FUN-MAZA-MASTI
कविता का मन डोल उठा
अंधेरे में एक साया एक घर के पास रुका और सावधानी से उसने यहाँ-वहाँ देखा। सामने के घर की छोटी सी दीवार को एक फ़ुर्तीले और कसरती जवान की तरह उछल कर फ़ांद गया और वहाँ लगी झाड़ियों में दुबक गया।
कमरे में कविता बिस्तर पर लेटी हुई कसमसा रही थी, उसे नींद नहीं आ रही थी। उसे अचानक लगा कि उसके घर में कोई कूदा है। वह दुविधा में रही, फिर उठ कर खिड़की के पास आ गई। उसे एक साया दिखा जो झाड़ियों के पास खड़ा था।
वो साया दबे पांव अन्दर की ओर बढ़ रहा था। उसे आश्चर्य हुआ कि मुख्य दरवाजा खुला हुआ था। वो तेजी से अन्दर आ गया और सीधे मौसी के कमरे की तरफ़ बढ़ गया। कविता का दिल धक-धक करने लगा, पर उसे ताज्जुब हुआ कि वो मौसी के कमरे में ना जाकर ऊपर सीढ़ियों पर चला गया।
उसने अंधेरे में तुरंत अपना मोबाईल निकाला और अपनी पड़ोसन शमा आण्टी को फोन किया,"आण्टी, हमारे घर में कोई चोर घुस आया है।"
" क्या... क्या ... कहाँ है वो अभी ?"
"वो ऊपर गया है"
"रूपा कहाँ है...।"
"शायद सो रही है..."
"ओह्ह्... तुम सो जाओ वो चोर नहीं है ?"
"तो आण्टी ???"
"वो दिल का चोर है... तुम्हारी आन्टी भी ऊपर ही है... सो जाओ !" शमा की खनकती हंसी सुनाई दी ।
कविता ने फोन बन्द कर दिया। ओह्ह्... तो यह बात है... यह मौसी का यार है !!! अरे ये वही तो नहीं है जो सवेरे चाय पी रहा था। इसका मतलब यह रात भर मौसी के साथ रहेगा। मौसा अक्सर बिजनेस यात्रा पर चले जाते थे।
"तो क्या मौसी ... छी ... छी ... ऐसा नहीं हो सकता। मैं ऊपर जाकर देखूँ? हाँ यह ठीक रहेगा।" कविता ने धीरे से दरवाजा खोला और नंगे पांव सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गई। मौसी के कमरे की लाईट जल रही थी। मतलब वो अभी तक सोई नहीं थी। वो चुपचाप सीढियाँ चढ़ गई। सारी खिड़कियाँ बन्द थी। पर हां खिड़की के पास एक पत्थर की बेन्च थी, उसके ऊपर ही एक खुला रोशनदान था। कविता बेन्च पर चढ़ गई।
जैसे ही अन्दर झांका तो जैसे उसके दिल की धड़कन रुक गई। वो लड़का वही था... उसका नाम आशू था। वो बिल्कुल नंगा खड़ा था और उसका लण्ड लम्बा सा और मोटा सा था। उसका सीधा खड़ा और तन्नाया हुआ लण्ड बड़ा ही मनमोहक लग रहा था।
मौसी बस एक पेटीकोट में थी, उनका ब्लाऊज उतर चुका था। उनकी दोनों चूचियां खूबसूरत थी, गोल गोल, भूरे भूरे निपल, आशू ने मौसी को प्यार से चूम लिया और बदले में मौसी में उसके फ़डकते हुये लण्ड को अपनी मुठ्ठी की गिरफ़्त में ले लिया। उसे प्यार से सहलाते हुये उसके लण्ड अपना हाथ आगे पीछे चलाने लगी।
कविता का दिल कांप उठा। धड़कन बढ़ गई। उसके मन में वासना जाग उठी।
जबकी कमरे के भीतर चल रही बात-चीत वह बड़े ध्यान से सुन रही थी।
"आशू, मस्त लण्ड के मजे कुछ ओर ही होते हैं... हैं ना...?"
"रूपा, और मस्त चूत भी कमाल की होती है... जैसे आपकी है !"
"कल तो तू बड़ा कविता की चूत मारने की बात कर रहा था...?"
"वो तो नई चूत है ना ... अभी तक चुदी नहीं होगी... आप आदेश दे तो उसे भी सेट करें?"
"अभी तो मेरी चूत कुलबुला रही है... चल अपना लौड़ा अब चूत में घुसा डाल... कविता को तो पटा ही लेंगे... अब बेचारी के पास चूत है तो लण्ड तो चाहिये ही ! है ना?"
आशू हंस पड़ा और रूपा से लिपट गया। कुछ देर तक तो वो कुत्ते की तरह लण्ड चूत पर मारता रहा फिर चूत के द्वार पर अपने आप ही सेट हो गया और चूत के पट खोलता हुआ अन्दर घुस गया। रूपा आशू से लिपट गई और एक टांग उठा कर आशू की कमर में डाल दी और लण्ड को अपनी चूत में सेट कर लिया।
कविता का बदन पसीने से भीग गया, सांस फ़ूलने लगी। उसकी चूत भी रिसने लगी और गीली हो उठी। अपने चुदने की बात से उसे अपनी पहली चुदाई याद हो आई। दोनों की कमर धीरे हिलने लगी और रूपा चुदने लगी। दोनों के मुख से वासना भरी सिसकारियाँ निकलने लगी।
"हाय रे आशू, भगवान ने भी क्य मस्त चीज़ें बनाई हैं... धरती पर ही स्वर्ग का आनन्द ले लो !"
"हां देखो ना आपके अधर रस से भरे, आंखों में जैसे शराब भरी हुई है, गुलाबी गाल को सेब की तरह काटने को मन करता है... चल बिस्तर पर चुदाई करते हैं !"
" नहीं रे अभी नहीं ... अभी थोड़ा सा गाण्ड को भी तो मस्ती दे यार !" और उसका लण्ड बाहर निकाल कर पीछे घूम गई और घोड़ी बन कर चूतड़ उभार दिये...
जैसे ही आशू का लण्ड गाण्ड के छेद पर रखा...
ये नजारा देखकर कविता सिहर गई। कविता का मन उनकी पूरी चुदाई देखने को हो रहा था, और अब तो ये हालत थी कि उसकी चूत भी फ़डफ़डा उठी थी।न चाहते हुए भी उसकी उंगलियाँ अपने सलवार के भीतर अपनी कमसिन योनि को कुरेदने लगी।
उफ....ये चुदाई....जब तक न देखो तब तक ठीक वरना बिना कराये मन नहीं मानता।
कविता की बुर की खुजली बढ़ने लगी। उसने अपनी चूत को अपने हाथ से हौले से दबा दी। उसकी चड्डी बाहर तक गीली हो गई थी और चिपचिपापन बाहर से ही लग रहा था। उसके सारे शरीर में एक वासना भरी कसक भर उठी थी। रूपा की ग़ाण्ड के दोनों गोल गोल उभरे हुये चूतड़ किसी का भी लण्ड खड़ा कर सकते थे।
आशू ने हल्का सा ही जोर लगाया और उसका लोहे जैसा डण्डा उसकी गाण्ड के छेद में उतर गया। दोनों ही एक साथ सिसक उठे। सो रूपा की गाण्ड तो लण्ड ले ले कर मस्त हो चुकी थी। उसे दोनों ही छेद से चुदाने में मजा आता था। आशू ने रूपा के मस्त बोबे पकड़े और मसलने लगा। साथ ही साथ जोश में लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा। दोनों मस्ती के माहौल में डूबे हुये थे ... हौले हौले सिसकी भरते हुये रूपा चुद रही थी।
कविता की आंखें मदहोशी में डूबने लगी थी। उसका सारा शरीर पसीने से भीग उठा था। उसकी आंखों के कटोरे नशे से भर गये थे, नयन बोझिल हो गये थे। उसका बदन जैसे आग में जलने लगा था। उसकी नस नस में वासना की कसक भर चुकी थी। ऐसे में उसे यदि कोई मिल जये तो उसको जी भर के चोद सकता था। रूपा की गाण्ड चुद रही थी। आशू का लण्ड भी फ़ूलता जा रहा था।
उसे भी स्वर्ग का आनन्द आ रहा था। दोनों ही दीन दुनिया से बेखर जन्नत में विचरण कर रहे थे। कविता का मन सकता जा रहा था। उसकी चूत भी चुदाई करने जैसी हालत में आगे पीछे चलने लगी थी। जाने कब उसकी एक अंगुली उसने अपनी चूत में घुसा ली और चूत को शान्त करने की कोशिश करने लगी।
तभी आशू ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और रूपा झट से बिस्तर पर आ गई और उसने अपनी टांगें लेटे हुये ऊपर की ओर उठा ली। अपनी चूत को लण्ड को घुसेड़ने के लिये खोल दी। आशू भी उछल कर रूपा पर सवार हो गया। उसे अपने बदन के नीचे दबा लिया।
उसका लण्ड उसके मुख्य द्वार में घुस गया और अन्दर उतरता चला गया। दोनों ही एक बार फिर से सिसक उठे। दोनों के होंठ मिल गये और फिर दोनों के चूतड़ एक दूसरे दबाते हुये लण्ड को घुसाने लगे। दोनों एक लय में, एक ताल में चलने लगे और चुदाई आरम्भ हो गई। दोनों की वासना भरी चीखें कमरे में गूंजने लगी।
उस कामुकता भरे वातावरण में कविता का मन डोल उठा और उसने चुदाने की सोच ली।
पर अभी चुदाई चल ही चल ही रही थी... उसे देखने का लोभ वो छोड़ ना सकी। रुपा की चुदाई के बाद वो भी कमरे में घुस कर चुदवाना चाहती थी। कविता की चूत मारे गुदगुदी के बेहाल हो रही थी। बार बार अपनी अंगुली चूत में घुसा लेती थी।
तभी रूपा की चीख निकल पड़ी और वो झड़ने लगी। आशू भी साण्ड की तरह अपना मुँह ऊपर करके जोर लगा कर झड़ने की तैयारी में ही था। कुछ ही क्षणों में उसने अपना चेहरा ऊपर करके हुन्कार भरी और लण्ड बाहर निकाल कर वीर्य उसकी उसके बदन पर बिखेरने लगा। कविता ने देखा कि मामला तो अब शान्त हो चुका है, बड़े बेमन से वो पत्थर की बेंच पर से उतरी और दबे पांवो से सीढ़ियाँ उतर गई।
उसकी चूत की हालत यह थी कि उसकी चड्डी सामने से गीली हो चुकी थी। कमरे में घुसते ही उसने मोमबत्ती ली और बिस्तर पर लुढ़क गई। अपनी चूत को मोमबत्ती से शान्त किया, फिर वो निद्रा में लीन हो गई। सुबह तक उसकी चड्डी सूख कर कड़क हो गई थी। उसकी चूत का पानी भी यहां वहां फ़ैल कर जांघ से चिपक गया था। उसने अपनी फ़्रॉक को नीचे खींचा और कमरे से बाहर निकल आई। उसने अपने खुले टॉप की तरफ़ भी ध्यान नहीं दिया। उसने बाहर आकर दोनों हाथों को उठाकर और आंखे बंद करके एक मदमस्त अंगड़ाई ली, पर आँखें खुलते ही उसने देखा कि आशू सामने खड़ा था। वो उसे आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर यूं घूर रहा था जैसे उसने कोई अजूबा देख लिया हो।
कविता ने उसे देखा और घबरा कर वापस अपने कमरे में आ गई। आशू भी मुस्कुरा पड़ा और कविता भी कमरे में मुस्कुरा उठी।
वो तुरंत बाथरूम में जाकर नहा धो कर फ़्रेश हो गई। उसने रूपा के कमरे में जैसे ही कदम रखा तो उसे आशू वहाँ नहीं मिला। वो जा चुका था।
जो कुछ भी हुआ था उसे देखकर किसी की भी हालत वही होती जो इस वक्त कविता कि हो रही थी। आखिरकार कुछ ही देर में उसके शरीर में एक अजीन सा खिचाव पैदा हुआ और वो पस्त होती चली गई।
"काश मेरे भी दिल का कोइ चोर होता......"
