raj sharma stories राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँहिंदी सेक्सी कहानिया चुदाई की कहानियाँ उत्तेजक कहानिया rajsharma ki kahaniya ,रेप कहानिया ,सेक्सी कहानिया , कलयुग की सेक्सी कहानियाँ , मराठी सेक्स स्टोरीज , चूत की कहानिया , सेक्स स्लेव्स ,
बाली उमर की प्यास पार्ट--5
गतांक से आगे.......................
पिंकी के घर जाकर पढ़ते हुए मुझे हफ़्ता भर हो गया था.. तरुण भी तब तक मेरी उस हरकत को पूरी तरह भूल कर मेरे साथ हँसी मज़ाक करने लगा था.. पर मैं इतना खुलकर उस'से कभी बोल नही पाई.. वजह ये थी कि मेरे मन में चोर था.. मैं तो उसका चेहरा देखते ही गरम हो जाती थी और घर वापस आकर जब तक नींद के आगोश में नही समा जाती; गरम ही रहती थी...
मंन ही मंन मीनू और उसके बीच 'कुच्छ' होने के शक का कीड़ा भी मुझे परेशान रखता था..मीनू उस'से इतनी बात नही करती थी.. पर दोनो की नज़रें मिलते ही उनके चेहरों पर उभर आने वाली कामुक सी मुस्कान मेरे शक को और हवा दे जाती थी.. शकल सूरत और 'पुत्थे चूचियो' के मामले में मैं मीनू से 20 ही थी.. फिर भी जाने क्यूँ मेरी तरफ देखते हुए उसकी मुस्कान में कभी वो रसीलापन नज़र नही आया जो उन्न दोनो की नज़रें मिलने पर अपने आप ही मुझे अलग से दिख जाता था...
सच कहूँ तो पढ़ने के अलावा वो मुझमें कोई इंटेरेस्ट लेता ही नही था.... मैने यूँही एक दिन कह दिया था," रहने दो.. अब मुझे दर नही लगता.. रोज जाती हूँ ना..." उस के बाद तो उसने मुझे वापस घर तक छ्चोड़ना ही छ्चोड़ दिया...
ऐसे ही तीन चार दिन और बीत गये..
मेरा घर पिंकी के घर से करीब आधा किलोमेटेर दूर था.. लगभग हर नुक्कड़ पर स्ट्रीट लाइट लगी थी.. इसीलिए सारे रास्ते रोशनी रहती थी.. सिर्फ़ एक लगभग 20 मीटर रास्ते को छ्चोड़ कर... वहाँ गाँव की पुरानी चौपाल थी और चौपाल के आँगन में एक बड़ा सा नीम का पेड़ था (अब भी है). स्ट्रीट लाइट वहाँ भी लगी थी.. पर चौपाल से ज़रा हटकर.. उस पेड़ की वजह से गली के उस हिस्से में घुप अंधेरा रहता था...
वहाँ से गुज़रते हुए मेरे कदमों की गति और दिल की धड़कन अपने आप ही थोड़ी बढ़ जाती थी.. रात का समय और अकेली होने के कारण अनहोनी का डर किसके मॅन में नही पैदा होगा... पर 3-4 दिन तक लगातार अकेली आने के कारण मेरा वो डर भी जाता रहा...
अचानक एक दिन ऐसा हो गया जिसका मुझे कभी डर था ही नही... पर जब तक 'उसकी' मंशा नही पता चली थी; मैं डारी रही.. और पसीना पसीना हो गयी....
हुआ यूँ की उस दिन जैसे ही मैने अपने कदम 'उस' अंधेरे टुकड़े में रखे.. मुझे अपने पिछे किसी के तेज़ी से आ रहे होने का अहसास हुआ... मैं चौंक कर पलट'ने ही वाली थी की एक हाथ मजबूती से मेरे जबड़े पर आकर जम गया.. मैं डर के मारे चीखी.. पर चीख मेरे गले में ही घुट कर रह गयी... अगले ही पल उसने अपने हाथ का घेरा मेरी कमर के इर्द गिर्द बनाया और मुझे उपर उठा लिया....
मैं स्वाभाविक तौर पर डर के मारे काँपने लगी थी.. पर चिल्लाने या अपने आपको छुड़ाने की मेरी हर कोशिश नाकाम रही और 'वो' मुझे ज़बरदस्ती चौपाल के एक बिना दरवाजे वाले कमरे में ले गया...
वहाँ एक दम घुपप अंधेरा था... मेरी आँखें डर के मारे बाहर निकालने को थी.. पर फिर भी कुच्छ भी देखना वहाँ नामुमकिन था.. जी भर कर अपने आपको छुड़ाने की मशक्कत करने के बाद मेरा बदन ढीला पड़ गया.. मैं थर-थर काँप रही थी....
अजीबोगरीब हादसे से भौचक्क मेरा दिमाग़ जैसे ही कुच्छ शांत हुआ.. मुझे तब जाकर पता चला की माम'ला तो कुच्छ और ही है.. 'वो' मेरे पिछे खड़ा मुझे एक हाथ से सख्ती से थामे और दूसरे हाथ से मेरे मुँह को दबाए मेरी गर्दन को चाटने में तल्लीन था...
उसके मुझे यहाँ घसीट कर लाने का मकसद समझ में आते ही मेरे दिमाग़ का सारा बोझ गायब हो गया... मेरे बदन में अचानक गुदगुदी सी होने लगी और मैं आनंद से सिहर उठी...
