मतलब?" मीनू चौंक पड़ी... मेरी समझ में नही आया कि किस सोनू की बात हो रही है....

"आज तुम्हारी सोनू से क्या बात हुई थी?" तरुण ने बदले हुए लहजे में ही पूचछा....

"मैं कभी बात नही करती उस'से...! तुम्हारी कसम जान!" मीनू उदास सी होकर बोली.. पर बहुत धीरे से....

"मैं चूतिया हूँ क्या? मैं तुमसे प्यार करता हूँ.. इसका मतलब ये थोड़े ही है कि तुम मेरी कसम खा खा कर मेरा ही उल्लू बनाती रहो.... य्ये.. अंजू भी पहले दिन ही मुझसे चिपकने की कोशिश कर रही थी... कभी पूच्छ कर देखना, मैने इसको क्या कहा था.. मैने तुम्हे अगले दिन ही बता दिया था और फिर इनके घर जाने से मना भी कर दिया... मैं तुम्हे पागलों की तरह प्यार करता रहूं.. और तुम मुझे यूँ धोखा दे रही हो... ये मैं सहन नही कर सकता..." तरुण रह रह कर उबाल ख़ाता रहा.. मैं अब तक बड़े शौक से चुपचाप लेती उनकी बात सुन रही थी..... पर तरुण की इस बात पर मुझे बड़ा गुस्सा आया.. साले कुत्ते ने मेरी बात मीनू को बता दी... पर मैं खुश थी.. अब बनाउन्गि इसको 'जान!'

खैर मैं साँस रोके उनकी बात सुनती रही... मैं पूरी कोशिश कर रही थी कि उनकी रसीली लड़ाई का एक भी हिस्सा मेरे कानो से ना बच पाए.....

"मैं भी तो तुमसे इतना ही प्यार करती हूँ जान.. तुमसे पूच्छे बिना तो मैं कॉलेज के कपड़े पहन'ने से भी डरती हूँ.. कहीं मैं ऐसे वैसे पहन लूँ और फिर तुम सारा दिन जलते रहो..." मीनू को जैसे उसको सफाई देनी ज़रूरी ही थी.. लात मार देती साले कुत्ते को.. अपने आप डूम हिलता मेरे पास आता..

"तुमने सोनू को आज एक कागज और गुलाब का फूल दिया था ना?" तरुण ने दाँत से पीसते हुए कहा....

"क्या? ये क्या कह रहे हो.. आज तो वो मेरे सामने भी नही आया... मैं क्यूँ दूँगी उसको गुलाब?" मीनू तड़प कर बोली.....

"तुम झूठ बोल रही हो.. तुम मेरे साथ घिनौना मज़ाक कर रही हो.. रमेश ने देखा है तुम्हे उसको गुलाब देते हुए....." तरुण अपनी बात पर अड़ा रहा....

मीनू ने फिर से सफाई देना शुरू किया.. ज्यों ज्यों मामला गरम होता जा रहा था... दोनो की आवाज़ कुच्छ तेज हो गयी थी...,"मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो.. इसीलिए मेरा नाम कहीं झूठा भी आने पर तुम सेंटी हो जाते हो.... इसीलिए इतनी छ्होटी सी बातों पर भी नाराज़ हो जाते हो.... पर मैं भी तो तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ... मेरा विस्वास करो! मैने आज उसको देखा तक नही.... मेरी सोनू से कितने दीनो से कोई बात तक नही हुई.. लेटर या फूल का तो सवाल ही पैदा नही होता.. तुम्हारे कहने के बाद तो मैने सभी लड़कों से बात ही करनी छ्चोड़ दी है"

"अच्च्छा... तो क्या वो ऐसे ही गाता फिर रहा है कॉलेज में... वो कह रहा था कि तुमने आज उसको लव लेटर के साथ एक गुलाब भी दिया है...." तरुण की धीमी आवाज़ से भी गुस्सा सॉफ झलक रहा था.....

"बकवास कर रहा है वो.. तुम्हारी कसम! तुम उसको वो लेटर दिखाने को बोल दो.. पता नही तुम कहाँ कहाँ से मेरे बारे में उल्टा सीधा सुन लेते हो...." मीनू ने भी थोड़ी सी नाराज़गी दिखाई...

"मैने बोला था साले मा के.... पर वो कहने लगा कि तुमने उस लेटर में मुझे 'वो' ना दिखाने का वादा किया है.. रमेश भी बोल रहा था कि उसने भी तुम्हे उसको चुपके से गुलाब का फूल देते हुए देखा था... अब सारी दुनिया को झूठी मान कर सिर्फ़ तुम पर ही कैसे विस्वास करता रहूं...?" तरुण ने नाराज़गी और गुस्से के मिश्रित लहजे में कहा....

"रमेश तो उसका दोस्त है.. वो तो उसके कहने से कुच्छ भी बोल देगा... तुम प्लीज़ ये बार बार गाली मत दो.. मुझे अच्छे नही लगते तुम गाली देते हुए... और फिर इनमें से कोई उठ गयी तो.. तुम सिर्फ़ मुझ पर ही विश्वास नही करते... बाकी सब पर इतनी जल्दी कैसे कर लेते हो.....?" मीनू अब तक रोने सी लगी थी... पर तरुण की टोन पर इसका कोई असर सुनाई नही पड़ा......

"तुम हमेशा रोने का नाटक करके मुझे एमोशनल कर देती हो.. पर आज मुझ पर इसका कोई असर नही होने वाला.. क्यूंकी आज उसने जो बात मुझे बताई है.. अगर वा सच मिली तो मैं तो मर ही जाउन्गा!" तरुण ने कहा....

"अब और कौनसी बात कह रहे हो...?" मीनू सूबक'ते हुए बोली....

मैं मंन ही मंन इस तरह से खुश हो रही थी मानो मुझे कोई खजाना हाथ लग गया हो.. मैं साँस रोके मीनू को सूबक'ते सुनती रही.....

"अब रोने से मैं तुम्हारी करतूतों को भूल नही जाउन्गा... मैं तेरी... देख लेना अगर वो बात सच हुई तो..." तरुण ने दाँत पीसते हुए कहा.....

मीनू रोते रोते ही बोलने लगी," अब मैं... मैं तुम्हे अपना विश्वास कैसे दिल्वाउ बार बार... तुम तो इतने शक्की हो कि मुंडेर पर यूँही खड़ी हो जाउ तो भी जल जाते हो... मैने तुम्हे खुश करने के लिए सब लड़कों से बात करनी छ्चोड़ दी.... अपनी पसंद के कपड़े पहन'ने छ्चोड़ दिए... तुमने मुझे अपने सिवाय किसी के साथ हंसते भी नही देखा होगा.. जब से तुमने मुझे मना किया है....
और तुम.. पता नही रोज कैसी कैसी बातें उठाकर ले आते हो... तुम्हारी कसम अगर मैने किसी को आज तक तुम्हारे सिवाय कोई लेटर दिया हो तो... वो इसीलिए जल रहा होगा, क्यूँ कि उसके इतने दिनों तक पिछे पड़ने पर भी मैने उसको भाव नही दिए.... और क्यूंकी उसको पता है कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ... वो तो जाने क्या क्या बकेगा... तुम मेरी बात का कभी विश्वास क्यूँ नही करते...." मीनू जितनी देर बोलती रही.. सुबक्ती भी रही!

"वो कह रहा था कि... कि उसने तुम्हारे साथ प्यार किया है... और वो भी इतने गंदे तरीके से कह रहा था कि....." तरुण बीच में ही रुक गया....

"तो? मैं क्या कर सकती हूँ जान.. अगर वो या कोई और ऐसा कहेगा तो.. मैं दूसरों का मुँह तो नही पकड़ सकती ना... पर मुझे इस'से कोई मतलब नही... मैने सिर्फ़ तुमसे प्यार किया है.. !" मीनू कुच्छ रुक कर बोली...

शायद वो समझी नही थी कि तरुण का मतलब क्या है.. पर मैं समझ गयी थी...... सच कहूँ तो मेरा भी दिल नही मान रहा था कि मीनू ने किसी के साथ ऐसा किया होगा... पर क्या पता... कर भी लिया हो...सोचने को तो मैं इन्न दोनो को इकट्ठे देखने से पहले मीनू को किसी के साथ भी नही इस तरह नही सोच सकती थी.. और आज देखो.......

"वो प्यार नही!" तरुण झल्ला कर बोला....

"तो? और कौनसा प्यार?" मीनू को शायद अगले ही पल खुद ही समझ आ गया और वो चौंकते हुए बोली...," क्या बकवास कर रहे हो... मेरे बारे में ऐसा सोच भी कैसे लिया तुमने... मैं आज तक तुम्हारे साथ भी उस हद तक नही गयी.. तुम्हारे इतनी ज़िद करने पर भी.... और तुम उस घटिया सोनू के कहने पर मान गये.."

"पर उसने कहा है कि वो सबूत दे सकता है... और फिर... उसने दिया भी है....."

"क्या सबूत दिया है.. बोलो?" मीनू की आवाज़ हैरानी और नाराज़गी भरी थी...वह चिड़ सी गयी थी.. तंग आ गयी थी शायद ऐसी बातों से....


"उसने बोला कि अगर मुझे यकीन उसकी बात का नही है तो.... नही.. मैने नही बता सकता.." कहकर तरुण चुप हो गया...

"ये क्या बात हुई? मैं अब भी कहती हूँ कि उस घटिया लड़के की बातों में आकर अपना दिमाग़ खराब मत करो... पर अगर तुम्हे मेरी बात का विस्वास नही हो रहा तो बताओ उसने क्या सबूत दिया है! तुम यूँ बिना बात के ही अगर हर किसी की बात का विस्वास करते रहे तो.... बताओ ना.. क्या सबूत दिया है उसने?" मीनू अब अपने को पाक सॉफ साबित करने के लिए खुद ही सबूत माँग रही थी....

मेरा मंन विचलित हो गया.. मुझे डर था कहीं वह सबूत को बोल कर बताने की बजाय 'दिखा' ना दे.. और मैं सबूत देखने से वंचित ना रह जाउ.. इसीलिए मैने उनकी और करवट लेकर हुल्की सी रज़ाई उपर उठा ली.. पर दोनो अचानक चुप हो गये...

