FUN-MAZA-MASTI
चूत पर रेशमी बाल--1
गर्मी की तपती हुई दोपहर थी !
मै मस्तराम की 'कुँवारी जवानी' पढ़कर अपने लौड़े को मुठिया रहा था।
इसे मैने लखनऊ के चारबाग स्टेशन के बाहर एक फुटपाथ से खरीदा था।
किताब की कीमत थी 50 रूपये।
लेकिन जो मजा मिल रहा था उसकी कीमत का कोई मूल्य नहीं था।
इस किताब को पढ़ कर मै पचासों बार अपना लौड़ा झाड़ चुका था और हर बार उतनी ही लज्जत और मस्ती का अहसास होता था जैसे पहली बार पढ़ने पर हुआ था।
कहानी में एक ऐसे ठर्की बूढ़े का जिक्र था जिसे घर बैठे-बैठे ही एक कुँवारी चूत मिल जाती है !
इस कहानी को पढ़कर मै भी दिन में ही सपना देखने लगा था जैसे मुझे भी घर बैठे-बैठे ही कुँवारी चूत मिल जायेगी और फिर मै उसमें अपना मोटा मूसल घुसा कर भोषड़ा बना दूंगा।
यही सोच-सोच के लौड़े को मुठियाकर पानी निकाल देता था।
लेकिन फिर एक अजीब सी चिन्ता भीतर कहीं सिर उठाने लगती की कहीं अपनी जवानी बरबाद तो नहीं कर रहा हूँ।
इसी चिन्ता से ग्रस्त मै मिला 'बाबा लौड़ा भस्म भुरभुरे' से।
जिनकी दुकान आलमबाग में एक गली के अंदर थी।
पहले तो भीतर जाने में संकोच लगा लेकिन जब देखा की दुकान एकदम किनारे हैं और कोई भी इधर आता जाता नहीं दिख रहा तो मै जल्दी से भीतर घुस गया। पूरी की पूरी दुकान तरह-तरह की जड़ी बूटियों से भरी पड़ी थी।
लौड़ा भस्म भुरभुरे ने मुझे अपनी मर्दाना ताकत को बरकरार रखने का एक नुस्खा बताया।
मूठ चाहे जितना मारो लेकिन हर महीने एक चूत का भोग जरूर करना वरना लौड़े को मूठ की आदत पड़ जायेगी फिर लड़की देखकर भी पूरा तनाव नहीं आ पायेगा।
इस बात का डर भी लगा रहेगा की कहीं मैं बुर को चोदकर उसे ठण्डा कर पाऊगा भी या नहीं।
इस सोच से एक मानसिक कुंठा दिमाग में घर कर जायेगी। जिसकी वजह से लौड़े में पूरी तरह से तनाव नहीं आ पाता।
इसके अलावा उन्होंनें भैसे के वृषण का कच्चा तेल, बैल के सींग का भस्म व ताजा- ताजा ब्याही औरत की चूत का बाल यानि झाँटों को जलाकर उसमें गर्भवती औरत की चूची का कच्चा दूध मिलाकर एक घुट्टी दी।
कुल मिलाकर एक हजार रूपये का लम्बा बिल बना। मगर मर्दाना ताकत बरकरार रहें ताकि बुर चोदने का मजा लेता रहूँ, इस लोभ के आगे एक हजार क्या था....मिट्टी।
तो मै बात कर रहा था तपती हुई दोपहर की। जब मै कमरे में पंखे की ठण्डी हवा में चारपाई पर लेटा अपने लौड़े पर भैसे के बृषण का कच्चा तेल लगा रहा था।
कमाल की बात ये थी की लौड़ा भस्म भुरभुरे की दवा काफी कारगर साबित हो रही थी। लौड़े पर तेल लगाते ही लौड़ा काफी सख्त हो जाता था जैसे भैंसे और बैल की ताकत मेरे लौड़े में ही समा गई हो।