मैं उसको बताना चाहती थी कि जाने कब से मैं इस पल के लिए तड़प रही हूँ.. मैं पलट कर उस'से लिपट जाना चाहती थी... अपने कपड़े उतार कर फैंक देना चाहती थी... पर वो छ्चोड़ता तभी ना....!
मेरी तरफ से विरोध ख़तम होने पर उसने मेरी कमर पर अपनी पकड़ थोड़ी ढीली कर दी.... पर मुँह पर उसका हाथ उतनी ही मजबूती से जमा हुआ था... अचानक उसका हाथ धीरे धीरे नीचे सरकता हुआ मेरी सलवार में घुस गया.. और कछि के उपर से मेरी योनि की फांकों को ढूँढ कर उन्हे थपथपाने लगा... इतना मज़ा आ रहा था कि मैं पागल सी हो गयी.. होंटो से मैं अपने मनोभाव प्रकट कर नही पा रही थी.. पर अचानक ही जैसे मैं किसी दूसरे ही लोक में पहुँच गयी.. मेरी आँखें अधखुली सी हो गयी... कसमसकर मैने अपनी टाँगें चौड़ी करके जांघों के बीच 'और' जगह बना ली... ताकि उसके हाथो को मेरी 'योनि-सेवा' करने में किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो... और जैसे ही उस'ने मेरी कछी के अंदर हाथ डाल अपनी उंगली से मेरी योनि का छेद ढूँढने की कोशिश की.. मैं तो पागल ही हो गयी... मेरी सिसकी मेरे गले से बाहर ना आ सकी.. पर उसको अपने भावों से अवगत करने के लिए मैने अपना हाथ भी उसके हाथ के साथ साथ अपनी सलवार में घुसा दिया........
मेरे हाथ के नीचे दबे उसके हाथ की एक उंगली कुच्छ देर तक मेरी योनि की दरार में उपर नीचे होती रही.. अपने हाथ और पराए हाथ में ज़मीन आसमान का अंतर होने का मुझे आज पहली बार पता चला.. आनंद तो अपने हाथ से भी काफ़ी आता था.. पर 'उस' के हाथ की तो बात ही अलग थी..
मेरी चिकनी योनि की फांकों के बीच थिरकति हुई उसकी उंगली जैसे ही योनि के दाने को छ्छूती.. मेरा बदन झंझणा उठता.. और जैसे ही चिकनाहट से लबालब योनि के छेद पर आकर उसकी उंगली ठहरती.. मेरे दिल की धड़कन बढ़ जाती.. मेरा दिमाग़ सुन्न हो जाता और मेरी सिसकी गले में ही घुट कर रह जाती....
मुझे यकीन हो चला था कि आज इस कुंवारे छेद का कल्याण हो कर रहेगा.. मेरी समझ में नही आ रहा था कि वो आख़िर इतनी देर लगा क्यूँ रहा है.. मेरी बेसब्री बढ़ती जा रही थी.. अपनी जांघों को मैं पहले से दुगना खोल चुकी थी और मेरे लिए खड़ा रहना अब मुस्किल हो रहा था...
अचानक उसने अपना हाथ बाहर निकाल लिया... मेरा दिल बल्लियों पर आकर अटक गया.. अब मैं उसके आगे बढ़ने की उम्मीद कर रही थी... और ऐसा हुआ भी... अगले ही पल उसने मेरी सलवार का नाडा खोला और मेरी सलवार नीचे सरका दी.. मेरी नंगी जांघों के ठंड से ठिठुर रहे होने का मुक़ाबला मेरे अंदर से उठ रही भीसन काम~लपटों से हो रहा था.. इसीलिए मुझे ठंड ना के बराबर ही लग रही थी...
अचानक उसने मेरी कछी भी नीचे सरका दी... और इसके साथ ही मेरे चिकने नितंब भी अनावृत हो गये.. उसने एक अपना हाथ नितंबों के एक 'पाट' पर रखा और उसको धीरे धीरे दबाने लगा.. मुझे यकीन था कि अगर वहाँ प्रकाश होता तो मेरे नितंबों की गोलाई, कसावट और उठान देखकर वो पागला जाता.. शायद अंधेरे की वजह से ही वो अब तक संयम से काम ले पा रहा था..
मुझे वहाँ भी मज़ा आ रहा था पर आगे योनि की तड़प मुझे सहन नही हो रही थी.. मैं 'काम' जारी रखने के इरादे से अपना हाथ नीचे ले गयी और 'योनि' फांकों पर हाथ रख कर धीरे धीरे उन्हे मसल्ने लगी..
मेरे ऐसा करने से शायद उसको मेरे उत्तेजित होने का अहसास हो गया... मेरे नितंबो से कुच्छ देर और खेलने के बाद वो रुक गया और एक दो बार मेरे मुँह से हाथ ढीला करके देखा... मेरे मुँह से लंबी लंबी साँसे और सिसकियाँ निकलते देख वो पूरी तरह आश्वस्त हो गया और उसने अपना हाथ मेरे मुँह से हटा लिया....
कामंध होने के बावजूद, उसको जान'ने की जिग्यासा भी मेरे मंन में थी.. मैने अपनी योनि को सहलाना छ्चोड़ धीरे से उस'से कहा,"मुझे बहुत मज़ा आ रहा है.. पर कौन हो तुम?"