"ष्ह..." मीनू की आवाज़ थी शायद.. मुझे लगा खेल बिगड़ गया.. कहीं ये अब बात करना बंद ना कर दें.. मुझे रज़ाई के उपर उठने से बने छ्होटे से छेद में से सिर्फ़ मीनू के हाथ ही दिखाई दे रहे थे....

शुक्रा है थोड़ी देर बाद.. तरुण वापस अपनी बात पर आ गया....

"देख लो.. तुम मुझसे नाराज़ मत होना.. मैं वो ही कह दूँगा जो उसने कहा है..." तरुण ने कहा....

"हां.. हां.. कह दो.. पर जल्दी बताओ.. मेरे सिर में दर्द होने लगा है.. ये सब सोच सोच कर.. अब जल्दी से इस किस्से को ख़तम करो.. और एक प्यारी सी क़िस्सी लेकर खुश हो जाओ.. आइ लव यू जान! मैं तुमसे ज़्यादा प्यार दुनिया में किसी से नही करती.. पर जब तुम्हारा ऐसा मुँह देखती हूँ तो मेरा दिमाग़ खराब हो जाता है...." मीनू नॉर्मल सी हो गयी थी....

"सोनू कह रहा था कि ......उसने अपने खेत के कोतड़े में...... तुम्हारी ली थी एक दिन...!" तरुण ने झिझकते हुए अपनी बात कह दी....

"खेत के कोतड़े में? क्या ली थी?" मीनू या तो सच में ही नादान थी.. या फिर वो बहुत शातिर थी.. उसने सब कुच्छ इस तरह से कहा जैसे उसकी समझ में बिल्कुल नही आया हो कि एक जवान लड़का, एक जवान लड़की की; खेत के कोतड़े में और क्या लेता है भला.....

"मैं नाम ले दूं?" मुझे पता था कि तरुण ने किस चीज़ का नाम लेने की इजाज़त माँगी है....

"हां.. बताओ ना!" मीनू ने सीधे सीधे कहा....

"वो कह रहा था कि उसने खेत के कोतड़े में........ तेरी चूत मारी थी.." ये तरुण ने क्या कह दिया.. उसने तो गूगली फैंकते फैंकते अचानक बआउन्सर ही जमा दिया.. मुझे ऐसा लगा जैसे उसका बआउन्सर सीधा मेरी योनि से टकराया हो.. मेरी योनि तरुण के मुँह से 'चूत' शब्द सुनकर अचानक लिसलीसी सी हो गयी..

"धात.. ये क्या बोल रहे हो तुम.. शर्म नही आती.." मीनू की आवाज़ से लगा जैसे वो शर्म के मारे पानी पानी हो गयी हो.. अगले ही पल वो लेट गयी और अपने आपको रज़ाई में ढक लिया.....

"अब ऐसा क्यूँ कर रही हो.. मैने तो पहले ही कहा था कि बुरा मत मान'ना.. पर तुम्हारे शरमाने से मेरे सवाल का जवाब तो नही मिल जाता ना... सबूत तो सुन लो..." तरुण ने कहते हुए उसकी रज़ाई खींच ली...

मुझे मीनू का चेहरा दिखाई दिया.. वो शर्म के मारे लाल हो चुकी थी.. उसने अपने चेहरे को हाथों से और कोहनियों से अपनी मेरे जितनी ही बड़ी गोल मटोल चूचियों को छिपा रखा था....

"मुझे नही सुन'नि ऐसी घटिया बात.. तुम्हे जो सोचना है सोच लो... मेरी रज़ाई वापस दो..." मीनू गिड़गिदते हुए बोली....

पर अब तरुण पूरी तरह खुल गया लगता था... उसने मीनू की बाहें पकड़ी और उसको ज़बरदस्ती बैठा दिया.. बैठने के बाद मुझे मीनू का चेहरा दिखना बंद हो गया.. हां.. क्रीम कलर के लोवर में छिपि उसकी गुदाज जांघें मेरी आँखों के सामने थी...

"तुम्हे मेरी बात सुन'नि ही पड़ेगी.. उसने सबूत ये दिया है कि तुम्हारी.. चूत की दाईं 'पपोती' पर एक तिल है.. मुझे बताओ कि ये सच है या नही..." तरुण ने पूरी बेशर्मी दिखाते हुए गुस्से से कहा....

'पपोती'.. मैने ये शब्द पहली बार उसी के मुँह से सुना था.. शायद वो योनि की फांकों को 'पपोती कह रहा था....

"मुझे नही सुन'ना कुच्छ.. तुम्हे जो लगे वही मान लो.. पर मेरे साथ ऐसी बकवास बातें मत करो..." मुझे ऐसा लगा जैसे मीनू अपने हाथों को छुड़ाने का प्रयत्न कर रही है.. पर जब वो ऐसा नही कर पाई तो अंदर ही अंदर सुबकने लगी....

"हट, साली कुतिया.. दूसरों के आगे नंगी होती है और मुझसे प्यार का ढोंग करती है.. अगर तुम इतनी ही पाक सॉफ हो तो बताती क्यूँ नही 'वहाँ' तिल है कि नही... ड्रम्मा तो ऐसे कर रही है जैसे 8-10 साल की बच्ची हो.. जी भर कर गांद मरा अपनी; सोनू और उसके यारों से.. मैं तो आज के बाद तुझ पर थूकूंगा भी नही... तेरे जैसी मेरे आगे पिछे हज़ार घूमती हैं.. अगर दिल किया तो अंजू की मार लूँगा.. ये तो तुझसे भी सुंदर है..." तरुण थूक गटकता हुआ बोला और शायद खड़ा हो गया..

जाने तरुण क्या क्या बक' कर चला गया.. पर उसने जो कुच्छ भी कहा.. मुझे एक बात तो सच में बहुत प्यारी लगी ' अंजू की मार लूँगा.. ये तो तुझसे भी सुन्दर है'

उसके जाने के बाद मीनू काफ़ी देर तक रज़ाई में घुस कर सिसकती रही.. 5-10 मिनिट तक मैं कुच्छ नही बोली.. पर अब मेरे मामले के बीच आकर मज़े लेने का टाइम हो गया था....

मैं अंगड़ाई सी लेकर अपनी आँखें मसल्ति हुई रज़ाई हटा कर बैठ गयी.. मेरे उठने का आभास होते ही मीनू ने एकद्ूम से अपनी सिसकियों पर काबू पाने की कोशिश की.. पर वो ऐसा ना कर पाई और सिसकियाँ इकट्ठी हो होकर और भी तेज़ी से निकलने लगी....

"क्या हुआ दीदी..?" मैने अंजान बन'ने का नाटक करते हुए उसके चेहरे से रज़ाई हटा दी...

मेरा चेहरा देखते ही वह अंगारों की तरह धधक उठी..," कुच्छ नही.. कल से तुम हमारे घर मत आना! बस..." उसने गुस्से से कहा और वापस रज़ाई में मुँह दूबका कर सिसकने लगी....

उसके बाद मेरी उस'से बोलने की हिम्मत ही नही हुई.. पर मुझे कोई फ़र्क नही पड़ा.. मैने आराम से रज़ाई औधी और तरुण के सपनों में खो गयी.. अब मुझे वहीं कुच्छ उम्मीद लग रही थी....

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अगले दिन भी मुझे आना ही था.. सो मैं आई.. बुल्की पहले दिनों से और भी ज़्यादा साज धज कर.. मीनू ने मुझसे बात तक नही की.. उसका मूड उखड़ा हुआ था.. हां.. तरुण उस दिन कुच्छ खास ही लाड-प्यार से मुझे पढ़ा रहा था.. या तो उसको जलाने के लिए.. या फिर मुझे पटाने के लिए....

"चलो अंजू! तुम्हे घर छ्चोड़ दूँ... मुझे फिर घर जाना है...!" चाची के जाते ही तरुण खड़ा हो गया....

"दीदी को नही पधाओगे क्या? आज!" मैने चटखारा लिया....

"नही!" तरुण ने इतना ही कहा....

"पर.. पर मुझे कुच्छ ज़रूरी बात करनी है.. अपनी पढ़ाई को लेकर...!" मीनू की आवाज़ में तड़प थी....

मैने जल्दी से आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया.. कहीं मीनू का सच्चा प्यार उसको रुकने पर मजबूर ना कर दे (हे हे हे)," चलें!"

तरुण ने उसको कड़वी नज़र से देखा और दरवाजे की और बढ़ने लगा..," चलो, अंजू!"

मीनू ने लगभग खिसियते हुए मुझसे कहा," तुम कहाँ जा रही हो अंजू.. तुम तो यही सो जाओ!" मुझे पता था कि उसके खिसियाने का कारण मेरा और तरुण का एक साथ निकलना है...

"नही दीदी, मुझे सुबह जल्दी ही कुच्छ काम है.. कल देखूँगी..." मैने मीनू को मुस्कुरा कर देखा और तरुण के साथ बाहर निकल गयी.....

चौपाल के पास अंधेरे में जाते ही मैं खड़ी हो गयी.. तरुण मेरे साथ साथ चल रहा था.. वह भी मेरे साथ ही रुक गया और मेरे गालों को थपथपाते हुए प्यार से बोला," क्या हुआ अंजू?"


मैने अपने गाल को थपथपा रहा तरुण का हाथ अपने हाथ में पकड़ लिया," पता नही.. मुझे क्या हो रहा है?"

तरुण ने अपना हाथ च्छुदाने की कोई कोशिश नही की.. मेरा दिल खुश हो गया...

"अरे बोलो तो सही... यहाँ क्यूँ खड़ी हो गयी?" तरुण एक हाथ को मेरे हाथ में ही छ्चोड़ कर अपने दूसरे हाथ को मेरी गर्दन पर ले आया.. उसका अंगूठा मेरे होंटो के पास मेरे गाल पर टीका हुआ था.. मुझे झुरजुरी सी आने लगी...

"नही.. मुझे डर लग रहा है.. अगर मैं कुच्छ बोलूँगी तो उस दिन की तरह तुम मुझे धमका दोगे!" मुझे उम्मीद थी कि आज ऐसा नही होगा.. फिर भी मैं.. मासूम बने रहने का नाटक कर रही थी.. मैं चाह रही थी कि तरुण ही पहल कर दे...

" नही कहूँगा.. पागल! उस दिन मेरा दिमाग़ खराब था.. बोलो जो बोलना है.." तरुण ने कहा और अपने अंगूठे को मेरे गालों से सरककर मारे निचले होन्ट पर टीका दिया...