इतना टाइट की 12 साल की कच्ची बुर को भी फाड़ कर घुस जाय।
अगर इस वक्त मुझे कोई कच्ची बुर ही मिल जाती तो मै उसे छोड़ने वाला नहीं था।
और हुआ भी वहीं।
मानों भगवान ने मेरी सुन ली।
घर बैठे-बैठे चूत की व्यवस्था हो गई थी।
मेरे घर के पिछवाड़े एक ईमली का पेड़ था।
जहाँ अक्सर लड़के लड़कियाँ ईमली तोड़ने आ जाते थे।
दिन भर मै उन लोगों को हाँकता ही रहता था।
लेकिन आज की तरह मेरी नियत मैली नहीं थी।
मैने बाहर कुछ लड़कियों की फुसफुसाती आवाज सुनी तो कान शिकारी लोमड़ी की तरह सतर्क हो गये।
मै लौड़े को हाथ से मुठियाते हुए खिड़की तक पहुँचा और पीछे झाँका तो मानों मुँह माँगी मुराद मिल गई।
एक छोटी लड़की लगभग 11 साल की नीचे से ईमली उठा-उठा कर अपनी स्कर्ट की झोली में डाल रही थी।
लेकिन मेरी नियत उस लड़की पर उतनी खराब नहीं हुई जितनी उस लड़की पर जो ईमली की एक डाल पर चढ़ कर ईमली तोड़कर नीचे फेंक रही थी।
सीने के ऊभार बता रहे थे की अभी 14-15 के बीच में ही थी।
यानि एकदम कोरी, कुँवारी, चिपकी हुई, अनछुई, रेशमी झाँटों वाली कसी बुर।
सोच के ही लौड़े के छेद से लसलसा पानी चू गया।
मेरा कमीना दिल सीने के पिंजरे में किसी बौराये कुत्ते की तरह जोर-जोर से भौंकने लगा।
देखकर कसा-कसा लाल चिपचिपा बिल, भौंकने लगता है ये साला दिल!
ये मस्तराम की शायरी थी जो इस वक्त मेरे दिमाग में हूटर की तरह बज रहा था।
फिर क्या था- मैने बनियान पहनकर एक लुंगी लपेटी और एक डण्डा उठाकर धड़धड़ाते हुए वहाँ पहुचा।
वही हुआ जो होना लाजमी था।
छोटी भाग खड़ी हुई लेकिन बड़ी जाल में फँस गई।
"नीचे ऊतर साली चोट्टी...."- मैने डण्डा जमीन पर पटककर उसकी तरफ देखा।
वो एक डाल पर दुबकी बैठी थी।
नीचे से मै उसकी कोरी जवानी देख रहा था।
दोनों टागों के बीच लाल रंग की छोटी सी कच्छी।
जिसके नीचे उसकी कच्ची बुर छिपी हुई थी।
देखकर ही लौड़ा हिनहिनाने लगा।
जब मैने देखा की मेरे डाँटने पर वो नीचे नहीं आ रही तो मैने प्यार से पुचकारा-
"चल...नीचे उतर...नहीं मारूगा...अगर मेरे 10 गिनने तक नीचे नहीं आई तो समझ लेना..."
फिर वो डरते सहमते नीचे उतरने लगी।
मै लुंगी के नीचे लौड़े को सोहराता हुआ स्कर्ट के नीचे उसकी गोरी-गोरी गदराई टागों को देखकर मस्ताया हुआ था।
कुल मिलाकर अभी कच्ची कली थी जो धीरे-धीरे खिल रही थी।
जब वो मेरे सामने आ खड़ी हुई तब मैने उसे सिर से लेकर पाँव तक घूरा।
लौड़े में मस्ती की लहर दौड़ गई।
मै उसे देखकर लुंगी के नीचे अपने लौड़े को मसल रहा था।
"नाम क्या है तेरा?..."
"रुचि...."-वो सहमे हुए भाव से बोली।
"किस क्लास में है?.."
"आठवीं में...."