जवाब देना तो दूर, उसने तो मेरे मुँह को ही फिर दबा लिया.. मैने हल्क प्रतिरोध भरो गून-गून की तो उसने हाथ हटाकर मेरी बात फिर सुन ली," ठीक है.. मैं कुच्छ नही पूछ्ति.. पर जल्दी करो ना.. मुझे बहुत मज़ा आ रहा है..." मुझे तो आम खाने से मतलब था.. जो कोई भी था.. मेरे जीवन का प्रथम नारी अहसास मुझे करा ही रहा था.. बहुत सुखद तरीके से....
मेरे ऐसा कहने पर शायद वह बे-फिकर हो गया और मेरी कमीज़ के नीचे से कुल्हों को पकड़ कर नीचे बैठ गया... उसकी गरम गरम साँसे अब मेरी जांघों के बीच से जाकर मेरी योनि की फांकों को फड़फड़ने को विवश कर रही थी....
कुच्छ देर बाद उसने अपना एक हाथ मेरे कुल्हों से निकल कर मेरी पीठ को आगे की और दबाया... मैं उसका इशारा समझ गयी और खड़ी खड़ी आगे झुक कर अपनी कोहनियाँ सामने छ्होटी सी दीवार पर टीका ली.. ऐसा करने के बाद मेरे नितंब पिछे की और निकल गये..
उसने अपना मुँह मेरे नितंबों के बीच घुसा दिया और मेरी योनि को अपने होंटो से चूमा.. मैं कसमसा उठी.. इतना आनंद आया कि मैं बयान नही कर सकती.. मैने अपनी जांघों को और खोल कर मेरे उस अंजान आशिक की राहें आसान कर दी..
कुच्छ देर और चूमने के बाद उसने मेरी पूरी योनि को अपने मुँह में दबोच लिया.. आनंद के मारे में छॅट्पाटा उठी.. पर वह शायद अभी मुझे और तड़पाने के मूड में था....
वह जीभ निकाल कर योनि की फांकों और उनके बीच की पतली सी दरार को चाट चाट कर मुझे पागल करता जा रहा था.. मेरी सिसकियाँ चौपाल के लंबे कमरे के कारण प्रतिधवनीत होकर मुझ तक ही वापस आ रही थी.. उसकी तेज हो रही साँसों की आवाज़ भी मुझे सुनाई दे रही थी.. पर बहुत धीरे धीरे....
आख़िरकार तड़प सहन करने की हद पार होने पर मैने एक बार और उस'से सिसकते हुए निवेदन किया......," अब तो कर दो ना! कर दो ना प्लीज़!"
मुझे नही पता उसने मेरी बात पर गौर किया या नही.. पर उसकी जीभ का स्थान फिर से उसकी उंगली ने ले लिया... दाँतों से रह रह कर वो मेरे नितंबो को हुल्के हुल्के काट रहा था....
जो कोई भी था... पर मुझे ऐसा मज़ा दे रहा था जिसकी मैने कल्पना भी कभी नही की थी.. मैं उसकी दीवानी होती जा रही थी, और उसका नाम जान'ने को बेकरार....
अचानक में उच्छल पड़ी.. मेरी योनि के छेद में झटके के साथ उसकी आधी उंगली घुस गयी... पर मुझे अचानक मिले इस दर्द के मुक़ाबले मिला आनंद अतुलनीय था.. कुच्छ देर अंदर हुलचल मचाने के बाद जब उसकी उंगली बाहर आई तो मेरी योनि से रस टपक टपक कर मेरी जांघों पर फैल रहा था.... पर मेरी भूख शांत नही हुई....
अचानक उसने मुझे छ्चोड़ दिया.. मैने खड़ी होकर उसकी तरफ मुँह कर लिया.. पर अब भी सामने किसी के खड़े होने के अहसास के अलावा कुच्छ दिखाई नही पड़ रहा था....
अपनी कमर के पास उसके हाथों की हुलचल से मुझे लगा वा अपनी पॅंट उतार रहा है... पर मैं इतनी बेकरार हो चुकी थी कि पॅंट उतारने का इंतजार नही कर सकती थी.. मैने जिंदगी में तीन-चार लिंग देखे थे... मैं जल्द से जल्द उसके लिंग को छ्छू कर देख लेना चाहती थी और जान लेना चाहती थी कि उसका साइज़ मेरी छ्होटी सी कुँवारी मच्चळी के लिए उपयुक्त है या नही.... मैं अपना हाथ अंदाज़े से उसकी जांघों के बीच ले गयी...
अंदाज़ा मेरा सही था.. मेरा हाथ ठीक उसकी जांघों के बीच था... पर ये क्या? उसका लिंग तो मुझे मिला ही नही....
मेरी आँखें आसचर्या में सिकुड गयी... अचानक मेरे दिमाग़ में एक दूसरा सवाल कौंधा..," कहीं....?"
और मैने सीधा उसकी चूचियो पर हाथ मारा... मेरा सारा जोश एक दम ठंडा पड़ गया," छ्हि.. तुम तो लड़की हो!"
वह शायद अपनी पॅंट को खोल नही बुल्की, अपनी सलवार को बाँध रही थी.. और काम पूरा होते ही वह मेरे सवाल का जवाब दिए बिना वहाँ से गायब हो गयी....
मेरा मॅन ग्लानि से भर गया.. मुझे पता नही था कि लड़की लड़की के बीच भी ये खेल होता है.... सारा मज़ा किरकिरा हो गया और आख़िरकार आज मेरी योनि का श्री गणेश होने की उम्मीद भी धूमिल पड़ गयी.. और मेरी लिसलीसी जांघें घर की और जाते हुए मुझे भारी भारी सी लग रही थी....