अचानक मेरा ध्यान चौपाल की सीधी पर हुई हुल्की सी हुलचल पर गया.. शायद कोई था वहाँ, या वही थी.... मैने चौंक कर सीढ़ियों की तरफ देखा..

"क्या हुआ?" तरुण ने मेरे अचानक मूड कर देखने से विचलित होआकर पूचछा....

"नही.. कुच्छ नही.." मैने वापस अपना चेहरा उसकी और कर लिया.. बोलने के लिए जैसे ही मेरे होन्ट हीले.. उसका अंगूठा थोड़ा और हिल कर मेरे दोनो होंटो पर आ जमा... पर उसको हटाने की ना मैने कोशिश की.. और ना ही उसने हटाया.. उल्टा हुल्के हुल्के से मेरे रसीले होंटो को मसल्ने सा लगा.. मुझे बहुत आनंद आ रहा था....

"क्या कह रही थी तुम? बोलो ना... फिर मुझे भी तुमसे कुच्छ कहना है..." तरुण मुझे उकसाते हुए बोला.....

"क्या? पहले तुम बताओ ना!" मैने बड़ी मासूमियत से कहा..

"यहाँ कोई आ जाएगा.. आओ ना.. चौपाल में चल कर खड़े होते हैं.. वहाँ अच्छे से बात हो जाएँगी..." तरुण ने धीरे से मेरी और झुक कर कहा...

"नही.. यहीं ठीक है.. इस वक़्त कौन आएगा!" दरअसल मैं उस लड़की की वजह से ही चौपाल में जाने से कतरा रही थी....

"अर्रे.. आओ ना.. यहाँ क्या ठीक है?" तरुण ने मेरा हाथ खींच लिया...

"ंमुझे डर लगेगा यहाँ!" मैने असली वजह च्छूपाते हुए कहा....

"इसमें डरने की क्या बात है पागल! मैं हूँ ना.. तुम्हारे साथ!" तरुण ने कहा और चौपाल में मुझे उसी कमरे में ले जाकर छ्चोड़ दिया.. जहाँ उस दिन वो लड़की मुझे उठा कर लाई थी..," अब बोलो.. बेहिचक होकर, जो कुच्छ भी बोलना है.. तुम्हारी कसम मैं कुच्छ भी नही कहूँगा.. उस दिन के लिए सॉरी!"

मैं भी थोड़े भाव खा गयी उसकी हालत देख कर.. मैने सोचा जब कुँवा प्यासे के पास खुद ही चलकर आना चाहता है तो क्यूँ आगे बढ़ा जाए," पहले आप बोलो ना!"

"नही.. तुमने पहले कहा था.. अब तुम ही बताओ.. और जल्दी करो.. मुझे ठंड लग रही है.." तरुण ने मेरे दोनो हाथों को अपने हाथों में दबोच लिया...

"ठंड तो मुझे भी लग रही है..." मैने पूरी तरह भोलेपन का चोला औध रखा था....

"इसीलिए तो कह रहा हूँ.. जल्दी बताओ क्या बात है..?" तरुण ने मुझे कहा और मुझे अपनी और हल्का सा खींचते हुए बोला," अगर ज़्यादा ठंड लग रही है तो मेरे सीने से लग जाओ आकर.. ठंड कम हो जाएगी.. हे हे" उसकी हिम्मत नही हो रही थी सीधे सीधे मुझे अपने से चिपकाने की....

"सच!" मैने पूचछा.. अंधेरे में कुच्छ दिखाई तो दे नही रहा था.. बस आवाज़ से ही एक दूसरे की मंशा पता चल रही थी....

"और नही तो क्या? देखो!" तरुण ने कहा और मुझे खींच कर अपनी छाती से चिपका लिया... मुझे बहुत मज़ा आने लगा.. सच कहूँ, तो एकद्ूम से अगर मैं अपनी बात कह देती और वो तैयार हो भी जाता तो इतना मज़ा नही आता जितना अब धीरे धीरे आगे बढ़ने में आ रहा था.....

मैने अपने गाल उसकी छाती से सटा लिए.. और उसकी कमर में हाथ डाल लिया.. वो मेरे बालों में प्यार से हाथ फेरने लगा.... मेरी चूचियाँ ठंड और उसके सीने से मिल रही गर्मी के मारे पागल सी हुई जा रही थी.....

"ठंड कम हुई ना अंजू?" मेरे बालों में हाथ फेरते हुए वह अचानक अपने हाथ को मेरी कमर पर ले गया और मुझे और सख्ती से भींच लिया....

मैने 'हां' में अपना सिर हिलाया और उसके साथ चिपकने में अपनी रज़ामंदी प्रकट करने के लिए थोड़ी सी और उसके अंदर सिमट गयी.. अब मुझे अपने पेट पर कुच्छ चुभता हुआ सा महसूस होने लगा.. मैने जान गयी.. यह उसका लिंग था!

"तुम कुच्छ बता रही थी ना अंजू? तरुण मेरी नाज़ुक कमर पर अपना हाथ उपर नीचे फिसलते हुए बोला.....

"हुम्म.. पर पहले तुम बताओ!" मैं अपनी ज़िद पर आडी रही.. वरना मुझे विश्वास तो था ही.. जिस तरीके से उसके लिंग ने अपना 'फन' उठना चालू किया था.. थोड़ी देर में वो 'अपने' आप ही चालू हो जाएगा....

"तुम बहुत जिद्दी हो..." वह अपने हाथ को बिल्कुल मेरे नितंबों की दरार के नज़दीक ले गया और फिर वापस खींच लिया....," मैं कह रहा था कि... सुन रही हो ना?"

"हूंम्म" मैने जवाब दिया.. उसके लिंग की चुभन मेरे पेट के पास लगातार बढ़ती जा रही थी.... मैं बेकरार थी.. पर फिर भी.. मैं इंतजार कर रही थी...

"मैं कह रहा था कि... पूरे शहर और पूरे गाँव में तुम जैसी सुन्दर लड़की मैने कोई और नही देखी.." तरुण बोला...

मैने झट से शरारत भरे लहजे में कहा," मीनू दीदी भी तो बहुत सुन्दर है ना?"

एक पल को मुझे लगा.. मैने ग़लत ही जिकर किया.. मीनू का नाम लेते ही उसके लिंग की चुभन ऐसे गायब हुई जैसे किसी गुब्बारे की हवा निकल गयी हो...

"छ्चोड़ो ना! किसका नाम ले रही हो..! होगी सुन्दर.. पर तुम्हारे जितनी नही है.. अब तुम बताओ.. तुम क्या कह रही थी...?" तरुण ने कुच्छ देर रुक कर जवाब दिया....

मैं कुच्छ देर सोचती रही कि कैसे बात शुरू करूँ.. फिर अचानक मेरे मंन में जाने ये क्या आया," कुच्छ दीनो से जाने क्यूँ मुझे अजीब सा लगता है.. आपको देखते ही उस दिन पता नही क्या हो गया था मुझे?"

"क्या हो गया था?" तरुण ने प्यार से मेरे गालों को सहलाते हुए पूचछा....

"पता नही... वही तो जान'ना चाहती हूँ..." मैने जवाब दिया...

"अच्च्छा.. मैं कैसा लगता हूँ तुम्हे.. पहले बताओ!" तरुण ने मेरे माथे को चूम कर पूचछा.. मेरे बदन में गुदगुदी सी हुई.. मुझे बहुत अच्च्छा लगा....

"बहुत अच्छे!" मैने सिसक कर कहा और उसके और अंदर घुस गयी.. सिमट कर!

"आच्छे मतलब? क्या दिल करता है मुझे देख कर?" तरुण ने प्यार से पूचछा और फिर मेरी कमर पर धीरे धीरे अपना हाथ नीचे ले जाने लगा...

"दिल करता है कि यूँही खड़ी रहूं.. आपसे चिपक कर.." मैने शरमाने का नाटक किया...

"बस! यही दिल करता है या कुच्छ और भी.. " उसने कहा और हँसने लगा...

"पता नही.. पर तुमसे दूर जाते हुए दुख होता है.." मैने जवाब दिया....

"ओह्हो... इसका मतलब तुम्हे मुझसे प्यार हो गया है.." तरुण ने मुझे थोड़ा सा ढीला छ्चोड़ कर कहा....

"वो कैसे...?" मैने भोलेपन से कहा....

"यही तो होता है प्यार.. हमें पता नही चलता कि कब प्यार हो गया है.. कोई और भी लगता है क्या.. मेरी तरह अच्च्छा...!" तरुण ने पूचछा....

सवाल पूछ्ते हुए पता नही क्लास के कितने लड़कों की तस्वीर मेरे जहाँ में कौंध गयी.. पर प्रत्यक्ष में मैने सिर्फ़ इतना ही कहा," नही!"

"हूंम्म्म.. एक और काम करके देखें.. फिर पक्का हो जाएगा कि तुम्हे मुझसे प्यार है की नही..." तरुण ने मेरी थोड़ी के नीचे हाथ लेजाकार उसको उपर उठा लिया....

"साला पक्का लड़कीबाज लगता था... इस तरह से दिखा रहा था मानो.. सिर्फ़ मेरी प्राब्लम सॉल्व करने की कोशिश कर रहा हो.. पर मैं नाटक करती रही.. शराफ़त और नज़ाकत का," हूंम्म्म!"

"अपने होंटो को मेरे होंटो पर रख दो...!" उसने कहा...

"क्या?" मैने चौंक कर हड़बड़ाने का नाटक किया...

"हे भगवान.. तुम तो बुरा मान रही हो.. उसके बिना पता कैसे चलेगा...!" तरुण ने कहा...

"अच्च्छा लाओ!" मैने कहा और अपना चेहरा उपर उठा लिया....

तरुण ने झुक कर मेरे नरम होंटो पर अपने गरम गरम होन्ट रख दिए.. मेरे शरीर में अचानक अकड़न सी शुरू हो गयी.. उसके होन्ट बहुत प्यारे लग रहे थे मुझे.. कुच्छ देर बाद उसने अपने होंटो का दबाव बढ़ाया तो मेरे होन्ट अपने आप खुल गये... उसने मेरे उपर वाले होन्ट को अपने होंटो के बीच दबा लिया और चूसने लगा.. मैं भी वैसा ही करने लगी, उसके नीचे वाले होन्ट के साथ....