यानि अभी 14 से 15 साल की थी।
मतलब चूत पर रेशमी बाल आ चुके थे।
और हो सकता था माहवारी भी शुरू हो गई हो।
सोचकर ही लौड़ा लुंगी के अंदर हाँफने लगा।
"किसके घर की है?...."
"राम आसरे मेरे पापा हैं...."
"अच्छा तो तु उस दरुवल की लौडिया है....अच्छा हुआ तू मेरे हाथ लग गई....तेरे बाप से तो काफी पुराना हिसाब चुकता करना है...चल अंदर चल...और अगर ज्यादा आना कानी की तो यहीं पर उल्टा लटका दूँगा...तेरा बाप मेरा झाँट भी नहीं उखाड़ पायेगा।..."
वो और ज्यादा सहम गई।
मैने उसका हाथ पकड़ा और उसे कमरे के भीतर ले आया।
मैने दरवाजे में अंदर से कुण्डी लगा ली।
कहते हैं की भूखे शेर के पंजे में माँस और हबशी पुरूष के चंगुल में फँसी लड़की.....दोनों का एक ही जैसा हश्र होता है। दोनों भूख मिटाने के ही काम आती हैं। एक पेट की तो दूसरी लण्ड की।
दोनों ही खून फेंकती हैं चाहे माँस हो, चाहे कच्ची बुर।
शिकार फँसाने के बाद अगर उसे सब्र के साथ खाया जाय तो ज्यादा मजा आता है।
लेकिन ये साली सब्र बड़ी कमीनी चीज है....होकर भी नहीं होती।
खासतौर पर तब जब फ्री फण्ड की कुँवारी लड़की हाथ लग जाय।
वो भी घर बैठ कर ख्याली पुलाव पकाते हुए।
धन्य हो मेरे परदादा जी जिन्होने ईमली का पेड़ पिछवाड़े लगाया था।
फल ही फल मिल रहा था- खट्टा भी और नमकीन भी।
खट्टा यानी ईमली का मजा और नमकीन मतलब कुँवारी बुर के अनचुदे छेद में अटकी पेशाब की बूँद को जीभ से चाटने का मजा।
लौड़ा भस्म भुरभुरे की एक और बात याद आई कि कुँवारी, अनचुदी, माहवारी हो रही बुर का पेशाब पीने से मर्दाना ताकत बनी रहती है।
इस वक्त मेरी नजर वहाँ थी जहाँ सम्भवतया लड़की की भूरे रोयेंवाली छोटी सी गोरी-गोरी बुर हो सकती थी।
मै लुंगी के भीतर लौड़े के छेद से चू रहे लसलसे पानी को ऊँगली से सुपाड़े पर मल रहा था।
ताकि कुँवारी चूत में घुसने के लिए सुपाड़ा एकदम चिकना हो जाय।
"हमें जाने दीजिये......फिर कभी ईमली तोड़ने नहीं आँऊगी....."
"एक शर्त पे छोड़ दूँगा, अगर.....अपना मूत पिला दे..."
"धत्त्..."
मेरी बात सुनकर लड़की शरमा कर नीचे देखने लगी।
यानि उम्र भले ही छोटी थी लेकिन उतनी अंजान भी नहीं थी।
ये सोच कर मेरी मस्ती और भी बढ़ गई।
"अगर तुमने मेरा कहना नहीं माना तो नंगी करके ईमली के पेड़ पर उल्टा लटका दूँगा...सारे लड़के तुम्हें नंगी देख कर खूब मजा लूटेंगें...."
मेरी ये बात सुनकर वो घबराई भी और थोड़ी सहमी भी।
"बोलो....पिलाओगी अपना पेशाब...."
वह चुपचाप खड़ी रही।
"जल्दी बोलो नहीं तो तुझे अभी ले चलता हूँ...."
इतना कहकर मै एक कदम उसकी तरफ बढ़ा।
उसने जल्दी से अपना सिर हाँ में हिलाया।
मैने जल्दी से एक गद्दा लिया और उसे फर्श पर बिछा दिया।
फिर छत की तरफ सिर करके लेट गया।
शेष अगले भाग में......