घर आकर लेट ते हुए मैं ये सोच सोच कर परेशान थी कि मैं उसको पहले क्यूँ नही पहचान पाई.. आख़िर जब उसने मुझे पकड़ कर उपर उठाया और मुझे चुपाल में ले गयी.. तब तो उसकी चूचिया मेरी कमर से चिपकी ही होंगी... पर शायद डर के चलते उस वक़्त दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया होगा....
अगले दिन मैने सुबह बाथरूम में अपनी अधूरी प्यास अपनी उंगली से बुझाने की कोशिश की.. पर मैं ये महसूस करके हैरान थी कि अब मेरे हाथ से मुझे उतना मज़ा भी नही आ रहा था जितना आ जाता था... मेरा दिमाग़ खराब हो गया.. अब मेरी योनि को उसके 'यार' की जल्द से जल्द ज़रूरत थी.. पर सबसे बड़ा सवाल जिसने मुझे पूरे दिन परेशान रखा; वो ये था कि आख़िर वो थी कौन?
शाम को टूवुशन के लिए जाते हुए जैसे ही मैं चौपाल के पास से गुज़री, मेरे पूरे बदन में पिच्छली रात की बात याद करके झुरजुरी सी उठ गयी. बेशक वो लड़की थी, पर मैने पता चलने से पहले आनंद सागर में जिस तरह डुबकियाँ सी लगाई थी.., उन्हे याद करके मेरा जिस्म एकद्ूम अकड़ गया.....
उस दिन मैं टूवुशन पर तरुण से भी ज़्यादा उस लड़की के बारे में सोचती रही.. रोज़ की तरह ही चाची 10 बजे चाय लेकर आ गयी.. उनके आते ही पिंकी तरुण के सामने से उठकर भाग गयी," बस! मम्मी आ गयी! इसका मतलब सोने का टाइम हो गया... है ना मम्मी?"
चाची उसकी बात सुनकर हँसने लगी,"निकम्मी! तू पूरी कामचोर होती जा रही है.. देख लेना अगर नंबर. कम आए तो..!"
"हां हां... ठीक है.. देख लेना! अब मैं थोड़ी देर रज़ाई में गरम हो लूँ.. जाते हुए मुझे ले चलना मम्मी!" पिंकी ने शरारत से कहा और रज़ाई में दुबक गयी...
"ये दोनो पढ़ाई तो ठीक कर रही हैं ना; तरुण?" चाची ने पूचछा....
"हां; ठीक ठाक ही करती हैं चाची..." तरुण ने कहकर तिरछि नज़रों से मीनू को देखा और हँसने लगा....
"हमें मीनू की चिंता नही है बेटा! ये तो हमारी होनहार बेटी है.." चाची ने प्यार से मीनू के गाल को पकड़ कर खींचा तो वो भी तरुण की तरफ ही देख कर मुस्कुराइ...," हमें तो छ्होटी की चिंता है.. जब तुम पढ़ाते हो.. तभी किताबें खोलती है.. वरना तो ये एक अक्षर तक नही देखती...!"
"अच्च्छा! मैं चलती हूँ चाची!" मैने कहा और कप को ट्रे में रख कर उठ खड़ी हुई..
"ठीक है अंजू बेटी! ज़रा संभाल कर जाना!" चाची ने कहा...
मुझे ठीक से याद नही आ रहा कि असली वजह क्या थी.. पर मैं दरवाजे से ही वापस मूड गयी थी उस दिन," वो... एक बार छ्चोड़ आते..!" मैने तरुण की और देखते हुए हुल्के से कहा...
"क्यूँ?....... क्या हो गया? रोज़ तो अकेली चली जाती थी.." तरुण ने पूचछा....
"पता नही क्यूँ? आज डर सा लग रहा है..." मैने जवाब दिया....
"अरे यहीं सो जाओ ना बेटी... वैसे भी ठंड में अब कहाँ बाहर निकलॉगी.. मैं फोन कर देती हूँ.. तुम्हारी मम्मी के पास..." चाची ने प्यार से कहा....
"नही चाची.. कोई बात नही; मैं छ्चोड़ आता हूँ..." कहकर तरुण तुरंत खड़ा हो गया....
जाने क्यूँ? पर मैं तरुण की बात को अनसुना सा करते हुए वापस चारपाई पर आकर बैठ गयी," ठीक है चाची.. पर आप याद करके फोन कर देना.. नही तो पापा यहीं आ धँकेंगे.. आपको तो पता ही है..."
"अर्रे बेटी.. अपने घर कोई अलग अलग थोड़े ही हैं.. अगर ऐसी कोई बात होती तो वो तुम्हे यहाँ टूवुशन पर भी नही भेजते.. मैं अभी उपर जाते ही फोन कर देती हूँ.... तुम आराम से सो जाओ.. पिंकी और मीनू भी यहीं सो जाएँगी फिर तो... तुम बेटा तरुण...." चाची रुक कर तरुण की और देखने लगी....
"अरे नही नही चाची.. मैं तो रोज चला ही जाता हूँ.. उस दिन तो.. मुझे बुखार सा लग रहा था.. इसीलिए..." तरुण ने अपना सा मुँह लेकर कहा....
"मैं वो थोड़े ही कह रही हूँ बेटा.. तुम तो हमारे बेटे जैसे ही हो.. मैं तो बस इसीलिए पूच्छ रही हूँ कि अगर तुम्हे ना जाना हो तो एक रज़ाई और लाकर दे देती हूँ..." चाची ने सफाई सी दी.....
"नही.. मुझे तो जाना ही है चाची... बस.. मीनू को एक 'सॉनेट' का ट्रॅन्स्लेशन करवाना है....