अंधेरे में मुझे मेरी बंद आँखों के सामने तारे से टूट'ते नज़र आ रहे थे... कुच्छ ही देर में बदहवासी में मैं पागल सी हो गयी और तेज तेज साँसे लेने लगी.. उसका भी कुच्छ ऐसा ही हाल था.. उसका लिंग एक बार फिर अकड़ कर मेरे पेट में घुसने की कोशिश करने लगा था.. थोड़ी देर बाद ही मुझे मेरी कछी गीली होने का अहसास हुआ.... मेरी चूचिया मचलने सी लगी थी... उनका मचलना शांत करने के लिए मैने अपनी चूचियाँ तरुण के सीने में गाड़ा दी..

मुझसे रहा ना गया.... मैने अपने पेट में गाड़ा हुआ उसका लिंग अपने हाथों में पकड़ लिया और अपने होन्ट छुटाकार बोली," ये क्या है?"



उसने लिंग के उपर रखा मेरा हाथ वहीं पकड़ लिया,"ये! तुम्हे सच में नही पता क्या?"

मुझे पता तो सब कुच्छ था ही.. उसके पूच्छने के अंदाज से मुझे लगा कि नाटक कुच्छ ज़्यादा ही हो गया.. मैने शर्मा कर अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की.. और छुड़ा भी लिया," श.. मुझे लगा ये और कुच्छ होगा.. पर ये तो बहुत बड़ा है.. और ये..इस तरह खड़ा क्यूँ है?" मैने मचलते हुए कहा...

"क्यूंकी तुम मेरे पास खड़ी हो.. इसीलिए खड़ा है.." वह हँसने लगा..," सच बताना! तुमने किसी का देखा नही है क्या? तुम्हे मेरी कसम!"

मेरी आँखों के सामने सुंदर का लिंग दौड़ गया.. वो उसके लिंग से तो बड़ा ही था.. पर मैने तरुण की कसम की परवाह नही की," हां.. देखा है.. पर इतना बड़ा नही देखा.. छ्होटे छ्होटे बच्चों का देखा है..." मैने कहा और शर्मा कर उसकी कमर में हाथ डाल कर उस'से चिपक गयी....

"डिखाउ?" उसने गरम गरम साँसे मेरे चेहरे पर छ्चोड़ते हुए धीरे से कहा...

"पर.. यहाँ कैसे देखूँगी..? यहाँ तो बिल्कुल अंधेरा है.." मैने भोलेपन से कहा...

"अभी हाथ में लेकर देख लो.. मैं बाहर निकाल देता हूँ.. फिर कभी आँखों से देख लेना!" तरुण ने मेरा हाथ अपनी कमर से खींच कर वापस अपने लिंग पर रख दिया....

मैं लिंग को हाथ में पकड़े खड़ी रही," नही.. मुझे शरम आ रही है... ये कोई पकड़'ने की चीज़ है....!"

"अर्रे, तुम तो बहुत भोली निकली.. मैं तो जाने क्या क्या सोच रहा था.. यही तो असली चीज़ होती है लड़की के लिए.. इसके बिना तो लड़की का गुज़ारा ही नही हो सकता!" तरुण मेरी बातों में आकर मुझे निरि नादान समझने लगा था....

"वो क्यूँ?" लड़की का भला इसके बिना गुज़रा क्यूँ नही हो सकता.. लड़कियों के पास ये कहाँ से आएगा.. ये तो सिर्फ़ लड़कों के पास ही होता है ना!" मैने नाटक जारी रखा.. इस नाटक में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.. उपर बैठा भगवान भी; जिसने मुझे इतनी कामुक और गरम चीज़ बनाया.. मेरी आक्टिंग देख कर दाँतों तले उंगली दबा रहा होगा.....

"हां.. लड़कों के पास ही होता है ये बस! और लड़के ही लड़कियों को देते हैं ये.. तभी तो प्यार होता है..." तरुण ने झुक कर एक बार मेरे होंटो को चूस लिया और वापस खड़ा हो गया... मुझ जैसी लड़की को अपने जाल में फँसा हुआ देख कर उसका लिंग रह रह कर झटके से खा रहा था.. मेरे हाथ में.....," और बदले में लड़कियाँ लड़कों को देती हैं...." उसने बात पूरी की....

"अच्च्छा! क्या? ... लड़कियाँ क्या देती हैं बदले में..." मेरी योनि से टाप टॅप पानी टपक रहा था....

"बता दूँ?" तरुण ने मुझे अपने से चिपकाए हुए ही अपना हाथ नीचे करके मेरे मस्त सुडौल नितंबों पर फेरने लगा.....

मुझे योनि में थोड़ी और कसमसाहट सी महसूस होने लगी.. उत्तेजना में मैने उसका लिंग और कसकर अपनी मुट्ठी में भींच लिया......," हां.. बता दो!" मैने हौले से कहा....

"अपनी चूत!" वह मेरे कान में फुसफुसाया था.. पर हवा जाकर मेरी योनि में लगी..,"अया.." मैं मचल उठी.....

"नआईईई..." मैने बड़बड़ाते हुए कहा....

"हां.. सच्ची अंजू...! लड़कियाँ अपनी चूत देती हैं लड़कों को और लड़के अपना..." अचानक वह रुक गया और मुझसे पूच्छने लगा," इसको पता है क्या कहते हैं?"

"मैने शर्मकार कहा," हां... लुल्ली" और हँसने लगी...

"पागल.. लुल्ली इसको थोड़े ही कहते हैं.. लुल्ली तो छ्होटे बच्चों की होती है.. बड़ा होने पर इसको 'लंड' बोलते हैं... और लौदा भी..!" उसने मेरे सामानया ज्ञान में वृधि करनी चाही.. पर उस लल्लू से ज़्यादा तो इसके नाम मुझे ही पता थे..

"पर.. ये लेने देने वाली क्या बात है.. मेरी समझ में नही आई...!" मैने अंजान सी बनते हुए उसको काम की बात पर लाने की कोशिश की....

"तुम तो बहुत नादान हो अंजू.. मुझे कितनो दीनो से तुम जैसी प्यारी सी, भोली सी लड़की की तलाश थी.. मैं सच में तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ... पर मुझे डर है कि तुम इतनी नादान हो.. कहीं किसी को बता ना दो ये बातें.. पहले कसम खाओ की किसी से अपनी बातों का जिकर नही करोगी..." तरुण ने कहा...

"नही करूँगी किसी से भी जिकर... तुम्हारी कसम!" मैने झट से कसम खा ली...

"आइ लव यू जान!" उसने कहा," अब सुनो... देखो.. जिस तरह तुम्हारे पास आते ही मेरे लौदे को पता लग गया और ये खड़ा हो गया; उसी तरह.. मेरे पास आने से तुम्हारी चूत भी फूल गयी होगी.. और गीली हो गयी होगी... है ना.. सच बताना..."

वो बातें इतने कामुक ढंग से कर रहा था कि मेरा भी मेरी योनि का 'देसी' नाम लेने का दिल कर गया.. पर मैने बोलते हुए अपना भोलापन नही खोया," फूलने का तो पता नही... पर गीली हो गयी है मेरी चू...."

"अरे.. शर्मा क्यूँ रही हो मेरी जान.. शरमाने से थोड़े ही काम चलेगा... इसका पूरा नाम लो..." उसने मेरी छातियो को दबाते हुए कहा.. मेरी सिसकी निकल गयी..

"आ.. चूत.." मैने नाम ले दिया.. थोड़ा शरमाते हुए....

"व. गुड... अब इसका नाम लो.. शाबाश!" तरुण मेरी चूचियो को मेरे कमीज़ के उपर से मसल्ने लगा.. मैं मदहोश होती जा रही थी...

मैने उसका लिंग पकड़ कर नीचे दबा दिया," लौदा.. अया!"

"यही तड़प तो हमें एक दूसरे के करीब लाती है जान.. हां.. अब सुनो.. मेरा लौदा और तुम्हारी चूत.. एक दूसरे के लिए ही बने हैं... इसीलिए एक दूसरे को पास पास पाकर मचल गये... दरअसल.. मेरा लौदा तुम्हारी चूत में घुसेगा तो ही इनका मिलन होगा... ये दोनो एक दूसरे के प्यासे हैं.. इसी को 'प्यार' कहते हैं मेरी जान.... अब बोलो.. मुझसे प्यार करना है...?" उसने कहते हुए अपना हाथ पिछे ले जाकर सलवार के उपर से ही मेरे मस्त नितंबों की दरार में घुसा दिया.. मैं पागल सी होकर उसमें घुसने की कोशिश करने लगी....

"बोलो ना.. मुझसे प्यार करती हो तो बोलो.. प्यार करना है कि नही..." तरुण भी बेकरार होता जा रहा था....

"पर.. तुम्हारा इतना मोटा लौदा मेरी छ्होटी सी चूत में कैसे घुसेगा.. ये तो घुस ही नही सकता..." मैने मचलते हुए शरारत से उसको थोड़ा और ताड़-पाया...

"अरे.. तुम तो पागलों जैसी बात कर रही हो... सबका तो घुसता है चूत में... तुम क्या ऐसे ही पैदा हो गयी.. तुम्हारे पापा ने भी तो तुम्हारी मम्मी की चूत में घुसाया होगा... पहले उनकी भी चूत छ्होटी ही होगी...." तरुण ने मुझे समझाने की कोशिश की....

सच कहूँ तो तरुण कि सिर्फ़ यही बात थी जो मेरी समझ में नही आई थी...," क्या मतलब?"

"मतलब ये मेरी जान.. कि शादी के बाद जब हज़्बेंड अपनी वाइफ की चूत में लौदा घुसाता है तभी बच्चा पैदा होता है... बिना घुसाए नही होता... और इसमें मज़ा भी इतना आता है कि पूच्छो ही मत...." तरुण अब उंगलियों को सलवार के उपर से ही मेरी योनि के उपर ले आया था और धीरे धीरे सहलकर मुझे तड़पते हुए तैयार कर रहा था......

तैयार तो मैं कब से थी.. पर उसकी बात सुनकर मैं डर गयी.. मुझे लगा अगर मैने अपनी योनि में उसका लिंग घुस्वा लिया तो लेने के देने पड़ जाएँगे... मुझे बच्चा हो जाएगा...," नही, मुझे नही घुस्वाना!" मैं अचानक उस'से अलग हट गयी....