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चूत पर रेशमी बाल--1
गर्मी की तपती हुई दोपहर थी !
मै मस्तराम की 'कुँवारी जवानी' पढ़कर अपने लौड़े को मुठिया रहा था।
इसे मैने लखनऊ के चारबाग स्टेशन के बाहर एक फुटपाथ से खरीदा था।
किताब की कीमत थी 50 रूपये।
लेकिन जो मजा मिल रहा था उसकी कीमत का कोई मूल्य नहीं था।
इस किताब को पढ़ कर मै पचासों बार अपना लौड़ा झाड़ चुका था और हर बार उतनी ही लज्जत और मस्ती का अहसास होता था जैसे पहली बार पढ़ने पर हुआ था।
कहानी में एक ऐसे ठर्की बूढ़े का जिक्र था जिसे घर बैठे-बैठे ही एक कुँवारी चूत मिल जाती है !
इस कहानी को पढ़कर मै भी दिन में ही सपना देखने लगा था जैसे मुझे भी घर बैठे-बैठे ही कुँवारी चूत मिल जायेगी और फिर मै उसमें अपना मोटा मूसल घुसा कर भोषड़ा बना दूंगा।
यही सोच-सोच के लौड़े को मुठियाकर पानी निकाल देता था।
लेकिन फिर एक अजीब सी चिन्ता भीतर कहीं सिर उठाने लगती की कहीं अपनी जवानी बरबाद तो नहीं कर रहा हूँ।
इसी चिन्ता से ग्रस्त मै मिला 'बाबा लौड़ा भस्म भुरभुरे' से।
जिनकी दुकान आलमबाग में एक गली के अंदर थी।
पहले तो भीतर जाने में संकोच लगा लेकिन जब देखा की दुकान एकदम किनारे हैं और कोई भी इधर आता जाता नहीं दिख रहा तो मै जल्दी से भीतर घुस गया। पूरी की पूरी दुकान तरह-तरह की जड़ी बूटियों से भरी पड़ी थी।
लौड़ा भस्म भुरभुरे ने मुझे अपनी मर्दाना ताकत को बरकरार रखने का एक नुस्खा बताया।
मूठ चाहे जितना मारो लेकिन हर महीने एक चूत का भोग जरूर करना वरना लौड़े को मूठ की आदत पड़ जायेगी फिर लड़की देखकर भी पूरा तनाव नहीं आ पायेगा।
इस बात का डर भी लगा रहेगा की कहीं मैं बुर को चोदकर उसे ठण्डा कर पाऊगा भी या नहीं।
इस सोच से एक मानसिक कुंठा दिमाग में घर कर जायेगी। जिसकी वजह से लौड़े में पूरी तरह से तनाव नहीं आ पाता।
इसके अलावा उन्होंनें भैसे के वृषण का कच्चा तेल, बैल के सींग का भस्म व ताजा- ताजा ब्याही औरत की चूत का बाल यानि झाँटों को जलाकर उसमें गर्भवती औरत की चूची का कच्चा दूध मिलाकर एक घुट्टी दी।
कुल मिलाकर एक हजार रूपये का लम्बा बिल बना। मगर मर्दाना ताकत बरकरार रहें ताकि बुर चोदने का मजा लेता रहूँ, इस लोभ के आगे एक हजार क्या था....मिट्टी।
तो मै बात कर रहा था तपती हुई दोपहर की। जब मै कमरे में पंखे की ठण्डी हवा में चारपाई पर लेटा अपने लौड़े पर भैसे के बृषण का कच्चा तेल लगा रहा था।
कमाल की बात ये थी की लौड़ा भस्म भुरभुरे की दवा काफी कारगर साबित हो रही थी। लौड़े पर तेल लगाते ही लौड़ा काफी सख्त हो जाता था जैसे भैंसे और बैल की ताकत मेरे लौड़े में ही समा गई हो।