"ठीक है बेटा.. मैं तो चलती हूँ... " चाची ने कहा और फिर मीनू की और रुख़ किया," दरवाजा ठीक से बंद कर लेना बेटी, अपने भैया के जाते ही..!"
मीनू ने हां में सिर हिलाया.. पर मैने गौर किया.. मेरे यहाँ रुकने की कहने के बाद दोनो के चेहरों का गुलाबी रंग उतर गया था.....
क्रमशः ..................
Pinki ke ghar jakar padhte huye mujhe hafta bhar ho gaya tha.. Tarun bhi tab tak meri uss harkat ko poori tarah bhool kar mere sath hansi majak karne laga tha.. Par main itna khulkar uss'se kabhi bol nahi payi.. Wajah ye thi ki mere man mein chor tha.. Main toh uska chehra dekhte hi garam ho jati thi aur ghar wapas aakar jab tak neend ke aagosh mein nahi sama jati; garam hi rahti thi...
Mann hi mann Meenu aur uske beech 'kuchh' hone ke shak ka keeda bhi mujhe pareshan rakhta tha..Meenu uss'se itni baat nahi karti thi.. par dono ki najrein milte hi unke chehron par ubhar aane wali kamuk si muskaan mere shak ko aur hawa de jati thi.. Shakal soorat aur 'putthe chhatiyon' ke maamle mein main Meenu se 20 hi thi.. fir bhi jane kyun meri taraf dekhte huye uski muskaan mein kabhi wo rasilapan najar nahi aaya jo unn dono ki najrein milne par apne aap hi mujhe alag se dikh jata tha...
Sach kahoon toh padhane ke alawa wo mujhmein koyi interest leta hi nahi tha.... Maine yunhi ek din kah diya tha," Rahne do.. ab mujhe darr nahi lagta.. roj jati hoon na..." uss ke baad toh usne mujhe wapas ghar tak chhodna hi chhod diya...
Aise hi teen char din aur beet gaye..
Mera ghar Pinki ke ghar se kareeb aadha kilometer door tha.. Lagbhag har nukkad par street light lagi thi.. Isiliye sare raaste roshni rahti thi.. Sirf ek lagbhag 20 meter raaste ko chhod kar... Wahan gaanv ki purani choupal thi aur choupal ke aangan mein ek bada sa neem ka ped tha (ab bhi hai). Street light wahan bhi lagi thi.. par choupal se jara hatkar.. Uss Ped ki wajah se gali ke uss hisse mein ghup andhera rahta tha...
Wahan se gujarte huye mere kadmon ki gati aur dil ki dhadkan apne aap hi thodi badh jati thi.. Raat ka samay aur Akeli hone ke karan anhoni ka darr kiske mann mein nahi paida hoga... Par 3-4 din tak lagataar akeli aane ke karan mera wo darr bhi jata raha...
Achanak ek din aisa ho gaya jiska mujhe kabhi darr tha hi nahi... par jab tak 'uski' mansha nahi pata chali thi; Main dari rahi.. aur pasina pasina ho gayi....
Hua yun ki uss din jaise hi maine apne kadam 'uss' Andhere tukde mein rakhe.. Mujhe apne pichhe kisi ke teji se aa rahe hone ka ahsaas huaa... Main chounk kar palat'ne hi wali thi ki ek hath majbooti se mere jabde par aakar jam gaya.. Main darr ke maare cheekhi.. par cheekh mere gale mein hi ghut kar rah gayi... Agle hi pal usne apne hath ka ghera meri kamar ke ird gird banaya aur mujhe upar utha liya....
Main swabhawik tour par darr ke maare kaanpne lagi thi.. Par chillane ya apne aapko chhudane ki meri har koshish nakaam rahi aur 'wo' mujhe jabardasti choupal ke ek bina darwaje wale kamre mein le gaya...
Wahan ek dum ghupp andhera tha... Meri aankhein darr ke maare bahar nikalne ko thi.. par fir bhi kuchh bhi dekhna wahan namumkin tha.. Ji bhar kar apne aapko chhudane ki mashakkat karne ke baad mera badan dheela pad gaya.. main thar-thar kaanp rahi thi....
Ajeebogareeb haadse se bhouchakk mera dimag jaise hi kuchh shant hua.. Mujhe tab jakar pata chala ki maam'la toh kuchh aur hi hai.. 'Wo' mere pichhe khada mujhe ek hath se sakhti se thame aur dusre hath se mere munh ko dabaye meri gardan ko chaatne mein talleen tha...
Uske mujhe yahan ghaseet kar laane ka maksad samajh mein aate hi mere dimag ka sara bojh gayab ho gaya... Mere badan mein achanak gudgudi si hone lagi aur main aanand se sihar uthi...
Main usko batana chahti thi ki jane kab se main iss pal ke liye tadap rahi hoon.. main palat kar uss'se lipat jana chahti thi... Apne kapde utaar kar faink dena chahti thi... par wo chhodta tabhi na....!