अगले दिन,
रात को खाना खाने के बाद रूपा अपने कमरे में आराम करने लगी, तभी कविता भी वहाँ पर आ गई। "मौसी, मैं भी आपके पास लेट जाऊं?" मौसी एक तरफ़ खिसक गई। कविता उनके पास लेट गई। "मौसी, एक बात पूछूँ... ये आशू क्या करता है...?" कविता ने धीरे से पूछा। रूपा ने उसकी तरफ़ करवट ली और कहा,"क्यूं क्या बात है ... है ना सुन्दर लड़का...?" "हां मौसी, सुन्दर तो है, पर मेरे से वो बात ही नहीं करता है..." कविता अपनी चूंचियां रूपा की बांह से दबाती हुई बोली। रुपा को कविता की बैचेनी का अहसास हो गया था। उसने अपनी बांह को उसकी चूंचियों पर और दबाते हुए कहा,"अरे, वो तो तुम्हारी ही बात करता है ... कहो तो उससे दोस्ती करा दूँ...!" कविता को अपनी चूंची पर दबाव महसूस हुआ तो उसके मन में तरगें फ़ूट पड़ी। "सच मौसी, मान जायेगा वो...आप कितनी अच्छी हैं...!" कविता ने अपनी चूची को उनकी बांह पर पूरा दबाते हुये उन्हें चूम लिया। "लगता है तेरा मन भटक रहा है... अब तेरी शादी करा देनी चाहिये !" मौसी ने मन की बात पढ़ ली थी। "मौसी, शादी तो करा देना... पर मन को तो हल्का कर दो... !" कविता की आवाज में कसक थी। रूपा ने उसकी बैचेनी को देखते हुये अपने हाथों में कविता की दोनों चूंचियां भर ली। "मेरी कविता, अभी तो ये ले ... फिर समय आने दे... आशू भी मिल जायेगा...!" कविता सिसक उठी और रूपा से लिपट गई। रूपा ने भी मौके का पूरा फ़ायदा उठाया और अपनी एक चूंची उसके मुँह से रगड़ दी। कविता ने भी रूपा को पटाना उचित समझा और उसके ब्लाऊज को ऊपर खींच कर उसकी चूंची को अपने मुँह में भर लिया। रुपा भावना में बह चली। दोनों ही वासना में लिप्त हो कर एक दूसरे के बदन से खेलने लगी थी। अंधेरा बढ़ चला था। तभी आशू ने हौले से कमरे के भीतर कदम रखा। कविता चौंक गई, वो भूल गई थी कि आशू के आने समय हो चुका है। रूपा तो कविता को बहला कर बस आशू के आने का ही इन्तज़ार कर रही थी। कविता तो लगभग नंगी ही थी, पर रुपा ने अभी भी पेटीकोट पहना हुआ तो था पर वो पूरा ही ऊपर उठा हुआ था।
तभी आहट हुई।
"कविता, देख आशू आया है..." " मौ... मौसी, मैं तो मर गई, कुछ दो ना... मुझे शरम लग रही है !" कविता हड़बड़ा गई। "शरमा मत ... ये तो मुझे रोज रात को चोदता है... चल आज तू चुदवा ले ..." रूपा ने उसे धीरज बंधाते हुये कहा। " रूपा जी आपने तो अपना वादा पूरा कर दिया ... वाह ... कविता जी यदि कहेंगी तो ही कुछ करने का मजा आयेगा... " "आशू जी, आप तो अपने कपड़े उतारो ... कविता आपका स्वागत करेगी... कविता कुछ तो कहो !" "जी मैं क्या कहूँ... मुझे तो बहुत लज्जा आ रही है..." कविता ने मुँह छुपा रखा था। आशू कविता के और नजदीक आ गया था। " आपके मुख के पास कुछ है... कविता जी... मुख खोलो तो..." आशू ने कहा। कविता ने अपना मुख खोल दिया... और आशू ने अपना कोमल, नरम चमड़ी वाला कठोर लण्ड उसके होंठो से सहला दिया। कविता के शरीर में सनसनी फ़ैल गई। उसने धीरे से हाथ बढ़ा कर उसका लण्ड पकड़ लिया,"हाय राम... इतना बड़ा...?" कविता की भारी आंखे आशू की ओर उठ गई और उसे प्यार से निहारने लगी। वो एक दम नंगा उसके सामने खड़ा था। रूपा कविता की ओर देख-देख कर मुस्करा रही थी। उसने प्यार से कविता के सर पर हाथ फ़ेरा और आशू के लण्ड को उसके सर को दबा कर कविता के मुँह में प्रवेश करा दिया। कविता ने सारी शरम छोड़ कर आशू के चूतड़ पकड़ लिये और अपने मुँह में उसे भींच लिया। रूपा ने आशू को चूम लिया और उसकी गाण्ड में अंगुली डालने लगी। आशू झुक कर कविता के सर को पकड़ कर अपना लण्ड उसके मुँह में अन्दर बाहर करने लगा। आशू को रूपा की अंगुली अपनी गाण्ड में बहुत भली लग रही थी। आशू जैसे कविता का मुख चोद रहा था। अब आशू ने कविता को लेटा दिया और उसकी चूंचियों को दबाने और मसलने लगा। उसके चुचूक जो बेहद कड़े हो चुके थे, उन्हें हौले हौले से सहलाने और अंगुलियों से खींचने लगा। "आह मौसी, ऐसा मजा तो कभी नहीं आया... आशू जी, अब नहीं रहा जाता ... प्लीज आ जाओ ना..." "अभी से कहाँ कविता जी... जवानी का मजा तो लो अभी ..." अब आशू के हाथ उसकी चूत की पंखुड़ियो के आस पास सहला रहे थे। बीच बीच में चूत के ऊपर कविता की यौवन-कलिका को भी सहला देता था। उसे हिला हिला कर कविता को असीम आनन्द दे रहा था। कविता की दोनों टांगें ऊपर उठने लगी थी। नतीजा यह हुआ कि उसकी गाण्ड का भूरा-भूरा कमल भी नजर आने लग गया था। आशू पंजों के बल बैठा था, सो रूपा भी आशू का आनन्द ले रही थी। कभी वो उसके लण्ड को मसल देती थी, कभी उसकी गोलियों को सहला देती थी, तो कभी उसकी गाण्ड में अपनी एक अंगुली घुसा देती थी। आशू भी थूक लगा कर कविता की गाण्ड में अंगुली घुसाने लगा था। उसकी गाण्ड के छेद को बड़ा कर रहा था, पर इस क्रिया में कविता मस्ती में बेहाल हुई जा रही थी। उसके मुख से सिसकारियाँ जोर से निकल रही थी, कभी कभी तो मस्ती में चीख भी उठती थी। आशू की अंगुलियाँ चूत में भी कमाल कर रही थी।
रूपा का दिल भी मचल उठा और जान करके उसने आशू का कड़कता लण्ड कविता की गाण्ड में रख दिया और आशू को कुछ कहा।
आशू मुस्कुरा उठा और उसने लण्ड का जोर गाण्ड के छेद पर लगा दिया। लण्ड कविता की गाण्ड में घुसता चला गया। कविता की गाण्ड तो कितनी बार उसके दोस्तो ने चोद रखी थी, सो लण्ड सरकता हुआ भीतर बैठने लगा। कविता ने भी अपनी गाण्ड थोड़ी ऊपर उठा दी। रूपा ने जल्दी से तकिया नीचे लगा दिया। रूपा ने आशू की गाण्ड में अपनी अंगुली फ़ंसाते हुये कहा,"आशू चोद दे साली को, ये तो पहले से ही खुली हुई है... लगा धक्के साली की गाण्ड में..." "आह्ह्ह, आशू जी, जोर से चोद दो ना इसे ... बहुत दिन हो गये इसे चुदवाये ... आह्ह... लगा और जोर से..." कविता सीत्कार भरने लगी। कविता की गाण्ड चुदने लगी ... कविता को आनन्द आने लगा। अब रुपा कविता के पास आ गई और उसके स्तन मुँह में भर कर चूसने लगी, कभी कभी वो उसके मुख को भी जोर से चूस लेती थी। कुछ देर तक यही दौर चलता रहा, फिर आशू ने अपना लण्ड गाण्ड से निकाल कर चूत में घुसा दिया। कविता के मुख से आनन्द की जोर से आह निकल गई। तभी आशू ने रूपा की चूत में भी अपनी अंगुली प्रवेश करा दी। वो भी चिहुंक उठी। अब आशू का लण्ड कविता की चूत में घुस चुका था। कविता को लगा कि हाय, स्वर्ग है तो बस चूत में ही है... रुपा भी अपनी चूतड़ आशू की तरफ़ उठाये थी और वो उसमें अपनी अंगुली फ़ंसाये हुये था। अब तो कविता की कमर और आशू की कमर बराबरी से चल रही थी। मस्त चुदाई का माहौल बना हुआ था। तीनों नशे में झूम रहे थे। कविता तो जबरदस्त चुदाई मांग रही थी,"आशू, प्लीज ! मुझे जोर से चोदो ना... जल्दी जल्दी करो ना ... मेल इंजन की तरह ..." आशू ने रुपा को एक तरफ़ किया और अपनी पोजिशन को फिर से सेट की और उसके पांव खींच कर पलंग के किनारे कर दिया और खुद खड़े हो कर पोजीशन बना ली। अब उसका लण्ड उसकी चूत के बिल्कुल सामने था। "तो कविता रानी, चूत फ़ाड़ चुदाई के लिये तैयार हो...?" "हां जी... अब देर ना लगाओ ... मेरी तो अब फ़ाड़ दो आशू राजा !" "लगता है पहले से मस्त चुदी चुदाई हो...!" "आशू जी। आप भी तो मस्त चोदते हो ना... पुराने खिलाड़ी हो ना।" तीनों ही हंस दिये। आशू ने अपना लण्ड पहले तो अपना लण्ड भीतर घुसा कर सेट कर लिया, फिर बोला,"हां जी... तैयार हो जाओ..." और कहते हुए उसने पूरा लण्ड निकाल कर पूरा ही जोर से धक्के के साथ घुसा डाला। कविता के मुख से खुशी की एक तेज चीख निकल गई। जल्दी ही दूसरा धक्का लगा जो जड़ तक चीर गया। फिर धक्के पर धक्के भीतर तक, चूत को फ़ाड़ देने वाले धक्के चलने लगे। कविता तेज धक्कों से प्रसन्न हो उठी। और उसे और तेज धक्कों के लिये प्रोत्साहित करने लगी। उसके मुख से आनन्द भरी चीखें वातावरण को और वासनामय बना रही थी। अब तो कविता के चूतड़ भी उछल उछल कर लण्ड भीतर तक लेकर चुदवा रहे थे। दोनों के दिल की धड़कनें तेज हो गई थी। पसीना छलक उठा था। रूपा दोनों का इस प्रकार का रूप देख कर विचलित हो रही थी और सोच रही थी कि आशू ने मेरी चुदाई तो कभी भी इस तरह से नहीं की थी। वो मन ही मन जल उठी। तभी एक तेज चीख ने रूपा का ध्यान भंग कर दिया। कविता झड़ रही थी। उसका यौवन रस निकल पड़ा था। कविता अपना यौवन रस अपनी चूत लण्ड पर दबा कर निकाल रही थी। आशू को लगा जैसे कि कविता की चूत ढीली पड़ गई थी, उसमें पानी भरा हुआ था और लण्ड अब फ़च फ़च की आवाज कर रहा था। तभी रूपा ने अपने आप को आशू के सामने पेश कर दिया... "उसका काम तो हो गया, आशू जी, मेरी ओर तो देखो, यहाँ तो आपको फिर से बेकरार एक चूत मिलेगी... उठो और मेरे से चिपक जाओ !" रूपा ने आशू को अपनी ओर खींचा। आशू का कड़कता लण्ड कविता की चूत से बाहर गया जो कि रस से नहाया हुआ था। कविता बिस्तर पर ही लोट लगा कर एक किनारे हो गई और रूपा को चुदने के लिये जगह दे दी। कुछ ही पलों में आशू का लण्ड रूपा की चूत में घुस चुका था। इस बार रुपा की बारी थी सिसकारी भरने की। पर आशू तो कविता को ही चोद कर झड़ने के करीब आ चुका था, सो रुपा को चोदते हुये कुछ देर में अपने आप को सम्हाल ना पाया और अपना वीर्य छोड़ने लगा। दोनों ही अब आशू से लिपट पड़ी और उसे अपने चुम्बनों से बेहाल कर दिया। कविता तो आशू का लण्ड मुँह में भर कर बचा खुचा वीर्य भी चट गई। रूपा और कविता भी आपस में लिपट कर एक दूसरे को प्यार करने लगी.....