"क्या हुआ? अब अचानक तुम यूँ पिछे क्यूँ हट रही हो...?" तरुण ने तड़प कर कहा......

"नही.. मुझे देर हो रही है.. चलो अब यहाँ से!" मैं हड़बड़ते हुए बोली....

"हे भगवान.. ये लड़कियाँ!" तरुण बड़बड़ाया और बोला," कल करोगी ना?"

"हां... अब जल्दी चलो.. मुझे घर पर छ्चोड़ दो..." मैं डरी हुई थी कहीं वो ज़बरदस्ती ना घुसा दे और मैं मा ना बन जाउ!

"दो.. मिनिट तो रुक सकती हो ना.. मेरे लौदे को तो शांत करने दो..." तरुण ने रिक्वेस्ट सी करी....

मैं कुच्छ ना बोली.. चुपचाप खड़ी रही...

तरुण मेरे पास आकर खड़ा हो गया और मेरे हाथ में 'टेस्टेस' पकड़ा दिए," इन्हे आराम से सहलाती रहो..." कहकर वो तेज़ी से अपने हाथ को लिंग पर आगे पिछे करने लगा.....

ऐसा करते हुए ही उसने मेरी कमीज़ में हाथ डाला और समीज़ के उपर से ही मेरी चूचियो को दबाने लगा... मैं तड़प रही थी.. लिंग को अपनी योनि में घुस्वाने के लिए.. पर मुझे डर लग रहा था..

अचानक उसने चूचियो से हाथ निकाल कर मेरे बालों को पकड़ा और मुझे अपनी और खींच कर मेरे होंटो में अपनी जीभ घुसा दी... और अगले ही पल झटके से ख़ाता हुआ मुझसे दूर हट गया...

"चलो अब जल्दी... पर कल का अपना वादा याद रखना.. कल हम टूवुशन से जल्दी निकल लेंगे...." तरुण ने कहा और हम दायें बायें देख कर रास्ते पर चल पड़े....

"कल भी दीदी को नही पधाओगे क्या?" मैने घर नज़दीक आने पर पूचछा....

"नही...!" उसने सपाट सा जवाब दिया....

"क्यूँ? मैने अपने साथ रखी एक चाबी को दरवाजे के अंदर हाथ डाल कर ताला खोलते हुए पूचछा.....

"तुमसे प्यार जो करना है..." वह मुस्कुराया और वापस चला गया.....

मैं तो तड़प रही थी... अंदर जाते ही नीचे कमरे में घुसी और अपनी सलवार नीचे करके अपनी योनि को रगड़ने लगी.....





क्रमशः ..................

Mujhe Rajayi audh kar lete huye aadha ghanta ho chuka tha.. par 'wo' anjaan ladki mere dimag se nikal hi nahi rahi thi.. Mujhe 24 ghante baad bhi uska sir apni jaanghon ke beech mahsoos ho raha tha.. Meri yoni par bichhu se chal rahe the.. Mano wah ab bhi meri yoni ko lapar lapar apni jeebh se chaat rahi thi... Aise main neend kaise aati...

Upar se Tarun pata nahi Angrezi mein kya kya bake ja raha tha... Main yahi soch rahi thi ki kab Tarun yahan se nikal kar jaye aur Meenu ke sone ke baad main apni ungali se hi kaam chala kar soun....

Achanak mujhe kitab band hone ki aawaj aayi.. Main khush ho gayi....Main darwaja khulkar band hone ka intzaar kar hi rahi thi ki kareeb ek-2 minute ke baad Tarun ki aawaj aayi.. Aawaj thodi dheemi thi.. par itni bhi nahi ki mujhe sunayi na deti

"Tumhari rajayi mein aa jaaun Meenu?"

Pahle Tarun ki, aur fir Meenu ka ye jawab sunkar toh main achraj ke mare sunn rah gayi.....

"Shhhhh.... dhat.. kya kah rahe ho... aaj nahi....yahan ye dono hain aaj.. koyi uth gayi toh....."

Main toh apna kaleja pakadkar rah gayi.. Main inke baare mein jo kuchh sochti thi.. sab sach nikla.....

"Kuchh nahi hota.. main light band kar deta hoon.. koyi uth gayi toh main tumhari rajayi mein hi so jaaunga... tum kah dena main chala gaya... bus, ek baar.. pls!" Tarun ne dheere se bheekh si maangte huye kaha......

"Nahi.. Tarun.. tum toh fansne ka kaam kar rahe ho.. sirf aaj ki hi toh baat hai.. jab Anju yahan nahi hogi toh pinki bhi upar chali jayegi... samjha karo jaanu!" Meenu ne nihayat hi meethi aur dheemi aawaj mein uss'se kaha....

"JAAANU?" Sunte hi mere kaan choukanne ho gaye.. abhi tak main sirf sun rahi thi.. Jaise hi Meenu ne 'Tarun' ke liye jaan shabd ka istemaal kiya.. Main uchhalte uchhalte rah gayi... Aakhirkaar mera shak sahi nikla... Mera dil aur jyada dhadakne laga.. mujhe ummeed thi ki aur bhi raaj bahar nikal sakte hain...

"Pls.. ek baar.." Tarun ne fir se request ki...," tumhare sath latekar ek kiss lene mein mujhe time hi kitna lagega.....

"Nahi! Aaj nahi ho sakta! Mujhe pata hai tum ek minute kahkar kitni der chipke rahte ho..... Aaj bilkul nahi..." Iss baar Meenu ne saaf mana kar diya.....

"Main samajh gaya.. tum mujhe kyun chummi dogi..? Main bus yahi dekhna chah raha tha... Tum toh aajkal Uss kamine Sonu ke chakkar mein ho na!" Tarun achanak ubaal sa kha gaya... uska lahja ekdum badal gaya....

"Kya bakwas kar rahe ho tum.. Mujhe Sonu se kya matlab?" Meenu chounk padi... meri samajh mein nahi aaya ki kis sonu ki baat ho rahi hai....

"Aaj tumhari Sonu se kya baat huyi thi?" Tarun ne badle huye lahje mein hi poochha....

"Main kabhi baat nahi karti uss'se...! Tumhari kasam jaan!" Meenu udaas si hokar boli.. par bahut dheere se....

"Main chutia hoon kya? Main tumse pyar karta hoon.. iska matlab ye thode hi hai ki tum meri kasam kha kha kar mera hi ulloo banati raho.... yye.. Anju bhi pahle din hi mujhse chipakne ki koshish kar rahi thi... kabhi poochh kar dekhna, maine isko kya kaha tha.. Maine tumhe agle din hi bata diya tha aur fir inke ghar jane se mana bhi kar diya... Main tumhe paaglon ki tarah pyar karta rahoon.. aur tum mujhe yun dhokha de rahi ho... ye main sahan nahi kar sakta..." Tarun rah rah kar ubaal khata raha.. Main ab tak bade shouk se chupchap leti unki baat sun rahi thi..... Par Tarun ki iss baat par mujhe bada gussa aaya.. sale kutte ne meri baat Meenu ko bata di... par main khush thi.. ab banaaungi isko 'jaan!'

khair main saans roke unki baat sunti rahi... main poori koshish kar rahi thi ki unki rasili ladayi ka ek bhi hissa mere kaano se na bach paye.....

"Main bhi toh tumse itna hi pyar karti hoon jaan.. Tumse poochhe bina toh main college ke kapde pahan'ne se bhi darti hoon.. kahin main aise waise pahan loon aur fir tum sara din jalte raho..." Meenu ko jaise usko safayi deni jaroori hi thi.. laat maar deti sale kutte ko.. apne aap dum hilata mere paas aata..

"Tumne Sonu ko aaj ek kagaj aur gulab ka phool diya tha na?" Tarun ne daant se peeste huye kaha....

"Kya? ye kya kah rahe ho.. aaj toh wo mere saamne bhi nahi aaya... main kyun doongi usko gulab?" Meenu tadap kar boli.....

"Tum jhooth bol rahi ho.. tum mere sath ghinouna majak kar rahi ho.. Ramesh ne dekha hai tumhe usko gulab dete huye....." Tarun apni baat par ada raha....

Meenu ne fir se safayi dena shuru kiya.. jyon jyon maamla garam hota ja raha tha... dono ki aawaj kuchh tej ho gayi thi...,"Mujhe pata hai tum mujhse bahut pyar karte ho.. isiliye mera naam kahin jhootha bhi aane par tum senti ho jate ho.... isiliye itni chhoti si baaton par bhi naraj ho jate ho.... par main bhi toh tumse utna hi pyar karti hoon... Mera visvas karo! Maine aaj usko dekha tak nahi.... Meri sonu se kitne dino se koyi baat tak nahi huyi.. letter ya phool ka toh sawaal hi paida nahi hota.. tumhare kahne ke baad toh maine sabhi ladkon se baat hi karni chhod di hai"

"Achchha... toh kya wo aise hi gata fir raha hai college mein... wo kah raha tha ki tumne aaj usko love letter ke sath ek gulaab bhi diya hai...." Tarun ki dheemi aawaj se bhi gussa saaf jhalak raha tha.....

"Bakwas kar raha hai wo.. tumhari kasam! tum usko wo letter dikhane ko bol do.. pata nahi tum kahan kahan se mere baare mein ulta seedha sun lete ho...." Meenu ne bhi thodi si narajgi dikhayi...

"Maine bola tha saley maa ke.... par wo kahne laga ki tumne uss letter mein mujhe 'wo' na dikhane ka wada kiya hai.. Ramesh bhi bol raha tha ki usne bhi tumhe usko chupke se gulab ka phool dete huye dekha tha... Ab sari duniya ko jhoothi maan kar sirf tum par hi kaise visvas karta rahoon...?" Tarun ne narajgi aur gusse ke mishrit lahje mein kaha....

"Ramesh toh uska dost hai.. wo toh uske kahne se kuchh bhi bol dega... Tum pls ye baar baar gali mat do.. mujhe achchhe nahi lagte tum gali dete huye... aur fir inmein se koyi uth gayi toh.. Tum sirf mujh par hi vishvas nahi karte... baki sab par itni jaldi kaise kar lete ho.....?" Meenu ab tak rone si lagi thi... par Tarun ki tone par iska koyi asar sunayi nahi pada......