Meri taraf se virodh khatam hone par usne meri kamar par apni pakad thodi dheeli kar di.... par Munh par uska hath utni hi majbooti se jama hua tha... Achanak uska hath dheere dheere neeche sarakta hua meri salwar mein ghus gaya.. aur kachchhi ke upar se meri yoni ki faankon ko dhoondh kar unhe thapthapane laga... Itna maja aa raha tha ki main pagal si ho gayi.. Honton se main apne manobhav prakat kar nahi pa rahi thi.. par achanak hi jaise main kisi dusre hi lok mein pahunch gayi.. Meri aankhein adhkhuli si ho gayi... kasmasakar maine apni taangein choudi karke jaanghon ke beech 'aur' jagah bana li... taki mere apharta ko meri 'yoni-sewa' karne mein kisi tarah ki koyi dikkat na ho... Aur jaise hi uss'ne meri kachchhi ke andar hath daal apni ungali se meri yoni ka chhed dhoondhne ki koshish ki.. Main toh pagal hi ho gayi... meri siski mere gale se bahar na aa saki.. par usko apne bhawon se awagat karane ke liye maine apna hath bhi uske hath ke sath sath apni salwar mein ghusa diya........
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Mere hath ke neeche dabe uske hath ki ek ungali kuchh der tak meri yoni ki daraar mein upar neeche hoti rahi.. Apne hath aur paraye hath mein jameen aasmaan ka antar hone ka mujhe aaj pahli baar pata chala.. Aanand toh apne hath se bhi kafi aata tha.. par 'uss' ke hath ki toh baat hi alag thi..
Meri chikni yoni ki faankon ke beech thirakti huyi uski ungali jaise hi yoni ke daane ko chhooti.. mera badan jhanjhana uthta.. aur jaise hi chiknahat se labalab yoni ke chhed par aakar uski ungali thaharati.. Mere dil ki dhadkan badh jati.. Mera dimag sunn ho jata aur meri siski gale mein hi ghut kar rah jati....
Mujhe yakeen ho chala tha ki aaj iss kunware chhed ka kalyan ho kar rahega.. Meri samajh mein nahi aa raha tha ki wo aakhir itni der laga kyun raha hai.. Meri besabri badhti ja rahi thi.. apni jaanghon ko main pahle se dugna khol chuki thi aur mere liye khada rahna ab muskil ho raha tha...
Achanak usne Apna hath bahar nikal liya... Mera dil balliyon par aakar atak gaya.. ab Main uske aage badhne ki ummeed kar rahi thi... aur aisa hua bhi... Agle hi pal usne meri salwar ka naada khola aur meri salwar neeche sarka di.. Meri nangi jaanghon ke thand se thithur rahe hone ka muqabla mere andar se uth rahi bheesan kaam~lapaton se ho raha tha.. Isiliye mujhe thand na ke barabar hi lag rahi thi...
Achanak usne meri kachchhi bhi neeche sarka di... aur iske sath hi mere chikne nitamb bhi anawrit ho gaye.. Usne ek apna hath nitambon ke ek 'paat' par rakha aur usko dheere dheere dabane laga.. Mujhe yakeen tha ki agar wahan prakash hota toh mere nitambon ki golayi, kasawat aur uthan dekhkar wo pagla jata.. Shayad andhere ki wajah se hi wo ab tak sanyam se kaam le pa raha tha..
Mujhe wahan bhi maja aa raha tha par aage yoni ki tadap mujhe sahan nahi ho rahi thi.. Main 'kaam' jari rakhne ke iraade se apna hath neeche le gayi aur 'yoni' faankon par hath rakh kar dheere dheere unhe masalne lagi..
Mere aisa karne se shayad usko mere uttejit hone ka ahsaas ho gaya... Mere nitamobn se kuchh der aur khelne ke baad wo ruk gaya aur ek do baar mere munh se hath dheela karke dekha... Mere munh se lambi lambi saanse aur siskiyan nikalte dekh wo poori tarah aashwast ho gaya aur usne apna hath mere munh se hata liya....
Kaamandh hone ke bawjood, usko jaan'ne ki jigyasa bhi mere mann mein thi.. maine apni yoni ko sahlana chhod dheere se uss'se kaha,"Mujhe bahut maja aa raha hai.. par koun ho tum?"
Jawab dena toh door, usne toh mere munh ko hi fir daba liya.. Maine hulke pratirodh bharo goon-goon ki toh usne hath hatakar meri baat fir sun li," Theek hai.. main kuchh nahi poochhti.. par jaldi karo na.. mujhe bahut maja aa raha hai..." Mujhe toh aam khane se matlab tha.. Jo koyi bhi tha.. mere jeewan ka pratham nari ahsaas mujhe kara hi raha tha.. bahut sukhad tareeke se....
Mere aisa kahne par shayad wah be-fikar ho gaya aur meri kameej ke neeche se kulhon ko pakad kar neeche baith gaya... Uski garam garam saanse ab meri jaanghon ke beech se jakar meri yoni ki faankon ko fadfadane ko vivash kar rahi thi....
Kuchh der baad usne apna ek hath mere kulhon se nikal kar meri peeth ko aage ki aur dabaya... Main uska ishara samajh gayi aur khadi khadi aage jhuk kar apni kohniyan saamne chhoti si deewar par tika li.. Aisa karne ke baad mere nitamb pichhe ki aur nikal gaye..
Usne apna munh mere nitambon ke beech ghusa diya aur meri yoni ko apne honton se chooma.. Main kasmasa uthi.. Itna aanand aaya ki main bayan nahi kar sakti.. Maine apni jaanghon ko aur khol kar mere uss anjaan aashik ki raahein aasan kar di..
Kuchh der aur choomne ke baad usne meri poori yoni ko apne munh mein daboch liya.. aanand ke maare mein chhatpata uthi.. par wah shayad abhi mujhe aur tadpane ke mood mein tha....