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अगले दिन दोपहर को मौसा जी घर आ चुके थे। उनके साथ उसके एक पुराने मित्र राजेश भी थे। उनके आते ही कविता और रूपा में कुछ बदलाव सा लगा, दोनों ही कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रही थी। कविता भी पहले से अधिक सेक्सी लगने लगी थी। उसने थोड़ा मेकअप भी किया हुआ था और मौसा जी से वो हंस-हंस के बात कर रही थी। रूपा ने राजेश की खूब आवभगत की और उससे खूब बातें की। मौसा जी बार-बार कविता की तरफ़ देखते, कभी उसका फ़िगर देखते, कभी उसके सुडौल चूतड़ों को निहारते। आज जाने क्यों कविता बड़ी आकर्षक लग रही थी। मौसा को क्या पता था कि आज कविता ने भरपूर चुदाई करवा कर अपना मन शांत कर लिया था। पर हां इससे कविता के मन में एक नया जोश और मर्दों के प्रति एक आकर्षण पैदा हो गया था। जैसे अधिकतर मर्द नारी को एक भोग्य वस्तु मानते हैं, वैसे ही उसे पुरुष भी भोगने की वस्तु लगने लगे थे। उसे लगने लगा था कि मर्द तो बस चूत के दीवाने रहते हैं, इन्हें तो जब चाहो तब पटा लो और चुदा लो। बस थोड़ी सी चूची दिखा दो और मर्दों का तम्बू तन जाता है। चुनांचे मौसा जी भी कविता के लिये उसी श्रेणी में आ चुके थे। कविता दो दिनों में ही मौसा जी के बहुत निकट आ चुकी थी। कविता उन्हें हर तरफ़ से उसे पटाने में लगी थी। उसे आशा थी कि उसे एक नया लण्ड जल्दी ही मिल जायेगा। अभी तो सभी कुछ पर्दे के पीछे था। उधर रूपा भी राजेश से खूब घुल मिल गई थी। शाम को सब मौसा जी के साथ राजेश को घुमाने ले जाते थे। रूपा ने कविता को और कविता ने रूपा को यह बता दिया था कि वो इन मर्दों को पटा रही हैं। दोनों ने अपने पत्ते खोल रखे थे। कविता यदि मौसा के अधिक करीब आ जाती थी तो रूपा जानबूझ कर दूसरी ओर चली जाती थी और मौसा यह समझते थे कि मौका मिल गया। इस दौरान वो हाथ दबा देते थे और कभी कभी चूतड़ पर हाथ भी मार देते थे। बदले में कविता शर्माने का अभिमय कर देती थी। उधर रूपा ने भी राजेश को पटा लिया था। रूपा जरा तेज थी, सो वो तो चुम्बन तक पहुंच गई थी। "कविता ! अब तो मुझे चुदने की लग रही है ... अपने मौसा जी को कही बाहर ले जा ना !" "शाम को मौसा जी को मैं घुमाने ले जाती हूँ और आप तबियत का बहाना बना लेना !" दोनों ने अपनी ओर से सरल सा बहाना बना लिया। योजना के मुताबिक राजेश बाहर निकल गया और रूपा ने पेट दर्द का बहाना किया। मौसा जी तो चाहते ही थे कि उसे सिर्फ़ कविता का साथ मिले। कविता के थोड़े से ही कहने पर मौसा जी मान गये। रूपा ने भी मंजूरी दे दी। दोनों कार में निकल पड़े और रूपा ने जल्दी से मोबाईल पर फ़ोन करके राजेश को वापस बुला लिया। राजेश तुरंत घर आ गया। राजेश सीधा रूपा के कमरे की तरफ़ बढ़ गया। रूपा उसे देखते ही शरमाती सी खिल गई।
"अब हम तुम इस कमरे में बंद हो तो..." "धत्त, आप तो मजाक करने लगे..." रूपा ने राजेश को रिझाने का नाटक किया। "अब तो मत शर्माओ ... अब तो एक मैं और एक तू ... दोनों मिले किस तरह... बताओ !" "हाय रे ... आप दूर रहें ... मुझे कुछ होता है...!" राजेश ने रूपा का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया, रूपा जानबूझ कर उसके ऊपर गिरती हुई बोली,"हाय राम ... बैंया तो छोड़ो, मोच आ जायेगी ना..." रूपा फ़िल्मी अदाएँ दिखाते हुये राजेश से लिपट गई। दूसरे ही क्षण रूपा के मद भरे अमृत कलश उसकी हथेलियों में दबे हुये थे। "मां री ! ... मत करो ना ... गुदगुदी होती है ...! " रूपा ने आह भरते हुये कहा,"दूर रहो जी... नीचे कुछ गड़ रहा है..." मेरी मतवाली रूपा यही है वो मस्त चीज़ जो हमे अभी मस्ती देगी ... अब बनो मत ..." "ना जी ... मत सताओ ... इसे दूर ही रखो ... मेरा मन डोल रहा है... हाय रे ! क्या कर रहे हो... घुसाये चले जा रहे हो... आह्ह्ह मेरे राजेश...!!" "मस्ती आ रही है ना... आओ अब अधरों का रसपान करें" राजेश भी भावना में बह कर बोला। दोनों के होंठो की पत्तियां टकरा गई और एक दूसरे की जीभ से वो भीग गये। होंठो का कसाव दोनों ने बढ़ा दिया और अधरपान में लीन हो गये। राजेश के मुँह से सीत्कार निकल पड़ी... रूपा ने उसका लण्ड कस कर दबा दिया था। "अरे रूपा, तुम मुझे मार डालोगी... जरा धीरे से... कहीं निकल गया तो मजा नहीं आयेगा..." "तो फिर जी, क्या करें ... मेरा तो मन डोल रहा है जी...!" "चलो, पहले प्यास बुझा ले... कपड़े उतारो..." "प्यास लग रही है तो कपड़े क्यूँ उतारें भला...?" रूपा ने शरमाते हुये कहा। राजेश ने धीरे से रूपा की साड़ी उतार दी ... फिर ब्लाऊज को जबरदस्ती उतार दिया। रूपा की तरफ़ से ब्लाऊज़ उतारने का विरोध तो मात्र एक नाटक था, ब्लाऊज उतरते ही उसने अपनी उभरी हुई जवानी को हाथों से छिपाने का नाकाम प्रयास किया। राजेश ने भी जल्दी से अपने कपड़े उतार फ़ेंके। अब रूपा के पेटीकोट की बारी थी, बस नाड़ा खींचने की देर थी। पेटीकोट झम से नीचे पांवों पर आ गिरा।
"मैं मर गई राम जी... और कभी अपनी चूत छिपाती तो कभी अपने उभरे हुये स्तनों को ढकने की कोशिश करती। राजेश ने अपने नंगे बदन से रूपा को लिपटा लिया और दोनों फिर बिस्तर पर एक दूसरे को धकेल कर लेट गये। दोनों ही एक दूसरे के शरीर को दबाते हुये लोट लगाने लगे। तभी रूपा सिसक उठी। उसकी चूत में राजेश का कड़क लण्ड बिना किसी पूर्व सूचना के उतर चुका था। रूपा के बदन में तरावट आने लगी। कब से नये लण्ड का इन्तज़ार कर रही थी और नये लण्ड ने उसकी चूत को स्वीकार करते हुये खेल-खेल में प्रवेश कर लिया था।
राजेश रूपा के नीचे दबा हुआ था और रूपा उसके ऊपर लण्ड पर बैठ गई थी। रूपा उसके लण्ड पर अपनी चूत भींचे जा रही थी और राजेश के चूतड़ ऊपर की ओर जोर लगा कर पूरा लण्ड अन्दर तक बैठाने की कोशिश में थे। रूपा राजेश पर पिघले जा रही थी। उसकी चूत फ़डफ़डा रही थी। राजेश ने रूपा के सुडौल स्तन हिलते हुये देखे और उसके हाथ उन्हें थाम कर ऊपर नीचे करके उसे मसलने लगा। रूपा उस पर झुक गई और चूत को आगे पीछे करके राजेश को चोदने लगी। राजेश का शरीर वासना में जलने लगा। वो अपने चूतड़ ऊपर उछाल कर रूपा को चोदने में सहायता करने लगा। अब रूपा राजेश के शरीर के ऊपर लेट सी गई और आहें भरते हुये चूत को आगे-पीछे करके लण्ड का आनन्द लेने लगी। राजेश ने अतिउत्तेजना में रूपा को कमर से जकड़ लिया और धीरे से उसे अपने नीचे दबोच लिया। राजेश अब ऊपर था और लण्ड जो कि इस उल्टा पल्टी में बाहर आ गया था, फिर से चूत में सरक गया। अब रूपा की भरपूर चुदने की बारी थी। राजेश के धक्के और झटके चूत पर चालू हो गये थे। और नीचे दबी रूपा आह्... उह्ह... हाय रे... जैसी सीत्कारें निकाल रही थी। राजेश अपने लण्ड को अपनी तसल्ली के लिये दबा के धक्के मार रहा था। नीचे दबी चुदैल रूपा को ये धक्के बडे प्यारे लग रहे थे। उसके हर जोरदार धक्के पर रूपा के मुँह से आह निकल जाती थी। तभी रूपा को लगा कि उसकी चूत जवाब देने वाली है, उसने अपनी प्यारी चूत को पूरी तरह से झड़ने के लिये तैयार कर ली और आंखें बंद करके अपनी चूत को ढीली छोड़ दी ताकि अच्छी प्रकार से पानी निकल जाये। उसकी चूत अब रस छोड़ने वाली थी और बार बार अन्दर लहरें उठ रही थी। तभी रूपा ने अपनी चूत ऊपर की ओर दबाई और अपना रस छोड़ने लगी। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल पड़ी। उसने राजेश को अपनी बाहों में दबा लिया और लण्ड को चूत में कस लिया। तभी राजेश का वीर्य भी छलक पड़ा। उसकी पिचकारी चूत में समाने लगी और फिर चूत के बाहर रिसने लगा। दोनों एक दूसरे को अपनी बाहों में समाये हुये यूं ही अपना रस निकालने में लगे रहे। उनकी आंखें आनन्द के मारे बंद थी। काफ़ी देर दोनों यों ही दुनिया से बेखबर पड़े रहे। फ़िर रूपा कुछ अलसाई सी पता नहीं क्या बोली और अपना मोबाईल पर कविता को मिस कॉल कर दिया। राजेश भी उठा और जल्दी से कपड़े पहन कर रूपा को चूमा और घर से बाहर निकल गया। कुछ ही देर में कविता मौसा जी के साथ घर आ गई। "अरे, वो राजेश नहीँ आया...?" मौसा ने पूछा। रूपा मुस्करा उठी,"आप जानें ... आपका दोस्त है...!" रूपा कविता के कमरे में आ गई थी। दोनों सहेलियाँ कुछ गुपचुप बाते कर रही थी। "मै सोने जा रहा हूँ... हम दोनों ने खाना बाहर खा लिया है... रूपा तुम भी खा लेना !" मौसा जी अपने कमरे में जाकर बत्ती बंद करके लेट गये। रूपा भी मौसा जी के पीछे चली गई। कविता ने भी अपने रात को सोने वाले कपड़े पहन लिये या यूँ कहे कि बस एक सामने से खुला हुआ गाऊन डाल लिया और बिस्तर पर लेट गई।
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मन ही मन में वो रूपा और राजेश की चुदाई के बारे में सोच रही थी। कविता के मन में मौसा जी का लण्ड भी घूम रहा था। मौसा जी ने आज शाम को इतना घुमाया-फ़िराया और खिलाया-पिलाया पर ना तो चूतड़ों पर हाथ फ़ेरा और ना ही चूंचियों को सहलाया। क्या मौसा जी उसे प्यार करना नहीं चाहते? यही द्वंद्व कविता के मन में चल रहा था !