"Tum hamesha rone ka natak karke mujhe emotional kar deti ho.. par aaj mujh par iska koyi asar nahi hone wala.. kyunki aaj usne jo baat mujhe batayi hai.. agar wah sach mili toh main toh mar hi jaaunga!" Tarun ne kaha....

"Ab aur kounsi baat kah rahe ho...?" Meenu subak'te huye boli....

Main mann hi mann iss tarah se khush ho rahi thi mano mujhe koyi khajana hath lag gaya ho.. main saans roke Meenu ko subak'te sunti rahi.....

"Ab rone se main tumhari kartooton ko bhool nahi jaaunga... main teri... dekh lena agar wo baat sach huyi toh..." Tarun ne daant peeste huye kaha.....

Meenu rote rote hi bolne lagi," Ab main... Main tumhe apna vishvas kaise dilwaaun baar baar... Tum toh itne shakki ho ki Munder par yunhi khadi ho jaaun toh bhi jal jaate ho... Maine tumhe khush karne ke liye sab ladkon se baat karni chhod di.... apni pasand ke kapde pahan'ne chhod diye... tumne mujhe apne sivay kisi ke sath hanste bhi nahi dekha hoga.. jab se tumne mujhe mana kiya hai....
aur tum.. pata nahi roj kaisi kaisi baatein uthakar le aate ho... tumhari kasam agar maine kisi ko aaj tak tumhare sivay koyi letter diya ho toh... wo isiliye jal raha hoga, kyun ki uske itne dinon tak pichhe padne par bhi maine usko bhav nahi diye.... aur kyunki usko pata hai ki main tumse pyar karti hoon... wo toh jane kya kya bakega... tum meri baat ka kabhi vishvas kyun nahi karte...." Meenu jitni der bolti rahi.. subakti bhi rahi!

"Wo kah raha tha ki... ki usne tumhare sath pyar kiya hai... aur wo bhi itne gande tareeke se kah raha tha ki....." Tarun beech mein hi ruk gaya....

"Toh? Main kya kar sakti hoon jaan.. agar wo ya koyi aur aisa kahega toh.. main dusron ka munh toh nahi pakad sakti na... par mujhe iss'se koyi matlab nahi... Maine sirf tumse pyar kiya hai.. !" Meenu kuchh ruk kar boli...

shayad wo samjhi nahi thi ki Tarun ka matlab kya hai.. par main samajh gayi thi...... Sach kahoon toh mera bhi dil nahi maan raha tha ki Meenu ne kisi ke sath aisa kiya hoga... par kya pata... kar bhi liya ho...Sochne ko toh main inn dono ko ikatthe dekhne se pahle Meenu ko kisi ke sath bhi nahi iss tarah nahi soch sakti thi.. aur aaj dekho.......

"Wo pyar nahi!" Tarun jhalla kar bola....

"Toh? aur kounsa pyar?" Meenu ko shayad agle hi pal khud hi samajh aa gaya aur wo chounkte huye boli...," Kya bakwas kar rahe ho... Mere baare mein aisa soch bhi kaise liya tumne... main aaj tak tumhare sath bhi uss had tak nahi gayi.. tumhare itni jid karne par bhi.... aur tum uss ghatiya Sonu ke kahne par maan gaye.."

"Par usne kaha hai ki wo saboot de sakta hai... aur fir... usne diya bhi hai....."

"Kya saboot diya hai.. bolo?" Meenu ki aawaj hairani aur narajgi bhari thi...wah chid si gayi thi.. tang aa gayi thi shayad aisi baaton se....

"Toh? aur kounsa pyar?" Meenu ne shayad agle hi pal khud hi samajh aa gaya aur wo chounkte huye boli...," Kya bakwas kar rahe ho... Mere baare mein aisa soch bhi kaise liya tumne... main aaj tak tumhare sath bhi uss had tak nahi gayi.. tumhare itni jid karne par bhi.... aur tum uss ghatiya Sonu ke kahne par maan gaye.."

"Par usne kaha hai ki wo saboot de sakta hai... aur fir... usne diya bhi hai....."

"Kya saboot diya hai.. bolo?" Meenu ki aawaj hairani aur narajgi bhari thi...wah chid si gayi thi.. tang aa gayi thi shayad aisi baaton se....

"Usne bola ki agar mujhe yakeen uski baat ka nahi hai toh.... Nahi.. maine nahi bata sakta.." Kahkar Tarun chup ho gaya...

"Ye kya baat huyi? main ab bhi kahti hoon ki uss ghaitya ladke ki baaton mein aakar apna dimag kharab mat karo... par agar tumhe meri baat ka visvas nahi ho raha toh batao usne kya saboot diya hai! tum yun bina baat ke hi agar har kisi ki baat ka visvas karte rahe toh.... batao na.. kya saboot diya hai usne?" Meenu ab apne ko paak saaf sabit karne ke liye khud hi saboot maang rahi thi....

Mera mann vichlit ho gaya.. Mujhe darr tha kahin wah saboot ko bol kar batane ki bajay 'dikha' na de.. aur main saboot dekhne se vanchit na rah jaaun.. isiliye maine unki aur karwat lekar hulki si rajayi upar utha li.. par dono achanak chup ho gaye...

"Shhhh..." Meenu ki aawaj thi shayad.. mujhe laga khel bigad gaya.. kahin ye ab baat karna band na kar dein.. Mujhe rajayi ke upar uthne se bane chhote se chhed mein se sirf Meenu ke hath hi dikhayi de rahe the....

Shukra hai thodi der baad.. Tarun wapas apni baat par aa gaya....

"Dekh lo.. tum mujhse naraj mat hona.. Main wo hi kah doonga jo usne kaha hai..." Tarun ne kaha....

"Haan.. haan.. kah do.. par jaldi batao.. mere sir mein dard hone laga hai.. ye sab soch soch kar.. ab jaldi se iss kisse ko khatam karo.. aur ek pyari si kissi lekar khush ho jao.. I love you jaan! Main tumse jyada pyar duniya mein kisi se nahi karti.. par jab tumhara aisa munh dekhti hoon toh mera dimag kharaab ho jata hai...." Meenu normal si ho gayi thi....

"Sonu kah raha tha ki ......usne apne khet ke kothde mein...... tumhari li thi ek din...!" Tarun ne jhijhakte huye apni baat kah di....

"Khet ke kothde mein? kya li thi?" Meenu ya toh sach mein hi nadaan thi.. ya fir wo bahut shatir thi.. usne sab kuchh iss tarah se kaha jaise uski samajh mein bilkul nahi aaya ho ki ek jawaan ladka, ek jawaan ladki ki; khet ke kothde mein aur kya leta hai bhala.....

"Main naam le doon?" Mujhe pata tha ki Tarun ne kis cheej ka naam lene ki ijajat maangi hai....

"Haan.. batao na!" Meenu ne seedhe seedhe kaha....

"Wo kah raha tha ki usne khet ke kothde mein........ teri chooot mari thi.." Ye tarun ne kya kah diya.. usne toh googli fainkte fainkte achanak bouncer hi jama diya.. mujhe aisa laga jaise uska bouncer seedha meri yoni se takraya ho.. meri yoni Tarun ke munh se 'choot' shabd sunkar achanak lislisi si ho gayi..

"Dhat.. ye kya bol rahe ho tum.. Sharm nahi aati.." Meenu ki aawaj se laga jaise wo sharm ke mare pani pani ho gayi ho.. agle hi pal wo late gayi aur apne aako rajayi mein dhak liya.....

"Ab aisa kyun kar rahi ho.. maine toh pahle hi kaha tha ki bura mat maan'na.. par tumhare sharmane se mere sawaal ka jawaab toh nahi mil jata na... Saboot toh sun lo..." Tarun ne kahte huye uski rajayi kheench li...

Mujhe Meenu ka chehra dikhayi diya.. wo sharm ke maare laal ho chuki thi.. usne apne chehre ko haathon se aur kohniyon se apni mere jitni hi badi gol matol choochiyon ko chhipa rakha tha....

"Mujhe nahi sun'ni aisi ghatiya baat.. tumhe jo sochna hai soch lo... Meri rajayi wapas do..." Meenu gidgidate huye boli....

Par ab Tarun poori tarah khul gaya lagta tha... Usne Meenu ki baahein pakdi aur usko jabardasti baitha diya.. baithne ke baad mujhe Meenu ka chehra dikhna band ho gaya.. haan.. cream colour ke lower mein chhipi uski gudaaj jaanghein meri aankhon ke saamne thi...

"Tumhe meri baat sun'ni hi padegi.. Usne saboot ye diya hai ki tumhari.. choot ki dayin 'papoti' par ek til hai.. Mujhe batao ki ye sach hai ya nahi..." Tarun ne poori besharmi dikhate huye gusse se kaha....

'Papoti'.. maine ye shabd pahli baar usi ke munh se suna tha.. shayad wo yoni ki faankon ko 'papoti kah raha tha....

"Mujhe nahi sun'na kuchh.. tumhe jo lage wahi maan lo.. par mere sath aisi bakwaas baatein mat karo..." Mujhe aisa laga jaise Meenu apne hathon ko chhudane ka prayatn kar rahi hai.. par jab wo aisa nahi kar payi toh andar hi andar subakne lagi....

"Hat, sali kutiya.. dusron ke aage nangi hoti hai aur mujhse pyar ka dhong karti hai.. agar tum itni hi paak saaf ho toh batati kyun nahi 'wahan' til hai ki nahi... dramma toh aise kar rahi hai jaise 8-10 saal ki bachchi ho.. ji bhar kar gaand maraa apni; Sonu aur uske yaaron se.. main toh aaj ke baad tujh par thookoonga bhi nahi... tere jaisi mere aage pichhe hajar ghoomti hain.. agar dil kiya toh Anju ki maar loonga.. ye toh tujhse bhi sunder hai..." Tarun thook gatakta huaa bola aur shayad khada ho gaya..

Jane Tarun kya kya bak' kar chala gaya.. par usne jo kuchh bhi kaha.. mujhe ek baat toh sach mein bahut pyari lagi ' Anju ki maar loonga.. ye toh tujhse bhi sunder hai'

Uske jaane ke baad Meenu kafi der tak rajayi mein ghus kar sisakti rahi.. 5-10 minute tak main kuchh nahi boli.. par ab mere maamle ke beech aakar maje lene ka time ho gaya tha....