Wah jeebh nikal kar yoni ki faankon aur unke beech ki patli si daraar ko chat chat kar mujhe pagal karta ja raha tha.. Meri siskiyan choupal ke lambe kamre ke karan pratidhawanit hokar mujh tak hi wapas aa rahi thi.. Uski tej ho rahi saanson ki aawaj bhi mujhe sunayi de rahi thi.. par bahut dheere dheere....
Aakhirkaar tadap sahan karne ki had paar hone par maine ek baar aur uss'se sisakte huye nivedan kiya......," Ab toh kar do na! kar do na pls!"
Mujhe nahi pata usne meri baat par gour kiya ya nahi.. par uski jeebh ka sthan fir se uski ungali ne le liya... daanton se rah rah kar wo mere nitamon ko hulke hulke kaat raha tha....
Jo koyi bhi tha... Par mujhe aisa maja de raha tha jiski maine kalpana bhi kabhi nahi ki thi.. Main uski deewani hoti ja rahi thi, aur uska naam jaan'ne ko bekaraar....
Achanak mein uchhal padi.. Meri yoni ke chhed mein jhatke ke sath uski aadhi ungali ghus gayi... par mujhe achanak mile iss dard ke mukable mila aanand atulneey tha.. Kuchh der andar hulchal machane ke baad jab uski ungali bahar aayi toh meri yoni se ras tapak tapak kar meri jaanghon par fail raha tha.... Par meri bhookh shant nahi huyi....
Achanak usne mujhe chhod diya.. Maine khadi hokar uski taraf munh kar liya.. par ab bhi saamne kisi ke khade hone ke ahsaas ke alawa kuchh dikhayi nahi pad raha tha....
Apni kamar ke paas uske hathon ki hulchal se Mujhe laga wah apni pant utar raha hai... Par main itni bekaraar ho chuki thi ki pant utarne ka intjaar nahi kar sakti thi.. Maine jindagi mein teen-char ling dekhe the... Main jald se jald uske ling ko chhoo kar dekh lena chahti thi aur jaan lena chahti thi ki uska size meri chhoti si kunwari machhli ke liye upyukt hai ya nahi.... Main apna hath andaje se uski jaanghon ke beech le gayi...
Andaja mera sahi tha.. Mera hath theek uski jaanghon ke beech tha... par ye kya? Uska ling toh mujhe mila hi nahi....
Meri aankhein aascharya mein sikud gayi... Achanak mere dimag mein ek dusra sawaal koundha..," Kahin....?"
Aur maine seedha uski chhatiyon par hath maara... Mera sara josh ek dum thanda pad gaya," Chhi.. tum toh ladki ho!"
Wah shayad apni pant ko khol nahi bulki, apni salwar ko baandh rahi thi.. Aur kaam poora hote hi wah mere sawaal ka jawab diye bina wahan se gayab ho gayi....
Mera mann glani se bhar gaya.. Mujhe pata nahi tha ki ladki ladki ke beech bhi ye khel hota hai.... Sara maja kirkira ho gaya aur aakhirkaar aaj meri yoni ka shree ganesh hone ki ummeed bhi dhumil pad gayi.. aur meri lislisi jaanghein ghar ki aur jate huye mujhe bhari bhari si lag rahi thi....
Ghar aakar lete huye main ye soch soch kar pareshan thi ki main usko pahle kyun nahi pahchan payi.. Aakhir jab usne mujhe pakad kar upar uthaya aur mujhe chupal mein le gayi.. tab toh uski chhatiyan meri kamar se chipki hi hongi... par shayad darr ke chalte uss waqt dimag ne kaam karna bandh kar diya hoga....
Agle din maine subah bathroom mein apni adhuri pyas apni ungali se bujhane ki koshish ki.. par main ye mahsoos karke hairan thi ki ab mere hath se mujhe utna maja bhi nahi aa raha tha jitna aa jata tha... Mera dimag kharaab ho gaya.. Ab meri yoni ko uske 'yaar' ki jald se jald jaroorat thi.. par sabse bada sawaal jisne mujhe poore din pareshan rakha; wo ye tha ki aakhir wo thi koun?
Sham ko tuition ke liye jate huye jaise hi main choupal ke paas se gujri, mere poore badan mein pichhli raat ki baat yaad karke jhurjhuri si uth gayi. Beshak wo ladki thi, par maine pata chalne se pahle aanand sagar mein jis tarah dubakiyan si lagayi thi.., unhe yaad karke mera jism ekdum akad gaya.....
Uss din main tuition par Tarun se bhi jyada uss ladki ke baare mein sochti rahi.. Roz ki tarah hi chachi 10 baje chay lekar aa gayi.. Unke aate hi Pinki Tarun ke saamne se uthkar bhag gayi," Bus! mummy aa gayi! iska matlab sone ka time ho gaya... hai na mummy?"
Chachi uski baat sunkar hansne lagi,"Nikammi! tu poori kaamchor hoti ja rahi hai.. Dekh lena agar no. kam aaye toh..!"
"Haan haan... theek hai.. dekh lena! ab main thodi der rajayi mein garam ho loon.. jate huye mujhe le chalna mummy!" Pinki ne shararat se kaha aur Rajayi mein dubak gayi...
"Ye dono padhayi toh theek kar rahi hain na; Tarun?" Chachi ne poochha....
"Haan; theek thaak hi karti hain chachi..." Tarun ne kahkar tirachhi najron se Meenu ko dekha aur hansne laga....