उसका गाऊन जांघों से ऊपर उठा हुआ था, वो एक करवट ले कर दूसरी ओर घूम गई। तभी उसे लगा कि उसके कमरे में कोई अन्दर आया है। कदमों की आहट से उसे लगा कि मौसा जी हैं। उसके मन में तरंगें लहराने लगी- रात के ग्यारह बजे मौसा जी जरूर उसे चोदने आये हैं। कदमों की आहट उसके पलंग के पास आकर रुक गई। मौसा जी ने धीरे से गाऊन और ऊपर खिसका दिया। कविता के चूतड नंगे हो गये, कविता ने अपनी आंखे बंद किये हुये कहा,"आओ रूपा मौसी, नींद नहीं आ रही है क्या?"
दूसरी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया। दो हाथ कविता की जांघ सहलाने लगे थे।
"मौसी क्या कर रही हो ! हाय ! मत करो ना ... शरम लग रही है, अन्दर हाथ मत घुसाओ ना !" वो कसमसा कर बोली।
मौसा जी ने उसके चूतड़ दबा दिये और दरार को सहलाने लगे। ऐसा करते हुये मौसा जी का लण्ड तन्ना उठा। उन्होंने गाऊन के भीतर से ही हाथ बढ़ा कर कविता के स्तन दबा दिये। कविता जानबूझ कर मौसा जी को मौसि कह रही थी।
"लगता है आज आपका मन बहक रहा है... बस अब ! मुझे बहुत शरम लग रही है !"
मौसा जी का लण्ड ये सुन कर और फ़ूल गया और कविता को चोदने के लिये बेताब हो उठा। उन्होने कविता को उल्टा किया और उसके दोनों पांव चौड़ा दिये... उसकी गाण्ड का फ़ूल सामने दिखने लगा। कविता आनन्द के मारे सिहर गई। मौसा जी से जब नहीं रहा गया तो उन्होंने अपना पजामा उतारा और अपने फ़ूले हुये कड़क लण्ड के साथ कविता की पीठ पर चढ़ गये और अपने तन्नाये हुये लण्ड को गाण्ड के गुलाब पर रख दिया और कविता को जकड़ लिया।
"हाय रे कौन... मौसा जी... ये क्या कर रहे हैं आप?" कविता ने अब उन्हें पहचानने का नाटक किया।
"कविता, अब नहीं रहा जाता... प्लीज करने दो...!"
"मौसी आ जायेगी तो मैं तो मर ही जाऊंगी !"
"उसकी तबियत ठीक नहीं है, उसने नींद की गोली खा ली है और वो गहरी नींद में है।" मौसा जी का लण्ड गाण्ड के छेद में उतर कर फ़ंस चुका था। पर कविता अभी गाण्ड नहीं मरवाना चाह रही थी। उसे तो बस चुदना था, सो वो बल खा कर पलट गई और लण्ड गाण्ड से निकल गया। अब कविता मौसा जी के नीचे थी और सीधी हो चुकी थी। मौसा जी ने भी उसे आराम से पलट जाने दिया और उसके ऊपर चढ़ गये।
"हाय मौसा जी, प्लीज, मत करो, मुझे लाज आती है...!"
"बस ऐसे ही मस्ती करेंगे... मेरा मन तुझ पर आ गया है।"
"मौसा जी, आज ... आह मत करो ना...!" उसने मौसा जी हाथ अपने वक्ष पर से हटाते हुये कहा।
"तुझे अच्छा लगा ना?"
"मौसा जी, बस ना, मुझे शरम आती है, हटो ना....."
वो उस शो-रूम में तुम्हें वो ब्रा-पैन्टी का सेट अच्छा लगा था ना?
मौसा जी ने नीचे से हाथ डाल कर पेण्टी और ब्रा दिखाई..."यही थी ना ... ये लो..."
"हाय मौसा जी, आप कितने अच्छे हैं..." तभी मौसा जी के लण्ड का सुपाडा फ़क से चूत में घुस गया। कविता के मुख से आह निकल गई।
"मौसा जी, आपने तो नीचे कमाल कर दिया...मैं तो शरम से मर जाऊंगी !"
"हाय रे तेरा ये शरमाना, मुझे तो पागल कर देगी तू ..." मौसा जी का लण्ड कविता की अदा पर फ़ूलता जा रहा था। उनका मोटा लण्ड चूत में उतरने लगा।
" हाय ना करो ना मौसा जी ... सच में आप में बड़े वो हैं !"
"आय हाय रे मेरी कविता, चुदे जा रही है फिर भी ये शरमाना... ये ले दबा के लण्ड ले मेरा !"
"हाय रे, मेरी फ़ाड दोगे क्या, ... मैं मर गई !" कविता की आंखें चुदाई के नशे में बंद हो रही थी। मौसा जी का भारी लण्ड उसे मस्त किये दे रहा था।
" हांऽऽ आ आज तो तेरी चूत फ़ाड ही दूंगा... हाय कितनी प्यारी सी है ये तेरी फ़ुद्दी !"
"यह फ़ुद्दी क्या होता है जी...?" कविता ने चुदते हुये फ़ुद्दी के बारे में पूछ लिया।
"ओह्ह, मैं मर जाऊं... तेरी तो ... मां कसम... चोद के रख दूंगा ! तुझे भी तेरी मां को भी !" मौसा जी उसकी अदाओं पर मर ही गये। जोश में उनकी कमर तेजी से चलने लगी। कविता मस्त हो कर भोली बनी हुई चुदती रही, उसका शरीर मीठी कसक से भरा जा रहा था। काम-वासना बढ़ती जा रही थी। कविता जोश में मौसा जी के चूतड़ पकड़कर अपनी चूत पर मार रही थी। उसके मुख से वासना भरी चीखें निकल रही थी। मौसा जी ने कविता के दोनों हाथ दबा लिये थे और कस कस के शॉट पर शॉट मारे जा रहे थे। उनका मोटा लण्ड कविता की चूत को जम कर चोद रहा था। कविता ने भी ऐसे मोटे लण्ड से चुदाई पहली बार कराई थी। चूत गहराई तक चुदी जा रही थी। कविता के बदन का एक एक अंग हिल गया था। पर स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति बढ़ती ही जा रही थी।
कविता का अंग अंग मीठी टीस से भर गया और वो अब समूची दुनिया को अपनी चूत में समेटने जा रही थी। उसे लग गया था कि उसक सभी कुछ सिमट कर चूत के रास्ते बाहर आना चाहता है। उसके मुख से आह निकल पड़ी और उसका बदन एक बारगी ऐंठने लगा और चूत को मौसा जी के लण्ड पर दबा दिया और अपना दिव्य-रस बाहर छोड़ दिया। वो स्खलित होने लग़ी थी। मौसा जी ने भी अपना लण्ड कविता के झड़ने तक चूत में ही रहने दिया, फिर बाहर निकाल कर दबा कर मुठ मारने लगे और अपना वीर्य कविता के शरीर पर उछाल दिया। कुछ बूंदे तो उछल कर कविता के चेहरे पर जा पड़ी। मौसाजी ने अपना लण्ड जोर से हिला कर उसमें से एक एक बूंद बाहर निकाल दी।
दोनों अब बिस्तर पर निढाल पड़े थे !
रूपा ने जानबूझ कर के यह सुनहारा मौका उन दोनों को दिया था।
दोनों एक बार फिर से लिपट पड़े और प्यार करने लगे।
"कविता, तू शरमाती बहुत है ... पर उससे मेरी वासना और बढ़ जाती है..."
"मौसाजी, ऐसे काम में शरम तो आती ही है ना"
"हाय रे... शर्माती जाओ और चुदती जाओ... लण्ड तो ऐसे माहौल में खूब फ़ूल जाता है, और शर्माती को चोदने में मस्ती आती है...!"
"धत्त... मौसा जी... ऐसा मत बोलो... मुझे फिर से चुदने की इच्छा होने लगेगी...!"
कविता ने एक बार और चुदने की इच्छा बता दी।
"तू कह तो एक बार ! अभी चोद देता हूं !"
"अरे ना जी ना... बस करो... हाय ना करो... मर गई रे... हाय चुद जाऊंगी मौसा जी...!"
कविता के इन्कार में इकरार था, अपनी तमन्नाओं का इज़हार था।
मौसाजी ने कविता को कमर पकड़ कर उसकी पीठ को अपने से चिपका ली। मौसा जी का भारी लण्ड उसके चूतड़ों में घुसने लगा। कविता अपने आप आगे को झुकने लगी और लण्ड चूतड़ों की दरार में घुसता चला गया। लण्ड के सुपाड़े ने जैसे ही गाण्ड के फ़ूल पर नरम स्पर्श दिया, फ़ूल खिल उठा और अन्दर बाहर होने लगा। मौसा जी का लण्ड फ़क की आवाज करता हुआ छेद में धंस गया और फिर से वासना का मधुर खेल आरम्भ हो गया।
कविता की गाण्ड चुदी जा रही थी, साथ में वो बला की अदायें बिखेरती जा रही थी। मौसा जी उसकी मासूम सी नकली अदाओं पर बिछे जा रहे थे ... खिड़की के पट थोड़े से खुले हुये थे और रूपा उन दोनों की चुदाई का नजारा देख रही थी...