Main angdayi si lekar apni aankhein masalti huyi rajayi hata kar baith gayi.. Mere uthne ka aabhas hote hi Meenu ne ekdum se apni siskiyon par kaabu pane ki koshish ki.. par wo aisa na kar payi aur siskiyan ikatthi ho hokar aur bhi tezi se nikalne lagi....

"Kya hua didi..?" Maine anjaan ban'ne ka natak karte huye uske chehre se rajayi hata di...

Mera chehra dekhte hi wah angaaron ki tarah dhadhak uthi..," kuchh nahi.. kal se tum hamare ghar mat aana! bus..." Usne gusse se kaha aur wapas rajayi mein munh dubka kar sisakne lagi....

Uske bad meri uss'se bolne ki himmat hi nahi huyi.. par mujhe koyi fark nahi pada.. maine aaram se rajayi audhi aur Tarun ke sapnon mein kho gayi.. Ab mujhe wahin kuchh ummeed lag rahi thi....

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Agle din bhi mujhe aana hi tha.. so main aayi.. bulki pahle dinon se aur bhi jyada saj dhaj kar.. Meenu ne mujhse baat tak nahi ki.. uska mood ukhda hua tha.. haan.. Tarun uss din kuchh khas hi laad-pyar se mujhe padha raha tha.. ya toh usko jalane ke liye.. ya fir mujhe patane ke liye....

"Chalo Anju! tumhe ghar chhod doon... mujhe fir ghar jana hai...!" Chachi ke jate hi Tarun khada ho gaya....

"didi ko nahi padhaoge kya? Aaj!" Maine chatkhara liya....

"Nahi!" Tarun ne itna hi kaha....

"Par.. par mujhe kuchh jaroori baat karni hai.. apni padhayi ko lekar...!" Meenu ki aawaj mein tadap thi....

Maine jaldi se aage badhkar darwaja khol diya.. kahin Meenu ka sachcha pyar usko rukne par majboor na kar de (he he he)," Chalein!"

Tarun ne usko kadwi najar se dekha aur darwaje ki aur badhne laga..," Chalo, Anju!"

Meenu ne lagbhag khisiyate huye mujhse kaha," Tum kahan ja rahi ho Anju.. tum toh yahi so jaao!" Mujhe pata tha ki uske khisiyane ka karan mera aur Tarun ka ek sath nikalna hai...

"Nahi didi, Mujhe subah jaldi hi kuchh kaam hai.. kal dekhoongi..." Maine Meenu ko muskura kar dekha aur tarun ke sath bahar nikal gayi.....

Choupal ke paas Andhere mein jate hi main khadi ho gayi.. Tarun mere sath sath chal raha tha.. wah bhi mere sath hi ruk gaya aur mere gaalon ko thapthapate huye pyar se bola," Kya hua Anju?"
Tarun ne usko kadwi najar se dekha aur darwaje ki aur badhne laga..," Chalo, Anju!"

Meenu ne lagbhag khisiyate huye mujhse kaha," Tum kahan ja rahi ho Anju.. tum toh yahi so jaao!" Mujhe pata tha ki uske khisiyane ka karan mera aur Tarun ka ek sath nikalna hai...

"Nahi didi, Mujhe subah jaldi hi kuchh kaam hai.. kal dekhoongi..." Maine Meenu ko muskura kar dekha aur tarun ke sath bahar nikal gayi.....

Choupal ke paas Andhere mein jate hi main khadi ho gayi.. Tarun mere sath sath chal raha tha.. wah bhi mere sath hi ruk gaya aur mere gaalon ko thapthapate huye pyar se bola," Kya hua Anju?"

Continue......

Maine apne gaal ko thapthapa raha Tarun ka hath apne hath mein pakad liya," Pata nahi.. Mujhe kya ho raha hai?"

Tarun ne apna hath chhudane ki koyi koshish nahi ki.. Mera dil khush ho gaya...

"Arey bolo toh sahi... yahan kyun khadi ho gayi?" Tarun ek hath ko mere hath mein hi chhod kar apne dusre hath ko meri gardan par le aaya.. uska angootha mere honton ke paas mere gaal par tika hua tha.. mujhe jhurjhuri si aane lagi...

"Nayi.. mujhe dar lag raha hai.. agar main kuchh bolungi toh uss din ki tarah tum mujhe dhamka doge!" Mujhe ummeed thi ki aaj aisa nahi hoga.. fir bhi main.. masoom bane rahne ka natak kar rahi thi.. Main chah rahi thi ki Tarun hi pahal kar de...

" Nahi kahoonga.. pagal! uss din mera dimag kharaab tha.. bolo jo bolna hai.." Tarun ne kaha aur apne angoothe ko mere gaalon se sarkakar mare nichle hont par tika diya...

Achanak mera dhyan choupal ki seedhi par huyi hulki si hulchal par gaya.. shayad koyi tha wahan, ya wahi thi.... maine chounk kar seedhiyon ki taraf dekha..

"Kya hua?" Tarun ne mere achanak mud kar dekhne se vichlit hoakr poochha....

"Nahi.. kuchh nahi.." Maine wapas apna chehra uski aur kar liya.. bolne ke liye jaise hi mere hont hile.. uska angootha thoda aur hil kar mere dono honton par aa jama... par usko hatane ki na maine koshish ki.. aur na hi usne hataya.. ulta hulke hulke se mere rasile honton ko masalne sa laga.. mujhe bahut aanand aa raha tha....

"Kya kah rahi thi tum? bolo na... fir mujhe bhi tumse kuchh kahna hai..." Tarun mujhe uksaate huye bola.....

"Kya? Pahle tum batao na!" Maine badi masoomiyat se kaha..

"Yahan koyi aa jayega.. aao na.. choupal mein chal kar khade hote hain.. wahan achchhe se baat ho jayengi..." Tarun ne dheere se meri aur jhuk kar kaha...

"Nahi.. yahin theek hai.. iss waqt koun aayega!" Darasal main uss ladki ki wajah se hi choupal mein jane se katra rahi thi....

"Arrey.. aao na.. yahan kya theek hai?" Tarun ne mera hath kheench liya...

"Mmujhe darr lagega yahan!" Maine asli wajah chhupate huye kaha....

"Ismein darne ki kya baat hai pagal! Main hoon na.. tumhare sath!" Tarun ne kaha aur choupal mein mujhe usi kamre mein le jakar chhod diya.. jahan uss din wo ladki mujhe utha kar layi thi..," Ab bolo.. behichak hokar, jo kuchh bhi bolna hai.. tumhari kasam main kuchh bhi nahi kahoonga.. uss din ke liye Sorry!"

Main bhi thode bhav kha gayi uski halat dekh kar.. Maine socha jab kunwa pyase ke paas khud hi chalkar aana chahta hai toh kyun aage badha jaye," Pahle aap bolo na!"

"Nahi.. tumne pahle kaha tha.. ab tum hi batao.. aur jaldi karo.. mujhe thand lag rahi hai.." Tarun ne mere dono hathon ko apne hathon mein daboch liya...

"Thand toh mujhe bhi lag rahi hai..." Maine poori tarah bholepan ka chola audh rakha tha....

"Isiliye toh kah raha hoon.. jaldi batao kya baat hai..?" Tarun ne mujhe kaha aur mujhe apni aur hulka sa kheenchte huye bola," Agar jyada thand lag rahi hai toh mere seene se lag jao aakar.. thand kam ho jayegi.. he he" Uski himmat nahi ho rahi thi seedhe seedhe mujhe apne se chipkane ki....

"Sach!" Maine poochha.. andhere mein kuchh dikhayi toh de nahi raha tha.. bus aawaj se hi ek dusre ki mansha pata chal rahi thi....

"Aur nahi toh kya? Dekho!" Tarun ne kaha aur mujhe kheench kar apni chhati se chipka liya... mujhe bahut maja aane laga.. sach kahoon, toh ekdum se agar main apni baat kah deti aur wo taiyaar ho bhi jata toh itna maja nahi aata jitna ab dheere dheere aage badhne mein aa raha tha.....

Maine apne gaal uski chhati se sata liya.. aur uski kamar mein hath daal liya.. wo mere baalon mein pyar se hath ferne laga.... meri chhatiyan thand aur uske seene se mil rahi garmi ke maare pagal si huyi ja rahi thi.....

"Thand kam huyi na Anju?" Mere baalon mein hath ferte huye wah achanak apne hath ko meri kamar par le gaya aur mujhe aur sakhti se bheench liya....

Maine 'haan' mein apna sir hilaya aur uske sath chipakne mein apni rajamandi prakat karne ke liye thodi si aur uske andar simat gayi.. Ab mujhe apne pate par kuchh chubhta hua sa mahsoos hone laga.. maine jaan gayi.. yah uska ling tha!

"Tum kuchh bata rahi thi na Anju? Tarun meri najuk kamar par apna hath upar neeche fisalate huye bola.....

"Humm.. par pahle tum batao!" Main apni jid par adi rahi.. warna mujhe vishvas toh tha hi.. jis tareeke se uske ling ne apna 'fun' uthana chalu kiya tha.. thodi der mein wo 'apne' aap hi chalu ho jayega....

"Tum bahut jiddi ho..." Wah apne hath ko bilkul mere nitambon ki daraar ke najdeek le gaya aur fir wapas kheench liya....," Main kah raha tha ki... Sun rahi ho na?"

"Hummm" Maine jawab diya.. Uske ling ki chubhan mere pate ke paas lagataar badhti ja rahi thi.... Main bekaraar thi.. par fir bhi.. main itnzaar kar rahi thi...

"Main kah raha tha ki... poore shahar aur poore gaanv mein tum jaisi sunder ladki maine koyi aur nahi dekhi.." Tarun bola...

Maine jhat se shararat bhare lahje mein kaha," Meenu didi bhi toh bahut sunder hai na?"

Ek pal ko mujhe laga.. maine galat hi jikar kiya.. Meenu ka naam lete hi uske ling ki chubhan aise gayab huyi jaise kisi gubbare ki hawa nikal gayi ho...

"Chhodo na! kiska naam le rahi ho..! hogi sunder.. par tumhare jitni nahi hai.. ab tum batao.. tum kya kah rahi thi...?" Tarun ne kuchh der ruk kar jawaab diya....