इतना टाइट की 12 साल की कच्ची बुर को भी फाड़ कर घुस जाय।
अगर इस वक्त मुझे कोई कच्ची बुर ही मिल जाती तो मै उसे छोड़ने वाला नहीं था।
और हुआ भी वहीं।
मानों भगवान ने मेरी सुन ली।
घर बैठे-बैठे चूत की व्यवस्था हो गई थी।
मेरे घर के पिछवाड़े एक ईमली का पेड़ था।
जहाँ अक्सर लड़के लड़कियाँ ईमली तोड़ने आ जाते थे।
दिन भर मै उन लोगों को हाँकता ही रहता था।
लेकिन आज की तरह मेरी नियत मैली नहीं थी।
मैने बाहर कुछ लड़कियों की फुसफुसाती आवाज सुनी तो कान शिकारी लोमड़ी की तरह सतर्क हो गये।
मै लौड़े को हाथ से मुठियाते हुए खिड़की तक पहुँचा और पीछे झाँका तो मानों मुँह माँगी मुराद मिल गई।
एक छोटी लड़की लगभग 11 साल की नीचे से ईमली उठा-उठा कर अपनी स्कर्ट की झोली में डाल रही थी।
लेकिन मेरी नियत उस लड़की पर उतनी खराब नहीं हुई जितनी उस लड़की पर जो ईमली की एक डाल पर चढ़ कर ईमली तोड़कर नीचे फेंक रही थी।
सीने के ऊभार बता रहे थे की अभी 14-15 के बीच में ही थी।
यानि एकदम कोरी, कुँवारी, चिपकी हुई, अनछुई, रेशमी झाँटों वाली कसी बुर।
सोच के ही लौड़े के छेद से लसलसा पानी चू गया।
मेरा कमीना दिल सीने के पिंजरे में किसी बौराये कुत्ते की तरह जोर-जोर से भौंकने लगा।
देखकर कसा-कसा लाल चिपचिपा बिल, भौंकने लगता है ये साला दिल!
ये मस्तराम की शायरी थी जो इस वक्त मेरे दिमाग में हूटर की तरह बज रहा था।
फिर क्या था- मैने बनियान पहनकर एक लुंगी लपेटी और एक डण्डा उठाकर धड़धड़ाते हुए वहाँ पहुचा।
वही हुआ जो होना लाजमी था।
छोटी भाग खड़ी हुई लेकिन बड़ी जाल में फँस गई।
"नीचे ऊतर साली चोट्टी...."- मैने डण्डा जमीन पर पटककर उसकी तरफ देखा।
वो एक डाल पर दुबकी बैठी थी।
नीचे से मै उसकी कोरी जवानी देख रहा था।
दोनों टागों के बीच लाल रंग की छोटी सी कच्छी।
जिसके नीचे उसकी कच्ची बुर छिपी हुई थी।
देखकर ही लौड़ा हिनहिनाने लगा।
जब मैने देखा की मेरे डाँटने पर वो नीचे नहीं आ रही तो मैने प्यार से पुचकारा-
"चल...नीचे उतर...नहीं मारूगा...अगर मेरे 10 गिनने तक नीचे नहीं आई तो समझ लेना..."
फिर वो डरते सहमते नीचे उतरने लगी।
मै लुंगी के नीचे लौड़े को सोहराता हुआ स्कर्ट के नीचे उसकी गोरी-गोरी गदराई टागों को देखकर मस्ताया हुआ था।
कुल मिलाकर अभी कच्ची कली थी जो धीरे-धीरे खिल रही थी।
जब वो मेरे सामने आ खड़ी हुई तब मैने उसे सिर से लेकर पाँव तक घूरा।
लौड़े में मस्ती की लहर दौड़ गई।
मै उसे देखकर लुंगी के नीचे अपने लौड़े को मसल रहा था।
"नाम क्या है तेरा?..."
"रुचि...."-वो सहमे हुए भाव से बोली।
"किस क्लास में है?.."
"आठवीं में...."