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कविता का मन डोल उठा
अंधेरे में एक साया एक घर के पास रुका और सावधानी से उसने यहाँ-वहाँ देखा। सामने के घर की छोटी सी दीवार को एक फ़ुर्तीले और कसरती जवान की तरह उछल कर फ़ांद गया और वहाँ लगी झाड़ियों में दुबक गया।
कमरे में कविता बिस्तर पर लेटी हुई कसमसा रही थी, उसे नींद नहीं आ रही थी। उसे अचानक लगा कि उसके घर में कोई कूदा है। वह दुविधा में रही, फिर उठ कर खिड़की के पास आ गई। उसे एक साया दिखा जो झाड़ियों के पास खड़ा था।
वो साया दबे पांव अन्दर की ओर बढ़ रहा था। उसे आश्चर्य हुआ कि मुख्य दरवाजा खुला हुआ था। वो तेजी से अन्दर आ गया और सीधे मौसी के कमरे की तरफ़ बढ़ गया। कविता का दिल धक-धक करने लगा, पर उसे ताज्जुब हुआ कि वो मौसी के कमरे में ना जाकर ऊपर सीढ़ियों पर चला गया।
उसने अंधेरे में तुरंत अपना मोबाईल निकाला और अपनी पड़ोसन शमा आण्टी को फोन किया,"आण्टी, हमारे घर में कोई चोर घुस आया है।"
" क्या... क्या ... कहाँ है वो अभी ?"
"वो ऊपर गया है"
"रूपा कहाँ है...।"
"शायद सो रही है..."
"ओह्ह्... तुम सो जाओ वो चोर नहीं है ?"
"तो आण्टी ???"
"वो दिल का चोर है... तुम्हारी आन्टी भी ऊपर ही है... सो जाओ !" शमा की खनकती हंसी सुनाई दी ।
कविता ने फोन बन्द कर दिया। ओह्ह्... तो यह बात है... यह मौसी का यार है !!! अरे ये वही तो नहीं है जो सवेरे चाय पी रहा था। इसका मतलब यह रात भर मौसी के साथ रहेगा। मौसा अक्सर बिजनेस यात्रा पर चले जाते थे।
"तो क्या मौसी ... छी ... छी ... ऐसा नहीं हो सकता। मैं ऊपर जाकर देखूँ? हाँ यह ठीक रहेगा।" कविता ने धीरे से दरवाजा खोला और नंगे पांव सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गई। मौसी के कमरे की लाईट जल रही थी। मतलब वो अभी तक सोई नहीं थी। वो चुपचाप सीढियाँ चढ़ गई। सारी खिड़कियाँ बन्द थी। पर हां खिड़की के पास एक पत्थर की बेन्च थी, उसके ऊपर ही एक खुला रोशनदान था। कविता बेन्च पर चढ़ गई।
जैसे ही अन्दर झांका तो जैसे उसके दिल की धड़कन रुक गई। वो लड़का वही था... उसका नाम आशू था। वो बिल्कुल नंगा खड़ा था और उसका लण्ड लम्बा सा और मोटा सा था। उसका सीधा खड़ा और तन्नाया हुआ लण्ड बड़ा ही मनमोहक लग रहा था।
मौसी बस एक पेटीकोट में थी, उनका ब्लाऊज उतर चुका था। उनकी दोनों चूचियां खूबसूरत थी, गोल गोल, भूरे भूरे निपल, आशू ने मौसी को प्यार से चूम लिया और बदले में मौसी में उसके फ़डकते हुये लण्ड को अपनी मुठ्ठी की गिरफ़्त में ले लिया। उसे प्यार से सहलाते हुये उसके लण्ड अपना हाथ आगे पीछे चलाने लगी।
कविता का दिल कांप उठा। धड़कन बढ़ गई। उसके मन में वासना जाग उठी।
जबकी कमरे के भीतर चल रही बात-चीत वह बड़े ध्यान से सुन रही थी।
"आशू, मस्त लण्ड के मजे कुछ ओर ही होते हैं... हैं ना...?"
"रूपा, और मस्त चूत भी कमाल की होती है... जैसे आपकी है !"
"कल तो तू बड़ा कविता की चूत मारने की बात कर रहा था...?"
"वो तो नई चूत है ना ... अभी तक चुदी नहीं होगी... आप आदेश दे तो उसे भी सेट करें?"
"अभी तो मेरी चूत कुलबुला रही है... चल अपना लौड़ा अब चूत में घुसा डाल... कविता को तो पटा ही लेंगे... अब बेचारी के पास चूत है तो लण्ड तो चाहिये ही ! है ना?"
आशू हंस पड़ा और रूपा से लिपट गया। कुछ देर तक तो वो कुत्ते की तरह लण्ड चूत पर मारता रहा फिर चूत के द्वार पर अपने आप ही सेट हो गया और चूत के पट खोलता हुआ अन्दर घुस गया। रूपा आशू से लिपट गई और एक टांग उठा कर आशू की कमर में डाल दी और लण्ड को अपनी चूत में सेट कर लिया।
कविता का बदन पसीने से भीग गया, सांस फ़ूलने लगी। उसकी चूत भी रिसने लगी और गीली हो उठी। अपने चुदने की बात से उसे अपनी पहली चुदाई याद हो आई। दोनों की कमर धीरे हिलने लगी और रूपा चुदने लगी। दोनों के मुख से वासना भरी सिसकारियाँ निकलने लगी।
"हाय रे आशू, भगवान ने भी क्य मस्त चीज़ें बनाई हैं... धरती पर ही स्वर्ग का आनन्द ले लो !"
"हां देखो ना आपके अधर रस से भरे, आंखों में जैसे शराब भरी हुई है, गुलाबी गाल को सेब की तरह काटने को मन करता है... चल बिस्तर पर चुदाई करते हैं !"
" नहीं रे अभी नहीं ... अभी थोड़ा सा गाण्ड को भी तो मस्ती दे यार !" और उसका लण्ड बाहर निकाल कर पीछे घूम गई और घोड़ी बन कर चूतड़ उभार दिये...
जैसे ही आशू का लण्ड गाण्ड के छेद पर रखा...
ये नजारा देखकर कविता सिहर गई। कविता का मन उनकी पूरी चुदाई देखने को हो रहा था, और अब तो ये हालत थी कि उसकी चूत भी फ़डफ़डा उठी थी।न चाहते हुए भी उसकी उंगलियाँ अपने सलवार के भीतर अपनी कमसिन योनि को कुरेदने लगी।
उफ....ये चुदाई....जब तक न देखो तब तक ठीक वरना बिना कराये मन नहीं मानता।
कविता की बुर की खुजली बढ़ने लगी। उसने अपनी चूत को अपने हाथ से हौले से दबा दी। उसकी चड्डी बाहर तक गीली हो गई थी और चिपचिपापन बाहर से ही लग रहा था। उसके सारे शरीर में एक वासना भरी कसक भर उठी थी। रूपा की ग़ाण्ड के दोनों गोल गोल उभरे हुये चूतड़ किसी का भी लण्ड खड़ा कर सकते थे।
आशू ने हल्का सा ही जोर लगाया और उसका लोहे जैसा डण्डा उसकी गाण्ड के छेद में उतर गया। दोनों ही एक साथ सिसक उठे। सो रूपा की गाण्ड तो लण्ड ले ले कर मस्त हो चुकी थी। उसे दोनों ही छेद से चुदाने में मजा आता था। आशू ने रूपा के मस्त बोबे पकड़े और मसलने लगा। साथ ही साथ जोश में लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा। दोनों मस्ती के माहौल में डूबे हुये थे ... हौले हौले सिसकी भरते हुये रूपा चुद रही थी।
कविता की आंखें मदहोशी में डूबने लगी थी। उसका सारा शरीर पसीने से भीग उठा था। उसकी आंखों के कटोरे नशे से भर गये थे, नयन बोझिल हो गये थे। उसका बदन जैसे आग में जलने लगा था। उसकी नस नस में वासना की कसक भर चुकी थी। ऐसे में उसे यदि कोई मिल जये तो उसको जी भर के चोद सकता था। रूपा की गाण्ड चुद रही थी। आशू का लण्ड भी फ़ूलता जा रहा था।
उसे भी स्वर्ग का आनन्द आ रहा था। दोनों ही दीन दुनिया से बेखर जन्नत में विचरण कर रहे थे। कविता का मन सकता जा रहा था। उसकी चूत भी चुदाई करने जैसी हालत में आगे पीछे चलने लगी थी। जाने कब उसकी एक अंगुली उसने अपनी चूत में घुसा ली और चूत को शान्त करने की कोशिश करने लगी।
तभी आशू ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और रूपा झट से बिस्तर पर आ गई और उसने अपनी टांगें लेटे हुये ऊपर की ओर उठा ली। अपनी चूत को लण्ड को घुसेड़ने के लिये खोल दी। आशू भी उछल कर रूपा पर सवार हो गया। उसे अपने बदन के नीचे दबा लिया।
उसका लण्ड उसके मुख्य द्वार में घुस गया और अन्दर उतरता चला गया। दोनों ही एक बार फिर से सिसक उठे। दोनों के होंठ मिल गये और फिर दोनों के चूतड़ एक दूसरे दबाते हुये लण्ड को घुसाने लगे। दोनों एक लय में, एक ताल में चलने लगे और चुदाई आरम्भ हो गई। दोनों की वासना भरी चीखें कमरे में गूंजने लगी।
उस कामुकता भरे वातावरण में कविता का मन डोल उठा और उसने चुदाने की सोच ली।
पर अभी चुदाई चल ही चल ही रही थी... उसे देखने का लोभ वो छोड़ ना सकी। रुपा की चुदाई के बाद वो भी कमरे में घुस कर चुदवाना चाहती थी। कविता की चूत मारे गुदगुदी के बेहाल हो रही थी। बार बार अपनी अंगुली चूत में घुसा लेती थी।
तभी रूपा की चीख निकल पड़ी और वो झड़ने लगी। आशू भी साण्ड की तरह अपना मुँह ऊपर करके जोर लगा कर झड़ने की तैयारी में ही था। कुछ ही क्षणों में उसने अपना चेहरा ऊपर करके हुन्कार भरी और लण्ड बाहर निकाल कर वीर्य उसकी उसके बदन पर बिखेरने लगा। कविता ने देखा कि मामला तो अब शान्त हो चुका है, बड़े बेमन से वो पत्थर की बेंच पर से उतरी और दबे पांवो से सीढ़ियाँ उतर गई।
उसकी चूत की हालत यह थी कि उसकी चड्डी सामने से गीली हो चुकी थी। कमरे में घुसते ही उसने मोमबत्ती ली और बिस्तर पर लुढ़क गई। अपनी चूत को मोमबत्ती से शान्त किया, फिर वो निद्रा में लीन हो गई। सुबह तक उसकी चड्डी सूख कर कड़क हो गई थी। उसकी चूत का पानी भी यहां वहां फ़ैल कर जांघ से चिपक गया था। उसने अपनी फ़्रॉक को नीचे खींचा और कमरे से बाहर निकल आई। उसने अपने खुले टॉप की तरफ़ भी ध्यान नहीं दिया। उसने बाहर आकर दोनों हाथों को उठाकर और आंखे बंद करके एक मदमस्त अंगड़ाई ली, पर आँखें खुलते ही उसने देखा कि आशू सामने खड़ा था। वो उसे आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर यूं घूर रहा था जैसे उसने कोई अजूबा देख लिया हो।
कविता ने उसे देखा और घबरा कर वापस अपने कमरे में आ गई। आशू भी मुस्कुरा पड़ा और कविता भी कमरे में मुस्कुरा उठी।
वो तुरंत बाथरूम में जाकर नहा धो कर फ़्रेश हो गई। उसने रूपा के कमरे में जैसे ही कदम रखा तो उसे आशू वहाँ नहीं मिला। वो जा चुका था।
जो कुछ भी हुआ था उसे देखकर किसी की भी हालत वही होती जो इस वक्त कविता कि हो रही थी। आखिरकार कुछ ही देर में उसके शरीर में एक अजीन सा खिचाव पैदा हुआ और वो पस्त होती चली गई।
"काश मेरे भी दिल का कोइ चोर होता......"