Main kuchh der sochti rahi ki kaise baat shuru karoon.. fir achanak mere mann mein jane ye kya aaya," Kuchh dino se jane kyun mujhe ajeeb sa lagta hai.. aapko dekhte hi uss din pata nahi kya ho gaya tha mujhe?"

"Kya ho gaya tha?" Tarun ne pyar se mere gaalon ko sahlate huye poochha....

"Pata nahi... wahi toh jaan'na chahti hoon..." Maine jawab diya...

"Achchha.. main kaisa lagta hoon tumhe.. pahle batao!" Tarun ne mere mathe ko choom kar poochha.. mere badan mein gudgudi si huyi.. mujhe bahut achchha laga....

"Bahut achchhe!" Maine sisak kar kaha aur uske aur andar ghus gayi.. simat kar!

"Achchhe matlab? kya dil karta hai mujhe dekh kar?" Tarun ne pyar se poochha aur fir meri kamar par dheere dheere apna hath neeche le jane laga...

"Dil karta hai ki yunhi khadi rahoon.. aapse chipak kar.." Maine sharmane ka natak kiya...

"Bus! yahi dil karta hai ya kuchh aur bhi.. " Usne kaha aur hansne laga...

"Pata nahi.. par tumse door jate huye dukh hota hai.." Maine jawab diya....

"Ohho... iska matlab tumhe mujhse pyar ho gaya hai.." Tarun ne mujhe thoda sa dheela chhod kar kaha....

"Wo kaise...?" Maine bholepan se kaha....

"Yahi toh hota hai pyar.. hamein pata nahi chalta ki kab pyar ho gaya hai.. Koyi aur bhi lagta hai kya.. meri tarah achchha...!" Tarun ne poochha....

Sawaal poochhte huye pata nahi class ke kitne ladkon ki tasveer mere jehan mein koundh gayi.. par pratyaksh mein maine sirf itna hi kaha," Nahi!"

"Hummmm.. ek aur kaam karke dekhein.. fir pakka ho jayega ki tumhe mujhse pyar hai ki nahi..." Tarun ne meri thodi ke neeche hath lejakar usko upar utha liya....

"Sala pakka ladkibaaj lagta tha... iss tarah se dikha raha tha mano.. sirf meri problem solve karne ki koshish kar raha ho.. par main natak karti rahi.. sharafat aur najakat ka," Hummmm!"

"Apne honton ko mere honton par rakh do...!" Usne kaha...

"Kya?" Maine chounk kar hadbadane ka natak kiya...

"Hey bhagwan.. tum toh bura maan rahi ho.. uske bina pata kaise chalega...!" Tarun ne kaha...

"Achchha lao!" Maine kaha aur apna chehra upar utha liya....

Tarun ne jhuk kar mere naram honton par apne garam garam hont rakh diye.. mere shareer mein achanak akdan si shuru ho gayi.. uske hont bahut pyare lag rahe the mujhe.. kuchh der baad usne apne honton ka dabaav badhaya toh mere hont apne aap khul gaye... usne mere upar wale hont ko apne honton ke beech daba liya aur choosne laga.. main bhi waisa hi karne lagi, uske neeche wale hont ke sath....

Andhere mein mujhe meri band aankhon ke saamne taare se toot'te najar aa rahe the... kuchh hi der mein badhawasi mein main pagal si ho gayi aur tej tej saanse lene lagi.. uska bhi kuchh aisa hi haal tha.. uska ling ek baar fir akad kar mere pate mein ghusne ki koshish karne laga tha.. thodi der baad hi mujhe meri kachchhi geeli hone ka ahsaas hua.... meri chhatiyan machalne si lagi thi... unka machalna shant karne ke liye maine apni chhatiyan Tarun ke seene mein gada di..

Mujhse raha na gaya.... Maine apne pate mein gada hua uska ling apne hathon mein pakad liya aur apne hont chhudakar boli," Ye kya hai?"


Andhere mein mujhe meri band aankhon ke saamne taare se toot'te najar aa rahe the... kuchh hi der mein badhawasi mein main pagal si ho gayi aur tej tej saanse lene lagi.. uska bhi kuchh aisa hi haal tha.. uska ling ek baar fir akad kar mere pate mein ghusne ki koshish karne laga tha.. thodi der baad hi mujhe meri kachchhi geeli hone ka ahsaas hua.... meri chhatiyan machalne si lagi thi... unka machalna shant karne ke liye maine apni chhatiyan Tarun ke seene mein gada di..

Mujhse raha na gaya.... Maine apne pate mein gada hua uska ling apne hathon mein pakad liya aur apne hont chhudakar boli," Ye kya hai?"

Continue....

Usne ling ke upar rakha mera hath wahin pakad liya,"Ye! tumhe sach mein nahi pata kya?"

Mujhe pata toh sab kuchh tha hi.. uske poochhne ke andaj se mujhe laga ki natak kuchh jyada hi ho gaya.. maine sharma kar apna hath chhudane ki koshish ki.. aur chhuda bhi liya," ohh.. mujhe laga ye aur kuchh hoga.. par ye toh bahut bada hai.. aur ye..iss tarah khada kyun hai?" Maine machalte huye kaha...

"Kyunki tum mere paas khadi ho.. isiliye khada hai.." Wah hansne laga..," Sach batana! tumne kisi ka dekha nahi hai kya? tumhe meri kasam!"

Meri aankhon ke saamne Sunder ka ling doud gaya.. wo uske ling se toh bada hi tha.. par maine Tarun ki kasam ki parwah nahi ki," Haan.. dekha hai.. par itna bada nahi dekha.. chhote chhote bachchon ka dekha hai..." Maine kaha aur sharma kar uski kamar mein hath daal kar uss'se chipak gayi....

"Dikhaaun?" Usne garam garam saanse mere chehre par chhodte huye dheere se kaha...

"Par.. yahan kaise dekhoongi..? yahan toh bilkul andhera hai.." Maine bholepan se kaha...

"Abhi hath mein lekar dekh lo.. main bahar nikal deta hoon.. fir kabhi aankhon se dekh lena!" Tarun ne mera hath apni kamar se kheench kar wapas apne ling par rakh diya....

Main ling ko hath mein pakde khadi rahi," Nahi.. mujhe sharam aa rahi hai... Ye koyi pakad'ne ki cheej hai....!"

"Arrey, tum toh bahut bholi nikali.. main toh jane kya kya soch raha tha.. Yahi toh asli cheej hoti hai ladki ke liye.. iske bina toh ladki ka gujara hi nahi ho sakta!" Tarun meri baaton mein aakar mujhe niri nadan samajhne laga tha....

"Wo kyun?" Ladki ka bhala iske bina gujara kyun nahi ho sakta.. ladkiyon ke paas ye kahan se aayega.. ye toh sirf ladkon ke paas hi hota hai na!" Maine natak jari rakha.. iss natak mein mujhe bahut maja aa raha tha.. Upar baitha bhagwan bhi; jisne mujhe itni kamuk aur garam cheej banaya.. meri acting dekh kar daanton tale ungli daba raha hoga.....

"Haan.. ladkon ke paas hi hota hai ye bus! aur ladke hi ladkiyon ko dete hain ye.. tabhi toh pyar hota hai..." Tarun ne jhuk kar ek baar mere honton ko choos liya aur wapas khada ho gaya... Mujh jaisi ladki ko apne jaal mein fansa hua dekh kar uska ling rah rah kar jhatke se kha raha tha.. mere hath mein.....," Aur badle mein ladkiyan ladkon ko deti hain...." Usne baat poori ki....

"Achchha! kya? ... ladkiyan kya deti hain badle mein..." Meri yoni se tap tap pani tapak raha tha....

"Bata doon?" Tarun ne mujhe apne se chipkaye huye hi apna hath neeche karke mere mast sudoul nitambon par ferne laga.....

Mujhe yoni mein thodi aur kasmasahat si mahsoos hone lagi.. uttejana mein maine uska ling aur kaskar apni mutthi mein bheench liya......," Haan.. bata do!" Maine houle se kaha....

"Apni choot!" Wah mere kaan mein fusfusaya tha.. par hawa jakar meri yoni mein lagi..,"aaah.." Main machal uthi.....

"Nayiiii..." Maine badbadate huye kaha....

"Haan.. sachchi Anju...! Ladkiyan apni choot deti hain ladkon ko aur ladke apna..." Achanak wah ruk gaya aur mujhse poochhne laga," Isko pata hai kya kahte hain?"

"Maine sharmakar kaha," haan... lulli" aur hansne lagi...

"Pagal.. lulli isko thode hi kahte hain.. lulli toh chhote bachchon ki hoti hai.. bada hone par isko 'lund' bolte hain... aur louda bhi..!" Usne mere samanya gyan mein vridhi karni chahi.. par uss lallu se jyada toh iske naam mujhe hi pata the..

"Par.. ye lene dene wali kya baat hai.. meri samajh mein nahi aayi...!" Maine anjaan si bante huye usko kaam ki baat par lane ki koshish ki....

"Tum toh bahut nadan ho Anju.. mujhe kitno dino se tum jaisi pyari si, bholi si ladki ki talash thi.. main sach mein tumse bahut pyar karne laga hoon... par mujhe darr hai ki tum itni nadan ho.. kahin kisi ko bata na do ye baatein.. pahle kasam khao ki kisi se apni baaton ka jikar nahi karogi..." Tarun ne kaha...

"Nahi karoongi kisi se bhi jikar... tumhari kasam!" Maine jhat se kasam kha li...

"I love you jaan!" Usne kaha," Ab suno... dekho.. jis tarah tumhare paas aate hi mere loude ko pata lag gaya aur ye khada ho gaya; usi tarah.. mere paas aane se tumhari choot bhi fool gayi hogi.. aur geeli ho gayi hogi... hai na.. sach batana..."

Wo baatein itne kamuk dhang se kar raha tha ki mera bhi meri yoni ka 'desi' naam lene ka dil kar gaya.. par maine bolte huye apna bholapan nahi khoya," Phoolne ka toh pata nahi... par geeli ho gayi hai meri chooo...."

"Arey.. sharma kyun rahi ho meri jaan.. sharmane se thode hi kaam chalega... iska poora naam lo..." Usne meri chhatiyon ko dabate huye kaha.. meri siski nikal gayi..

"aah.. chooot.." Maine naam le diya.. thoda sharmate huye....

"V. Good... ab iska naam lo.. shabaash!" Tarun meri chhatiyon ko mere kameej ke upa









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