"Hamein Meenu ki chinta nahi hai beta! ye toh hamari honhar beti hai.." Chachi ne pyar se meenu ke gaal ko pakad kar kheencha toh wo bhi tarun ki taraf hi dekh kar muskurayi...," Hamein toh chhoti ki chinta hai.. jab tum padhate ho.. tabhi kitaabein kholti hai.. warna toh ye ek akshar tak nahi dekhti...!"
"Achchha! Main chalti hoon chachi!" Maine kaha aur cup ko tray mein rakh kar uth khadi huyi..
"Theek hai Anju beti! jara sambhal kar jana!" Chachi ne kaha...
Mujhe theek se yaad nahi aa raha ki asli wajah kya thi.. par main darwaje se hi wapas mud gayi thi uss din," Wo... Ek baar chhod aate..!" Maine Tarun ki aur dekhte huye hulke se kaha...
"Kyun?....... kya ho gaya? Roz toh akeli chali jati thi.." Tarun ne poochha....
"Pata nahi kyun? Aaj darr sa lag raha hai..." Maine jawaab diya....
"Arey yahin so jao na beti... waise bhi thand mein ab kahan bahar nikalogi.. main fone kar deti hoon.. tumhari mummy ke paas..." Chachi ne pyar se kaha....
"Nahi chachi.. koyi baat nahi; main chhod aata hoon..." Kahkar Tarun turant khada ho gaya....
Jane kyun? Par main Tarun ki baat ko ansuna sa karte huye wapas charpayi par aakar baith gayi," Theek hai chachi.. par aap yaad karke fone kar dena.. nahi toh papa yahin aa dhamkenge.. aapko toh pata hi hai..."
"Arrey beti.. apne ghar koyi alag alag thode hi hain.. agar aisi koyi baat hoti toh wo tumhe yahan tuition par bhi nahi bhejte.. main abhi upar jate hi fone kar deti hoon.... tum aaram se so jao.. Pinki aur meenu bhi yahin so jayengi fir toh... Tum beta Tarun...." Chachi ruk kar Tarun ki aur dekhne lagi....
"arey nahi nahi chachi.. main toh roj chala hi jata hoon.. uss din toh.. mujhe bukhar sa lag raha tha.. isiliye..." Tarun ne apna sa munh lekar kaha....
"Main wo thode hi kah rahi hoon beta.. tum toh hamare bete jaise hi ho.. main toh bus isiliye poochh rahi hoon ki agar tumhe na jana ho toh ek rajayi aur lakar de deti hoon..." Chachi ne safayi si di.....
"Nahi.. mujhe toh jana hi hai chachi... bus.. Meenu ko ek 'Sonnet' ka translation karwana hai....
"Theek hai beta.. Main toh chalti hoon... " Chachi ne kaha aur fir Meenu ki aur rukh kiya," Darwaja theek se band kar lena beti, apne bhaiya ke jate hi..!"
Meenu ne haan mein sir hilaya.. par maine gour kiya.. mere yahan rukne ki kahne ke baad dono ke chehron ka gulabi rang utar gaya tha.....
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
Tags = राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ Raj sharma stories , kaamuk kahaaniya , rajsharma हिंदी सेक्सी कहानिया चुदाई की कहानियाँ उत्तेजक कहानिया Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | सेक्सी कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना | कामसुत्रा | मराठी जोक्स | सेक्सी कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी सेक्स कहानियाँ | मराठी सेक्स | vasna ki kamuk kahaniyan | kamuk-kahaniyan.blogspot.com | सेक्स कथा | सेक्सी जोक्स | सेक्सी चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी सेक्सी कहानी | पेलता | सेक्सी कहानियाँ | सच | सेक्स कहानी | हिन्दी सेक्स स्टोरी | bhikaran ki chudai | sexi haveli | sexi haveli ka such | सेक्सी हवेली का सच | मराठी सेक्स स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | चूत की कहानियाँ | मराठी सेक्स कथा | बकरी की चुदाई | adult kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | sexi kutiya | आँटी की चुदाई | एक सेक्सी कहानी | चुदाई जोक्स | मस्त राम | चुदाई की कहानियाँ | chehre ki dekhbhal | chudai | pehli bar chut merane ke khaniya hindi mein | चुटकले चुदाई के | चुटकले व्यस्कों के लिए | pajami kese banate hain | चूत मारो | मराठी रसभरी कथा | कहानियाँ sex ki | ढीली पड़ गयी | सेक्सी चुची | सेक्सी स्टोरीज | सेक्सीकहानी | गंदी कहानी | मराठी सेक्सी कथा | सेक्सी शायरी | हिंदी sexi कहानिया | चुदाइ की कहानी | lagwana hai | payal ne apni choot | haweli | ritu ki cudai hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | sexi haveli ka sach | sexyhaveli ka such | vasana ki kaumuk | www. भिगा बदन सेक्स.com | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कहानियाँ | chudai | कामरस कहानी | कामसुत्रा ki kahiniya | चुदाइ का तरीका | चुदाई मराठी | देशी लण्ड | निशा की बूब्स | पूजा की चुदाइ | हिंदी chudai कहानियाँ | हिंदी सेक्स स्टोरी | हिंदी सेक्स स्टोरी | हवेली का सच | कामसुत्रा kahaniya | मराठी | मादक | कथा | सेक्सी नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | sexi | bua | bahan | maa | bhabhi ki chudai | chachi ki chudai | mami ki chudai | bahan ki chudai | bharat | india | japan |यौन, यौन-शोषण, यौनजीवन, यौन-शिक्षा, यौनाचार, यौनाकर्षण, यौनशिक्षा, यौनांग, यौनरोगों, यौनरोग, यौनिक, यौनोत्तेजना,
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