अगले दिन,
रात को खाना खाने के बाद रूपा अपने कमरे में आराम करने लगी, तभी कविता भी वहाँ पर आ गई। "मौसी, मैं भी आपके पास लेट जाऊं?" मौसी एक तरफ़ खिसक गई। कविता उनके पास लेट गई। "मौसी, एक बात पूछूँ... ये आशू क्या करता है...?" कविता ने धीरे से पूछा। रूपा ने उसकी तरफ़ करवट ली और कहा,"क्यूं क्या बात है ... है ना सुन्दर लड़का...?" "हां मौसी, सुन्दर तो है, पर मेरे से वो बात ही नहीं करता है..." कविता अपनी चूंचियां रूपा की बांह से दबाती हुई बोली। रुपा को कविता की बैचेनी का अहसास हो गया था। उसने अपनी बांह को उसकी चूंचियों पर और दबाते हुए कहा,"अरे, वो तो तुम्हारी ही बात करता है ... कहो तो उससे दोस्ती करा दूँ...!" कविता को अपनी चूंची पर दबाव महसूस हुआ तो उसके मन में तरगें फ़ूट पड़ी। "सच मौसी, मान जायेगा वो...आप कितनी अच्छी हैं...!" कविता ने अपनी चूची को उनकी बांह पर पूरा दबाते हुये उन्हें चूम लिया। "लगता है तेरा मन भटक रहा है... अब तेरी शादी करा देनी चाहिये !" मौसी ने मन की बात पढ़ ली थी। "मौसी, शादी तो करा देना... पर मन को तो हल्का कर दो... !" कविता की आवाज में कसक थी। रूपा ने उसकी बैचेनी को देखते हुये अपने हाथों में कविता की दोनों चूंचियां भर ली। "मेरी कविता, अभी तो ये ले ... फिर समय आने दे... आशू भी मिल जायेगा...!" कविता सिसक उठी और रूपा से लिपट गई। रूपा ने भी मौके का पूरा फ़ायदा उठाया और अपनी एक चूंची उसके मुँह से रगड़ दी। कविता ने भी रूपा को पटाना उचित समझा और उसके ब्लाऊज को ऊपर खींच कर उसकी चूंची को अपने मुँह में भर लिया। रुपा भावना में बह चली। दोनों ही वासना में लिप्त हो कर एक दूसरे के बदन से खेलने लगी थी। अंधेरा बढ़ चला था। तभी आशू ने हौले से कमरे के भीतर कदम रखा। कविता चौंक गई, वो भूल गई थी कि आशू के आने समय हो चुका है। रूपा तो कविता को बहला कर बस आशू के आने का ही इन्तज़ार कर रही थी। कविता तो लगभग नंगी ही थी, पर रुपा ने अभी भी पेटीकोट पहना हुआ तो था पर वो पूरा ही ऊपर उठा हुआ था।
तभी आहट हुई।
"कविता, देख आशू आया है..." " मौ... मौसी, मैं तो मर गई, कुछ दो ना... मुझे शरम लग रही है !" कविता हड़बड़ा गई। "शरमा मत ... ये तो मुझे रोज रात को चोदता है... चल आज तू चुदवा ले ..." रूपा ने उसे धीरज बंधाते हुये कहा। " रूपा जी आपने तो अपना वादा पूरा कर दिया ... वाह ... कविता जी यदि कहेंगी तो ही कुछ करने का मजा आयेगा... " "आशू जी, आप तो अपने कपड़े उतारो ... कविता आपका स्वागत करेगी... कविता कुछ तो कहो !" "जी मैं क्या कहूँ... मुझे तो बहुत लज्जा आ रही है..." कविता ने मुँह छुपा रखा था। आशू कविता के और नजदीक आ गया था। " आपके मुख के पास कुछ है... कविता जी... मुख खोलो तो..." आशू ने कहा। कविता ने अपना मुख खोल दिया... और आशू ने अपना कोमल, नरम चमड़ी वाला कठोर लण्ड उसके होंठो से सहला दिया। कविता के शरीर में सनसनी फ़ैल गई। उसने धीरे से हाथ बढ़ा कर उसका लण्ड पकड़ लिया,"हाय राम... इतना बड़ा...?" कविता की भारी आंखे आशू की ओर उठ गई और उसे प्यार से निहारने लगी। वो एक दम नंगा उसके सामने खड़ा था। रूपा कविता की ओर देख-देख कर मुस्करा रही थी। उसने प्यार से कविता के सर पर हाथ फ़ेरा और आशू के लण्ड को उसके सर को दबा कर कविता के मुँह में प्रवेश करा दिया। कविता ने सारी शरम छोड़ कर आशू के चूतड़ पकड़ लिये और अपने मुँह में उसे भींच लिया। रूपा ने आशू को चूम लिया और उसकी गाण्ड में अंगुली डालने लगी। आशू झुक कर कविता के सर को पकड़ कर अपना लण्ड उसके मुँह में अन्दर बाहर करने लगा। आशू को रूपा की अंगुली अपनी गाण्ड में बहुत भली लग रही थी। आशू जैसे कविता का मुख चोद रहा था। अब आशू ने कविता को लेटा दिया और उसकी चूंचियों को दबाने और मसलने लगा। उसके चुचूक जो बेहद कड़े हो चुके थे, उन्हें हौले हौले से सहलाने और अंगुलियों से खींचने लगा। "आह मौसी, ऐसा मजा तो कभी नहीं आया... आशू जी, अब नहीं रहा जाता ... प्लीज आ जाओ ना..." "अभी से कहाँ कविता जी... जवानी का मजा तो लो अभी ..." अब आशू के हाथ उसकी चूत की पंखुड़ियो के आस पास सहला रहे थे। बीच बीच में चूत के ऊपर कविता की यौवन-कलिका को भी सहला देता था। उसे हिला हिला कर कविता को असीम आनन्द दे रहा था। कविता की दोनों टांगें ऊपर उठने लगी थी। नतीजा यह हुआ कि उसकी गाण्ड का भूरा-भूरा कमल भी नजर आने लग गया था। आशू पंजों के बल बैठा था, सो रूपा भी आशू का आनन्द ले रही थी। कभी वो उसके लण्ड को मसल देती थी, कभी उसकी गोलियों को सहला देती थी, तो कभी उसकी गाण्ड में अपनी एक अंगुली घुसा देती थी। आशू भी थूक लगा कर कविता की गाण्ड में अंगुली घुसाने लगा था। उसकी गाण्ड के छेद को बड़ा कर रहा था, पर इस क्रिया में कविता मस्ती में बेहाल हुई जा रही थी। उसके मुख से सिसकारियाँ जोर से निकल रही थी, कभी कभी तो मस्ती में चीख भी उठती थी। आशू की अंगुलियाँ चूत में भी कमाल कर रही थी।
रूपा का दिल भी मचल उठा और जान करके उसने आशू का कड़कता लण्ड कविता की गाण्ड में रख दिया और आशू को कुछ कहा।
आशू मुस्कुरा उठा और उसने लण्ड का जोर गाण्ड के छेद पर लगा दिया। लण्ड कविता की गाण्ड में घुसता चला गया। कविता की गाण्ड तो कितनी बार उसके दोस्तो ने चोद रखी थी, सो लण्ड सरकता हुआ भीतर बैठने लगा। कविता ने भी अपनी गाण्ड थोड़ी ऊपर उठा दी। रूपा ने जल्दी से तकिया नीचे लगा दिया। रूपा ने आशू की गाण्ड में अपनी अंगुली फ़ंसाते हुये कहा,"आशू चोद दे साली को, ये तो पहले से ही खुली हुई है... लगा धक्के साली की गाण्ड में..." "आह्ह्ह, आशू जी, जोर से चोद दो ना इसे ... बहुत दिन हो गये इसे चुदवाये ... आह्ह... लगा और जोर से..." कविता सीत्कार भरने लगी। कविता की गाण्ड चुदने लगी ... कविता को आनन्द आने लगा। अब रुपा कविता के पास आ गई और उसके स्तन मुँह में भर कर चूसने लगी, कभी कभी वो उसके मुख को भी जोर से चूस लेती थी। कुछ देर तक यही दौर चलता रहा, फिर आशू ने अपना लण्ड गाण्ड से निकाल कर चूत में घुसा दिया। कविता के मुख से आनन्द की जोर से आह निकल गई। तभी आशू ने रूपा की चूत में भी अपनी अंगुली प्रवेश करा दी। वो भी चिहुंक उठी। अब आशू का लण्ड कविता की चूत में घुस चुका था। कविता को लगा कि हाय, स्वर्ग है तो बस चूत में ही है... रुपा भी अपनी चूतड़ आशू की तरफ़ उठाये थी और वो उसमें अपनी अंगुली फ़ंसाये हुये था। अब तो कविता की कमर और आशू की कमर बराबरी से चल रही थी। मस्त चुदाई का माहौल बना हुआ था। तीनों नशे में झूम रहे थे। कविता तो जबरदस्त चुदाई मांग रही थी,"आशू, प्लीज ! मुझे जोर से चोदो ना... जल्दी जल्दी करो ना ... मेल इंजन की तरह ..." आशू ने रुपा को एक तरफ़ किया और अपनी पोजिशन को फिर से सेट की और उसके पांव खींच कर पलंग के किनारे कर दिया और खुद खड़े हो कर पोजीशन बना ली। अब उसका लण्ड उसकी चूत के बिल्कुल सामने था। "तो कविता रानी, चूत फ़ाड़ चुदाई के लिये तैयार हो...?" "हां जी... अब देर ना लगाओ ... मेरी तो अब फ़ाड़ दो आशू राजा !" "लगता है पहले से मस्त चुदी चुदाई हो...!" "आशू जी। आप भी तो मस्त चोदते हो ना... पुराने खिलाड़ी हो ना।" तीनों ही हंस दिये। आशू ने अपना लण्ड पहले तो अपना लण्ड भीतर घुसा कर सेट कर लिया, फिर बोला,"हां जी... तैयार हो जाओ..." और कहते हुए उसने पूरा लण्ड निकाल कर पूरा ही जोर से धक्के के साथ घुसा डाला। कविता के मुख से खुशी की एक तेज चीख निकल गई। जल्दी ही दूसरा धक्का लगा जो जड़ तक चीर गया। फिर धक्के पर धक्के भीतर तक, चूत को फ़ाड़ देने वाले धक्के चलने लगे। कविता तेज धक्कों से प्रसन्न हो उठी। और उसे और तेज धक्कों के लिये प्रोत्साहित करने लगी। उसके मुख से आनन्द भरी चीखें वातावरण को और वासनामय बना रही थी। अब तो कविता के चूतड़ भी उछल उछल कर लण्ड भीतर तक लेकर चुदवा रहे थे। दोनों के दिल की धड़कनें तेज हो गई थी। पसीना छलक उठा था। रूपा दोनों का इस प्रकार का रूप देख कर विचलित हो रही थी और सोच रही थी कि आशू ने मेरी चुदाई तो कभी भी इस तरह से नहीं की थी। वो मन ही मन जल उठी। तभी एक तेज चीख ने रूपा का ध्यान भंग कर दिया। कविता झड़ रही थी। उसका यौवन रस निकल पड़ा था। कविता अपना यौवन रस अपनी चूत लण्ड पर दबा कर निकाल रही थी। आशू को लगा जैसे कि कविता की चूत ढीली पड़ गई थी, उसमें पानी भरा हुआ था और लण्ड अब फ़च फ़च की आवाज कर रहा था। तभी रूपा ने अपने आप को आशू के सामने पेश कर दिया... "उसका काम तो हो गया, आशू जी, मेरी ओर तो देखो, यहाँ तो आपको फिर से बेकरार एक चूत मिलेगी... उठो और मेरे से चिपक जाओ !" रूपा ने आशू को अपनी ओर खींचा। आशू का कड़कता लण्ड कविता की चूत से बाहर गया जो कि रस से नहाया हुआ था। कविता बिस्तर पर ही लोट लगा कर एक किनारे हो गई और रूपा को चुदने के लिये जगह दे दी। कुछ ही पलों में आशू का लण्ड रूपा की चूत में घुस चुका था। इस बार रुपा की बारी थी सिसकारी भरने की। पर आशू तो कविता को ही चोद कर झड़ने के करीब आ चुका था, सो रुपा को चोदते हुये कुछ देर में अपने आप को सम्हाल ना पाया और अपना वीर्य छोड़ने लगा। दोनों ही अब आशू से लिपट पड़ी और उसे अपने चुम्बनों से बेहाल कर दिया। कविता तो आशू का लण्ड मुँह में भर कर बचा खुचा वीर्य भी चट गई। रूपा और कविता भी आपस में लिपट कर एक दूसरे को प्यार करने लगी.....