यानि अभी 14 से 15 साल की थी।
मतलब चूत पर रेशमी बाल आ चुके थे।
और हो सकता था माहवारी भी शुरू हो गई हो।
सोचकर ही लौड़ा लुंगी के अंदर हाँफने लगा।
"किसके घर की है?...."
"राम आसरे मेरे पापा हैं...."
"अच्छा तो तु उस दरुवल की लौडिया है....अच्छा हुआ तू मेरे हाथ लग गई....तेरे बाप से तो काफी पुराना हिसाब चुकता करना है...चल अंदर चल...और अगर ज्यादा आना कानी की तो यहीं पर उल्टा लटका दूँगा...तेरा बाप मेरा झाँट भी नहीं उखाड़ पायेगा।..."
वो और ज्यादा सहम गई।
मैने उसका हाथ पकड़ा और उसे कमरे के भीतर ले आया।
मैने दरवाजे में अंदर से कुण्डी लगा ली।
कहते हैं की भूखे शेर के पंजे में माँस और हबशी पुरूष के चंगुल में फँसी लड़की.....दोनों का एक ही जैसा हश्र होता है। दोनों भूख मिटाने के ही काम आती हैं। एक पेट की तो दूसरी लण्ड की।
दोनों ही खून फेंकती हैं चाहे माँस हो, चाहे कच्ची बुर।
शिकार फँसाने के बाद अगर उसे सब्र के साथ खाया जाय तो ज्यादा मजा आता है।
लेकिन ये साली सब्र बड़ी कमीनी चीज है....होकर भी नहीं होती।
खासतौर पर तब जब फ्री फण्ड की कुँवारी लड़की हाथ लग जाय।
वो भी घर बैठ कर ख्याली पुलाव पकाते हुए।
धन्य हो मेरे परदादा जी जिन्होने ईमली का पेड़ पिछवाड़े लगाया था।
फल ही फल मिल रहा था- खट्टा भी और नमकीन भी।
खट्टा यानी ईमली का मजा और नमकीन मतलब कुँवारी बुर के अनचुदे छेद में अटकी पेशाब की बूँद को जीभ से चाटने का मजा।
लौड़ा भस्म भुरभुरे की एक और बात याद आई कि कुँवारी, अनचुदी, माहवारी हो रही बुर का पेशाब पीने से मर्दाना ताकत बनी रहती है।
इस वक्त मेरी नजर वहाँ थी जहाँ सम्भवतया लड़की की भूरे रोयेंवाली छोटी सी गोरी-गोरी बुर हो सकती थी।
मै लुंगी के भीतर लौड़े के छेद से चू रहे लसलसे पानी को ऊँगली से सुपाड़े पर मल रहा था।
ताकि कुँवारी चूत में घुसने के लिए सुपाड़ा एकदम चिकना हो जाय।
"हमें जाने दीजिये......फिर कभी ईमली तोड़ने नहीं आँऊगी....."
"एक शर्त पे छोड़ दूँगा, अगर.....अपना मूत पिला दे..."
"धत्त्..."
मेरी बात सुनकर लड़की शरमा कर नीचे देखने लगी।
यानि उम्र भले ही छोटी थी लेकिन उतनी अंजान भी नहीं थी।
ये सोच कर मेरी मस्ती और भी बढ़ गई।
"अगर तुमने मेरा कहना नहीं माना तो नंगी करके ईमली के पेड़ पर उल्टा लटका दूँगा...सारे लड़के तुम्हें नंगी देख कर खूब मजा लूटेंगें...."
मेरी ये बात सुनकर वो घबराई भी और थोड़ी सहमी भी।
"बोलो....पिलाओगी अपना पेशाब...."
वह चुपचाप खड़ी रही।
"जल्दी बोलो नहीं तो तुझे अभी ले चलता हूँ...."
इतना कहकर मै एक कदम उसकी तरफ बढ़ा।
उसने जल्दी से अपना सिर हाँ में हिलाया।
मैने जल्दी से एक गद्दा लिया और उसे फर्श पर बिछा दिया।
फिर छत की तरफ सिर करके लेट गया।
शेष अगले भाग में......
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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