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अगले दिन दोपहर को मौसा जी घर आ चुके थे। उनके साथ उसके एक पुराने मित्र राजेश भी थे। उनके आते ही कविता और रूपा में कुछ बदलाव सा लगा, दोनों ही कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रही थी। कविता भी पहले से अधिक सेक्सी लगने लगी थी। उसने थोड़ा मेकअप भी किया हुआ था और मौसा जी से वो हंस-हंस के बात कर रही थी। रूपा ने राजेश की खूब आवभगत की और उससे खूब बातें की। मौसा जी बार-बार कविता की तरफ़ देखते, कभी उसका फ़िगर देखते, कभी उसके सुडौल चूतड़ों को निहारते। आज जाने क्यों कविता बड़ी आकर्षक लग रही थी। मौसा को क्या पता था कि आज कविता ने भरपूर चुदाई करवा कर अपना मन शांत कर लिया था। पर हां इससे कविता के मन में एक नया जोश और मर्दों के प्रति एक आकर्षण पैदा हो गया था। जैसे अधिकतर मर्द नारी को एक भोग्य वस्तु मानते हैं, वैसे ही उसे पुरुष भी भोगने की वस्तु लगने लगे थे। उसे लगने लगा था कि मर्द तो बस चूत के दीवाने रहते हैं, इन्हें तो जब चाहो तब पटा लो और चुदा लो। बस थोड़ी सी चूची दिखा दो और मर्दों का तम्बू तन जाता है। चुनांचे मौसा जी भी कविता के लिये उसी श्रेणी में आ चुके थे। कविता दो दिनों में ही मौसा जी के बहुत निकट आ चुकी थी। कविता उन्हें हर तरफ़ से उसे पटाने में लगी थी। उसे आशा थी कि उसे एक नया लण्ड जल्दी ही मिल जायेगा। अभी तो सभी कुछ पर्दे के पीछे था। उधर रूपा भी राजेश से खूब घुल मिल गई थी। शाम को सब मौसा जी के साथ राजेश को घुमाने ले जाते थे। रूपा ने कविता को और कविता ने रूपा को यह बता दिया था कि वो इन मर्दों को पटा रही हैं। दोनों ने अपने पत्ते खोल रखे थे। कविता यदि मौसा के अधिक करीब आ जाती थी तो रूपा जानबूझ कर दूसरी ओर चली जाती थी और मौसा यह समझते थे कि मौका मिल गया। इस दौरान वो हाथ दबा देते थे और कभी कभी चूतड़ पर हाथ भी मार देते थे। बदले में कविता शर्माने का अभिमय कर देती थी। उधर रूपा ने भी राजेश को पटा लिया था। रूपा जरा तेज थी, सो वो तो चुम्बन तक पहुंच गई थी। "कविता ! अब तो मुझे चुदने की लग रही है ... अपने मौसा जी को कही बाहर ले जा ना !" "शाम को मौसा जी को मैं घुमाने ले जाती हूँ और आप तबियत का बहाना बना लेना !" दोनों ने अपनी ओर से सरल सा बहाना बना लिया। योजना के मुताबिक राजेश बाहर निकल गया और रूपा ने पेट दर्द का बहाना किया। मौसा जी तो चाहते ही थे कि उसे सिर्फ़ कविता का साथ मिले। कविता के थोड़े से ही कहने पर मौसा जी मान गये। रूपा ने भी मंजूरी दे दी। दोनों कार में निकल पड़े और रूपा ने जल्दी से मोबाईल पर फ़ोन करके राजेश को वापस बुला लिया। राजेश तुरंत घर आ गया। राजेश सीधा रूपा के कमरे की तरफ़ बढ़ गया। रूपा उसे देखते ही शरमाती सी खिल गई।
"अब हम तुम इस कमरे में बंद हो तो..." "धत्त, आप तो मजाक करने लगे..." रूपा ने राजेश को रिझाने का नाटक किया। "अब तो मत शर्माओ ... अब तो एक मैं और एक तू ... दोनों मिले किस तरह... बताओ !" "हाय रे ... आप दूर रहें ... मुझे कुछ होता है...!" राजेश ने रूपा का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया, रूपा जानबूझ कर उसके ऊपर गिरती हुई बोली,"हाय राम ... बैंया तो छोड़ो, मोच आ जायेगी ना..." रूपा फ़िल्मी अदाएँ दिखाते हुये राजेश से लिपट गई। दूसरे ही क्षण रूपा के मद भरे अमृत कलश उसकी हथेलियों में दबे हुये थे। "मां री ! ... मत करो ना ... गुदगुदी होती है ...! " रूपा ने आह भरते हुये कहा,"दूर रहो जी... नीचे कुछ गड़ रहा है..." मेरी मतवाली रूपा यही है वो मस्त चीज़ जो हमे अभी मस्ती देगी ... अब बनो मत ..." "ना जी ... मत सताओ ... इसे दूर ही रखो ... मेरा मन डोल रहा है... हाय रे ! क्या कर रहे हो... घुसाये चले जा रहे हो... आह्ह्ह मेरे राजेश...!!" "मस्ती आ रही है ना... आओ अब अधरों का रसपान करें" राजेश भी भावना में बह कर बोला। दोनों के होंठो की पत्तियां टकरा गई और एक दूसरे की जीभ से वो भीग गये। होंठो का कसाव दोनों ने बढ़ा दिया और अधरपान में लीन हो गये। राजेश के मुँह से सीत्कार निकल पड़ी... रूपा ने उसका लण्ड कस कर दबा दिया था। "अरे रूपा, तुम मुझे मार डालोगी... जरा धीरे से... कहीं निकल गया तो मजा नहीं आयेगा..." "तो फिर जी, क्या करें ... मेरा तो मन डोल रहा है जी...!" "चलो, पहले प्यास बुझा ले... कपड़े उतारो..." "प्यास लग रही है तो कपड़े क्यूँ उतारें भला...?" रूपा ने शरमाते हुये कहा। राजेश ने धीरे से रूपा की साड़ी उतार दी ... फिर ब्लाऊज को जबरदस्ती उतार दिया। रूपा की तरफ़ से ब्लाऊज़ उतारने का विरोध तो मात्र एक नाटक था, ब्लाऊज उतरते ही उसने अपनी उभरी हुई जवानी को हाथों से छिपाने का नाकाम प्रयास किया। राजेश ने भी जल्दी से अपने कपड़े उतार फ़ेंके। अब रूपा के पेटीकोट की बारी थी, बस नाड़ा खींचने की देर थी। पेटीकोट झम से नीचे पांवों पर आ गिरा।
"मैं मर गई राम जी... और कभी अपनी चूत छिपाती तो कभी अपने उभरे हुये स्तनों को ढकने की कोशिश करती। राजेश ने अपने नंगे बदन से रूपा को लिपटा लिया और दोनों फिर बिस्तर पर एक दूसरे को धकेल कर लेट गये। दोनों ही एक दूसरे के शरीर को दबाते हुये लोट लगाने लगे। तभी रूपा सिसक उठी। उसकी चूत में राजेश का कड़क लण्ड बिना किसी पूर्व सूचना के उतर चुका था। रूपा के बदन में तरावट आने लगी। कब से नये लण्ड का इन्तज़ार कर रही थी और नये लण्ड ने उसकी चूत को स्वीकार करते हुये खेल-खेल में प्रवेश कर लिया था।
राजेश रूपा के नीचे दबा हुआ था और रूपा उसके ऊपर लण्ड पर बैठ गई थी। रूपा उसके लण्ड पर अपनी चूत भींचे जा रही थी और राजेश के चूतड़ ऊपर की ओर जोर लगा कर पूरा लण्ड अन्दर तक बैठाने की कोशिश में थे। रूपा राजेश पर पिघले जा रही थी। उसकी चूत फ़डफ़डा रही थी। राजेश ने रूपा के सुडौल स्तन हिलते हुये देखे और उसके हाथ उन्हें थाम कर ऊपर नीचे करके उसे मसलने लगा। रूपा उस पर झुक गई और चूत को आगे पीछे करके राजेश को चोदने लगी। राजेश का शरीर वासना में जलने लगा। वो अपने चूतड़ ऊपर उछाल कर रूपा को चोदने में सहायता करने लगा। अब रूपा राजेश के शरीर के ऊपर लेट सी गई और आहें भरते हुये चूत को आगे-पीछे करके लण्ड का आनन्द लेने लगी। राजेश ने अतिउत्तेजना में रूपा को कमर से जकड़ लिया और धीरे से उसे अपने नीचे दबोच लिया। राजेश अब ऊपर था और लण्ड जो कि इस उल्टा पल्टी में बाहर आ गया था, फिर से चूत में सरक गया। अब रूपा की भरपूर चुदने की बारी थी। राजेश के धक्के और झटके चूत पर चालू हो गये थे। और नीचे दबी रूपा आह्... उह्ह... हाय रे... जैसी सीत्कारें निकाल रही थी। राजेश अपने लण्ड को अपनी तसल्ली के लिये दबा के धक्के मार रहा था। नीचे दबी चुदैल रूपा को ये धक्के बडे प्यारे लग रहे थे। उसके हर जोरदार धक्के पर रूपा के मुँह से आह निकल जाती थी। तभी रूपा को लगा कि उसकी चूत जवाब देने वाली है, उसने अपनी प्यारी चूत को पूरी तरह से झड़ने के लिये तैयार कर ली और आंखें बंद करके अपनी चूत को ढीली छोड़ दी ताकि अच्छी प्रकार से पानी निकल जाये। उसकी चूत अब रस छोड़ने वाली थी और बार बार अन्दर लहरें उठ रही थी। तभी रूपा ने अपनी चूत ऊपर की ओर दबाई और अपना रस छोड़ने लगी। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल पड़ी। उसने राजेश को अपनी बाहों में दबा लिया और लण्ड को चूत में कस लिया। तभी राजेश का वीर्य भी छलक पड़ा। उसकी पिचकारी चूत में समाने लगी और फिर चूत के बाहर रिसने लगा। दोनों एक दूसरे को अपनी बाहों में समाये हुये यूं ही अपना रस निकालने में लगे रहे। उनकी आंखें आनन्द के मारे बंद थी। काफ़ी देर दोनों यों ही दुनिया से बेखबर पड़े रहे। फ़िर रूपा कुछ अलसाई सी पता नहीं क्या बोली और अपना मोबाईल पर कविता को मिस कॉल कर दिया। राजेश भी उठा और जल्दी से कपड़े पहन कर रूपा को चूमा और घर से बाहर निकल गया। कुछ ही देर में कविता मौसा जी के साथ घर आ गई। "अरे, वो राजेश नहीँ आया...?" मौसा ने पूछा। रूपा मुस्करा उठी,"आप जानें ... आपका दोस्त है...!" रूपा कविता के कमरे में आ गई थी। दोनों सहेलियाँ कुछ गुपचुप बाते कर रही थी। "मै सोने जा रहा हूँ... हम दोनों ने खाना बाहर खा लिया है... रूपा तुम भी खा लेना !" मौसा जी अपने कमरे में जाकर बत्ती बंद करके लेट गये। रूपा भी मौसा जी के पीछे चली गई। कविता ने भी अपने रात को सोने वाले कपड़े पहन लिये या यूँ कहे कि बस एक सामने से खुला हुआ गाऊन डाल लिया और बिस्तर पर लेट गई।
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मन ही मन में वो रूपा और राजेश की चुदाई के बारे में सोच रही थी। कविता के मन में मौसा जी का लण्ड भी घूम रहा था। मौसा जी ने आज शाम को इतना घुमाया-फ़िराया और खिलाया-पिलाया पर ना तो चूतड़ों पर हाथ फ़ेरा और ना ही चूंचियों को सहलाया। क्या मौसा जी उसे प्यार करना नहीं चाहते? यही द्वंद्व कविता के मन में चल रहा था !
उसका गाऊन जांघों से ऊपर उठा हुआ था, वो एक करवट ले कर दूसरी ओर घूम गई। तभी उसे लगा कि उसके कमरे में कोई अन्दर आया है। कदमों की आहट से उसे लगा कि मौसा जी हैं। उसके मन में तरंगें लहराने लगी- रात के ग्यारह बजे मौसा जी जरूर उसे चोदने आये हैं। कदमों की आहट उसके पलंग के पास आकर रुक गई। मौसा जी ने धीरे से गाऊन और ऊपर खिसका दिया। कविता के चूतड नंगे हो गये, कविता ने अपनी आंखे बंद किये हुये कहा,"आओ रूपा मौसी, नींद नहीं आ रही है क्या?"
दूसरी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया। दो हाथ कविता की जांघ सहलाने लगे थे।
"मौसी क्या कर रही हो ! हाय ! मत करो ना ... शरम लग रही है, अन्दर हाथ मत घुसाओ ना !" वो कसमसा कर बोली।
मौसा जी ने उसके चूतड़ दबा दिये और दरार को सहलाने लगे। ऐसा करते हुये मौसा जी का लण्ड तन्ना उठा। उन्होंने गाऊन के भीतर से ही हाथ बढ़ा कर कविता के स्तन दबा दिये। कविता जानबूझ कर मौसा जी को मौसि कह रही थी।
"लगता है आज आपका मन बहक रहा है... बस अब ! मुझे बहुत शरम लग रही है !"
मौसा जी का लण्ड ये सुन कर और फ़ूल गया और कविता को चोदने के लिये बेताब हो उठा। उन्होने कविता को उल्टा किया और उसके दोनों पांव चौड़ा दिये... उसकी गाण्ड का फ़ूल सामने दिखने लगा। कविता आनन्द के मारे सिहर गई। मौसा जी से जब नहीं रहा गया तो उन्होंने अपना पजामा उतारा और अपने फ़ूले हुये कड़क लण्ड के साथ कविता की पीठ पर चढ़ गये और अपने तन्नाये हुये लण्ड को गाण्ड के गुलाब पर रख दिया और कविता को जकड़ लिया।
"हाय रे कौन... मौसा जी... ये क्या कर रहे हैं आप?" कविता ने अब उन्हें पहचानने का नाटक किया।
"कविता, अब नहीं रहा जाता... प्लीज करने दो...!"
"मौसी आ जायेगी तो मैं तो मर ही जाऊंगी !"
"उसकी तबियत ठीक नहीं है, उसने नींद की गोली खा ली है और वो गहरी नींद में है।" मौसा जी का लण्ड गाण्ड के छेद में उतर कर फ़ंस चुका था। पर कविता अभी गाण्ड नहीं मरवाना चाह रही थी। उसे तो बस चुदना था, सो वो बल खा कर पलट गई और लण्ड गाण्ड से निकल गया। अब कविता मौसा जी के नीचे थी और सीधी हो चुकी थी। मौसा जी ने भी उसे आराम से पलट जाने दिया और उसके ऊपर चढ़ गये।
"हाय मौसा जी, प्लीज, मत करो, मुझे लाज आती है...!"
"बस ऐसे ही मस्ती करेंगे... मेरा मन तुझ पर आ गया है।"
"मौसा जी, आज ... आह मत करो ना...!" उसने मौसा जी हाथ अपने वक्ष पर से हटाते हुये कहा।
"तुझे अच्छा लगा ना?"
"मौसा जी, बस ना, मुझे शरम आती है, हटो ना....."
वो उस शो-रूम में तुम्हें वो ब्रा-पैन्टी का सेट अच्छा लगा था ना?
मौसा जी ने नीचे से हाथ डाल कर पेण्टी और ब्रा दिखाई..."यही थी ना ... ये लो..."
"हाय मौसा जी, आप कितने अच्छे हैं..." तभी मौसा जी के लण्ड का सुपाडा फ़क से चूत में घुस गया। कविता के मुख से आह निकल गई।
"मौसा जी, आपने तो नीचे कमाल कर दिया...मैं तो शरम से मर जाऊंगी !"
"हाय रे तेरा ये शरमाना, मुझे तो पागल कर देगी तू ..." मौसा जी का लण्ड कविता की अदा पर फ़ूलता जा रहा था। उनका मोटा लण्ड चूत में उतरने लगा।
" हाय ना करो ना मौसा जी ... सच में आप में बड़े वो हैं !"
"आय हाय रे मेरी कविता, चुदे जा रही है फिर भी ये शरमाना... ये ले दबा के लण्ड ले मेरा !"
"हाय रे, मेरी फ़ाड दोगे क्या, ... मैं मर गई !" कविता की आंखें चुदाई के नशे में बंद हो रही थी। मौसा जी का भारी लण्ड उसे मस्त किये दे रहा था।
" हांऽऽ आ आज तो तेरी चूत फ़ाड ही दूंगा... हाय कितनी प्यारी सी है ये तेरी फ़ुद्दी !"
"यह फ़ुद्दी क्या होता है जी...?" कविता ने चुदते हुये फ़ुद्दी के बारे में पूछ लिया।
"ओह्ह, मैं मर जाऊं... तेरी तो ... मां कसम... चोद के रख दूंगा ! तुझे भी तेरी मां को भी !" मौसा जी उसकी अदाओं पर मर ही गये। जोश में उनकी कमर तेजी से चलने लगी। कविता मस्त हो कर भोली बनी हुई चुदती रही, उसका शरीर मीठी कसक से भरा जा रहा था। काम-वासना बढ़ती जा रही थी। कविता जोश में मौसा जी के चूतड़ पकड़कर अपनी चूत पर मार रही थी। उसके मुख से वासना भरी चीखें निकल रही थी। मौसा जी ने कविता के दोनों हाथ दबा लिये थे और कस कस के शॉट पर शॉट मारे जा रहे थे। उनका मोटा लण्ड कविता की चूत को जम कर चोद रहा था। कविता ने भी ऐसे मोटे लण्ड से चुदाई पहली बार कराई थी। चूत गहराई तक चुदी जा रही थी। कविता के बदन का एक एक अंग हिल गया था। पर स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति बढ़ती ही जा रही थी।
कविता का अंग अंग मीठी टीस से भर गया और वो अब समूची दुनिया को अपनी चूत में समेटने जा रही थी। उसे लग गया था कि उसक सभी कुछ सिमट कर चूत के रास्ते बाहर आना चाहता है। उसके मुख से आह निकल पड़ी और उसका बदन एक बारगी ऐंठने लगा और चूत को मौसा जी के लण्ड पर दबा दिया और अपना दिव्य-रस बाहर छोड़ दिया। वो स्खलित होने लग़ी थी। मौसा जी ने भी अपना लण्ड कविता के झड़ने तक चूत में ही रहने दिया, फिर बाहर निकाल कर दबा कर मुठ मारने लगे और अपना वीर्य कविता के शरीर पर उछाल दिया। कुछ बूंदे तो उछल कर कविता के चेहरे पर जा पड़ी। मौसाजी ने अपना लण्ड जोर से हिला कर उसमें से एक एक बूंद बाहर निकाल दी।
दोनों अब बिस्तर पर निढाल पड़े थे !
रूपा ने जानबूझ कर के यह सुनहारा मौका उन दोनों को दिया था।
दोनों एक बार फिर से लिपट पड़े और प्यार करने लगे।
"कविता, तू शरमाती बहुत है ... पर उससे मेरी वासना और बढ़ जाती है..."
"मौसाजी, ऐसे काम में शरम तो आती ही है ना"
"हाय रे... शर्माती जाओ और चुदती जाओ... लण्ड तो ऐसे माहौल में खूब फ़ूल जाता है, और शर्माती को चोदने में मस्ती आती है...!"
"धत्त... मौसा जी... ऐसा मत बोलो... मुझे फिर से चुदने की इच्छा होने लगेगी...!"
कविता ने एक बार और चुदने की इच्छा बता दी।
"तू कह तो एक बार ! अभी चोद देता हूं !"
"अरे ना जी ना... बस करो... हाय ना करो... मर गई रे... हाय चुद जाऊंगी मौसा जी...!"
कविता के इन्कार में इकरार था, अपनी तमन्नाओं का इज़हार था।
मौसाजी ने कविता को कमर पकड़ कर उसकी पीठ को अपने से चिपका ली। मौसा जी का भारी लण्ड उसके चूतड़ों में घुसने लगा। कविता अपने आप आगे को झुकने लगी और लण्ड चूतड़ों की दरार में घुसता चला गया। लण्ड के सुपाड़े ने जैसे ही गाण्ड के फ़ूल पर नरम स्पर्श दिया, फ़ूल खिल उठा और अन्दर बाहर होने लगा। मौसा जी का लण्ड फ़क की आवाज करता हुआ छेद में धंस गया और फिर से वासना का मधुर खेल आरम्भ हो गया।
कविता की गाण्ड चुदी जा रही थी, साथ में वो बला की अदायें बिखेरती जा रही थी। मौसा जी उसकी मासूम सी नकली अदाओं पर बिछे जा रहे थे ... खिड़की के पट थोड़े से खुले हुये थे और रूपा उन दोनों की चुदाई का नजारा देख रही थी...
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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